Sutra Navigation: Acharang ( आचारांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1000220 | ||
Scripture Name( English ): | Acharang | Translated Scripture Name : | आचारांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-८ विमोक्ष |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-८ विमोक्ष |
Section : | उद्देशक-३ अंग चेष्टाभाषित | Translated Section : | उद्देशक-३ अंग चेष्टाभाषित |
Sutra Number : | 220 | Category : | Ang-01 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] मज्झिमेणं वयसा एगे, संबुज्झमाणा समुट्ठिता। ‘सोच्चा वई मेहावी’, पंडियाणं निसामिया। समियाए धम्मे, आरिएहिं पवेदिते। ते अणवकंखमाणा अणतिवाएमाणा अपरिग्गहमाणा नो ‘परिग्गहावंतो सव्वावंतो’ च णं लोगंसि। णिहाय दंडं पाणेहिं, पावं कम्मं अकुव्वमाणे, एस महं अगंथे वियाहिए। ओए जुतिमस्स खेयण्णे उववायं चवणं च नच्चा। | ||
Sutra Meaning : | कुछ व्यक्ति मध्यम वय में भी संबोधि प्राप्त करके मुनिधर्म में दीक्षित होने के लिए उद्यत होते हैं। तीर्थंकर तथा श्रुतज्ञानी आदि पण्डितों के वचन सूनकर, मेधावी साधक (समता का आश्रय ले, क्योंकि) आर्यों ने समता में धर्म कहा है, अथवा तीर्थंकरों ने समभाव से धर्म कहा है। वे कामभोगों की आकांक्षा न रखनेवाले, प्राणियों का अतिपात और परिग्रह न रखते हुए समग्र लोकमें अपरिग्रहवान होते हैं। जो प्राणियों के लिए दण्ड – त्याग करके पाप कर्म नहीं करता, उसे ही महान् अग्रन्थ कहा गया है ओज अर्थात् राग – द्वेष रहित द्युतिमान् का क्षेत्रज्ञ, उपपात और च्यवन को जानकर (शरीर की क्षण – भंगुरता का चिन्तन करे)। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] majjhimenam vayasa ege, sambujjhamana samutthita. ‘sochcha vai mehavi’, pamdiyanam nisamiya. Samiyae dhamme, ariehim pavedite. Te anavakamkhamana anativaemana apariggahamana no ‘pariggahavamto savvavamto’ cha nam logamsi. Nihaya damdam panehim, pavam kammam akuvvamane, esa maham agamthe viyahie. Oe jutimassa kheyanne uvavayam chavanam cha nachcha. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Kuchha vyakti madhyama vaya mem bhi sambodhi prapta karake munidharma mem dikshita hone ke lie udyata hote haim. Tirthamkara tatha shrutajnyani adi panditom ke vachana sunakara, medhavi sadhaka (samata ka ashraya le, kyomki) aryom ne samata mem dharma kaha hai, athava tirthamkarom ne samabhava se dharma kaha hai. Ve kamabhogom ki akamksha na rakhanevale, praniyom ka atipata aura parigraha na rakhate hue samagra lokamem aparigrahavana hote haim. Jo praniyom ke lie danda – tyaga karake papa karma nahim karata, use hi mahan agrantha kaha gaya hai Oja arthat raga – dvesha rahita dyutiman ka kshetrajnya, upapata aura chyavana ko janakara (sharira ki kshana – bhamgurata ka chintana kare). |