Sutra Navigation: Acharang ( आचारांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1000048 | ||
Scripture Name( English ): | Acharang | Translated Scripture Name : | आचारांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा |
Section : | उद्देशक-५ वनस्पतिकाय | Translated Section : | उद्देशक-५ वनस्पतिकाय |
Sutra Number : | 48 | Category : | Ang-01 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] एत्थ सत्थं समारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा अपरिण्णाया भवंति। एत्थ सत्थं असमारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा परिण्णाया भवंति। तं परिण्णाय मेहावी– नेव सयं वणस्सइ-सत्थं समारंभेज्जा, नेवन्नेहिं वणस्सइ-सत्थं समारंभावेज्जा, नेवन्नेवणस्सइ-सत्थं समारंभंते समणुजाणेज्जा। जस्सेते वणस्सइ-सत्थ-समारंभा परिण्णाया भवंति, से हु मुनी परिण्णाय-कम्मे। | ||
Sutra Meaning : | जो वनस्पतिकायिक जीवों पर शस्त्र का समारंभ करता है, वह उन आरंभो/आरंभजन्य कटुफलों से अनजान रहता है। जो वनस्पतिकायिक जीवों पर शस्त्र का प्रयोग नहीं करता, उसके लिए आरंभ परिज्ञात है। यह जानकर मेधावी स्वयं वनस्पति का समारंभ न करे, न दूसरों से समारंभ करवाए और न समारंभ करने वालों का अनुमोदन करे जिसको यह वनस्पति सम्बन्धी समारंभ परिज्ञात होते हैं, वही परिज्ञातकर्मा (हिंसात्यागी) मुनि है। ऐसा मैं कहता हूँ। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] ettha sattham samarambhamanassa ichchete arambha aparinnaya bhavamti. Ettha sattham asamarambhamanassa ichchete arambha parinnaya bhavamti. Tam parinnaya mehavi– neva sayam vanassai-sattham samarambhejja, nevannehim vanassai-sattham samarambhavejja, nevannevanassai-sattham samarambhamte samanujanejja. Jassete vanassai-sattha-samarambha parinnaya bhavamti, se hu muni parinnaya-kamme. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Jo vanaspatikayika jivom para shastra ka samarambha karata hai, vaha una arambho/arambhajanya katuphalom se anajana rahata hai. Jo vanaspatikayika jivom para shastra ka prayoga nahim karata, usake lie arambha parijnyata hai. Yaha janakara medhavi svayam vanaspati ka samarambha na kare, na dusarom se samarambha karavae aura na samarambha karane valom ka anumodana kare Jisako yaha vanaspati sambandhi samarambha parijnyata hote haim, vahi parijnyatakarma (himsatyagi) muni hai. Aisa maim kahata hum. |