This is BETA page under development.

Welcome to the Jain Elibrary: Worlds largest Free Library of JAIN Books, Manuscript, Scriptures, Aagam, Literature, Seminar, Memorabilia, Dictionary, Magazines & Articles

Global Search for JAIN Aagam & Scriptures

Search Results (43581)

Show Export Result
Note: For quick details Click on Scripture Name
Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत

Hindi 153 Gatha Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अनियाहिवाण पच्चत्थिमेण सत्तेव होंति जंबूओ । सोलस साहस्सीओ, चउद्दिसिं आयरक्खाणं ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १५१
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत

Hindi 154 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra:

Translated Sutra: जम्बू ३०० वनखण्डों द्वारा सब ओर से घिरा हुआ है। उसके पूर्व में पचास योजन पर अवस्थित प्रथम वनखण्ड में जाने पर एक भवन आता है, जो एक कोश लम्बा है। बाकी की दिशाओं में भी भवन हैं। जम्बू सुदर्शन के ईशान कोण में प्रथम वनखण्ड में पचास योजन की दूरी पर पद्म, पद्मप्रभा, कुमुदा एवं कुमुदप्रभा नामक चार पुष्करिणियाँ हैं।
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत

Hindi 155 Gatha Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पउमा पउमप्पभा चेव, कुमुदा कमुदप्पहा । उप्पलगुम्मा नलिना, उप्पला उप्पलुज्जला ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १५४
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत

Hindi 156 Gatha Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] भिंगा भिंगप्पभा चेव, अंजना कज्जलप्पभा । सिरिकंता सिरिमहिया, सिरिचंदा चेव सिरिनिलया ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १५४
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत

Hindi 157 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबूए णं पुरत्थिमिल्लस्स भवनस्स उत्तरेणं, उत्तरपुरत्थिमिल्लस्स पासायवडेंसगस्स दक्खिणेणं, एत्थ णं महं एगे कूडे पन्नत्ते–अट्ठ जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, दो जोयणाइं उव्वेहेणं, मूले अट्ठ जोयणाइं आयामविक्खंभेणं, बहुमज्झदेसभाए छ जोयणाइं आयामविक्खंभेणं, उवरिं चत्तारि जोयणाइं आयामविक्खंभेणं–

Translated Sutra: जम्बू के पूर्व दिग्वर्ती भवन के उत्तर में, ईशानकोण स्थित उत्तम प्रासाद के दक्षिण में एक कूट है। वह आठ योजन ऊंचा, दो योजन जमीन में गहरा है। मूलमें ८ योजन, बीचमें ६ योजन तथा ऊपर ४ योजन लम्बा – चौड़ा है उस शिखर की परिधि मूलमें साधिक २५ योजन, मध्यमें साधिक १८ योजन तथा ऊपर साधिक १२ योजन है। वह मूल में चौड़ा, बीच में संकड़ा
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत

Hindi 158 Gatha Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पणवीसट्ठारस बारसेव मूले य मज्झमुवरिं च । सविसेसाइं परिरओ, कूडस्स इमस्स बोद्धव्वो ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १५७
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत

Hindi 159 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] मूले विच्छिण्णे, मज्झे संखित्ते, उवरिं तनुए, सव्वकनगामए अच्छे वेइया वनसंडवण्णओ। एवं सेसावि कूडा। जंबूए णं सुदंसणाए दुवालस नामधेज्जा पन्नत्ता, तं जहा–

Translated Sutra: देखो सूत्र १५७
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत

Hindi 160 Gatha Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सुदंसणा अमोहा य, सुप्पबुद्धा जसोहरा । विदेहजंबू सोमनसा, नियया निच्चमंडिया ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १५७
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत

Hindi 161 Gatha Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सुभद्दा य विसाला य, सुजाया सुमना वि या । सुदंसणाए जंबूए, नामधेज्जा दुवालस ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १५७
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत

Hindi 162 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबूए णं अट्ठट्ठमंगलगा। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–जंबू सुदंसणा? जंबू सुदंसणा? गोयमा! जंबूए णं सुदंसणाए अणाढिए नामं देवे जंबुद्दीवाहिवई परिवसइ–महिड्ढीए। से णं तत्थ चउण्हं सामानियसाहस्सीणं जाव आयरक्खदेवसाहस्सीणं, जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स, जंबूए सुदंसणाए, अणाढियाए रायहानीए, अन्नेसिं च बहूणं देवाण य देवीण य जाव विहरइ। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–जंबू सुदंसणा-जंबू सुदंसणा। अदुत्तरं च णं गोयमा! जंबू सुदंसणा जाव भुविं च भवइ य भविस्सइ य धुवा णियया सासया अक्खया अवट्ठिया। कहि णं भंते! अणाढियस्स देवस्स अणाढिया नामं रायहानी पन्नत्ता? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स

Translated Sutra: जम्बू सुदर्शना पर आठ – आठ मांगलिक द्रव्य प्रस्थापित हैं। भगवन्‌ ! इसका नाम जम्बू सुदर्शना किस कारण पड़ा ? गौतम ! वहाँ जम्बूद्वीपाधिपति, परम ऋद्धिशाली अनादृत नामक देव अपने ४००० सामानिक देवों, यावत्‌ १६००० आत्मरक्षक देवों का, जम्बूद्वीप का, जम्बू सुदर्शना का, अनादृता नामक राजधानी का, अन्य अनेक देव – देवियों का
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत

Hindi 163 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–उत्तरकुरा उत्तरकुरा? गोयमा! उत्तरकुराए उत्तरकुरू नामं देवे परिवसइ–महिड्ढीए जाव पलिओवमट्ठिईए। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–उत्तरकुरा-उत्तरकुरा। अदुत्तरं च णं जाव सासए। कहि णं भंते! महाविदेहे वासे मालवंते नामं वक्खारपव्वए पन्नत्ते? गोयमा! मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरपुरत्थिमेणं, नीलवंतस्स वासहरपव्वयस्स दाहिणेणं, उत्तरकुराए पुरत्थिमेणं, कच्छस्स चक्कवट्टिविजयस्स पच्चत्थिमेणं, एत्थ णं महाविदेहे वासे मालवंते नामं वक्खारपव्वए पन्नत्ते–उत्तरदाहिणायए पाईणपडीणविच्छिण्णे, जं चेव गंधमायनस्स पमाणं विक्खंभो य, नवरमिमं नाणत्तं–सव्ववेरुलियामए

Translated Sutra: भगवन्‌ ! उत्तरकुरु – नाम किस कारण पड़ा ? गौतम ! उत्तरकुरुमें परम ऋद्धिशाली, एक पल्योपम आयु – युक्त उत्तरकुरु नामक देव निवास करता है। अथवा उत्तरकुरु नाम शाश्वत है। महाविदेह क्षेत्र अन्तर्गत माल्यवान्‌ वक्षस्कारपर्वत कहाँ है ? गौतम ! मन्दरपर्वत के ईशानकोण में, नीलवान्‌ वर्षधर पर्वत के दक्षिणमें, उत्तरकुरु के
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत

Hindi 164 Gatha Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सिद्धे य मालवंते, उत्तरकुरु कच्छ सागरे रयए । सीया य पन्नभद्दे, हरिस्सहे चेव बोद्धव्वे ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १६३
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत

Hindi 165 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! मालवंते वक्खारपव्वए सिद्धाययनकूडे नामं कूडे पन्नत्ते? गोयमा! मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरपुरत्थिमेणं, मालवंतकूडस्स दाहिणपच्चत्थिमेणं, एत्थ णं सिद्धाययने कूडे–पंच जोयणसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, अवसिट्ठं तं चेव जाव रायहानी। एवं मालवंतकूडस्स उत्तरकुरुकूडस्स कच्छकूडस्स एए चत्तारि कूडा दिसाहिं पमाणेहि य नेयव्वा, कूडसरिसणामया देवा। कहि णं भंते! मालवंते सागरकूडे नामं कूडे पन्नत्ते? गोयमा! कच्छकूडस्स उत्तरपुरत्थिमेणं, रययकूडस्स दक्खिणेणं, एत्थ णं सागरकूडे नामं कूडे पन्नत्ते–पंच जोयणसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, अवसिट्ठं तं चेव सुभोगा देवी, रायहानी उत्तरपुरत्थिमेणं।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! माल्यवान वक्षस्कार पर्वत पर सिद्धायतनकूट कहाँ है ? गौतम ! मन्दरपर्वत के – ईशान – कोण में, माल्यवान कूट के नैर्ऋत्य कोण में है। वह पाँच सौ योजन ऊंचा है। भगवन्‌ ! माल्यवान्‌ वक्षस्कार पर्वत पर सागरकूट कहाँ है ? गौतम ! कच्छकूट के – ईशानकोण में और रजतकूट के दक्षिण में है। वह पाँच सौ योजन ऊंचा है। वहाँ सुभोगा
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत

Hindi 166 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! मालवंते हरिस्सहकूडे नामं कूडे पन्नत्ते? गोयमा! पुण्णभद्दस्स उत्तरेणं, निलवंतस्स कूडस्स दक्खिणेणं, एत्थ णं हरिस्सहकूडे नामं कूडे पन्नत्ते–एगं जोयणसहस्सं उड्ढं उच्चत्तेणं, जमगपमाणेणं नेयव्वं। रायहानी उत्तरेणं असंखेज्जदीवे अन्नंमि जंबुद्दीवे दीवे उत्तरेणं बारस जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता, एत्थ णं हरिस्सहस्स देवस्स हरिस्सहा नामं रायहानी पन्नत्ता– चउरासीइं जोयणसहस्साइं आयामविक्खंभेणं, बे जोयणसयसहस्साइं पन्नट्ठिं च सहस्साइं छच्च बत्तीसे जोयणसए परिक्खेवेणं, सेसं जहा चमरचंचाए रायहानीए तहा पमाणं भाणियव्वं, महिड्ढीए महज्जुईए। से केणट्ठेणं भंते!

Translated Sutra: भगवन्‌ ! माल्यवान वक्षस्कार पर्वत पर हरिस्सहकूट कहाँ है ? गौतम ! पूर्णभद्रकूट के उत्तर में, नीलवान पर्वत के दक्षिण में है। वह एक हजार योजन ऊंचा है। लम्बाई, आदि सब यमक पर्वत के सदृश है। मन्दर पर्वत के उत्तर में असंख्य तिर्यक्‌ द्वीपसमुद्रों को लांघकर अन्य जम्बूद्वीप के अन्तर्गत उत्तर के १२००० योजन जाने पर हरिस्सहकूट
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत

Hindi 167 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे कच्छे नामं विजए पन्नत्ते? गोयमा! सीयाए महानईए उत्तरेणं, निलवंतस्स वासहरपव्वयस्स दाहिणेणं, चित्तकूडस्स वक्खारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं, मालवंतस्स वक्खारपव्वयस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे कच्छे नामं विजए पन्नत्ते–उत्तरदाहिणायए पाईणपडीण विच्छिन्नेपलियंकसंठाणसंठिए गंगासिंधूहिं महानईहिं वेयड्ढेण य पव्वएणं छब्भागपविभत्ते सोलस जोयणसहस्साइं पंच य बाणउए जोयणसए दोन्नि य एगूनवीसइभाए जोयणस्स आयामेणं, दो जोयणसहस्साइं दोन्नि य तेरसुत्तरे जोयणसए किंचिविसेसूने विक्खंभेणं। कच्छस्स णं विजयस्स

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जम्बूद्वीप के महाविदेहक्षेत्रमें कच्छविजय कहाँ है ? गौतम ! शीता महानदी के उत्तर में, नीलवान वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, चित्रकूट वक्षस्कार पर्वत के पश्चिममें, माल्यवान वक्षस्कार पर्वत के पूर्व में है। वह उत्तर – दक्षिण लम्बी एवं पूर्व – पश्चिम चौड़ी है, पलंग के आकारमें अवस्थित है। गंगा महानदी, सिन्धु
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत

Hindi 168 Gatha Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सिद्धे कच्छे खंडग, माणी वेयड्ढ पुण्ण तिमिसगुहा । कच्छे वेसमणे वा, वेयड्ढे होंति कूडाइं ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १६७
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत

Hindi 169 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे उत्तरड्ढकच्छे नामं विजए पन्नत्ते? गोयमा! वेयड्ढस्स पव्वयस्स उत्तरेणं, निलवंतस्स वासहरपव्वयस्स दाहिणेणं, मालवंतस्स वक्खारपव्वयस्स पुरत्थिमेणं, चित्तकूडस्स वक्खारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे दाहिणड्ढकच्छे नामं विजए पन्नत्ते जाव सिज्झंति, तहेव नेयव्वं सव्वं। कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे उत्तरड्ढकच्छे विजए सिंधुकुंडे नामं कुंडे पन्नत्ते? गोयमा! माल-वंतस्स वक्खारपव्वयस्स पुरत्थिमेणं, उसभकूडस्स पच्चत्थिमेणं, निलवंतस्स वासहरपव्वयस्स दाहिणिल्ले नितंबे, एत्थ णं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जम्बूद्वीप के महाविदेह क्षेत्र में उत्तरार्ध कच्छ कहाँ है ? गौतम ! वैताढ्य पर्वत के उत्तर में, नीलवान वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, माल्यवान वक्षस्कार पर्वत के पूर्व में तथा चित्रकूट वक्षस्कार पर्वत के पश्चिम में है। अवशेष वर्णन पूर्ववत्‌। जम्बूद्वीप के महाविदेह क्षेत्र में उत्तरार्धकच्छविजय में
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत

Hindi 170 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे चित्तकूडे नामं वक्खारपव्वए पन्नत्ते? गोयमा! सीयाए महानईए उत्तरेणं, निलवंतस्स वासहरपव्वयस्स दाहिणेणं कच्छस्स विजयस्स पुरत्थिमेणं सुकच्छस्स विजयस्स पच्चत्थिमेणं, एत्थ णं जंबु-द्दीवे दीवे महाविदेहे वासे चित्तकूडे नामं वक्खारपव्वए पन्नत्ते–उत्तरदाहिणायए पाईणपडीणविच्छिन्नेसोलसजोयणसहस्साइं पंच य बानउए जोयणसए दुन्नि य एगूनवीसइभाए जोयणस्स आयामेणं, पंच जोयणसयाइं विक्खंभेणं, नीलवंतवासहरपव्वयंतेणं चत्तारि जोयणसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, चत्तारि गाउयसयाइं उव्वेहेणं, तयनंतरं च णं मायाए-मायाए उस्सेहोव्वेहपरिवुड्ढीए

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जम्बूद्वीप के महाविदेह क्षेत्रमें चित्रकूट वक्षस्कार पर्वत कहाँ है ? गौतम ! शीता महानदी के उत्तर में, नीलवान वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, कच्छविजय के पूर्वमें तथा सुकच्छविजय के दक्षिण में है। वह उत्तर – दक्षिण लम्बा तथा पूर्व – पश्चिम चौड़ा है। १६५९२ योजन लम्बा है, ५०० योजन चौड़ा है, नीलवान वर्षधर पर्वत
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत

Hindi 171 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे सुकच्छे नामं विजए पन्नत्ते? गोयमा! सीयाए महानईए उत्तरेणं, निलवंतस्स वासहरपव्वयस्स दाहिणेणं, गाहावईए महानईए पच्चत्थिमेणं, चित्तकूडस्स वक्खारपव्वयस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे सुकच्छे नामं विजए पन्नत्ते–उत्तरदाहिणायए जहेव कच्छे विजए तहेव सुकच्छे विजए, नवरं–खेमपुरा रायहानी, सुकच्छे राया समुप्पज्जइ, तहेव सव्वं। कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे गाहावइकुंडे नामं कुंडे पन्नत्ते? गोयमा! सुकच्छस्स विजयस्स पुरत्थिमेणं, महाकच्छस्स विजयस्स पच्चत्थिमेणं, निलवंतस्स वासहर-पव्वयस्स

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जम्बूद्वीप के महाविदेह क्षेत्र में सुकच्छ विजय कहाँ है ? गौतम ! शीता महानदी के उत्तर में, नीलवान वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, ग्राहावती महानदी के पश्चिम में तथा चित्रकूट वक्षस्कार पर्वत के पूर्व में है। वह उत्तर – दक्षिण लम्बा है। क्षेमपुरा उसकी राजधानी है। वहाँ सुकच्छ नामक राजा समुत्पन्न होता है।
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत

Hindi 172 Gatha Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] खेमा खेमपुरा चेव, रिट्ठा रिट्ठपुरा तहा । खग्गी मंजूसा अवि य, ओसही पुंडरीगिणी ॥

Translated Sutra: क्षेमा, क्षेमपुरा, अरिष्टा, अरिष्टपुरा, खड्‌गी, मंजूषा, औषधि तथा पुण्डरीकिणी।
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत

Hindi 173 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सोलस विज्जाहरसेढीओ? तावइयाओ आभियोगसेढीओ, सव्वाओ इमाओ ईसानस्स। सव्वेसु विजएसु कच्छवत्तव्वया जाव अट्ठो, रायाणो सरिसणामगा विजएसु, सोलसण्हं वक्खारपव्वयाणं चित्तकूडवत्तव्वया जाव कूडा चत्तारि-चत्तारि बारसण्हं णईणं गाहावइवत्तव्वया जाव उभओ पासिं दोहिं पउमवरवेइयाहिं वनसंडेहिं य वण्णओ।

Translated Sutra: कच्छ आदि पूर्वोक्त विजयों में सोलह विद्याधर – श्रेणियाँ तथा उतनी ही – आभियोग्यश्रेणियाँ हैं। ये आभि – योग्यश्रेणियाँ ईशानेन्द्र की हैं। सब विजयों की वक्तव्यता कच्छविजय समान है। उन विजयों के जो जो नाम हैं, उन्हीं नामों के चक्रवर्ती राजा वहाँ होते हैं। विजयों में जो सोलह पर्वत हैं, प्रत्येक वक्षस्कार पर्वत
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत

Hindi 174 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे सीयाए महानईए दाहिणिल्ले सीयामुहवने नामं वने पन्नत्ते? एवं जह चेव उत्तरिल्ले सीयामुहवणं तह चेव दाहिणंपि भाणियव्वं, नवरं– निसहस्स वासहर-पव्वयस्स उत्तरेणं, सीयामहानईए दाहिणेणं, पुरत्थिमलवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं, वच्छस्सविजयस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे सीयाए महानईए दाहिणिल्ले सीयामुहवने नामं वने पन्नत्ते–उत्तरदाहिणायए, तहेव सव्वं, नवरं–निसहवासहरपव्वयंतेणं एगमेगूणवीसइभागं जोयणस्स विक्खंभेणं, किण्हे किण्होभासे जाव आसयंति, उभओ पासिं दोहिं पउमवरवेइयाहिं वनवण्णओ। कहि णं भंते! जंबुद्दीवे

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जम्बूद्वीप के महाविदेह क्षेत्र में शीतामुखवन कहाँ है ? गौतम ! शीता महानदी के उत्तर – दिग्वर्ती शीतामुखवन के समान ही दक्षिण दिग्वर्ती शीतामुखवन समझ लेता। इतना अन्तर है – दक्षिण – दिग्वर्ती शीतामुखवन निषध वर्षधर पर्वत के उत्तर में, शीता महानदी के दक्षिण में, पूर्वी लवणसमुद्र के पश्चिम में, वत्स विजय
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत

Hindi 175 Gatha Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] वच्छे सुवच्छे महावच्छे, चउत्थे वच्छगावई । रम्मे रम्मए चेव, रमणिज्जे मंगलावई ॥

Translated Sutra: विजय इस प्रकार है – वत्स विजय, सुवत्स विजय, महावत्स विजय, वत्सकावती विजय, रम्यविजय, रम्यक विजय, रमणीय विजय तथा मंगलावती विजय। राजधानियाँ इस प्रकार हैं – सुसीमा, कुण्डला, अपराजिता, प्रभंकरा, अंकावती, पद्मावती, शुभा तथा रत्न – संचया। सूत्र – १७५, १७६
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत

Hindi 176 Gatha Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सुसीमा कुंडला चेव, अवराइय पहंकरा । अंकावई पम्हावई, सुभा रयणसंचया ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १७५
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत

Hindi 177 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] वच्छस्स विजयस्स–निसहे दाहिणेणं, सीया उत्तरेणं, दाहिणिल्लसीयामुहवने पुरत्थिमेणं, तिउडे पच्चत्थिमेणं–सुसीमा रायहानी, पमाणं तं चेव। वच्छानंतरं तिउडे, तओ सुवच्छे विजए। एएणं कमेणं–तत्तजला णई, महावच्छे विजए। वेसमणकूडे वक्खारपव्वए, वच्छावई विजए। मत्तजला नई, रम्मे विजए। अंजने वक्खारपव्वए, रम्मए विजए। उम्मत्तजला नई, रमणिज्जे विजए। मायंजणे वक्खारपव्वए, मंगलावई विजए।

Translated Sutra: वत्स विजय के दक्षिण में निषध पर्वत है, उत्तर में शीता महानदी है, पूर्व में दक्षिणी शीतामुख वन है तथा पश्चिम में त्रिकूट वक्षस्कार पर्वत है। उसकी सुसीमा राजधानी है, जो विनीता के सदृश है। वत्स विजय के अनन्तर त्रिकूट पर्वत, तदनन्तर सुवत्स विजय, इसी क्रम से तप्तजला नदी, महावत्स विजय, वैश्रवण कूट वक्षस्कार पर्वत,
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत

Hindi 178 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे सोमणसे नामं वक्खारपव्वए पन्नत्ते? गोयमा! निसहस्स वासहरपव्वयस्स उत्तरेणं, मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणपुरत्थिमेणं, मंगलावईविजयस्स पच्चत्थिमेणं, देवकुराए पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे सोमनसे नामं वक्खारपव्वए पन्नत्ते–उत्तरदाहिणायए पाईणपडीणविच्छिन्नेजहा मालवंते वक्खारपव्वए तहा, नवरं–सव्वरययामए अच्छे जाव पडिरूवे निसहवासहरपव्वयंतेणं चत्तारि जोयणसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, चत्तारि गाउयसयाइं उव्वेहेणं, सेसं तहेव सव्वं, नवरं–अट्ठो से गोयमा! सोमनसे णं वक्खारपव्वए बहवे देवा य देवीओ य सोमा सुमना

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जम्बूद्वीप के महाविदेह क्षेत्र में सौमनस वक्षस्कार पर्वत कहाँ है ? गौतम ! निषध वर्षधर पर्वत के उत्तर में, अन्दर पर्वत के – आग्नेय कोण में, मंगलावती विजय के पश्चिम में, देवकुरु के पूर्व में है। वह सर्वथा रजतमय है, उज्ज्वल है, सुन्दर है। वह निषध वर्षधर पर्वत के पास ४०० योजन ऊंचा है। ४०० कोश जमीन में गहरा
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत

Hindi 179 Gatha Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सिद्धे सोमनसे विय, बोद्धव्वे मंगलावईकूडे । देवकुरु विमल कंचन वसिट्ठकूडे य बोद्धव्वे ॥

Translated Sutra: सिद्धायतनकूट, सौमनसकूट, मंगलावतीकूट, देवकुरुकूट, विमलकूट, कंचनकूट तथा वशिष्ठकूट।
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत

Hindi 180 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं सव्वे पंचसइया कूडा, एएसिं पुच्छा दिसिविदिसाए भाणियव्वा जहा गंधमायनस्स, विमल-कंचनकूडेसु, नवरिं– देवयाओ सुवच्छा वच्छमित्ता य, अवसिट्ठेसु कूडेसु सरिसनामया देवा, रायहानीओ दक्खिणेणं। कहि णं भंते! महाविदेहे वासे देवकुरा नामं कुरा पन्नत्ता? गोयमा! मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं, निसहस्स वासहरपव्वयस्स उत्तरेणं, विज्जुप्पहवक्खारपव्वयस्स पुरत्थिमेणं, सोमनस-वक्खारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं, एत्थ णं देवकुरा नामं कुरा पन्नत्ता–पाईणपडीणायया उदीणदाहिण-विच्छिण्णा एक्कारस जोयणसहस्साइं अट्ठ य बायाले जोयणसए दुन्नि य एगूनवीसइभाए जोयणस्स विक्खंभेणं, जहा उत्तरकुराए वत्तव्वया

Translated Sutra: ये सब कूट ५०० योजन ऊंचे हैं। इनका वर्णन गन्धमादन के कूटों के सदृश है। इतना अन्तर है – विमलकूट तथा कंचनकूट पर सुवत्सा एवं वत्समित्रा नामक देवियाँ रहती हैं। बाकी के कूटों पर, कूटों के जो – जो नाम हैं, उन – उन नामों के देव निवास करते हैं। मेरु के दक्षिण में उनकी राजधानियाँ हैं। भगवन्‌ ! महाविदेह क्षेत्र में देवकुरु
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत

Hindi 181 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! देवकुराए चित्तविचित्तकूडा नामं दुवे पव्वया पन्नत्ता? गोयमा! निसहस्स वासहर-पव्वयस्स उत्तरिल्लाओ चरिमंताओ अट्ठचोत्तीसे जोयणसए चत्तारि य सत्तभाए जोयणस्स अबाहाए सीयोयाए महानईए पुरत्थिम-पच्चत्थिमेणं उभओ कूले, एत्थ णं चित्त-विचित्तकूडा नामं दुवे पव्वया पन्नत्ता। एवं जच्चेव जमगपव्वयाणं सच्चेव। एएसिं रायहानीओ दक्खिणेणं।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! देवकुरु में चित्र – विचित्र कूट नामक दो पर्वत कहाँ है ? गौतम ! निषध वर्षधर पर्वत के उत्तरी चरमान्त से – ८३४ – ४/७ योजन की दूरी पर शीतोदा महानदी के पूर्व – पश्चिम के अन्तराल में उसके दोनों तटों पर हैं। उनके अधिष्ठातृ – देवों की राजधानियाँ मेरु के दक्षिण में है।
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत

Hindi 182 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! देवकुराए कुराए निसहद्दहे नामं दहे पन्नत्ते? गोयमा! तेसिं चित्त-विचित्तकूडाणं पव्वयाणं उत्तरिल्लाओ चरिमंताओ अट्ठ चोत्तीसे जोयणसए चत्तारि य सत्तभाए जोयणस्स अबाहाए सीओयाए महानईए बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं निसहद्दहे नामं दहे पन्नत्ते। एवं जच्चेव नीलवंत-उत्तरकुरु चंदेरावण मालवंताणं वत्तव्वया सच्चेव निसह देवकुरु सूर सुलस विज्जुप्पभाणं नेयव्वा। रायहानीओ दक्खिणेणं।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! देवकुरु में निषध द्रह कहाँ है ? गौतम ! चित्र – विचित्र कूट नामक पर्वतों के उत्तरी चरमान्त से ८३४ – ४/७ योजन की दूरी पर शीतोदा महानदी के ठीक मध्य भाग में है। नीलवान, उत्तरकुरु, चन्द्र, ऐरावत तथा माल्यवान – इन द्रहों की जो वक्तव्यता है, वही निषध, देवकुरु, सूर, सुलस तथा विद्युत्प्रभ नामक द्रहों की समझना। उनके
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत

Hindi 183 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! देवकुराए कुराए कूडसामलिपेढे नामं पेढे पन्नत्ते? गोयमा! मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणपच्चत्थिमेणं, निसहस्स वासहरपव्वयस्स उत्तरेणं, विज्जुप्पभस्स वक्खारपव्वयस्स पुरत्थि-मेणं, सोमनसस्स वक्खारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं, सीयोयाए महानईए पच्चत्थिमेणं, देवकुरुपच्च-त्थिमद्धस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं देवकुराए कुराए कूडसामलीए कूडसामलिपेढे नामं पेढे पन्नत्ते। एवं जच्चेव जंबूए सुदंसनाए वत्तव्वया सच्चेव सामलीएवि भाणियव्वा नामविहूणा गरुलवेणुदेवे, रायहानी दक्खिणेणं, अवसिट्ठं तं चेव जाव देवकुरू य इत्थ देवे पलिओवमट्ठिईए परिवसइ। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–

Translated Sutra: भगवन्‌ ! देवकुरु में कूटशाल्मलीपीठ – कहाँ है ? गौतम ! मन्दर पर्वत के – नैर्ऋत्य कोण में, निषध वर्षधर पर्वत के उत्तर में, विद्युत्प्रभ वक्षस्कार पर्वत के पूर्व में, शीतोदा महानदी के पश्चिम में देवकुरु के पश्चिमार्ध के ठीक बीच में है। जम्बू सुदर्शना समान वर्णन इनका समझना। गरुड इसका अधिष्ठातृ – देव है। राजधानी
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत

Hindi 184 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे विज्जुप्पभे नामं वक्खारपव्वए पन्नत्ते? गोयमा! निसहस्स वासहरपव्वयस्स उत्तरेणं, मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणपच्चत्थिमेणं, देवकुराए पच्चत्थिमेणं, पम्हस्स विजयस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे विज्जुप्पभे वक्खारपव्वए पन्नत्ते–उत्तरदाहिणायए, एवं जहा मालवंते, नवरिं–सव्वतवणिज्जमए अच्छे जाव देवा आसयंति। विज्जुप्पभे णं भंते! वक्खारपव्वए कइ कूडा पन्नत्ता? गोयमा! नव कूडा पन्नत्ता, तं जहा–सिद्धाययनकूडे विज्जुप्पभकूडे देवकुरुकूडे पम्हकूडे कनगकूडे सोवत्थियकूडे सीतोदाकूडे सयज्जलकूडे हरिकूडे।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जम्बूद्वीप के महाविदेह क्षेत्र में विद्युत्प्रभ वक्षस्कार पर्वत कहाँ है ? गौतम ! निषध वर्षधर पर्वत के उत्तर में, मन्दर पर्वत के दक्षिण – पश्चिम में, देवकुरु के पश्चिम में तथा पद्म विजय के पूर्व में है। शेष वर्णन माल्यवान पर्वत जैसा है। इतनी विशेषता है – वह सर्वथा तपनीय – स्वर्णमय है। विद्युत्प्रभ
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत

Hindi 185 Gatha Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सिद्धे य विज्जुनामे, देवकुरु पम्ह कनग सोवत्थी । सीतोदा य सयज्जल, हरिकूडे चेव बोद्धव्वे ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १८४
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत

Hindi 186 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एए हरिकूडवज्जा पंचसइया नेयव्वा। एएसि णं कूडाणं पुच्छाए दिसिविदिसाओ नेयव्वाओ, जहा मालवंतस्स हरिस्सहकूडे तह चेव हरिकूडे, रायहानी जह चेव दाहिणेणं चमरचंचा रायहानी तह नेयव्वा। कनगसोवत्थियकूडेसु वारिसेनबलाहयाओ दो देवयाओ, अवसिट्ठेसु कूडेसु कूडसरिस-नामया देवा, रायहानीओ दाहिणेणं। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–विज्जुप्पभे वक्खारपव्वए? विज्जुप्पभे वक्खारपव्वए? गोयमा! विज्जुप्पभे णं वक्खारपव्वए विज्जुमिव सव्वओ समंता ओभासइ उज्जोवेइ पभासइ। विज्जुप्पभे य इत्थ देवे महिड्ढीए जाव परिवसइ। से एएणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–विज्जुप्पभे-विज्जुप्पभे। अदुत्तरं च णं जाव

Translated Sutra: हरिकूट के अतिरिक्त सभी कूट पाँच – पाँच सौ योजन ऊंचे हैं। हरिकूट हरिस्सहकूट सदृश है। दक्षिण में इसकी राजधानी है। कनककूट तथा सौवत्सिककूट में वारिषेणा एवं बलाहका नामक दो दिक्कुमारियाँ निवास करती हैं। बाकी के कूटों में कूट – सदृश नामयुक्त देवता निवास करते हैं। उनकी राजधानियाँ मेरु के दक्षिण में है। वह विद्युत्प्रभ
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत

Hindi 187 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं पम्हे विजए, अस्सपुरा रायहानी, अंकावई वक्खारपव्वए। सुपम्हे विजए, सीहपुरा रायहानी, खीरोदा महानई। महापम्हे विजए, महापुरा रायहानी, पम्हाई वक्खारपव्वए। पम्हगावई विजए, विजयपुरा रायहानी, सीहसोया महानई। संखे विजए, अवराइया रायहानी, आसीविसे वक्खार-पव्वए। कुमुदे विजए, अरजा रायहानी, अंतोवाहिणी महानई। नलिने विजए, असोगा रायहानी, सुहावहे वक्खारपव्वए। सलिलावई विजए, वीयसोगा रायहानी, दाहिणिल्ले सीतोदामुहवनसंडे। उत्तरिल्लेवि एमेव भाणियव्वे जहा सीयाए, वप्पे विजए, विजया रायहानी, चंदे वक्खार-पव्वए। सुवप्पे विजए, वेजयंती रायहानी, ओम्मिमालिनी नई। महावप्पे विजए, जयंती रायहानी,

Translated Sutra: पक्ष्म विजय हे, अश्वपुरी राजधानी है, अंकावती वक्षस्कार पर्वत है। सुपक्ष्म विजय है, सिंहपुरी राजधानी है, क्षीरोदा महानदी है। महापक्ष्म विजय है, महापुरी राजधानी है, पक्ष्मावती वक्षस्कार पर्वत है। पक्ष्मकावती विजय है, विजयपुरी राजधानी है, शीतस्रोता महानदी है। शंख विजय है, अपराजिता राजधानी है, आशीविष वक्षस्कार
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत

Hindi 188 Gatha Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पम्हे सुपम्हे महापम्हे, चउत्थे पम्हगावई । संखे कुमुए नलिने, अट्ठमे नलिनावई ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १८७
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत

Hindi 189 Gatha Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] आसपुरा सीहपुरा, महापुरा चेव हवइ विजयपुरा । अवराइया य अरया, असोग तह वीयसोगा य ॥

Translated Sutra: राजधानियाँ इस प्रकार हैं – अश्वपुरी, सिंहपुरी, महापुरी, विजयपुरी, अपराजिता, अरजा, अशोका तथा वीतशोका।
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत

Hindi 190 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इमे वक्खारा, तं जहा– अंके पम्हे आसीविसे सुहावहे, एवं इत्थ परिवाडीए दो-दो विजया कूडसरिस-नामया भाणियव्वा, दिसा विदिसाओ य भाणियव्वाओ, सीयोयामुहवणं च भाणियव्वं, सीतोदाए दाहिणिल्लं उत्तरिल्लं च। सीतोदाए उत्तरिल्ले पासे इमे विजया, तं जहा–

Translated Sutra: वक्षस्कार पर्वत इस प्रकार हैं – अंक, पक्ष्म, आशीविष तथा सुखावह। इस क्रमानुरूप कूट सदृश नामयुक्त दो – दो विजय, दिशा – विदिशाएं, शीतोदा का दक्षिणवर्ती मुखवन तथा उत्तरवर्ती मुखवन – ये सब समझ लेना। शीतोदा के उत्तरी पार्श्व में ये विजय हैं – वप्र, सुवप्र, महावप्र, वप्रावती, वल्गु, सुवल्गु, गन्धिल तथा गन्धिलावती। सूत्र
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत

Hindi 191 Gatha Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] वप्पे सुवप्पे महावप्पे, चउत्थे वप्पगावई । वग्गू य सुवग्गू या, गंधिले गंधिलावई ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १९०
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत

Hindi 192 Gatha Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] विजया य वेजयंती, जयंती अपराजिया । चक्कपुरा खग्गपुरा, हवइ अवज्झा अओज्झा य ॥

Translated Sutra: राजधानियाँ इस प्रकार – विजया, वैजयन्ती, जयन्ती, अपराजिता, चक्रपुरी, खड्‌गपुरी, अवध्या तथा अयोध्या।
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत

Hindi 193 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इमे वक्खारा, तं जहा–चंदपव्वए सूरपव्वए नागपव्वए देवपव्वए। सीयोयाए महानईए दाहिणिल्ले कूले– खीरोया सीहसोया अंतोवाहिनीओ नईओ, उम्मिमालिनी फेणमालिनी गंभीरमालिनी उत्तरिल्ल -विजयानंतराओ। इत्थ परिवाडीए दो-दो कूडा विजयसरिसनामया भाणियव्वा। इमे दो-दो कूडा अवट्ठिया तं जहा–सिद्धाययनकूडे पव्वयसरिसनामकूडे।

Translated Sutra: वक्षस्कार पर्वत इस प्रकार हैं – चन्द्र पर्वत, सूर पर्वत, नाग पर्वत तथा देव पर्वत। क्षीरोदा तथा शीतस्रोता नामक नदियाँ शीतोदा महानदी के दक्षिणी तट पर अन्तरवाहिनी नदियाँ हैं। ऊर्मिमालिनी, फेनमालिनी तथा गम्भीर मालिनी शीतोदा महानदी के उत्तर दिग्वर्ती विजयों की अन्तरवाहिनी नदियाँ हैं। इस क्रम में दो – दो कूट
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत

Hindi 194 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे मंदरे नामं पव्वए पन्नत्ते? गोयमा! उत्तरकुराए दक्खिणेणं, देवकुराए उत्तरेणं, पुव्वविदेहस्स वासस्स पच्चत्थिमेणं, अवरविदेहस्स वासस्स पुरत्थिमेणं, जंबुद्दीवस्स दीवस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरे नामं पव्वए पन्नत्ते– नवनउतिजोयणसहस्साइं उड्ढं उच्चत्तेणं, एगं जोयणसहस्सं उव्वेहेणं, मूले दसजोयण-सहस्साइं नवइं च जोयणाइं दस य एगारसभाए जोयणस्स विक्खंभेणं, धरणितले दस जोयण-सहस्साइं विक्खंभेणं, तयनंतरं च णं मायाए-मायाए परिहायमाणे-परिहायमाणे उवरितले एगं जोयणसहस्सं विक्खंभेणं, मूले एकत्तीसं जोयणसहस्साइं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जम्बूद्वीप के महाविदेह क्षेत्र में मन्दर पर्वत कहाँ है ? गौतम ! उत्तरकुरु के दक्षिण में, देवकुरु के उत्तर में, पूर्व विदेह के पश्चिम में और पश्चिम विदेह के पूर्व में है। वह ९९००० योजन ऊंचा है, १००० जमीन में गहरा है। वह मूल में १००९० – १०/१९ योजन तथा भूमितल पर १०००० योजन चौड़ा है। उसके बाद वह चौड़ाई की मात्रा
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत

Hindi 195 Gatha Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पउमुत्तरे नीलवंते, सुहत्थी अंजनागिरी । कुमुदे य पलासे य, वडेंसे रोयणागिरी ॥

Translated Sutra: पद्मोत्तर, नीलवान्‌, सुहस्ती, अंजनगिरि, कुमुद, पलाश, अवतंस तथा रोचनागिरि।
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत

Hindi 196 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! मंदरे पव्वए भद्दसालवणे पउमुत्तरे नामं दिसाहत्थिकूडे पन्नत्ते? गोयमा! मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरपुरत्थिमेणं, पुरत्थिमिल्लाए सीयाए उत्तरेणं, एत्थ णं पउमुत्तरे नामं दिसाहत्थिकूडे पन्नत्ते–पंचजोयणसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, पंचगाउयसयाइं उव्वेहेणं, एवं विक्खंभे परिक्खेवो य भाणियव्वो चुल्लहिमवंतकूडसरिसो, पासायाण य तं चेव, पउमुत्तरो देवो, रायहानी उत्तरपुरत्थिमेणं। एवं निलवंतदिसाहत्थिकूडे मंदरस्स दाहिणपुरत्थिमेणं, पुरत्थिमिल्लाए सीयाए दक्खिणेणं। एयस्सवि नीलवंतो देवो, रायहानी दाहिणपुरत्थिमेणं। एवं सुहत्थिदिसाहत्थिकूडे मंदरस्स दाहिणपुरत्थिमेणं,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! पद्मोत्तर नामक दिग्हस्तिकूट कहाँ है ? गौतम ! मन्दर पर्वत के – ईशान कोण में तथा पूर्व दिग्गत शीता महानदी के उत्तर में है। वह ५०० योजन ऊंचा तथा ५०० कोश जमीन में गहरा है। उसकी चौड़ाई तथा परिधि चुल्लहिमवान्‌ पर्वत के समान है। वहाँ पद्मोत्तर देव निवास करता है। उसकी राजधानी – ईशान कोण में है। नीलवान्‌ नामक
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत

Hindi 197 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! मंदरे पव्वए नंदनवने नामं वने पन्नत्ते? गोयमा! भद्दसालवणस्स बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ पंच जोयणसयाइं उड्ढं उप्पइत्ता, एत्थ णं मंदरे पव्वए नंदनवने नामं वने पन्नत्ते–पंच जोयणसयाइं चक्कवालविक्खंभेणं वट्टे वलयाकारसंठाणसंठिए, जे णं मंदरं पव्वयं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठइ–नव जोयणसहस्साइं नव य चउप्पन्ने जोयणसए छच्चेगारसभाए जोयणस्स बाहिं गिरिविक्खंभो, एगत्तीसं जोयणसहस्साइं चत्तारि य अउणासीए जोयणसए किंचिविसेसाहिए बाहिं गिरिपरिरएणं, अट्ठं जोयणसहस्साइं नव य चउप्पन्ने जोयणसए छच्चेगारसभाए जोयणस्स अंतो गिरिविक्खंभो, अट्ठा वीसं जोयणसहस्साइं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! नन्दनवन कहाँ है ? गौतम ! भद्रशालवन के बहुत समतल एवं रमणीय भूमिभाग से पाँच सौ योजन ऊपर जाने पर है। चक्रवालविष्कम्भ – के सब ओर से समान, विस्तार की अपेक्षा से वह ५०० योजन है, गोल है। उसका आकार वलय – के सदृश है, सघन नहीं है, मध्य में वलय की ज्यों शुषिर है। वह मन्दर पर्वतों को चारों ओर से परिवेष्टित किये हुए है।
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत

Hindi 198 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! मंदरए पव्वए सोमनसवणे नामं वने पन्नत्ते? गोयमा! नंदनवणस्स बहुसमरमणिज्जाओ भूमि भागाओ अद्धतेवट्ठिं जोयणसहस्साइं उड्ढं उप्पइत्ता, एत्थ णं मंदरे पव्वए सोमनसवणे नामं वने पन्नत्ते– पंचजोयणसयाइं चक्कवालविक्खंभेणं, वट्टे वलयाकारसंठाणसंठिए, जे णं मंदरं पव्वयं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठइ– चत्तारि जोयणसहस्साइं दुन्नि य बावत्तरे जोयणसए अट्ठ य इक्कारसभाए जोयणस्स बाहिं गिरिविक्खंभेणं, तेरस जोयणसहस्साइं पंच य एक्कारे जोयणसए छच्च इक्कारसभाए जोयणस्स बाहिं गिरिपरिरएणं, तिन्नि जोयणसहस्साइं दुन्नि य बावत्तरे जोयणसए अट्ठ य एक्कारसभाए जोयणस्स अंतो

Translated Sutra: भगवन्‌ ! सौमनसवन कहाँ है ? गौतम ! नन्दनवन के बहुत समतल एवं रमणीय भूमिभाग से ६२५०० योजन ऊपर जाने पर है। वह चक्रवाल – विष्कम्भ से पाँच सौ योजन विस्तीर्ण है, गोल है, वलय के आकार का है। वह मन्दर पर्वत को चारों ओर से परिवेष्टित किये हुए हे। वह पर्वत से बाहर ४२७२ – ८/१९ योजन विस्तीर्ण है। बाहर उसकी परिधि १३५११ – ६/१९ योजन
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत

Hindi 199 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! मंदरे पव्वए पंडगवने नामं वने पन्नत्ते? गोयमा! सोमनसवणस्स बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ छत्तीसं जोयणसहस्साइं उड्ढं उप्पइत्ता, एत्थ णं मंदरे पव्वए सिहरतले पंडगवने नामं वने पन्नत्ते– चत्तारि चउणउए जोयणसए चक्कवालविक्खंभेणं, वट्टे वलयाकारसंठाणसंठिए, जे णं मंदरचूलियं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठइ– तिन्नि जोयणसहस्साइं एगं च बावट्ठं जोयणसयं किंचिविसेसाहियं परिक्खेवेणं। से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेण य वनसंडेणं जाव किण्हे देवा आसयंति। पंडगवनस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं मंदरचूलिया नामं चूलिया पन्नत्ता–चत्तालीसं जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, मूले बारस

Translated Sutra: भगवन्‌ ! पण्डकवन कहाँ है ? गौतम ! सोमनसवन के बहुत समतल तथा रमणीय भूमिभाग से ३६००० योजन ऊपर जाने पर मन्दर पर्वत के शिखर पर है। चक्रवाल विष्कम्भ से वह ४९४ योजन विस्तीर्ण है, गोल है, वलय के आकार जैसा उसका आकार है। वह मन्दर पर्वत की चूलिका को चारों ओर से परिवेष्टित कर स्थित है। उसकी परिधि कुछ अधिक ३१६२ योजन है। वह एक
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत

Hindi 200 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पंडकवने णं भंते! वने कइ अभिसेयसिलाओ पन्नत्ताओ? गोयमा! चत्तारि अभिसेयसिलाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–पंडुसिला पंडुकंबलसिला रत्तसिला रत्तकंबलसिला। कहि णं भंते! पंडगवने वने पंडुसिला नामं सिला पन्नत्ता? गोयमा! मंदरचूलियाए पुरत्थिमेणं, पंडगवणपुरत्थिमपेरंते, एत्थ णं पंडगवने वने पंडुसिला नामं सिला पन्नत्ता–उत्तरदाहिणायया पाईणपडीणविच्छिण्णा अद्धचंदसंठाणसंठिया पंचजोयणसयाइं आयामेणं, अड्ढाइज्जाइं जोयण-सयाइं विक्खंभेणं, चत्तारि जोयणाइं बाहल्लेणं, सव्वकणगामई अच्छा। वेइयावनसंडेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ता, वण्णओ। तीसे णं पंडुसिलाए चउद्दिसिं चत्तारि तिसोवानपडिरूवगा

Translated Sutra: भगवन्‌ ! पण्डकवन में कितनी अभिषेक शिलाएं हैं ? गौतम ! चार, – पाण्डुशिला, पाण्डुकम्बलशिला, रक्तशिला तथा रक्तकम्बलशिला। पण्डकवन में पाण्डुशिला कहाँ है ? गौतम ! मन्दर पर्वत की चूलिका के पूर्व में पण्डकवन के पूर्वी छोर पर है। वह उत्तर – दक्षिण लम्बी तथा पूर्व – पश्चिम चौड़ी है। उसका आधार अर्ध चन्द्र के आकार – जैसा
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत

Hindi 201 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] मंदरस्स णं भंते! पव्वयस्स कइ कंडा पन्नत्ता? गोयमा! तओ कंडा पन्नत्ता, तं जहा–हेट्ठिल्ले कंडे, मज्झिमिल्ले कंडे, उवरिल्ले कंडे। मंदरस्स णं भंते! पव्वयस्स हेट्ठिल्ले कंडे कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–पुढवी विले वइरे सक्करा। मज्झिमिल्ले णं भंते! कंडे कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–अंके फलिहे जायरूवे रयए। उवरिल्ले कंडे कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! एगागारे पन्नत्ते सव्वजंबूनयामए। मंदरस्स णं भंते! पव्वयस्स हेट्ठिल्ले कंडे केवइयं बाहल्लेणं पन्नत्ते? गोयमा! एगं जोयणसहस्सं बाहल्लेणं पन्नत्ते। मज्झिमिल्ले कंडे पुच्छा। गोयमा!

Translated Sutra: भगवन्‌ ! मन्दर पर्वत के कितने काण्ड – हैं ? गौतम ! तीन, – अधस्तन, मध्यम तथा उपरितनकाण्ड। मन्दर पर्वत का अधस्तनविभाग कितने प्रकार का है ? गौतम ! चार प्रकार का, – पृथ्वी, उपल, वज्र तथा शर्करमय। उसका मध्यमविभाग चार प्रकार का है – अंकरत्नमय, स्फटिकमय, स्वर्णमय तथा रजतमय। उसका उपरितन विभाग एकाकार – है। वह सर्वथा जम्बूनद
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत

Hindi 202 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] मंदरस्स णं भंते! पव्वयस्स कति नामधेज्जा पन्नत्ता? गोयमा! सोलस नामधेज्जा पन्नत्ता, तं जहा–

Translated Sutra: भगवन्‌ ! मन्दर पर्वत के कितने नाम बतलाये हैं ? गौतम ! सोलह – मन्दर, मेरु, मनोरम, सुदर्शन, स्वयंप्रभ, गिरिराज, रत्नोच्चय, शिलोच्चय, लोकमध्य, लोकनाभि। अच्छ, सूर्यावर्त, सूर्यावरण, उत्तम, दिगादि तथा अवतंस। सूत्र – २०२–२०४
Showing 9901 to 9950 of 43581 Results