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Global Search for JAIN Aagam & Scriptures

Search Results (43581)

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Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Jain Dharma Sar जैन धर्म सार Sanskrit

14. सृष्टि-व्यवस्था

2. पुद्गल कर्तृत्ववाद (आरम्भवाद) Hindi 349 View Detail
Mool Sutra: एकोत्तरमेकाद्यणोः स्निग्धत्वं च रूक्षत्वम्। परिणामाद्भणितं यावदनन्तत्वमनुभवति ।।

Translated Sutra: [जैन-दर्शन-मान्य स्वभाववाद की इस प्रक्रिया में पुद्गल (जड़) तत्त्व भी बिना किसी चेतन की सहायता के स्वयं ही पृथिवी आदि महाभूतों के रूप में परिणमन कर जाता है। सो कैसे, वही प्रक्रिया इन गाथाओं द्वारा बतायी गयी है।] परमाणु के स्पर्श-गुण की दो प्रधान शक्तियाँ हैं - स्निग्धत्व व रूक्षत्व अर्थात् (Attractive force and Repulsive force)। ये दोनों
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14. सृष्टि-व्यवस्था

2. पुद्गल कर्तृत्ववाद (आरम्भवाद) Hindi 350 View Detail
Mool Sutra: स्निग्धा वा रूक्षा वा अणुपरिणामाः समा वा विषमा वा। समतो द्व्यधिका यदि बध्यन्ते हि आदिपरिहीनाः ।।

Translated Sutra: कृपया देखें ३४९; संदर्भ ३४९-३५१
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14. सृष्टि-व्यवस्था

2. पुद्गल कर्तृत्ववाद (आरम्भवाद) Hindi 351 View Detail
Mool Sutra: द्विप्रदेशादयः स्कन्धाः सूक्ष्माः वा बादराः ससंस्थानाः। पृथिवीजलतेजोवायवः स्वकपरिणामैर्जायन्ते ।।

Translated Sutra: कृपया देखें ३४९; संदर्भ ३४९-३५१
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14. सृष्टि-व्यवस्था

3. कर्म-कारणवाद Hindi 352 View Detail
Mool Sutra: जीवानां कर्म अनादीनि जीव जनितं कर्म न तेन। कर्मणा जोवोऽपि जनितो नापि, द्वयोरपि आदिः न येन ।।

Translated Sutra: हे आत्मन्! जीवों के कर्म अनादि काल से हैं। न तो जीव ने कर्म उत्पन्न किये हैं और न ही कर्मों ने जीव को उत्पन्न किया है। क्योंकि जीव व कर्म दोनों की ही कोई आदि नहीं है।
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14. सृष्टि-व्यवस्था

3. कर्म-कारणवाद Hindi 353 View Detail
Mool Sutra: जीवपरिणामहेतुं, कर्मत्वं पुद्गलाः परिणमन्ति। पुद्गलकर्मनिमित्तं, तथैव जीवोपि परिणमति ।।

Translated Sutra: जीव के राग-द्वेषादि आस्रवभूत परिणामों के निमित्त से पुद्गल स्वयं कर्मरूप परिणमन करते हैं, और इसी प्रकार जीव भी पुद्गल या जड़ कर्मों के निमित्त से राग-द्वेषादि रूप परिणमन करता है। (ऐसा ही कोई स्वभाव है, जिसमें तर्क नहीं चलता है।)
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14. सृष्टि-व्यवस्था

3. कर्म-कारणवाद Hindi 354 View Detail
Mool Sutra: त्यक्त्वा द्विपदं च चतुष्पदं च, क्षेत्रं गृहं धन-धान्यं च सर्वम्। कर्मात्मद्वितीयः अवशः प्रयाति, परं भवं सुन्दरं पावकं वा ।।

Translated Sutra: सुन्दर या असुन्दर जन्म धारण करते समय, अपने पूर्व-संचित कर्मों को साथ लेकर, प्राणी अकेला ही प्रयाण करता है। अपने सुख के लिए बड़े परिश्रम से पाले गये दास दासी तथा गाय घोड़ा आदि सब यहीं छूट जाते हैं।
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14. सृष्टि-व्यवस्था

3. कर्म-कारणवाद Hindi 355 View Detail
Mool Sutra: ते ते कर्मत्वगताः पुद्गलकायाः, पुनरपि जीवस्य। संजायन्ते देहाः, देहान्तरसंक्रमं प्राप्य ।।

Translated Sutra: वे कर्म रूप परिणत पुद्गल स्कन्ध भवान्तर की प्राप्ति होने पर उस जीव के नये शरीर का आयोजन कर देते हैं।
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14. सृष्टि-व्यवस्था

3. कर्म-कारणवाद Hindi 356 View Detail
Mool Sutra: यः खलु संसारस्थो जीवस्ततस्तु भवति परिणामः। परिणामात्कर्मं कर्मणो भवति गतिषु गतिः ।।

Translated Sutra: संसार स्थित जीव को पूर्व-संस्कारवश स्वयं राग द्वेषादि परिणाम होते हैं। परिणामों के निमित्त से कर्म और कर्मों के निमित्त से चारों गतियों में गमन होना स्वाभाविक है। गति प्राप्त हो जाने पर देह, तथा देह के होने पर इन्द्रियाँ उत्पन्न होती हैं। इन्द्रियों से विषयों का ग्रहण, तथा उससे पुनः राग-द्वेष का होना स्वाभाविक
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14. सृष्टि-व्यवस्था

3. कर्म-कारणवाद Hindi 357 View Detail
Mool Sutra: गतिमधिगतस्य देहो, देहादिन्द्रियाणि जायन्ते। तैस्तु विषयग्रहणं, ततो रागो वा द्वेषो वा ।।

Translated Sutra: कृपया देखें ३५६; संदर्भ ३५६-३५८
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14. सृष्टि-व्यवस्था

3. कर्म-कारणवाद Hindi 358 View Detail
Mool Sutra: जायते जीवस्येवं, भावः संसारचक्रवाले। इति जिनवरैर्भणितोऽनादिनिधनः सनिधनो वा ।।

Translated Sutra: कृपया देखें ३५६; संदर्भ ३५६-३५८
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14. सृष्टि-व्यवस्था

3. कर्म-कारणवाद Hindi 359 View Detail
Mool Sutra: विधि सृष्टा विधाता च दैवं कर्म पुराकृतम्। ईश्वरश्चेति पर्याया विज्ञेया कर्मवेधसः ।।

Translated Sutra: विधि, सृष्टा, विधाता, दैव, पुराकृत, कर्म और ईश्वर, ये सब उसी कर्म के पर्यायवाची नाम हैं।
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14. सृष्टि-व्यवस्था

3. कर्म-कारणवाद Hindi 360 View Detail
Mool Sutra: तनुकरणभुवनादौ निमित्तकारणत्वादीश्वरस्य। न चैतदसिद्धम् ।।

Translated Sutra: अब तक कहे गये सर्व प्रकरण पर से यह भली भाँति सिद्ध हो जाता है कि स्वभाव व कर्म इन दो शक्तियों के अतिरिक्त शरीर, इन्द्रिय व जगत् के कारण रूप में, ईश्वर नामक किसी अन्य सत्ता की कल्पना करना व्यर्थ है।
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15. अनेकान्त-अधिकार - (द्वैताद्वैत)

1. द्रव्य-स्वरूप Hindi 361 View Detail
Mool Sutra: तत् परिजानीहि द्रव्यं त्वं, यत् गुणपर्याययुक्तम्। सहभुवः जानीहि तेषां गुणाः, क्रमभुवः पर्यायाः उक्ताः ।।

Translated Sutra: जो गुण और पर्यायों से युक्त होता है, उसे तू द्रव्य जान। जो द्रव्य के साथ सदा काल रहें वे गुण होते हैं। (जैसे जीव का ज्ञान गुण)। तथा द्रव्य व गुण के वे भाव पर्याय कहलाते हैं जो उनमें एक के पश्चात् एक क्रम से उत्पन्न हों (जैसे ज्ञान के विविध विकल्प)। (तात्पर्य यह कि द्रव्य में गुण तो नित्य होते हैं और पर्याय अनित्य
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15. अनेकान्त-अधिकार - (द्वैताद्वैत)

1. द्रव्य-स्वरूप Hindi 362 View Detail
Mool Sutra: गुणानामाश्रयो द्रव्यं, एकद्रव्याश्रिताः गुणाः। लक्षणं पर्यायाणां तु, उभयोराश्रिता भवन्ति ।।

Translated Sutra: द्रव्य गुणों का आश्रय होता है। प्रत्येक द्रव्य के आश्रित अनेक गुण रहते हैं, जैसे कि एक आम्रफल में रूप रसादि अनेक गुण पाये जाते हैं। (द्रव्य से पृथक् गुण पाये नहीं जाते हैं।) पर्यायों का लक्षण उभयाश्रित है।
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15. अनेकान्त-अधिकार - (द्वैताद्वैत)

1. द्रव्य-स्वरूप Hindi 363 View Detail
Mool Sutra: व्यपदेशाः संस्थानानि संख्या, विषयाश्च भवन्ति ते बहुकाः। ते तेषामनन्यत्वे, अन्यत्वे चापि विद्यते ।।

Translated Sutra: द्रव्य, गुण व पर्याय इन तीनों में भले ही संज्ञा, संख्या, लक्षण, प्रयोजन, संस्थान आदि की अपेक्षा भेद रहे, परन्तु प्रदेश भेद न होने के कारण ये वस्तुतः अनन्य हैं।
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15. अनेकान्त-अधिकार - (द्वैताद्वैत)

1. द्रव्य-स्वरूप Hindi 364 View Detail
Mool Sutra: एकद्रव्ये येऽर्थपर्यायाः, व्यंजनपर्यायाः वापि। अतीतानागतभूताः, तावत्कं तत् भवति द्रव्यम् ।।

Translated Sutra: एक द्रव्य में जो अतीत वर्तमान व भावी ऐसी त्रिकालवर्ती गुण पर्याय तथा द्रव्य पर्याय होती हैं, उतना मात्र ही वह द्रव्य होता है।
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15. अनेकान्त-अधिकार - (द्वैताद्वैत)

1. द्रव्य-स्वरूप Hindi 365 View Detail
Mool Sutra: द्रव्यं पर्ययवियुक्तं, द्रव्यवियुक्ताश्च पर्ययाः न सन्ति। उत्पादस्थितिभंगाः, भवति द्रव्यलक्षणमेतत् ।।

Translated Sutra: उत्पन्नध्वंसी पर्यायों से विहीन द्रव्य तथा त्रिकाल ध्रुवद्रव्य से विहीन पर्याय कभी नहीं होती। इसलिए उत्पाद व्यय व ध्रौव्य इन तीनों का समुदित रूप ही द्रव्य या सत् का लक्षण है।
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15. अनेकान्त-अधिकार - (द्वैताद्वैत)

2. विरोध में अविरोध Hindi 366 View Detail
Mool Sutra: न सामान्यात्मनोदेति, न व्येति व्यक्तमन्वयात्। व्यत्युदेति विशेषात्ते, सहैक्त्रोयादि सत् ।।

Translated Sutra: [यहाँ यह शंका हो सकती है कि एक ही द्रव्य में एक साथ उत्पाद, व्यय व ध्रौव्य ये तीन विरोधी बातें कैसे सम्भव हैं? इसका उत्तर देते हैं कि]- अन्वय रूप से सर्वदा अवस्थित रहने वाला सामान्य द्रव्य तो न उत्पन्न होता है न नष्ट, परन्तु पर्यायरूप पूर्वोत्तरवर्ती विशेषों की अपेक्षा वही नष्ट भी होता है और उत्पन्न भी। इस हेतु
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15. अनेकान्त-अधिकार - (द्वैताद्वैत)

2. विरोध में अविरोध Hindi 367 View Detail
Mool Sutra: यथा कांचनस्य कांचनभावेन अवस्थितस्य कटकादयः। उत्पद्यन्ते विनश्यन्ति चैव भावाः अनेकविधाः ।।

Translated Sutra: जिस प्रकार स्वर्ण स्वर्णरूपेण अवस्थित रहते हुए भी उसमें कड़ा कुण्डल आदि अनेकविध भाव उत्पन्न व नष्ट होते रहते हैं, उसी प्रकार द्रव्य व पर्यायों को प्राप्त जीव द्रव्य का नित्यत्व व अनित्यत्व भी न्याय-सिद्ध है। संदर्भ ३६७-३६८
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15. अनेकान्त-अधिकार - (द्वैताद्वैत)

2. विरोध में अविरोध Hindi 368 View Detail
Mool Sutra: एवं च जीवद्रव्यस्य द्रव्यपर्यायविशेषभक्तस्य। नित्यत्वमनित्यत्वं च भवति न्यायोपलभ्यमानम् ।।

Translated Sutra: कृपया देखें ३६७; संदर्भ ३६७-३६८
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15. अनेकान्त-अधिकार - (द्वैताद्वैत)

3. वस्तु की जटिलता Hindi 369 View Detail
Mool Sutra: पुरुषे पुरुषशब्दो, जन्मादि-मरणकालपर्यन्तः। तस्य तु बालादिकाः, पर्यययोग्या बहुविकल्पाः ।।

Translated Sutra: जन्म से लेकर मरणकाल पर्यन्त पुरुष में `पुरुष' ऐसा व्यपदेश होता है। बाल युवा आदि उसीकी अनेक विध पर्यायें या विशेष हैं।
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15. अनेकान्त-अधिकार - (द्वैताद्वैत)

3. वस्तु की जटिलता Hindi 370 View Detail
Mool Sutra: तस्माद् वस्तूनामेव, यः सदृशः पर्ययः स सामान्यम्। यो विसदृशो विशेषः, स मतोऽनर्थान्तरं ततः ।।

Translated Sutra: प्रत्येक वस्तु में दो अंश होते हैं। सदृश रूप से सदा अनुगत रहनेवाला गुण तो सामान्य अंश है और एक-दूसरे से विसदृश ऐसी बाल-वृद्धादि पर्यायें विशेष अंश हैं। दोनों एक-दूसरे से पृथक् कुछ नहीं हैं। (इसलिए वस्तु सामान्यविशेषात्मक है।)
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15. अनेकान्त-अधिकार - (द्वैताद्वैत)

3. वस्तु की जटिलता Hindi 371 View Detail
Mool Sutra: वृद्धैः प्रोक्तमतः सूत्रे, तत्त्वं वागतिशायि यत्। द्वादशांगबाह्यं वा, श्रुतं स्थूलार्थगोचरम् ।।

Translated Sutra: तत्त्व वास्तव में वचनातीत है। द्वादशांग वाणी अथवा अंगबाह्य रूप विशाल आगम केवल स्थूल व व्यावहारिक पदार्थों को ही विषय करता है।
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15. अनेकान्त-अधिकार - (द्वैताद्वैत)

4. अनेकान्त-निर्देश Hindi 372 View Detail
Mool Sutra: न पश्यामः क्वचित् किंचित्, सामान्यं वा स्वलक्षणम्। जात्यन्तरं तु पश्यामः, ततोऽनेकान्त हेतवः ।।

Translated Sutra: (सामान्य व विशेष आदि रूप ये सब विकल्प वास्तव में विश्लेषण कृत हैं) वस्तु में देखने पर न तो वहाँ कभी कुछ सामान्य ही दिखाई देता है और न कुछ विशेष ही। वहाँ तो इन सब विकल्पों का एक रसात्मक अखण्ड जात्यन्तर भाव ही दृष्टिगोचर होता है, और वही अनेकान्त का हेतु है।
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15. अनेकान्त-अधिकार - (द्वैताद्वैत)

4. अनेकान्त-निर्देश Hindi 373 View Detail
Mool Sutra: यदेव तत्तदेवातत्, यदेवैकं तदेवानेकं, यदेव सत् तदेवासत्, यदेव नित्यं तदेवानित्यम्। इत्येकवस्तुनि वस्तुत्वनिष्पादकपरस्परविरुद्धशक्तिद्वयप्रकाशनमनेकान्तः ।।

Translated Sutra: जो अखण्ड तत्त्व स्वयं तत् स्वरूप है, वही अतत् स्वरूप है। जो एक है वही अनेक है, जो सत् है वही असत् है, जो नित्य है वही अनित्य है। इस प्रकार वस्तु में वस्तुत्व का दर्शन करानेवाली परस्पर विरुद्ध अनेक शक्तियुगलों का प्रकाशित करना ही अनेकान्त का लक्षण है।
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15. अनेकान्त-अधिकार - (द्वैताद्वैत)

5. अनेकान्त की सार्वभौमिकता Hindi 374 View Detail
Mool Sutra: एकं यद्यदनेकमेव तदपि प्राप्ते प्रतीतिं दृढ़ां, सिद्धज्योतिरमूर्तिं चित्सुखमयं केनापि तल्लक्ष्यते ।।

Translated Sutra: सिद्ध ज्योति अर्थात् शुद्धात्मा सूक्ष्म भी है और स्थूल भी, शून्य भी है और परिपूर्ण भी, उत्पन्नध्वंसी भी है और नित्य भी, सत् भी है और असत् भी, तथा एक भी है और अनेक भी। दृढ़ प्रतीति को प्राप्त वह किसी बिरले ही योगी के द्वारा देखी जाती है।
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15. अनेकान्त-अधिकार - (द्वैताद्वैत)

5. अनेकान्त की सार्वभौमिकता Hindi 375 View Detail
Mool Sutra: अहं ब्रह्माब्रह्मणी वेदितव्ये। अहं पंचभूतान्यपंचभूतानि। अहमखिलं जगत्। वेदोऽअमवेदोऽहम्। विद्याहमविद्याहम्। अजाहमनजाहम्। अधश्चोर्ध्वं च तिर्यक्चाहम्। दुर्गा सप्तशती। देव्यथर्वशीर्षम्।

Translated Sutra: मैं ब्रह्मस्वरूपिणी हूँ। मुझसे ही प्रकृति पुरुषात्मक यह सद्रूप और असद्रूप जगत् उत्पन्न हुआ है। मैं आनन्दरूपा हूँ और अनानन्दरूपा भी। मैं विज्ञानरूपा हूँ और अविज्ञानरूपा भी। मैं जानने योग्य ब्रह्मस्वरूपा हूँ और अब्रह्मस्वरूपा भी। पंच महाभूत भी मैं हूँ और अपंच महाभूत भी। यह सारा दृश्य जगत् मैं ही हूँ। वेद
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15. अनेकान्त-अधिकार - (द्वैताद्वैत)

6. सापेक्षतावाद Hindi 376 View Detail
Mool Sutra: यथैकशः कारकमर्थसिद्धये, समीक्ष्य शेषं स्वसहायकारकम्। तथैव सामान्यविशेषमातृका, नयास्तवेष्टा गुणमुख्यकल्पिताः ।।

Translated Sutra: जैसे व्याकरण में एक-एक कारक शेष कारकों को सहायक बनाकर ही अर्थ की सिद्धि में समर्थ होता हैं, वैसे ही वस्तु के सामान्यांश और विशेषांश को ग्रहण करने वाले जो प्रधान नय या दृष्टियाँ हैं, वे मुख्य और गौण की कल्पना से ही इष्ट हैं।
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15. अनेकान्त-अधिकार - (द्वैताद्वैत)

6. सापेक्षतावाद Hindi 377 View Detail
Mool Sutra: यत्रानर्पितमादधाति गुणतां, मुख्यं तु वस्त्वर्पितं। तात्पर्यावलम्बनेन तु भवेद्, बोधः स्फुटं लौकिकः ।।

Translated Sutra: (यद्यपि वस्तु का कोई भी अंश मुख्य या गौण नहीं होता, परन्तु प्रतिपादन करते समय वक्ता प्रयोजनवश वस्तु के कभी किसी एक अंश को मुख्य करके कहता है और कभी दूसरे को) जिस समय कोई एक अंश अपेक्षित हो जाने से मुख्य होता है, उस समय दूसरा अंश अनपेक्षित होकर गौण हो जाता है, परंतु निषिद्ध नहीं होता है। लोक में भी वक्ता के अभिप्राय
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15. अनेकान्त-अधिकार - (द्वैताद्वैत)

6. सापेक्षतावाद Hindi 378 View Detail
Mool Sutra: भिन्नापेक्षा यथैकत्र, पितृपुत्रादिकल्पना। नित्यानित्याद्यनेकान्त-स्तथैव न विरोत्स्यते ।।

Translated Sutra: जिस प्रकार विभिन्न अपेक्षाओं से देखने पर एक ही व्यक्ति में पितृत्व व पुत्रत्व आदि की कल्पना विरोध को प्राप्त नहीं होती है, उसी प्रकार अनेकान्तस्वरूप एक ही वस्तु में अपेक्षावश नित्यत्व व अनित्यत्व आदि की कल्पनाएँ विरोध को प्राप्त नहीं होती हैं।
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16. एकान्त व नय अधिकार - (पक्षपात-निरसन)

1. नयवाद Hindi 379 View Detail
Mool Sutra: नानाधर्मयुतः अपि च एकः धर्मः अपि उच्यते अर्थः। तस्य एकविवक्षातः, नास्ति विवक्षा खलु शेषाणाम् ।।

Translated Sutra: नाना धर्मों से युक्त पदार्थ के किसी एक धर्म को ही मुख्यरूपेण कहने वाला (वक्ता का अभिप्राय विशेष) नय कहलाता हैं, क्योंकि उस समय उसी एक धर्म की विवक्षा होती है, शेष की नहीं।
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16. एकान्त व नय अधिकार - (पक्षपात-निरसन)

1. नयवाद Hindi 380 View Detail
Mool Sutra: अनेकान्तोऽप्यनेकान्तः, प्रमाणनयसाधनः। अनेकान्तः प्रमाणान्ते, तदेकान्तोऽर्पितान्नयात् ।।

Translated Sutra: अनेकान्त भी वास्तव में प्रमाण और नय, इन दो साधनों के कारण अनेकान्तस्वरूप है। सकलार्थग्राही होने के कारण प्रमाण दृष्टि से अनेकान्त की सिद्धि होती है, जबकि किसी एक विवक्षित धर्म को विषय करने वाले विकलार्थग्राही नय से एकान्त की सिद्धि होती है।
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16. एकान्त व नय अधिकार - (पक्षपात-निरसन)

1. नयवाद Hindi 381 View Detail
Mool Sutra: यावन्तो वचनपथास्तावन्तो, वा नया अपि शब्दात्। त एव च परसमयाः, सम्यक्त्वं समुदिता सर्वे ।।

Translated Sutra: जगत् में जो कुछ भी बोलने में आता है वह सब वास्तव में किसी न किसी नय में गर्भित है। पृथक् पृथक् रहे हुए ये सभी पर-समय अर्थात् मिथ्यादृष्टि हैं, और परस्पर में समुदित हो जाने पर सभी सम्यग्दृष्टि हैं। (कारण अगली गाथा में बताया गया है।)
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16. एकान्त व नय अधिकार - (पक्षपात-निरसन)

2. पक्षपात-निरसन Hindi 382 View Detail
Mool Sutra: न समयन्ति न च समेताः, सम्यक्त्वं नैव वस्तुनो गमकाः। वस्तुविघाताय नया, विरोधतो वैरिण इव ।।

Translated Sutra: परस्पर विरोधी होने के कारण ये नय या पक्ष क्योंकि एक-दूसरे के साथ मैत्रीभाव से मेल नहीं करते हैं और पृथक्-पृथक् अपने-अपने पक्ष का ही राग अलापते रहते हैं, इसलिए न तो सम्यक्भाव को प्राप्त हो पाते हैं, और न अनेकान्तस्वरूप वस्तु के ज्ञापक ही हो पाते हैं, बल्कि वैरियों की भाँति एक-दूसरे के साथ विवाद करते रहने के कारण
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16. एकान्त व नय अधिकार - (पक्षपात-निरसन)

2. पक्षपात-निरसन Hindi 383 View Detail
Mool Sutra: सर्वे समयन्ति समम्यक्त्वं, चैकवशाद् नया विरुद्धा अपि। भूत्यव्यवहारिण इव, राजोदासीनवशवर्तिनः ।।

Translated Sutra: किसी एक स्याद्वादी के वशवर्ती हो जाने पर, परस्पर विरुद्ध भी ये सभी नयवाद समुदित होकर उसी प्रकार सम्यक्त्वभाव को प्राप्त हो जाते हैं, जिस प्रकार राजा के वशवर्ती हो जाने पर अनेक अभिप्रायों को रखने वाला भृत्य-समूह एक हो जाता है। अथवा किसी व्यवहारकुशल निष्पक्ष व्यक्ति को प्राप्त हो जाने पर, धन-धान्यादि के अर्थ
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16. एकान्त व नय अधिकार - (पक्षपात-निरसन)

2. पक्षपात-निरसन Hindi 384 View Detail
Mool Sutra: अपरापरसोपेक्षो, नयविषयोऽथ प्रमाणविषयो वा। तत्सापेक्षं तत्त्वं, निरपेक्षं तयोर्विपरीतम् ।।

Translated Sutra: प्रमाण व नय के विषय एक-दूसरे की अपेक्षा से वर्तते हैं। प्रमाण का विषय अर्थात् अनेकान्तात्मक जात्यन्तरभूत वस्तु तो नय के विषय की अर्थात् उसके किसी एक धर्म की अपेक्षा करती है, और नय का विषयभूत एक धर्म तत्सहवर्ती दूसरे नय के विषयभूत अन्य धर्म की अपेक्षा करता है। यही तत्त्व की या नय की सापेक्षता है। इससे विपरीत
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16. एकान्त व नय अधिकार - (पक्षपात-निरसन)

2. पक्षपात-निरसन Hindi 385 View Detail
Mool Sutra: निरपेक्षे एकान्ते, संकरादिभिरीषिता भावाः। नो निजकार्येऽर्हाः, विपरीते तेऽपि खल्वर्हाः ।।

Translated Sutra: नय को निरपेक्ष एकान्तस्वरूप मान लेने पर, अभिप्रेत भी भाव संकर आदि दोषों के द्वारा अपना कार्य करने को समर्थ नहीं हो सकते हैं, और उसे सापेक्ष मान लेने पर वे ही समर्थ हो जाते हैं।
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16. एकान्त व नय अधिकार - (पक्षपात-निरसन)

2. पक्षपात-निरसन Hindi 386 View Detail
Mool Sutra: सापेक्षा नयाः सिद्धा, दुर्नयाऽपि लोकतः। स्याद्वादिनां व्यवहारात्, कुक्कुटग्रामवासितम् ।।

Translated Sutra: इसीलिए लोक में प्रयुक्त पक्षपातपूर्ण प्रायः सभी नय या अभिप्राय दुर्नय हैं। वे ही स्याद्वाद की शरण को प्राप्त होने पर सुनय बन जाती हैं, जिस प्रकार ग्राम या गृहवासी परस्पर मैत्रीपूर्वक रहने के कारण प्रशंसा को प्राप्त होते हैं।
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16. एकान्त व नय अधिकार - (पक्षपात-निरसन)

2. पक्षपात-निरसन Hindi 387 View Detail
Mool Sutra: कालो स्वभावो नियतिः, पूर्वकृतं पुरुषः कारणैकान्ताः। मिथ्यात्वं ते चैव, समासतो भवन्ति सम्यक्त्वम् ।।

Translated Sutra: काल, स्वभाव, नियति, पूर्वकृत अर्थात् कर्म दैव या अदृष्ट, और पुरुषार्थ ये पाँचों ही कारण हर कार्य के प्रति लागू होते हैं। अन्य कारणों का निषेध करके पृथक् पृथक् एक एक का पक्ष पकड़ने पर ये पाँचों ही मिथ्या हैं और सापेक्षरूप से परस्पर मिल जाने पर ये पाँचों ही सम्यक् हैं।
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16. एकान्त व नय अधिकार - (पक्षपात-निरसन)

3. नयवाद की सार्वभौमिकता Hindi 388 View Detail
Mool Sutra: शब्दब्रह्मविदोऽपि शब्दनयतः, सर्वैर्नयैर्गुम्फिता, जैनी दृष्टिरितीह सारतरता, प्रत्यक्षमुद्वीक्ष्वते ।।

Translated Sutra: (जितने भी दर्शन हैं या होंगे, वे सभी अपने अपने किसी विशेष दृष्टिकोण से ही तत्त्व का निरूपण करते हैं। इसलिए सभी किसी न किसी नय का अनुसरण करते हैं।) यथा-अनित्यत्ववादी बौद्ध-दर्शन `ऋजुसूत्र' नय का अनुसरण करता है, अद्वैत व अभेदवादी वेदान्त व सांख्य-दर्शन `संग्रह' नय का, भेदवादी योग व वैशेषिक-दर्शन `नैगम' नय का, और शब्दाद्वैतवादी
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16. एकान्त व नय अधिकार - (पक्षपात-निरसन)

3. नयवाद की सार्वभौमिकता Hindi 389 View Detail
Mool Sutra: यदनेकधर्मणो वस्तुनस्तदंशे, च सर्वप्रतिपत्तिः। अन्धा इव गजावयवे, ततो मिथ्यादृष्टयो विष्वक् ।।

Translated Sutra: जिस प्रकार हाथी को टटोल-टटोल कर देखने वाले जन्मान्ध पुरुष उसके एक एक अंग को ही पूरा हाथी मान बैठते हैं, उसी प्रकार अनेक धर्मात्मक वस्तु के विषय में अपनी अपनी अटकल दौड़ानेवाले मिथ्यादृष्टि मनुष्य वस्तु के किसी एक एक अंश को ही सम्पूर्ण वस्तु मान बैठते हैं।
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16. एकान्त व नय अधिकार - (पक्षपात-निरसन)

3. नयवाद की सार्वभौमिकता Hindi 390 View Detail
Mool Sutra: परसमयैकनयमतं, तत्प्रतिपक्षनयतो निवर्तयेत्। समये वा परिगृहीतं, परेण यद् दोषबुद्धया ।।

Translated Sutra: एकान्त पक्षपाती वे पर-समय या मिथ्यादृष्टि स्वाभिप्रेत एक नय को मान कर उसके प्रतिपक्षभूत अन्य नयों या मतों का निराकरण करने लगते हैं। अथवा दूसरों के धर्म या मत में जो बात ग्रहण की गयी हो, उसमें दोष देखने लगते हैं।
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16. एकान्त व नय अधिकार - (पक्षपात-निरसन)

3. नयवाद की सार्वभौमिकता Hindi 391 View Detail
Mool Sutra: निजकवचनीयसत्याः, सर्वनयाः परविचारणे मोहाः। तान् पुनः न दृष्टिसमयो, विभजति सत्यानि वा अलीका वा ।।

Translated Sutra: सभी नय अपने अपने वक्तव्य में सच्चे हैं, परन्तु वे ही जब दूसरे के वक्तव्यों का निराकरण करने लगते हैं तो मिथ्या हो जाते हैं। अनेकान्तस्वरूप वस्तु के ज्ञाता उन नयों में `यह कुछ नय तो सच्चे हैं और यह कुछ झूठे' ऐसा विभाग नहीं करते हैं।
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16. एकान्त व नय अधिकार - (पक्षपात-निरसन)

4. नय की हेयोपादेयता Hindi 392 View Detail
Mool Sutra: सम्यग्दर्शनज्ञानमेतल्लभत, इति केवलं व्यपदेशः। सर्वनयपक्षरहितो, भणितो यः स समयसारः ।।

Translated Sutra: आत्मा सम्यग्दर्शन व सम्यग्ज्ञान को प्राप्त होता है, ऐसा व्यवहार केवल कथन मात्र है। वस्तुतः वह शुद्धात्म-तत्त्व सभी नयपक्षों से अतीत कहा गया है।
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16. एकान्त व नय अधिकार - (पक्षपात-निरसन)

4. नय की हेयोपादेयता Hindi 393 View Detail
Mool Sutra: अर्थ यो न समीक्षते, निक्षेपनयप्रमाणतो विधिना। तस्यायुक्तं युक्तं, युक्तमयुक्तं वा प्रतिभाति ।।

Translated Sutra: जो मनुष्य पदार्थ के स्वरूप की प्रमाण नय व निक्षेप से सम्यक् प्रकार समीक्षा नहीं करता है, उसे कदाचित् अयुक्त भी युक्त प्रतिभासित होता है और युक्त भी अयुक्त। (इसलिए नयातीत उस तत्त्व का निर्णय करने के लिए नयज्ञान प्रयोजनीय है।)
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16. एकान्त व नय अधिकार - (पक्षपात-निरसन)

4. नय की हेयोपादेयता Hindi 394 View Detail
Mool Sutra: तत्त्वान्वेषणकाले, समयं बुध्यस्व युक्तिमार्गेण। नो आराधनसमये, तत्प्रत्यक्षोऽनुभवो यस्मात् ।।

Translated Sutra: परन्तु तत्त्वान्वेषण के काल में ही मुक्ति मार्ग से तत्त्व को जानना योग्य है, आराधना के काल में नहीं, क्योंकि उस समय तो वह स्वयं प्रत्यक्ष ही होता है।
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16. एकान्त व नय अधिकार - (पक्षपात-निरसन)

5. नय-योजना-विधि Hindi 395 View Detail
Mool Sutra: तीर्थंकरवचनसंग्रह विशेषप्रस्तारमूलव्याकरणी। द्रव्यार्थिकश्च पर्ययनयश्च, शेषाः विकल्पाः एतेषाम् ।।

Translated Sutra: तीर्थंकरों के वचन प्रायः दो प्रकार के होते हैं-सामान्यांश प्रतिपादक और विशेषांश प्रतिपादक। इसलिए उनके ग्राहक नय भी दो प्रकार के हैं-द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक। शेष सर्व नय इन दोनों के ही भेद-प्रभेद हैं।
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16. एकान्त व नय अधिकार - (पक्षपात-निरसन)

5. नय-योजना-विधि Hindi 396 View Detail
Mool Sutra: पर्यायं गौणं कृत्वा, द्रव्यमपि च यो गृह्णाति लोके। स द्रव्यार्थिकः भणितः, विपरीतः पर्यायार्थिकः ।।

Translated Sutra: पर्याय को गौण करके जो द्रव्य को मुख्यतः ग्रहण करता है, वह द्रव्यार्थिक नय है। उससे विपरीत पर्यायार्थिक नय है। अर्थात् द्रव्य को गौण करके जो पर्याय का मुख्यतः ग्रहण है, वह पर्यायार्थिक नय है।
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16. एकान्त व नय अधिकार - (पक्षपात-निरसन)

5. नय-योजना-विधि Hindi 397 View Detail
Mool Sutra: द्रव्यार्थिकवक्तव्यमवस्तु, नियमेन पर्ययनयस्य। तथा पर्ययवस्तु अवस्तु, एव द्रव्यार्थिकनयस्य ।।

Translated Sutra: द्रव्यार्थिक का वक्तव्य पर्यायार्थिक की दृष्टि में अवस्तु है और इसी प्रकार पर्यायार्थिक का वक्तव्य द्रव्यार्थिक की दृष्टि में अवस्तु है।
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16. एकान्त व नय अधिकार - (पक्षपात-निरसन)

5. नय-योजना-विधि Hindi 398 View Detail
Mool Sutra: उत्पद्यन्ते व्ययन्ति च, भावा नियमेन पर्ययनयस्य। द्रव्यार्थिकस्य सर्वं, सदानुत्पन्नमविनष्टम् ।।

Translated Sutra: पर्यायार्थिक नय की अपेक्षा सभी पदार्थ नियम से उत्पन्न होते हैं और विनष्ट होते हैं। द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा सभी वस्तुएँ सर्वदा के लिए न उत्पन्न होती हैं, न नष्ट।
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