Welcome to the Jain Elibrary: Worlds largest Free Library of JAIN Books, Manuscript, Scriptures, Aagam, Literature, Seminar, Memorabilia, Dictionary, Magazines & Articles
Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-२ |
उद्देशक-३ | Hindi | 89 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु तीताए उस्सप्पिणीए सुसमदूसमाए समाए दो सागरोवम-कोडाकोडीओ काले होत्था।
जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु इमीसे ओसप्पिणीए सुसमदूसमाए समाए दो सागरोवम-कोडाकोडीओ काले पन्नत्ते।
जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु आगमिस्साए उस्सप्पिणीए सुसमदूसमाए समाए दो सागरोवम-कोडाकोडीओ काले भविस्सति।
जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु तीताए उस्सप्पिणीए सुसमाए समाए मनुया दो गाउयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था, दोन्नि य पलिओवमाइं परमाउं पालइत्था।
एवमिमीसे ओसप्पिणीए जाव पालइत्था।
एवमागमेस्साए उस्सप्पिणीए जाव पालयिस्संति।
जंबुद्दीवे दीवे Translated Sutra: जम्बूद्वीपवर्ती भरत और ऐरवत क्षेत्र में अतीत उत्सर्पिणी के सुषमदुःषम नामक आरे का काल दो क्रोड़ा क्रोड़ी सागरोपम का था। इसी तरह इस अवसर्पिणी के लिए भी समझना चाहिए। इसी तरह आगामी उत्सर्पिणी के यावत् – सुषमदुःषम आरे का काल दो क्रोड़ा क्रोड़ी सागरोपम होगा। जम्बूद्वीपवर्ती भरत – ऐरवत क्षेत्र में गत उत्सर्पिणी | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-२ |
उद्देशक-३ | Hindi | 94 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] दो अग्गी, दो पयावती, दो सोमा, दो रुद्दा, दो अदिती, दो बहस्सती, दो सप्पा, दो पिती, दो भगा, दो अज्जमा दो सविता, दो तट्ठा, दो वाऊ, दो इंदग्गी, दो मित्ता, दो इंदा, दो निरती, दो आऊ, दो विस्सा, दो बम्हा, दो विण्हू, दो वसू, दो वरुणा, दो अया, दो विविद्धी, दो पुस्सा, दो अस्सा, दो यमा। दो इंगालगा, दो वियालगा, दो लोहितक्खा, दो सनिच्चरा, दो आहुणिया, दो पाहुणिया, दो कणा, दो कणगा, दो कनकनगा, दो कनगविताणगा, दो कनगसंताणगा, दो सोमा, दो सहिया, दो आसासणा, दो कज्जोवगा, दो कब्बडगा, दो अयकरगा, दो दुंदुभगा, दो संखा, दो संखवण्णा, दो संखवण्णाभा, दो कंसा, दो कंसवण्णा, दो कंसवण्णाभा, दो रुप्पी, दो रुप्पा भासा, दो निला, दो णीलोभासा, Translated Sutra: अट्ठाईस नक्षत्रों के देवता – १ दो अग्नि, २. दो प्रजापति, ३. दो सोम, ४. दो रुद्र, ५. दो अदिति, ६. दो बृहस्पति, ७. दो सर्प, ८. दो पितृ, ९. दो भग, १०. दो अर्यमन्, ११. दो सविता, १२. दो त्वष्टा, १३. दो वायु, १४. दो इन्द्राग्नि, १५. दो मित्र, १६. दो इन्द्र, १७. दो निर्ऋति, १८. दो आप, १९. दो विश्व, २०. दो ब्रह्मा, २१. दो विष्णु, २२. दो वसु, २३. दो वरुण, | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-२ |
उद्देशक-३ | Hindi | 95 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स वेइया दो गाउयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं पन्नत्ता।
लवने णं समुद्दे दो जोयणसयसहस्साइं चक्कवालविक्खंभेणं पन्नत्ते।
लवणस्स णं समुद्दस्स वेइया दो गाउयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं पन्नत्ता।
धायइसंडे दीवे पुरत्थिमद्धे णं मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर-दाहिणे णं दो वासा पन्नत्ता–बहुसमतुल्ला जाव तं जहा–भरहे चेव, एरवए चेव।
एवं–जहा जंबुद्दीवे तहा एत्थवि भाणियव्वं जाव दोसु वासेसु मनुया छव्विहंपि कालं पच्चणुभवमाणा विहरंति, तं जहा–भरहे चेव, एरवए चेव, नवरं–कूडसामली चेव, धायईरुक्खे चेव। देवा–गरुले चेव वेणुदेवे, सुदंसणे चेव। Translated Sutra: जम्बूद्वीप की वेदिका दो कोस ऊंची है। लवण समुद्र चक्रवाल विष्कम्भ से दो लाख योजन का है। लवण समुद्र की वेदिका दो कोस की ऊंची है। | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-२ |
उद्देशक-३ | Hindi | 96 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] धायइसंडे दीवे पच्चत्थिमद्धे णं मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर-दाहिणे णं दो वासा पन्नत्ता–बहुसमतुल्ला जाव तं जहा –भरहे चेव, एरवए चेव।
एवं–जहा जंबुद्दीवे तहा एत्थवि भाणियव्वं जाव छव्विहंपि कालं पच्चणुभवमाणा विहरंति, तं जहा–भरहे चेव, एरवए चेव, नवरं–कूडसामली चेव, महाधायईरुक्खे चेव। देवा–गरुले चेव वेणुदेवे, पियदंसणे चेव।
धायइसंडे णं दीवे दो भरहाइं, दो एरवयाइं, दो हेमवयाइं, दो हेरण्णवयाइं, दो हरिवासाइं, दो रम्मगवासाइं, दो पुव्वविदेहाइं, दो अवरविदेहाइं, दो देवकुराओ, दो देवकुरुमहद्दुमा, दो देवकुरुमहद्दुमवासी देवा, दो उत्तरकुराओ, दो उत्तरकुरुमह-द्दुमा, दो उत्तरकुरुमहद्दुमवासी Translated Sutra: पूर्वार्ध धातकीखंडवर्ती मेरु पर्वत के उत्तर और दक्षिण में दो क्षेत्र कहे गए हैं जो अति समान हैं – यावत् उनके नाम – भरत और ऐरवत। पहले जम्बूद्वीप के अधिकार में कहा वैसे यहाँ भी कहना चाहिए यावत् – दो क्षेत्र में मनुष्य छः प्रकार के काल का अनुभव करते हुए रहते हैं, उनके नाम – भरत और ऐरवत। विशेषता यह है कि वहाँ कूटशाल्मली | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-२ |
उद्देशक-३ | Hindi | 97 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कालोदस्स णं समुद्दस्स वेइया दो गाउयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं पन्नत्ता।
पुक्खरवरदीवड्ढपुरत्थिमद्धे णं मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर-दाहिणे णं दो वासा पन्नत्ता–बहुसमतुल्ला जाव तं जहा–भरहे चेव, एरवए चेव।
तहेव जाव दो कुराओ पन्नत्ताओ–देवकुरा चेव, उत्तरकुरा चेव।
तत्थ णं दो महतिमहालया महद्दुमा पन्नत्ता, तं जहा–कूडसामली चेव, पउमरुक्खे चेव। देवा–गरुले चेव वेणुदेवे, पउमे चेव जाव छव्विहंपि कालं पच्चणुभवमाणा विहरंति।
पुक्खरवरदीवड्ढपच्चत्थिमद्धे णं मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर-दाहिणे णं दो वासा पन्नत्ता। तहेव नाणत्तं–कूडसामली चेव, महापउमरुक्खे चेव। देवा–गरुवे चेव वेणुदेवे, Translated Sutra: कालोदधि समुद्र की वेदिका दो कोस की ऊंचाई वाली है। पुष्करवर द्वीपार्ध के पूर्वार्ध में मेरु पर्वत के उत्तर और दक्षिण में दो क्षेत्र हैं जो अति तुल्य हैं – यावत् नाम – भरत और ऐरवत। इसी तरह यावत् – दो कुरु हैं, यथा – देव कुरु और उत्तर कुरु। वहाँ दो विशाल महाद्रुम हैं, उनके नाम – कुटशाल्मली और पद्मवृक्ष देव गरुड़ | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-२ |
उद्देशक-३ | Hindi | 98 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] दो असुरकुमारिंदा पन्नत्ता, तं जहा–चमरे चेव, बली चेव।
दो नागकुमारिंदा पन्नत्ता, तं जहा–धरणे चेव, भूयानंदे चेव।
दो सुवण्णकुमारिंदा पन्नत्ता, तं जहा–वेणुदेवे चेव, वेणुदाली चेव।
दो विज्जुकुमारिंदा पन्नत्ता, तं जहा–हरिच्चेव, हरिस्सहे चेव।
दो अग्गिकुमारिंदा पन्नत्ता, तं जहा–अग्गिसिहे चेव, अग्गिमाणवे चेव।
दो दीवकुमारिंदा पन्नत्ता, तं जहा–पुण्णे चेव, विसिट्ठे चेव।
दो उदहिकुमारिंदा पन्नत्ता, तं जहा–जलकंते चेव, जलप्पभे चेव।
दो दिसाकुमारिंदा पन्नत्ता, तं जहा–अमियगती चेव, अमितवाहने चेव।
दो वायुकुमारिंदा पन्नत्ता, तं जहा–वेलंबे चेव, पभंजणे चेव।
दो थणियकुमारिंदा Translated Sutra: असुरकुमारेन्द्र दो कहे गए हैं, यथा – चमर और बलि। नागकुमारेन्द्र दो कहे गए हैं, यथा – धरन और भूता – नन्द सुवर्णकुमारेन्द्र दो कहे गए हैं, वेणुदेव और वेणुदाली। विद्युतकुमारेन्द्र दो कहे गए हैं, यथा – हरि और हरिसह। अग्निकुमारेन्द्र दो कहे गए हैं, यथा – अग्निशिख और अग्निमाणव। द्वीपकुमारेन्द्र दो कहे गए हैं, यथा | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-२ |
उद्देशक-४ | Hindi | 103 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: दुविहे अद्धोवमिए पन्नत्ते, तं जहा–पलिओवमे चेव, सागरोवमे चेव।
से किं तं पलिओवमे? पलिओवमे– Translated Sutra: औपमिक काल दो प्रकार का है, पल्योपम और सागरोपम। पल्योपम का स्वरूप क्या है ? पल्योपम का स्वरूप इस प्रकार है। | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-२ |
उद्देशक-४ | Hindi | 105 | Gatha | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] वाससए वाससए, एक्केक्के अवहडंमि जो कालो ।
सो कालो बोद्धव्वो, उवमा एगस्स पल्लस्स ॥ Translated Sutra: सौ सौ वर्ष में एक एक बाल नीकालने से जितने वर्षों में वह पल्य खाली हो जाए उतने वर्षों के काल को एक पल्योपम समझना चाहिए। | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-२ |
उद्देशक-४ | Hindi | 119 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अंतो णं मनुस्सखेत्तस्स दो समुद्दा पन्नत्ता, तं जहा–लवने चेव, कालोदे चेव। Translated Sutra: मनुष्य – क्षेत्र के अन्दर दो समुद्र हैं, यथा – लवण और कालोदधि समुद्र। | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-२ |
उद्देशक-४ | Hindi | 120 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] दो चक्कवट्टी अपरिचत्तकामभोगा कालमासे कालं किच्चा अहेसत्तमाए पुढवीए अपइट्ठाणे नरए नेरइयत्ताए उववण्णा, तं जहा–सुभूमे चेव, बंभदत्ते चेव। Translated Sutra: काम भोगों का त्याग नहीं करने वाले दो चक्रवर्ती मरण – काल में मरकर नीचे सातवीं नरक – पृथ्वी के अप्रतिष्ठान नामक नरकवास में नारकरूप से उत्पन्न हुए, उनके नाम ये हैं, यथा – सुभूम और ब्रह्मदत्त। | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-३ |
उद्देशक-१ | Hindi | 135 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तिविहा गरहा पन्नत्ता, तं जहा–मनसा वेगे गरहति, वयसा वेगे गरहति, कायसा वेगे गरहति–पावाणं कम्माणं अकरणयाए।
अहवा–गरहा तिविहा पन्नत्ता, तं जहा–दीहंपेगे अद्धं गरहति, रहस्संपेगे अद्धं गरहति, कायंपेगे पडिसाहरति–पावाणं कम्माणं अकरणयाए।
तिविहे पच्चक्खाणे पन्नत्ते, तं जहा–मनसा वेगे पच्चक्खाति, वयसा वेगे पच्चक्खाति, कायसा वेगे पच्चक्खाति–पावाणं कम्माणं अकरणयाए।
अहवा–पच्चक्खाणे तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–दीहंपेगे अद्धं पच्चक्खाति, रहस्संपेगे अद्धं पच्चक्खाति, कायंपेगे पडिसाहरति–पावाणं कम्माणं अकरणयाए। Translated Sutra: तीन प्रकार की गर्हा कही गई है, यथा – कुछ व्यक्ति मन से गर्हा करते हैं, कुछ व्यक्ति वचन से गर्हा करते हैं, कुछ व्यक्ति पाप कर्म नहीं करके काया द्वारा गर्हा करते हैं। अथवा गर्हा तीन प्रकार की कही गई है, यथा – कितनेक दीर्घकाल की गर्हा करते हैं, कितनेक थोड़े काल की गर्हा करते हैं, कितनेक पाप कर्म नहीं करने के लिए अपने | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-३ |
उद्देशक-१ | Hindi | 143 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तिण्हं दुप्पडियारं समणाउसो! तं जहा–अम्मापिउणो, भट्ठिस्स, धम्मायरियस्स।
१. संपातोवि य णं केइ पुरिसे अम्मापियरं सयपागसहस्सपागेहिं तेल्लेहिं अब्भंगेत्ता, सुरभिणा गंधट्टएणं उव्वट्टित्ता, तिहिं उदगेहिं मज्जावेत्ता, सव्वालंकारविभूसियं करेत्ता, मणुण्णं थालीपागसुद्धं अट्ठारसवंजणाउलं भोयणं भोयावेत्ता जावज्जीवं पिट्ठिवडेंसियाए परिवहेज्जा, तेणावि तस्स अम्मापिउस्स दुप्पडियारं भवइ।
अहे णं से तं अम्मापियरं केवलिपन्नत्ते धम्मे आघवइत्ता पन्नवइत्ता परूवइत्ता ठावइत्ता भवति, तेणामेव तस्स अम्मापिउस्स सुप्पडियारं भवति समणाउसो!
२. केइ महच्चे दरिद्दं समुक्कसेज्जा। Translated Sutra: हे आयुष्मन् श्रमणों ! तीन व्यक्तियों पर प्रत्युपकार कठिन है, यथा – माता – पिता, स्वामी (पोषक) और धर्माचार्य। कोई पुरुष (प्रतिदिन) प्रातःकाल होते ही माता – पिता को शतपाक, सहस्रपाक तेल से मर्दन करके सुगन्धित उबटन लगाकर तीन प्रकार के (गन्धोदक, उष्णोदक, शीतोदक) जल से स्नान करा कर, सर्व अलंकारों से विभूषित करके मनोज्ञ, | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-३ |
उद्देशक-१ | Hindi | 151 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु तीताए उस्सप्पिणीए सुसमाए समाए तिन्नि सागरोवमकोडाकोडीओ काले होत्था।
जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु इमीसे ओसप्पिणीए सुसमाए समाए तिन्नि सागरोवमकोडाकोडीओ काले पन्नत्ते।
जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु आगमिस्साए उस्सप्पिणीए सुसमाए समाए तिन्नि सागरोवम-कोडाकोडीओ काले भविस्सति।
एवं– धायइसंडे पुरत्थिमद्धे पच्चत्थिमद्धे वि। एवं– पुक्खरवरदीवद्धे पुरत्थिमद्धे पच्चत्थिमद्धेवि कालो भाणियव्वो।
जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु तीताए उस्सप्पिणीए सुसमसुसमाए समाए मनुया तिन्नि गाउयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था, तिन्नि Translated Sutra: जम्बूद्वीपवर्ती भरत और ऐरवत क्षेत्र में अतीत उत्सर्पिणी काल के सुषम नामक आरक का काल तीन क्रोड़ाक्रोड़ी सागरोपम था। इसी तरह इस अवसर्पिणी काल के सुरमआरक का काल इतना ही है। आगामी उत्स – र्पिणी के सुषम आरक का काल इतना ही होगा। इसी तरह धातकीखण्ड के पूर्वार्ध में और पश्चिमार्ध में भी इसी तरह अर्ध पुष्करवरद्वीप | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-३ |
उद्देशक-१ | Hindi | 153 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! सालीणं वीहीणं गोधूमाणं जवाणं जवजवाणं–एतेसि णं धण्णाणं कोट्ठाउत्ताणं पल्लाउत्ताणं मंचाउत्ताणं मालाउत्ताणं ओलित्ताणं लित्ताणं लंछियाणं मुद्दियाणं पिहिताणं केवइयं कालं जोणी संचिट्ठति?
जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिन्नि संवच्छराइं। तेण परं जोणी पमिलायति। तेण परं जोणी पविद्धंसति। तेण परं जोणी विद्धंसति। तेण परं बीए अबीए भवति। तेण परं जोणीवोच्छेदे पन्नत्ते। Translated Sutra: हे भदन्त ! शालि, व्रीहि, गेहूं, जौ, यवयव इन धान्यों को कोठों में सुरक्षित रखने पर, पल्य में सुरक्षित रखने पर, मंच पर सुरक्षित रखने पर, ढक्कन लगाकर, लीप कर, सब तरफ लीप कर, रेखादि के द्वारा लांछित करने पर, मिट्टी की मुद्रा लगाने पर अच्छी तरह बन्द रखने पर इनकी कितने काल तक योनि रहती है ? हे गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-३ |
उद्देशक-१ | Hindi | 157 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तओ समुद्दा पगईए उदगरसेणं पन्नत्ता, तं जहा– कालोदे, पुक्खरोदे, सयंभुरमणे।
[सूत्र] तओ समुद्दा बहुमच्छकच्छभाइण्णा पन्नत्ता, तं जहा– लवने, कालोदे, सयंभुरमणे। Translated Sutra: तीन समुद्र प्रकृति से उदकरस वाले कहे गए हैं, यथा – कालोदधि, पुष्करोदधि और स्वयंभूरमण। तीन समुद्रों में मच्छ कच्छ आदि जलचर विशेष रूप से कहे गए हैं, यथा – लवण, कालोदधि और स्वयंभूरमण। | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-३ |
उद्देशक-१ | Hindi | 158 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तओ लोगे निस्सीला निव्वता निग्गुणा निम्मेरा निप्पच्चक्खाणपोसहोववासा कालमासे कालं किच्चा अहेसत्तमाए पुढवीए अप्पतिट्ठाणे नरए नेरइयत्ताए उववज्जंति, तं जहा–रायाणो, मंडलीया, जे य महारंभा कोडुंबी।
[सूत्र] तओ लोए सुसीला सुव्वया सग्गुणा समेरा सपच्चक्खाणपोसहोववासा कालमासे कालं किच्चा सव्वट्ठसिद्धे विमाने देवत्ताए उववत्तारो भवंति, तं जहा–रायाणो परिचत्तकामभोगा, सेणावती, पसत्थारो। Translated Sutra: शीलरहित, व्रतरहित, गुणरहित, मर्यादारहित, प्रत्याख्यान पौषध – उपवास आदि नहीं करने वाले तीन प्रकार के व्यक्ति मृत्यु के समय मर कर नीचे सातवी नरक के अप्रतिष्ठान नामक नरकावास में नारक रूप से उत्पन्न होते हैं, यथा – चक्रवर्ती आदि राजा, माण्डलिक राजा (शेष सामान्य राजा) और महारम्भ करने वाले कुटुम्बी। सुशील, सुव्रती, | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-३ |
उद्देशक-१ | Hindi | 159 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] बंभलोग-लंतएसु णं कप्पेसु विमाणा तिवण्णा पन्नत्ता, तं जहा–किण्हा, निला, लोहिया।
[सूत्र] आनयपानयारणच्चुतेसु णं कप्पेसु देवाणं भवधारणिज्जसरीरगा उक्कोसेणं तिन्नि रयणीओ उड्ढं उच्चत्तेणं पन्नत्ता Translated Sutra: ब्रह्मलोक और लान्तक में विमान तीन वर्ण वाले कहे गए हैं। यथा – काले, नीले और लाल। आनत, प्राणत, आरण और अच्युत कल्प में देवों के भवधारणीय शरीरों की ऊंचाई तीन हाथ की कही गई है। | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-३ |
उद्देशक-१ | Hindi | 160 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तओ पन्नत्तीओ कालेणं अहिज्जंति, तं जहा–चंदपन्नत्ती, सूरपन्नत्ती, दीवसागरपन्नत्ती। Translated Sutra: तीन प्रज्ञप्तियाँ नियत समय पर पढ़ी जाती हैं, यथा – चन्द्रप्रज्ञप्ति, सूर्यप्रज्ञप्ति और द्वीपसागरप्रज्ञप्ति। | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-३ |
उद्देशक-२ | Hindi | 162 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो तओ परिसाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–समिता, चंडा, जाया। अब्भिंतरिता समिता, मज्झिमिता चंडा, बाहिरिता जाया।
[सूत्र] चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो सामाणिताणं देवाणं तओ परिसाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–समिता जहेव चमरस्स। एवं– तावत्तीसगाणवि।
लोगपालाणं– तुंबा तुडिया पव्वा। एवं–अग्गमहिसीणवि।
बलिस्सवि एवं चेव जाव अग्गमहिसीणं।
धरणस्स य सामाणिय-तावत्तीसगाणं च– समित्ता चंडा जाता।
‘लोगपालाणं अग्गमहिसीणं’ – ईसा तुडिया दढरहा।
जहा धरणस्स तहा सेसाणं भवनवासीणं।
कालस्स णं पिसाइंदस्स पिसायरण्णो तओ परिसाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–ईसा तुडिया दढरहा।
एवं– Translated Sutra: असुरकुमारराज असुरेन्द्र चमर की तीन प्रकार की परीषद कही गई है, यथा – समिता चण्डा और जाया। समिता आभ्यन्तर परीषद है, चण्डा मध्यम परीषद है, जाया बाह्य परीषद है। असुरकुमारराज असुरेन्द्र चमर के सामानिक देवों की तीन परीषद हैं समिता आदि। इसी तरह त्रायस्त्रिंशकों की भी तीन परीषद जानें। लोकपालों की तीन परीषद हैं | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-३ |
उद्देशक-२ | Hindi | 176 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तिविधा लोगठिती पन्नत्ता, तं जहा–आगासपइट्ठिए वाते, वातपइट्ठिए उदही, उदहीपइट्ठिया पुढवी।
तओ दिसाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–उड्ढा, अहा, तिरिया।
तिहिं दिसाहिं जीवाणं गती पवत्तति–उड्ढाए, अहाए, तिरियाए।
तिहिं दिसाहिं जीवाणं–आगती, वक्कंती, आहारे, वुड्ढी, णिवुड्ढी, गतिपरियाए, समुग्घाते, काल-संजोगे, दंसणाभिगमे, जीवाभिगमे पन्नत्ते, तं जहा–उड्ढाए, अहाए, तिरियाए।
तिहिं दिसाहिं जीवाणं अजीवाभिगमे पन्नत्ते, तं जहा–उड्ढाए, अहाए, तिरियाए।
एवं–पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं।
एवं–मनुस्साणवि। Translated Sutra: लोक – स्थिति तीन प्रकार की कही गई है, यथा – आकाश के आधार पर वायु रहा हुआ है, वायु के आधार पर उदधि, उदधि के आधार पर पृथ्वी। दिशाएं तीन कही गई हैं, यथा – ऊर्ध्व दिशा, अधो दिशा और तिर्छी दिशा। तीन दिशाओं में जीवों की गति होती है, ऊर्ध्व दिशा में, अधोदिशा में और तिर्छी दिशा में। इसी तरह आगति। उत्पत्ति, आहार, वृद्धि, हानि, | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-३ |
उद्देशक-३ | Hindi | 190 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: तिहिं ठाणेहिं अहुणोववन्ने देवे देवलोगेसु इच्छेज्ज मानुसं लोगं हव्वमागच्छित्तए, नो चेव णं संचाएति हव्वमागच्छित्तए, तं जहा–
१.अहुणोववन्ने देवे देवलोगेसु दिव्वेसु कामभोगेसु मुच्छिते गिद्धे गढिते अज्झोववन्ने, से णं मानुस्सए कामभोगे नो आढाति, नो परियाणाति, नो ‘अट्ठं बंधति’, नो नियाणं पगरेति, नो ठिइपकप्पं पगरेति।
२. अहुणोववन्ने देवे देवलोगेसु दिव्वेसु कामभोगेसु मुच्छिते गिद्धे गढिते अज्झोववन्ने, तस्स णं मानुस्सए पेम्मे वोच्छिन्ने दिव्वे संकंते भवति।
३. अहुणोववन्ने देवे देवलोगेसु दिव्वेसु कामभोगेसु मुच्छिते गिद्धे गढिते अज्झोववन्ने, तस्स णं एवं भवति– ‘इण्हिं गच्छं Translated Sutra: तीन कारणों से देवलोक में नवीन उत्पन्न देव मनुष्य – लोक में शीघ्र आने की ईच्छा करने पर भी शीघ्र आने में समर्थ नहीं होता है, यथा – देवलोक में नवीन उत्पन्न देव दिव्य कामभोगों में मूर्च्छित होने से, गृहयुद्ध होने से, स्नेहपाश में बंधा हुआ होने से, तन्मय होने से वह मनुष्य – सम्बन्धी कामभोगों को आदर नहीं देता है, अच्छा | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-३ |
उद्देशक-३ | Hindi | 195 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] चउत्थभत्तियस्स णं भिक्खुस्स कप्पंति तओ पाणगाइं पडिगाहित्तए, तं जहा–उस्सेइमे, संसेइमे, चाउलधोवने।
छट्ठभत्तियस्स णं भिक्खुस्स कप्पंति तओ पाणगाइं पडिगाहित्तए, तं जहा–तिलोदए, तुसोदए, जवोदए।
अट्ठमभत्तियस्स णं भिक्खुस्स कप्पंति तओ पाणगाइं पडिगाहित्तए, तं जहा–आयामए, सोवीरए, सुद्धवियडे।
तिविहे उवहडे पन्नत्ते, तं जहा–फलिओवहडे, सुद्धोवहडे, संसट्ठोवहडे।
तिविहे ओग्गहिते पन्नत्ते, तं जहा–जं च ओगिण्हति, जं च साहरति, जं च आसगंसि पक्खिवति।
तिविधा ओमोयरिया पन्नत्ता, तं जहा–उवगरणोमोयरिया, भत्तपाणोमोदरिया, भावोमोदरिया।
उवगरणमोदरिया तिविहा पन्नत्ता, तं जहा–एगे वत्थे, Translated Sutra: चतुर्थभक्त ‘एक उपवास करने’ वाले मुनि को तीन प्रकार का जल लेना कल्पता है, आटे का धोवन, उबाली हुई भाजी पर सिंचा गया जल, चावल का धोवन। छट्ठ भक्त ‘दो उपवास’ करने वाले मुनि को तीन प्रकार का जल लेना कल्पता है, यथा – तिल का धोवन, तुष का धोवन, जौ का धोवन। अष्टभक्त ‘तीन उपवास’ करने वाले मुनि को तीन प्रकार का जल लेना कल्पता | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-३ |
उद्देशक-४ | Hindi | 206 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तिविहे काले पन्नत्ते, तं जहा–तीए, पडुप्पन्न, अनागए।
तिविहे समए पन्नत्ते, तं जहा–तीए, पडुप्पन्ने, अनागए।
एवं–आवलिया आणापाणू थोवे लवे मुहुत्ते अहोरत्ते जाव वाससतसहस्से पुव्वंगे पुव्वे जाव ओसप्पिणी।
तिविधे पोग्गलपरियट्टे पन्नत्ते, तं जहा–तीते, पडुप्पण्णे, अनागए। Translated Sutra: काल तीन प्रकार के कहे गए हैं, भूतकाल, वर्तमानकाल और भविष्यकाल। समय तीन प्रकार का कहा गया है, यथा – अतीत काल, वर्तमानकाल और अनागत काल। इसी तरह आवलिका, श्वसोच्छ्वास, स्तोक, क्षण, लव, मुहूर्त्त, अहोरात्र – यावत् क्रोड़वर्ष, पूर्वांग, पूर्व, यावत् – अवसर्पिणी। पुद्गल परिवर्तन तीन प्रकार का है, यथा – अतीत, प्रत्युत्पन्न | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-३ |
उद्देशक-४ | Hindi | 224 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तिहिं ठाणेहिं समये निग्गंथे महानिज्जरे महापज्जवसाणे भवति, तं जहा–
१. कया णं अहं अप्पं वा बहुयं वा सुयं अहिज्जिस्सामि?
२. कया णं अहं एकल्लविहारपडिमं उवसंपज्जित्ता णं विहरिस्सामि?
३. कया णं अहं अपच्छिममारणंतियसंलेहणा-झूसणा-झूसिते भत्तपाणपडियाइक्खिते पाओवगते कालं अनवकंखमाने विहरिस्सामि?
एवं समनसा सवयसा सकायसा पागडेमाने समणे निग्गंथे महानिज्जरे महापज्जवसाणे भवति।
तिहिं ठाणेहिं समणोवासए महानिज्जरे महापज्जवसाणे भवति, तं जहा–
१. कया णं अहं अप्पं वा बहुयं वा परिग्गहं परिचइस्सामि?
२. कया णं अहं मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारितं पव्वइस्सामि?
३. कया णं अहं अपच्छिममारणंतियसंलेहणा-झूसणा-झुसिते Translated Sutra: तीन कारणों से श्रमण निर्ग्रन्थ महानिर्जरा वाला और महापर्यवसान वाला होता है, यथा – कब मैं अल्प या अधिक श्रुत का अध्ययन करूँगा, कब मैं एकलविहार प्रतिमा को अंगीकार करके विचरूँगा, कब मैं अन्तिम मारणान्तिक संलेखना से भूषित होकर आहार पानी का त्याग करके पादपोपगमन संथारा अंगीकार करके मृत्यु की ईच्छा नहीं करता हुआ | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-४ |
उद्देशक-१ | Hindi | 270 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो चत्तारि लोगपाला पन्नत्ता, तं जहा– सोमे, जमे, वरुणे, वेसमणे।
एवं–बलिस्सवि– सोमे, जमे, वेसमणे, वरुणे।
धरणस्स– कालपाले, कोलपाले, सेलपाले, संखपाले।
भूयाणंदस्स – कालपाले, कोलपाले, संखपाले, सेलपाले।
वेणुदेवस्स– चित्ते, विचित्ते, चित्तपक्खे, विचित्तपक्खे।
वेणुदालिस्स- चित्ते, विचित्ते, विचित्तपक्खे, चित्तपक्खे।
हरिकंतस्स- पभे, सुप्पभे, पभकंते, सुप्पभकंते।
हरिस्सहस्स- पभे, सुप्पभे, सुप्पभकंते, पभकंते।
अग्गिसिहस्स– तेऊ, तेउसिहे, तेउकंते, तेउप्पभे।
अग्गिमाणवस्स– तेऊ, तेउसिहे, तेउप्पभे, तेउकंते।
पुण्णस्स– ‘रूवे, रूवंसे’, ‘रूवकंते, Translated Sutra: असुरेन्द्र, असुरकुमार – राज चमर के चार लोकपाल कहे गए हैं, यथा – सोम, यम, वरुण और वैश्रमण। इसी तरह बलीन्द्र के भी सोम, यम, वैश्रमण और वरुण चार लोकपाल हैं। धरणेन्द्र के कालपाल, कोलपाल, शैलपाल और शंखपाल। इसी तरह भूतानन्द के कालपाल, कोलपाल, शंखपाल और शैलपाल नामक चार लोकपाल हैं। वेणुदेव के चित्र, विचित्र, चित्रपक्ष | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-४ |
उद्देशक-१ | Hindi | 272 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] चउव्विहे पमाणे पन्नत्ते, तं जहा–दव्वप्पमाणे, खेत्तप्पमाणे, कालप्पमाणे, भावप्पमाणे। Translated Sutra: चार प्रकार के प्रमाण हैं, द्रव्यप्रमाण, क्षेत्रप्रमाण, कालप्रमाण, भावप्रमाण। | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-४ |
उद्देशक-१ | Hindi | 275 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] चउव्विहे संसारे पन्नत्ते, तं जहा–दव्वसंसारे, खेत्तसंसारे, कालसंसारे, भावसंसारे। Translated Sutra: संसार चार प्रकार का है, द्रव्यसंसार, क्षेत्रसंसार, कालसंसार, भावसंसार। | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-४ |
उद्देशक-१ | Hindi | 278 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] चउव्विहे काले पन्नत्ते, तं जहा–पमाणकाले, अहाउयनिव्वत्तिकाले, मरणकाले, अद्धाकाले। Translated Sutra: चार प्रकार का काल कहा गया है, यथा – प्रमाणकाल, यथायुर्निवृत्तिकाल, मरणकाल, अद्धाकाल। | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-४ |
उद्देशक-१ | Hindi | 287 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो सोमस्स महारन्नो चत्तारि अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–कणगा, कणगलता, चित्तगुत्ता, वसुंधरा। एवं–जमस्स वरुणस्स वेसमणस्स।
बलिस्स णं वइरोयणिंदस्स वइरोयणरण्णो सोमस्स महारन्नो चत्तारि अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–मित्तगा सुभद्दा, विज्जुता, असनी। एवं–जमस्स वेसमणस्स वरुणस्स।
धरणस्स णं नागकुमारिंदस्स नागकुमाररण्णो कालवालस्स महारन्नो चत्तारि अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ, तं जहा –असोगा, विमला, सुप्पभा, सुदंसणा। एवं जाव संखवालस्स।
भूतानंदस्स णं नागकुमारिंदस्स नागकुमाररण्णो कालवालस्स महारन्नो चत्तारि अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ, Translated Sutra: असुरेन्द्र असुरकुमारराज चमर के सोम महाराजा (लोकपाल) की चार अग्रमहिषियाँ कही गई हैं, यथा – कनका, कनकलता, चित्रगुप्त और वसुंधरा। इसी तरह – यम, वरुण और वैश्रमण के भी इसी नाम की चार – चार अग्रमहिषियाँ हैं। वेरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि के सोम लोकपाल की चार अग्रमहिषियाँ हैं, यथा – मित्रता, सुभद्रा, विद्युता और अशनी। | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-४ |
उद्देशक-१ | Hindi | 290 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] चउविहा ओगाहणा पन्नत्ता, तं जहा–दव्वोगाहणा, खेत्तोगाहणा, कालोगाहणा, भावोगाहणा। Translated Sutra: अवगाहना (शरीर का प्रमाण) चार प्रकार की हैं, यह इस प्रकार की हैं – द्रव्यावगाहना – अनंतद्रव्ययुता, क्षेत्रावगाहना – असंख्यप्रदेशागाढ़ा, कालावगाहना – असंख्यसमय – स्थितिका, भावावगाहना – वर्णादिअनंतगुणयुता। | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-४ |
उद्देशक-२ | Hindi | 311 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] चत्तारि पुरिसजाया पन्नत्ता, तं जहा–संपागडपडिसेवी नाममेगे, पच्छन्नपडिसेवी नाममेगे, पडुप्पन्नणंदी नाममेगे, णिस्सरणणंदी नाममेगे।
चत्तारि सेणाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–जइत्ता नाममेगा नो पराजिणित्ता, पराजिणित्ता नाममेगा नो जइत्ता, एगा जइत्तावि पराजिणित्तावि, एगा नो जइत्ता नो पराजिणित्ता।
एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पन्नत्ता, तं जहा–जइत्ता नाममेगे नो पराजिणित्ता, पराजिणित्ता नाममेगे नो जइत्ता, एगे जइत्तावि पराजिणित्तावि, एगे नो जइत्ता नो पराजिणित्ता।
चत्तारि सेणाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–जइत्ता नाममेगा जयइ, जइत्ता नाममेगा पराजिणति, पराजिणित्ता नाममेगा जयइ, पराजिणित्ता Translated Sutra: पुरुष चार प्रकार के हैं। यथा – संप्रगट प्रतिसेवी – साधु समुदाय में रहने वाला एक साधु अगीतार्थ के समक्ष दोष सेवन करते हैं। प्रच्छन्नप्रतिसेवी – एक साधु प्रच्छन्न दोष सेवन करता है। प्रत्युत्पन्न नंदी – एक साधु वस्त्र या शिष्य के लाभ से आनन्द मनाता है। निःसरण नंदी – एक साधु गच्छ में से स्वयं के या शिष्य के नीकलने | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-४ |
उद्देशक-२ | Hindi | 312 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] चत्तारि केतणा पन्नत्ता, तं जहा–वंसीमूलकेतणए, मेंढविसाणकेतणए, गोमुत्तिकेतणए, अवलेहणिय-केतणए।
एवामेव चउविधा माया पन्नत्ता, तं जहा–वंसीमूलकेतणासमाणा, मेंढविसाणकेतणासमाणा, गोमुत्ति-केतणासमाणा, अवलेहणियकेतणासमाणा।
१. वंसीमूलकेतणासमाणं मायमनुपविट्ठे जीवे कालं करेति, नेरइएसु उववज्जति।
२. मेंढविसाणकेतणासमाणं मायमनुपविट्ठे जीवे कालं करेति, तिरिक्खजोणिएसु उववज्जति।
३. गोमुत्ति केतणासमाणं मायमनुपविट्ठे जीवे कालं करेति, मनुस्सेसु उववज्जति।
४. अवलेहणिय केतणासमाणं मायमनुपविट्ठे जीवे कालं करेति, देवेसु उववज्जति।
चत्तारि थंभा पन्नत्ता, तं जहा–सेलथंभे, अट्ठिथंभे, Translated Sutra: वक्र वस्तुएं चार प्रकार की हैं। यथा – बाँस की जड़ समान वक्रता, घेटे के सींग समान वक्रता, गोमूत्रिका के समान वक्रता, बाँस की छाल समान वक्रता। इसी प्रकार माया भी चार प्रकार की है। बाँस की जड़ समान वक्रता वाली माया करनेवाला जीव मरकर नरकमें उत्पन्न होता है। घेटे के सींग समान वक्रता वाली माया करने वाला जीव मरकर तिर्यंचयोनि | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-४ |
उद्देशक-२ | Hindi | 320 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवतेसु वासेसु तीताए उस्सप्पिणीए सुसमसुसमाए समाए चत्तारि सागरोवम-कोडाकोडीओ कालो हुत्था।
जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवतेसु वासेसु इमीसे ओसप्पिणीए सुसमसुसमाए समाए चत्तारि सागरोवम-कोडाकोडीओ कालो पण्णत्तो।
जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवतेसु वासेसु आगमेस्साए उस्सप्पिणीए सुसमसुसमाए समाए चत्तारि सागरोवमकोडाकोडीओ कालो भविस्सइ। Translated Sutra: जम्बूद्वीप के भरत ऐरवत क्षेत्र में अतीत उत्सर्पिणी का सुषमसुषमाकाल चार क्रोड़ाक्रोड़ी सागरोपम था। जम्बूद्वीप के भरत ऐरवत क्षेत्र में इस अवसर्पिणी का सुषमसुषमा काल चार क्रोड़ाक्रोड़ी सागरोपम था। जम्बूद्वीप के भरत ऐरवत क्षेत्र में आगामी उत्सर्पिणी का सुषमसुषमाकाल चार क्रोड़ाक्रोड़ी सागरोपम होगा। | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-४ |
उद्देशक-२ | Hindi | 321 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे दीवे देवकुरुउत्तरकुरुवज्जाओ चत्तारि अकम्मभूमीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–हेमवते, हेरण्णवते, हरिवरिसे, रम्मगवरिसे।
चत्तारि वट्टवेयड्ढपव्वता पन्नत्ता, तं जहा–सद्दावाती, वियडावाती, गंधावाती, मालवंतपरिताते।
तत्थ णं चत्तारि देवा महिड्ढिया जाव पलिओवमट्ठितीया परिवसंति, तं जहा– साती, पभासे, अरुणे, पउमे।
जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–पुव्वविदेहे, अवरविदेहे, देवकुरा, उत्तरकुरा।
सव्वे वि णं निसढनीलवंतवासहरपव्वता चत्तारि जोयणसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, चत्तारि गाउसयाइं उव्वेहेणं पन्नत्ता।
जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे Translated Sutra: जम्बूद्वीप में देवकुरु और उत्तरकुरु को छोड़कर चार अकर्मभूमियाँ हैं। यथा – हेमवंत, हैरण्यवत, हरिवर्ष और रम्यक्वर्ष। वृत्त वैताढ्य पर्वत चार हैं। यथा – शब्दापाति, विकटापाति, गंधापाति और माल्यवंत पर्याय। उन वृत्त वैताढ्य पर्वतों पर पल्योपम स्थिति वाले चार महर्धिक देव रहते हैं। यथा – स्वाति, प्रभास, अरुण | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-४ |
उद्देशक-२ | Hindi | 322 | Gatha | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] जंबुद्दीवआवस्सगं तु कालाओ चूलिया जाव ।
धायइसंडे पुक्खरवरे य पुव्वावरे पासे ॥ Translated Sutra: जम्बूद्वीप में शास्वत पदार्थकाल यावत् – मेरुचूलिका तक जो कहे हैं वे धातकीखण्ड और पुष्करवरद्वीप के पूर्वार्ध और पश्चिमार्ध में भी कहें। | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-४ |
उद्देशक-२ | Hindi | 325 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स बाहिरिल्लाओ वेइयंताओ चउदिसिं लवणसमुद्दं पंचानउइं जोयणसहस्साइं ओगाहेत्ता, एत्थ णं महतिमहालता महालंजरसंठाणसंठिता चत्तारि महापायाला पन्नत्ता, तं जहा–वलयामुहे, केउए, जूवए, ईसरे।
तत्थ णं चत्तारि देवा महिड्ढिया जाव पलिओवमट्ठितीया परिवसंति, तं जहा–काले, महाकाले, वेलंबे, पभंजणे।
जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स बाहिरिल्लाओ वेइयंताओ चउद्दिसि लवणसमुद्दं बायालीसं-बायालीसं जोयणसहस्साइं ओगाहेत्ता, एत्थ णं चउण्हं वेलंधरणागराईणं चत्तारि आवासपव्वता पन्नत्ता, तं जहा–गोथूभे, उदओभासे, संखे, दगसीमे।
तत्थ णं चत्तारि देवा महिड्ढिया जाव पलिओवमट्ठितीया Translated Sutra: जम्बूद्वीप की बाह्य वेदिकाओं से (पूर्वादि) चार दिशाओं में लवण समुद्र में ९५००० योजन जाने पर महा – घटाकार चार महापातालकलश हैं। यथा – वलयामुख, केतुक, यूपक और ईश्वर। इन चार महापाताल कलशों में पल्योपम स्थिति वाले चार महर्धिक देव रहते हैं। यथा – काल, महाकाल, वेलम्ब और प्रभंजन। जम्बूद्वीप की बाह्य वेदिकाओं से (पूर्वादि) | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-४ |
उद्देशक-३ | Hindi | 360 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] चउव्विहे नाते पन्नत्ते, तं जहा–आहरणे, आहरणतद्देसे, आहरणतद्दोसे, उवण्णासोवणए।
आहरणे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–अवाए, उवाए, ठवनाकम्मे, पडुप्पन्नविणासी।
आहरणतद्देसे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–अनुसिट्ठी, उवालंभे, पुच्छा, णिस्सावयणे।
आहरणतद्दोसे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–अधम्मजुत्ते, पडिलोमे, अत्तोवनीते, दुरुवनीते।
उवण्णासोवणए चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–तव्वत्थुते, तदन्नवत्थुते, पडिनिभे, हेतू।
हेऊ चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–जावए, थावए, वंसए, लूसए।
अहवा–हेऊ चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–पच्चक्खे, अनुमाने, ओवम्मे, आगमे।
अहवा–हेऊ चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–अत्थित्तं Translated Sutra: ज्ञात (दृष्टान्त) चार प्रकार के हैं। यथा – जिस दृष्टान्त से अव्यक्त अर्थ व्यक्त किया जाए। जिस दृष्टान्त से वस्तु के एकदेश का प्रतिपादन किया जाए। जिस दृष्टान्त से सदोष सिद्धान्त का प्रतिपादन किया जाए। जिस दृष्टान्त से वादी द्वारा स्थापित सिद्धान्त का निराकरण किया जाए। अव्यक्त अर्थ को व्यक्त करने वाले दृष्टान्त | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-४ |
उद्देशक-४ | Hindi | 363 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइयाणं चउव्विहे आहारे पन्नत्ते, तं जहा–इंगालोवमे, मुम्मुरोवमे, सीतले, हिमसीतले।
तिरिक्खजोणियाणं चउव्विहे आहारे पन्नत्ते, तं० कंकोवमे, बिलोवमे, पाणमंसोवमे, पुत्तमंसोवमे।
मनुस्साणं चउव्विहे आहारे पन्नत्ते, तं जहा–असने, पाने, खाइमे, साइमे।
देवाणं चउव्विहे आहारे पन्नत्ते, तं जहा–वण्णमंते, गंधमंते, रसमंते, फासमंते। Translated Sutra: नैरयिकों का आहार चार प्रकार का है। यथा – अंगारों जैसा अल्पदाहक। प्रज्वलित अग्नि कणों जैसा अति दाहक। शीतकालीन वायु के समान शीतल। बर्फ के समान अतिशीतल। तिर्यंचों का आहार चार प्रकार का है। यथा – कंक पक्षी के आहार जैसा अर्थात् दुष्पच आहार भी तिर्यंचों को सुपच होता है। बिल में जो भी डालें सब तुरन्त अन्दर चला | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-४ |
उद्देशक-४ | Hindi | 368 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] चत्तारि मेहा पन्नत्ता, तं जहा– गज्जित्ता नाममेगे नो वासित्ता, वासित्ता नाममेगे नो गज्जित्ता, एगे गज्जित्तावि वासित्तावि, एगे नो गज्जित्ता नो वासित्ता।
एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पन्नत्ता, तं जहा– गज्जित्ता नाममेगे नो वासित्ता, वासित्ता नाममेगे नो गज्जित्ता, एगे गज्जित्तावि वासित्तावि, एगे नो गज्जित्ता, नो वासित्ता।
चत्तारि मेहा पन्नत्ता, तं जहा–गज्जित्ता नाममेगे नो विज्जुयाइत्ता, विज्जुयाइत्ता नाममेगे नो गज्जित्ता, एगे गज्जि त्तावि विज्जुयाइत्तावि, एगे नो गज्जित्ता नो विज्जुयाइत्ता।
एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पन्नत्ता, तं जहा–गज्जित्ता नाममेगे नो विज्जुयाइत्ता, Translated Sutra: मेघ चार प्रकार के हैं। यथा – एक मेघ गरजता है किन्तु बरसता नहीं है। एक मेघ बरसता है किन्तु गरजता नहीं है। एक मेघ गरजता भी है और बरसता भी है। एक मेघ गरजता भी नहीं है और बरसता भी नहीं है। इसी प्रकार पुरुष चार प्रकार के हैं। यथा – एक पुरुष बोलता बहुत है किन्तु देता कुछ भी नहीं है। एक पुरुष देता है किन्तु बोलता कुछ | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-४ |
उद्देशक-४ | Hindi | 392 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] चउव्विहा उवसग्गा पन्नत्ता, तं जहा– दिव्वा, मानुसा, तिरिक्खजोणिया, आयसंचेयणिज्जा।
दिव्वा उवसग्गा चउव्विहा पन्नत्ता, तं जहा– ‘हासा, पाओसा,’ वीमंसा, पुढोवेमाला।
उवसग्गा चउव्विहा पन्नत्ता, तं जहा–हासा, पाओसा, वीमंसा, कुसीलपडिसेवणया।
तिरिक्खजोणिया उवसग्गा चउव्विहा पन्नत्ता, तं० भया, पदोसा, आहारहेउं, अवच्चलेणसारक्खणया।
आयसंचेयणिज्जा उवसग्गा चउव्विहा पन्नत्ता, तं जहा–घट्टणता, पवडणता, थंभणता, लेसणता। Translated Sutra: उपसर्ग चार प्रकार के हैं। देवकृत, मनुष्यकृत, तिर्यंचकृत, आत्मकृत। देवकृत उपसर्ग चार प्रकार के हैं। यथा – उपहास करके उपसर्ग करता है। द्वेष करके उपसर्ग करता है। परीक्षा के बहाने उपसर्ग करता है। विविध प्रकार के उपसर्ग करता है। मनुष्य कृत उपसर्ग चार प्रकार के हैं। पूर्ववत् एवं मैथुन सेवन की ईच्छा से उपसर्ग | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-४ |
उद्देशक-४ | Hindi | 419 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] चत्तारि आवत्ता पन्नत्ता, तं जहा–खरावत्ते, उन्नतावत्ते, गूढावत्ते, आमिसावत्ते।
एवामेव चत्तारि कसाया पन्नत्ता, तं जहा– खरावत्तसमाने कोहे, उन्नतावत्तसमाने माने, गूढावत्तसमाणा माया, आमिसावत्तसमाने लोभे।
१. खरावत्तसमाणं कोहं अनुपविट्ठे जीवे कालं करेति, नेरइएसु उववज्जति।
२. उण्णतावत्तसमाणं माणं अनुपविट्ठे जीवे कालं करेति, नेरइएसु उववज्जति।
३. गूढावत्तसमाणं मायं अनुपविट्ठे जीवे कालं करेति, नेरइएसु उववज्जति।
४. आमिसावत्तसमाणं लोभमनुपविट्ठे जीवे कालं करेति, नेरइएसु उववज्जति। Translated Sutra: आवर्त चार प्रकार के हैं। यथा – खरावर्त – समुद्र में चक्र की तरह पानी का घूमना। उन्नतावर्त – पर्वत पर चक्र की तरह घूमकर चढ़ने वाला मार्ग। गूढ़ावर्त – दड़ी पर रस्सी से की जाने वाली गूंथन। आमिषावर्त – माँस के लिए आकाश में पक्षियों का घूमना। कषाय चार प्रकार के हैं। यथा – खरावर्त समान क्रोध। उन्नतावर्त समान मान। | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-४ |
उद्देशक-४ | Hindi | 422 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] चउपदेसिया खंधा अनंता पन्नत्ता।
चउपदेसोगाढा पोग्गला अनंता पन्नत्ता।
चउसमयट्ठितीया पोग्गला अनंता पन्नत्ता।
चउगुणकालगा पोग्गला अनंता जाव चउगुणलुक्खा पोग्गला अनंता पन्नत्ता। Translated Sutra: चार प्रदेश वाले स्कन्ध अनेक हैं। चार आकाश प्रदेश में रहे हुए पुद्गल अनन्त हैं। चार गुण वाले पुद्गल अनन्त हैं। चार गुण रुखे पुद्गल अनन्त हैं। | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-५ |
उद्देशक-१ | Hindi | 430 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पंचहिं ठाणेहिं पुरिम-पच्छिमगाणं जिणाणं दुग्गमं भवति, तं जहा– दुआइक्खं, दुव्विभज्जं, दुपस्सं, दुतितिक्खं, दुरणुचरं।
पंचहिं ठाणेहिं मज्झिमगाणं जिणाणं सुग्गमं भवति, तं जहा–सुआइक्खं, सुविभज्जं, सुपस्सं, सुतितिक्खं, सुरनुचरं।
पंच ठाणाइं समणेणं भगवता महावीरेणं समणाणं निग्गंथाणंनिच्चं वण्णिताइं निच्चं कित्तिताइं निच्चं बुइयाइं निच्चं पसत्थाइं निच्चमब्भणुण्णाताइं भवंति, तं जहा–खंती, मुत्ती, अज्जवे, मद्दवे, लाघवे।
पंच ठाणाइं समणेणं भगवता महावीरेणं समणाणं निग्गंथाणंनिच्चं वण्णिताइं निच्चं कित्तिताइं निच्चं बुइयाइं निच्चं पसत्थाइं निच्चं अब्भणुण्णाताइं Translated Sutra: पाँच कारणों से प्रथम और अन्तिम जिन का उपदेश उनके शिष्यों को उन्हें समझने में कठिनाई होती है। दुराख्येय – आयास साध्य व्याख्या युक्त। दुर्विभजन – विभाग करने में कष्ट होता है। दुर्दर्श – कठिनाई से समझ में आता है। दुःसह – परीषह सहन करने में कठिनाई होती है। दुरनुचर – जिनाज्ञानुसार आचरण करने में कठिनाई होती है। पाँच | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-५ |
उद्देशक-१ | Hindi | 433 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] आयरियउवज्झायस्स णं गणंसि पंच वुग्गहट्ठाणा पन्नत्ता, तं जहा–
१. आयरियउवज्झाए णं गणंसि आणं वा धारणं वा नो सम्मं पउंजित्ता भवति।
२. आयरियउवज्झाए णं गणंसि आधारातिणियाए कितिकम्मं नो सम्मं पउंजित्ता भवति।
३. आयरियउवज्झाए णं गणंसि जे सुत्तपज्जवजाते धारेति ते काले-काले नो सम्ममणुप्पवाइत्ता
भवति।
४. आयरियउवज्झाए णं गणंसि गिलाणसेहवेयावच्चं नो सम्ममब्भुट्ठित्ता भवति।
५. आयरियउवज्झाए णं गणंसि अणापुच्छियचारी यावि हवइ, नो आपुच्छियचारी।
आयरियउवज्झायस्स णं गणंसि पंचावुग्गहट्ठाणा पन्नत्ता, तं जहा–
१. आयरियउवज्झाए णं गणंसि आणं वा धारणं वा सम्मं पउंजित्ता भवति।
२. आयरियउवज्झाए Translated Sutra: आचार्य और उपाध्याय के गण में विग्रह (कलह) के पाँच कारण हैं। यथा – आचार्य या उपाध्याय गण में रहने वाले श्रमणों को आज्ञा या निषेध सम्यक् प्रकार से न करे। गण में रहने वाले श्रमण दीक्षा पर्याय के क्रम से सम्यक् प्रकार से वंदना न करे। गण में काल क्रम से जिसको जिस आगम की वाचना देनी है उसे उस आगम की वाचना न दे। आचार्य | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-५ |
उद्देशक-१ | Hindi | 437 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो पंच अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–काली, राती, रयणी, विज्जू, मेहा।
बलिस्स णं वइरोयणिंदस्स वइरोयणरण्णो पंच अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–सुंभा, निसुंभा, रंभा, निरंभा, मदना। Translated Sutra: चमर असुरेन्द्र की पाँच अग्रमहिषियाँ कही गई हैं। यथा – काली, रात्रि, रजनी, विद्युत, मेघा। बलि वैरोच – नेन्द्र की पाँच अग्रमहिषियाँ कही गई हैं। यथा – शुभा, निशुभा, रंभा, निरंभा, मदना। | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-५ |
उद्देशक-२ | Hindi | 450 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा इमाओ उद्दिट्ठाओ गणियाओ वियंजियाओ पंच महण्णवाओ महानदीओ अंतो मासस्स दुक्खुत्तो वा तिक्खुत्तो वा उत्तरित्तए वा संतरित्तए वा, तं जहा–गंगा, जउणा, सरऊ, एरावती, मही।
पंचहिं ठाणेहिं कप्पति, तं जहा–१. भयंसि वा, २. दुब्भिक्खंसि वा, ३. पव्वहेज्ज वा णं कोई, ४. दओघंसि वा एज्जमाणंसि महता वा, ५. अनारिएसु। Translated Sutra: निर्ग्रन्थ और निग्रन्थियों को ये पाँच महानदियाँ एक मास में या दो या तीन बार – तैरकर पार करना या नौका द्वारा पार करना नहीं कल्पता है। यथा – गंगा, यमुना, सरयू, ऐरावती, मही। पाँच कारणों से पार करना कल्पता है, क्रुद्ध राजा आदि के भय से। दुष्काल होने पर। अनार्य द्वारा पीड़ा पहुँचाये जाने पर। बाढ़ के प्रवाह में बहते | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-५ |
उद्देशक-२ | Hindi | 451 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा पढमपाउसंसि गामाणुगामं दूइज्जित्तए। पंचहिं ठाणेहिं कप्पइ, तं जहा– १. भयंसि वा, २. दुब्भिक्खंसि वा, ३. पव्वहेज्ज वा णं कोई, ४. दओघंसि वा एज्जमाणंसि महता वा, ५. अणारिएहिं।
वासावासं पज्जोसविताणं नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा गामाणुगामं दूइज्जित्तए।
पंचहिं ठाणेहिं कप्पइ, तं जहा– १. नाणट्ठयाए, २. दंसणट्ठयाए, ३. चरित्तट्ठयाए, ४. आयरिय-उवज्झाया वा से वीसुंभेज्जा, ५. आयरिय-उवज्झायाण वा बहिता वेआवच्चकरणयाए। Translated Sutra: निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थियों को प्रावृट् ऋतु (प्रथम वर्षा) में ग्रामानुग्राम विहार करना नहीं कल्पता है, किन्तु पाँच कारणों से कल्पता है। यथा – क्रुद्ध राजा आदि के भय से। दुष्काल होने पर यावत् किसी महान् अनार्य द्वारा पीड़ा पहुँचाये जाने पर। वर्षावास रहे हुए निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थियों को एक गाँव से | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-५ |
उद्देशक-२ | Hindi | 454 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पंचहिं ठाणेहिं इत्थी पुरिसेण सद्धिं असंवसमाणीवि गब्भं धरेज्जा, तं जहा–
१. इत्थी दुव्वियडा दुन्निसण्णा सुक्कपोग्गले अधिट्ठिज्जा।
२. सुक्कपोग्गलसंसिट्ठे व से वत्थे अंतो जोणीए अनुपवेसेज्जा।
३. सइं वा से सुक्कपोग्गले अनुपवेसेज्जा।
४. परो व से सुक्कपोग्गले अनुपवेसेज्जा।
५. सीओदगवियडेण वा से आयममाणीए सुक्कपोग्गला अनुपवेसेज्जा– इच्चेतेहिं पंचहिं ठाणेहिं
इत्थी पुरिसेण सद्धिं असंवसमाणीवि गब्भं धरेज्जा।
पंचहिं ठाणेहिं इत्थी पुरिसेण सद्धिं संवसमाणीवि गब्भं नो धरेज्जा, तं जहा–१. अप्पत्त-जोव्वणा। २. अतिकंतजोव्वणा। ३. जातिवंज्झा। ४. गेलण्णपुट्ठा। ५. दोमणंसिया
इच्चेतेहिं Translated Sutra: पाँच कारणों से स्त्री पुरुष के साथ सहवास न करने पर भी गर्भ धारण कर लेती है, यथा – जिस स्त्री की योनि अनावृत्त हो और वह जहाँ पर पुरुष का वीर्य स्खलित हुआ है ऐसे स्थान पर इस प्रकार बैठे की जिससे शुक्राणु योनि में प्रविष्ट हो जाए तो – शुक्र लगा हुआ वस्त्र योनि में प्रवेश करे तो – जानबूझकर स्वयं शुक्र को योनि में प्रविष्ट | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-५ |
उद्देशक-२ | Hindi | 477 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पंचहिं ठाणेहिं आयरिय-उवज्झायस्स गणावक्कमने पन्नत्ते, तं जहा–
१. आयरिय-उवज्झाए गणंसि आणं वा धारणं वा नो सम्मं पउंजित्ता भवति।
२. आयरिय-उवज्झाए गणंसि आधारायणियाए कितिकम्मं वेणइयं नो सम्मं पउंजित्ता भवति।
३. आयरिय-उवज्झाए गणंसि जे सुयपज्जवजाते धारेति, ते काले-काले नो सम्ममनुपवादेत्ता भवति।
४. आयरिय-उवज्झाए गणंसि सगणियाए वा परगणियाए वा निग्गंथीए बहिल्लेसे भवति।
५. मित्ते नातिगणे वा से गणाओ अवक्कमेज्जा, तेसिं संगहोवग्गहट्ठयाए गणावक्कमने पन्नत्ते। Translated Sutra: पाँच कारणों से आचार्य और उपाध्याय गण छोड़कर चले जाते हैं। गण में आचार्य और उपाध्याय की आज्ञा या निषेध का सम्यक् प्रकार से पालन न होता हो। गण में वय और ज्ञान ज्येष्ठ का वन्दनादि व्यवहार सम्यक् प्रकार से पालन करवा न सके तो। गण में श्रुत की वाचना यथोचित रीति से न दे सके तो। स्वगण की या परगण की निर्ग्रन्थी में | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-५ |
उद्देशक-३ | Hindi | 479 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पंच अत्थिकाया पन्नत्ता, तं जहा– धम्मत्थिकाए, अधम्मत्थिकाए, आगासत्थिकाए, जीवत्थिकाए, पोग्गलत्थिकाए
धम्मत्थिकाए अवण्णे अगंधे अरसे अफासे अरूवी अजीवे सासए अवट्ठिए लोगदव्वे।
से समासओ पंचविधे पन्नत्ते, तं जहा–दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ, गुणओ।
दव्वओ णं धम्मत्थिकाए एगं दव्वं।
खेत्तओ लोगपमाणमेत्ते।
कालओ न कयाइ नासी, न कयाइ न भवति, न कयाइ न भविस्सइत्ति– भुविं च भवति य भविस्सति य, धुवे निइए सासते अक्खए अव्वए अवट्ठिते निच्चे।
भावओ अवण्णे अगंधे अरसे अफासे।
गुणओ गमणगुणे।
अधम्मत्थिकाए अवण्णे अगंधे अरसे अफासे अरूवी अजीवे सासए अवट्ठिए लोगदव्वे।
से समासओ पंचविधे पन्नत्ते, Translated Sutra: पाँच अस्तिकाय हैं, यथा – धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय, पुद्गलास्ति – काय धर्मास्तिकाय अवर्ण, अगंध, अरस, अस्पर्श, अरूपी, अजीव, शाश्वत, अवस्थित लोकद्रव्य है। वह पाँच प्रकार का है, यथा – द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से, भाव से और गुण से। द्रव्य से – धर्मास्तिकाय एक द्रव्य है, क्षेत्र से – |