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Samavayang સમવયાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

समवाय प्रकीर्णक

Gujarati 245 Sutra Ang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइयाणं भंते! केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं दस वाससहस्साइं उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं ठिई पन्नत्ता। अपज्जत्तगाणं भंते! नेरइयाणं केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणवि अंतोमुहुत्तं। पज्जत्तगाणं भंते! नेरइयाणं केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं दस वाससहस्साइं अंतोमुहुत्तूणाइं उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाइं। इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए, एवं जाव विजय-वेजयंत-जयंत-अपराजियाणं भंते! देवाणं केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं बत्तीसं सागरोवमाइं उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं। सव्वट्ठे

Translated Sutra: હે ભગવન્‌ ! નારકીઓની સ્થિતિ કેટલો કાળ છે ? હે ગૌતમ ! જઘન્યથી ૧૦,૦૦૦ વર્ષ અને ઉત્કૃષ્ટથી ૩૩ – સાગરોપમ સ્થિતિ છે. હે ભગવન્‌ ! અપર્યાપ્તા નારકોની કેટલો કાળ સ્થિતિ કહી છે ? હે ગૌતમ ! જઘન્યથી અંતર્મુહૂર્ત્ત અને ઉત્કૃષ્ટથી અંતર્મુહૂર્ત્ત. તથા પર્યાપ્તા નારકીઓની જઘન્યથી અંતર્મુહૂર્ત્ત ન્યૂન ૧૦,૦૦૦ વર્ષ અને ઉત્કૃષ્ટથી
Samavayang સમવયાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

समवाय प्रकीर्णक

Gujarati 252 Sutra Ang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कइविहे णं भंते! आउगबंधे पन्नत्ते? गोयमा! छव्विहे आउगबंधे पन्नत्ते, तं जहा– जाइनामनिधत्ताउके गतिनामनिधत्ताउके ठिइ-नामनिधत्ताउके पएसनामनिधत्ताउके अणुभागनामनिधत्ताउके ओगाहणानामनिधत्ताउके। नेरइयाणं भंते! कइविहे आउगबंधे पन्नत्ते? गोयमा! छव्विहे पन्नत्ते, तं जहा– जातिनाम निधत्ताउके गइनामनिधत्ताउके ठिइनाम-निधत्ताउके पएसनामनिधत्ताउके अणुभागनामनिधत्ताउके ओगाहणानामनिधत्ताउके। एवं जाव वेमाणियत्ति। निरयगई णं भंते! केवइयं कालं विरहिया उववाएणं पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं बारसमुहुत्ते। एवं तिरियगई मनुस्सगई देवगई। सिद्धिगई णं भंते! केवइयं

Translated Sutra: હે ભગવન્‌ ! આયુષ્યબંધ કેટલા ભેદે કહ્યો છે ? હે ગૌતમ ! છ ભેદે, તે આ રીતે – જાતિનામ નિધત્તાયુ, ગતિ નામ નિધત્તાયુ, સ્થિતિનામ નિધત્તાયુ, પ્રદેશ – અનુભાગ – અવગાહના નામ નિધત્તાયુ. હે ભગવન્‌ ! નારકીઓને કેટલા ભેદે આયુબંધ કહ્યો છે ? હે ગૌતમ ! છ ભેદે. તે આ – જાતિ, ગતિ, સ્થિતિ, પ્રદેશ, અનુભાગ, અવગાહના નામ નિધત્તાયુ. આ પ્રમાણે વૈમાનિક
Samavayang સમવયાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

समवाय प्रकीर्णक

Gujarati 255 Sutra Ang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं कप्पस्स समोसरणं णेयव्वं जाव गणहरा सावच्चा निरवच्चा वोच्छिन्ना। जंबुद्दीवे णं दीवे भारहे वासे तीयाए ओसप्पिणीए सत्त कुलगरा होत्था, तं जहा–

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૫૪
Samavayang સમવયાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

समवाय प्रकीर्णक

Gujarati 293 Gatha Ang-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एते विसुद्धलेसा, जिनवरभत्तीए पंजलिउडा य । तं कालं तं समयं, पडिलाभेई जिनवरिंदे ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૫૪
Sanstarak संस्तारक Ardha-Magadhi

संस्तारकस्वरूपं, लाभं

Hindi 44 Gatha Painna-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जुत्तस्स उत्तमट्ठे मलियकसायस्स निव्वियारस्स । भण केरिसो उ लाभो संथारगयस्स खमगस्स? ॥

Translated Sutra: कषाय को जीतनेवाले और सर्व तरह के कषाय के विकार से रहित और फिर अन्तिमकालीन आराधना में उद्यत होने के कारण से संथारा पर आरूढ़ साधु को क्या लाभ मिलता है ?
Sanstarak संस्तारक Ardha-Magadhi

संस्तारकस्वरूपं, लाभं

Hindi 45 Gatha Painna-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जुत्तस्स उत्तमट्ठे मलियकसायस्स निव्वियारस्स । भण केरिसं च सोक्खं संथारगयस्स खमगस्स? ॥

Translated Sutra: और फिर कषाय को जीतनेवाला एवं सर्व तरह के विषयविकार से रहित और अन्तिमकालीन आराधना में उद्यत होने से संथारा पर विधि के अनुसार आरूढ़ होनेवाले साधु को कैसा सुख प्राप्त होता है ?
Sanstarak संस्तारक Ardha-Magadhi

भावना

Hindi 97 Gatha Painna-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सुविहिय! अईयकाले अनंतकालं तु आगय-गएणं । जम्मण-मरणमनंतं अनंतखुत्तो समनुभूयं ॥

Translated Sutra: संसार के लिए तूने अनन्तकाल तक अनन्तीबार अनन्ता जन्म मरण को महसूस किया है। यह सब दुःख संसारवर्ती सर्व जीव के लिए सहज है। इसलिए वर्तमानकाल दुःख से मत घबराना और आराधना को मत भूलना।
Sanstarak संस्तारक Ardha-Magadhi

भावना

Hindi 107 Gatha Painna-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] इय तहविहारिणो से विग्घकरी वेयणा समुट्ठेइ । तीसे विज्झवणाए अणुसट्ठिं दिंती निज्जवया ॥

Translated Sutra: इस अवसर पर, संथारा पर आरूढ़ हुए महानुभाव क्षपक को शायद पूर्वकालीन अशुभ योग से, समाधि भाव में विघ्न करनेवाला दर्द उदय में आए, तो उसे शमा देने के लिए गीतार्थ ऐसे निर्यामक साधु बावना चन्दन जैसी शीतल धर्मशिक्षा दे।
Sanstarak संस्तारक Ardha-Magadhi

भावना

Hindi 108 Gatha Painna-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जइ ताव ते मुनिवरा आरोवियवित्थरा अपरिकम्मा । गिरिपब्भारविलग्गा बहुसावयसंकडं भीमं ॥

Translated Sutra: हे पुण्य पुरुष ! आराधना में ही जिन्होंने अपना सबकुछ अर्पण किया है, ऐसे पूर्वकालीन मुनिवर; जब वैसी तरह के अभ्यास बिना भी कईं जंगली जानवर से चारों ओर घिरे हुए भयंकर पर्वत की चोटी पर कायोत्सर्ग ध्यान में रहते थे।
Sanstarak संस्तारक Ardha-Magadhi

भावना

Hindi 112 Gatha Painna-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पोराणिय-पच्चुप्पन्निया उ अहियासिऊण वियणाओ । कम्मकलंकलवल्ली विहुणइ संथारमारूढो ॥

Translated Sutra: ‘संथारा पर आरूढ़ हुए क्षपक, पूर्वकालीन अशुभ कर्म के उदय से पैदा हुई वेदनाओं को समभाव से सहकर, कर्म स्थान कलंक की परम्परा को वेलड़ी की तरह जड़ से हिला देते हैं। इसलिए तुम्हें भी इस वेदना को समभाव से सहन करके कर्म का क्षय कर देना चाहिए।’
Sanstarak संस्तारक Ardha-Magadhi

मङ्गलं, संस्तारकगुणा

Hindi 1 Gatha Painna-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] काऊण नमोक्कारं जिनवरवसहस्स वद्धमाणस्स । संथारम्मि निबद्धं गुणपरिवाडिं निसामेह ॥

Translated Sutra: श्री जिनेश्वरदेव – सामान्य केवलज्ञानीओं के बारेमें वृषभ समान, देवाधिदेव श्रमण भगवान्‌ महावीर परमात्मा को नमस्कार करके; अन्तिम काल की आराधना रूप संथारा के स्वीकार से प्राप्त होनेवाली परम्परा को मैं कहता हूँ
Sanstarak संस्तारक Ardha-Magadhi

मङ्गलं, संस्तारकगुणा

Hindi 7 Gatha Painna-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] धम्माणं च अहिंसा, जनवयवयणाण साहुवयणाइं । जिनवयणं च सुईणं, सुद्धीणं दंसणं च जहा ॥

Translated Sutra: सर्व धर्म में जैसे श्री जिनकथित अहिंसाधर्म, लोकवचन में जैसे साधु पुरुष के वचन, इतर सर्व तरह की शुद्धि के लिए जैसे सम्यक्त्व रूप आत्मगुण की शुद्धि, वैसे श्री जिनकथित अन्तिमकाल की आराधना में यह आराधना जरूरी है।
Sanstarak संस्तारक Ardha-Magadhi

मङ्गलं, संस्तारकगुणा

Hindi 15 Gatha Painna-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सियकमल-कलस-सुत्थिय-नंदावत्त-वरमल्लदामाणं । तेसिं पि मंगलाणं संथारो मंगलं पढमं ॥

Translated Sutra: श्वेतकमल, पूर्णकलश, स्वस्तिक नन्दावर्त और सुन्दर फूलमाला यह सब मंगल चीज से भी अन्तिम काल की आराधना रूप संथारा अधिक मंगल है।
Sanstarak संस्तारक Ardha-Magadhi

संस्तारकस्वरूपं, लाभं

Hindi 31 Gatha Painna-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] भण केरिसस्स भणिओ संथारो? केरिसे व अवगासे? । सुक्खं पि तस्स करणं, एयं ता इच्छिमो नाउं ॥

Translated Sutra: हे भगवन्‌ ! किस तरह के साधुपुरुष के लिए इस संथारा की आराधना विहित है ? और फिर किस आलम्बन को पाकर इस अन्तिम काल की आराधना हो सकती है ? और अनशन को कब धारण कर सके ? इस चीज को मैं जानना चाहता हूँ।
Sanstarak संस्तारक Ardha-Magadhi

संस्तारकस्वरूपं, लाभं

Hindi 32 Gatha Painna-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] हायंति जस्स जोगा, जराइविविहा य हुंति आयंका । आरुहइ य संथारं सुविसुद्धो तस्स संथारो ॥

Translated Sutra: जिसके मन, वचन और काया के शुभयोग सीदाते हो, और फिर जिस साधु को कईं तरह की बीमारी शरीर में पैदा हुई हो, इस कारण से अपने मरणकाल को नजदीक समझकर, जो संथारा को अपनाते हैं, वो संथारा सुविशुद्ध हैं।
Sanstarak संस्तारक Ardha-Magadhi

संस्तारकस्वरूपं, लाभं

Hindi 51 Gatha Painna-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] मा होह वासगणया, न तत्थ वासाणि परिगणिज्जंति । बहवे गच्छं वुत्था जम्मण-मरणं च ते खुत्ता ॥

Translated Sutra: मोक्ष के सुख की प्राप्ति के लिए, श्री जैनशासन में एकान्ते वर्षकाल की गिनती नहीं है। केवल आराधक आत्मा की अप्रमत्त दशा पर सारा आधार है। क्योंकि काफी साल तक गच्छ में रहनेवाले भी प्रमत्त आत्मा जन्म – मरण समान संसार सागर में डूब गए हैं।
Sanstarak संस्तारक Ardha-Magadhi

संस्तारकस्वरूपं, लाभं

Hindi 52 Gatha Painna-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पच्छा वि ते पयाया खिप्पं काहिंति अप्पणो पत्थं । जे पच्छिमम्मि काले मरंति संथारमारूढा ॥

Translated Sutra: जो आत्माएं अन्तिम काल में समाधि से संथारा रूप आराधना को अपनाकर मरण पाते हैं, वो महानुभाव आत्माएं जीवन की पीछली अवस्था में भी अपना हित शीघ्र साध सकते हैं।
Sanstarak संस्तारक Ardha-Magadhi

संस्तारकस्वरूपं, लाभं

Hindi 53 Gatha Painna-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] न वि कारणं तणमओ संथारो न वि य फासुया भूमी । अप्पा खलु संथारो हवइ विसुद्धे चरित्तम्मि ॥

Translated Sutra: सूखे घास का संथारा या जीवरहित प्रासुक भूमि ही केवल अन्तिमकाल की आराधना का आलम्बन नहीं है। लेकिन विशुद्ध निरतिचार चारित्र के पालन में उपयोगशील आत्मा संथारा रूप है। इस कारण से ऐसी आत्मा आराधना में आलम्बन है।
Sanstarak संस्तारक Ardha-Magadhi

संस्तारकस्वरूपं, लाभं

Hindi 55 Gatha Painna-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] वासारत्तम्मि तवं चित्त-विचित्ताइ सुट्ठु काऊणं । हेमंते संथारं आरुहई सव्वसत्तेणं ॥

Translated Sutra: वर्षाकाल में कईं तरह के तप अच्छी तरह से करके, आराधक आत्मा हेमन्त ऋतु में सर्व अवस्था के लिए संथारा पर आरूढ़ होते हैं।
Sanstarak संस्तारक Ardha-Magadhi

संस्तारकस्य दृष्टान्ता

Hindi 67 Gatha Painna-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जल्ल-मल-पंकधारी आहारो सीलसंजमगुणाणं । अज्जीरणो उ गीओ कत्तियअज्जो सरवणम्मि ॥

Translated Sutra: शरीर का मल, रास्ते की धूल और पसीना आदि से कादवमय शरीरवाले, लेकिन शरीर के सहज अशुचि स्वभाव के ज्ञाता, सुरवणग्राम के श्री कार्तिकार्य ऋषि शील और संयमगुण के आधार समान थे। गीतार्थ ऐसे वो महर्षि का देह अजीर्ण बीमारी से पीड़ित होने के बावजूद भी वो सदाकाल समाधि भाव में रमण करते थे।
Sanstarak संस्तारक Ardha-Magadhi

भावना

Hindi 89 Gatha Painna-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अहवा समाहिहेउं करेइ सो पाणगस्स आहारं । तो पाणगं पि पच्छा वोसिरइ मुनी जहाकालं

Translated Sutra: या फिर समाधि टीकाने के लिए, कोई अवसर में क्षपक साधु तीन आहार का पच्चक्खाण करता है और केवल प्रासुक जल का आहार करता है। फिर उचित काल में जल का भी त्याग करता है।
Sanstarak संस्तारक Ardha-Magadhi

भावना

Hindi 95 Gatha Painna-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] देवत्ते मनुयत्ते पराभिओगत्तणं उवगएणं । दुक्खपरिकिलेसकरी अनंतखुत्तो समनुभूओ ॥

Translated Sutra: और फिर देवपन में और मानवपन में पराये दासभाव को पाकर तूने दुःख, संताप और त्रास को उपजाने वाले दर्द को प्रायः अनन्तीबार महसूस किया है और हे पुण्यवान्‌ ! तिर्यञ्चगति को पाकर पार न पा सके ऐसी महावेदनाओं को तूने कईं बार भुगता है। इस तरह जन्म और मरण समान रेंट के आवर्त जहाँ हंमेशा चलते हैं, वैसे संसार में तू अनन्तकाल
Sanstarak संस्तारक Ardha-Magadhi

भावना

Hindi 118 Gatha Painna-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] डज्झंतेण वि गिम्हे कालसिलाए कवल्लिभूयाए । सूरेण व चंदेण व किरणसहस्सा पयंडेणं ॥

Translated Sutra: ग्रीष्म ऋतु में अग्नि से लाल तपे लोहे के तावड़े के जैसी काली शिला में आरूढ़ होकर हजार किरणों से प्रचंड और उग्र ऐसे सूरज के ताप से जलने के बावजूद भी;
Sanstarak संस्तारक Ardha-Magadhi

भावना

Hindi 119 Gatha Painna-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] लोगविजयं करिंतेण तेण झाणोवओगचित्तेणं । परिसुद्धनाण-दंसणविभूइमंतेण चित्तेण ॥

Translated Sutra: कषाय आदि लोग का विजय करनेवाले और ध्यान में सदाकाल उपयोगशील और फिर अति सुविशुद्ध ज्ञानदर्शन रूप विभूति से युक्त और आराधना में अर्पित चित्तवाले सुविहित पुरुष ने;
Sanstarak संस्तारक Ardha-Magadhi

भावना

Hindi 121 Gatha Painna-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एवं मए अभिथुया संथारगइंदखंधमारूढा । सुसमणनरिंदचंदा सुहसंकमणं ममं दिंतु ॥

Translated Sutra: इस तरह से मैंने जिनकी स्तुति की है, ऐसे श्री जिनकथित अन्तिम कालीन संथारा रूप हाथी के स्कन्ध पर सुखपूर्वक आरूढ़ हुए, नरेन्द्र के लिए चन्द्र समान श्रमण पुरुष, सदाकाल शाश्वत, स्वाधीन और अखंड़ सुख की परम्परा दो।
Sanstarak સંસ્તારક Ardha-Magadhi

संस्तारकस्वरूपं, लाभं

Gujarati 52 Gatha Painna-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पच्छा वि ते पयाया खिप्पं काहिंति अप्पणो पत्थं । जे पच्छिमम्मि काले मरंति संथारमारूढा ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫૧
Sanstarak સંસ્તારક Ardha-Magadhi

भावना

Gujarati 89 Gatha Painna-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अहवा समाहिहेउं करेइ सो पाणगस्स आहारं । तो पाणगं पि पच्छा वोसिरइ मुनी जहाकालं

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૮૮
Sanstarak સંસ્તારક Ardha-Magadhi

भावना

Gujarati 97 Gatha Painna-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सुविहिय! अईयकाले अनंतकालं तु आगय-गएणं । जम्मण-मरणमनंतं अनंतखुत्तो समनुभूयं ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૯૩
Sanstarak સંસ્તારક Ardha-Magadhi

भावना

Gujarati 118 Gatha Painna-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] डज्झंतेण वि गिम्हे कालसिलाए कवल्लिभूयाए । सूरेण व चंदेण व किरणसहस्सा पयंडेणं ॥

Translated Sutra: ગ્રીષ્મમાં અગ્નિથી લાલચોળ લોખંડના તાવડા જેવી કાળી શિલામાં આરૂઢ થઈ હજારો કિરણોથી પ્રચંડ અને ઉગ્ર એવા સૂર્યના તાપથી બળવા છતાં કષાયાદિ લોકનો વિજય કરનાર, સદાકાળ ધ્યાનમાં ઉપયોગશીલ, અત્યંત સુવિશુદ્ધ જ્ઞાન – દર્શનરૂપ વિભૂતિથી યુક્ત, આરાધનામાં અર્પિત ચિત્ત, એવા સુવિહિત પુરુષે ઉત્તમ લેશ્યાના પરિણામપૂર્વક રાધાવેધ
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-४

उद्देशक-३ Hindi 333 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चत्तारि राईओ पन्नत्ताओ, तं जहा–पव्वयराई, पुढविराई, वालुयराई, उदगराई। एवामेव चउव्विहे कोहे पन्नत्ते, तं० पव्वयराइसमाने, पुढविराइसमाने, वालुयराइसमाने, उदगराइसमाने १. पव्वयराइसमाणं कोहमनुपविट्ठे जीवे कालं करेइ, नेरइएसु उववज्जति। २. पुढविराइसमाणं कोहमनुपविट्ठे जीवे कालं करेइ, तिरिक्खजोणिएसु उववज्जति। ३. वालुयराइसमाणं कोहमनुपविट्ठे जीवे कालं करेइ, मनुस्सेसु उववज्जति। ४. उदगराइसमाणं कोहमनुपविट्ठे जीवे कालं करेइ, देवेसु उववज्जति। चत्तारि उदगा पन्नत्ता, तं जहा–कद्दमोदए, खंजणोदए, वालुओदए, सेलोदए। एवामेव चउव्विहे भावे पन्नत्ते, तं जहा–कद्दमोदगसमाने, खंजणोदगसमाने,

Translated Sutra: रेखाएं चार प्रकार की हैं। यथा – पर्वत की रेखा, पृथ्वी की रेखा, वालु की रेखा और पानी की रेखा। इसी प्रकार क्रोध चार प्रकार का है। यथा – पर्वत की रेखा समान, पृथ्वी की रेखा समान, वालु की रेखा समान, पानी की रेखा समान। पर्वत की रेखा के समान क्रोध करने वाला जीव मरकर नरक में उत्पन्न होता है। पृथ्वी की रेखा के समान क्रोध
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-४

उद्देशक-३ Hindi 336 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भारण्णं वहमाणस्स चत्तारि आसासा पन्नत्ता, तं जहा– १. जत्थ णं अंसाओ अंसं साहरइ, तत्थवि य से एगे आसासे पन्नत्ते। २. जत्थवि य णं उच्चारं वा पासवणं वा परिट्ठवेति, तत्थवि य से एगे आसासे पन्नत्ते। ३. जत्थवि य णं नागकुमारावासंसि वा सुवण्णकुमारावासंसि वा वासं उवेति, तत्थवि य से एगे आसासे पन्नत्ते। ४. जत्थवि य णं आवकहाए चिट्ठति, तत्थवि य से एगे आसासे पन्नत्ते। एवामेव समणोवासगस्स चत्तारि आसासा पन्नत्ता, तं जहा– १. ‘जत्थवि य णं’ सीलव्वत-गुणव्वत-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासाइं पडिवज्जति, तत्थवि य से एगे आसासे पन्नत्ते। २. जत्थवि य णं सामाइयं देसावगासियं सम्ममनुपालेइ, तत्थवि य

Translated Sutra: भारवहन करने वाले के चार विश्राम स्थल हैं। यथा – एक भारवाहक मार्ग में चलता हुआ एक खंधे से दूसरे खंधे पर भार रखता है। एक भारवाहक कहीं पर भार रखकर मल – मूत्रादि का त्याग करता है। एक भारवाहक नागकुमार या सुपर्णकुमार के मंदिर में रात्रि विश्राम लेता है। एक भारवाहक अपने घर पहूँच जाता है। इसी प्रकार श्रमणोपासक के
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-४

उद्देशक-३ Hindi 337 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चत्तारि पुरिसजाया पन्नत्ता, तं जहा– उदितोदिते नाममेगे, उदितत्थमिते नाममेगे, अत्थमितोदिते नाममेगे, अत्थमितत्थमिते नाममेगे। भरहे राया चाउरंतचक्कवट्टी णं उदितोदिते, बंभदत्ते णं राया चाउरंतचक्कवट्टी उदितत्थमिते, हरिएसबले णं अनगारे अत्थमितोदिते, काले णं सोयरिये अत्थमितत्थमिते।

Translated Sutra: पुरुष वर्ग चार प्रकार का है। यथा – उदितोदित – यहाँ भी उदय (समृद्ध) और आगे भी उदय (परम सुख) है। उदितास्तमित – यहाँ उदय है किन्तु आगे उदय नहीं। अस्तमितोदित – यहाँ उदय नहीं है किन्तु आगे उदय है। अस्त – मितास्तमित – यहाँ भी और आगे भी उदय नहीं है। भरत चक्रवर्ती उदितोदित है; ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती उदितास्तमित हैं; हरिकेशबल
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-७

Hindi 645 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे दीवे सत्त वासा पन्नत्ता, तं० भरहे, एरवते, हेमवते, हेरण्णवते, हरिवासे, रम्मगवासे, महाविदेहे। जंबुद्दीवे दीवे सत्त वासहरपव्वता पन्नत्ता, तं जहा–चुल्लहिमवंते, महाहिमवंते, णिसढे, नीलवंते, रुप्पी, सिहरी, मंदरे। जंबुद्दीवे दीवे सत्त महानदीओ पुरत्थाभिमुहीओ लवणसमुद्दं समप्पेंति, तं जहा–गंगा, रोहिता, हरी, सीता, णरकंता, सुवण्णकूला, रत्ता। जंबुद्दीवे दीवे सत्त महानदीओ पच्चत्थाभिमुहीओ लवणसमुद्दं समप्पेंति, तं जहा–सिंधू, रोहितंसा, हरिकंता, सीतोदा, नारिकंता, रुप्पकूला, रत्तावती। धायइसंडदीवपुरत्थिमद्धे णं सत्त वासा पन्नत्ता, तं जहा–भरहे, एरवते, हेमवते, हेरण्णवते,

Translated Sutra: जम्बूद्वीप में सात वर्ष (क्षेत्र) कहे गए हैं, यथा – भरत, ऐरवत, हैमवत, हैरण्यवत, हरिवर्ष, रम्यक्‌वर्ष, महाविदेह जम्बूद्वीप में सात वर्षधर पर्वत कहे गए हैं। यथा – चुल्लहिमवन्त, महाहिमवंत, निषध, नीलवंत, रुक्मी, शिखरी, मंदराचल। जम्बूद्वीप में सात महानदियाँ हैं जो पूर्व की ओर बहती हुई लवण समुद्र में मिलती हैं। यथा
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-२

उद्देशक-१ Hindi 74 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] दुविहे काले पन्नत्ते, तं जहा–ओसप्पिणीकाले चेव, उस्सप्पिणीकाले चेव। [सूत्र] दुविहे आगासे पन्नत्ते, तं जहा– लोगागासे चेव, अलोगागासे चेव।

Translated Sutra: काल दो प्रकार का कहा गया है, यथा – अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी। आकाश दो प्रकार का है, यथा – लोकाकाश और अलोकाकाश।
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-२

उद्देशक-१ Hindi 76 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] दो दिसाओ अभिगिज्झ कप्पति निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा पव्वावित्तए–पाईणं चेव, उदीणं चेव। दो दिसाओ अभिगिज्झ कप्पति निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा– मुंडावित्तए, सिक्खावित्तए, उवट्ठावित्तए, संभुंजित्तए, संवासित्तए, सज्झायमुद्दिसित्तए, सज्झायं समुद्दिसित्तए, सज्झायमनु-जाणित्तए, आलोइत्तए, पडिक्कमित्तए, निंदित्तए, गरहित्तए, विउट्टित्तए, विसोहित्तए, अकरणयाए अब्भुट्ठित्तए अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं पडिवज्जित्तए– पाईणं चेव, उदीणं चेव। दो दिसाओ अभिगिज्झ कप्पति निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा अपच्छिममारणंतियसंलेहणाजूसणा-जूसियाणं भत्तपाणपडियाइक्खिताणं पाओवगताणं कालं

Translated Sutra: दो दिशाओं के अभिमुख होकर निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थियों को दीक्षा देना कल्पता है। यथा – पूर्व और उत्तर। इसी प्रकार – प्रव्रजित करना, सूत्रार्थ सिखाना, महाव्रतों का आरोपण करना, सहभोजन करना, सहनिवास करना, स्वाध्याय करने के लिए कहना, अभ्यस्तशास्त्र को स्थिर करने के लिए कहना, अभ्यस्तशास्त्र अन्य को पढ़ाने के लिए
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-२

उद्देशक-२ Hindi 79 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] दुविहा नेरइया पन्नत्ता, तं जहा–भवसिद्धिया चेव, अभवसिद्धिया चेव जाव वेमाणिया। दुविहा नेरइया पन्नत्ता, तं जहा–अनंतरोववन्नगा चेव, परंपरोववन्नगा चेव जाव वेमाणिया। दुविहा नेरइया पन्नत्ता, तं जहा–गतिसमावन्नगा चेव, अगतिसमावन्नगा चेव जाव वेमाणिया। दुविहा नेरइया पन्नत्ता, तं जहा–पढमसमओववन्नगा चेव, अपढमसमओववन्नगा चेव जाव वेमाणिया। दुविहा नेरइया पन्नत्ता, तं जहा–आहारगा चेव, अनाहारगा चेव। एवं जाव वेमाणिया। दुविहा नेरइया पन्नत्ता, तं जहा–उस्सासगा चेव, नोउस्सासगा चेव जाव वेमाणिया। दुविहा नेरइया पन्नत्ता, तं जहा–सइंदिया चेव, अनिंदिया चेव जाव वेमाणिया। दुविहा नेरइया

Translated Sutra: नैरयिक जीव दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा – भवसिद्धिक और अभवसिद्धिक। इस प्रकार वैमानिक पर्यन्त समझना चाहिए। नैरयिक जीव दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा – अनन्तरोपपन्नक और परम्परोपपन्नक। इसी तरह वैमानिक पर्यन्त समझना चाहिए। नैरयिक जीव दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा – गतिसमापन्नक और अगतिसमापन्नक। इसी प्रकार वैमानिक
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-४

उद्देशक-२ Hindi 300 Gatha Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] भद्दो मज्जइ सरए, मंदो उण मज्जते वसंतंमि । मिउ मज्जति हेमंते, संकिण्णो सव्वकालंमि

Translated Sutra: भद्र जाति का हाथी शरद्‌ ऋतु में मतवाला होता है, मंद जाति का हाथी वसंत ऋतु में मतवाला होता है, मृग जाति का हाथी हेमंत ऋतु में मतवाला होता है, और संकीर्ण जाति का हाथी किसी भी ऋतु में मतवाला हो सकता है।
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-४

उद्देशक-२ Hindi 303 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चउहिं ठाणेहिं निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा अस्सिं समयंसि अतिसेसे नाणदंसणे समुप्पज्जिउकामेवि न समुप्पज्जेज्जा, तं जहा– १. अभिक्खणं-अभिक्खणं इत्थिकहं भत्तकहं देसकहं रायकहं कहेत्ता भवति। २. विवेगेण विउस्सग्गेणं नो सम्ममप्पाणं भावित्ता भवति। ३. पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि नो धम्मजागरियं जागरइत्ता भवति। ४. फासुयस्स एसणिज्जस्स उंछस्स सामुदाणियस्स नो सम्मं गवेसित्ता भवति। इच्चेतेहिं चउहिं ठाणेहिं निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा अस्सिं समयंसि अतिसेसे नाणदंसणे समुप्पज्जि-उकामेवि नो समुप्पज्जेज्जा। चउहिं ठाणेहिं निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा [अस्सिं समयंसि?] अतिसेसे

Translated Sutra: चार कारणों से वर्तमान में निर्ग्रन्थ निर्ग्रन्थियों के चाहने पर भी उन्हें केवल ज्ञान – दर्शन उत्पन्न नहीं होता। जो बार – बार स्त्री – कथा, भक्त – कथा, देश – कथा और राज – कथा कहता है। जो विवेकपूर्वक कायोत्सर्ग करके आत्मा को समाधिस्थ नहीं करता है। जो पूर्वरात्रि में और अपररात्रि में धर्मजागरण नहीं करता है।
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-४

उद्देशक-२ Hindi 304 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नो कप्पति निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा चउहिं महापाडिवएहिं सज्झायं करेत्तए, तं जहा–आसाढपाडिवए, इंदमहपाडिवए, कत्तियपाडिवए, सुगिम्हगपाडिवए। नो कप्पति निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा चउहिं संज्झाहिं सज्झायं करेत्तए, तं जहा–पढमाए, पच्छिमाए, मज्झण्हे, अड्ढरत्ते। कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा चउक्ककालं सज्झायं करेत्तए, तं जहा–पुव्वण्हे, अवरण्हे, पओसे, पच्चूसे।

Translated Sutra: चार महाप्रतिपदाओं में निर्ग्रन्थ निर्ग्रन्थियों को स्वाध्याय करना नहीं कल्पता है। वे चार प्रतिपदाएं ये हैं – श्रावण कृष्णा प्रतिपदा, कार्तिक कृष्णा प्रतिपदा, मार्गशीर्ष कृष्णा प्रतिपदा, वैशाख कृष्णा प्रतिपदा। चार संध्याओं में निर्ग्रन्थ निर्ग्रन्थियों को स्वाध्याय करना नहीं कल्पता है। वे चार संध्याएं
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-४

उद्देशक-३ Hindi 345 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चउहिं ठाणेहिं अहुणोववन्ने देवे देवलोगेसु इच्छेज्ज मानुसं लोगं हव्वमागच्छित्तए, नो चेव णं संचाएति हव्वमागच्छित्तए, तं जहा– १.अहुणोववन्ने देवे देवलोगेसु दिव्वेसु कामभोगेसु मुच्छिते गिद्धे गढिते अज्झोववन्ने, से णं मानुस्सए कामभोगे नो आढाइ, नो परियाणाति, नो अट्ठं बंधइ, नो नियाणं पगरेति, नो ठितिपगप्पं पगरेति। २. अहुणोववन्ने देवे देवलोगेसु दिव्वेसु कामभोगेसु मुच्छिते गिद्धे गढिते अज्झोववन्ने, तस्स णं मानुस्सए कामभोगे पेमे वोच्छिन्ने दिव्वे संकंते भवति। ३. अहुणोववन्ने देवे देवलोगेसु दिव्वेसु कामभोगेसु मुच्छिते गिद्धे गढिते अज्झोववन्ने, तस्स णं एवं भवति–इण्हिं

Translated Sutra: देवलोक में उत्पन्न होते ही कोई देवता मनुष्य लोक में आना चाहता है किन्तु चार कारणों से वह नहीं आ सकता। यथा – १. देवलोक में उत्पन्न होते ही एक देवता दिव्य कामभोगों में मूर्च्छित, गृद्ध, बद्ध एवं आसक्त हो जाता है, अतः वह मानव कामभोगों को न प्राप्त करना चाहता है और न उन्हें श्रेष्ठ मानता है। मानव कामभोगों से मुझे
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-९

Hindi 836 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नव नेउणिया वत्थू पन्नत्ता, तं जहा–

Translated Sutra: नैपुणिक वस्तु नौ हैं, यथा – संख्यान – गणित में निपुण, निमित्त – त्रैकालिक शुभाशुभ बताने वाले ग्रन्थों में निपुण, कायिक – स्वर शास्त्रों में निपुण, पुराण – अठारह पुराणों में निपुण, परहस्तक – सर्व कार्य में निपुण, प्रकृष्ट पंडित – अनेक शास्त्रों में निपुण, वादी – वाद में निपुण, भूति कर्म – मंत्र शास्त्रों में निपुण,
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-१

Hindi 47 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एगे सद्दे। एगे रूवे। एगे गंधे। एगे रसे। एगे फासे। एगे सुब्भिसद्दे। एगे दुब्भिसद्दे। एगे सुरूवे। एगे दुरूवे। एगे दीहे। एगे हस्से। एगे वट्टे। एगे तंसे। एगे चउरंसे। एगे पिहुले। एगे परिमंडले। एगे किण्हे। एगे नीले। एगे लोहिए। एगे हालिद्दे। एगे सुक्किल्ले। एगे सुब्भिगंधे। एगे दुब्भिगंधे। एगे तिते। एगे कडुए। एगे कसाए। एगे अंबिले। एगे महुरे। एगे कक्खडे। एगे मउए। एगे गरुए। एगे लहुए। एगे सीते। एगे उसिणे। एगे निद्धे। एगे लुक्खे।

Translated Sutra: शब्द एक है। रूप एक है। गंध एक है। रस एक है। स्पर्श एक है। शुभ शब्द एक है। अशुभ शब्द एक है। सुरूप एक है। कुरूप एक है। दीर्घ एक है। ह्रस्व एक है। वर्तुलाकार ‘लड्डू के समान गोल’ एक है। त्रिकोण एक है। चतुष्कोण एक है। पृथुल – विस्तीर्ण एक है। परिमंडल – चूड़ो के समान गोल एक है। काला एक है। नीला एक है। लाल एक है। पीला
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-१

Hindi 51 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एगा नेरइयाणं वग्गणा। एगा असुरकुमाराणं वग्गणा। एगा नागकुमाराणं वग्गणा। एगा सुवण्णकुमाराणं वग्गणा। एगा विज्जुकुमाराणं वग्गणा। एगा अग्गिकुमाराणं वग्गणा। एगा दीवकुमाराणं वग्गणा। एगा उदहिकुमाराणं वग्गणा। एगा दिसाकुमाराणं वग्गणा। एगा वायुकुमाराणं वग्गणा। एगा थणियकुमाराणं वग्गणा। एगा पुढविकाइयाणं वग्गणा। एगा आउकाइयाणं वग्गणा। एगा तेउकाइयाणं वग्गणा। एगा वाउकाइयाणं वग्गणा। एगा वणस्सइकाइयाणं वग्गणा। एगा बेइंदियाणं वग्गणा। एगा तेइंदियाणं वग्गणा। एगा चउरिंदियाणं वग्गया। एगा पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं वग्गणा। एगा मनुस्साणं वग्गणा। एगा वाणमंतराणं वग्गणा। एगा

Translated Sutra: नारकीय के जीवों की वर्गणा एक है। असुरकुमारों की वर्गणा एक है, यावत्‌ – वैमानिक देवों की वर्गणा एक है भव्य जीवों की वर्गणा एक है। अभव्य जीवों की वर्गणा एक है। भव्य नरक जीवों की वर्गणा एक है। अभव्य नरक जीवों की वर्गणा एक है। इस प्रकार – यावत्‌ – भव्य वैमानिक देवों की वर्गणा एक है। अभव्य वैमानिक देवों की वर्गणा
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-१

Hindi 53 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एगे समणे भगवं महावीरे इमीसे ओसप्पिणीए चउव्वीसाए तित्थगराणं चरमतित्थयरे सिद्धे बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिनिव्वुडे सव्वदुक्खप्पहीणे।

Translated Sutra: इस अवसर्पिणी काल में चौबीस तीर्थंकरों में से अन्तिम तीर्थंकर श्रमण भगवान महावीर अकेले सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, निर्वाण प्राप्त, एवं सब दुःखों से रहित हुए।
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-१

Hindi 56 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एगपदेसोगाढा पोग्गला अनंता पन्नत्ता। एगसमयठितिया पोग्गला अनंता पन्नत्ता। एगगुणकालगा पोग्गला अनंता पन्नत्ता जाव एगगुणलुक्खा पोग्गला अनंता पन्नत्ता।

Translated Sutra: एक प्रदेश में रहे हुए पुद्‌गल अनन्त कहे गए हैं। इसी प्रकार एक समय की स्थिति वाले – एक गुण काले पुद्‌गल – यावत्‌ एक गुण रूक्ष पुद्‌गल अनन्त कहे गए हैं।
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-२

उद्देशक-१ Hindi 61 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] दुविहा गरिहा पन्नत्ता, तं जहा–मनसा वेगे गरहति, वयसा वेगे गरहति। अहवा–गरहा दुविहा पन्नत्ता, तं जहा –दीहं वेगे अद्धं गरहति, रहस्सीं वेगे अद्धं गरहति।

Translated Sutra: गर्हा – पाप की निन्दा दो प्रकार की कही गई है, यथा – कुछ प्राणी केवल मन से ही पाप की निन्दा करते हैं, कुछ केवल वचन से ही पाप की निन्दा करते हैं। अथवा – गर्हा के दो भेद कहे गए हैं, यथा – कोई प्राणी दीर्घ काल पर्यन्त ‘आजन्म’ गर्हा करता है, कोई प्राणी थोड़े काल पर्यन्त गर्हा करता है।
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-२

उद्देशक-१ Hindi 62 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] दुविहे पच्चक्खाणे पन्नत्ते, तं जहा–मनसा वेगे पच्चक्खाति, वयसा वेगे पच्चक्खाति। अहवा–पच्चक्खाणे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–दीहं वेगे अद्धं पच्चक्खाति, रहस्सं वेगे अद्धं पच्चक्खाति।

Translated Sutra: प्रत्याख्यान दो प्रकार का कहा गया है, यथा – कोई कोई प्राणी केवल मन से प्रत्याख्यान करते हैं, कोई कोई प्राणी केवल वचन से प्रत्याख्यान करते हैं। अथवा – प्रत्याख्यान के दो भेद कहे गए हैं, यथा – कोई दीर्घकाल पर्यन्त प्रत्याख्यान करते हैं, कोई अल्पकालीन प्रत्याख्यान करते हैं।
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-२

उद्देशक-१ Hindi 63 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] दोहिं ठाणेहिं संपन्ने अनगारे अनादीयं अनवयग्गं दीहमद्धं चाउरंतं संसारकंतारं वीतिवएज्जा, तं जहा–विज्जाए चेव चरणेण चेव।

Translated Sutra: दो गुणों से युक्त अनगार अनादि, अनन्त, दीर्घकालीन चार गति रूप भवाटवी को पार कर लेता है, यथा – ज्ञान और चारित्र से।
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-२

उद्देशक-१ Hindi 71 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] दुविहे नाणे पन्नत्ते, तं जहा–पच्चक्खे चेव, परोक्खे चेव। पच्चक्खे नाणे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–केवलनाणे चेव, नोकेवलनाणे चेव। केवलनाणे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–भवत्थकेवलनाणे चेव, सिद्धकेवलनाणे चेव। भवत्थकेवलनाणे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा– सजोगिभवत्थकेवलनाणे चेव, अजोगिभवत्थकेवलनाणे चेव। सजोगिभवत्थकेवलनाणे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–पढमसमयसजोगिभवत्थकेवलनाणे चेव, अपढम-समयजोगिभवत्थकेवलनाणे चेव। अहवा–चरिमसमयसजोगिभवत्थकेवलनाणे चेव, अचरिमसमयसजोगिभवत्थकेवलनाणे चेव। अजोगिभवत्थकेवलनाणे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा– पढमसमयअजोगिभवत्थकेवलनाणे चेव, अपढमसमयअजोगिभवत्थकेवलनाणे

Translated Sutra: ज्ञान दो प्रकार का कहा गया है, यथा – प्रत्यक्ष और परोक्ष। प्रत्यक्ष ज्ञान दो प्रकार का कहा गया है, यथा – केवलज्ञान और नो केवलज्ञान। केवलज्ञान दो प्रकार का कहा गया है, यथा – भवस्थ – केवलज्ञान और सिद्ध – केवलज्ञान। भवस्थ – केवलज्ञान दो प्रकार का है, यथा – सयोगी – भवस्थ – केवलज्ञान, अयोगी – भवस्थ – केवलज्ञान। सयोगी
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-२

उद्देशक-३ Hindi 85 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] दोण्हं उववाए पन्नत्ते, तं जहा–देवाणं चेव, नेरइयाणं चेव। दोण्हं उव्वट्टणा पन्नत्ता, तं जहा–नेरइयाणं चेव, भवनवासीणं चेव। दोण्हं चयणे पन्नत्ते, तं जहा–जोइसियाणं चेव, वेमाणियाणं चेव। दोण्हं गब्भवक्कंती पन्नत्ता, तं जहा–मनुस्साणं चेव, पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं चेव। दोण्हं गब्भत्थाणं आहारे पन्नत्ते, तं जहा–मनुस्साणं चेव, पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं चेव। दोण्हं गब्भत्थाणं वुड्ढी पन्नत्ता, तं जहा–मनुस्साणं चेव, पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं चेव। दोण्हं गब्भत्थाणं–निवुड्ढी विगुव्वणा गतिपरियाए समुग्घाते कालसंजोगे आयाती मरणे पन्नत्ते, तं जहा– मनुस्साणं चेव, पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं

Translated Sutra: दो प्रकार के जीवों का जन्म उपपात कहलाता है, देवों और नैरयिकों का। दो प्रकार के जीवों का मरना उद्वर्तन कहलाता है, नैरयिकों का और भवनवासी देवों का। दो प्रकार के जीवों का मरना च्यवन कहलाता है, ज्योतिष्कों का और वैमानिकों का। दो प्रकार के जीवों की गर्भ में उत्पत्ति होती है, यथा – मनुष्यों की और पंचेन्द्रिय तिर्यंच
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