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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-१८ |
Hindi | 45 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] आयारस्स णं भगवतो सचूलिआगस्स अट्ठारस पयसहस्साइं पयग्गेणं पन्नत्ताइं।
बंभीए णं लिवीए अट्ठारसविहे लेखविहाणे पन्नत्ते, तं जहा–
१. बंभी २. जवलाणिया ३. दोसऊरिया ४. खरोट्ठिया ५. खरसाहिया ६. पहाराइया ७. उच्चत्तरिया ८. अक्खरपुट्ठिया ९. भोगवइया १. वेणइया ११. निण्हइया १२. अंकलिवी १३. गणियलिवी १४. गंधव्वलिवी १५. आयंसलिवी १६. माहेसरी १७. दामिली १८. पोलिंदी।
अत्थिनत्थिप्पवायस्स णं पुव्वस्स अट्ठारस वत्थू पन्नत्ता।
धूमप्पभा णं पुढवी अट्ठारसुत्तरं जोयणसयहस्सं बाहल्लेणं पन्नत्ता।
पोसासाढेसु णं मासेसु सइ उक्कोसेणं अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, सइ उक्कोसेणं अट्ठारसमुहुत्ता राती Translated Sutra: चूलिका – सहित भगवद – आचाराङ्ग सूत्र पद – प्रमाण से अठारह हजार पद हैं। ब्राह्मीलिपि के लेखन – विधान अठारह प्रकार के कहे गए हैं। जैसे – ब्राह्मीलिपि, यावनीलिपि, दोषउपरि – कालिपि, खरोष्ट्रिकालिपि, खर – शाविकालिपि, प्रहारातिकालिपि, उच्चत्तरिकालिपि, अक्षरपृष्ठिकालिपि, भोगवति – कालिपि, वैणकियालिपि, निह्नविकालिपि, | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-२० |
Hindi | 50 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] वीसं असमाहिठाणा पन्नत्ता, तं जहा–१. दवदवचारि यावि भवइ २. अपमज्जियचारि यावि भवइ ३. दुप्पमज्जियचारि यावि भवइ ४. अतिरित्तसेज्जासणिए ५. रातिणियपरिभासी ६. थेरोवघातिए ७. भूओवघातिए ८. संजलणे ९. कोहणे १. पिट्ठिमंसिए ११. अभिक्खणं-अभिक्खणं ओहारइत्ता भवइ १२. नवाणं अधिकरणाणं अणुप्पण्णाणं उप्पाएत्ता भवइ १३. पोराणाणं अधिकरणाणं खामिय-विओसवियाणं पुणोदीरेत्ता भवइ १४. ससरक्खपाणिपाए १५. अकालसज्झायकारए यावि भवइ १६. कलहकरे १७. सद्दकरे १८. ज्झंज्झकरे १९. सूरप्पमाणभोई २. एसणाऽसमिते आवि भवइ।
मुनिसुव्वए णं अरहा वीसं धनूइं उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था।
सव्वेवि णं घनोदही वीसं जोयणसहस्साइं Translated Sutra: बीस असमाधिस्थान हैं। १. दव – दव करते हुए जल्दी – जल्दी चलना, २. अप्रमार्जितचारी होना, ३. दुष्प्रमा – र्जितचारी होना, ४. अतिरिक्त शय्या – आसन रखना, ५. रात्निक साधुओं का पराभव करना, ६. स्थविर साधुओं को दोष लगाकर उनका उपघात या अपमान करना, ७. भूतों (एकेन्द्रिय जीवों) का व्यर्थ उपघात करना, ८. सदा रोष – युक्त प्रवृत्ति करना, | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-२१ |
Hindi | 51 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एक्कवीसं सबला पन्नत्ता, तं जहा–
१. हत्थकम्मं करेमाणे सबले।
२. मेहुणं पडिसेवमाणे सबले।
३. राइभोयणं भुंजमाणे सबले।
४. आहाकम्मं भुंजमाणे सबले।
५. सागारियपिंडं भुंजमाणे सबले।
६. उद्देसियं, कीयं, आहट्टु दिज्जमाणं भुंजमाणे सबले।
७. अभिक्खणं पडियाइक्खेत्ता णं भुंजमाणे सबले।
८. अंतो छण्हं मासाणं गणाओ गणं संकममाणे सबले।
९. अंतो मासस्स तओ दगलेवे करेमाणे सबले।
१०. अंतो मासस्स तओ माईठाणे सेवमाणे सबले।
११. रायपिंडं भुंजमाणे सबले।
१२. आउट्टिआए पाणाइवायं करेमाणे सबले।
१३. आउट्टिआए मुसावायं वदमाणे सबले।
१४. आउट्टिआए अदिन्नादाणं गिण्हमाणे सबले।
१५. आउट्टिआए अनंतरहिआए पुढवीए Translated Sutra: इक्कीस शबल हैं (जो दोष रूप क्रिया – विशेषों के द्वारा अपने चारित्र को शबल कर्बुरित, मलिन या धब्बों से दूषित करते हैं) १. हस्त – मैथुन करने वाला शबल, २. स्त्री आदि के साथ मैथुन करने वाला शबल, ३. रात में भोजन करने वाला शबल, ४. आधाकर्मिक भोजन को सेवन करने वाला शबल, ५. सागारिक का भोजन – पिंड ग्रहण करने वाला शबल, ६. औद्देशिक, | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-२२ |
Hindi | 52 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] बावीसं परीसहा पन्नत्ता, तं जहा– दिगिंछापरीसहे पिवासापरीसहे सीतपरीसहे उसिणपरीसहे दंस-मसगपरीसहे अचेलपरीसहे अरइपरीसहे इत्थिपरीसहे चरियापरीसहे निसीहियापरीसहे सेज्जा-परीसहे अक्कोसपरीसहे वहपरीसहे जायणापरीसहे अलाभपरीसहे रोगपरीसहे तणफासपरीसहे जल्लपरीसहे सक्कारपुरक्कारपरीसहे नाणपरीसहे दंसणपरीसहे पण्णापरीसहे।
दिट्ठिवायस्स णं बावीसं सुत्ताइं छिन्नछेयणइयाइं ससमयसुत्तपरिवाडीए।
बावीसं सुत्ताइं अछिन्नछेयणइयाइं आजीवियसुत्तपरिवाडीए।
बावीसं सुत्ताइं तिकणइयाइं तेरासिअसुत्तपरिवाडीए।
बावीसं सुत्ताइं चउक्कणइयाइं ससमयसुत्तपरिवाडीए।
बावीसइविहे पोग्गलपरिणामे Translated Sutra: बाईस परीषह कहे गए हैं। जैसे – दिगिंछा (बुभुक्षा) परीषह, पिपासापरीषह, शीतपरीषह, उष्णपरीषह, दंशमशकपरीषह, अचेलपरीषह, अरतिपरीषह, स्त्रीपरीषह, चर्यापरीषह, निषद्यापरीषह, शय्यापरीषह, आक्रोश – परीषह, वधपरीषह, याचनापरीषह, अलाभपरीषह, रोगपरीषह, तृणस्पर्शपरीषह, जल्लपरीषह, सत्कार – पुरस्कार – परीषह, प्रज्ञापरीषह, अज्ञानपरीषह | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-२३ |
Hindi | 53 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेवीसं सूयगडज्झयणा पन्नत्ता, तं जहा– समए वेतालिए उवसग्गपरिण्णा थीपरिण्णा नरयविभत्ती महावीरथुई कुसीलपरिभासिए विरिए धम्मे समाही मग्गे समोसरणे आहत्तहिए गंथे जमईए गाहा पुंडरीए किरियठाणा आहारपरिण्णा अपच्चक्खाणकिरिया अनगारसुयं अद्दइज्जं णालंदइज्जं।
जंबुद्दीवेणं दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए तेवीसाए जिणाणं सूरुग्गमनमुहुत्तंसि केवलवरनाणदंसणे समुप्पण्णे
जंबुद्दीवे णं दीवे इमीसे ओसप्पिणीए तेवीसं तित्थकरा पुव्वभवे एक्कारसंगिणो होत्था, तं जहा–अजिए संभवे अभिनंदने सुमती पउमप्पभे सुपासे चंदप्पहे सुविही सीतले सेज्जंसे वासुपुज्जे विमले अनंते धम्मे Translated Sutra: सूत्रकृताङ्ग के तेईस अध्ययन हैं। समय, वैतालिक, उपसर्गपरिज्ञा, स्त्रीपरिज्ञा, नरकविभक्ति, महावीर – स्तुति, कुशीलपरिभाषित, वीर्य, धर्म, समाधि, मार्ग, समवसरण, याथातथ्य ग्रन्थ, यमतीत, गाथा, पुण्डरीक, क्रिया – स्थान, आहारपरिज्ञा, अप्रत्याख्यानक्रिया, अनगारश्रुत, आर्द्रीय, नालन्दीय। जम्बूद्वीप नामक इस द्वीप में, | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-२६ |
Hindi | 60 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] छव्वीसं दस-कप्प-ववहाराणं उद्देसनकाला पन्नत्ता, तं जहा–दस दसाणं, छ कप्पस्स, दस ववहारस्स।
अभवसिद्धियाणं जीवाणं मोहणिज्जस्स कम्मस्स छव्वीसं कम्मंसा संतकम्मा पन्नत्ता, तं जहा–मिच्छत्तमोहणिज्जं सोलस कसाया इत्थीवेदे पुरिसवेदे नपुंसकवेदे हासं अरति रति भयं सोगो दुगुंछा।
इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं छव्वीसं पलिओवमाइं ठिई पन्नत्ता।
अहेसत्तमाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं छव्वीसं सागरोवमाइं ठिई पन्नत्ता।
असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं छव्वीसं पलिओवमाइं ठिई पन्नत्ता।
सोहम्मीसानेसु कप्पेसु देवाणं अत्थेगइयाणं छव्वीसं पलिओवमाइं ठिई Translated Sutra: दशासूत्र (दशाश्रुतस्कन्ध), (बृहत्) कल्पसूत्र और व्यवहारसूत्र के छब्बीस उद्देशनकाल कहे गए हैं। जैसे – दशासूत्र के दश, कल्पसूत्र के छह और व्यवहारसूत्र के दश। अभव्यसिद्धिक जीवों के मोहनीय कर्म के छब्बीस कर्मांश (प्रकृतियाँ) सता में कहे गए हैं। जैसे – मिथ्यात्व मोहनीय, सोलह कषाय, स्त्रीवेद, पुरुष वेद, नपुंसकवेद, | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-३३ |
Hindi | 109 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेत्तीसं आसायणाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–
१. सेहे राइणियस्स आसन्नं गंता भवइ– आसायणा सेहस्स।
२. सेहे राइणियस्स पुरओ गंता भवइ–आसायणा सेहस्स।
३. सेहे राइणियस्स सपक्खं गंता भवइ–आसायणा सेहस्स।
४. सेहे राइणियस्स आसन्नं ठिच्चा भवइ–आसायणा सेहस्स।
५. सेहे राइणियस्स पुरओ ठिच्चा भवइ–आसायणा सेहस्स।
६. सेहे राइणियस्स सपक्खं ठिच्चा भवइ–आसायणा सेहस्स।
७. सेहे राइणियस्स आसन्नं निसीइत्ता भवइ–आसायणा सेहस्स।
८. सेहे राइणियस्स पुरओ निसीइत्ता भवइ–आसायणा सेहस्स।
९. सेहे राइणियस्स सपक्खं निसीइत्ता भवइ–आसायणा सेहस्स।
१०. सेहे राइणिएण सद्धिं बहिया वियारभूमिं निक्खंते समाणे पुव्वामेव Translated Sutra: शैक्ष याने कि शिष्य के लिए सम्यग्दर्शनादि धर्म की विराधनारूप आशातनाएं तैंतीस कही गई हैं। जैसे – शैक्ष (नवदीक्षित) साधु रात्निक (अधिक दीक्षा पर्याय वाले) साधु के – (१) अति निकट होकर गमन करे। (२) शैक्ष साधु रात्निक साधु के आगे गमन करे। (३) शैक्ष साधु रात्निक साधु के साथ बराबरी से चले। (४) शैक्ष साधु रात्निक साधु के | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-३४ |
Hindi | 110 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] चोत्तीसं बुद्धाइसेसा पन्नत्ता, तं जहा–१. अवट्ठिए केसमंसुरोमनहे। २. निरामया निरुवलेवा गायलट्ठी। ३. गोक्खीरपंडुरे मंससोणिए। ४. पउमुप्पलगंधिए उस्सासनिस्सासे। ५. पच्छन्ने आहारनीहारे, अद्दिस्से मंसचक्खुणा। ६. आगासगयं चक्कं। ७. आगासगयं छत्तं। ८. आगासियाओ सेयवर-चामराओ। ९. आगासफालियामयं सपायपीढं सीहासणं। १०. आगासगओ कुडभीसहस्सपरि-मंडिआभिरामो इंदज्झओ पुरओ गच्छइ। ११. जत्थ जत्थवि य णं अरहंता भगवंतो चिट्ठंति वा निसीयंति वा तत्थ तत्थवि य णं तक्खणादेव संछन्नपत्तपुप्फपल्लवसमाउलो सच्छत्तो सज्झओ सघंटो सपडागो असोगवरपायवो अभिसंजायइ। १२. ईसिं पिट्ठओ मउडठाणंमि तेयमंडलं Translated Sutra: बुद्धों के अर्थात् तीर्थंकर भगवंतों के चौंतीस अतिशय कहे गए हैं। जैसे – १. नख और केश आदि का नहीं बढ़ना। २. रोगादि से रहित, मल रहित निर्मल देहलता होना। ३. रक्त और माँस का गाय के दूध के समान श्वेत वर्ण होना। ४. पद्मकमल के समान सुगन्धित उच्छ्वास निःश्वास होना। ५. माँस – चक्षु से अदृश्य प्रच्छन्न आहार और नीहार होना। | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-३७ |
Hindi | 113 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कुंथूस्स णं अरहओ सत्ततीसं गणा, सत्ततीसं गणहरा होत्था।
हेमवयहेरण्णवइयाओ णं जीवाओ सत्ततीसं-सत्ततीसं जोयणसहस्साइं छच्च चोवत्तरे जोयणसए सोलसयएगूणवीसइभाए जोयणस्स किंचिविसेसूणाओ आयामेणं पन्नत्ताओ।
सव्वासु णं विजय-वेजयंत-जयंत-अपराजियासु रायहाणीसु पागारा सत्ततीसं-सत्ततीसं जोयणाणि उड्ढं उच्चत्तेणं पन्नत्ता।
खुड्डियाए णं विमाणप्पविभत्तीए पढमे वग्गे सत्ततीसं उद्देसनकाला पन्नत्ता।
कत्तियबहुलसत्तमीए णं सूरिए सत्ततीसंगुलियं पोरिसिच्छायं निव्वत्तइत्ता णं चारं चरइ। Translated Sutra: कुन्थु अर्हन् के सैंतीस गण और सैंतीस गणधर थे। हैमवत और हैरण्यवत क्षेत्र की जीवाएं सैंतीस हजार छह सौ चौहतर योजन और एक योजन के उन्नीस भागों में से कुछ कम सोलह भाग लम्बी कही गई हैं। क्षुद्रिका विमानप्रविभक्ति नामक कालिकश्रुत के प्रथम वर्ग में सैंतीस उद्देशनकाल हैं। कार्तिक कृष्णा सप्तमी के दिन सूर्य सैंतीस | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-३८ |
Hindi | 114 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] पासस्स णं अरहओ पुरिसादानीयस्स अट्ठतीसं अज्जियासाहस्सीओ उक्कोसिया अज्जियासंपया होत्था।
हेमवतेरण्णवतियाणं जीवाणं धणुपट्ठे अट्ठतीसं जोयणसहस्साइं सत्त य चत्ताले जोयणसए दस एगूणवीसइभागे जोयणस्स किंचिविसेसूणा परिक्खेवेणं पन्नत्ते।
अत्थस्स णं पव्वयरण्णो बितिए कंडे अट्ठतीसं जोयणसहस्साइं उड्ढं उच्चत्तेणं पन्नत्ते।
खुड्डियाए णं विमानपविभत्तीए बितिए वग्गे अट्ठतीसं उद्देसनकाला पन्नत्ता। Translated Sutra: पुरुषादानीय पार्श्व अर्हत् के संघ में अड़तीस हजार आर्यिकाओं की उत्कृष्ट आर्यिकासम्पदा थी। हैमवत और हैरण्यवत क्षेत्रों की जीवाओं का घनःपृष्ठ अड़तीस हजार सात सौ चालीस योजन और एक योजन के उन्नीस भागों में से दश भाग से कुछ कम परिक्षेप वाला कहा गया है। जहाँ सूर्य अस्त होता है, उस पर्वत राज मेरु का दूसरा कांड अड़तीस | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-४० |
Hindi | 116 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अरहओ णं अरिट्ठनेमिस्स चत्तालीसं अज्जियासाहस्सीओ होत्था।
मंदरचूलिया णं चत्तालीसं जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं पन्नत्ता।
संती अरहा चत्तालीसं धनूइं उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था।
भूयाणंदस्स णं नागरन्नो चत्तालीसं भवनावाससयसहस्स पन्नत्ता।
खुड्डियाए णं विमानपविभत्तीए तइए वग्गे चत्तालीसं उद्देसनकाला पन्नत्ता।
फग्गुणपुण्णिमासिणीए णं सूरिए चत्तालीसंगुलियं पोरिसिच्छायं निव्वट्टइत्ता णं चारं चरइ।
एवं कत्तियाएवि पुण्णिमाए।
महासुक्के कप्पे चत्तालीसं विमानावाससहस्सा पन्नत्ता। Translated Sutra: अरिष्टनेमि अर्हन् के संघ में चालीस हजार आर्यिकाएं थीं। मन्दर चूलिकाएं चालीस योजन ऊंची कही गई हैं। शान्ति अर्हन् चालीस धनुष ऊंचे थे। नागकुमार, नागराज भूतानन्द के चालीस लाख भवनावास कहे गए हैं। क्षुद्रिका विमान – प्रविभक्ति के तीसरे वर्ग में चालीस उद्देशन काल कहे गए हैं। फाल्गुन पूर्णमासी के दिन सूर्य चालीस | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-४१ |
Hindi | 117 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नमिस्स णं अरहओ एक्कचत्तालीसं अज्जियासाहस्सीओ होत्था।
चउसु पुढवीसु एक्कचत्तालीसं निरयावाससयसहस्सा पन्नत्ता, तं जहा–रयणप्पभाए पंकप्पभाए तमाए तमतमाए।
महालियाए णं विमानपविभत्तीए पढमे वग्गे एक्कचत्तालीसं उद्देसनकाला पन्नत्ता। Translated Sutra: नमि अर्हत् के संघ में इकतालीस हजार आर्यिकाएं थीं। चार पृथ्वीयों में इकतालीस लाख नारकावास कहे गए हैं। जैसे – रत्नप्रभा में ३० लाख, पंकप्रभा में १० लाख, तमःप्रभा में ५ कम एक लाख और महातमःप्रभा में ५। महालिका विमानप्रविभक्ति के प्रथम वर्ग में इकतालीस उद्देशनकाल कहे गए हैं। | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-४२ |
Hindi | 118 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] समणे भगवं महावीरे बायालीसं वासाइं साहियाइं सामण्णपरियागं पाउणित्त सिद्धे बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिनिव्वुडे सव्वदुक्खप्पहीणे।
जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स पुरत्थिमिल्लाओ चरिमंताओ गोथूभस्स णं आवासपव्वयस्स पच्चत्थिमिल्ले चरिमंते, एस णं बायालीसं जोयणसहस्साइं अबाहाते अंतरे पन्नत्ते।
एवं चउद्दिसिं पि दओभासे संखे दयसीमे य।
कालोए णं समुद्दे बायालीसं चंदा जोइंसु वा जोइंति वा जोइस्संति वा, बायालीसं सूरिया पभासिंसु वा पभासिंति वा पभासिस्संति वा।
संमुच्छिमभुयपरिसप्पाणं उक्कोसेणं बायालीसं वाससहस्साइं ठिई पन्नत्ता।
नामे णं कम्मे बायालीसविहे पन्नत्ते, तं जहा– Translated Sutra: श्रमण भगवान महावीर कुछ अधिक बयालीस वर्ष श्रमण पर्याय पालकर सिद्ध, बुद्ध यावत् (कर्म – मुक्त, परिनिर्वाण को प्राप्त और) सर्व दुःखों से रहित हुए। जम्बूद्वीप नामक इस द्वीप की जगती की बाहरी परिधि के पूर्वी चरमान्त भाग से लेकर वेलन्धर नागराज के गोस्तूभ नामक आवास पर्वत के पश्चिमी चरमान्त भाग तक मध्यवर्ती क्षेत्र | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-४३ |
Hindi | 119 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेयालीसं कम्मविवागज्झयणा पन्नत्ता।
पढमचउत्थपंचमासु–तीसु पुढवीसु तेयालीसं निरयावाससयसहस्सा पन्नत्ता।
जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स पुरत्थिमिल्लाओ चरिमंताओ गोथूभस्स णं आवासपव्वयस्स पुरत्थिमिल्ले चरिमंते, एस णं तेयालीसं जोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे पन्नत्ते।
एवं चउद्दिसिंपि दओभासे संखे दयसीमे।
महालियाए णं विमानपविभत्तीए ततिये वग्गे तेयालीसं उद्देसनकाला पन्नत्ता। Translated Sutra: कर्मविपाक सूत्र (कर्मों का शुभाशुभ फल बताने वाले अध्ययन) के तैंतालीस अध्ययन कहे गए हैं। पहली, चौथी और पाँचवी पृथ्वी में तैंतालीस लाख नारकावास कहे गए हैं। जम्बूद्वीप नामक इस द्वीप के पूर्वी जगती के चरमान्त से गोस्तूभ आवास पर्वत का पश्चिमी चरमान्त का बिना किसी बाधा या व्यवधान के तैंतालीस हजार योजन अन्तर है। | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-४४ |
Hindi | 120 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] चोयालीसं अज्झयणा इसिभासिया दियलोगचुयाभासिया पन्नत्ता।
विमलस्स णं अरहतो चोयालीसं पुरिसजुगाइं अणुपट्ठिं सिद्धाइं बुद्धाइं मुत्ताइं अंतगडाइं परिणिव्वुयाइं सव्वदुक्ख प्पहीणाइं।
धरणस्स णं नागिंदस्स नागरण्णो चोयालीसं भवणावाससयसहस्सा पन्नत्ता।
महालियाए णं विमानपविभत्तीए चउत्थे वग्गे चोयालीसं उद्देसनकाला पन्नत्ता। Translated Sutra: चवालीस ऋषिभाषित अध्ययन कहे गए हैं, जिन्हें देवलोक से च्युत हुए ऋषियों ने कहा है। विमल अर्हत् के बाद चवालीस पुरुषयुग (पीढ़ी) अनुक्रम से एक के पीछे एक सिद्ध, बुद्ध, कर्मों से मुक्त, परिनिर्वाण को प्राप्त और सर्व दुःखों से रहित हुए। नागेन्द्र, नागराज धरण के चवालीस लाख भवनावास कहे गए हैं। महालिका विमान प्रविभक्ति | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-४५ |
Hindi | 123 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] महालियाए णं विमानपविभत्तीए पंचमे वग्गे पणयालीसं उद्देसनकाला पन्नत्ता। Translated Sutra: महालिकाविमान प्रविभक्ति सूत्र के पाँचवे वर्ग में पैंतालीस उद्देशनकाल हैं। | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-५१ |
Hindi | 129 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नवण्हं बंभचेराणं एकावण्णं उद्देसनकाला पन्नत्ता।
चमरस्स णं असुरिंदस्स असुररण्णो सभा सुधम्मा एकावन्नखंभसयसंनिविट्ठा पन्नत्ता।
एवं चेव बलिस्सवि।
सुप्पभे णं बलदेवे एकावन्नं वाससयसहस्साइं परमाउं पालइत्ता सिद्धे बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिनिव्वुडे सव्वदुक्खप्पहीणे।
दंसणावरणनामाणं–दोण्हं कम्माणं एकावन्नं उत्तरपगडीओ पन्नत्ताओ। Translated Sutra: नवों ब्रह्मचर्यों के इक्यावन उद्देशन काल कहे गए हैं। असुरेन्द्र असुरराज चमर की सुधर्मा सभा इक्यावन सौ खम्भों से रचित है। इसी प्रकार बलि की सभा भी जानना चाहिए। सुप्रभ बलदेव इक्यावन हजार वर्ष की परमायु का पालन कर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, परिनिर्वाण को प्राप्त और सर्व दुःखों से रहित हुए। दर्शनावरण और नाम कर्म इन | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-५४ |
Hindi | 132 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] भरहेरवएसु णं वासेसु एगमेगाए ओसप्पिणीए एगमेगाए उस्सप्पिणीए चउप्पन्नं-चउप्पन्नं उत्तमपुरिसा उप्पज्जिंसु वा उप्पज्जंति वा उप्पज्जिस्संति वा, तं जहा–चउवीसं तित्थकरा, बारस चक्कवट्टी, नव बलदेवा, नव वासुदेवा।
अरहा णं अरिट्ठनेमी चउप्पन्नं राइंदियाइं छउमत्थपरियागं पाउणित्ता जिणे जाए केवली सव्वण्णू सव्वभावदरिसी।
समणे भगवं महावीरे एगदिवसेणं एगनिसेज्जाए चउप्पण्णाइं वागरणाइं वागरित्था।
अणंतस्स णं अरहओ चउप्पन्नं गणा चउप्पन्नं गणहरा होत्था। Translated Sutra: भरत और ऐरवत क्षेत्रों में एक एक उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी काल में चौपन चौपन उत्तम पुरुष उत्पन्न हुए हैं, उत्पन्न होते हैं और उत्पन्न होंगे। जैसे – चौबीस तीर्थंकर, बारह चक्रवर्ती, नौ बलदेव और नौ वासुदेव। अरिष्टनेमि अर्हन् चौपन रात – दिन छद्मस्थ श्रमणपर्याय पालकर केवली, सर्वज्ञ, सर्वभावदर्शी जिन हुए। श्रमण | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-५५ |
Hindi | 133 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] मल्ली णं अरहा वाससहस्साइं परमाउं पालइत्ता सिद्धे बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिनिव्वुडे सव्वदुक्ख-प्पहीणे।
मंदरस्स णं पव्वयस्स पच्चत्थिमिल्लाओ चरिमंताओ विजयदारस्स पच्चत्थिमिल्ले चरिमंते, एस णं पणप्पन्नंजोयण-सहस्साइं अबाहाए अंतरे पन्नत्ते।
एवं चउद्दिसिंपि वेजयंत-जयंत-अपराजियंति।
समणे भगवं महावीरे अंतिमराइयंसि पणप्पन्नंअज्झयणाइं कल्लाणफलविवागाइं, पणप्पन्नं अज्झयणाणि पावफ-लविवागाणि वागरित्ता सिद्धे बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिनिव्वुडे सव्वदुक्खप्पहीणे।
पढमबिइयासु–दोसु पुढवीसु पणप्पन्नंनिरयावाससयसहस्सा पन्नत्ता।
दंसणावरणिज्जनामाउयाणं–तिण्हं Translated Sutra: मल्ली अर्हन् पचपन हजार वर्ष की परमायु भोगकर सिद्ध, बुद्ध, कर्मों से मुक्त, परिनिर्वाण को प्राप्त और सर्व दुःखों से रहित हुए। मन्दर पर्वत के पश्चिमी चरमान्त भाग से पूर्वी विजयद्वार के पश्चिमी चरमान्त भाग का अन्तर पचपन हजार योजन का कहा गया है। इसी प्रकार चारों ही दिशाओं में विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित द्वारों | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 215 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] दुवालसंगे गणिपिडगे पन्नत्ते, तं जहा–आयारे सूयगडे ठाणे समवाए विआहपन्नत्ती नायाधम्मकहाओ उवासगदसाओ अंतगडदसाओ अनुत्तरोववाइयदसाओ पण्हावागरणाइं विवागसुए दिट्ठिवाए।
से किं तं आयारे?
आयारे णं समणाणं निग्गंगाणं आयार-गोयर-विनय-वेनइय-ट्ठाण-गमन-चंकमण-पमाण-जोगजुंजण-भासा-समिति-गुत्ती-सेज्जोवहि-भत्तपाण-उग्गम-उप्पायणएसणाविसोहि-सुद्धासुद्धग्ग-हण-वय-नियम-तवोवहाण-सुप्पसत्थमाहिज्जइ।
से समासओ पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–नाणायारे दंसणायारे चरित्तायारे तवायारे वीरियायारे।
आयारस्स णं परित्ता वायणा संखेज्जा अनुओगदारा संखेज्जाओ पडिवत्तीओ संखेज्जा वेढा संखेज्जा सिलोगा Translated Sutra: गणिपिटक द्वादश अंग स्वरूप है। वे अंग इस प्रकार हैं – आचार, सूत्रकृत, स्थान, समवाय, व्याख्याप्रज्ञप्ति, ज्ञाताधर्मकथा, उपासकदशा, अन्तकृत्दशा, अनुत्तरोपपातिक दशा, प्रश्नव्याकरण, विपाकसूत्र और दृष्टिवाद। यह आचारांग क्या है ? इसमें क्या वर्णन किया गया है ? आचारांग में श्रमण निर्ग्रन्थों के आचार, गौचरी, विनय, | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 216 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं सूयगडे?
सूयगडे णं ससमया सूइज्जंति परसमया सूइज्जंति ससमयपरसमया सूइज्जंति जीवा सूइज्जंति अजीवा सूइज्जंति जीवाजीवा सूइ ज्जंति लोगे सूइज्जति अलोगे सूइज्जति लोगालोगे सूइज्जति।
सूयगडे णं जीवाजीव-पुण्ण-पावासव-संवर-निज्जर-बंध-मोक्खावसाणा पयत्था सूइज्जंति, समणाणं अचिरकालपव्वइयाणं कुसमय-मोह-मोह-मइमोहियाणं संदेहजाय-सहजबुद्धि-परिणाम-संसइयाणं पावकर-मइलमइ-गुण-विसोहणत्थं आसीतस्स किरिया वादिसतस्स चउरासीए वेनइय-वाईणं–तिण्हं तेसट्ठाणं अकिरियवाईणं, सत्तट्ठीए अन्नाणियवाईणं, बत्तीसाए वेनइयवाईणं–तिण्हं तेसट्ठाणं अन्नदिट्ठियसयाणं वूहं किच्चा ससमए ठाविज्जति। Translated Sutra: सूत्रकृत क्या है – उसमें क्या वर्णन है ? सूत्रकृत के द्वारा स्वसमय सूचित किये जाते हैं, पर – समय सूचित किये जाते हैं, स्वसमय और परसमय सूचित किये जाते हैं, जीव सूचित किये जाते हैं, अजीव सूचित किये जाते हैं, जीव और अजीव सूचित किये जाते हैं, लोक सूचित किया जाता है, अलोक सूचित किया जाता है और लोकअलोक सूचित किया जाता है। सूत्रकृत | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 217 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं ठाणे?
ठाणे णं ससमया ठाविज्जंति परसमया ठाविज्जंति ससमयपरसमया ठाविज्जंति जीवा ठाविज्जंति अजीवा ठाविज्जंति जीवा-जीवा ठाविज्जंति लोगे ठाविज्जंति अलोगे ठाविज्जंति लोगालोगे ठाविज्जंति।
ठाणे णं दव्व-गुण-खेत्त-काल-पज्जव पयत्थाणं– Translated Sutra: स्थानाङ्ग क्या है – इसमें क्या वर्णन है ? जिसमें जीवादि पदार्थ प्रतिपाद्य रूप से स्थान प्राप्त करते हैं, वह स्थानाङ्ग है। इस के द्वारा स्वसमय स्थापित – सिद्ध किये जाते हैं, पर – समय स्थापित किये जाते हैं, स्वसमय – परसमय स्थापित किये जाते हैं। जीव स्थापित किये जाते हैं, अजीव स्थापित किये जाते हैं, जीव – अजीव स्थापित | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 219 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: एक्कविहवत्तव्वयं दुविहवत्तव्वयं जाव दसविहवत्तव्वयं जीवाण पोग्गलाण य लोगट्ठाइणं च परूवणया आघविज्जति।
ठाणस्स णं परित्ता वायणा संखेज्जा अनुओगदारा संखेज्जाओ पडिवत्तीओ संखेज्जा वेढा संखेज्जा सिलोगा संखेज्जाओ निज्जु-त्तीओ संखेज्जाओ संगहणीओ।
से णं अंगट्ठयाए तइए अंगे एगे सुयक्खंधे दस अज्झयणा एक्कवीसं उद्देसनकाला एक्कवीसं समुद्देसनकाला बावत्तरिं पयसह-स्साइं पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा अनंता गमा अनंता पज्जवा परित्ता तसा अनंता थावरा सासया कडा निबद्धा निकाइया जिनपन्नत्ता भावा आघविज्जंति पन्नविज्जंति परूविज्जंति दंसिज्जंति निदंसिज्जंति उवदंसिज्जंति।
से एवं Translated Sutra: तथा एक – एक प्रकार के पदार्थों का, दो – दो प्रकार के पदार्थों का यावत् दश – दश प्रकार के पदार्थों का कथन किया गया है। जीवों का, पुद्गलों का तथा लोक में अवस्थित धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय आदि द्रव्यों का भी प्ररूपण किया गया है। स्थानाङ्ग की वाचनाएं परीत (सीमित) हैं, अनुयोगद्वार संख्यात हैं, प्रतिपत्तियाँ | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 220 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं समवाए?
समवाए णं ससमया सूइज्जंति परसमया सूइज्जंति ससमयपरसमया सूइज्जंति जीवा सूइज्जंति अजीवा सूइज्जंति जीवाजीवा सूइज्जंति लोगे सूइज्जति अलोगे सूइज्जति लोगालोगे सूइज्जति।
समवाए णं एकादियाणं एगत्थाणं एगुत्तरियपरिवुड्ढीय, दुवालसंगस्स य गणिपिडगस्स पल्लवग्गे समणुगाइज्जइ, ठाणगसयस्स बारसविहवित्थरस्स सुयणाणस्स जगजीवहियस्स भगवओ समासेणं समायारे आहिज्जति, तत्थ य नानाविहप्पगारा जीवाजीवा य वण्णिया वित्थरेण अवरे वि य बहुविहा विसेसा नरग-तिरिय-मणुय-सुरगणाणं अहारुस्सास-लेस-आवास-संख-आययप्पमाण उववाय-चयन-ओगाहणोहि-वेयण-विहाण-उवओग-जोग-इंदिय-कसाय, विविहा य Translated Sutra: समवायाङ्ग क्या है ? इसमें क्या वर्णन है ? समवायाङ्ग में स्वसमय सूचित किये जाते हैं, परसमय सूचित किये जाते हैं और स्वसमय – परसमय सूचित किये जाते हैं। जीव सूचित किये जाते हैं, अजीव सूचित किये जाते हैं और जीव – अजीव सूचित किये जाते हैं। लोक सूचित किया जाता है, अलोक सूचित किया जाता है और लोक – अलोक सूचित किया जाता है। समवायाङ्ग | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 221 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं वियाहे?
वियाहे णं ससमया वियाहिज्जंति परसमया वियाहिज्जंति ससमयपरसमया वियाहिज्जंति जीवा वियाहिज्जंति अजीवा वियाहि-ज्जंति जीवाजीवा वियाहिज्जंति लोगे वियाहिज्जइ अलोगे वियाहिज्जइ लोगालोगे वियाहिज्जइ। वियाहे णं नाणाविह-सुर-नरिंद-राय-रिसि-विविहसंसइय-पुच्छियाणं जिणेणं वित्थरेण भासियाणं दव्व-गुण-खेत्त-काल-पज्जव-पदेस-परिणाम-जहत्थिभाव-अणुगम-निक्खेव-नय-प्पमाण-सुनिउणोवक्कम-विविहप्पगार-पागड-पयंसियाणं लोगालोग-पगा-सियाणं संसारसमुद्द-रुंद-उत्तरण-समत्थाणं सुरपति-संपूजियाणं भविय-जणपय-हिययाभिनंदियाणं तमरय-विद्धंसणाणं सुदिट्ठं दीवभूय-ईहा-मतिबुद्धि-वद्धणाणं Translated Sutra: व्याख्याप्रज्ञप्ति क्या है – इसमें क्या वर्णन है ? व्याख्याप्रज्ञप्ति के द्वारा स्वसमय का व्याख्यान किया जाता है, परसमय का व्याख्यान किया जाता है तथा स्वसमय – परसमय का व्याख्यान किया जाता है। जीव व्याख्यात किये जाते हैं, अजीव व्याख्यात किये जाते हैं तथा जीव और अजीव व्याख्यात किये जाते हैं। लोक व्याख्यात | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-७० |
Hindi | 148 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] समणे भगवं महावीरे वासाणं सवीसइराए मासे वीतिक्कंते सत्तरिए राइंदिएहिं सेसेहिं वासावासं पज्जोसवेइ।
पासे णं अरहा पुरिसादाणीए सत्तरिं वासाइं बहुपडिपुण्णाइं सामण्णपरियागं पाउणित्ता सिद्धे बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिनिव्वुडे सव्वदुक्खप्पहीणे।
वासुपुज्जे णं अरहा सत्तरिं धनूइं उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था।
मोहनिज्जस्स णं कम्मस्स सत्तरिं सागरोवमकोडाकोडीओ अबाहूणिया कम्मठिई कम्मनिसेगे पन्नत्ते।
माहिंदस्स णं देविंदस्स देवरन्नो सत्तरिं सामाणियसाहस्सीओ पन्नत्ताओ। Translated Sutra: श्रमण भगवान महावीर चतुर्मास प्रमाण वर्षाकाल के बीस दिन अधिक एक मास (पचास दिन) व्यतीत हो जाने पर और सत्तर दिनों के शेष रहने पर वर्षावास करते थे। पुरुषादानीय पार्श्व अर्हत् परिपूर्ण सत्तर वर्ष तक श्रमण – पर्याय का पालन करके सिद्ध, बुद्ध, कर्मों से मुक्त, परिनिर्वाण को प्राप्त और सर्व दुःखों से रहित हुए। वासुपूज्य | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-८५ |
Hindi | 164 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] आयारस्स णं भगवओ सचूलियागस्स पंचासीइं उद्देसनकाला पन्नत्ता।
धायइसंडस्स णं मंदरा पंचासीइं जोयणसहस्साइं सव्वग्गेणं पन्नत्ता।
रुयए णं मंडलियपव्वए पंचासीइं जोयणसहस्साइं सव्वग्गेणं पन्नत्ते।
नंदनवनस्स णं हेट्ठिल्लाओ चरिमंताओ सोगंधियस्स कंडस्स हेट्ठिल्ले चरिमंते, एस णं पंचासीइं
जोयणसयाइं अबाहाए अंतरे पन्नत्ते। Translated Sutra: चूलिका सहित श्री आचाराङ्ग सूत्र के पचासी उद्देशन काल कहे गए हैं। धातकीखंड के (दोनों) मन्दराचल भूमिगत अवगाढ़ तल से लेकर सर्वाग्र भाग (अंतिम ऊंचाई) तक पचासी हजार योजन कहे गए हैं। (इसी प्रकार पुष्करवर द्वीपार्ध के दोनों मन्दराचल भी जानना चाहिए।) रुचक नामक तेरहवे द्वीप का अन्तर्वर्ती गोलाकार मंडलिक पर्वत भूमिगत | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-८९ |
Hindi | 168 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] उसभे णं अरहा कोसलिए इमीसे ओसप्पिणीए ततियाए समाए पच्छिमे भागे एगूणनउइए अद्धमासेहिं सेसेहिं कालगए वीइक्कंते समुज्जाए छिन्नजाइजरामरणबंधने सिद्धे बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिनिव्वुडे सव्वदुक्खप्पहीणे।
समणे भगवं महावीरे इमीसे ओसप्पिणीए चउत्थीए समाए पच्छिमे भागे एगूणनउइए अद्धमासेहिं सेसेहिं कालगए वीइक्कंते समुज्जाए छिन्नजाइजरामरणबंधने सिद्धे बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिनिव्वुडे सव्वदुक्खप्पहीणे।
हरिसेणे णं राया चाउरंतचक्कवट्टी एगूणनउइं वाससयाइं महाराया होत्था।
संतिस्स णं अरहओ एगूणणउई अज्जासाहस्सीओ उक्कोसिया अज्जासंपया होत्था। Translated Sutra: कौशलिक ऋषभ अर्हत् इसी अवसर्पिणी के तीसरे सुषमदुषमा आरे के पश्चिम भाग में नवासी अर्धमासों (३ वर्ष, ८ मास, १५ दिन) के शेष रहने पर कालगत होकर सिद्ध, बुद्ध, कर्म – मुक्त, परिनिर्वाण को प्राप्त और सर्व दुःखों से रहित हुए। श्रमण भगवान महावीर इसी अवसर्पिणी के चौथे दुःषमसुषमा काल के अन्तिम भाग में नवासी अर्धमासों (३ | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-९१ |
Hindi | 170 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एक्काणउई परवेयावच्चकम्मपडिमाओ पन्नत्ताओ।
कालोए णं समुद्दे एक्काणउई जोयणसहस्साइं साहियाइं परिक्खेवेणं पन्नत्ते।
कुंथुस्स णं अरहओ एक्काणउई आहोहियसया होत्था।
आउय-गोय-वज्जाणं छण्हं कम्मपगडीणं एक्काणउई उत्तरपगडीओ पन्नत्ताओ। Translated Sutra: पर – वैयावृत्यकर्म प्रतिमाएं इक्यानवे कही गई हैं। कालोद समुद्र परिक्षेप की अपेक्षा कुछ अधिक इक्यानवे लाख योजन है। कुन्थु अर्हत् के संघ में ९१०० नियत क्षेत्र को विषय करने वाले अवधिज्ञानी थे। आयु और गोत्रकर्म को छोड़कर शेष छह कर्मप्रकृतियों की उत्तर प्रकृतियाँ इक्यानवे कही गई हैं। | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 192 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सव्वेवि णं गेवेज्जविमाणा दस-दस जोयणसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं पन्नत्ता।
सव्वेवि णं जमगपव्वया दस-दस जोयणसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, दस-दस गाउयसयाइं उव्वेहेणं, मूले दस-दस जोयणसयाइं आयामविक्खंभेणं पन्नत्ता।
एवं चित्त-विचित्तकूडा वि भाणियव्वा।
सव्वेवि णं वट्टवेयड्ढपव्वया दस-दस जोयणसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, दस-दस गाउयसयाइं उव्वेहेणं, सव्वत्थ समा पल्लगसंठाणसंठिया, मूले दस-दस जोयणसयाइं विक्खंभेणं पन्नत्ता।
[सूत्र] सव्वेवि णं हरि-हरिस्सहकूडा वक्खारकूडवज्जा दस-दस जोयणसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, मूले दस जोयणसयाइं विक्खंभेणं पन्नत्ता।
एवं बलकूडावि नंदनकूडवज्जा।
अरहा वि Translated Sutra: सभी ग्रैवेयक विमान १००० योजन ऊंचे कहे गए हैं। सभी यमक पर्वत दश – दश सौ योजन ऊंचे कहे गए हैं। तथा वे दश – दश सौ गव्यूति उद्वेध वाले कहे गए हैं। वे मूल में दश – दश सौ योजन आयाम – विष्कम्भ वाले हैं। इसी प्रकार चित्र – विचित्र कूट भी कहना चाहिए। सभी वृत्त वैताढ्य पर्वत दश – दश सौ योजन ऊंचे हैं। उनका उद्वेध दश – दश सौ | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 222 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नायाधम्मकहाओ?
नायाधम्मकहासु णं नायाणं नगराइं उज्जाणाइं चेइआइं वणसंडाइं रायाणो अम्मापियरो समोसरणाइं धम्मायरिया धम्मकहाओ इहलोइय-परलोइया इड्ढिविसेसा भोगपरिच्चाया पव्वज्जाओ सुयपरिग्गहा तवोवहाणाइं परियागा संलेहणाओ भत्तपच्चक्खाणाइं पाओवगमणाइं देवलोगगमणाइं सुकुलपच्चायाती पुण बोहिलाभो अंतकिरियाओ य आघविज्जंति पन्नविज्जंति परूविज्जंति दंसि-ज्जंति निदंसिज्जंति उवदंसिज्जंति।
नायाधम्मकहासु णं पव्वइयाणं विणयकरण-जिनसामि-सासनवरे संजम-पइण्ण-पालण-धिइ-मइ-ववसाय-दुल्लभाणं, तव-नियम-तवोवहाण-रण-दुद्धरभर-भग्गा-निसहा-निसट्ठाणं, घोर परीसह-पराजिया-ऽसह-पारद्ध-रुद्ध-सिद्धालयमग्ग-निग्गयाणं, Translated Sutra: ज्ञाताधर्मकथा क्या है – इसमें क्या वर्णन है ? ज्ञाताधर्मकथा में ज्ञात अर्थात् उदाहरणरूप मेघकुमार आदि पुरुषों के नगर, उद्यान, चैत्य, वनखंड, राजा, माता – पिता, समवसरण, धर्माचार्य, धर्मकथा, इहलौकिक – पारलौकिक ऋद्धि – विशेष, भोग – परित्याग, प्रव्रज्या, श्रुत – परिग्रह, तप – उपधान, दीक्षापर्याय, संलेखना, भक्तप्रत्याख्यान, | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 223 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं उवासगदसाओ?
उवासगदसासु णं उवासयाणं नगराइं उज्जाणाइं चेइआइं वनसंडाइं रायाणो अम्मापियरो समोसरणाइं धम्मायरिया धम्मकहाओ इहलोइय-परलोइया इड्ढिविसेसा, उवासयाणं च सीलव्वय-वेरमण-गुण-पच्चक्खाण-पोसहोववास-पडिवज्जणयाओ सुयपरिग्गहा तवोवहाणाइं पडिमाओ उवसग्गा संलेहणाओ भत्तपच्चक्खाणाइं पाओवगमणाइं देवलोगगमणाइं सुकुलपच्चायाई पुण बोहिलाभो अंतकिरियाओ य आघविज्जंति।
उवासगदसासु णं उवासयाणं रिद्धिविसेसा परिसा वित्थर-धम्मसवणाणि बोहिलाभ-अभिगम-सम्मत्तविसुद्धया थिरत्तं मूलगुण-उत्तरगुणाइयारा ठिइविसेसा य बहुविसेसा पडिमा-भिग्गहग्गहणं-पालणा उवसग्गाहियासणा Translated Sutra: उपासकदशा क्या है – उसमें क्या वर्णन है ? उपासकदशा में उपासकों के नगर, उद्यान, चैत्य, वनखंड, राजा, माता – पिता, समवसरण, धर्माचार्य, धर्मकथाएं, इहलौकिक – पारलौकिक ऋद्धि – विशेष, उपासकों के शीलव्रत, पाप – विरमण, गुण, प्रत्याख्यान, पोषधो – पवास – प्रतिपत्ति, श्रुत – परिग्रह, तप – उपधान, ग्यारह प्रतिमा, उपसर्ग, संलेखना, | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 224 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं अंतगडदसाओ?
अंतगडदसासु णं अंतगडाणं नगराइं उज्जाणाइं चेइयाइं वणसंडाइं रायाणो अम्मापियरो समोसरणाइं धम्मायरिया धम्मकहाओ इहलोइय-परलोइया इड्ढिविसेसा भोगपरिच्चाया पव्वज्जाओ सुयपरिग्गहा तवोवहाणाइं पडिमाओ बहुविहाओ, खमा अज्जवं मद्दवं च, सोअं च सच्चसहियं, सत्तरसविहो य संजमो उत्तमं च बंभं, आकिंचणया तवो चियाओ समिइगुत्तीओ चेव, तहं अप्पमायजोगो, सज्झायज्झाणाण य उत्तमाणं दोण्हंपि लक्खणाइं।
पत्ताण य संजमुत्तमं जियपरीसहाणं चउव्विहकम्मक्खयम्मि जह केवलस्स लंभो, परियाओ जत्तिओ य जह पालिओ मुणिहिं, पायोवगओ य जो जहिं जत्तियाणि भत्ताणि छेयइत्ता अंतगडो मुणिवरो Translated Sutra: अन्तकृद्दशा क्या है – इसमें क्या वर्णन है ? अन्तकृत्दशाओं में कर्मों का अन्त करने वाले महापुरुषों के नगर, उद्यान, चैत्य, वनखंड, राजा, माता – पिता समवसरण, धर्माचार्य, धर्मकथा, इहलौकिक – पारलौकिक ऋद्धि – विशेष, भोग – परित्याग, प्रव्रज्या, श्रुत – परिग्रह, तप – उपधान, अनेक प्रकार की प्रतिमाएं, क्षमा, आर्जव, मार्दव, | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 225 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं अनुत्तरोववाइयदसाओ?
अनुत्तरोववाइयदसासु णं अनुत्तरोववाइयाणं नगराइं उज्जाणाइं चेइयाइं वणसंडाइं रायाणो अम्मापियरो समोसरणाइं धम्मायरिया धम्मकहाओ इहलोइय-परलोइया इड्ढिविसेसा भोगपरिच्चाया पव्वज्जाओ सुयपरिग्गहा तवोवहाणाइं परियागा संलेहणाओ भत्त पच्चक्खाणाइं पाओवगमणाइं अणुत्तरोववत्ति सुकुल-पच्चायाती पुण बोहिलाभो अंतकिरियाओ य आघविज्जंति।
अनुत्तरोववातियदसासु णं तित्थकरसमोसरणाइं परममंगल्लजगहियाणि जिनातिसेसा य बहुविसेसा जिनसीसाणं चेव समणगणपवरगंधहत्थीणं थिरजसाणं परिसहसेण्ण-रिउ-बल-पमद्दणाणं तव-दित्त-चरित्त-नाण-सम्मत्तसार-विविह-प्पगार-वित्थर-पसत्थगुण-संजुयाणं Translated Sutra: अनुत्तरोपपातिकदशा क्या है ? इसमें क्या वर्णन है ? अनुत्तरोपपातिकदशा में अनुत्तर विमानों में उत्पन्न होने वाले महा अनगारों के नगर, उद्यान, चैत्य, वनखंड, राजगण, माता – पिता, समवसरण, धर्माचार्य, धर्मकथाएं, इहलौकिक पारलौकिक विशिष्ट ऋद्धियाँ, भोग – परित्याग, प्रव्रज्या, श्रुत का परिग्रहण, तप – उपधान, पर्याय, प्रतिमा, | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 226 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं पण्हावागरणाणि?
पण्हावागरणेसु अट्ठुत्तरं पसिणसयं अट्ठुत्तरं अपसिणसयं अट्ठुत्तरं पसिणापसिणसयं विज्जाइसया, नागसुवण्णेहिं सद्धिं दिव्वा संवाया आघविज्जंति।
पण्हावागरणदसासु णं ससमय-परसमय-पन्नवय-पत्तेयबुद्ध-विविहत्थ-भासा-भासियाणं अतिसय-गुण-उवसम-नाणप्पगार-आयरिय-भासियाणं वित्थरेणं वीरमहेसीहिं विविहवित्थर-भासियाणं च जगहियाणं अद्दागंगुट्ठ-बाहु-असि-मणि-खीम-आतिच्चमातियाणं विविहमहापसिण-विज्जा-मनपसिणविज्जा-देवय-पओगपहाण-गुणप्पगासियाणं सब्भूयविगुणप्पभाव-नरगणमइ-विम्हयकारीणं अतिसयमतीतकालसमए दमतित्थकरुत्तमस्स ठितिकरण-कारणाणं दुरहिगमदुर- वगाहस्स Translated Sutra: प्रश्नव्याकरण अंग क्या है – इसमें क्या वर्णन है ? प्रश्नव्याकरण अंग में एक सौ आठ प्रश्नों, एक सौ आठ अप्रश्नों और एक सौ आठ प्रश्ना – प्रश्नों को, विद्याओं को, अतिशयों को तथा नागों – सुपर्णों के साथ दिव्य संवादों को कहा गया है। प्रश्नव्याकरणदशा में स्वसमय – परसमय के प्रज्ञापक प्रत्येकबुद्धों के विविध अर्थों | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 227 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं विवागसुए?
विवागसुए णं सुक्कडदुक्कडाणं कम्माणं फलविवागे आघविज्जति।
ते समासओ दुविहे पन्नत्ते, तं जहा– दुहविवागे चेव, सुहविवागे चेव।
तत्थ णं दह दुहविवागाणि दह सुहविवागाणि।
से किं तं दुहविवागाणि?
दुहविवागेसु णं दुहविवागाणं नगराइं उज्जाणाइं चेइयाइं वणसंडाइं रायाणो अम्मापियरो समोसरणाइं धम्मायरिया धम्मकहाओ नगरगमणाइं संसारपबंधे दुहपरंपराओ य आघविज्जति।
सेत्तं दुहविवागाणि।
से किं तं सुहविवागाणि?
सुहविवागेसु सुहविवागाणं नगराइं उज्जाणाइं चेइयाइं वणसंडाइं रायाणो अम्मापियरो समोसरणाइं धम्मायरिया धम्मकहाओ इहलोइय-परलोइया इड्ढिविसेसा भोगपरिच्चाया Translated Sutra: विपाकसूत्र क्या है – इसमें क्या वर्णन है ? विपाकसूत्र में सुकृत (पुण्य) और दुष्कृत (पाप) कर्मों का विपाक कहा गया है। यह विपाक संक्षेप से दो प्रकार का है – दुःख विपाक और सुख – विपाक। इनमें दुःख – विपाक में दश अध्ययन हैं और सुख – विपाक में भी दश अध्ययन हैं। यह दुःख विपाक क्या है – इसमें क्या वर्णन है ? दुःख – विपाक में | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 233 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: इच्चेतं दुवालसंगं गणिपिडगं अतीते काले अनंता जीवा आणाए विराहेत्ता चाउरंतं संसारकंतारं अणुपरियट्टिंसु।
इच्चेतं दुवालसंगं गणिपिडगं पडुप्पण्णे काले परित्ता जीवा आणाए विराहेत्ता चाउरंतं संसारकंतारं अणुपरियट्टंति।
इच्चेतं दुवालसंगं गणिपिडगं अणागए काले अनंता जीवा आणाए विराहेत्ता चाउरंतं संसारकंतारं अणुपरियट्टिस्संति।
इच्चेतं दुवालसंगं गणिपिडगं अतीते काले अनंता जीवा आणाए आराहेत्ता चाउरंतं संसारकंतारं विइवइंसु।
इच्चेतं दुवालसंगं गणिपिडगं पडुप्पन्ने काले परित्ता जीवा आणाए आराहेत्ता चाउरंतं संसारकंतारं विइवयंति।
इच्चेतं दुवालसंगं गणिपिडगं अनागए काले Translated Sutra: इस द्वादशाङ्ग गणि – पिटक की सूत्र रूप, अर्थरूप और उभयरूप आज्ञा का विराधन करके अर्थात् दुराग्रह के वशीभूत होकर अन्यथा सूत्रपाठ करके, अन्यथा अर्थकथन करके और अन्यथा सूत्रार्थ – उभय की प्ररूपणा करके अनन्त जीवों ने भूतकाल में चतुर्गतिरूप संसार – कान्तार (गहन वन) में परिभ्रमण किया है, इस द्वादशाङ्ग गणि – पिटक की | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 236 | Gatha | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तीसा य पन्नवीसा, पन्नरस दसेव सयसहस्साइं ।
तिन्नेगं पंचूणं, पंचेव अनुत्तरा नरगा ॥ Translated Sutra: रत्नप्रभा पृथ्वी में तीस लाख नारकावास हैं। शर्करा पृथ्वी में पच्चीस लाख नारकावास हैं। वालुका पृथ्वी में पन्द्रह लाख नारकावास हैं। पंकप्रभा पृथ्वी में दश लाख नारकावास हैं। धूमप्रभा पृथ्वी में तीन लाख नारकावास हैं। तमःप्रभा पृथ्वी में पाँच कम एक लाख नारकावास हैं। महातमः पृथ्वी में (केवल) पाँच अनुत्तर | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 237 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] [दोच्चाए णं पुढवीए, तच्चाए णं पुढवीए, चउत्थीए पुढवीए, पंचमीए पुढवीए, छट्ठीए पुढवीए,
सत्तमीए पुढवीए–गाहाहिं भाणियव्वा] ।
सत्तमाए ण पुढवीए केवइयं ओगाहेत्ता केवइया निरया पन्नत्ता?
गोयमा! सत्तमाए पुढवीए अट्ठुत्तरजोयणसयसहस्साइं बाहल्लाए उवरिं अद्धतेवण्णं जोयण-सहस्साइं ओगाहेत्ता हेट्ठा वि अद्धतेवण्णं जोयणसहस्साइं वज्जेत्ता मज्झे तिसु जोयणसहस्सेसु, एत्थ णं सत्तमाए पुढवीए नेरइयाणं पंच अनुत्तरा महइमहालया महानिरया पन्नत्ता, तं जहा–काले महाकाले रोरुए महारोरुए अप्पइट्ठाणे नामं पंचमए। ते णं नरया वट्टे य तंसा य अहे खुरप्पसंठाणसंठिया निच्चंधयारतमसा ववगयगह-चंद-सूर-नक्खत्त-जोइसपहा Translated Sutra: MISSING_TEXT_IN_ORIGINAL | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 238 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] केवइया णं भंते! असुरकुमारावासा पन्नत्ता?
गोयमा! इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए असीउत्तरजोयणसयसहस्सबाहल्लाए उवरिं एगं जोयणसहस्सं ओगाहेत्ता हेट्ठा चेगं जोयणसहस्सं वज्जेत्ता मज्झे अट्ठहत्तरे जोयणसयसहस्से, एत्थ णं रयणप्पभाए पुढवीए चउसट्ठिं असुरकुमारावाससयसहस्सा पन्नत्ता ते णं भवणा बाहिं वट्टा अंतो चउरंसा अहे पोक्खरकण्णियासंठाणसंठिया उक्किन्नंतर-विपुल-गंभीर-खात-फलिया अट्टालयच-रिय-दारगोउर-कवाड-तोरण-पडिदुवार-देसभागा जंत-मुसल-मुसुंढि-सतग्घि-परिवारिया अउज्झा अडयाल-कोट्ठय-रइया अडयाल-कय-वणमाला लाउल्लोइयमहिया गोसीस-सरसरत्तचंदण-दद्दर-दिण्णपंचंगुलितला कालागुरु-पवरकुंदुरुक्क-तुरुक्क-उज्झंत-धूव-मघ-मघेंत-गंधुद्धुयाभिरामा Translated Sutra: भगवन् ! असुरकुमारों के आवास (भवन) कितने कहे गए हैं ? गौतम ! इस एक लाख अस्सी हजार योजन बाहल्य वाली रत्नप्रभा पृथ्वी में ऊपर से एक हजार योजन अवगाहन कर और नीचे एक हजार योजन छोड़कर मध्यवर्ती एक लाख अठहत्तर हजार योजन में रत्नप्रभा पृथ्वी के भीतर असुरकुमारों के चौसठ लाख भवनावास कहे गए हैं। वे भवन बाहर गोल हैं, भीतर चौकोण | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 241 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] केवइया णं भंते! पुढवीकाइयावासा पन्नत्ता?
गोयमा! असंखेज्जा पुढवीकाइयावासा पन्नत्ता।
एवं जाव मनुस्सत्ति।
केवइया णं भंते! वाणमंतरावासा पन्नत्ता?
गोयमा! इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए रयणामयस्स कंडस्स जोयणसहस्सबाहल्लस्स उवरिं एगं जोयणसयं ओगाहेत्ता हेट्ठा चेगं जोयणसयं वज्जेत्ता मज्झे अट्ठसु जोयणसएसु, एत्थ णं वाणमंतराणं देवाणं तिरियमसंखेज्जा भोमेज्जनगरावाससयसहस्सा पन्नत्ता। ते णं भोमेज्जा नगरा बाहिं वट्टा अंतो चउरंसा, एवं जहा भवनवासीणं तहेव नेयव्वा, नवरं–पडागमालाउला सुरम्मा पासाईया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा।
केवइया णं भंते! जोइसियाणं विमानावासा पन्नत्ता?
गोयमा! Translated Sutra: भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीवों के आवास कितने कहे गए हैं ? गौतम ! पृथ्वीकायिक जीवों के असंख्यात आवास कहे गए हैं। इसी प्रकार जलकायिक जीवों से लेकर यावत् मनुष्यों तक के जानना चाहिए। भगवन् ! वाणव्यन्तरों के आवास कितने कहे गए हैं ? गौतम ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के एक हजार योजन मोटे रत्नमय कांड के एक सौ योजन ऊपर से अवगाहन | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 245 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइयाणं भंते! केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता?
गोयमा! जहन्नेणं दस वाससहस्साइं उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं ठिई पन्नत्ता।
अपज्जत्तगाणं भंते! नेरइयाणं केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता?
गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणवि अंतोमुहुत्तं।
पज्जत्तगाणं भंते! नेरइयाणं केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता?
गोयमा! जहन्नेणं दस वाससहस्साइं अंतोमुहुत्तूणाइं उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाइं।
इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए, एवं जाव विजय-वेजयंत-जयंत-अपराजियाणं भंते! देवाणं केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता?
गोयमा! जहन्नेणं बत्तीसं सागरोवमाइं उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं।
सव्वट्ठे Translated Sutra: भगवन् ! नारकों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? गौतम ! जघन्य स्थिति दश हजार वर्ष की और उत्कृष्ट स्थिति तैंतीस सागरोपम की कही गई है। भगवन् ! अपर्याप्तक नारकों की कितने काल तक स्थिति कही गई है ? गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त्त की और उत्कृष्ट भी स्थिति अन्तर्मुहूर्त्त की कही गई है। पर्याप्तक नारकियों की जघन्य | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 252 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कइविहे णं भंते! आउगबंधे पन्नत्ते?
गोयमा! छव्विहे आउगबंधे पन्नत्ते, तं जहा– जाइनामनिधत्ताउके गतिनामनिधत्ताउके ठिइ-नामनिधत्ताउके पएसनामनिधत्ताउके अणुभागनामनिधत्ताउके ओगाहणानामनिधत्ताउके।
नेरइयाणं भंते! कइविहे आउगबंधे पन्नत्ते?
गोयमा! छव्विहे पन्नत्ते, तं जहा– जातिनाम निधत्ताउके गइनामनिधत्ताउके ठिइनाम-निधत्ताउके पएसनामनिधत्ताउके अणुभागनामनिधत्ताउके ओगाहणानामनिधत्ताउके।
एवं जाव वेमाणियत्ति।
निरयगई णं भंते! केवइयं कालं विरहिया उववाएणं पन्नत्ता?
गोयमा! जहन्नेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं बारसमुहुत्ते।
एवं तिरियगई मनुस्सगई देवगई।
सिद्धिगई णं भंते! केवइयं Translated Sutra: भगवन् ! आयुकर्म का बन्ध कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! आयुकर्म का बन्ध छह प्रकार का कहा गया है। जैसे – जातिनामनिधत्तायुष्क, गतिनामनिधत्तायुष्क, स्थितिनामनिधत्तायुष्क, प्रदेशनामनिधत्तायुष्क, अनुभागनामनिधत्तायुष्क और अवगाहनानामनिधत्तायुष्क। भगवन् ! नारकों का आयुबन्ध कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 255 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं कप्पस्स समोसरणं णेयव्वं जाव गणहरा सावच्चा निरवच्चा वोच्छिन्ना।
जंबुद्दीवे णं दीवे भारहे वासे तीयाए ओसप्पिणीए सत्त कुलगरा होत्था, तं जहा– Translated Sutra: उस दुःषम – सुषमा काल में और उस विशिष्ट समय में (जब भगवान महावीर धर्मोपदेश करते हुए विहार कर रहे थे, तब) कल्पसूत्र के अनुसार समवसरण का वर्णन वहाँ तक करना चाहिए, जब तक कि सापतय (शिष्य – सन्तान – युक्त) सुधर्मास्वामी और निरपत्य (शिष्य – सन्तान – रहित शेष सभी) गणधर देव व्युच्छिन्न हो गए, अर्थात् सिद्ध हो गए। इस जम्बूद्वीप | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 257 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं दीवे भारहे वासे तीयाए उस्सप्पिणीए दस कुलगरा होत्था, तं जहा– Translated Sutra: इस जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में अतीतकाल की अवसर्पिणी में दश कुलकर हुए थे। जैसे – शतंजल, शतायु, अजितसेन, अनन्तसेन, कार्यसेन, भीमसेन, महाभीमसेन। तथा दृढ़रथ, दशरथ और शतरथ। सूत्र – २५७, २५८ | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 259 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] दढरहे दसरहे सतरहे ।
जंबुद्दीवे णं दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए सत्त कुलगरा होत्था, तं जहा– Translated Sutra: इस जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में इस अवसर्पिणी काल में सात कुलकर हुए। जैसे – विमलवाहन, चक्षुष्मान्, यशष्मान्, अभिचन्द्र, प्रसेनजित, मरुदेव और नाभिराय। सूत्र – २५९, २६० | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 263 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए चउवीसं तित्थगराणं पियरो होत्था, तं जहा– Translated Sutra: इस जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में इस अवसर्पिणी काल में चौबीस तीर्थंकरों के चौबीस पिता हुए। जैसे १.नाभि – राय, २. जितशत्रु, ३. जितारि, ४. संवर, ५. मेघ, ६. घर, ७. प्रतिष्ठ, ८. महासेन ९. सुग्रीव, १०. दृढ़रथ, ११. विष्णु, १२. वसुपूज्य, १३. कृतवर्मा, १४. सिंहसेन, १५. भानु, १६. विश्वसेन, १७. सूरसेन, १८. सुदर्शन, १९. कुम्भराज, २०. सुमित्र, २१. | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 289 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एएसि णं चउवीसाए तित्थगराणं चउवीसं पढमभिक्खादया होत्था, तं जहा– Translated Sutra: इन चौबीसो तीर्थंकरों को प्रथम बार भिक्षा देने वाले चौबीस महापुरुष हुए हैं। जैसे – १. श्रेयांस, २. ब्रह्मदत्त, ३. सुरेन्द्रदत्त, ४. इन्द्रदत्त, ५. पद्म, ६. सोमदेव, ७. माहेन्द्र, ८. सोमदत्त, ९. पुष्य, १०. पुनर्वसु, ११. पूर्णनन्द, १२. सुनन्द, १३. जय, १४. विजय, १५. धर्मसिंह, १६. सुमित्र, १७. वर्गसिंह, १८. अपराजित, १९. विश्वसेन, २०. | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 293 | Gatha | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एते विसुद्धलेसा, जिनवरभत्तीए पंजलिउडा य ।
तं कालं तं समयं, पडिलाभेई जिनवरिंदे ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २८९ | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 312 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं दीवे भरहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए बारस चक्कवट्टिपियरो होत्था, तं जहा– Translated Sutra: इस जम्बूद्वीप के इसी भारत वर्ष में इसी अवसर्पिणी काल में उत्पन्न हुए चक्रवर्तियों के बारह पिता थे। जैसे – १. ऋषभजिन, २. सुमित्र, ३. विजय, ४. समुद्रविजय, ५. अश्वसेन, ६. विश्वसेन, ७. सूरसेन, ८. कार्तवीर्य, ९. पद्मोत्तर, १०. महाहरि, ११. विजय और १२. ब्रह्म। ये बारह चक्रवर्तियों के पिताओं के नाम हैं। सूत्र – ३१२–३१४ |