Welcome to the Jain Elibrary: Worlds largest Free Library of JAIN Books, Manuscript, Scriptures, Aagam, Literature, Seminar, Memorabilia, Dictionary, Magazines & Articles
Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 299 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कइ णं भंते! सरीरा पन्नत्ता? गोयमा! पंच सरीरा पन्नत्ता, तं जहा–ओरालिए वेउव्विए आहारए तेयए कम्मए।
नेरइयाणं भंते! कइ सरीरा पन्नत्ता? गोयमा! तओ सरीरा पन्नत्ता, तं जहा–वेउव्विए तेयए कम्मए।
असुरकुमाराणं भंते! कइ सरीरा पन्नत्ता? गोयमा! तओ सरीरा पन्नत्ता, तं जहा–वेउव्विए तेयए कम्मए।
एवं तिन्नि-तिन्नि एए चेव सरीरा जाव थणियकुमाराणं भाणियव्वा।
पुढविकाइयाणं भंते! कइ सरीरा पन्नत्ता? गोयमा! तओ सरीरा पन्नत्ता, तं जहा–ओरालिए तेयए कम्मए।
एवं आउ-तेउ-वणस्सइकाइयाण वि एए चेव तिन्नि सरीरा भाणियव्वा।
वाउकाइयाणं भंते! कइ सरीरा पन्नत्ता? गोयमा! चत्तारि सरीरा पन्नत्ता, तं जहा–ओरालिए Translated Sutra: भगवन् ! शरीर कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! पाँच प्रकार – औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस, कार्मण। नैरयिकों के तीन शरीर हैं। – वैक्रिय, तैजस और कार्मण शरीर। असुरकुमारों के तीन शरीर हैं। वैक्रिय, तैजस और कार्मण। इसी प्रकार स्तनितकुमार पर्यन्त जानना। पृथ्वीकायिक जीवों के कितने शरीर हैं ? गौतम ! तीन, – औदारिक, तैजस और | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 301 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं गुणप्पमाणे? गुणप्पमाणे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–जीवगुणप्पमाणे य अजीवगुण-प्पमाणे य।
से किं तं अजीवगुणप्पमाणे? अजीवगुणप्पमाणे पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–वण्णगुणप्पमाणे गंधगुणप्पमाणे रसगुणप्पमाणे फासगुणप्पमाणे संठाणगुणप्पमाणे।
से किं तं वण्णगुणप्पमाणे? वण्णगुणप्पमाणे पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–कालवण्णगुणप्पमाणे नीलवण्णगुणप्प-माणे लोहियवण्णगुणप्पमाणे हालिद्दवण्णगुणप्पमाणे सुक्किलवण्णगुणप्पमाणे। से तं वण्णगुणप्पमाणे।
से किं तं गंधगुणप्पमाणे? गंधगुणप्पमाणे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–सुब्भिगंधगुणप्पमाणे दुब्भिगंधगुणप्पमाणे। से तं गंधगुणप्पमाणे।
से Translated Sutra: गुणप्रमाण क्या है ? दो प्रकार का है – जीवगुणप्रमाण और अजीवगुणप्रमाण। अजीवगुणप्रमाण पाँच प्रकार का है – वर्ग – गुणप्रमाण, गंधगुणप्रमाण, रसगुणप्रमाण, स्पर्शगुणप्रमाण और संस्थानगुणप्रमाण। भगवन् ! वर्णगुणप्रमाण क्या है ? पाँच प्रकार का है। कृष्णवर्णगुणप्रमाण यावत् शुक्लवर्णगुणप्रमाण। गंधगुणप्रमाण दो | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 304 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] परियरबंधेण भडं, जाणेज्जा महिलियं निवसणेणं ।
सित्थेण दोणपागं, कविं च एगाए गाहाए ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३०२ | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 309 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अग्गेयं वा वायव्वं वा अन्नयरं वा अप्पसत्थं उप्पायं पासित्ता तेणं साहिज्जइ, जहा–कुवुट्ठी भविस्सइ। से तं अनागयकालगहणं। से तं अनुमाणे।
से किं तं ओवम्मे? ओवम्मे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–साहम्मोवणीए य वेहम्मोवणीए य।
से किं तं साहम्मोवणीए? साहम्मोवणीए तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–किंचिसाहम्मे पायसाहम्मे सव्वसाहम्मे।
से किं तं किंचिसाहम्मे? किंचिसाहम्मे–जहा मंदरो तहा सरिसवो, जहा सरिसवो तहा मंदरो। जहा समुद्दो तहा गोप्पयं, जहा गोप्पयं तहा समुद्दो। जहा आइच्चो तहा खज्जोतो, जहा खज्जोतो तहा आइच्चो। जहा चंदो तहा कुंदो, जहा कुंदो तहा चंदो। से तं किंचिसाहम्मे।
से किं तं पायसाहम्मे? Translated Sutra: आग्नेय मंडल के नक्षत्र, वायव्य मंडल के नक्षत्र या अन्य कोई उत्पात देखकर अनुमान किया जाना कि कुवृष्टि होगी, ठीक वर्षा नहीं होगी। यह अनागतकालग्रहण अनुमान है। उपमान प्रमाण क्या है ? दो प्रकार का है, जैसे – साधर्म्योपनीत और वैधर्म्योपनीत। जिन पदार्थों की सदृशत उपमा द्वारा सिद्ध की जाए उसे साधर्म्योपनीत कहते | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 310 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नयप्पमाणे?
नयप्पमाणे तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–पत्थगदिट्ठंतेणं वसहिदिट्ठंतेणं पएसदिट्ठंतेणं।
से किं तं पत्थगदिट्ठंतेणं? पत्थगदिट्ठंतेणं–से जहानामए केइ पुरिसे परसुं गहाय अडविहुत्तो गच्छेज्जा, तं च केइ पासित्ता वएज्जा–कहिं भवं गच्छसि? अविसुद्धो नेगमो भणति–पत्थगस्स गच्छामि।
तं च केइ छिंदमाणं पासित्ता वएज्जा–किं भवं छिंदसि? विसुद्धो नेगमो भणति–पत्थगं छिंदामि।
तं च केइ तच्छेमाणं पासित्ता वएज्जा–किं भवं तच्छेसि? विसुद्धतराओ नेगमो भणति–पत्थगं तच्छेमि।
तं च केइ उक्किरमाणं पासित्ता वएज्जा–किं भवं उक्किरसि? विसुद्धतराओ नेगमो भणति–पत्थगं उक्किरामि।
तं Translated Sutra: नयप्रमाण क्या है ? वह तीन दृष्टान्तों द्वारा स्पष्ट किया गया है। जैसे कि – प्रस्थक के, वसति के और प्रदेश के दृष्टान्त द्वारा। भगवन् ! प्रस्थक का दृष्टान्त क्या है ? जैसे कोई पुरुष परशु लेकर वन की ओर जाता है। उसे देखकर किसीने पूछा – आप कहाँ जा रहे हैं ? तब अविशुद्ध नैगमनय के मतानुसार उसने कहा – प्रस्थक लेने के लिए | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 311 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं संखप्पमाणे? संखप्पमाणे अट्ठविहे पन्नत्ते, तं जहा–१. नामसंखा २. ठवणसंखा ३. दव्वसंखा ४. ओवम्मसंखा ५. परिमाणसंखा ६. जाणणासंखा ७. गणणासंखा ८. भावसंखा।
से किं तं नामसंखा? नामसंखा–जस्स णं जीवस्स वा अजीवस्स वा जीवाण वा अजीवाण वा तदुभयस्स वा तदु भयाण वा संखा ति नामं कज्जइ। से तं नामसंखा।
से किं तं ठवणसंखा? ठवणसंखा–जण्णं कट्ठकम्मे वा चित्तकम्मे वा पोत्थकम्मे वा लेप्पकम्मे वा गंथिमे वा वेढिमे वा पूरिमे वा संघाइमे वा अक्खे वा वराडए वा एगो वा अनेगा वा सब्भावठवणाए वा असब्भावठवणाए वा संखा ति ठवणा ठविज्जइ। से तं ठवणसंखा।
नाम-ट्ठवणाणं को पइविसेसो? नामं आवकहियं, ठवणा इत्तरिया Translated Sutra: संख्याप्रमाण क्या है ? आठ प्रकार का है। यथा – नामसंख्या, स्थापनासंख्या, द्रव्यसंख्या, औपम्यसंख्या, परिमाण – संख्या, ज्ञानसंख्या, गणनासंख्या, भावसंख्या। नामसंख्या क्या है ? जिस जीव का अथवा अजीव का अथवा जीवों का अथवा अजीवों का अथवा तदुभव का अथवा तदुभयों का संख्या ऐसा नामकरण कर लिया जाता है, उसे नामसंख्या कहते | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 322 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं समोयारे? समोयारे छव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–१. नामसमोयारे २. ठवणसमोयारे ३. दव्वसमोयारे ४. खेत्तसमोयारे ५. कालसमोयारे ६. भावसमोयारे।
नामट्ठवणाओ गयाओ जाव। से तं भवियसरीरदव्वसमोयारे।
से किं तं जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्ते दव्वसमोयारे? जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्ते दव्वसमोयारे तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–आयसमोयारे परसमोयारे तदुभयसमोयारे। सव्वदव्वा वि णं आयसमोयारेणं आयभावे समोयरंति, परसमोयारेणं जहा कुंडे वदराणि, तदुभयसमोयरेणं जहा घरे थंभो आयभावे य, जहा घडे गीवा आयभावे य।
अहवा जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्ते दव्वसमोयारे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–आयसमोयारे य Translated Sutra: समवतार क्या है ? समवतार के छह प्रकार हैं, जैसे – नामसमवतार, स्थापनासमवतार, द्रव्यसमवतार, क्षेत्रसमवतार, कालसमवतार और भावसमवतार। नाम और स्थापना (समवतार) का वर्णन पूर्ववत् जानना। द्रव्यसमवतार दो प्रकार का कहा है – आगमद्रव्यसमवतार, नोआगमद्रव्यसमवतार। यावत् आगमद्रव्यसमवतार का तथा नोआगमद्रव्यसमवतार के | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 336 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से तं नोआगमओ भावसामाइए। से तं भावसामाइए। से तं सामाइए। से तं नामनिप्फन्ने।
से किं तं सुत्तालावगनिप्फन्ने? सुत्तालावगनिप्फन्ने–इयाणिं सुत्तालावगनिप्फन्ने निक्खेवे इच्छावेइ, से य पत्त-लक्खणे वि न निक्खिप्पइ, कम्हा? लाघवत्थं। अओ अत्थि तइए अनुओगदारे अनुगमे त्ति। तत्थ निक्खित्ते इहं निक्खित्ते भवइ, इहं वा निक्खित्ते तत्थ निक्खित्ते भवइ, तम्हा इहं न निक्खिप्पइ तहिं चेव निक्खिप्पिस्सइ। से तं निक्खेवे। Translated Sutra: देखो सूत्र ३३० | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 295 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एएहिं वावहारियखेत्तपलिओवम-सागरोवमेहिं किं पओयणं? एएहिं वावहारिय-खेत्त-पलिओवम-सागरोवमेहिं नत्थि किंचिप्पओयणं केवलं पन्नवणट्ठं पन्नविज्जइ।
से तं वावहारिए खेत्तपलिओवमे।
से किं तं सुहुमे खेत्तपलिओवमे? सुहुमे खेत्तपलिओवमे – से जहानामए पल्ले सिया–जोयणं आयाम-विक्खं-भेणं, जोयणं उड्ढं उच्चत्तेणं, तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं; से णं पल्ले–
एगाहिय-बेयाहिय-तेयाहिय, उक्कोसेणं सत्तरत्तपरूढाणं ।
सम्मट्ठे सन्निचिते, भरिए वालग्गकोडीणं ॥
तत्थ णं एगमेगे वालग्गे असंखेज्जाइं खंडाइं कज्जइ, ते णं वालग्गा दिठ्ठीओगाहणाओ असंखेज्जइभागमेत्ता सुहुमस्स पणग-जीवस्स सरीरोगाहणाओ Translated Sutra: આ વ્યાવહારિક ક્ષેત્ર પલ્યોપમ અને સાગરોપમથી શું પ્રયોજન સિદ્ધ થાય છે ? તેનું કથન શા માટે કર્યું છે ? આ વ્યાવહારિક ક્ષેત્ર પલ્યોપમ – સાગરોપમથી કોઈ પ્રયોજન સિદ્ધ થતું નથી. તેની માત્ર પ્રરૂપણા કરાય છે. સૂક્ષ્મ ક્ષેત્ર પલ્યોપમ સમજવામાં તે સહાયક બને છે માટે તેની પ્રરૂપણા સૂત્રકારે કરી છે. આ વ્યાવહારિક ક્ષેત્ર | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 299 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कइ णं भंते! सरीरा पन्नत्ता? गोयमा! पंच सरीरा पन्नत्ता, तं जहा–ओरालिए वेउव्विए आहारए तेयए कम्मए।
नेरइयाणं भंते! कइ सरीरा पन्नत्ता? गोयमा! तओ सरीरा पन्नत्ता, तं जहा–वेउव्विए तेयए कम्मए।
असुरकुमाराणं भंते! कइ सरीरा पन्नत्ता? गोयमा! तओ सरीरा पन्नत्ता, तं जहा–वेउव्विए तेयए कम्मए।
एवं तिन्नि-तिन्नि एए चेव सरीरा जाव थणियकुमाराणं भाणियव्वा।
पुढविकाइयाणं भंते! कइ सरीरा पन्नत्ता? गोयमा! तओ सरीरा पन्नत्ता, तं जहा–ओरालिए तेयए कम्मए।
एवं आउ-तेउ-वणस्सइकाइयाण वि एए चेव तिन्नि सरीरा भाणियव्वा।
वाउकाइयाणं भंते! कइ सरीरा पन्नत्ता? गोयमा! चत्तारि सरीरा पन्नत्ता, तं जहा–ओरालिए Translated Sutra: [૧] હે ભગવન્! શરીરના કેટલા પ્રકાર છે? હે ગૌતમ! શરીરના પાંચ પ્રકાર છે, તે આ પ્રમાણે છે – ૧. ઔદારિક શરીર, ૨. વૈક્રિય શરીર, ૩. આહારક શરીર, ૪. તૈજસ શરીર, ૫. કાર્મણ શરીર. [૨] હે ભગવન્ ! નારકીઓને કેટલા શરીર છે ? હે ગૌતમ! નારકીઓને ત્રણ શરીર હોય છે, ૧. વૈક્રિય, ૨. તૈજસ, ૩. કાર્મણ. હે ભગવન્ ! અસુરકુમારને કેટલા શરીર હોય છે ? હે ગૌતમ! તેને | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 301 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं गुणप्पमाणे? गुणप्पमाणे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–जीवगुणप्पमाणे य अजीवगुण-प्पमाणे य।
से किं तं अजीवगुणप्पमाणे? अजीवगुणप्पमाणे पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–वण्णगुणप्पमाणे गंधगुणप्पमाणे रसगुणप्पमाणे फासगुणप्पमाणे संठाणगुणप्पमाणे।
से किं तं वण्णगुणप्पमाणे? वण्णगुणप्पमाणे पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–कालवण्णगुणप्पमाणे नीलवण्णगुणप्प-माणे लोहियवण्णगुणप्पमाणे हालिद्दवण्णगुणप्पमाणे सुक्किलवण्णगुणप्पमाणे। से तं वण्णगुणप्पमाणे।
से किं तं गंधगुणप्पमाणे? गंधगुणप्पमाणे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–सुब्भिगंधगुणप्पमाणे दुब्भिगंधगुणप्पमाणे। से तं गंधगुणप्पमाणे।
से Translated Sutra: [૧] ગુણપ્રમાણનું સ્વરૂપ કેવું છે ? ગુણપ્રમાણના બે ભેદ છે, તે આ પ્રમાણે છે – ૧. જીવ ગુણ પ્રમાણ ૨. અજીવ ગુણ પ્રમાણ. અલ્પ વક્તવ્ય હોવાથી પહેલા અજીવ ગુણ પ્રમાણનું વર્ણન કરે છે. અજીવગુણ પ્રમાણનું સ્વરૂપ કેવું છે ? અજીવગુણ પ્રમાણના પાંચ ભેદ છે, તે આ પ્રમાણે છે – ૧. વર્ગગુણ પ્રમાણ, ૨. ગંધગુણ પ્રમાણ, ૩. રસગુણ પ્રમાણ, ૪. સ્પર્શગુણ | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 13 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं दव्वावस्सयं?
दव्वावस्सयं दुविहं पन्नत्तं, तं जहा–आगमओ य नोआगमओ य। Translated Sutra: દ્રવ્ય આવશ્યકનું સ્વરૂપ કેવું છ ? દ્રવ્ય આવશ્યકના બે પ્રકાર કહ્યા છે, તે આ પ્રમાણે છે – ૧. આગમથી દ્રવ્ય આવશ્યક અને ૨. નોઆગમથી દ્રવ્ય આવશ્યક. | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 14 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं आगमओ दव्वावस्सयं?
आगमओ दव्वावस्सयं–जस्स णं आवस्सए त्ति पदं सिक्खियं ठियं जियं मियं परिजियं नामसमं धोससमं अहीनक्खरं अनच्चक्खरं अव्वाइद्धक्खरं अक्खलियं अमिलियं अवच्चामेलियं पडिपुण्णं पडिपुन्नघोसं कंठोट्ठविप्पमुक्कं गुरुवायणोवगयं, से णं तत्थ वायणाए पुच्छणाए परियट्टणाए धम्मकहाए, नो अनुप्पेहाए। कम्हा? अनुवओगो दव्वमिति कट्टु। Translated Sutra: આગમથી દ્રવ્ય આવશ્યકનું સ્વરૂપ કેવું છે ? આગમથી દ્રવ્યાવશ્યકનું સ્વરૂપ આ પ્રમાણે છે – જે સાધુએ આવશ્યક પદને શીખી લીધું હોય, સ્થિર કર્યું હોય, જિત, મિત, પરિજિત કર્યું હોય, નામસમ, ઘોષસમ, અહીનાક્ષર, અનત્યક્ષર, અવ્યાવિદ્ધાક્ષર, અસ્ખલિત, અમિલિત, અવ્યત્યામ્રેડિત રૂપે ઉચ્ચારણ કર્યું હોય, ગુરુ પાસે વાચના લીધી હોય, તેથી | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 15 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नेगमस्स एगो अनुवउत्तो आगमओ एगं दव्वावस्सयं, दोन्नि अनुवउत्ता आगमओ दोन्नि दव्वा-वस्सयाइं, तिन्नि अनुवउत्ता आगमओ तिन्नि दव्वावस्सयाइं, एवं जावइया अनुवउत्ता तावइयाइं ताइं नेगमस्स आगमओ दव्वावस्सयाइं।
एवमेव ववहारस्स वि।
संगहस्स एगो वा अनेगा वा अनुवउत्तो वा अनुवउत्ता वा आगमओ दव्वावस्सयं वा दव्वा-वस्सयाणि वा, से एगे दव्वावस्सए।
उज्जुसुयस्स एगो अनुवउत्तो आगमओ एगं दव्वावस्सयं, पुहत्तं नेच्छइ।
तिण्हं सद्दनयाणं जाणए अनुवउत्ते अवत्थू। कम्हा? जइ जाणए अनुवउत्ते न भवइ।
से तं आगमओ दव्वावस्सयं। Translated Sutra: નૈગમ નયના મતે એક અનુપયુક્ત આત્મા, આગમથી – એક દ્રવ્ય આવશ્યક છે. બે અનુપયુક્ત આત્મા, બે દ્રવ્ય આવશ્યક છે. ત્રણ અનુપયુક્ત આત્મા, આગમથી ત્રણ દ્રવ્ય આવશ્યક છે. આ રીતે જેટલા અનુપયુક્ત આત્મા, તેટલા આગમથી દ્રવ્ય આવશ્યક છે, તેવું નૈગમનયનું મંતવ્ય છે. નૈગમનયની જેમ જ વ્યવહાર નય આગમથી દ્રવ્ય આવશ્યકના ભેદો સ્વીકારે છે. સામાન્યને | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 16 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नोआगमओ दव्वावस्सयं।
नोआगमओ दव्वावस्सयं तिविहं पन्नत्तं, तं जहा–जाणगसरीरदव्वावस्सयं भवियसरीरदव्वा-वस्सयं जाणगसरीरभवियसरीरवतिरित्तं दव्वावस्सयं। Translated Sutra: નોઆગમથી દ્રવ્યાવશ્યકનું સ્વરૂપ કેવું છે? નોઆગમથી દ્રવ્યાવશ્યકના ત્રણ પ્રકાર છે, તે આ પ્રમાણે છે – ૧. જ્ઞાયકશરીર દ્રવ્યાવશ્યક, ૨. ભવ્યશરીર દ્રવ્યાવશ્યક, ૩. જ્ઞાયકશરીર ભવ્યશરીર વ્યતિરિક્ત દ્રવ્યાવશ્યક. | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 19 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्तं दव्वावस्सयं? जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्तं दव्वावस्सयं तिविहं पन्नत्तं, तं जहा–लोइयं कुप्पावयणियं लोगुत्तरियं। Translated Sutra: જ્ઞાયકશરીર – ભવ્યશરીર વ્યતિરિક્ત નોઆગમતઃ દ્રવ્યઆવશ્યકનું સ્વરૂપ કેવું છે ? જ્ઞાયકશરીર – ભવ્યશરીર વ્યતિરિક્ત દ્રવ્ય આવશ્યકના ત્રણ પ્રકાર છે. ૧. લૌકિક, ૨. કુપ્રાવચનિક, ૩. લોકોત્તરિક. | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 22 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं लोगुत्तरियं दव्वावस्सयं?
लोगुत्तरियं दव्वावस्सयं–जे इमे समणगुणमुक्कजोगी छक्कायनिरनुकंपा हया इव उद्दामा गया इव निरंकुसा घट्ठा मट्ठा तुप्पोट्ठा पंडुरपाउरणा जिनाणं अणाणाए सच्छंदं विहरिऊणं उभओकालं आवस्सयस्स उवट्ठंति।
से तं लोगुत्तरियं दव्वावस्सयं। से तं जाणगसरीर-भवियसरीरवतिरत्तं दव्वावस्सयं। से त्तं नोआगमओ दव्वावस्सयं। से तं दव्वावस्सयं। Translated Sutra: લોકોત્તરિક દ્રવ્ય આવશ્યકનું સ્વરૂપ કેવું છે ? જે સાધુ શ્રમણગુણોથી રહિત હોય, છકાય જીવ પ્રત્યે અનુકંપા રહિત હોવાથી જેની ચાલ અશ્વની જેમ ઉદ્દામ હોય, હાથીની જેમ નિરંકુશ હોય, સ્નિગ્ધ પદાર્થના માલિશ દ્વારા અંગ – પ્રત્યંગને કોમળ રાખતા હોય, પાણીથી વારંવાર શરીરને ધોતા હોય અથવા તેલથી વાળ – શરીરને સંસ્કારિત કરતા હોય, | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 23 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं भावावस्सयं?
भावावस्सयं दुविहं पन्नत्तं, तं जहा–आगमओ य नोआगमओ य। Translated Sutra: ભાવાવશ્યકનું સ્વરૂપ કેવું છે ? ભાવાવશ્યકના બે પ્રકાર છે, ૧. આગમથી ભાવ આવશ્યક ૨. નોઆગમથી ભાવાવશ્યક. | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 24 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं आगमओ भावावस्सयं?
आगमओ भावावस्सयं–जाणए उवउत्ते। से तं आगमओ भावावस्सयं। Translated Sutra: આગમથી ભાવાવશ્યકનું સ્વરૂપ કેવું છે ? આવશ્યક પદના જ્ઞાતા હોય અને તેમાં ઉપયોગ યુક્ત હોય તે આગમથી ભાવાવશ્યક છે. | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 25 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नोआगमओ भावावस्सयं?
नोआगमओ भावावस्सयं तिविहं पन्नत्तं, तं जहा–लोइयं कुप्पावयणियं लोगुत्तरियं। Translated Sutra: નોઆગમથી ભાવાવશ્યકનું સ્વરૂપ કેવું છે ? નોઆગમથી ભાવાવશ્યકના ત્રણ પ્રકાર છે – લૌકિક, કુપ્રાવચનિક અને લોકોત્તરિક. | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 26 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं लोइयं भावावस्सयं?
लोइयं भावावस्सयं–पुव्वण्हे भारहं, अवरण्हे रामायणं।
से तं लोइयं भावावस्सयं। Translated Sutra: લૌકિક નોઆગમથી ભાવાવશ્યકનું સ્વરૂપ કેવું છે ? પૂર્વાહ્નકાળ – દિવસના પૂર્વભાગમાં મહાભારત અને અપરાહ્નકાળ – દિવસના પશ્ચાત્ ભાગમાં રામાયણનું વાંચન, શ્રવણરૂપ સ્વાધ્યાય કરવી, તે લૌકિક ભાવાવશ્યક કહેવાય છે. આ લૌકિક ભાવ આવશ્યકનું વર્ણન પૂર્ણ થયું. | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 28 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं लोगुत्तरियं भावावस्सयं?
लोगुत्तरियं भावावस्सयं–जण्णं इमं समणे वा समणी वा सावए वा साविया वा तच्चित्ते तम्मणे तल्लेसे तदज्झवसिए तत्तिव्वज्झवसाणे तदट्ठोवउत्ते तदप्पियकरणे तब्भावणाभाविए अन्नत्थ कत्थइ मणं अकरेमाणे उभओ कालं आवस्सयं करेति।
से तं लोगुत्तरियं भावावस्सयं। से तं नोआगमओ भावावस्सयं। से तं भावावस्सयं। Translated Sutra: લોકોત્તરિક ભાવ આવશ્યકનું સ્વરૂપ કેવું છે ? દત્તચિત્ત બની, મનને એકાગ્ર કરી, શુભલેશ્યા અને તન્મય અધ્યવસાય યુક્ત બની, તીવ્ર આત્મ પરિણામથી, આવશ્યકના અર્થમાં ઉપયુક્ત બની, શરીરાદિ કરણને તેમાં અર્પિત કરી, તેની ભાવનાથી ભાવિત બની, અન્ય કોઈ વિષયમાં મનને જવા દીધા વિના જે સાધુ, સાધ્વી, શ્રાવક કે શ્રાવિકા ઉભયકાળ આવશ્યક | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 29 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं इमे एगट्ठिया नानाघोसा नानावंजणा नामधेज्जा भवंति तं जहा– Translated Sutra: આવશ્યકના વિવિધ ઘોષ – સ્વરવાળા અને અનેક વ્યંજનવાળા, એકાર્થક એવા અનેક નામ આ પ્રમાણે છે – ૧. આવશ્યક, ૨. અવશ્યકરણીય, ૩. ધ્રુવનિગ્રહ, ૪. વિશોધિ, ૫. અધ્યયન ષટ્કવર્ગ, ૬. ન્યાય, ૭. આરાધના, ૮. માર્ગ. શ્રમણો અને શ્રાવકો દ્વારા દિવસ અને રાત્રિના અંત ભાગમાં અવશ્ય કરવા યોગ્ય હોવાથી તેનું નામ આવશ્યક છે. આ આવશ્યકનું સ્વરૂપ વર્ણન | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 36 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं दव्वसुयं?
दव्वसुयं दुविहं पन्नत्तं, तं जहा–आगमओ य नोआगमओ य। Translated Sutra: સૂત્ર– ૩૬. દ્રવ્યશ્રુતનું સ્વરૂપ કેવું છે ? દ્રવ્યશ્રુતના બે પ્રકાર છે, તે આ પ્રમાણે છે – ૧. આગમથી દ્રવ્યશ્રુત, ૨. નોઆગમથી દ્રવ્યશ્રુત. સૂત્ર– ૩૭. આગમથી દ્રવ્યશ્રુતનું સ્વરૂપ કેવું છે ? જે સાધુએ ‘શ્રુત’ આ પદ શીખ્યુ હતુ, સ્થિર, જિત, મિત, પરિજિત કર્યુ હતુ યાવત્ જ્ઞાયક હોય તે અનુપયુક્ત ન હોય ત્યાં સુધીનો સૂત્રપાઠ | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 37 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं आगमओ दव्वसुयं?
आगमओ दव्वसुयं–जस्स णं सुए त्ति पदं सिक्खियं ठियं जिय मियं परिजियं नामसमं घोससमं अहीनक्खरं अनच्चक्खरं अव्वाइद्धक्खरं अक्खलियं अमिलियं अवच्चामेलियं पडिपुण्णं पडिपुन्नघोसं कठोट्ठविप्पमुक्कं गुरुवायणोवगयं, से णं तत्थ वायणाए पुच्छणाए परियट्टणाए धम्मकहाए, नो अनुप्पेहाए। कम्हा? अनुवओगो दव्वमिति कट्टु।
नेगमस्स एगो अनुवउत्तो आगमओ एगं दव्वसुयं, दोन्नि अनुवउत्ता आगमओ दोन्नि दव्वसुयाइं, तिन्नि अनुवउत्ता आगमओ तिन्नि दव्वसुयाइं, एवं जावइया अनुवउत्ता तावइयाइं ताइं नेगमस्स आगमओ दव्वसुयाइं।
एवमेव ववहारस्स वि।
संगहस्स एगो वा अनेगा वा अनुवउत्तो Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૩૬ | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 38 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नोआगमओ दव्वसुयं?
नोआगमओ दव्वसुयं तिविहं पन्नत्तं, तं जहा–जाणगसरीरदव्वसुयं भवियसरीरदव्वसुयं जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्तं दव्वसुयं। Translated Sutra: સૂત્ર– ૩૮. નોઆગમથી દ્રવ્યશ્રુતનું સ્વરૂપ કેવું છે ? નોઆગમથી દ્રવ્યશ્રુતના ત્રણ પ્રકાર છે, તે આ પ્રમાણે છે – ૧. જ્ઞાયકશરીર દ્રવ્યશ્રુત, ૨. ભવ્યશરીર દ્રવ્યશ્રુત, ૩. તદ્વ્યતિરિક્ત દ્રવ્યશ્રુત. સૂત્ર– ૩૯. જ્ઞાયકશરીર દ્રવ્યશ્રુતનું સ્વરૂપ કેવું છે ? શ્રુતપદના અર્થાધિકારના જ્ઞાતાનું વ્યપગત, ચ્યુત, ચ્યાવિત, ત્યક્ત, | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 41 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्तं दव्वसुयं?
जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्तं दव्वसुयं–पत्तय-पोत्थय-लिहियं।
अहवा सुयं पंचविहं पन्नत्तं, तं जहा–अंडयं बोंडयं कीडयं वालयं वक्कयं।
से किं तं अंडयं?
अंडयं–हंसगब्भाइ। से तं अंडयं।
से किं तं बोंडयं?
बोंडयं–फलिहमाइ। से तं बोंडयं।
से किं तं कीडयं?
कीडयं पंचविहं पन्नत्तं, तं जहा–पट्टे मलए अंसुए चीणंसुए किमिरागे। से तं कीडयं।
से किं तं वालयं?
वालयं पंचविहं पन्नत्तं, तं जहा–उन्निए उट्टिए मियलोमिए कुतवे किट्टिसे। से तं वालयं।
से किं तं वक्कयं? वक्कयं–सणमाइ। से तं वक्कयं।
से तं जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्तं दव्वसुयं।
से तं Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૩૮ | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 42 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं भावसुयं?
भावसुयं दुविहं पन्नत्तं, तं जहा–आगमओ य नोआगमओ य। Translated Sutra: સૂત્ર– ૪૨. ભાવશ્રુતનું સ્વરૂપ કેવું છે ? ભાવશ્રુતના બે પ્રકાર છે. તે આ પ્રમાણે છે, આગમભાવશ્રુત અને નોઆગમભાવશ્રુત. સૂત્ર– ૪૩. આગમભાવશ્રુતનું સ્વરૂપ કેવું છે ? ઉપયોગયુક્ત શ્રુતપદના જ્ઞાતા આગમભાવશ્રુત છે. આ આગમભાવશ્રુતનું લક્ષણ છે. સૂત્ર સંદર્ભ– ૪૨, ૪૩ | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 43 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं आगमओ भावसुयं?
आगमओ भावसुयं–जाणए उवउत्ते। से तं आगमओ भावसुयं। Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪૨ | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 44 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नोआगमओ भावसुयं?
नोआगमओ भावसुयं दुविहं पन्नत्तं, तं जहा–लोइयं लोगुत्तरियं। Translated Sutra: સૂત્ર– ૪૪. નોઆગમ ભાવશ્રુતનું સ્વરૂપ કેવું છે? નોઆગમ ભાવશ્રુતના બે પ્રકાર છે. લૌકિક ભાવશ્રુત અને લોકોત્તરિક ભાવશ્રુત. સૂત્ર– ૪૫. લૌકિક ભાવશ્રુતનું સ્વરૂપ કેવું છે ? અજ્ઞાની, મિથ્યાદૃષ્ટિઓ દ્વારા પોતાની સ્વચ્છંદ મતિથી રચિત સર્વ ગ્રંથો લૌકિક ભાવશ્રુત છે. સૂત્ર સંદર્ભ– ૪૪, ૪૫ | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 46 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं लोगुत्तरियं भावसुयं?
लोगुत्तरियं भावसुयं– जं इमं अरहंतेहिं भगवंतेहिं उप्पन्ननाणदंसणधरेहिं तीय-पडुप्पन्न मनागयजाणएहिं सव्वन्नूहिं सव्वदरिसीहिं तेलोक्कचहिय-महियपूइएहिं पणीयं दुवालसंगं गणि-पिडगं, तं जहा–
१.आयारो २. सूयगडो ३. ठाणं ४. समवाओ ५. वियाहपन्नत्ती ६. नायाधम्मकहाओ ७. उवासगदसाओ ८. अंतगडदसाओ ९. अनुत्तरोव-वाइयदसाओ १०. पण्हावागरणाइं ११. विवागसुयं १२. दिट्ठिवाओ।
से तं लोगुत्तरियं भावसुयं। से तं नोआगमओ भावसुयं। से तं भावसुयं। Translated Sutra: લોકોત્તરિક ભાવશ્રુતનું સ્વરૂપ કેવું છે ? ઉત્પન્ન જ્ઞાન – દર્શનને ધારણ કરનાર, ભૂત – ભવિષ્ય, વર્તમાનકાલિક પદાર્થને જાણનાર, સર્વજ્ઞ, સર્વદર્શી, ત્રિલોકવર્તી જીવો દ્વારા અવલોકિત, મહિત, પૂજિત, અપ્રતિહત, શ્રેષ્ઠ જ્ઞાન – દર્શનના ધારક એવા અરિહંત ભગવાન દ્વારા પ્રણીત ૧. આચાર, ૨. સૂયગડ, ૩. ઠાણ, ૪. સમવાય, ૫. વ્યાખ્યાપ્રજ્ઞપ્તિ, | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 47 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं इमे एगट्ठिया नाणाघोसा नाणावंजणा नामधेज्जा भवंति, तं जहा– Translated Sutra: ઉદાત્તાદિ વિવિધ સ્વરો ‘ક’ કારાદિ અનેક વ્યંજનોથી યુક્ત તે શ્રુતના, એક અર્થવાચી – પર્યાયવાચી નામ આ પ્રમાણે છે – ૧. શ્રુત, ૨. સૂત્ર, ૩. ગ્રંથ, ૪. સિદ્ધાંત, ૫. શાસન, ૬. આજ્ઞા, ૭. વચન, ૮. ઉપદેશ, ૯. પ્રજ્ઞાપના, ૧૦. આગમ. આ બધા શ્રુતના પર્યાયવાચી નામ છે. આ રીતે શ્રુતની વક્તવ્યતા પૂર્ણ થઈ. સૂત્ર સંદર્ભ– ૪૭–૪૯ | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 48 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सुय सुत्त गंथ सिद्धंत, सासने आण वयण उवएसे ।
पन्नवण आगमे य, एगट्ठा पज्जवा सुत्ते ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪૭ | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 51 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नामखंधे?
नामखंधे–जस्स णं जीवस्स वा अजीवस्स वा जीवाण वा अजीवाण तदुभयस्स वा तदुभवाण वा खंधे त्ति नामं कज्जइ।
से तं नामखंधे।
से किं तं ठवणाखंधे?
ठवणाखंधे जण्णं कट्ठकम्मे वा वित्तकम्मे वा पोत्थकम्मे वा लेप्पकम्मे वा गंथिमे वा वेढिमे वा पूरिमे वा संघाइमे वा अक्खे वा वराडए वा एगो वा अनेगा वा सब्भावठवणाए वा असब्भावठवणाए वा खंधे त्ति ठवणा ठविज्जइ।
से तं ठवणाखंधे।
नामट्ठवणाणं को पइविसेसो? नामं आवकहियं, ठवणा इत्तरिया वा होज्जा आवकहिया वा। Translated Sutra: સૂત્ર– ૫૧. નામસ્કંધનું સ્વરૂપ કેવું છે ? જે કોઈ જીવનું કે અજીવનું યાવત્ સ્કંધ એવું નામ રાખવું તેને નામસ્કંધ કહે છે. સ્થાપના સ્કંધનું સ્વરૂપ કેવું છે ? કાષ્ઠમાં યાવત્ ‘આ સ્કંધ છે’ તેવો જ આરોપ કરવો, તે સ્થાપના સ્કંધ છે. નામ અને સ્થાપનામાં શું તફાવત છે ? નામ યાવત્કથિક છે, સ્થાપના ઇત્વરિક – સ્વલ્પકાલિક પણ હોય છે | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 52 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं दव्वखंधे?
दव्वक्खंधे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–आगमओ य नोआगमओ य।
से किं तं आगमओ दव्वखंधे?
आगमओ दव्वखंधे–जस्स णं खंधे त्ति पदं सिक्खियं सेसं जहा दव्वा-वस्सए तहा भाणियव्वं नवरं खंधाभिलाओ जाव से किं तं जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्ते दव्वखंधे जाणगसरीर-भविय-सरीर-वतिरित्ते दव्वखंधे तिविहे पन्नत्ते तं जहा–सचित्ते अचित्ते मीसए। Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫૧ | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 59 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं अनेगदवियखंधे? अनेगदवियखंधे–तस्सेव देसे अवचिए तस्सेव देसे उवचिए।
से तं अनेगदवियखंधे। से तं जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्ते दव्वखंधे। से तं दव्वखंधे। Translated Sutra: અનેક દ્રવ્યસ્કંધનું સ્વરૂપ કેવું છે ? જેનો એકદેશ અપચિત અને એકદેશ ઉપચિત હોય તે અનેક દ્રવ્યસ્કંધ કહેવાય છે. આ જ્ઞાયકશરીર – ભવ્યશરીર વ્યતિરિક્ત દ્રવ્યસ્કંધ સ્વરૂપ છે, આ નોઆગમથી દ્રવ્યસ્કંધ સ્વરૂપ છે. આ સમુચ્ચય દ્રવ્યસ્કંધ છે. | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 60 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं भावखंधे?
भावखंधे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–आगमओ य नोआगमओ य। Translated Sutra: સૂત્ર– ૬૦. ભાવસ્કંધનું સ્વરૂપ કેવું છે ? ભાવસ્કંધના બે પ્રકાર છે. તે આ પ્રમાણે છે – આગમતઃ ભાવસ્કંધ અને નોઆગમતઃ ભાવસ્કંધ. સૂત્ર– ૬૧. આગમતઃ ભાવસ્કંધનું સ્વરૂપ કેવું છે ? સ્કંધપદના અર્થમાં ઉપયોગવાન જ્ઞાતા આગમતઃ ભાવસ્કંધ છે. સૂત્ર સંદર્ભ– ૬૦, ૬૧ | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 61 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं आगमओ भावखंधे?
आगमओ भावखंधे–जाणए उवउत्ते। से तं आगमओ भावखंधे। Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૬૦ | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 62 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नोआगमओ भावखंधे?
नोआगमओ भावखंधे–एएसिं चेव सामाइय-माइयाणं छण्हं अज्झयणाणं समुदय-समिति-समागमेणं निप्फन्ने आवस्सयसुयखंधे भावखंधे त्ति लब्भइ।
से तं नोआगमओ भावखंधे। से तं भावखंधे। Translated Sutra: આ સામાયિક વગેરે છ અધ્યયનો એકત્રિત થવાથી જે સમુદાય સમૂહ આવશ્યક સૂત્ર રૂપ એક શ્રુતસ્કંધ થાય છે. તે નોઆગમથી ભાવસ્કંધ કહેવાય છે. આ નોઆગમથી ભાવસ્કંધનું સ્વરૂપ છે. ભાવસ્કંધનું સ્વરૂપ પૂર્ણ થયું. | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 70 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं उवक्कमे?
उवक्कमे छव्वीहे पन्नत्ते तं जहा–१. नामोवक्कमे २. ठवणोवक्कमे ३. दव्वोवक्कमे ४. खेत्तोवक्कमे ५. कालोवक्कमे ६. भावोवक्कमे। से नामट्ठवणाओ गयाओ ।
से किं तं दव्वोवक्कमे? दव्वोवक्कमे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–आगमओ य नोआगमओ य।
से किं तं आगमओ दव्वोवक्कमे?
आगमओ दव्वोवक्कमे–जस्स णं उवक्कमे त्ति पदं सिक्खियं ठियं जियं मियं परिजियं नामसमं घोससमं अहीनक्खरं अनच्चक्खरं अव्वाइद्धक्खरं अक्खलियं अमिलियं अवच्चामेलियं पडिपुण्णं पडिपुन्नघोसं कंठोट्ठविप्पमुक्कं गुरुवायणोवगयं, से णं तत्थ वायणाए पुच्छणाए परियट्टणाए धम्मकहाए,
नो अनुप्पेहाए। कम्हा? अनुवओगो Translated Sutra: [૧] ઉપક્રમનું સ્વરૂપ કેવું છે ? ઉપક્રમના છ ભેદ છે, તે આ પ્રમાણે છે – ૧. નામોપક્રમ, ૨. સ્થાપનોપક્રમ, ૩. દ્રવ્યોપક્રમ, ૪. ક્ષેત્રોપક્રમ, ૫. કાલોપક્રમ, ૬. ભાવોપક્રમ. [૨] નામ અને સ્થાપના ઉપક્રમનું સ્વરૂપ, નામસ્થાપના આવશ્યક પ્રમાણે જાણવુ અર્થાત્ કોઈ સચેતન કે અચેતન વસ્તુનું ઉપક્રમ એવુ નામ રાખવુ, તે નામ ઉપક્રમ અને કોઈ પદાર્થમાં | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 75 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं अचित्ते दव्वोवक्कमे?
अचित्ते दव्वोवक्कमे–खंडाईणं गुडाईणं मच्छंडीणं। से तं अचित्ते दव्वोवक्कमे। Translated Sutra: સૂત્ર– ૭૫. અચિત્ત દ્રવ્યોપક્રમનું સ્વરૂપ કેવું છે ? ખાંડ, ગોળ, મિશ્રીસાકર. વગેરેમાં મધુરતાની વૃદ્ધિ થાય તેવા પ્રયત્ન અથવા વિનાશ થાય તેવા પ્રયત્ન તે અચિત્ત દ્રવ્ય ઉપક્રમ કહેવાય છે. સૂત્ર– ૭૬. મિશ્ર દ્રવ્યોપક્રમનું સ્વરૂપ કેવું છે ? સ્થાસક, આભલા વગેરેથી વિભૂષિત તે પૂર્વોક્ત અશ્વ વગેરે સંબંધી ઉપક્રમ તે મિશ્ર | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 76 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं मीसए दव्वोवक्कमे?
मीसए दव्वोवक्कमे–से चेव थासगआयंसगाइमंडिए आसाइ।
से तं मीसए दव्वोवक्कमे। से तं जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्ते दव्वोवक्कमे। से तं नोआगमओ दव्वोवक्कमे। से तं दव्वोवक्कमे। Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૭૫ | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 79 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं भावोवक्कमे?
भावोवक्कमे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–आगमओ य नोआगमओ य।
से किं तं आगमओ भावोवक्कमे? आगमओ भावोवक्कमे–जाणए उवउत्ते।
से तं आगमओ भावोवक्कमे।
से किं तं नोआगमओ भावोवक्कमे?
नोआगमओ भावोवक्कमे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–पसत्थे य अपसत्थे य।
से किं तं अपसत्थे भावोवक्कमे?
अपसत्थे भावोवक्कमे–डोडिणि-गणिया अमच्चाईणं। से तं अपसत्थे भावोवक्कमे।
से किं तं पसत्थे भावोवक्कमे?
पसत्थे भावोवक्कमे–गुरुमाईणं।
से तं पसत्थे भावोवक्कमे।से तं नोआगमओ भावोवक्कमे।
से तं भावोवक्कमे। से तं उवक्कमे। Translated Sutra: ભાવોપક્રમનું સ્વરૂપ કેવું છે ? ભાવોપક્રમના બે પ્રકાર છે, તે આ પ્રમાણે છે – ૧. આગમથી ભાવોપક્રમ, ૨. નોઆગમથી ભાવોપક્રમ. આગમથી ભાવોપક્રમનું સ્વરૂપ કેવું છે ? ઉપક્રમના અર્થના જ્ઞાતા, તેમાં ઉપયોગવાન હોય તે આગમથી ભાવોપક્રમ કહેવાય છે. નોઆગમથી ભાવોપક્રમનું સ્વરૂપ કેવું છે ? નોઆગમથી ભાવ ઉપક્રમના બે પ્રકાર છે. ૧. પ્રશસ્ત | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 82 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नामानुपुव्वी?
नामानुपुव्वी– जस्स णं जीवस्स वा अजीवस्स वा जीवाण वा अजीवाण वा तदुभयस्स वा तदुभयाण वा आनुपुव्वी त्ति नामं कज्जइ। से तं नामानुपुव्वी।
से किं तं ठवणानुपुव्वी?
ठवणानुपुव्वी– जण्णं कट्ठकम्मे वा चित्तकम्मे वा पोत्थकम्मे वा लेप्पकम्मे वा गंथिमे वा वेढिमे वा पूरिमे वा संघाइमे वा अक्खे वा वराडए वा एगो वा अनेगा वा सब्भावठवणाए वा असब्भाव-ठवणाए वा आनुपुव्वी त्ति ठवणा ठविज्जइ। से तं ठवणानुपुव्वी।
नाम-ट्ठवणाणं को पइविसेसो? नामं आवकहियं, ठवणा इत्तरिया वा होज्जा आवकहिया वा।
से किं तं दव्वानुपुव्वी?
दव्वानुपुव्वी दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–आगमओ य नोआगमओ Translated Sutra: નામાનુપૂર્વી અને સ્થાપનાનુપૂર્વીનું સ્વરૂપ કેવું છે ? નામ અને સ્થાપના આનુપૂર્વીના સ્વરૂપ નામ અને સ્થાપના આવશ્યકની જેમ જાણવુ. દ્રવ્યાનુપૂર્વીના સ્વરૂપ વર્ણનમાં ભવ્યશરીર દ્રવ્યાનુપૂર્વી સુધીનું સભેદ વર્ણન દ્રવ્ય આવશ્યક પ્રમાણે જાણવુ. ‘જાવ’ શબ્દથી તે સૂચિત કર્યું છે.. જ્ઞાયકશરીર – ભવ્યશરીર વ્યતિરિક્ત | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 94 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नेगम-ववहाराणं आनुपुव्विदव्वाइं लोगस्स कति भागे होज्जा– किं संखेज्जइभागे होज्जा? असंखेज्जइभागे होज्जा? संखेज्जेसु भागेसु होज्जा? असंखेज्जेसु भागेसु होज्जा? सव्वलोए होज्जा?
एगदव्वं पडुच्च लोगस्स संखेज्जइभागे वा होज्जा, असंखेज्जइभागे वा होज्जा, संखेज्जेसु भागेसु वा होज्जा, असंखेज्जेसु भागेसु वा होज्जा, सव्वलोए वा होज्जा। नाणादव्वाइं पडुच्च नियमा सव्वलोए होज्जा।
नेगम-ववहाराणं अनानुपुव्विदव्वाइं लोगस्स कति भागे होज्जा–किं संखेज्जइभागे होज्जा? असंखेज्जइभागे होज्जा? संखेज्जेसु भागेसु होज्जा? असंखेज्जेसु भागेसु होज्जा? सव्वलोए होज्जा?
एगदव्वं पडुच्च Translated Sutra: નૈગમ વ્યવહાર નય સંમત આનુપૂર્વી દ્રવ્ય લોકના કેટલા ભાગમાં અવગાઢ હોય છે ? શું લોકના સંખ્યાતમા ભાગમાં, અસંખ્યાતમાં ભાગમાં, સંખ્યાત ભાગોમાં કે અસંખ્યાત ભાગોમાં અવગાઢ હોય છે કે સર્વલોકમાં અવગાઢ હોય છે ? કોઈ એક આનુપૂર્વી દ્રવ્યની અપેક્ષાએ તે લોકના સંખ્યાતમા ભાગમાં અથવા લોકના અસંખ્યાતમા ભાગમાં અથવા લોકના સંખ્યાત | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 95 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नेगम-ववहाराणं आनुपुव्विदव्वाइं लोगस्स कति भागं फुसंति–किं संखेज्जइभागं फुसंति? असंखेज्जइभागं फुसंति? संखेज्जे भागे फुसंति? असंखेज्जे भागे फुसंति? सव्वलोगं फुसंति?
एगदव्वं पडुच्च लोगस्स संखेज्जइभागं वा फुसंति, असंखेज्जइभागं वा फुसंति, संखेज्जे भागे वा फुसंति, असंखेज्जे भागे वा फुसंति, सव्वलोगं वा फुसंति। नाणादव्वाइं पडुच्च नियमा सव्वलोगं फुसंति।
नेगम-ववहाराणं अनानुपुव्विदव्वाणं पुच्छा। एगदव्वं पडुच्च नो संखेज्जइभागं फुसंति, असंखेज्जइभागं फुसंति नो संखेज्जे भागे फुसंति, नो असंखेज्जे भागे फुसंति, नो सव्वलोगं फुसंति। नाणादव्वाइं पडुच्च नियमा सव्वलोगं Translated Sutra: નૈગમ વ્યવહાર નય સંમત આનુપૂર્વી દ્રવ્ય શું લોકના સંખ્યાતમા ભાગને, અસંખ્યાતમા ભાગને, સંખ્યાત ભાગોને, અસંખ્યાત ભાગોને સ્પર્શે છે કે સર્વલોકને સ્પર્શે છે ? નૈગમ વ્યવહાર નય સંમત એક આનુપૂર્વી દ્રવ્ય લોકના સંખ્યાતમા ભાગને, અસંખ્યાતમા ભાગને, સંખ્યાત ભાગોને, અસંખ્યાત ભાગોને અથવા સર્વલોકને સ્પર્શે છે. અનેક આનુપૂર્વી | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 104 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं संगहस्स भंगोवदंसणया?
संगहस्स भंगोवदंसणया–१. तिपएसिया आनुपुव्वी २. परमाणुपोग्गला अनानुपुव्वी ३. दुपएसिया अवत्तव्वए अहवा ४. तिपएसिया य परमाणुपोग्गला य आनुपुव्वी य अनानुपुव्वी य अहवा ५. तिप-एसिया य दुपएसिया य आनुपुव्वी य अवत्तव्वए य अहवा ६. परमाणुपोग्गला य दुपएसिया य अनानुपुव्वी य अवत्तव्वए य अहवा ७. तिपएसिया य परमाणुपोग्गला य दुपएसिया य आनुपुव्वी य अनानुपुव्वी य अवत्तव्वए य। [एवं एए सत्त भंगा?] ।
से तं संगहस्स भंगोवदंसणया। Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૦૪. સંગ્રહ નય સંમત ભંગોપદર્શનતાનું સ્વરૂપ કેવું છે ? ભંગોના નામ વાચ્યાર્થ સહિત બતાવવા તે ભંગોપદર્શનતા કહેવાય છે. અર્થ સહિત તે ભંગો આ પ્રમાણે બને છે. અસંયોગી ત્રણ ભંગ – ૧. ત્રિપ્રદેશી સ્કંધ આનુપૂર્વી છે. ૨. પરમાણુ પુદ્ગલ અનાનુપૂર્વી છે. ૩. દ્વિપ્રદેશી સ્કંધ અવક્તવ્ય છે. દ્વિસંયોગી ત્રણ ભંગ – ૧. ત્રિપ્રદેશી | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 108 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] संगहस्स आनुपुव्विदव्वाइं किं अत्थि? नत्थि? नियमा अत्थि। एवं दोन्नि वि।
संगहस्स आनुपुव्विदव्वाइं किं संखेज्जाइं? असंखेज्जाइं? अनंताइं?
नो संखेज्जाइं नो असंखेज्जाइं नो अनंताइं, नियमा एगो रासी। एवं दोन्नि वि।
संगहस्स आनुपुव्विदव्वाइं लोगस्स कति भागे होज्जा–किं संखेज्जइभागे होज्जा? असंखे-ज्जइभागे होज्जा? संखेज्जेसु भागेसु होज्जा? असंखेज्जेसु भागेसु होज्जा? सव्वलोए होज्जा?
नो संखेज्जइभागे होज्जा, नो असंखेज्जइभागे होज्जा, नो संखेज्जेसु भागेसु होज्जा, नो असंखेज्जेसु भागेसु होज्जा, नियमा सव्वलोए होज्जा। एवं दोन्नि वि।
संगहस्स आनुपुव्विदव्वाइं लोगस्स कति Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૦૪ | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 111 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अहवा ओवनिहिया दव्वानुपुव्वी तिविहा पन्नत्ता, तं जहा– पुव्वानुपुव्वी पच्छानुपुव्वी अनानुपुव्वी।
से किं तं पुव्वानुपुव्वी? पुव्वानुपुव्वी–परमाणुपोग्गले दुपएसिए तिपएसिए जाव दसपएसिए संखेज्जपएसिए असंखेज्जपएसिए अनंतपएसिए। से तं पुव्वानुपुव्वी।
से किं तं पच्छानुपुव्वी? पच्छानुपुव्वी–अनंतपएसिए असंखेज्जपएसिए संखेज्जपएसिए दसपएसिए जाव तिपएसिए दुपएसिए परमाणुपोग्गले। से तं पच्छानुपुव्वी।
से किं तं अनानुपुव्वी? अनानुपुव्वी–एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए अनंतगच्छगयाए सेढीए अन्नमन्नब्भासो दुरूवूणो। से तं अनानुपुव्वी। से तं ओवनिहिया दव्वानुपुव्वी।
से Translated Sutra: અથવા ઔપનિધિકી દ્રવ્યાનુપૂર્વી ત્રણ પ્રકારે કહી છે. જેમ કે – ૧. પૂર્વાનુપૂર્વી, ૨. પશ્ચાનુપૂર્વી, ૩. અનાનુપૂર્વી. પૂર્વાનુપૂર્વીનું સ્વરૂપ કેવું છે? પૂર્વાનુપૂર્વીનું સ્વરૂપ આ પ્રમાણે છે – પરમાણુ પુદ્ગલ, દ્વિપ્રદેશી સ્કંધ, ત્રિપ્રદેશી સ્કંધ યાવત્ દસ પ્રદેશી સ્કંધ, સંખ્યાત પ્રદેશી સ્કંધ, અસંખ્યાત પ્રદેશી | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 116 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नेगम-ववहाराणं आनुपुव्विदव्वाइं किं अत्थि? नत्थि? नियमा अत्थि। एवं दोन्नि वि।
नेगम-ववहाराणं आनुपुव्विदव्वाइं किं संखेज्जाइं? असंखेज्जाइं? अनंताइं? नो संखेज्जाइं, असंखेज्जाइं, नो अनंताइं। एवं दोन्नि वि।
नेगम-ववहाराणं आनुपुव्विदव्वाइं लोगस्स कति भागे होज्जा–किं संखेज्जइभागे होज्जा? असंखेज्जइभागे होज्जा? संखेज्जेसु भागेसु होज्जा? असंखेज्जेसु भागेसु होज्जा? सव्वलोए होज्जा? एगदव्वं पडुच्च लोगस्स संखेज्जइभागे वा होज्जा, असंखेज्जइभागे वा होज्जा, संखेज्जेसु भागेसु वा होज्जा, असंखेज्जेसु भागेसु वा होज्जा, देसूणे लोए वा होज्जा। नानादव्वाइं पडुच्च नियमा सव्वलोए Translated Sutra: (૧). નૈગમ – વ્યવહાર નય સંમત ક્ષેત્રાનુપૂર્વી, અસ્તિરૂપ છે કે નાસ્તિરૂપ છે ? નૈગમ વ્યવહાર નય સંમત ક્ષેત્રાનુપૂર્વી નિયમા અસ્તિરૂપ છે. અનાનુપૂર્વી અને અવક્તવ્ય દ્રવ્ય પણ નિયમા અસ્તિરૂપ છે. નૈગમ – વ્યવહાર નય સંમત આનુપૂર્વી દ્રવ્ય સંખ્યાત છે, અસંખ્યાત છે કે અનંત છે ? નૈગમ – વ્યવહાર નય સંમત આનુપૂર્વી દ્રવ્ય સંખ્યાત |