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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 302 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] माता पुत्तं जहा नट्ठं, जुवाणं पुणरागतं ।
काई पच्चभिजाणेज्जा, पुव्वलिंगेण केणई ॥ Translated Sutra: माता बाल्यकाल से गुम हुए और युवा होकर वापस आये हुए पुत्र को किसी पूर्वनिश्र्चित चिह्न से पहचानती है कि यह मेरा ही पुत्र है। जैसे – देह में हुए क्षत, व्रण, लांछन, डाम आदि से बने चिह्नविशेष, मष, तिल आदि से जो अनुमान किया जाता है, वह पूर्ववत् – अनुमान है। शेषवत् – अनुमान किसे कहते हैं ? पाँच प्रकार का है। कार्येण, | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 307 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: Translated Sutra: वारुण, महेन्द्र अथवा किसी अन्य प्रशस्त उत्पात को देखकर अनुमान करना कि अच्छी वृष्टि होगी। इसे अनागत – कालग्रहणविशेषदृष्टसाधर्म्यवत् – अनुमान कहते हैं। इनकी विपरीतता में भी तीन प्रकार से ग्रहण होता है – अतीत, प्रत्युत्पन्न और अनागतकालग्रहण। तृण – रहित वन, अनिष्पन्न धान्ययुक्त भूमि और सूखे कुंड, सरोवर, नदी, | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 309 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अग्गेयं वा वायव्वं वा अन्नयरं वा अप्पसत्थं उप्पायं पासित्ता तेणं साहिज्जइ, जहा–कुवुट्ठी भविस्सइ। से तं अनागयकालगहणं। से तं अनुमाणे।
से किं तं ओवम्मे? ओवम्मे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–साहम्मोवणीए य वेहम्मोवणीए य।
से किं तं साहम्मोवणीए? साहम्मोवणीए तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–किंचिसाहम्मे पायसाहम्मे सव्वसाहम्मे।
से किं तं किंचिसाहम्मे? किंचिसाहम्मे–जहा मंदरो तहा सरिसवो, जहा सरिसवो तहा मंदरो। जहा समुद्दो तहा गोप्पयं, जहा गोप्पयं तहा समुद्दो। जहा आइच्चो तहा खज्जोतो, जहा खज्जोतो तहा आइच्चो। जहा चंदो तहा कुंदो, जहा कुंदो तहा चंदो। से तं किंचिसाहम्मे।
से किं तं पायसाहम्मे? Translated Sutra: आग्नेय मंडल के नक्षत्र, वायव्य मंडल के नक्षत्र या अन्य कोई उत्पात देखकर अनुमान किया जाना कि कुवृष्टि होगी, ठीक वर्षा नहीं होगी। यह अनागतकालग्रहण अनुमान है। उपमान प्रमाण क्या है ? दो प्रकार का है, जैसे – साधर्म्योपनीत और वैधर्म्योपनीत। जिन पदार्थों की सदृशत उपमा द्वारा सिद्ध की जाए उसे साधर्म्योपनीत कहते | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 310 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नयप्पमाणे?
नयप्पमाणे तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–पत्थगदिट्ठंतेणं वसहिदिट्ठंतेणं पएसदिट्ठंतेणं।
से किं तं पत्थगदिट्ठंतेणं? पत्थगदिट्ठंतेणं–से जहानामए केइ पुरिसे परसुं गहाय अडविहुत्तो गच्छेज्जा, तं च केइ पासित्ता वएज्जा–कहिं भवं गच्छसि? अविसुद्धो नेगमो भणति–पत्थगस्स गच्छामि।
तं च केइ छिंदमाणं पासित्ता वएज्जा–किं भवं छिंदसि? विसुद्धो नेगमो भणति–पत्थगं छिंदामि।
तं च केइ तच्छेमाणं पासित्ता वएज्जा–किं भवं तच्छेसि? विसुद्धतराओ नेगमो भणति–पत्थगं तच्छेमि।
तं च केइ उक्किरमाणं पासित्ता वएज्जा–किं भवं उक्किरसि? विसुद्धतराओ नेगमो भणति–पत्थगं उक्किरामि।
तं Translated Sutra: नयप्रमाण क्या है ? वह तीन दृष्टान्तों द्वारा स्पष्ट किया गया है। जैसे कि – प्रस्थक के, वसति के और प्रदेश के दृष्टान्त द्वारा। भगवन् ! प्रस्थक का दृष्टान्त क्या है ? जैसे कोई पुरुष परशु लेकर वन की ओर जाता है। उसे देखकर किसीने पूछा – आप कहाँ जा रहे हैं ? तब अविशुद्ध नैगमनय के मतानुसार उसने कहा – प्रस्थक लेने के लिए | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 311 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं संखप्पमाणे? संखप्पमाणे अट्ठविहे पन्नत्ते, तं जहा–१. नामसंखा २. ठवणसंखा ३. दव्वसंखा ४. ओवम्मसंखा ५. परिमाणसंखा ६. जाणणासंखा ७. गणणासंखा ८. भावसंखा।
से किं तं नामसंखा? नामसंखा–जस्स णं जीवस्स वा अजीवस्स वा जीवाण वा अजीवाण वा तदुभयस्स वा तदु भयाण वा संखा ति नामं कज्जइ। से तं नामसंखा।
से किं तं ठवणसंखा? ठवणसंखा–जण्णं कट्ठकम्मे वा चित्तकम्मे वा पोत्थकम्मे वा लेप्पकम्मे वा गंथिमे वा वेढिमे वा पूरिमे वा संघाइमे वा अक्खे वा वराडए वा एगो वा अनेगा वा सब्भावठवणाए वा असब्भावठवणाए वा संखा ति ठवणा ठविज्जइ। से तं ठवणसंखा।
नाम-ट्ठवणाणं को पइविसेसो? नामं आवकहियं, ठवणा इत्तरिया Translated Sutra: संख्याप्रमाण क्या है ? आठ प्रकार का है। यथा – नामसंख्या, स्थापनासंख्या, द्रव्यसंख्या, औपम्यसंख्या, परिमाण – संख्या, ज्ञानसंख्या, गणनासंख्या, भावसंख्या। नामसंख्या क्या है ? जिस जीव का अथवा अजीव का अथवा जीवों का अथवा अजीवों का अथवा तदुभव का अथवा तदुभयों का संख्या ऐसा नामकरण कर लिया जाता है, उसे नामसंख्या कहते | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 317 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] ४. असंतयं असंतएणं उवमिज्जइ–जहा खरविसाणं तहा ससविसाणं। से तं ओवम्मसंखा।
से किं तं परिमाणसंखा? परिमाणसंखा दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–कालियसुयपरिमाणसंखा दिट्ठिवायसुयपरिमाणसंखा य।
से किं तं कालियसुयपरिमाणसंखा? कालियसुयपरिमाणसंखा अनेगविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जवसंखा अक्खरसंखा संघायसंखा पयसंखा पायसंखा गाहासंखा सिलोगसंखा वेढसंखा निज्जुत्तिसंखा अनुओगदारसंखा उद्देसगसंखा अज्झयणसंखा सुयखंधसंखा अंगसंखा।
से तं कालियसुयपरिमाणसंखा।
से किं तं दिट्ठिवायसुयपरिमाणसंखा? दिट्ठिवायसुयपरिमाणसंखा अनेगविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जवसंखा अक्खरसंखा संघायसंखा पयसंखा पायसंखा Translated Sutra: अविद्यमान पदार्थ को अविद्यमान पदार्थ से उपमित करना असद् – असद्रूप औपम्यसंख्या है। जैसा – खर विषाण है वैसा ही शश विषाण है और जैसा शशविषाण है वैसा ही खरविषाण है। परिमाणसंख्या क्या है ? दो प्रकार की है। जैसे – कालिकश्रुतपरिमाणसंख्या और दृष्टिवादश्रुतपरिमाण – संख्या। कालिक श्रुतपरिमाणसंख्या अनेक प्रकार | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 319 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं अत्थाहिगारे? अत्थाहिगारे–जो जस्स अज्झयणस्स अत्थाहिगारो, तं जहा– Translated Sutra: भगवन् ! अर्थाधिकार क्या है ? (आवश्यकसूत्र के) जिस अध्ययन का जो अर्थ – वर्ण्य विषय है उसका कथन अर्था – धिकार कहलाता है। यथा – सावद्ययोगविरति, उत्कीर्तन – स्तुति करना है। तृतीय अध्ययन का अर्थ गुणवान् पुरुषों को वन्दना, नमस्कार करना है। चौथे में आचार में हुई स्खलनाओं की निन्दा करने का अर्थाधिकार है। कायोत्सर्ग | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 298 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कइविहा णं भंते! दव्वा पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं०–जीवदव्वा य अजीवदव्वा य।
अजीवदव्वा णं भंते! कइविहा पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–अरूविअजीवदव्वा य रूविअजीवदव्वा य।
अरूविअजीवदव्वा णं भंते! कइविहा पन्नत्ता?
गोयमा! दसविहा पन्नत्ता, तं जहा–धम्मत्थिकाए धम्मत्थिकायस्स देसा धम्मत्थिकायस्स पएसा, अधम्मत्थिकाए अधम्मत्थिकायस्स देसा अधम्मत्थिकायस्स पएसा, आगासत्थिकाए आगास-त्थिकायस्स देसा आगासत्थिकायस्स पएसा, अद्धासमए।
रूविअजीवदव्वा णं भंते! कइविहा पन्नत्ता?
गोयमा! चउव्विहा पन्नत्ता, तं जहा–खंधा खंधदेसा खंधप्पएसा परमाणुपोग्गला। ते णं भंते! Translated Sutra: [૧] હે ભગવન્ ! દ્રવ્યના કેટલા પ્રકાર છે ? હે ગૌતમ! દ્રવ્યના બે પ્રકાર છે. તે આ પ્રમાણે છે – જીવ દ્રવ્ય અને અજીવ દ્રવ્ય. હે ભગવન્! અજીવ દ્રવ્યના કેટલા પ્રકાર છે ? હે ગૌતમ! અજીવ દ્રવ્યના બે પ્રકાર છે. તે આ પ્રમાણે છે – અરૂપી અજીવ દ્રવ્ય અને રૂપી અજીવ દ્રવ્ય. હે ભગવન્! અરૂપી અજીવ દ્રવ્યના કેટલા પ્રકાર છે ? હે ગૌતમ! અરૂપી | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 301 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं गुणप्पमाणे? गुणप्पमाणे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–जीवगुणप्पमाणे य अजीवगुण-प्पमाणे य।
से किं तं अजीवगुणप्पमाणे? अजीवगुणप्पमाणे पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–वण्णगुणप्पमाणे गंधगुणप्पमाणे रसगुणप्पमाणे फासगुणप्पमाणे संठाणगुणप्पमाणे।
से किं तं वण्णगुणप्पमाणे? वण्णगुणप्पमाणे पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–कालवण्णगुणप्पमाणे नीलवण्णगुणप्प-माणे लोहियवण्णगुणप्पमाणे हालिद्दवण्णगुणप्पमाणे सुक्किलवण्णगुणप्पमाणे। से तं वण्णगुणप्पमाणे।
से किं तं गंधगुणप्पमाणे? गंधगुणप्पमाणे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–सुब्भिगंधगुणप्पमाणे दुब्भिगंधगुणप्पमाणे। से तं गंधगुणप्पमाणे।
से Translated Sutra: [૧] ગુણપ્રમાણનું સ્વરૂપ કેવું છે ? ગુણપ્રમાણના બે ભેદ છે, તે આ પ્રમાણે છે – ૧. જીવ ગુણ પ્રમાણ ૨. અજીવ ગુણ પ્રમાણ. અલ્પ વક્તવ્ય હોવાથી પહેલા અજીવ ગુણ પ્રમાણનું વર્ણન કરે છે. અજીવગુણ પ્રમાણનું સ્વરૂપ કેવું છે ? અજીવગુણ પ્રમાણના પાંચ ભેદ છે, તે આ પ્રમાણે છે – ૧. વર્ગગુણ પ્રમાણ, ૨. ગંધગુણ પ્રમાણ, ૩. રસગુણ પ્રમાણ, ૪. સ્પર્શગુણ | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 6 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ आवस्सयस्स अनुओगो, आवस्सयण्णं किं अंगं? अंगाइं? सुयखंधो? सुयखंधा? अज्झ-यणं? अज्झयणाइं? उद्देसो? उद्देसा?
आवस्सयण्णं नो अंगं नो अंगाइं, सुयखंधो नो सुयखंधा, नो अज्झयणं अज्झयणाइं, नो उद्देसो नो उद्देसा। Translated Sutra: જો આવશ્યકનો અનુયોગ કરવાનો છે તે આવશ્યક સૂત્ર એક અંગરૂપ છે કે અનેક અંગરૂપ ? એક શ્રુતસ્કંધ રૂપ છે કે અનેક શ્રુતસ્કંધ રૂપ છે ? એક અધ્યયનરૂપ છે કે અનેક અધ્યયનરૂપ છે ? એક ઉદ્દેશક રૂપ છે કે અનેક ઉદ્દેશક રૂપ છે ? આવશ્યક સૂત્ર એક અંગરૂપ પણ નથી, અનેક અંગરૂપ પણ નથી. આવશ્યક સૂત્ર એક શ્રુતસ્કંધ રૂપ છે, અનેક શ્રુતસ્કંધ રૂપ નથી. | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 7 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तम्हा आवस्सयं निक्खिविस्सामि, सुयं निक्खिविस्सामि, खंधं निक्खिविस्सामि, अज्झयणं निक्खिविस्सामि। Translated Sutra: સૂત્ર– ૭. આવશ્યક સૂત્ર શ્રુતસ્કંધ અને અધ્યયન રૂપ છે. તેથી આવશ્યકનો, શ્રુતનો, સ્કંધનો અને અધ્યયનનો નિક્ષેપ કરીશ. સૂત્ર– ૮. જો નિક્ષેપ કરનાર વ્યક્તિ સમસ્ત નિક્ષેપને જાણતા હોય તો, તેને તે જીવાદિ વસ્તુનો સર્વ પ્રકારે નિક્ષેપ કરવો જોઈએ. જો સર્વ નિક્ષેપ જાણતા ન હોય તો નામ, સ્થાપના, દ્રવ્ય, ભાવ આ ચાર નિક્ષેપ કરવા જોઈએ. આવશ્યક સૂત્ર | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 14 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं आगमओ दव्वावस्सयं?
आगमओ दव्वावस्सयं–जस्स णं आवस्सए त्ति पदं सिक्खियं ठियं जियं मियं परिजियं नामसमं धोससमं अहीनक्खरं अनच्चक्खरं अव्वाइद्धक्खरं अक्खलियं अमिलियं अवच्चामेलियं पडिपुण्णं पडिपुन्नघोसं कंठोट्ठविप्पमुक्कं गुरुवायणोवगयं, से णं तत्थ वायणाए पुच्छणाए परियट्टणाए धम्मकहाए, नो अनुप्पेहाए। कम्हा? अनुवओगो दव्वमिति कट्टु। Translated Sutra: આગમથી દ્રવ્ય આવશ્યકનું સ્વરૂપ કેવું છે ? આગમથી દ્રવ્યાવશ્યકનું સ્વરૂપ આ પ્રમાણે છે – જે સાધુએ આવશ્યક પદને શીખી લીધું હોય, સ્થિર કર્યું હોય, જિત, મિત, પરિજિત કર્યું હોય, નામસમ, ઘોષસમ, અહીનાક્ષર, અનત્યક્ષર, અવ્યાવિદ્ધાક્ષર, અસ્ખલિત, અમિલિત, અવ્યત્યામ્રેડિત રૂપે ઉચ્ચારણ કર્યું હોય, ગુરુ પાસે વાચના લીધી હોય, તેથી | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 17 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं जाणगसरीरदव्वावस्सयं?
जाणगसरीरदव्वावस्सयं– आवस्सए त्ति पयत्थाहिगारजाणगस्स जं सरीरयं वव-गय-चुय-चाविय-चत्तदेहं जीवविप्पजढं सेज्जागयं वा संथारगयं वा निसीहियागयं वा सिद्धसिलातलगयं वा पासित्ताणं कोइ वएज्जा– अहो णं इमेणं सरीरसमुस्सएणं जिणदिट्ठेणं भावेणं आवस्सए त्ति पयं आघवियं पन्नवियं परूवियं दंसियं निदंसियं उवदंसियं।
जहा को दिट्ठंतो? अयं महुकुंभे आसी, अयं घयकुंभे आसी।
से तं जाणगसरीरदव्वावस्सयं। Translated Sutra: જ્ઞાયક શરીર દ્રવ્ય આવશ્યકનું સ્વરૂપ કેવું છે ? આવશ્યક એ પદના અર્થાધિકાર જાણનારના વ્યપગત, ચ્યુત – ચ્યાવિત, ત્યક્ત, જીવરહિત શરીરને શય્યાગત, સંસ્તારગત, સિદ્ધશિલાગત – જે સ્થાન પર સંથારો કર્યો હોય તે સ્થાન પર મૃત શરીર.ને સ્થિત જોઈ, કોઈ કહે, અહો ! આ શરીરરૂપ પુદ્ગલ સમુદાયે જિનોપદિષ્ટ ભાવ અનુસાર આવશ્યકપદનું ગુરુ | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 21 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं कुप्पावयणियं दव्वावस्सयं?
कुप्पावयणियं दव्वावस्सयं–जे इमे चरग चोरिय चम्मखंडिय भिक्खोंड पंडुरंग गोयम गोव्वइय गिहिधम्म धम्मचिंतग अविरुद्ध विरुद्ध वुड्ढसावगप्पभिइओ पासंडत्था कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए सुविमलाए फुल्लुप्पल कमल कोमलुम्मिलियम्मि अहपंडुरे पभाए रत्तासोगप्पगास किंसुय सुयमुह गुंजद्धरागसरिसे कमलागर नलिणिसंडबोहए उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिनयरे तेयसा जलंते इंदस्स वा खंदस्स वा रुद्दस्स वा सिवस्स वा वेसमणस्स वा देवस्स वा नागस्स वा जक्खस्स वा भूयस्स वा मुगुंदस्स वा अज्जाए वा कोट्टकिरियाए वा उवलेवण-सम्मज्जण-आवरिसण धूव पुप्फ Translated Sutra: કુપ્રાવચની દ્રવ્ય આવશ્યકનું સ્વરૂપ કેવું છે ? જેઓ ચરક, ચીરિક, ચર્મખંડિક, ભિક્ષોદંડક, પાંડુરંગ, ગૌતમ, ગોવ્રતિક, ગૃહસ્થ, ધર્મચિંતક, વિનયવાદી, અક્રિયાવાદી, વૃદ્ધ શ્રાવક વગેરે વિવિધ વ્રતધારક પાષંડીઓ રાત્રિ વ્યતીત થઈ પ્રભાતકાળે સૂર્ય ઉદય પામે ત્યારે ઇન્દ્ર, સ્કંધ, રુદ્ર, શિવ, વૈશ્રમણદેવ અથવા દેવ, નાગ, યક્ષ, ભૂત, | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 26 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं लोइयं भावावस्सयं?
लोइयं भावावस्सयं–पुव्वण्हे भारहं, अवरण्हे रामायणं।
से तं लोइयं भावावस्सयं। Translated Sutra: લૌકિક નોઆગમથી ભાવાવશ્યકનું સ્વરૂપ કેવું છે ? પૂર્વાહ્નકાળ – દિવસના પૂર્વભાગમાં મહાભારત અને અપરાહ્નકાળ – દિવસના પશ્ચાત્ ભાગમાં રામાયણનું વાંચન, શ્રવણરૂપ સ્વાધ્યાય કરવી, તે લૌકિક ભાવાવશ્યક કહેવાય છે. આ લૌકિક ભાવ આવશ્યકનું વર્ણન પૂર્ણ થયું. | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 29 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं इमे एगट्ठिया नानाघोसा नानावंजणा नामधेज्जा भवंति तं जहा– Translated Sutra: આવશ્યકના વિવિધ ઘોષ – સ્વરવાળા અને અનેક વ્યંજનવાળા, એકાર્થક એવા અનેક નામ આ પ્રમાણે છે – ૧. આવશ્યક, ૨. અવશ્યકરણીય, ૩. ધ્રુવનિગ્રહ, ૪. વિશોધિ, ૫. અધ્યયન ષટ્કવર્ગ, ૬. ન્યાય, ૭. આરાધના, ૮. માર્ગ. શ્રમણો અને શ્રાવકો દ્વારા દિવસ અને રાત્રિના અંત ભાગમાં અવશ્ય કરવા યોગ્ય હોવાથી તેનું નામ આવશ્યક છે. આ આવશ્યકનું સ્વરૂપ વર્ણન | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 46 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं लोगुत्तरियं भावसुयं?
लोगुत्तरियं भावसुयं– जं इमं अरहंतेहिं भगवंतेहिं उप्पन्ननाणदंसणधरेहिं तीय-पडुप्पन्न मनागयजाणएहिं सव्वन्नूहिं सव्वदरिसीहिं तेलोक्कचहिय-महियपूइएहिं पणीयं दुवालसंगं गणि-पिडगं, तं जहा–
१.आयारो २. सूयगडो ३. ठाणं ४. समवाओ ५. वियाहपन्नत्ती ६. नायाधम्मकहाओ ७. उवासगदसाओ ८. अंतगडदसाओ ९. अनुत्तरोव-वाइयदसाओ १०. पण्हावागरणाइं ११. विवागसुयं १२. दिट्ठिवाओ।
से तं लोगुत्तरियं भावसुयं। से तं नोआगमओ भावसुयं। से तं भावसुयं। Translated Sutra: લોકોત્તરિક ભાવશ્રુતનું સ્વરૂપ કેવું છે ? ઉત્પન્ન જ્ઞાન – દર્શનને ધારણ કરનાર, ભૂત – ભવિષ્ય, વર્તમાનકાલિક પદાર્થને જાણનાર, સર્વજ્ઞ, સર્વદર્શી, ત્રિલોકવર્તી જીવો દ્વારા અવલોકિત, મહિત, પૂજિત, અપ્રતિહત, શ્રેષ્ઠ જ્ઞાન – દર્શનના ધારક એવા અરિહંત ભગવાન દ્વારા પ્રણીત ૧. આચાર, ૨. સૂયગડ, ૩. ઠાણ, ૪. સમવાય, ૫. વ્યાખ્યાપ્રજ્ઞપ્તિ, | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 51 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नामखंधे?
नामखंधे–जस्स णं जीवस्स वा अजीवस्स वा जीवाण वा अजीवाण तदुभयस्स वा तदुभवाण वा खंधे त्ति नामं कज्जइ।
से तं नामखंधे।
से किं तं ठवणाखंधे?
ठवणाखंधे जण्णं कट्ठकम्मे वा वित्तकम्मे वा पोत्थकम्मे वा लेप्पकम्मे वा गंथिमे वा वेढिमे वा पूरिमे वा संघाइमे वा अक्खे वा वराडए वा एगो वा अनेगा वा सब्भावठवणाए वा असब्भावठवणाए वा खंधे त्ति ठवणा ठविज्जइ।
से तं ठवणाखंधे।
नामट्ठवणाणं को पइविसेसो? नामं आवकहियं, ठवणा इत्तरिया वा होज्जा आवकहिया वा। Translated Sutra: સૂત્ર– ૫૧. નામસ્કંધનું સ્વરૂપ કેવું છે ? જે કોઈ જીવનું કે અજીવનું યાવત્ સ્કંધ એવું નામ રાખવું તેને નામસ્કંધ કહે છે. સ્થાપના સ્કંધનું સ્વરૂપ કેવું છે ? કાષ્ઠમાં યાવત્ ‘આ સ્કંધ છે’ તેવો જ આરોપ કરવો, તે સ્થાપના સ્કંધ છે. નામ અને સ્થાપનામાં શું તફાવત છે ? નામ યાવત્કથિક છે, સ્થાપના ઇત્વરિક – સ્વલ્પકાલિક પણ હોય છે | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 62 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नोआगमओ भावखंधे?
नोआगमओ भावखंधे–एएसिं चेव सामाइय-माइयाणं छण्हं अज्झयणाणं समुदय-समिति-समागमेणं निप्फन्ने आवस्सयसुयखंधे भावखंधे त्ति लब्भइ।
से तं नोआगमओ भावखंधे। से तं भावखंधे। Translated Sutra: આ સામાયિક વગેરે છ અધ્યયનો એકત્રિત થવાથી જે સમુદાય સમૂહ આવશ્યક સૂત્ર રૂપ એક શ્રુતસ્કંધ થાય છે. તે નોઆગમથી ભાવસ્કંધ કહેવાય છે. આ નોઆગમથી ભાવસ્કંધનું સ્વરૂપ છે. ભાવસ્કંધનું સ્વરૂપ પૂર્ણ થયું. | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
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Gujarati | 66 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] आवस्सयस्स णं इमे अत्थाहिगारा भवंति, तं जहा– Translated Sutra: સૂત્ર– ૬૬. આવશ્યક સૂત્રના અર્થાધિકારના નામ આ પ્રમાણે છે – સૂત્ર– ૬૭. ૧. સાવદ્યયોગ વિરતી, ૨. ઉત્કીર્તન, ૩. ગુણવાનની વિનય પ્રતિપત્તિ, ૪. સ્ખલિત પાપ – દોષની નિંદા, ૫. વ્રણ ચિકિત્સા, ૬. ગુણધારણા. સૂત્ર– ૬૮. આ રીતે આવશ્યક સૂત્રના સમુદાયાર્થનું સંક્ષેપ કથન કર્યું છે, હવે એક – એક અધ્યયનનું વર્ણન કરીશ. સૂત્ર– ૬૯. [૧] તે છ આવશ્યકના | |||||||||
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Gujarati | 110 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं पुव्वानुपुव्वी? पुव्वानुपुव्वी–धम्मत्थिकाए अधम्मत्थिकाए आगासत्थिकाए जीवत्थिकाए पोग्गलत्थिकाए अद्धासमए। से तं पुव्वानुपुव्वी।
से किं तं पच्छानुपुव्वी? पच्छानुपुव्वी–अद्धासमए पोग्गलत्थिकाए जीवत्थिकाए आगास-त्थिकाए अधम्मत्थिकाए धम्मत्थिकाए। से तं पच्छानुपुव्वी।
से किं तं अनानुपुव्वी? अनानुपुव्वी–एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए छगच्छगयाए सेढीए अन्नमन्नब्भासो दुरूवूणो। से तं अनानुपुव्वी। Translated Sutra: પૂર્વાનુપૂર્વીનું સ્વરૂપ કેવું છે ? ૧. ધર્માસ્તિકાય, ૨. અધર્માસ્તિકાય, ૩. આકાશાસ્તિકાય, ૪. જીવાસ્તિકાય, ૫. પુદ્ગલાસ્તિકાય, ૬. અદ્ધાકાળ. આ પ્રમાણે અનુક્રમથી કથન કરાય કે સ્થાપન કરાય, તેને પૂર્વાનુપૂર્વી કહે છે. આ પૂર્વાનુપૂર્વીનું વર્ણન થયું. પશ્ચાનુપૂર્વીનું સ્વરૂપ કેવું છે ? ૬. અદ્ધાસમય, ૫. પુદ્ગલાસ્તિકાય, | |||||||||
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Gujarati | 125 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से तं पुव्वानुपुव्वी।
से किं तं पच्छानुपुव्वी? पच्छानुपुव्वी–सयंभुरमणे जाव जंबुद्दीवे। से तं पच्छानुपुव्वी।
से किं तं अनानुपुव्वी? अनानुपुव्वी–एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए असंखेज्जगच्छगयाए सेढीए अन्नमन्नब्भासो दुरूवूणो। से तं अनानुपुव्वी।
उड्ढलोयखेत्तानुपुव्वी तिविहा पन्नत्ता, तं जहा–पुव्वानुपुव्वी पच्छानुपुव्वी अनानुपुव्वी।
से किं तं पुव्वानुपुव्वी? पुव्वानुपुव्वी–१. सोहम्मे २. ईसाणे ३. सणंकुमारे ४. माहिंदे ५. बंभलोए ६. लंतए ७. महासुक्के ८. सहस्सारे ९. आणए १०. पाणए ११. आरणे १२. अच्चुए १३. गेवेज्जविमाणा १४. अनुत्तरविमाणा १५. ईसिप्पब्भारा। से तं पुव्वानुपुव्वी।
से Translated Sutra: (૧). મધ્યલોકક્ષેત્ર પશ્ચાનુપૂર્વીનું સ્વરૂપ કેવું છે ? સ્વયંભૂરમણ સમુદ્ર, સ્વયંભૂરમણ દ્વીપ, ભૂત સમુદ્ર, ભૂત દ્વીપથી લઈ જંબૂદ્વીપ સુધી વિપરીત ક્રમથી દ્વીપ – સમુદ્રના સ્થાપનને મધ્યલોક ક્ષેત્ર પશ્ચાનુપૂર્વી કહે છે. મધ્યલોકક્ષેત્ર અનાનુપૂર્વીનું સ્વરૂપ કેવું છે ? એકથી શરૂ કરી, એક – એકની વૃદ્ધિ કરતા અસંખ્યાત | |||||||||
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Gujarati | 139 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं उक्कित्तणानुपुव्वी? उक्कित्तणानुपुव्वी तिविहा पन्नत्ता, तं जहा–पुव्वानुपुव्वी पच्छानुपुव्वी अनानुपुव्वी।
से किं तं पुव्वानुपुव्वी? पुव्वानुपुव्वी–उसभे अजिए संभवे अभिनंदने सुमती पउमप्पभे सुपासे चंदप्पहे सुविही सीतले सेज्जंसे वासुपुज्जे विमले अनंते धम्मे संती कुंथू अरे मल्ली मुनिसुव्वए नमी अरिट्ठनेमी पासे वद्धमाणे। से तं पुव्वानुपुव्वी।
से किं तं पच्छानुपुव्वी? पच्छानुपुव्वी–वद्धमाणे जाव उसभे। से तं पच्छानुपुव्वी।
से किं तं अनानुपुव्वी? अनानुपुव्वी–एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए चउवीसगच्छगयाए सेढीए अन्नमन्नब्भासो दुरूवूणो। से तं अनानुपुव्वी।
से Translated Sutra: ઉત્કીર્તનાનુપૂર્વીનું સ્વરૂપ કેવું છે ? ઉત્કીર્તનાપૂર્વીના ત્રણ પ્રકાર કહ્યા છે, તે આ પ્રમાણે – ૧. પૂર્વાનુપૂર્વી, ૨. પશ્ચાનુપૂર્વી, ૩. અનાનુપૂર્વી. પૂર્વાનુપૂર્વીનું સ્વરૂપ કેવું છે ? ૧. ઋષભ, ૨. અજિત, ૩. સંભવ, ૪. અભિનંદન, ૫. સુમતિ, ૬. પદ્મપ્રભ, ૭. સુપાર્શ્વ, ૮. ચંદ્રપ્રભ, ૯. સુવિધિ, ૧૦. શીતલ, ૧૧. શ્રેયાંસ, ૧૨. વાસુપૂજ્ય, | |||||||||
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Gujarati | 150 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं दुनामे? दुनामे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–एगक्खरिए य अनेगक्खरिए य।
से किं तं एगक्खरिए? एगक्खरिए अनेगविहे पन्नत्ते, तं जहा–ह्रोः श्रीः धीः स्त्री। से तं एगक्खरिए।
से किं तं अनेगक्खरिए? अनेगक्खरिए अनेगविहे पन्नत्ते, तं जहा–कन्ना वीणा लता माला। से तं अनेगक्खरिए।
अहवा दुनामे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–जीवनामे य अजीवनामे य।
से किं तं जीवनामे? जीवनामे अनेगविहे पन्नत्ते, तं जहा-देवदत्तो जन्नदत्तो विण्हुदत्तो सोमदत्तो।से तं जीवनामे
से किं तं अजीवनामे? अजीवनामे अनेगविहे पन्नत्ते, तं जहा–घडो पडो कडो रहो। से तं अजीवनामे।
अहवा दुनामे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–विसेसिए Translated Sutra: [૧] ‘દ્વિનામ’નું સ્વરૂપ કેવું છે ? દ્વિનામના બે પ્રકાર છે. તે આ પ્રમાણે છે – ૧. એકાક્ષરિક અને ૨. અનેકાક્ષરિક. એકાક્ષરિક દ્વિનામનું સ્વરૂપ કેવું છે ? એકાક્ષરિક દ્વિનામના અનેક પ્રકાર છે, તે આ પ્રમાણે છે – હ્રી દેવી., શ્રી લક્ષ્મી દેવી., ધી બુદ્ધિ., સ્ત્રી વગેરે એકાક્ષરિક દ્વિનામ છે. અનેકાક્ષરિક દ્વિનામનું સ્વરૂપ | |||||||||
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Gujarati | 151 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं तिनामे? तिनामे तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–दव्वनामे गुणनामे पज्जवनामे।
से किं तं दव्वनामे? दव्वनामे छव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–धम्मत्थिकाए अधम्मत्थिकाए आगासत्थिकाए जीवत्थि-काए पोग्गलत्थिकाए अद्धासमए। से तं दव्वनामे।
से किं तं गुणनामे? गुणनामे पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–वण्णनामे गंधनामे रसनामे फासनामे संठाणनामे।
से किं तं वण्णनामे? वण्णनामे पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–कालवण्णनामे नीलवण्णनामे लोहिय-वण्णनामे हालिद्दवण्णनामे सुक्किल्लवण्णनामे। से तं वण्णनामे।
से किं तं गंधनामे? गंधनामे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–सुब्भिगंधनामे य दुब्भिगंधनामे य। से तं गंधनामे।
से Translated Sutra: [૧] ત્રિનામનું સ્વરૂપ કેવું છે ? ત્રિનામના ત્રણ પ્રકાર કહ્યા છે, તે આ પ્રમાણે – ૧. દ્રવ્યનામ, ૨. ગુણનામ અને ૩. પર્યાયનામ. [૨] દ્રવ્યનામનું સ્વરૂપ કેવું છે ? દ્રવ્યનામના છ પ્રકાર કહ્યા છે, તે આ પ્રમાણે છે – ૧. ધર્માસ્તિકાય, ૨. અધર્માસ્તિકાય, ૩. આકાશાસ્તિકાય, ૪. જીવાસ્તિકાય, ૫. પુદ્ગલાસ્તિકાય અને ૬. અદ્ધાસમય. [૩] ગુણનામનું | |||||||||
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Gujarati | 163 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] उक्कावाया दिसादाहा गज्जियं विज्जू निग्घाया जूवया जक्खालित्ता धूमिया महिया रयुग्घाओ चंदोवरागा सूरोवरागा चंदपरिवेसा सूरपरिवेसा पडिचंदा पडिसूरा इंदधणू उदगमच्छा कविहसिया अमोहा वासा वासधरा गामा नगरा घरा पव्वता पायाला भवणा निरया रयणप्पभा सक्करप्पभा वालुयप्पभा पंकप्पभा धूमप्पभा तमा तमतमा सोहम्मे ईसाणे सणंकुमारे माहिंदे बंभलोए लंतए महासुक्के सहस्सारे आणए पाणए आरणे अच्चुए गेवेज्जे अनुत्तरे ईसिप्पब्भारा परमाणुपोग्गले दुपएसिए जाव अनंतपएसिए।
से तं साइपारिणामिए।
से किं तं अनाइ-पारिणामिए? अनाइ-पारिणामिए–धम्मत्थिकाए अधम्मत्थिकाए आगास-त्थिकाए जीवत्थिकाए Translated Sutra: [૧] ચંદ્ર – સૂર્ય ગ્રહણ, ચંદ્ર – સૂર્ય પરિવેશ, પ્રતિચંદ્ર – પ્રતિસૂર્ય, મેઘધનુષ્ય, મેઘધનુષ્યના ટૂકડા, કપિહસિત, અમોઘ, ક્ષેત્ર, વર્ષધર પર્વત, ગામ, નગર, ઘર, પર્વત, પાતાળકળશ, ભવન, નરક, રત્નપ્રભા, શર્કરાપ્રભા, વાલુકાપ્રભા, પંકપ્રભા, ધૂમપ્રભા, તમઃપ્રભા, તમસ્તમપ્રભા, સૌધર્મ, ઇશાનથી લઈ આનત, પ્રાણત, આરણ – અચ્યુત દેવલોકો, ગ્રૈવેયક, | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 235 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं दसनामे? दसनामे दसविहे पन्नत्ते, तं जहा–१. गोण्णे २. नोगोण्णे ३. आयाणपएणं ४. पडिवक्खपएणं ५. पाहन्नयाए ६. अनाइसिद्धंतेणं ७. नामेणं ८. अवयवेणं ९. संजोगेणं १०. पमाणेणं।
से किं तं गोण्णे? गोण्णे–खमतीति खमणो, तवतीति तवणो, जलतीति जलणो, पवतीति पवणो। से तं गोण्णे।
से किं तं नोगोण्णे? नोगोण्णे–अकुंतो सकुंतो, अमुग्गो समुग्गो, अमुद्दो समुद्दो, अलालं पलालं, अकुलिया सकुलिया, नो पलं असतीति पलासो, अमाइवाहए माइवाहए, अबीयवावए बीयवावए, नो इंदं गोवयतीति इंदगोवए। से तं नोगोण्णे।
से किं तं आयाणपएणं? आयाणपएणं–आवंती चाउरंगिज्जं असंखयं जन्नइज्जं पुरिसइज्जं एलइज्जं वीरियं धम्मो Translated Sutra: [૧] દસનામના દસ પ્રકાર કહ્યા છે, તે આ પ્રમાણે છે – ૧. ગૌણનામ, ૨. નોગૌણનામ, ૩. આદાનપદ નિષ્પન્ન નામ, ૪. પ્રતિપક્ષપદ નિષ્પન્નનામ, ૫. પ્રધાનપદ નિષ્પન્નનામ, ૬. અનાદિ સિદ્ધાંત નિષ્પન્નનામ, ૭. નામનિષ્પન્નનામ ૮. અવયવ નિષ્પન્નનામ, ૯. સંયોગ નિષ્પન્નનામ, ૧૦. પ્રમાણ નિષ્પન્નનામ. [૨] ગુણનિષ્પન્ન ગૌણનામ. નામનું સ્વરૂપ કેવું છે ? ક્ષમાગુણયુક્ત | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 240 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नक्खत्तनामे? नक्खत्तनामे–कत्तियाहिं जाए–कत्तिए कत्तियादिन्ने कत्तियाधम्मे कत्तियासम्मे कत्तियादेवे कत्तियादासे कत्तियासेणे कत्तियारक्खिए। रोहिणीहिं जाए–रोहिणिए रोहिणिदिन्ने रोहिणिधम्मे रोहिणिसम्मे रोहिणिदेवे रोहिणि-दासे रोहिणिसेणे रोहिणिरक्खिए। एवं सव्वनक्खत्तेसु नामा भाणियव्वा।
एत्थ संगहणिगाहाओ– Translated Sutra: નક્ષત્ર નામનું સ્વરૂપ કેવું છે ? નક્ષત્રના આધારે સ્થાપિત નામ નક્ષત્રનામ કહેવાય છે. તે આ પ્રમાણે, કૃતિકાનક્ષત્રમાં જન્મેલ બાળકનું કૃતિક – કાર્તિક, કૃતિકાદત્ત, કૃતિકાધર્મ, કૃતિકાદેવ, કૃતિકાદાસ, કૃતિકાસેન, કૃતિકા રક્ષિત વગેરે નામ રાખવા. રોહિણીમાં જન્મેલનું રોહિણેય, રોહિણીદત્ત, રોહિણીધર્મ, રોહિણીશર્મ, રોહિણીદેવ, | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 241 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] १. कत्तिय २. रोहिणि ३. मिगसिर, ४. अद्दा य ५. पुणव्वसू य ६. पुस्से य ।
तत्तो य ७. अस्सिलेसा, ८. मघाओ ९.-१०. दो फग्गुणीओ य ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૪૦ | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 244 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] –से तं नक्खत्तनामे।
से किं तं देवयानामे? देवयनामे – अग्गिदेवयाहिं जाए– अग्गिए अग्गिदिन्ने अग्गिधम्मे अग्गि-सम्मे अग्गिदेवे अग्गिदासे अग्गिसेने अग्गिरक्खिए।
एवं सव्वनक्खत्तदेवयानामा भाणियव्वा।
एत्थं पि संगहणिगाहाओ– Translated Sutra: દેવનામનું સ્વરૂપ કેવું છે ? નક્ષત્રના અધિષ્ઠાતા દેવના નામ ઉપરથી નામ સ્થાપવામાં આવે તો તે દેવનામ કહેવાય. જેમ કે કૃતિકા નક્ષત્રના અધિષ્ઠાતા દેવ અગ્નિ છે. અગ્નિ દેવથી અધિષ્ઠિત નક્ષત્રમાં જન્મેલ બાળકનું નામ આગ્નિક, અગ્નિદત્ત, અગ્નિધર્મ, અગ્નિશર્મ, અગ્નિદાસ, અગ્નિસેન, અગ્નિરક્ષિત વગેરે રાખવું. આ જ પ્રમાણે અન્ય | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 247 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] –से तं देवयानामे।
से किं तं कुलनामे? कुलनामे– उग्गे भोगे राइन्ने खत्तिए इक्खागे नाते कोरव्वे। से तं कुलनामे।
से किं तं पासंडनामे? पासंडनामे–समणे पंडरंगे भिक्खू कावालिए तावसे परिव्वायगे।
से तं पासंडनामे।
से किं तं गणनामे? गणनामे–मल्ले मल्लदिन्ने मल्लधम्मे मल्लसम्मे मल्लदेवे मल्लदासे मल्लसेणे मल्लरक्खिए। से तं गणनामे।
से किं तं जीवियानामे? जीवियानामे–अवकरए उक्कुरुडए उज्झियए कज्जवए सुप्पए।
से तं जीवियानामे।
से किं तं आभिप्पाइयनामे? आभिप्पाइयनामे–अंबए निंबए बबुलए पलासए सिणए पीलुए करीरए। से तं आभिप्पाइयनामे। से तं ठवणप्पमाणे।
से किं तं दव्वप्पमाणे? दव्वप्पमाणे Translated Sutra: [૧ ] કુળનામનું સ્વરૂપ કેવું છે ? જે નામનો આધાર કુળ હોય તે નામ કુળનામ કહેવાય છે. જેમ કે ઉગ્ર, ભોગ, રાજન્ય, ક્ષત્રિય, ઇક્ષ્વાકુ, જ્ઞાત, કૌરવ્ય વગેરે. [૨] પાષંડનામનું સ્વરૂપ કેવું છે? શ્રમણ, પાંડુરંગ, ભિક્ષુ, કાપાલિક, તાપસ, પરિવ્રાજક, તે પાષંડનામ જાણવા. [૩] ગણનામનું સ્વરૂપ કેવું છે ? ગણના આધારે જે નામ સ્થાપિત થાય તે ગણનામ | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 249 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं दंदे? दंदे–दन्ताश्च ओष्ठौ च दन्तोष्ठम्, स्तनौ च उदरं च स्तनोदरम्, वस्त्रं च पात्रं च वस्त्रपात्रम्, अश्वाश्च महिषाश्च अश्वमहिषम्, अहिश्च नकुलश्च अहिनकुलम्। से तं दंदे।
से किं तं बहुव्वीही? बहुव्वीही–फुल्ला जम्मि गिरिम्मि कुडय-कयंबा सो इमो गिरी फुल्लिय-कुडय-कयंबो। से तं बहुव्वीही।
से किं तं कम्मधारए? कम्मधारए–धवलो वसहो धवलवसहो, किण्हो मिगो किण्हमिगो, सेतो पडो सेतपडो, रत्तो पडो रत्तपडो। से तं कम्मधारए।
से किं तं दिगू? दिगू–तिन्नि कडुयाणि तिकडुयं, तिन्नि महुराणि तिमहुरं, तिन्नि गुणा तिगुणं, तिन्नि पुराणि तिपुरं, तिन्नि सराणि तिसरं, तिन्नि पुक्खराणि Translated Sutra: [૧] દ્વન્દ્વ સમાસનું સ્વરૂપ કેવું છે ? દ્વન્દ્વ સમાસના ઉદાહરણો – દાંત અને ઔષ્ટ – હોઠ તે દંતોષ્ઠ, સ્તનો અને ઉદર તે સ્તનોદર, વસ્ત્ર અને પાત્ર તે વસ્ત્રપાત્ર, અશ્વ અને મહિષ તે અશ્વમહિષ, સાપ અને નોળિયો તે સાપનોળિયો. આ દ્વન્દ્વ સમાસ છે. [૨] બહુવ્રીહિ સમાસનું સ્વરૂપ કેવું છે ? બહુવ્રીહિ સમાસમાં આ પર્વત ઉપર વિકસિત કુટજ | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 251 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं कम्मनामे? कम्मनामे–दोसिए सोत्तिए कप्पासिए भंडवेयालिए कोलालिए।
से तं कम्मनामे।
से किं तं सिप्पनामे? सिप्पनामे–वत्थिए तंतिए तुन्नाए तंतुवाए पट्टकारे देअडे वरुडे मुंजकारे कट्ठकारे छत्तकारे वज्झकारे पोत्थकारे चित्तकारे दंतकारे लेप्पकारे कोट्टिमकारे। से तं सिप्पनामे।
से किं तं सिलोगनामे? सिलोगनामे–समणे माहणे सव्वातिही। से तं सिलोगनामे।
से किं तं संजोगनामे? संजोगनामे–रण्णो ससुरए, रण्णो जामाउए, रण्णो साले, रण्णो भाउए, रण्णो भगिणीवई से तं संजोगनामे।
से किं तं समीवनामे? समीवनामे–गिरिस्स समीवे नगरं गिरिनगरं, विदिसाए समीवे नगरं वेदिसं, वेन्नाए समीवे Translated Sutra: [૧] કર્મનામનું સ્વરૂપ કેવું છે ? કર્મનામ તદ્ધિતના ઉદાહરણ છે – દૌષ્યિક – વસ્ત્રના વેપારી, સૌત્રિક – સૂતરના વેપારી, કાર્પાસિક – કપાસના વેપારી, સૂત્રવૈયાલિક – સૂતર વેચનાર, ભાંડવૈયાલિક – વાસણ વેચનાર, કૌલાલિક – માટીના વાસણ વેચનાર. આ સર્વ તદ્ધિત કર્મનામ છે. [૨] શિલ્પ નામનું સ્વરૂપ કેવું છે ? શિલ્પનામ તદ્ધિતના ઉદાહરણ | |||||||||
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अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 270 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] मणुस्साणं भंते केमहालिया सरीरोगाहणा पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं एणं पमाणंगुलेणं किं पओयणं? एएणं पमाणंगुलेणं पुढवीणं कंडाणं पातालाणं भवणाणं भवणपत्थडाणं निरयाणं निरयावलियाणं निरयपत्थडाणं कप्पाणं विमाणाणं विमाणावलियाणं विमाणपत्थडाणं टंकाणं कूडाणं सेलाणं सिहरीणं पब्भ-राणं विजयाणं वक्खाराणं वासाणं वासहराणं पव्वयाणं वेलाणं वेइयाणं दाराणं तोरणाणं दीवाणं समुद्दाणं आयाम-विक्खंभ-उच्चत्त-उव्वेह-परिक्खेवा मविज्जंति।
से समासओ तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–सेढीअंगुले पयरंगुले घणंगुले। असंखेज्जाओ जोयणकोडाकोडीओ सेढी, सेढी सेढीए गुणिया पयरं, पयरं सेढीए गुणियं लोगो, Translated Sutra: [૧] હે ભગવન્ ! મનુષ્યના શરીરની અવગાહના કેટલી છે ? હે ગૌતમ! જઘન્ય અંગુલના અસંખ્યાતમા ભાગની અને ઉત્કૃષ્ટ ત્રણ ગાઉ છે. હે ભગવન્ ! સંમૂર્ચ્છિમ મનુષ્યોની અવગાહના કેટલી છે ? હે ગૌતમ ! સંમૂર્ચ્છિમ મનુષ્યોની જઘન્ય અને ઉત્કૃષ્ટ અવગાહના અંગુલના અસંખ્યાતમા ભાગની છે. હે ભગવન્ ! ગર્ભજ મનુષ્યોની અવગાહના કેટલી છે ? હે ગૌતમ | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 292 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] मणुस्साणं भंते! केवइअं कालं ठिती पन्नत्ता?
गोयमा जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं जाव अजहन्नमणुक्कोसं तेत्तीसं सागरोवमाइं से तं सुहुमे अद्धापलिओवमे से तं अद्धा पलिओवमे। Translated Sutra: [૧] હે ભગવન્ ! મનુષ્યોની આયુસ્થિતિ કેટલી છે ? હે ગૌતમ ! જઘન્ય અંતર્મુહૂર્ત્ત, ઉત્કૃષ્ટ ત્રણ પલ્યોપમની છે. સંમૂર્ચ્છિમ મનુષ્યની જઘન્ય અંતર્મુહૂર્ત્ત અને ઉત્કૃષ્ટ પણ અંતર્મુહૂર્ત્તની છે. ગર્ભજ મનુષ્યોની સ્થિતિ જઘન્ય અંતર્મુહૂર્ત્ત અને ઉત્કૃષ્ટ ત્રણ પલ્યોપમની છે. અપર્યાપ્ત ગર્ભજ મનુષ્યની જઘન્ય – ઉત્કૃષ્ટ | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 303 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तं जहा–खतेण वा वणेण वा लंछणेण वा मसेण वा तिलएण वा। से तं पुव्ववं।
से किं तं सेसवं? सेसवं पंचविहं पन्नत्तं, तं–कज्जेणं कारणेणं गुणेणं अवयवेणं आसएणं।
से किं तं कज्जेणं? कज्जेणं–संखं सद्देणं, भेरिं तालिएणं, वसभं ढिंकिएणं, मोरं केकाइएणं, हयं हेसिएणं, हत्थिं गुलगुलाइएणं, रहं घणघणाइएणं। से तं कज्जेणं।
से किं तं कारणेणं? कारणेणं–तंतवो पडस्स कारणं न पडो तंतुकारणं, वीरणा कडस्स कारणं न कडो वीरणका-रणं, मप्पिंडो घडस्स कारणं न घडो मप्पिंडकारणं। से तं कारणेणं।
से किं तं गुणेणं? गुणेणं–सुवण्णं निकसेणं, पुप्फं गंधेणं, लवणं रसेणं, मइरं आसाएणं, वत्थं फासेणं। से तं गुणेणं।
से किं Translated Sutra: સૂત્ર– ૩૦૩ થી ૩૦૫. [૧] શેષવત્ અનુમાનનું સ્વરૂપ કેવું છે ? શેષવત અનુમાનના પાંચ પ્રકાર છે, તે આ પ્રમાણે છે – ૧. કાર્યથી, ૨. કારણથી, ૩. ગુણથી, ૪. અવયવથી, ૫. આશ્રયથી. કાર્યલિંગ જન્ય શેષવત અનુમાનનું સ્વરૂપ કેવું છે ? કાર્ય જોઈને કારણનું જ્ઞાન થાય તેને કાર્ય લિંગજન્ય શેષવત અનુમાન કહે છે. દા.ત. શંખનો ધ્વનિ સાંભળી શંખનું જ્ઞાન, | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 307 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: Translated Sutra: સૂત્ર– ૩૦૭. [૧] આર્દ્રા – રોહિણી વગેરે નક્ષત્રમાં થનાર અથવા અન્ય કોઈ પણ પ્રકારના પ્રશસ્ત ઉલ્કાપાત વગેરે જોઈને અનુમાન કરવું કે આ દેશમાં સુવૃષ્ટિ થશે. તે અનાગતકાળગ્રહણ વિશેષદૃષ્ટ સાધર્મ્યવત્ અનુમાન છે. [૨] તેની વિપરીતતામાં પણ ત્રણ પ્રકાર ગ્રહણ થાય છે. અતીતકાળગ્રહણ, પ્રત્યુત્પન્નકાળ ગ્રહણ અને અનાગત – કાળગ્રહણ. અતીતકાળ | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 310 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नयप्पमाणे?
नयप्पमाणे तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–पत्थगदिट्ठंतेणं वसहिदिट्ठंतेणं पएसदिट्ठंतेणं।
से किं तं पत्थगदिट्ठंतेणं? पत्थगदिट्ठंतेणं–से जहानामए केइ पुरिसे परसुं गहाय अडविहुत्तो गच्छेज्जा, तं च केइ पासित्ता वएज्जा–कहिं भवं गच्छसि? अविसुद्धो नेगमो भणति–पत्थगस्स गच्छामि।
तं च केइ छिंदमाणं पासित्ता वएज्जा–किं भवं छिंदसि? विसुद्धो नेगमो भणति–पत्थगं छिंदामि।
तं च केइ तच्छेमाणं पासित्ता वएज्जा–किं भवं तच्छेसि? विसुद्धतराओ नेगमो भणति–पत्थगं तच्छेमि।
तं च केइ उक्किरमाणं पासित्ता वएज्जा–किं भवं उक्किरसि? विसुद्धतराओ नेगमो भणति–पत्थगं उक्किरामि।
तं Translated Sutra: [૧] નયપ્રમાણનું સ્વરૂપ કેવું છે ? નયપ્રમાણના ત્રણ પ્રકાર છે. ત્રણ દૃષ્ટાંતથી તેનું સ્વરૂપ સ્પષ્ટ કર્યું છે.. ૧. પ્રસ્થકના દૃષ્ટાંત દ્વારા ૨. વસતિના દૃષ્ટાંત દ્વારા ૩. પ્રદેશના દૃષ્ટાંત દ્વારા. [૨] પ્રસ્થકનું દૃષ્ટાંત શું છે ? કોઈ પુરુષ કુહાડી લઈ વન તરફ જતો હોય, તેને વનમાં જતા જોઈને કોઈ મનુષ્યે પૂછ્યું, તમે ક્યાં | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 311 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं संखप्पमाणे? संखप्पमाणे अट्ठविहे पन्नत्ते, तं जहा–१. नामसंखा २. ठवणसंखा ३. दव्वसंखा ४. ओवम्मसंखा ५. परिमाणसंखा ६. जाणणासंखा ७. गणणासंखा ८. भावसंखा।
से किं तं नामसंखा? नामसंखा–जस्स णं जीवस्स वा अजीवस्स वा जीवाण वा अजीवाण वा तदुभयस्स वा तदु भयाण वा संखा ति नामं कज्जइ। से तं नामसंखा।
से किं तं ठवणसंखा? ठवणसंखा–जण्णं कट्ठकम्मे वा चित्तकम्मे वा पोत्थकम्मे वा लेप्पकम्मे वा गंथिमे वा वेढिमे वा पूरिमे वा संघाइमे वा अक्खे वा वराडए वा एगो वा अनेगा वा सब्भावठवणाए वा असब्भावठवणाए वा संखा ति ठवणा ठविज्जइ। से तं ठवणसंखा।
नाम-ट्ठवणाणं को पइविसेसो? नामं आवकहियं, ठवणा इत्तरिया Translated Sutra: સૂત્ર– ૩૧૧. [૧] સંખ્યા પ્રમાણનું સ્વરૂપ કેવું છે ? સંખ્યા પ્રમાણના આઠ પ્રકાર છે, તે આ પ્રમાણે છે – ૧. નામ સંખ્યા, ૨. સ્થાપના સંખ્યા, ૩. દ્રવ્ય સંખ્યા, ૪. ઔપમ્ય સંખ્યા, ૫. પરિમાણ સંખ્યા, ૬. જ્ઞાન સંખ્યા, ૭. ગણના સંખ્યા, ૮. ભાવ સંખ્યા. [૨] નામ સંખ્યાનું સ્વરૂપ કેવું છે ? જે જીવ, અજીવ, જીવો કે અજીવો અથવા જીવાજીવ, જીવાજીવોનું ‘સંખ્યા’, | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 317 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] ४. असंतयं असंतएणं उवमिज्जइ–जहा खरविसाणं तहा ससविसाणं। से तं ओवम्मसंखा।
से किं तं परिमाणसंखा? परिमाणसंखा दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–कालियसुयपरिमाणसंखा दिट्ठिवायसुयपरिमाणसंखा य।
से किं तं कालियसुयपरिमाणसंखा? कालियसुयपरिमाणसंखा अनेगविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जवसंखा अक्खरसंखा संघायसंखा पयसंखा पायसंखा गाहासंखा सिलोगसंखा वेढसंखा निज्जुत्तिसंखा अनुओगदारसंखा उद्देसगसंखा अज्झयणसंखा सुयखंधसंखा अंगसंखा।
से तं कालियसुयपरिमाणसंखा।
से किं तं दिट्ठिवायसुयपरिमाणसंखा? दिट्ठिवायसुयपरिमाणसंखा अनेगविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जवसंखा अक्खरसंखा संघायसंखा पयसंखा पायसंखा Translated Sutra: [૧] અવિદ્યમાન પદાર્થને અવિદ્યમાન પદાર્થથી ઉપમિત કરવામાં આવે તે અસદ્ – અસદ્રૂપ ઉપમા કહેવાય છે. જેમ કે ગધેડાના વિષાણ – શીંગડા, તેવા સસલાના શીંગડા. આ પ્રમાણે ઔપમ્ય સંખ્યાનુ સ્વરૂપ જાણવુ. [૨] પરિમાણ સંખ્યાનું સ્વરૂપ કેવું છે ? પરિમાણ સંખ્યાના બે પ્રકાર છે, તે આ પ્રમાણે છે – ૧. કાલિકશ્રુત પરિમાણ સંખ્યા ૨. દૃષ્ટિવાદ | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 319 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं अत्थाहिगारे? अत्थाहिगारे–जो जस्स अज्झयणस्स अत्थाहिगारो, तं जहा– Translated Sutra: | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 325 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं निक्खेवे? निक्खेवे तिविहे पन्नत्ते, तं–ओहनिप्फन्ने नामनिप्फन्ने सुत्तालावगनिप्फन्ने।
से किं तं ओहनिप्फन्ने? ओहनिप्फन्ने चउव्विहे पन्नत्ते, तं–अज्झयणे अज्झीणे आए ज्झवणा।
से किं तं अज्झयणे? अज्झयणे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–नामज्झयणे ठवणज्झयणे दव्वज्झयणे भावज्झयणे।
नाम-ट्ठवणाओ गयाओ।
से किं तं दव्वज्झयणे? दव्वज्झयणे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–आगमओ य नोआगमओ य।
से किं तं आगमओ दव्वज्झयणे? आगमओ दव्वज्झयणे–जस्स णं अज्झयणे त्ति पदं सिक्खियं ठियं जियं मियं परिजियं नामसमं घोससमं अहीनक्खरं अनच्चक्खरं अव्वाइद्धक्खरं अक्खलियं अमिलियं अवच्चामेलियं पडिपुण्णं Translated Sutra: સૂત્ર– ૩૨૫. [૧] નિક્ષેપનું સ્વરૂપ કેવું છે ? નિક્ષેપના ત્રણ પ્રકાર છે, તે આ પ્રમાણે છે – ૧. ઓઘનિષ્પન્ન નિક્ષેપ, ૨. નામનિષ્પન્ન નિક્ષેપ, ૩. સૂત્રલાપકનિષ્પન્ન નિક્ષેપ. [૨] ઓઘનિષ્પન્ન નિક્ષેપનું સ્વરૂપ કેવું છે ? ઓઘનિષ્પન્ન નિક્ષેપના ચાર પ્રકાર છે, તે આ પ્રમાણે છે ૧. અધ્યયન, ૨. અક્ષીણ, ૩. આય, ૪. ક્ષપણા. [૩] અધ્યયનનું સ્વરૂપ | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 327 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से तं नोआगमओ भावज्झयणे। से तं भावज्झयणे। से तं अज्झयणे।
से किं तं अज्झीणे? अज्झीणे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–नामज्झीणे ठवणज्झीणे दव्वज्झीणे भावज्झीणे।
नाम-ट्ठवणाओ गयाओ।
से किं तं दव्वज्झीणे? दव्वज्झीणे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–आगमओ य नोआगमओ य।
से किं तं आगमओ दव्वज्झीणे? आगमओ दव्वज्झीणे–जस्स णं अज्झीणे त्ति पदं सिक्खियं ठियं जियं मियं परिजियं नामसमं घोससमं अहीनक्खरं अनच्चक्खरं अव्वाइद्धक्खरं अक्खलियं अमिलियं अवच्चामेलियं पडिपुण्णं पडिपुन्नघोसं कंटोट्ठविप्पमुक्कं गुरुवायणोवगयं, से णं तत्थ वायणाए पुच्छणाए परियट्टणाए धम्मकहाए, नो अनुप्पेहाए। कम्हा? Translated Sutra: અક્ષીણ ઓઘનિષ્પન્ન નિક્ષેપનું સ્વરૂપ કેવું છે ? અક્ષીણના ચાર પ્રકાર છે, તે આ પ્રમાણે છે – ૧. નામ, ૨. સ્થાપના, ૩. દ્રવ્ય, ૪. ભાવ શિષ્ય – પ્રશિષ્યના ક્રમથી ભણવા – ભણાવવાની પરંપરા ચાલુ રહેવાથી શ્રુતનો ક્યારેય ક્ષય થતો નથી, તેથી શ્રુત અક્ષીણ કહેવાય છે.. નામ અને સ્થાપના અક્ષીણનું સ્વરૂપ આવશ્યક પ્રમાણે જાણવુ. દ્રવ્ય | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 329 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से तं नोआगमओ भावज्झीणे। से तं भावज्झीणे। से तं अज्झीणे।
से किं तं आए? आए चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–नामाए ठवणाए दव्वाए भावाए।
नाम-ट्ठवणाओ गयाओ।
से किं तं दव्वाए? दव्वाए दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–आगमओ य नोआगमओ य।
से किं तं आगमओ दव्वाए? आगमओ दव्वाए–जस्स णं आए त्ति पदं सिक्खियं ठियं जियं मियं परिजियं नाम-समं घोससमं अहीणक्खरं अणच्चक्खरं अव्वाइद्धक्खरं अक्खलियं अमिलियं अवच्चामेलियं पडिपुण्णं पडिपुन्नघोसं कंठोट्ठविप्पमुक्कं गुरुवायणोवगयं, से णं तत्थ वायणाए पुच्छणाए परियट्टणाए धम्मकहाए, नो अनुप्पेहाए।
कम्हा? अनुवओगो दव्वमिति कट्टु।
नेगमस्स एगो अनुवउत्तो आगमओ Translated Sutra: સૂત્ર– ૩૨૯. [૧] આયનું સ્વરૂપ કેવું છે ? આય ના ચાર પ્રકાર છે, ૧. નામ આય, ૨. સ્થાપના આય, ૩. દ્રવ્ય આય, ૪. ભાવ આય. [૨] નામ આય અને સ્થાપના આયનું સ્વરૂપ પૂર્વોક્ત નામ – સ્થાપના આવશ્યક પ્રમાણે જાણવું. દ્રવ્ય આયનું સ્વરૂપ કેવું છે ? દ્રવ્ય આયના બે પ્રકાર છે, તે આ પ્રમાણે છે – ૧. આગમથી, ૨. નોઆગમથી. આગમતઃ દ્રવ્ય આયનું સ્વરૂપ કેવું છે | |||||||||
Aturpratyakhyan | आतुर प्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
प्रथमा प्ररुपणा |
Hindi | 2 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पंच य अणुव्वयाइं सत्त उ सिक्खा उ देस-जइधम्मो ।
सव्वेण व देसेण व तेण जुओ होइ देसजई ॥ Translated Sutra: जिनशासन में सर्व विरति और देशविरति में दो प्रकार का यतिधर्म है, उसमें देशविरति का पाँच अणुव्रत और सात शिक्षाव्रत मिलाने से श्रावक के बारह व्रत बताए हैं। उन सभी व्रत से या फिर एक दो आदि व्रत समान उस के देश आराधन से जीव देशविरति होते हैं। | |||||||||
Aturpratyakhyan | આતુર પ્રત્યાખ્યાન | Ardha-Magadhi |
प्रथमा प्ररुपणा |
Gujarati | 2 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पंच य अणुव्वयाइं सत्त उ सिक्खा उ देस-जइधम्मो ।
सव्वेण व देसेण व तेण जुओ होइ देसजई ॥ Translated Sutra: સૂત્ર– ૨. દેશ યતિ (વિરતિ) ધર્મમાં પાંચ અણુવ્રત અને સાત શિક્ષાવ્રતો હોય છે. દેશવિરત જીવો સર્વ વ્રતોથી કે એક, બે, ત્રણ વ્રત આદિ દેશથી યુક્ત હોય છે. સૂત્ર– ૩. પ્રાણીવધ, મૃષાવાદ, અદત્ત, પરસ્ત્રીગમન, અપરિમિત ઇચ્છા, એ બધાનું નિયમન અર્થાત તે તે દોષોથી વિરમણ(અટકવું) તે પાંચ અણુવ્રતો છે. સૂત્ર– ૪. જે દિગ્વિરમણ, અનર્થદંડ | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 10 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थगरे सहसंबुद्धे पुरिसोत्तमे पुरिससीहे पुरिसवरपुंडरीए पुरिसवरगंधहत्थी अभयदए चक्खुदए अप्पडिहयवरनाणदंसणधरे वियट्टछउमे जिणे जाणए तिण्णे तारए मुत्ते मोयए बुद्धे बोहए सव्वण्णू सव्वदरिसी सिवमयलमरुय-मणंतमक्खयमव्वाबाहमपुनरावत्तगं सिद्धिगइनामधेज्जं ठाणं संपाविउकामे–
... भुयमोयग भिंग नेल कज्जल पहट्ठभमरगण निद्ध निकुरुंब निचिय कुंचिय पयाहिणावत्त मुद्धसिरए दालिमपुप्फप्पगास तवणिज्जसरिस निम्मल सुनिद्ध केसंत केसभूमी घन निचिय सुबद्ध लक्खणुन्नय कूडागारनिभ पिंडियग्गसिरए छत्तागारुत्तिमंगदेसे निव्वण सम Translated Sutra: उस समय श्रमण भगवान महावीर आदिकर, तीर्थंकर, स्वयं – संबुद्ध, पुरुषोत्तम, पुरुषसिंह, पुरुषवर – पुंडरीक, पुरुषवर – गन्धहस्ती, अभयप्रदायक, चक्षु – प्रदायक, मार्ग – प्रदायक, शरणप्रद, जीवनप्रद, संसार – सागर में भटकते जनों के लिए द्वीप के समान आश्रयस्थान, गति एवं आधारभूत, चार अन्त युक्त पृथ्वी के अधिपति के समान चक्रवर्ती, | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 12 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से कूणिए राया भिंभसारपुत्ते तस्स पवित्ति वाउयस्स अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ चित्तमानंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस विसप्पमाणहियए वियसिय वरकमल नयन वयणे पयलिय वरकडग तुडिय केऊर मउड कुंडल हार विरायंतरइयवच्छे पालंब पलंबमाण घोलंत-भूसणधरे ससंभमं तुरियं चवलं नरिंदे सीहासणाओ अब्भुट्ठेइ, अब्भुट्ठेत्ता पाय पीढाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता पाउयाओ ओमुयइ, ओमुइत्ता एगसाडियं उत्तरासंगं करेइ, करेत्ता आयंते चोक्खे परमसुइभूए अंजलिमउलियहत्थे तित्थगराभिमुहे सत्तट्ठपयाइं अनुगच्छइ, ...
...अनुगच्छित्ता वामं जाणुं अंचेइ, अंचेत्ता दाहिणं जाणुं धरणितलंसि Translated Sutra: भंभसार का पुत्र राजा कूणिक वार्तानिवेदक से यह सूनकर, उसे हृदयंगम कर हर्षित एवं परितुष्ट हुआ। उत्तम कमल के समान उसका मुख तथा नेत्र खिल उठे। हर्षातिरेक जनित संस्फूर्तिवश राजा के हाथों के उत्तम कड़े, बाहुरक्षिका, केयूर, मुकूट, कुण्डल तथा वक्षःस्थल पर शोभित हार सहसा कम्पित हो उठे – राजा के गले में लम्बी माला लटक | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 15 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी बहवे निग्गंथा भगवंतो–अप्पेगइया आभिनिबोहियनाणी अप्पेगइया सुयनाणी अप्पेगइया ओहिनाणी अप्पेगइया मणपज्जवनाणी अप्पेगइया केवलनाणी अप्पेगइया मनबलिया अप्पेगइया वयबलिया अप्पेगइया कायबलिया अप्पेगइया मणेणं सावाणुग्गहसमत्था अप्पेगइया वएणं सावाणुग्गहसमत्था अप्पेगइया काएणं सावाणुग्गहसमत्था ...
...अप्पेगइया खेलोसहिपत्ता अप्पेगइया जल्लोसहिपत्ता अप्पेगइया विप्पोसहिपत्ता अप्पेगइया आमोसहिपत्ता अप्पेगइया सव्वोसहिपत्ता अप्पेगइया कोट्ठबुद्धी अप्पेगइया बीयबुद्धी अप्पेगइया पडबुद्धी अप्पेगइया पयाणुसारी Translated Sutra: उस समय श्रमण भगवान महावीर के अन्तेवासी बहुत से निर्ग्रन्थ संयम तथा तप से आत्मा को भावित करते हुए विचरण करते थे। उनमें कईं मतिज्ञानी यावत् केवलज्ञानी थे। कईं मनोबली, वचनबली, तथा कायबली थे। कईं मन से, कईं वचन से, कईं शरीर द्वारा अपकार व उपकार करने में समर्थ थे। कईं खेलौषधिप्राप्त, कईं जल्लौषधिप्राप्त थे। कईं | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 17 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी बहवे अनगारा भगवंतो इरियासमिया भासासमिया एसणासमिया आयाण भंड मत्त निक्खेवणा समिया उच्चार पासवण खेल सिंधाण जल्ल पारिट्ठावणियासमिया मनगुत्ता वयगुत्ता कायगुत्ता गुत्ता गुत्तिंदिया गुत्तबंभयारी अममा अकिंचणा निरुवलेवा कंसपाईव मुक्कतोया, संखो इव निरंगणा, जीवो विव अप्पडिहयगई, जच्चकणगं पिव जायरूवा, आदरिसफलगा इव पागडभावा, कुम्मो इव गुत्तिंदिया, पुक्खरपत्तं व निरुवलेवा, गगनमिव निरालंबणा, अनिलो इव निरालया, चंदो इव सोमलेसा, सूरो इव दित्ततेया, सागरो इव गंभीरा, विहग इव सव्वओ विप्पमुक्का, मंदरो इव अप्पकंपा, सारयसलिलं Translated Sutra: उस काल, उस समय श्रमण भगवान महावीर के अन्तेवासी बहुत से अनगार भगवान थे। वे ईर्या, भाषा, आहार आदि की गवेषणा, याचना, पात्र आदि के उठाने, इधर – उधर रखने आदि तथा मल, मूत्र, खंखार, नाक आदि का मैल त्यागने में समित थे। वे मनोगुप्त, वचोगुप्त, कायगुप्त, गुप्त, गुप्तेन्द्रिय, गुप्त ब्रह्मचारी, अमम, अकिञ्चन, छिन्नग्रन्थ, छिन्नस्रोत, |