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Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

३२. आत्मविकाससूत्र (गुणस्थान) Hindi 560 View Detail
Mool Sutra: सकदकफलजलं वा, सरए सरवाणियं व णिम्मलयं। सयलोवसंतमोहो, उवसंतकसायओ होदि।।१५।।

Translated Sutra: जैसे निर्मली-फल से युक्त जल अथवा शरदकालीन सरोवर का जल (मिट्टी के बैठ जाने से) निर्मल होता है, वैसे ही जिनका सम्पूर्ण मोह उपशान्त हो गया है, वे निर्मल परिणामी उपशान्त-कषाय[5] कहलाते हैं।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

३३. संलेखनासूत्र Hindi 577 View Detail
Mool Sutra: न वि तं सत्थं च विसं च, दुप्पउतु व्व कुणइ वेयालो। जंतं व दुप्पउत्तं, सप्पु व्व पमाइणो कुद्धो।।११।।

Translated Sutra: दुष्प्रयुक्त शस्त्र, विष, भूत तथा दुष्प्रयुक्त यन्त्र तथा क्रुद्ध सर्प आदि प्रमादी का उतना अनिष्ट नहीं करते, जितना अनिष्ट समाधिकाल में मन में रहे हुए माया, मिथ्यात्व व निदान शल्य करते हैं। इससे बोधि की प्राप्ति दुर्लभ हो जाती है तथा वह अनन्तसंसारी होता है। संदर्भ ५७७-५७८
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

३३. संलेखनासूत्र Hindi 578 View Detail
Mool Sutra: जं कुणइ भावसल्लं, अणुद्धियं उत्तमट्ठकालम्मि। दुल्लहबोहीयत्तं, अणंतसंसारियत्तं च।।१२।।

Translated Sutra: कृपया देखें ५७७; संदर्भ ५७७-५७८
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

३३. संलेखनासूत्र Hindi 579 View Detail
Mool Sutra: तो उद्धरंति गारवरहिया, मूलं पुणब्भवलयाणं। मिच्छादंसणसल्लं, मायासल्लं नियाणं च।।१३।।

Translated Sutra: अतः अभिमान-रहित साधक पुनर्जन्मरूपी लता के मूल अर्थात् मिथ्यादर्शनशल्य, मायाशल्य व निदानशल्य को अन्तरंग से निकालकर फेंक देते हैं।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

३३. संलेखनासूत्र Hindi 582 View Detail
Mool Sutra: आराहणाए कज्जे, परियम्मं सव्वदा वि कायव्वं। परियम्भभाविदस्स हु, सुहसज्झाऽऽराहणा होइ।।१६।।

Translated Sutra: (इसलिए मरण-काल में रत्नत्रय की सिद्धि या सम्प्राप्ति के अभिलाषी साधक को चाहिए कि वह) पहले से ही निरन्तर परिकर्म अर्थात् सम्यक्त्वादि का अनुष्ठान या आराधना करता रहे, क्योंकि परिकर्म या अभ्यास करते रहनेवाले की आराधना सुखपूर्वक होती है।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

३३. संलेखनासूत्र Hindi 583 View Detail
Mool Sutra: जह रायकुलपसूओ, जोग्गं णिच्चमवि कुणइ परिकम्मं। तो जिदकरणो जुद्धे, कम्मसमत्थो भविस्सदि हि।।१७।।

Translated Sutra: राजकुल में उत्पन्न राजपुत्र नित्य समुचित शस्त्राभ्यास करता रहता है तो उसमें दक्षता आ जाती है और वह युद्ध में विजय प्राप्त करने में समर्थ होता है। इसी प्रकार जो समभावी साधु नित्य ध्यानाभ्यास करता है, उसका चित्त वश में हो जाता है और मरणकाल में ध्यान करने में समर्थ हो जाता है। संदर्भ ५८३-५८४
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

३३. संलेखनासूत्र Hindi 586 View Detail
Mool Sutra: इहपरलोगासंस-प्पओग, तह जीयमरणभोगेसु। वज्जिज्जा भाविज्ज य, असुहं संसारपरिणामं।।२०।।

Translated Sutra: संलेखना-रत साधक को मरण-काल में इस लोक और परलोक में सुखादि के प्राप्त करने की इच्छा का तथा जीने और मरने की इच्छा का त्याग करके अन्तिम साँस तक संसार के अशुभ परिणाम का चिन्तन करना चाहिए।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

तृतीय खण्ड - तत्त्व-दर्शन

३४. तत्त्वसूत्र Hindi 594 View Detail
Mool Sutra: अज्जीवो पुण णेओ, पुग्गल धम्मो अधम्म आयासं। कालो पुग्गल मुत्तो, रूवादिगुणो अमुत्ति सेसा दु।।७।।

Translated Sutra: अजीवद्रव्य पाँच प्रकार का है--पुद्गल, धर्मद्रव्य, अधर्मद्रव्य, आकाश और काल। इनमें से पुद्गल रूपादि गुण युक्त होने से मूर्त है। शेष चारों अमूर्त हैं।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

तृतीय खण्ड - तत्त्व-दर्शन

३४. तत्त्वसूत्र Hindi 600 View Detail
Mool Sutra: अप्पपसंसण-करणं, पुज्जेसु वि दोसगहण-सीलत्तं। वेरधरणं च सुइरं, तिव्वकसायाण लिंगाणि।।१३।।

Translated Sutra: अपनी प्रशंसा करना, पूज्य पुरुषों में भी दोष निकालने का स्वभाव होना, दीर्घकाल तक वैर की गाँठ को बाँधे रखना--ये तीव्रकषायवाले जीवों के लक्षण हैं।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

तृतीय खण्ड - तत्त्व-दर्शन

३४. तत्त्वसूत्र Hindi 615 View Detail
Mool Sutra: चक्किकुरुफणिसुरेंदेसु, अहमिंदे जं सुहं तिकालभवं। तत्तो अणंतगुणिदं, सिद्धाणं खणसुहं होदि।।२८।।

Translated Sutra: चक्रवर्तियों को, उत्तरकुरु, दक्षिणकुरु आदि भोगभूमिवाले जीवों को, तथा फणीन्द्र, सुरेन्द्र एवं अहमिन्द्रों को त्रिकाल में जितना सुख मिलता है उस सबसे भी अनन्तगुना सुख सिद्धों को एक क्षण में अनुभव होता है।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

तृतीय खण्ड - तत्त्व-दर्शन

३५. द्रव्यसूत्र Hindi 624 View Detail
Mool Sutra: धम्मो अहम्मो आगासं, कालो पुग्गल जन्तवो। एस लोगो त्ति पण्णत्तो, जिणेहिं वरदंसिहिं।।१।।

Translated Sutra: परमदर्शी जिनवरों ने लोक को धर्म, अधर्म, आकाश, काल, पुद्गल और जीव इस प्रकार छह द्रव्यात्मक कहा है।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

तृतीय खण्ड - तत्त्व-दर्शन

३५. द्रव्यसूत्र Hindi 625 View Detail
Mool Sutra: आगासकालपुग्गल-धम्माधम्मेसु णत्थि जीवगुणा। तेसिं अचेदणत्तं, भणिदं जीवस्स चेदणदा।।२।।

Translated Sutra: आकाश, काल, पुद्गल, धर्म और अधर्म द्रव्यों में जीव के गुण नहीं होते, इसलिए इन्हें अजीव कहा गया है। जीव का गुण चेतनता है।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

तृतीय खण्ड - तत्त्व-दर्शन

३५. द्रव्यसूत्र Hindi 626 View Detail
Mool Sutra: आगासकालजीवा, धम्माधम्मा य मुत्तिपरिहीणा। मुत्तं पुग्गलदव्वं, जीवो खलु चेदणो तेसु।।३।।

Translated Sutra: आकाश, काल, जीव, धर्म और अधर्म द्रव्य अमूर्तिक हैं। पुद्गल द्रव्य मूर्तिक है। इन सबमें केवल जीव द्रव्य ही चेतन है।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

तृतीय खण्ड - तत्त्व-दर्शन

३५. द्रव्यसूत्र Hindi 627 View Detail
Mool Sutra: जीवा पुग्गलकाया, सह सक्किरिया हवंति ण य सेसा। पुग्गलकरणा जीवा, खंधा खलु कालकरणा दु।।४।।

Translated Sutra: जीव और पुद्गलकाय ये दो द्रव्य सक्रिय हैं। शेष सब द्रव्य निष्क्रिय हैं। जीव के सक्रिय होने का बाह्य साधन कर्म नोकर्मरूप पुद्गल है और पुद्गल के सक्रिय होने का बाह्य साधन कालद्रव्य है।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

तृतीय खण्ड - तत्त्व-दर्शन

३५. द्रव्यसूत्र Hindi 628 View Detail
Mool Sutra: धम्मो अहम्मो आगासं, दव्वं इक्किक्कमाहियं। अणंताणि य दव्वाणि, कालो पुग्गल जंतवो।।५।।

Translated Sutra: धर्म, अधर्म और आकाश ये तीनों द्रव्य संख्या में एक-एक हैं। (व्यवहार-) काल, पुद्गल और जीव ये तीनों द्रव्य अनंत-अनंत हैं।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

तृतीय खण्ड - तत्त्व-दर्शन

३५. द्रव्यसूत्र Hindi 629 View Detail
Mool Sutra: धम्माधम्मे य दोऽवेए, लोगमित्ता वियाहिया। लोगालोगे य आगासे, समए समयखेत्तिए।।६।।

Translated Sutra: धर्म और अधर्म ये दोनों ही द्रव्य लोकप्रमाण हैं। आकाश लोक और अलोक में व्याप्त है। (व्यवहार-) काल केवल समयक्षेत्र अर्थात् मनुष्यक्षेत्र में ही है।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

तृतीय खण्ड - तत्त्व-दर्शन

३५. द्रव्यसूत्र Hindi 630 View Detail
Mool Sutra: अन्नोन्नं पविसंता, दिंता ओगासमन्नमन्नस्स। मेलंता वि य णिच्चं, सगं सभावं ण विजहंति।।७।।

Translated Sutra: ये सब द्रव्य परस्पर में प्रविष्ट हैं। एक द्रव्य दूसरे द्रव्य को अवकाश देते हुए स्थित है। ये इसी प्रकार अनादिकाल से मिले हुए हैं, किन्तु अपना-अपना स्वभाव नहीं छोड़ते हैं।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

तृतीय खण्ड - तत्त्व-दर्शन

३५. द्रव्यसूत्र Hindi 637 View Detail
Mool Sutra: पासरसगंधवण्ण-व्वदिरित्तो अगुरुलहुगसंजुत्तो। वत्तणलक्खणकलियं, कालसरूवं इमं होदि।।१४।।

Translated Sutra: स्पर्श, गन्ध, रस और रूप से रहित, अगुरु-लघु गुण से युक्त तथा वर्तना लक्षणवाला कालद्रव्य है।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

तृतीय खण्ड - तत्त्व-दर्शन

३५. द्रव्यसूत्र Hindi 638 View Detail
Mool Sutra: जीवाण पुग्गलाणं, हुवंति परियट्टणाइ विविहाइ। एदाणं पज्जाया, वट्टंते मुक्खकालआधारे।।१५।।

Translated Sutra: जीवों और पुद्गलों में नित्य होनेवाले अनेक प्रकार के परिवर्तन या पर्यायें मुख्यतः कालद्रव्य के आधार से होती हैं--उनके परिणमन में कालद्रव्य निमित्त होता है। (इसीको आगम में निश्चयकाल कहा गया है।)
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

तृतीय खण्ड - तत्त्व-दर्शन

३५. द्रव्यसूत्र Hindi 639 View Detail
Mool Sutra: समयावलिउस्सासा, पाणा थोवा य आदिआ भेदा। ववहारकालणामा, णिद्दिट्ठा वीयराएहिं।।१६।।

Translated Sutra: वीतरागदेव ने बताया है कि व्यवहार-काल समय, आवलि, उच्छ्वास, प्राण, स्तोक आदि रूपात्मक है।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

तृतीय खण्ड - तत्त्व-दर्शन

३५. द्रव्यसूत्र Hindi 644 View Detail
Mool Sutra: वण्णरसगंधफासे, पूरणगलणाइ सव्वकालम्हि। खंदं इव कुणमाणा, परमाणू पुग्गला तम्हा।।२१।।

Translated Sutra: जिसमें पूरण गलन की क्रिया होती है अर्थात् जो टूटता-जूड़ता रहता है, वह पुद्गल है। स्कन्ध की भाँति परमाणु के भी स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण गुणों में सदा पूरण-गलन क्रिया होती रहती है, इसलिए परमाणु भी पुद्गल है।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

चतुर्थ खण्ड – स्याद्वाद

३७. अनेकान्तसूत्र Hindi 663 View Detail
Mool Sutra: ण भवो भंगविहीणो, भंगो वा णत्थि संभवविहीणो। उप्पादो वि य भंगो, ण विणा धोव्वेण अत्थेण।।४।।

Translated Sutra: उत्पाद व्यय के बिना नहीं होता और व्यय उत्पाद के बिना नहीं होता। इसी प्रकार उत्पाद और व्यय दोनों त्रिकालस्थायी ध्रौव्य अर्थ (आधार) के बिना नहीं होते।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

चतुर्थ खण्ड – स्याद्वाद

३७. अनेकान्तसूत्र Hindi 667 View Detail
Mool Sutra: पुरिसम्मि पुरिससद्दो, जम्माई-मरणकालपज्जन्तो। तस्स उ बालाईया, पज्जवजोया बहुवियप्पा।।८।।

Translated Sutra: पुरुष में पुरुष शब्द का व्यवहार जन्म से लेकर मरण तक होता है। परन्तु इसी बीच बचपन-बुढ़ापा आदि अनेक पर्यायें उत्पन्न हो-होकर नष्ट होती जाती हैं।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

चतुर्थ खण्ड – स्याद्वाद

३७. अनेकान्तसूत्र Hindi 668 View Detail
Mool Sutra: तम्हा वत्थूणं चिय, जो सरसो पज्जवो स सामन्नं। जो विसरिसो विसेसो, य मओऽणत्थंतरं तत्तो।।९।।

Translated Sutra: (अतः) वस्तुओं की जो सदृश पर्याय है-दीर्घकाल तक बनी रहनेवाली समान पर्याय है, वही सामान्य है और उनकी जो विसदृश पर्याय है वह विशेष है। ये दोनों सामान्य तथा विशेष पर्यायें उस वस्तु से अभिन्न (कथंचित्) मानी गयी हैं।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

चतुर्थ खण्ड – स्याद्वाद

३८. प्रमाणसूत्र Hindi 681 View Detail
Mool Sutra: अवहीयदित्ति ओही, सीमाणाणेत्ति वण्णियं समए। भवगुणपच्चय-विहियं, तमोहिणाण त्ति णं बिंति।।८।।

Translated Sutra: `अवधीयते इति अवधिः' अर्थात् द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव की मर्यादापूर्वक रूपी पदार्थों को एकदेश जाननेवाले ज्ञान को अवधिज्ञान कहते हैं। इसे आगम में सीमाज्ञान भी कहा गया है। इसके दो भेद हैं--भवप्रत्यय और गुणप्रत्यय।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

चतुर्थ खण्ड – स्याद्वाद

३९. नयसूत्र Hindi 696 View Detail
Mool Sutra: दव्वट्ठिएण सव्वं, दव्वं तं पज्जयट्ठिएण पुणो। हवदि य अन्नमणन्नं, तक्काले तम्मयत्तादो।।७।।

Translated Sutra: द्रव्यार्थिक नय से सभी द्रव्य हैं और पर्यायार्थिक नय से वह अन्य-अन्य है, क्योंकि जिस समय में जिस नय से वस्तु को देखते हैं, उस समय वह वस्तु उसी रूप में दृष्टिगोचर होती है।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

चतुर्थ खण्ड – स्याद्वाद

३९. नयसूत्र Hindi 701 View Detail
Mool Sutra: णिव्वित्त दव्वकिरिया, वट्टणकाले दु जं समाचरणं। तं भूयणइगमणयं, जह अज्जदिणं निव्वुओ वीरो।।१२।।

Translated Sutra: (भूत, वर्तमान और भविष्य के भेद से नैगमनय तीन प्रकार का है।) जो द्रव्य या कार्य भूतकाल में समाप्त हो चुका हो उसका वर्तमानकाल में आरोपण करना भूत नैगमनय है। जैसे हजारों वर्ष पूर्व हुए भगवान् महावीर के निर्वाण के लिए निर्वाण-अमावस्या के दिन कहना कि `आज वीर भगवान् का निर्वाण हुआ है।'
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

चतुर्थ खण्ड – स्याद्वाद

३९. नयसूत्र Hindi 707 View Detail
Mool Sutra: मणुयाइयपज्जाओ, मणुसो त्ति सगट्ठिदीसु वट्टंतो। जो भणइ तावकालं, सो थूलो होइ रिउसुत्तो।।१८।।

Translated Sutra: और जो अपनी स्थितिपर्यन्त रहनेवाली मनुष्यादि पर्याय को उतने समय तक एक मनुष्यरूप से ग्रहण करता है, वह स्थूल-ऋजुसूत्रनय है।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

चतुर्थ खण्ड – स्याद्वाद

४०. स्याद्वाद व सप्तभङ्गीसूत्र Hindi 718 View Detail
Mool Sutra: अत्थिसहावं दव्वं, सद्दव्वादीसु गाहियणएण। तं पि य णत्थिसहावं, परदव्वादीहि गहिएण।।५।।

Translated Sutra: स्व-द्रव्य, स्व-क्षेत्र, स्व-काल और स्व-भाव की अपेक्षा द्रव्य अस्तिस्वरूप है। वही पर-द्रव्य, पर-क्षेत्र, पर-काल और पर-भाव की अपेक्षा नास्तिस्वरूप है।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

चतुर्थ खण्ड – स्याद्वाद

४२. निक्षेपसूत्र Hindi 741 View Detail
Mool Sutra: दव्वं खु होइ दुविहं, आगम-णोआगमेण जह भणियं। अरहंत-सत्थ-जाणो, अणजुत्तो दव्व-अरिहंतो।।५।।

Translated Sutra: जहाँ वस्तु की वर्तमान अवस्था का उल्लंघन कर उसका भूतकालीन या भावी स्वरूपानुसार व्यवहार किया जाता है, वहाँ द्रव्यनिक्षेप होता है। उसके दो भेद हैं--आगम और नोआगम। अर्हत्कथित शास्त्र का जानकार जिस समय उस शास्त्र में अपना उपयोग नहीं लगाता उस समय वह आगम द्रव्यनिक्षेप से अर्हत् है। नोआगम द्रव्यनिक्षेप के तीन भेद
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

चतुर्थ खण्ड – स्याद्वाद

४२. निक्षेपसूत्र Hindi 743 View Detail
Mool Sutra: आगम-णोआगमदो, तहेव भावो वि होदि दव्वं वा। अरहंतसत्थजाणो, आगमभावो दु अरहंतो।।७।।

Translated Sutra: तत्कालवर्ती पर्याय के अनुसार ही वस्तु को सम्बोधित करना या मानना भावनिक्षेप है। इसके भी दो भेद हैं--आगम भावनिक्षेप और नोआगम भावनिक्षेप। जैसे अर्हत्-शास्त्र का ज्ञायक जिस समय उस ज्ञान में अपना उपयोग लगा रहा है उसी समय अर्हत् है; यह आगमभावनिक्षेप है। जिस समय उसमें अर्हत् के समस्त गुण प्रकट हो गये हैं उस समय उसे
Saman Suttam Saman Suttam Sanskrit

प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख

१. मङ्गलसूत्र English 9 View Detail
Mool Sutra: पञ्चमहाव्रततुङ्गाः, तत्कालिकस्वपरसमयश्रुतधाराः। नानागुणगणभरिता, आचार्या मम प्रसीदन्तु।।९।।

Translated Sutra: May the preceptors, who are elevated by the five great vows, wellversed in their own Scriptures as well as in other contemporary scriptures and endowed with numerous virtues, be pleased with me.
Saman Suttam Saman Suttam Sanskrit

प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख

५. संसारचक्रसूत्र English 46 View Detail
Mool Sutra: क्षणमात्रसौख्या बहुकालदुःखाः, प्रकामदुःखाः अनिकामसौख्याः। संसारमोक्षस्य विपक्षभूताः, खानिरनर्थानां तु कामभोगाः।।२।।

Translated Sutra: Sensuous enjoyments give momentary pleasure, but prolonged misery, more of misery and less of pleasure and they are the obstructions to salvationa and a veritable mine of misfortunes.
Saman Suttam Saman Suttam Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२१. साधनासूत्र English 295 View Detail
Mool Sutra: जरा यावत् न पीडयति, व्याधिः यावत् न वर्द्धते। यावदिन्द्रियाणि न हीयन्ते, तावत् धर्मं समाचरेत्।।८।।

Translated Sutra: One should practise religion well before old age does not annoy him, a disease does not aggravate and senses do not become weak.
Saman Suttam સમણસુત્તં Sanskrit

तृतीय खण्ड - तत्त्व-दर्शन

३५. द्रव्यसूत्र Gujarati 628 View Detail
Mool Sutra: धर्मोऽधर्म आकाशं, द्रव्यमेकैकमाख्यातम्। अनन्तानि च द्रव्याणि, कालः (समयाः) पुद्गला जन्तवः।।५।।

Translated Sutra: ધર્મ, અધર્મ, આકાશ - એટલાં દ્રવ્યો વ્યક્તિ તરીકે એક-એક છે. કાળ, પુદ્ગલ અને જીવ એ ત્રણ દ્રવ્યો અનંત-અનંત સંખ્યામાં છે.
Saman Suttam સમણસુત્તં Sanskrit

तृतीय खण्ड - तत्त्व-दर्शन

३५. द्रव्यसूत्र Gujarati 635 View Detail
Mool Sutra: चेतनारहितममूर्त्तं, अवगाहनलक्षणं च सर्वगतम्। लोकालोकद्विभेदं, तद् नभोद्रव्यं जिनोद्दिष्टम्।।१२।।

Translated Sutra: આકાશાસ્તિકાય અચેતન, અમૂર્ત અને વ્યાપક છે તેનો સ્વભાવ વસ્તુઓને અવકાશ આપવાનો છે; લોકાકાશ અને અલોકાકાશ એમ તેનાં બે પ્રકાર શ્રી જિનેશ્વરે કહ્યાં છે.
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

१८. सम्यग्दर्शनसूत्र Hindi 226 View Detail
Mool Sutra: किं बहुना भणितेन, ये सिद्धाः नरवराः गते काले। सेत्स्यन्ति येऽपि भव्याः, तद् जानीत सम्यक्त्वमाहात्म्यम्।।८।।

Translated Sutra: अधिक क्या कहें ? अतीतकाल में जो श्रेष्ठजन सिद्ध हुए हैं और जो आगे सिद्ध होंगे, वह सम्यक्त्व का ही माहात्म्य है।
Saman Suttam Saman Suttam Sanskrit

प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख

९. धर्मसूत्र English 82 View Detail
Mool Sutra: धर्मः मङ्गलमुत्कृष्टं, अहिंसा संयमः तपः। देवाः अपि तं नमस्यन्ति, यस्य धर्मे सदा मनः।।१।।

Translated Sutra: Religion is supremely auspicious; non-violence, selfcontrol and p[enance are its essentials. Even the gods bow down before him whose mind is ever preoccupied with religion.
Saman Suttam Saman Suttam Sanskrit

प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख

९. धर्मसूत्र English 93 View Detail
Mool Sutra: मृषावाक्यस्य पश्चाच्च पुरस्ताच्च, प्रयोगकाले च दुःखी दुरन्तः। एवमदत्तानि समाददानः, रूपेऽतृप्तो दुःखितोऽनिश्रः।।१२।।

Translated Sutra: A person suffers misery after telling a lie, before telling a lie and while telling a lie; thus suffers endless misery, similarly a person who steels or a person who is lustful also suffers misery and finds himself without support.
Saman Suttam Saman Suttam Sanskrit

प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख

९. धर्मसूत्र English 104 View Detail
Mool Sutra: यः च कान्तान् प्रियान् भोगान्, लब्धान् विपृष्ठीकरोति। स्वाधीनान् त्यजति भोगान्, स हि त्यागी इति उच्यते।।२३।।

Translated Sutra: He alone can be said to have truly renounced everything who has turened his back on all availble, beloved and dear objects of enjoyment possessed by him.
Saman Suttam Saman Suttam Sanskrit

प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख

१०. संयमसूत्र English 135 View Detail
Mool Sutra: क्रोधः प्रीतिं प्रणाशयति, मानो विनयनाशनः। माया मित्राणि नाशयति, लोभः सर्वविनाशनः।।१४।।

Translated Sutra: Anger destroys love, pride destroys modesty, deceit destroys friendship; greed is destructive of everything.
Saman Suttam Saman Suttam Sanskrit

प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख

१०. संयमसूत्र English 136 View Detail
Mool Sutra: उपशमेन हन्यात् क्रोधं, मानं मार्दवेन जयेत्। मायां च आर्जवभावेन, लोभं सन्तोषतो जयेत्।।१५।।

Translated Sutra: One ought to put an end to anger through calmness, pride by modesty, deceit by straight-forwardness and greed by contentment.
Saman Suttam Saman Suttam Sanskrit

प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख

१०. संयमसूत्र English 138 View Detail
Mool Sutra: स जानन् अजानन् वा, कृत्वा आ(अ)धार्मिकं पदम्। संवरेत् क्षिप्रमात्मानं, द्वितीयं तत् न समाचरेत्।।१७।।

Translated Sutra: When an unrighteous deed is committed, whether consciously or unconsciously, one should immediately control oneself so that such an act is not committed again.
Saman Suttam Saman Suttam Sanskrit

प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख

१२. अहिंसासूत्र English 148 View Detail
Mool Sutra: सर्वे जीवाः अपि इच्छन्ति, जीवितुं न मर्तुम्। तस्मात्प्राणवधं घोरं, निर्ग्रन्थाः वर्जयन्ति तम्।।२।।

Translated Sutra: All the living beings wish to live and not to die; that is why nirgranthas (persongages devoid of attachement) prohibit the killing of living beings.
Saman Suttam Saman Suttam Sanskrit

प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख

१२. अहिंसासूत्र English 149 View Detail
Mool Sutra: यावन्तो लोके प्राणा-स्त्रसा अथवा स्थावराः। तान् जानन्नजानन्वा, न हन्यात् नोऽपि घातयेत्।।३।।

Translated Sutra: Whether knowingly or unknowingly one should not kill living beings, mobile or immobile, in this world nor should cause them to be killed by others.
Saman Suttam Saman Suttam Sanskrit

प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख

१४. शिक्षासूत्र English 170 View Detail
Mool Sutra: विपत्तिरविनीतस्य, संपत्तिर्विनीतस्य च। यस्यैतद् द्विधा ज्ञातं, शिक्षां सः अधिगच्छति।।१।।

Translated Sutra: He who is modest and respectful gains knowledge and he who is arrogant and disrespectful fails to gain knowledge. He who is aware of these two facts acquires education.
Saman Suttam Saman Suttam Sanskrit

प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख

१४. शिक्षासूत्र English 174 View Detail
Mool Sutra: ज्ञानमेकाग्रचित्तश्च, स्थितः च स्थापयति परम्। श्रुतानि च अधीत्य, रतः श्रुतसमाधौ।।५।।

Translated Sutra: A person acquires knowledge and concentration of mind by studying scriptures. He becomes firm in religion and helps others to acquire that firmness. Thus throught the studies of scriptures he becomes absorbed in the contemplation of what is expounded therein.
Saman Suttam Saman Suttam Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

१६. मोक्षमार्गसूत्र English 201 View Detail
Mool Sutra: सौवर्णिकमपि निगलं, बध्नाति कालायसमपि यथा पुरुषम्। बध्नात्येवं जीवं, शुभमशुभं वा कृतं कर्म।।१०।।

Translated Sutra: Just as fetter whether made of iron or gold binds a person similarly Karma whether auspicious (punya) or inauspicious (Papa) binds the soul.
Saman Suttam Saman Suttam Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

१८. सम्यग्दर्शनसूत्र English 226 View Detail
Mool Sutra: किं बहुना भणितेन, ये सिद्धाः नरवराः गते काले। सेत्स्यन्ति येऽपि भव्याः, तद् जानीत सम्यक्त्वमाहात्म्यम्।।८।।

Translated Sutra: What is the use of saying more; it is due to the magnanimity of Right Faith that the great personage and the Bhavya (those worthy of attaininig emancipation) have attained liberation in the past and will do so in future.
Saman Suttam Saman Suttam Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

१८. सम्यग्दर्शनसूत्र English 240 View Detail
Mool Sutra: यत्रैव पश्येत् क्वचित् दुष्प्रयुक्तं, कायेन वाचा अथ मानसेन। तत्रैव धीरः प्रतिसंहरेत्, आजानेयः (जात्यश्वः) क्षिप्रमिव खलीनम्।।

Translated Sutra: The wise man, whenever he comes across an occasion for some wrong doing on the part of body, speech or mind, should withdraw himself there from, just as a horse of good pedigree is brought to the right track by means of rein.
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