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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१८ |
उद्देशक-३ माकंदी पुत्र | Hindi | 729 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से मागंदियपुत्ते अनगारे उट्ठाए उट्ठेइ, उट्ठेत्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वंदति नमंसति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–
अनगारस्स णं भंते! भावियप्पणो सव्वं कम्मं वेदेमाणस्स सव्वं कम्मं निज्जरेमाणस्स सव्वं मारं मरमाणस्स सव्वं सरीरं विप्पजहमाणस्स, चरिमं कम्मं वेदेमाणस्स चरिमं कम्मं निज्जरेमाणस्स चरिमं मारं मरमाणस्स चरिमं सरीरं विप्पजहमाणस्स, मारणंतियं कम्मं वेदेमाणस्स मारणंतियं कम्मं निज्जरेमाणस्स मारणंतियं मारं मरमाणस्स मारणंतियं सरीरं विप्पजहमाणस्स जे चरिमा निज्जरापोग्गला सुहुमा णं ते पोग्गला Translated Sutra: तत्पश्चात् माकन्दिपुत्र अनगार अपने स्थान से उठे और श्रमण भगवान महावीर के पास आए। उन्होंने श्रमण भगवान महावीर को वन्दन – नमस्कार किया और इस प्रकार पूछा – ‘भगवन् ! सभी कर्मों को वेदते हुए, सर्व कर्मों की निर्जरा करते हुए, समस्त मरणों से मरते हुए, सर्वशरीर को छोड़ते हुए तथा चरम कर्म को वेदते हुए, चरम कर्म की निर्जरा | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१८ |
उद्देशक-४ प्राणातिपात | Hindi | 733 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे जाव भगवं गोयमे एवं वयासी–अह भंते! पाणाइवाए, मुसावाए जाव मिच्छा-दंसणसल्ले, पाणाइवायवेरमणे जाव मिच्छादंसणसल्लवेरमणे, पुढविक्काइए जाव वणस्सइकाइए, धम्मत्थिकाए, अधम्मत्थिकाए, आगासत्थिकाए, जीवे असरीरपडिबद्धे, परमाणु-पोग्गले, सेलेसिं पडिवन्नए अनगारे, सव्वे य बादरबोंदिधरा कलेवरा– एए णं दुविहा जीवदव्वा य अजीवदव्वा य जीवाणं परिभोगत्ताए हव्वमागच्छंति?
गोयमा! पाणाइवाए जाव एए णं दुविहा जीवदव्वा य अजीवदव्वा य अत्थेगइया जीवाणं परिभोगत्ताए हव्वमागच्छंति, अत्थे गइया जीवाणं परिभोगत्ताए नो हव्वमागच्छंति।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–पाणाइवाए Translated Sutra: उस काल और उस समय में राजगृह नगर में यावत् गौतम स्वामी ने भगवान महावीर से इस प्रकार पूछा – भगवन् ! प्राणातिपात, मृषावाद यावत् मिथ्यादर्शनशल्य और प्राणातिपातविरमण, मृषावादविरमण, यावत् मिथ्या – दर्शनशल्यविवेक तथा पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक, एवं धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, शरीररहित | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१८ |
उद्देशक-४ प्राणातिपात | Hindi | 734 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! कसाया पन्नत्ता?
गोयमा! चत्तारि कसाया पन्नत्ता, तं जहा–कसायपदं निरवसेसं भाणियव्वं जाव निज्जरिस्संति लोभेणं।
कति णं भंते! जुम्मा पन्नत्ता?
गोयमा! चत्तारि जुम्मा पन्नत्ता, तं जहा–कडजुम्मे, तेयोगे, दावरजुम्मे, कलिओगे।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–जाव कलिओगे?
गोयमा! जे णं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अवहीरमाणे चउपज्जवसिए सेत्तं कडजुम्मे। जे णं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अव-हीरमाणे तिपज्जवसिए सेत्तं तेयोगे। जे णं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अवहीरमाणे दुपज्जवसिए सेत्तं दावरजुम्मे। जे णं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अवहीरमाणे एगपज्जवसिए सेत्तं कलिओगे। से तेणट्ठेणं Translated Sutra: भगवन् ! कषाय कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! चार प्रकार का, इत्यादि प्रज्ञापनासूत्र का कषाय पद, लोभ के वेदन द्वारा अष्टविध कर्मप्रकृतियों की निर्जरा करेंगे, तक कहना चाहिए। भगवन् ! युग्म (राशियाँ) कितने कहे गए हैं ? गौतम ! चार हैं, यथा – कृतयुग्म, त्र्योज, द्वापरयुग्म और कल्योज। भगवन् ! आप किस कारण से कहते हैं? | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१८ |
उद्देशक-७ केवली | Hindi | 743 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहे णं भंते! उवही पन्नत्ते?
गोयमा! तिविहे उवही पन्नत्ते, तं जहा–कम्मोवही, सरीरोवही, बाहिरभंडमत्तोवगरणोवही।
नेरइया णं भंते! – पुच्छा।
गोयमा! दुविहे उवही पन्नत्ते, तं जहा–कम्मोवही य, सरीरोवही य। सेसाणं तिविहे उवही एगिंदियवज्जाणं जाव वेमाणियाणं। एगिंदियाणं दुविहे उवही पन्नत्ते, तं जहा–कम्मोवही य, सरीरोवही य।
कतिविहे णं भंते! उवही पन्नत्ते?
गोयमा! तिविहे उवही पन्नत्ते, तं जहा–सच्चित्ते, अचित्ते, मीसाए। एवं नेरइयाण वि। एवं निरवसेसं जाव वेमाणियाणं।
कतिविहे णं भंते! परिग्गहे पन्नत्ते?
गोयमा! तिविहे परिग्गहे पन्नत्ते, तं जहा– कम्मपरिग्गहे, सरीरपरिग्गहे बाहिरगभंड-मत्तोवगरण-परिग्गहे।
नेरइयाणं Translated Sutra: भगवन् ! उपधि कितने प्रकार की कही है ? गौतम ! तीन प्रकार की। यथा – कर्मोपधि, शरीरोपधि और बाह्यभाण्डमात्रोपकरणउपधि। भगवन् ! नैरयिकों के कितने प्रकार की उपधि होती है ? गौतम ! दो प्रकार की, कर्मोपधि और शरीरोपधि। एकेन्द्रिय जीवों को छोड़कर वैमानिक तक शेष सभी जीवों के तीन प्रकार की उपधि होती है। एकेन्द्रिय जीवों | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१८ |
उद्देशक-७ केवली | Hindi | 744 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नगरे। गुणसिलए चेइए–वण्णओ जाव पुढविसिलापट्टओ। तस्स णं गुण सिलस्स चेइयस्स अदूरसामंते बहवे अन्नउत्थिया परिवसंति, तं जहा–कालोदाई, सेलोदाई, सेवालोदाई, उदए, नामुदए, नम्मुदए, अन्नवालए, सेलवालए, संखवालए, सुहत्थी गाहावई।
तए णं तेसिं अन्नउत्थियाणं अन्नया कयाइ एगयओ सहियाणं समुवागयाणं सन्निविट्ठाणं सण्णिसण्णाणं अय-मेयारूवे मिहोकहासमुल्लावे समुप्पज्जित्था–एवं खलु समणे नायपुत्ते पंच अत्थिकाए पन्नवेति, तं जहा–धम्मत्थिकायं जाव पोग्ग-लत्थिकायं।
तत्थ णं समणे नायपुत्ते चत्तारि अत्थिकाए अजीवकाए पन्नवेति, तं जहा–धम्मत्थिकायं, अधम्मत्थिकायं, Translated Sutra: उस काल उस समय राजगृह नामक नगर था। (वर्णन)। वहाँ गुणशील नामक उद्यान था। (वर्णन)। यावत् वहाँ एक पृथ्वीशिलापट्टक था। उस गुणशील उद्यान के समीप बहुत – से अन्यतीर्थिक रहते थे, यथा – कालोदायी, शैलोदायी इत्यादि समग्र वर्णन सातवें शतक के अन्यतीर्थिक उद्देशक के अनुसार, यावत् – ‘यह कैसे माना जा सकता है?’ यहाँ तक समझना | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१८ |
उद्देशक-९ भव्यद्रव्य | Hindi | 752 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–अत्थि णं भंते! भवियदव्वनेरइया-भवियदव्वनेरइया?
हंता अत्थि।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–भवियदव्वनेरइया-भवियदव्वनेरइया?
गोयमा! जे भविए पंचिंदिए तिरिक्खजोणिए वा मनुस्से वा नेरइएसु उववज्जित्तए। से तेणट्ठेणं। एवं जाव थणियकुमाराणं।
अत्थि णं भंते! भवियदव्वपुढविकाइया-भवियदव्वपुढविकाइया?
हंता अत्थि।
से केणट्ठेणं?
गोयमा! जे भविए तिरिक्खजोणिए वा मनुस्से वा देवे वा पुढविकाइएसु उववज्जित्तए। से तेणट्ठेणं। आउक्काइय-वणस्सइ-काइयाणं एवं चेव। तेउ-वाउ-बेइंदिय-तेइंदिय-चउरिंदियाण य जे भविए तिरिक्खजोणिए वा मनुस्से वा तेउ-वाउ-बेइंदिय-तेइंदिय-चउरिंदिएसु Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत् पूछा – भगवन् ! क्या भव्य – द्रव्य – नैरयिक – ‘भव्य – द्रव्य – नैरयिक’ हैं ? हाँ, गौतम ! हैं। भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहते हैं कि भव्य – द्रव्य – नैरयिक – ‘भव्य – द्रव्य – नैरयिक’ हैं ? गौतम ! जो कोई पंचेन्द्रिय – तिर्यञ्चयोनिक या मनुष्य नैरयिकों में उत्पन्न होने के योग्य है, वह भव्य – द्रव्य – | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१८ |
उद्देशक-१० सोमिल | Hindi | 756 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणियगामे नामं नगरे होत्था–वण्णओ। दूतिपलासए चेइए–वण्णओ। तत्थ णं वाणियगामे नगरे सोमिले नामं माहणे परिवसति अड्ढे जाव बहुजणस्स अपरिभूए, रिव्वेद जाव सुपरिनिट्ठिए, पंचण्हं खंडियसयाणं, सयस्स य, कुडुंबस्स आहेवच्चं पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं आणा-ईसर-सेनावच्चं कारेमाणे पालेमाणे विहरइ। तए णं समणे भगवं महावीरे जाव समोसढे जाव परिसा पज्जुवासति।
तए णं तस्स सोमिलस्स माहणस्स इमीसे कहाए लद्धट्ठस्स समाणस्स अयमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–एवं खलु समणे नायपुत्ते पुव्वानुपुव्विं चरमाणे गामानुगामं दूइज्जमाणे Translated Sutra: उस काल उस समय में वाणिज्यग्राम नामक नगर था। वहाँ द्युतिपलाश नाम का (चैत्य) था। उस वाणिज्य ग्राम नगर में सोमिल ब्राह्मण रहता था। जो आढ्य यावत् अपराभूत था तथा ऋग्वेद यावत् अथर्ववेद, तथा शिक्षा, कल्प आदि वेदांगों में निष्णात था। वह पाँच – सौ शिष्यों और अपने कुटुम्ब पर आधिपत्य करता हुआ यावत् सुख – पूर्वक जीवनयापन | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२० |
उद्देशक-१० सोपक्रमजीव | Hindi | 805 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइयाणं भंते! किं कतिसंचिया? अकतिसंचिया? अवत्तव्वगसंचिया?
गोयमा! नेरइया कतिसंचिया वि, अकतिसंचिया वि, अवत्तव्वगसंचिया वि।
से केणट्ठेणं जाव अवत्तव्वगसंचिया वि?
गोयमा! जे णं नेरइया संखेज्जएणं पवेसणएणं पविसंति ते णं नेरइया कतिसंचिया, जे णं नेरइया असंखेज्जएणं पवेसणएणं पविसंति ते णं नेरइया अकतिसंचिया, जे णं नेरइया एक्कएणं पवेसणएणं पविसंति ते णं नेरइया अवत्तव्वगसंचिया। से तेणट्ठेणं गोयमा! जाव अवत्तव्वगसंचिया वि। एवं जाव थणियकुमारा।
पुढविक्काइयाणं–पुच्छा।
गोयमा! पुढविकाइया नो कतिसंचिया, अकतिसंचिया, नो अवत्तव्वगसंचिया।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–जाव नो Translated Sutra: भगवन् ! नैरयिक कतिसंचित हैं, अकतिसंचित हैं अथवा अवक्तव्यसंचित ? गौतम ! तीनों हैं। भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा गया है ? गौतम ! जो नैरयिक संख्यात प्रवेश करते हैं, वे कतिसंचित हैं, जो नैरयिक असंख्यात प्रवेश करते हैं, वे अकतिसंचित हैं और जो नैरयिक एक – एक (करके) प्रवेश करते हैं, वे अवक्तव्यसंचित हैं। इसी प्रकार स्तनितकुमारों | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२१ वर्ग-२ थी ८ |
Hindi | 818 | Sutra | Ang-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! उक्खु-उक्खुवाडिय-वीरण-इक्कड-भमास-सुंब-सर-वेत्त-तिमिर-सतपोरग-नलाणं–एएसि णं जे जीवा मूलत्ताए वक्कमंति? एवं जहेव वंसवग्गो तहेव एत्थ वि मूलादीया दस उद्देसगा, नवरं–खंधुद्देसे देवो उववज्जति। चत्तारि लेस्साओ, सेसं तं चेव। Translated Sutra: | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२१ वर्ग-२ थी ८ |
Hindi | 820 | Sutra | Ang-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! अब्भरुह-बीयाण-हरितग-तंदुलेज्जग-तण-वत्थुल-पोरग-मज्जारपाइ-विल्लि-पालक्क-दगपिप्पलिय-दव्वि-सोत्थिक-सायमंडुक्कि-मूलग-सरिसव-अंबिलसाग-जियंतगाणं–एएसि णं जे जीवा मूलत्ताए वक्कमंति? एवं एत्थ वि दस उद्देसगा निरवसेसं जहेव वंसवग्गो। Translated Sutra: भगवन् ! अभ्ररुह, वायाण, हरीतक, तंदुलेय्यक, तृण, वत्थुल, बोरक, मार्जाणक, पाई, बिल्ली, पालक, दगपिप्पली, दर्वी, स्वस्तिक, शाकमण्डुकी, मूलक, सर्षप, अम्बिलशाक, जीयन्तक, इन सब वनस्पतियों के मूल रूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! चतुर्थ वंशवर्ग के समान मूलादि दश उद्देशक कहना | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२२ ताड, निंब, अगस्तिक... वर्ग-२ थी ६ |
Hindi | 824 | Sutra | Ang-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! निंबंब जंबु-कोसंब-साल-अंकोल्ल-पीलु-सेलु-सल्लइ-मोयइ-मालुय-बउल-पलास-करंज-पुत्तंजीवग-अरिट्ठ-विहेलग-हरित्तग-भल्लाय-उंबभरिय-खीरणि-धायइ-पियाल-पूइयणिंबारग सेण्हय पासिय सीसव असन पुण्णाग नागरुक्ख-सीवण्णि-असोगाणं–एएसि णं जे जीवा मूलत्ताए वक्कमंति? एवं मूलादीया दस उद्देसगा कायव्वा निरवसेसं जहा तालवग्गो। Translated Sutra: भगवन् ! नीम, आम्र, जम्बू, कोशम्ब, ताल, अंकोल्ल, पीलु, सेलु, सल्लकी, मोचकी, मालुक, बकुल, पलाश, करंज, पुत्रंजीवक, अरिष्ट, बहेड़ा, हरितक, भिल्लामा, उम्बरिय, क्षीरणी, धातकी, प्रियाल, पूतिक, निवाग, सेण्हक, पासिय, शीशम, अतसी, पुन्नाग, नागवृक्ष, श्रीपर्णी और अशोक, इन सब वृक्षों के मूल के रूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२२ ताड, निंब, अगस्तिक... वर्ग-२ थी ६ |
Hindi | 825 | Sutra | Ang-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! अत्थिय-तिंदुय-बोर-कविट्ठ–अंबाडग-माउलिंग-बिल्ल-आमलग-फणस-दाडिम-आसोत्थ-उंबर- वड- नग्गोह- नंदिरुक्ख-पिप्पलि- सत्तरि- पिलक्खुरुक्ख- काउंबरिय- कुत्थुंभरिय- देवदालि-तिलग- लउय- छत्तोह- सिरीस- सत्तिवण्ण- दहिवण्ण- लोद्ध- धव- चंदन- अज्जुण- नीम- कुडग-कलंबाणं–एएसि णं जे जीवा मूलत्ताए वक्कमंति, ते णं भंते! जीवा कओहिंतो उववज्जंति? एवं एत्थ वि मूलादीया दस उद्देसगा तालवग्गसरिसा नेयव्वा जाव बीयं। Translated Sutra: भगवन् ! अगस्तिक, तिन्दुक, बोर, कवीठ, अम्बाडक, बिजौरा, बिल्व, आमलक, फणस, दाड़िम, अश्वत्थ, उंबर, बड़, न्यग्रोध, नन्दिवृक्ष, पिप्पली, सतर, प्लक्षवृक्ष, काकोदुम्बरी, कुस्तुम्भरी, देवदालि, तिलक, लकुच, छत्रोघ, शिरीष, सप्तपर्ण, दधिपर्ण, लोध्रक, धव, चन्दन, अर्जुन, नीप, कुटज और कदम्ब, इन सब वृक्षों के मूलरूप से जो जीव उत्पन्न होते | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२३ आलु, लोही, आय, पाठा वर्ग-१ थी ५ – 830 |
Hindi | 830 | Sutra | Ang-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–अह भंते! आलुय-मूलग-सिंगबेर-हलिद्दा-रुरु-कंडरिय-जारु-छीरबिरालि-किट्ठि-कुंदु-कण्हाकडभु-मधु-पुयलइ-महुसिंगि-निरुहा-सप्पसुगंधा-छिण्णरुह-बीयरुहाणं–एएसि णं जे जीवा मूलत्ताए वक्कमंति? एवं एत्थ वि मूलादीया दस उद्देसगा कायव्वा वंसवग्गसरिसा, नवरं–परिमाणं जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अनंता वा उववज्जंति।
अवहारो–गोयमा! ते णं अनंता समये-समये अवहीरमाणा-अवहीरमाणा अनंताहिं ओसप्पिणीहिं उस्सप्पिणीहिं एवतिकालेणं अवहीरंति, नो चेव णं अवहिया सिया। ठिती जहन्नेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं, सेसं तं चेव Translated Sutra: राजगृह नगर में गौतम स्वामी ने यावत् इस प्रकार पूछा – भगवन् ! आलू, मूला, अदरक, हल्दी, रुरु, कंडरिक, जीरु, क्षीरविराली, किट्ठि, कुन्दु, कृष्णकडसु, मधु, पयलइ, मधुशृंगी, निरुहा, सर्पसुगन्धा, छिन्नरुहा और बीजरुहा, इन सब वनस्पतियों के मूल के रूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! यहाँ वंशवर्ग | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२४ |
उद्देशक-१ नैरयिक | Hindi | 838 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–नेरइया णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति–किं नेरइएहिंतो उववज्जंति? तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति? मनुस्सेहिंतो उववज्जंति? देवेहिंतो उववज्जंति?
गोयमा! नो नेरइएहिंतो उववज्जंति, तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति, मनुस्सेहिंतो वि उववज्जंति, नो देवेहिंतो उववज्जंति।
जइ तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति–किं एगिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति जाव पंचिंदियतिरिक्खजोणिए-हिंतो उववज्जंति?
गोयमा! नो एगिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति, नो बेंदिय, नो तेइंदिय, नो चउरिंदिय, पंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति।
जइ पंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति–किं Translated Sutra: राजगृह नगर में गौतम स्वामी ने यावत् इस प्रकार पूछा – भगवन् ! नैरयिक जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं? क्या वे नैरयिकों से उत्पन्न होते हैं, यावत् देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न नहीं होते, तिर्यंचयोनिकों से उत्पन्न होते हैं, मनुष्यों से भी उत्पन्न होते हैं, देवों में आकर उत्पन्न | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२४ |
उद्देशक-१ नैरयिक | Hindi | 839 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ सण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति किं संखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्ख- जोणिएहिंतो उववज्जंति? असंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति?
गोयमा! संखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति, नो असंखेज्जवासाउय सण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणि-एहिंतो उववज्जंति।
जइ संखेज्जवासाउय-सण्णिपंचिंदिय-तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति– किं जलचरेहिंतो उववज्जंति–पुच्छा।
गोयमा! जलचरेहिंतो उववज्जंति, जहा असण्णी जाव पज्जत्तएहिंतो उववज्जंति, नो अपज्जत्त-एहिंतो उववज्जंति।
पज्जत्तसंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते! Translated Sutra: भगवन् ! यदि नैरयिक संज्ञी – पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों में से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या वे संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी – पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों में से आकर उत्पन्न होते हैं, अथवा असंख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी – पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों में से ? गौतम ! वे संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी – पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२४ |
उद्देशक-१ नैरयिक | Hindi | 840 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पज्जत्तसंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते! जे भविए सक्करप्पभाए पुढवीए नेरइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा?
गोयमा! जहन्नेणं सागरोवमट्ठितीएसु, उक्कोसेणं तिसागरोवमट्ठितीएसु उववज्जेज्जा।
ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति? एवं जहेव रयणप्पभाए उववज्जंतगस्स लद्धी सच्चेव निरवसेसा भाणियव्वा जाव भवादेसो त्ति। कालादेसं जहन्नेणं सागरोवमं अंतोमुहुत्तमब्भहियं, उक्कोसेणं बारस सागरोवमाइं चउहिं पुव्वकोडीहिं अब्भहियाइं, एवत्तियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। एवं रयणप्पभपुढविगमसरिसा नव वि गमगा Translated Sutra: भगवन् ! पर्याप्त संख्येयवर्षायुष्क संज्ञी – पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक, जो शर्कराप्रभा पृथ्वी में नैरयिक रूप से उत्पन्न होने योग्य हो, वह कितने काल की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! जघन्य एक सागरोपम और उत्कृष्ट तीन सागरोपम की स्थिति वालों में। भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२४ |
उद्देशक-१ नैरयिक | Hindi | 841 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ मनुस्सेहिंतो उववज्जंति– किं सण्णि-मनुस्सेहिंतो उववज्जंति? असण्णि-मनुस्सेहिंतो उववज्जंति?
गोयमा! सण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति, नो असण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति।
जइ सण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति–किं संखेज्जवासाउयसण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति? असंखेज्जवासाउयसण्णिमणुस्सेहिंतो उववज्जंति?
गोयमा! संखेज्जवासाउयसण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति, नो असंखेज्जवासाउयसण्णि-मनुस्सेहिंतो उववज्जंति।
जइ संखेज्जवासाउयसण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति– किं पज्जत्तसंखेज्जवासाउयसण्णि-मनुस्सेहिंतो उववज्जंति? अपज्जत्तसंखेज्जवासाउयसण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति?
गोयमा! Translated Sutra: भगवन् ! यदि वह नैरयिक मनुष्यों में से आकर उत्पन्न होता है, तो क्या वह संज्ञी – मनुष्यों में से या असंज्ञी – मनुष्यों में से उत्पन्न होता है ? गौतम ! वह संज्ञी – मनुष्यों में से उत्पन्न होता है, असंज्ञी मनुष्यों में से उत्पन्न नहीं होता है। भगवन् ! यदि वह संज्ञी – मनुष्यों में से आकर उत्पन्न होता है तो क्या संख्येय | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२४ |
उद्देशक-१ नैरयिक | Hindi | 842 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पज्जत्तसंखेज्जवासाउयसण्णिमनुस्से णं भंते! जे भविए सक्करप्पभाए पुढवीए नेरइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा?
गोयमा! जहन्नेणं सागरोवमट्ठितीएसु, उक्कोसेणं तिसागरोवमट्ठितीएसु उववज्जेज्जा।
ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति? सो चेव रयणप्पभपुढविगमओ नेयव्वो, नवरं–सरीरोगाहणा जहन्नेणं रयणिपुहत्तं, उक्कोसेणं पंचधनुसयाइं। ठिती जहन्नेणं वासपुहत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी। एवं अनुबंधो वि। सेसं तं चेव जाव भवादेसो त्ति। कालादेसेणं जहन्नेणं सागरोवमं वासपुहत्तमब्भहियं, उक्कोसेणं बारस सागरोवमाइं चउहिं पुव्वकोडीहिं अब्भ-हियाइं, Translated Sutra: भगवन् ! पर्याप्त संख्येयवर्षायुष्क संज्ञी – मनुष्य, जो शर्कराप्रभापृथ्वी के नैरयिकों में उत्पन्न होने योग्य हो; वह कितने काल की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! वह जघन्य एक सागरोपम की और उत्कृष्ट तीन सागरोपम की स्थिति वाले शर्कराप्रभा नैरयिकों में उत्पन्न होता है। भगवन् ! वे जीव वहाँ एक | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२४ |
उद्देशक-२ परिमाण | Hindi | 843 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–असुरकुमारा णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति–किं नेरइएहिंतो उववज्जंति? तिरिक्ख-जोणिय-मनुस्स-देवेहिंतो उववज्जंति?
गोयमा! नो नेरइएहिंतो उववज्जंति, तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति, मनुस्सेहिंतो उववज्जंति, नो देवेहिंतो उववज्जंति। एवं जहेव नेरइयउद्देसए जाव–
पज्जत्ताअसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते! जे भविए असुरकुमारेसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवत्तिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा?
गोयमा! जहन्नेणं दसवाससहस्सट्ठितीएसु, उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेज्जइभाग-ट्ठितीएसु उववज्जेज्जा।
ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति? एवं रयणप्पभागमगसरिसा Translated Sutra: राजगृह नगर में गौतम स्वामी ने यावत् इस प्रकार पूछा – भगवन् ! असुरकुमार कहाँ से – किस गति से उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं। यावत् देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न नहीं होते, तिर्यंचयोनिकों और मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं, किन्तु देवों से आकर उत्पन्न | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२४ |
उद्देशक-३ थी ११ नागादि कुमारा | Hindi | 844 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–नागकुमाराणं भंते! कओहिंतो उववज्जंति–किं नेरइएहिंतो उववज्जंति? तिरिक्खजोणिय-मनुस्स-देवेहिंतो उववज्जंति?
गोयमा! नो नेरइएहिंतो उववज्जंति, तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति, मनुस्सेहिंतो उववज्जंति, नो देवेहिंतो उववज्जंति।
जइ तिरिक्खजोणिएहिंतो? एवं जहा असुरकुमाराणं वत्तव्वया तहा एतेसिं पि जाव असण्णित्ति।
जइ सण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति–किं संखेज्जवासाउय? असंखेज्जवासाउय?
गोयमा! संखेज्जवासाउय, असंखेज्जवासाउय जाव उववज्जंति।
असंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते! जे भविए नागकुमारेसु उववज्जित्तए, से णं भंते! Translated Sutra: राजगृह नगर में गौतमस्वामी ने यावत् इस प्रकार पूछा – भगवन् ! नागकुमार कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं? वे नैरयिकों से यावत् उत्पन्न होते हैं, देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे न तो नैरयिकों से और न देवों से आकर उत्पन्न होते हैं, वे तिर्यंचयोनिकों से या मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं। (भगवन् !) यदि वे (नागकुमार) | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२४ |
उद्देशक-१२ थी १६ पृथ्व्यादि | Hindi | 846 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पुढविक्काइया णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति–किं नेरइएहिंतो उववज्जंति? तिरिक्खजोणिय-मनुस्सदेवेहिंतो उववज्जंति?
गोयमा! नो नेरइएहिंतो उववज्जंति, तिरिक्खजोणिय-मनुस्स-देवेहिंतो उववज्जंति।
जइ तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति–किं एगिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो एवं जहा वक्कंतीए उववाओ जाव–
जइ बायरपुढविक्काइयएगिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति–किं पज्जत्ताबादर जाव उवव-ज्जंति, अपज्जत्ताबादरपुढवि?
गोयमा! पज्जत्ताबादरपुढवि, अपज्जत्ताबादरपुढवि जाव उववज्जंति।
पुढविक्काइए णं भंते! जे भविए पुढविक्काइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकाल-ट्ठितीएसु उववज्जेज्जा?
गोयमा! Translated Sutra: भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? नैरयिकों यावत् देवों से उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे नैरयिकों से नहीं, किन्तु तिर्यंचों, मनुष्यों या देवों से उत्पन्न होते हैं। यदि वे तिर्यंचयोनिकों से उत्पन्न होते हैं, तो क्या एकेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों से उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! प्रज्ञापनासूत्र के | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२४ |
उद्देशक-१२ थी १६ पृथ्व्यादि | Hindi | 847 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ बेंदिएहिंतो उववज्जंति– किं पज्जत्ता-बेंदिएहिंतो उववज्जंति? अपज्जत्ता-बेंदिएहिंतो उववज्जंति?
गोयमा! पज्जत्ता-बेंदिएहिंतो उववज्जंति, अपज्जत्ता-बेंदिएहिंतो वि उववज्जंति।
बेंदिए णं भंते! जे भविए पुढविक्काइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा?
गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तट्ठितीएसु, उक्कोसेणं बावीसवाससहस्सट्ठितीएसु।
ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति?
गोयमा! जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा वा असंखेज्जा वा उववज्जंति। छेवट्टसंघयणी। ओगाहणा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं बारस जोयणाइं। हुंडसंठिया। Translated Sutra: भगवन् ! यदि वे द्वीन्द्रिय जीवों से आकर उत्पन्न हों तो क्या पर्याप्त द्वीन्द्रिय जीवों से आकर उत्पन्न होते हैं या अपर्याप्त द्वीन्द्रिय जीवों से ? गौतम ! वे पर्याप्त तथा अपर्याप्त द्वीन्द्रियों से भी आकर उत्पन्न होते हैं। भगवन् ! जो द्वीन्द्रिय जीव पृथ्वीकायिक जीवों में उत्पन्न होने योग्य हैं, वे कितने | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२४ |
उद्देशक-१२ थी १६ पृथ्व्यादि | Hindi | 848 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ मनुस्सेहिंतो उववज्जंति– किं सण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति? असण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति?
गोयमा! सण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति, असण्णिमनुस्सेहिंतो वि उववज्जंति।
असण्णिमनुस्से णं भंते! जे भविए पुढविक्काइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकाल-ट्ठितीएसु उववज्जेज्जा? एवं जहा असण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणियस्स जहन्नकालट्ठितीयस्स तिन्नि गमगा तहा एयस्स वि ओहिया तिन्नि गमगा भाणियव्वा तहेव निरवसेसं। सेसा छ न भण्णंति।
जइ सण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति–किं संखेज्जवासाउय? असंखेज्जवासाउय?
गोयमा! संखेज्जवासाउय, नो असंखेज्जवासाउय।
जइ संखेज्जवासाउय किं पज्जत्तासंखेज्जवासाउय? Translated Sutra: (भगवन् !) यदि वे (पृथ्वीकायिक) मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या वे संज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं या असंज्ञी मनुष्यों से ? गौतम ! वे दोनों प्रकार के मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं। भगवन् ! असंज्ञी मनुष्य, कितने काल की स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होता है ? जघन्य काल की स्थिति वाले | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२४ |
उद्देशक-१२ थी १६ पृथ्व्यादि | Hindi | 849 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] आउक्काइया णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति? एवं जहेव पुढविक्काइयउद्देसए जाव–
पुढविक्काइए णं भंते! जे भविए आउक्काइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा?
गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तट्ठितीएसु, उक्कोसेणं सत्तवाससहस्सट्ठितीएसु उववज्जेज्जा। एवं पुढविक्काइयउद्देसगसरिसो भाणियव्वो, नवरं–ठितिं संवेहं च जाणेज्जा। सेसं तहेव।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! अप्कायिक जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? पृथ्वीकायिक – उद्देशक अनुसार कहना। यावत् भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव, कितने काल की स्थिति वाले अप्कायिक में उत्पन्न होता है ? गौतम ! जघन्य अन्त – र्मुहूर्त्त की और उत्कृष्ट सात हजार वर्ष की। इस प्रकार यह समग्र उद्देशक पृथ्वीकायिक के समान है। विशेष यह है कि इसकी | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२४ |
उद्देशक-१२ थी १६ पृथ्व्यादि | Hindi | 852 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] वणस्सइकाइया णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति? एवं पुढविक्काइयसरिसो उद्देसो, नवरं–जाहे वणस्सइकाइओ वणस्सइकाइएसु उववज्जंति ताहे पढम-बितिय-चउत्थ-पंचमेसु गमएसु परिमाणं अनुसमयं अविरहियं अनंता उववज्जंति।
भवादेसेणं जहन्नेणं दो भवग्गहणाइं, उक्कोसेणं अनंताइं भवग्गहणाइं। कालादेसेणं जहन्नेणं दो अंतोमुहुत्ता, उक्कोसेणं अनंतं कालं, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। सेसा पंच गमा अट्ठभवग्गहणिया तहेव, नवरं–ठितिं संवेहं च जाणेज्जा।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! वनस्पतिकायिक जीव, कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न। यह उद्देशक पृथ्वीकायिक – उद्देशक के समान है। विशेष यह है कि जब वनस्पतिकायिक जीव, वनस्पतिकायिक जीवों में उत्पन्न होते हैं, तब पहले, दूसरे, चौथे और पाँचवें गमक में परिमाण यह है कि प्रतिसमय निरन्तर वे अनन्त जीव उत्पन्न होते हैं। भव की अपेक्षा | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२४ |
उद्देशक-१७ थी १९ बेइन्द्रियादि | Hindi | 853 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] बेंदिया णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति? जाव–
पुढविक्काइए णं भंते! जे भविए बेंदिएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा? सच्चेव पुढविकाइयस्स लद्धी जाव कालादेसेणं जहन्नेणं दो अंतोमुहुत्ता, उक्कोसेणं संखेज्जाइं भवग्गहणाइं–एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। एवं तेसु चेव चउसु गमएसु संवेहो, सेसेसु पंचसु तहेव अट्ठ भवा। एवं जाव चउरिंदिएणं समं चउसु संखेज्जा भवा, पंचसु अट्ठ भवा। पंचिंदियतिरिक्खजोणियमनुस्सेसु समं तहेव अट्ठ भवा। देवेसु न उववज्जंति। ठितिं संवेहं च जाणेज्जा।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! द्वीन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं; इत्यादि, यावत् – हे भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव, कितने काल की स्थिति वाले द्वीन्द्रियों में उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! यहाँ पूर्वोक्त पृथ्वीकायिक की वक्तव्यता के समान, यावत् कालावेश से – जघन्य दो अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट संख्यात भव। पृथ्वीकायिक के साथ | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२४ |
उद्देशक-२० तिर्यंच पंचेन्द्रिय | Hindi | 856 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पंचिंदियतिरिक्खजोणिया णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति– किं नेरइएहिंतो उववज्जंति? तिरिक्ख-जोणिएहिंतो उववज्जंति? मनुस्सेहिंतो देवेहिंतो उववज्जंति?
गोयमा! नेरइएहिंतो उववज्जंति, तिरिक्खजोणिएहिंतो, मनुस्सेहिंतो वि, देवेहिंतो वि उववज्जंति।
जइ नेरइएहिंतो उववज्जंति– किं रयणप्पभपुढविनेरइएहिंतो उववज्जंति जाव अहेसत्तमपुढवि-नेरइएहिंतो उववज्जंति?
गोयमा! रयणप्पभपुढविनेरइएहिंतो उववज्जंति जाव अहेसत्तमपुढविनेरइएहिंतो उववज्जंति।
रयणप्पभपुढविनेरइए णं भंते! जे भविए पंचिंदियतिरिक्खजोणिएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठि-तीएसु उववज्जेज्जा?
गोयमा! जहन्नेणं Translated Sutra: भगवन् ! पंचेन्द्रिय – तिर्यंचयोनिक जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों से यावत् देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे नैरयिकों से यावत् देवों से भी आकर उत्पन्न होते हैं। भगवन् ! यदि वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या वे रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं, अथवा | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२४ |
उद्देशक-२१ मनुष्य | Hindi | 857 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] मनुस्सा णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति–किं नेरइएहिंतो उववज्जंति जाव देवेहिंतो उववज्जंति?
गोयमा! नेरइएहिंतो वि उववज्जंति जाव देवेहिंतो वि उववज्जंति। एवं उववाओ जहा पंचिंदिय-तिरिक्खजोणिउद्देसए जाव तमापुढविनेरइएहिंतो वि उववज्जंति, नो अहेसत्तमपुढविनेरइएहिंतो उववज्जंति।
रयणप्पभपुढविनेरइए णं भंते! से भविए मनुस्सेसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा?
गोयमा! जहन्नेणं मासपुहत्तट्ठितीएसु, उक्कोसेणं पुव्वकोडिआउएसु। अवसेसा वत्तव्वया जहा पंचिंदियतिरिक्खजोणिएसु उव वज्जंतस्स तहेव, नवरं–परिमाणे जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं Translated Sutra: भगवन् ! मनुष्य कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? नैरयिकों से आकर यावत् देवों से आकर होते हैं ? गौतम! नैरयिकों से यावत् देवों से भी आकर उत्पन्न होते हैं। इस प्रकार यहाँ ‘पंचेन्द्रिय – तिर्यंचयोनिक – उद्देशक’ अनुसार, यावत् – तमःप्रभापृथ्वी के नैरयिकों से भी आकर उत्पन्न होते हैं, किन्तु अधःसप्तमपृथ्वी के नैरयिकों | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२४ |
उद्देशक-२२ थी २४ देव | Hindi | 858 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] वाणमंतरा णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति–किं नेरइएहिंतो उववज्जंति? तिरिक्ख? एवं जहेव नागकुमारउद्देसए असण्णी तहेव निरवसेसं।
जइ सण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति– किं संखेज्जवासाउय? असंखेज्ज-वासाउय?
गोयमा! संखेज्जवासाउय, असंखेज्जवासाउय जाव उववज्जंति।
सण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते! जे भविए वाणमंतरेसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा?
गोयमा! जहन्नेणं दसवाससहस्सट्ठितीएसु, उक्कोसेणं पलिओवमट्ठितीएसु। सेसं तं चेव जहा नागकुमारउद्देसए जाव कालादेसेणं जहन्नेणं सातिरेगा पुव्वकोडी दसहिं वाससहस्सेहिं अब्भहिया, उक्कोसेणं चत्तारि Translated Sutra: भगवन् ! वाणव्यन्तर देव कहाँ से उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं ? या तिर्यंच – योनिकों से ? (गौतम !) नागकुमार – उद्देशक अनुसार असंज्ञी तक कहना चाहिए। भगवन् ! अंख्यात वर्ष की आयुष्य वाला संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक कितने काल की स्थिति वाले वाणव्यन्तरों में उत्पन्न होता है ? गौतम | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२४ |
उद्देशक-२२ थी २४ देव | Hindi | 859 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जोइसिया णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति–किं नेरइएहिंतो? भेदो जाव सण्णिपंचिंदियतिरिक्ख-जोणिएहिंतो उववज्जंति, नो असण्णिपंचिंदियतिरिक्ख।
जइ सण्णि किं संखेज्ज? असंखेज्ज?
गोयमा! संखेज्जवासाउय, असंखेज्जवासाउय।
असंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते! जे भविए जोतिसिएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा?
गोयमा! जहन्नेणं अट्ठभागपलिओवमट्ठितीएसु, उक्कोसेणं पलिओवमवाससयसहस्स-ट्ठितीएसु उववज्जेज्जा, अवसेसं जहा असुरकुमारुद्देसए, नवरं–ठिती जहन्नेणं अट्ठभागपलिओवमं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं। एवं अनुबंधो वि।
सेसं तहेव, नवरं –कालादेसेणं Translated Sutra: भगवन् ! ज्योतिष्क देव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम! तिर्यंचों और मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं, यावत् – वे संज्ञी – पंचेन्द्रिय – तिर्यंचयोनिकों से आकर उत्पन्न होते हैं, असंज्ञी पंचेन्द्रिय से नहीं। भगवन् ! यदि वे संज्ञी – पंचेन्द्रिय तिर्यंचों से आकर उत्पन्न | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२४ |
उद्देशक-२२ थी २४ देव | Hindi | 860 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सोहम्मदेवा णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति–किं नेरइएहिंतो उववज्जंति? भेदो जहा जोइसिय-उद्देसए।
असंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते! जे भविए साहम्मगदेवेसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा?
गोयमा! जहन्नेणं पलिओवमट्ठितीएसु उक्कोसेणं तिपलिओवमट्ठितीएसु उववज्जेज्जा।
ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति? अवसेसं जहा जोइसिएसु उववज्ज-माणस्स, नवरं–सम्मदिट्ठी वि, मिच्छादिट्ठी वि, नो सम्मामिच्छादिट्ठी। नाणी वि, अन्नाणी वि, दो नाणा दो अन्नाणा नियमं। ठिती जहन्नेणं पलिओवमं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं। एवं अनुबंधो वि। सेसं तहेव। Translated Sutra: भगवन् ! सौधर्मदेव, किस गति से आकर उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों से यावत् देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ? ज्योतिष्क – उद्देशक के अनुसार भेद जानना चाहिए। भगवन् ! असंख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय – तिर्यंचयोनिक कितने काल की स्थिति वाले सौधर्मदेवों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! जघन्य पल्योपम की | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-४ युग्म | Hindi | 881 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! जुम्मा पन्नत्ता?
गोयमा! चत्तारि जुम्मा पन्नत्ता, तं जहा–कडजुम्मे जाव कलियोगे।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–चत्तारि जुम्मा पन्नत्ता– कडजुम्मे जाव कलियोगे? एवं जहा अट्ठारसमसते चउत्थे उद्देसए तहेव जाव से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ।
नेरइयाणं भंते! कति जुम्मा पन्नत्ता?
गोयमा! चत्तारि जुम्मा पन्नत्ता, तं जहा–कडजुम्मे जाव कलियोगे।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–नेरइयाणं चत्तारि जुम्मा पन्नत्ता, तं जहा–कडजुम्मे? अट्ठो तहेव। एवं जाव वाउकाइयाणं।
वणस्सइकाइयाणं भंते! –पुच्छा।
गोयमा! वणस्सइकाइया सिय कडजुम्मा, सिय तेयोगा, सिय दावरजुम्मा, सिय कलियोगा।
से Translated Sutra: भगवन् ! युग्म कितने कहे हैं ? गौतम ! युग्म चार प्रकार के कहे हैं, यथा – कृतयुग्म यावत् कल्योज। भगवन् ! ऐसा क्यों कहा जाता है ? गौतम ! अठारहवें शतक के चतुर्थ उद्देशक में कहे अनुसार यहाँ जानना, यावत् इसीलिए ऐसा कहा है। भगवन् ! नैरयिकों में कितने युग्म कहे गए हैं ? गौतम ! उनमें चार युग्म कहे हैं। यथा – कृतयुग्म यावत् | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-४ युग्म | Hindi | 892 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! धम्मत्थिकायस्स मज्झपदेसा पन्नत्ता?
गोयमा! अट्ठ धम्मत्थिकायस्स मज्झपदेसा पन्नत्ता।
कति णं भंते! अधम्मत्थिकायस्स मज्झपदेसा पन्नत्ता? एवं चेव।
कति णं भंते! आगासत्थिकायस्स मज्झपदेसा पन्नत्ता? एवं चेव।
कति णं भंते! जीवत्थिकायस्स मज्झपदेसा पन्नत्ता?
गोयमा! अट्ठ जीवत्थिकायस्स मज्झपदेसा पन्नत्ता।
एए णं भंते! अट्ठ जीवत्थिकायस्स मज्झपदेसा कतिसु आगासपदेसेसु ओगाहंति?
गोयमा! जहन्नेणं एक्कंसि वा दोहिं वा तीहिं वा चउहिं वा पंचहिं वा छहिं वा, उक्कोसेणं अट्ठसु, नो चेव णं सत्तसु।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! धर्मास्तिकाय के मध्य – प्रदेश कितने कहे हैं ? गौतम ! आठ। भगवन् ! अधर्मास्तिकाय के मध्य – प्रदेश कितने कहे हैं ? गौतम ! आठ। भगवन् ! आकाशास्तिकाय के मध्य – प्रदेश कितने कहे हैं ? गौतम ! आठ। भगवन् ! जीवास्तिकाय के मध्य – प्रदेश कितने कहे हैं ? गौतम ! आठ। भगवन् ! जीवास्तिकाय के ये आठ मध्य – प्रदेश कितने आकाशप्रदेशों | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-५ पर्यव | Hindi | 897 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहे णं भंते! नामे पन्नत्ते?
गोयमा! छव्विहे नामे पन्नत्ते, तं जहा–ओदइए जाव सण्णिवाइए।
से किं तं ओदइए नामे?
ओदइए नामे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–उदए य, उदयनिप्फण्णे य–एवं जहा सत्तरसमसए पढमे उद्देसए भावो तहेव इह वि, नवरं–इमं नामनाणत्तं, सेसं तहेव जाव सण्णिवाइए।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! नाम कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! छह प्रकार के – औदयिक यावत् सान्निपातिक। भगवन् ! वह औदयिक नाम कितने प्रकार का है ? गौतम ! दो प्रकार का – उदय और उदयनिष्पन्न। सत्रहवें शतक के प्रथम उद्देशक में जैसे भाव के सम्बन्ध में कहा है, वैसे ही यहाँ कहना। वहाँ ‘भाव’ के सम्बन्ध में कहा है, जब कि यहाँ ‘नाम’ के विषय में | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-६ निर्ग्रन्थ | Hindi | 931 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पुलागस्स णं भंते! कति समुग्घाया पन्नत्ता?
गोयमा! तिन्नि समुग्घाया पन्नत्ता, तं जहा–वेयणासमुग्घाए, कसायसमुग्घाए, मारणंतियसमुग्घाए।
बउसस्स णं भंते! –पुच्छा।
गोयमा! पंच समुग्घाया पन्नत्ता, तं० वेयणासमुग्घाए जाव तेयासमुग्घाए। एवं पडिसेवणाकुसीले वि।
कसायकुसीलस्स–पुच्छा।
गोयमा! छ समुग्घाया पन्नत्ता, तं जहा–वेयणासमुग्घाए जाव आहारसमुग्घाए।
नियंठस्स णं–पुच्छा। गोयमा! नत्थि एक्को वि।
सिणायस्स–पुच्छा।
गोयमा! एगे केवलिसमुग्घाए पन्नत्ते। Translated Sutra: भगवन् ! पुलाक के कितने समुद्घात कहे हैं ? गौतम ! तीन समुद्घात – वेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात और मारणान्तिकसमुद्घात। भगवन् ! बकुश के ? गौतम ! पाँच समुद्घात कहे हैं, वेदनासमुद्घात से लेकर तैजस समुद्घात तक। इसी प्रकार प्रतिसेवनाकुशील को समझना। भगवन् ! कषायकुशील के ? गौतम ! छह समुद्घात हैं, वेदनासमुद्घात | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-७ संयत | Hindi | 965 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं अनसने? अनसने दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–इत्तरिए य, आवकहिए य।
से किं तं इत्तरिए? इत्तरिए अनेगविहे पन्नत्ते, तं जहा–चउत्थे भत्ते, छट्ठे भत्ते, अट्ठमे भत्ते, दसमे भत्ते, दुवाल-समे भत्ते, चोद्दसमे भत्ते, अद्धमासिए भत्ते, मासिए भत्ते, दोमासिए भत्ते, तेमासिए भत्ते जाव छम्मासिए भत्ते। सेत्तं इत्तरिए।
से किं तं आवकहिए? आवकहिए दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–पाओवगमणे य, भत्तपच्चक्खाणे य।
से किं तं पाओवगमणे? पाओवगमणे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–नीहारिमे य, अणीहारिमे य। नियमं अपडिकम्मे सेत्तं पाओवगमणे।
से किं तं भत्तपच्चक्खाणे? भत्तपच्चक्खाणे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–नीहारिमे Translated Sutra: भगवन् ! अनशन कितने प्रकार का है ? गौतम ! दो प्रकार का – इत्वरिक और यावत्कथिक। भगवन् ! इत्वरिक अनशन कितने प्रकार का कहा है ? अनेक प्रकार का यथा – चतुर्थभक्त, षष्ठभक्त, अष्टम – भक्त, दशम – भक्त, द्वादशभक्त, चतुर्दशभक्त, अर्द्धमासिक, मासिकभक्त, द्विमासिकभक्त, त्रिमासिकभक्त यावत् षाण्मासिक – भक्त। यह इत्वरिक अनशन | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२६ जीव, लंश्या, पक्खियं, दृष्टि, अज्ञान |
उद्देशक-२ थी ११ | Hindi | 990 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अचरिमे णं भंते! नेरइए पावं कम्मं किं बंधी–पुच्छा।
गोयमा! अत्थेगइए एवं जहेव पढमोद्देसए, पढम-बितिया भंगा भाणियव्वा सव्वत्थ जाव पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं।
अचरिमे णं भंते! मनुस्से पावं कम्मं किं बंधी–पुच्छा।
गोयमा! अत्थेगतिए बंधी बंधइ बंधिस्सइ, अत्थेगतिए बंधी बंधइ न बंधिस्सइ, अत्थेगतिए बंधी न बंधइ बंधिस्सइ।
सलेस्से णं भंते! अचरिमे मनुस्से पावं कम्मं किं बंधी? एवं चेव तिन्नि भंगा चरमविहूणा भाणियव्वा एवं जहेव पढमुद्देसे, नवरं–जेसु तत्थ वीससु चत्तारि भंगा तेसु इह आदिल्ला तिन्नि भंगा भाणियव्वा चरिमभंगवज्जा। अलेस्से केवल-नाणी य अजोगी य–एए तिन्नि वि न पुच्छिज्जंति, Translated Sutra: भगवन् ! अचरम नैरयिक ने पापकर्म बाँधा था ? इत्यादि प्रश्न। गौतम ! किसी ने पापकर्म बाँधा था, इत्यादि प्रथम उद्देशक समान सर्वत्र प्रथम और द्वीतिय भंग पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक पर्यन्त कहना। भगवन् ! क्या अचरम मनुष्य ने पापकर्म बाँधा था ? किसी मनुष्य ने बाँधा था, बाँधता है और बाँधेगा, किसी ने बाँधा था, बाँधता है | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३० समवसरण लेश्यादि |
उद्देशक-१ थी ११ | Hindi | 999 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] किरियावादी णं भंते! नेरइया किं नेरइयाउयं–पुच्छा।
गोयमा! नो नेरइयाउयं पकरेंति, नो तिरिक्खजोणियाउयं पकरेंति, मनुस्साउयं पकरेंति, नो देवाउयं पकरेंति।
अकिरियावादी णं भंते! नेरइया–पुच्छा।
गोयमा! नो नेरइयाउयं, तिरिक्खजोणियाउयं पि पकरेंति, मनुस्साउयं पि पकरेंति, नो देवाउयं पकरेंति। एवं अन्नाणियवादी वि, वेणइयवादी वि।
सलेस्सा णं भंते! नेरइया किरियावादी किं नेरइयाउयं? एवं सव्वे वि नेरइया जे किरियावादी जे मनुस्साउयं एगं पकरेंति, जे अकिरियावादी अन्नाणियवादी वेणइयवादी ते सव्वट्ठाणेसु वि नो नेरइयाउयं पकरेंति, तिरिक्खजोणियाउयं पि पकरेंति, मनुस्साउयं पि पकरेंति, नो Translated Sutra: भगवन् ! क्या क्रियावादी नैरयिक जीव नैरयिकायुष्य बाँधते हैं ? गौतम ! वे नारक, तिर्यञ्च और देव का आयुष्य नहीं बाँधते, किन्तु मनुष्य का आयुष्य बाँधते हैं। भगवन् ! अक्रियावादी नैरयिक जीव नैरयिक का आयुष्य बाँधते हैं ? गौतम ! वे नैरयिक और देव का आयुष्य नहीं बाँधते, किन्तु तिर्यञ्च और मनुष्य का आयुष्य बाँधते हैं। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३२ नरकस्य उद्वर्तनं, उपपात लेश्या आदि |
उद्देशक-१ थी २८ | Hindi | 1016 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] खुड्डागकडजुम्मनेरइया णं भंते! अनंतरं उव्वट्टित्ता कहिं गच्छंति? कहिं उववज्जंति–किं नेरइएसु उववज्जंति? तिरिक्खजोणिएसु उववज्जंति? उव्वट्टणा जहा वक्कंतीए।
ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवइया उव्वट्टंति?
गोयमा! चत्तारि वा अट्ठ वा बारस वा सोलस वा संखेज्जा वा असंखेज्जा वा उव्वट्टंति।
ते णं भंते! जीवा कहं उव्वट्टंति?
गोयमा! से जहानामए पवए, एवं तहेव। एवं सो चेव गमओ जाव आयप्पयोगेणं उव्वट्टंति, नो परप्पयोगेणं उव्वट्टंति।
रयणप्पभापुढविखुड्डागकडजुम्म? एवं रयणप्पभाए वि। एवं जाव अहेसत्तमाए। एवं खुड्डागतेयोग-खुड्डागदावरजुम्मखुड्डागकलियोगा, नवरं–परिमाणं जाणियव्वं, सेसं Translated Sutra: भगवन् ! क्षुद्रकृतयुग्म – राशिप्रमाण नैरयिक कहाँ से उद्वर्तित होकर (मरकर) तुरन्त कहाँ जाते हैं और कहाँ उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों में उत्पन्न होते हैं यावत् देवों में उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! इनका उद्वर्त्तन व्युत्क्रान्तिक पद अनुसार जानना। भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उद्वर्त्तित होते हैं | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३३ एकेन्द्रिय शतक-शतक-१ |
उद्देशक-१ थी ११ | Hindi | 1018 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहा णं भंते! एगिंदिया पन्नत्ता?
गोयमा! पंचविहा एगिंदिया पन्नत्ता, तं जहा–पुढविक्काइया जाव वणस्सइकाइया।
पुढविक्काइया णं भंते! कतिविहा पन्नत्ता?
गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–सुहुमपुढविक्काइया य, बादरपुढविक्काइया य।
सुहुमपुढविक्काइया णं भंते! कतिविहा पन्नत्ता?
गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तासुहुमपुढविक्काइया य, अप्पज्जत्तासुहुमपुढविक्काइया य।
बादरपुढविक्काइया णं भंते! कतिविहा पन्नत्ता? एवं चेव। एवं आउक्काइया वि चउक्कएणं भेदेणं भाणियव्वा, एवं जाव वणस्सइकाइया।
अपज्जत्तासुहुमपुढविक्काइयाणं भंते! कति कम्मप्पगडीओ पन्नत्ताओ?
गोयमा! अट्ठ कम्मप्पगडीओ Translated Sutra: भगवन् ! एकेन्द्रिय जीव कितने प्रकार के कहे हैं ? गौतम ! पाँच प्रकार के – पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पति – कायिक। भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव कितने प्रकार के कहे हैं ? गौतम ! दो प्रकार के – सूक्ष्मपृथ्वीकायिक और बादरपृथ्वीकायिक। भगवन् ! सूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीव कितने प्रकार के कहे हैं ? गौतम ! दो प्रकार के – पर्याप्त | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३३ एकेन्द्रिय शतक-शतक-१ |
उद्देशक-१ थी ११ | Hindi | 1019 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहा णं भंते! अनंतरोववन्नगा एगिंदिया पन्नत्ता?
गोयमा! पंचविहा अनंतरोववन्नगा एगिंदिया पन्नत्ता, तं जहा–पुढविक्काइया जाव वणस्सइकाइया।
अनंतरोववन्नगा णं भंते! पुढविक्काइया कतिविहा पन्नत्ता?
गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–सुहुमपुढविक्काइया य, बादरपुढविक्काइया य। एवं दुपएणं भेदेणं जाव वणस्सइकाइया।
अनंतरोववन्नगसुहुमपुढविकाइयाणं भंते! कति कम्मप्पगडीओ पन्नत्ताओ?
गोयमा! अट्ठ कम्मप्पगडीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–नाणावरणिज्जं जाव अंतराइयं।
अनंतरोववन्नगबादरपुढविक्काइयाणं भंते! कति कम्मप्पगडीओ पन्नत्ताओ?
गोयमा! अट्ठ कम्मप्पगडीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–नाणावरणिज्जं Translated Sutra: भगवन् ! अनन्तरोपपन्नक एकेन्द्रिय जीव कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! पाँच प्रकार के – पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक। भगवन् ! अनन्तरोपपन्नक पृथ्वीकायिक जीव कितने प्रकार के कहे गए हैं ? गौतम ! दो प्रकार के – सूक्ष्म अनन्तरोपपन्नक पृथ्वीकायिक और बादर अनन्तरोपपन्नक पृथ्वीकायिक। इसी प्रकार दो – दो भेद वनस्पतिकायिक | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३३ एकेन्द्रिय शतक-शतक-२ थी १२ |
Hindi | 1022 | Sutra | Ang-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहा णं भंते! कण्हलेस्सा एगिंदिया पन्नत्ता?
गोयमा! पंचविहा कण्हलेस्सा एगिंदिया पन्नत्ता, तं जहा–पुढविक्काइया जाव वणस्सइकाइया।
कण्हलेस्सा णं भंते! पुढविक्काइया कतिविहा पन्नत्ता?
गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–सुहुमपुढविक्काइया य, बादरपुढविक्काइया य।
कण्हलेस्सा णं भंते! सुहुमपुढविक्काइया कतिविहा पन्नत्ता?
एवं एएणं अभिलावेणं चउक्कओ भेदो जहेव ओहि-उद्देसए।
कण्हलेस्सअपज्जत्तासुहुमपुढविक्काइयाणं भंते! कइ कम्मप्पगडीओ पन्नत्ताओ?
एवं एएणं अभिलावेणं जहेव ओहिउद्देसए तहेव पन्नत्ताओ, तहेव बंधंति, तहेव वेदेंति।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।
कतिविहा णं भंते! अनंतरोववन्नगकण्हलेस्सएगिंदिया Translated Sutra: भगवन् ! कृष्णलेश्यी एकेन्द्रिय जीव कितने प्रकार के कहे गए हैं ? गौतम ! पाँच प्रकार के यथा – पृथ्वी – कायिक यावत् वनस्पतिकायिक। भगवन् ! कृष्णलेश्या वाले पृथ्वीकायिक जीव कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! दो प्रकार के, यथा – सूक्ष्मपृथ्वीकायिक और बादरपृथ्वीकायिक। भगवन् ! कृष्णलेश्यी सूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीव कितने | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३३ एकेन्द्रिय शतक-शतक-२ थी १२ |
Hindi | 1025 | Sutra | Ang-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहा णं भंते! भवसिद्धीया एगिंदिया पन्नत्ता?
गोयमा! पंचविहा भवसिद्धीया एगिंदिया पन्नत्ता, तं जहा–पुढविक्काइया जाव वणस्सइकाइया, भेदो चउक्कओ जाव वणस्सइकाइयत्ति।
भवसिद्धीयअपज्जत्तासुहुमपुढविक्काइयाणं भंते! कति कम्मप्पगडीओ पन्नत्ताओ?
एवं एएणं अभिलावेणं जहेव पढमिल्लगं एगिंदियसयं तहेव भवसिद्धीयसयं पि भाणियव्वं। उद्देसगपरिवाडी तहेव जाव अचरिमो त्ति।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! भवसिद्धिक एकेन्द्रिय कितने प्रकार के कहे हैं ? गौतम ! पाँच प्रकार के, यथा – पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक।इनके चार – चार भेद वनस्पतिकायिक पर्यन्त पूर्ववत् कहना। भगवन् ! भवसिद्धिक अपर्याप्त सूक्ष्म – पृथ्वीकायिक जीव के कितनी कर्मप्रकृतियाँ कही हैं ? गौतम ! प्रथम एकेन्द्रियशतक के समान भव – सिद्धिकशतक | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३३ एकेन्द्रिय शतक-शतक-२ थी १२ |
Hindi | 1026 | Sutra | Ang-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहा णं भंते! कण्हलेस्सा भवसिद्धीया एगिंदिया पन्नत्ता? गोयमा! पंचविहा कण्हलेस्सा भवसिद्धीया एगिंदिया पन्नत्ता, तं जहा–पुढविक्काइया जाव वणस्सइकाइया।
कण्हलेस्सभवसिद्धीयपुढविक्काइया णं भंते! कतिविहा पन्नत्ता?
गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–सुहुमपुढविक्काइया य, बादरपुढविक्काइया य।
कण्हलेस्सभवसिद्धीयसुहुमपुढविक्काइया णं भंते! कतिविहा पन्नत्ता?
गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तमा य, अपज्जत्तमा य। एवं बादरा वि। एएणं अभिलावेणं तहेव चउक्कओ भेदो भाणियव्वो।
कण्हलेस्सभवसिद्धीयअपज्जत्तासुहुमपुढविक्काइयाणं भंते! कइ कम्मप्पगडीओ पन्नत्ताओ? एवं एएणं Translated Sutra: भगवन् ! कृष्णलेश्यी भवसिद्धिक एकेन्द्रिय जीव कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! पाँच प्रकार के, यथा – पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक। भगवन् ! कृष्णलेश्यी भवसिद्धिक पृथ्वीकायिक कितने प्रकार के कहे हैं ? गौतम ! दो प्रकार के, यथा – सूक्ष्मपृथ्वीकायिक और बादरपृथ्वीकायिक। भगवन् ! कृष्णलेश्यी भवसिद्धिक सूक्ष्म | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३३ एकेन्द्रिय शतक-शतक-२ थी १२ |
Hindi | 1029 | Sutra | Ang-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कइविहा णं भंते! अभवसिद्धीया एगिंदिया पन्नत्ता?
गोयमा! पंचविहा अभवसिद्धीया एगिंदिया पन्नत्ता, तं जहा–पुढविक्काइया जाव वणस्सइकाइया। एवं जहेव भवसिद्धीयसतं भणियं, नवरं–नव उद्देसगा चरिमअचरिमउद्देसगवज्जं, सेसं तहेव। Translated Sutra: भगवन् ! अभवसिद्धिक एकेन्द्रिय कितने प्रकार के कहे गए हैं ? गौतम ! पाँच प्रकार के, यथा – पृथ्वी – कायिक यावत् वनस्पतिकायिक। भवसिद्धिकशतक समान अभवसिद्धिकशतक भी कहना; किन्तु ‘चरम’ और ‘अचरम’ को छोड़कर शेष नौ उद्देशक कहने चाहिए। शेष पूर्ववत्। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३४ एकेन्द्रिय शतक-शतक-१ |
उद्देशक-१ | Hindi | 1033 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कइविहा णं भंते! एगिंदिया पन्नत्ता?
गोयमा! पंचविहा एगिंदिया पन्नत्ता, तं जहा–पुढविक्काइया जाव वणस्सइकाइया। एवमेते चउक्कएणं भेदेणं भाणियव्वा जाव वणस्सइकाइया।
अपज्जत्तासुहुमपुढविकाइए णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पुरत्थिमिल्ले चरिमंते समोहए, समोहणित्ता जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पच्चत्थिमिल्ले चरिमंते अपज्जत्ता-सुहुम-पुढविकाइयत्ताए उववज्जित्तए, से णं भंते! कइसमएणं विग्गहेणं उववज्जेज्जा?
गोयमा! एगसमइएण वा दुसमइएण वा तिसमइएण वा विग्गहेणं उववज्जेज्जा।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–एगसमइएण वा दुसमइएण वा जाव उववज्जेज्जा?
एवं खलु गोयमा! मए सत्त सेढीओ Translated Sutra: भगवन् ! एकेन्द्रिय कितने प्रकार के कहे गए हैं ? गौतम ! पाँच प्रकार के, यथा – पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक। इनके भी प्रत्येक के चार – चार भेद वनस्पतिकायिक – पर्यन्त कहने चाहिए। भगवन् ! अपर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीव इस रत्नप्रभापृथ्वी के पूर्वदिशा के चरमान्त में मरणसमुद्घात करके इस रत्नप्रभापृथ्वी | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३४ एकेन्द्रिय शतक-शतक-१ |
उद्देशक-१ | Hindi | 1034 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अपज्जत्तासुहुमपुढविक्काइए णं भंते! अहेलोयखेत्तनालीए बाहिरिल्ले खेत्ते समोहए, समोहणित्ता जे भविए उड्ढलोयखेत्तनालीए बाहिरिल्ले खेत्ते अपज्जत्तासुहुमपुढविकाइयत्ताए उववज्जित्तए, से णं भंते! कइसमइएणं विग्गहेणं उववज्जेज्जा?
गोयमा! तिसमइएण वा चउसमइएण वा विग्गहेणं उववज्जेज्जा।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–तिसमइएण वा चउसमइएण वा विग्गहेणं उववज्जेज्जा?
गोयमा! अपज्जत्तासुहुमपुढविकाइए णं अहेलोयखेत्तनालीए बाहिरिल्ले खेत्ते समोहए, समोहणित्ता जे भविए उड्ढलोयखेत्तनालीए बाहिरिल्ले खेत्ते अपज्जत्तासुहुमपुढविकाइयत्ताए एयपयरंसि अणुसेढिं उववज्जित्तए, से Translated Sutra: भगवन् ! अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव अधोलोक क्षेत्र की त्रसनाडी के बाहर के क्षेत्र में मरण – समुद्घात करके ऊर्ध्वलोक की त्रसनाडी के बाहर के क्षेत्र में अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक – रूप से उत्पन्न होने योग्य है तो हे भगवन् ! वह कितने समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ? गौतम ! तीन समय या चार समय की। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३४ एकेन्द्रिय शतक-शतक-१ |
उद्देशक-२ थी ११ | Hindi | 1035 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कइविहा णं भंते! अनंतरोववन्नगा एगिंदिया पन्नत्ता?
गोयमा! पंचविहा अनंतरोववन्नगा एगिंदिया पन्नत्ता, तं जहा–पुढविक्काइया, दुयाभेदो जहा एगिंदियसएसु जाव बादरवणस्सइकाइया य।
कहि णं भंते! अनंतरोववन्नगाणं बादरपुढविक्काइयाणं ठाणा पन्नत्ता?
गोयमा! सट्ठाणेणं अट्ठसु पुढवीसु, तं जहा–रयणप्पभाए जहा ठाणपदे जाव दीवेसु समुद्देसु, एत्थ णं अनंतरोववन्नगाणं बादरपुढविकाइयाणं ठाणा पन्नत्ता, उववाएणं सव्वलोए, समुग्घाएणं सव्वलोए, सट्ठाणेणं लोगस्स असंखेज्जइभागे। अनंतरोववन्नगसुहुमपुढविक्काइया एगविहा अविसेसमणाणत्ता सव्वलोए परियावन्ना पन्नत्ता समणाउसो!
एवं एएणं कमेणं सव्वे Translated Sutra: भगवन् ! अनन्तरोपपन्नक एकेन्द्रिय कितने प्रकार के कहे हैं ? गौतम ! पाँच प्रकार के, यथा – पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक। फिर प्रत्येक के दो – दो भेद एकेन्द्रिय शतक के अनुसार वनस्पतिकायिक पर्यन्त कहना। भगवन् ! अनन्तरोपपन्नक बादर पृथ्वीकायिक जीवों के स्थान कहाँ कहे हैं ? गौतम ! वे स्वस्थान की अपेक्षा आठ पृथ्वीयों | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३४ एकेन्द्रिय शतक-शतक-१ |
उद्देशक-२ थी ११ | Hindi | 1036 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कइविहा णं भंते! परंपरोववन्नगा एगिंदिया पन्नत्ता?
गोयमा! पंचविहा परंपरोववन्नगा एगिंदिया पन्नत्ता, तं जहा–पुढविक्काइया, भेदो चउक्कओ जाव वणस्सइकाइयत्ति।
परंपरोववन्नगअपज्जत्तासुहुमपुढविक्काइए णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पुरत्थिमिल्ले चरिमंते समोहए, समोहणित्ता जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पच्चत्थिमिल्ले चरिमंते अपज्जत्तासुहुमपुढविकाइयत्ताए उववज्जित्तए? एवं एएणं अभिलावेणं जहेव पढमो उद्देसओ जाव लोगचरिमंतो त्ति।
कहि णं भंते! परंपरोववन्नगबादरपुढविक्काइयाणं ठाणा पन्नत्ता?
गोयमा! सट्ठाणेणं अट्ठसु पुढवीसु।
एवं एएणं अभिलावेणं जहा पढमे उद्देसए जाव Translated Sutra: भगवन् ! परम्परोपपन्नक एकेन्द्रिय कितने प्रकार के कहे हैं ? गौतम ! पाँच प्रकार के, यथा – पृथ्वीकायिक इत्यादि। उनके चार – चार भेद वनस्पतिकायिक पर्यन्त कहना। भगवन् ! परम्परोपपन्नक सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव रत्नप्रभापृथ्वी के पूर्व – चरमान्त में मरणसमुद्घात करके रत्नप्रभापृथ्वी के यावत् पश्चिम – चरमान्त | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३४ एकेन्द्रिय शतक-शतक-२ थी १२ |
Hindi | 1038 | Sutra | Ang-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कइविहा णं भंते! कण्हलेस्सा एगिंदिया पन्नत्ता?
गोयमा! पंचविहा कण्हलेस्सा एगिंदिया पन्नत्ता, भेदो चउक्कओ जहा कण्हलेस्सएगिंदियसए जाव वणस्सइकाइयत्ति।
कण्हलेस्सअपज्जत्तासुहुमपुढविक्काइए णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पुरत्थिमिल्ले? एवं एएणं अभिलावेणं जहेव ओहिउद्देसओ जाव लोगचरिमंते त्ति। सव्वत्थ कण्हलेस्सु चेव उववाएयव्वो।
कहिं णं भंते! कण्हलेस्सअपज्जत्ताबादरपुढविक्काइयाणं ठाणा पन्नत्ता? एवं एएणं अभिलावेणं जहा ओहिउद्देसओ जाव तुल्लट्ठिइय त्ति।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।
एवं एएणं अभिलावेणं जहेव पढमं सेढिसयं तहेव एक्कारस उद्देसगा भाणियव्वा। Translated Sutra: भगवन् ! कृष्णलेश्यी एकेन्द्रिय कितने प्रकार के कहे हैं ? गौतम ! पाँच प्रकार। उनके चार – चार भेद एकेन्द्रियशतक के अनुसार वनस्पतिकायिक पर्यन्त जानना। भगवन् ! कृष्णलेश्यी अपर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीव इस रत्नप्रभापृथ्वी के पूर्व – चरमान्त में यावत् उत्पन्न होता है ? गौतम ! औघिक उद्देशक के अनुसार लोक |