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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 158 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] अणुन्नवेत्तु मेहावी पडिच्छन्नम्मि संवुडे ।
हत्थगं संपमज्जित्ता तत्थ भुंजेज्ज संजए ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १५७ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 159 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] तत्थ से भुंजमाणस्स अट्ठियं कंटओ सिया ।
तण-कट्ठ-सक्करं वा वि अन्नं वा वि तहाविहं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १५७ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 160 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] तं उक्खिवित्तु न निक्खिवे आसएण न छड्डए ।
हत्थेण तं गहेऊणं एगंतमवक्कमे ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १५७ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 161 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] एगंतमवक्कमित्ता अचित्तं पडिलेहिया ।
जयं परिट्ठवेज्जा परिट्ठप्प पडिक्कमे ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १५७ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 162 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] सिया य भिक्खू इच्छेज्जा सेज्जमागम्म भोत्तुयं ।
सपिंडपायमागम्म उंडुयं पडिलेहिया ॥ Translated Sutra: कदाचित् भिक्षु बसति में आकर भोजन करना चाहे तो पिण्डपात सहित आकर भोजन भूमि प्रतिलेखन कर ले। विनयपूर्वक गुरुदेव के समीप आए और ईर्यापथिक प्रतिक्रमण करे। जाने – आने में और भक्तपान लेने में (लगे) समस्त अतिचारों का क्रमशः उपयोगपूर्वक चिन्तन कर ऋजुप्रज्ञ और अनुद्विग्न संयमी अव्याक्षिप्त चित्त से गुरु के पास | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 163 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] विणएण पविसित्ता सगासे गुरुणो मुनी ।
इरियावहियमायाय आगओ य पडिक्कमे ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६२ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 164 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] आभोएत्ताण नीसेसं अइयारं जहक्कमं ।
गमणागमणे चेव भत्तपाणे व संजए ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६२ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 165 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] उज्जुपण्णो अनुव्विग्गो अव्वक्खित्तेण चेयसा ।
आलोए गुरुसगासे जं जहा गहियं भवे ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६२ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 166 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] न सम्ममालोइयं होज्जा पुव्विं पच्छा व जं कडं ।
पुणो पडिक्कमे तस्स वोसट्ठो चिंतए इमं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६२ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 167 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] अहो! जिणेहिं असावज्जा वित्ती साहूण देसिया ।
मुक्खसाहणहेउस्स साहुदेहस्स धारणा ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६२ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 168 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] नमोक्कारेण पारेत्ता करेत्ता जिनसंथवं ।
सज्झायं पट्ठवेत्ताणं वीसमेज्ज खणं मुनी ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६२ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 169 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] वीसमंतो इमं चित्ते हियमट्ठं लाभमट्ठिओ ।
जइ मे अनुग्गहं कुज्जा साहू होज्जामि तारिओ ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६२ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 170 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] साहवो तो चियत्तेणं निमंतेज्ज जहक्कमं ।
जइ तत्थ केइ इच्छेज्जा तेहिं सद्धिं तु भुंजए ॥ Translated Sutra: वह प्रीतिभाव से साधुओं को यथाक्रम से निमंत्रण करे, यदि उन में से कोई भोजन करना चाहें तो उनके साथ भोजन करे। यदि कोई आहार लेना न चाहे, तो वह अकेला ही प्रकाशयुक्त पात्र में, नीचे न गिरता हुआ यतनापूर्वक भोजन करे। अन्य के लिए बना हुआ, विधि से उपलब्ध जो तिक्त, कडुआ, कसैला, अम्ल, मधुर या लवण हो, संयमी साधु उसे मधु – धृत की | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 171 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] अह कोइ न इच्छेज्जा तओ भुंजेज्ज एक्कओ ।
आलोए भायणे साहू जयं अपरिसाडयं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १७० | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 172 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] तित्तगं व कडुयं व कसायं अंबिलं व महुरं लवणं वा ।
एय लद्धमन्नट्ठ-पउत्तं महु-घयं व भुंजेज्ज संजए ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १७० | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 173 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] अरसं विरसं वा वि सूइयं वा असूइयं ।
उल्लं वा जइ वा सुक्कं मंथु-कुम्मास-भोयणं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १७० | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 174 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] उप्पन्नं नाइहीलेज्जा अप्पं पि बहु फासुयं ।
महालद्धं मुहाजीवी भुंजेज्जा दोसवज्जियं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १७० | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 175 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] दुल्लहा उ मुहादाई मुहाजीवी वि दुल्लहा ।
मुहादाई मुहाजीवी दो वि गच्छंति सोग्गइं ॥ –त्ति बेमि ॥ Translated Sutra: मुधादायी दुर्लभ हैं और मुधाजीवी भी दुर्लभ हैं। मुधादायी और मुधाजीवी, दोनों सुगति को प्राप्त होते हैं। – ऐसा कहता हूँ। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-२ | Hindi | 176 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] पडिग्गहं संलिहित्ताणं लेव-मायाए संजए ।
दुगंधं वा सुगंधं वा सव्वं भुंजे न छड्डए ॥ Translated Sutra: सम्यक् यत्नवान् साधु लेपमात्र – पर्यन्त पात्र को अंगुलि से पोंछ कर सुगन्ध हो या दुर्गन्धयुक्त, सब खा ले। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-२ | Hindi | 177 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] सेज्जा निसीहियाए समावन्नो न गोयरं ।
अयावयट्ठा भोच्चाणं जइ तेणं न संथरे ॥ Translated Sutra: उपाश्रय में या स्वाध्यायभूमि में बैठा हुआ, अथवा गौचरी के लिए गया हुआ मुनि अपर्याप्त खाद्य – पदार्थ खाकर यदि उस से निर्वाह न हो सके तो कारण उत्पन्न होने पर पूर्वोक्त विधि से और उत्तर विधि से भक्त – पान की गवेषणा करे। सूत्र – १७७, १७८ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-२ | Hindi | 178 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] तओ कारणमुप्पन्ने भत्तपानं गवेसए ।
विहिणा पुव्व-उत्तेण इमेणं उत्तरेण य ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १७७ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-२ | Hindi | 179 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] कालेण निक्खमे भिक्खू कालेण य पडिक्कमे ।
अकालं च विवज्जेत्ता काले कालं समायरे ॥ Translated Sutra: भिक्षु भिक्षा काल में निकले और समय पर ही वापस लौटे अकाल को वर्ज कर जो कार्य जिस समय उचित हो, उसे उसी समय करे। हे मुनि ! तुम अकाल में जाते हो, काल का प्रतिलेख नहीं करते। भिक्षा न मिलने पर तुम अपने को क्षुब्ध करते हो और सन्निवेश की निन्दा करते हो। भिक्षु समय होने पर भिक्षाटन और पुरुषार्थ करे। भिक्षा प्राप्त नहीं | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-२ | Hindi | 180 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] अकाले चरसि भिक्खू कालं न पडिलेहसि ।
अप्पाणं च किलामेसि सन्निवेसं च गरिहसि ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १७९ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-२ | Hindi | 181 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] सइ काले चरे भिक्खू कुज्जा पुरिसकारियं ।
अलाभो त्ति न सोएज्जा तवो त्ति अहियासए ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १७९ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-२ | Hindi | 182 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] तहेवुच्चावया पाणा भत्तट्ठाए समागया ।
तं-उज्जुयं न गच्छेज्जा जयमेव परक्कमे ॥ Translated Sutra: इसी प्रकार भोजनार्थ एकत्रित हुए नाना प्रकार के प्राणी दीखें तो वह उनके सम्मुख न जाए, किन्तु यतनापूर्वक गमन करे। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-२ | Hindi | 183 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] गोयरग्ग-पविट्ठो उ न निसीएज्ज कत्थई ।
कहं च न पबंधेज्जा चिट्ठित्ताण व संजए ॥ Translated Sutra: गोचरी के लिये गया हुआ संयमी कहीं भी न बैठे और न खड़ा रह कर भी धर्म – कथा का प्रबन्ध करे, अर्गला, परिघ, द्वार एवं कपाट का सहारा लेकर खड़ा न रहे, भोजन अथवा पानी के लिए आते हुए या गये हुए श्रमण, ब्राह्मण, कृपण अथवा वनीपक को लांघ कर प्रवेश न करे और न आँखों के सामने खड़ा रहे। किन्तु एकान्त में जा कर वहाँ खड़ा हो जाए। उन भिक्षाचरों | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-२ | Hindi | 184 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] अग्गलं फलिहं दारं कवाडं वा वि संजए ।
अवलंबिया न चिट्ठेज्जा गोयरग्गगओ मुनी ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १८३ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-२ | Hindi | 185 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] समणं माहणं वा वि किविणं वा वणीमगं ।
उवसंकमंतं भत्तट्ठा पाणट्ठाए व संजए ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १८३ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-२ | Hindi | 186 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] तं अइक्कमित्तु न पविसे न चिट्ठे चक्खु-गोयरे ।
एगंतमवक्कमित्ता तत्थ चिट्ठेज्ज संजए ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १८३ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-२ | Hindi | 187 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] वणीमगस्स वा तस्स दायगस्सुभयस्स वा ।
अप्पत्तियं सिया होज्जा लहुत्तं पवयणस्स वा ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १८३ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-२ | Hindi | 188 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] पडिसेहिए व दिन्ने वा तओ तम्मि नियत्तिए ।
उवसंकमेज्ज भत्तट्ठा पाणट्ठाए व संजए ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १८३ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
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उद्देशक-२ | Hindi | 189 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] उप्पलं पउमं वा वि कुमुयं वा मगदंतियं ।
अन्नं वा पुप्फ सच्चित्तं तं च संलुंचिया दए ॥ Translated Sutra: उत्पल, पद्म, कुमुद या मालती अथवा अन्य किसी सचित्त पुष्प का छेदन करके, सम्मर्दन कर भिक्षा देने लगे तो वह भक्त – पान संमयी साधु के लिए अकल्पनीय है। इसलिए मुनि निषेध कर दे कि इस प्रकार का आहार मेरे लिए अग्राह्य है। सूत्र – १८९–१९२ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-२ | Hindi | 190 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] तं भवे भत्तपानं तु संजयाण अकप्पियं ।
देंतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १८९ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
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उद्देशक-२ | Hindi | 191 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] उप्पलं पउमं वा वि कुमुयं वा मगदंतियं ।
अन्नं वा पुप्फ सच्चित्तं तं च सम्मद्दिया दए । Translated Sutra: देखो सूत्र १८९ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-२ | Hindi | 192 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] तं भवे भत्तपानं तु संजयाण अकप्पियं ।
देंतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १८९ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
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उद्देशक-२ | Hindi | 193 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] सालुयं वा विरालियं कुमुदुप्पलनालियं ।
मुणालियं सासवनालियं उच्छुखंडं अनिव्वुडं ॥ Translated Sutra: अनिर्वृत कमलकन्द, पलाशकन्द, कुमुदनाल, उत्पलनाल, कमल के तन्तु, सरसों की नाल, अपक्व इक्षुखण्ड, वृक्ष, तृण और दूसरी हरी वनस्पति का कच्चा नया प्रवाल – जिसके बीज न पके हों, ऐसी नई अथवा एक बार भूनी हुई कच्ची फली को साधु निषेध कर दे कि इस प्रकार का आहार मैं ग्रहण नहीं करता। सूत्र – १९३–१९५ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
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उद्देशक-२ | Hindi | 194 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] तरुणगं वा पवालं रुक्खस्स तणगस्स वा ।
अन्नस्स वा वि हरियस्स आमगं परिवज्जए ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १९३ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
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उद्देशक-२ | Hindi | 195 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] तरुणियं च छिवाडिं आमियं भज्जियं सइं ।
देंतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १९३ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
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उद्देशक-२ | Hindi | 196 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] तहा कोलमनुस्सिन्नं वेलुयं कासवनालियं ।
तिलपप्पडगं नीमं आमगं परिवज्जए ॥ Translated Sutra: इसी प्रकार बिना उबाला हुआ बेर, वंश – शरीर, काश्यपनालिका तथा अपक्व तिलपपड़ी और कदम्ब का फल चाहिए। चावलों का पिष्ट, विकृत धोवन, निर्वृत जल, तिलपिष्ट, पोइ – साग और सरसों की खली, कपित्थ, बिजौरा, मूला और मूले के कन्द के टुकड़े, मन से भी इच्छा न करे। फलों का चूर्ण, बीजों का चूर्ण, बिभीतक तथा प्रियालफल, इन्हें अपक्व जान कर | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-२ | Hindi | 197 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] तहेव चाउलं पिट्ठं वियडं वा तत्तनिव्वुडं ।
तिलपिट्ठ पूइ पिन्नागं आमगं परिवज्जए ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १९६ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-२ | Hindi | 198 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] कविट्ठं माउलिंगं च मूलगं मूलगत्तियं ।
आमं असत्थपरिणयं मनसा वि न पत्थए ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १९६ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-२ | Hindi | 199 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] तहेव फलमंथूणि बीयमंथूणि जाणिया ।
बिहेलगं पियालं च आमगं परिवज्जए ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १९६ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-२ | Hindi | 200 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] समुयाणं चरे भिक्खू कुलं उच्चावयं सया ।
नीयं कुलमइक्कम्म ऊसढं नाभिधारए ॥ Translated Sutra: भिक्षु समुदान भिक्षाचर्या करे। (वह) उच्च और नीच सभी कुलों में जाए, नीचकुल को छोड़ कर उच्चकुल में न जाए। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-२ | Hindi | 201 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] अदीनो वित्तिमेसेज्जा न विसीएज्ज पंडिए ।
अमुच्छिओ भोयणम्मि मायन्ने एसणारए ॥ Translated Sutra: पण्डित साधु दीनता से रहित होकर भिक्षा की एषणा करे। भिक्षा न मिले तो विषाद न करे। सरस भोजन में अमूर्च्छित रहे। मात्रा को जानने वाला मुनि एषणा में रत रहे। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-२ | Hindi | 202 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] बहुं परघरे अत्थि विविहं खाइमसाइमं ।
न तत्थ पंडिओ कुप्पे इच्छा देज्ज परो न वा ॥ Translated Sutra: गृहस्थ (पर) के घर में अनेक प्रकार का प्रचुर खाद्य तथा स्वाद्य आहार होता है; किन्तु न देने पर पण्डित मुनि कोप न करे; परन्तु ऐसा विचार करे कि यह गृहस्थ है, दे या न दे, इसकी इच्छा। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-२ | Hindi | 203 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] सयनासन वत्थं वा भत्तपानं व संजए ।
अदेंतस्स न कुप्पेज्जा पच्चक्खे वि य दीसओ ॥ Translated Sutra: संयमी साधु प्रत्यक्ष दीखते हुए भी शयन, आसन, वस्त्र, भक्त और पान, न देने वाले पर क्रोध न करे। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-२ | Hindi | 204 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] इत्थियं पुरिसं वा वि डहरं वा महल्लगं ।
वंदमाणो न जाएज्जा नो य णं फरुसं वए ॥ Translated Sutra: स्त्री या पुरुष, बालक या वृद्ध वन्दना कर रहा हो, तो उससे किसी प्रकार की याचना न करे तथा आहार न दे तो उसे कठोर वचन भी न कहे। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-२ | Hindi | 205 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] जे न वंदे न से कुप्पे वंदिओ न समुक्कसे ।
एवमन्नेसमाणस्स सामण्णमनुचिट्ठई ॥ Translated Sutra: जो वन्दना न करे, उस पर कोप न करे, वन्दना करे तो उत्कर्ष न लाए – इस प्रकार भगवदाज्ञा का अन्वेषण करने वाले मुनि का श्रामण्य अखण्ड रहता है। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-२ | Hindi | 206 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] सिया एगइओ लद्धुं लोभेण विनिगूहई ।
मा मेयं दाइयं संतं दट्ठूणं सयमायए ॥ Translated Sutra: कदाचित् कोई साधु सरस आहार प्राप्त करके इस लोभ से छिपा लेता है कि मुझे मिला हुआ यह आहार गुरु को दिखाया गया तो वे देख कर स्वयं ले लें, मुझे न दें; ऐसा अपने स्वार्थ को ही बड़ा मानने वाला स्वादलोलुप बहुत पाप करता है और वह सन्तोषभाव रहित हो जाता है। निर्वाण को नहीं प्राप्त कर पाता। सूत्र – २०६, २०७ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-२ | Hindi | 207 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] अत्तट्ठगुरुओ लुद्धो बहुं पावं पकुव्वई ।
दुत्तोसओ य से होइ निव्वाणं च न गच्छई ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २०६ |