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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३ कुशील लक्षण |
Hindi | 492 | Sutra | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] (१) से भयवं जइ एवं ता किं पंच-मंगलस्स णं उवहाणं कायव्वं
(२) गोयमा पढमं नाणं तओ दया, दयाए य सव्व-जग-जीव-पाण-भूय-सत्ताणं अत्तसम-दरिसित्तं
(३) सव्व-जग-जीव-पाण-भूय-सत्ताणं-अत्तसम-दंसणाओ य तेसिं चेव संघट्टण-परियावण-किलावणोद्दावणाइ-दुक्खु-पायण-भय-विवज्जणं,
(४) तओ अणासवो, अणासवाओ य संवुडासवदारत्तं, संवुडासव-दारत्तेणं च दमो पसमो
(५) तओ य सम-सत्तु-मित्त-पक्खया, सम-सत्तु-मित्त-पक्खयाए य अराग-दोसत्तं, तओ य अकोहया अमाणया अमायया अलोभया, अकोह-माण-माया-लोभयाए य अकसायत्तं
(६) तओ य सम्मत्तं, समत्ताओ य जीवाइ-पयत्थ-परिन्नाणं, तओ य सव्वत्थ-अपडिबद्धत्तं, सव्वत्थापडिबद्धत्तेण य अन्नाण-मोह-मिच्छत्तक्खयं
(७) Translated Sutra: हे भगवंत ! यदि ऐसा है तो क्या पंच मंगल के उपधान करने चाहिए ? हे गौतम ! प्रथम ज्ञान और उसके बाद दया यानि संयम यानि ज्ञान से चारित्र – दया पालन होता है। दया से सर्व जगत के सारे जीव – प्राणी – भूत – सत्त्व को अपनी तरह देखनेवाला होता है। जगत के सर्व जीव, प्राणी, भूत सत्त्व को अपनी तरह सुख – दुःख होता है, ऐसा देखनेवाला होने | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३ कुशील लक्षण |
Hindi | 493 | Sutra | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] (१) से भयवं कयराए विहिए पंच-मंगलस्स णं विणओवहाणं कायव्वं
(२) गोयमा इमाए विहिए पंचमंगलस्स णं विणओवहाणं कायव्वं, तं जहा–सुपसत्थे चेव सोहने तिहि-करण-मुहुत्त-नक्खत्त-जोग-लग्ग-ससीबले
(३) विप्पमुक्क-जायाइमयासंकेण, संजाय-सद्धा-संवेग-सुतिव्वतर-महंतुल्लसंत-सुहज्झ-वसायाणुगय-भत्ती-बहुमान-पुव्वं निन्नियाण-दुवालस-भत्त-ट्ठिएणं,
(४) चेइयालये जंतुविरहिओगासे,
(५) भत्ति-भर-निब्भरुद्धसिय-ससीसरोमावली-पप्फुल्ल-वयण-सयवत्त-पसंत-सोम-थिर-दिट्ठी
(६) नव-नव-संवेग- समुच्छलंत- संजाय- बहल- घन- निरंतर- अचिंत- परम- सुह- परिणाम-विसेसुल्लासिय-सजीव-वीरियानुसमय-विवड्ढंत-पमोय-सुविसुद्ध-सुनिम्मल-विमल-थिर-दढयरंत Translated Sutra: हे भगवंत ! किस विधि से पंचमंगल का विनय उपधान करे ? हे गौतम ! आगे हम बताएंगे उस विधि से पंचमंगल का विनय उपधान करना चाहिए। अति प्रशस्त और शोभन तिथि, करण, मुहूर्त्त, नक्षत्र, योग, लग्न, चन्द्रबल हो तब आठ तरह के मद स्थान से मुक्त हो, शंका रहित श्रद्धासंवेग जिसके अति वृद्धि पानेवाले हो, अति तीव्र महान उल्लास पानेवाले, शुभ | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३ कुशील लक्षण |
Hindi | 494 | Sutra | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] (१) से भयवं किमेयस्स अचिंत-चिंतामणि-कप्प-भूयस्स णं पंचमंगल-महासुयक्खंधस्स सुत्तत्थं पन्नत्तं गोयमा
(२) इयं एयस्स अचिंत-चिंतामणी-कप्प-भूयस्स णं पंचमंगल-महासुयक्खंधस्स णं सुत्तत्थं-पन्नत्तं
(३) तं जहा–जे णं एस पंचमं-गल-महासुयक्खंधे से णं सयलागमंतरो ववत्ती तिल-तेल-कमल-मयरंदव्व सव्वलोए पंचत्थिकायमिव,
(४) जहत्थ किरियाणुगय-सब्भूय-गुणुक्कित्तणे, जहिच्छिय-फल-पसाहगे चेव परम-थुइवाए (५) से य परमथुई केसिं कायव्वा सव्व-जगुत्तमाणं।
(६) सव्व-जगुत्तमुत्तमे य जे केई भूए, जे केई भविंसु, जे केई भविस्संति, ते सव्वे चेव अरहंतादओ चेव नो नमन्ने ति।
(७) ते य पंचहा १ अरहंते, २ सिद्धे, ३ आयरिए, Translated Sutra: हे भगवंत ! क्या यह चिन्तामणी कल्पवृक्ष समान पंच मंगल महाश्रुतस्कंध के सूत्र और अर्थ को प्ररूपे हैं ? हे गौतम ! यह अचिंत्य चिंतामणी कल्पवृक्ष समान मनोवांछित पूर्ण करनेवाला पंचमंगल महा श्रुतस्कंध के सूत्र और अर्थ प्ररूपेल हैं। वो इस प्रकार – जिस कारण के लिए तल में तैल, कमल में मकरन्द, सर्वलोक में पंचास्तिकाय | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३ कुशील लक्षण |
Hindi | 621 | Sutra | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] (१) से भयवं कयरे ते दंसण-कुसीले गोयमा दंसण-कुसीले दुविहे नेए–आगमओ नो आगमओ य। तत्थ आगमो सम्मद्दंसणं,
१ संकंते, २ कंखंते, ३ विदुगुंछंते, ४ दिट्ठीमोहं गच्छंते अणोववूहए, ५ परिवडिय-धम्मसद्धे सामन्नमुज्झिउ-कामाणं अथिरीकरणेणं, ७ साहम्मियाणं अवच्छल्लत्तणेणं, ८ अप्पभावनाए एतेहिं अट्ठहिं पि थाणंतरेहिं कुसीले नेए। Translated Sutra: हे भगवंत ! दर्शनकुशील कितने प्रकार के होते हैं ? हे गौतम ! दर्शनकुशील दो प्रकार के हैं – एक आगम से और दूसरा नोआगम से। उसमें आगम से सम्यग्दर्शन में शक करे, अन्य मत की अभिलाषा करे, साधु – साध्वी के मैले वस्त्र और शरीर देखकर दुगंछा करे। घृणा करे, धर्म करने का फल मिलेगा या नहीं, सम्यक्त्व आदि गुणवंत की तारीफ न करना। | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३ कुशील लक्षण |
Hindi | 622 | Sutra | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नो आगमओ य दंसण-कुसीले अनेगहा, तं जहा–१ चक्खु-कुसीले २ घाण-कुसीले, ३ सवण-कुसीले, ४ जिब्भा-कुसीले, ५ सरीर-कुसीले तत्थ चक्खुकुसीले तिविहे नेए, तं जहा–
१ पसत्थ-चक्खु-कुसीले, ...२ पसत्थापसत्थ-चक्खु-कुसीले, ...३ अपसत्थ-चक्खुकुसीले
३ तत्थ–जे केइ-पसत्थं उसभादि-तित्थयर-बिंब-पुरओ चक्खु-गोयर-ट्ठियं तमेव पासेमाणे अन्नं किं पि मनसा अपसत्थमज्झवसे, से णं पसत्थ-चक्खु-कुसीले। तहा जे पसत्थापसत्थ-चक्खु-कुसीले।
तित्थयर-बिंब हियएणं अच्छीहिं-किं पि पेहेज्जा से णं पसत्थापसत्थ चक्खु-कुसीले। तहा पसत्थापसत्थाइं दव्वाइं कागबग-ढेंक-तित्तिर-मयूराइं सुकंत-दित्तित्थियं वा दट्ठूणं तयहुत्तं Translated Sutra: देखो सूत्र ६२१ | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ नवनीतसार |
Hindi | 821 | Sutra | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं केरिस गुणजुत्तस्स णं गुरुणो गच्छनिक्खेवं कायव्वं गोयमा जे णं सुव्वए, जे णं सुसीले, जे णं दढव्वए, जे णं दढचारित्ते, जे णं अनिंदियंगे, जे णं अरहे, जे णं गयरागे, जे णं गयदोसे, जे णं निट्ठिय मोह मिच्छत्त मल कलंके, जे णं उवसंते, जे णं सुविण्णाय जगट्ठितीए, जे णं सुमहा वेरग्गमग्गमल्लीणे, जे णं इत्थिकहापडिनीए, जे णं भत्तकहापडिनीए, जे णं तेण कहा पडिनीए, जे णं रायकहा पडिनीए, जे णं जनवय कहा पडिनीए, जे णं अच्चंतमनुकंप सीले, जे णं परलोग-पच्चवायभीरू, जे णं कुसील पडिनीए,
जे णं विण्णाय समय सब्भावे, जे णं गहिय समय पेयाले, जे णं अहन्निसानुसमयं ठिए खंतादि अहिंसा लक्खण दसविहे समणधम्मे, Translated Sutra: हे भगवंत ! कैसे गुणयुक्त गुरु हो तो उसके लिए गच्छ का निक्षेप कर सकते हैं ? हे गौतम ! जो अच्छे व्रतवाले, सुन्दर शीलवाले, दृढ़ व्रतवाले, दृढ़ चारित्रवाले, आनन्दित शरीर के अवयववाले, पूजने के लायक, राग रहित, द्वेष रहित, बड़े मिथ्यात्व के मल के कलंक जिसके चले गए हैं वैसे, जो उपशान्त हैं, जगत की दशा को अच्छी तरह से पहचानते हो, | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1117 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तत्था वि जा सुणे वक्खाणं तावऽहिगारम्मिमागयं।
पुढवादीणं समारंभं, साहू तिविहेण वज्जए॥ Translated Sutra: वहाँ भी सूत्र की व्याख्या श्रवण करते करते वो ही अधिकार फिर आया कि, ‘पृथ्वी आदि का समारम्भ साधु त्रिविध त्रिविध से वर्जन करे’, काफी मूढ ऐसा वो इश्वर साधु मूर्ख बनकर चिन्तवन करने लगा कि इस जगत में कौन उस पृथ्वीकायादिक का समारम्भ नहीं करता ? खुद ही तो पृथ्वीकाय पर बैठे हैं, अग्नि से पकाया हुआ आहार खाते हैं और वो सब | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1118 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] दढ-मूढो हुं छ जोई ता ईसरो मुक्कपूओ।
विचिंतेवं जहेत्थ जए को न ताइं समारभे॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १११७ | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1119 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पुढवीए ताव एसेव समासीणो वि चिट्ठइ।
अग्गीए रद्धयं खायइ सव्वं बीय समुब्भवं। Translated Sutra: देखो सूत्र १११७ | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1120 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अन्नं च–विना पाणेणं खणमेक्कं जीवए कहं ।
ता किं पि तं पवक्खे स जं पच्चुयमत्थंतियं॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १११७ | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1121 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] इमस्सेव समागच्छे, न उनेयं कोइ सद्दहे।
तो चिट्ठउ ताव एसेत्थं, वरं सो चेव गणहरो॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १११७ | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1122 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अहवा एसो न सो मज्झं, एक्को वी भणियं करे।
अलिया एवंविहं धम्मं किंचुद्देसेण तं पि य॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १११७ | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1123 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] साहिज्जइ, जो सवे किंचि, न वुण मच्चंत-कडयडं।
अहवा चिट्ठंतु तावेए, अहयं सयमेव वागरं॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १११७ | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1143 | Sutra | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] (१३) चिंतमाणीए चेव उप्पन्नं केवलं णाणं कया य देवेहिं केवलिमहिमा।
(१४) केवलिणा वि नर सुरासुराणं पणासियं संसय तम पडलं अज्जियाणं च।
(१५) तओ भत्तिब्भरनिब्भराए पणामपुव्वं पुट्ठो केवली रज्जाए जहा भयवं किमट्ठमहं एमहंताणं महा वाहि वेयणाणं भायणं संवुत्ता
(१६) ताहे गोयमा सजल जलहर सुरदुंदुहि निग्घोस मणोहारि गंभीर सरेणं भणियं केव-लिणा जहा–सुणसु दुक्करकारिए। जं तुज्झ सरीर विहडण कारणं ति।
(१७) तए रत्त पित्त दूसिए अब्भंतरओ सरीरगे सिणिद्धाहारमाकंठाए कोलियग मीसं परिभुत्तं
(१८) अन्नं च एत्थ गच्छे एत्तिए सए साहु साहुणीणं, तहा वि जावइएणं अच्छीणि पक्खालि-ज्जंति तावइयं पि बाहिर Translated Sutra: ऐसा सोचते हुए उस साध्वीजी को केवलज्ञान पैदा हुआ। उस वक्त देव ने केवलज्ञान का महोत्सव किया। वो केवली साध्वीजी ने मानव, देव, असुर के और साध्वी के संशयरूप अंधकार के पड़ल को दूर किया। उसके बाद भक्ति से भरपूर हृदयवाली रज्जा आर्या ने प्रणाम करके सवाल पूछा कि – हे भगवंत ! किस वजह से मुझे इतनी बड़ी महावेदनावाला व्याधि | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1170 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तित्थयरेणावि अच्चंतं कट्ठं कडयडं वयं।
अइदुद्धरं समादिट्ठं, उग्गं घोरं सुदुक्करं॥ Translated Sutra: तीर्थंकर भगवंत ने भी काफी कष्टकारी कठिन अति दुर्धर, उग्र, घोर मुश्किल से पालन किया जाए वैसा कठिन व्रत का उपदेश दिया है। तो त्रिविध त्रिविध से यह व्रत पालन करने के लिए कौन समर्थ हो सकता है ? वचन और काया से अच्छी तरह से आचरण किया जाने के बाद भी तीसरे मन से रक्षा करना मुमकीन नहीं है। या तो दुःख की फिक्र की जाती है। | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1171 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] ता तिविहेण को सक्को, एयं अनुपपालेऊणं ।
वाया-कम्मं समायरणे बे रक्खं, नो तइयं मणं॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ११७० | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1172 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अहवा चिंतिज्जई दुक्खं, कीरई पुन सुहेण य।
ता जो मनसा वि कुसीलो, स कुसीलो सव्व-कज्जेसु॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ११७० | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1173 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] ता जं एत्थं इमं खलियं, सहसा तुडि-वसेण मे।
आगयं, तस्स पच्छित्तं आलोइत्ता लहुं चरं॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ११७० | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1174 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सईण सील-वंताणं मज्झे पढमा महाऽऽरिया।
धुरम्मि दियए रेहा एयं सग्गे वि घूसई॥ Translated Sutra: समग्र सती, शीलवंती के भीतर मैं पहली बड़ी साध्वी हूँ। रेखा समान मैं सब में अग्रेसर हूँ। उस प्रकार स्वर्ग में भी उद्घोषणा होती है। और मेरे पाँव की धूल को सब लोग वंदन करते हैं। क्योंकि उसकी रज से हर एक की शुद्धि होती है। उस प्रकार जगत में मेरी प्रसिद्धि हुई है। अब यदि मैं आलोचना दूँ। मेरा मानसिक दोष भगवंत के पास | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1175 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तहा य पाय धूली मे सव्वो वि वंदए जणो।
जहा किल सुज्झिज्जए मिमीए इति पसिद्धाए अहं जगे॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ११७४ | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1176 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] ता जइ आलोयणं देमि, ता एयं पयडी-भवे।
मम भायरो पिया-माया, जाणित्ता हुंति दुक्खिए॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ११७४ | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1314 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] मंडवियाए भवेयव्वं दुक्कर-कारि भणित्तु णं।
नवरं एयारिसं भविया, किमत्थं गोयमा एयं पुणो तं पपुच्छसी॥ Translated Sutra: फिर से तुम्हें यह पूछे गए सवाल का प्रत्युत्तर देता हूँ कि चार ज्ञान के स्वामी, देव – असुर और जगत के जीव से पूजनीय निश्चित उस भव में ही मुक्ति पानेवाले हैं। आगे दूसरा भव नहीं होगा। तो भी अपना बल, वीर्य, पुरुषकार पराक्रम छिपाए बिना उग्र कष्टमय घोर दुष्कर तप का वो सेवन करते हैं। तो फिर चार गति स्वरूप संसार के जन्म | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३ कुशील लक्षण |
Gujarati | 488 | Sutra | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] (१०) तत्थ जे ते अपसत्थ-नाण-कुसीले ते एगूणतीसइविहे दट्ठव्वे, तं जहा–
सावज्ज-वाय-विज्जा-मंत-तंत-पउंजण-कुसीले १,
विज्जा-मंत-तंताहिज्जण-कुसीले २,
वत्थु-विज्जा पउंजणाहिज्जण-कुसीले ३-४,
गह-रिक्ख-चार-जोइस -सत्थ-पउंजणाहिज्जण-कुसीले ५-६,
निमित्त-लक्खण-पउंजणाहिज्जण कुसीले ७-८,
सउण-लक्खण-पउंजणाहिज्जण-कुसीले ९-१०,
हत्थि-सिक्खा-पउंजणाहिज्जण-कुसीले ११-१२,
धणुव्वेय-पउंजणाहिज्जण-कुसीले १३-१४,
गंधव्ववेय-पउंजणाहिज्जण-कुसीले १५-१६,
पुरिस-इत्थी-लक्खण-पउंजणज्झावण-कुसीले १७-१८,
काम-सत्थ-पउंजणाहिज्जण-कुसीले १९-२०,
कुहुगिंद जाल-सत्थ-पउंजणाहिज्जण-कुसीले २१-२२,
आलेक्ख-विज्जाहिज्जण-कुसीले Translated Sutra: તેમાં અપ્રશસ્ત જ્ઞાનકુશીલ ૨૯ પ્રકારે જાણવા – ૧. સાવદ્યવાદ વિષયક મંત્ર – તંત્રના પ્રયોગ કરવારૂપ કુશીલ. ૨. વિદ્યા મંત્ર – તંત્ર ભણવા – ભણાવવા તે વસ્તુવિદ્યા કુશીલ. ૩. ગ્રહણ, નક્ષત્ર – ચાર જ્યોતિષ શાસ્ત્ર જોવા, કહેવા, ભણાવવા રૂપ લક્ષણ કુશીલ. ૪. નિમિત્ત કહેવા, શરીરના લક્ષણો જોવા, તેના શાસ્ત્રો ભણાવવા રૂપ લક્ષણ કુશીલ, ૫. | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३ कुशील लक्षण |
Gujarati | 492 | Sutra | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] (१) से भयवं जइ एवं ता किं पंच-मंगलस्स णं उवहाणं कायव्वं
(२) गोयमा पढमं नाणं तओ दया, दयाए य सव्व-जग-जीव-पाण-भूय-सत्ताणं अत्तसम-दरिसित्तं
(३) सव्व-जग-जीव-पाण-भूय-सत्ताणं-अत्तसम-दंसणाओ य तेसिं चेव संघट्टण-परियावण-किलावणोद्दावणाइ-दुक्खु-पायण-भय-विवज्जणं,
(४) तओ अणासवो, अणासवाओ य संवुडासवदारत्तं, संवुडासव-दारत्तेणं च दमो पसमो
(५) तओ य सम-सत्तु-मित्त-पक्खया, सम-सत्तु-मित्त-पक्खयाए य अराग-दोसत्तं, तओ य अकोहया अमाणया अमायया अलोभया, अकोह-माण-माया-लोभयाए य अकसायत्तं
(६) तओ य सम्मत्तं, समत्ताओ य जीवाइ-पयत्थ-परिन्नाणं, तओ य सव्वत्थ-अपडिबद्धत्तं, सव्वत्थापडिबद्धत्तेण य अन्नाण-मोह-मिच्छत्तक्खयं
(७) Translated Sutra: ભગવન્ ! જો એમ છે તો શું પંચમંગલના ઉપધાન કરવા જોઈએ ? ગૌતમ ! પહેલું જ્ઞાન – પછી દયા એટલે સંયમ અર્થાત્ જ્ઞાનથી ચારિત્ર – દયા પાલન થાય છે. દયાથી સર્વ જગતના તમામ જીવો, પ્રાણો, ભૂતો, સત્ત્વોને પોતાના સમાન દેખનારો થાય છે. તેથી બીજા જીવોને સંઘટ્ટન કરવા, પરિતાપના – કિલામણા – ઉપદ્રવાદિ દુઃખ ઉત્પાદન કરવા, ભય પમાડવા, ત્રાસ | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३ कुशील लक्षण |
Gujarati | 493 | Sutra | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] (१) से भयवं कयराए विहिए पंच-मंगलस्स णं विणओवहाणं कायव्वं
(२) गोयमा इमाए विहिए पंचमंगलस्स णं विणओवहाणं कायव्वं, तं जहा–सुपसत्थे चेव सोहने तिहि-करण-मुहुत्त-नक्खत्त-जोग-लग्ग-ससीबले
(३) विप्पमुक्क-जायाइमयासंकेण, संजाय-सद्धा-संवेग-सुतिव्वतर-महंतुल्लसंत-सुहज्झ-वसायाणुगय-भत्ती-बहुमान-पुव्वं निन्नियाण-दुवालस-भत्त-ट्ठिएणं,
(४) चेइयालये जंतुविरहिओगासे,
(५) भत्ति-भर-निब्भरुद्धसिय-ससीसरोमावली-पप्फुल्ल-वयण-सयवत्त-पसंत-सोम-थिर-दिट्ठी
(६) नव-नव-संवेग- समुच्छलंत- संजाय- बहल- घन- निरंतर- अचिंत- परम- सुह- परिणाम-विसेसुल्लासिय-सजीव-वीरियानुसमय-विवड्ढंत-पमोय-सुविसुद्ध-सुनिम्मल-विमल-थिर-दढयरंत Translated Sutra: ભગવન્ ! કઈ વિધિથી પંચમંગલનું વિનય ઉપધાન કરવું ? ગૌતમ ! અમે તે વિધિ આગળ જણાવીશું. અતિ પ્રશસ્ત તેમજ શોભન તિથિ, કરણ, મુહૂર્ત્ત, નક્ષત્ર, યોગ, લગ્ન, ચંદ્રબલ હોય જેના શ્રદ્ધા સંવેગ નિઃશંક અતિશય વૃદ્ધિ પામેલા હોય. અતિ તીવ્ર ઉલ્લાસ પામતા, શુભાધ્યવસાય સહિત પૂર્ણ ભક્તિ – બહુમાન સહ કોઈ જ આલોક – પરલોકના ફળની ઇચ્છા રહિત સળંગ | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३ कुशील लक्षण |
Gujarati | 494 | Sutra | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] (१) से भयवं किमेयस्स अचिंत-चिंतामणि-कप्प-भूयस्स णं पंचमंगल-महासुयक्खंधस्स सुत्तत्थं पन्नत्तं गोयमा
(२) इयं एयस्स अचिंत-चिंतामणी-कप्प-भूयस्स णं पंचमंगल-महासुयक्खंधस्स णं सुत्तत्थं-पन्नत्तं
(३) तं जहा–जे णं एस पंचमं-गल-महासुयक्खंधे से णं सयलागमंतरो ववत्ती तिल-तेल-कमल-मयरंदव्व सव्वलोए पंचत्थिकायमिव,
(४) जहत्थ किरियाणुगय-सब्भूय-गुणुक्कित्तणे, जहिच्छिय-फल-पसाहगे चेव परम-थुइवाए (५) से य परमथुई केसिं कायव्वा सव्व-जगुत्तमाणं।
(६) सव्व-जगुत्तमुत्तमे य जे केई भूए, जे केई भविंसु, जे केई भविस्संति, ते सव्वे चेव अरहंतादओ चेव नो नमन्ने ति।
(७) ते य पंचहा १ अरहंते, २ सिद्धे, ३ आयरिए, Translated Sutra: ભગવન્ ! શું આ ચિંતામણી કલ્પવૃક્ષ સમાન પંચમંગલ મહાશ્રુતસ્કંધના સૂત્ર અને અર્થ પ્રરૂપેલા છે ? હે ગૌતમ ! આ અચિંત્ય ચિંતામણી કલ્પવૃક્ષ સમ મનોવાંછિત પૂર્ણ કરનાર શ્રુતસ્કંધના સૂત્ર અને અર્થ પ્રરૂપેલ છે. તે આ રીતે – જેમ તલમાં તેલ, કમલમાં મકરંદ, સર્વલોકમાં પંચાસ્તિકાય વ્યાપીને રહેલા છે, તેમ આ પંચમંગલ મહાશ્રુતસ્કંધ | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन |
उद्देशक-३ | Gujarati | 387 | Sutra | Chheda-06 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] (१) से भयवं केणं अट्ठेणं एवं वुच्चइ जहा णं नो इत्थीणं निज्झाएज्जा। नो नमालवेज्जा। नो णं तीए सद्धिं परिवसेज्जा। नो णं अद्धाणं पडिवज्जेज्जा
(२) गोयमा सव्व-प्पयारेहि णं सव्वित्थीयं अच्चत्थं मउक्कडत्ताए रागेणं संधुक्किज्जमाणी
कामग्गिए संपलित्ता सहावओ चेव विसएहिं बाहिज्जइ।
(३) तओ सव्व-पयारेहिं णं सव्वत्थियं अच्चत्थं मउक्कडत्ताए रागेणं संधु-क्किज्जमाणी कामग्गीए संपलित्ता सहावओ चेव विसएहिं बाहिज्जमाणी, अनुसमयं सव्व-दिसि-विदिसासुं णं सव्वत्थ विसए पत्थेज्जा
(४) जावं णं सव्वत्थ-विसए पत्थेज्जा, ताव णं सव्व-पयारेहिं णं सव्वत्थ सव्वहा पुरिसं संकप्पिज्जा,
(५) जाव णं Translated Sutra: ભગવન્ ! આપ કેમ કહો છો કે સ્ત્રીના અંગોપાંગ તરફ નજર ન કરવી, તેની સાથે વાતો ન કરવી, વસવાટ ન કરવો, માર્ગમાં એકલા ન ચાલવું ? ગૌતમ ! સર્વ સ્ત્રી સર્વ પ્રકારે અતિ ઉત્કટ મદ અને વિષયાભિલાષના રાગથી ઉત્તેજિત બનેલી હોય છે. સ્વભાવથી તેણીનો કામાગ્નિ નિરંતર સળગતો રહે છે. વિષયો પ્રતિ તેણીનું ચંચળ ચિત્ત દોડે છે. હૃદયમાં કામાગ્નિ | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३ कुशील लक्षण |
Gujarati | 622 | Sutra | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नो आगमओ य दंसण-कुसीले अनेगहा, तं जहा–१ चक्खु-कुसीले २ घाण-कुसीले, ३ सवण-कुसीले, ४ जिब्भा-कुसीले, ५ सरीर-कुसीले तत्थ चक्खुकुसीले तिविहे नेए, तं जहा–
१ पसत्थ-चक्खु-कुसीले, ...२ पसत्थापसत्थ-चक्खु-कुसीले, ...३ अपसत्थ-चक्खुकुसीले
३ तत्थ–जे केइ-पसत्थं उसभादि-तित्थयर-बिंब-पुरओ चक्खु-गोयर-ट्ठियं तमेव पासेमाणे अन्नं किं पि मनसा अपसत्थमज्झवसे, से णं पसत्थ-चक्खु-कुसीले। तहा जे पसत्थापसत्थ-चक्खु-कुसीले।
तित्थयर-बिंब हियएणं अच्छीहिं-किं पि पेहेज्जा से णं पसत्थापसत्थ चक्खु-कुसीले। तहा पसत्थापसत्थाइं दव्वाइं कागबग-ढेंक-तित्तिर-मयूराइं सुकंत-दित्तित्थियं वा दट्ठूणं तयहुत्तं Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૬૨૧ | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Gujarati | 1143 | Sutra | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] (१३) चिंतमाणीए चेव उप्पन्नं केवलं णाणं कया य देवेहिं केवलिमहिमा।
(१४) केवलिणा वि नर सुरासुराणं पणासियं संसय तम पडलं अज्जियाणं च।
(१५) तओ भत्तिब्भरनिब्भराए पणामपुव्वं पुट्ठो केवली रज्जाए जहा भयवं किमट्ठमहं एमहंताणं महा वाहि वेयणाणं भायणं संवुत्ता
(१६) ताहे गोयमा सजल जलहर सुरदुंदुहि निग्घोस मणोहारि गंभीर सरेणं भणियं केव-लिणा जहा–सुणसु दुक्करकारिए। जं तुज्झ सरीर विहडण कारणं ति।
(१७) तए रत्त पित्त दूसिए अब्भंतरओ सरीरगे सिणिद्धाहारमाकंठाए कोलियग मीसं परिभुत्तं
(१८) अन्नं च एत्थ गच्छे एत्तिए सए साहु साहुणीणं, तहा वि जावइएणं अच्छीणि पक्खालि-ज्जंति तावइयं पि बाहिर Translated Sutra: એમ વિચારતા તે સાધ્વીજીને કેવળજ્ઞાન થયું. તે સમયે દેવોએ કેવળજ્ઞાન મહોત્સવ કર્યો. તે કેવલી સાધ્વીએ મનુષ્ય, દેવ, અસુરોના તથા સાધ્વીઓના સંશયરૂપ અંધકાર પડલને દૂર કર્યો. ત્યારપછી ભક્તિથી ભરપૂર હૃદયવાળી રજ્જા આર્યાએ પ્રણામ કરીને પૂછ્યું – હે ભગવન્ ! કયા કારણે મને આટલો મોટો મહાવેદનાવાળો વ્યાધિ ઉત્પન્ન થયો ? હે | |||||||||
Maransamahim | Ardha-Magadhi |
मरणसमाहि |
Hindi | 85 | Gatha | Painna-10A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] वयछक्क ६ कायछक्कं १२ बारसगं तह अकप्प १३ गिहिभाणं १४ ।
पलियंक १५ गिहिनिसेज्जा १६ ससोभ १७ पलिमज्जणसिणाणं १८ ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Maransamahim | Ardha-Magadhi |
मरणसमाहि |
Hindi | 500 | Gatha | Painna-10A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] सावत्थी जियसत्तूतणओ निक्खमण पडिम ‘तणफासे’ ।
चारिय पधिय विकंतण कुसलेसण कड्ढणा सहणं १७ ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Maransamahim | Ardha-Magadhi |
मरणसमाहि |
Gujarati | 85 | Gatha | Painna-10A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] वयछक्क ६ कायछक्कं १२ बारसगं तह अकप्प १३ गिहिभाणं १४ ।
पलियंक १५ गिहिनिसेज्जा १६ ससोभ १७ पलिमज्जणसिणाणं १८ ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Maransamahim | Ardha-Magadhi |
मरणसमाहि |
Gujarati | 500 | Gatha | Painna-10A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] सावत्थी जियसत्तूतणओ निक्खमण पडिम ‘तणफासे’ ।
चारिय पधिय विकंतण कुसलेसण कड्ढणा सहणं १७ ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Nandisutra | नन्दीसूत्र | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Hindi | 12 | Gatha | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सम्मद्दंसण-वइर-दढ-रूढ-गाढावगाढ-पेढस्स ।
धम्मवर-रयण-मंडिय-चामीयर-मेहलागस्स ॥ Translated Sutra: संघमेरु की भूपीठिका सम्यग्दर्शन रूप श्रेष्ठ वज्रमयी है। सम्यक् – दर्शन सुदृढ आधार – शिला है। वह शंकादि दूषण रूप विवरों से रहित है। विशुद्ध अध्यवसायों से चिरंतन है। तत्त्व अभिरुचि से ठोस है, जीव आदि नव तत्त्वों में निमग्न होने के कारण गहरा है। उसमें उत्तर गुण रूप रत्न और मूल गुण स्वर्ण मेखला है। उसमें संघ | |||||||||
Nandisutra | नन्दीसूत्र | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Hindi | 98 | Gatha | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] १ भरहसिल २ पणिय ३ रुक्खे, ४ खुड्डग ५ पड ६ सरड ७ काय ८ उच्चारे ।
९ गय १० घयण ११ गोल १२ खंभे, १३ खुड्डग १४-१५ मग्गित्थि १६ पइ १७ पुत्ते ॥ Translated Sutra: भरत, शिला, कुर्कुट, तिल, बाल, हस्ति, अगड, वनखंड, पायस, अतिम, पत्र, खाडहिल, पंचपियर, प्रणितवृक्ष, क्षुल्लक, पट, काकीडा, कौआ, उच्चारपरिक्षा, हाथी, भांड, गोलक, स्तम्भ, खुड्डग, मार्ग, स्त्री, पति, पुत्र, मधुसिक्थ, मुद्रिका, अंक, सुवर्णमहोर, भिक्षुचेटक, निधान, शिक्षा, अर्थशास्त्र, इच्छामह, लाख – यह सर्व औत्पातिकी बुद्धि के दृष्टान्त | |||||||||
Nandisutra | नन्दीसूत्र | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Hindi | 135 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं मिच्छसुयं?
मिच्छसुयं–जं इमं अन्नाणिएहिं मिच्छदिट्ठिहिं सच्छंदबुद्धि-मइ-विगप्पियं, तं जहा–
१ भारहं २ रामायणं ३-४ हंभीमासुरुत्तं ५ कोडिल्लयं ६ सगभद्दियाओ ७ घोडमुहं ८ कप्पासियं ९ नागसुहुमं १० कणगसत्तरी ११ वइसेसियं १२ बुद्धवयणं १३ वेसियं १४ काविलं १५ लोगाययं १६ सट्ठितंतं १७ माढरं १८ पुराणं १९ वागरणं २० नाडगादि।
अहवा– बावत्तरिकलाओ चत्तारि य वेया संगोवंगा। एयाइं मिच्छदिट्ठिस्स मिच्छत्त-परिग्ग-हियाइं मिच्छसुयं। एयाइं चेव सम्म-दिट्ठिस्स सम्मत्त-परिग्गहियाइं सम्मसुयं।
अहवा–मिच्छदिट्ठिस्स वि एयाइं चेव सम्मसुयं। कम्हा? सम्मत्तहेउत्तणओ। जम्हा ते Translated Sutra: – मिथ्याश्रुत का स्वरूप क्या है ? मिथ्याश्रुत अज्ञानी एवं मिथ्यादृष्टियों द्वारा स्वच्छंद और विपरीत बुद्धि द्वारा कल्पित किये हुए ग्रन्थ हैं, यथा – भारत, रामायण, भीमासुरोक्त, कौटिल्य, शकटभद्रिका, घोटकमुख, कार्पासिक, नाग – सूक्ष्म, कनकसप्तति, वैशेषिक, बुद्धवचन, त्रैराशिक, कापिलीय, लोकायत, षष्टितंत्र, माठर, | |||||||||
Nandisutra | नन्दीसूत्र | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Hindi | 137 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं गमियं? (से किं तं अगमियं?)
गमियं दिट्ठिवाओ। अगमियं कालियं सुयं। से त्तं गमियं। से त्तं अगमियं
तं समासओ दुविहं पन्नत्तं, तं जहा–अंगपविट्ठं, अंगबाहिरं च।
से किं तं अंगबाहिरं?
अंगबाहिरं दुविहं पन्नत्तं, तं जहा–आवस्सयं च, आवस्सयवइरित्तं च।
से किं तं आवस्सयं?
आवस्सयं छव्विहं पन्नत्तं, तं जहा–
सामाइयं, चउवीसत्थओ, वंदनयं, पडिक्कमणं, काउस्सग्गो, पच्चक्खाणं।
से त्तं आवस्सयं।
से किं तं आवस्सयवइरित्तं?
आवस्सयवइरित्तं दुविहं पन्नत्तं, तं जहा–कालियं च, उक्कालियं च।
से किं तं उक्कालियं?
उक्कालियं अनेगविहं पन्नत्तं, तं जहा–
१ दसवेयालियं २ कप्पियाकप्पियं ३ चुल्लकप्पसुयं Translated Sutra: – गमिक – श्रुत क्या है ? आदि, मध्य या अवसान में कुछ शब्द – भेद के साथ उसी सूत्र को बार – बार कहना गमिक – श्रुत है। दृष्टिवाद गमिक – श्रुत है। गमिक से भिन्न आचाराङ्ग आदि कालिकश्रुत अगमिक – श्रुत हैं। अथवा श्रुत संक्षेप में दो प्रकार का है – अङ्गप्रविष्ट और अङ्गबाह्य। अङ्गबाह्य दो प्रकार का है – आवश्यक, आवश्यक से | |||||||||
Nandisutra | नन्दीसूत्र | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Hindi | 150 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं दिट्ठिवाए?
दिट्ठिवाए णं सव्वभावपरूवणा आघविज्जइ। से समासओ पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–१. परिकम्मे २. सुत्ताइं ३. पुव्वगए ४. अनुओगे ५. चूलिया।
से किं तं परिकम्मे?
परिकम्मे सत्तविहे पन्नत्ते, तं जहा–१. सिद्धसेणियापरिकम्मे २. मनुस्ससेणियापरिकम्मे, ३. पुट्ठसेणियापरिकम्मे ४. ओगाढसेणियापरिकम्मे ५. उवसंपज्जसेणियापरिकम्मे ६. विप्पजहण-सेणियापरिकम्मे ७. चुयाचुयसेणियापरिकम्मे।
से किं तं सिद्धसेणियापरिकम्मे?
सिद्धसेणियापरिकम्मे चउद्दसविहे पन्नत्ते, तं जहा–१. माउगापयाइं २. एगट्ठियपयाइं ३. अट्ठापयाइं ४. पाढो ५. आगासपयाइं ६. केउभूयं ७. रासिबद्धं ८. एगगुणं ९. दुगुणं Translated Sutra: दृष्टिवाद क्या है ? दृष्टिवाद – सब नयदृष्टियों का कथन करने वाले श्रुत में समस्त भावों की प्ररूपणा है। संक्षेप में पाँच प्रकार का है। परिकर्म, सूत्र, पूर्वगत, अनुयोग और चूलिका। परिकर्म सात प्रकार का है, सिद्ध – श्रेणिकापरिकर्म, मनुष्य – श्रेणिकापरिकर्म, पुष्ट – श्रेणिकापरिकर्म, अवगाढ – श्रेणिका – परिकर्म, | |||||||||
Nandisutra | नन्दीसूत्र | Ardha-Magadhi |
परिसिट्ठं २-जोगनंदी |
Hindi | 168 | Sutra | Chulika-01b | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नाणं पंचविहं पन्नत्तं, तं जहा–आभिनिबोहियनाणं सुयनाणं ओहिनाणं मनपज्जवनाणं केवलनाणं।
तत्थ णं चत्तारि नाणाइं ठप्पाइं ठवणिज्जाइं, नो उद्दिस्संति नो समुद्दिस्संति नो अणुण्ण-विज्जंति, सुयनाणस्स पुण उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ।
जइ सुयनाणस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ, किं अंगपविट्ठस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अणुओगो य पवत्तइ? किं अंगबाहिरस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगे य पवत्तइ? गोयमा! अंगपविट्ठस्स वि उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ, अंगबाहिरस्स वि उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ। इमं पुण पट्ठवणं Translated Sutra: ज्ञान के पाँच भेद हैं – आभिनिबोधिक, श्रुत, अवधि, मनःपर्यव और केवल। उसमें चार ज्ञानों की स्थापना, उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा नहीं है। श्रुतज्ञान के उद्देश, समुद्देश और अनुज्ञा के अनुयोग प्रवर्तमान है। यदि श्रुतज्ञान का उद्देश आदि है तो वह अंगप्रविष्ट के हैं या अंगबाह्य के ? दोनों के उद्देश आदि होते हैं। जो | |||||||||
Nandisutra | નન્દીસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Gujarati | 98 | Gatha | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] १ भरहसिल २ पणिय ३ रुक्खे, ४ खुड्डग ५ पड ६ सरड ७ काय ८ उच्चारे ।
९ गय १० घयण ११ गोल १२ खंभे, १३ खुड्डग १४-१५ मग्गित्थि १६ पइ १७ पुत्ते ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૯૭ | |||||||||
Nandisutra | નન્દીસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Gujarati | 135 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं मिच्छसुयं?
मिच्छसुयं–जं इमं अन्नाणिएहिं मिच्छदिट्ठिहिं सच्छंदबुद्धि-मइ-विगप्पियं, तं जहा–
१ भारहं २ रामायणं ३-४ हंभीमासुरुत्तं ५ कोडिल्लयं ६ सगभद्दियाओ ७ घोडमुहं ८ कप्पासियं ९ नागसुहुमं १० कणगसत्तरी ११ वइसेसियं १२ बुद्धवयणं १३ वेसियं १४ काविलं १५ लोगाययं १६ सट्ठितंतं १७ माढरं १८ पुराणं १९ वागरणं २० नाडगादि।
अहवा– बावत्तरिकलाओ चत्तारि य वेया संगोवंगा। एयाइं मिच्छदिट्ठिस्स मिच्छत्त-परिग्ग-हियाइं मिच्छसुयं। एयाइं चेव सम्म-दिट्ठिस्स सम्मत्त-परिग्गहियाइं सम्मसुयं।
अहवा–मिच्छदिट्ठिस्स वि एयाइं चेव सम्मसुयं। कम्हा? सम्मत्तहेउत्तणओ। जम्हा ते Translated Sutra: મિથ્યાશ્રુતનું સ્વરૂપ કેવું છે ? અજ્ઞાની અને મિથ્યાદૃષ્ટિઓ દ્વારા સ્વચ્છંદ અને વિપરીત બુદ્ધિ વડે કલ્પિત કરેલ ગ્રંથ મિથ્યાશ્રુત છે, જેમ કે – ૧. મહાભારત ૨. રામાયણ ૩. ભીમાસુરોક્ત ૪. કૌટિલ્ય ૫. શકટભદ્રિકા ૬. ઘોટક મુખ ૭. કાર્પાસિક ૮. નાગ – સૂક્ષ્મ ૯. કનકસપ્તતિ ૧૦. વૈશેષિક ૧૧. બુદ્ધવચન ૧૨. ત્રેરાશિક ૧૩. કાપિલીય ૧૪. લોકાયત | |||||||||
Nandisutra | નન્દીસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Gujarati | 137 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं गमियं? (से किं तं अगमियं?)
गमियं दिट्ठिवाओ। अगमियं कालियं सुयं। से त्तं गमियं। से त्तं अगमियं
तं समासओ दुविहं पन्नत्तं, तं जहा–अंगपविट्ठं, अंगबाहिरं च।
से किं तं अंगबाहिरं?
अंगबाहिरं दुविहं पन्नत्तं, तं जहा–आवस्सयं च, आवस्सयवइरित्तं च।
से किं तं आवस्सयं?
आवस्सयं छव्विहं पन्नत्तं, तं जहा–
सामाइयं, चउवीसत्थओ, वंदनयं, पडिक्कमणं, काउस्सग्गो, पच्चक्खाणं।
से त्तं आवस्सयं।
से किं तं आवस्सयवइरित्तं?
आवस्सयवइरित्तं दुविहं पन्नत्तं, तं जहा–कालियं च, उक्कालियं च।
से किं तं उक्कालियं?
उक्कालियं अनेगविहं पन्नत्तं, तं जहा–
१ दसवेयालियं २ कप्पियाकप्पियं ३ चुल्लकप्पसुयं Translated Sutra: [૧] ગમિકશ્રુતનું સ્વરૂપ કેવું છે ? દૃષ્ટિવાદ બારમું અંગ સૂત્ર એ ગમિકશ્રુત છે. અગમિકશ્રુતનું સ્વરૂપ કેવું છે ? ગમિકથી ભિન્ન આચારાંગ આદિ કાલિકશ્રુતને અગમિકશ્રુત કહેવાય છે. આ પ્રમાણે ગમિક અને અગમિક શ્રુતનું વર્ણન છે. [૨] અથવા શ્રુત સંક્ષેપમાં બે પ્રકારનું કહ્યું છે – ૧. અંગ પ્રવિષ્ટ ૨. અંગ બાહ્ય. અંગબાહ્ય શ્રુત | |||||||||
Nandisutra | નન્દીસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Gujarati | 150 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं दिट्ठिवाए?
दिट्ठिवाए णं सव्वभावपरूवणा आघविज्जइ। से समासओ पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–१. परिकम्मे २. सुत्ताइं ३. पुव्वगए ४. अनुओगे ५. चूलिया।
से किं तं परिकम्मे?
परिकम्मे सत्तविहे पन्नत्ते, तं जहा–१. सिद्धसेणियापरिकम्मे २. मनुस्ससेणियापरिकम्मे, ३. पुट्ठसेणियापरिकम्मे ४. ओगाढसेणियापरिकम्मे ५. उवसंपज्जसेणियापरिकम्मे ६. विप्पजहण-सेणियापरिकम्मे ७. चुयाचुयसेणियापरिकम्मे।
से किं तं सिद्धसेणियापरिकम्मे?
सिद्धसेणियापरिकम्मे चउद्दसविहे पन्नत्ते, तं जहा–१. माउगापयाइं २. एगट्ठियपयाइं ३. अट्ठापयाइं ४. पाढो ५. आगासपयाइं ६. केउभूयं ७. रासिबद्धं ८. एगगुणं ९. दुगुणं Translated Sutra: [૧] દૃષ્ટિવાદમાં કોનું કથન છે ? દૃષ્ટિવાદમાં સમસ્ત ભાવોની પ્રરૂપણા કરી છે. તે સંક્ષેપમાં પાંચ પ્રકારે છે, જેમ કે – ૧. પરિકર્મ, ૨. સૂત્ર, ૩. પૂર્વગત, ૪. અનુયોગ, ૫. ચૂલિકા. [૨] પરિકર્મના કેટલા પ્રકાર છે ? પરિકર્મ સાત પ્રકારના છે. જેમ કે – ૧. સિદ્ધશ્રેણિકા પરિકર્મ, ૨. મનુષ્ય શ્રેણિકા પરિકર્મ, ૩. પૃષ્ટશ્રેણિકા પરિકર્મ, ૪. અવગાઢ | |||||||||
Nandisutra | નન્દીસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
परिसिट्ठं २-जोगनंदी |
Gujarati | 168 | Sutra | Chulika-01b | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नाणं पंचविहं पन्नत्तं, तं जहा–आभिनिबोहियनाणं सुयनाणं ओहिनाणं मनपज्जवनाणं केवलनाणं।
तत्थ णं चत्तारि नाणाइं ठप्पाइं ठवणिज्जाइं, नो उद्दिस्संति नो समुद्दिस्संति नो अणुण्ण-विज्जंति, सुयनाणस्स पुण उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ।
जइ सुयनाणस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ, किं अंगपविट्ठस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अणुओगो य पवत्तइ? किं अंगबाहिरस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगे य पवत्तइ? गोयमा! अंगपविट्ठस्स वि उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ, अंगबाहिरस्स वि उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ। इमं पुण पट्ठवणं Translated Sutra: જ્ઞાન પાંચ પ્રકારે છે – આભિનિબોધિક જ્ઞાન, શ્રુત જ્ઞાન, અવધિ જ્ઞાન, મન:પર્યવ જ્ઞાન અને કેવલ જ્ઞાન. તેમાં ચાર જ્ઞાનોની સ્થાપના કરી. તેનો ઉદ્દેશ, સમુદ્દેશ અને અનુજ્ઞા નથી. શ્રુતજ્ઞાનના ઉદ્દેશ, સમુદ્દેશ અને અનુજ્ઞાનો અનુયોગ પ્રવર્તે છે. જો શ્રુતજ્ઞાનનો ઉદ્દેશ આદિ છે, તો તે અંગ પ્રવિષ્ટનો છે કે અંગ બાહ્યનો ? બંનેના | |||||||||
Nishithasutra | निशीथसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१७ | Hindi | 1194 | Sutra | Chheda-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे निग्गंथे निग्गंथीए कायंसि गंडं वा पिडयं वा अरइयं वा असियं वा भगंदलं वा अन्नउत्थिएण वा गारत्थिएण वा अन्नयरेणं तिक्खेणं सत्थजाएणं अच्छिंदावेज्ज वा विच्छिंदावेज्ज वा, अच्छिंदावेंतं वा विच्छिंदावेंतं वा सातिज्जति। Translated Sutra: देखो सूत्र ११७६ | |||||||||
Nishithasutra | निशीथसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१७ | Hindi | 1195 | Sutra | Chheda-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे निग्गंथे निग्गंथीए कायंसि गंडं वा जाव सत्थजाएणं अच्छिंदावेत्ता वा विच्छिंदावेत्ता वा पूयं वा सोणियं वा नीहरावेज्ज वा विसोहावेज्ज वा, नीहरावेंतं वा विसोहावेंतं वा सातिज्जति। Translated Sutra: देखो सूत्र ११७६ | |||||||||
Nishithasutra | निशीथसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१७ | Hindi | 1196 | Sutra | Chheda-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे निग्गंथे निग्गंथीए कायंसि गंडं वा जाव नीहरावेत्ता वा विसोहावेत्ता वा सीओदग-वियडेण वा उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलावेज्ज वा पधोवावेज्ज वा, उच्छोलावेंतं वा पधोवावेंतं वा सातिज्जति। Translated Sutra: देखो सूत्र ११७६ | |||||||||
Nishithasutra | निशीथसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१७ | Hindi | 1197 | Sutra | Chheda-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे निग्गंथे निग्गंथीए कायंसि गंडं वा जाव उच्छोलावेत्ता वा पधोवावेत्ता वा अन्नयरेणं आलेवणजाएणं आलिंपावेज्ज वा विलिंपावेज्ज वा, आलिंपावेंतं वा विलिंपावेंतं वा सातिज्जति। Translated Sutra: देखो सूत्र ११७६ | |||||||||
Nishithasutra | निशीथसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१७ | Hindi | 1198 | Sutra | Chheda-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे निग्गंथे निग्गंथीए कायंसि गंडं वा जाव तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा नवनीएण वा अब्भंगावेज्ज वा मक्खावेज्ज वा, अब्भंगावेंतं वा मक्खावेंतं वा सातिज्जति। Translated Sutra: देखो सूत्र ११७६ | |||||||||
Nishithasutra | निशीथसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१७ | Hindi | 1199 | Sutra | Chheda-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे निग्गंथे निग्गंथीए कायंसि गंडं वा जाव अब्भंगावेत्ता वा मक्खावेत्ता वा अन्नयरेणं आलेवणजाएणं धूवावेज्ज वा पधूवावेज्ज वा, धूवावेंतं वा पधूवावेंतं वा सातिज्जति। Translated Sutra: देखो सूत्र ११७६ |