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Dashashrutskandha दशाश्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

दसा-६ उपाशक प्रतिमा

Hindi 41 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहावरा पंचमा उवासगपडिमा– सव्वधम्मरुई यावि भवति। तस्स णं बहूइं सील-व्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोव-वासाइं सम्मं पट्ठविताइं भवंति। से णं सामाइयं देसावगासियं सम्मं अनुपालित्ता भवति। से णं चाउद्दसट्ठमुद्दिट्ठपुण्ण-मासिणीसु पडिपुण्णं पोसहोववासं सम्मं अनुपालित्ता भवति। से णं एगराइयं उवासगपडिमं सम्मं अनुपालेत्ता भवति। से णं असिनाणए वियडभोई मउलिकडे दियाबंभचारी रत्तिं परिमाणकडे। से णं एतारूवेणं विहारेणं विहरमाणे जहन्नेणं एगाहं वा दुयाहं वा तियाहं वा, उक्कोसेणं पंचमासे विहरेज्जा। पंचमा उवासगपडिमा।

Translated Sutra: अब पाँचवी उपासक प्रतिमा कहते हैं। वो सर्व धर्म रूचिवाला होता है। (यावत्‌ पूर्वोक्त चार प्रतिमा का सम्यक्‌ परिपालन करनेवाला होता है।) वो नियम से कईं शीलव्रत, गुणव्रत, प्राणातिपात आदि विरमण, पच्चक्‌खाण, पौषधोपवास का सम्यक्‌ परिपालन करता है। वो सामायिक देशावकासिक व्रत का यथासूत्र, यथाकल्प, यथातथ्य, यथामार्ग
Dashashrutskandha दशाश्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

दशा ७ भिक्षु प्रतिमा

Hindi 48 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सुतं मे आउसं! तेणं भगवया एवमक्खातं–इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं बारस भिक्खुपडिमाओ पन्नत्ताओ। कतराओ खलु ताओ थेरेहिं भगवंतेहिं बारस भिक्खुपडिमाओ पन्नत्ताओ? इमाओ खलु ताओ थेरेहिं भगवंतेहिं बारस भिक्खुपडिमाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–मासिया भिक्खुपडिमा, दोमासिया भिक्खुपडिमा, तेमासिया भिक्खुपडिमा, चउमासिया भिक्खुपडिमा, पंचमासिया भिक्खुपडिमा, छम्मासिया भिक्खुपडिमा, सत्तमासिया भिक्खुपडिमा, पढमा सत्त-रातिंदिया भिक्खुपडिमा, दोच्चा सत्तरातिंदिया भिक्खुपडिमा, तच्चा सत्तरातिंदिया भिक्खुपडिमा, अहोरातिंदिया भिक्खुपडिमा, एगराइया भिक्खुपडिमा।

Translated Sutra: हे आयुष्मान्‌ ! वो निर्वाण प्राप्त भगवंत के स्वमुख से मैंने ऐसा सूना है। इस (जिन प्रवचन में) स्थविर भगवंत ने निश्चय से बारह भिक्षु प्रतिमा बताई है। उस स्थविर भगवंत ने निश्चय से बारह भिक्षु प्रतिमा कौन – सी बताई है ? उस स्थविर भगवंत ने निश्चय से कही बारह भिक्षु – प्रतिमा इस प्रकार है – एक मासिकी, द्विमासिकी, त्रिमासिकी,
Dashashrutskandha दशाश्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

दशा ७ भिक्षु प्रतिमा

Hindi 49 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] मासियण्णं भिक्खुपडिमं पडिवन्नस्स अनगारस्स निच्चं वोसट्ठकाए चत्तदेहे जे केइ उवसग्गा उववज्जंति, तं जहा– दिव्वा वा मानुस्सा वा तिरिक्खजोणिया वा, ते उप्पन्ने सम्मं सहति खमति तितिक्खति अहियासेति। मासियण्णं भिक्खुपडिमं पडिवन्नस्स अनगारस्स कप्पति एगा दत्ती भोयणस्स पडिगाहेत्तए एगा पाणगस्स अण्णाउंछं सुद्धोवहडं, निज्जूहित्ता बहवे दुपय-चउप्पय-समण-माहण-अतिहि-किवण-वनीमए, कप्पति से एगस्स भुंजमाणस्स पडिग्गाहेत्तए, नो दोण्हं नो तिण्हं नो चउण्हं नो पंचण्हं, नो गुव्विणीए, नो बालवच्छाए, नो दारगं पज्जेमाणीए, नो अंतो एलुयस्स दोवि पाए साहट्टु दलमाणीए, नो बाहिं एलुयस्स

Translated Sutra: मासिकी भिक्षु प्रतिमा को धारण करनेवाले साधु काया को वोसिरा के तथा शरीर के ममत्व भाव के त्यागी होते हैं। देव – मानव या तिर्यंच सम्बन्धी जो कोई उपसर्ग आता है उसे वो सम्यक्‌ प्रकार से सहता है। उपसर्ग करनेवाले को क्षमा करते हैं, अदीन भाव से सहते हैं, शारीरिक क्षमतापूर्वक उसका सामना करता है। मासिक भिक्षु प्रतिमाधारी
Dashashrutskandha दशाश्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

दशा ७ भिक्षु प्रतिमा

Hindi 51 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पढमं सत्तरातिंदियण्णं भिक्खुपडिमं पडिवन्नस्स अनगारस्स निच्चं वोसट्ठकाए चत्तदेहे जे केइ उवसग्गा उववज्जंति, तं जहा–दिव्वा वा मानुस्सा वा तिरिक्खजोणिया वा, ते उप्पन्ने सम्मं सहति खमति तितिक्खति अहियासेति। कप्पति से चउत्थेणं भत्तेणं अपाणएणं बहिया गामस्स वा जाव रायहानीए वा उत्ताणगस्स वा पासेल्लगस्स वा नेसज्जियस्स वा ठाणं ठाइत्तए। तत्थ दिव्व-मानुस-तिरिक्खजोणिया उवसग्गा समुप्पज्जेज्जा, ते णं उवसग्गा पयालेज्ज वा पवाडेज्ज वा नो से कप्पति पयलित्तए वा पवडित्तए वा। तत्थ से उच्चारपासवणं उव्वाहेज्जा नो से कप्पति उच्चारपासवणं ओगिण्हित्तए वा कप्पति से पुव्वपडिलेहियंसि

Translated Sutra: अब आठवीं भिक्षुप्रतिमा बताते हैं, प्रथम सात रात्रिदिन के आठवीं भिक्षुप्रतिमा धारक साधु सर्वदा काया के ममत्व रहित – यावत्‌ उपसर्ग आदि को सहन करे वह सब प्रथम प्रतिमा समान जानना। उस साधु को निर्जल चोथ भक्त के बाद अन्न – पान लेना कल्पे, गाँव यावत्‌ राजधानी के बाहर उत्तासन, पार्श्वासन या निषद्यासन से कायोत्सर्ग
Dashashrutskandha दशाश्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

दशा ७ भिक्षु प्रतिमा

Hindi 52 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं अहोरातियावि, नवरं– छट्ठेणं भत्तेणं अपानएणं बहिया गामस्स वा जाव रायहाणीए वा ईसिं दोवि पाए साहट्टु वग्घारियपाणिस्स ठाणं ठाइत्तए। तत्थ दिव्व-मानुस्स-तिरिक्खजोणिया उवसग्गा समुप्पज्जेज्जा, ते णं उवसग्गा पयालेज्ज वा पवाडेज्ज वा नो से कप्पति पयलित्तए वा पवडित्तए वा। तत्थ से उच्चारपासवणं उव्वाहेज्जा नो से कप्पति उच्चारपासवणं ओगिण्हित्तए वा, कप्पति से पुव्वपडिलेहियंसि थंडिलंसि उच्चारपासवणं परिट्ठवित्तए, अहाविहिमेव ठाणं ठाइत्तए। एवं खलु एसा अहोरातिया भिक्खुपडिमा अहासुत्तं जाव आणाए अनुपालिया यावि भवति। एगराइयण्णं भिक्खुपडिमं पडिवन्नस अनगारस्स निच्चं

Translated Sutra: इसी प्रकार ग्यारहवीं – एक अहोरात्र की भिक्षुप्रतिमा के सम्बन्ध में जानना। विशेष यह कि निर्जल षष्ठभक्त करके अन्न – पान ग्रहण करना, गाँव यावत्‌ राजधानी के बाहर दोनों पाँव सकुड़कर और दोनों हाथ घुटने पर्यन्त लम्बे रखकर कायोत्सर्ग करना। शेष पूर्ववत्‌ यावत्‌ जिनाज्ञानुसार पालन करनेवाला होता है। अब बारहवीं भिक्षुप्रतिमा
Dashashrutskandha दशाश्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

दशा ९ मोहनीय स्थानो

Hindi 88 Gatha Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अपस्समाणो पस्सामि, देवे जक्खे य गुज्झगे । अन्नाणी जिनपूयट्ठी, महामोहं पकुव्वति ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ८७
Dashashrutskandha दशाश्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

दशा १0 आयति स्थान

Hindi 96 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थगरे जाव गामानुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरति। तते णं रायगिहे नगरे सिंघाडग-तिय-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह-पहेसु जाव परिसा निग्गता जाव पज्जुवासेति। तते णं ते चेव महत्तरगा जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेंति करेत्ता वंदंति नमंसंति, वंदित्ता नमंसित्ता नामगोयं पुच्छंति, पुच्छित्ता नामगोत्तं पधारेंति, पधारेत्ता एगततो मिलंति, मिलित्ता एगंतमवक्कमंति, अवक्कमित्ता एवं वदासि– जस्स णं देवाणुप्पिया

Translated Sutra: उस काल उस समय में धर्म के आदिकर तीर्थंकर श्रमण भगवान महावीर विचरण करते हुए, यावत्‌ गुणशील चैत्य में पधारे। उस समय राजगृह नगर के तीन रास्ते, चार रस्ते, चौक में होकर, यावत्‌ पर्षदा नीकली, यावत्‌ पर्युपासना करने लगी। श्रेणिक राजा के सेवक अधिकारी श्रमण भगवान महावीर के पास आए, प्रदक्षिणा की, वन्दन – नमस्कार किया,
Dashashrutskandha दशाश्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

दशा १0 आयति स्थान

Hindi 112 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते– सव्वकामविरत्ते सव्वरागविरत्ते सव्वसंगातीते सव्वसिनेहा-तिक्कंते सव्वचारित्तपरिवुडे, तस्स णं भगवंतस्स अनुत्तरेणं नाणेणं अनुत्तरेणं दंसणेणं अनुत्तरेणं चरित्तेणं अनुत्तरेणं आलएणं अनुत्तरेणं विहारेणं अनुत्तरेणं वीरिएणं अनुत्तरेणं अज्जवेणं अनुत्तरेणं मद्दवेणं अनुत्तरेणं लाघवेणं अनुत्तराए खंतीए अनुत्तराए मुत्तीए अनुत्तराए गुत्तीए अनुत्तराए तुट्ठीए अनुत्तरेणं सच्चसंजमतवसुचरियसोवचियफल० परिनिव्वाणमग्गेणं अप्पाणं भावेमाणस्स अनंते अनुत्तरे निव्वाघाए निरावरणे कसिणे पडि पुण्णे केवलवरनाणदंसणे समुप्पज्जेज्जा। तते

Translated Sutra: हे आयुष्मान्‌ श्रमणों ! मैंने धर्म का प्रतिपादन किया है। यह निर्ग्रन्थ प्रवचन सत्य है यावत्‌ तप संयम की साधना करते हुए, वह निर्ग्रन्थ सर्व काम, राग, संग, स्नेह से विरक्त हो जाए, सर्व चारित्र परिवृद्ध हो, तब अनुत्तर ज्ञान, अनुत्तर दर्शन यावत्‌ परिनिर्वाण मार्ग में आत्मा को भावित करके अनंत, अनुत्तर आवरण रहित, सम्पूर्ण
Dashashrutskandha દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

दशा ९ मोहनीय स्थानो

Gujarati 88 Gatha Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अपस्समाणो पस्सामि, देवे जक्खे य गुज्झगे । अन्नाणी जिनपूयट्ठी, महामोहं पकुव्वति ॥

Translated Sutra: મોહનીય સ્થાન – ૩૦ – જે અજ્ઞાની જિનેશ્વર દેવની માફક પોતાની પૂજાનો ઇચ્છુક થઈને દેવ, અસુર અને યક્ષોને ના જોતો એવો પણ એવું કહે છે કે, ‘‘હું આ દેવ, યક્ષ, અસુર આદિને જોઈ શકું છું – જોઉં છું’’ – તે મહામોહનીય કર્મ બાંધે છે.
Dashashrutskandha દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

दसा-५ चित्तसमाधि स्थान

Gujarati 25 Gatha Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जदा से नाणावरणं, सव्वं होति खयं गयं । तदा लोगमलोगं च, जिनो जाणति केवली ॥

Translated Sutra: જ્યારે જીવના સમસ્ત જ્ઞાનાવરણ કર્મનો ક્ષય થાય ત્યારે તે કેવલીજિન સમસ્ત લોકાલોકને જાણે છે
Dashashrutskandha દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

दसा-५ चित्तसमाधि स्थान

Gujarati 26 Gatha Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जदा से दंसणावरणं, सव्वं होइ खयं गयं । तदा लोगमलोगं च, जिनो पासइ केवली ॥

Translated Sutra: જ્યારે જીવના સમસ્ત દર્શનાવરણ કર્મનો ક્ષય થાય ત્યારે તે કેવલીજિન સમસ્ત લોકાલોકને જુએ છે
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८ आचारप्रणिधि

Hindi 375 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] लूहवित्ती सुसंतुट्ठे अप्पिच्छे सुहरे सिया । आसुरत्तं न गच्छेज्जा सोच्चाणं जिनसासनं

Translated Sutra: देखो सूत्र ३७३
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ श्रामण्यपूर्वक

Hindi 14 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जइ तं काहिसि भावं जा जा दिच्छसि नारिओ । वायाविद्धो व्व हडो अट्ठिअप्पा भविस्ससि ॥

Translated Sutra: तू जिनजिन नारियों को देखेगा, उनके प्रति यदि इस प्रकार रागभाव करेगा तो वायु से आहत हड वनस्पति की तरह अस्थिरात्मा हो जाएगा।
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ श्रुल्लकाचार कथा

Hindi 17 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] संजमे सुट्ठिअप्पाणं विप्पमुक्काण ताइणं । तेसिमेयमणाइण्णं निग्गंथाण महेसिणं ॥

Translated Sutra: जिनकी आत्मा संयम से सुस्थित है; जो बाह्य – आभ्यन्तर – परिग्रह से विमुक्त हैं; जो त्राता हैं; उन निर्ग्रन्थ महर्षियों के लिए ये अनाचीर्ण या अग्राह्य हैं –
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ छ जीवनिकाय

Hindi 32 Sutra Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सुयं मे आउसं! तेणं भगवया एवमक्खायं– इह खलु छज्जीवणिया नामज्झयणं समणेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइया सुयक्खाया सुपन्नत्ता। सेयं मे अहिज्जिउं अज्झयणं धम्मपन्नत्ती। कयरा खलु सा छज्जीवणिया नामज्झयणं समणेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइया सुयक्खाया सुपन्नत्ता? सेयं मे अहिज्जिउं अज्झयणं धम्मपन्नत्ती। इमा खलु सा छज्जीवणिया नामज्झयणं समणेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइया सुयक्खाया सुपन्नत्ता। सेयं मे अहिज्जिउं धम्मपन्नत्ती, तं जहा–पुढविकाइया आउकाइया तेउकाइया वाउकाइया वणस्सइकाइया तसकाइया। पुढवी चित्तमंतमक्खाया अनेगजीवा पुढोसत्ता अन्नत्थ सत्थपरिणएणं। आऊ

Translated Sutra: हे आयुष्मन्‌ ! मैंने सुना हैं, उन भगवान्‌ ने कहा – इस निर्ग्रन्थ – प्रवचन में निश्चित ही षड्‌जीवनिकाय नामक अध्ययन प्रवेदित, सुआख्यात और सुप्रज्ञप्त है। (इस) धर्मप्रज्ञप्ति (जिसमें धर्म की प्ररूपणा है) अध्ययन का पठन मेरे लिए श्रेयस्कर है ? वह ’षड्‌जीवनिकाय’ है – पृथ्वीकायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ छ जीवनिकाय

Hindi 59 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जो जीवे वि वियाणाइ अजीवे वि वियाणई । जीवाजीवे वियाणंतो सो हु नाहिइ संजमं ॥

Translated Sutra: जो जीवों को, अजीवों को और दोनों को विशेषरूप से जानने वाला हो तो संयम को जानेगा। समस्त जीवों की बहुविध गतियों को जानता है। तब पुण्य और पाप तथा बन्ध और मोक्ष को भी जानता है। तब दिव्य और मानवीय भोग से विरक्त होता है। विरक्त होकर आभ्यन्तर और बाह्य संयोग का परित्याग कर देता है। त्याग करता है तब वह मुण्ड हो कर अनगारधर्म
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ छ जीवनिकाय

Hindi 74 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पच्छा वि ते पयाया खिप्पं गच्छंति अमरभवणाइं । जेसिं पिओ तवो संजमो य खंती य बंभचेरं च ॥

Translated Sutra: भले ही वे पिछली वय में प्रव्रजित हुए हों किन्तु जिन्हें तप, संयम, क्षान्ति एवं ब्रह्मचर्य प्रिय हैं, वे शीघ्र ही देवभवनों में जाते हैं।
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ पिंडैषणा

उद्देशक-१ Hindi 148 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] बहु-अट्ठियं पुग्गलं अनिमिसं वा बहु-कंटयं । अत्थियं तिंदुयं बिल्लं उच्छुखंडं व सिंबलिं ॥

Translated Sutra: बहुत अस्थियों वाला फल, बहुत – से कांटों वाला फल, आस्थिक, तेन्दु, बेल, गन्ने के टुकड़े और सेमली की फली, जिनमें खाद्य अंश कम हो और त्याज्य अंश बहुत अधिक हो, उन सब को निषेध कर दे कि इस प्रकार मेरे लिए ग्रहण करना योग्य नहीं है। सूत्र – १४८, १४९
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ पिंडैषणा

उद्देशक-१ Hindi 162 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सिया य भिक्खू इच्छेज्जा सेज्जमागम्म भोत्तुयं । सपिंडपायमागम्म उंडुयं पडिलेहिया ॥

Translated Sutra: कदाचित्‌ भिक्षु बसति में आकर भोजन करना चाहे तो पिण्डपात सहित आकर भोजन भूमि प्रतिलेखन कर ले। विनयपूर्वक गुरुदेव के समीप आए और ईर्यापथिक प्रतिक्रमण करे। जाने – आने में और भक्तपान लेने में (लगे) समस्त अतिचारों का क्रमशः उपयोगपूर्वक चिन्तन कर ऋजुप्रज्ञ और अनुद्विग्न संयमी अव्याक्षिप्त चित्त से गुरु के पास
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ पिंडैषणा

उद्देशक-१ Hindi 168 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] नमोक्कारेण पारेत्ता करेत्ता जिनसंथवं । सज्झायं पट्ठवेत्ताणं वीसमेज्ज खणं मुनी ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १६२
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ महाचारकथा

Hindi 230 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] नन्नत्थ एरिसं वुत्तं जं लोए परमदुच्चरं । विउलट्ठाणभाइस्स न भूयं न भविस्सई ॥

Translated Sutra: जो निर्ग्रन्थाचार लोक में अत्यन्त दुश्चर है, इस प्रकार के श्रेष्ठ आचार अन्यत्र कहीं नहीं है | सर्वोच्च स्थान के भागी साधुओं का ऐसा आचार अन्य मत में न अतीत में था, न ही भविष्य में होगा। बालक हो या वृद्ध, अस्वस्थ हो या स्वस्थ, को जिन गुणों का पालन अखण्ड और अस्फुटित रूप से करना चाहिए, वे गुण जिस प्रकार हैं, उसी प्रकार
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ महाचारकथा

Hindi 247 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अहो निच्चं तवोकम्मं सव्वबुद्धेहिं वण्णियं । जा य लज्जासमा वित्ती एगभत्तं च भोयणं ॥

Translated Sutra: अहो ! समस्त तीर्थंकरों ने संयम के अनुकूल वृत्ति और एक बार भोजन इस नित्य तपःकर्म का उपदेश दिया है। ये जो त्रस और स्थावर अतिसूक्ष्म प्राणी हैं, जिन्हें रात्रि में नहीं देख पाता, तब आहार की एषणा कैसे कर सकता है ? उदक से आर्द्र, बीजों से संसक्त आहार को तथा पृथ्वी पर पड़े हुए प्राणीयों को दिन में बचाया जा सकता है, तब फिर
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८ आचारप्रणिधि

Hindi 363 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अट्ठ सुहुमाइं पेहाए जाइं जाणित्तु संजए । दयाहिगारी भूएसु आस चिट्ठ सएहि वा ॥

Translated Sutra: संयमी साधु जिन्हें जान कर समस्त जीवों के प्रति दया का अधिकारी बनता है, उन आठ प्रकार के सूक्ष्मों को भलीभांति देखकर ही बैठे, खड़ा हो अथवा सोए। वे आठ सूक्ष्म कौन – कौन से हैं ? तब मेधावी और विचक्षण कहे कि वे ये हैं – स्नेहसूक्ष्म, पुष्पसूक्ष्म, प्राणिसूक्ष्म, उत्तिंग सूक्ष्म, पनकसूक्ष्म, बीजसूक्ष्म, हरितसूक्ष्म
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८ आचारप्रणिधि

Hindi 373 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] न य भोयणम्मि गिद्धो चरे उंछं अयंपिरो । अफासुयं न भुंजेज्जा कीयमुद्देसियाहडं ॥

Translated Sutra: भोजन में गृद्ध न हो, व्यर्थ न बोलता हुआ उञ्छ भिक्षा ले। (वह) अप्रासुक, क्रीत, औद्देशिक और आहृत आहार का भी उपभोग न करे। अणुमात्र भी सन्निधि न करे, सदैव मुधाजीवी असम्बद्ध और जनपद के निश्रित रहे, रूक्षवृत्ति, सुसन्तुष्ट, अल्प इच्छावाला और थोड़े से आहार से तृप्त होने वाला हो। वह जिनप्रवचन को सुन कर आसुरत्व को प्राप्त
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८ आचारप्रणिधि

Hindi 389 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] उवसमेण हणे कोहं मानं मद्दवया जिने । मायं चज्जवभावेण लोभं संतोसओ जिने

Translated Sutra: क्रोध को उपशम से, मान को मृदुता से, माया को सरलता से और लोभ पर संतोष द्वारा विजय प्राप्त करे
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ विनयसमाधि

उद्देशक-३ Hindi 470 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] गुरुमिह सययं पडियरिय मुनी जिणमयनिउणे अभिगमकुसले । धुणिय रयमलं पुरेकडं भासुरमउलं गइं गय ॥ –त्ति बेमि ॥

Translated Sutra: जिन – (प्ररूपित) सिद्धान्त में निपुण, अभिगम में कुशल मुनि इस लोक में सतत गुरु की परिचर्या करके पूर्वकृत कर्म को क्षय कर भास्वर अतुल सिद्धि गति को प्राप्त करता है। – ऐसा मैं कहता हूँ।
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ विनयसमाधि

उद्देशक-४ Hindi 481 Sutra Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चउव्विहा खलु आयारसमाही भवइ, तं जहा– १. नो इहलोगट्ठयाए आयारमहिट्ठेज्जा २. नो परलोगट्ठयाए आयारमहिट्ठेज्जा ३. नो कित्ति-वण्णसद्दसिलोगट्ठयाए आयारमहिट्ठेज्जा ४. नन्नत्थ आरहंतेहिं हेऊहिं आयारमहिट्ठेज्जा। चउत्थं पयं भवइ। [भवइ य इत्थ सिलोगो ।]

Translated Sutra: आचारसमाधि चार प्रकार की है; इकलोह, परलोक, कीर्ति, वर्ण, शब्द और श्लोक, आर्हत हेतुओं के सिवाय अन्य किसी भी हेतु ईन चारों को लेकर आचार का पालन नहीं करना चाहिए, यहाँ आचारसमाधि के विषय में एक श्लोक है – ‘जो जिनवचन में रत होता है, जो क्रोध से नहीं भन्नाता, जो ज्ञान से परिपूर्ण है और जो अतिशय मोक्षार्थी है, वह मन और इन्द्रियों
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ विनयसमाधि

उद्देशक-४ Hindi 482 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जिनवयणरए अतिंतिणे पडिपुण्णाययमाययट्ठिए । आयारसमाहिसंवुडे भवइ य दंते भावसंघए ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ४८१
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

चूलिका-१ रतिवाक्या

Hindi 515 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अज्ज आहं गणी हुंतो भावियप्पा बहुस्सुओ । जइ हं रमंतो परियाए सामण्णे जिनदेसिए

Translated Sutra: यदि मैं भावितात्मा और बहुश्रुत होकर जिनोपदिष्ट श्रामण्य – पर्याय में रमण करता तो आज मैं गणी (आचार्य) होता।
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

चूलिका-१ रतिवाक्या

Hindi 524 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] इच्चेव संपस्सिय बुद्धिमं नरो आयं उवायं विविहं वियाणिया । काएण वाया अदु मानसेणं तिगुत्तिगुत्तो जिनवयणमहिट्ठिज्जासि ॥ –त्ति बेमि ॥

Translated Sutra: बुद्धिमान्‌ मनुष्य इस प्रकार सम्यक्‌ विचार कर तथा विविध प्रकार के लाभ और उनके उपायों को विशेष रूप से जान कर तीन गुप्तियों से गुप्त होकर जिनवचन का आश्रय लें। – ऐसा मैं कहता हूँ।
Dashvaikalik દશવૈકાલિક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ पिंडैषणा

उद्देशक-१ Gujarati 168 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] नमोक्कारेण पारेत्ता करेत्ता जिनसंथवं । सज्झायं पट्ठवेत्ताणं वीसमेज्ज खणं मुनी ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૬૨
Dashvaikalik દશવૈકાલિક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-८ आचारप्रणिधि

Gujarati 375 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] लूहवित्ती सुसंतुट्ठे अप्पिच्छे सुहरे सिया । आसुरत्तं न गच्छेज्जा सोच्चाणं जिनसासनं

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૩૬૭
Dashvaikalik દશવૈકાલિક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-८ आचारप्रणिधि

Gujarati 389 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] उवसमेण हणे कोहं मानं मद्दवया जिने । मायं चज्जवभावेण लोभं संतोसओ जिने

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૩૭૯
Dashvaikalik દશવૈકાલિક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ विनयसमाधि

उद्देशक-४ Gujarati 482 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जिनवयणरए अतिंतिणे पडिपुण्णाययमाययट्ठिए । आयारसमाहिसंवुडे भवइ य दंते भावसंघए ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪૮૧
Dashvaikalik દશવૈકાલિક સૂત્ર Ardha-Magadhi

चूलिका-१ रतिवाक्या

Gujarati 515 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अज्ज आहं गणी हुंतो भावियप्पा बहुस्सुओ । जइ हं रमंतो परियाए सामण्णे जिनदेसिए

Translated Sutra: સૂત્ર– ૫૧૫. જો હું ભાવિતાત્મા અને બહુશ્રુત થઈને જિનોપદિષ્ટ શ્રામણ્ય પર્યાયમાં રમણ કરત તો આજે હું ગણિ – આચાર્ય હોત. સૂત્ર– ૫૧૬. સંયમરત મહર્ષિને માટે મનુ પર્યાય દેવલોક સમાન છે. જે સંયમમાં રત થતા નથી, તેને મહા નરક સમાન થાય છે. તેથી – સૂત્ર– ૫૧૭. મુનિ પર્યાયમાં રત રહેનારનું સુખ દેવો સમાન ઉત્તમ જાણીને તથા રત ન રહેનારનું
Dashvaikalik દશવૈકાલિક સૂત્ર Ardha-Magadhi

चूलिका-१ रतिवाक्या

Gujarati 524 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] इच्चेव संपस्सिय बुद्धिमं नरो आयं उवायं विविहं वियाणिया । काएण वाया अदु मानसेणं तिगुत्तिगुत्तो जिनवयणमहिट्ठिज्जासि ॥ –त्ति बेमि ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫૨૧
Devendrastava देवेन्द्रस्तव Ardha-Magadhi

मङ्गलं, देवेन्द्रपृच्छा

Hindi 1 Gatha Painna-09 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अमर-नरवंदिए वंदिऊण उसभाइए जिनवरिंदे । वीरवरपच्छिमंते तेलोक्कगुरू गुणाइन्ने ॥

Translated Sutra: त्रैलोक्य गुरु – गुण से परिपूर्ण, देव और मानव द्वारा पूजनीय, ऋषभ आदि जिनवर और अन्तिम तीर्थंकर महावीर को नमस्कार करके निश्चे आगमविद्‌ किसी श्रावक संध्याकाल के प्रारम्भ में जिसका अहंकार जीत लिया है वैसे वर्धमानस्वामी की मनोहर स्तुति करता है। और वो स्तुति करनेवाले श्रावक की पत्नी सुख शान्ति से सामने बैठकर
Devendrastava देवेन्द्रस्तव Ardha-Magadhi

मङ्गलं, देवेन्द्रपृच्छा

Hindi 3 Gatha Painna-09 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तस्स थुणंतस्स जिनं सामइयकडा पिया सुहनिसन्ना । पंजलिउडा अभिमुही सुणइ थयं वद्धमानस्स ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १
Devendrastava देवेन्द्रस्तव Ardha-Magadhi

मङ्गलं, देवेन्द्रपृच्छा

Hindi 6 Gatha Painna-09 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] बत्तीसं देविंदा जस्स गुणेहिं उवहम्मिया बाढं । तो तस्स चिय च्छेयं पायच्छायं उवेहामो ॥

Translated Sutra: जिनके गुण द्वारा बत्तीस देवेन्द्र पूरी तरह से पराजित हुए हैं इसलिए उनके कल्याणकारी चरण का हम ध्यान करते हैं।
Devendrastava देवेन्द्रस्तव Ardha-Magadhi

वैमानिक अधिकार

Hindi 231 Gatha Painna-09 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जइसागरोवमाइं जस्स ठिई तत्तिएहिं पक्खेहिं । ऊसासो देवाणं, वाससहस्सेहिं आहारो ॥

Translated Sutra: देव को जितने सागरोपम की जिनकी दशा उतने ही दिन साँस होती है।
Devendrastava देवेन्द्रस्तव Ardha-Magadhi

ज्योतिष्क अधिकार

Hindi 127 Gatha Painna-09 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एसो तारापिंडो सव्वसमासेण मनुयलोगम्मि । बहिया पुण ताराओ जिणेहिं भणिया असंखेज्जा ॥

Translated Sutra: संक्षेप में मानवलोक में यह नक्षत्र समूह कहा है। मानवलोक की बाहर जिनेन्द्र द्वारा असंख्य तारे बताएं हैं
Devendrastava देवेन्द्रस्तव Ardha-Magadhi

भवनपति अधिकार

Hindi 51 Gatha Painna-09 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एएसिं देवाणं बल-विरिय-परक्कमो उ जो जस्स । ते सुंदरि! वण्णे हं जहक्कमं आनुपुव्वीए ॥

Translated Sutra: हे सुंदरी ! इस भवनपति देवमें जिन का बल – वीर्य पराक्रम है उस के यथाक्रम से आनुपूर्वी से वर्णन करता हूँ। असुर और असुर कन्या द्वारा जो स्वामित्व का विषय है। उसका क्षेत्र जम्बूद्वीप और चमरेन्द्र की चमरचंचा राजधानी तक है। यही स्वामित्व बलि और वैरोचन के लिए भी समझना। धरण और नागराज जम्बूद्वीप को फन द्वारा आच्छादित
Devendrastava देवेन्द्रस्तव Ardha-Magadhi

इसिप्रभापृथ्वि एवं सिद्धाधिकार

Hindi 274 Gatha Painna-09 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] निम्मलदगरयवण्णा तुसार-गोखीर-हारसरिवण्णा । भणिया उ जिनवरेहिं उत्तानयछत्तसंठाणा ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र २७३
Devendrastava देवेन्द्रस्तव Ardha-Magadhi

इसिप्रभापृथ्वि एवं सिद्धाधिकार

Hindi 302 Gatha Painna-09 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] निच्छिन्नसव्वदुक्खा जाइ-जरा-मरण-बंधनविमुक्का । सासयमव्वाबाहं अनुहुंति सुहं सयाकालं ॥

Translated Sutra: जिन्होंने सभी दुःख दूर कर दिए हैं। जाति, जन्म, जरा, मरण के बन्धन से मुक्त, शाश्वत और अव्याबाध सुख का हंमेशा अहसास करते हैं।
Devendrastava देवेन्द्रस्तव Ardha-Magadhi

इसिप्रभापृथ्वि एवं सिद्धाधिकार

Hindi 303 Gatha Painna-09 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सुरगणइड्ढि समग्गा सव्वद्धापिंडिया अनंतगुणा । न वि पावे जिनइड्ढिं नंतेहिं वि वग्गवग्गूहिं ॥

Translated Sutra: समग्र देव की और उसके समग्र काल की जो ऋद्धि है उसका अनन्त गुना करे तो भी जिनेश्वर परमात्मा की ऋद्धि के अनन्तानन्त भाग के समान भी न हो।
Devendrastava देवेन्द्रस्तव Ardha-Magadhi

इसिप्रभापृथ्वि एवं सिद्धाधिकार

Hindi 305 Gatha Painna-09 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] भवनवइ वाणमंतर जोइसवासी विमानवासी य । इसिवालियमइमहिया करेंति महिमं जिनवराणं

Translated Sutra: भवनपति, वाणव्यंतर, विमानवासी देव और ऋषि पालित अपनी – अपनी बुद्धि से जिनेश्वर परमात्मा की महिमा का वर्णन करते हैं।
Devendrastava देवेन्द्रस्तव Ardha-Magadhi

इसिप्रभापृथ्वि एवं सिद्धाधिकार

Hindi 306 Gatha Painna-09 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] इसिवालियस्स भद्दं सुरवरथयकारयस्स धीरस्स । जेहिं सया थुव्वंता सव्वे इंदा य पवरकित्तीया ॥

Translated Sutra: वीर और इन्द्र की स्तुति के कर्ता जिसमें खुद सभी इन्द्र की और जिनेन्द्र की स्तुति कीर्तन किया वो।
Devendrastava દેવેન્દ્રસ્તવ Ardha-Magadhi

मङ्गलं, देवेन्द्रपृच्छा

Gujarati 1 Gatha Painna-09 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अमर-नरवंदिए वंदिऊण उसभाइए जिनवरिंदे । वीरवरपच्छिमंते तेलोक्कगुरू गुणाइन्ने ॥

Translated Sutra: સૂત્ર– ૧. ત્રૈલોક્ય ગુરુ, ગુણોથી પરિપૂર્ણ, દેવ અને મનુષ્યો વડે પૂજિત, ઋષભ આદિ જિનવર તથા અંતિમ તીર્થંકર શ્રી વર્ધમાન મહાવીરને નમસ્કાર કરીને – સૂત્ર– ૨. નિશ્ચે આગમવિદ્‌ કોઈ શ્રાવક, સંધ્યાકાળના પ્રારંભે, જેણે અહંકાર જિત્યો છે તેવા વર્ધમાન મહાવીર સ્વામીની સ્તુતિ કરે છે, તે સ્તુતિ કરતા – સૂત્ર– ૩. શ્રાવકની પત્ની
Devendrastava દેવેન્દ્રસ્તવ Ardha-Magadhi

मङ्गलं, देवेन्द्रपृच्छा

Gujarati 3 Gatha Painna-09 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तस्स थुणंतस्स जिनं सामइयकडा पिया सुहनिसन्ना । पंजलिउडा अभिमुही सुणइ थयं वद्धमानस्स ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧
Devendrastava દેવેન્દ્રસ્તવ Ardha-Magadhi

इसिप्रभापृथ्वि एवं सिद्धाधिकार

Gujarati 274 Gatha Painna-09 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] निम्मलदगरयवण्णा तुसार-गोखीर-हारसरिवण्णा । भणिया उ जिनवरेहिं उत्तानयछत्तसंठाणा ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૭૩
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