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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Pragnapana | પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
पद-१८ कायस्थिति |
Gujarati | 490 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सुहुमे णं भंते! सुहुमे त्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुढविकालो।
बादरे णं भंते! बादरे त्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं–असंखेज्जाओ उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ अंगुलस्स असंखे-ज्जइभागं।
नोसुहुम-नोबादरे णं भंते! पुच्छा। गोयमा! सादीए अपज्जवसिए। Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪૮૭ | |||||||||
Pragnapana | પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
पद-१८ कायस्थिति |
Gujarati | 491 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सण्णी णं भंते! सण्णी ति कालतो केवचिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सागरोवम-सतपुहत्तं सातिरेगं।
असण्णी णं भंते! असण्णी ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणप्फइकालो
नोसण्णी–नोअसण्णी णं पुच्छा। गोयमा! सादीए अपज्जवसिए। Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪૮૭ | |||||||||
Pragnapana | પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
पद-१८ कायस्थिति |
Gujarati | 492 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] भवसिद्धिए णं भंते! भवसिद्धिए त्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! अनादीए सपज्जवसिए।
अभवसिद्धिए णं भंते! अभवसिद्धिए त्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! अनादीए अपज्जवसिए।
नोभवसिद्धिय-नोअभवसिद्धिए णं पुच्छा। गोयमा! सादीए अपज्जवसिए। Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪૮૭ | |||||||||
Pragnapana | પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
पद-१८ कायस्थिति |
Gujarati | 493 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] धम्मत्थिकाए णं भंते! धम्मत्थिकाए त्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! सव्वद्धं। एवं जाव अद्धासमए। Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪૮૭ | |||||||||
Pragnapana | પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
पद-१८ कायस्थिति |
Gujarati | 494 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] चरिमे णं भंते! चरिमे त्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! अनादीए सपज्जवसिए।
अचरिमे णं भंते! अचरिमे त्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! अचरिमे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–अनादीए वा अपज्जवसिए, सादीए वा अपज्जवसिए। Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪૮૭ | |||||||||
Pragnapana | પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
पद-२३ कर्मप्रकृति |
उद्देशक-२ | Gujarati | 540 | Sutra | Upang-04 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! कम्मपगडीओ पन्नत्ताओ? गोयमा! अट्ठ कम्मपगडीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–नाणावरणिज्जं जाव अंतराइयं।
नाणावरणिज्जे णं भंते पन्नत्ते! कम्मे कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–आभिनिबोहियनाणावरणिज्जे सुयनाणावरणिज्जे ओहिनाणावरणिज्जे मनपज्जवनाणावरणिज्जे केवलनाणावरणिज्जे।
दरिसणावरणिज्जे णं भंते! कम्मे कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–निद्दापंचए य दंसणचउक्कए य।
निद्दापंचए णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–निद्दा जाव थीणद्धी।
दंसणचउक्कए णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–चक्खु-दंसणावरणिज्जे Translated Sutra: ભગવન્ ! કેટલી કર્મ પ્રકૃતિઓ છે ? ગૌતમ ! આઠ છે – જ્ઞાનાવરણીય યાવત્ અંતરાય. જ્ઞાનાવરણીય કર્મ કેટલા ભેદે છે ? પાંચ – આભિનિબોધિક જ્ઞાનાવરણીય યાવત્ કેવળ જ્ઞાનાવરણીય. ભગવન્ ! દર્શનાવરણીય કર્મ કેટલા ભેદે છે ? બે ભેદે – નિદ્રા પંચક, દર્શન ચતુષ્ક. નિદ્રાપંચક કેટલા ભેદે છે? પાંચ – નિદ્રા યાવત્ સ્ત્યાનર્દ્ધિ. દર્શન | |||||||||
Pragnapana | પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
पद-२३ कर्मप्रकृति |
उद्देशक-२ | Gujarati | 541 | Sutra | Upang-04 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] नाणावरणिज्जस्स णं भंते! कम्मस्स केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तीसं सागरोवमकोडाकोडीओ; तिन्नि य वाससहस्साइं अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिती–कम्मनिसेगो।
निद्दापंचयस्स णं भंते! कम्मस्स केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं सागरोवमस्स तिन्नि सत्तभागा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणया, उक्कोसेणं तीसं सागरोवमकोडा-कोडीओ; तिन्नि य वाससहस्साइं अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिती–कम्मनिसेगो।
दंसणचउक्कस्स णं भंते! कम्मस्स केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तीसं सागरोवमकोडाकोडीओ; तिन्नि य वाससहस्साइं Translated Sutra: જ્ઞાનાવરણીય કર્મની કેટલા કાળની સ્થિતિ છે ? ગૌતમ ! જઘન્ય અંતર્મુહૂર્ત્ત, ઉત્કૃષ્ટ ૩૦ કોડાકોડી સાગરોપમ, અબાધા કાળ ૩૦૦ વર્ષ, અબાધાકાળ હીન કર્મની સ્થિતિ તે કર્મનિષેક છે. નિદ્રા પંચક કર્મની કેટલા કાળની સ્થિતિ છે ? જઘન્ય પલ્યોપમનો અસંખ્યાત ભાગ ન્યૂન ૩/૭ સાગરોપમ અને ઉત્કૃષ્ટ ૩૦ કોડાકોડી સાગરોપમ છે. ૩૦૦૦ વર્ષ અબાધાકાળ, | |||||||||
Pragnapana | પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
पद-२३ कर्मप्रकृति |
उद्देशक-२ | Gujarati | 544 | Sutra | Upang-04 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] नाणावरणिज्जस्स णं भंते! कम्मस्स जहन्नठितिबंधए के? गोयमा! अन्नयरे सुहुमसंपराए–उवसामए वा खवए वा, एस णं गोयमा! नाणावरणिज्जस्स कम्मस्स जहन्नठितिबंधए, तव्वइरित्ते अजहन्ने। एवं एतेणं अभिलावेणं मोहाउयवज्जाणं सेसकम्माणं भाणियव्वं।
मोहणिज्जस्स णं भंते! कम्मस्स जहन्नठितिबंधए के? गोयमा! अन्नयरे बायरसंपराए–उवसा-मए वा खवए वा एस णं गोयमा! मोहणिज्जस्स कम्मस्स जहन्नठितिबंधए, तव्वतिरित्ते अजहन्ने।
आउयस्स णं भंते! कम्मस्स जहन्नठितिबंधए के?
गोयमा! जे णं जीवे असंखेप्पद्धप्पविट्ठे सव्वनिरुद्धे से आउए, सेसे सव्वमहंतीए आउय-बंधद्धाए, तीसे णं आउयबंधद्धाए चरिमकालसमयंसि सव्वजहन्नियं Translated Sutra: ભગવન્ ! જ્ઞાનાવરણીય કર્મની જઘન્ય સ્થિતિબંધક કોણ છે ? ગૌતમ ! કોઈપણ ઉપશમક કે ક્ષપક સૂક્ષ્મસંપરાય છે. એ જ્ઞાનાવરણીય કર્મનો જઘન્ય સ્થિતિ બંધક છે. તે સિવાય બીજો અજઘન્ય સ્થિતિબંધક છે. એ રીતે મોહનીય અને આયુ સિવાય બીજા બધા કર્મ માટે કહેવું. મોહનીય કર્મનો જઘન્ય સ્થિતિબંધક કોણ છે ? કોઈપણ ઉપશમક કે ક્ષપક બાદર સંપરાય હોય | |||||||||
Pragnapana | પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
पद-२३ कर्मप्रकृति |
उद्देशक-२ | Gujarati | 545 | Sutra | Upang-04 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] उक्कोसकालठितीयं णं भंते! नाणावरणिज्जं कम्मं किं नेरइओ बंधति तिरिक्खजोणिओ बंधति तिरिक्खजोणिणी बंधति मणुस्सो बंधति मनुस्सी बंधति देवो बंधति देवी बंधति? गोयमा! नेरइओ वि बंधति जाव देवी वि बंधति।
केरिसए णं भंते! नेरइए उक्कोसकालठितीयं नाणावरणिज्जं कम्मं बंधति? गोयमा! सण्णी पंचिंदिए सव्वाहिं पज्जत्तीहिं पज्जत्ते सागारे जागरे सुतोवउत्ते मिच्छादिट्ठी कण्हलेसे उक्कोस-संकिलिट्ठपरिणामे ईसिमज्झिमपरिणामे वा, एरिसए णं गोयमा! नेरइए उक्कोसकालठितीयं नाणावरणिज्जं कम्मं बंधति।
केरिसए णं भंते! तिरिक्खजोणिए उक्कोसकालठितीयं नाणावरणिज्जं कम्मं बंधति? गोयमा! कम्मभूमए Translated Sutra: ભગવન્ ! ઉત્કૃષ્ટ કાળ સ્થિતિક જ્ઞાનાવરણીય કર્મ શું નૈરયિક બાંધે ? તિર્યંચ બાંધે ? તિર્યંચ સ્ત્રી બાંધે ? માનુષી બાંધે ? દેવ બાંધે ? કે દેવી બાંધે ? ગૌતમ! તે બધા બાંધે. કેવો નારક ઉત્કૃષ્ટ કાળ સ્થિતિક જ્ઞાનાવરણીય કર્મ બાંધે ? સંજ્ઞી પંચેન્દ્રિય સર્વ પર્યાપ્તિથી પર્યાપ્ત, સાકારો – પયોગી, જાગતો, શ્રુતોપયુક્ત, મિથ્યાદૃષ્ટિ, | |||||||||
Pragnapana | પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
पद-२८ आहार |
उद्देशक-१ | Gujarati | 552 | Sutra | Upang-04 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइया णं भंते! किं सचित्ताहारा अचित्ताहारा मोसाहारा? गोयमा! नो सचित्ताहारा, अचित्ताहारा, नो मीसाहारा एवं असुरकुमारा जाव वेमानिया।
ओरालियसरीरी जाव मनूसा सचित्ताहारा वि अचित्ताहारा वि मीसाहारा वि।
नेरइया णं भंते! आहारट्ठी? हंता गोयमा! आहारट्ठी।
नेरइयाणं भंते! केवतिकालस्स आहारट्ठे समुप्पज्जति? गोयमा! नेरइयाणं आहारे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–आभोगनिव्वत्तिए य अणाभोगनिव्वत्तिए य। तत्थ णं जेसे अणाभोगनिव्वत्तिए से णं अणुसमयमविरहिए आहारट्ठे समुप्पज्जति। तत्थ णं जेसे आभोगनिव्वत्तिए से णं असंखेज्जसमइए अंतोमुहुत्तिए आहारट्ठे समुप्पज्जति।
नेरइया णं भंते! किमाहारमाहारेंति? Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫૫૦ | |||||||||
Pragnapana | પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
पद-२८ आहार |
उद्देशक-१ | Gujarati | 554 | Sutra | Upang-04 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पुढविक्काइया णं भंते! आहारट्ठी? हंता! आहारट्ठी।
पुढविक्काइयाणं भंते! केवतिकालस्स आहारट्ठे समुप्पज्जति? गोयमा! अनुसमयं अविरहिए आहरट्ठे समुप्पज्जति।
पुढविक्काइया णं भंते! किमाहारमाहारेंति एवं जहा नेरइयाणं जाव–ताइं भंते! कति दिसिं आहारेंति? गोयमा! णिव्वाघाएणं छद्दिसिं, वाघायं पडुच्च सिय तिदिसिं सिय चउदिसिं सिय पंचदिसिं, नवरं– ओसन्नकारणं न भवति, वण्णतो काल-नील-लोहिय-हालिद्द-सुक्किलाइं, गंधओ सुब्भिगंध-दुब्भिगंधाइं, रसओ तित्त-कडुय-कसाय-अंबिल-महुराइं, फासतो कक्खड-मउय-गरुय-लहुय-सीय-उसिण-निद्ध-लुक्खाइं, तेसिं पोराणे वण्णगुणे गंधगुणे रसगुणे फासगुणे विप्परिणामइत्ता Translated Sutra: ભગવન્ ! પૃથ્વીકાયિકો આહારાર્થી છે. હા, છે. ભગવન્ ! પૃથ્વીકાયિકોને કેટલા કાળે આહારેચ્છા ઉપજે ? તેને પ્રતિસમય નિરંતર આહારેચ્છા હોય. પૃથ્વીકાયિકો શેનો આહાર કરે ? નૈરયિકવત્ કહેવું. યાવત્ કેટલી દિશાથી આવેલા પુદ્ગલ દ્રવ્યોનો આહાર કરે છે ? વ્યાઘાત સિવાય છ દિશાથી આવેલ અને વ્યાઘાતને આશ્રીને કદાચ ત્રણ કે ચાર કે | |||||||||
Pragnapana | પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
पद-२८ आहार |
उद्देशक-१ | Gujarati | 555 | Sutra | Upang-04 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] बेइंदिया णं भंते! आहारट्ठी? हंता गोयमा! आहारट्ठी।
बेइंदिया णं भंते! केवतिकालस्स आहारट्ठे समुप्पज्जति? जहा नेरइयाणं, नवरं–तत्थ णं जेसे आभोगनिव्वत्तिए से णं असंखेज्जसमइए अंतोमुहुत्तिए वेमायाए आहारट्ठे समुप्पज्जति। सेसं जहा पुढविक्काइयाणं जाव आहच्च नीससंति, नवरं–नियमा छद्दिसिं।
बेइंदिया णं भंते! जे पोग्गले आहारत्ताए गेण्हंति ते णं तेसिं पोग्गलाणं सेयालंसि कतिभागं आहारेंति? कतिभागं अस्साएंति? गोयमा! असंखेज्जतिभागं आहारेंति, अनंतभागं अस्साएंति।
बेइंदिया णं भंते! जे पोग्गले आहारत्ताए गेण्हंति ते किं सव्वे आहारेंति? नो सव्वे आहारेंति? गोयमा! बेइंदियाणं दुविहे Translated Sutra: ભગવન્ ! બેઇન્દ્રિયો આહારની ઇચ્છાવાળા હોય ? હા, હોય. બેઇન્દ્રિયોને આહારનો અભિલાષ કેટલા કાળે થાય ? નૈરયિકવત્ જાણવું. પરંતુ તેમાં જે આભોગ નિર્વર્તિત આહાર છે, તે સંબંધે અસંખ્યાત સમય પ્રમાણ અંતર્મુહૂર્ત્ત ગયા પછી વિવિધરૂપે આહારેચ્છા થાય છે. બાકી બધું પૃથ્વીકાયિકવત્ યાવત્ કદાચ નિઃશ્વાસ લે છે, ત્યાં સુધી કહેવું. | |||||||||
Pragnapana | પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
पद-३५ वेदना |
Gujarati | 596 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहा णं भंते! वेदना पन्नत्ता? गोयमा! तिविहा वेदना पन्नत्ता, तं जहा–सीता उसिणा सीतोसिणा।
नेरइया णं भंते! किं सीतं वेदनं वेदेंति? उसिणं वेदनं वेदेंति? सीतोसिणं वेदनं वेदेंति? गोयमा! सियं पि वेदनं वेदेंति, उसिणं पि वेदनं वेदेंति, नो सीतोसिणं वेदनं वेदेंति।
असुरकुमाराणं पुच्छा। गोयमा! सीयं पि वेदनं वेदेंति, उसिणं पि वेदनं वेदेंति, सीतोसिणं पि वेदनं वेदेंति। एवं जाव वेमानिया।
कतिविहा णं भंते! वेदना पन्नत्ता? गोयमा! चउव्विहा वेदना पन्नत्ता, तं जहा–दव्वओ खेत्तओ कालओ भावओ।
नेरइया णं भंते! किं दव्वओ वेदनं वेदेंति जाव किं भावओ वेदनं वेदेंति? गोयमा! दव्वओ वि वेदनं वेदेंति Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫૯૪ | |||||||||
Pragnapana | પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
पद-३६ समुद्घात |
Gujarati | 612 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! वेदनासमुग्घाए समोहए समोहणित्ता जे पोग्गले णिच्छुभति तेहि णं भंते! पोग्गलेहिं केवतिए खेत्ते अफुण्णे? केवतिए खेत्ते फुडे? गोयमा! सरीरपमाणमेत्ते विक्खंभ-बाहल्लेणं नियमा छद्दिसिं एवइए खेत्ते अफुण्णे एवइए खेत्ते फुडे।
से णं भंते! खेत्ते केवइकालस्स अफुण्णे? केवइकालस्स फुडे? गोयमा! एगसमइएण वा दुसमइएण वा तिसमइएण वा विग्गहेण वा एवइकालस्स अफुण्णे एवइकालस्स फुडे।
ते णं भंते! पोग्गला केवइकालस्स णिच्छुभति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तस्स, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तस्स।
ते णं भंते! पोग्गला निच्छूढा समाणा जाइं तत्थ पाणाइं भूयानं जीवाइं सत्ताइं अभिहणंति वत्तेंति Translated Sutra: ભગવન્ ! વેદના સમુદ્ઘાત વડે સમવહત જીવ વેદના સમુદ્ઘાત કરીને જે પુદ્ગલો બહાર કાઢે છે, તે પુદ્ગલો વડે કેટલું ક્ષેત્ર વ્યાપ્ત હોય ? કેટલું ક્ષેત્ર સ્પૃષ્ટ હોય? ગૌતમ ! અવશ્ય છ દિશામાં વિસ્તાર અને જાડાઈમાં શરીર પ્રમાણ માત્ર ક્ષેત્ર છે, એટલું ક્ષેત્ર વ્યાપ્ત હોય, એટલું ક્ષેત્ર સ્પૃષ્ટ હોય. તે ક્ષેત્ર કેટલા કાળે | |||||||||
Pragnapana | પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
पद-३६ समुद्घात |
Gujarati | 613 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहए समोहणित्ता जे पोग्गले णिच्छुभति तेहि णं भंते! पोग्गलेहिं केवतिए खेत्ते अफुण्णे? केवतिए खेत्ते फुडे? गोयमा! सरीरप्पमाणमेत्ते विक्खंभ-बाहल्लेणं, आयामेणं जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जतिभागं, उक्कोसेणं संखेज्जाइं जोयणाइं एगदिसिं विदिसिं वा एवतिए खेत्ते अफुण्णे एवतिए खेत्ते फुडे।
से णं भंते! खेत्ते केवतिकालस्स अफुण्णे? केवतिकालस्स फुडे? गोयमा! एगसमइएण वा दुसमइएण वा तिसमइएण वा विग्गहेण एवतिकालस्स अफुण्णे एवतिकालस्स फुडे। सेसं तं चेव जाव पंचकिरिया वि।
एवं नेरइए वि, नवरं–आयामेणं जहन्नेणं अंगुलस्स संखेज्जइभागं, उक्कोसेणं Translated Sutra: વૈક્રિય સમુદ્ઘાત વડે સમુદ્ઘાતવાળો જીવ વૈક્રિય સમુદ્ઘાત કરીને જે પુદ્ગલો બહાર કાઢી તે પુદ્ગલો વડે હે ભગવન્ ! કેટલું ક્ષેત્ર વ્યાપ્ત છે ? કેટલું ક્ષેત્ર સ્પૃષ્ટ છે ? ગૌતમ ! વિસ્તાર અને જાડાઈમાં શરીર પ્રમાણ અને લંબાઈમાં જઘન્ય અંગુલનો અસંખ્યાત ભાગ અને ઉત્કૃષ્ટ સંખ્યાતા યોજન પ્રમાણ એક દિશામાં કે વિદિશામાં | |||||||||
Pragnapana | પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
पद-३६ समुद्घात |
Gujarati | 621 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से णं भंते! तहासजोगी सिज्झति बुज्झति मुच्चति परिणिव्वाति सव्वदुक्खाणं अंतं करेति? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे। से णं पुव्वामेव सण्णिस्स पंचेंदियस्स पज्जत्तयस्स जहन्नजोगिस्स हेट्ठा असंखेज्ज-गुणपरिहीणं पढमं मनजोगं निरुंभइ, तओ अनंतरं च णं बेइंदियस्स पज्जत्तगस्स जहन्नजोगिस्स हेट्ठा असंखेज्जगुणपरिहीनं दोच्चं वइजोगं निरुंभति, तओ अनंतरं च णं सुहुमस्स पनगजीवस्स अपज्ज-त्तयस्स जहन्नजोगिस्स हेट्ठा असंखेज्जगुणपरिहीणं तच्चं कायजोगं निरुंभति।
से णं एतेणं उवाएणं पढमं मनजोगं निरुंभइ, निरुंभित्ता वइजोगं निरुंभति, निरुंभित्ता काय-जोगं निरुंभति, निरुंभित्ता जोगनिरोहं Translated Sutra: ભગવન્ ! તે પ્રકારે સયોગી સિદ્ધ થાય યાવત્ દુઃખનો અંત કરે ? ગૌતમ ! એ અર્થ સમર્થ નથી. તે પહેલાં જઘન્ય યોગવાળા સંજ્ઞી પંચેન્દ્રિય પર્યાપ્તાના મનોયોગની નીચે અસંખ્યાતગુણ હીન – ન્યૂન મનોયોગને રોકે છે. પછી તુરંત જઘન્ય યોગવાળા બેઇન્દ્રિય પર્યાપ્તાના વચનયોગની નીચે અસંખ્યાત ગુણહીન બીજા વચનયોગનો રોધ કરે છે ત્યારપછી | |||||||||
Prashnavyakaran | प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-४ अब्रह्म |
Hindi | 19 | Sutra | Ang-10 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तं च पुण निसेवंति सुरगणा सअच्छरा मोह मोहिय मती, असुर भयग गरुल विज्जु जलण दीव उदहि दिस पवण थणिया। अणवण्णिय पणवण्णिय इसिवादिय भूयवादियकंदिय महाकंदिय कूहंड पतगदेवा, पिसाय भूय जक्ख रक्खस किन्नर किंपुरिस महोरग गंधव्व तिरिय जोइस विमाणवासि मणुयगणा, जलयर थलयर खहयराय मोहपडिबद्धचित्ता अवितण्हा कामभोग-तिसिया, तण्हाए बलवईए महईए समभिभूया गढिया य अतिमुच्छिया य, अबंभे ओसण्णा, तामसेन भावेण अणुम्मुक्का, दंसण-चरित्तमोहस्स पंजरं पिव करेंतिअन्नोन्नं सेवमाणा।
भुज्जो असुर सुर तिरिय मणुय भोगरत्ति विहार संपउत्ता य चक्कवट्टी सुरनरवतिसक्कया सुरवरव्व देवलोए भरह नग नगर नियम Translated Sutra: उस अब्रह्म नामक पापास्रव को अप्सराओं के साथ सुरगण सेवन करते हैं। कौन – से देव सेवन करते हैं ? जिनकी मति मोह के उदय से मूढ़ बन गई है तथा असुरकुमार, भुजगकुमार, गरुड़कुमार, विद्युत्कुमार, अग्निकुमार, द्वीपकुमार, उदधिकुमार, दिशाकुमार, पवनकुमार तथा स्तनितकुमार, ये भवनवासी, अणपन्निक, पणपण्णिक, ऋषिवादिक, भूतवादिक, क्रन्दित, | |||||||||
Prashnavyakaran | प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-४ अब्रह्म |
Hindi | 20 | Sutra | Ang-10 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] मेहुणसण्णासंपगिद्धा य मोहभरिया सत्थेहिं हणंति एक्कमेक्कं विसयविसउदीरएसु। अवरे परदारेहिं हम्मंति विसुणिया घननासं सयणविप्पनासं च पाउणंति। परस्स दाराओ जे अविरया मेहुण-सण्णसंपगिद्धा य मोहभरिया अस्सा हत्थी गवा य महिसा मिगा य मारेंति एक्कमेक्कं, मनुयगणा वानरा य पक्खी य विरुज्झंति, मित्ताणि खिप्पं भवंति सत्तू, समये धम्मे गणे य भिंदंति पारदारी। धम्मगुणरया य बंभयारी खणेण उल्लोट्टए चरित्तओ, जसमंतो सुव्वया य पावंति अयसकित्तिं, रोगत्ता वाहिया य वड्ढेंति रोय-वाही, दुवे य लोया दुआराहगा भवंति–इहलोए चेव परलोए–परस्स दाराओ जे अविरया।
तहेव केइ परस्स दारं गवेसमाणा गहिया Translated Sutra: जो मनुष्य मैथुनसंज्ञा में अत्यन्त आसक्त है और मूढता अथवा से भरे हुए हैं, वे आपस में एक दूसरे का शस्त्रों से घात करते हैं। कोई – कोई विषयरूपी विष की उदीरणा करने वाली परकीय स्त्रियों में प्रवृत्त होकर दूसरों के द्वारा मारे जाते हैं। जब उनकी परस्त्रीलम्पटता प्रकट हो जाती है तब धन का विनाश और स्वजनों का सर्वथा | |||||||||
Prashnavyakaran | प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-५ परिग्रह |
Hindi | 23 | Sutra | Ang-10 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तं च पुण परिग्गहं ममायंति लोभघत्था भवनवरविमाणवासिणो परिग्गहरुयी परिग्गहे विविहकरण-बुद्धी, देवनिकाया य–असुर भुयग गरुल विज्जु जलण दीव उदहि दिसि पवण थणिय अणवण्णिय पणवण्णिय इसिवासिय भूतवा-इय कंदिय महाकंदिय कुहंडपतगदेवा, पिसाय भूय जक्ख रक्खस किन्नर किंपुरिस महोरग गंधव्वा य तिरियवासी।
पंचविहा जोइसिया य देवा, –बहस्सती चंद सूर सुक्क सनिच्छरा, राहु धूमकेउ बुधा य अंगारका य तत्ततवणिज्जकनगवण्णा, जे य गहा जोइसम्मि चारं चरंति, केऊ य गतिरतीया, अट्ठावीसतिविहा य नक्खत्तदेवगणा, नानासंठाणसंठियाओ य तारगाओ, ठियलेस्सा चारिणो य अविस्साम मंडलगती उवरिचरा।
उड्ढलोगवासी दुविहा Translated Sutra: उस परिग्रह को लोभ से ग्रस्त परिग्रह के प्रति रुचि रखने वाले, उत्तम भवनों में और विमानों में निवास करने वाले ममत्वपूर्वक ग्रहण करते हैं। नाना प्रकार से परिग्रह को संचित करने की बुद्धि वाले देवों के निकाय यथा – असुरकुमार यावत् स्तनितकुमार तथा अणपन्निक, यावत् पतंग और पिशाच, यावत् गन्धर्व, ये महर्द्धिक व्यन्तर | |||||||||
Prashnavyakaran | प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-५ परिग्रह |
Hindi | 26 | Gatha | Ang-10 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सव्वगई-पक्खंदे, काहेंति अनंतए अकयपुण्णा ।
जे य न सुणंति धम्मं, सोऊण य जे पमायंति ॥ Translated Sutra: जो पुण्यहीन प्राणी धर्म को श्रवण नहीं करते अथवा श्रवण करके भी उसका आचरण करने में प्रमाद करते हैं, वे अनन्त काल तक चार गतियों में गमनागमन करते रहेंगे। | |||||||||
Prashnavyakaran | प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ हिंसा |
Hindi | 1 | Sutra | Ang-10 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नामं नयरी होत्था.
पुण्णभद्दे चेइए वनसंडे असोगवरपायवे पुढविसिलापट्टए.
तत्थण चंपाए नयरीए कोणिए नामं राया होत्था. धारिणी देवी.
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी अज्जसुहम्मे नामं थेरे–जाइसंपन्ने कुलसंपन्ने बलसंपन्ने रूवसंपन्ने विनयसंपन्ने नाणसंपन्ने दंसणसंपन्ने चरित्तसंपन्ने लज्जासंपन्ने लाघवसंपन्ने ओयसी तेयंसी वच्चंसी जसंसी जियकोहे जियमाणे जियमाए जियलोभे जियनिद्दे जिइंदिए जियपरीसहे जिवियास-मरण-भय-विप्पमुक्के तवप्पहाणे गुणप्पहाणे करण-प्पहाणे चरणप्पहाणे निच्छयप्पहाणे अज्जवप्पहाणे मद्दवप्पहाणे Translated Sutra: उस काल, उस समय चम्पानगरी थी। उसके बाहर पूर्णभद्र चैत्य था, वनखण्ड था। उसमें उत्तम अशोक – वृक्ष था। वहाँ पृथ्वीशिलापट्टक था। राजा कोणिक था और उसकी पटरानी का धारिणी था। उस काल, उस समय श्रमण भगवान महावीर के अन्तेवासी स्थविर आर्य सुधर्मा थे। वे जातिसम्पन्न, कुलसम्पन्न, बलसम्पन्न, रूपसम्पन्न, विनयसम्पन्न, ज्ञानसम्पन्न, | |||||||||
Prashnavyakaran | प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ हिंसा |
Hindi | 8 | Sutra | Ang-10 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कयरे? जे ते सोयरिया मच्छबंधा साउणिया वाहा कूरकम्मादीवित बंधप्पओग तप्प गल जाल वीरल्लग आयसीदब्भवग्गुरा कूडछेलिहत्था हरिएसा ऊणिया य वीदंसग पासहत्था वनचरगा लुद्धगा य महुघात-पोतघाया एणीयारा पएणीयारा सर दह दीहिअ तलाग पल्लल परिगालण मलण सोत्तबंधण सलिलासयसोसगा विसगरलस्स य दायगा उत्तण वल्लर दवग्गिणिद्दय पलीवका।
कूरकम्मकारी इमे य बहवे मिलक्खुया, के ते?
सक जवण सवर बब्बर कायमुरुंड उड्ड भडग निण्णग पक्काणिय कुलक्ख गोड सीहल पारस कोंच अंध दविल चिल्लल पुलिंद आरोस डोंब पोक्कण गंधहारग बहलीय जल्ल रोम मास बउस मलया य चुंचुया य चूलिय कोंकणगा मेद पल्हव मालव मग्गर आभासिया अणक्क Translated Sutra: वे हिंसक प्राणी कौन हैं ? शौकरिक, मत्स्यबन्धक, मृगों, हिरणों को फँसाकर मारने वाले, क्रूरकर्मा वागुरिक, चीता, बन्धनप्रयोग, छोटी नौका, गल, जाल, बाज पक्षी, लोहे का जाल, दर्भ, कूटपाश, इन सब साधनों को हाथ में लेकर फिरने वाले, चाण्डाल, चिड़ीमार, बाज पक्षी तथा जाल को रखने वाले, वनचर, मधु – मक्खियों का घात करने वाले, पोतघातक, | |||||||||
Prashnavyakaran | प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-२ मृषा |
Hindi | 11 | Sutra | Ang-10 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तं च पुण वदंति केई अलियं पावा अस्संजया अविरया कवडकुडिल कडुय चडुलभावा कुद्धा लुद्धाभया य हस्सट्ठिया य सक्खी चोरा चारभडा खंडरक्खा जियजूईकरा य गहिय-गहणा कक्कगुरुग कारगा कुलिंगी उवहिया वाणियगा य कूडतुला कूडमाणी कूडकाहावणोवजीवी पडकार कलाय कारुइज्जा वंचनपरा चारिय चडुयार नगरगुत्तिय परिचारग दुट्ठवायि सूयक अनवलभणिया य पुव्वकालियवयणदच्छा साहसिका लहुस्सगा असच्चा गारविया असच्चट्ठावणाहिचित्ता उच्चच्छंदा अनिग्गहा अनियता छंदेण मुक्कवायी भवंति अलियाहिं जे अविरया।
अवरे नत्थिकवादिणो वामलोकवादी भणंति–सुण्णंति। नत्थि जीवो। न जाइ इहपरे वा लोए। न य किंचिवि फुसति Translated Sutra: यह असत्य कितनेक पापी, असंयत, अविरत, कपट के कारण कुटिल, कटुक और चंचल चित्तवाले, क्रुद्ध, लुब्ध, भय उत्पन्न करने वाले, हँसी करने वाले, झूठी गवाही देने वाले, चोर, गुप्तचर, खण्डरक्ष, जुआरी, गिरवी रखने वाले, कपट से किसी बात को बढ़ा – चढ़ा कर कहनेवाले, कुलिंगी – वेषधारी, छल करनेवाले, वणिक्, खोटा नापने – तोलनेवाले, नकली सिक्कों | |||||||||
Prashnavyakaran | प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-२ मृषा |
Hindi | 12 | Sutra | Ang-10 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स य अलियस्स फलविवागं अयाणमाणा वड्ढेंति महब्भयं अविस्सामवेयणं दीहकालं बहुदुक्ख-संकडं नरय-तिरिय-जोणिं। तेण य अलिएण समनुबद्धा आइद्धा पुनब्भवंधकारे भमंति भीमे दुग्गति-वसहिमुवगया।
तेय दीसंतिह दुग्गगा दुरंता परव्वसा अत्थभोगपरिवज्जिया असुहिताफुडियच्छवी बीभच्छा विवन्ना खरफरुस विरत्त ज्झाम ज्झुसिरा निच्छाया लल्ल विफल वाया असक्कतमसक्कया अगंधा अचेयणा दुभगा अकंता काकस्सरा हीनभिन्नघोसा विहिंसा जडबहिरंधया य मम्मणा अकंत विकय करणा नीया नीयजन निसेविणो लोग गरहणिज्जा भिच्चा असरिसजणस्स पेस्सा दुम्मेहा लोक वेद अज्झप्प समयसुतिवज्जिया नरा धम्मबुद्धि वियला।
अलिएण Translated Sutra: पूर्वोक्त मिथ्याभाषण के फल – विपाक से अनजान वे मृषावादी जन नरक और तिर्यञ्च योनि की वृद्धि करते हैं, जो अत्यन्त भयंकर है, जिनमें विश्रामरहित वेदना भुगतनी पड़ती है और जो दीर्घकाल तक बहुत दुःखों से परिपूर्ण हैं। वे मृषावाद में निरत नर भयंकर पुनर्भव के अन्धकार में भटकते हैं। उस पुनर्भव में भी दुर्गति प्राप्त | |||||||||
Prashnavyakaran | प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-३ अदत्त |
Hindi | 13 | Sutra | Ang-10 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबू! तइयं च अदिन्नादाणं–हर दह मरण भय कलुस तासण परसंतिगऽभेज्जलोभमूलं काल विसम संसियं अहोऽच्छिण्णतण्ह-पत्थाण-पत्थोइमइयं अकित्तिकरणं अणज्जं छिद्दमंतर विधुर वसण मग्गण उस्सव मत्त प्पमत्त पसुत्त वंचणाखिवण घायणपर अनिहुयपरिणामतक्करजणबहुमयं अकलुणं रायपुरिसरक्खियं सया साहुगरहणिज्जं पियजण मित्तजण भेदविप्पीतिकारकं रागदोस-बहुलं पुणो य उप्पूर समर संगाम डमर कलि कलह वेहकरणं दुग्गति विणिवायवड्ढणं भवपुनब्भवकरं चिरपरिचितमनुगयं दुरंतं। तइयं अधम्मदारं। Translated Sutra: हे जम्बू ! तीसरा अधर्मद्वार अदत्तादान। यह अदत्तादान (परकीय पदार्थ का) हरण रूप है। हृदय को जलाने वाला, मरण – भय रूप, मलीन, परकीय धनादि में रौद्रध्यान स्वरूप, त्रासरूप, लोभ मूल तथा विषमकाल और विषमस्थान आदि स्थानों पर आश्रित है। यह अदत्तादान निरन्तर तृष्णाग्रस्त जीवों को अधोगति की ओर ले जाने वाली बुद्धि वाला है। | |||||||||
Prashnavyakaran | प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-३ अदत्त |
Hindi | 15 | Sutra | Ang-10 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तं च पुण करेंति चोरियं तक्करा परदव्वहरा छेया कयकरण लद्धलक्खा साहसिया लहुस्सगा अतिमहिच्छ लोभगत्था, दद्दर ओवीलका य गेहिया अहिमरा अणभंजका भग्गसंधिया रायदुट्ठकारी य विसयनिच्छूढा लोकवज्झा, उद्दहक गामघाय पुरघाय पंथघायग आलीवग तित्थभेया लहुहत्थ संपउत्ता जूईकरा खंडरक्खत्थीचोर पुरिसचोर संधिच्छेया य गंथिभेदगपरधनहरणलोमावहार- अक्खेवी हडकारक निम्मद्दग गूढचोर गोचोर अस्सचोरग दासिचोरा य एकचोरा ओकड्ढक संपदायक उच्छिंपक सत्थघायक बिलकोलीकारका य निग्गाह विप्पलुंपगा बहुविहतेणिक्कहरणबुद्धी, एते अन्नेय एवमादी परस्स दव्वाहि जे अविरया।
विपुलबल-परिग्गहा य बहवे रायाणो Translated Sutra: उस चोरी को वे चोर – लोग करते हैं जो परकीय द्रव्य को हरण करने वाले हैं, हरण करने में कुशल हैं, अनेकों बार चोरी कर चूके हैं और अवसर को जानने वाले हैं, साहसी हैं, जो तुच्छ हृदय वाले, अत्यन्त महती ईच्छा वाले एवं लोभ से ग्रस्त हैं, जो वचनों के आडम्बर से अपनी असलियत को छिपाने वाले हैं – आसक्त हैं, जो सामने से सीधा प्रहार | |||||||||
Prashnavyakaran | प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-३ अदत्त |
Hindi | 16 | Sutra | Ang-10 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तहेव केइ परस्स दव्वं गवेसमाणा गहिता य हया य बद्धरुद्धा य तरितं अतिधाडिया पुरवरं समप्पिया चोरग्गाह चारभड चाडुकराण तेहि य कप्पडप्पहार निद्दय आरक्खिय खर फरुस वयण तज्जण गलत्थल्ल उत्थल्लणाहिं विमणा चारगवसहिं पवेसिया निरयवसहिसरिसं।
तत्थवि गोम्मिकप्पहार दूमण निब्भच्छण कडुयवयण भेसणग भयाभिभूया अक्खित्त नियंसणा मलिणदंडिखंडवसणा उक्कोडा लंच पास मग्गण परायणेहिं गोम्मिकभडेहिं विविहेहिं बंधणेहि, किं ते? हडि नियड बालरज्जुय कुदंडग वरत्त लोह-संकल हत्थंदुय वज्झपट्ट दामक णिक्कोडणेहिं, अन्नेहि य एवमादिएहिं गोम्मिक भंडोवकरणेहिं दुक्खसमुदीरणेहिं संकोडण मोड-णाहि Translated Sutra: इसी प्रकार परकीय धन द्रव्य की खोज में फिरते हुए कईं चोर पकड़े जाते हैं और उन्हें मारा – पीटा जाता है, बाँधा जाता है और कैद किया जाता है। उन्हें वेग के साथ घूमाया जाता है। तत्पश्चात् चोरों को पकड़ने वाले, चौकीदार, गुप्तचर उन्हें कारागार में ठूंस देते। कपड़े के चाबुकों के प्रहारों से, कठोर – हृदय सिपाहियों के तीक्ष्ण | |||||||||
Prashnavyakaran | प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-४ अब्रह्म |
Hindi | 17 | Sutra | Ang-10 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबू! अबंभं च चउत्थं– सदेवमणुयासुरस्स लोयस्स पत्थणिज्जं, पंक-पणग-पासजालभूयं, थी पुरिस नपुंसगवेदचिंधं तव संजम बंभचेर विग्घं भेदाययण बहुपमादमूलं कायरकापुरिससेवियं सुयणजनवज्जणिज्जं उड्ढं नरग तिरिय तिलोक्कपइट्ठाणं, जरा मरण रोग सोगबहुलं वध बंध विधाय दुव्विघायं दंसण चरित्तमोहस्स हेउभूयं चिरपरिचियमणुगयं दुरंतं। चउत्थं अधम्मदारं। Translated Sutra: हे जम्बू ! चौथा आस्रवद्वार अब्रह्मचर्य है। यह अब्रह्मचर्य देवों, मानवों और असुरों सहित समस्त लोक द्वारा प्रार्थनीय है। यह प्राणियों को फँसाने वाले कीचड़ के समान है। संसार के प्राणियों को बाँधने के लिए पाश और फँसाने के लिए जाल सदृश है। स्त्रीवेद, पुरुषवेद और नपुंसक वेद इसका चिह्न है। यह अब्रह्मचर्य तपश्चर्या, | |||||||||
Prashnavyakaran | प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
संवर द्वार श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-१ अहिंसा |
Hindi | 34 | Sutra | Ang-10 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एसा सा भगवती अहिंसा, जा सा–
भीयाणं पिव सरणं, पक्खीणं पिव गयणं।
तिसियाणं पिव सलिलं, खुहियाणं पिव असणं।
समुद्दमज्झे व पोतवहणं, चउप्पयाणं व आसमपयं।
दुहट्टियाणं व ओसहिबलं, अडवीमज्झे व सत्थगमणं।
एत्तो विसिट्ठतरिका अहिंसा, जा सा–
पुढवि जल अगणि मारुय वणप्फइ बीज हरित जलचर थलचर खहचर तसथावर सव्वभूय खेमकरी।
[सूत्र] एसा भगवती अहिंसा, जा सा–
अपरिमियनाणदंसणधरेहिं सीलगुण विनय तव संजमनायकेहिं तित्थंकरेहिं सव्वजग-वच्छलेहिं तिलोगमहिएहिं जिणचंदेहिं सुट्ठु दिट्ठा, ओहिजिणेहिं विण्णाया, उज्जुमतीहिं विदिट्ठा, विपुलमतीहिं विदिता, पुव्वधरेहिं अधीता, वेउव्वीहिं पतिण्णा।
आभिनिबोहियनाणीहिं Translated Sutra: यह अहिंसा भगवती जो है सो भयभीत प्राणियों के लिए शरणभूत है, पक्षियों के लिए आकाश में गमन करने समान है, प्यास से पीड़ित प्राणियों के लिए जल के समान है, भूखों के लिए भोजन के समान है, समुद्र के मध्य में जहाज समान है, चतुष्पद के लिए आश्रम समान है, दुःखों से पीड़ित के लिए औषध समान है, भयानक जंगल में सार्थ समान है। भगवती अहिंसा | |||||||||
Prashnavyakaran | प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
संवर द्वार श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-२ सत्य |
Hindi | 36 | Sutra | Ang-10 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबू! बितियं च सच्चवयणं–सुद्धं सुइयं सिवं सुजायं सुभासियं सुव्वयं सुकहियं सुदिट्ठं सुपतिट्ठियं सुपतिट्ठियजसं सुसंजमियवयणबुइयं सुरवर नरवसभ पवर बलवग सुविहियजण बहुमयं परमसाहु-धम्मचरणं तव नियम परिग्गहियं सुगतिपहदेसगं च लोगुत्तमं वयमिणं विज्जाहरगगणगमणविज्जाण साहकं सग्गमग्गसिद्धिपहदेसकं अवितहं, तं सच्चं उज्जुयं अकुडिलं भूयत्थं, अत्थतो विसुद्धं उज्जोयकरं पभासकं भवति सव्वभावाण जीवलोगे अविसंवादि जहत्थमधुरं पच्चक्खं दइवयं व जं तं अच्छेरकारकं अवत्थंतरेसु बहुएसु माणुसाणं।
सच्चेण महासमुद्दमज्झे चिट्ठंति, न निमज्जंति मूढाणिया वि पोया।
सच्चेण य उदगसंभमंसि Translated Sutra: हे जम्बू ! द्वितीय संवर सत्यवचन है। सत्य शुद्ध, शुचि, शिव, सुजात, सुभाषित होता है। यह उत्तम व्रतरूप है और सम्यक् विचारपूर्वक कहा गया है। इसे ज्ञानीजनों ने कल्याण के समाधान के रूप में देखा है। यह सुप्रतिष्ठित है, समीचीन रूप में संयमयुक्त वाणी से कहा गया है। सत्य सुरवरों, नरवृषभों, अतिशय बलधारियों एवं सुविहित | |||||||||
Prashnavyakaran | प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
संवर द्वार श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-२ सत्य |
Hindi | 37 | Sutra | Ang-10 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] इमं च अलिय पिसुण फरुस कडुय चवल वयण परिरक्खणट्ठयाए पावयणं भगवया सुकहियं अत्तहियं पेच्चाभाविकं आगमेसिभद्दं सुद्धं नेयाउयं अकुडिलं अणुत्तरं सव्वदुक्खपावाणं विओसमणं।
तस्स इमा पंच भावणाओ बितियस्स वयस्स अलियवयणवेरमण परिरक्खणट्ठयाए।
पढमं–सोऊणं संवरट्ठं परमट्ठं, सुट्ठु जाणिऊण न वेगियं न तुरियं न चवलं न कडुयं न फरुसं न साहसं न य परस्स पीलाकरं सावज्जं, सच्चं च हियं च मियं चगाहकं च सुद्धं संगयमकाहलं च समिक्खितं संजतेण कालम्मि य वत्तव्वं।
एवं अणुवीइसमितिजोगेण भाविओ भवति अंतरप्पा, संजय कर चरण नयण वयणो सूरो सच्चज्जवसंपण्णो।
बितियं–कोहो ण सेवियव्वो। कुद्धो चंडिक्किओ Translated Sutra: अलीक – असत्य, पिशुन – चुगली, परुष – कठोर, कटु – कटुक और चपल – चंचलतायुक्त वचनों से बचाव के लिए तीर्थंकर भगवान ने यह प्रवचन समीचीन रूप से प्रतिपादित किया है। यह भगवत्प्रवचन आत्मा के लिए हितकर है, जन्मान्तर में शुभ भावना से युक्त है, भविष्य में श्रेयस्कर है, शुद्ध है, न्यायसंगत है, मुक्ति का सीधा मार्ग है, सर्वोत्कृष्ट | |||||||||
Prashnavyakaran | प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
संवर द्वार श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-३ दत्तानुज्ञा |
Hindi | 38 | Sutra | Ang-10 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबू! दत्ताणुण्णायसंवरो नाम होति ततियं–सुव्वतं महव्वतं गुणव्वतं परदव्वहरणपडिविरइकरणजुत्तं अपरिमियमणं-ततण्हामणुगय महिच्छ मणवयणकलुस आयाणसुनिग्गहियं सुसंजमियमण हत्थ पायनिहुयं निग्गंथं नेट्ठिकं निरुत्तं निरासवं निब्भयं विमुत्तं उत्तमनरवसभ पवरबलवग सुविहिय-जनसंमतं परमसाहुधम्मचरणं।
जत्थ य गामागर नगर निगम खेड कब्बड मडंब दोणमुह संवाह पट्टणासमगयं च किंचि दव्वं मणि मुत्त सिल प्पवाल कंस दूस रयय वरकणग रयणमादिं पडियं पम्हुट्ठं विप्पणट्ठं न कप्पति कस्सति कहेउं वा गेण्हिउं वा। अहिरण्णसुवण्णिकेण समलेट्ठुकंचनेनं अपरिग्गहसंवुडेणं लोगंमि विहरियव्वं।
जं Translated Sutra: हे जम्बू ! तीसरा संवरद्वार ‘दत्तानुज्ञात’ नामक है। यह महान व्रत है तथा यह गुणव्रत भी है। यह परकीय द्रव्य – पदार्थों के हरण से निवृत्तिरूप क्रिया से युक्त है, व्रत अपरिमित और अनन्त तृष्णा से अनुगत महा – अभिलाषा से युक्त मन एवं वचन द्वारा पापमय परद्रव्यहरण का भलिभाँति निग्रह करता है। इस व्रत के प्रभाव से मन | |||||||||
Prashnavyakaran | प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
संवर द्वार श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-४ ब्रह्मचर्य |
Hindi | 43 | Sutra | Ang-10 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जेण सुद्धचरिएण भवइ सुबंभणो सुसमणो सुसाहू। स इसी स मुणी स संजए स एव भिक्खू, जो सुद्धं चरति बंभचेरे।
इमं च रति राग दोस मोह पवड्ढणकरं किंमज्झ पमायदोस पासत्थसीलकरणं अब्भंगणाणि य तेल्लमज्जणाणि य अभिक्खणं कक्खसीसकरचरणवदणधोवण संबाहण गायकम्म परिमद्दण अनु-लेवण चुण्णवास धूवण सरीरपरिमंडण बाउसिक हसिय भणिय नट्टगीयवाइयनडनट्टकजल्ल-मल्लपेच्छण बेलंबक जाणि य सिंगारागाराणि य अण्णाणि य एवमादियाणि तव संजम बंभचेर घातोवघातियाइं अणुचरमाणेणं बंभचेरं वज्जेयव्वाइं सव्वकालं। भावेयव्वो भवइ य अंतरप्पा इमेहिं तव नियम सील जोगेहिं निच्चकालं, किं ते? –
अण्हाणकऽदंतधोवण सेयमलजल्लधारण Translated Sutra: ब्रह्मचर्य महाव्रत का निर्दोष परिपालन करने से सुब्राह्मण, सुश्रमण और सुसाधु कहा जाता है। जो शुद्ध ब्रह्मचर्य का आचरण करता है वही ऋषि है, वही मुनि है, वही संयत है और वही सच्चा भिक्षु है। ब्रह्मचर्य का अनुपालन करने वाले पुरुष को रति, राग, द्वेष और मोह, निस्सार प्रमाददोष तथा शिथिलाचारी साधुओं का शील और घृतादि | |||||||||
Prashnavyakaran | प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
संवर द्वार श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-५ अपरिग्रह |
Hindi | 44 | Sutra | Ang-10 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबू! अपरिग्गहो संवुडे य समणे आरंभ परिग्गहातो विरते, विरते कोहमानमायालोभा।
एगे असंजमे। दो चेव राग-दोसा। तिन्नि य दंडा, गारवा य, गुत्तीओ, तिन्नि य विराहणाओ। चत्तारि कसाया, ज्झाणा, सण्णा, विकहा तहा य हुंति चउरो। पंच य किरियाओ, समिति इंदिय महव्वयाइं च। छज्जीवनिकाया, छच्च लेसाओ। सत्त भया अट्ठ य मया। नव चेव य बंभचेरगुत्ती। दसप्पकारे य समणधम्मे। एक्कारस य उवासगाणं। बारस य भिक्खुपडिमा। किरियठाणा य। भूयगामा। परमाधम्मिया। गाहासोलसया। असंजम अबंभ णाय असमाहिठाणा। सबला। परिसहा। सूयगडज्झयण देव भावण उद्देस गुण पकप्प पावसुत मोहणिज्जे। सिद्धातिगुणा य। जोगसंगहे,सुरिंदा! Translated Sutra: हे जम्बू ! जो मूर्च्छारहित है। आरंभ और परिग्रह रहित है। तथा क्रोध – मान – माया – लोभ से विरत है। वही श्रमण है। एक असंयम, राग और द्वेष दो, तीन दण्ड, तीन गौरव, तीन गुप्ति, तीन विराधना, चार कषाय – चार ध्यान – चार संज्ञा – चार विकथा, पाँच क्रिया – पाँच समिति – पाँच महाव्रत छह जीवनिकाय, छह लेश्या, सात भय, आठ मद, नव ब्रह्मचर्यगुप्ति, | |||||||||
Prashnavyakaran | प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
संवर द्वार श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-५ अपरिग्रह |
Hindi | 45 | Sutra | Ang-10 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जो सो वीरवरवयणविरतिपवित्थर-बहुविहप्पकारो सम्मत्तविसुद्धमूलो धितिकंदो विणयवेइओ निग्गततिलोक्कविपुल-जसनिचियपीणपीवरसुजातखंधो पंचमहव्वयविसालसालो भावणतयंत ज्झाण सुभजोग नाण पल्लववरंकुरधरो बहुगुणकुसुमसमिद्धो सीलसुगंधो अणण्हयफलो पुणो य मोक्खवरबीजसारो मंदरगिरि सिहरचूलिका इव इमस्स मोक्खर मोत्तिमग्गस्स सिहरभूओ संवर-वरपायवो। चरिमं संवरदारं।
जत्थ न कप्पइ गामागर नगर खेड कब्बड मडंब दोणमुह पट्टणासमगयं च किंचि अप्पं व बहुं व अणुं व थूलं व तस थावरकाय दव्वजायं मणसा वि परिघेत्तुं। न हिरण्ण सुवण्ण खेत्त वत्थुं, न दासी दास भयक पेस हय गय गवेलगं व, न जाण जुग्ग सयणासणाइं, Translated Sutra: श्रीवीरवर – महावीर के वचन से की गई परिग्रहनिवृत्ति के विस्तार से यह संवरवर – पादप बहुत प्रकार का है। सम्यग्दर्शन इसका विशुद्ध मूल है। धृति इसका कन्द है। विनय इसकी वेदिका है। तीनों लोकों में फैला हुआ विपुल यश इसका सघन, महान और सुनिर्मित स्कन्ध है। पाँच महाव्रत इसकी विशाल शाखाएं हैं। भावनाएं इस संवरवृक्ष | |||||||||
Prashnavyakaran | પ્રશ્નવ્યાપકરણાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ हिंसा |
Gujarati | 1 | Sutra | Ang-10 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नामं नयरी होत्था.
पुण्णभद्दे चेइए वनसंडे असोगवरपायवे पुढविसिलापट्टए.
तत्थण चंपाए नयरीए कोणिए नामं राया होत्था. धारिणी देवी.
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी अज्जसुहम्मे नामं थेरे–जाइसंपन्ने कुलसंपन्ने बलसंपन्ने रूवसंपन्ने विनयसंपन्ने नाणसंपन्ने दंसणसंपन्ने चरित्तसंपन्ने लज्जासंपन्ने लाघवसंपन्ने ओयसी तेयंसी वच्चंसी जसंसी जियकोहे जियमाणे जियमाए जियलोभे जियनिद्दे जिइंदिए जियपरीसहे जिवियास-मरण-भय-विप्पमुक्के तवप्पहाणे गुणप्पहाणे करण-प्पहाणे चरणप्पहाणे निच्छयप्पहाणे अज्जवप्पहाणे मद्दवप्पहाणे Translated Sutra: તે કાળે, તે સમયે ચંપા નામે નગરી હતી, પૂર્ણભદ્ર ચૈત્ય હતું. ત્યાં વનખંડમાં ઉત્તમ અશોકવૃક્ષ હતું, ત્યાં પૃથ્વીશિલાપટ્ટક હતો. તે ચંપાનગરીમાં કોણિક રાજા હતો, ધારિણી રાણી હતા. તે કાળે, તે સમયે શ્રમણ ભગવંત મહાવીરના શિષ્ય, આર્ય સુધર્મા નામે સ્થવિર હતા. તેઓ જાતિ – કુળ – બળ – રૂપ – વિનય – જ્ઞાન – દર્શન – ચારિત્ર – લજ્જા | |||||||||
Prashnavyakaran | પ્રશ્નવ્યાપકરણાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ हिंसा |
Gujarati | 8 | Sutra | Ang-10 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कयरे? जे ते सोयरिया मच्छबंधा साउणिया वाहा कूरकम्मादीवित बंधप्पओग तप्प गल जाल वीरल्लग आयसीदब्भवग्गुरा कूडछेलिहत्था हरिएसा ऊणिया य वीदंसग पासहत्था वनचरगा लुद्धगा य महुघात-पोतघाया एणीयारा पएणीयारा सर दह दीहिअ तलाग पल्लल परिगालण मलण सोत्तबंधण सलिलासयसोसगा विसगरलस्स य दायगा उत्तण वल्लर दवग्गिणिद्दय पलीवका।
कूरकम्मकारी इमे य बहवे मिलक्खुया, के ते?
सक जवण सवर बब्बर कायमुरुंड उड्ड भडग निण्णग पक्काणिय कुलक्ख गोड सीहल पारस कोंच अंध दविल चिल्लल पुलिंद आरोस डोंब पोक्कण गंधहारग बहलीय जल्ल रोम मास बउस मलया य चुंचुया य चूलिय कोंकणगा मेद पल्हव मालव मग्गर आभासिया अणक्क Translated Sutra: [૧] તે હિંસક પ્રાણી કોણ છે ? જે તે શૌકરિક, મત્સ્યબંધક, શાકુનિક, વ્યાધ, ક્રૂરકર્મી, વાગુરિકો, દ્વીપિક; જેઓ મૃગ આદિને મારવા માટે બંધન પ્રયોગ, આદિ ઉપાય કરનાર, માછલી પકડવા માટે તપ્ર, ગલ, જાલ, વીરલ્લક, લોહજાલ, દર્ભ, કૂટપાશ આદિ હાથમાં લઈને ફરનારા હરિકેશ, શાકુનિક, બાજપક્ષી તથા જાલને હાથમાં રાખનાર, વનચર, મધમાખીનો ઘાત કરનાર, | |||||||||
Prashnavyakaran | પ્રશ્નવ્યાપકરણાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-२ मृषा |
Gujarati | 11 | Sutra | Ang-10 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तं च पुण वदंति केई अलियं पावा अस्संजया अविरया कवडकुडिल कडुय चडुलभावा कुद्धा लुद्धाभया य हस्सट्ठिया य सक्खी चोरा चारभडा खंडरक्खा जियजूईकरा य गहिय-गहणा कक्कगुरुग कारगा कुलिंगी उवहिया वाणियगा य कूडतुला कूडमाणी कूडकाहावणोवजीवी पडकार कलाय कारुइज्जा वंचनपरा चारिय चडुयार नगरगुत्तिय परिचारग दुट्ठवायि सूयक अनवलभणिया य पुव्वकालियवयणदच्छा साहसिका लहुस्सगा असच्चा गारविया असच्चट्ठावणाहिचित्ता उच्चच्छंदा अनिग्गहा अनियता छंदेण मुक्कवायी भवंति अलियाहिं जे अविरया।
अवरे नत्थिकवादिणो वामलोकवादी भणंति–सुण्णंति। नत्थि जीवो। न जाइ इहपरे वा लोए। न य किंचिवि फुसति Translated Sutra: આ અસત્ય બોલનારા કેટલાક પાપી, અસંયત, અવિરત, કપટ કુટિલ કટુક ચટુલ ભાવવાળા, ક્રુદ્ધ, લુબ્ધ, ભયોત્પાદક, હાસ્યસ્થિત, સાક્ષી, ચોર – ગુપ્તચર, ખંડરક્ષક, જુગારમાં હારેલ, ગિરવી રાખનાર, કપટથી કોઈ વાતને વધારીને કહેનાર, કુલિંગી, ઉપધિકા, વણિક, ખોટા તોલમાપ કરનાર, નકલી સિક્કોથી આજીવિકા કરનાર, પડગાર, સોની, કારીગર, વંચન પર, દલાલ, ચાટુકાર, | |||||||||
Prashnavyakaran | પ્રશ્નવ્યાપકરણાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-२ मृषा |
Gujarati | 12 | Sutra | Ang-10 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स य अलियस्स फलविवागं अयाणमाणा वड्ढेंति महब्भयं अविस्सामवेयणं दीहकालं बहुदुक्ख-संकडं नरय-तिरिय-जोणिं। तेण य अलिएण समनुबद्धा आइद्धा पुनब्भवंधकारे भमंति भीमे दुग्गति-वसहिमुवगया।
तेय दीसंतिह दुग्गगा दुरंता परव्वसा अत्थभोगपरिवज्जिया असुहिताफुडियच्छवी बीभच्छा विवन्ना खरफरुस विरत्त ज्झाम ज्झुसिरा निच्छाया लल्ल विफल वाया असक्कतमसक्कया अगंधा अचेयणा दुभगा अकंता काकस्सरा हीनभिन्नघोसा विहिंसा जडबहिरंधया य मम्मणा अकंत विकय करणा नीया नीयजन निसेविणो लोग गरहणिज्जा भिच्चा असरिसजणस्स पेस्सा दुम्मेहा लोक वेद अज्झप्प समयसुतिवज्जिया नरा धम्मबुद्धि वियला।
अलिएण Translated Sutra: ઉક્ત અસત્યભાષણના ફળવિપાકથી અજાણ લોકો નરક અને તિર્યંચયોનિની વૃદ્ધિ કરે છે. જ્યાં મહાભયંકર, અવિશ્રામ, બહુ દુઃખોથી પરિપૂર્ણ અને દીર્ઘકાલિક વેદના ભોગવવી પડે છે. તે અસત્ય સાથે સારી રીતે જોડાયેલા ભયંકર અને દુર્ગતિને પ્રાપ્ત કરાવનારા અંધકાર રૂપ પુનર્ભવમાં ભટકે છે. તે પણ દુઃખે કરી અંત પામે તેવા, દુર્ગત, દુરંત, પરતંત્ર, | |||||||||
Prashnavyakaran | પ્રશ્નવ્યાપકરણાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-३ अदत्त |
Gujarati | 13 | Sutra | Ang-10 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबू! तइयं च अदिन्नादाणं–हर दह मरण भय कलुस तासण परसंतिगऽभेज्जलोभमूलं काल विसम संसियं अहोऽच्छिण्णतण्ह-पत्थाण-पत्थोइमइयं अकित्तिकरणं अणज्जं छिद्दमंतर विधुर वसण मग्गण उस्सव मत्त प्पमत्त पसुत्त वंचणाखिवण घायणपर अनिहुयपरिणामतक्करजणबहुमयं अकलुणं रायपुरिसरक्खियं सया साहुगरहणिज्जं पियजण मित्तजण भेदविप्पीतिकारकं रागदोस-बहुलं पुणो य उप्पूर समर संगाम डमर कलि कलह वेहकरणं दुग्गति विणिवायवड्ढणं भवपुनब्भवकरं चिरपरिचितमनुगयं दुरंतं। तइयं अधम्मदारं। Translated Sutra: હે જંબૂ ! ત્રીજું અધર્મદ્વાર – અદત્તાદાન, હૃદયને બાળનાર – મરણભયરૂપ, કલુષતામય, બીજાના ધનાદિમાં મૂર્ચ્છા કે ત્રાસ સ્વરૂપ, જેનું મૂળ લોભ છે. વિષમકાળ – વિષમ સ્થાન આશ્રિત, નિત્ય તૃષ્ણાગ્રસ્ત જીવોને અધોગતિમાં લઈ જનારી બુદ્ધિવાળું છે, અપયશનું કારણ છે, અનાર્યપુરુષ આચરિત છે. છિદ્ર – અંતર – વિધુર – વ્યસન – માર્ગણાપાત્ર | |||||||||
Prashnavyakaran | પ્રશ્નવ્યાપકરણાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-३ अदत्त |
Gujarati | 15 | Sutra | Ang-10 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तं च पुण करेंति चोरियं तक्करा परदव्वहरा छेया कयकरण लद्धलक्खा साहसिया लहुस्सगा अतिमहिच्छ लोभगत्था, दद्दर ओवीलका य गेहिया अहिमरा अणभंजका भग्गसंधिया रायदुट्ठकारी य विसयनिच्छूढा लोकवज्झा, उद्दहक गामघाय पुरघाय पंथघायग आलीवग तित्थभेया लहुहत्थ संपउत्ता जूईकरा खंडरक्खत्थीचोर पुरिसचोर संधिच्छेया य गंथिभेदगपरधनहरणलोमावहार- अक्खेवी हडकारक निम्मद्दग गूढचोर गोचोर अस्सचोरग दासिचोरा य एकचोरा ओकड्ढक संपदायक उच्छिंपक सत्थघायक बिलकोलीकारका य निग्गाह विप्पलुंपगा बहुविहतेणिक्कहरणबुद्धी, एते अन्नेय एवमादी परस्स दव्वाहि जे अविरया।
विपुलबल-परिग्गहा य बहवे रायाणो Translated Sutra: તે ચોર પૂર્વોક્ત રીતે ચોરી કરવામાં અને બીજાનું દ્રવ્ય હરણ કરવામાં કુશળ હોય છે. અનેકવાર ચોરી કરેલ અને અવસરજ્ઞ હોય છે. તેઓ સાહસિક, તુચ્છ હૃદયવાળા, અતિ મહતી ઇચ્છાવાળા, લોભગ્રસ્ત, વચનાડંબરથી પોતાને છૂપાવનાર હોય છે. બીજાને લજ્જિત કરનાર, બીજાના ઘર આદિમાં આસક્ત, અધિમરા હોય છે. તે ઋણભંજક, સંધિભંજક, રાજદુષ્ટકારી, દેશનિકાલ | |||||||||
Prashnavyakaran | પ્રશ્નવ્યાપકરણાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-३ अदत्त |
Gujarati | 16 | Sutra | Ang-10 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तहेव केइ परस्स दव्वं गवेसमाणा गहिता य हया य बद्धरुद्धा य तरितं अतिधाडिया पुरवरं समप्पिया चोरग्गाह चारभड चाडुकराण तेहि य कप्पडप्पहार निद्दय आरक्खिय खर फरुस वयण तज्जण गलत्थल्ल उत्थल्लणाहिं विमणा चारगवसहिं पवेसिया निरयवसहिसरिसं।
तत्थवि गोम्मिकप्पहार दूमण निब्भच्छण कडुयवयण भेसणग भयाभिभूया अक्खित्त नियंसणा मलिणदंडिखंडवसणा उक्कोडा लंच पास मग्गण परायणेहिं गोम्मिकभडेहिं विविहेहिं बंधणेहि, किं ते? हडि नियड बालरज्जुय कुदंडग वरत्त लोह-संकल हत्थंदुय वज्झपट्ट दामक णिक्कोडणेहिं, अन्नेहि य एवमादिएहिं गोम्मिक भंडोवकरणेहिं दुक्खसमुदीरणेहिं संकोडण मोड-णाहि Translated Sutra: આ પ્રમાણે કોઈ પરદ્રવ્યને શોધતા કેટલાક ચોર પકડાઈ જાય છે, તેને મારપીટ થાય છે, બંધનોથી બંધાય છે, કેદ કરાય છે, વેગથી જલદી ઘૂમાવાય છે. નગરમાં આરક્ષકોને સોંપી દેવાય છે. પછી ચોરને પકડનાર, ચાર ભટ, ચાટુકર – કારાગૃહમાં નાંખી દે છે. કપડાના ચાબૂકના પ્રહારોથી, કઠોર હૃદય આરક્ષકોના તીક્ષ્ણ અને કઠોર વચનો, તર્જના, ગરદન પકડી ધક્કો | |||||||||
Prashnavyakaran | પ્રશ્નવ્યાપકરણાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-४ अब्रह्म |
Gujarati | 19 | Sutra | Ang-10 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तं च पुण निसेवंति सुरगणा सअच्छरा मोह मोहिय मती, असुर भयग गरुल विज्जु जलण दीव उदहि दिस पवण थणिया। अणवण्णिय पणवण्णिय इसिवादिय भूयवादियकंदिय महाकंदिय कूहंड पतगदेवा, पिसाय भूय जक्ख रक्खस किन्नर किंपुरिस महोरग गंधव्व तिरिय जोइस विमाणवासि मणुयगणा, जलयर थलयर खहयराय मोहपडिबद्धचित्ता अवितण्हा कामभोग-तिसिया, तण्हाए बलवईए महईए समभिभूया गढिया य अतिमुच्छिया य, अबंभे ओसण्णा, तामसेन भावेण अणुम्मुक्का, दंसण-चरित्तमोहस्स पंजरं पिव करेंतिअन्नोन्नं सेवमाणा।
भुज्जो असुर सुर तिरिय मणुय भोगरत्ति विहार संपउत्ता य चक्कवट्टी सुरनरवतिसक्कया सुरवरव्व देवलोए भरह नग नगर नियम Translated Sutra: [૧] આ અબ્રહ્મને અપ્સરાઓ, દેવાંગનાઓ સહિત સુરગણ પણ સેવે છે. કયા દેવો તે સેવે છે?. મોહથી મોહિત મતિવાળા, અસુર, નાગ, ગરુડ, સુવર્ણ, વિદ્યુત, અગ્નિ, દ્વીપ, ઉદધિ, દિશિ, વાયુ, સ્તનિતકુમાર દેવો અબ્રહ્મનું સેવન કરે છે. અણપન્ની, પણપન્ની, ઋષિવાદિક, ભૂતવાદિક, ક્રંદિત, મહાક્રંદિત, કૂષ્માંડ અને પતંગદેવો તથા પિશાચ, ભૂત, યક્ષ, રાક્ષસ, | |||||||||
Prashnavyakaran | પ્રશ્નવ્યાપકરણાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-५ परिग्रह |
Gujarati | 23 | Sutra | Ang-10 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तं च पुण परिग्गहं ममायंति लोभघत्था भवनवरविमाणवासिणो परिग्गहरुयी परिग्गहे विविहकरण-बुद्धी, देवनिकाया य–असुर भुयग गरुल विज्जु जलण दीव उदहि दिसि पवण थणिय अणवण्णिय पणवण्णिय इसिवासिय भूतवा-इय कंदिय महाकंदिय कुहंडपतगदेवा, पिसाय भूय जक्ख रक्खस किन्नर किंपुरिस महोरग गंधव्वा य तिरियवासी।
पंचविहा जोइसिया य देवा, –बहस्सती चंद सूर सुक्क सनिच्छरा, राहु धूमकेउ बुधा य अंगारका य तत्ततवणिज्जकनगवण्णा, जे य गहा जोइसम्मि चारं चरंति, केऊ य गतिरतीया, अट्ठावीसतिविहा य नक्खत्तदेवगणा, नानासंठाणसंठियाओ य तारगाओ, ठियलेस्सा चारिणो य अविस्साम मंडलगती उवरिचरा।
उड्ढलोगवासी दुविहा Translated Sutra: સૂત્ર– ૨૩. પૂર્વોક્ત પરિગ્રહના લોભથી ગ્રસ્ત, પરિગ્રહ પ્રત્યે રુચિ રાખનાર, ઉત્તમ ભવન અને વિમાન નિવાસી, મમત્વપૂર્વક પરિગ્રહને ગ્રહણ કરે છે. પરિગ્રહરૂચિ, વિવિધ પરિગ્રહ કરવાની બુદ્ધિવાળા દેવનિકાય જેમ કે. અસુર, નાગ, સુવર્ણ, વિદ્યુત, અગ્નિ, દ્વીપ, ઉદધિ, દિશિ, વાયુ, સ્તનિત – કુમારો તથા અણપન્નિ, પણપન્નિ, ઋષિવાદી, ભૂતવાદી, | |||||||||
Prashnavyakaran | પ્રશ્નવ્યાપકરણાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
संवर द्वार श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-२ सत्य |
Gujarati | 36 | Sutra | Ang-10 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबू! बितियं च सच्चवयणं–सुद्धं सुइयं सिवं सुजायं सुभासियं सुव्वयं सुकहियं सुदिट्ठं सुपतिट्ठियं सुपतिट्ठियजसं सुसंजमियवयणबुइयं सुरवर नरवसभ पवर बलवग सुविहियजण बहुमयं परमसाहु-धम्मचरणं तव नियम परिग्गहियं सुगतिपहदेसगं च लोगुत्तमं वयमिणं विज्जाहरगगणगमणविज्जाण साहकं सग्गमग्गसिद्धिपहदेसकं अवितहं, तं सच्चं उज्जुयं अकुडिलं भूयत्थं, अत्थतो विसुद्धं उज्जोयकरं पभासकं भवति सव्वभावाण जीवलोगे अविसंवादि जहत्थमधुरं पच्चक्खं दइवयं व जं तं अच्छेरकारकं अवत्थंतरेसु बहुएसु माणुसाणं।
सच्चेण महासमुद्दमज्झे चिट्ठंति, न निमज्जंति मूढाणिया वि पोया।
सच्चेण य उदगसंभमंसि Translated Sutra: હે જંબૂ ! બીજું સંવર – સત્ય વચન છે. તે શુદ્ધ, શુચિ, શિવ, સુજાત, સુ – ભાષિત, સુવ્રત, સુકથિત, સુદૃષ્ટ, સુપ્રતિષ્ઠિત, સુપ્રતિષ્ઠિતયશ, સુસંયમિત વચનથી કહેવાયેલ છે. તે સુરવર, નર વૃષભ, પ્રવર બલધારી અને સુવિહિત લોકોને બહુમત છે. પરમ સાધુજનનું ધર્મ અનુષ્ઠાન, તપ – નિયમથી પરિગૃહીત, સુગતિના પથનું પ્રદર્શક અને લોકમાં ઉત્તમ આ વ્રત | |||||||||
Prashnavyakaran | પ્રશ્નવ્યાપકરણાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
संवर द्वार श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-२ सत्य |
Gujarati | 37 | Sutra | Ang-10 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] इमं च अलिय पिसुण फरुस कडुय चवल वयण परिरक्खणट्ठयाए पावयणं भगवया सुकहियं अत्तहियं पेच्चाभाविकं आगमेसिभद्दं सुद्धं नेयाउयं अकुडिलं अणुत्तरं सव्वदुक्खपावाणं विओसमणं।
तस्स इमा पंच भावणाओ बितियस्स वयस्स अलियवयणवेरमण परिरक्खणट्ठयाए।
पढमं–सोऊणं संवरट्ठं परमट्ठं, सुट्ठु जाणिऊण न वेगियं न तुरियं न चवलं न कडुयं न फरुसं न साहसं न य परस्स पीलाकरं सावज्जं, सच्चं च हियं च मियं चगाहकं च सुद्धं संगयमकाहलं च समिक्खितं संजतेण कालम्मि य वत्तव्वं।
एवं अणुवीइसमितिजोगेण भाविओ भवति अंतरप्पा, संजय कर चरण नयण वयणो सूरो सच्चज्जवसंपण्णो।
बितियं–कोहो ण सेवियव्वो। कुद्धो चंडिक्किओ Translated Sutra: આ અલિક, પિશુન, કઠોર, કટુક, ચપળ વચનોથી રક્ષણ કરવા માટે ભગવંતે આ પ્રવચન સારી રીતે કહેલ છે, જે આત્મહિતકર, જન્માંતરમાં શુભ ભાવના યુક્ત, ભાવિમાં કલ્યાણકર, શુદ્ધ, નૈયાયિક, અકુટિલ, અનુત્તર, સર્વદુઃખ અને પાપનું ઉપશામક છે. તેની આ પાંચ ભાવના છે, જે અસત્યવચન વિરમણ – બીજા વ્રતના રક્ષણાર્થે છે – ૧. અનુવીચિભાષણ – સંવરનો અર્થ | |||||||||
Prashnavyakaran | પ્રશ્નવ્યાપકરણાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
संवर द्वार श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-३ दत्तानुज्ञा |
Gujarati | 38 | Sutra | Ang-10 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबू! दत्ताणुण्णायसंवरो नाम होति ततियं–सुव्वतं महव्वतं गुणव्वतं परदव्वहरणपडिविरइकरणजुत्तं अपरिमियमणं-ततण्हामणुगय महिच्छ मणवयणकलुस आयाणसुनिग्गहियं सुसंजमियमण हत्थ पायनिहुयं निग्गंथं नेट्ठिकं निरुत्तं निरासवं निब्भयं विमुत्तं उत्तमनरवसभ पवरबलवग सुविहिय-जनसंमतं परमसाहुधम्मचरणं।
जत्थ य गामागर नगर निगम खेड कब्बड मडंब दोणमुह संवाह पट्टणासमगयं च किंचि दव्वं मणि मुत्त सिल प्पवाल कंस दूस रयय वरकणग रयणमादिं पडियं पम्हुट्ठं विप्पणट्ठं न कप्पति कस्सति कहेउं वा गेण्हिउं वा। अहिरण्णसुवण्णिकेण समलेट्ठुकंचनेनं अपरिग्गहसंवुडेणं लोगंमि विहरियव्वं।
जं Translated Sutra: હે જંબૂ ! ત્રીજું સંવરદ્વાર ‘‘દત્તાનુજ્ઞાત’’ નામે છે. હે સુવ્રત ! આ મહાવ્રત છે તથા અણુવ્રત પણ છે. આ પરકીય દ્રવ્યના હરણની નિવૃત્તિરૂપ ક્રિયાથી યુક્ત છે. આ વ્રત. અપરિમિત – અનંત તૃષ્ણાથી અનુગત મહાઅભિલાષાથી યુક્ત મન, વચન દ્વારા પાપમય પરદ્રવ્ય – હરણનો સમ્યક્ નિગ્રહ કરે છે. આ વ્રતના પ્રભાવે. મન સુસંયમિત થાય છે. હાથ | |||||||||
Prashnavyakaran | પ્રશ્નવ્યાપકરણાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
संवर द्वार श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-४ ब्रह्मचर्य |
Gujarati | 43 | Sutra | Ang-10 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जेण सुद्धचरिएण भवइ सुबंभणो सुसमणो सुसाहू। स इसी स मुणी स संजए स एव भिक्खू, जो सुद्धं चरति बंभचेरे।
इमं च रति राग दोस मोह पवड्ढणकरं किंमज्झ पमायदोस पासत्थसीलकरणं अब्भंगणाणि य तेल्लमज्जणाणि य अभिक्खणं कक्खसीसकरचरणवदणधोवण संबाहण गायकम्म परिमद्दण अनु-लेवण चुण्णवास धूवण सरीरपरिमंडण बाउसिक हसिय भणिय नट्टगीयवाइयनडनट्टकजल्ल-मल्लपेच्छण बेलंबक जाणि य सिंगारागाराणि य अण्णाणि य एवमादियाणि तव संजम बंभचेर घातोवघातियाइं अणुचरमाणेणं बंभचेरं वज्जेयव्वाइं सव्वकालं। भावेयव्वो भवइ य अंतरप्पा इमेहिं तव नियम सील जोगेहिं निच्चकालं, किं ते? –
अण्हाणकऽदंतधोवण सेयमलजल्लधारण Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૩૯ | |||||||||
Prashnavyakaran | પ્રશ્નવ્યાપકરણાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
संवर द्वार श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-५ अपरिग्रह |
Gujarati | 45 | Sutra | Ang-10 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जो सो वीरवरवयणविरतिपवित्थर-बहुविहप्पकारो सम्मत्तविसुद्धमूलो धितिकंदो विणयवेइओ निग्गततिलोक्कविपुल-जसनिचियपीणपीवरसुजातखंधो पंचमहव्वयविसालसालो भावणतयंत ज्झाण सुभजोग नाण पल्लववरंकुरधरो बहुगुणकुसुमसमिद्धो सीलसुगंधो अणण्हयफलो पुणो य मोक्खवरबीजसारो मंदरगिरि सिहरचूलिका इव इमस्स मोक्खर मोत्तिमग्गस्स सिहरभूओ संवर-वरपायवो। चरिमं संवरदारं।
जत्थ न कप्पइ गामागर नगर खेड कब्बड मडंब दोणमुह पट्टणासमगयं च किंचि अप्पं व बहुं व अणुं व थूलं व तस थावरकाय दव्वजायं मणसा वि परिघेत्तुं। न हिरण्ण सुवण्ण खेत्त वत्थुं, न दासी दास भयक पेस हय गय गवेलगं व, न जाण जुग्ग सयणासणाइं, Translated Sutra: જે તે વીરવરના વચનથી પરિગ્રહ વિરતિના વિસ્તાર વડે આ સંવર વૃક્ષ અર્થાત અપરિગ્રહ નામનું અંતિમ સંવર દ્વાર ઘણા પ્રકારનું છે. સમ્યગ્ દર્શન તેનું વિશુદ્ધ મૂળ છે. ધૃતિ કંદ છે, વિનય વેદિકા છે, ત્રણ લોકમાં ફેલાયેલ વિપુલ યશ સઘન, મહાન્, સુનિર્મિત સ્કંધ છે. પાંચ મહાવ્રત વિશાળ શાખા છે. ભાવના રુપ ત્વચા છે. ધ્યાન – શુભ યોગ | |||||||||
Pushpachulika | पुष्पचूला | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ थी १० |
Hindi | 3 | Sutra | Upang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं उवंगाणं चउत्थस्स वग्गस्स पुप्फचूलियाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स पुप्फचूलियाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे। गुणसिलए चेइए। सेणिए राया। सामी समोसढे। परिसा निग्गया।
तेणं कालेणं तेणं समएणं सिरिदेवी सोहम्मे कप्पे सिरिवडिंसए विमाणे सभाए सुहम्माए सिरिवडिंसयंसि सीहासनंसि चउहिं सामानियसाहस्सीहिं चउहिं महत्तरियाहिं सपरिवाराहिं जहा बहुपुत्तिया जाव नट्टविहिं उवदंसित्ता पडिगया,
नवरं–दारियाओ नत्थि। पुव्वभवपुच्छा।
एवं Translated Sutra: हे भदन्त ! श्रमण यावत् मोक्षप्राप्त भगवान महावीर ने प्रथम अध्ययन का क्या आशय बताया है ? हे जम्बू! उस काल और उस समय में राजगृह नगर था। गुणशिलक चैत्य था। श्रेणिक राजा था। श्रमण भगवान महावीर स्वामी वहाँ पधारे। परिषद् नीकली। उस काल और उस समय श्रीदेवी सौधर्मकल्प में श्री अवतंसक विमान की सुधर्मासभा में बहुपुत्रिका |