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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१० | Hindi | 258 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] चत्तारि पुरिसजाया पन्नत्ता, तं जहा–धम्मं नाममेगे जहइ नो गणसंठितिं, गणसंठितिं नाममेगे जहइ नो धम्मं, एगे गणसंठितिं पि जहइ धम्मं पि जहइ, एगे नो गणसंठितिं जहइ नो धम्मं जहइ। Translated Sutra: देखो सूत्र २५२ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१० | Hindi | 259 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] चत्तारि पुरिसजाया पन्नत्ता, तं जहा–पियधम्मे नाममेगे नो दढधम्मे, दढधम्मे नाममेगे नो पियधम्मे, एगे पियधम्मे वि दढधम्मे वि, एगे नो पियधम्मे नो दढधम्मे। Translated Sutra: देखो सूत्र २५२ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१० | Hindi | 260 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] चत्तारि आयरिया पन्नत्ता, तं जहा–पव्वावणायरिए नाममेगे नो उवट्ठावणायरिए, उवट्ठावणायरिए नाममेगे नो पव्वावणायरिए, एगे पव्वावणायरिए वि उवट्ठावणायरिए वि, एगे नो पव्वावणायरिए नो उवट्ठावणायरिए–धम्मायरिए। Translated Sutra: चार तरह के आचार्य बताए – (१) प्रव्रज्या आचार्य लेकिन उपस्थापना आचार्य नहीं, उपस्थापना आचार्य मगर प्रव्रज्या आचार्य नहीं, दोनों हो, दोनों में से एक भी न हो, (२) उद्देशाचार्य हो लेकिन वंदनाचार्य न हो, वंदनाचार्य हो लेकिन उद्देशाचार्य न हो, दोनों हो, दोनों में से एक भी न हो। सूत्र – २६०, २६१ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१० | Hindi | 261 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] चत्तारि आयरिया पन्नत्ता, तं जहा–उद्देसणायरिए नाममेगे नो वायणायरिए, वायणायरिए नाममेगे नो उद्देसणायरिए, एगे उद्देसणायरिए वि वायणायरिए वि, एगे नो उद्देसणायरिए नो वायणायरिए–धम्मायरिए। Translated Sutra: देखो सूत्र २६० | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१० | Hindi | 262 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] चत्तारि अंतेवासी पन्नत्ता, तं जहा–पव्वावणंतेवासी नाममेगे नो उवट्ठावणंतेवासी, उवट्ठावणंतेवासी नाममेगे नो पव्वावणंतेवासी, एगे पव्वावणंतेवासी वि उवट्ठावणंतेवासी वि, एगे नो पव्वावणंतेवासी नो उवट्ठावणंतेवासी–धम्मंतेवासी। Translated Sutra: चार अन्तेवासी शिष्य बताए हैं – (१) प्रव्रज्या शिष्य हो लेकिन उपस्थापना शिष्य न हो, उपस्थापना शिष्य हो लेकिन प्रव्रज्या शिष्य न हो, दोनों हो, दोनों में से एक भी न हो, (२) उद्देशा करवाए लेकिन वांचना न दे, वांचना दे लेकिन उद्देशा न करवाए, दोनों करवाए, दोनों में से कुछ भी न करवाए। सूत्र – २६२, २६३ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१० | Hindi | 263 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] चत्तारि अंतेवासी पन्नत्ता, तं जहा–उद्देसणंतेवासी नाममेगे नो वायणंतेवासी, वायणंतेवासी नाममेगे नो उद्देसणंतेवासी, एगे उद्देसणंतेवासी वि वायणंतेवासी वि, एगे नो उद्देसणंतेवासी नो वायणंतेवासी–धम्मंतेवासी। Translated Sutra: देखो सूत्र २६२ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१० | Hindi | 264 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तओ थेरभूमीओ पन्नत्ताओ तं जहा–जातिथेरे सुयथेरे परियायथेरे। सट्ठिवासजाए समणे निग्गंथे जातिथेरे, ठाणसमवायधरे समणे निग्गंथे सुयथेरे, वीसवासपरियाए समणे निग्गंथे परियायथेरे। Translated Sutra: तीन स्थविर भूमि बताई है। वय स्थविर, श्रुत स्थविर और पर्याय स्थविर। ६० सालवाले वय स्थविर, ठाण – समवाय के धारक वो श्रुतस्थविर, बीस साल का पर्याय यानि पर्याय स्थविर। | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१० | Hindi | 265 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तओ सेहभूमीओ पण्णत्तओ, तं जहा–जहण्णा मज्झिमा उक्कोसा। सत्तराइंदिया जहण्णा, चाउम्मासिया मज्झिमा, छम्मासिया उक्कोसा। Translated Sutra: तीन शिष्य की भूमि कही है। जघन्य को सात रात्रि की, मध्यम वो चार मास की और उत्कृष्ट छ मास की | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१० | Hindi | 266 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा खुड्डगं वा खुड्डियं वा ऊणट्ठवासजायं उवट्ठावेत्तए वा संभुंजित्तए वा। Translated Sutra: साधु – साध्वी को लघु साधु या साध्वी जिनको आठ साल से कुछ कम उम्र है उसकी उपस्थापना या सह – भोजन करना न कल्पे, आठ साल से कुछ ज्यादा हो तो कल्पे। सूत्र – २६६, २६७ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१० | Hindi | 267 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा खुड्डगं वा खुड्डियं वा साइरेगट्ठवासजायं उवट्ठावेत्तए वा संभुंजित्तए वा। Translated Sutra: देखो सूत्र २६६ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१० | Hindi | 268 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा खुड्डगस्स वा खुड्डियाए वा अवंजणजायस्स आयारपकप्पं नामं अज्झयणं उद्दिसित्तए। Translated Sutra: साधु – साध्वी को बाल साधु या बाल साध्वी जिन्हें अभी बगल में बाल भी नहीं आए यानि वैसी छोटी वयवाले को आचार प्रकल्प नामक अध्ययन पढ़ाना न कल्पे, बगल में बाल उगे उतनी वय के होने के बाद कल्पे। सूत्र – २६८, २६९ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१० | Hindi | 269 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा खुड्डगस्स वा खुड्डियाए वा वंजणजायस्स आयारपकप्पं नामं अज्झयणं उद्दिसित्तए। Translated Sutra: देखो सूत्र २६८ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१० | Hindi | 270 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तिवासपरियायस्स समणस्स निग्गंथस्स कप्पइ आयारपकप्पं नामं अज्झयणं उद्दिसित्तए। Translated Sutra: जिस साधु का दीक्षा पर्याय तीन साल का हुआ हो उसे आचार प्रकल्प अध्ययन पढ़ाना कल्पे, उसी तरह चार साल के पर्याय से, सूयगड़ो, पाँच साल पर्याय से दसा, कप्प, ववहार, आठ साल पर्याय से ठाण, समवाय, दश साल पर्याय से विवाह पन्नत्ति यानि भगवई, ११ साल पर्याय से खुड्डियाविमाणपविभत्ति, महल्लियाविमाणपविभत्ति, अंगचूलिया, वग्गचूलिया, | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१० | Hindi | 271 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] चउवासपरियायस्स समणस्स निग्गंथस्स कप्पइ सूयगडे नामं अंगे उद्दिसित्तए। Translated Sutra: देखो सूत्र २७० | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१० | Hindi | 272 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] पंचवासपरियायस्स समणस्स निग्गंथस्स कप्पइ दसाकप्पववहारे उद्दिसित्तए। Translated Sutra: देखो सूत्र २७० | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१० | Hindi | 273 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अट्ठवासपरियायस्स समणस्स निग्गंथस्स कप्पइ ठाण-समवाए नामं अंगे उद्दिसित्तए। Translated Sutra: देखो सूत्र २७० | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१० | Hindi | 274 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] दसवासपरियायस्स समणस्स निग्गंथस्स कप्पइ वियाहे नाम अंगे उद्दिसित्तए। Translated Sutra: देखो सूत्र २७० | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१० | Hindi | 275 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एक्कारसवासपरियायस्स समणस्स निग्गंथस्स कप्पइ खुड्डिया विमानपविभत्ती महल्लिया विमानपविभत्ती अंगचूलिया वग्गचूलिया वियाहचूलिया नामं अज्झयणे उद्दिसित्तए। Translated Sutra: देखो सूत्र २७० | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१० | Hindi | 276 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] बारसवासपरियायस्स समणस्स निग्गंथस्स कप्पइ अरुणोववाए वरुणोववाए गरुलोववाए धरणोववाए वेसमणोववाए वेलंधरोववाए नामं अज्झयणे उद्दिसित्तए। Translated Sutra: देखो सूत्र २७० | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१० | Hindi | 277 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेरसवासपरियायस्स समणस्स निग्गंथस्स कप्पइ उट्ठाणसुए समुट्ठाणसुए देविंदोववाए नागपरियावणिए नामं अज्झयणे उद्दिसित्तए। Translated Sutra: देखो सूत्र २७० | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१० | Hindi | 278 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] चोद्दसवासपरियायस्स समणस्स निग्गंथस्स कप्पइ सुविणभावनानामं अज्झयणं उद्दिसित्तए। Translated Sutra: देखो सूत्र २७० | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१० | Hindi | 279 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] पण्णरसवासपरियायस्स समणस्स निग्गंथस्स कप्पइ चारणभावनानामं अज्झयणं उद्दिसित्तए। Translated Sutra: देखो सूत्र २७० | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१० | Hindi | 280 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सोलसवासपरियायस्स समणस्स निग्गंथस्स कप्पइ तेयनिसग्गं नामं अज्झयणं उद्दिसित्तए। Translated Sutra: देखो सूत्र २७० | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१० | Hindi | 281 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सत्तरसवासपरियायस्स समणस्स निग्गंथस्स कप्पइ आसीविसभावनानामं अज्झयणं उद्दिसित्तए। Translated Sutra: देखो सूत्र २७० | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१० | Hindi | 282 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अट्ठारसवासपरियायस्स समणस्स निग्गंथस्स कप्पइ दिट्ठीविसभावनानामं अज्झयणे उद्दिसित्तए। Translated Sutra: देखो सूत्र २७० | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१० | Hindi | 283 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एगूणवीसवासपरियायस्स समणस्स निग्गंथस्स कप्पइ दिट्ठिवायनामं अंगं उद्दिसित्तए। Translated Sutra: देखो सूत्र २७० | |||||||||
Vyavaharsutra | વ્યવહારસૂત્ર | Ardha-Magadhi | उद्देशक-४ | Gujarati | 113 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] बहवे साहम्मिया इच्छेज्जा एगयओ अभिनिचारियं चारए। नो ण्हं कप्पइ थेरे अनापुच्छित्ता एगयओ अभिनिचारियं चारए, कप्पइ ण्हं थेरे आपुच्छित्ता एगयओ अभिनिचारियं चारए।
थेरा य से वियरेज्जा एव ण्हं कप्पइ एगयओ अभिनिचारियं चारए, थेरा य से नो वियरेज्जा एव ण्हं नो कप्पइ एगयओ अभिनिचारियं चारए। जं तत्थ थेरेहिं अविइण्णे अभिनिचारियं चरंति से संतरा छेए वा परिहारे वा। Translated Sutra: ઘણા સાધર્મિક સાધુ એક સાથે ‘અભિનિચારિકા’(અર્થાત વિશિષ્ટ કારણથી અલ્પ સમય માટે સાથે મળીને વિચારવું તે). કરવા ઇચ્છે તો સ્થવિર સાધુને પૂછ્યા વિના તેમ કરવું ન કલ્પે. પરંતુ સ્થવિર સાધુને પૂછીને તેમ કરવું કલ્પે. જો સ્થવિર સાધુ આજ્ઞા આપે તો તેમને ‘અભિનિચારિકા’ કરવી કલ્પે. જો સ્થવિર આજ્ઞા ન આપે તો ન કલ્પે. જો સ્થવિરોની | |||||||||
Vyavaharsutra | વ્યવહારસૂત્ર | Ardha-Magadhi | उद्देशक-४ | Gujarati | 114 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] चरियापविट्ठे भिक्खू जाव चउरायाओ पंचरायाओ थेरे पासेज्जा, सच्चेव आलोयणा सच्चेव पडिक्कमणा सच्चेव ओग्गहस्स पुव्वाणुण्णवणा चिट्ठइ अहालंदमवि ओग्गहे। Translated Sutra: ચર્યામાં પ્રવિષ્ટ સાધુ જો ચાર – પાંચ રાત્રિની અવધિમાં સ્થવિરોને જુએ તો તે સાધુઓને તે જ આલોચના તે જ પ્રતિકમલ અને કલ્પ પર્યન્ત રહેવાને માટે તે અવગ્રહની જ પૂર્વાનુજ્ઞા રહેતી હોય છે. | |||||||||
Vyavaharsutra | વ્યવહારસૂત્ર | Ardha-Magadhi | उद्देशक-४ | Gujarati | 115 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] चरियापविट्ठे भिक्खू परं चउरायाओ पंचरायाओ थेरे पासेज्जा पुणो आलोएज्जा पुणो पडिक्क-मेज्जा पुणो छेय-परिहारस्स उवट्ठाएज्जा।
भिक्खुभावस्स अट्ठाए दोच्चं पि ओग्गहे अनुण्णवेयव्वे सिया–अनुजाणह भंते! मिओग्गहं अहालंदं धुवं नितियं वेउट्ठियं, तओ पच्छा कायसंफासं। Translated Sutra: ચર્યામાં પ્રવિષ્ટ સાધુ જો ચાર – પાંચ રાત્રિ પછી સ્થવિરોને મળે તો તે પુનઃ આલોચના પ્રતિક્રમણ કરે અને આવશ્યક છેદ કે તપરૂપ પ્રાયશ્ચિત્તમાં ઉપસ્થિત થાય. ભિક્ષુભાવને માટે તેને બીજી વખત અવગ્રહની અનુમતિ લેવી જોઈએ. તે આ પ્રકારે પ્રાર્થના કરે કે, ‘હે ભદંત; મિતાવગ્રહમાં વિચરવાને માટે કલ્પ અનુસાર કરવાને માટે ધ્રુવ | |||||||||
Vyavaharsutra | વ્યવહારસૂત્ર | Ardha-Magadhi | उद्देशक-४ | Gujarati | 116 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] चरियानियट्टे भिक्खू जाव चउरायाओ पंचरायाओ थेरे पासेज्जा, सच्चेव आलोयणा सच्चेव पडिक्कमणा सच्चेव ओग्गहस्स पुव्वाणुण्णवणा चिट्ठइ अहालंदमवि ओग्गहे। Translated Sutra: ચર્યાથી નિવૃત્ત કોઈ સાધુ જો ચાર – પાંચ રાત્રિની અવધિમાં સ્થવિરોને મળે તો તેમને તે જ આલોચના, તે પ્રતિક્રમણ અને કલ્પ પર્યન્ત રહેવાને માટે તે અવગ્રહની પૂર્વાનુજ્ઞા રહે છે. | |||||||||
Vyavaharsutra | વ્યવહારસૂત્ર | Ardha-Magadhi | उद्देशक-४ | Gujarati | 117 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] चरियानियट्टे भिक्खू परं चउरायाओ पंचरायाओ थेरे पासेज्जा, पुणो आलोएज्जा पुणो पडिक्कमेज्जा पुणो छेय-परि-हारस्स उवट्ठाएज्जा।
भिक्खुभावस्स अट्ठाए दोच्चं पि ओग्गहे अण्णुन्नवेयव्वे सिया–अनुजाणह भंते! मिओग्गहं अहालंदं धुवं नितियं वेउट्टियं, तओ पच्छा कायसंफासं। Translated Sutra: ચર્યાથી નિવૃત્ત સાધુ જો ચાર – પાંચ રાત્રિ પછી સ્થવિરોને મળે તો તે પુનઃ આલોચના પ્રતિક્રમણ કરે. આવશ્યક છેદ કે તપરૂપ પ્રાયશ્ચિત્તમાં ઉપસ્થિત થાય. ભિક્ષુભાવને માટે તેણે બીજીવાર અવગ્રહની અનુમતિ લેવી જોઈએ. તે આ પ્રમાણે પ્રાર્થના કરે કે, ‘મને મિતાવ – ગ્રહની યથાલંદકલ્પની ધ્રુવ, નિત્ય, ક્રિયા કરવાની અને ફરી આવવાની | |||||||||
Vyavaharsutra | વ્યવહારસૂત્ર | Ardha-Magadhi | उद्देशक-४ | Gujarati | 118 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] दो साहम्मिया एगयओ विहरंति, तं जहा–सेहे य राइणिए य। तत्थ सेहतराए पलिच्छन्ने, राइणिए अपलिच्छन्ने। सेहतराएणं राइणिए उवसंपज्जियव्वे, भिक्खोववायं च दलयइ कप्पागं। Translated Sutra: બે સાધર્મિક સાધુ એક સાથે વિચરતા હોય જેમ કે અલ્પ દીક્ષા પર્યાયવાળા અને અધિક દીક્ષા પર્યાય વાળા તેમાં જો અલ્પ દીક્ષાપર્યાયી શ્રુત સંપન્ન અને શિષ્ય સંપન્ન હોય અને અધિક દીક્ષા પર્યાયી શ્રુત સંપન્ન તથા શિષ્ય સંપન્ન ન હોય તો પણ અલ્પદીક્ષા પર્યાતીએ અધિક દીક્ષા પર્યાયીની વિનય – વૈયાવચ્ચ કરવી, આહાર લાવીને આપવો, | |||||||||
Vyavaharsutra | વ્યવહારસૂત્ર | Ardha-Magadhi | उद्देशक-४ | Gujarati | 119 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] दो साहम्मिया एगयओ विहरंति, तं जहा–सेहे य राइणिए य। तत्थ राइणिए पलिच्छन्ने, सेहतराए अपलिच्छन्ने। इच्छा राइणिए सेहतरागं उवसंपज्जइ इच्छा नो उवसंपज्जइ, इच्छा भिक्खोववायं दलयइ कप्पागं इच्छा नो दलयइ कप्पागं। Translated Sutra: બે સાધર્મિક સાધુ સાથે વિચરતા હોય જેમ કે અલ્પદીક્ષા પર્યાયી, અધિક દીક્ષાપર્યાયી જો અધિક પર્યાયી શ્રુત અને શિષ્યોથી સંપન્ન હોય, અલ્પદીક્ષા પર્યાયી તેમ ન હોય. તો અધિક દીક્ષાપર્યાયી તેમ ન હોય. તો અધિક દીક્ષા પર્યાયવાળા ઇચ્છે તો અલ્પ દીક્ષાપર્યાયીની વૈયાવચ્ચ કરે ઇચ્છા ન હોય તો ન કરે. એ પ્રમાણે આહાર દાનાદિમાં | |||||||||
Vyavaharsutra | વ્યવહારસૂત્ર | Ardha-Magadhi | उद्देशक-४ | Gujarati | 120 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] दो भिक्खुणो एगयओ विहरंति, नो ण्हं कप्पइ अन्नमन्नमणुवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए। कप्पइ ण्हं अहाराइणियाए अन्नमन्नं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए। Translated Sutra: એક સાથે વિચરતા બે સાધુ હોય તો તેઓને પરસ્પર એકબીજાને સમાન સ્વીકારી સાથે વિચરવું ન કલ્પે. પરંતુ તે બંનેમાં જે રત્નાધિક હોય તે સાધુને પોત – પોતાના અગ્રણી રૂપે સ્વીકારીને સાથે વિચરવું કલ્પે છે. | |||||||||
Vyavaharsutra | વ્યવહારસૂત્ર | Ardha-Magadhi | उद्देशक-४ | Gujarati | 121 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] दो गणावच्छेइया एगयओ विहरंति, नो ण्हं कप्पइ अन्नमन्नमणुवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए। कप्पइ ण्हं अहाराइणियाए अन्नमन्नं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए। Translated Sutra: એક સાથે વિચરતા બે ગણાવચ્છેદક હોય તો તેઓને પરસ્પર એકબીજાને સમાન સ્વીકારી સાથે વિચરવું ન કલ્પે. પરંતુ તે બંનેમાં જે રત્નાધિક હોય તે ગણાવચ્છેદકને પોત – પોતાના અગ્રણી રૂપે સ્વીકારીને સાથે વિચરવું કલ્પે છે. | |||||||||
Vyavaharsutra | વ્યવહારસૂત્ર | Ardha-Magadhi | उद्देशक-४ | Gujarati | 122 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] दो आयरिय-उवज्झाया एगयओ विहरंति, नो ण्हं कप्पइ अन्नमन्नमणुवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए। कप्पइ ण्हं अहा राइणियाए अन्नमन्नं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए। Translated Sutra: એક સાથે વિચરતા બે આચાર્ય કે ઉપાધ્યાય હોય. તો તેઓને પરસ્પર એકબીજાને સમાન સ્વીકારી સાથે વિચરવું ન કલ્પે. પરંતુ તે બંનેમાં જે રત્નાધિક હોય તે આચાર્ય – ઉપાધ્યાયને પોત – પોતાના અગ્રણી રૂપે સ્વીકારીને સાથે વિચરવું કલ્પે છે. | |||||||||
Vyavaharsutra | વ્યવહારસૂત્ર | Ardha-Magadhi | उद्देशक-७ | Gujarati | 173 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा विइगिट्ठे काले सज्झायं उदिसित्तए करेत्तए। Translated Sutra: સાધુને વ્યતિકૃષ્ટ કાળમાં ઉત્કાલિક આગમના સ્વાધ્યાયકાળમાં કાલિક આગમનો સ્વાધ્યાય ન કલ્પે. | |||||||||
Vyavaharsutra | વ્યવહારસૂત્ર | Ardha-Magadhi | उद्देशक-७ | Gujarati | 174 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कप्पइ निग्गंथीणं विइगिट्ठे काले सज्झायं करेत्तए निग्गंथनिस्साए। Translated Sutra: સાધુની નિશ્રામાં સાધ્વીને વ્યતિકૃષ્ટ કાળમાં પણ સ્વાધ્યાય કરવો કલ્પે. | |||||||||
Vyavaharsutra | વ્યવહારસૂત્ર | Ardha-Magadhi | उद्देशक-७ | Gujarati | 175 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा असज्झाइए सज्झायं करेत्तए। Translated Sutra: સાધુ અને સાધ્વીને અસ્વાધ્યાય કાળમાં સ્વાધ્યાય કરવો કલ્પતો નથી. | |||||||||
Vyavaharsutra | વ્યવહારસૂત્ર | Ardha-Magadhi | उद्देशक-७ | Gujarati | 176 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा सज्झाइए सज्झायं करेत्तए। Translated Sutra: સાધુ અને સાધ્વીને સ્વાધ્યાય કાળમાં સ્વાધ્યાય કરવાનું કલ્પે છે (સ્વાધ્યાય કાળ અન્યત્રથી જાણવો).. | |||||||||
Vyavaharsutra | વ્યવહારસૂત્ર | Ardha-Magadhi | उद्देशक-७ | Gujarati | 177 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा अप्पणो असज्झाइए सज्झायं करेत्तए। कप्पइ ण्हं अन्नमन्नस्स वायणं दलइत्तए। Translated Sutra: સાધુ અને સાધ્વીને સ્વશરીર સંબંધી અસ્વાધ્યાય હોય તો સ્વાધ્યાય કરવો ન કલ્પે. પરંતુ પરસ્પર એકબીજાને વાચના આપવી કલ્પે છે. | |||||||||
Vyavaharsutra | વ્યવહારસૂત્ર | Ardha-Magadhi | उद्देशक-७ | Gujarati | 178 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तिवासपरियायस्स समणस्स निग्गंथस्स तीसवासपरियायाए समणीए निग्गंथीए कप्पइ उवज्झायत्ताए उद्दिसित्तए। Translated Sutra: ત્રીશ વર્ષના શ્રમણપર્યાય વાળા સાધ્વીને, ઉપાધ્યાયના રૂપમાં ત્રણ વર્ષના શ્રમણપર્યાયવાળા સાધુને સ્વીકારવા કલ્પે. | |||||||||
Vyavaharsutra | વ્યવહારસૂત્ર | Ardha-Magadhi | उद्देशक-७ | Gujarati | 179 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] पंचवासपरियायस्स समणस्स निग्गंथस्स सट्ठिवासपरियायाए समणीए निग्गंथीए कप्पइ आयरियत्ताए उद्दिसित्तए। Translated Sutra: સાંઈઠ વર્ષના શ્રમણપર્યાય વાળા સાધ્વીને, આચાર્ય અથવા ઉપાધ્યાય રૂપે પાંચ વર્ષના શ્રમણપર્યાય વાળા સાધુનો સ્વીકાર કરવો કલ્પે છે. | |||||||||
Vyavaharsutra | વ્યવહારસૂત્ર | Ardha-Magadhi | उद्देशक-७ | Gujarati | 180 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] गामानुगामं दूइज्जमाणे भिक्खू य आहच्च वीसंभेज्जा तं च सरीरगं केइ साहम्मिया पासेज्जा, कप्पइ से तं सरीरगं मा सागारियमिति कट्टु थंडिले बहुफासुए पडिलेहित्ता पमज्जित्ता परिट्ठवेत्तए।
अत्थियाइं त्थ केइ साहम्मियसंतिए उवग-रणजाए परिहरणारिहे, कप्पइ से सागारकडं गहाय दोच्चं पि ओग्गहं अनुन्नवेत्ता परिहारं परिहरेत्तए। Translated Sutra: ગ્રામાનુગ્રામ વિહાર કરતા સાધુ જો અકસ્માત માર્ગમાં મૃત્યુને પ્રાપ્ત થઈ જાય અને તેના શરીરને કોઈ સાધુ જુએ અને એમ જાણે કે અહીં કોઈ ગૃહસ્થ નથી તો. ... તે મૃત સાધુના શરીરને એકાંત નિર્જીવ ભૂમિમાં પ્રતિલેખન અને પ્રમાર્જના કરીને પરઠવવાનું કલ્પે છે – જો તે મૃત શ્રમણના કોઈ ઉપકરણ ઉપયોગમાં લેવા યોગ્ય હોય તો તેને સાગારકૃત | |||||||||
Vyavaharsutra | વ્યવહારસૂત્ર | Ardha-Magadhi | उद्देशक-७ | Gujarati | 182 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सागारिए उवस्सयं विक्किणेज्जा, से य कइयं वएज्जा–इमम्मि य इमम्मि य ओवासे समणा निग्गंथा परिवसंति, से सागारिए पारिहारिए। से य नो वएज्जा, कइए वएज्जा–
इमम्मि य इमम्मि य ओवासे समणा निग्गंथा परिवसंतु से सागारिए, पारिहारिए। दो वि ते वएज्जा, दो वि सागारिया पारिहारिया। Translated Sutra: શય્યાતર જો ઉપાશ્રય વેચે અને ખરીદનારને એમ કહે કે ‘આટલા – આટલા સ્થાનમાં શ્રમણ નિર્ગ્રન્થ રહે છે’ તો તે શય્યાતર પરિહાર્ય છે. વેચનાર ન કહે અને ખરીદનાર કહે તો તે શય્યાતર છે. વેચનાર – ખરીદનાર બંને કહે તો બંને શય્યાતર છે. | |||||||||
Vyavaharsutra | વ્યવહારસૂત્ર | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१ | Gujarati | 1 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू मासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अपलिउंचियं आलोएमाणस्स मासियं, पलिउंचियं आलोएमाणस्स दोमासियं। Translated Sutra: વર્ણન સંદર્ભ: આ વ્યવહાર છેદસૂત્રમાં દશ ઉદ્દેશાઓ છે. દશે ઉદ્દેશા મળીને કુલ ૨૮૫ સૂત્રો નોંધાયેલા છે. વ્યવહાર સૂત્રનું ભાષ્ય હાલ ઉપલબ્ધ છે. તેના ઉપર પૂજ્ય મલયગિરિજીની ટીકા રચાયેલી છે. જે બંને અમારા ‘આગમ – સુત્તાણી સટીકં’માં છપાયેલા છે. અમારી ઇચ્છા સંપૂર્ણ અનુવાદની હોવા છતાં, વડીલોમાં સટીક – અનુવાદ પ્રગટ કરવા | |||||||||
Vyavaharsutra | વ્યવહારસૂત્ર | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१ | Gujarati | 6 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू बहुसोवि मासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अपलिउंचियं आलोएमाणस्स मासियं, पलिउंचियं आलोएमाणस्स दोमासियं। Translated Sutra: જે સાધુ અનેક વખત માસિક પરિહાર સ્થાનની પ્રતિસેવના કરીને આલોચના કરે તો તેને માયારહિત આલોચના કરે તો એક માસનું પ્રાયશ્ચિત્ત આવે, માયાસહિત આલોચના બે માસનું પ્રાયશ્ચિત્ત. | |||||||||
Vyavaharsutra | વ્યવહારસૂત્ર | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१ | Gujarati | 7 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू बहुसोवि दोमासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अपलिउंचियं आलोएमाणस्स दोमासियं, पलिउंचियं आलोएमाणस्स तेमासियं। Translated Sutra: જે સાધુ અનેક વાર બેમાસી પરિહાર સ્થાનની પ્રતિસેવના કરીને આલોચના કરે તો તેને માયારહિત આલોચના કરતા બેમાસી પ્રાયશ્ચિત્ત આવે, માયાસહિત કરતા ત્રિમાસી પ્રાયશ્ચિત્ત આવે. | |||||||||
Vyavaharsutra | વ્યવહારસૂત્ર | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१ | Gujarati | 11 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू मासियं वा दोमासियं वा तेमासियं वा चाउम्मासियं वा पंचमासियं वा एएसिं परिहारट्ठाणाणं अन्नयरं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अपलिउंचियं आलोएमाणस्स मासियं वा दोमासियं वा तेमासियं वा चाउम्मासियं वा पंचमासियं वा, पलिउंचियं आलोएमाणस्स दोमासियं वा तेमासियं वा चाउम्मासियं वा पंचमासियं वा छम्मासियं वा।
तेण परं पलिउंचिए वा अपलिउंचिए वा ते चेव छम्मासा। Translated Sutra: જે સાધુ માસિક યાવત્ પંચમાસિક પરિહાર સ્થાનોમાંથી કોઈ પરિહાર સ્થાનની એકવાર પ્રતિસેવના કરીને આલોચના કરે તો – તેને માયારહિત આલોચના કરે તો એ સેવિત પરિહાર સ્થાન મુજબ માસિક યાવત્ પંચમાસિક પ્રાયશ્ચિત્ત આવે અને માયાસહિત આલોચના કરવાથી આસેવિત પરિહાર સ્થાન અનુસાર બેમાસી યાવત્ છમાસી પ્રાયશ્ચિત્ત આવે છે. તેનાથી | |||||||||
Vyavaharsutra | વ્યવહારસૂત્ર | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१ | Gujarati | 12 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू बहुसोवि मासियं वा बहुसोवि दोमासियं वा बहुसोवि तेमासियं वा बहुसोवि चाउम्मासियं वा बहुसोवि पंचमासियं वा एएसिं परिहारट्ठाणाणं अन्नयरं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अपलिउंचियं आलोएमाणस्स मासियं वा दोमासियं वा तेमासियं वा चाउम्मासियं वा पंचमासियं वा पलिउंचियं आलोएमाणस्स दोमासियं वा तेमासियं वा चाउम्मासियं वा पंचमासियं वा छम्मासियं वा।
तेण परं पलिउंचिए वा अपलिउंचिए वा ते चेव छम्मासा। Translated Sutra: જે સાધુ માસિક યાવત્ પંચમાસિક આ પરિહાર સ્થાનમાંથી કોઈ એક પરિહાર સ્થાનની અનેકવાર પ્રતિ – સેવના કરીને આલોચના કરે તો તેને માયારહિત આલોચના કરે તો એ સેવિત પરિહાર સ્થાન મુજબ માસિક યાવત્ પંચમાસિક પ્રાયશ્ચિત્ત આવે અને માયાસહિત આલોચના કરવાથી આસેવિત પરિહાર સ્થાન અનુસાર બેમાસી યાવત્ છમાસી પ્રાયશ્ચિત્ત આવે છે. તેનાથી |