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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१ | Hindi | 8 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू बहुसोवि तेमासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अपलिउंचियं आलोएमाणस्स तेमासियं, पलिउंचियं आलोएमाणस्स चाउम्मासियं। Translated Sutra: देखो सूत्र ६ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१ | Hindi | 9 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अपलिउंचियं आलोएमाणस्स चाउम्मासियं पलिउंचियं आलोएमाणस्स पंचमासियं। Translated Sutra: देखो सूत्र ६ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१ | Hindi | 10 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू बहुसोवि पंचमासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अपलिउंचियं आलोएमाणस्स पंचमासियं, पलिउंचियं आलोएमाणस्स छम्मासियं।
तेण परं पलिउंचिए वा अपलिउंचिए वा ते चेव छम्मासा। Translated Sutra: देखो सूत्र ६ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१ | Hindi | 11 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू मासियं वा दोमासियं वा तेमासियं वा चाउम्मासियं वा पंचमासियं वा एएसिं परिहारट्ठाणाणं अन्नयरं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अपलिउंचियं आलोएमाणस्स मासियं वा दोमासियं वा तेमासियं वा चाउम्मासियं वा पंचमासियं वा, पलिउंचियं आलोएमाणस्स दोमासियं वा तेमासियं वा चाउम्मासियं वा पंचमासियं वा छम्मासियं वा।
तेण परं पलिउंचिए वा अपलिउंचिए वा ते चेव छम्मासा। Translated Sutra: जो साधु – साध्वी एक बार दोष सेवन करके या ज्यादा बार दोष सेवन करके एक, दो, तीन, चार या पाँच मास का उतने पूर्वोक्त प्रायश्चित्त स्थानक में से अन्य किसी भी प्रायश्चित्त स्थान सेवन करके यदि माया रहित आलोचना करे तो उसे उतने ही मास का प्रायश्चित्त आता है और मायापूर्वक आलोचना करे तो एक मास अधीक यानि दो, तीन, चार, पाँच, | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१ | Hindi | 12 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू बहुसोवि मासियं वा बहुसोवि दोमासियं वा बहुसोवि तेमासियं वा बहुसोवि चाउम्मासियं वा बहुसोवि पंचमासियं वा एएसिं परिहारट्ठाणाणं अन्नयरं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अपलिउंचियं आलोएमाणस्स मासियं वा दोमासियं वा तेमासियं वा चाउम्मासियं वा पंचमासियं वा पलिउंचियं आलोएमाणस्स दोमासियं वा तेमासियं वा चाउम्मासियं वा पंचमासियं वा छम्मासियं वा।
तेण परं पलिउंचिए वा अपलिउंचिए वा ते चेव छम्मासा। Translated Sutra: देखो सूत्र ११ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१ | Hindi | 13 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू चाउम्मासियं वा साइरेगचाउम्मासियं व पंचमासियं वा साइरेगपंचमासियं वा एएसिं परिहारट्ठाणाणं अन्नयरं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अपलिउंचियं आलोएमाणस्स चाउम्मासियं वा साइरेगचाउम्मासियं वा पंचमासियं वा साइरेगपंचमासियं वा, पलिउंचियं आलोए-माणस्स पंचमासियं वा साइरेगपंचमासियं वा छम्मासियं वा।
तेण परं पलिउंचिए वा अपलिउंचिए वा ते चेव छम्मासा। Translated Sutra: जो साधु – साध्वी एक बार या बार – बार चार मास का या उससे ज्यादा, पाँच मास का या उससे ज्यादा पहले कहने के मुताबिक प्रायश्चित्त स्थानक में से किसी भी प्रायश्चित्त स्थानक का सेवन करके माया रहित आलोचना करे तो उतना ही प्रायश्चित्त आता है लेकिन मायापूर्वक आलोचना करे तो क्रमिक पाँच मास उससे कुछ ज्यादा और छ मास का प्रायश्चित्त | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१ | Hindi | 14 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू बहुसोवि चाउम्मासियं वा बहुसोवि साइरेगचाउम्मासियं वा बहुसोवि पंचमासियं वा बहुसोवि साइरेगपंचमासियं वा एएसिं परिहारट्ठाणाणं अन्नयरं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अपलिउंचियं आलोएमाणस्स चाउम्मासियं वा साइरेगचाउम्मासियं वा पंचमासियं वा साइरेग-पंचमासियं वा, पलिउंचियं आलोएमाणस्स पंचमासियं वा साइरेगपंचमासियं वा छम्मासियं वा।
तेण परं पलिउंचिए वा अपलिउंचिए वा ते चेव छम्मासा। Translated Sutra: देखो सूत्र १३ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१ | Hindi | 15 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू चाउम्मासियं वा साइरेगचाउम्मासियं वा पंचमासियं वा साइरेगपंचमासियं वा एएसिं परिहारट्ठाणाणं अन्नयरं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अपलिउंचियं आलोएमाणे ठवणिज्जं ठवइत्ता करणिज्जं वेयावडियं। ठविए वि पडिसेवित्ता से वि कसिणे तत्थेव आरुहेयव्वे सिया।
पुव्विं पडिसेवियं पुव्विं आलोइयं, पुव्विं पडिसेवियं पच्छा आलोइयं। पच्छा पडिसेवियं पुव्विं आलोइयं, पच्छा पडिसेवियं पच्छा आलोइयं, अपलिउंचिए अपलिउंचियं, अपलिउंचिए पलिउंचियं। पलिउंचिए अपलिउंचियं, पलिउंचिए पलिउंचियं।
अपलिउंचिए अपलिउंचियं आलोएमाणस्स सव्वमेयं सकयं साहणिय जे एयाए पट्ठवणाए पट्ठविए Translated Sutra: जो साधु – साध्वी एक बार या बार – बार चार मास का, साधिक चार मास का, पाँच मास का प्रायश्चित्त स्थानक में से अनोखा (दूसरा किसी भी) पाप स्थानक सेवन करके आलोचना करते हुए माया रहित या मायापूर्वक आलोचते हुए सकल संघ के सन्मुख परिहार तप की स्थापना करे, स्थापना करके उसकी वैयावच्च करवाए। यदि सम्पूर्ण प्रायश्चित्त लगाए तो | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१ | Hindi | 16 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू बहुसोवि चाउम्मासियं वा बहुसोवि साइरेगचाउम्मासियं वा बहुसोवि पंचमासियं वा बहुसोवि साइरेगपंचमासियं वा एएसिं परिहारट्ठाणाणं अन्नयरं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अपलिउंचियं आलोएमाणे ठवणिज्जं ठवइत्ता करणिज्जं वेयावडियं। ठविए वि पडिसेवित्ता से वि कसिणे तत्थेव आरुहेयव्वे सिया।
पुव्विं पडिसेवियं पुव्विं आलोइयं, पुव्विं पडिसेवियं पच्छा आलोइयं। पच्छा पडिसेवियं पुव्विं आलोइयं, पच्छा पडिसेवियं पच्छा आलोइयं। अपलिउंचिए अपलिउंचियं, अपलिउंचिए पलिउंचियं। पलिउंचिए अपलिउंचियं, पलिउंचिए पलिउंचियं।
अपलिउंचिए अपलिउंचियं आलोएमाणस्स सव्वमेयं Translated Sutra: देखो सूत्र १५ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१ | Hindi | 17 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू चाउम्मासियं वा साइरेगचाउम्मासियं वा पंचमासियं वा साइरेगपंचमासियं वा एएसिं परिहारट्ठाणाणं अन्नयरं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, पलिउंचियं आलोएमाणे ठवणिज्जं ठवइत्ता करणिज्जं वेयावडियं। ठविए वि पडिसेवित्ता, से वि कसिणे तत्थेव आरुहेयव्वे सिया।
पुव्विं पडिसेवियं पुव्विं आलोइयं, पुव्विं पडिसेवियं पच्छा आलोइयं। पच्छा पडिसेवियं पुव्विं आलोइयं, पच्छा पडिसेवियं, पच्छा आलोइयं। अपलिउंचिए अपलिउंचियं, अपलिउंचिए पलिउंचियं। पलिउंचिए अपलिउंचियं, पलिउंचिए पलिउंचियं।
पलिउंचिए पलिउंचियं आलोएमाणस्स सव्वमेयं सकयं साहणिय जे एयाए पट्ठवणाए पट्ठविए Translated Sutra: देखो सूत्र १५ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१ | Hindi | 18 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू बहुसोवि चाउम्मासियं वा बहुसोवि साइरेगचाउम्मासियं वा बहुसोवि पंचमासियं वा बहुसोवि साइरेगपंचमासियं वा एएसिं परिहारट्ठाणाणं अन्नयरं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, पलिउंचियं आलोएमाणे ठवणिज्जं ठवइत्ता करणिज्जं वेयावडियं। ठविए वि पडिसेवित्ता से वि कसिणे तत्थेव आरुहेयव्वे सिया।
पुव्विं पडिसेवियं पुव्विं आलोइयं, पुव्विं पडिसेवियं पच्छा आलोइयं। पच्छा पडिसेवियं पुव्विं आलोइयं, पच्छा पडिसेवियं पच्छा आलोइयं। अपलिउंचिए अपलिउंचियं, अपलिउंचिए पलिउंचियं। पलिउंचिए अपलिउंचियं, पलिउंचिए पलिउंचियं।
पलिउंचिए पलिउंचियं आलोएमाणस्स सव्वमेयं सकयं Translated Sutra: देखो सूत्र १५ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१ | Hindi | 19 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] बहवे पारिहारिया बहवे अपारिहारिया इच्छेज्जा एगयओ अभिनिसेज्जं वा अभिनिसीहियं वा चेएत्तए। नो से कप्पइ थेरे अनापुच्छित्ता एगयओ अभिनिसेज्जं वा अभिनिसीहियं वा चेएत्तए,
कप्पइ ण्हं थेरे आपुच्छित्ता एगयओ अभिनिसेज्जं वा अभिनिसीहियं वा चेएत्तए।
थेरा य ण्हं से नो वियरेज्जा एव ण्हं कप्पइ एगयओ अभिनिसेज्जं वा अभिनिसीहियं वा चेएत्तए।
थेरा य ण्हं से नो वियरेज्जा एव ण्हं नो कप्पइ एगयओ अभिनिसेज्जं वा अभिनिसीहियं वा चेएत्तए,
जो णं थेरेहिं अविइण्णे अभिनिसेज्जं वा अभिनिसीहियं वा चेएइ, से संतरा छेए वा परिहारे वा। Translated Sutra: बहुत प्रायश्चित्त वाले – बहुत प्रायश्चित्त न आए हो ऐसे साधु इकट्ठे रहना या बैठना चाहे, चिन्तवन करे लेकिन स्थविर साधु को पूछे बिना न कल्पे। स्थविर को पूछकर ही कल्पे। यदि स्थविर आज्ञा दे कि तुम इकट्ठे विचरो तो इकट्ठे रहना या बैठना कल्पे, यदि स्थविर इकट्ठे विचरने की अनुमति न दे तो वैसा करना न कल्पे, यदि स्थविर | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१ | Hindi | 20 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] परिहारकप्पट्ठिए भिक्खू बहिया थेराणं वेयावडियाए गच्छेज्जा। थेरा य से सरेज्जा, कप्पइ से एगराइयाए पडिमाए जण्णं-जण्णं दिसं अन्ने साहम्मिया विहरंति तण्णं-तण्णं दिसं उवलित्तए। नो से कप्पइ तत्थ विहारवत्तियं वत्थए, कप्पति से तत्थ कारणवत्तियं वत्थए।
तंसि च णं कारणंसि निट्ठियंसि परो वएज्जा–वसाहि अज्जो! एगरायं वा दुरायं वा। एवं से कप्पति एगरायं वा दुरायं वा वत्थए, नो से कप्पति परं एगरायाओ वा दुरायाओ वा वत्थए।
जं तत्थ परं एगरायाओ वा दुरायाओ वा वासइ, से संतरा छेए वा परिहारे वा। Translated Sutra: परिहार तप में रहे साधु बाहर स्थविर की वैयावच्च के लिए जाए तब स्थविर उस साधु को परिहार तप याद करवाए, याद न दिलाए या याद हो लेकिन जाते वक्त याद करवाना रह जाए तो साधु को एक रात का अभिग्रह करके रहना कल्पे और फिर जिस दिशा में दूसरे साधर्मिक साधु साध्वी विचरते हो उस दिशा में जाए लेकिन वहाँ विहार आदि निमित्त से रहना न | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१ | Hindi | 21 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] परिहारकप्पट्ठिए भिक्खू बहिया थेराणं वेयावडियाए गच्छेज्जा। थेरा य नो सरेज्जा, कप्पति से निव्विसमाणस्स एगराइयाए पडिमाए जण्णं-जण्णं दिसिं अन्ने साहम्मिया विहरंति तण्णं-तण्णं दिसं उवलित्तए।
नो से कप्पति तत्थ विहारवत्तियं वत्थए कप्पति से तत्थ कारणवत्तियं वत्थए। तंसि च णं कारणंसि निट्ठियंसि परो वएज्जा–वसाहि अज्जो! एगरायं वा दुरायं वा। एवं से कप्पइ एगरायं वा दुरायं वा वत्थए, नो से कप्पइ परं एगरायाओ वा दुरायाओ वा वत्थए। जं तत्थ परं एगरायाओ वा दुरायाओ वा वसइ, से संतरा छेए वा परिहारे वा। Translated Sutra: देखो सूत्र २० | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१ | Hindi | 22 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] परिहारकप्पट्ठिए भिक्खू बहिया थेराणं वेयावडियाए गच्छेज्जा, थेरा य से सरेज्ज वा नो वा सरेज्जा, कप्पइ से निव्विसमाणस्स एगराइयाए पडिमाए जण्णं-जण्णं दिसं अन्ने साहम्मिया विहरंति तण्णं-तण्णं दिसं उवलित्तए।
नो से कप्पति तत्थ विहारवत्तियं वत्थए, कप्पइ से तत्थ कारणवत्तियं वत्थए। तंसि च णं कारणं सि निट्ठियंसि परो वएज्जा–वसाहि अज्जो! एगरायं वा दुरायं वा। एवं से कप्पइ एगरायं वा दुरायं वा वत्थए, नो से कप्पइ परं एगरायाओ वा दुरायाओ वा वत्थए।
जं तत्थ परं एगरायाओ वा दुरायाओ वा वसइ, से संतरा छेए वा परिहारे वा। Translated Sutra: देखो सूत्र २० | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१ | Hindi | 23 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] भिक्खू य गणओ अवक्कम्म एगल्लविहारपडिमं उवसंपज्जित्ताणं विहरेज्जा, से य इच्छेज्जा दोच्चं पि तमेव गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, पुणो आलोएज्जा पुणो पडिक्कमेज्जा पुणो छेय-परिहारस्स उवट्ठाएज्जा। Translated Sutra: यदि कोई साधु, गणावच्छेदक, आचार्य या उपाध्याय गण को छोड़कर एकलविहारी प्रतिमा (अभिग्रह विशेष) अंगीकार करके विचरे (बीच में किसी दोष लगाए) फिर से वो ही गण (गच्छ) को अंगीकार करके विचरना चाहे तो उन साधु, गणावच्छेदक, आचार्य या उपाध्याय को फिर से आलोचना करवाए, पड़िकमावे, उसे छेद या परिहार तप प्रायश्चित्त के लिए स्थापना करे। सूत्र | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१ | Hindi | 24 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] गणावच्छेइए य गणाओ अवक्कम्म एगल्लविहारपडिमं उवसंपज्जित्ताणं विहरेज्जा, से य इच्छेज्जा दोच्चं पि तमेव गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, पुणो आलोएज्जा पुणो पडिक्कमेज्जा पुणो छेय-परिहारस्स उवट्ठाएज्जा। Translated Sutra: देखो सूत्र २३ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१ | Hindi | 25 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] आयरिय-उवज्झाए य गणाओ अवक्कम्म एगल्लविहारपडिमं उवसंपज्जित्ताणं विहरेज्जा, से य इच्छेज्जा दोच्चं पि तमेव गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, पुणो आलोएज्जा पुणो पडिक्कमेज्जा पुणो छेयपरिहारस्स उवट्ठाएज्जा। Translated Sutra: देखो सूत्र २३ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१ | Hindi | 26 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] भिक्खू य गणाओ अवक्कम्म पासत्थविहारं विहरेज्जा, से य इच्छेज्जा दोच्चं पि तमेव गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, अत्थियाइं त्थ केइ सेसे, पुणो आलोएज्जा पुणो पडिक्कमेज्जा पुणो छेयपरिहारस्स उवट्ठाएज्जा। Translated Sutra: जो साधु (गच्छ) गण छोड़कर पासत्था रूप से, स्वच्छंद रूप से, कुशील रूप से, आसन्न रूप से, संसक्त रूप से विचरण करे और वो फिर से उसी (गच्छ) गण को अंगीकार करके विचरण करना चाहे तो उसमें थोड़ा भी चारित्र हो तो उसे आलोचना करवाए, पड़िकमाए, छेद या परिहार तप में स्थापना करे। सूत्र – २६–३० | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१ | Hindi | 27 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] भिक्खू य गणाओ अवक्कम्म अहाछंदविहारं विहरेज्जा, से य इच्छेज्जा दोच्चं पि तमेव गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, अत्थियाइं त्थ केइ सेसे, पुणो आलोएज्जा पुणो पडिक्कमेज्जा पुणो छेयपरिहारस्स उवट्ठाएज्जा। Translated Sutra: देखो सूत्र २६ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१ | Hindi | 28 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] भिक्खू य गणाओ अवक्कम्म कुसीलविहारं विहरेज्जा, से य इच्छेज्जा दोच्चं पि तमेव गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, अत्थियाइं त्थ केइ सेसे, पुणो आलोएज्जा पुणो पडिक्कमेज्जा पुणो छेयपरिहारस्स उवट्ठाएज्जा। Translated Sutra: देखो सूत्र २६ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१ | Hindi | 29 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] भिक्खू य गणाओ अवक्कम्म ओसन्नविहारं विहरेज्जा, से य इच्छेज्जा दोच्चं पि तमेव गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए अत्थियाइं त्थ केइ सेसे, पुणो आलोएज्जा पुणो पडिक्कमेज्जा पुणो छेयपरिहारस्स उवट्ठाएज्जा। Translated Sutra: देखो सूत्र २६ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१ | Hindi | 30 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] भिक्खू य गणाओ अवक्कम्म संसत्तविहारं विहरेज्जा, से य इच्छेज्जा दोच्चं पि तमेव गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, अत्थियाइं त्थ केइ सेसे, पुणो आलोएज्जा पुणो पडिक्कमेज्जा पुणो छेयपरिहारस्स उवट्ठाएज्जा। Translated Sutra: देखो सूत्र २६ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१ | Hindi | 31 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] भिक्खू य गणाओ अवक्कम्म परपासंडपडिमं उवसंपज्जित्ताणं विहरेज्जा, से य इच्छेज्जा दोच्चं पि तमेव गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, नत्थि णं तस्स तप्पत्तियं केइ छेए वा परिहारे वा, नन्नत्थ एगाए आलोयणाए। Translated Sutra: जो साधु गण (गच्छ) को छोड़कर (कारणविशेष) पर पाखंड़ी रूप से विचरे फिर उसी गण (गच्छ) को अंगीकार करके विहरना चाहे तो उस साधु को चारित्र छेद या परिहार तप प्रायश्चित्त की कोई प्रत्यक्ष कारण नहीं दिखता, केवल उसे आलोचना देना, लेकिन जो साधु गच्छ छोड़कर गृहस्थ पर्याय धारण करे वो फिर उसी गच्छ में आना चाहे तो उस छेद या परिहार तप | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१ | Hindi | 32 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] भिक्खू य गणाओ अवक्कम्म ओहावेज्जा से य इच्छेज्जा दोच्चं पि तमेव गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, नत्थि णं तस्स केइ तप्पत्तियं छेए वा परिहारे वा, नन्नत्थ एगाए सेहोवट्ठावणियाए। Translated Sutra: देखो सूत्र ३१ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१ | Hindi | 33 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] भिक्खू य अन्नयरं अकिच्चट्ठाणं सेवित्ता इच्छेज्जा आलोएत्तए, जत्थेव अप्पणो आयरिय-उवज्झाए पासेज्जा, तेसंतियं आलोएज्जा पडिक्कमेज्जा निंदेज्जा गरहेज्जा विउट्टेज्जा विसोहेज्जा, अकर-णयाए अब्भुट्ठेज्जा, अहारिहं तवोकम्मं पायच्छित्तं पडिवज्जेज्जा। Translated Sutra: जो साधु अन्य किसी अकृत्य स्थान (न करने लायक स्थान) सेवन करके आलोचना करना चाहे तो जहाँ खुद के आचार्य – उपाध्याय हो वहाँ जाकर उनसे विशुद्धि करवाना कल्पे। फिर से वैसा करने के लिए तत्पर होना और योग्य तप रूप कर्म द्वारा प्रायश्चित्त ग्रहण करना। यदि अपने आचार्य – उपाध्याय पास में न मिले तो जो गुणग्राही गम्भीर साधर्मिक | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१ | Hindi | 34 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नो चेव अप्पणो आयरिय-उवज्झाए पासेज्जा, जत्थेव संभोइयं साहम्मियं पासेज्जा बहुस्सुयं बब्भागमं, तस्संतियं आलोएज्जा जाव पायच्छित्तं पडिवज्जेज्जा।
नो चेव संभोइयं साहम्मियं बहुस्सुयं बब्भागमं पासेज्जा, जत्थेव अन्नसंभोइयं साहम्मियं पासेज्जा बहुस्सुयं बब्भागमं, तस्संतियं आलोएज्जा जाव पायच्छित्तं पडिवज्जेज्जा।
नो चेव अन्नसंभोइयं साहम्मियं बहुस्सुयं बब्भागमं पासेज्जा, जत्थेव सारूवियं पासेज्जा बहुस्सुयं बब्भागमं, तस्संतियं आलोएज्जा जाव पायच्छित्तं पडिवज्जेज्जा।
नो चेव सारूवियं बहुस्सुयं बब्भागमं पासेज्जा, जत्थेव समणोवासगं पच्छाकडं पासेज्जा बहुस्सुयं Translated Sutra: देखो सूत्र ३३ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१ | Hindi | 35 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नो चेव सम्मंभावियाइं चेइयाइं पासेज्जा, बहिया गामस्स वा नगरस्स वा निगमस्स वा रायहाणीए वा खेडस्स वा कब्बडस्स वा मडंबस्स वा पट्टणस्स वा दोणमुहस्स वा आसमस्स वा संवाहस्स वा संनिवेसस्स वा पाईणाभिमुहे वा उदीणाभिमुहे वा करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं वएज्जा–
एवइया मे अवराहा, एवइक्खुत्तो अहं अवरद्धो, अरहंताणं सिद्धाणं अंतिए आलोएज्जा पडिक्कमेज्जा निंदेज्जा गरहेज्जा विउट्टेज्जा विसोहेज्जा, अकरणयाए अब्भुट्ठेज्जा, अहारिहं तवोकम्मं पायच्छित्तं पडिवज्जेज्जासि। Translated Sutra: देखो सूत्र ३३ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-२ | Hindi | 36 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] दो साहम्मिया एगओ विहरंति एगे तत्थ अन्नयरं अकिच्चट्ठाणं पडिसेवेत्ता आलोएज्जा, ठवणिज्जं ठवइत्ता करणिज्जं वेयावडियं। Translated Sutra: एक सामाचारी वाले और साधु के साथ विचरते हो तब उसमें से एक अकृत्य स्थानक को यानि दोष सेवन करे फिर आलोचना करे तब उसे प्रायश्चित्त स्थान में स्थापित करना और दूसरे को वैयावच्च करना, लेकिन यदि दोनों अकृत्य स्थानक का सेवन करे तो एक की वडील की तरह स्थापना करके दूसरे को परिहार तप में रखना, उसका तप पूरा होने पर से वडील | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-२ | Hindi | 37 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] दो साहम्मिया एगओ विहरंति, दो वि ते अन्नयरं अकिच्चट्ठाणं पडिसेवेत्ता आलोएज्जा, एगं तत्थ कप्पागं ठवइत्ता एगे निव्विसेज्जा, अह पच्छा से वि निव्विसेज्जा। Translated Sutra: देखो सूत्र ३६ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-२ | Hindi | 38 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] बहवे साहम्मिया एगओ विहरंति, एगे तत्थ अन्नयरं अकिच्चट्ठाणं पडिसेवेत्ता आलोएज्जा, ठवणिज्जं ठवइत्ता करणिज्जं वेयावडियं। Translated Sutra: एक सामाचारी वाले कईं साधु साथ में विचरते हो और उसमें से एक दोष का सेवन करे, फिर आलोचना करे तो उसे परिहार तप के लिए स्थापित करना और दूसरे उसकी वैयावच्च करे, यदि सभी साधु ने दोष का सेवन किया हो तो एक को वडील रूप में वैयावच्च के लिए स्थापित करे और अन्य परिहार तप करे। वो पूरा होने पर वैयावच्च करनेवाले साधु परिहार तप | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-२ | Hindi | 39 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] बहवे साहम्मिया एगओ विहरंति, सव्वे वि ते अन्नयरं अकिच्चट्ठाणं पडिसेवेत्ता आलोएज्जा, एगं तत्थ कप्पागं ठवइत्ता अवसेसा निव्विसेज्जा, अह पच्छा से वि निव्विसेज्जा। Translated Sutra: देखो सूत्र ३८ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-२ | Hindi | 40 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] परिहारकप्पट्ठिए भिक्खू गिलायमाणे अन्नयरं अकिच्चट्ठाणं पडिसेवेत्ता आलोएज्जा, से य संथरेज्जा ठवणिज्जं ठवइत्ता करणिज्जं वेयावडियं।
से य नो संथरेज्जा अनुपरिहारिएणं करणिज्जं वेयावडियं। से तं अनुपरिहारिएणं कीरमाणं वेयावडियं साइज्जेज्जा, से वि कसिणे तत्थेव आरुहेयव्वे सिया। Translated Sutra: परिहार तप सेवन करके साधु बीमार हो जाए, दूसरे किसी दोष – स्थान का सेवन करके आलोचना करे तब यदि वो परिहार तप कर सके तो उन्हें तप में रखे और दूसरों को उसकी वैयावच्च करना, यदि वो तप वहन कर सके ऐसे न हो तो अनुपरिहारी उसकी वैयावच्च करे, लेकिन यदि वो समर्थ होने के बावजूद अनुपरिहारी से वैयावच्च करवाए तो उसे सम्पूर्ण प्रायश्चित्त | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-२ | Hindi | 41 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] परिहारकप्पट्ठियं भिक्खुं गिलायमाणं नो कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स निज्जूहित्तए।
अगिलाए तस्स करणिज्जं वेयावडियं जाव तओ रोगायंकाओ विप्पमुक्को, तओ पच्छा तस्स अहालहुसए नामं ववहारे पट्ठवियव्वे सिया। Translated Sutra: परिहार कल्पस्थित साधु बीमार हो जाए तब उस को गणावच्छेदक निर्यामणा करना न कल्पे, अग्लान होवे तो उसकी वैयावच्च जब तक वो रोगमुक्त होवे तब तक करनी चाहिए, बाद में उसे ‘यथालघुसक’ नामक व्यवहार में स्थापित करे। ‘अनवस्थाप्य’ साधु के लिए एवं ‘पारंचित’ साधु के लिए भी उपरोक्त कथन ही जानना। सूत्र – ४१–४३ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-२ | Hindi | 42 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अणवट्ठप्पं भिक्खुं गिलायमाणं नो कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स निज्जूहित्तए।
अगिलाए तस्स करणिज्जं वेयावडियं जाव तओ रोगायंकाओ विप्पमुक्को, तओ पच्छा तस्स अहालहुसए नामं ववहारे पट्ठवियव्वे सिया। Translated Sutra: देखो सूत्र ४१ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-२ | Hindi | 43 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] पारंचियं भिक्खुं गिलायमाणं नो कप्पाइ तस्स गणावच्छेइयस्स निज्जूहित्तए।
अगिलाए तस्स करणिज्जं वेयावडियं जाव तओ रोगायंकाओ विप्पमुक्को, तओ पच्छा तस्स अहालहुसए नामं ववहारे पट्ठवियव्वे सिया। Translated Sutra: देखो सूत्र ४१ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-२ | Hindi | 44 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] खित्तचित्तं भिक्खुं गिलायमाणं नो कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स निज्जूहित्तए।
अगिलाए तस्स करणिज्जं वेयावडियं जाव तओ रोगायंकाओ विप्पमुक्को, तओ पच्छा तस्स अहालहुसए नामं ववहारे पट्ठवियव्वे सिया। Translated Sutra: व्यग्रचित्त या चित्तभ्रम होनेवाला, हर्ष के अतिरेक से पागल होनेवाला, भूत – प्रेत आदि वळगाडवाले, उन्मादवाले, उपसर्ग से ग्लान बने, क्रोध – कलह से बीमार, काफी प्रायश्चित्त आने से भयभ्रान्त बने, अनसन करके व्यग्रचित्त बने, धन के लोभ से चित्तभ्रम होकर बीमार बने, किसी भी साधु गणावच्छेदक के पास आए तो उसे बाहर नीकालना | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-२ | Hindi | 45 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] दित्तचित्तं भिक्खुं गिलायमाणं नो कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स निज्जूहित्तए।
अगिलाए तस्स करणिज्जं वेयावडियं जाव तओ रोगायंकाओ विप्पमुक्को तओ पच्छा तस्स अहालहुसए नामं ववहारे पट्ठवियव्वे सिया। Translated Sutra: देखो सूत्र ४४ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-२ | Hindi | 46 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जक्खाइट्ठं भिक्खुं गिलायमाणं नो कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स निज्जूहित्तए।
अगिलाए तस्स करणिज्जं वेयावडियं जाव तओ रोगायंकाओ विप्पमुक्को, तओ पच्छा तस्स अहालहुसए नामं ववहारे पट्ठवियव्वे सिया। Translated Sutra: देखो सूत्र ४४ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-२ | Hindi | 47 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] उम्मायपत्तं भिक्खुं गिलायमाणं नो कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स निज्जूहित्तए।
अगिलाए तस्स करणिज्जं वेयावडियं जाव तओ रोगायंकाओ विप्पमुक्को, तओ पच्छा तस्स अहालहुसए नामं ववहारे पट्ठवियव्वे सिया। Translated Sutra: देखो सूत्र ४४ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-२ | Hindi | 48 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] उवसग्गपत्तं भिक्खुं गिलायमाणं नो कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स निज्जूहित्तए।
अगिलाए तस्स करणिज्जं वेयावडियं जाव तओ रोगायंकाओ विप्पमुक्को, तओ पच्छा तस्स अहालहुसए नामं ववहारे पट्ठवियव्वे सिया। Translated Sutra: देखो सूत्र ४४ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-२ | Hindi | 49 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] साहिगरणं भिक्खूं गिलायमाणं नो कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स निज्जूहित्तए।
अगिलाए तस्स करणिज्जं वेयावडियं जाव तओ रोगायंकाओ विप्पमुक्को, तओ पच्छा तस्स अहालहुसए नामं ववहारे पट्ठवियव्वे सिया। Translated Sutra: देखो सूत्र ४४ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-२ | Hindi | 50 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सपायच्छित्तं भिक्खुं गिलायमाणं नो कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स निज्जूहित्तए।
अगिलाए तस्स करणिज्जं वेयावडियं जाव तओ रोगायंकाओ विप्पमुक्को, तओ पच्छा तस्स अहालहुसए नामं ववहारे पट्ठवियव्वे सिया। Translated Sutra: देखो सूत्र ४४ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-२ | Hindi | 51 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] भत्तपाणपडियाइक्खित्तं भिक्खुं गिलायमाणं नो कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स निज्जूहित्तए।
अगिलाए तस्स करणिज्जं वेयावडियं जाव तओ रोगायंकाओ विप्पमुक्को, तओ पच्छा तस्स अहालहुसए नामं ववहारे पट्ठवियव्वे सिया। Translated Sutra: देखो सूत्र ४४ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-२ | Hindi | 52 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अट्ठजायं भिक्खुं गिलायमाणं नो कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स निज्जूहित्तए। अगिलाए तस्स करणिज्जं वेयावडियं जाव तओ रोगायंकाओ विप्पमुक्को, तओ पच्छा तस्स अहालहुसए नामं ववहारे पट्ठवियव्वे सिया। Translated Sutra: देखो सूत्र ४४ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-२ | Hindi | 53 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अणवट्ठप्पं भिक्खुं अगिहिभूयं नो कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स उवट्ठावेत्तए। Translated Sutra: अनवस्थाप्य या पारंचित प्रायश्चित्त को वहन कर रहे साधु को गृहस्थ वेश दिए बिना गणावच्छेदक को पुनः संयम में स्थापित करना न कल्पे, गृहस्थ का (या उसके जैसे) निशानीवाला करके स्थापित करना कल्पे, लेकिन यदि उसके गण को (गच्छ या श्रमणसंघ को) प्रतीति हो यानि कि योग्य लगे तो गणावच्छेदक को वो दोनों तरह के साधु को गृहस्थवेश | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-२ | Hindi | 54 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अणवट्ठप्पं भिक्खुं गिहिभूयं कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स उवट्ठावेत्तए। Translated Sutra: देखो सूत्र ५३ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-२ | Hindi | 55 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] पारंचियं भिक्खुं अगिहिभूयं नो कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स उवट्ठावेत्तए। Translated Sutra: देखो सूत्र ५३ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-२ | Hindi | 56 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] पारंचियं भिक्खुं गिहिभूयं कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स उवट्ठावेत्तए। Translated Sutra: देखो सूत्र ५३ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-२ | Hindi | 57 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अणवट्ठप्पं भिक्खुं अगिहिभूयं वा गिहिभूयं वा कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स उवट्ठावेत्तए, जहा तस्स गणस्स पत्तियं सिया। Translated Sutra: देखो सूत्र ५३ |