Welcome to the Jain Elibrary: Worlds largest Free Library of JAIN Books, Manuscript, Scriptures, Aagam, Literature, Seminar, Memorabilia, Dictionary, Magazines & Articles

Global Search for JAIN Aagam & Scriptures

Search Results (4438)

Show Export Result
Note: For quick details Click on Scripture Name
Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 299 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कइ णं भंते! सरीरा पन्नत्ता? गोयमा! पंच सरीरा पन्नत्ता, तं जहा–ओरालिए वेउव्विए आहारए तेयए कम्मए। नेरइयाणं भंते! कइ सरीरा पन्नत्ता? गोयमा! तओ सरीरा पन्नत्ता, तं जहा–वेउव्विए तेयए कम्मए। असुरकुमाराणं भंते! कइ सरीरा पन्नत्ता? गोयमा! तओ सरीरा पन्नत्ता, तं जहा–वेउव्विए तेयए कम्मए। एवं तिन्नि-तिन्नि एए चेव सरीरा जाव थणियकुमाराणं भाणियव्वा। पुढविकाइयाणं भंते! कइ सरीरा पन्नत्ता? गोयमा! तओ सरीरा पन्नत्ता, तं जहा–ओरालिए तेयए कम्मए। एवं आउ-तेउ-वणस्सइकाइयाण वि एए चेव तिन्नि सरीरा भाणियव्वा। वाउकाइयाणं भंते! कइ सरीरा पन्नत्ता? गोयमा! चत्तारि सरीरा पन्नत्ता, तं जहा–ओरालिए

Translated Sutra: भगवन्‌ ! शरीर कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! पाँच प्रकार – औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस, कार्मण। नैरयिकों के तीन शरीर हैं। – वैक्रिय, तैजस और कार्मण शरीर। असुरकुमारों के तीन शरीर हैं। वैक्रिय, तैजस और कार्मण। इसी प्रकार स्तनितकुमार पर्यन्त जानना। पृथ्वीकायिक जीवों के कितने शरीर हैं ? गौतम ! तीन, – औदारिक, तैजस और
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 301 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं गुणप्पमाणे? गुणप्पमाणे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–जीवगुणप्पमाणे य अजीवगुण-प्पमाणे य। से किं तं अजीवगुणप्पमाणे? अजीवगुणप्पमाणे पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–वण्णगुणप्पमाणे गंधगुणप्पमाणे रसगुणप्पमाणे फासगुणप्पमाणे संठाणगुणप्पमाणे। से किं तं वण्णगुणप्पमाणे? वण्णगुणप्पमाणे पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–कालवण्णगुणप्पमाणे नीलवण्णगुणप्प-माणे लोहियवण्णगुणप्पमाणे हालिद्दवण्णगुणप्पमाणे सुक्किलवण्णगुणप्पमाणे। से तं वण्णगुणप्पमाणे। से किं तं गंधगुणप्पमाणे? गंधगुणप्पमाणे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–सुब्भिगंधगुणप्पमाणे दुब्भिगंधगुणप्पमाणे। से तं गंधगुणप्पमाणे। से

Translated Sutra: गुणप्रमाण क्या है ? दो प्रकार का है – जीवगुणप्रमाण और अजीवगुणप्रमाण। अजीवगुणप्रमाण पाँच प्रकार का है – वर्ग – गुणप्रमाण, गंधगुणप्रमाण, रसगुणप्रमाण, स्पर्शगुणप्रमाण और संस्थानगुणप्रमाण। भगवन्‌ ! वर्णगुणप्रमाण क्या है ? पाँच प्रकार का है। कृष्णवर्णगुणप्रमाण यावत्‌ शुक्लवर्णगुणप्रमाण। गंधगुणप्रमाण दो
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 302 Gatha Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] माता पुत्तं जहा नट्ठं, जुवाणं पुणरागतं । काई पच्चभिजाणेज्जा, पुव्वलिंगेण केणई ॥

Translated Sutra: माता बाल्यकाल से गुम हुए और युवा होकर वापस आये हुए पुत्र को किसी पूर्वनिश्र्चित चिह्न से पहचानती है कि यह मेरा ही पुत्र है। जैसे – देह में हुए क्षत, व्रण, लांछन, डाम आदि से बने चिह्नविशेष, मष, तिल आदि से जो अनुमान किया जाता है, वह पूर्ववत्‌ – अनुमान है। शेषवत्‌ – अनुमान किसे कहते हैं ? पाँच प्रकार का है। कार्येण,
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 309 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अग्गेयं वा वायव्वं वा अन्नयरं वा अप्पसत्थं उप्पायं पासित्ता तेणं साहिज्जइ, जहा–कुवुट्ठी भविस्सइ। से तं अनागयकालगहणं। से तं अनुमाणे। से किं तं ओवम्मे? ओवम्मे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–साहम्मोवणीए य वेहम्मोवणीए य। से किं तं साहम्मोवणीए? साहम्मोवणीए तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–किंचिसाहम्मे पायसाहम्मे सव्वसाहम्मे। से किं तं किंचिसाहम्मे? किंचिसाहम्मे–जहा मंदरो तहा सरिसवो, जहा सरिसवो तहा मंदरो। जहा समुद्दो तहा गोप्पयं, जहा गोप्पयं तहा समुद्दो। जहा आइच्चो तहा खज्जोतो, जहा खज्जोतो तहा आइच्चो। जहा चंदो तहा कुंदो, जहा कुंदो तहा चंदो। से तं किंचिसाहम्मे। से किं तं पायसाहम्मे?

Translated Sutra: आग्नेय मंडल के नक्षत्र, वायव्य मंडल के नक्षत्र या अन्य कोई उत्पात देखकर अनुमान किया जाना कि कुवृष्टि होगी, ठीक वर्षा नहीं होगी। यह अनागतकालग्रहण अनुमान है। उपमान प्रमाण क्या है ? दो प्रकार का है, जैसे – साधर्म्योपनीत और वैधर्म्योपनीत। जिन पदार्थों की सदृशत उपमा द्वारा सिद्ध की जाए उसे साधर्म्योपनीत कहते
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 310 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नयप्पमाणे? नयप्पमाणे तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–पत्थगदिट्ठंतेणं वसहिदिट्ठंतेणं पएसदिट्ठंतेणं। से किं तं पत्थगदिट्ठंतेणं? पत्थगदिट्ठंतेणं–से जहानामए केइ पुरिसे परसुं गहाय अडविहुत्तो गच्छेज्जा, तं च केइ पासित्ता वएज्जा–कहिं भवं गच्छसि? अविसुद्धो नेगमो भणति–पत्थगस्स गच्छामि। तं च केइ छिंदमाणं पासित्ता वएज्जा–किं भवं छिंदसि? विसुद्धो नेगमो भणति–पत्थगं छिंदामि। तं च केइ तच्छेमाणं पासित्ता वएज्जा–किं भवं तच्छेसि? विसुद्धतराओ नेगमो भणति–पत्थगं तच्छेमि। तं च केइ उक्किरमाणं पासित्ता वएज्जा–किं भवं उक्किरसि? विसुद्धतराओ नेगमो भणति–पत्थगं उक्किरामि। तं

Translated Sutra: नयप्रमाण क्या है ? वह तीन दृष्टान्तों द्वारा स्पष्ट किया गया है। जैसे कि – प्रस्थक के, वसति के और प्रदेश के दृष्टान्त द्वारा। भगवन्‌ ! प्रस्थक का दृष्टान्त क्या है ? जैसे कोई पुरुष परशु लेकर वन की ओर जाता है। उसे देखकर किसीने पूछा – आप कहाँ जा रहे हैं ? तब अविशुद्ध नैगमनय के मतानुसार उसने कहा – प्रस्थक लेने के लिए
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 311 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं संखप्पमाणे? संखप्पमाणे अट्ठविहे पन्नत्ते, तं जहा–१. नामसंखा २. ठवणसंखा ३. दव्वसंखा ४. ओवम्मसंखा ५. परिमाणसंखा ६. जाणणासंखा ७. गणणासंखा ८. भावसंखा। से किं तं नामसंखा? नामसंखा–जस्स णं जीवस्स वा अजीवस्स वा जीवाण वा अजीवाण वा तदुभयस्स वा तदु भयाण वा संखा ति नामं कज्जइ। से तं नामसंखा। से किं तं ठवणसंखा? ठवणसंखा–जण्णं कट्ठकम्मे वा चित्तकम्मे वा पोत्थकम्मे वा लेप्पकम्मे वा गंथिमे वा वेढिमे वा पूरिमे वा संघाइमे वा अक्खे वा वराडए वा एगो वा अनेगा वा सब्भावठवणाए वा असब्भावठवणाए वा संखा ति ठवणा ठविज्जइ। से तं ठवणसंखा। नाम-ट्ठवणाणं को पइविसेसो? नामं आवकहियं, ठवणा इत्तरिया

Translated Sutra: संख्याप्रमाण क्या है ? आठ प्रकार का है। यथा – नामसंख्या, स्थापनासंख्या, द्रव्यसंख्या, औपम्यसंख्या, परिमाण – संख्या, ज्ञानसंख्या, गणनासंख्या, भावसंख्या। नामसंख्या क्या है ? जिस जीव का अथवा अजीव का अथवा जीवों का अथवा अजीवों का अथवा तदुभव का अथवा तदुभयों का संख्या ऐसा नामकरण कर लिया जाता है, उसे नामसंख्या कहते
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 317 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ४. असंतयं असंतएणं उवमिज्जइ–जहा खरविसाणं तहा ससविसाणं। से तं ओवम्मसंखा। से किं तं परिमाणसंखा? परिमाणसंखा दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–कालियसुयपरिमाणसंखा दिट्ठिवायसुयपरिमाणसंखा य। से किं तं कालियसुयपरिमाणसंखा? कालियसुयपरिमाणसंखा अनेगविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जवसंखा अक्खरसंखा संघायसंखा पयसंखा पायसंखा गाहासंखा सिलोगसंखा वेढसंखा निज्जुत्तिसंखा अनुओगदारसंखा उद्देसगसंखा अज्झयणसंखा सुयखंधसंखा अंगसंखा। से तं कालियसुयपरिमाणसंखा। से किं तं दिट्ठिवायसुयपरिमाणसंखा? दिट्ठिवायसुयपरिमाणसंखा अनेगविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जवसंखा अक्खरसंखा संघायसंखा पयसंखा पायसंखा

Translated Sutra: अविद्यमान पदार्थ को अविद्यमान पदार्थ से उपमित करना असद्‌ – असद्‌रूप औपम्यसंख्या है। जैसा – खर विषाण है वैसा ही शश विषाण है और जैसा शशविषाण है वैसा ही खरविषाण है। परिमाणसंख्या क्या है ? दो प्रकार की है। जैसे – कालिकश्रुतपरिमाणसंख्या और दृष्टिवादश्रुतपरिमाण – संख्या। कालिक श्रुतपरिमाणसंख्या अनेक प्रकार
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 330 Gatha Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जस्स सामानिओ अप्पा, संजमे नियमे तवे । तस्स सामाइयं होइ, इइ केवलिभासियं ॥

Translated Sutra: जिसकी आत्मा संयम, नियम और तप में संनिहित है, उसी को सामायिक होती है, उसी को सामायिक होती है, जो सर्व भूतों, स्थावर आदि प्राणियों के प्रति समभाव धारण करता है, उसी को सामायिक होता है, ऐसा केवली भगवान्‌ ने कहा है। जिस प्रकार मुझे दुःख प्रिय नहीं है, उसी प्रकार सभी जीवों को भी प्रिय नहीं है, ऐसा जानकर – अनुभव कर जो न स्वयं
Anuyogdwar અનુયોગદ્વારાસૂત્ર Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Gujarati 298 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कइविहा णं भंते! दव्वा पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं०–जीवदव्वा य अजीवदव्वा य। अजीवदव्वा णं भंते! कइविहा पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–अरूविअजीवदव्वा य रूविअजीवदव्वा य। अरूविअजीवदव्वा णं भंते! कइविहा पन्नत्ता? गोयमा! दसविहा पन्नत्ता, तं जहा–धम्मत्थिकाए धम्मत्थिकायस्स देसा धम्मत्थिकायस्स पएसा, अधम्मत्थिकाए अधम्मत्थिकायस्स देसा अधम्मत्थिकायस्स पएसा, आगासत्थिकाए आगास-त्थिकायस्स देसा आगासत्थिकायस्स पएसा, अद्धासमए। रूविअजीवदव्वा णं भंते! कइविहा पन्नत्ता? गोयमा! चउव्विहा पन्नत्ता, तं जहा–खंधा खंधदेसा खंधप्पएसा परमाणुपोग्गला। ते णं भंते!

Translated Sutra: [૧] હે ભગવન્‌ ! દ્રવ્યના કેટલા પ્રકાર છે ? હે ગૌતમ! દ્રવ્યના બે પ્રકાર છે. તે આ પ્રમાણે છે – જીવ દ્રવ્ય અને અજીવ દ્રવ્ય. હે ભગવન્‌! અજીવ દ્રવ્યના કેટલા પ્રકાર છે ? હે ગૌતમ! અજીવ દ્રવ્યના બે પ્રકાર છે. તે આ પ્રમાણે છે – અરૂપી અજીવ દ્રવ્ય અને રૂપી અજીવ દ્રવ્ય. હે ભગવન્‌! અરૂપી અજીવ દ્રવ્યના કેટલા પ્રકાર છે ? હે ગૌતમ! અરૂપી
Anuyogdwar અનુયોગદ્વારાસૂત્ર Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Gujarati 301 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं गुणप्पमाणे? गुणप्पमाणे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–जीवगुणप्पमाणे य अजीवगुण-प्पमाणे य। से किं तं अजीवगुणप्पमाणे? अजीवगुणप्पमाणे पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–वण्णगुणप्पमाणे गंधगुणप्पमाणे रसगुणप्पमाणे फासगुणप्पमाणे संठाणगुणप्पमाणे। से किं तं वण्णगुणप्पमाणे? वण्णगुणप्पमाणे पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–कालवण्णगुणप्पमाणे नीलवण्णगुणप्प-माणे लोहियवण्णगुणप्पमाणे हालिद्दवण्णगुणप्पमाणे सुक्किलवण्णगुणप्पमाणे। से तं वण्णगुणप्पमाणे। से किं तं गंधगुणप्पमाणे? गंधगुणप्पमाणे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–सुब्भिगंधगुणप्पमाणे दुब्भिगंधगुणप्पमाणे। से तं गंधगुणप्पमाणे। से

Translated Sutra: [૧] ગુણપ્રમાણનું સ્વરૂપ કેવું છે ? ગુણપ્રમાણના બે ભેદ છે, તે આ પ્રમાણે છે – ૧. જીવ ગુણ પ્રમાણ ૨. અજીવ ગુણ પ્રમાણ. અલ્પ વક્તવ્ય હોવાથી પહેલા અજીવ ગુણ પ્રમાણનું વર્ણન કરે છે. અજીવગુણ પ્રમાણનું સ્વરૂપ કેવું છે ? અજીવગુણ પ્રમાણના પાંચ ભેદ છે, તે આ પ્રમાણે છે – ૧. વર્ગગુણ પ્રમાણ, ૨. ગંધગુણ પ્રમાણ, ૩. રસગુણ પ્રમાણ, ૪. સ્પર્શગુણ
Anuyogdwar અનુયોગદ્વારાસૂત્ર Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Gujarati 1 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नाणं पंचविहं पन्नत्तं, तं जहा– आभिनिबोहियनाणं सुयनाणं ओहिनाणं मनपज्जवनाणं केवलनाणं।

Translated Sutra: જ્ઞાનના પાંચ પ્રકાર કહ્યા છે, તે આ પ્રમાણે છે. ૧. આભિનિબોધિકજ્ઞાન, ૨. શ્રુતજ્ઞાન, ૩. અવધિજ્ઞાન, ૪. મનઃપર્યવજ્ઞાન, ૫. કેવળજ્ઞાન.
Anuyogdwar અનુયોગદ્વારાસૂત્ર Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Gujarati 2 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ चत्तारि नाणाइं ठप्पाइं ठवणिज्जाइं– नो उद्दिस्संति, नो समुद्दिस्संति नो अनुन्नविज्जंति, सुयनाणस्स उद्देसो समुद्देसो अनुन्ना अनुओगो य पवत्तइ।

Translated Sutra: આ પાંચ જ્ઞાનમાંથી મતિ, અવધિ, મનઃપર્યવ અને કેવળ આ ચાર જ્ઞાન વ્યવહાર યોગ્ય ન હોવાથી સ્થાપ્ય છે, સ્થાપનીય છે. આ ચારે જ્ઞાન ગુરુ દ્વારા શિષ્યોને ઉપદિષ્ટ નથી, તેનો ઉપદેશ આપી શકાતો નથી. તે સમુપદિષ્ટ નથી, તેની આજ્ઞા આપી શકાતી નથી. ફક્ત એક શ્રુતજ્ઞાનનો ઉપદેશ, સમુપદેશ, અનુજ્ઞા અને અનુયોગ થાય છે.
Anuyogdwar અનુયોગદ્વારાસૂત્ર Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Gujarati 17 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं जाणगसरीरदव्वावस्सयं? जाणगसरीरदव्वावस्सयं– आवस्सए त्ति पयत्थाहिगारजाणगस्स जं सरीरयं वव-गय-चुय-चाविय-चत्तदेहं जीवविप्पजढं सेज्जागयं वा संथारगयं वा निसीहियागयं वा सिद्धसिलातलगयं वा पासित्ताणं कोइ वएज्जा– अहो णं इमेणं सरीरसमुस्सएणं जिणदिट्ठेणं भावेणं आवस्सए त्ति पयं आघवियं पन्नवियं परूवियं दंसियं निदंसियं उवदंसियं। जहा को दिट्ठंतो? अयं महुकुंभे आसी, अयं घयकुंभे आसी। से तं जाणगसरीरदव्वावस्सयं।

Translated Sutra: જ્ઞાયક શરીર દ્રવ્ય આવશ્યકનું સ્વરૂપ કેવું છે ? આવશ્યક એ પદના અર્થાધિકાર જાણનારના વ્યપગત, ચ્યુત – ચ્યાવિત, ત્યક્ત, જીવરહિત શરીરને શય્યાગત, સંસ્તારગત, સિદ્ધશિલાગત – જે સ્થાન પર સંથારો કર્યો હોય તે સ્થાન પર મૃત શરીર.ને સ્થિત જોઈ, કોઈ કહે, અહો ! આ શરીરરૂપ પુદ્‌ગલ સમુદાયે જિનોપદિષ્ટ ભાવ અનુસાર આવશ્યકપદનું ગુરુ
Anuyogdwar અનુયોગદ્વારાસૂત્ર Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Gujarati 21 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं कुप्पावयणियं दव्वावस्सयं? कुप्पावयणियं दव्वावस्सयं–जे इमे चरग चोरिय चम्मखंडिय भिक्खोंड पंडुरंग गोयम गोव्वइय गिहिधम्म धम्मचिंतग अविरुद्ध विरुद्ध वुड्ढसावगप्पभिइओ पासंडत्था कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए सुविमलाए फुल्लुप्पल कमल कोमलुम्मिलियम्मि अहपंडुरे पभाए रत्तासोगप्पगास किंसुय सुयमुह गुंजद्धरागसरिसे कमलागर नलिणिसंडबोहए उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिनयरे तेयसा जलंते इंदस्स वा खंदस्स वा रुद्दस्स वा सिवस्स वा वेसमणस्स वा देवस्स वा नागस्स वा जक्खस्स वा भूयस्स वा मुगुंदस्स वा अज्जाए वा कोट्टकिरियाए वा उवलेवण-सम्मज्जण-आवरिसण धूव पुप्फ

Translated Sutra: કુપ્રાવચની દ્રવ્ય આવશ્યકનું સ્વરૂપ કેવું છે ? જેઓ ચરક, ચીરિક, ચર્મખંડિક, ભિક્ષોદંડક, પાંડુરંગ, ગૌતમ, ગોવ્રતિક, ગૃહસ્થ, ધર્મચિંતક, વિનયવાદી, અક્રિયાવાદી, વૃદ્ધ શ્રાવક વગેરે વિવિધ વ્રતધારક પાષંડીઓ રાત્રિ વ્યતીત થઈ પ્રભાતકાળે સૂર્ય ઉદય પામે ત્યારે ઇન્દ્ર, સ્કંધ, રુદ્ર, શિવ, વૈશ્રમણદેવ અથવા દેવ, નાગ, યક્ષ, ભૂત,
Anuyogdwar અનુયોગદ્વારાસૂત્ર Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Gujarati 38 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नोआगमओ दव्वसुयं? नोआगमओ दव्वसुयं तिविहं पन्नत्तं, तं जहा–जाणगसरीरदव्वसुयं भवियसरीरदव्वसुयं जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्तं दव्वसुयं।

Translated Sutra: સૂત્ર– ૩૮. નોઆગમથી દ્રવ્યશ્રુતનું સ્વરૂપ કેવું છે ? નોઆગમથી દ્રવ્યશ્રુતના ત્રણ પ્રકાર છે, તે આ પ્રમાણે છે – ૧. જ્ઞાયકશરીર દ્રવ્યશ્રુત, ૨. ભવ્યશરીર દ્રવ્યશ્રુત, ૩. તદ્‌વ્યતિરિક્ત દ્રવ્યશ્રુત. સૂત્ર– ૩૯. જ્ઞાયકશરીર દ્રવ્યશ્રુતનું સ્વરૂપ કેવું છે ? શ્રુતપદના અર્થાધિકારના જ્ઞાતાનું વ્યપગત, ચ્યુત, ચ્યાવિત, ત્યક્ત,
Anuyogdwar અનુયોગદ્વારાસૂત્ર Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Gujarati 47 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं इमे एगट्ठिया नाणाघोसा नाणावंजणा नामधेज्जा भवंति, तं जहा–

Translated Sutra: ઉદાત્તાદિ વિવિધ સ્વરો ‘ક’ કારાદિ અનેક વ્યંજનોથી યુક્ત તે શ્રુતના, એક અર્થવાચી – પર્યાયવાચી નામ આ પ્રમાણે છે – ૧. શ્રુત, ૨. સૂત્ર, ૩. ગ્રંથ, ૪. સિદ્ધાંત, ૫. શાસન, ૬. આજ્ઞા, ૭. વચન, ૮. ઉપદેશ, ૯. પ્રજ્ઞાપના, ૧૦. આગમ. આ બધા શ્રુતના પર્યાયવાચી નામ છે. આ રીતે શ્રુતની વક્તવ્યતા પૂર્ણ થઈ. સૂત્ર સંદર્ભ– ૪૭–૪૯
Anuyogdwar અનુયોગદ્વારાસૂત્ર Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Gujarati 63 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं इमे एगट्ठिया नाणाघोसा नाणावंजणा नामधेज्जा भवंति, तं जहा–

Translated Sutra: આ ભાવસ્કંધના વિવિધ ઘોષ અને વ્યંજનવાળા એકાર્થક પર્યાયવાચી નામ આ પ્રમાણે છે. ગણ, કાય, નિકાય, સ્કંધ, વર્ગ, રાશિ, પુંજ, પિંડ, નિકર, સંઘાત, આકુળ અને સમૂહ. આ ભાવસ્કંધના એકાર્થક પર્યાયવાચી નામ છે. તે આ સ્કંધનું સ્વરૂપ બતાવ્યું. સૂત્ર સંદર્ભ– ૬૩–૬૫
Anuyogdwar અનુયોગદ્વારાસૂત્ર Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Gujarati 81 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं आनुपुव्वी? आनुपुव्वी दसविहा पन्नत्ता, तं जहा–१. नामानुपुव्वी २. ठवणानुपुव्वी ३. दव्वानुपुव्वी ४. खेत्तानुपुव्वी ५. कालानुपुव्वी ६. उक्कित्तणानुपुव्वी ७. गणणानुपुव्वी ८. संठाणानुपुव्वी ९. सामायारियानुपुव्वी १०. भावानुपुव्वी।

Translated Sutra: આનુપૂર્વીનું સ્વરૂપ કેવું છે ? આનુપૂર્વીના દસ પ્રકાર છે, તે આ પ્રમાણે છે – ૧. નામાનુપૂર્વી, ૨. સ્થાપનાનુપૂર્વી, ૩. દ્રવ્યાનુપૂર્વી, ૪. ક્ષેત્રાનુપૂર્વી, ૫. કાલાનુપૂર્વી, ૬. ઉત્કીર્તનાનુપૂર્વી, ૭. ગણનાનુપૂર્વી, ૮. સંસ્થાનાનુપૂર્વી, ૯. સમચાર્યાનુપૂર્વી, ૧૦. ભાવાનુપૂર્વી.
Anuyogdwar અનુયોગદ્વારાસૂત્ર Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Gujarati 104 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं संगहस्स भंगोवदंसणया? संगहस्स भंगोवदंसणया–१. तिपएसिया आनुपुव्वी २. परमाणुपोग्गला अनानुपुव्वी ३. दुपएसिया अवत्तव्वए अहवा ४. तिपएसिया य परमाणुपोग्गला य आनुपुव्वी य अनानुपुव्वी य अहवा ५. तिप-एसिया य दुपएसिया य आनुपुव्वी य अवत्तव्वए य अहवा ६. परमाणुपोग्गला य दुपएसिया य अनानुपुव्वी य अवत्तव्वए य अहवा ७. तिपएसिया य परमाणुपोग्गला य दुपएसिया य आनुपुव्वी य अनानुपुव्वी य अवत्तव्वए य। [एवं एए सत्त भंगा?] । से तं संगहस्स भंगोवदंसणया।

Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૦૪. સંગ્રહ નય સંમત ભંગોપદર્શનતાનું સ્વરૂપ કેવું છે ? ભંગોના નામ વાચ્યાર્થ સહિત બતાવવા તે ભંગોપદર્શનતા કહેવાય છે. અર્થ સહિત તે ભંગો આ પ્રમાણે બને છે. અસંયોગી ત્રણ ભંગ – ૧. ત્રિપ્રદેશી સ્કંધ આનુપૂર્વી છે. ૨. પરમાણુ પુદ્‌ગલ અનાનુપૂર્વી છે. ૩. દ્વિપ્રદેશી સ્કંધ અવક્તવ્ય છે. દ્વિસંયોગી ત્રણ ભંગ – ૧. ત્રિપ્રદેશી
Anuyogdwar અનુયોગદ્વારાસૂત્ર Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Gujarati 110 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं पुव्वानुपुव्वी? पुव्वानुपुव्वी–धम्मत्थिकाए अधम्मत्थिकाए आगासत्थिकाए जीवत्थिकाए पोग्गलत्थिकाए अद्धासमए। से तं पुव्वानुपुव्वी। से किं तं पच्छानुपुव्वी? पच्छानुपुव्वी–अद्धासमए पोग्गलत्थिकाए जीवत्थिकाए आगास-त्थिकाए अधम्मत्थिकाए धम्मत्थिकाए। से तं पच्छानुपुव्वी। से किं तं अनानुपुव्वी? अनानुपुव्वी–एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए छगच्छगयाए सेढीए अन्नमन्नब्भासो दुरूवूणो। से तं अनानुपुव्वी।

Translated Sutra: પૂર્વાનુપૂર્વીનું સ્વરૂપ કેવું છે ? ૧. ધર્માસ્તિકાય, ૨. અધર્માસ્તિકાય, ૩. આકાશાસ્તિકાય, ૪. જીવાસ્તિકાય, ૫. પુદ્‌ગલાસ્તિકાય, ૬. અદ્ધાકાળ. આ પ્રમાણે અનુક્રમથી કથન કરાય કે સ્થાપન કરાય, તેને પૂર્વાનુપૂર્વી કહે છે. આ પૂર્વાનુપૂર્વીનું વર્ણન થયું. પશ્ચાનુપૂર્વીનું સ્વરૂપ કેવું છે ? ૬. અદ્ધાસમય, ૫. પુદ્‌ગલાસ્તિકાય,
Anuyogdwar અનુયોગદ્વારાસૂત્ર Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Gujarati 111 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहवा ओवनिहिया दव्वानुपुव्वी तिविहा पन्नत्ता, तं जहा– पुव्वानुपुव्वी पच्छानुपुव्वी अनानुपुव्वी। से किं तं पुव्वानुपुव्वी? पुव्वानुपुव्वी–परमाणुपोग्गले दुपएसिए तिपएसिए जाव दसपएसिए संखेज्जपएसिए असंखेज्जपएसिए अनंतपएसिए। से तं पुव्वानुपुव्वी। से किं तं पच्छानुपुव्वी? पच्छानुपुव्वी–अनंतपएसिए असंखेज्जपएसिए संखेज्जपएसिए दसपएसिए जाव तिपएसिए दुपएसिए परमाणुपोग्गले। से तं पच्छानुपुव्वी। से किं तं अनानुपुव्वी? अनानुपुव्वी–एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए अनंतगच्छगयाए सेढीए अन्नमन्नब्भासो दुरूवूणो। से तं अनानुपुव्वी। से तं ओवनिहिया दव्वानुपुव्वी। से

Translated Sutra: અથવા ઔપનિધિકી દ્રવ્યાનુપૂર્વી ત્રણ પ્રકારે કહી છે. જેમ કે – ૧. પૂર્વાનુપૂર્વી, ૨. પશ્ચાનુપૂર્વી, ૩. અનાનુપૂર્વી. પૂર્વાનુપૂર્વીનું સ્વરૂપ કેવું છે? પૂર્વાનુપૂર્વીનું સ્વરૂપ આ પ્રમાણે છે – પરમાણુ પુદ્‌ગલ, દ્વિપ્રદેશી સ્કંધ, ત્રિપ્રદેશી સ્કંધ યાવત્‌ દસ પ્રદેશી સ્કંધ, સંખ્યાત પ્રદેશી સ્કંધ, અસંખ્યાત પ્રદેશી
Anuyogdwar અનુયોગદ્વારાસૂત્ર Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Gujarati 120 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं ओवनिहिया खेत्तानुपुव्वी? ओवनिहिया खेत्तानुपुव्वी तिविहा– पुव्वानुपुव्वी–अहोलोए तिरियलोए उड्ढलोए। से तं पुव्वानुपुव्वी। से किं तं पच्छानुपुव्वी? पच्छानुपुव्वी–उड्ढलोए तिरियलोए अहोलोए। से तं पच्छानुपुव्वी। से किं तं अनानुपुव्वी? अनानुपुव्वी–एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए तिगच्छगयाए सेढीए अन्नमन्नब्भासो दुरूवूणो। से तं अनानुपुव्वी। अहोलोयखेत्तानुपुव्वी तिविहा पन्नत्ता, तं जहा–पुव्वानुपुव्वी पच्छानुपुव्वी अनानुपुव्वी। से किं तं पुव्वानुपुव्वी? पुव्वानुपुव्वी–रयणप्पभा सक्करप्पभा वालुयप्पभा पंकप्पभा धूमप्पभा तमा तमतमा। से तं पुव्वानुपुव्वी। से

Translated Sutra: (૧). ઔપનિધિકી ક્ષેત્રાનુપૂર્વીનું સ્વરૂપ કેવું છે ? ઔપનિધિકી ક્ષેત્રાનુપૂર્વીના ત્રણ પ્રકાર છે. તે આ પ્રમાણે – ૧. પૂર્વાનુપૂર્વી, ૨. પશ્ચાનુપૂર્વી અને ૩. અનાનુપૂર્વી. પૂર્વાનુપૂર્વી ઔપનિધિકી ક્ષેત્રાનુપૂર્વીનું સ્વરૂપ કેવું છે ? ૧. અધોલોક, ૨. તિર્યગ્‌લોક, ૩. ઉર્ધ્વ લોક. આ ક્રમથી ક્ષેત્ર – લોકનો નિર્દેશ કરવો
Anuyogdwar અનુયોગદ્વારાસૂત્ર Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Gujarati 121 Gatha Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जंबुद्दीवे लवणे, धायइ-कालोय-पुक्खरे वरुणे । खीर-घय-खोय-नंदी अरुणवरे कुंडले रुयगे ॥

Translated Sutra: મધ્યલોકક્ષેત્ર પૂર્વાનુપૂર્વીનું સ્વરૂપ કેવું છે ? જંબૂદ્વીપ, લવણસમુદ્ર, ધાતકીખંડ દ્વીપ, કાલોદધિ સમુદ્ર, પુષ્કરદ્વીપ, પુષ્કરોદ સમુદ્ર, વરુણદ્વીપ, વરુણોદ સમુદ્ર, ક્ષીરદ્વીપ, ક્ષીરોદ સમુદ્ર, ધૃતદ્વીપ, ધૃતોદ સમુદ્ર, ઇક્ષુવરદ્વીપ, ઇક્ષુવર સમુદ્ર, નન્દીદ્વીપ, નંદી સમુદ્ર, અરુણ વરદ્વીપ, અરુણવર સમુદ્ર, કુંડલદ્વીપ,
Anuyogdwar અનુયોગદ્વારાસૂત્ર Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Gujarati 125 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से तं पुव्वानुपुव्वी। से किं तं पच्छानुपुव्वी? पच्छानुपुव्वी–सयंभुरमणे जाव जंबुद्दीवे। से तं पच्छानुपुव्वी। से किं तं अनानुपुव्वी? अनानुपुव्वी–एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए असंखेज्जगच्छगयाए सेढीए अन्नमन्नब्भासो दुरूवूणो। से तं अनानुपुव्वी। उड्ढलोयखेत्तानुपुव्वी तिविहा पन्नत्ता, तं जहा–पुव्वानुपुव्वी पच्छानुपुव्वी अनानुपुव्वी। से किं तं पुव्वानुपुव्वी? पुव्वानुपुव्वी–१. सोहम्मे २. ईसाणे ३. सणंकुमारे ४. माहिंदे ५. बंभलोए ६. लंतए ७. महासुक्के ८. सहस्सारे ९. आणए १०. पाणए ११. आरणे १२. अच्चुए १३. गेवेज्जविमाणा १४. अनुत्तरविमाणा १५. ईसिप्पब्भारा। से तं पुव्वानुपुव्वी। से

Translated Sutra: (૧). મધ્યલોકક્ષેત્ર પશ્ચાનુપૂર્વીનું સ્વરૂપ કેવું છે ? સ્વયંભૂરમણ સમુદ્ર, સ્વયંભૂરમણ દ્વીપ, ભૂત સમુદ્ર, ભૂત દ્વીપથી લઈ જંબૂદ્વીપ સુધી વિપરીત ક્રમથી દ્વીપ – સમુદ્રના સ્થાપનને મધ્યલોક ક્ષેત્ર પશ્ચાનુપૂર્વી કહે છે. મધ્યલોકક્ષેત્ર અનાનુપૂર્વીનું સ્વરૂપ કેવું છે ? એકથી શરૂ કરી, એક – એકની વૃદ્ધિ કરતા અસંખ્યાત
Anuyogdwar અનુયોગદ્વારાસૂત્ર Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Gujarati 138 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं ओवनिहिया कालानुपुव्वी? ओवनिहिया कालानुपुव्वी तिविहा पन्नत्ता, तं जहा–पुव्वानुपुव्वी पच्छानुपुव्वी अनानुपुव्वी। से किं तं पुव्वानुपुव्वी? पुव्वानुपुव्वी–समए आवलिया आनापानू थोवे लवे मुहुत्ते अहोरत्ते पक्खे मासे उऊ अयने संवच्छरे जुगे वाससए वाससहस्से वाससयसहस्से पुव्वंगे पुव्वे, तुडियंगे तुडिए, अडडंगे अडडे, अववंगे अववे, हुहुयंगे हुहुए, उप्पलंगे उप्पले, पउमंगे पउमे, नलिणंगे नलिणे, अत्थनिउरंगे अत्थनिउरे, अउयंगे अउए, नउयंगे नउए, पउयंगे पउए, चूलियंगे चूलिया, सीसपहेलियंगे सीसपहेलिया, पलिओवमे सागरोवमे ओसप्पिणी उस्सप्पिणी पोग्गलपरियट्टे तीतद्धा

Translated Sutra: (૧) ઔપનિધિકી કાલાનુપૂર્વીનું સ્વરૂપ કેવું છે ? ઔપનિધિકી કાલાનુપૂર્વીના ત્રણ પ્રકાર છે, તે આ પ્રમાણે છે – ૧. પૂર્વાનુપૂર્વી ૨. પશ્ચાનુપૂર્વી ૩. અનાનુપૂર્વી. પૂર્વાનુપૂર્વીનું સ્વરૂપ કેવું છે ? પૂર્વાનુપૂર્વીનું સ્વરૂપ આ પ્રમાણે છે – એક સમયની સ્થિતિવાળા, બે સમયની સ્થિતિવાળા, ત્રણ સમયની સ્થિતિવાળા યાવત્‌ દસ
Anuyogdwar અનુયોગદ્વારાસૂત્ર Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Gujarati 139 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं उक्कित्तणानुपुव्वी? उक्कित्तणानुपुव्वी तिविहा पन्नत्ता, तं जहा–पुव्वानुपुव्वी पच्छानुपुव्वी अनानुपुव्वी। से किं तं पुव्वानुपुव्वी? पुव्वानुपुव्वी–उसभे अजिए संभवे अभिनंदने सुमती पउमप्पभे सुपासे चंदप्पहे सुविही सीतले सेज्जंसे वासुपुज्जे विमले अनंते धम्मे संती कुंथू अरे मल्ली मुनिसुव्वए नमी अरिट्ठनेमी पासे वद्धमाणे। से तं पुव्वानुपुव्वी। से किं तं पच्छानुपुव्वी? पच्छानुपुव्वी–वद्धमाणे जाव उसभे। से तं पच्छानुपुव्वी। से किं तं अनानुपुव्वी? अनानुपुव्वी–एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए चउवीसगच्छगयाए सेढीए अन्नमन्नब्भासो दुरूवूणो। से तं अनानुपुव्वी। से

Translated Sutra: ઉત્કીર્તનાનુપૂર્વીનું સ્વરૂપ કેવું છે ? ઉત્કીર્તનાપૂર્વીના ત્રણ પ્રકાર કહ્યા છે, તે આ પ્રમાણે – ૧. પૂર્વાનુપૂર્વી, ૨. પશ્ચાનુપૂર્વી, ૩. અનાનુપૂર્વી. પૂર્વાનુપૂર્વીનું સ્વરૂપ કેવું છે ? ૧. ઋષભ, ૨. અજિત, ૩. સંભવ, ૪. અભિનંદન, ૫. સુમતિ, ૬. પદ્મપ્રભ, ૭. સુપાર્શ્વ, ૮. ચંદ્રપ્રભ, ૯. સુવિધિ, ૧૦. શીતલ, ૧૧. શ્રેયાંસ, ૧૨. વાસુપૂજ્ય,
Anuyogdwar અનુયોગદ્વારાસૂત્ર Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Gujarati 140 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं गणनानुपुव्वी? गणनानुपुव्वी तिविहा पन्नत्ता, तं जहा–पुव्वानुपुव्वी पच्छानुपुव्वी अनानुपुव्वी। से किं तं पुव्वानुपुव्वी? पुव्वानुपुव्वी–एगो दसं सयं सहस्सं दससहस्साइं सयसहस्सं दससयसहस्साइं कोडी दसकोडीओ कोडिसयं दसकोडिसयाइं। से तं पुव्वानुपुव्वी। से किं तं पच्छानुपुव्वी? पच्छानुपुव्वी–दसकोडिसयाइं जाव एगो। से तं पच्छानुपुव्वी। से किं तं अनानुपुव्वी? अनानुपुव्वी–एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए दसकोडिसय-गच्छगयाए सेढीए अन्नमन्नब्भासो दुरूवूणो। से तं अनानुपुव्वी। से तं गणणानुपुव्वी।

Translated Sutra: ગણનાનુપૂર્વીનું સ્વરૂપ કેવું છે ? ગણનાનુપૂર્વીના ત્રણ પ્રકાર છે. ૧. પૂર્વાનુપૂર્વી, ૨. પશ્ચાનુપૂર્વી, ૩. અનાનુપૂર્વી. પૂર્વાનુપૂર્વીનું સ્વરૂપ કેવું છે ? એક, દશ, સો, હજાર, દશ હજાર, લાખ, દશ લાખ, કરોડ, દશ કરોડ, અરબ, દશ અરબ. આ પ્રમાણે ક્રમથી ગણના કરવામાં આવે તેને પૂર્વાનુપૂર્વી કહેવાય છે. પશ્ચાનુપૂર્વીનું સ્વરૂપ કેવું
Anuyogdwar અનુયોગદ્વારાસૂત્ર Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Gujarati 141 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं संठाणानुपुव्वी? संठाणानुपुव्वी तिविहा पन्नत्ता, तं जहा–पुव्वानुपुव्वी पच्छानुपुव्वी अनानुपुव्वी। से किं तं पुव्वानुपुव्वी? पुव्वानुपुव्वी–समचउरंसे नग्गोहपरिमंडले साई खुज्जे वामणे हुंडे। से तं पुव्वानुपुव्वी से किं तं पच्छानुपुव्वी? पच्छानुपुव्वी–हुंडे जाव समचउरंसे। से तं पच्छानुपुव्वी। से किं तं अनानुपुव्वी? अनानुपुव्वी– एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए छगच्छगयाए सेढीए अन्नमन्नब्भासो दुरूवूणो। से तं अनानुपुव्वी। से तं संठाणानुपुव्वी।

Translated Sutra: સંસ્થાનાનુપૂર્વીનું સ્વરૂપ કેવું છે ? સંસ્થાનાનુપૂર્વીના ત્રણ પ્રકાર છે. તે આ પ્રમાણે ૧. પૂર્વાનુપૂર્વી, ૨. પશ્ચાનુપૂર્વી અને ૩. અનાનુપૂર્વી. પૂર્વાનુપૂર્વીનું સ્વરૂપ કેવું છે ? ૧. સમચતુરસ્ર સંસ્થાન, ૨. ન્યગ્રોધ પરિમંડલ સંસ્થાન, ૩. સાદિ સંસ્થાન, ૪. કુબ્જ સંસ્થાન, ૫. વામન સંસ્થાન, ૬. હુંડ સંસ્થાન. આ ક્રમથી સંસ્થાનોનું
Anuyogdwar અનુયોગદ્વારાસૂત્ર Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Gujarati 142 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं सामायारियानुपुव्वी? सामायारियानुपुव्वी तिविहा पन्नत्ता, तं जहा– पुव्वानुपुव्वी पच्छानु-पुव्वी अनानुपुव्वी। से किं तं पुव्वानुपुव्वी? पुव्वानुपुव्वी–

Translated Sutra: સામાચારી આનુપૂર્વીનું સ્વરૂપ કેવું છે ? સામાચારી આનુપૂર્વીના ત્રણ પ્રકાર છે, તે આ પ્રમાણે છે – ૧. પૂર્વાનુપૂર્વી, ૨. પશ્ચાનુપૂર્વી, ૩. અનાનુપૂર્વી. પૂર્વાનુપૂર્વીનું સ્વરૂપ કેવું છે ? ૧. ઇચ્છાકાર, ૨. મિત્યાકાર, ૩. તથાકાર, ૪. આવશ્યકી, ૫. નૈષેધિકી, ૬. આપૃચ્છના, ૭. પ્રતિપૃચ્છના, ૮. છંદના, ૯. નિમંત્રણા, ૧૦. ઉપસંપદા. આ દશ
Anuyogdwar અનુયોગદ્વારાસૂત્ર Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Gujarati 145 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं भावानुपुव्वी? भावानुपुव्वी तिविहा पन्नत्ता, तं जहा–पुव्वानुपुव्वी पच्छानुपुव्वी अनानुपुव्वी। से किं तं पुव्वानुपुव्वी? पुव्वानुपुव्वी–उदइए उवसमिए खइए खओवसमिए पारिणामिए सन्निवाइए। से तं पुव्वानुपुव्वी। से किं तं पच्छानुपुव्वी? पच्छानुपुव्वी–सन्निवाइए जाव उदइए। से तं पच्छानुपुव्वी। से किं तं अनानुपुव्वी? अनानुपुव्वी–एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए छगच्छगयाए सेढीए अन्नमन्नब्भासो दुरूवूणो। से तं अनानुपुव्वी। से तं भावानुपुव्वी। से तं आनुपुव्वी।

Translated Sutra: ભાવાનુપૂર્વીનું સ્વરૂપ કેવું છે ? ભાવાનુપૂર્વીના ત્રણ પ્રકાર તે આ પ્રમાણે છે – ૧. પૂર્વાનુપૂર્વી, ૨. પશ્ચાનુપૂર્વી, ૩. અનાનુપૂર્વી. પૂર્વાનુપૂર્વીનું સ્વરૂપ કેવું છે ? ૧. ઔદયિકભાવ, ૨. ઔપશમિકભાવ, ૩. ક્ષાયિકભાવ, ૪. ક્ષાયોપશમિકભાવ, ૫. પારિણામિકભાવ, ૬. સાન્નિપાતિકભાવ. આ ક્રમથી ભાવોના ઉપન્યાસને પૂર્વાનુપૂર્વી કહે
Anuyogdwar અનુયોગદ્વારાસૂત્ર Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Gujarati 147 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं एगनामे? एगनामे–

Translated Sutra: એક નામનું સ્વરૂપ કેવું છે ? એક નામનું સ્વરૂપ આ પ્રમાણે છે – દ્રવ્ય, ગુણ, પર્યાયના જે નામ લોકમાં રૂઢ છે. તેમની તે નામ વાળી સંજ્ઞા આગમરૂપ નિકષ – કસોટી પર કસીને કહેવામાં આવી છે. તે એક નામ છે. સૂત્ર સંદર્ભ– ૧૪૭–૧૪૯
Anuyogdwar અનુયોગદ્વારાસૂત્ર Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Gujarati 150 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं दुनामे? दुनामे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–एगक्खरिए य अनेगक्खरिए य। से किं तं एगक्खरिए? एगक्खरिए अनेगविहे पन्नत्ते, तं जहा–ह्रोः श्रीः धीः स्त्री। से तं एगक्खरिए। से किं तं अनेगक्खरिए? अनेगक्खरिए अनेगविहे पन्नत्ते, तं जहा–कन्ना वीणा लता माला। से तं अनेगक्खरिए। अहवा दुनामे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–जीवनामे य अजीवनामे य। से किं तं जीवनामे? जीवनामे अनेगविहे पन्नत्ते, तं जहा-देवदत्तो जन्नदत्तो विण्हुदत्तो सोमदत्तो।से तं जीवनामे से किं तं अजीवनामे? अजीवनामे अनेगविहे पन्नत्ते, तं जहा–घडो पडो कडो रहो। से तं अजीवनामे। अहवा दुनामे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–विसेसिए

Translated Sutra: [૧] ‘દ્વિનામ’નું સ્વરૂપ કેવું છે ? દ્વિનામના બે પ્રકાર છે. તે આ પ્રમાણે છે – ૧. એકાક્ષરિક અને ૨. અનેકાક્ષરિક. એકાક્ષરિક દ્વિનામનું સ્વરૂપ કેવું છે ? એકાક્ષરિક દ્વિનામના અનેક પ્રકાર છે, તે આ પ્રમાણે છે – હ્રી દેવી., શ્રી લક્ષ્મી દેવી., ધી બુદ્ધિ., સ્ત્રી વગેરે એકાક્ષરિક દ્વિનામ છે. અનેકાક્ષરિક દ્વિનામનું સ્વરૂપ
Anuyogdwar અનુયોગદ્વારાસૂત્ર Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Gujarati 151 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं तिनामे? तिनामे तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–दव्वनामे गुणनामे पज्जवनामे। से किं तं दव्वनामे? दव्वनामे छव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–धम्मत्थिकाए अधम्मत्थिकाए आगासत्थिकाए जीवत्थि-काए पोग्गलत्थिकाए अद्धासमए। से तं दव्वनामे। से किं तं गुणनामे? गुणनामे पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–वण्णनामे गंधनामे रसनामे फासनामे संठाणनामे। से किं तं वण्णनामे? वण्णनामे पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–कालवण्णनामे नीलवण्णनामे लोहिय-वण्णनामे हालिद्दवण्णनामे सुक्किल्लवण्णनामे। से तं वण्णनामे। से किं तं गंधनामे? गंधनामे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–सुब्भिगंधनामे य दुब्भिगंधनामे य। से तं गंधनामे। से

Translated Sutra: [૧] ત્રિનામનું સ્વરૂપ કેવું છે ? ત્રિનામના ત્રણ પ્રકાર કહ્યા છે, તે આ પ્રમાણે – ૧. દ્રવ્યનામ, ૨. ગુણનામ અને ૩. પર્યાયનામ. [૨] દ્રવ્યનામનું સ્વરૂપ કેવું છે ? દ્રવ્યનામના છ પ્રકાર કહ્યા છે, તે આ પ્રમાણે છે – ૧. ધર્માસ્તિકાય, ૨. અધર્માસ્તિકાય, ૩. આકાશાસ્તિકાય, ૪. જીવાસ્તિકાય, ૫. પુદ્‌ગલાસ્તિકાય અને ૬. અદ્ધાસમય. [૩] ગુણનામનું
Anuyogdwar અનુયોગદ્વારાસૂત્ર Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Gujarati 161 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं छनामे? छनामे छव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–१. उदइए २. उवसमिए ३. खइए ४. खओवसमिए ५. पारिणामिए ६. सन्निवाइए। से किं तं उदइए? उदइए दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–उदए य उदयनिप्फन्ने य। से किं तं उदए? उदए–अट्ठण्हं कम्मपयडीणं उदए णं। से तं उदए। से किं तं उदयनिप्फन्ने? उदयनिप्फन्ने दुविहे पन्नत्ते, तं जहा– जीवोदयनिप्फन्ने य अजीवो-दयनिप्फन्ने य। से किं तं जीवोदयनिप्फन्ने? जीवोदयनिप्फन्ने अनेगविहे पन्नत्ते, तं जहा–नेरइए तिरिक्ख-जोणिए मनुस्से देवे पुढविकाइए आउकाइए तेउकाइए वाउकाइए वणस्सइकाइए तसकाइए, कोहकसाई मानकसाई मायाकसाई लोभकसाई, इत्थिवेए पुरिसवेए नपुंसगवेए, कण्हलेसे

Translated Sutra: [૧] છ નામનું સ્વરૂપ કેવું છે ? છ નામમાં છ પ્રકારના ભાવ કહ્યા છે, તે આ પ્રમાણે છે – ૧. ઔદારિક, ૨. ઔપશમિક, ૩. ક્ષાયિક, ૪. ક્ષાયોપશમિક, ૫. પારિણામિક, ૬. સાન્નિપાતિક. [૨] ઔદયિક ભાવનું સ્વરૂપ કેવું છે ? ઔદયિક ભાવના બે પ્રકાર છે. તે આ પ્રમાણે છે – ઉદય અને ઉદયનિષ્પન્ન. ઉદય – ઔદયિક ભાવનું સ્વરૂપ કેવું છે ? જ્ઞાનાવરણીયાદિ આઠ પ્રકારના
Anuyogdwar અનુયોગદ્વારાસૂત્ર Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Gujarati 175 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एएसि णं सत्तण्हं सराणं सत्त सरलक्खणा पन्नत्ता, तं जहा–

Translated Sutra: આ સાત સ્વરોના સાત સ્વર લક્ષણ કહ્યા છે, તે આ પ્રમાણે છે – ષડ્‌જ સ્વરવાળા મનુષ્ય વૃત્તિ – આજીવિકા પ્રાપ્ત કરે છે. તેનો પ્રયત્ન વ્યર્થ જતો નથી. તેને ગોધન, પુત્ર, મિત્રનો સંયોગ થાય છે. તે સ્ત્રીઓને પ્રિય હોય છે. ઋષભ સ્વરવાળા મનુષ્ય ઐશ્વર્યશાળી હોય છે. તે સેનાપતિત્વ, ધન – ધાન્ય, વસ્ત્ર, ગંધ, અલંકાર, સ્ત્રી, શયનાસન વગેરે
Anuyogdwar અનુયોગદ્વારાસૂત્ર Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Gujarati 219 Gatha Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] विम्हयकरो अपुव्वो, ऽनुभूयपुव्वो य जो रसो होइ । हरिसविसायुप्पत्तिलक्खणो अब्भुओ नाम ॥

Translated Sutra: પૂર્વે અનુભવેલ ન હોય અથવા પૂર્વે અનુભવેલ એવા કોઈ વિસ્મયકારી આશ્ચર્યકારક પદાર્થને જોઈને જે આશ્ચર્ય થાય છે, તેનું નામ અદ્‌ભુતરસ છે. હર્ષ અને વિષાદની ઉત્પત્તિ એ અદ્‌ભુતરસનું લક્ષણ છે. તેનું ઉદાહરણ – આ જીવલોકમાં તેનાથી અધિક અદ્‌ભુત બીજું શું હોઈ શકે કે જિનવચન દ્વારા ત્રિકાળ સંબંધી સમસ્ત પદાર્થો જણાય છે. ભયોત્પાદક
Anuyogdwar અનુયોગદ્વારાસૂત્ર Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Gujarati 223 Gatha Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] विनओवयार-गुज्झ-गुरुदार-मेरावइक्कमुप्पन्नो । वेलणओ नाम रसो, लज्जासंकाकरणलिंगो ॥

Translated Sutra: વિનય કરવા યોગ્ય માતા – પિતા તેમજ ગુરુજનોનો વિનય ન કરવાથી, ગુપ્ત રહસ્યોને પ્રગટ કરવાથી, ગુરુપત્ની સાથે મર્યાદાનું ઉલ્લંઘન કરવાથી વ્રીડનક લજ્જાનક. રસ ઉત્પન્ન થાય છે. લજ્જા અને શંકા ઉત્પન્ન થવી તે આ રસના લક્ષણ છે. વ્રીડનક – લજ્જાનક રસનું ઉદાહરણ – કોઈ વધૂ કહે છે. આ લૌકિક વ્યવહારથી વધુ લજ્જાસ્પદ બીજી કઈ વાત હોઈ
Anuyogdwar અનુયોગદ્વારાસૂત્ર Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Gujarati 244 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] –से तं नक्खत्तनामे। से किं तं देवयानामे? देवयनामे – अग्गिदेवयाहिं जाए– अग्गिए अग्गिदिन्ने अग्गिधम्मे अग्गि-सम्मे अग्गिदेवे अग्गिदासे अग्गिसेने अग्गिरक्खिए। एवं सव्वनक्खत्तदेवयानामा भाणियव्वा। एत्थं पि संगहणिगाहाओ–

Translated Sutra: દેવનામનું સ્વરૂપ કેવું છે ? નક્ષત્રના અધિષ્ઠાતા દેવના નામ ઉપરથી નામ સ્થાપવામાં આવે તો તે દેવનામ કહેવાય. જેમ કે કૃતિકા નક્ષત્રના અધિષ્ઠાતા દેવ અગ્નિ છે. અગ્નિ દેવથી અધિષ્ઠિત નક્ષત્રમાં જન્મેલ બાળકનું નામ આગ્નિક, અગ્નિદત્ત, અગ્નિધર્મ, અગ્નિશર્મ, અગ્નિદાસ, અગ્નિસેન, અગ્નિરક્ષિત વગેરે રાખવું. આ જ પ્રમાણે અન્ય
Anuyogdwar અનુયોગદ્વારાસૂત્ર Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Gujarati 250 Gatha Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] १. कम्मे २. सिप्प ३. सिलोए, ४. संजोग ५. समीवओ य ६. संजूहे । ७ इस्सरिया ८. वच्चेण य, तद्धितनामं तु अट्ठविहं ॥

Translated Sutra: તદ્ધિત નિષ્પન્ન નામનું સ્વરૂપ કેવું છે ? ૧. કર્મ, ૨. શિલ્પ, ૩. શ્લોક, ૪. સંયોગ, ૫. સમીપ ૬. સંયૂથ, ૭. ઐશ્વર્ય, ૮. અપત્ય. આ તદ્ધિત નિષ્પન્ન નામના આઠ પ્રકાર જાણવા.
Anuyogdwar અનુયોગદ્વારાસૂત્ર Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Gujarati 251 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं कम्मनामे? कम्मनामे–दोसिए सोत्तिए कप्पासिए भंडवेयालिए कोलालिए। से तं कम्मनामे। से किं तं सिप्पनामे? सिप्पनामे–वत्थिए तंतिए तुन्नाए तंतुवाए पट्टकारे देअडे वरुडे मुंजकारे कट्ठकारे छत्तकारे वज्झकारे पोत्थकारे चित्तकारे दंतकारे लेप्पकारे कोट्टिमकारे। से तं सिप्पनामे। से किं तं सिलोगनामे? सिलोगनामे–समणे माहणे सव्वातिही। से तं सिलोगनामे। से किं तं संजोगनामे? संजोगनामे–रण्णो ससुरए, रण्णो जामाउए, रण्णो साले, रण्णो भाउए, रण्णो भगिणीवई से तं संजोगनामे। से किं तं समीवनामे? समीवनामे–गिरिस्स समीवे नगरं गिरिनगरं, विदिसाए समीवे नगरं वेदिसं, वेन्नाए समीवे

Translated Sutra: [૧] કર્મનામનું સ્વરૂપ કેવું છે ? કર્મનામ તદ્ધિતના ઉદાહરણ છે – દૌષ્યિક – વસ્ત્રના વેપારી, સૌત્રિક – સૂતરના વેપારી, કાર્પાસિક – કપાસના વેપારી, સૂત્રવૈયાલિક – સૂતર વેચનાર, ભાંડવૈયાલિક – વાસણ વેચનાર, કૌલાલિક – માટીના વાસણ વેચનાર. આ સર્વ તદ્ધિત કર્મનામ છે. [૨] શિલ્પ નામનું સ્વરૂપ કેવું છે ? શિલ્પનામ તદ્ધિતના ઉદાહરણ
Anuyogdwar અનુયોગદ્વારાસૂત્ર Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Gujarati 263 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एएणं अंगुलप्पमाणेणं छ अंगुलाइं पाओ, दो पाया विहत्थी, दो विहत्थीओ रयणी, दो रयणीओ कुच्छी, दो कुच्छीओ दंडं धणू जुगे नालिया अक्खे मुसले, दो धणुसहस्साइं गाउयं, चत्तारि गाउयाइं जोयणं। एएणं आयंगुलप्पमाणेणं किं पओयणं? एएणं आयंगुलप्पमाणेणं–जे णं जया मणुस्सा भवंति तेसि णं तया अप्पणो अंगुलेणं अगड-तलाग-दह-नदी-वावी-पुक्खरिणी-दीहिया-गुंजालियाओ सरा सरपंतियाओ सरसरपंतियाओ बिलपंतियाओ आरामुज्जाण-काणण-वण-वणसंड-वणराईओ देवकुल-सभा-पवा-थूभ-खाइय-परिहाओ, पागार-अट्टालय-चरिय-दार-गोपुर-पासाय-घर-सरण-लेण-आवण- सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह- महापह-पह- सगड-रह-जाण-जुग्ग-गिल्लि-थिल्लि-सीय-संदमाणियाओ

Translated Sutra: સૂત્ર– ૨૬૩. [૧] ઉપરોક્ત અંગુલ પ્રમાણ અનુસાર ૧. આત્માંગુલથી છ અંગુલનો પાદ, ૨. બે પાદની વેંત, ૩. બે વેંતની રત્નિ હાથ., ૪. બે રત્નિની કુક્ષિ, ૫. બે કુક્ષિનો દંડ, ધનુષ્ય, યુગ, નાલિકા, અક્ષ અને મૂસલ થાય છે. ૬. બે હજાર ધનુષ્યનો એક ગાઉ – કોશ, ૭. ચાર ગાઉનો એક યોજન થાય છે. [૨] આત્માંગુલ પ્રમાણનું શું પ્રયોજન છે ? આત્માંગુલ પ્રમાણથી
Anuyogdwar અનુયોગદ્વારાસૂત્ર Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Gujarati 265 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं परमाणू? परमाणू दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–सुहुमे य वावहारिए य। तत्थ सुहुमो ठप्पो। से किं तं वावहारिए? वावहारिए–अनंताणं सुहुमपरमाणुपोग्गलाणं समुदय-समिति-समागमेणं से एगे वावहारिए परमाणुपोग्गले निप्फज्जइ। १. से णं भंते! असिधारं वा खुरधारं वा ओगाहेज्जा? हंता ओगाहेज्जा। से णं तत्थ छिज्जेज्ज वा भिज्जेज्ज वा? नो इणमट्ठे समट्ठे, नो खलु तत्थ सत्थं कमइ। २. से णं भंते! अगणिकायस्स मज्झंमज्झेणं वीइवएज्जा? हंता वीइवएज्जा। से णं तत्थ डहेज्जा? नो इणमट्ठे समट्ठे, नो खलु तत्थ सत्थं कमइ। ३. से णं भंते! पोक्खलसंवट्टगस्स महामेहस्स मज्झंमज्झेणं वीइवएज्जा? हंता वीइवएज्जा।

Translated Sutra: પરમાણુનું સ્વરૂપ કેવું છે ? પરમાણુ બે પ્રકારના કહ્યા છે, તે આ પ્રમાણે છે – ૧. સૂક્ષ્મ પરમાણુ ૨. વ્યવહાર પરમાણુ. બે પ્રકારના પરમાણુમાંથી સૂક્ષ્મ પરમાણુનો અહીં અધિકાર ન હોવાથી તે સ્થાપનીય છે અર્થાત્‌ તેનું વર્ણન ન કરતા વ્યવહાર પરમાણુનું વર્ણન શાસ્ત્રકાર કરે છે. વ્યાવહારિક પરમાણુનું સ્વરૂપ કેવું છે ? અનંતાનંત
Anuyogdwar અનુયોગદ્વારાસૂત્ર Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Gujarati 267 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अनंताणं वावहारियपरमाणुपोग्गलाणं समुदय-समिति-समागमेणं सा एगा उसण्ह-सण्हिया इ वा, सण्हसण्हिया इ वा, उड्ढरेणू इ वा, तसरेणू इ वा, रहरेणू इ वा, वालग्गे इ वा, लिक्खा इ वा, जूया इ वा, जवमज्झे इ वा, अंगुले इ वा? । अट्ठ उसण्हसण्हियाओ सा एगा सण्हसण्हिया, अट्ठ सण्हसण्हियाओ सा एगा उड्ढरेणू, अट्ठ उड्ढरेणूओ सा एगा तसरेणू, एगा तसरेणू, अट्ठ तसरेणूओ सा एगा रहरेणू, अट्ठ रहरेणूओ देवकुरु-उत्तरकुरुगाणं मणुस्साणं से एगे वालग्गे अट्ठ देवकुरु-उत्तरकुरु-गाणं मणुस्साणं वालग्गा हरिवास-रम्मगवासाणं मणुस्साणं से एगे वालग्गे, अट्ठ हरिवास-रम्मगवासाणं मणुस्साणं वालग्गा हेमवय-हेरन्नवयाणं मणुस्साणं

Translated Sutra: સૂત્ર– ૨૬૭. [૧] તે અનંતાનંત વ્યાવહારિક પરમાણુઓનો સમુદાય એકત્રિત થવાથી એક ઉત્શ્લક્ષ્ણ શ્લક્ષ્ણિકા, ઉર્ધ્વરેણુ, ત્રસરેણુ, રથરેણુ, વાલાગ્ર, લીખ, જૂ, જવમધ્ય અને આંગુલની નિષ્પત્તિ થાય છે, તે આ પ્રમાણે છે – ૧. આઠ ઉત્શ્લક્ષ્ણ – શ્લક્ષ્ણિકા = એક શ્લક્ષ્ણ – શ્લક્ષણિકા, ૨. આઠ શ્લક્ષ્ણ – શ્લક્ષણિકા = એક ઉર્ધ્વરેણુ, ૩. આઠ
Anuyogdwar અનુયોગદ્વારાસૂત્ર Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Gujarati 270 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] मणुस्साणं भंते केमहालिया सरीरोगाहणा पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं एणं पमाणंगुलेणं किं पओयणं? एएणं पमाणंगुलेणं पुढवीणं कंडाणं पातालाणं भवणाणं भवणपत्थडाणं निरयाणं निरयावलियाणं निरयपत्थडाणं कप्पाणं विमाणाणं विमाणावलियाणं विमाणपत्थडाणं टंकाणं कूडाणं सेलाणं सिहरीणं पब्भ-राणं विजयाणं वक्खाराणं वासाणं वासहराणं पव्वयाणं वेलाणं वेइयाणं दाराणं तोरणाणं दीवाणं समुद्दाणं आयाम-विक्खंभ-उच्चत्त-उव्वेह-परिक्खेवा मविज्जंति। से समासओ तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–सेढीअंगुले पयरंगुले घणंगुले। असंखेज्जाओ जोयणकोडाकोडीओ सेढी, सेढी सेढीए गुणिया पयरं, पयरं सेढीए गुणियं लोगो,

Translated Sutra: [૧] હે ભગવન્‌ ! મનુષ્યના શરીરની અવગાહના કેટલી છે ? હે ગૌતમ! જઘન્ય અંગુલના અસંખ્યાતમા ભાગની અને ઉત્કૃષ્ટ ત્રણ ગાઉ છે. હે ભગવન્‌ ! સંમૂર્ચ્છિમ મનુષ્યોની અવગાહના કેટલી છે ? હે ગૌતમ ! સંમૂર્ચ્છિમ મનુષ્યોની જઘન્ય અને ઉત્કૃષ્ટ અવગાહના અંગુલના અસંખ્યાતમા ભાગની છે. હે ભગવન્‌ ! ગર્ભજ મનુષ્યોની અવગાહના કેટલી છે ? હે ગૌતમ
Anuyogdwar અનુયોગદ્વારાસૂત્ર Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Gujarati 275 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं समए? समयस्स णं परूवणं करिस्सामि–से जहानामए तुन्नागदारए सिया तरुणे बलवं जुगवं जुवाणे अप्पातंके थिरग्गहत्थे दढपाणि-पाय-पास-पिट्ठं-तरोरुपरिणते तलजमलजुयल-परिघनिभबाहू चम्मेट्ठग-दुहण-मुट्ठिय-समाहत-निचित-गत्तकाए उरस्सबलसमन्नागए लंघण, पवण-जइण-वायामसमत्थे छेए दक्खे पत्तट्ठे कुसले मेहावी निउणे निउणसिप्पोवगए एगं महतिं पडसाडियं वा पट्टसाडियं वा गहाय सयराहं हत्थमेत्तं ओसारेज्जा। तत्थ चोयए पन्नवयं एवं वयासी–जेणं कालेणं तेणं तुन्नागदारएणं तीसे पडसाडियाए वा पट्टसाडियाए वा सयराहं हत्थमेत्तं ओसारिए से समए भवइ? नो इणमट्ठे समट्ठे। कम्हा? जम्हा संखेज्जाणं

Translated Sutra: [૧] સમય કોને કહેવાય ? સમયનું સ્વરૂપ શું છે ? કોઈ એક તરુણ, બળવાન, ત્રીજા – ચોથા આરામાં જન્મેલ, નીરોગી, સ્થિર હસ્તાગ્રવાન, સુદૃઢ – વિશાળ હાથ, પગ, પીઠ – પાંસળી અને જંઘાવાળા, દીર્ઘતા, સરલતા અને પીનત્વની દૃષ્ટિથી સમાન – સમશ્રેણીમાં સ્થિત તાલવૃક્ષ યુગલ અથવા કપાટ અર્ગલા તુલ્ય બે ભુજાના ધારક ચર્મેષ્ટક, મુદ્‌ગર, મુષ્ટિકા,
Anuyogdwar અનુયોગદ્વારાસૂત્ર Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Gujarati 289 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइयाणं भंते! केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं दसवाससहस्साइं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं। जहा पन्नवणाए ठिईपए सव्वसत्ताणं। से तं सुहुमे अद्धापलिओवमे। से तं अद्धापलिओवमे जाव जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखिज्जइभागो अंतोमुहुत्तो एत्थ एएसिं संगहणि गाहाओ भवंति तं जहा–

Translated Sutra: સૂત્ર– ૨૮૯. [૧] હે ભગવન્‌ ! નારકીઓની સ્થિતિ કેટલા કાળની કહી છે ? હે ગૌતમ ! નારકીની જઘન્ય ૧૦,૦૦૦ વર્ષ અને ઉત્કૃષ્ટ – ૩૩ સાગરોપમની છે. હે ભગવન્‌ ! રત્નપ્રભા નરકના નારકીની સ્થિતિ કેટલી છે ? હે ગૌતમ ! જઘન્ય ૧૦,૦૦૦ વર્ષ અને ઉત્કૃષ્ટ એક સાગરોપમની છે. હે ભગવન્‌ ! રત્નપ્રભા નરકના અપર્યાપ્ત નારકીની સ્થિતિ કેટલી છે ? હે ગૌતમ!
Anuyogdwar અનુયોગદ્વારાસૂત્ર Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Gujarati 292 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] मणुस्साणं भंते! केवइअं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं जाव अजहन्नमणुक्कोसं तेत्तीसं सागरोवमाइं से तं सुहुमे अद्धापलिओवमे से तं अद्धा पलिओवमे।

Translated Sutra: [૧] હે ભગવન્‌ ! મનુષ્યોની આયુસ્થિતિ કેટલી છે ? હે ગૌતમ ! જઘન્ય અંતર્મુહૂર્ત્ત, ઉત્કૃષ્ટ ત્રણ પલ્યોપમની છે. સંમૂર્ચ્છિમ મનુષ્યની જઘન્ય અંતર્મુહૂર્ત્ત અને ઉત્કૃષ્ટ પણ અંતર્મુહૂર્ત્તની છે. ગર્ભજ મનુષ્યોની સ્થિતિ જઘન્ય અંતર્મુહૂર્ત્ત અને ઉત્કૃષ્ટ ત્રણ પલ્યોપમની છે. અપર્યાપ્ત ગર્ભજ મનુષ્યની જઘન્ય – ઉત્કૃષ્ટ
Anuyogdwar અનુયોગદ્વારાસૂત્ર Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Gujarati 303 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तं जहा–खतेण वा वणेण वा लंछणेण वा मसेण वा तिलएण वा। से तं पुव्ववं। से किं तं सेसवं? सेसवं पंचविहं पन्नत्तं, तं–कज्जेणं कारणेणं गुणेणं अवयवेणं आसएणं। से किं तं कज्जेणं? कज्जेणं–संखं सद्देणं, भेरिं तालिएणं, वसभं ढिंकिएणं, मोरं केकाइएणं, हयं हेसिएणं, हत्थिं गुलगुलाइएणं, रहं घणघणाइएणं। से तं कज्जेणं। से किं तं कारणेणं? कारणेणं–तंतवो पडस्स कारणं न पडो तंतुकारणं, वीरणा कडस्स कारणं न कडो वीरणका-रणं, मप्पिंडो घडस्स कारणं न घडो मप्पिंडकारणं। से तं कारणेणं। से किं तं गुणेणं? गुणेणं–सुवण्णं निकसेणं, पुप्फं गंधेणं, लवणं रसेणं, मइरं आसाएणं, वत्थं फासेणं। से तं गुणेणं। से किं

Translated Sutra: સૂત્ર– ૩૦૩ થી ૩૦૫. [૧] શેષવત્‌ અનુમાનનું સ્વરૂપ કેવું છે ? શેષવત અનુમાનના પાંચ પ્રકાર છે, તે આ પ્રમાણે છે – ૧. કાર્યથી, ૨. કારણથી, ૩. ગુણથી, ૪. અવયવથી, ૫. આશ્રયથી. કાર્યલિંગ જન્ય શેષવત અનુમાનનું સ્વરૂપ કેવું છે ? કાર્ય જોઈને કારણનું જ્ઞાન થાય તેને કાર્ય લિંગજન્ય શેષવત અનુમાન કહે છે. દા.ત. શંખનો ધ્વનિ સાંભળી શંખનું જ્ઞાન,
Anuyogdwar અનુયોગદ્વારાસૂત્ર Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Gujarati 307 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra:

Translated Sutra: સૂત્ર– ૩૦૭. [૧] આર્દ્રા – રોહિણી વગેરે નક્ષત્રમાં થનાર અથવા અન્ય કોઈ પણ પ્રકારના પ્રશસ્ત ઉલ્કાપાત વગેરે જોઈને અનુમાન કરવું કે આ દેશમાં સુવૃષ્ટિ થશે. તે અનાગતકાળગ્રહણ વિશેષદૃષ્ટ સાધર્મ્યવત્‌ અનુમાન છે. [૨] તેની વિપરીતતામાં પણ ત્રણ પ્રકાર ગ્રહણ થાય છે. અતીતકાળગ્રહણ, પ્રત્યુત્પન્નકાળ ગ્રહણ અને અનાગત – કાળગ્રહણ. અતીતકાળ
Anuyogdwar અનુયોગદ્વારાસૂત્ર Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Gujarati 310 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नयप्पमाणे? नयप्पमाणे तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–पत्थगदिट्ठंतेणं वसहिदिट्ठंतेणं पएसदिट्ठंतेणं। से किं तं पत्थगदिट्ठंतेणं? पत्थगदिट्ठंतेणं–से जहानामए केइ पुरिसे परसुं गहाय अडविहुत्तो गच्छेज्जा, तं च केइ पासित्ता वएज्जा–कहिं भवं गच्छसि? अविसुद्धो नेगमो भणति–पत्थगस्स गच्छामि। तं च केइ छिंदमाणं पासित्ता वएज्जा–किं भवं छिंदसि? विसुद्धो नेगमो भणति–पत्थगं छिंदामि। तं च केइ तच्छेमाणं पासित्ता वएज्जा–किं भवं तच्छेसि? विसुद्धतराओ नेगमो भणति–पत्थगं तच्छेमि। तं च केइ उक्किरमाणं पासित्ता वएज्जा–किं भवं उक्किरसि? विसुद्धतराओ नेगमो भणति–पत्थगं उक्किरामि। तं

Translated Sutra: [૧] નયપ્રમાણનું સ્વરૂપ કેવું છે ? નયપ્રમાણના ત્રણ પ્રકાર છે. ત્રણ દૃષ્ટાંતથી તેનું સ્વરૂપ સ્પષ્ટ કર્યું છે.. ૧. પ્રસ્થકના દૃષ્ટાંત દ્વારા ૨. વસતિના દૃષ્ટાંત દ્વારા ૩. પ્રદેશના દૃષ્ટાંત દ્વારા. [૨] પ્રસ્થકનું દૃષ્ટાંત શું છે ? કોઈ પુરુષ કુહાડી લઈ વન તરફ જતો હોય, તેને વનમાં જતા જોઈને કોઈ મનુષ્યે પૂછ્યું, તમે ક્યાં
Showing 301 to 350 of 4438 Results