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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 108 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] एवं उदओल्ले ससिणिद्धे ससरक्खे मट्टिया ऊसे ।
हरियाले हिंगलए मणोसिला अंजणे लोणे ॥ Translated Sutra: यदि हाथ या कडछी भीगे हुए हो, सचित्त जल से स्निग्ध हो, सचित्त रज, मिट्टी, खार, हरताल, हिंगलोक, मनःशील, अंजन, नमक तथा – | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 109 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] गेरुय वण्णिय सेडिय सोरट्ठिय पिट्ठ कुक्कुस कए य ।
उक्कट्ठमसंसट्ठे संसट्ठे चेव बोधव्वे ॥ Translated Sutra: गेरु, पीली मट्टी, सफेद मट्टी, फटकडी, अनाज का भुसा तुरंत का पीसा हुआ आटा, फल या टुकडा इत्यादि से लिप्त हो तो मुनि को नहीं कल्पता। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 110 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] असंसट्ठेण हत्थेण दव्वीए भायणेण वा ।
दिज्जमाणं न इच्छेज्जा पच्छाकम्मं जहिं भवे ॥ Translated Sutra: जहाँ पश्चात्कर्म की संभावना हो, वहाँ असंसृष्ट हाथ, कड़छी अथवा बर्तन से दिये जाने वाले आहार को ग्रहण करने की इच्छा न करे। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 111 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] संसट्ठेण हत्थेण दव्वीए भायणेण वा ।
दिज्जमाणं पडिच्छेज्जा जं तत्थेसणियं भवे ॥ Translated Sutra: (किन्तु) संसृष्ट हाथ से, कड़छी से या बर्तन से दिया जाने वाला आहार यदि एषणीय हो तो मुनि लेवे। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 112 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] दोण्हं तु भुंजमाणाणं एगो तत्थ निमंतए ।
दिज्जमाणं न इच्छेज्जा छंदं से पडिलेहए ॥ Translated Sutra: (जहाँ) दो स्वामी या उपभोक्ता हों और उनमें से एक निमंत्रित करे, तो मुनि उस दिये जाने वाले आहार को ग्रहण करने की इच्छा न करे। वह दूसरे के अभिप्राय को देखे ! यदि उसे देना प्रिय लगता हो तो यदि वह एषणीय हो तो ग्रहण कर ले। सूत्र – ११२, ११३ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 113 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] दोण्हं तु भुंजमाणाणं दोवि तत्थ निमंतए ।
दिज्जमाणं पडिच्छेज्जा जं तत्थेसणियं भवे ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ११२ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 114 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] गुव्विणीए उवन्नत्थं विविहं पाणभोयणं ।
भुज्जमाणं विवज्जेज्जा भुत्तसेसं पडिच्छए ॥ Translated Sutra: गर्भवती स्त्री के लिए तैयार किये विविध पान और भोजन यदि उसके उपभोग में आ रहे हों, तो मुनि ग्रहण न करे, किन्तु यदि उसके खाने से बचे हुए हों तो उन्हें ग्रहण कर ले। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 115 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] सिया य समणट्ठाए गुव्विणी कालमासिणी ।
उट्ठिया वा निसीएज्जा निसन्ना वा पुणट्ठए ॥ Translated Sutra: कदाचित् कालमासवती गर्भवती महिला खड़ी हो और श्रमण के लिए बैठे; अथवा बैठी हो और खड़ी हो जाए तो, स्तनपान कराती हुई महिला यदि बालक को रोता छोड़ कर भक्त – पान लाए तो वह भक्त – पान संयमियों के लिए अकल्पनीय होता है। अतः उसे निषेध करे कि इस प्रकार का आहार मेरे लिए ग्रहण करने योग्य नहीं है। सूत्र – ११५–११८ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 116 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] तं भवे भत्तपानं तु संजयाण अकप्पियं ।
देंतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ११५ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 117 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] थणगं पिज्जेमाणी दारगं वा कुमारियं ।
तं निक्खिवित्तु रोयंतं आहरे पानभोयणं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ११५ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 118 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] तं भवे भत्तपानं तु संजयाण अकप्पियं ।
देंतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ११५ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 119 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] जं भवे भत्तपानं तु कप्पाकप्पम्मि संकियं ।
देंतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥ Translated Sutra: जिस भक्त – पान के कल्पनीय या अकल्पनीय होने में शंका हो, उसे देती हुई महिला को मुनि निषेध कर दे कि मेरे लिए यह आहार कल्पनीय नहीं है। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 120 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] दगवारएण पिहियं नीसाए पीढएण वा ।
लोढेण वा वि लेवेण सिलेसेण व केणई ॥ Translated Sutra: पानी के घड़े, पत्थर की चक्की, पीठ, शिलापुर, मिट्टी आदि के लेप, लाख आदि श्लेषद्रव्यों या किसी अन्य द्रव्य से – पिहित बर्तन का श्रमण के लिए मुंह खोल कर आहार देती हुई महिला को मुनि निषेध कर दे कि मेरे लिए यह आहार ग्रहण करने योग्य नहीं है। सूत्र – १२०, १२१ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 121 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] तं च उब्भिंदिया देज्जा समणट्ठाए व दावए ।
देंतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १२० | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 122 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] असनं पानगं वा वि खाइमं साइमं तहा ।
जं जाणेज्ज सुणेज्जा वा दाणट्ठा पगडं इमं ॥ Translated Sutra: यदि मुनि यह जान जाए या सुन ले कि यह अशन, पान, खाद्य या स्वाद्य दानार्थ, पुण्यार्थ, वनीपकों के लिए या श्रमणों के निमित्त बनाया गया है तो वह भक्त – पान संयमियों के लिए अकल्पनीय होता है। (इसलिए) भिक्षु उस को निषेध कर दे कि इस प्रकार का आहार मेरे लिए ग्राह्य नहीं है। सूत्र – १२२–१२९ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 123 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] तं भवे भत्तपानं तु संजयाण अकप्पियं ।
देंतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १२२ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 124 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] असनं पानगं वा वि खाइमं साइमं तहा ।
जं जाणेज्ज सुणेज्जा वा पुण्णट्ठा पगडं इमं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १२२ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 125 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] तं भवे भत्तपानं तु संजयाण अकप्पियं ।
देंतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १२२ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 126 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] असनं पानगं वा वि खाइमं साइमं तहा ।
जं जाणेज्ज सुणेज्जा वा वणिमट्ठा पगडं इमं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १२२ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 127 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] तं भवे भत्तपानं तु संजयाण अकप्पियं ।
देंतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १२२ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 128 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] असनं पानगं वा वि खाइमं साइमं तहा ।
जं जाणेज्ज सुणेज्जा वा समणट्ठा पगडं इमं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १२२ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 129 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] तं भवे भत्तपानं तु संजयाण अकप्पियं ।
देंतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १२२ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 130 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] उद्देसियं कीयगडं पूईकम्मं च आहडं ।
अज्झोयर पामिच्चं मीसजायं च वज्जए ॥ Translated Sutra: साधु या साध्वी औद्देशिक, क्रीतकृत, पूतिकर्म, आहृत, अध्यवतर, प्रामित्य और मिश्रजात, आहार न ले। पूर्वोक्त आहारादि के विषय में शंका होने पर उस का उद्गम पूछे कि यह किसके लिए किसने बनाया है ? फिर निःशंकित और शुद्ध जान कर आहार ग्रहण करे। सूत्र – १३०, १३१ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 131 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] उग्गमं से पुच्छेज्जा कस्सट्ठा केण वा कडं? ।
सोच्चा निस्संकियं सुद्धं पडिगाहेज्ज संजए ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १३० | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 132 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] असनं पानगं वा वि खाइमं साइमं तहा ।
पुप्फेसु होज्ज उम्मीसं बीएसु हरिएसु वा ॥ Translated Sutra: | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 133 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] तं भवे भत्तपानं तु संजयाण अकप्पियं ।
देंतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १३२ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 134 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] असनं पानगं वा वि खाइमं साइमं तहा ।
उदगम्मि होज्ज निक्खित्तं उत्तिंगपणगेसु वा ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १३२ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 135 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] तं भवे भत्तपानं तु संजयाण अकप्पियं ।
देंतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १३२ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 136 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] असनं पानगं वा वि खाइमं साइमं तहा ।
तेउम्मि होज्ज निक्खित्तं तं च संघट्टिया दए ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १३२ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 137 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] तं भवे भत्तपानं तु संजयाण अकप्पियं ।
देंतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १३२ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 138 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] एवं उस्सक्किया ओसक्किया उज्जालिया पज्जालिया निव्वाविया ।
उस्सिंचिया निस्सिंचिया ओवत्तिया ओयारिया दए ॥ Translated Sutra: चूले में से इंधन निकालकर अग्नि प्रज्वलित करके या तेज करके या अग्नि को ठंडा करके, अन्न का उभार देखकर उसमें से कुछ कम करके या जल डालके या अग्नि से नीचे उतारकर देवें तो वह भोजनपान संयमी के लिए अकलप्य है। तब भिक्षु कहता है कि यह भिक्षा मुझे कल्प्य नहीं है। सूत्र – १३८, १३९ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 139 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] तं भवे भत्तपानं तु संजयाण अकप्पियं ।
देंतिय पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १३८ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 140 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] होज्ज कट्ठं मिलं वा वि इट्टालं वा वि एगया ।
ठवियं संकमट्ठाए तं च होज्ज चलाचलं ॥ Translated Sutra: कभी काठ, शिला या ईंट संक्रमण के लिए रखे हों और वे चलाचल हों, तो सर्वेन्द्रिय – समाहित भिक्षु उन पर से होकर न जाए। इसी प्रकार प्रकाशरहित और पोले मार्ग से भी न जाए। भगवान् ने उसमें असंयम देखा है। सूत्र – १४०, १४१ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 141 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] न तेण भिक्खू गच्छेज्जा दिट्ठो तत्थ असंजमो ।
गंभीरं ज्झुसिरं चेव सव्विंदियसमाहिए ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १४० | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 142 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] निस्सेणिं फलगं पीढं उस्सवित्ताणमारुहे ।
मंचं कीलं च पासायं समणट्ठाए व दावए ॥ Translated Sutra: यदि आहारदात्री श्रमण के लिए निसैनी, फलक, या पीठ को ऊंचा करके मंच, कीलक अथवा प्रासाद पर चढ़े और वहाँ से भक्त – पान लाए तो उसे ग्रहण न करे; क्योंकि निसैनी आदि द्वारा चढ़ती हुई वह गिर सकती है, उसके हाथ – पैर टूट सकते हैं। पृथ्वी के तथा पृथ्वी के आश्रित त्रस जीवों की हिंसा हो सकती है। अतः ऐसे महादोषों को जान कर संयमी महर्षि | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 143 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] दुरूहमाणी पवडेज्जा हत्थं पायं व लूसए ॥
पुढविजीवे वि हिंसेज्जा जे य तन्निस्सिया जगा ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १४२ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 144 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] एयारिसे महादोसे जाणिऊण महेसिणो ।
तम्हा मालोहडं भिक्खं न पडिगेण्हंति संजया ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १४२ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 145 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] कंदं मूलं पलंबं वा आमं छिन्नं व सन्निरं ।
तुंबागं सिंगबेरं च आमगं परिवज्जए ॥ Translated Sutra: (साधु – साध्वी) अपक्व कन्द, मूल, प्रलम्ब, छिला हुआ पत्ती का शाक, घीया आदि अदरक ग्रहण न करे। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 146 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] तहेव सत्तुचुण्णाइं कोलचुण्णाइं आवणे ।
सक्कुलिं फाणियं पूयं अन्नं वा वि तहाविहं ॥ Translated Sutra: इसी प्रकार जौ आदि सत्तु का चूर्ण, बेर का चूर्ण, तिलपपड़ी, गीला गुड़, पूआ तथा इसी प्रकार की अन्य वस्तुऍं, जो बहुत समय से खुली हुई हों और रज से चारों ओर स्पृष्ट हों, तो साधु निषेध कर दे कि मैं इस प्रकार का आहार ग्रहण नहीं करता। सूत्र – १४६, १४७ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 147 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] विक्कायमाणं पसढं रएण परिफासियं ।
देंतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १४६ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 148 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] बहु-अट्ठियं पुग्गलं अनिमिसं वा बहु-कंटयं ।
अत्थियं तिंदुयं बिल्लं उच्छुखंडं व सिंबलिं ॥ Translated Sutra: बहुत अस्थियों वाला फल, बहुत – से कांटों वाला फल, आस्थिक, तेन्दु, बेल, गन्ने के टुकड़े और सेमली की फली, जिनमें खाद्य अंश कम हो और त्याज्य अंश बहुत अधिक हो, उन सब को निषेध कर दे कि इस प्रकार मेरे लिए ग्रहण करना योग्य नहीं है। सूत्र – १४८, १४९ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 149 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] अप्पे सिया भोयणजाए बहु-उज्झिय-धम्मिए ।
देंतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १४८ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 150 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] तहेवुच्चावयं पानं अदुवा वारधोयणं ।
संसेइमं चाउलोदगं अहुणाधोयं विवज्जए ॥ Translated Sutra: इसी प्रकार उच्चावच पानी अथवा गुड़ के घड़े का, आटे का, चावल का धोवन, इनमें से यदि कोई तत्काल का धोया हुआ हो, तो मुनि उसे ग्रहण न करे। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 151 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] जं जाणेज्ज चिराधोयं मईए दंसणेण वा ।
पडिपुच्छिऊण सोच्चा वा जं च निस्संकियं भवे ॥ Translated Sutra: यदि अपनी मति और दृष्टि से, पूछ कर अथवा सुन कर जान ले कि यह बहुत देर का धोया हुआ है तथा निःशंकित हो जाए तो जीवरहित और परिणत जान कर संयमी मुनि उसे ग्रहण करे। यदि यह जल मेरे लिए उपयोगी होगा या नहीं ? इस प्रकार की शंका हो जाए, तो फिर उसे चख कर निश्चय करे। ‘चखने के लिए थोड़ा – सा यह पानी मेरे हाथ में दो।’ यह पानी बहुत ही खट्टा, | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 152 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] अजीवं परिणयं नच्चा पडिगाहेज्ज संजए ।
अह संकियं भवेज्जा आसाइत्ताण रोयए ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १५१ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 153 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] थोवमासायणट्ठाए हत्थगम्मि दलाहि मे ।
मा मे अच्चंबिलं पूइं नालं तण्हं विणित्तए ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १५१ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 154 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] तं च अच्चंबिलं पूइं नालं तण्हं विणित्तए ।
देंतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १५१ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 155 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] तं च होज्ज अकामेणं विमणेण पडिच्छियं ।
तं अप्पणा न पिबे नो वि अन्नस्स दावए ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १५१ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 156 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] एगंतमवक्कमित्ता अचित्तं पडिलेहिया ।
जयं परिट्ठवेज्जा परिट्ठप्प पडिक्कमे ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १५१ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 157 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] सिया य गोयरग्गगओ इच्छेज्जा परिभोत्तुयं ।
कोट्ठगं भित्तिमूलं वा पडिलेहित्ताण फासुयं ॥ Translated Sutra: गोचराग्र के लिए गया हुआ भिक्षु कदाचित् आहार करना चाहे तो वह मेघावी मुनि प्रासुक कोष्ठक या भित्तिमूल का अवलोकन कर, अनुज्ञा लेकर किसी आच्छादित एवं चारों ओर से संवृत स्थल में अपने हाथ को भलीभाँति साफ करके वहाँ भोजन करे। उस स्थान में भोजन करते हुए आहार में गुठली, कांटा, तिनका, लकड़ी का टुकड़ा, कंकड़ या अन्य कोई वैसी |