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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Hindi | 135 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] जो चत्तारि कसाए घोरे ससरीरसंभवे निच्चं ।
जिनगरहिए निरुंभइ सो मरणे होइ कयजोगो ॥ Translated Sutra: जिनेश्वर भगवंत से गर्हित, स्वशरीर में पैदा होनेवाले, भयानक क्रोध आदि कषाय को जो पुरुष हंमेशा निग्रह करता है, वो मरण में समतायोग को सिद्ध करता है। | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Hindi | 147 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] धन्ना निच्चमरागा जिनवयणरया नियत्तियकसाया ।
निस्संगनिम्ममत्ता विहरंति जहिच्छिया साहू ॥ Translated Sutra: धन्य है उन साधुभगवंतों को जो हंमेशा जिनवचनमें रक्त रहते हैं, कषायों का जय करते हैं, बाह्य वस्तु प्रति जिनको राग नहीं है तथा निःसंग, निर्ममत्व बनकर यथेच्छ रूप से संयममार्ग में विचरते हैं। | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Hindi | 155 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] न वि सुज्झंति ससल्ला जह भणियं सव्वभावदंसीहिं ।
मरण-पुनब्भवरहिया आलोयण-निंदणा साहू ॥ Translated Sutra: शल्यवाले जीव की कभी शुद्धि नहीं होती, ऐसा सर्वभावदर्शी जिनेश्वरने कहा है। पाप की आलोचना, निंदा करनेवाले मरण और पुनः भव रहित होते हैं। एक बार भी शल्य रहित मरण से मरकर जीव महाभयानक इस संसार में बार – बार कईं जन्म और मरण करते हुए भ्रमण करते हैं। सूत्र – १५५, १५६ | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Hindi | 158 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] बहुमोहो विहरित्ता पच्छिमकालम्मि संवुडो सो उ ।
आराहणोवउत्तो जिनेहिं आराहओ भणिओ ॥ Translated Sutra: काफी वक्त पहले अति मोहवश जीवन जी कर अन्तिम जीवन में यदि संवृत्त होकर मरण के वक्त आराधना में उपयुक्त हो तो उसे जिनेश्वर ने आराधक कहा है। | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Hindi | 165 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] दुक्खाण ते मनूसा पारं गच्छंति जे दढधिईया ।
पुव्वपुरिसाणुचिण्णं जिनवयणपहं न मुंचंति ॥ Translated Sutra: दृढ़ – बुद्धियुक्त जो मानव पूर्व – पुरुष ने आचरण किए जिनवचन के मार्ग को नहीं छोड़ते, वो सर्व दुःख का पार पा लेते हैं। | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Hindi | 170 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] एवं आराहेंतो जिनोवइट्ठं समाहिमरणं तु ।
उद्धरियभावसल्लो सुज्झइ जीवो धुयकिलेसो ॥ Translated Sutra: इस तरह संक्लेश दूर करके, भावशल्य का उद्धार करनेवाले आत्मा जिनोक्त समाधिमरण की आराधना करते हुए शुद्ध होता है। | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Gujarati | 1 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] जगमत्थयत्थयाणं विगसियवरनाण-दंसणधराणं ।
नाणुज्जोयगराणं लोगम्मि नमो जिनवराणं ॥ Translated Sutra: (મંગલ અને દ્વાર નિરૂપણ) ૧. લોક પુરુષના મસ્તક (સિદ્ધશિલા). ઉપર સદા બિરાજમાન વિકસિત – પૂર્ણ, શ્રેષ્ઠ જ્ઞાન અને દર્શન ગુણના ધારક એવા શ્રી સિદ્ધ ભગવંતો અને લોકમાં જ્ઞાનનો ઉદ્યોત કરનારા શ્રી અરિહંત પરમાત્માને નમસ્કાર થાઓ. ૨. આ પ્રકરણ મોક્ષમાર્ગના દર્શક શાસ્ત્રો – જિનાગમોના સારભૂત અને મહાન ગંભીર અર્થવાળું છે. તેને | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Gujarati | 89 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] बारसविहम्मि वि तवे सब्भिंतर-बाहिरे जिनक्खाए ।
न वि अत्थि न वि य होही सज्झायसमं तवोकम्मं ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૭૨ | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Gujarati | 97 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] तम्हा एक्कं पि पयं चिंतंतो तम्मि देस-कालम्मि ।
आराहणोवउत्तो जिनेहिं आराहगो भणिओ ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૭૨ | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Gujarati | 100 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] ते धन्ना जे धम्मं चरिउं जिनदेसियं पयत्तेणं ।
गिहपासबंधणाओ उम्मुक्का सव्वभावेणं ॥ Translated Sutra: (ચારિત્રગુણ દ્વાર) ૧૦૦. જિનેશ્વર પરમાત્માએ કહેલા ધર્મનું પ્રયત્નપૂર્વક પાલન કરવા માટે જેઓ સર્વ પ્રકારે ગૃહપાશના બંધનથી સર્વથા મુક્ત થાય છે, તેઓ ધન્ય છે. ૧૦૧. વિશુદ્ધ ભાવ વડે એકાગ્ર ચિત્તવાળા બનીને જે પુરુષો જિનવચનનું પાલન કરે છે, તે ગુણ સમૃદ્ધ મુનિ મરણ સમય પ્રાપ્ત થવા છતાં સહેજ પણ વિષાદને અથવા ગ્લાનિને અનુભવતા | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Gujarati | 101 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] भावेण अनन्नमणा जे जिनवयणं सया अनुचरंति ।
ते मरणम्मि उवग्गे न विसीयंती गुणसमिद्धा ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૦૦ | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Gujarati | 47 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] जिनसासणमनुरत्तं गुरुजनमुहपिच्छिरं च धीरं च ।
सद्धागुणपरिपुण्णं विकारविरयं विनयमूलं ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૩૭ | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Gujarati | 61 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] पुव्विं परूविओ जिनवरेहिं विनओ अनंतनाणीहिं ।
सव्वासु कम्मभूमिसु निच्चं चिय मोक्खमग्गम्मि ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫૪ | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Gujarati | 68 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] न हु सक्का नाउं जे नाणं जिनदेसियं महाविसयं ।
ते धन्ना जे पुरिसा नाणी य चरित्तमंता य ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫૪ | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Gujarati | 80 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] नाणं पगासगं, सोहओ तवो, संजमो य गुत्तिकरो ।
तिण्हं पि समाओगे मोक्खो जिनसासणे भणिओ ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૭૨ | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Gujarati | 82 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] चंदाओ नीइ जोण्हा बहुस्सुयमुहाओ नीइ जिनवयणं ।
जं सोऊण मनूसा तरंति संसारकंतारं ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૭૨ | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Gujarati | 135 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] जो चत्तारि कसाए घोरे ससरीरसंभवे निच्चं ।
जिनगरहिए निरुंभइ सो मरणे होइ कयजोगो ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૧૭ | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Gujarati | 147 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] धन्ना निच्चमरागा जिनवयणरया नियत्तियकसाया ।
निस्संगनिम्ममत्ता विहरंति जहिच्छिया साहू ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૧૭ | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Gujarati | 158 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] बहुमोहो विहरित्ता पच्छिमकालम्मि संवुडो सो उ ।
आराहणोवउत्तो जिनेहिं आराहओ भणिओ ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૧૭ | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Gujarati | 165 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] दुक्खाण ते मनूसा पारं गच्छंति जे दढधिईया ।
पुव्वपुरिसाणुचिण्णं जिनवयणपहं न मुंचंति ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૧૭ | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Gujarati | 170 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] एवं आराहेंतो जिनोवइट्ठं समाहिमरणं तु ।
उद्धरियभावसल्लो सुज्झइ जीवो धुयकिलेसो ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૧૭ | |||||||||
Chatusharan | चतुश्शरण | Ardha-Magadhi |
आवश्यक अर्थाधिकार |
Hindi | 2 | Gatha | Painna-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] चारित्तस्स विसोही कीरइ सामाइएण किल इहइं ।
सावज्जेयरजोगाण वज्जणाऽऽसेवणत्तणओ १ ॥ Translated Sutra: इस जिनशासन में सामायिक के द्वारा निश्चय से चारित्र की विशुद्धि की जाती है। वह सावद्ययोग का त्याग करने से और निरवद्ययोग का सेवन करने से होता है। | |||||||||
Chatusharan | चतुश्शरण | Ardha-Magadhi |
आवश्यक अर्थाधिकार |
Hindi | 3 | Gatha | Painna-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] दंसणयारविसोही चउवीसायत्थएण कज्जइ य ।
अच्चब्भुयगुणकित्तणरूवेणं जिनवरिंदाणं २ ॥ Translated Sutra: दर्शनाचार की विशुद्धि चउविसत्थओ (लोगस्स) द्वारा की जाती है; वह चौबीस जिन के अति अद्भूत गुण के कीर्तन समान स्तुति के द्वारा होती है। | |||||||||
Chatusharan | चतुश्शरण | Ardha-Magadhi |
आवश्यक अर्थाधिकार |
Hindi | 6 | Gatha | Painna-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] चरणाइयाइयाणं जहक्कमं वणतिगिच्छरूवेणं ।
पडिकमणासुद्धाणं सोही तह काउसग्गेणं ५ ॥ Translated Sutra: चारित्रादिक के जिन अतिचार की प्रतिक्रमण के द्वारा शुद्धि न हुई हो उनकी शुद्धि गड् – गुमड़ के ओसड़ समान और क्रमिक आए हुए पाँचवे काउस्सग्ग नाम के आवश्यक द्वारा होती है। | |||||||||
Chatusharan | चतुश्शरण | Ardha-Magadhi |
चतुशरणं |
Hindi | 12 | Gatha | Painna-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अह सो जिनभत्तिभरुच्छरंतरोमंचकंचुयकरालो ।
पहरिसपणउम्मीसं सीसम्मि कयंजली भणइ ॥ Translated Sutra: अब तीर्थंकर की भक्ति के समूह से उछलती रोमराजी समान बख्तर से शोभायमान वो आत्मा काफी हर्ष और स्नेह सहित मस्तक झूकाकर दो हाथ जोड़कर इस मुताबिक कहता है – राग और द्वेष समान शत्रु का घात करनेवाले, आठ कर्म आदि शत्रु को हणनेवाले और विषय कषाय आदि वैरी को हणनेवाले अरिहंत भगवान मुझे शरण हो। सूत्र – १२, १३ | |||||||||
Chatusharan | चतुश्शरण | Ardha-Magadhi |
चतुशरणं |
Hindi | 23 | Gatha | Painna-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अरिहंतसरणमलसुद्धिलद्धसुविसुद्धसिद्धबहुमाणो ।
पणयसिररइयकरकमलसेहरो सहरिसं भणइ ॥ Translated Sutra: अरिहंत के शरण से होनेवाली कर्म समान मेल की शुद्धि के द्वारा जिसे अति शुद्ध स्वरूप प्रकट हुआ है वैसे सिद्ध परमात्मा के लिए जिन्हें आदर है ऐसा आत्मा झुके हुए मस्तक से विकस्वर कमल की दांड़ी समान अंजलि जोड़ कर हर्ष सहित (सिद्ध का शरण) कहते हैं। | |||||||||
Chatusharan | चतुश्शरण | Ardha-Magadhi |
चतुशरणं |
Hindi | 24 | Gatha | Painna-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] कम्मट्ठक्खयसिद्धा साहावियनाण-दंसणसमिद्धा ।
सव्वट्ठलद्धिसिद्धा ते सिद्धा हुंतु मे सरणं ॥ Translated Sutra: आठ कर्म के क्षय से सिद्ध होनेवाले, स्वाभाविक ज्ञान दर्शन की समृद्धिवाले और फिर जिन्हें सर्व अर्थ की लब्धि सिद्ध हुई है वैसे सिद्ध मुझे शरणरूप हो। | |||||||||
Chatusharan | चतुश्शरण | Ardha-Magadhi |
चतुशरणं |
Hindi | 32 | Gatha | Painna-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] केवलिणो परमोही विउलमई सुयहरा जिनमयम्मि ।
आयरिय उवज्झाया ते सव्वे साहुणो सरणं ॥ Translated Sutra: केवलीओ, परमावधिज्ञानवाले, विपुलमति मनःपर्यवज्ञानी श्रुतधर और जिनमत के आचार्य और उपाध्याय ये सब साधु मुझे शरणरूप हो। | |||||||||
Chatusharan | चतुश्शरण | Ardha-Magadhi |
चतुशरणं |
Hindi | 33 | Gatha | Painna-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] चउदस-दस-नवपुव्वी दुवालसिक्कारसंगिणो जे य ।
जिणकप्पाऽहालंदिय परिहारविसुद्धि साहू य ॥ Translated Sutra: चौदहपूर्वी, दसपूर्वी और नौपूर्वी और फिर जो बारह अंग धारण करनेवाले, ग्यारह अंग धारण करनेवाले, जिनकल्पी, यथालंदी और परिहारविशुद्धि चारित्रवाले साधु। क्षीराश्रवलब्धिवाले, मध्याश्रवलब्धिवाले, संभिन्नश्रोतलब्धिवाले, कोष्ठबुद्धिवाले, चारणमुनि, वैक्रियलब्धि – वाले और पदानुसारीलब्धिवाले साधु मुझे शरणरूप | |||||||||
Chatusharan | चतुश्शरण | Ardha-Magadhi |
चतुशरणं |
Hindi | 41 | Gatha | Painna-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पडिवन्नसाहुसरणो सरणं काउं पुणो वि जिनधम्मं ।
पहरिसरोमंचपवंचकंचुयंचियतणू भणइ ॥ Translated Sutra: साधु का शरण स्वीकार कर के, अति हर्ष से होनेवाले रोमांच के विस्तार द्वारा शोभायमान शरीरवाला (वह जीव) इस जिनकथित धर्म के शरण को अंगीकार करने के लिए इस तरह बोलते हैं – | |||||||||
Chatusharan | चतुश्शरण | Ardha-Magadhi |
चतुशरणं |
Hindi | 44 | Gatha | Painna-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] निद्दलियकलुसकम्मो कयसुहजम्मो खलीकयकुहम्मो ।
पमुहपरिणामरम्मो सरणं मे होउ जिनधम्मो ॥ Translated Sutra: मलीन कर्म का नाश करनेवाले, जन्म को पवित्र बनानेवाले, अधर्म को दूर करनेवाले इत्यादिक परिणाम में सुन्दर जिन धर्म मुझे शरणरूप हो। | |||||||||
Chatusharan | चतुश्शरण | Ardha-Magadhi |
चतुशरणं |
Hindi | 45 | Gatha | Painna-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] कालत्तए वि न मयं जम्मण-जर-मरण-वाहिसयसमयं ।
अमयं च बहुमयं जिनमयं च सरणं पवन्नो हं ॥ Translated Sutra: तीन काल में भी नष्ट न होनेवाले; जन्म, जरा, मरण और सेंकड़ों व्याधि का शमन करनेवाले अमृत की तरह बहुत लोगों को इष्ट ऐसे जिनमत को मैं शरण अंगीकार करता हूँ। | |||||||||
Chatusharan | चतुश्शरण | Ardha-Magadhi |
चतुशरणं |
Hindi | 48 | Gatha | Painna-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] भासुरसुवन्नसुंदररयणालंकारगारवमहग्घं ।
निहिमिव दोगच्चहरं धम्मं जिनदेसियं वंदे ॥ Translated Sutra: देदीप्यमान, उत्तम वर्ण की सुन्दर रचना समान अलंकार द्वारा महत्ता के कारणभूत से महामूल्यवाले, निधान समान अज्ञानरूप दारिद्र को हणनेवाले, जिनेश्वरों द्वारा उपदिष्ट ऐसे धर्म को मैं स्वीकार करता हूँ। | |||||||||
Chatusharan | चतुश्शरण | Ardha-Magadhi |
दुष्कतगर्हा |
Hindi | 50 | Gatha | Painna-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] इहभवियमन्नभवियं मिच्छत्तपवत्तणं जमहिगरणं ।
जिणपवयणपडिकुट्ठं दुट्ठं गरिहामि तं पावं ॥ Translated Sutra: जिनशासनमें निषेध किए हुए इस भव में और अन्य भव में किए मिथ्यात्व के प्रवर्तन समान जो अधिकरण (पापक्रिया), वे दुष्ट पाप की मैं गर्हा करता हूँ यानि गुरु की साक्षी से उसकी निन्दा करता हूँ। | |||||||||
Chatusharan | चतुश्शरण | Ardha-Magadhi |
उपसंहार |
Hindi | 62 | Gatha | Painna-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] चउरंगो जिनधम्मो न कओ, चउरंगसरणमवि न कयं ।
चउरंगभवच्छेओ न कओ, हा! हारिओ जम्मो ॥ Translated Sutra: जो (दान, शियल, तप और भाव समान) चार अंगवाला जिनधर्म न किया, जिसने (अरिहंत आदि) चार प्रकार से शरण भी न किया, और फिर जिसने चार गति समान संसार का छेद न किया हो, तो वाकई में मानव जन्म हार गया है। | |||||||||
Chatusharan | ચતુશ્શરણ | Ardha-Magadhi |
आवश्यक अर्थाधिकार |
Gujarati | 3 | Gatha | Painna-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] दंसणयारविसोही चउवीसायत्थएण कज्जइ य ।
अच्चब्भुयगुणकित्तणरूवेणं जिनवरिंदाणं २ ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧ | |||||||||
Chatusharan | ચતુશ્શરણ | Ardha-Magadhi |
चतुशरणं |
Gujarati | 12 | Gatha | Painna-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अह सो जिनभत्तिभरुच्छरंतरोमंचकंचुयकरालो ।
पहरिसपणउम्मीसं सीसम्मि कयंजली भणइ ॥ Translated Sutra: હવે તીર્થંકરની ભક્તિના સમૂહે કરી ઉછળતી રોમરાજી રૂપ બખ્તર વડે શોભાયમાન આત્મા, હર્ષથી મસ્તકે અંજલી કરી કહે છે – | |||||||||
Chatusharan | ચતુશ્શરણ | Ardha-Magadhi |
चतुशरणं |
Gujarati | 32 | Gatha | Painna-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] केवलिणो परमोही विउलमई सुयहरा जिनमयम्मि ।
आयरिय उवज्झाया ते सव्वे साहुणो सरणं ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૩૦ | |||||||||
Chatusharan | ચતુશ્શરણ | Ardha-Magadhi |
चतुशरणं |
Gujarati | 41 | Gatha | Painna-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पडिवन्नसाहुसरणो सरणं काउं पुणो वि जिनधम्मं ।
पहरिसरोमंचपवंचकंचुयंचियतणू भणइ ॥ Translated Sutra: વર્ણન સૂત્ર સંદર્ભ: (ધર્મનું શરણપણું) અનુવાદ: સૂત્ર– ૪૧. સાધુનું શરણ સ્વીકારીને, અતિ હર્ષથી રોમાંચિત શોભિત શરીરવાળો, જિનધર્મના શરણને સ્વીકારવા માટે બોલે છે – સૂત્ર– ૪૨. અતિ ઉત્કૃષ્ટ પુણ્ય વડે પામેલો, વળી ભાગ્યવાન પુરુષોએ પણ નહીં પણ પામેલ એવા તે કેવલી પ્રજ્ઞપ્ત ધર્મને હું શરણરૂપે સ્વીકારું છું. સૂત્ર– ૪૩. | |||||||||
Chatusharan | ચતુશ્શરણ | Ardha-Magadhi |
चतुशरणं |
Gujarati | 44 | Gatha | Painna-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] निद्दलियकलुसकम्मो कयसुहजम्मो खलीकयकुहम्मो ।
पमुहपरिणामरम्मो सरणं मे होउ जिनधम्मो ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪૧ | |||||||||
Chatusharan | ચતુશ્શરણ | Ardha-Magadhi |
चतुशरणं |
Gujarati | 45 | Gatha | Painna-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] कालत्तए वि न मयं जम्मण-जर-मरण-वाहिसयसमयं ।
अमयं च बहुमयं जिनमयं च सरणं पवन्नो हं ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪૧ | |||||||||
Chatusharan | ચતુશ્શરણ | Ardha-Magadhi |
चतुशरणं |
Gujarati | 48 | Gatha | Painna-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] भासुरसुवन्नसुंदररयणालंकारगारवमहग्घं ।
निहिमिव दोगच्चहरं धम्मं जिनदेसियं वंदे ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪૧ | |||||||||
Chatusharan | ચતુશ્શરણ | Ardha-Magadhi |
उपसंहार |
Gujarati | 62 | Gatha | Painna-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] चउरंगो जिनधम्मो न कओ, चउरंगसरणमवि न कयं ।
चउरंगभवच्छेओ न कओ, हा! हारिओ जम्मो ॥ Translated Sutra: ચાર અંગવાળો(દાન, શીલ, તપ અને ભાવરૂપ) જિનધર્મ ન કર્યો, ચાર અંગવાળુ અર્થાત ચાર પ્રકારનું શરણ પણ ન કર્યુ, ચતુરંગ અર્થાત ચાર ગતિરૂપ ભવ – સંસારનો છેદ ન કર્યો, તે ખરેખર મનુષ્યજન્મ હારી ગયો છે. | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दसा-१ असमाधि स्थान |
Hindi | 2 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं वीसं असमाहिट्ठाणा पन्नत्ता l
कयरे खलु ते थेरेहिं भगवंतेहिं वीसं असमाहिट्ठाणा पन्नत्ता? इमे खलु ते थेरेहिं भगवंतेहिं वीसं असमाहिट्ठाणा पन्नत्ता तं जहा–
१. दवदवचारी यावि भवति। २. अप्पमज्जियचारी यावि भवति। ३. दुप्पमज्जियचारी यावि भवति। ४. अतिरित्तसेज्जासणिए। ५. रातिनियपरिभासी। ६. थेरोवघातिए। ७. भूतोवघातिए।
८. संजलणे। ९. कोहणे। १०. पिट्ठिमंसिए यावि भवइ।
११. अभिक्खणं-अभिक्खणं ओधारित्ता।
१२. नवाइं अधिकरणाइं अणुप्पन्नाइं उप्पाइत्ता भवइ।
१३. पोराणाइं अधिकरणाइं खामित-विओस-विताइं उदीरित्ता भवइ।
१४. अकाले सज्झायकारए Translated Sutra: यह (जिन प्रवचन में) निश्चय से स्थविर भगवंत ने बीस असमाधि स्थान बताए हैं। स्थविर भगवंत ने कौन – से बीस असमाधि स्थान बताए हैं ? १. अति शीघ्र चलनेवाले होना। २. अप्रमार्जिताचारी होना – रजोहरणादि से प्रमार्जन किया न हो ऐसे स्थान में चलना (बैठना – सोना आदि)। ३. दुष्प्रमार्जिताचारी होना – उपयोग रहितपन से या इधर – उधर | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 75 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] उवट्ठियं पडिविरयं, संजयं सुतवस्सियं ।
वोकम्म धम्माओ भंसे, महामोहं पकुव्वइ ॥ Translated Sutra: जो पापविरत मुमुक्षु, संयत तपस्वी को धर्म से भ्रष्ट करे, अज्ञानी ऐसा वह जिनेश्वर के अवर्णवाद करे, अनेक जीवों को न्यायमार्ग से भ्रष्ट करे, न्यायमार्ग की द्वेषपूर्वक निन्दा करे तो वह महामोहनीय कर्म बांधता है। सूत्र – ७५–७७ | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दसा-५ चित्तसमाधि स्थान |
Hindi | 16 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: Translated Sutra: हे आयुष्मान् ! वो निर्वाण – प्राप्त भगवंत के मुख से मैंने ऐसा सूना है – इस (जिन प्रवचन में) निश्चय से स्थविर भगवंत ने दश चित्त समाधि स्थान बताए हैं। वो कौन – से दश चित्त समाधि स्थान स्थविर भगवंत ने बताए हैं? जो दश चित्त समाधि स्थान स्थविर भगवंत ने बताए हैं वो इस प्रकार है – उस काल और उस समय यानि चौथे आरे में भगवान | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दसा-५ चित्तसमाधि स्थान |
Hindi | 17 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अज्जो! इति समणे भगवं महावीरे समणा निग्गंथा य निग्गंथीओ य आमंतेत्ता एवं वयासी–
इह खलु अज्जो! निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा इरियासमिताणं भासासमिताणं एसणा-समिताणं आयाणभंडमत्तनिक्खेवणासमिताणं उच्चारपासवणखेलसिंधाणजल्लपारिट्ठावणिता-समिताणं मनसमिताणं वयसमिताणं कायसमिताणं मनगुत्ताणं वयगुत्ताणं कायगुत्ताणं गुत्ताणं गुत्तिंदियाणं गुत्तबंभयारीणं आयट्ठीणं आयहिताणं आयजोगीणं आयपरक्कमाणं पक्खियपोसहिएसु समाधिपत्ताणं ज्झियायमाणाणं इमाइं दस चित्तसमाहिट्ठाणाइं असमुप्पन्नपुव्वाइं समुप्पज्जिज्जा, तं जहा–
१. धम्मचिंता वा से असमुप्पन्नपुव्वा समुप्पज्जेज्जा Translated Sutra: हे आर्य ! इस प्रकार सम्बोधन करके श्रमण भगवान महावीर साधु और साध्वी को कहने लगे। हे आर्य ! इर्या – भाषा – एषणा – आदान भांड़ मात्र निक्षेपणा और उच्चार प्रस्नवण खेल सिंधाणक जल की परिष्ठापना, वो पाँच समितिवाले, गुप्तेन्द्रिय, गुप्तब्रह्मचारी, आत्मार्थी, आत्महितकर, आत्मयोगी, आत्मपराक्रमी, पाक्षिक पौषध (यानि पर्वतिथि | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दसा-५ चित्तसमाधि स्थान |
Hindi | 25 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जदा से नाणावरणं, सव्वं होति खयं गयं ।
तदा लोगमलोगं च, जिनो जाणति केवली ॥ Translated Sutra: जब जीव के समस्त ज्ञानावरण कर्म क्षय हो तब वो केवली जिन समस्त लोक और अलोक को जानते हैं। | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दसा-५ चित्तसमाधि स्थान |
Hindi | 26 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जदा से दंसणावरणं, सव्वं होइ खयं गयं ।
तदा लोगमलोगं च, जिनो पासइ केवली ॥ Translated Sutra: जब जीव के समस्त दर्शनावरण कर्म का क्षय हो तब वो केवली जिन समस्त लोकालोक को देखते हैं। | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दसा-६ उपाशक प्रतिमा |
Hindi | 35 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सुयं मे आउसं! तेणं भगवया एवमक्खातं–इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं एक्कारस उवासगपडिमाओ पन्नत्ताओ।
कयरा खलु ताओ थेरेहिं भगवंतेहिं एक्कारस उवासगपडिमाओ पन्नत्ताओ?
इमाओ खलु ताओ थेरेहिं भगवंतेहिं एक्कारस उवासगपडिमाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–
अकिरियावादी यावि भवति–नाहियवादी नाहियपण्णे नाहियदिठ्ठी, नो सम्मावादी, नो नितियावादी, नसंति-परलोगवादी, नत्थि इहलोए नत्थि परलोए नत्थि माता नत्थि पिता नत्थि अरहंता नत्थि चक्कवट्टी नत्थि बलदेवा नत्थि वासुदेवा नत्थि सुक्कड-दुक्कडाणं फलवित्तिविसेसो, नो सुचिण्णा कम्मा सुचिण्णफला भवंति, नो दुचिण्णा कम्मा दुचिण्णफला भवंति, अफले कल्लाणपावए, Translated Sutra: हे आयुष्मान् ! वो निर्वाण प्राप्त भगवंत के स्वमुख से मैंने ऐसा सूना है। यह (जिन प्रवचन में) स्थविर भगवंत ने निश्चय से ग्यारह उपासक प्रतिमा बताई है। स्थविर भगवंत ने कौन – सी ग्यारह उपासक प्रतिमा बताई है? स्थविर भगवंत ने जो ११ उपासक प्रतिमा बताई है, वो इस प्रकार है – (दर्शन, व्रत, सामायिक, पौषध, दिन में ब्रह्मचर्य, |