Welcome to the Jain Elibrary: Worlds largest Free Library of JAIN Books, Manuscript, Scriptures, Aagam, Literature, Seminar, Memorabilia, Dictionary, Magazines & Articles
Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|
Sutrakrutang | સૂત્રકૃતાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कन्ध १ अध्ययन-१३ यथातथ्य |
Gujarati | 567 | Gatha | Ang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] न तस्स जाती व कुलं व ताणं ननत्थ विज्जाचरणं सुचिण्णं ।
निक्खम्म से सेवइऽगारिकम्मं न से पारए होति विमोयणाए ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫૬૫ | |||||||||
Sutrakrutang | સૂત્રકૃતાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-२ क्रियास्थान |
Gujarati | 662 | Sutra | Ang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अदुत्तरं च णं पुरिस-विजय-विभंगमाइक्खिस्सामि– इह खलु नानापण्णाणं नानाछंदानं नानासीलाणं नानादिट्ठीणं नानारुईणं नानारंभाणं नानाज्झवसाणसंजुत्ताणं ‘इहलोगपडिबद्धाणं परलोगणिप्पि-वासाणं विसयतिसियाणं इणं’ नानाविहं ‘पावसुयज्झयणं भवइ’, तं जहा–
१. भोमं २. उप्पायं ३. सुविणं ४. अंतलिक्खं ५. अंगं ६. सरं ७. लक्खणं ८. वंजणं ९. इत्थिलक्खणं १. पुरिसलक्खणं ११. हय-लक्खणं १२. गय-लक्खणं १३. गोण-लक्खणं १४. मेंढ-लक्खणं १५. कुक्कुड-लक्खणं १६. तित्तिरलक्खणं १७. वट्टगलक्खणं १२. लावगलक्खणं
१९. चक्कलक्खणं २. छत्तलक्खणं २१. चम्म-लक्खणं २२. दंड-लक्खणं २३. असि-लक्खणं २४. मणिलक्खणं २५. कागणिलक्खणं Translated Sutra: જેના દ્વારા અલ્પસત્વવાન પુરુષ વિજયને પ્રાપ્ત કરે છે, તે પાપકારી વિદ્યાના વિકલ્પો હું કહીશ. આ લોકમાં વિવિધ પ્રકારની પ્રજ્ઞા – અભિપ્રાય – સ્વભાવ – દૃષ્ટિ – રુચિ – આરંભ અને અધ્યવસાયથી યુક્ત મનુષ્યો દ્વારા અનેકવિધ પાપશાસ્ત્રોનું અધ્યયન કરાય છે. જેમ કે – ભૌમ, ઉત્પાત, સ્વપ્ન, અંતરિક્ષ, અંગ, સ્વર, લક્ષણ, વ્યંજન, સ્ત્રીલક્ષણ, | |||||||||
Tandulvaicharika | तंदुल वैचारिक | Ardha-Magadhi |
धर्मोपदेश एवं फलं |
Hindi | 61 | Gatha | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] न वि जाई कुलं वा वि विज्जा वा वि सुसिक्खिया ।
तारे नरं व नारिं वा, सव्वं पुण्णेहिं वड्ढई ॥ Translated Sutra: नर या नारी को जाति, फल, विद्या और सुशिक्षा भी संसार से पार नहीं उतारती। यह सब तो शुभ कर्म से ही वृद्धि पाता है। | |||||||||
Tandulvaicharika | तंदुल वैचारिक | Ardha-Magadhi |
धर्मोपदेश एवं फलं |
Hindi | 64 | Sutra | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] आसी य खलु आउसो! पुव्विं मनुया ववगयरोगाऽऽयंका बहुवाससयसहस्सजीविणो। तं जहा–जुयलधम्मिया अरिहंता वा चक्कवट्टी वा बलदेवा वा वासुदेवा वा चारणा विज्जाहरा।
ते णं मनुया अनतिवरसोमचारुरूवा भोगुत्तमा भोगलक्खणधरा सुजायसव्वंगसुंदरंगा रत्तु-प्पल-पउमकर-चरण-कोमलंगुलितला नग नगर मगर सागर चक्कंक-धरंक-लक्खणंकियतला सुपइट्ठियकुम्मचारुचलणा अनुपुव्विसुजाय पीवरं गुलिया उन्नय तनु तंब निद्धनहा संठिय सुसिलिट्ठ गूढगोप्फा एणी कुरुविंदवित्तवट्टाणुपुव्विजंघा सामुग्गनिमग्गगूढजाणू गयससणसुजायसन्निभोरू वरवारणमत्ततुल्लविक्कम-विलासियगई सुजायवरतुरयगुज्झदेसा आइन्नहउ व्व Translated Sutra: हे आयुष्मान् ! पूर्वकाल में युगलिक, अरिहंत चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव चारण और विद्याधर आदि मानव रोग रहित होने से लाखों साल तक जीवन जीते थे। वो काफी सौम्य, सुन्दर रूपवाले, उत्तम भोग – भुगतनेवाला, उत्तम लक्षणवाले, सर्वांग सुन्दर शरीरवाले थे। उन के हाथ और पाँव के तालवे लाल कमल पत्र जैसे और कोमल थे। अंगुलीयाँ भी | |||||||||
Tandulvaicharika | તંદુલ વૈચારિક | Ardha-Magadhi |
धर्मोपदेश एवं फलं |
Gujarati | 61 | Gatha | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] न वि जाई कुलं वा वि विज्जा वा वि सुसिक्खिया ।
तारे नरं व नारिं वा, सव्वं पुण्णेहिं वड्ढई ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫૫ | |||||||||
Tandulvaicharika | તંદુલ વૈચારિક | Ardha-Magadhi |
धर्मोपदेश एवं फलं |
Gujarati | 64 | Sutra | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] आसी य खलु आउसो! पुव्विं मनुया ववगयरोगाऽऽयंका बहुवाससयसहस्सजीविणो। तं जहा–जुयलधम्मिया अरिहंता वा चक्कवट्टी वा बलदेवा वा वासुदेवा वा चारणा विज्जाहरा।
ते णं मनुया अनतिवरसोमचारुरूवा भोगुत्तमा भोगलक्खणधरा सुजायसव्वंगसुंदरंगा रत्तु-प्पल-पउमकर-चरण-कोमलंगुलितला नग नगर मगर सागर चक्कंक-धरंक-लक्खणंकियतला सुपइट्ठियकुम्मचारुचलणा अनुपुव्विसुजाय पीवरं गुलिया उन्नय तनु तंब निद्धनहा संठिय सुसिलिट्ठ गूढगोप्फा एणी कुरुविंदवित्तवट्टाणुपुव्विजंघा सामुग्गनिमग्गगूढजाणू गयससणसुजायसन्निभोरू वरवारणमत्ततुल्लविक्कम-विलासियगई सुजायवरतुरयगुज्झदेसा आइन्नहउ व्व Translated Sutra: હે આયુષ્યમાન્ ! પૂર્વકાળમાં યુગલિક, અરિહંત, ચક્રવર્તી, બળદેવ, વાસુદેવ, ચારણ અને વિદ્યાધર આદિ મનુષ્ય રોગરહિત હોવાથી લાખો વર્ષો સુધી જીવન જીવતા હતા. તેઓ અત્યંત સૌમ્ય, સુંદર રૂપવાળા, ઉત્તમ ભોગ ભોગવતા, ઉત્તમ લક્ષણધારી, સર્વાંગ સુંદર શરીરવાળા હતા. તેમના હાથ – પગના તળિયા લાલ કમળપત્ર જેવા, કોમળ હતા. આંગળીઓ પણ કોમળ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२३ केशी गौतम |
Hindi | 852 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तस्स लोगपईवस्स आसि सीसे महायसे ।
भगवं गोयमे नामं विज्जाचरणपारगे ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ८५१ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२ परिषह |
Hindi | 53 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तओ पुट्ठो पिवासाए दोगुंछी लज्जसंजए ।
सीओदगं न सेविज्जा वियडस्सेसणं चरे ॥ Translated Sutra: असंयम से अरुचि रखनेवाला, लज्जावान् संयमी भिक्षु प्यास से पीड़ित होने पर भी सचित जल का सेवन न करे, किन्तु अचित जल की खोज करे। यातायात से शून्य एकांत निर्जन मार्गों में भी तीव्र प्यास से आतुर – होने पर, मुँह के सूख जाने पर भी मुनि अदीनभाव से प्यास को सहन करे। सूत्र – ५३, ५४ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ क्षुल्लक निर्ग्रंथत्व |
Hindi | 161 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जावंतऽविज्जापुरिसा सव्वे ते दुक्खसंभवा ।
लुप्पंति बहुसो मूढा संसारंमि अनंतए ॥ Translated Sutra: जितने अविद्यावान् हैं, वे सब दुःख के उत्पादक हैं। वे विवेकमूढ अनन्त संसार में बार – बार लुप्त होते हैं। इसलिए पण्डित पुरुष अनेकविध बन्धनों की एवं जातिपथों की समीक्षा करके स्वयं सत्य की खोज करे और विश्व के सब प्राणियों के प्रति मैत्रीभाव रखे। सूत्र – १६१, १६२ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ क्षुल्लक निर्ग्रंथत्व |
Hindi | 171 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] न चित्ता तायए भासा कओ विज्जानुसासनं? ।
विसन्ना पावकम्मेहिं बाला पंडियमानिनो ॥ Translated Sutra: विविध भाषाऍं रक्षा नहीं करती हैं, विद्याओं का अनुशासन भी कहाँ सुरक्षा देता है ? जो इन्हें संरक्षक मानते हैं, वे अपने आपको पण्डित माननेवाले अज्ञानी जीव पाप कर्मों में मग्न हैं, डूबे हुए हैं। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-९ नमिप्रवज्या |
Hindi | 277 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पुढवी साली जवा चेव हिरण्णं पसुभिस्सह ।
पडिपुण्णं नालमेगस्स इह विज्जा तवं चरे ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २७५ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१२ हरिकेशीय |
Hindi | 373 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] कोहो य मानो य वहो य जेसिं मोसं अदत्तं च परिग्गहं च ।
ते माहणा जाइविज्जाविहूणा ताइं तु खेत्ताइं सुपावयाइं ॥ Translated Sutra: यक्ष – ‘‘जिनमें क्रोध, मान, हिंसा, झूठ, चोरी और परिग्रह हैं, वे ब्राह्मण जाति और विद्या से विहीन पापक्षेत्र हैं।’’ हे ब्राह्मणो ! इस संसार में आप केवल वाणी का भार ही वहन कर रहे हो। वेदों को पढ़कर भी उनके अर्थ नहीं जानते। जो मुनि भिक्षा के लिए समभावपूर्वक ऊंच नीच घरों में जाते हैं, वे ही पुण्य – क्षेत्र हैं। सूत्र | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१५ सभिक्षुक |
Hindi | 501 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] छिन्नं सरं भोमं अंतलिक्खं सुमिणं लक्खणदंडवत्थुविज्जं ।
अंगवियारं सरस्स विजयं जो विज्जाहिं न जीवइ स भिक्खू ॥ Translated Sutra: जो छिन्न, स्वर – विद्या, भौम, अन्तरिक्ष, स्वप्न, लक्षण, दण्ड, वास्तु – विद्या, अंगविकार और स्वर – विज्ञान इन विद्याओं से जो नहीं जीता है, वह भिक्षु है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१५ सभिक्षुक |
Hindi | 504 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] गिहिणो जे पव्वइएण दिट्ठा अप्पव्वइएण व संथुया हविज्जा ।
तेसिं इहलोइयफलट्ठा जो संथवं न करेइ स भिक्खू ॥ Translated Sutra: जो व्यक्ति प्रव्रजित होने के बाद अथवा जो प्रव्रजित होने से पहले के परिचित हों, उनके साथ इस लोक के फल की प्राप्ति हेतु जो संस्तव नहीं करता है, वह भिक्षु है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१६ ब्रह्मचर्यसमाधिस्थान |
Hindi | 512 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कयरे खलु ते थेरेहिं भगवंतेहिं दस बंभचेरसमाहिठाणा पन्नत्ता, जे भिक्खू सोच्चा निसम्म संजमबहुले संवरबहुले समाहिबहुले गुत्ते गुत्तिंदिए गुत्तबंभयारी सया अप्पमत्ते विहरेज्जा?
इमे खलु ते थेरेहिं भगवंतेहिं दस बंभचेरसमाहिठाणा पन्नत्ता, जे भिक्खू सोच्चा निसम्म संजमबहुले संवरबहुले समाहिबहुले गुत्ते गुत्तिंदिए गुत्तबंभयारी सया अप्पमत्ते विहरेज्जा, तं जहा–
विवित्ताइं सयनासनाइं सेविज्जा, से निग्गंथे।
नो इत्थी पसुपंडगसंसत्ताइं सयनासनाइं सेवित्ता हवइ, से निग्गंथे।
तं कहमिति चे?
आयरियाह–निग्गंथस्स खलु इत्थीपसुपंडगसंसत्ताइं सयनासनाइं सेवमाणस्स बंभयारिस्स Translated Sutra: स्थविर भगवन्तों ने ब्रह्मचर्य – समाधि के वे कौनसे स्थान बतलाए हैं ? स्थविर भगवन्तों ने ब्रह्मचर्य – समाधि के ये दस स्थान बतलाए हैं – जो विविक्त शयन और आसन का सेवन करता है, वह निर्ग्रन्थ है। जो स्त्री, पशु और नपुंसक से संसक्त शयन और आसन का सेवन नहीं करता है, वह निर्ग्रन्थ है। ऐसा क्यों ? आचार्य कहते हैं – जो स्त्री, | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१६ ब्रह्मचर्यसमाधिस्थान |
Hindi | 521 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नो सद्दरूवरसगंधफासाणुवाई हवइ, से निग्गंथे।
तं कहमिति चे?
आयरियाह–निग्गंथस्स खलु सद्दरूवरसगंधफासाणुवाइस्स बंभयारिस्स बंभचेरे संका वा, कंखा वा, वितिगिच्छा वा समुप्प-ज्जिज्जा, भेयं वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायंकं हवेज्जा, केवलिपन्नत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा।
तम्हा खलु नो निग्गंथे सद्दरूवरसगंधफासाणुवाई हविज्जा।
दसमे बंभचेरसमाहिठाणे हवइ।
[भवंति इत्थ सिलोगा, तं जहा] Translated Sutra: जो शब्द, रूप, रस, गन्ध और स्पर्श में आसक्त नहीं होता है, वह निर्ग्रन्थ है। ऐसा क्यों ? उस ब्रह्मचारी को ब्रह्मचर्य में शंका, कांक्षा या विचिकित्सा उत्पन्न होती है, यावत् केवलीप्ररूपित धर्म से भ्रष्ट हो जाता है। अतः निर्ग्रन्थ शब्द, रूप, रस, गन्ध और स्पर्श में आसक्त न बने। यह ब्रह्मचर्य समाधि का दसवाँ स्थान है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१८ संजयीय |
Hindi | 581 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] संजओ नाम नामेणं तहा गोत्तेण गोयमे ।
गद्दभाली ममायरिया विज्जाचरणपारगा ॥ Translated Sutra: संजय मुनि – ‘‘मेरा नाम संजय है। मेरा गोत्र गौतम है। विद्या और चरण के पारगामी ‘गर्दभालि’ मेरे आचार्य हैं।’’ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१८ संजयीय |
Hindi | 583 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] इइ पाउकरे बुद्धे नायए परिनिव्वुडे ।
विज्जाचरणसंपन्ने सच्चे सच्चपरक्कमे ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ५८२ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१८ संजयीय |
Hindi | 589 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] नाना रुइं च छंदं च परिवज्जेज्ज संजए ।
अनट्ठा जे य सव्वत्था इइ विज्जामनुसंचरे ॥ Translated Sutra: नाना प्रकार की रुचि और छन्दों का तथा सब प्रकार के अनर्थक व्यापारों का संयतात्मा मुनि को सर्वत्र परित्याग करना चाहिए। इस तत्त्वज्ञानरूप विद्या का लक्ष्य कर संयमपथ पर संचरण करे। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१८ संजयीय |
Hindi | 590 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पडिक्कमामि पसिणाणं परमंतेहिं वा पुणो ।
अहो उट्ठिए अहोरायं इइ विज्जा तवं चरे ॥ Translated Sutra: मैं शुभाशुभसूचक प्रश्नो से और गृहस्थों की मन्त्रणाओं से दूर रहता हूँ। अहो ! मैं दिन – रात धर्माचरण के लिए उद्यत रहता हूँ। यह जानकर तुम भी तप का आचरण करो।जो तुम मुझे सम्यक् शुद्ध चित्त से काल के विषय में पूछ रहे हो, उसे सर्वज्ञ ने प्रकट किया है। अतः वह ज्ञान जिनशासन में विद्यमान है। सूत्र – ५९०, ५९१ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२० महानिर्ग्रंथीय |
Hindi | 734 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] उवट्ठिया मे आयरिया विज्जामंततिगिच्छगा ।
अबीया सत्थकुसला मंतमूलविसारया ॥ Translated Sutra: विद्या और मंत्र से चिकित्सा करनेवाले, मंत्र तथा औषधियों के विशारद, अद्वितीय शास्त्रकुशल, आयुर्वेद आचार्य मेरी चिकित्सा के लिए उपस्थित थे। उन्होंने मेरे हितार्थ वैद्य, रोगी, औषध और परिचारक – रूप चतुष्पाद चिकित्सा की, किन्तु वे मुझे दुःख से मुक्त नहीं कर सके। यह मेरी अनाथता है। सूत्र – ७३४, ७३५ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२० महानिर्ग्रंथीय |
Hindi | 757 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जे लक्खणं सुविण पउंजमाणे निमित्तकोऊहलसंपगाढे ।
कुहेडविज्जासवदारजीवी न गच्छई सरणं तंमि काले ॥ Translated Sutra: जो लक्षण और स्वप्न – विद्या का प्रयोग करता है, निमित्त शास्त्रो और कौतुक – कार्य में अत्यन्त आसक्त है, मिथ्या आश्चर्य को उत्पन्न करने वाली कुहेट विद्याओं से – जीविका चलाता है, वह कर्मफल – भोग के समय किसी की शरण नहीं पा सकता। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२३ केशी गौतम |
Hindi | 848 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तस्स लोगपईवस्स आसि सीसे महायसे ।
केसीकुमारसमणे विज्जाचरणपारगे ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ८४७ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२५ यज्ञीय |
Hindi | 980 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अजाणगा जण्णवाई विज्जामाहणसंपया ।
गूढा सज्झायतवसा भासच्छन्ना इवग्गिणो ॥ Translated Sutra: विद्या ब्राह्मण की सम्पदा है, यज्ञवादी इस से अनभिज्ञ हैं, वे बाहरमें स्वाध्याय और तप से वैसे ही आच्छादित हैं, जैसे कि अग्नि राख से ढँकी हुई होती है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1675 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] कप्पाईया उ जे देवा दुविहा ते वियाहिया ।
गेविज्जाणुत्तरा चेव गेविज्जा नवविहा तहिं ॥ Translated Sutra: कल्पातीत देवों के दो भेद हैं – ग्रैवेयक और अनुत्तर। ग्रैवेयक नौ प्रकार के हैं – अधस्तन – अधस्तन, अधस्तन – मध्यम, अधस्तन – उपरितन, मध्यम – अधस्तन, मध्यम – मध्यम, मध्यम – उपरितन, उपरितन – अधस्तन, उपरितन – मध्यम और उपरितन – उपरितन – ये नौ ग्रैवेयक हैं। विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित और सर्वार्थसिद्धक – ये पाँच अनुत्तर | |||||||||
Uttaradhyayan | ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२ परिषह |
Gujarati | 53 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तओ पुट्ठो पिवासाए दोगुंछी लज्जसंजए ।
सीओदगं न सेविज्जा वियडस्सेसणं चरे ॥ Translated Sutra: અનાચારમાં જુગુપ્સા રાખનાર, લજ્જાવાન સંયમી મુનિ તૃષાથી પીડિત થતા પણ સચિત્ત જળને ન સેવે, પણ અચિત્ત જળની ગવેષણા કરે. આવાગમન શૂન્ય નિર્જન માર્ગમાં પણ તીવ્ર તૃષાથી વ્યાકુળ થવા છતાં અને મોઢું પણ સૂકાઈ જાય તો પણ અદીન ભાવે તે પરીષહને સહન કરે. સૂત્ર સંદર્ભ– ૫૩, ૫૪ | |||||||||
Uttaradhyayan | ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१६ ब्रह्मचर्यसमाधिस्थान |
Gujarati | 512 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कयरे खलु ते थेरेहिं भगवंतेहिं दस बंभचेरसमाहिठाणा पन्नत्ता, जे भिक्खू सोच्चा निसम्म संजमबहुले संवरबहुले समाहिबहुले गुत्ते गुत्तिंदिए गुत्तबंभयारी सया अप्पमत्ते विहरेज्जा?
इमे खलु ते थेरेहिं भगवंतेहिं दस बंभचेरसमाहिठाणा पन्नत्ता, जे भिक्खू सोच्चा निसम्म संजमबहुले संवरबहुले समाहिबहुले गुत्ते गुत्तिंदिए गुत्तबंभयारी सया अप्पमत्ते विहरेज्जा, तं जहा–
विवित्ताइं सयनासनाइं सेविज्जा, से निग्गंथे।
नो इत्थी पसुपंडगसंसत्ताइं सयनासनाइं सेवित्ता हवइ, से निग्गंथे।
तं कहमिति चे?
आयरियाह–निग्गंथस्स खलु इत्थीपसुपंडगसंसत्ताइं सयनासनाइं सेवमाणस्स बंभयारिस्स Translated Sutra: સ્થવિર ભગવંતોએ બ્રહ્મચર્ય સમાધિના કયા સ્થાન બતાવેલ છે, જેને સાંભળી, જેના અર્થનો નિર્ણય કરી ભિક્ષુ સંયમ, સંવર અને સમાધિથી અધિકાધિક સંપન્ન થાય, ગુપ્ત, ગુપ્તેન્દ્રિય, ગુપ્ત બ્રહ્મચારી થઈ સદા અપ્રમત્ત ભાવે વિચરણ કરે ? તે સ્થાનો આ છે – જે વિવિક્ત શયન, આસનને સેવે છે. તે નિર્ગ્રન્થ છે. જે સ્ત્રી, પશુ અને નપુંસક સંસક્ત | |||||||||
Uttaradhyayan | ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२५ यज्ञीय |
Gujarati | 980 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अजाणगा जण्णवाई विज्जामाहणसंपया ।
गूढा सज्झायतवसा भासच्छन्ना इवग्गिणो ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૯૭૮ | |||||||||
Uttaradhyayan | ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१५ सभिक्षुक |
Gujarati | 501 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] छिन्नं सरं भोमं अंतलिक्खं सुमिणं लक्खणदंडवत्थुविज्जं ।
अंगवियारं सरस्स विजयं जो विज्जाहिं न जीवइ स भिक्खू ॥ Translated Sutra: જે છિન્ન સ્વર, ભૌમ, અંતરીક્ષ, સ્વપ્ન, લક્ષણ, દંડ, વાસ્તુ, અંગ વિકાસ અને સ્વરવિદ્યા, આ વિદ્યાઓથી જે જીવતો નથી, તે ભિક્ષુ છે. | |||||||||
Uttaradhyayan | ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१५ सभिक्षुक |
Gujarati | 504 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] गिहिणो जे पव्वइएण दिट्ठा अप्पव्वइएण व संथुया हविज्जा ।
तेसिं इहलोइयफलट्ठा जो संथवं न करेइ स भिक्खू ॥ Translated Sutra: જે વ્યક્તિ પ્રવ્રજિત થયા પછીના કે પ્રવ્રજિત થયાની પહેલાના પરીચિત હોય, તેમની સાથે લોકના ફળની પ્રાપ્તિ હેતુ જે સંસ્તવ કરતો નથી, તે ભિક્ષુ છે. | |||||||||
Uttaradhyayan | ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ क्षुल्लक निर्ग्रंथत्व |
Gujarati | 161 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जावंतऽविज्जापुरिसा सव्वे ते दुक्खसंभवा ।
लुप्पंति बहुसो मूढा संसारंमि अनंतए ॥ Translated Sutra: જેટલાં અવિદ્યાવાન છે, તેઓ બધા પોત – પોતાના માટે દુઃખના ઉત્પાદક છે. તે વિવેક મૂઢ અનંત સંસારમાં વારંવાર લુપ્ત થાય છે. | |||||||||
Uttaradhyayan | ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ क्षुल्लक निर्ग्रंथत्व |
Gujarati | 171 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] न चित्ता तायए भासा कओ विज्जानुसासनं? ।
विसन्ना पावकम्मेहिं बाला पंडियमानिनो ॥ Translated Sutra: વિવિધ ભાષા રક્ષણ કરતી નથી, વિદ્યાનું અનુશાસન પણ ક્યાં સુરક્ષા આપે છે ? જે તેને સંરક્ષક માને છે, તે પોતાને પંડિત માનનારા અજ્ઞાની જીવો પાપકર્મોમાં મગ્ન છે – ડૂબેલા છે. | |||||||||
Uttaradhyayan | ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-९ नमिप्रवज्या |
Gujarati | 277 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पुढवी साली जवा चेव हिरण्णं पसुभिस्सह ।
पडिपुण्णं नालमेगस्स इह विज्जा तवं चरे ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૭૫ | |||||||||
Uttaradhyayan | ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१२ हरिकेशीय |
Gujarati | 373 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] कोहो य मानो य वहो य जेसिं मोसं अदत्तं च परिग्गहं च ।
ते माहणा जाइविज्जाविहूणा ताइं तु खेत्ताइं सुपावयाइं ॥ Translated Sutra: જેનામાં ક્રોધ, માન, હિંસા, જૂઠ, ચોરી અને પરિગ્રહ છે, તેઓ બ્રાહ્મણ જાતિ અને વિદ્યાથી રહિત પાપયુક્ત ક્ષેત્રો છે. | |||||||||
Uttaradhyayan | ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१६ ब्रह्मचर्यसमाधिस्थान |
Gujarati | 521 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नो सद्दरूवरसगंधफासाणुवाई हवइ, से निग्गंथे।
तं कहमिति चे?
आयरियाह–निग्गंथस्स खलु सद्दरूवरसगंधफासाणुवाइस्स बंभयारिस्स बंभचेरे संका वा, कंखा वा, वितिगिच्छा वा समुप्प-ज्जिज्जा, भेयं वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायंकं हवेज्जा, केवलिपन्नत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा।
तम्हा खलु नो निग्गंथे सद्दरूवरसगंधफासाणुवाई हविज्जा।
दसमे बंभचेरसमाहिठाणे हवइ।
[भवंति इत्थ सिलोगा, तं जहा] Translated Sutra: જે શબ્દ, રૂપ, રસ, ગંધ અને સ્પર્શમાં આસક્ત થતો નથી તે નિર્ગ્રન્થ છે, એમ કેમ ? આચાર્ય કહે છે – જે શબ્દાદિમાં આસક્ત રહે છે, તે બ્રહ્મચારીના બ્રહ્મચર્યમાં શંકા, કાંક્ષા કે વિચિકિત્સા થાય છે અથવા બ્રહ્મચર્યનો વિનાશ થાય છે, ઉન્માદ ઉત્પન્ન થાય છે, દીર્ઘકાલીક રોગાંતક થાય છે અથવા તે કેવલી પ્રરૂપિત ધર્મથી ભ્રષ્ટ થાય છે. | |||||||||
Uttaradhyayan | ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१८ संजयीय |
Gujarati | 581 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] संजओ नाम नामेणं तहा गोत्तेण गोयमे ।
गद्दभाली ममायरिया विज्जाचरणपारगा ॥ Translated Sutra: મારું નામ સંજય છે, મારું ગોત્ર ગૌતમ છે. વિદ્યા અને ચરણના પારગામી ‘ગર્દભાલિ’ મારા આચાર્ય છે. | |||||||||
Uttaradhyayan | ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१८ संजयीय |
Gujarati | 583 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] इइ पाउकरे बुद्धे नायए परिनिव्वुडे ।
विज्जाचरणसंपन्ने सच्चे सच्चपरक्कमे ॥ Translated Sutra: બુદ્ધ – તત્ત્વવેત્તા, સત્યવાદી, સત્ય પરાક્રમી, જ્ઞાતવંશીય ભગવંત મહાવીરે સાક્ષાત આ પ્રમાણે કહ્યું છે – જેઓ પાપાચરણ કરે છે, તેઓ ઘોર નરકમાં જાય છે, જેઓ આર્ય ધર્મનું સર્વજ્ઞ કથિત ધર્મનું) આચરણ કરે છે, તેઓ દિવ્યગતિ સ્વર્ગ કે મોક્ષ)માં જાય છે. સૂત્ર સંદર્ભ– ૫૮૩, ૫૮૪ | |||||||||
Uttaradhyayan | ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१८ संजयीय |
Gujarati | 589 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] नाना रुइं च छंदं च परिवज्जेज्ज संजए ।
अनट्ठा जे य सव्वत्था इइ विज्जामनुसंचरे ॥ Translated Sutra: વિવિધ પ્રકારની રૂચિ અને વિકલ્પોને તથા બધા પ્રકારના અનર્થક વ્યાપારોને સંયતાત્મા મુનિ સર્વ પ્રકારે ત્યાગ કરે. આ તત્ત્વજ્ઞાન રૂપ વિદ્યાનું લક્ષ્ય કરીને સંયમ માર્ગે સંચરણ કરે. | |||||||||
Uttaradhyayan | ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१८ संजयीय |
Gujarati | 590 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पडिक्कमामि पसिणाणं परमंतेहिं वा पुणो ।
अहो उट्ठिए अहोरायं इइ विज्जा तवं चरे ॥ Translated Sutra: હું શુભાશુભસૂચક પ્રશ્નોથી અને ગૃહસ્થોની મંત્રણાથી દૂર રહું છું. દિવસરાત ધર્માચરણમાં ઉદ્યત રહુ છું. આ જાણીને તમે પણ તપ આચરણ કરો. | |||||||||
Uttaradhyayan | ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२० महानिर्ग्रंथीय |
Gujarati | 734 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] उवट्ठिया मे आयरिया विज्जामंततिगिच्छगा ।
अबीया सत्थकुसला मंतमूलविसारया ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૭૨૮ | |||||||||
Uttaradhyayan | ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२० महानिर्ग्रंथीय |
Gujarati | 757 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जे लक्खणं सुविण पउंजमाणे निमित्तकोऊहलसंपगाढे ।
कुहेडविज्जासवदारजीवी न गच्छई सरणं तंमि काले ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૭૫૦ | |||||||||
Uttaradhyayan | ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२३ केशी गौतम |
Gujarati | 848 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तस्स लोगपईवस्स आसि सीसे महायसे ।
केसीकुमारसमणे विज्जाचरणपारगे ॥ Translated Sutra: સૂત્ર– ૮૪૮. લોકપ્રદીપ ભગવંતપાર્શ્વના જ્ઞાન અને ચરણના પારગામી, મહાયશસ્વી ‘કેશીકુમાર શ્રમણ’ શિષ્ય હતા. સૂત્ર– ૮૪૯. તે અવધિ અને શ્રુતજ્ઞાનથી પ્રબુદ્ધ હતા. શિષ્યસંઘથી પરિવૃત્ત થઇ ગ્રામાનુગ્રામ વિચરતા શ્રાવસ્તી નગરીમાં આવ્યા. સૂત્ર– ૮૫૦. નગરની નિકટ તિંદુક ઉદ્યાનમાં, જ્યાં પ્રાસુક શય્યા અને સંસ્તારક સુલભ | |||||||||
Uttaradhyayan | ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२३ केशी गौतम |
Gujarati | 852 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तस्स लोगपईवस्स आसि सीसे महायसे ।
भगवं गोयमे नामं विज्जाचरणपारगे ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૮૫૧ | |||||||||
Uttaradhyayan | ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Gujarati | 1675 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] कप्पाईया उ जे देवा दुविहा ते वियाहिया ।
गेविज्जाणुत्तरा चेव गेविज्जा नवविहा तहिं ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૬૬૯ | |||||||||
Vanhidasha | वह्निदशा | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ निषध |
Hindi | 3 | Sutra | Upang-12 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं उवंगाणं पंचमस्स वग्गस्स वण्हिदसाणं दुवालस अज्झयणा पन्नत्ता, पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स वण्हिदसाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवई नामं नयरी होत्था–दुवालसजोयणायामा नवजोयणवित्थिण्णा जाव पच्चक्खं देवलोयभूया पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा।
तीसे णं बारवईए नयरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए, एत्थ णं रेवतए नामं पव्वए होत्था–तुंगे गगनतलमनुलिहंत-सिहरे नानाविहरुक्ख-गुच्छ-गुम्म-लया-वल्ली-परिगयाभिरामे हंस-मिय-मयूर-कोंच-सारस-चक्कवाग-मदनसाला-कोइलकुलोववेए Translated Sutra: हे भदन्त ! श्रमण यावत् संप्राप्त भगवान ने प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ? हे जम्बू ! उस काल और उस समय में द्वारवती – नगरी थी। वह पूर्व – पश्चिम में बारह योजन लम्बी और उत्तर – दक्षिण में नौ योजन चौड़ी थी, उसका निर्माण स्वयं धनपति ने अपने मतिकौशल से किया था। स्वर्णनिर्मित श्रेष्ठ प्राकार और पंचरंगी मणियों के | |||||||||
Vanhidasha | વહ્નિદશા | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ निषध |
Gujarati | 3 | Sutra | Upang-12 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं उवंगाणं पंचमस्स वग्गस्स वण्हिदसाणं दुवालस अज्झयणा पन्नत्ता, पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स वण्हिदसाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवई नामं नयरी होत्था–दुवालसजोयणायामा नवजोयणवित्थिण्णा जाव पच्चक्खं देवलोयभूया पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा।
तीसे णं बारवईए नयरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए, एत्थ णं रेवतए नामं पव्वए होत्था–तुंगे गगनतलमनुलिहंत-सिहरे नानाविहरुक्ख-गुच्छ-गुम्म-लया-वल्ली-परिगयाभिरामे हंस-मिय-मयूर-कोंच-सारस-चक्कवाग-मदनसाला-कोइलकुलोववेए Translated Sutra: ભગવન્ ! શ્રમણ ભગવંત મહાવીરે પાંચમાં વર્ગ ‘વૃષ્ણિદશા’ના પહેલાં અધ્યયનનો શો અર્થ કહેલ છે ? હે જંબૂ ! તે કાળે તે સમયે દ્વારવતી નગરી હતી. બાર યોજન લાંબી અને નવ યોજન પહોળી યાવત્ પ્રત્યક્ષ દેવલોકરૂપ, પ્રાસાદીય – દર્શનીય – અભિરૂપ – પ્રતિરૂપ હતી. તે દ્વારવતી બહાર ઇશાન દિશામાં રૈવત નામે પર્વત હતો. ઊંચો, ગગનતલને સ્પર્શતા | |||||||||
Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-२ उज्झितक |
Hindi | 17 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] उज्झियए णं भंते! दारए इओ कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छिहिइ? कहिं उववज्जिहिइ?
गोयमा! उज्झियए दारए पणुवीसं वासाइं परमाउं पालइत्ता अज्जेव तिभागावसेसे दिवसे सूलभिण्णे कए समाणे कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए नेरइएसु नेरइगत्ताए उववज्जिहिइ।
से णं तओ अनंतरं उव्वट्टित्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे वेयड्ढगिरिपायमूले वाणरकुलंसि वाणरत्ताए उववज्जिहिइ।
से णं तत्थ उम्मुक्कबालभावे तिरियभोगेसु मुच्छिए गिद्धे गढिए अज्झोववण्णे जाए-जाए वाणरपेल्लए वहेइ। तं एयकम्मे एयप्पहाणे एयविज्जे एयसमायारे कालमासे कालं किच्चा इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे Translated Sutra: हे प्रभो ! यह उज्झितक कुमार यहाँ से कालमास में काल करके कहाँ जाएगा ? और कहाँ उत्पन्न होगा ? गौतम ! उज्झितक कुमार २५ वर्ष की पूर्ण आयु को भोगकर आज ही त्रिभागविशेष दिन में शूली द्वारा भेद को प्राप्त होकर कालमास में काल करके रत्नप्रभा में नारक रूप में उत्पन्न होगा। वहाँ से नीकलकर सीधा इसी जम्बू द्वीप में भारतवर्ष | |||||||||
Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-१० अंजूश्री |
Hindi | 34 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं नवमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, दसमस्स णं भंते! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
तए णं से सुहम्मे अनगारे जंबू–अनगारं एवं वयासी एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं वड्ढमाणपुरे नामं नयरे होत्था । विजयवड्ढमाणे उज्जाने। माणिभद्दे जक्खे। विजयमित्ते राया।
तत्थ णं घनदेवे नामं सत्थवाहे होत्था अड्ढे। पियंगू नामं भारिया। अंज दारिया जाव उक्किट्ठसरीरा। समोसरणं परिसा जाव गया।
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी जाव अडमाणे विजयमत्तिस्स रन्नो गिहस्स असोगवणियाए Translated Sutra: अहो भगवन् ! इत्यादि, उत्क्षेप पूर्ववत्। हे जम्बू ! उस काल तथा उस समय में वर्द्धमानपुर नगर था। वहाँ विजयवर्द्धमान नामक उद्यान था। उसमें मणिभद्र यक्ष का यक्षायतन था। वहाँ विजयमित्र राजा था। धनदेव नामक एक सार्थवाह – रहता था जो धनाढ्य और प्रतिष्ठित था। उसकी प्रियङ्गु नाम की भार्या थी। उनकी उत्कृष्ट शरीर | |||||||||
Vipakasutra | વિપાકશ્રુતાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-२ उज्झितक |
Gujarati | 17 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] उज्झियए णं भंते! दारए इओ कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छिहिइ? कहिं उववज्जिहिइ?
गोयमा! उज्झियए दारए पणुवीसं वासाइं परमाउं पालइत्ता अज्जेव तिभागावसेसे दिवसे सूलभिण्णे कए समाणे कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए नेरइएसु नेरइगत्ताए उववज्जिहिइ।
से णं तओ अनंतरं उव्वट्टित्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे वेयड्ढगिरिपायमूले वाणरकुलंसि वाणरत्ताए उववज्जिहिइ।
से णं तत्थ उम्मुक्कबालभावे तिरियभोगेसु मुच्छिए गिद्धे गढिए अज्झोववण्णे जाए-जाए वाणरपेल्लए वहेइ। तं एयकम्मे एयप्पहाणे एयविज्जे एयसमायारे कालमासे कालं किच्चा इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे Translated Sutra: ભગવન્! ઉજ્ઝિતદારક અહીંથી કાળમાસે કાળ કરીને ક્યાં જશે ? ક્યાં ઉત્પન્ન થશે ? હે ગૌતમ! ઉજ્ઝિતક દારક ૨૫ – વર્ષનું પરમ આયુ પાળીને આજે જ ત્રણ ભાગ દિવસ બાકી હશે ત્યારે શૂળી વડે ભેદાઈને કાળમાસે કાળ કરી આ રત્નપ્રભા પૃથ્વીમાં નૈરયિકપણે ઉપજશે. તે ત્યાંથી અનંતર ઉદ્વર્તીને આ જ જંબૂદ્વીપ દ્વીપના ભરતક્ષેત્રમાં વૈતાઢ્ય | |||||||||
Vipakasutra | વિપાકશ્રુતાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-१० अंजूश्री |
Gujarati | 34 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं नवमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, दसमस्स णं भंते! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
तए णं से सुहम्मे अनगारे जंबू–अनगारं एवं वयासी एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं वड्ढमाणपुरे नामं नयरे होत्था । विजयवड्ढमाणे उज्जाने। माणिभद्दे जक्खे। विजयमित्ते राया।
तत्थ णं घनदेवे नामं सत्थवाहे होत्था अड्ढे। पियंगू नामं भारिया। अंज दारिया जाव उक्किट्ठसरीरा। समोसरणं परिसा जाव गया।
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी जाव अडमाणे विजयमत्तिस्स रन्नो गिहस्स असोगवणियाए Translated Sutra: ભંતે ! જો શ્રમણ ભગવંત મહાવીરે યાવત્ દુઃખવિપાકના સાતમાં અધ્યયનનો આ અર્થ કહ્યો છે, તો આઠમાનો યાવત્ શો અર્થ કહ્યો છે ? ત્યારે સુધર્મા અણગારે જંબૂ અણગારને આ પ્રમાણે કહ્યું – જંબૂ ! નિશ્ચે, તે કાળે, તે સમયે વર્દ્ધમાનપુર નગર હતું. વિજયવર્દ્ધમાન ઉદ્યાન, માણિભદ્ર યક્ષ, વિજયમિત્ર રાજા. ત્યાં ધનદેવ નામે આઢ્ય સાર્થવાહ, |