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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Samavayang | સમવયાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Gujarati | 234 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] दुवे रासी पन्नत्ता, तं जहा–जीवरासी अजीवरासी य।
अजीवरासी दुविहे पन्नत्ते, तं जहा– रूविअजीवरासी अरूविअजीवरासी य।
से किं तं अरूविअजीवरासी?
अरूविअजीवरासी दसविहे पन्नत्ते, तं जहा–धम्मत्थिकाए, धम्मत्थिकायस्स देसे, धम्मत्थिकायस्स पदेसा, अधम्मत्थिकाए, अधम्मत्थिकायस्स देसे, अधम्मत्थिकायस्स पदेसा, आगासत्थिकाए, आगासत्थिकायस्स देसे, आगासत्थिकायस्स पदेसा, अद्धासमए। जाव–
से किं तं अनुत्तरोववाइआ?
अनुत्तरोववाइओ पंचविहा पन्नत्ता, तं जहा–विजय-वेजयंत-जयंत-अपराजित-सव्वट्ठसिद्धिया। सेत्तं अनुत्तरोववाइया। सेत्तं पंचिंदियसंसारसमावण्णजीवरासी।
दुविहा णेरइया पन्नत्ता, Translated Sutra: સૂત્ર– ૨૩૪. રાશિ બે કહી છે – જીવરાશિ અને અજીવરાશિ. અજીવરાશિ બે ભેદે છે – રૂપી અજીવરાશિ, અરૂપી અજીવરાશિ. અરૂપી અજીવરાશિ દશ પ્રકારે છે – ધર્માસ્તિકાય યાવત્ અદ્ધાસમય. રૂપી અજીવરાશિ અનેક પ્રકારે છે યાવત્ તે અનુત્તરોપપાતિક કેટલા છે ? અનુત્તરોપપાતિક પાંચ પ્રકારે છે – વિજય, વૈજયંત, જયંત, અપરાજિત, સર્વાર્થસિદ્ધિક. | |||||||||
Samavayang | સમવયાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Gujarati | 245 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइयाणं भंते! केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता?
गोयमा! जहन्नेणं दस वाससहस्साइं उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं ठिई पन्नत्ता।
अपज्जत्तगाणं भंते! नेरइयाणं केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता?
गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणवि अंतोमुहुत्तं।
पज्जत्तगाणं भंते! नेरइयाणं केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता?
गोयमा! जहन्नेणं दस वाससहस्साइं अंतोमुहुत्तूणाइं उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाइं।
इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए, एवं जाव विजय-वेजयंत-जयंत-अपराजियाणं भंते! देवाणं केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता?
गोयमा! जहन्नेणं बत्तीसं सागरोवमाइं उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं।
सव्वट्ठे Translated Sutra: હે ભગવન્ ! નારકીઓની સ્થિતિ કેટલો કાળ છે ? હે ગૌતમ ! જઘન્યથી ૧૦,૦૦૦ વર્ષ અને ઉત્કૃષ્ટથી ૩૩ – સાગરોપમ સ્થિતિ છે. હે ભગવન્ ! અપર્યાપ્તા નારકોની કેટલો કાળ સ્થિતિ કહી છે ? હે ગૌતમ ! જઘન્યથી અંતર્મુહૂર્ત્ત અને ઉત્કૃષ્ટથી અંતર્મુહૂર્ત્ત. તથા પર્યાપ્તા નારકીઓની જઘન્યથી અંતર્મુહૂર્ત્ત ન્યૂન ૧૦,૦૦૦ વર્ષ અને ઉત્કૃષ્ટથી | |||||||||
Samavayang | સમવયાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Gujarati | 246 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! सरीरा पन्नत्ता?
गोयमा! पंच सरीरा पन्नत्ता, तं जहा–ओरालिए वेउव्विए आहारए तेयए कम्मए।
ओरालियसरीरे णं भंते! कइविहे पन्नत्ते?
गोयमा! पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा– एगिंदियओरालियसरीरे जाव गब्भवक्कंतियमनुस्स-पंचिंदियओरालियसरीरे य।
ओरालियसरीरस्स णं भंते! केमहालिया सरीरोगाहणा पन्नत्ता?
गोयमा! जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जतिभागं उक्कोसेणं साइरेगं जोयणसहस्सं।
एवं जहा ओगाहणासंठाणे ओरालियपमाणं तहा निरवसेसं। एवं जाव मणुस्सेत्ति उक्कोसेणं तिन्नि गाउयाइं।
कइविहे णं भंते! वेउव्वियसरीरे पन्नत्ते?
गोयमा! दुविहे पन्नत्ते–एगिंदियवेउव्वियसरीरे य पंचिंदियवेउव्वियसरीरे Translated Sutra: હે ભગવન્ ! ઔદારિક શરીર કેટલા પ્રકારે છે ? હે ગૌતમ ! પાંચ પ્રકારે, તે આ – એકેન્દ્રિય ઔદારિક શરીર યાવત્ ગર્ભવ્યુત્ક્રાંતિક મનુષ્ય પંચેન્દ્રિયનું ઔદારિક શરીર. હે ભગવન્ ! ઔદારિક શરીરની કેટલી મોટી શરીર અવગાહના કહી છે ? હે ગૌતમ ! જઘન્યથી અંગુલનો અસંખ્યાત ભાગ અને ઉત્કૃષ્ટથી સાધિક ૧૦૦૦ યોજન. એ જ પ્રમાણે જેમ અવગાહના | |||||||||
Samavayang | સમવયાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Gujarati | 247 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कइविहे णं भंते! ओही पन्नत्ते?
गोयमा! दुविहे पन्नत्ते– भवपच्चइए य खओवसमिए य। एवं सव्वं ओहिपदं भाणियव्वं। Translated Sutra: સૂત્ર– ૨૪૭. હે ભગવન્ ! અવધિજ્ઞાન કેટલા ભેદે છે ? હે ગૌતમ ! બે ભેદે – ભવપ્રત્યયિક, ક્ષાયોપશમિક. એ પ્રમાણે પ્રજ્ઞાપના સૂત્રનું સર્વ ‘ઓહિપદ’ કહેવું. સૂત્ર– ૨૪૮. વેદના વિષયમાં શીત, દ્રવ્ય, શરીરસંબંધી, સાતાવેદના, દુઃખ, આભ્યુપગમ, ઔપક્રમિક, નિદા, અનિદા આટલા પ્રકારે વેદના છે.. સૂત્ર– ૨૪૯. હે ભગવન્ ! નૈરયિકો શીતવેદના વેદે | |||||||||
Samavayang | સમવયાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Gujarati | 252 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कइविहे णं भंते! आउगबंधे पन्नत्ते?
गोयमा! छव्विहे आउगबंधे पन्नत्ते, तं जहा– जाइनामनिधत्ताउके गतिनामनिधत्ताउके ठिइ-नामनिधत्ताउके पएसनामनिधत्ताउके अणुभागनामनिधत्ताउके ओगाहणानामनिधत्ताउके।
नेरइयाणं भंते! कइविहे आउगबंधे पन्नत्ते?
गोयमा! छव्विहे पन्नत्ते, तं जहा– जातिनाम निधत्ताउके गइनामनिधत्ताउके ठिइनाम-निधत्ताउके पएसनामनिधत्ताउके अणुभागनामनिधत्ताउके ओगाहणानामनिधत्ताउके।
एवं जाव वेमाणियत्ति।
निरयगई णं भंते! केवइयं कालं विरहिया उववाएणं पन्नत्ता?
गोयमा! जहन्नेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं बारसमुहुत्ते।
एवं तिरियगई मनुस्सगई देवगई।
सिद्धिगई णं भंते! केवइयं Translated Sutra: હે ભગવન્ ! આયુષ્યબંધ કેટલા ભેદે કહ્યો છે ? હે ગૌતમ ! છ ભેદે, તે આ રીતે – જાતિનામ નિધત્તાયુ, ગતિ નામ નિધત્તાયુ, સ્થિતિનામ નિધત્તાયુ, પ્રદેશ – અનુભાગ – અવગાહના નામ નિધત્તાયુ. હે ભગવન્ ! નારકીઓને કેટલા ભેદે આયુબંધ કહ્યો છે ? હે ગૌતમ ! છ ભેદે. તે આ – જાતિ, ગતિ, સ્થિતિ, પ્રદેશ, અનુભાગ, અવગાહના નામ નિધત્તાયુ. આ પ્રમાણે વૈમાનિક | |||||||||
Samavayang | સમવયાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Gujarati | 253 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कइविहे णं भंते! संघयणे पन्नत्ते?
गोयमा! छव्विहे संघयणे पन्नत्ते, तं जहा–वइरोसभनारायसंघयणे रिसभनारायसंघयणे नारायसंघयणे अद्धनारायसंघयणे खालियासंघयणे छेवट्टसंघयणे।
नेरइया णं भंते! किंसंघयणी?
गोयमा! छण्हं संघयणाणं असंघयणी–नेवट्ठी नेव छिरा नेव ण्हारू, जे पोग्गला अनिट्ठा अकंता अप्पिया असुभा अमणुन्ना अमणामा ते तेसिं असंघयणत्ताए परिणमंति।
असुरकुमारा णं भंते? किंसंघयणी पन्नत्ता?
गोयमा! छण्हं संघयणाणं असंघयणी–नेवट्ठी नेव छिरा नेव ण्हारू, जे पोग्गला इट्ठा कंता पिया सुभा मणुन्ना मणामा ते तेसिं असंघयणत्ताए परिणमंति।
एवं जाव थणियकुमारत्ति।
पुढवीकाइया णं भंते? Translated Sutra: હે ભગવન્ ! સંઘયણ કેટલા ભેદે છે ? છ ભેદે, તે આ – વજ્રઋષભનારાચ, ઋષભનારાચ, નારાચ, અર્ધનારાચ કીલિકા અને સેવાર્ત્તસંઘયણ. હે ભગવન્ ! નૈરયિક જીવો કેટલા સંઘયણવાળા છે ? હે ગૌતમ ! છમાંથી એક પણ નહીં, તેથી અસંઘયણી છે. તેમને અસ્થિ – સિરા – સ્નાયુ નથી. જે પુદ્ગલો અનિષ્ટ, અકાંત, અપ્રિય, અનાદેય, અશુભ, અમનોજ્ઞ, અમણામ, અમનાભિરામ છે. | |||||||||
Samavayang | સમવયાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Gujarati | 254 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कइविहे णं भंते! वेए पन्नत्ते?
गोयमा! तिविहे वेए पन्नत्ते, तं जहा–इत्थीवेए पुरिसवेए नपुंसगवेए।
नेरइया णं भंते! किं इत्थीवेया पुरिसवेया नपुंसगवेया पन्नत्ता?
गोयमा! नो इत्थिवेया नो पुंवेया, नपुंसगवेया पन्नत्ता।
असुरकुमाराणं भंते! किं इत्थिवेया पुरिसवेया नपुंसगवेया?
गोयमा! इत्थिवेया पुरिसवेया, नो नपुंसगवेया जाव थणियत्ति।
पुढवि-आउ-तेउ-वाउ-वणप्फइ-बि-ति-चउरिंदिय-संमुच्छिमपंचिंदियतिरिक्ख-संमुच्छिममनुस्सा नपुंसगवेया।
गब्भवक्कंतियमणुस्सा पंचेंदियतिरिया य तिवेया।
जहा असुरकुमारा तहा वाणमंतरा जोइसिया वेमाणियावि। Translated Sutra: સૂત્ર– ૨૫૪. હે ભગવન્ ! વેદ કેટલા ભેદે છે ? ગૌતમ ! ત્રણ પ્રકારે – સ્ત્રીવેદ, પુરુષવેદ, નપુંસકવેદ. હે ભંતે ! નૈરયિકો સ્ત્રીવેદી – પુરુષવેદી કે નપુંસકવેદી છે ? ગૌતમ ! સ્ત્રી કે પુરુષ નહીં પણ નપુંસક વેદી છે. હે ભંતે! અસુરકુમારો સ્ત્રી – પુરુષ કે નપુંસકવેદી છે ? ગૌતમ ! સ્ત્રી વેદી છે, પુરુષ વેદી છે, નપુંસક વેદી નથી. યાવત્ | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-३ |
उद्देशक-१ | Hindi | 153 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! सालीणं वीहीणं गोधूमाणं जवाणं जवजवाणं–एतेसि णं धण्णाणं कोट्ठाउत्ताणं पल्लाउत्ताणं मंचाउत्ताणं मालाउत्ताणं ओलित्ताणं लित्ताणं लंछियाणं मुद्दियाणं पिहिताणं केवइयं कालं जोणी संचिट्ठति?
जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिन्नि संवच्छराइं। तेण परं जोणी पमिलायति। तेण परं जोणी पविद्धंसति। तेण परं जोणी विद्धंसति। तेण परं बीए अबीए भवति। तेण परं जोणीवोच्छेदे पन्नत्ते। Translated Sutra: हे भदन्त ! शालि, व्रीहि, गेहूं, जौ, यवयव इन धान्यों को कोठों में सुरक्षित रखने पर, पल्य में सुरक्षित रखने पर, मंच पर सुरक्षित रखने पर, ढक्कन लगाकर, लीप कर, सब तरफ लीप कर, रेखादि के द्वारा लांछित करने पर, मिट्टी की मुद्रा लगाने पर अच्छी तरह बन्द रखने पर इनकी कितने काल तक योनि रहती है ? हे गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-३ |
उद्देशक-२ | Hindi | 179 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अज्जोति! समणे भगवं महावीरे गोतमादी समणे निग्गंथे आमंतेत्ता एवं वयासी–किंभया पाणा? समणाउसो!
गोतमादी समणा निग्गंथा समणं भगवं महावीरं उवसंकमंति, उवसंकमित्ता वंदंति णमंसंति, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी– नो खलु वयं देवाणुप्पिया! एयमट्ठं जाणामो वा पासामो वा! तं जदि णं देवाणु-प्पिया! एयमट्ठं नो गिलायंति परिकहित्तए, तमिच्छामो णं देवाणुप्पियाणं अंतिए एयमट्ठं जाणित्तए।
अज्जोति! समणे भगवं महावीरे गोतमादी समणे निग्गंथे आमंतेत्ता एवं वयासी– दुक्खभया पाणा समणाउसो!
से णं भंते! दुक्खे केण कडे?
जीवेणं कडे पमादेणं।
से णं भंते! दुक्खे कहं वेइज्जति?
अप्पमाएणं। Translated Sutra: हे आर्यो ! इस प्रकार श्रमण भगवान महावीर गौतमादि श्रमण निर्ग्रन्थों को सम्बोधित कर इस प्रकार बोले हे श्रमणों ! प्राणियों को किससे भय है ? (तब) गौतमादि श्रमणनिर्ग्रन्थ श्रमण भगवान महावीर के समीप आते हैं और वन्दना – नमस्कार करते हैं। वे इस प्रकार बोले – हे देवानुप्रिय ! यह अर्थ हम जानते नहीं हैं, देखते नहीं हैं, इसलिए | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-३ |
उद्देशक-३ | Hindi | 203 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तहारूवं णं भंते! समणं वा माहणं वा पज्जुवासमाणस्स किंफला पज्जुवासणया? सवणफला।
से णं भंते! सवने किंफले? नाणफले।
से णं भंते! नाणे किंफले ? विन्नाणफले।
से णं भंते! विन्नाणे किंफले? पच्चक्खाणफले।
से णं भंते! पच्चक्खाणे किंफले? संजमफले।
से णं भंते! संजमे किंफले? अणण्हयफले।
से णं भंते! अणण्हए किंफले? तवफले।
से णं भंते! तवे किंफले? वोदानफले।
से णं भंते! वोदाने किंफले? अकिरियफले।
सा णं भंते! अकिरिया किंफला? निव्वाणफला।
से णं भंते! निव्वाणे किंफले ? सिद्धिगइ-गमण-पज्जवसाण-फले समणाउसो! Translated Sutra: श्री गौतम स्वामी भगवान महावीर से पूछते हैं – हे भगवन् ! तथारूप श्रमण माहन की सेवा करने वाले को सेवा का क्या फल मिलता है ? भगवान बोले – हे गौतम ! उसे धर्मश्रवण करने का फल मिलता है। हे भगवन् ! धर्म श्रवण करने का क्या फल होता है ? धर्मश्रवण करने से ज्ञान की प्राप्ति होती है। हे भगवन् ! ज्ञान का फल क्या है? हे गौतम ! ज्ञान | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-५ |
उद्देशक-३ | Hindi | 497 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! कल-मसूर-तिल-मुग्ग-मास-णिप्फाव-कुलत्थ-आलिसंदग-सतीण-पलिमंथगाणं–एतेसिं णं धण्णाणं कुट्ठाउत्ताणं पल्लाउत्ताणं मंचाउत्ताणं मालाउत्ताणं ओलित्ताणं लित्ताणं लंछियाणं मुद्दियाणं पिहिताणं केवइयं कालं जोणी संचिट्ठति?
गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पंच संवच्छराइं। तेण परं जोणी पमिलायति, तेण परं जोणी पविद्धंसति, तेण परं जोणी विद्धंसति, तेण परं बीए अबीए भवति, तेण परं जोणीवोच्छेदे पन्नत्ते। Translated Sutra: हे भगवन् ! चणा, मसूर, तिल, मूँग, उड़द, बाल, कुलथ, चँवला, तुवर और कालाचणा कोठे में रखे हुए इन धान्यों की कितनी स्थिति है ? हे गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त उत्कृष्ट पाँच वर्ष। इसके पश्चात् योनि (जीवोत्पत्ति – स्थान) कुमला जाती है और शनैः शनैः योनि विच्छेद हो जाता है। | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-६ |
Hindi | 585 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] छव्विहे पट्ठे पन्नत्ते, तं जहा–संसयपट्ठे, वुग्गहपट्ठे, अनुजोगी, अनुलोमे, तहनाणे, अतहनाणे। Translated Sutra: प्रश्न छः प्रकार के हैं, यथा – संशय प्रश्न – संशय होने पर किया जाने वाला प्रश्न। मिथ्याभिनिवेश प्रश्न – परपक्ष को दूषित करने के लिए किया गया प्रश्न। अनुयोगी प्रश्न – व्याख्या करने के लिए ग्रन्थकार द्वारा किया गया प्रश्न। अनुलोभ प्रश्न – कुशलप्रश्न। तथाज्ञानप्रश्न – गणधर गौतम के प्रश्न। अतथाज्ञान प्रश्न | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-७ |
Hindi | 602 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सत्त मूलगोत्ता पन्नत्ता, तं जहा–
कासवा, गोतमा, वच्छा, कोच्छा, कोसिआ, मंडवा, वासिट्ठा।
जे कासवा ते सत्तविधा पन्नत्ता, तं जहा– ते कासवा, ते संडिल्ला, ते गोला, ते वाला, ते मुंजइणो, ते पव्वतिणो, ते वरिसकण्हा।
जे गोतमा ते सत्तविधा पन्नत्ता, तं जहा– ते गोतमा, ते गग्गा, ते भारद्दा, ते अंगिरसा, ते सक्कराभा, ते भक्खराभा, ते उदत्ताभा।
जे वच्छा ते सत्तविधा पन्नत्ता, तं जहा–ते वच्छा, ते अग्गेया, ते मित्तेया, ते सामलिणो, ते सेलयया, ते अट्ठिसेणा ते वीयकण्हा।
जे कोच्छा ते सत्तविधा पन्नत्ता, तं जहा–ते कोच्छा, ते मोग्गलायणा, ते पिंगलायणा, ते कोडिण्णा, ते मडलिणो, ते हारिता, ते सोमया।
जे कोसिआ Translated Sutra: मूल गोत्र सात कहे जाते हैं, यथा – काश्यप, गौतम, वत्स, कुत्स, कौशिक, मांडव, वाशिष्ठ। काश्यप गोत्र सात प्रकार का कहा गया है, यथा – काश्यप, सांडिल्य, गोल्य, बाल, मौजकी, पर्वप्रेक्षकी, वर्षकृष्ण। गौतम गोत्र सात प्रकार का है – गौतम, गार्ग्य, भारद्वाज, अंगिरस, शर्कराभ, भक्षकाम, उदकात्माभ। वत्स गोत्र सात प्रकार का कहा गया | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-७ |
Hindi | 672 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अध भंते! अदसि-कुसुम्भ-कोद्दव-कंगु-रालग-वरट्ट-कोद्दूसग-सण-सरिसव-मूलगबीयाणं–एतेसि णं धन्नाणं कोट्ठाउत्ताणं पल्लाउत्ताणं मंचाउत्ताणं मालाउत्ताणं ओलित्ताणं लित्ताणं लंछियाणं मुद्दियाणं पिहियाणं केवइयं कालं जोणी संचिट्ठति?
गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सत्त संवच्छराइं। तेण पर जोणी पमिलायति, तेण परं जोणी पविद्धंसति, तेण परं जोणी विद्धंसति, तेण परं बीए अबीए भवति, तेण परं जोणीवोच्छेदे पन्नत्ते। Translated Sutra: प्रश्न – हे भगवन् ! अलसी, कुसुभ, कोद्रव, कांग, रल, सण, सरसों और मूले के बीज। इन धान्यों को कोठे में, पाले में यावत् ढाँककर रखे तो उन धान्यों की योनि कितने काल तक सचित्त रहती है ? हे गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त, उत्कृष्ट – सात संवत्सर। पश्चात् योनि म्लान हो जाती है – यावत् योनि नष्ट हो जाती है। | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-३ |
उद्देशक-१ | Gujarati | 152 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] बायरतेउकाइयाणं उक्कोसेणं तिन्नि राइंदियाइं ठिती पन्नत्ता।
[सूत्र] बायरवाउकाइयाणं उक्कोसेणं तिन्नि वाससहस्साइं ठिती पन्नत्ता। Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૫૨. બાદર તેઉકાયિકની ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ ત્રણ અહોરાત્રિ કહી છે. બાદર વાયુકાયિકોની સ્થિતિ ઉત્કૃષ્ટથી ૩૦૦૦ વર્ષ પ્રમાણ છે. સૂત્ર– ૧૫૩. હે ભગવન્ શાલી, વ્રીહિ, જવ, જવજવ, આ ધાન્યોને કોઠામાં નાખેલા, પાલામાં રાખેલા, મંચો પર સ્થાપેલા, માળ ઉપર રાખેલા, ઢાંકણ મૂકી લીંપીને રાખેલા, ચોતરફ લીંપેલ, લંછિત કરેલા, મુદ્રિત | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-३ |
उद्देशक-२ | Gujarati | 179 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अज्जोति! समणे भगवं महावीरे गोतमादी समणे निग्गंथे आमंतेत्ता एवं वयासी–किंभया पाणा? समणाउसो!
गोतमादी समणा निग्गंथा समणं भगवं महावीरं उवसंकमंति, उवसंकमित्ता वंदंति णमंसंति, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी– नो खलु वयं देवाणुप्पिया! एयमट्ठं जाणामो वा पासामो वा! तं जदि णं देवाणु-प्पिया! एयमट्ठं नो गिलायंति परिकहित्तए, तमिच्छामो णं देवाणुप्पियाणं अंतिए एयमट्ठं जाणित्तए।
अज्जोति! समणे भगवं महावीरे गोतमादी समणे निग्गंथे आमंतेत्ता एवं वयासी– दुक्खभया पाणा समणाउसो!
से णं भंते! दुक्खे केण कडे?
जीवेणं कडे पमादेणं।
से णं भंते! दुक्खे कहं वेइज्जति?
अप्पमाएणं। Translated Sutra: ૧. હે આર્યો ! શ્રમણ ભગવંત મહાવીર, ગૌતમાદિ શ્રમણ નિર્ગ્રન્થોને આમંત્રિત કરીને એમ કહ્યું – હે આયુષ્યમાન્ શ્રમણો ! પ્રાણીઓને કોનાથી ભય છે ? ગૌતમાદિ શ્રમણ નિર્ગ્રન્થો, શ્રમણ ભગવંત મહાવીરને સમીપ આવે છે, આવીને વંદન, નમસ્કાર કરે છે. વંદન – નમસ્કાર કરીને એમ કહ્યું. હે દેવાનુપ્રિયો ! અમે આ અર્થને જાણતા નથી કે દેખતા નથી, | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-५ |
उद्देशक-३ | Gujarati | 497 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! कल-मसूर-तिल-मुग्ग-मास-णिप्फाव-कुलत्थ-आलिसंदग-सतीण-पलिमंथगाणं–एतेसिं णं धण्णाणं कुट्ठाउत्ताणं पल्लाउत्ताणं मंचाउत्ताणं मालाउत्ताणं ओलित्ताणं लित्ताणं लंछियाणं मुद्दियाणं पिहिताणं केवइयं कालं जोणी संचिट्ठति?
गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पंच संवच्छराइं। तेण परं जोणी पमिलायति, तेण परं जोणी पविद्धंसति, तेण परं जोणी विद्धंसति, तेण परं बीए अबीए भवति, तेण परं जोणीवोच्छेदे पन्नत्ते। Translated Sutra: હે ભગવન્ ! વટાણા, મસૂર, તલ, મગ, અડદ, વાલ, કળથી, ચોળા, તુવેર અને કાળા ચણા – આ ધાન્યોને કોઠારમાં નાંખ્યા હોય. તો જેમ (ત્રીજા સ્થાનમાં) શાલિમાં કહ્યું, તેમ યાવત્ તેટલો કાળ તેની યોનિ સચિત્ત રહે? હે ગૌતમ ! જઘન્યથી અંતર્મુહૂર્ત્ત, ઉત્કૃષ્ટથી પાંચ વર્ષ સુધી. ત્યારપછી યોનિ મ્લાન થાય યાવત્ નાશ પામે. | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-७ |
Gujarati | 602 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सत्त मूलगोत्ता पन्नत्ता, तं जहा–
कासवा, गोतमा, वच्छा, कोच्छा, कोसिआ, मंडवा, वासिट्ठा।
जे कासवा ते सत्तविधा पन्नत्ता, तं जहा– ते कासवा, ते संडिल्ला, ते गोला, ते वाला, ते मुंजइणो, ते पव्वतिणो, ते वरिसकण्हा।
जे गोतमा ते सत्तविधा पन्नत्ता, तं जहा– ते गोतमा, ते गग्गा, ते भारद्दा, ते अंगिरसा, ते सक्कराभा, ते भक्खराभा, ते उदत्ताभा।
जे वच्छा ते सत्तविधा पन्नत्ता, तं जहा–ते वच्छा, ते अग्गेया, ते मित्तेया, ते सामलिणो, ते सेलयया, ते अट्ठिसेणा ते वीयकण्हा।
जे कोच्छा ते सत्तविधा पन्नत्ता, तं जहा–ते कोच्छा, ते मोग्गलायणा, ते पिंगलायणा, ते कोडिण्णा, ते मडलिणो, ते हारिता, ते सोमया।
जे कोसिआ Translated Sutra: સાત મૂલ ગોત્રો કહ્યા છે – કાશ્યપ, ગૌતમ, વત્સ, કુત્સ, કૌશિક, મંડવ, વાશિષ્ટ. જે કાશ્યપો છે તે સાત ભેદે છે – કાશ્યપ, શાંડીલ્ય, ગૌડ, વાલ, મૌજકી, પર્વપ્રેક્ષકી, વર્ણકૃષ્ણ. ગૌતમ સાત ભેદે છે – ગૌતમ, ગર્ગ, ભારદ્વાજ, અંગિરસ, શર્કરાભ, ભાસ્કરાભ, ઉદકાત્મભ. વત્સો છે તે સાત ભેદે છે – વત્સ, આગ્નેય, મૈત્રેય, સ્વામિલી, શેલક, અસ્થિસેન, વીતકર્મ. કુત્સો | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-७ |
Gujarati | 672 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अध भंते! अदसि-कुसुम्भ-कोद्दव-कंगु-रालग-वरट्ट-कोद्दूसग-सण-सरिसव-मूलगबीयाणं–एतेसि णं धन्नाणं कोट्ठाउत्ताणं पल्लाउत्ताणं मंचाउत्ताणं मालाउत्ताणं ओलित्ताणं लित्ताणं लंछियाणं मुद्दियाणं पिहियाणं केवइयं कालं जोणी संचिट्ठति?
गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सत्त संवच्छराइं। तेण पर जोणी पमिलायति, तेण परं जोणी पविद्धंसति, तेण परं जोणी विद्धंसति, तेण परं बीए अबीए भवति, तेण परं जोणीवोच्छेदे पन्नत्ते। Translated Sutra: સૂત્ર– ૬૭૨. હે ભગવન્ ! અળસી, કુસુંભ, કોદ્રવ, કાંગ, રાળ, સણ, સરસવ અને મૂળાના બીજ, આ ધાન્યોના કોઠારમાં કે પાલામાં ઘાલીને યાવત્ ઢાંકીને રાખ્યા હોય તો કેટલો કાળ તેની યોનિ સચિત્ત રહે ? – હે ગૌતમ ! જઘન્યથી અંતર્મુહૂર્ત્ત અને ઉત્કૃષ્ટથી સાત વર્ષ પર્યન્ત, ત્યારપછી તેની યોનિ મ્લાન થાય છે યાવત્ યોનિનો નાશ થાય છે તેમ કહ્યું | |||||||||
Suryapragnapti | सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्राभृत-१ |
प्राभृत-प्राभृत-५ | Hindi | 27 | Sutra | Upang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] वयं पुण एवं वयामो–ता जया णं सूरिए सव्वब्भंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं जंबुद्दीवं दीवं असीतं जोयणसतं ओगाहित्ता चारं चरइ, तया णं उत्तमकट्ठपत्ते उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, जहन्निया दुवालसमुहुत्ता राती भवति। एवं सव्वबाहिरेवि, नवरं–लवणसमुद्दं तिन्नि तीसे जोयणसए ओगाहित्ता चारं चरइ, तया णं उत्तमकट्ठपत्ता उक्कोसिया अट्ठारसमुहुत्ता राती भवति, जहन्नए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ, गाहाओ भाणियव्वाओ। Translated Sutra: हे गौतम ! में इस विषय में यह कहता हूँ कि जब सूर्य सर्वाभ्यन्तर मंडल को उपसंक्रमीत करके गति करता है तब वह जंबूद्वीप को १८० योजन से अवगाहीत करता है, उस समय प्रकर्ष प्राप्त उत्कृष्ट अट्ठारह मुहूर्त्त का दिन और जघन्या बारह मुहूर्त्त की रात्रि होती है। इसी तरह सर्वबाह्य मंडल में भी जानना। विशेष यह की लवणसमुद्र | |||||||||
Suryapragnapti | सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्राभृत-१ |
Hindi | 2 | Sutra | Upang-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूती नामं अनगारे गोयमे गोत्तेणं सत्तुस्सेहे समचउरंससंठाणसंठिए वज्जरिसहनारायसंघयणे जाव एवं वयासी– Translated Sutra: उस काल – उस समय में श्रमण भगवान महावीर के ज्येष्ठ शिष्य इन्द्रभूति थे, जिनका गौतम गोत्र था, वे सात हाथ ऊंचे और समचतुरस्र संस्थानवाले थे यावत् उसने कहा। | |||||||||
Suryapragnapti | सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्राभृत-१० |
प्राभृत-प्राभृत-१६ | Hindi | 69 | Sutra | Upang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] ता कहं ते गोत्ता आहिताति वदेज्जा? ता एतेसि णं अट्ठावीसाए नक्खत्ताणं अभीई नक्खत्ते किंगोते पन्नत्ते? ता मोग्गलायणसगोत्ते पन्नत्ते।
ता सवणे नक्खत्ते किंगोत्ते पन्नत्ते? ता संखायणसगोत्ते पन्नत्ते।
ता धनिट्ठा नक्खत्ते किंगोत्ते पन्नत्ते? ता अग्गभावसगोत्ते पन्नत्ते।
ता सतभिसया नक्खत्ते किंगोत्ते पन्नत्ते? ता कण्णिलायणसगोत्ते पन्नत्ते।
ता पुव्वापोट्ठवया नक्खत्ते किंगोत्ते पन्नत्ते? ता जाउकण्णियसगोत्ते पन्नत्ते।
ता उत्तरापोट्ठवया नक्खत्ते किंगोत्ते पन्नत्ते? ता धणंजयसगोत्ते पन्नत्ते।
ता रेवती नक्खत्ते किंगोत्ते पन्नत्ते? ता पुस्सायणसगोत्ते पन्नत्ते।
ता Translated Sutra: हे भगवन् ! नक्षत्र के गोत्र किस प्रकार से कहे हैं ? इन अट्ठाईस नक्षत्रों में अभिजीत नक्षत्र का गोत्र मुद्ग – लायन है, इसी तरह श्रवण का शंखायन, घनिष्ठा का अग्रतापस, शतभिषा का कर्णलोचन, पूर्वाभाद्रपद का जातु – कर्णिय, उत्तराभाद्रपद का धनंजय, रेवती का पौष्यायन, अश्विनी का आश्वायन, भरणी का भार्गवेश, कृतिका का अग्निवेश, | |||||||||
Suryapragnapti | સૂર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
प्राभृत-१ |
Gujarati | 2 | Sutra | Upang-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूती नामं अनगारे गोयमे गोत्तेणं सत्तुस्सेहे समचउरंससंठाणसंठिए वज्जरिसहनारायसंघयणे जाव एवं वयासी– Translated Sutra: તે કાળે, તે સમયે શ્રમણ ભગવન્ મહાવીરના મુખ્ય શિષ્ય ઇન્દ્રભૂતિ નામે અણગાર, ગૌતમ ગોત્રીય હતા. સાત હાથ ઊંચા, સમચતુરસ્ર સંસ્થાન સંસ્થિત, વજ્રઋષભ નારાચ સંઘયણી હતા. યાવત્ તે આ પ્રમાણે બોલ્યા – | |||||||||
Suryapragnapti | સૂર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
प्राभृत-१० |
प्राभृत-प्राभृत-१६ | Gujarati | 69 | Sutra | Upang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] ता कहं ते गोत्ता आहिताति वदेज्जा? ता एतेसि णं अट्ठावीसाए नक्खत्ताणं अभीई नक्खत्ते किंगोते पन्नत्ते? ता मोग्गलायणसगोत्ते पन्नत्ते।
ता सवणे नक्खत्ते किंगोत्ते पन्नत्ते? ता संखायणसगोत्ते पन्नत्ते।
ता धनिट्ठा नक्खत्ते किंगोत्ते पन्नत्ते? ता अग्गभावसगोत्ते पन्नत्ते।
ता सतभिसया नक्खत्ते किंगोत्ते पन्नत्ते? ता कण्णिलायणसगोत्ते पन्नत्ते।
ता पुव्वापोट्ठवया नक्खत्ते किंगोत्ते पन्नत्ते? ता जाउकण्णियसगोत्ते पन्नत्ते।
ता उत्तरापोट्ठवया नक्खत्ते किंगोत्ते पन्नत्ते? ता धणंजयसगोत्ते पन्नत्ते।
ता रेवती नक्खत्ते किंगोत्ते पन्नत्ते? ता पुस्सायणसगोत्ते पन्नत्ते।
ता Translated Sutra: તે નક્ષત્રોના ગોત્ર ક્યા કહેલા છે ? આ અઠ્ઠાવીશ નક્ષત્રોમાં અભિજિત નક્ષત્રનું કયુ ગોત્ર છે ? તેનું ગોત્ર મુદ્ગલાયન કહેલ છે. શ્રવણ નક્ષત્રનું કયુ ગોત્ર કહેલ છે ? તેનું સંખ્યાયન ગોત્ર કહેલ છે. ઘનિષ્ઠા નક્ષત્રનું કયુ ગોત્ર કહેલ છે ? તે અગ્રતાપસ કહેલ છે. શતભિષા નક્ષત્રનું કયુ ગોત્ર કહેલ છે ? તે કર્ણલોચન ગોત્ર કહેલ | |||||||||
Sutrakrutang | सूत्रकृतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-७ नालंदीय |
Hindi | 796 | Sutra | Ang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तस्सिं च णं गिहपदेसंसि भगवं गोयमे विहरइ, भगवं च णं अहे आरामंसि।
अहे णं उदए पेढालपुत्ते भगवं पासावच्चिज्जे नियंठे मेदज्जे गोत्तेणं जेणेव भगवं गोयमे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भगवं गोयमं एवं वयासी–
आउसंतो! गोयमा! अत्थि खलु मे केइ पदेसे पुच्छियव्वे, तं च मे आउसो! अहासुयं अहादरिसियमेव वियागरेहि।
सवायं भगवं गोयमे उदयं पेढालपुत्तं एवं वयासी–अवियाइ आउसो! सोच्चा निसम्म जाणिस्सामो।
सवायं उदए पेढालपुत्ते भगवं गोयमं एवं वयासी– Translated Sutra: उसी वनखण्ड के गृहप्रवेश में भगवान गौतम गणधर ने निवास किया। (एक दिन) भगवान गौतम उस वनखण्ड के अधोभाग में स्थित आराम में विराजमान थे। इसी अवसर में मेदार्यगोत्रीय एवं भगवान पार्श्वनाथ स्वामी का शिष्य – संतान निर्ग्रन्थ उदक पेढ़ालपुत्र जहाँ भगवान गौतम विराजमान थे, वहाँ उनके समीप आए। उन्होंने भगवान गौतमस्वामी | |||||||||
Sutrakrutang | सूत्रकृतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-७ नालंदीय |
Hindi | 797 | Sutra | Ang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: आउसंतो! गोयमा! अत्थि खलु कम्मारपुत्तिया नाम समणा निग्गंथा तुम्हागं पवयणं पवयमाणा गाहावइं समणोवासगं उवसंपण्ण एवं पच्चक्खावेंति– ‘ननत्थ अभिजोगेणं, गाहावइ-चोर-ग्गहण-विमोक्खणाए तसेहिं पाणेहिं णिहाय दंडं।’
एवं ण्हं पच्चक्खंताणं दुप्पच्चक्खायं भवइ। एवं ण्हं पच्चक्खावेमानाणं दुपच्चक्खावियं भवइ। एवं ते परं पच्चक्खावेमाणा अइयरंति सयं पइण्णं।
कस्स णं तं हेउं।
संसारिया खलु पाणा–थावरा वि पाणा तसत्ताए पच्चायंति। तसा वि पाणा थावरत्ताए पच्चायंति। थावरकायाओ विप्पमुच्चमाणा तसकायंसि उववज्जंति। तसकायाओ विप्पमुच्चमाणा थावरकायंसि उववज्जंति। तेसिं च णं थावरकायंसि उववण्णाणं Translated Sutra: सद्वचनपूर्वक उदक पेढ़ालपुत्र ने भगवान गौतम स्वामी से कहा – ‘‘आयुष्मन् गौतम ! कुमारपुत्र नामके श्रमण निर्ग्रन्थ हैं, जो आपके प्रवचन का उपदेश करते हैं। जब कोई गृहस्थ श्रमणोपासक उनके समीप प्रत्याख्यान ग्रहण करने के लिए पहुँचता है तो वे उसे इस प्रकार प्रत्याख्यान कराते हैं – ‘राजा आदि के अभियोग के सिवाय गाथापति | |||||||||
Sutrakrutang | सूत्रकृतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-७ नालंदीय |
Hindi | 798 | Sutra | Ang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: एवं ण्हं पच्चक्खंताणं सुपच्चक्खायं भवइ।
एवं ण्हं पच्चक्खावेमाणाणं सुपच्चक्खावियं भवइ।
एवं ते परं पच्चक्खावेमाणा नाइयरंति सयं पइण्णं– ‘ननत्थ अभिजोगेणं, गाहावइ-चोरग्गहण-विमोक्खणयाए तसभूएहिं पाणेहिं णिहाय दंडं।’ एवं सइ ‘भासाए परिकम्मे’ विज्जमाणे जे ते कोहा वा लोहा वा परं पच्चक्खावेंति। अयं पि नो उवएसे किं नो नेयाउए भवइ? अवियाइं आउसो! गोयमा! तुब्भं पि एयं एवं रोयइ? Translated Sutra: किन्तु जो (गृहस्थ श्रमणोपासक) इस प्रकार प्रत्याख्यान करते हैं, उनका वह प्रत्याख्यान सुप्रत्याख्यान होता है; तथा इस प्रकार से जो दूसरे को प्रत्याख्यान कराते हैं, वे भी अपनी प्रतिज्ञा का अतिक्रमण नहीं करते। वह प्रत्याख्यान इस प्रकार है – ‘राजा आदि के अभियोग को छोड़कर वर्तमान में त्रसभूत प्राणीयों को दण्ड देने | |||||||||
Sutrakrutang | सूत्रकृतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-७ नालंदीय |
Hindi | 799 | Sutra | Ang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सवायं भगवं गोयमे उदयं पेढालपुत्तं एवं वयासी–आउसंतो! उदगा! नो खलु अम्हं एयं एवं रोयइ। जेते समणा वा माहणा वा एवमाइक्खंति, एवं भासेंति, एवं पण्णवेंति, एवं परूवेंति नो खलु ते समणा वा निग्गंथा वा भासं भासंति, अणु-तावियं खलु ते भासं भासंति, अब्भाइक्खंति खलु ते समणे समणोवासए वा। जेहिं वि अन्नेहिं पाणेहिं भूएहिं जीवेहिं सत्तेहिं संजमयंति ताणि वि ते अब्भाइक्खंति।
कस्स णं तं हेउं?
संसारिया खलु पाणा–तसा वि पाणा थावरत्ताए पच्चायंति। थावरा वि पाणा तसत्ताए पच्चायंति। तसकायाओ विप्पमुच्चमाणा थावरकायंसि उववज्जंति। थावरकायाओ विप्पमुच्चमाणा तसकायंसि उववज्जंति। तेसिं च Translated Sutra: भगवान गौतम ने उदक पेढ़ालपुत्र निर्ग्रन्थ से सद्भावयुक्त वचन, या वाद सहित इस प्रकार कहा – ‘आयुष्मन् उदक ! हमें आपका इस प्रकार का यह मन्तव्य अच्छा नहीं लगता। जो श्रमण या माहन इस प्रकार कहते हैं, उपदेश देते हैं या प्ररूपणा करते हैं, वे श्रमण या निर्ग्रन्थ यथार्थ भाषा नहीं बोलते, अपितु वे अनुतापिनी भाषा बोलते | |||||||||
Sutrakrutang | सूत्रकृतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-७ नालंदीय |
Hindi | 800 | Sutra | Ang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सवायं उदए पेढालपुत्ते भगवं गोयमं एवं वयासी–कयरे खलु आउसंतो! गोयमा! तुब्भे वयह तसपाणा तसा ‘आउ अन्नहा’?
सवायं भगवं गोयमे उदयं पेढालपुत्तं एवं वयासी–आउसंतो! उदगा! जे तुब्भे वयह तसभूया पाणा तसा ते ‘वयं वदामो’ ‘तसा पाणा तसा’। जे वयं वयामो तसा पाणा तसा ते तुब्भे वदह तसभूया पाणा तसा। एए संति दुवे ठाणा तुल्ला एगट्ठा।
किमाउसो! इमे भे सुप्पणीयतराए भवइ– तसभूया पाणा तसा? इमे भे दुप्पणीयतराए भवइ–तसा पाणा तसा? तओ एगमाउसो! पलिकोसह, एक्कं अभिणंदह। अयं पि ‘भे उवएसे’नो नेयाउए भवइ।
भगवं च णं उदाहु–संतेगइया मणुस्सा भवंति, तेसिं च णं एवं वुत्तपुव्वं भवइ–णो खलु वयं संचाएमो मुंडा भवित्ता Translated Sutra: उदक पेढ़ालपुत्र ने सद्भावयुक्त वचनपूर्वक भगवान गौतम से इस प्रकार कहा – ‘आयुष्मन् गौतम ! वे प्राणी कौन – से हैं, जिन्हें आप त्रस कहते हैं ? आप त्रस प्राणी को ही त्रस कहते हैं, या किसी दूसरे को ?’ भगवान गौतम ने भी सद्वचनपूर्वक उदक पेढ़ालपुत्र से कहा – ‘‘आयुष्मन् उदक ! जिन प्राणीयों को आप त्रसभूत कहते हैं, उन्हीं | |||||||||
Sutrakrutang | सूत्रकृतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-७ नालंदीय |
Hindi | 802 | Sutra | Ang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सवायं उदए पेढालपुत्ते भगवं गोयमं एवं वयासी–आउसंतो! गोयमा! नत्थि णं से केइ परियाए जंसि समणो-वासगस्स ‘एगपाणाए वि दंडे निक्खित्ते’। कस्स णं तं हेउं?
संसारिया खलु पाणा–थावरा वि पाणा तसत्ताए पच्चायंति। तसा वि पाणा थावरत्ताए पच्चायंति। थावरकायाओ विप्पमुच्च-माणा सव्वे तसकायंसि उववज्जंति। तसकायाओ विप्पमुच्चमाणा सव्वे थावरकायंसि उववज्जंति। तेसिं च णं थावरकायंसि उवव-ण्णाणं ठाणमेयं धत्तं।
सवायं भगवं गोयमे उदयं पेढालपुत्तं एवं वयासी–नो खलु आउसो! अस्माकं वत्तव्वएणं तुब्भं चेव अणुप्पवाएणं अत्थि णं से परियाए जे णं समणोवासगस्स सव्वपाणेहिं सव्वभूएहिं सव्वजीवेहिं Translated Sutra: (पुनः) उदक पेढ़ालपुत्र ने वादपूर्वक भगवान गौतम स्वामी से इस प्रकार कहा – आयुष्मन् गौतम ! (मेरी समझ में) जीव की कोई भी पर्याय ऐसी नहीं है जिसे दण्ड न देकर श्रावक अपने एक भी प्राणी के प्राणातिपात से विरतिरूप प्रत्याख्यान को सफल कर सके ! उसका कारण क्या है ? (सूनिए) समस्त प्राणी परिवर्तनशील हैं, (इस कारण) कभी स्थावर प्राणी | |||||||||
Sutrakrutang | सूत्रकृतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-७ नालंदीय |
Hindi | 803 | Sutra | Ang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] भगवं च णं उदाहु नियंठा खलु पुच्छियव्वा–आउसंतो! नियंठा! इह खलु संतेगइया मणुस्सा भवंति। तेसिं च णं एवं वुत्तपुव्वं भवइ–जे इमे मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्ता, एएसिं णं आमरणंताए दंडे निक्खित्ते। जे इमे अगारमावसंति, एएसिं णं आमरणंताए दंडे नो निक्खित्ते।
‘केई च णं समणे’ जाव वासाइं चउपंचमाइं छद्दसमाइं अप्पयरो वा भुज्जयरो वा देसं दूइज्जित्ता ‘अगारं वएज्जा’?
हंता वएज्जा।
तस्स णं तमगारत्थं वहमाणस्स से पच्चक्खाणे भग्गे भवइ?
णेति।
एवमेव समणोवासगस्स वि तसेहिं पाणेहिं दंडे निक्खित्ते, थावरेहिं पाणेहिं दंडे नो निक्खित्ते। तस्स णं तं थावरकायं वहमाणस्स से पच्चक्खाणे Translated Sutra: भगवान गौतम कहते हैं कि मुझे निर्ग्रन्थों से पूछना है – आयुष्मन् निर्ग्रन्थों ! इस जगत में कईं मनुष्य ऐसे होते हैं; वे इस प्रकार वचनबद्ध होते हैं कि ‘ये जो मुण्डित हो कर, गृह त्याग कर अनगार धर्म में प्रव्रजित हैं, इनको आमरणान्त दण्ड देने का मैं त्याग करता हूँ; परन्तु जो ये लोग गृहवास करते हैं, उनको मरणपर्यन्त | |||||||||
Sutrakrutang | सूत्रकृतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-७ नालंदीय |
Hindi | 804 | Sutra | Ang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] भगवं च णं उदाहु नियंठा खलु पुच्छियव्वा–आउसंतो! नियंठा! इह खलु परिव्वायया वा परिव्वाइयाओ
वा अन्नयरेहिंतो तित्थायतणेहिंतो आगम्म धम्मस्सवणवत्तियं उवसंकमेज्जा?
हंता उवसंकमेज्जा।
‘किं तेसिं’ तहप्पगाराणं धम्मे आइक्खियव्वे?
हंता आइक्खियव्वे।
किं ते तहप्पगारं धम्मं सोच्चा निसम्म एवं वएज्जा–इणमेव निग्गंथं पावयणं सच्चं अनुत्तरंकेवलियं पडिपुण्णं णेयाउयं संसुद्धं सल्लकत्तणं सिद्धिमग्गं मुत्तिमग्गं निज्जाणमग्गं निव्वाणमग्गं अवितहं असंदिद्धं सव्वदुक्खप्पहीणमग्गं। एत्थ ठिया जीवा सिज्झंति बुज्झंति मुच्चंति परिणिव्वंति सव्वदुक्खाणमंतं करेंति। इमाणाए Translated Sutra: भगवान श्री गौतमस्वामी ने (पुनः) कहा – मुझे निर्ग्रन्थों से पूछना है – आयुष्मन् निर्ग्रन्थो ! इस लोक में परिव्राजक अथवा परिव्राजिकाएं किन्हीं दूसरे तीर्थस्थानों से चलकर धर्मश्रवण के लिए क्या निर्ग्रन्थ साधुओं के पास आ सकती हैं ? निर्ग्रन्थ – हाँ, आ सकती हैं। श्री गौतमस्वामी – क्या उन व्यक्तियों को धर्मोपदेश | |||||||||
Sutrakrutang | सूत्रकृतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-७ नालंदीय |
Hindi | 805 | Sutra | Ang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] १. तत्थ आरेणं जे तसा पाणा, जेहिं समणोवासगस्स आयाणसो आमरणंताए दंडे निक्खित्ते, ते तओ आउं विप्पजहंति, विप्प जहित्ता तत्थ आरेणं चेव जे तसा पाणा, जेहिं समणोवासगस्स आयाणसो आमरणंताए दंडे निक्खित्ते, तेसु पच्चायंति तेहिं समणोवासगस्स सुपच्चक्खायं भवइ।
ते पाणा वि वुच्चंति, ते तसावि वुच्चंति, ते महाकाया, ते चिरट्ठिइया। ते बहुतरगा पाणा जेहिं समणोवासगस्स सुपच्चक्खायं भवइ। ते अप्पयरगा पाणा जेहिं समणोवासगस्स अपच्चक्खायं भवइ। से महया तसकायाओ उवसंतस्स उवट्ठियस्स पडिविरयस्स जं णं तुब्भे वा अण्णो वा एवं वयह– ‘नत्थि णं से केइ परियाए जंसि समणोवासगस्स एगपाणाए वि दंडे निक्खित्ते।’ Translated Sutra: (१) ऐसी स्थिति में (श्रमणोपासक के व्रतग्रहण के समय) स्वीकृत मर्यादा के (अन्दर) रहने वाले जो त्रस प्राणी हैं, जिनका उसने अपने व्रतग्रहण के समय से लेकर मृत्युपर्यन्त दण्ड देने का प्रत्याख्यान किया है, वे प्राणी अपनी आयु को छोड़कर श्रमणोपासक द्वारा गृहीत मर्यादा के अन्तर क्षेत्रों में उत्पन्न होते हैं, तब भी श्रमणोपासक | |||||||||
Sutrakrutang | सूत्रकृतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-७ नालंदीय |
Hindi | 806 | Sutra | Ang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] भगवं च णं उदाहु–आउसंतो! उदगा! जे खलु समणं वा माहणं वा परिभासइ मित्ति मण्णइ आगमित्ता नाणं, आगमित्ता दंसणं, आगमित्ता चरित्तं पावाणं कम्माणं अकरणयाए [उट्ठिए?], से खलु परलोगपलिमंथत्ताए चिट्ठइ।
जे खलु समणं वा माहणं वा नो परिभासइ मित्ति मण्णइ आगमित्ता पाणं, आगमित्ता दंसणं, आगमित्ता चरित्तं पावाणं कम्माणं अकरणयाए [उट्ठिए?], से खलु परलोगविसुद्धीए चिट्ठइ।
तए णं से उदए पेढालपुत्ते भगवं गोयमं अणाढायमाणे जामेव दिसिं पाउब्भूए तामेव दिसिं पहारेत्थ गमणाए।
भगवं च णं उदाहु–आउसंतो! उदगा! जे खलु तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा अंतिए एगमवि आरियं धम्मियं सुवयणं सोच्चा णिसम्म अप्पणो Translated Sutra: भगवान गौतम स्वामी ने उनसे कहा – ‘आयुष्मन् उदक ! जो व्यक्ति श्रमण अथवा माहन की निन्दा करता है वह साधुओं के प्रति मैत्री रखता हुआ भी, ज्ञान, दर्शन एवं चारित्र को प्राप्त करके भी, हिंसादि पापों तथा तज्जनित पापकर्मों को न करने के लिए उद्यत वह अपने परलोक के विघात के लिए उद्यत है। जो व्यक्ति श्रमण या माहन की निन्दा | |||||||||
Sutrakrutang | સૂત્રકૃતાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-७ नालंदीय |
Gujarati | 795 | Sutra | Ang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं लेवस्स गाहावइस्स नालंदाए बाहिरियाए उत्तरपुरत्थिमे दिसिभाए, एत्थ णं सेसदविया नाम उदगसाला होत्था–अणेगखंभसयसण्णिविट्ठा पासादीया दरिसनिया अभिरूवा पडिरूवा।
तीसे णं सेसदवियाए उदगसालाए उत्तरपुरत्थिमे दिसिभाए, एत्थ णं हत्थिजामे नामं वनसंडे होत्था–किण्हे वण्णओ वणसंडस्स। Translated Sutra: તે લેપ ગાથાપતિને નાલંદા બાહિરિકાના ઇશાન ખૂણામાં શેષદ્રવ્યા નામક ઉદકશાળા હતી. તે અનેક શત સ્તંભો પર રહેલી હતી. પ્રાસાદીય યાવત્ પ્રતિરૂપ હતી. તે શેષદ્રવ્યા ઉદકશાળાના ઇશાન ખૂણામાં હસ્તિયામ નામે એક વનખંડ હતું. તે વનખંડ કૃષ્ણવર્ણીય હતું. તે વનખંડના ગૃહપ્રવેશમાં ભગવંત ગૌતમ વિચરતા હતા. તેઓ ત્યાં નીચે બગીચામાં | |||||||||
Sutrakrutang | સૂત્રકૃતાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-७ नालंदीय |
Gujarati | 797 | Sutra | Ang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: आउसंतो! गोयमा! अत्थि खलु कम्मारपुत्तिया नाम समणा निग्गंथा तुम्हागं पवयणं पवयमाणा गाहावइं समणोवासगं उवसंपण्ण एवं पच्चक्खावेंति– ‘ननत्थ अभिजोगेणं, गाहावइ-चोर-ग्गहण-विमोक्खणाए तसेहिं पाणेहिं णिहाय दंडं।’
एवं ण्हं पच्चक्खंताणं दुप्पच्चक्खायं भवइ। एवं ण्हं पच्चक्खावेमानाणं दुपच्चक्खावियं भवइ। एवं ते परं पच्चक्खावेमाणा अइयरंति सयं पइण्णं।
कस्स णं तं हेउं।
संसारिया खलु पाणा–थावरा वि पाणा तसत्ताए पच्चायंति। तसा वि पाणा थावरत्ताए पच्चायंति। थावरकायाओ विप्पमुच्चमाणा तसकायंसि उववज्जंति। तसकायाओ विप्पमुच्चमाणा थावरकायंसि उववज्जंति। तेसिं च णं थावरकायंसि उववण्णाणं Translated Sutra: સૂત્ર– ૭૯૭. હે આયુષ્યમાન્ ગૌતમ! કુમારપુત્ર નામે શ્રમણ નિર્ગ્રન્થ છે, જે પ્રવચનની પ્રરૂપણા કરે છે. તેઓ કોઈ ગૃહસ્થ શ્રમણોપાસક આવે તો આ પ્રમાણે પચ્ચક્ખાણ કરાવે છે – અભિયોગ સિવાય ગાથાપતિ ચોર – ગ્રહણ વિમોક્ષણ ન્યાયે ત્રસ પ્રાણીની હિંસાનો ત્યાગ છે. આ રીતે પચ્ચક્ખાણ દુષ્પ્રત્યાખ્યાન થાય છે. આવું પચ્ચક્ખાણ કરાવવું | |||||||||
Sutrakrutang | સૂત્રકૃતાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-७ नालंदीय |
Gujarati | 800 | Sutra | Ang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सवायं उदए पेढालपुत्ते भगवं गोयमं एवं वयासी–कयरे खलु आउसंतो! गोयमा! तुब्भे वयह तसपाणा तसा ‘आउ अन्नहा’?
सवायं भगवं गोयमे उदयं पेढालपुत्तं एवं वयासी–आउसंतो! उदगा! जे तुब्भे वयह तसभूया पाणा तसा ते ‘वयं वदामो’ ‘तसा पाणा तसा’। जे वयं वयामो तसा पाणा तसा ते तुब्भे वदह तसभूया पाणा तसा। एए संति दुवे ठाणा तुल्ला एगट्ठा।
किमाउसो! इमे भे सुप्पणीयतराए भवइ– तसभूया पाणा तसा? इमे भे दुप्पणीयतराए भवइ–तसा पाणा तसा? तओ एगमाउसो! पलिकोसह, एक्कं अभिणंदह। अयं पि ‘भे उवएसे’नो नेयाउए भवइ।
भगवं च णं उदाहु–संतेगइया मणुस्सा भवंति, तेसिं च णं एवं वुत्तपुव्वं भवइ–णो खलु वयं संचाएमो मुंडा भवित्ता Translated Sutra: ઉદક પેઢાલપુત્રએ વાદ સહિત ભગવાન ગૌતમસ્વામીને આ પ્રમાણે કહ્યું – હે આયુષ્યમાન્ ગૌતમ ! તે પ્રાણી કયા છે જેને તમે ત્રસ કહો છો ? તમે ત્રસ પ્રાણીને જ ત્રસ કહો છો કે બીજાને ? ભગવાન ગૌતમે પણ વાદસહિત ઉદક પેઢાલપુત્રને આ પ્રમાણે કહ્યું – હે આયુષ્યમાન્ ઉદક ! જે પ્રાણીને તમે ત્રસભૂત ત્રસ કહો છો તેને જ અમે ત્રસ પ્રાણી કહીએ | |||||||||
Sutrakrutang | સૂત્રકૃતાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-७ नालंदीय |
Gujarati | 802 | Sutra | Ang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सवायं उदए पेढालपुत्ते भगवं गोयमं एवं वयासी–आउसंतो! गोयमा! नत्थि णं से केइ परियाए जंसि समणो-वासगस्स ‘एगपाणाए वि दंडे निक्खित्ते’। कस्स णं तं हेउं?
संसारिया खलु पाणा–थावरा वि पाणा तसत्ताए पच्चायंति। तसा वि पाणा थावरत्ताए पच्चायंति। थावरकायाओ विप्पमुच्च-माणा सव्वे तसकायंसि उववज्जंति। तसकायाओ विप्पमुच्चमाणा सव्वे थावरकायंसि उववज्जंति। तेसिं च णं थावरकायंसि उवव-ण्णाणं ठाणमेयं धत्तं।
सवायं भगवं गोयमे उदयं पेढालपुत्तं एवं वयासी–नो खलु आउसो! अस्माकं वत्तव्वएणं तुब्भं चेव अणुप्पवाएणं अत्थि णं से परियाए जे णं समणोवासगस्स सव्वपाणेहिं सव्वभूएहिं सव्वजीवेहिं Translated Sutra: ઉદક પેઢાલપુત્રએ વાદ સહિત ભગવાન ગૌતમને આ પ્રમાણે કહ્યું – હે આયુષ્યમાન્ ગૌતમ ! આવો એક પણ પર્યાય નથી કે જેને ન મારીને શ્રાવક એક જીવની પણ હિંસા વિરતિ રાખી શકે. તેનું શું કારણ છે ? પ્રાણીઓ સંસરણ – શીલ છે. સ્થાવર પ્રાણી ત્રસપણે ઉપજે છે, ત્રસ પ્રાણી પણ સ્થાવરપણે ઉપજે છે. સ્થાવરકાય છોડીને બધા ત્રસકાયમાં ઉપજે છે, ત્રસકાયપણુ | |||||||||
Sutrakrutang | સૂત્રકૃતાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-७ नालंदीय |
Gujarati | 803 | Sutra | Ang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] भगवं च णं उदाहु नियंठा खलु पुच्छियव्वा–आउसंतो! नियंठा! इह खलु संतेगइया मणुस्सा भवंति। तेसिं च णं एवं वुत्तपुव्वं भवइ–जे इमे मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्ता, एएसिं णं आमरणंताए दंडे निक्खित्ते। जे इमे अगारमावसंति, एएसिं णं आमरणंताए दंडे नो निक्खित्ते।
‘केई च णं समणे’ जाव वासाइं चउपंचमाइं छद्दसमाइं अप्पयरो वा भुज्जयरो वा देसं दूइज्जित्ता ‘अगारं वएज्जा’?
हंता वएज्जा।
तस्स णं तमगारत्थं वहमाणस्स से पच्चक्खाणे भग्गे भवइ?
णेति।
एवमेव समणोवासगस्स वि तसेहिं पाणेहिं दंडे निक्खित्ते, थावरेहिं पाणेहिं दंडे नो निक्खित्ते। तस्स णं तं थावरकायं वहमाणस्स से पच्चक्खाणे Translated Sutra: ભગવાન ગૌતમ કહે છે કે મારે નિર્ગ્રન્થોને પૂછવું છે કે – હે આયુષ્યમાન્ નિર્ગ્રન્થો ! આ જગતમાં એવા કેટલાક મનુષ્યો છે, જેઓ આવી પ્રતિજ્ઞા કરે છે કે – જેઓ આ મુંડ થઈને, ઘર છોડી અનગારિક પ્રવ્રજ્યા લે છે, તેમને આમરણ દંડ દેવાનો હું ત્યાગ કરું છું. જે આ ગૃહવાસે રહ્યા છે, તેમને આમરણ દંડ દેવાનો હું ત્યાગ કરતો નથી. હું પૂછું | |||||||||
Sutrakrutang | સૂત્રકૃતાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-७ नालंदीय |
Gujarati | 804 | Sutra | Ang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] भगवं च णं उदाहु नियंठा खलु पुच्छियव्वा–आउसंतो! नियंठा! इह खलु परिव्वायया वा परिव्वाइयाओ
वा अन्नयरेहिंतो तित्थायतणेहिंतो आगम्म धम्मस्सवणवत्तियं उवसंकमेज्जा?
हंता उवसंकमेज्जा।
‘किं तेसिं’ तहप्पगाराणं धम्मे आइक्खियव्वे?
हंता आइक्खियव्वे।
किं ते तहप्पगारं धम्मं सोच्चा निसम्म एवं वएज्जा–इणमेव निग्गंथं पावयणं सच्चं अनुत्तरंकेवलियं पडिपुण्णं णेयाउयं संसुद्धं सल्लकत्तणं सिद्धिमग्गं मुत्तिमग्गं निज्जाणमग्गं निव्वाणमग्गं अवितहं असंदिद्धं सव्वदुक्खप्पहीणमग्गं। एत्थ ठिया जीवा सिज्झंति बुज्झंति मुच्चंति परिणिव्वंति सव्वदुक्खाणमंतं करेंति। इमाणाए Translated Sutra: ભગવાન ગૌતમસ્વામી કહે છે – કેટલાક એવા શ્રાવકો હોય છે કે, જેઓ પૂર્વે એવું કહે છે કે અમે મુંડ થઈને, ઘર છોડીને અણગારિકપણે પ્રવ્રજિત થવા અસમર્થ છીએ. અમે ચૌદશ, આઠમ, પૂર્ણિમા, અમાસના દિને પ્રતિપૂર્ણ પૌષધને સમ્યક્ પ્રકારે અનુપાલન કરતા વિચરીશું. તથા અમે સ્થૂલ પ્રાણાતિપાત, સ્થૂલ મૃષાવાદ, સ્થૂલ અદત્તાદાન, સ્થૂલ મૈથુન | |||||||||
Sutrakrutang | સૂત્રકૃતાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-७ नालंदीय |
Gujarati | 805 | Sutra | Ang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] १. तत्थ आरेणं जे तसा पाणा, जेहिं समणोवासगस्स आयाणसो आमरणंताए दंडे निक्खित्ते, ते तओ आउं विप्पजहंति, विप्प जहित्ता तत्थ आरेणं चेव जे तसा पाणा, जेहिं समणोवासगस्स आयाणसो आमरणंताए दंडे निक्खित्ते, तेसु पच्चायंति तेहिं समणोवासगस्स सुपच्चक्खायं भवइ।
ते पाणा वि वुच्चंति, ते तसावि वुच्चंति, ते महाकाया, ते चिरट्ठिइया। ते बहुतरगा पाणा जेहिं समणोवासगस्स सुपच्चक्खायं भवइ। ते अप्पयरगा पाणा जेहिं समणोवासगस्स अपच्चक्खायं भवइ। से महया तसकायाओ उवसंतस्स उवट्ठियस्स पडिविरयस्स जं णं तुब्भे वा अण्णो वा एवं वयह– ‘नत्थि णं से केइ परियाए जंसि समणोवासगस्स एगपाणाए वि दंडे निक्खित्ते।’ Translated Sutra: સમીપ ક્ષેત્રમાં જે ત્રસ પ્રાણી છે, તેમની હિંસા કરવાનો શ્રાવકે વ્રત ગ્રહણના સમયથી મરણપર્યન્ત ત્યાગ કરેલો છે. તે ત્યાં આયુનો ક્ષય કરે છે, ક્ષય કરીને સમીપ ભૂમિમાં યાવત્ સ્થાવર પ્રાણીરૂપે ઉત્પન્ન થાય છે. જેમની નિષ્પ્રયોજન હિંસાનો ત્યાગ કર્યો છે, પણ સપ્રયોજન હિંસાનો ત્યાગ નથી, તેમાં દૂરવર્તી દેશમાં ઉત્પન્ન | |||||||||
Sutrakrutang | સૂત્રકૃતાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-७ नालंदीय |
Gujarati | 806 | Sutra | Ang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] भगवं च णं उदाहु–आउसंतो! उदगा! जे खलु समणं वा माहणं वा परिभासइ मित्ति मण्णइ आगमित्ता नाणं, आगमित्ता दंसणं, आगमित्ता चरित्तं पावाणं कम्माणं अकरणयाए [उट्ठिए?], से खलु परलोगपलिमंथत्ताए चिट्ठइ।
जे खलु समणं वा माहणं वा नो परिभासइ मित्ति मण्णइ आगमित्ता पाणं, आगमित्ता दंसणं, आगमित्ता चरित्तं पावाणं कम्माणं अकरणयाए [उट्ठिए?], से खलु परलोगविसुद्धीए चिट्ठइ।
तए णं से उदए पेढालपुत्ते भगवं गोयमं अणाढायमाणे जामेव दिसिं पाउब्भूए तामेव दिसिं पहारेत्थ गमणाए।
भगवं च णं उदाहु–आउसंतो! उदगा! जे खलु तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा अंतिए एगमवि आरियं धम्मियं सुवयणं सोच्चा णिसम्म अप्पणो Translated Sutra: ભગવાન ગૌતમે કહ્યું – હે આયુષ્યમાન્ ઉદક ! જે શ્રમણ કે માહણની નિંદા કરે છે તે સાધુ સાથે ભલે મૈત્રી રાખતો હોય, તે જ્ઞાન – દર્શન – ચારિત્રને પામીને પાપકર્મ ન કરવાને માટે પ્રવૃત્ત હોય, પણ તે પરલોકનો વિઘાત કરતો રહે છે. જે શ્રમણ કે માહણની નિંદા નથી કરતા પણ મૈત્રી સાધે છે તથા જ્ઞાન – દર્શન – ચારિત્રને પામીને કર્મોના | |||||||||
Tandulvaicharika | तंदुल वैचारिक | Ardha-Magadhi |
जीवस्यदशदशा |
Hindi | 20 | Sutra | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवस्स णं भंते! गब्भगयस्स समाणस्स अत्थि उच्चारे इ वा पासवणे इ वा खेले इ वा सिंघाणे इ वा वंते इ वा पित्ते इ वा सुक्के इ वा सोणिए इ वा? नो इणट्ठे समट्ठे।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–जीवस्स णं गब्भगयस्स समाणस्स नत्थि उच्चारे इ वा जाव सोणिए इ वा?
गोयमा! जीवे णं गब्भगए समाणे जं आहारमाहारेइ तं चिणाइ सोइंदियत्ताए चक्खुइंदियत्ताए घाणिंदियत्ताए जिब्भिंदियत्ताए फासिंदियत्ताए अट्ठि-अट्ठिमिंज-केस-मंसु रोम-नहत्ताए,
से एएणं अट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ– जीवस्स णं गब्भगयस्स समाणस्स नत्थि उच्चारे इ वा जाव सोणिए इ वा। Translated Sutra: हे भगवन् ! क्या गर्भस्थ जीव को मल – मूत्र, कफ, श्लेष्म, वमन, पित्त, वीर्य या लहू होते हैं ? यह अर्थ उचित नहीं है अर्थात् ऐसा नहीं होता। हे भगवन् ! किस वजह से आप ऐसा कह रहे हो कि गर्भस्थ जीव को मल, यावत् लहू नहीं होता। गौतम ! गर्भस्थ जीव माता के शरीर से आहार करता है। उसे नेत्र, चक्षु, घ्राण, रस के और स्पर्शन इन्द्रिय | |||||||||
Tandulvaicharika | तंदुल वैचारिक | Ardha-Magadhi |
जीवस्यदशदशा |
Hindi | 21 | Sutra | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! गब्भगए समाणे पहू मुहेणं कावलियं आहारं आहारित्तए? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–जीवे णं गब्भगए समाणे नो पहू मुहेणं कावलियं आहारं आहारित्तए?
गोयमा! जीवे णं गब्भगए समाणे सव्वओ आहारेइ, सव्वओ परिणामेइ, सव्वओ ऊससइ, सव्वओ नीससइ; अभिक्खणं आहारेइ, अभिक्खणं परिणामेइ, अभिक्खणं ऊससइ, अभिक्खणं नीससइ; आहच्च आहारेइ, आहच्च परिणामेइ, आहच्च ऊससइ, आहच्च नीससइ; से माउजीव-रसहरणी पुत्तजीवरसहरणी माउजीवपडिबद्धा पुत्तजीवंफुडा तम्हा आहारेइ तम्हा परिणामेइ, अवरा वि य णं माउजीवपडिबद्धा माउजीवफुडा तम्हा चिणाइ तम्हा उवचिणाइ,
से एएणं अट्ठेणं गोयमा! एवं Translated Sutra: हे भगवन् ! गर्भस्थ जीव मुख से कवल आहार करने के लिए समर्थ है क्या ? हे गौतम ! यह अर्थ उचित नहीं है। हे भगवन् ! ऐसा क्यों कहते हो ? हे गौतम ! गर्भस्थ जीव सभी ओर से आहार करता है। सभी ओर से परिणमित करता है। सभी ओर से साँस लेता है और छोड़ता है। निरन्तर आहार करता है और परिणमता है। हंमेशा साँस लेता है और बाहर नीकालता है। वो | |||||||||
Tandulvaicharika | तंदुल वैचारिक | Ardha-Magadhi |
जीवस्यदशदशा |
Hindi | 22 | Sutra | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! गब्भगए समाणे किमाहारं आहारेइ?
गोयमा! जं से माया नाणाविहाओ रसविगईओ तित्त-कडुय-कसायंबिल-महुराइं दव्वाइं आहारेइ तओ एगदेसेणं ओयमाहारेइ।
तस्स फलबिंटसरिसा उप्पलनालोवमा भवइ नाभी ।
रसहरणी जननीए सयाइ नाभीए पडिबद्धा ॥
नाभीए ताओ गब्भो ओयं आइयइ अण्हयंतीए ।
ओयाए तीए गब्भो विवड्ढई जाव जाओ त्ति ॥ Translated Sutra: हे भगवन् ! गर्भस्थ जीव कौन – सा आहार करेगा ? हे गौतम ! उसकी माँ जो तरह – तरह की रसविगई – कडुआ, तीखा, खट्टा द्रव्य खाए उसके ही आंशिक रूप में ओजाहार करता है। उस जीव की फल के बिंट जैसी कमल की नाल जैसी नाभि होती है। वो रस ग्राहक नाड़ माता की नाभि के साथ जुड़ी होती है। वो नाड़ से गर्भस्थ जीव ओजाहार करता है और वृद्धि प्राप्त | |||||||||
Tandulvaicharika | तंदुल वैचारिक | Ardha-Magadhi |
जीवस्यदशदशा |
Hindi | 23 | Sutra | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कइ णं भंते! माउअंगा पण्णत्ता?
गोयमा! तओ माउअंगा पन्नत्ता, तं जहा–मंसे १ सोणिए २ मत्थुलुंगे ३।
कइ णं भंते! पिउअंगा पन्नत्ता?
गोयमा! तओ पिउअंगा पन्नत्ता, तं जहा–अट्ठि १ अट्ठिमिंजा २ केस-मंसु-रोम-नहा ३। Translated Sutra: हे भगवन् ! गर्भ के मातृ अंग कितने हैं ? और पितृ अंग कितने हैं ? हे गौतम ! माता के तीन अंग बताए गए हैं। माँस, लहू और मस्तक, पिता के तीन अंग हैं – हड्डीयाँ, मज्जा और दाढ़ी – मूँछ, रोम एवं नाखून। | |||||||||
Tandulvaicharika | तंदुल वैचारिक | Ardha-Magadhi |
जीवस्यदशदशा |
Hindi | 24 | Sutra | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! गब्भगए समाणे नरएसु उववज्जिज्जा?
गोयमा! अत्थेगइए उववज्जेज्जा अत्थेगइए नो उववज्जेज्जा।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ जीवे णं गब्भगए समाणे नरएसु अत्थेगइए उववज्जेज्जा अत्थेगइए नो उववज्जेज्जा?
गोयमा! जे णं जीवे गब्भगए समाणे सन्नी पंचिंदिए सव्वाहिं पज्जत्तीहिं पज्जत्तए वीरियलद्धीए विभंगनाणलद्धीए वेउव्विअलद्धीए वेउव्वियलद्धिपत्ते पराणीअं आगयं सोच्चा निसम्म पएसे निच्छुहइ, २ त्ता वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहणइ, २ त्ता चाउरंगिणिं सेन्नं सन्नाहेइ, सन्नाहित्ता पराणीएण सद्धिं संगामं संगामेइ, से णं जीवे अत्थकामए रज्जकामए भोगकामए कामकामए, अत्थकंखिए Translated Sutra: हे भगवन् ! क्या गर्भ में रहा जीव (गर्भ में ही मरके) नरकमें उत्पन्न होगा ? हे गौतम ! कोई गर्भ में रहा संज्ञी पंचेन्द्रिय और सभी पर्याप्तिवाला जीव वीर्य – विभंगज्ञान – वैक्रिय लब्धि द्वारा शत्रुसेना को आई हुई सूनकर सोचे कि मैं आत्म प्रदेश बाहर नीकालता हूँ। फिर वैक्रिय समुद्घात करके चतुरंगिणी सेना की संरचना | |||||||||
Tandulvaicharika | तंदुल वैचारिक | Ardha-Magadhi |
जीवस्यदशदशा |
Hindi | 25 | Sutra | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! गब्भगए समाणे देवलोएसु उववज्जेज्जा?
गोयमा! अत्थेगइए उववज्जेज्जा अत्थेगइए नो उववज्जेज्जा।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–अत्थेगइए उववज्जेज्जा अत्थेगइए नो उववज्जेज्जा?
गोयमा! जे णं जीवे गब्भगए समाणे सण्णी पंचिंदिए सव्वाहिं पज्जत्तीहिं पज्जत्तए वेउव्वियलद्धीए वीरियलद्धीए ओहिनाणलद्धीए तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा अंतिए एगमवि आयरियं धम्मियं सुवयणं सोच्चा निसम्म तओ से भवइ तिव्वसंवेगसंजायसड्ढे तिव्वधम्मानुरायरत्ते, से णं जीवे धम्म कामए पुण्णकामए सग्गकामए मोक्खकामए, धम्मकंखिए पुन्नकंखिए सग्गकंखिए मोक्खकंखिए, धम्मपिवासिए पुन्नपिवासिए Translated Sutra: हे भगवन् ! क्या गर्भस्थ जीव देवलोकमें उत्पन्न होता है ? हे गौतम ! कोई जीव उत्पन्न होता है और कोई जीव नहीं होता। हे भगवन् ! ऐसा क्यों कहते हो ? हे गौतम ! गर्भमें स्थित संज्ञी पंचेन्द्रिय और सभी पर्याप्तिवाला जीव वैक्रिय – वीर्य और अवधिज्ञान लब्धि द्वारा वैसे श्रमण या ब्राह्मण के पास एक भी आर्य और धार्मिक वचन सूनकर | |||||||||
Tandulvaicharika | तंदुल वैचारिक | Ardha-Magadhi |
जीवस्यदशदशा |
Hindi | 26 | Sutra | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! गब्भगए समाणे उत्ताणए वा पासिल्लए वा अंबखुज्जए वा अच्छेज्ज वा चिट्ठेज्ज वा निसीएज्ज वा तुयट्टेज्ज वा आसएज्ज वा सएज्ज वा माऊए सुयमाणीए सुयइ जागरमाणीए जागरइ सुहिआए सुहिओ भवइ दुहिआए दुहिओ भवइ?
हंता गोयमा! जीवे णं गब्भगए समाणे उत्ताणए वा जाव दुक्खिआए दुक्खिओ भवइ। Translated Sutra: हे भगवन् ! गर्भमें रहा जीव उल्टा सोता है, बगलमें सोता है या वक्राकार ? खड़ा होता है या बैठा ? सोता है या जागता है ? माता सोए तब सोता है और जगे तब जगता है ? माता के सुख से सुखी और दुःख से दुःखी रहता है ? हे गौतम ! गर्भस्थ जीव उल्टा सोता है – यावत् माता के दुःख से दुःखी होता है। | |||||||||
Tandulvaicharika | तंदुल वैचारिक | Ardha-Magadhi |
देहसंहननं आहारादि |
Hindi | 71 | Sutra | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] आउसो! से जहानामए केइ पुरिसे ण्हाए कयबलिकम्मे कयकोउयमंगल पायच्छित्ते सिरंसिण्हाए कंठेमालकडे आविद्धमणि-सुवण्णे अहय सुमहग्घवत्थपरिहिए चंदनोक्किण्णगायसरीरे सरससुरहि-गंधगोसीसचंदनानुलित्तगत्ते सुइमालावन्नगविलेवणे कप्पियहारऽद्धहार-तिसरय-पालंबपलंबमाण-कडिसुत्तयसुकयसोहे पिणद्धगेविज्जे अंगुलेज्जगललियंगयललियकयाभरणे नाना-मणि कनग रयणकडग तुडियथंभियभुए अहियरूवसस्सिरीए कुंडलुज्जोवियाणणे मउडदित्तसिरए हारुच्छय सुकय रइयवच्छे पालंब-पलंबमाण सुकयपडउत्तरिज्जे मुद्दियापिंगलंगुलिए नानामणि कनग रयणविमल महरिह निउणोविय मिसिमिसिंत विरइय सुसिलिट्ठ विसिट्ठ Translated Sutra: हे आयुष्मान् ! जो किसी भी नाम का पुरुष स्नान कर के, देवपूजा कर के, कौतुक मंगल और प्रायश्चित्त करके, सिर पर स्नान कर के, गलेमें माला पहनकर, मणी और सोने के आभूषण धारण करके, नए और कींमती वस्त्र पहनकर, चन्दन के लेपवाले शरीर से, शुद्ध माला और विलेपन युक्त, सुन्दर हार, अर्द्धहार – त्रिसरोहार, कन्दोरे से शोभायमान होकर, |