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Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१८

उद्देशक-३ माकंदी पुत्र Hindi 729 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से मागंदियपुत्ते अनगारे उट्ठाए उट्ठेइ, उट्ठेत्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वंदति नमंसति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी अनगारस्स णं भंते! भावियप्पणो सव्वं कम्मं वेदेमाणस्स सव्वं कम्मं निज्जरेमाणस्स सव्वं मारं मरमाणस्स सव्वं सरीरं विप्पजहमाणस्स, चरिमं कम्मं वेदेमाणस्स चरिमं कम्मं निज्जरेमाणस्स चरिमं मारं मरमाणस्स चरिमं सरीरं विप्पजहमाणस्स, मारणंतियं कम्मं वेदेमाणस्स मारणंतियं कम्मं निज्जरेमाणस्स मारणंतियं मारं मरमाणस्स मारणंतियं सरीरं विप्पजहमाणस्स जे चरिमा निज्जरापोग्गला सुहुमा णं ते पोग्गला

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ माकन्दिपुत्र अनगार अपने स्थान से उठे और श्रमण भगवान महावीर के पास आए उन्होंने श्रमण भगवान महावीर को वन्दन नमस्कार किया और इस प्रकार पूछा भगवन्‌ ! सभी कर्मों को वेदते हुए, सर्व कर्मों की निर्जरा करते हुए, समस्त मरणों से मरते हुए, सर्वशरीर को छोड़ते हुए तथा चरम कर्म को वेदते हुए, चरम कर्म की निर्जरा
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१८

उद्देशक-३ माकंदी पुत्र Hindi 730 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहे णं भंते! बंधे पन्नत्ते? मागंदियपुत्ता! दुविहे बंधे पन्नत्ते, तं जहादव्वबंधे , भावबंधे दव्वबंधे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? मागंदियपुत्ता! दुविहे पन्नत्ते, तं जहापयोगबंधे , वीससाबंधे वीससाबंधे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? मागंदियपुत्ता! दुविहे पन्नत्ते, तं जहासादीयवीससाबंधे , अनादीयवीससाबंधे पयोगबंधे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? मागंदियपुत्ता! दुविहे पन्नत्ते, तं जहासिढिलबंधनबंधे , धनियबंधनबंधे भावबंधे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? मागंदियपुत्ता! दुविहे पन्नत्ते, तं जहामूलपगडिबंधे , उत्तरपगडिबंधे नेरइयाणं भंते! कतिविहे भावबंधे पन्नत्ते? मागंदियपुत्ता!

Translated Sutra: भगवन्‌ ! बन्ध कितने प्रकार का कहा गया है ? माकन्दिपुत्र ! दो प्रकार का द्रव्यबन्ध और भावबन्ध भगवन्‌ द्रव्यबन्ध कितने प्रकार का है ? माकन्दिपुत्र ! दो प्रकार का यथा प्रयोगबन्ध और विस्रसाबन्ध भगवन्‌ ! विस्रसाबन्ध कितने प्रकार का है ? माकन्दिपुत्र ! दो प्रकार का यथा सादि विस्रसाबन्ध और अनादि विस्रसाबन्ध
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१८

उद्देशक-३ माकंदी पुत्र Hindi 731 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवाणं भंते! पावे कम्मे जे कडे, जे कज्जइ, जे कज्जिस्सइ, अत्थि याइ तस्स केइ नाणत्ते? हंता अत्थि से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइजीवाणं पावे कम्मे जे कडे, जे कज्जइ, जे कज्जिस्सइ, अत्थि याइ तस्स नाणत्ते? मागंदियपुत्ता! से जहानामएकेइ पुरिसे धणुं परामुसइ, परामुसित्ता उसुं परामुसइ, परामुसित्ता ठाणं ठाइ, ठाइत्ता आययक-ण्णायतं उसुं करेति, करेत्ता उड्ढं वेहासं उव्विहइ, से नूनं मागंदियपुत्ता! तस्स उसुस्स उड्ढं वेहासं उव्वीढस्स समाणस्स एयति वि नाणत्तं, वेयति वि नाणत्तं, चलति वि नाणत्तं, फंदइ वि नाणत्तं, घट्टइ वि नाणत्तं, खुब्भइ वि नाणत्तं, उदीरइ वि नाणत्तं तं तं भावं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जीव ने जो पापकर्म किया है, यावत्‌ करेगा क्या उनमें परस्पर कुछ भेद है ? हाँ, माकन्दिपुत्र ! है भगवन्‌ ! आप ऐसा किस कारण से कहते हैं ? माकन्दिपुत्र ! जैसे कोई पुरुष धनुष को ग्रहण करे, फिर वह बाण को ग्रहण करे और अमुक प्रकार की स्थिति में खड़ा रहे, तत्पश्चात्‌ बाण को कान तक खींचे और अन्त में, उस बाण को आकाश में ऊंचा
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१८

उद्देशक-३ माकंदी पुत्र Hindi 732 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइया णं भंते! जे पोग्गले आहारत्ताए गेण्हंति, तेसि णं भंते! पोग्गलाणं सेयकालंसि कतिभागं आहारेंति? कतिभागं निज्जरेंति? मागंदियपुत्ता! असंखेज्जइभागं आहारेंति, अनंतभागं निज्जरेंति चक्किया णं भंते! केइ तेसु निज्जरापोग्गलेसु आसइत्तए वा जाव तुयट्टित्तए वा? नो इणट्ठे समट्ठे अनाहारणमेयं बुइयं समणाउसो! एवं जाव वेमाणियाणं सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति

Translated Sutra: भगवन्‌ ! नैरयिक, जिन पुद्‌गलों को आहार रूप से ग्रहण करते हैं, भगवन्‌ ! उन पुद्‌गलों का कितना भाग भविष्यकालमें आहाररूप से गृहीत होता है और कितना भाग निर्जरता है ? माकन्दिपुत्र ! असंख्यातवे भाग का आहाररूपसे ग्रहण होता है और अनन्तवे भाग निर्जरण होता है भगवन्‌! क्या कोई जीव उन निर्जरा पुद्‌गलों पर बैठने, यावत्‌
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१८

उद्देशक-४ प्राणातिपात Hindi 733 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे जाव भगवं गोयमे एवं वयासीअह भंते! पाणाइवाए, मुसावाए जाव मिच्छा-दंसणसल्ले, पाणाइवायवेरमणे जाव मिच्छादंसणसल्लवेरमणे, पुढविक्काइए जाव वणस्सइकाइए, धम्मत्थिकाए, अधम्मत्थिकाए, आगासत्थिकाए, जीवे असरीरपडिबद्धे, परमाणु-पोग्गले, सेलेसिं पडिवन्नए अनगारे, सव्वे बादरबोंदिधरा कलेवरा एए णं दुविहा जीवदव्वा अजीवदव्वा जीवाणं परिभोगत्ताए हव्वमागच्छंति? गोयमा! पाणाइवाए जाव एए णं दुविहा जीवदव्वा अजीवदव्वा अत्थेगइया जीवाणं परिभोगत्ताए हव्वमागच्छंति, अत्थे गइया जीवाणं परिभोगत्ताए नो हव्वमागच्छंति से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइपाणाइवाए

Translated Sutra: उस काल और उस समय में राजगृह नगर में यावत्‌ गौतम स्वामी ने भगवान महावीर से इस प्रकार पूछा भगवन्‌ ! प्राणातिपात, मृषावाद यावत्‌ मिथ्यादर्शनशल्य और प्राणातिपातविरमण, मृषावादविरमण, यावत्‌ मिथ्या दर्शनशल्यविवेक तथा पृथ्वीकायिक यावत्‌ वनस्पतिकायिक, एवं धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, शरीररहित
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१८

उद्देशक-४ प्राणातिपात Hindi 734 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! कसाया पन्नत्ता? गोयमा! चत्तारि कसाया पन्नत्ता, तं जहाकसायपदं निरवसेसं भाणियव्वं जाव निज्जरिस्संति लोभेणं कति णं भंते! जुम्मा पन्नत्ता? गोयमा! चत्तारि जुम्मा पन्नत्ता, तं जहाकडजुम्मे, तेयोगे, दावरजुम्मे, कलिओगे से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइजाव कलिओगे? गोयमा! जे णं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अवहीरमाणे चउपज्जवसिए सेत्तं कडजुम्मे जे णं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अव-हीरमाणे तिपज्जवसिए सेत्तं तेयोगे जे णं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अवहीरमाणे दुपज्जवसिए सेत्तं दावरजुम्मे जे णं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अवहीरमाणे एगपज्जवसिए सेत्तं कलिओगे से तेणट्ठेणं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! कषाय कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! चार प्रकार का, इत्यादि प्रज्ञापनासूत्र का कषाय पद, लोभ के वेदन द्वारा अष्टविध कर्मप्रकृतियों की निर्जरा करेंगे, तक कहना चाहिए भगवन्‌ ! युग्म (राशियाँ) कितने कहे गए हैं ? गौतम ! चार हैं, यथा कृतयुग्म, त्र्योज, द्वापरयुग्म और कल्योज भगवन्‌ ! आप किस कारण से कहते हैं?
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१८

उद्देशक-४ प्राणातिपात Hindi 735 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जावतिया णं भंते! वरा अंधगवण्हिणो जीवा तावतिया परा अंधगवण्हिणो जीवा? हंता गोयमा! जावतिया वरा अंधगवण्हिणो जीवा तावतिया परा अंधगवण्हिणो जीवा सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जितने अल्प आयुवाले अन्धकवह्नि जीव हैं, उतने ही उत्कृष्ट आयुवाले अन्धकवह्नि जीव हैं ? हाँ, गौतम! जितने अल्पायुष्क अन्धकवह्नि जीव हैं, उतने ही उत्कृष्टायुष्क अन्धकवह्नि जीव हैं भगवन्‌ ! इसी प्रकार है
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१८

उद्देशक-५ असुरकुमार Hindi 736 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] दो भंते! असुरकुमारा एगंसि असुरकुमारावासंसि असुरकुमारदेवत्ताए उववन्ना, तत्थ णं एगे असुरकुमारे देवे पासादीए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे, एगे असुरकुमारे देवे से णं नो पासादीए नो दरिसणिज्जे नो अभिरूवे नो पडिरूवे, से कह-मेयं भंते! एवं? गोयमा! असुरकुमारा देवा दुविहा पन्नत्ता, तं जहावेउव्वियसरीरा , अवेउव्वियसरीरा तत्थ णं जे से वेउव्वियसरीरे असुरकुमारे देवे से णं पासादीए जाव पडिरूवे तत्थ णं जे से अवेउव्वियसरीरे असुरकुमारे देवे से णं नो पासादीए जाव नो पडिरूवे से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइतत्थ णं जे से वेउव्वियसरीरे तं चेव जाव नो पडिरूवे? गोयमा! से जहानामएइह

Translated Sutra: भगवन्‌ ! दो असुरकुमार देव, एक ही असुरकुमारावास में असुरकुमारदेवरूप में उत्पन्न हुए उनमें से एक असुरकुमारदेव प्रासादीय, दर्शनीय, सुन्दर और मनोरम होता है, जबकि दूसरा असुरकुमारदेव तो प्रसन्नता उत्पन्न करने वाला होता है, दर्शनीय, सुन्दर और मनोरम होता है, भगवन्‌ ! ऐसा क्यों होता है ? गौतम ! असुरकुमारदेव दो प्रकार
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१८

उद्देशक-५ असुरकुमार Hindi 737 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] दो भंते! नेरइया एगंसि नेरइयावासंसि नेरइयत्ताए उववन्ना तत्थ णं एगे नेरइए महाकम्मतराए चेव, महाकिरियतराए चेव, महासवतराए चेव, महावेयणतराए चेव, एगे नेरइए अप्पकम्मतराए चेव, अप्पकिरियतराए चेव, अप्पासवतराए चेव, अप्पवेयणताए चेव, से कहमेयं भंते! एवं? गोयमा! नेरइया दुविहा पन्नत्ता, तं जहामायिमिच्छदिट्ठिउववन्नगा , अमायिसम्मदिट्ठि-उववन्नगा तत्थ णं जे से मायिमिच्छदिट्ठिउववन्नए नेरइए से णं महाकम्मतराए चेव जाव महावेयणतराए चेव तत्थ णं जे से अमायिसम्मदिट्ठिउववन्नए नेरइए से णं अप्पकम्मतराए चेव जाव अप्पवेयणतराए चेव दो भंते! असुरकुमारा? एवं चेव एवं एगिंदिय-विगलिंदियवज्जं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! दो नैरयिक एक ही नरकावास में नैरयिकरूप से उत्पन्न हुए उनमें से एक नैरयिक महाकर्म वाला यावत्‌ महावेदना वाला और एक नैरयिक अल्पकर्म वाला यावत्‌ अल्पवेदना वाला होता है, तो भगवन्‌ ! ऐसा क्यों होता है ? गौतम ! नैरयिक दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा मायीमिथ्यादृष्टि उपपन्नक और अमायीसम्यग्दृष्टि उपपन्नक
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१८

उद्देशक-५ असुरकुमार Hindi 738 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइए णं भंते! अनंतरं उव्वट्टित्ता जे भविए पंचिंदियतिरिक्खजोणिएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! कयरं आउयं पडिसंवेदेति? गोयमा! नेरइयाउयं पडिसंवेदेति, पंचिंदियतिरिक्खजोणियाउए से पुरओ कडे चिट्ठति एवं मनुस्सेसु वि, नवरंमनुस्साउए से पुरओ कडे चिट्ठति असुरकुमारे णं भंते! अनंतरं उव्वट्टित्ता जे भविए पुढविकाइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! कयरं आउयं पडिसंवेदेति? गोयमा! असुरकुमाराउयं पडिसंवेदेति, पुढविकाइयाउए से पुरओ कडे चिट्ठति एवं जो जहिं भविओ उववज्जित्तए तस्स तं पुरओ कडं चिट्ठति, जत्थ ठिओ तं पडिसंवेदेति जाव वेमाणिए, नवरंपुढविकाइए पुढविकाइएसु उववज्जति, पुढविकाइयाउयं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जो नैरयिक मरकर अन्तर रहित पंचेन्द्रियतिर्यञ्चोनिकों में उत्पन्न होने के योग्य हैं, भगवन्‌ ! वह किस आयुष्य का प्रतिसंवेदन करता है ? गौतम ! वह नारक नैरयिक आयुष्य का प्रतिसंवेदन करता है, और पंचे न्द्रियतिर्यञ्चयोनिक के आयुष्य के उदयाभिमुख करके रहता है इसी प्रकार मनुष्यों में उत्पन्न होने योग्य
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१८

उद्देशक-५ असुरकुमार Hindi 739 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] दो भंते! असुरकुमारा एगंसि असुरकुमारावासंसि असुरकुमारदेवत्ताए उववन्ना तत्थ णं एगे असुरकुमारे देवे उज्जुयं विउव्विस्सामीति उज्जुयं विउव्वइ, वंकं विउव्विस्सामीति वंकं विउव्वइ, जं जहा इच्छइ तं जहा विउव्वइ एगे असुरकुमारे देवे उज्जुयं विउव्विस्सामीति वंकं विउव्वइ, वंकं विउव्विस्सामीति उज्जुयं विउव्वइ, जं जहा इच्छति तं तहा विउव्वइ, से कहमेयं भंते! एवं? गोयमा! असुरकुमारा देवा दुविहा पन्नत्ता, तं जहामायिमिच्छदिट्ठीउववन्नगा , अमायि-सम्मदिट्ठीउववन्नगा तत्थ णं जे से मायिमिच्छदिट्ठिउववन्नए असुरकुमारे देवे से णं उज्जुयं विउव्विस्सामीति वंकं विउव्वइ जाव

Translated Sutra: भगवन्‌ ! दो असुरकुमार, एक ही असुरकुमारावास में असुरकुमार रूप से उत्पन्न हुए, उनमें से एक असुर कुमार देव यदि वह चाहे कि मैं ऋजु से विकुर्वणा करूँगा; तो वह ऋजु विकुर्वणा कर सकता है और यदि वह चाहे कि मैं वक्र रूप में विकुर्वणा करूँगा, तो वह वक्र विकुर्वणा कर सकता है जब कि एक असुरकुमारदेव चाहता है कि मैं ऋजु
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१८

उद्देशक-६ गुडवर्णादि Hindi 740 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] फाणियगुले णं भंते! कतिवण्णे कतिगंधे कतिरसे कतिफासे पन्नत्ते? गोयमा! एत्थ णं दो नया भवंति, तं जहा नेच्छइयनए , वावाहारियनए वावहारियनयस्स गोड्डे फाणियगुले, नेच्छइयनयस्स पंचवण्णे दुगंधे पंचरसे अट्ठफासे पन्नत्ते भमरे णं भंते! कतिवण्णे कतिगंधे कतिरसे कतिफासे पन्नत्ते? गोयमा! एत्थ णं दो नया भवंति, तं जहा नेच्छइयनए , वावाहारियनए वावाहारिय-नयस्स कालए भमरे, नेच्छइयनयस्स पंचवण्णे जाव अट्ठफासे पन्नत्ते सुयपिच्छे णं भंते! कतिवण्णे कतिगंधे कतिरसे कतिफासे पन्नत्ते? एवं चेव, नवरं वावहारियनयस्स नीलए सुयपिच्छे, नेच्छइयनयस्स पंचवण्णे जाव अट्ठफासे पन्नत्ते एवं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! फाणित गुड़ कितने वर्ण, कितने गन्ध, कितने रस और कितने स्पर्श वाला कहा गया है ? गौतम! इस विषय में दो नयों हैं, यथा नैश्चयिक नय और व्यावहारिक नय व्यावहारिक नय की अपेक्षा से फाणित गुड़ मधुर रस वाला कहा गया है और नैश्चयिक नय की दृष्टि से गुड़ पाँच वर्ण, दो गन्ध, पाँच रस और आठ स्पर्श वाला कहा गया है भगवन्‌ ! भ्रमर
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१८

उद्देशक-६ गुडवर्णादि Hindi 741 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] परमाणुपोग्गले णं भंते! कतिवण्णे जाव कतिफासे पन्नत्ते? गोयमा! एगवण्णे, एगगंधे, एगरसे, दुफासे पन्नत्ते दुपएसिए णं भंते! खंधे कतिवण्णे जाव कतिफासे पन्नत्ते? गोयमा! सिय एगवण्णे, सिय दुवण्णे, सिय एगगंधे, सिय दुगंधे, सिय एगरसे, सिय दुरसे, सिय दुफासे, सिय तिफासे, सिय चउफासे पन्नत्ते तिपएसिए णं भंते! खंधे कतिवण्णे जाव कतिफासे पन्नत्ते? गोयमा! सिय एगवण्णे, सिय दुवण्णे, सिय तिवण्णे, सिय एगगंधे, सिय दुगंधे, सिय एगरसे, सिय दुरसे, सिय तिरसे, सिय दुफासे, सिय तिफासे, सिय चउफासे पन्नत्ते चउपएसिए णं भंते! खंधे कतिवण्णे जाव कतिफासे पन्नत्ते? गोयमा! सिय एगवण्णे, सिय दुवण्णे, सिय तिवण्णे,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! परमाणुपुद्‌गल कितने वर्ण वाला यावत्‌ कितने स्पर्श वाला कहा गया है ? गौतम ! वह एक वर्ण, एक गन्ध, एक रस और दो स्पर्श वाला कहा है भगवन्‌ ! द्विप्रदेशिक स्कन्ध कितने वर्ण आदि वाला है ? इत्यादि प्रश्न गौतम ! वह कदाचित्‌ एक वर्ण, कदाचित्‌ दो वर्ण, कदाचित्‌ एक गन्ध या दो गन्ध, कदाचित्‌ एक रस, दो रस, कदाचित्‌ दो स्पर्श,
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१८

उद्देशक-७ केवली Hindi 742 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासीअन्नउत्थिया णं भंते! एवमाइक्खंति जाव परूवेंतिएवं खलु केवली जक्खाएसेनं आइस्सइ, एवं खलु केवली जक्खाएसेनं आइट्ठे समाणे आहच्च दो भासाओ भासति, तं जहामोसं वा, सच्चामोसं वा, से कहमेयं भंते! एवं? गोयमा! जण्णं ते अन्नउत्थिया जाव जे ते एवमाहंसु मिच्छं ते एवमाहंसु, अहं पुण गोयमा! एवमाइक्खामि भासेमि पन्नवेमि परूवेमि नो खलु केवली जक्खाएसेनं आइस्सइ, नो खलु केवली जक्खाएसेनं आइट्ठे समाणे आहच्च दो भासाओ भासति, तं जहा मोसं वा, सच्चामोसं वा केवली णं असावज्जाओ अपरोवघाइयाओ आहच्च दो भासाओ भासति, तं० सच्चं वा, असच्चामोसं वा

Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत्‌ पूछा भगवन्‌ ! अन्यतीर्थिक इस प्रकार कहते हैं यावत्‌ प्ररूपणा करते हैं कि केवली यक्षावेश से आविष्ट होते हैं और जब केवली यक्षावेश से आविष्ट होते हैं तो वे कदाचित्‌ दो प्रकार की भाषाएं बोलते हैं मृषाभाषा और सत्यामृषा भाषा तो हे भगवन्‌ ! ऐसा कैसे हो सकता है ? गौतम ! अन्यतीर्थिकों ने यावत्‌
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१८

उद्देशक-७ केवली Hindi 743 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहे णं भंते! उवही पन्नत्ते? गोयमा! तिविहे उवही पन्नत्ते, तं जहाकम्मोवही, सरीरोवही, बाहिरभंडमत्तोवगरणोवही नेरइया णं भंते! पुच्छा गोयमा! दुविहे उवही पन्नत्ते, तं जहाकम्मोवही , सरीरोवही सेसाणं तिविहे उवही एगिंदियवज्जाणं जाव वेमाणियाणं एगिंदियाणं दुविहे उवही पन्नत्ते, तं जहाकम्मोवही , सरीरोवही कतिविहे णं भंते! उवही पन्नत्ते? गोयमा! तिविहे उवही पन्नत्ते, तं जहासच्चित्ते, अचित्ते, मीसाए एवं नेरइयाण वि एवं निरवसेसं जाव वेमाणियाणं कतिविहे णं भंते! परिग्गहे पन्नत्ते? गोयमा! तिविहे परिग्गहे पन्नत्ते, तं जहा कम्मपरिग्गहे, सरीरपरिग्गहे बाहिरगभंड-मत्तोवगरण-परिग्गहे नेरइयाणं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! उपधि कितने प्रकार की कही है ? गौतम ! तीन प्रकार की यथा कर्मोपधि, शरीरोपधि और बाह्यभाण्डमात्रोपकरणउपधि भगवन्‌ ! नैरयिकों के कितने प्रकार की उपधि होती है ? गौतम ! दो प्रकार की, कर्मोपधि और शरीरोपधि एकेन्द्रिय जीवों को छोड़कर वैमानिक तक शेष सभी जीवों के तीन प्रकार की उपधि होती है एकेन्द्रिय जीवों
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१८

उद्देशक-७ केवली Hindi 744 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नगरे गुणसिलए चेइएवण्णओ जाव पुढविसिलापट्टओ तस्स णं गुण सिलस्स चेइयस्स अदूरसामंते बहवे अन्नउत्थिया परिवसंति, तं जहाकालोदाई, सेलोदाई, सेवालोदाई, उदए, नामुदए, नम्मुदए, अन्नवालए, सेलवालए, संखवालए, सुहत्थी गाहावई तए णं तेसिं अन्नउत्थियाणं अन्नया कयाइ एगयओ सहियाणं समुवागयाणं सन्निविट्ठाणं सण्णिसण्णाणं अय-मेयारूवे मिहोकहासमुल्लावे समुप्पज्जित्थाएवं खलु समणे नायपुत्ते पंच अत्थिकाए पन्नवेति, तं जहाधम्मत्थिकायं जाव पोग्ग-लत्थिकायं तत्थ णं समणे नायपुत्ते चत्तारि अत्थिकाए अजीवकाए पन्नवेति, तं जहाधम्मत्थिकायं, अधम्मत्थिकायं,

Translated Sutra: उस काल उस समय राजगृह नामक नगर था (वर्णन) वहाँ गुणशील नामक उद्यान था (वर्णन) यावत्‌ वहाँ एक पृथ्वीशिलापट्टक था उस गुणशील उद्यान के समीप बहुत से अन्यतीर्थिक रहते थे, यथा कालोदायी, शैलोदायी इत्यादि समग्र वर्णन सातवें शतक के अन्यतीर्थिक उद्देशक के अनुसार, यावत्‌ यह कैसे माना जा सकता है? यहाँ तक समझना
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१८

उद्देशक-७ केवली Hindi 745 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] देवे णं भंते! महिड्ढिए जाव महेसक्खे रूवसहस्सं विउव्वित्ता पभू अन्नमन्नेणं सद्धिं संगामं संगामित्तए? हंता पभू ताओ णं भंते! बोंदीओ किं एगजीवफुडाओ? अनेगजीवफुडाओ? गोयमा! एगजीवफुडाओ, नो अनेगजीवफुडाओ ते णं भंते! तासिं बोंदीणं अंतरा किं एगजीवफुडा? अनेगजीवफुडा? गोयमा! एगजीवफुडा, नो अनेगजीवफुडा पुरिसे णं भंते! अंतरे हत्थेण वा पादेण वा अंगुलियाए वा सलागाए वा कट्ठेण वा किलिंचेण वा आमुसमाणे वा संमुसमाणे वा आलिहमाणे वा विलिहमाणे वा, अन्नयरेसु वा तिक्खेणं सत्थजाएणं आछिंदमाणे वा विछिंदमाणे वा, अगनिका-एण वा समोडहमाणे तेसिं जीवपएसाणं किंचि आबाहं वा विबाहं वा उप्पाएइ?

Translated Sutra: भगवन्‌ ! महर्द्धिक यावत्‌ महासुख वाला देव, हजार रूपों की विकुर्वणा करके परस्पर एक दूसरे के साथ संग्राम करने में समर्थ है ? हाँ, गौतम ! समर्थ है भगवन्‌ ! वैक्रियकृत वे शरीर, एक ही जीव के साथ सम्बद्ध होते हैं, या अनेक जीवों के साथ सम्बद्ध ? गौतम ! एक ही जीव से सम्बद्ध होते हैं, अनेक जीवों के साथ नहीं भगवन्‌ उन शरीरों
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१८

उद्देशक-७ केवली Hindi 746 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अत्थि णं भंते! देवासुराणं संगामे, देवासुराणं संगामे? हंता अत्थि देवासुरेसु णं भंते! संगामेसु वट्टमाणेसु किण्णं तेसिं देवाणं पहरणरयणत्ताए परिणमति? गोयमा! जण्णं ते देवा तणं वा कट्ठं वा पत्तं वा सक्करं वा परामुसंति तण्णं तेसिं देवाणं पहरणरयणत्ताए परिणमति जहेव देवाणं तहेव असुरकुमाराणं? नो इणट्ठे समट्ठे असुरकुमाराणं निच्चं विउव्विया पहरणरयणा पन्नत्ता

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या देवों और असुरों में देवासुर संग्राम होता है ? हाँ, गौतम ! होता है भगवन्‌ ! देवों और असुरों में संग्राम छिड़ जाने पर कौन सी वस्तु, उन देवों के श्रेष्ठ प्रहरण के रूप में परिमत होती है ? गौतम ! वे देव, जिस तृण, काष्ठ, पत्ता या कंकर आदि को स्पर्श करते हैं, वही वस्तु उन देवों के शस्त्ररत्न के रूप में परिणत
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१८

उद्देशक-७ केवली Hindi 747 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] देवे णं भंते! महिड्ढिए जाव महेसक्खे पभू लवणसमुद्दं अनुपरियट्टित्ता णं हव्वमागच्छित्तए? हंता पभू देवे णं भंते! महिड्ढिए जाव महेसक्खे पभू धायइसंडं दीवं अनुपरियट्टित्ता णं हव्वमागच्छित्तए? हंता पभू एवं जाव रुयगवरं दीवं अनुपरियट्टित्ता णं हव्वमागच्छित्तए? हंता पभू तेण परं वीईवएज्जा, नो चेव णं अनुपरियट्टेज्जा

Translated Sutra: भगवन्‌ ! महर्द्धिक यावत्‌ महासुखसम्पन्न देव लवणसमुद्र के चारों ओर चक्कर लगाकर शीघ्र आने में समर्थ हैं ? हाँ, गौतम ! समर्थ हैं भगवन्‌ ! महर्द्धिक यावत्‌ महासुखी देव धातकीखण्ड द्वीप के चारों ओर चक्कर लगाकर शीघ्र आने में समर्थ हैं ? हाँ, गौतम ! वे समर्थ हैं भगवन्‌ ! क्या इसी प्रकार वे देव रुचकवर द्वीप तक चारों ओर
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१८

उद्देशक-७ केवली Hindi 748 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अत्थि णं भंते! देवा जे अनंते कम्मंसे जहन्नेणं एक्केण वा दोहिं वा तीहिं वा, उक्कोसेणं पंचहिं वाससएहिं खवयंति? हंता अत्थि अत्थि णं भंते! देवा जे अनंते कम्मंसे जहन्नेणं एक्केण वा दोहिं वा तीहिं वा, उक्कोसेणं पंचहिं वाससहस्सेहिं खवयंति? हंता अत्थि अत्थि णं भंते! देवा जे अनंते कम्मंसे जहन्नेणं एक्केण वा दोहिं वा तीहिं वा, उक्कोसेण पंचहिं वाससयसहस्सेहिं खवयंति? हंता अत्थि कयरे णं भंते! ते देवा जे अनंते कम्मंसे जहन्नेणं एक्केण वा जाव पंचहिं वाससएहिं खवयंति? कयरे णं भंते! ते देवा जाव पंचहिं वाससहस्सेहिं खवयंति? कयरे णं भंते! ते देवा जाव पंचहिं वाससयसहस्सेहिं खवयंति? गोयमा!

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या इस प्रकार के भी देव हैं, जो अनन्त कर्मांशों को जघन्य एक सौ, दो सौ या तीन सौ और उत्कृष्ट पाँच सौ वर्षों में क्षय कर देते हैं ? हाँ, गौतम ! हैं भगवन्‌ ! क्या ऐसे देव भी हैं, जो अनन्त कर्मांशों को जघन्य एक हजार, दो हजार या तीन हजार और उत्कृष्ट पाँच हजार वर्षों में क्षय कर देते हैं ? हाँ, गौतम ! हैं भगवन्‌ ! क्या
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१८

उद्देशक-८ अनगार क्रिया Hindi 749 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासीअनगारस्स णं भंते! भावियप्पणो पुरओ दुहओ जुगमायाए पेहाए रीयं रीयमाणस्स पायस्स अहे कुक्कुडपोते वा वट्टापोते वा कुलिंगच्छाए वा परियावज्जेज्जा, तस्स णं भंते! किं इरियावहिया किरिया कज्जइ? संपरा-इया किरिया कज्जइ? गोयमा! अनगारस्स णं भावियप्पणो पुरओ दुहओ जुगमायाए पेहाए रीयं रीयमाणस्स पायस्स अहे कुक्कुडपोते वा वट्टपोते वा कुलिंगच्छाए वा परियावज्जेज्जा, तस्स णं इरियावहिया किरिया कज्जइ, नो संपराइया किरिया कज्जइ से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ? गोयमा! जस्स णं कोह-मान-माया-लोभा वोच्छिन्ना भवंति तस्स णं रियावहिया किरिया कज्जइ, जस्स णं कोहमाण-माया-लोभा

Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत्‌ पूछा भगवन्‌ ! सम्मुख और दोनों ओर युगमात्र भूमि को देखदेख कर ईर्यापूर्वक गमन करते हुए भावितात्मा अनगार के पैर के नीचे मुर्गी का बच्चा, बतख का बच्चा अथवा कुलिंगच्छाय आकर मर जाएं तो, उक्त अनगार को ऐर्यापथिकी क्रिया लगती है या साम्परायिकी क्रिया लगती है ? गौतम ! यावत्‌ उस भावितात्मा अनगार
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१८

उद्देशक-८ अनगार क्रिया Hindi 750 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नगरे गुणसिलए चेइएवण्णओ जाव पुढविसिलापट्टओ तस्स णं गुणसिलस्स चेइयस्स अदूरसामंते बहवे अन्नउत्थिया परिवसंति तए णं समणे भगवं महावीरे जाव समोसढे जाव परिसा पडिगया तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूती नामं अनगारे जाव उड्ढं जाणू अहोसिरे ज्झाणकोट्ठोवगए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ तए णं ते अन्नउत्थिया जेणेव भगवं गोयमे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता भगवं गोयमं एवं वयासीतुब्भे णं अज्जो! तिविहं तिविहेणं अस्संजय-विरय-पडिहय-पच्चक्खायपावकम्मा, सकिरिया, असंवुडा, एगंतदंडा, एगंतबाला

Translated Sutra: उस काल और उस समय में राजगृह नामक नगर में यावत्‌ पृथ्वीशिलापट्ट था उस गुणशीलक उद्यान के समीप बहुत से अन्यतीर्थिक निवास करते थे उन दिनों में श्रमण भगवान महावीर स्वामी वहाँ पधारे, यावत्‌ परीषद्‌ वापिस लौट गई उस काल और उस समय में, श्रमण भगवान महावीर के ज्येष्ठ अन्तेवासी श्री इन्द्रभूति नामक अनगार यावत्‌,
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१८

उद्देशक-८ अनगार क्रिया Hindi 751 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] छउमत्थे णं भंते! मनुस्से परमाणुपोग्गलं किं जाणति-पासति? उदाहु जाणति पासति? गोयमा! अत्थेगतिए जाणति पासति, अत्थेगतिए जाणति पासति छउमत्थे णं भंते! मनुस्से दुपएसियं खंधं किं जाणति-पासति? उदाहु जाणति पासति? गोयमा! अत्थेगतिए जाणति पासति, अत्थेगतिए जाणति पासति एवं जाव असंखेज्ज-पएसियं छउमत्थे णं भंते! मनुस्से अनंतपएसियं खंधं किं जाणति-पासति? उदाहु जाणति पासति? गोयमा! अत्थेगतिए जाणति-पासति, अत्थेगतिए जाणति पासति, अत्थेगतिए जाणति पासति, अत्थेगतिए जाणति पासति आहोहिए णं भंते! मनुस्से परमाणुपोग्गलं किं जाणति-पासति? उदाहु जाणति पासति? जहा छउमत्थे

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या छद्मस्थ मनुष्य परमाणु पुद्‌गल को जानता देखता है अथवा नहीं जानता नहीं देखता है ? गौतम ! कोई जानता है, किन्तु देखता नहीं, और कोई जानता भी नहीं और देखता भी नहीं भगवन्‌ ! क्या छद्मस्थ मनुष्य द्वीप्रदेशी स्कन्ध को जानता देखता है, अथवा नहीं जानता, नहीं देखता है ? गौतम ! पूर्ववत्‌ इसी प्रकार यावत्‌
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१८

उद्देशक-९ भव्यद्रव्य Hindi 752 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासीअत्थि णं भंते! भवियदव्वनेरइया-भवियदव्वनेरइया? हंता अत्थि से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइभवियदव्वनेरइया-भवियदव्वनेरइया? गोयमा! जे भविए पंचिंदिए तिरिक्खजोणिए वा मनुस्से वा नेरइएसु उववज्जित्तए से तेणट्ठेणं एवं जाव थणियकुमाराणं अत्थि णं भंते! भवियदव्वपुढविकाइया-भवियदव्वपुढविकाइया? हंता अत्थि से केणट्ठेणं? गोयमा! जे भविए तिरिक्खजोणिए वा मनुस्से वा देवे वा पुढविकाइएसु उववज्जित्तए से तेणट्ठेणं आउक्काइय-वणस्सइ-काइयाणं एवं चेव तेउ-वाउ-बेइंदिय-तेइंदिय-चउरिंदियाण जे भविए तिरिक्खजोणिए वा मनुस्से वा तेउ-वाउ-बेइंदिय-तेइंदिय-चउरिंदिएसु

Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत्‌ पूछा भगवन्‌ ! क्या भव्य द्रव्य नैरयिक भव्य द्रव्य नैरयिक हैं ? हाँ, गौतम ! हैं भगवन्‌ ! किस कारण से ऐसा कहते हैं कि भव्य द्रव्य नैरयिक भव्य द्रव्य नैरयिक हैं ? गौतम ! जो कोई पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक या मनुष्य नैरयिकों में उत्पन्न होने के योग्य है, वह भव्य द्रव्य
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१८

उद्देशक-१० सोमिल Hindi 753 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासीअनगारे णं भंते! भावियप्पा असिधारं वा खुरधारं वा ओगाहेज्जा? हंता ओगाहेज्जा से णं तत्थ छिज्जेज्ज वा भिज्जेज्ज वा? नो इणट्ठे समट्ठे नो खलु तत्थ सत्थं कमइ अनगारे णं भंते! भावियप्पा अगनिकायस्स मज्झंमज्झेणं वीइवएज्जा? हंता वीइवएज्जा से णं भंते! तत्थ ज्झियाएज्जा? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे नो खलु तत्थ सत्थं कमइ अनगारे णं भंते! भावियप्पा पुक्खलसंवट्टगस्स महामेहस्स मज्झंमज्झेणं वीइवएज्जा? हंता वीइवएज्जा से णं भंते! तत्थ उल्ले सिया? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे नो खलु तत्थ सत्थं कमइ अनगारे णं भंते! भावियप्पा गंगाए महानदीए पडिसोयं हव्वमागच्छेज्जा?

Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत्‌ पूछा भगवन्‌ ! क्या भावितात्मा अनगार तलवार की धार पर अथवा उस्तरे की धार पर रह सकता है ? हाँ, गौतम ! रह सकता है (भगवन्‌ !) क्या वह वहाँ छिन्न या भिन्न होता है ? (गौतम !) यह अर्थ समर्थ नहीं क्योंकि उस पर शस्त्र संक्रमण नहीं करता इत्यादि सब पंचम शतक में कही हुई परमाणु पुद्‌गल की वक्तव्यता, यावत्‌
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१८

उद्देशक-१० सोमिल Hindi 754 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] परमाणुपोग्गले णं भंते! वाउयाएणं फुडे? वाउयाए वा परमाणुपोग्गलेणं फुडे? गोयमा! परमाणुपोग्गले वाउयाएणं फुडे, नो वाउयाए परमाणुपोग्गलेणं फुडे दुप्पएसिए णं भंते! खंधे वाउयाएणं फुडे? वाउयाए वा दुप्पएसिएणं खंधेणं फुडे? एवं चेव एवं जाव असंखेज्जपएसिए अनंतपएसिए णं भंते! खंधे वाउयाएणं फुडेपुच्छा गोयमा! अनंतपएसिए खंधे वाउयाएणं फुडे, वाउयाए अनंतपएसिएणं खंधेणं सिय फुडे, सिय नो फुडे वत्थी भंते! वाउयाएणं फुडे? वाउयाए वा वत्थिणा फुडे? गोयमा! वत्थी वाउयाएणं फुडे, नो वाउयाए वत्थिणा फुडे

Translated Sutra: भगवन्‌ ! परमाणु पुद्‌गल, वायुकाय से स्पृष्ट है, अथवा वायुकाय परमाणु पुद्‌गल से स्पृष्ट है ? गौतम ! परमाणु पुद्‌गल वायुकाय से स्पृष्ट है, किन्तु वायुकाय परमाणु पुद्‌गल से स्पृष्ट नहीं है भगवन्‌ ! द्विप्रदेशिक स्कन्ध वायुकाय से स्पृष्ट है या वायुकाय द्विप्रदेशिक स्कन्ध से स्पृष्ट है ? गौतम ! पूर्ववत्‌
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१८

उद्देशक-१० सोमिल Hindi 755 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra:

Translated Sutra: भगवन्‌ ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नीचे वर्ण से काला, नीला, पीला, लाल और श्वेत, गन्ध से सुगन्धित और दुर्गन्धित; रस से तिक्त, कटुक कसैला, अम्ल और मधुर; तथा स्पर्श से कर्कश, मृदु, गुरु, लघु, शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष इन बीस बोलों से युक्त द्रव्य क्या अन्योन्य बद्ध, अन्योन्य स्पृष्ट, यावत्‌ अन्योन्य सम्बद्ध हैं
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१८

उद्देशक-१० सोमिल Hindi 756 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणियगामे नामं नगरे होत्थावण्णओ दूतिपलासए चेइएवण्णओ तत्थ णं वाणियगामे नगरे सोमिले नामं माहणे परिवसति अड्ढे जाव बहुजणस्स अपरिभूए, रिव्वेद जाव सुपरिनिट्ठिए, पंचण्हं खंडियसयाणं, सयस्स , कुडुंबस्स आहेवच्चं पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं आणा-ईसर-सेनावच्चं कारेमाणे पालेमाणे विहरइ तए णं समणे भगवं महावीरे जाव समोसढे जाव परिसा पज्जुवासति तए णं तस्स सोमिलस्स माहणस्स इमीसे कहाए लद्धट्ठस्स समाणस्स अयमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्थाएवं खलु समणे नायपुत्ते पुव्वानुपुव्विं चरमाणे गामानुगामं दूइज्जमाणे

Translated Sutra: उस काल उस समय में वाणिज्यग्राम नामक नगर था वहाँ द्युतिपलाश नाम का (चैत्य) था उस वाणिज्य ग्राम नगर में सोमिल ब्राह्मण रहता था जो आढ्य यावत्‌ अपराभूत था तथा ऋग्वेद यावत्‌ अथर्ववेद, तथा शिक्षा, कल्प आदि वेदांगों में निष्णात था वह पाँच सौ शिष्यों और अपने कुटुम्ब पर आधिपत्य करता हुआ यावत्‌ सुख पूर्वक जीवनयापन
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१८

उद्देशक-१० सोमिल Hindi 757 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एगे भवं? दुवे भवं? अक्खए भवं? अव्वए भवं? अवट्ठिए भवं? अनेगभूयभाव-भविए भवं? सोमिला! एगे वि अहं जाव अनेगभूय-भाव-भविए वि अहं से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइएगे वि अहं जाव अनेगभूय-भाव-भविए वि अहं? सोमिला! दव्वट्ठयाए एगे अहं, नाणदंसणट्ठयाए दुविहे अहं, पएसट्ठयाए अक्खए वि अहं, अव्वए वि अहं, अवट्ठिए वि अहं, उवयोगट्ठयाए अनेगभूय-भाव-भविए वि अहं से तेणट्ठेणं जाव अनेगभूय-भाव-भविए वि अहं एत्थ णं से सोमिले माहणे संबुद्धे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासीजहा खंदओ जाव से जहेयं तुब्भे वदह जहा णं देवानुप्पियाणं अंतिए बहवे राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुंबिय-इब्भसेट्ठि-सेनावइ-सत्थ

Translated Sutra: भगवन्‌ ! आप एक हैं, या दो हैं, अथवा अक्षय हैं, अव्यय हैं, अवस्थित हैं अथवा अनेक भूत भाव भाविक हैं? सोमिल ! मैं एक भी हूँ, यावत्‌ अनेक भूत भाव भाविक भी हूँ भगवन्‌ ! ऐसा किस कारण से कहते हैं ? सोमिल ! मैं द्रव्यरूप से एक हूँ, ज्ञान और दर्शन की दृष्टि से दो हूँ आत्म प्रदेशों की अपेक्षा से मैं अक्षय हूँ, अव्यय हूँ
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१९

उद्देशक-१ लेश्या Hindi 758 Gatha Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] . लेस्सा . गब्भ . पुढवी . महासवा . चरम . दीव . भवणा . निव्वत्ति . करण . वणचरसुरा एगूणवीसइमे

Translated Sutra: उन्नीसवें शतक में यह दस उद्देशक हैं लेश्या, गर्भ, पृथ्वी, महाश्रव, चरम, द्वीप, भवन, निर्वृत्ति, करण और वनचर सुर
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१९

उद्देशक-१ लेश्या Hindi 759 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासीकति णं भंते! लेस्साओ पन्नत्ताओ? गोयमा! छल्लेसाओ पन्नत्ताओ, तं जहाएवं जहा पन्नवणाए चउत्थो लेसुद्देसओ भाणियव्वो निरवसेसो सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति

Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत्‌ पूछा भगवन्‌ ! लेश्याएं कितनी हैं ? गौतम ! छह, प्रज्ञापनासूत्र का लेश्योद्देशक सम्पूर्ण कहना, भगवन्‌ ! यह इसी प्रकार है
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१९

उद्देशक-२ गर्भ Hindi 760 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! लेस्साओ पन्नत्ताओ? एवं जहा पन्नवणाए गब्भुद्देसो सो चेव निरवसेसो भाणियव्वो सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति

Translated Sutra: भगवन्‌ ! लेश्याएं कितनी कही गई हैं ? प्रज्ञापनासूत्र के सत्तरहवें पद का छठा समग्र गर्भोद्देशक कहना चाहिए हे भगवन्‌ ! यह इसी प्रकार है
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१९

उद्देशक-९ करण Hindi 776 Gatha Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] वण्ण रस गंध फासे संठाअ विहीय बोद्धव्वा | लेस दिट्ठी नाणे उवओगे चेव जोगे ||

Translated Sutra: देखो सूत्र ७७५
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१९

उद्देशक-१० व्यंतर Hindi 777 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] वाणमंतरा णं भंते! सव्वे समाहारा? एवं जहा सोलसमसए दीवकुमारुद्देसओ जाव अप्पिड्ढिय त्ति

Translated Sutra: देखो सूत्र ७७५
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१९

उद्देशक-१० व्यंतर Hindi 778 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या सभी वाणव्यन्तर देव समान आहार वाले होते हैं ? इत्यादि प्रश्न (गौतम !) सोलहवें शतक के द्वीपकुमारोद्देशक के अनुसार अल्पर्द्धिक पर्यन्त जानना चाहिए हे भगवन्‌ ! यह इसी प्रकार है, भगवन्‌ ! यह इसी प्रकार है
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२०

उद्देशक-१ बेईन्द्रिय Hindi 779 Gatha Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] . बेइंदिय . मागासे, . पाणवहे . उवचए . परमाणू अंतर . बंधे . भूमी, . चारण . सोवक्कमा जीवा

Translated Sutra: (इस शतक में दश उद्देशक हैं ) द्वीन्द्रिय, आकाश, प्राणवध, उपचय, परमाणु, अन्तर, बन्ध, भूमि, चारण और सोपक्रम जीव
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२०

उद्देशक-१ बेईन्द्रिय Hindi 780 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासीसिय भंते! जाव चत्तारि पंच बेंदिया एगयओ साहरणसरीर बंधंति, बंधित्ता तओ पच्छा आहारेंति वा परिणामेंति वा सरीरं वा बंधंति? नो इणट्ठे समट्ठे बेंदिया णं पत्तेयाहारा पत्तेयपरिणामा पत्तेयसरीरं बंधंति, बंधित्ता तओ पच्छा आहारेंति वा परिणामेंति वा सरीरं वा बंधंति तेसि णं भंते! जीवाणं कति लेस्साओ पन्नत्ताओ? गोयमा! तओ लेस्साओ पन्नत्ताओ, तं जहाकण्हलेस्सा, नीललेस्सा, काउलेस्सा एवं जहा एगूण-वीसतिमे सए तेउक्काइयाणं जाव उव्वट्टंति, नवरंसम्मदिट्ठी वि मिच्छदिट्ठी वि, नो सम्मामिच्छदिट्ठी, दो नाणा दो अन्नाणा नियमं, नो मणजोगी, वइजोगी वि कायजोगी वि, आहारो

Translated Sutra: भगवन्‌ ! राजगृह नगर में गौतम स्वामी ने यावत्‌ इस प्रकार पूछा भगवन्‌ ! क्या कदाचित्‌ दो, तीन, चार या पाँच द्वीन्द्रिय जीव मिलकर एक साधारण शरीर बाँधते हैं, इसके पश्चात्‌ आहार करते हैं ? अथवा आहार को परिणमाते हैं, फिर विशिष्ट शरीर को बाँधते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है, क्योंकि द्वीन्द्रिय जीव पृथक्‌ पृथक्‌
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२०

उद्देशक-६ अंतर Hindi 791 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] वाउक्काइए णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए सक्करप्पभाए पुढवीए अंतरा समोहए, समोहणित्ता जे भविए सोहम्मे कप्पे वाउक्काइयत्ताए उववज्जित्तए? एवं जहा सत्तरसमसए वाउक्काइयउद्देसए तहा इह वि, नवरंअंतरेसु समोहणा नेयव्वा, सेसं तं चेव जाव अनुत्तरविमानाणं ईसीपब्भाराए पुढवीए अंतरा समोहए, समोहणित्ता जे भविए घनवाय-तनुवाए घनवाय-तनुवायवलएसु वाउक्काइयत्ताए उववज्जित्तए, सेसं तं चेव जाव से तेणट्ठेणं जाव उववज्जेज्जा सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जो वायुकायिक जीव, इस रत्नप्रभा और शर्कराप्रभा पृथ्वी के मध्य में मरणसमुद्‌घात करके सौधर्मकल्प में वायुकायिक रूप से उत्पन्न होने योग्य हैं; इत्यादि पूर्ववत्‌ प्रश्न गौतम ! सत्तरहवे शतक के दसवे उद्देशक समान यहाँ भी कहना विशेष यह है कि रत्नप्रभा आदि पृथ्वीयों के अन्तरालों में मरणसमुद्‌घातपूर्वक
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२०

उद्देशक-७ बंध Hindi 792 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहे णं भंते! बंधे पन्नत्ते? गोयमा! तिविहे बंधे पन्नत्ते, तं जहाजीवप्पयोगबंधे, अनंतरबंधे, परंपरबंधे नेरइयाणं भंते! कतिविहे बंधे पन्नत्ते? एवं चेव एवं जाव वेमाणियाणं नाणावरणिज्जस्स णं भंते! कम्मस्स कतिविहे बंधे पन्नत्ते? गोयमा! तिविहे बंधे पन्नत्ते, तं जहाजीवप्पयोगबंधे, अनंतरबंधे, परंपरबंधे नेरइयाणं भंते! नाणावरणिज्जस्स कम्मस्स कतिविहे बंधे पन्नत्ते? एवं चेव एवं जाव वेमाणियाणं एवं जाव अंतराइयस्स नाणावरणिज्जोदयस्स णं भंते! कम्मस कतिविहे बंधे पन्नत्ते? गोयमा! तिविहे बंधे पन्नत्ते एवं चेव एवं नेरइयाण वि एवं जाव वेमाणियाणं एवं जाव अंतराइओदयस्स इत्थीवेदस्स

Translated Sutra: भगवन्‌ ! बन्ध कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! तीन प्रकार का, यथा जीवप्रयोगबन्ध, अनन्तर बन्ध और परम्परबन्ध भगवन्‌ ! नैरयिक जीवों के बन्ध कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! पूर्ववत्‌ इसी प्रकार वैमानिकों तक भगवन्‌ ! ज्ञानावरणीय कर्म का बन्ध कितने प्रकार का है ? गौतम ! तीन प्रकार का यथा जीवप्रयोगबन्ध अनन्तरबन्ध
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२०

उद्देशक-८ भूमि Hindi 793 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! कम्मभूमीओ पन्नत्ताओ? गोयमा! पन्नरस कम्मभूमीओ पन्नत्ताओ, तं जहापंच भरहाइं, पंच एरवयाइं, पंच महा-विदेहाइं कति णं भंते! अकम्मभूमीओ पन्नत्ताओ? गोयमा! तीसं अकम्मभूमीओ पन्नत्ताओ, तं जहापंच हेमवयाइं, पंच हेरण्णवयाइं, पंच हरिवासाइं, पंच रम्मगवासाइं, पंच देवकुराओ, पंच उत्तरकुराओ एयासु णं भंते! तीसासु अकम्मभूमीसु अत्थि ओसप्पिणीति वा उस्सप्पिणीति वा? नो इणट्ठे समट्ठे

Translated Sutra: भगवन्‌ ! कर्मभूमियाँ कितनी हैं ? गौतम ! पन्द्रह हैं पाँच भरत, पाँच ऐरवत और पाँच महाविदेह भगवन्‌ ! अकर्मभूमियाँ कितनी हैं ? गौतम ! तीस हैं पाँच हैमवत, पाँच हैरण्यवत, पाँच हरिवर्ष, पाँच रम्यकवर्ष, पाँच देवकुरु और पाँच उत्तरकुरु भगवन्‌ ! अकर्मभूमियों मे क्या उत्सर्पिणी और अवसर्पिणीरूप काल है ? (गौतम !) यह अर्थ
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२०

उद्देशक-८ भूमि Hindi 794 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एएसु णं भंते! पंचसु भरहेसु, पंचसु एरवएसु अत्थि ओसप्पिणीति वा उस्सप्पिणीति वा? हंता अत्थि एएसु णं पंचसु महाविदेहेसु नेवत्थि ओसप्पिणी, नेवत्थि उस्सप्पिणी, अवट्ठिए णं तत्थ काले पन्नत्ते समणाउसो एएसु णं भंते! पंचसु महाविदेहेसु अरहंता भगवंतो पंचमहव्वइयं सपडिक्कमणं धम्मं पन्नवयंति? नो इणट्ठे समट्ठे एएसु णं पंचसु भरहेसु, पंचसु एरवएसु, पुरिम-पच्छिमगा दुवे अरहंता भगवंतो पंचमहव्वइयं सपडिक्कमणं धम्मं पण्णवयंति, अवसेसा णं अरहंता भगवंतो चाउज्जामं धम्मं पन्नवयंति एएसु णं पंचसु महाविदेहेसु अरहंता भगवंतो चाउज्जामं धम्मं पन्नवयंति जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे भारहे

Translated Sutra: भगवन्‌ ! महाविदेह क्षेत्रों में अरहन्त भगवान सप्रतिक्रमण पंच महाव्रत वाले धर्म का उपदेश करते हैं ? (गौतम !) यह अर्थ समर्थ नहीं है भरत तथा ऐरवत क्षेत्रों में प्रथम और अन्तिम ये दो अरहन्त भगवंत सप्रतिक्रमण पाँच महाव्रतोंवाले और शेष अरहन्त भगवंत चातुर्याम धर्म का उपदेश करते हैं और पाँच महाविदेह क्षेत्रों
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२०

उद्देशक-८ भूमि Hindi 795 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एएसि णं भंते! चउवीसाए तित्थगराणं कति जिणंतरा पन्नत्ता? गोयमा! तेवीसं जिणंतरा पन्नत्ता एएसि णं भंते! तेवीसाए जिणंतरेसु कस्स कहिं कालियसुयस्स वीच्छेदे पन्नत्ते? गोयमा! एएसु णं तेवीसाए जिणंतरेसु पुरिम-पच्छिमएसु अट्ठसु-अट्ठसु जिनंतरेसु एत्थ णं कालियसुयस्स अव्वोच्छेये पन्नत्ते, मज्झिमएसु सत्तसु जिनंतरेसु एत्थ णं कालियसुयस्स वोच्छेदे पन्नत्ते, सव्वत्थ वि णं वोच्छिण्णे दिट्ठिवाए

Translated Sutra: भगवन्‌ ! इन चौबीस तीर्थंकरों के कितने जिनान्तर कहे हैं ? गौतम ! इनके तेईस अन्तर कहे गए हैं भगवन्‌ ! इन तेईस जिनान्तरों में जिनके अन्तर में कब कालिकश्रुत का विच्छेद कहा गया है ? गौतम ! पहले और पीछे के आठ आठ जिनान्तरों में कालिकश्रुत का अव्यवच्छेद कहा गया है और मध्य के आठ जिनान्तरों में कालिकश्रुत का व्यवच्छेद
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२०

उद्देशक-८ भूमि Hindi 796 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए देवानुप्पियाणं केवतियं कालं पुव्वगए अनुसज्जिस्सति? गोयमा! जंबुद्दीवे णं दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए ममं एगं वाससहस्सं पुव्वगए अनुसज्जिस्सति जहा णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए देवानुप्पियाणं एगं वाससहस्सं पुव्वगए अनुसज्जिस्सति, तहा णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए अवसेसाणं तित्थगराणं केवतियं कालं पुव्वगए अनुसज्जित्था? गोयमा! अत्थेगतियाणं संखेज्जं कालं, अत्थेगतियाणं असंखेज्जं कालं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जम्बूद्वीप के अन्तर्गत भारतवर्ष में इस अवसर्पिणीकाल में आप देवानुप्रिय का पूर्वगतश्रुत कितने काल तक रहेगा ? गौतम ! इस जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में इस अवसर्पिणी काल में मेरा पूर्वश्रुतगत एक हजार वर्ष तक रहेगा भगवन्‌ ! जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में, इस अवसर्पिणीकाल में अवशिष्ट अन्य तीर्थंकरों का पूर्वगतश्रुत
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२०

उद्देशक-८ भूमि Hindi 797 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए देवानुप्पियाणं केवतियं कालं तित्थे अनुसज्जिस्सति? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए ममं एगवीसं वाससहस्साइं तित्थे अनुसज्जिस्सति

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जम्बूद्वीप के अन्तर्गत भारतवर्ष में इस अवसर्पिणी काल में आप देवानुप्रिय का तीर्थ कितने काल तक रहेगा ? गौतम ! इक्कीस हजार वर्ष तक रहेगा
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२०

उद्देशक-८ भूमि Hindi 798 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जहा णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे इमीसे वासे ओसप्पिणीए देवानुप्पियाणं एक्कवीसं वाससहस्साइं तित्थे अनुसज्जिस्सति, तहा णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे आगमेस्साणं</em> चरिमतित्थगरस्स केवतिलं कालं तित्थे अनुसज्जिस्सति? गोयमा! जावतिए णं उसभस्स अरहओ कोसलियस्स जिणपरियाए एवइयाइं संखेज्जाइं आगमे</em>-स्साणं चरिमतित्थगरस्स तित्थे अनुसज्जिस्सति

Translated Sutra: हे भगवन्‌ ! भावी तीर्थंकरोंमें से अन्तिम तीर्थंकर का तीर्थ कितने काल तक अविच्छिन्न रहेगा ? गौतम ! कौशलिक ऋषभदेव, अरहन्त का जितना जिनपर्याय है, उतने वर्ष भावी तीर्थंकरोंमें अन्तिम तीर्थंकर का तीर्थ रहेगा
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२०

उद्देशक-८ भूमि Hindi 799 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तित्थं भंते! तित्थं? तित्थगरे तित्थं? गोयमा! अरहा ताव नियमं तित्थकरे, तित्थं पुण चाउवण्णे समणसंघे, तं जहासमणा, समणीओ, सावया, सावियाओ

Translated Sutra: भगवन्‌ ! तीर्थ को तीर्थ कहते हैं अथवा तीर्थंकर को तीर्थ कहते हैं ? गौतम ! अर्हन्‌ तो अवश्य तीर्थंकर हैं, किन्तु तीर्थ चार प्रकार के वर्णों से युक्त श्रमणसंघ है यथा श्रमण, श्रमणियाँ, श्रावक और श्राविकाएं
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२०

उद्देशक-८ भूमि Hindi 800 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पवयणं भंते! पवयणं? पावयणी पवयणं? गोयमा! अरहा ताव नियमं पावयणी, पवयणं पुण दुवालसंगे गणिपिडगे, तं जहाआयारो सूयगडो ठाणं समवाओ विआहपन्नत्ती णायाधम्मकहाओ उवासगदसाओ अंतगडदसाओ अनुत्तरोववाइय-दसाओ पण्हावागरणाइं विवागसुयं दिट्ठिवाओ जे इमे भंते! उग्गा, भोगा, राइण्णा, इक्खागा, नाया, कोरव्वा एए णं अस्सि धम्मे ओगाहंति, ओगाहित्ता अट्ठविहं कम्मरयमलं पवाहेंति, पवाहेत्ता तओ पच्छा सिज्झति जाव सव्वदुक्खाणं अंतं करेति? हंता गोयमा! जे इमे उग्गा, भोगा, राइण्णा, इक्खागा, नाया, कोरव्वा एए णं अस्सि धम्मे ओगाहंति, ओगाहित्ता अट्ठविहं कम्मरयमलं पवाहेंति, पवाहेत्ता तओ पच्छा सिज्झंति

Translated Sutra: भगवन्‌ ! प्रवचन को ही प्रवचन कहते हैं, अथवा प्रवचनी को प्रवचन कहते हैं ? गौतम ! अरिहन्त तो अवश्य प्रवचनी हैं, किन्तु द्वादशांग गणिपिटक प्रवचन हैं, यथा आचारांग यावत्‌ दृष्टिवाद भगवन्‌ ! जो ये उग्रकुल, भोगकुल, राजन्यकुल, इक्ष्वाकुकुल, ज्ञातकुल और कौरव्यकुल हैं, वे यावत्‌ सर्व दुःखों का अन्त करते हैं ? हाँ, गौतम
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२०

उद्देशक-९ चारण Hindi 801 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहा णं भंते! चारणा पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा चारणा पन्नत्ता, तं जहाविज्जाचारणा , जंघाचारणा से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइविज्जाचारणे-विज्जाचारणे? गोयमा! तस्स णं छट्ठंछट्ठेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं विज्जाए उत्तरगुणलद्धिं खममाणस्स विज्जाचारणलद्धी नामं लद्धी समुप्पज्जइ से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ विज्जाचारणे-विज्जाचारणे विज्जाचारणस्स णं भंते! कहं सीहा गतो, कहं सीहे गतिविसए पन्नत्ते? गोयम! अयन्नं जंबुद्दीवे दीवे जाव किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं देवे णं महिड्ढीए जाव महेसक्खे जाव इणामेव-इणामेव त्ति कट्टु केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं तिहिं अच्यरानिवाएहिं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! चारण कितने प्रकार के कहे हैं ? गौतम ! दो प्रकार के, यथा विद्याचारण और जंघाचारण भगवन्‌ विद्याचारण मुनि को विद्याचारण क्यों कहते हैं ? अन्तर रहित छट्ठ छट्ठ के तपश्चरणपूर्वक पूर्वश्रुतरूप विद्या द्वारा तपोलब्धि को प्राप्त मुनि को विद्याचारणलब्धि नामकी लब्धि उत्पन्न होती है इस कारण से यावत्‌
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२०

उद्देशक-९ चारण Hindi 802 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइजंघाचारणे-जंघाचारणे? गोयमा! तस्स णं अट्ठमंअट्ठमेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं अप्पाणं भावेमाणस्स जंघाचारणलद्धी नाम लद्धी समुप्पज्जति से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइजंघाचारणे-जंघाचारणे जंघाचारणस्स णं भंते! कहं सीहा गती, कहं सीहे गतिविसए पन्नत्ते? गोयमा! अयन्नं जंबुद्दीवे दीवे जाव किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं देवे णं महिड्ढीए जाव महेसक्खे जाव इणामेव-इणामेव त्ति कट्टु केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं तिहि अच्छरानिवाएहिं तिसत्तखुत्तो अनुपरियट्टित्ता णं हव्वमागच्छेज्जा, जंघाचारणस्स णं गोयमा! तहा सीहा गती, तहा सीहे गतिविसए पन्नत्ते जंघाचारणस्स

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जंघाचारण को जंघाचारण क्यों कहते हैं ? गौतम ! अन्तररहित अट्ठम अट्ठम के तपश्चरण पूर्वक आत्मा को भावित करते हुए मुनि को जंघाचारण नामक लब्धि उत्पन्न होती है, इस कारण उसे जंघाचारण कहते हैं भगवन्‌ ! जंघाचारण की शीघ्र गति कैसी होती है और उसकी शीघ्रगति का विषय कितना होता है ? गौतम ! समग्र वर्णन विद्याचारणवत्‌
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२०

उद्देशक-१० सोपक्रमजीव Hindi 803 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवा णं भंते! किं सोवक्कमाउया? निरुवक्कमाउया? गोयमा! जीवा सोवक्कमाउया वि, निरुवक्कमाउया वि नेरइयाणंपुच्छा गोयमा! नेरइया नो सोवक्कमाउया, निरुवक्कमाउया एवं जाव थणियकुमारा पुढविक्काइया जहा जीवा एवं जाव मनुस्सा वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिया जहा नेरइया

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जीव सोपक्रम आयुष्य वाले होते हैं या निरुपक्रम आयुष्य वाले होते हैं ? गौतम ! दोनों भगवन्‌ नैरयिक सोपक्रम आयुष्य वाले होते हैं, अथवा निरुपक्रम आयुष्य वाले ? गौतम ! वे निरुपक्रम आयुष्य वाले होते हैं इसी प्रकार स्तनितकुमारों पर्यन्त (जानना) पृथ्वीकायिकों का आयुष्य जीवों के समान जानना इसी
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