Welcome to the Jain Elibrary: Worlds largest Free Library of JAIN Books, Manuscript, Scriptures, Aagam, Literature, Seminar, Memorabilia, Dictionary, Magazines & Articles

Global Search for JAIN Aagam & Scriptures

Search Results (45304)

Show Export Result
Note: For quick details Click on Scripture Name
Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१२

उद्देशक-१ शंख Hindi 529 Gatha Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] . संखे . जयंति . पुढवि . पोग्गल . अइवाय . राहु . लोगे . नागे . देव . आया, बारसमसए दसुद्देसा

Translated Sutra: बारहवें शतक में दस उद्देशक हैं () शंख, () जयन्ती, () पृथ्वी, () पुद्‌गल, () अतिपात, () राहु, () लोक, () नाग, () देव और (१०) आत्मा शतक १२ उद्देशक
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१२

उद्देशक-१ शंख Hindi 530 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं सावत्थी नामं नगरी होत्थावण्णओ कोट्ठए चेइएवण्णओ तत्थ णं सावत्थीए नगरीए बहवे संखप्पामोक्खा समणोवासया परिवसंतिअड्ढा जाव बहुजनस्स अपरिभूया, अभिगयजीवाजीवा जाव अहापरिग्गहिएहिं तवो-कम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणा विहरंति तस्स णं संखस्स समणोवासगस्स उप्पला नाम भारिया होत्थासुकुमालपाणिपाया जाव सुरूवा, समणोवासिया अभिगयजीवाजीवा जाव अहापरिग्गहिएहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणी विहरइ तत्थ णं सावत्थीए नगरीए पोक्खली नामं समणोवासए परिवसइअड्ढे, अभिगयजीवाजीवे जाव अहापरिग्गहिएहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणे विहरइ तेणं कालेणं

Translated Sutra: उस काल और उस समय में श्रावस्ती नगरी थी कोष्ठक उद्यान था, उस श्रावस्ती नगरी में शंख आदि बहुत से श्रमणोपासक रहते थे (वे) आढ्य यावत्‌ अपरिभूत थे; तथा जीव, अजीव आदि तत्त्वों के ज्ञाता थे, यावत्‌ विचरते थे उस शंख श्रमणोपासक की भार्या उत्पला थी उसके हाथ पैर अत्यन्त कोमल थे, यावत्‌ वह रूपवती एवं श्रमणोपासिका
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१२

उद्देशक-१ शंख Hindi 531 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से संखे समणोवासए ते समणोवासए एवं वयासीतुब्भे णं देवानुप्पिया! विपुलं असनं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेह तए णं अम्हे तं विपुलं असनं पाणं खाइमं साइमं अस्साएमाणा विस्साएमाणा परिभाएमाणा परिभुंजेमाणा पक्खियं पोसहं पडिजागरमाणा विहरिस्सामो तए णं ते समणोवासगा संखस्स समणोवासगस्स एयमट्ठं विनएणं पडिसुणेंति तए णं तस्स संखस्स समणोवासगस्स अयमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्थानो खलु मे सेयं तं विपुलं असनं पाणं खाइमं साइमं अस्साएमाणस्स विस्साएमाणस्स परिभाएमाणस्स परिभुंजेमाणस्स पक्खियं पोसहं पडिजागरमाणस्स विहरित्तए, सेयं

Translated Sutra: उस शंख श्रमणोपासक ने दूसरे श्रमणोपासकों से कहा देवानुप्रियो ! तुम विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम तैयार कराओ फिर हम उस प्रचुर अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य का आस्वादन करते हुए, विस्वादन करते हुए, एक दूसरे को देते हुए भोजन करते हुए पाक्षिक पौषध का अनुपालन करते हुए अहोरात्र यापन करेंगे इस पर उन श्रमणोपासकों
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१२

उद्देशक-१ शंख Hindi 532 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासीकतिविहा णं भंते! जागरिया पन्नत्ता? गोयमा! तिविहा जागरिया पन्नत्ता, तं जहाबुद्धजागरिया, अबुद्धजागरिया, सुदक्खुजागरिया के केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइतिविहा जागरिया पन्नत्ता, तं जहाबुद्धजागरिया, अबुद्ध-जागरिया, सुदक्खुजागरिया? गोयमा! जे इमे अरहंता भगवओ उप्पन्ननाणदंसणधरा अरहा जिने केवली तीयपच्चुप्पन्नमणागय-वियाणए सव्वण्णू सव्वदरिसी एए णं बुद्धा बुद्धजागरियं जागरंति जे इमे अणगारा भगवंतो रियासमिया भासासमिया एसणासमिया आयाणभंडमत्तनिक्खे- वणासमिया उच्चार-पासवण-खेल-सिंघाण-जल्ल-परिट्ठावणिया-समिया

Translated Sutra: गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान महावीर स्वामी को वन्दन नमस्कार किया और पूछा भगवन्‌ ! जागरिका कितने प्रकार की है ? गौतम ! जागरिका तीन प्रकार की कही गई है, यथा वृद्ध जागरिका, अबुद्ध जागरिका और सुदर्शन जागरिका भगवन्‌ ! किस हेतु से कहा जाता है ? गौतम ! जो उत्पन्न हुए केवलज्ञान केवलदर्शन के धारक अरिहंत भगवान हैं,
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१२

उद्देशक-१ शंख Hindi 533 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से संखे समणोवासए समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी कोहवसट्टे णं भंते! जीवे किं बंधइ? किं पकरेइ? किं चिणाइ? किं उवचिणाइ? संखा! कोहवसट्टे णं जीवे आउयवज्जाओ सत्त कम्मपगडीओ सिढिलबंधनबद्धाओ धनियबंधनबद्धाओ पकरेइ, हस्सकालठिइयाओ दीहकालठिइयाओ पकरेइ, मंदानुभावाओ तिव्वानुभावाओ पकरेइ, अप्पपएसग्गाओ बहुप्पएसग्गाओ पकरेइ, आउयं णं कम्मं सिय बंधइ, सिय नो बंधइ, अस्सायावेयणिज्जं णं कम्मं भुज्जो-भुज्जो उवचिणाइ, अनाइयं णं अनवदग्गं दीहमद्धं चाउरंतं संसारकंतारं अनुपरियट्टइ मानवसट्टे णं भंते! जीवे किं बंधइ? किं पकरेइ? किं चिणाइ? किं उवचिणाइ?

Translated Sutra: इसके बाद उस शंख श्रमणोपासक ने श्रमण भगवान महावीर को वन्दन नमस्कार किया और पूछा भगवन्‌! क्रोध के वश आर्त्त बना हुआ जीव कौन से कर्म बाँधता है ? क्या करता है ? किसका चय करता है और किसका उपचय करता है ? शंख ! क्रोधवश आर्त्त बना हुआ जीव आयुष्यकर्म को छोड़कर शेष सात कर्मों की शिथिल बन्धन से बंधी हुई प्रकृतियों को
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१२

उद्देशक-२ जयंति Hindi 534 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं कोसंबी नामं नगरी होत्थावण्णओ चंदोतरणे चेइएवण्णओ तत्थ णं कोसंबीए नगरीए सहस्साणीयस्स रन्नो पोत्ते, सयाणीस्स रन्नो पुत्ते, चेडगस्स रन्नो नत्तुए, मिगावतीए देवीए अत्तए, जयंतीए समणोवासि-याए भत्तिज्जए उदयने नामं राया होत्थावण्णओ तत्थ णं कोसंबीए नगरीए सहस्साणीयस्स रन्नो सुण्हा, सयाणीस्स रन्नो भज्जा, चेडगस्स रन्नो धूया, उदयनस्स रन्नो माया, जयंतीए समणोवासियाए भाउज्जा मिगावती नामं देवी होत्थासुकुमालपाणिपाया जाव सुरूवा समणोवासिया अभिगयजीवाजीवा जाव अहापरिग्गहिएहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणो विहरइ तत्थ णं कोसंबीए नगरीए सहस्साणीयस्स

Translated Sutra: उस काल और उस समय में कौशाम्बी नगरी थी चन्द्रवतरण उद्यान था उस कौशाम्बी नगरी में सहस्त्रा नीक राजा का पौत्र, शतानीक राजा का पुत्र, चेटक राजा का दौहित्र, मृगावती देवी का आत्मज और जयन्ती श्रमणोपासिका का भतीजा उदयन नामक राजा था उसी कौशाम्बी नगरी में सहस्रानीक राजा की पुत्रवधू, शतानीक राजा की पत्नी, चेटक
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१२

उद्देशक-२ जयंति Hindi 535 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे जाव परिसा पज्जुवासइ तए णं से उदयणे राया इमीसे कहाए लद्धट्ठे समाणे हट्ठतुट्ठे कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासीखिप्पामेव भो देवानुप्पिया! कोसंबिं नगरिं सब्भिंतर-बाहिरियं आसित्त-सम्मज्जिओवलित्तं करेत्ता कारवेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह एवं जहा कूणिओ तहेव सव्वं जाव पज्जुवासइ तए णं सा जयंती समणोवासिया इमीसे कहाए लद्धट्ठा समाणी हट्ठतुट्ठा जेणेव मिगावती देवी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मिगावतिं देविं एवं वयासीएवं खलु देवानुप्पिए! समणे भगवं महावीरे आदिगरे जाव सव्वण्णू सव्वदरिसी आगा-सगएणं चक्केणं

Translated Sutra: उस काल उस समय में महावीर स्वामी (कौशाम्बी) पधारे, यावत्‌ परीषद्‌ पर्युपासना करने लगी उस समय उदायन राजा को जब यह पता लगा तो वह हर्षित और सन्तुष्ट हुआ उसने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और उनसे इस प्रकार कहा देवानुप्रियो ! कौशाम्बी नगरी को भीतर और बाहर से शीघ्र ही साफ करवाओ; इत्यादि सब वर्णन कोणिक राजा के समान
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१२

उद्देशक-२ जयंति Hindi 536 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं सा जयंती समणोवासिया समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठा समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी कहन्नं भंते! जीवा गरुयत्तं हव्वमागच्छंति? जयंती! पाणाइवाएणं मुसावाएणं अदिन्नादानेणं मेहुणेणं परिग्गहेणं कोह-मान-माया-लोभ-पेज्ज-दोस-कलह-अब्भक्खाण-पेसुन्न-परपरिवाय-अरतिरति-मायामोस-मिच्छादंसणसल्लेणंएवं खलु जयंती! जीवा गरुयत्तं हव्वमागच्छंति कहन्नं भंते! जीवा लहुयत्तं हव्वमागच्छंति? जयंती! पाणाइवायवेरमणेणं मुसावायवेरमणेणं अदिन्नादानवेरमणेणं मेहुणवेरमणेणं परिग्गह-वेरमणेणं कोह-मान-माया-लोभ- पेज्ज-दोस-

Translated Sutra: वह जयन्ती श्रमणोपासिका श्रमण भगवान महावीर से धर्मोपदेश श्रवण कर एवं अवधारण करके हर्षित एवं सन्तुष्ट हुई फिर भगवान महावीर को वन्दन नमस्कार करके पूछा भगवन्‌ ! जीव किस कारण से शीघ्र गुरुत्व को प्राप्त होते हैं ? जयन्ती ! जीव प्राणातिपात से लेकर मिथ्यादर्शनशल्य तक अठारह पापस्थानों के सेवन से शीघ्र गुरुत्व
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१२

उद्देशक-३ पृथ्वी Hindi 537 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासीकति णं भंते! पुढवीओ पन्नत्ताओ? गोयमा! सत्त पुढवीओ पन्नत्ताओ, तं जहापढमा, दोच्चा जाव सत्तमा पढमा णं भंते! पुढवी किंगोत्ता पन्नत्ता? गोयमा! धम्मा नामेणं, रयणप्पभा गोत्तेणं, एवं जहा जीवाभिगमे पढमो नेरइयउद्देसओ सो चेव निरवसेसो भाणियव्वो जाव अप्पाबहुगं ति सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति

Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत्‌ गौतम स्वामी ने वन्दन नमस्कार करके इस प्रकार पूछा भगवन्‌ ! पृथ्वीयाँ (नरक भूमियाँ) कितनी कही गई हैं ? गौतम ! पृथ्वीयाँ सात कही गई हैं, वे इस प्रकार है प्रथमा, द्वीतिया यावत्‌ सप्तमी भगवन्‌ ! प्रथमा पृथ्वी किस नाम और किस गोत्र वाली है ? गौतम ! प्रथमा पृथ्वी का नाम धम्मा है और गोत्र रत्नप्रभा
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१२

उद्देशक-४ पुदगल Hindi 538 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासीदो भंते! परमाणुपोग्गला एगयओ साहण्णंति, साहण्णित्ता किं भवइ? गोयमा! दुप्पएसिए खंधे भवइ से भिज्जमाणे दुहा कज्जइएगयओ परमाणुपोग्गले, एगयओ परमाणुपोग्गले भवइ तिन्नि भंते! परमाणुपोग्गला एगयओ साहण्णंति, साहणित्ता किं भवइ? गोयमा! तिपएसिए खंधे भवइ से भिज्जमाणे दुहा वि तिहा वि कज्जइदुहा कज्जमाणे एगयओ परमाणुपोग्गले, एगयओ दुपएसिए खंधे भवइ तिहा कज्जमाणे तिन्नि परमाणुपोग्गला भवंति चत्तारि भंते! परमाणुपोग्गला एगयओ साहण्णंति, साहणित्ता किं भवइ? गोयमा! चउपएसिए खंधे भवइ से भिज्जमाणे दुहा वि तिहा वि चउहा वि कज्जइदुहा कज्जमाणे एगयओ परमाणुपोग्गले,

Translated Sutra: राजगृह नगर में, यावत्‌ गौतमस्वामी ने पूछा भगवन्‌ ! दो परमाणु जब संयुक्त होकर एकत्र होते हैं, तब उनका क्या होता है ? गौतम ! द्विप्रदेशिक स्कन्ध बन जाता है यदि उसका भेदन हो तो दो विभाग होने पर एक ओर एक परमाणु पुद्‌गल और दूसरी ओर भी एक परमाणु पुद्‌गल हो जाता है भगवन्‌ ! जब तीन परमाणु एक रूप में इकट्ठे होते हैं,
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१२

उद्देशक-४ पुदगल Hindi 539 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एएसि णं भंते! परमाणुपोग्गलाणं साहणणा-भेदानुवाएणं अनंतानंता पोग्गलपरियट्टा समनुगंतव्वा भवंतीति मक्खाया? हंता गोयमा! एएसि णं परमाणुपोग्गलाणं साहणणा भेदाणुवाएणं अनंतानंता पोग्गलपरियट्टा समनुगंतव्वा भवंतीति मक्खाया कइविहे णं भंते! पोग्गलपरियट्टे पन्नत्ते? गोयमा! सत्तविहे पोग्गलपरियट्टे पन्नत्ते, तं जहा ओरालियपोग्गलपरियट्टे, वेउव्वियपोग्गल-परियट्टे, तेयापोग्गलपरियट्टे, कम्मापोग्गलपरियट्टे, मणपोग्गलपरियट्टे, वइपोग्गलपरियट्टे, आणापाणु-पोग्गल-परियट्टे नेरइयाणं भंते! कतिविहे पोग्गलपरियट्टे पन्नत्ते? गोयमा! सत्तविहे पोग्गलपरियट्टे पन्नत्ते, तं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! इन परमाणु पुद्‌गलों के संघात और भेद के सम्बन्ध से होने वाले अनन्तानन्त पुद्‌गल परिवर्त्त जानने योग्य हैं, (क्या) इसीलिए इनका कथन किया है ? हाँ, गौतम ! ये जानने योग्य हैं, इसीलिए ये कहे गए हैं भगवन्‌ ! पुद्‌गल परिवर्त्त कितने प्रकार का है ? गौतम ! सात प्रकार का, यथा औदारिक पुद्‌गलपरिवर्त्त, वैक्रिय
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१२

उद्देशक-४ पुदगल Hindi 540 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइओरालियपोग्गलपरियट्टे-ओरालियपोग्गलपरियट्टे? गोयमा! जण्णं जीवेणं ओरालियसरीरे वट्टमाणेणं ओरालियसरीरपायोग्गाइं दव्वाइं ओरालिय -सरीरत्ताए गहियाइं बद्धाइं पुट्ठाइं कडाइं पट्ठवियाइं निविट्ठाइं अभिनिविट्ठाइं अभिसमण्णागयाइं परियादियाइं परिणामियाइं निज्जिण्णाइं निसिरियाइं निसिट्ठाइं भवंति से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइओरालियपोग्गलपरियट्टे-ओरालियपोग्गलपरियट्टे एवं वेउव्वियपोग्गलपरियट्टेवि, नवरंवेउव्वियसरीरे वट्टमाणेणं वेउव्वियसरीरप्पायोग्गाइं दव्वाइं वेउव्वियसरीरत्ताए गहियाइं, सेसं तं चेव सव्वं, एवं जाव आणापाणुपोग्गलपरियट्टे,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! यह औदारिक पुद्‌गलपरिवर्त्त, औदारिक पुद्‌गलपरिवर्त्त किसलिए कहा जाता है ? गौतम ! औदारिकशरीर में रहते हुए जीव ने औदारिकशरीर योग्य द्रव्यों को औदारिकशरीर के रूप में ग्रहण किए हैं, बद्ध किए हैं, स्पृष्ट किए हैं; उन्हें (पूर्वपरिणामापेक्षया परिणामान्तर) किया है; उन्हें प्रस्थापित किया है; स्थापित किए
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१२

उद्देशक-४ पुदगल Hindi 541 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एएसि णं भंते! ओरालियपोग्गलपरियट्टाणं जाव आणापाणुपोग्गलपरियट्टाण कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा? बहुया वा? तुल्ला वा? विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा वेउव्वियपोग्गलपरियट्टा, वइपोग्गलपरियट्टा अनंतगुणा, मनपोग्गल-परियट्टा अनंतगुणा, आणापाणुपोग्गलपरियट्टा अनंतगुणा, ओरालियपोग्गलपरियट्टा अनंतगुणा, तेयापोग्गलपरियट्टा अनंतगुणा, कम्मगपोग्गलपरियट्टा अनंतगुणा सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति भगवं जाव विहरइ

Translated Sutra: भगवन्‌ ! औदारिक पुद्‌गलपरिवर्त्त (से लेकर), आन प्राण पुद्‌गलपरिवर्त्त में कौन पुद्‌गलपरिवर्त्त किससे अल्प यावत्‌ विशेषाधिक है ? गौतम ! सबसे थोड़े वैक्रिय पुद्‌गलपरिवर्त्त हैं उनसे वचन पुद्‌गलपरिवर्त्त अनन्त गुणे होते हैं, उनसे मनः पुद्‌गलपरिवर्त्त अनन्तगुणे हैं, उनसे आन प्राण पुद्‌गलपरिवर्त्त
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१२

उद्देशक-५ अतिपात Hindi 542 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासीअहं भंते! पाणाइवाए, मुसावाए, अदिन्नादाने, मेहुणे, परिग्गहेएस णं कतिवण्णे, कतिगंधे, कतिरसे, कतिफासे पन्नत्ते? गोयमा! पंचवण्णे, दुगंधे, पंचरसे, चउफासे पन्नत्ते अह भंते! कोहे, कोवे, रोसे, दोसे, अखमा, संजलणे, कलहे, चंडिक्के, भंडणे, विवादेएस णं कतिवण्णे जाव कतिफासे पन्नत्ते? गोयमा! पंचवण्णे, दुगंधे, पंचरसे, चउफासे पन्नत्ते अह भंते! माने, मदे, दप्पे, थंभे, गव्वे, अत्तुक्कोसे, परपरिवाए, उक्कोसे, अवक्कोसे, उन्नते, उन्नामे, दुन्नामे एस णं कतिवण्णे जाव कतिफासे पन्नत्ते? गोयमा! पंचवण्णे, दुगंधे, पंचरसे, चउफासे, पन्नत्ते अह भंते! माया, उवही, नियडी, वलए, गहणे,

Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत्‌ गौतमस्वामी ने इस प्रकार पूछा भगवन्‌ ! प्राणातिपात, मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन और परिग्रह; ये कितने वर्ण, कितने गन्ध, कितने रस और स्पर्श वाले कहे हैं ? गौतम ! (ये) पाँच वर्ण, दो गन्ध, पाँच रस और चार स्पर्श वाले कहे हैं भगवन्‌ ! क्रोध, कोप, रोष, द्वेष, अक्षमा, संज्वलन, कलह, चाण्डिक्य, भण्डन और विवाद
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१२

उद्देशक-५ अतिपात Hindi 543 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! पाणाइवायवेरमणे, जाव परिग्गहवेरमणे, कोहविवेगे जाव मिच्छादंसणसल्लविवेगेएस णं कतिवण्णे जाव कतिफासे पन्नत्ते? गोयमा! अवण्णे, अगंधे, अरसे, अफासे पन्नत्ते अह भंते! उप्पत्तिया, वेणइया, कम्मया, पारिणामियाएस णं कतिवण्णा जाव कतिफासा पन्नत्ता? गोयमा! अवण्णा, अगंधा, अरसा, अफासा पन्नत्ता अह भंते! ओग्गहे, ईहा, अवाए, धारणाएस णं कतिवण्णा जाव कतिफासा पन्नत्ता? गोयमा! अवण्णा, अगंधा, अरसा, अफासा पन्नत्ता अह भंते! उट्ठाणे, कम्मे, बले, वीरिए, पुरिसक्कार-परक्कमेएस णं कतिवण्णे जाव कति फासे पन्नत्ते? गोयमा! अवण्णे, अगंधे, अरसे, अफासे पन्नत्ते सत्तमे णं भंते! ओवासंतरे कतिवण्णे

Translated Sutra: भगवन्‌ ! प्राणातिपात विरमण यावत्‌ परिग्रह विरमण तथा क्रोधविवेक यावत्‌ मिथ्यादर्शनशल्यविवेक, इन सबमें कितने वर्ण, कितने गन्ध, कितने रस और कितने स्पर्श कहे हैं ? गौतम ! (ये सभी) वर्णरहित, गन्धरहित, रसरहित और स्पर्शरहित कहे हैं भगवन्‌ ! औत्पत्तिकी, वैनयिकी, कार्मिकी और पारिणामिकी बुद्धि कितने वर्ण, गन्ध, रस
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१२

उद्देशक-५ अतिपात Hindi 544 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! गब्भं वक्कममाणे कतिवण्णं, कतिगंधं, कतिरसं, कतिफासं परिणामं परिणमइ? गोयमा! पंचवण्णं, दुगंधं, पंचरसं, अट्ठफासं परिणामं परिणमइ

Translated Sutra: भगवन्‌ ! गर्भ में उत्पन्न होता हुआ जीव, कितने वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श वाला होता है ? गौतम ! पाँच वर्ण, दो गन्ध, पाँच रस और आठ स्पर्श वाले परिणाम से परिणत होता है
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१२

उद्देशक-५ अतिपात Hindi 545 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कम्मओ णं भंते! जीवे नो अकम्मओ विभत्तिभावं परिणमइ? कम्मओ णं जए नो अकम्मओ विभत्तिभावं परिणमइ? हंता गोयमा! कम्मओ णं जीवे नो अकम्मओ विभत्तिभावं परिणमइ, कम्मओ णं जए नो अकम्मओ विभत्तिभावंपरिणमइ सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या जीव कर्मों से ही मनुष्य तिर्यञ्च आदि विविध रूपों को प्राप्त होता है, कर्मों के बिना नहीं ? तथा क्या जगत्‌ कर्मों से विविध रूपों को प्राप्त होता है, विना कर्मों के प्राप्त नहीं होता ? हाँ, गौतम ! कर्म से जीव और जगत विविध रूपों को प्राप्त होता है, किन्तु कर्म के विना प्राप्त नहीं होते हे भगवन्‌ ! यह
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१२

उद्देशक-५ अतिपात Hindi 546 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासीबहुजण णं भंते! अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ जाव एवं परूवेइएवं खलु राहू चंदं गेण्हति, एवं खलु राहू चंदं गेण्हति से कहमेयं भंते! एवं? गोयमा! जण्णं से बहुजणे अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ जाव जे ते एवमाहंसु मिच्छं ते एवमाहंसु, अहं पुण गोयमा! एवमाइक्खामि जाव एवं परूवेमिएवं खलु राहू देवे महिड्ढीए जाव महेसक्खे वरवत्थधरे वरमल्लधरे वरगंधधरे वराभरणधारी राहुस्स णं देवस्स नव नामधेज्जा पन्नत्ता, तं जहासिंघाडए जडिलए खत्तए खरए दद्दुरे मगरे मच्छे कच्छभे कण्हसप्पे राहुस्स णं देवस्स विमाना पंचवण्णा पन्नत्ता, तं जहाकिण्हा, नीला, लोहिया, हालिद्दा, सुक्किला

Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत्‌ गौतम स्वामी ने प्रश्न किया भगवन्‌ ! बहुत से मनुष्य परस्पर इस प्रकार कहते हैं, यावत्‌ इस प्रकार प्ररूपणा करते हैं कि निश्चित ही राहु चन्द्रमा को ग्रस लेता है, तो हे भगवन्‌ ! क्या यह ऐसा ही है? गौतम ! यह जो बहुत से लोग परस्पर इस प्रकार कहते हैं, वे मिथ्या कहते हैं मैं इस प्रकार कहता हूँ, यावत्‌
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१२

उद्देशक-५ अतिपात Hindi 547 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइचंदे ससी, चंदे ससी? गोयमा! चंदस्स णं जोइसिंदस्स जोइसरन्नो मियंके विमाने कंता देवा, कंताओ देवीओ, कंताइं आसन-सयन-खंभ-भंडम-त्तोवगरणाइं, अप्पणा वि णं चंदे जोइसिंदे जोइसराया सोमे कंते सुभए पियदंसणे सुरूवे से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइचंदे ससी, चंदे ससी

Translated Sutra: भगवन्‌ ! चन्द्रमा को चन्द्र शशी है, ऐसा क्यों कहा जाता है ? गौतम ! ज्योतिषियों के इन्द्र, ज्योतिषियों के राजा चन्द्र का विमान मृगांक है, उसमें कान्त देव तथा कान्ता देवियाँ हैं और आसन, शयन, स्तम्भ, भाण्ड, पात्र आदि उपकरण (भी) कान्त हैं स्वयं ज्योतिष्कों का इन्द्र, ज्योतिष्कों का राजा चन्द्र भी सौम्य, कान्त, सुभग,
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१२

उद्देशक-५ अतिपात Hindi 548 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइसूरे आदिच्चे, सूरे आदिच्चे? गोयमा! सूरादिया णं समया वा आवलिया वा जाव ओसप्पिणी वा उस्सप्पिणी वा से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइसूरे आदिच्चे, सूरे आदिच्चे

Translated Sutra: देखो सूत्र ५४७
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१२

उद्देशक-५ अतिपात Hindi 549 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चंदस्स णं भंते! जोइसिंदस्स जोइसरन्नो कति अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ? जहा दसमसए जाव नो चेव णं मेहुणवत्तियं सूरस्स वि तहेव चंदिम-सूरिया णं भंते! जोइसिंदा जोइसरायाणो केरिसए कामभोगे पच्चणुब्भवमाणा विहरंति? गोयमा! से जहानामए केइ पुरिसे पढमजोव्वणुट्ठाणबलत्थे पढमजोव्वणुट्ठाणबलत्थाए भारियाए सद्धिं अचिरवत्तविवाहकज्जे अत्थगवेसणयाए सोलसवासविप्पवासिए, से णं तओ लद्धट्ठे कयकज्जे अणहसमग्गे पुनरवि नियगं गिहं हव्वमागए, ण्हाए कयबलिकम्मे कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ते सव्वालंकारविभूसिए मणुण्णं थालिपागसुद्धं अट्ठारसवंजणाकुलं भोयणं भूत्ते समाणे तंसि तारिसगंसि वासघरंसि

Translated Sutra: भगवन्‌ ! ज्योतिष्कों के इन्द्र, ज्योतिष्कों के राजा चन्द्र की कितनी अग्रमहिषियाँ हैं ? गौतम ! दशवें शतक अनुसार राजधानी में सिंहासन पर मैथुन निमित्तक भोग भोगने में समर्थ नहीं है, यहाँ तक कहना सूर्य के सम्बन्ध में भी इसी प्रकार कहना भगवन्‌ ! ज्योतिष्कों के इन्द्र, ज्योतिष्कों के राजा चन्द्र और सूर्य किस प्रकार
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१२

उद्देशक-६ राहु;उद्देशक-७ लोक Hindi 550 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं जाव एवं वयासीकेमहालए णं भंते! लोए पन्नत्ते? गोयमा! महतिमहालए लोए पन्नत्तेपुरत्थिमेणं असंखेज्जाओ जोयणकोडाकोडीओ, दाहिणेणं असंखेज्जाओ जोयणकोडा-कोडीओ, एवं पच्चत्थिमेण वि, एवं उत्तरेण वि, एवं उड्ढं पि, अहे असंखेज्जाओ जोयणकोडाकोडीओ आयाम-विक्खंभेणं एयंसि णं भंते! एमहालगंसि लोगंसि अत्थि केइ परमाणुपोग्गलमेत्ते वि पएसे, जत्थ णं अयं जीवे जाए वा, मए वा वि? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइएयंसि णं एमहालगंसि लोगंसि नत्थि केइ परमाणुपोग्गलमेत्ते वि पएसे, जत्थ णं अयं जीवे जाए वा, मए वा वि? गोयमा! से जहानामए केइ पुरिसे अया-सयस्स

Translated Sutra: उस काल और उस समय में यावत्‌ गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान महावीर से प्रश्न किया भगवन्‌ ! लोक कितना बड़ा है ? गौतम ! लोक महातिमहान है पूर्वदिशा में असंख्येय कोटा कोटि योजन है इसी प्रकार दक्षिण, पश्चिम, उत्तर एवं ऊर्ध्व तथा अधोदिशा में भी असंख्येय कोटा कोटि योजन आयाम विष्कम्भ वाला है भगवन्‌ ! इतने बड़े लोक
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१२

उद्देशक-६ राहु;उद्देशक-७ लोक Hindi 551 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! पुढवीओ पन्नत्ताओ? गोयमा! सत्त पुढवीओ पन्नत्ताओ, जहा पढमसए पंचमउद्देसए तहेव आवासा ठावेयव्वा जाव अनुत्तरविमानेत्ति जाव अप-राजिए सव्वट्ठसिद्धे अयन्नं भंते! जीवे इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु एगमेगंसि निरयावासंसि पुढवि-काइयत्ताए जाव वणस्सइकाइयत्ताए, नरगत्ताए, नेरइयत्ताए उववन्नपुव्वे? हंता गोयमा! असइं, अदुवा अनंतखुत्तो सव्वजीवा वि णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु एगमेगंसि निरयावासंसि पुढविकाइयत्ताए जाव वणस्सइकाइयत्ताए, नरगत्ताए, नेरइयत्ताए उववन्नपुव्वे? हंता गोयमा! असइं, अदुवा अनंतखुत्तो अयन्नं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! पृथ्वीयाँ कितनी हैं ? गौतम ! सात हैं प्रथम शतक के पञ्चम उद्देशक अनुसार (यहाँ भी) नरकादि के आवासों को कहना यावत्‌ अनुत्तर विमान यावत्‌ अपराजित और सर्वार्थसिद्ध तक इसी प्रकार कहना भगवन्‌ ! क्या यह जीव, इस रत्नप्रभापृथ्वी के तीस लाख नरकावासों में से प्रत्येक नरकावास में पृथ्वी कायिकरूप से यावत्‌
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१२

उद्देशक-८ नाग Hindi 552 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं जाव एवं वयासीदेवे णं भंते! महिड्ढीए जाव महेसक्खे अनंतरं चयं चइत्ता बिसरीरेसु नागेसु उववज्जेज्जा? हंता उववज्जेज्जा से णं तत्थ अच्चिय-वंदिय-पूइय-सक्कारिय-सम्माणिए दिव्वे सच्चे सच्चोवाए सन्निहिय-पाडिहेरे यावि भवेज्जा? हंता भवेज्जा से णं भंते! तओहिंतो अनंतरं उव्वट्टित्ता सिज्झेज्जा जाव सव्वदुक्खाणं अंतं करेज्जा? हंता सिज्झेज्जा जाव सव्वदुक्खाणं अंतं करेज्जा देवे णं भंते! महिड्ढीए जाव महेसक्खे अनंतरं चयं चइत्ता बिसरीरेसु मणीसु उववज्जेज्जा? हंता उववज्जेज्जा एवं चेव जहा नागाणं देवे णं भंते! महिड्ढीए जाव महेसक्खे अनंतरं चयं चइत्ता

Translated Sutra: उस काल और उस समय में गौतम स्वामी ने यावत्‌ पूछा भगवन्‌ ! महर्द्धिक यावत्‌ महासुख वाला देव च्यव कर क्या द्विशरीरी नागों में उत्पन्न होता है ? हाँ, गौतम ! होता है भगवन्‌ ! वह वहाँ नाग के भव में अर्चित, वन्दित, पूजित, सत्कारित, सम्मानित, दिव्य, प्रधान, सत्य, सत्यावपातरूप अथवा सन्निहित प्रतिहारक भी होता है? हाँ, गौतम
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१२

उद्देशक-८ नाग Hindi 553 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! गोनंगूलवसभे, कुक्कुडवसभे, मंडुक्कवसभेएए णं निस्सीला निव्वया निग्गुणा निम्मेरा निप्पच्चक्खाण-पोसहोववासा कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उक्कोसं सागरोवमट्ठितीयंसि नरगंसि नेरइयत्ताए उववज्जेज्जा? समणे भगवं महावीरे वागरेइउववज्जमाणे उववन्ने त्ति वत्तव्वं सिया अह भंते! सीहे वग्घे, वगे, दीविए अच्छे, तरच्छे, परस्सरेएए णं निस्सीला निव्वया निग्गुणा निम्मेरा निप्प-च्चक्खाण-पोसहोववासा कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उक्कोसं सागरोवमट्ठितीयंसि नरगंसि नेरइयत्ताए उववज्जेज्जा? समणे भगवं महावीरे वागरेइउववज्जमाणे उववन्ने त्ति

Translated Sutra: भगवन्‌ ! यदि वानरवृषभ, बड़ा मूर्गा एवं मण्डूकवृषभ, बड़ा मेंढक ये सभी निःशील, व्रतरहित, गुणरहित, मर्यादा रहित तथा प्रत्याख्यान पौषधोपवासरहित हों, तो मृत्यु को प्राप्त हो (क्या) इस रत्नप्रभापृथ्वी में उत्कृष्ट सागरोपम की स्थिति वाले नरक में नैरयिक के रूप में उत्पन्न होते हैं ? (हाँ, गौतम ! होते हैं;) क्योंकि उत्पन्न
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१२

उद्देशक-९ देव Hindi 554 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहा णं भंते! देवा पन्नत्ता? गोयमा! पंचविहा देवा पन्नत्ता, तं जहाभवियदव्वदेवा, नरदेवा, धम्मदेवा, देवातिदेवा, भावदेवा से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइभवियदव्वदेवा-भवियदव्वदेवा? गोयमा! जे भविए पंचिंदियतिरिक्खजोणिए वा मनुस्से वा देवेसु उववज्जित्तए से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइभवियदव्वदेवा-भवियदव्वदेवा से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइनरदेवा-नरदेवा? गोयमा! जे इमे रायाणो चाउरंतचक्कवट्टी उप्पन्नसमत्तचक्करयणप्पहाणा नवनिहिपइणो समिद्ध-कीसा बत्तीसरायवरसहस्साणु-यातमग्गा सागरवरमेहलाहिवइणो मणुस्सिंदा से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइनरदेवा-नरदेवा से

Translated Sutra: भगवन्‌ ! देव कितने प्रकार के कहे गए हैं ? गौतम ! देव पाँच प्रकार के कहे गए हैं, यथा भव्यद्रव्यदेव, नरदेव, धर्मदेव, देवाधिदेव, भावदेव भगवन्‌ ! भव्यद्रव्यदेव, भव्यद्रव्यदेव किस कारण से कहलाते हैं ? गौतम ! जो पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक अथवा मनुष्य, देवों में उत्पन्न होने योग्य हैं, वे भविष्य में भावीदेव होने के
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१२

उद्देशक-९ देव Hindi 555 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भवियदव्वदेवा णं भंते! कओहिंतो उववज्जंतिकिं नेरइएहिंतो उववज्जंति? तिरिक्ख-मनुस्स-देवेहिंतो उववज्जंति? गोयमा! नेरइएहिंतो उववज्जंति, तिरिक्ख-मनुस्स-देवेहिंतो वि उववज्जंति भेदो जहा वक्कंतीए सव्वेसु उववाएयव्वा जाव अनुत्तरोववाइय त्ति, नवरं असंखेज्जवासाउय-अकम्मभूमगअंतर-दीवगसव्वट्ठसिद्धवज्जं जाव अपराजियदेवेहिंतो वि उववज्जंति नरदेवा णं भंते! कओहिंतो उववज्जंतिकिं नेरइएहिंतोपुच्छा गोयमा! नेरइएहिंतो उववज्जंति, नो तिरिक्खजोणिएहिंतो, नो मनुस्सेहिंतो, देवेहिंतो वि उववज्जंति जइ नेरइएहिंतो उववज्जंतिकिं रयणप्पभापुढविनेरइएहिंतो उववज्जंति जाव अहेसत्तमा-पुढवि-नेरइएहिंतो

Translated Sutra: भगवन्‌ ! भव्यद्रव्यदेव किनमें से (आकर) उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों में से उत्पन्न होते हैं, या तिर्यञ्च, मनुष्य अथवा देवों में से (आकर) उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे नैरयिकों में से (आकर) उत्पन्न होते हैं, तथा तिर्यञ्च, मनुष्य या देवों में से भी उत्पन्न होते हैं व्युत्क्रान्ति पद अनुसार भेद कहना चाहिए इन
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१२

उद्देशक-९ देव Hindi 556 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भवियदव्वदेवाणं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं नरदेवाणंपुच्छा गोयमा! जहन्नेणं सत्त वाससयाइं, उक्कोसेणं चउरासीइं पुव्वसयसहस्साइं धम्मदेवाणंपुच्छा गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी देवातिदेवाणंपुच्छा गोयमा! जहन्नेणं बावत्तरिं वासाइं, उक्कोसेणं चउरासीइं पुव्वसयसहस्साइं भावदेवाणंपुच्छा गोयमा! जहन्नेणं दस वाससहस्साइं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! भव्यद्रव्यदेवों की स्थिति कितने काल की कही है ? गौतम ! जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त्त की है और उत्कृष्टतः तीन पल्योपम की है भगवन्‌ ! नरदेवों की स्थिति कितने काल की है ? गौतम ! जघन्य ७०० वर्ष, उत्कृष्ट ८४लाख पूर्व है भगवन्‌ ! धर्मदेवों की स्थिति कितने काल की है ? गौतम ! जघन्य अन्त मुहूर्त्त की और उत्कृष्ट देशोन
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१२

उद्देशक-९ देव Hindi 557 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भवियदव्वदेवा णं भंते! किं एगत्तं पभू विउव्वित्तए? पुहत्तं पभू विउव्वित्तए? गोयमा! एगत्तं पि पभू विउव्वित्तए, पुहत्तं पि पभू विउव्वित्तए एगत्तं विउव्वमाणे एगिंदिय-रूवं वा जाव पंचिंदियरूवं वा, पुहत्तं विउव्वमाणे एगिंदियरूवाणि वा जाव पंचिंदियरूवाणि वा, ताइं संखेज्जाणि वा असंखेज्जाणि वा, संबद्धाणि वा असंबद्धाणि वा, सरिसाणि वा असरिसाणि वा विउव्वंति, विउव्वित्ता तओ पच्छा जहिच्छियाइं कज्जाइं करेंति एवं नरदेवा वि, एवं धम्मदेवा वि देवातिदेवाणंपुच्छा गोयमा! एगत्तं पि पभू विउव्वित्तए, पुहत्तं पि पभू विउव्वित्तए, नो चेव णं संपतीए विउव्विंसु वा, विउव्वंति वा,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या भव्यदेव एक रूप की अथवा अनेक रूपों की विकुर्वणा करने में समर्थ हैं ? गौतम ! वह एक रूप की और अनेक रूपों की विकुर्वणा करने में भी समर्थ हैं एक रूप की विकुर्वणा करता हुआ वह एक एकेन्द्रिय रूप यावत्‌ अथवा एक पंचेन्द्रिय रूप की और अनेक रूपों की विकुर्वणा करता हुआ अनेक एकेन्द्रिय रूपों यावत्‌ अथवा अनेक
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१२

उद्देशक-९ देव Hindi 558 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भवियदव्वदेवा णं भंते! अनंतरं उव्वट्टित्ता कहिं गच्छंति? कहिं उवज्जंतिकिं नेरइएसु उववज्जंति जाव देवेसु उववज्जंति? गोयमा! नो नेरइएसु उववज्जंति, नो तिरिक्खजोणिएसु, नो मनुस्सेसु, देवेसु उववज्जंति जइ देवेसु उववज्जंति? सव्वदेवेसु उववज्जंति जाव सव्वट्ठसिद्धत्ति नरदेवा णं भंते! अनंतरं उव्वट्टित्तापुच्छा गोयमा! नेरइएसु उववज्जंति, नो तिरिक्खजोणिएसु, नो मनुस्सेसु, नो देवेसु उववज्जंति जइ नेरइएसु उववज्जंति? सत्तसु वि पुढवीसु उववज्जंति धम्मदेवा णं भंते! अनंतरं उव्वट्टित्तापुच्छा गोयमा! नो नेरइएसु उववज्जंति, नो तिरिक्खजोणिएसु, नो मनुस्सेसु, देवेसु उववज्जंति जइ

Translated Sutra: भगवन्‌ ! भव्यद्रव्यदेव मरकर तुरन्त कहाँ जाते हैं, कहाँ उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों में उत्पन्न होते हैं, यावत्‌ अथवा देवों में उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! तो नैरयिकों में उत्पन्न होते हैं, तिर्यञ्चों में और मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं, किन्तु (एकमात्र) देवों में उत्पन्न होते हैं यदि (वे) देवों में
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१२

उद्देशक-९ देव Hindi 559 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एएसि णं भंते! भवियदव्वदेवाणं, नरदेवाणं, धम्मदेवाणं, देवातिदेवाणं, भावदेवाण कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा? बहुया वा? तुल्ला वा? विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा नरदेवा, देवातिदेवा संखेज्जगुणा, धम्मदेवा संखेज्जगुणा, भवियदव्वदेवा असंखेज्जगुणा, भावदेवा असं-खेज्जगुणा एएसि णं भंते! भावदेवाणं भवनवासीणं, वाणमंतराणं, जोइसियाणं, वेमाणियाणंसोहम्मगाणं जाव अच्चुयगाणं, गेवेज्जगाणं, अनुत्तरोववाइयाण कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा? बहुया वा? तुल्ला वा? विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा अनुत्तरोववाइया भावदेवा, उवरिमगेवेज्जा भावदेवा संखेज्जगुणा, मज्झिम-गेवेज्जा संखेज्जगुणा, हेट्ठिमगेवेज्जा

Translated Sutra: भगवन्‌ ! भवनवासी, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक, तथा वैमानिकों में भी सौधर्म, ईशान, यावत्‌ अच्युत, ग्रैवेयक एवं अनुत्तरोपपातिक विमानों तक के भावदेवों में कौन (देव) किस (देव) से अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक है ? गौतम ! सबसे थोड़े अनुत्तरोपपातिक भावदेव हैं, उनसे उपरिम ग्रैवेयक के भावदेव संख्यातगुण अधिक हैं,
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१२

उद्देशक-१० आत्मा Hindi 560 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहा णं भंते! आया पन्नत्ता? गोयमा! अट्ठविहा आया पन्नत्ता, तं जहादवियाया, कसायाया, जोगाया, उवओगाया, नाणाया, दंसणाया, चरित्ताया, वीरियाया जस्स णं भंते! दवियाया तस्स कसायाया? जस्स कसायाया तस्स दवियाया? गोयमा! जस्स दवियाया तस्स कसायाया सिय अत्थि सिय नत्थि, जस्स पुण कसायाया तस्स दवियाया नियमं अत्थि जस्स णं भंते! दवियाया तस्स जोगाया? जस्स जोगाया तस्स दवियाया? गोयमा! जस्स दवियाया तस्स जोगाया सिय अत्थि सिय नत्थि, जस्स पुण जोगाया तस्स दवियाया नियमं अत्थि जस्स णं भंते! दवियाया तस्स उवओगाया? जस्स उवओगाया तस्स दवियाया? एवं सव्वत्थ पुच्छा भाणियव्वा गोयमा! जस्स दवियाया

Translated Sutra: भगवन्‌ ! आत्मा कितने प्रकार की कही गई है ? गौतम ! आत्मा आठ प्रकार की कही गई है, वह इस प्रकार द्रव्यात्मा, कषायात्मा, योग आत्मा, उपयोग आत्मा, ज्ञान आत्मा, दर्शन आत्मा, चारित्र आत्मा और वीर्यात्मा भगवन्‌ ! जिसके द्रव्यात्मा होती है, क्या उसके कषायात्मा होती है और जिसके कषायात्मा होती है, उसके द्रव्यात्मा
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१२

उद्देशक-१० आत्मा Hindi 561 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आया भंते! नाणे? अन्ने नाणे? गोयमा! आया सिय नाणे सिय अन्नाणे, नाणे पुण नियमं आया आया भंते! नेरइयाणं नाणे? अन्ने नेरइयाणं नाणे? गोयमा! आया नेरइयाणं सिय नाणे, सिय अन्नाणे नाणे पुण से नियमं आया एवं जाव थणियकुमाराणं आया भंते! पुढविकाइयाणं अन्नाणे? अन्ने पुढविकाइयाणं अन्नाणे? गोयमा! आया पुढविकाइयाणं नियमं अन्नाणे, अन्नाणे वि नियमं आया एवं जाव वणस्सइकाइयाणं बेइंदिय-तेइंदियाणं जाव वेमाणियाणं जहा नेरइयाणं आया भंते! दंसणे? अन्ने दंसणे? गोयमा! आया नियमं दंसणे, दंसणे वि नियमं आया आया भंते! नेरइयाणं दंसणे? अन्ने नेरइयाणं दंसणे? गोयमा! आया नेरइयाणं नियमं दंसणे, दंसणे वि

Translated Sutra: भगवन्‌ ! आत्मा ज्ञानस्वरूप है या अज्ञानस्वरूप है ? गौतम ! आत्मा कदाचित्‌ ज्ञानरूप है, कदाचित्‌ अज्ञानरूप है (किन्तु) ज्ञान तो नियम से आत्मस्वरूप है भगवन्‌ ! नैरयिकों की आत्मा ज्ञानरूप है अथवा अज्ञानरूप है ? गौतम ! कथञ्चित्‌ ज्ञानरूप है और कथञ्चित्‌ अज्ञानरूप है किन्तु उनका ज्ञान नियमतः आत्मरूप है इसी प्रकार
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१२

उद्देशक-१० आत्मा Hindi 562 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आया भंते! रयणप्पभा पुढवी? अन्ना रयणप्पभा पुढवी? गोयमा! रयणप्पभा पुढवी सिय आया, सिय नोआया, सिय अवत्तव्वंआयाति नोआयाति से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइरयणप्पभा पुढवी सिय आया, सिय नोआया, सिय अवत्तव्वंआयाति नोआयाति ? गोयमा! अप्पणो आदिट्ठे आया, परस्स आदिट्ठे नोआया, तदुभयस्स आदिट्ठे अवत्तव्वंरयणप्पभा पुढवी आयाति नोआयाति से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइरयणप्पभा पुढवी सिय आया, सिय नोआया, सिय अवत्तव्वंआयाति नोआयाति आया भंते! सक्करप्पभा पुढवी? जहा रयणप्पभा पुढवी तहा सक्करप्पभावि एवं जाव अहेसत्तमा आया भंते! सोहम्मे कप्पेपुच्छा गोयमा! सोहम्मे कप्पे

Translated Sutra: भगवन्‌ ! रत्नप्रभापृथ्वी आत्मरूप है या वह अन्यरूप है ? गौतम ! रत्नप्रभापृथ्वी कथंचित्‌ आत्मरूप है और कथंचित्‌ नोआत्मरूप है तथा कथंचित्‌ अवक्तव्य है भगवन्‌ ! किस कारण से आप ऐसा कहते हैं ? गौतम ! रत्नप्रभापृथ्वी अपने स्वरूप से व्यपदिष्ट होने पर आत्मरूप हैं, पररूप से आदिष्ट होने पर नो आत्मरूप है और उभयरूप की
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१३

उद्देशक-१ पृथ्वी Hindi 563 Gatha Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] . पुढवी . देव . मणंतर, . पुढवी . आहारमेव . उववाए . भासा ,. कम्मणगारे, केयाघडिया . समुग्घाए

Translated Sutra: तेरहवें शतक के दस उद्देशक इस प्रकार हैं पृथ्वी, देव, अनन्तर, पृथ्वी, आहार, उपपात, भाषा, कर्म, अनगार में केयाघटिका और समुद्‌घात
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१३

उद्देशक-१ पृथ्वी Hindi 564 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासीकति णं भंते! पुढवीओ पन्नत्ताओ? गोयमा! सत्त पुढवीओ पन्नत्ताओ, तं जहारयणप्पभा जाव अहेसत्तमा इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए केवतिया निरयावाससयसहस्सा पन्नत्ता? गोयमा! तीसं निरयावाससयसहस्सा पन्नत्ता ते णं भंते! किं संखेज्जवित्थडा? असंखेज्जवित्थडा? गोयमा! संखेज्जवित्थडा वि, असंखेज्जवित्थडा वि इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु संखेज्जवित्थडेसु नरएसु . एगसमएणं केवतिया नेरइया उववज्जंति? . केवतिया काउलेस्सा उववज्जंति? . केवतिया कण्हपक्खिया उववज्जंति? . केवतिया सुक्कपक्खिया उववज्जंति? . केवतिया सण्णी उववज्जंति?

Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत्‌ पूछा भगवन्‌ ! (नरक ) पृथ्वीयाँ कितनी हैं ? गौतम ! सात, यथा रत्नप्रभा यावत्‌ अधःसप्तम पृथ्वी भगवन्‌ ! इस रत्नप्रभापृथ्वी में कितने लाख नारकावास हैं ? गौतम ! तीस लाख भगवन्‌ ! वे नारकावास संख्येय (योजन) विस्तृत हैं या असंख्येय (योजन) विस्तृत हैं ? गौतम ! वे संख्येय (योजन) विस्तृत भी हैं और असंख्येय
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१३

उद्देशक-१ पृथ्वी Hindi 565 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु संखेज्जवित्थडेसु नरएसु किं सम्मद्दिट्ठी नेरइया उववज्जंति? मिच्छदिट्ठी नेरइया उववज्जंति? सम्मामिच्छदिट्ठी नेरइया उववज्जंति? गोयमा! सम्मदिट्ठी वि नेरइया उववज्जंति, मिच्छदिट्ठी वि नेरइया उववज्जंति, नो सम्मामिच्छदिट्ठी नेरइया उववज्जंति इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु संखेज्जवित्थडेसु नरएसु किं सम्मदिट्ठी नेरइया उव्वट्टंति? एवं चेव इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु संखेज्जवित्थडा नरगा किं सम्मद्दिट्ठीहिं नेरइएहिं अविरहिया? मिच्छदिट्ठीहिं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के तीस लाख नारकावासों में से संख्यात योजन विस्तार वाले नारकावासों में क्या सम्यग्दृष्टि नैरयिक उत्पन्न होते हैं, मिथ्यादृष्टि नैरयिक उत्पन्न होते हैं, अथवा सम्यग्‌मिथ्या (मिश्र) दृष्टि नैरयिक उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! सम्यग्दृष्टि नैरयिक भी उत्पन्न होते हैं, मिथ्यादृष्टि नैरयिक
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१३

उद्देशक-१ पृथ्वी Hindi 566 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से नूनं भंते! कण्हलेस्से, नीललेस्से जाव सुक्कलेस्से भवित्ता कण्हलेस्सेसु नेरइएसु उववज्जंति? हंता गोयमा! कण्हलेस्से जाव उववज्जंति से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइकण्हलेस्से जाव उववज्जंति? गोयमा! लेस्सट्ठाणेसु संकिलिस्समाणेसु-संकिलिस्समाणेसु कण्हलेसं परिणमइ, परिणमित्ता कण्हलेसेसु नेरइएसु उववज्जंति से तेणट्ठेणं जाव उववज्जंति से नूनं भंते! कण्हलेस्से जाव सुक्कलेस्से भवित्ता नीललेस्सेसु नेरइएसु उववज्जंति? हंता गोयमा! जाव उववज्जंति से केणट्ठेणं जाव उववज्जंति? गोयमा! लेस्सट्ठाणेसु संकिलिस्समाणेसु वा विसुज्झमाणेसु वा नीललेस्सं परिणमइ, परिणमित्ता नीललेस्सेसु

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या वास्तव में कृष्णलेश्यी, नीललेश्यी, यावत्‌ शुक्ललेश्यी बनकर (जीव पुनः) कृष्णलेश्यी नैरयिकों में उत्पन्न हो जाता है ? हाँ, गौतम ! हो जाता है भगवन्‌ ! ऐसा किस कारण से कहते हैं ? गौतम ! उसके लेश्यास्थान संक्लेश को प्राप्त होते होते कृष्णलेश्या के रूप में परिणत हो जाते हैं और कृष्णलेश्या के रूप में परिणत
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१३

उद्देशक-२ देव Hindi 567 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहा णं भंते! देवा पन्नत्ता? गोयमा! चउव्विहा देवा पन्नत्ता, तं जहाभवनवासी, वाणमंतरा, जोइसिया, वेमाणिया भवनवासी णं भंते! देवा कतिविहा पन्नत्ता? गोयमा! दसविहा पन्नत्ता, तं जहाअसुरकुमाराएवं भेओ जहा बितियसए देवुद्देसए जाव अपराजिया, सव्वट्ठसिद्धगा केवतिया णं भंते! असुरकुमारावाससयसहस्सा पन्नत्ता? गोयमा! चोयट्ठिं असुरकुमारावाससयसहस्सा पन्नत्ता ते णं भंते! किं संखेज्जवित्थडा? असंखेज्जवित्थडा? गोयमा! संखेज्जवित्थडा वि, असंखेज्जवित्थडा वि चोयट्ठीए णं भंते! असुरकुमारावाससयसहस्सेसु संखेज्जवित्थडेसु असुरकुमारावासेसु एग-समएणं केवतिया असुर-कुमारा उववज्जंति

Translated Sutra: भगवन्‌ ! देव कितने प्रकार के कहे गए हैं ? गौतम ! देव चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा भवनवासी, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक भगवन्‌ ! भवनवासी देव कितने प्रकार के कहे हैं ? गौतम ! दस प्रकार के यथा असुरकुमार यावत्‌ स्तनित कुमार इस प्रकार भवनवासी आदि देवों के भेदों का वर्णन द्वीतिय शतक के सप्तम देवोद्देशक के अनुसार
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१३

उद्देशक-३ नैरयिक Hindi 568 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइया णं भंते! अनंतराहारा, ततो निव्वत्तणया, एवं परियारणापद निरवसेसं भाणियव्वं सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या नैरयिक जीव अनन्तराहारी होते हैं इसके बाद निर्वर्त्तना करते हैं? इत्यादि प्रश्न (हाँ, गौतम!) वे इसी प्रकार से करते हैं (इसके उत्तरमें) प्रज्ञापना सूत्र का परिचारणापद समग्र कहना हे भगवन्‌ ! यह इसी प्रकार है
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१३

उद्देशक-४ पृथ्वी Hindi 569 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! पुढवीओ पन्नत्ताओ? गोयमा! सत्त पुढवीओ पन्नत्ताओ, तं जहारयणप्पभा जाव अहेसत्तमा अहेसत्तमाए णं भंते! पुढवीए पंच अनुत्तरा महतिमहालया महानिरया पन्नत्ता, तं जहाकाले, महाकाले, रोरुए, महारोरुए, अपइट्ठाणे ते णं नरगा छट्ठीए तमाए पुढवीए नरएहिंतो महत्तरा चेव, महावित्थिण्णतरा चेव, महोगासतरा चेव, महापइरिक्कतरा चेव, नो तहा महप्पवेसणतरा चेव, आइण्णतरा चेव, आउलतरा चेव, अनोमानतरा चेव तेसु णं नरएसु नेरइया छट्ठीए तमाए पुढवीए नेरइएहिंतो महाकम्मतरा चेव, महाकिरियत्तरा चेव, महासवतरा चेव, महावेदणतरा चेव, नो तहा अप्पक-म्मतरा चेव, अप्पकिरियतरा चेव, अप्पासवतरा चेव, अप्पवेदणतरा

Translated Sutra: भगवन्‌ ! नरकपृथ्वीयाँ कितनी हैं ? गौतम ! सात, यथा रत्नप्रभा यावत्‌ अधःसप्तमा पृथ्वी अधःसप्तमा पृथ्वी में पाँच अनुत्तर और महातिमहान्‌ नरकावास यावत्‌ अप्रतिष्ठान तक हैं वे नरकावास छठी तमःप्रभापृथ्वी के नरकावासों से महत्तर हैं, महाविस्तीर्णतर हैं, महान अवकाश वाले हैं, बहुत रिक्त स्थान वाले हैं; किन्तु
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१३

उद्देशक-४ पृथ्वी Hindi 570 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रयणप्पभापुढविनेरइया णं भंते! केरिसयं पुढविफासं पच्चणुब्भवमाणा विहरंति? गोयमा! अनिट्ठं जाव अमणामं एवं जाव अहेसत्तमपुढविनेरइया एवं आउफासं, एवं जाव वणस्सइफासं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! रत्नप्रभा के नैरयिक (वहाँ की) पृथ्वी के स्पर्श का कैसा अनुभव करते रहते हैं ? गौतम ! अनिष्ट यावत्‌ मन के प्रतिकूल स्पर्श का अनुभव करते रहते हैं इसी प्रकार यावत्‌ अधःसप्तमी पृथ्वी के नैरयिकों द्वारा पृथ्वीकाय के स्पर्शानुभव के विषय में कहना इसी प्रकार अप्कायिक के स्पर्श का (अनुभव करते हुए रहते हैं)
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१३

उद्देशक-४ पृथ्वी Hindi 571 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इमा णं भंते! रयणप्पभापुढवी दोच्चं सक्करप्पभं पुढविं पणिहाय सव्वमहंतिया बाहल्लेणं, सव्वखुड्डिया सव्वंतेसु? हंता गोयमा! इमा णं रयणप्पभापुढवी दोच्चं पुढविं पणिहाय जाव सव्वखुड्डिया सव्वंतेसु दोच्चा णं भंते! पुढवी तच्चं पुढविं पणिहाय सव्वमहंतिया बाहल्लेणंपुच्छा हंता गोयमा! दोच्चा णं पुढवी जाव सव्वखुड्डिया सव्वंतेसु एवं एएणं अभिलावेणं जाव छट्ठिया पुढवी अहेसत्तमं पुढविं पणिहाय जाव सव्वखुड्डिया सव्वंतेसु

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या यह रत्नप्रभापृथ्वी, द्वीतिय शर्कराप्रभापृथ्वी की अपेक्षा मोटाई में सबसे मोटी और चारों ओर सबसे छोटी है ? (हाँ, गौतम !) इसी प्रकार है (शेष सब वर्णन) जीवाभिगमसूत्र के दूसरे नैरयिक उद्देशक में (अनुसार कहना चाहिए)
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१३

उद्देशक-४ पृथ्वी Hindi 572 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए निरयपरिसामंतेसु जे पुढविक्काइया जाव वणस्सइकाइया तेणं जीवा महाकम्मतरा चेव, महाकिरियतरा चेव, महासवतरा चेव, महावेदनतरा चेव? हंता गोयमा! इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए निरयपरिसामंतेसु तं चेव जाव महावेदनतरा चेव एवं जाव अहेसत्तमा

Translated Sutra: भगवन्‌ ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नारकावासों के परिपार्श्व में जो पृथ्वीकायिक (यावत्‌ वनस्पतिकायिक जीव हैं, क्या वे महाकर्म, महाक्रिया, महा आश्रव और महावेदना वाले हैं ?) इत्यादि प्रश्न (हाँ, गौतम !) हैं, (इत्यादि पूर्ववत्‌)
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१३

उद्देशक-४ पृथ्वी Hindi 573 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! लोगस्स आयाममज्झे पन्नत्ते? गोयमा! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए ओवासंतरस्स असंखेज्जइभागं ओगाहेत्ता, एत्थ णं लोगस्स आयाममज्झे पन्नत्ते कहि णं भंते! अहेलोगस्स आयाममज्झे पन्नत्ते? गोयमा! चउत्थीए पंकप्पभाए पुढवीए ओवासंतरस्स सातिरेगं अद्धं ओगाहेत्ता, एत्थ णं अहेलोगस्स आयाममज्झे पन्नत्ते कहि णं भंते! उड्ढलोगस्स आयाममज्झे पन्नत्ते? गोयमा! उप्पिं सणंकुमार-माहिंदाणं कप्पाणं हेट्ठिं बंभलोए कप्पे रिट्ठविमाने पत्थडे, एत्थ णं उड्ढलोगस्स आयाममज्झे पन्नत्ते कहि णं भंते! तिरियलोगस्स आयाममज्झे पन्नत्ते? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स बहुमज्झदेसभाए

Translated Sutra: भगवन्‌ ! लोक के आयाम का (मध्यभाग) कहाँ कहा गया है ? गौतम ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के आकाश खण्ड के असंख्यातवे भाग का अवगाहन करने पर लोक की लम्बाई का मध्यभाग कहा गया है भगवन्‌ ! अधोलोक की लम्बाई का मध्यभाग कहाँ कहा गया है ? गौतम ! चौथी पंकप्रभापृथ्वी के आकाशखण्ड के कुछ अधिक अर्द्धभाग का उल्लंघन करने के बाद, अधोलोक की
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१३

उद्देशक-४ पृथ्वी Hindi 574 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इंदा णं भंते! दिसा किमादीया, किंपवहा, कतिपदेसादीया, कतिपदेसुत्तरा, कतिपदेसिया, किंपज्जवसिया, किंसंठिया पन्नत्ता? गोयमा! इंदा णं दिसा रुयगादीया, रुयगप्पवहा, दुपएसादीया, दुपएसुत्तरा, लोगं पडुच्च असंखेज्ज-पएसिया, अलोगं पडुच्च अनंतपएसिया, लोगं पडुच्च सादीया सपज्जवसिया, अलोगं पडुच्च सादीया अपज्जवसिया, लोगं पडुच्च मुरवसंठिया, अलोगं पडुच्च सगडुद्धिसंठिया पन्नत्ता अग्गेयी णं भंते! दिसा किमादीया, किंपवहा, कतिपएसादीया, कतिपएसवित्थिण्णा, कतिपएसिया, किंपज्जवसिया, किंसंठिया पन्नत्ता? गोयमा! अग्गेयी णं दिसा रुयगादीया, रुयगप्पवहा, एगपएसादीया, एगपएसवित्थिण्णाअनुत्तरा,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! इन्द्रा (पूर्व) दिशा के आदि में क्या है ? वह कहाँ से नीकली है ? उसके आदि में कितने प्रदेश हैं ? उत्तरोत्तर कितने प्रदेशों की वृद्धि होती है ? वह कितने प्रदेश वाली है ? उसका पर्यवसान कहाँ होता है ? और उसका संस्थान कैसा है ? गौतम ! ऐन्द्री दिशा के प्रारम्भ में रुचक प्रदेश है वह रुचक प्रदेशों से नीकली है उसके
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१३

उद्देशक-४ पृथ्वी Hindi 575 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] किमियं भंते! लोएत्ति पवुच्चइ? गोयमा! पंचत्थिकाया, एस णं एवतिए लोएत्ति पवुच्चइ, तं जहाधम्मत्थिकाए, अधम्मत्थिकाए आगासत्थिकाए, जीवत्थिकाए, पोग्गलत्थिकाए धम्मत्थिकाएणं भंते! जीवाणं किं पवत्तति? गोयमा! धम्मत्थिकाएणं जीवाणं आगमन</em>-गमन-भासुम्मेस-मनजोग-वइजोग-कायजोगा, जे यावण्णे तहप्पगारा चला भावा सव्वे ते धम्मत्थिकाए पवत्तंति गइलक्खणे णं धम्मत्थिकाए अधम्मत्थिकाएणं भंते! जीवाणं किं पवत्तति? गोयमा! अधम्मत्थिकाएणं जीवाणं ठाण-निसीयण-तुयट्टण, मणस्स एगत्तीभावकरणता, जे यावण्णे तहप्पगारा थिरा भावा सव्वे ते अधम्मत्थिकाए पवत्तंति ठाणलक्खणे णं अधम्मत्थिकाए आगासत्थिकाएणं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! यह लोक क्या कहलाता है लोक का स्वरूप क्या है ? गौतम ! पंचास्तिकायों का समूहरूप ही यह लोक कहलाता है वे पंचास्तिकाय इस प्रकार है धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, यावत्‌ पुद्‌गलास्तिकाय भगवन्‌ ! धर्मास्तिकाय से जीवों की क्या प्रवृत्ति होती है ? गौतम ! धर्मास्तिकाय से जीवों के आगमन</em>, गमन, भाषा, उन्मेष, मनोयोग,
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१३

उद्देशक-४ पृथ्वी Hindi 576 Gatha Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एगेण वि से पुण्णे, दोहि वि पुण्णे सयं पि माएज्जा कोडिसएण वि पुण्णे, कोडिसहस्सं पि माएज्जा

Translated Sutra: एक परमाणु से पूर्ण या दो परमाणुओं से पूर्ण (एक आकाशप्रदेश में) सौ परमाणु भी समा सकते हैं सौ करोड़ परमाणुओं से पूर्ण एक आकाशप्रदेश में एक हजार करोड़ परमाणु भी समा सकते हैं
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१३

उद्देशक-४ पृथ्वी Hindi 577 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अवगाहणालक्खणे णं आगासत्थिकाए जीवत्थिकाए णं भंते! जीवाणं किं पवत्तति? गोयमा! जीवत्थिकाएणं जीवे अनंताणं आभिनिबोहियनाणपज्जवाणं, अनंताणं सुयनाण-पज्जवाणं अनंताणं ओहिनाणपज्जवाणं, अनंताणं मनपज्जवनाणपज्जवाणं, अनंताणं केवलनाण -पज्जवाणं, अनंताणं मइअन्नाणपज्जवाणं, अनंताणं सुयअन्नाणपज्जवाणं, अनंताणं विभंगनाण- पज्जवाणं, अनंताणं चक्खुदंसणपज्जवाणं, अनंताणं अचक्खुदंसणपज्जवाणं, अनंताणं ओहि-दंसणपज्जवाणं, अनंताणं केवलदंसणपज्जवाणं उवयोगं गच्छति उवयोगलक्खणे णं जीवे पोग्गलत्थिकाए णं भंते! जीवाणं किं पवत्तति? गोयमा! पोग्गलत्थिकाएणं जीवाणं ओरालिय-वेउव्विय-आहारा-तेया

Translated Sutra: आकाशास्तिकाय का लक्षण अवगाहना रूप है भगवन्‌ ! जीवास्तिकाय से जीवों की क्या प्रवृत्ति होती है ? गौतम ! जीवास्तिकाय के द्वारा जीव अनन्त आभिनिबोधिकज्ञान की पर्यायों को, अनन्त श्रुतज्ञान की पर्यायों को प्राप्त करता है; (इत्यादि सब कथन) द्वीतिय शतक के दसवें अस्तिकाय उद्देशक के अनुसार; यावत्‌ वह उपयोग को प्राप्त
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१३

उद्देशक-४ पृथ्वी Hindi 578 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एगे भंते! धम्मत्थिकायपदेसे केवतिएहिं धम्मत्थिकायपदेसेहिं पुट्ठे? गोयमा! जहन्नपदे तिहिं, उक्कोसपदे छहिं केवतिएहिं अधम्मत्थिकायपदेसेहिं पुट्ठे? जहन्नपदे चउहिं, उक्कोसपदे सत्तहिं केवतिएहिं आगासत्थिकायपदेसेहिं पुट्ठे? सत्तहिं केवतिएहिं जीवत्थिकायपदेसेहिं पुट्ठे? अनंतेहिं केवतिएहिं पोग्गलत्थिकायप-देसेहिं पुट्ठे? अनंतेहिं केवतिएहिं अद्धासमएहिं पुट्ठे? सिय पुट्ठे सिय नो पुट्ठे, जइ पुट्ठे नियमं अनंतेहिं एगे भंते! अधम्मत्थिकायपदेसे केवतिएहिं धम्मत्थिकायपदेसेहिं पुट्ठे? गोयमा! जहन्नपदे चउहिं, उक्कोसपदे सतहिं केवतिएहिं अधम्मत्थिकायपदेसेहिं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! धर्मास्तिकाय का एक प्रदेश, कितने धर्मास्तिकाय के प्रदेशों द्वारा स्पृष्ट होता है ? गौतम ! वह जघन्य पद में तीन प्रदेशों से और उत्कृष्ट पद में छह प्रदेशों से स्पृष्ट होता है अधर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होता है ? (गौतम ! वह) जघन्य पद में चार प्रदेशों से और उत्कृष्ट पद में सात अधर्मास्तिकाय
Showing 3001 to 3050 of 45304 Results