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Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-३

उद्देशक-१० परिषद् Hindi 206 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–चमरस्स णं भंते! असुरिंदस्स असुररन्नो कइ पारिसाओ पन्नत्ताओ? गोयमा! तओ परिसाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–समिया, चंडा, जाया। एवं जहाणुपुव्वीए जाव अच्चुओ कप्पो। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।

Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत्‌ श्री गौतम ने इस प्रकार पूछा – भगवन्‌ ! असुरेन्द्र असुरराज चमर की कितनी परिषदाएं कही गई हैं ? हे गौतम ! उसकी तीन परिषदाएं कही गई हैं। यथा – शमिता, चण्डा और जाता। इसी प्रकार क्रमपूर्वक यावत्‌ अच्युतकल्प तक कहना चाहिए। ‘हे भगवन्‌ ! यह इसी प्रकार है, भगवन्‌ ! यह इसी प्रकार है।’
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-४

उद्देशक-१ थी ८ लोकपाल विमान अने राजधानी Hindi 208 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे नगरे जाव एवं वयासी–ईसानस्स णं भंते! देविंदस्स देवरन्नो कइ लोगपाला पन्नत्ता? गोयमा! चत्तारि लोगपाला पन्नत्ता, तं जहा–सोमे, जमे, वेसमणे, वरुणे। एएसि णं भंते! लोगपालाणं कइ विमाना पन्नत्ता? गोयमा! चत्तारि विमाना पन्नत्ता, तं जहा–सुमणे, सव्वओभद्दे, वग्गू, सुवग्गू। कहि णं भंते! ईसानस्स देविंदस्स देवरन्नो सोमस्स महारन्नो सुमणे नामं महाविमाने पन्नत्ते? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए जाव ईसाने नामं कप्पे पन्नत्ते। तत्थ णं जाव पंच वडेंसया पन्नत्ता, तं जहा– अंकवडेंसए, फलिहवडेंसए, रयणवडेंसए, जायरूव-वडेंसए, मज्झे ईसानवडेंसए। तस्स

Translated Sutra: राजगृह नगर में, यावत्‌ गौतम स्वामी ने इस प्रकार कहा – भगवन्‌ ! देवेन्द्र देवराज ईशान के कितने लोकपाल कहे गए हैं ? हे गौतम ! उसके चार लोकपाल कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं – सोम, यम, वैश्रमण और वरुण। भगवन्‌ ! इन लोकपालों के कितने विमान कहे गए हैं ? गौतम ! इनके चार विमान हैं; वे इस प्रकार हैं – सुमन, सर्वतोभद्र, वल्गु और सुवल्गु। भगवन्‌
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-४

उद्देशक-९ नैरयिक Hindi 211 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइए णं भंते! नेरइएसु उववज्जइ? अनेरइए नेरइएसु उववज्जइ? ए लेस्सापए तइओ उद्देसओ भाणियव्वो जाव नाणाइं।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जो नैरयिक है, क्या वह नैरयिकों में उत्पन्न होता है, या जो अनैरयिक है, वह नैरयिकों में उत्पन्न होता है ? (हे गौतम !) प्रज्ञापनासूत्र में कथित लेश्यापद का तृतीय उद्देशक यहाँ कहना चाहिए, और वह यावत्‌ ज्ञानों के वर्णन तक कहना चाहिए।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-४

उद्देशक-१० लेश्या Hindi 212 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से नूनं भंते! कण्हलेस्सा नीललेस्सं पप्प तारूवत्ताए, तावण्णत्ताए, तागंधत्ताए, तारसत्ताए, ताफासत्ताए भुज्जो-भुज्जो परिणमति? हंता गोयमा! कण्हलेसा नीललेसं पप्प तारूवत्ताए, तावण्णत्ताए, तागंधत्ताए, तारसत्ताए, ताफास-त्ताए भुज्जो-भुज्जो परिणमति। एवं चउत्थो उद्देसओ पन्नवणाए चेव लेस्सापदे नेयव्वो जाव–

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या कृष्णलेश्या नीललेश्या का संयोग पाकर तद्रुप और तद्वर्ण में परिणत हो जाती है ? (हे गौतम !) प्रज्ञापनासूत्र में उक्त लेश्यापद का चतुर्थ उद्देशक यहाँ कहना चाहिए, और वह यावत्‌ परिणाम इत्यादि द्वार – गाथा तक कहना चाहिए।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-१ सूर्य Hindi 216 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नामं नगरी होत्था–वण्णओ। तीसे णं चंपाए नगरीए पुण्णभद्दे नामं चेइए होत्था–वण्णओ। सामी समोसढे जाव परिसा पडिगया। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूई नामं अनगारे गोयमे गोत्तेणं जाव एवं वयासी– जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे सूरिया उदीण-पाईणमुग्गच्छ पाईण-दाहिण-मागच्छंति, पाईण-दाहिणमुग्गच्छ दाहिण-पडीण-मागच्छंति, दाहिण-पडीणमुग्गच्छ पडीण-उदीण-मागच्छंति, पडीण-उदीण-मुग्गच्छ उदीचि-पाईणमागच्छंति? हंता गोयमा! जंबुद्दीवे णं दीवे सूरिया उदीण-पाईणमुग्गच्छ जाव उदीचि-पाईणमागच्छंति। जया णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स

Translated Sutra: उस काल और उस समय में चम्पा नामकी नगरी थी। उस चम्पा नगरी के बाहर पूर्णभद्र नामका चैत्य था। वहाँ श्रमण भगवान महावीर स्वामी पधारे यावत्‌ परिषद्‌ धर्मोपदेश सूनने के लिए गई और वापस लौट गई। उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर स्वामी के ज्येष्ठ अन्तेवासी गौतमगोत्रीय इन्द्रभूति अनगार थे, यावत्‌ उन्होंने पूछा
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-१ सूर्य Hindi 217 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जया णं भंते! जंबूदीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे णं दिवसे भवइ, तया णं पच्चत्थिमे ण वि दिवसे भवइ; जया णं पच्चत्थिमे णं दिवसे भवइ, तया णं जंबूदीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर-दाहिणे णं राई भवइ? हंता गोयमा! जया णं जंबूदीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे णं दिवसे जाव उत्तर-दाहिणे णं राई भवइ। जया णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणड्ढे उवकोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, तया णं उत्तरड्ढे वि उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ; जया णं उत्तरड्ढे उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, तया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिम-पच्चत्थिमे णं जहन्निया

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जब जम्बूद्वीप नामक द्वीप के दक्षिणार्द्ध में उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त्त का दिन होता है, तब क्या उत्तरार्द्ध में भी उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त्त का दिन होता है ? और जब उत्तरार्द्ध में उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त्त का दिन होता है, तब क्या जम्बूद्वीप में मन्दर (मेरु) पर्वत से पूर्व – पश्चिम में जघन्य बारह मुहूर्त्त
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-१ सूर्य Hindi 218 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जया णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ, तया णं उत्तरड्ढे वि वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ; जया णं उत्तरड्ढे वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ, तया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिम-पच्चत्थिमे णं अणं-तपुरक्खडे समयंसि वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ? हंता गोयमा! जया णं जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ, तह चेव जाव पडिवज्जइ। जया णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे णं वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ, तया णं पच्चत्थिमे ण वि वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ; जया णं पच्चत्थिमे णं वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ, तया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जब जम्बूद्वीप के दक्षिणार्द्ध में वर्षा (ऋतु) का प्रथम समय होता है, तब क्या उत्तरार्द्ध में भी वर्षा (ऋतु) का प्रथम समय होता है ? और जब उत्तरार्द्ध में वर्षाऋतु का प्रथम समय होता है, तब जम्बूद्वीप में मन्दर – पर्वत से पूर्व में वर्षाऋतु का प्रथम समय अनन्तर – पुरस्कृत समय में होता है ? हाँ, गौतम ! यह इसी तरह
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-१ सूर्य Hindi 219 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] लवणे णं भंते! समुद्दे सूरिया उदीण-पाईणमुग्गच्छ पाईण-दाहिणमागच्छंति, जच्चेव जंबुद्दीवस्स वत्तव्वया भणिया सच्चेव सव्वा अपरिसेसिया लवणसमुद्दस्स वि भाणियव्वा, नवरं–अभिलावो इमो जाणियव्वो। जया णं भंते! लवणसमुद्दे दाहिणड्ढे दिवसे भवइ, तं चेव जाव तदा णं लवणसमुद्दे पुरत्थिम-पच्चत्थिमे णं राई भवति। एएणं अभिलावेणं नेयव्वं जाव जया णं भंते! लवणसमुद्दे दाहिणड्ढे पढमा ओसप्पिणी पडिवज्जइ, तया णं उत्तरड्ढे वि पढमा ओसप्पिणी पडिवज्जइ; जया णं उत्तरड्ढे पढमा ओसप्पिणी पडिवज्जइ, तया णं लवणसमुद्दे पुरत्थिम-पच्चत्थिमे णं नेवत्थि ओसप्पिणी, नेवत्थि उस्सप्पिणी अवट्ठिएणं तत्थ

Translated Sutra: भगवन्‌ ! लवणसमुद्र में सूर्य ईशानकोण में उदय होकर क्या अग्निकोण में जाते हैं ? इत्यादि प्रश्न। गौतम! जम्बूद्वीप में सूर्यों के समान यहाँ लवणसमुद्रगत सूर्यों के सम्बन्ध में भी कहना। विशेष बात यह है कि इस वक्तव्यता में पाठ का उच्चारण इस प्रकार करना। भगवन्‌ ! जब लवणसमुद्र के दक्षिणार्द्ध में दिन होता है, इत्यादि
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-२ वायु Hindi 220 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे नगरे जाव एवं वयासी–अत्थि णं भंते! ईसिं पुरेवाया पत्था वाया मंदा वाया महावाया वायंति? हंता अत्थि। अत्थि णं भंते! पुरत्थिमे णं ईसिं पुरेवाया पत्था वाया मंदा वाया महावाया वायंति? हंता अत्थि। एवं पच्चत्थिमे णं, दाहिणे णं, उत्तरे णं, उत्तर-पुरत्थिमे णं, दाहिणपच्चत्थिमे णं, दाहिण-पुरत्थिमे णं उत्तर-पच्चत्थिमेणं। जया णं भंते! पुरत्थिमे णं ईसिं पुरेवाया पत्था वाया मंदा वाया महावाया वायंति, तया णं पच्चत्थिमे ण वि ईसिं पुरेवाया पत्था वाया मंदा वाया महावाया वायंति; जया णं पच्चत्थिमे णं ईसिं पुरेवाया पत्था वाया मंदा वाया महावाया वायंति, तया णं पुरत्थिमे ण वि? हंता

Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत्‌ (श्री गौतमस्वामी ने) इस प्रकार पूछा – भगवन्‌ ! क्या ईषत्पुरोवात (ओस आदि से कुछ स्निग्ध, या गीली हवा), पथ्यवात (वनस्पति आदि के लिए हितकर वायु), मन्दवात (धीमे – धीमे चलने वाली हवा), तथा महावात, प्रचण्ड तूफानी वायु बहती है ? हाँ, गौतम ! पूर्वोक्त वायु (हवाएं) बहती हैं। भगवन्‌ ! पूर्व दिशा से ईषत्पुरोवात,
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-२ वायु Hindi 221 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह णं भंते! ओदणे, कुम्मासे, सुरा–एए णं किंसरीरा ति वत्तव्वं सिया? गोयमा! ओदने, कुम्मासे, सुराए य जे घणे दव्वे– एए णं पुव्वभावपन्नवणं पडुच्च वणस्सइ जीव-सरीरा। तओ पच्छा सत्थातीया, सत्थपरिणामिया, अगनिज्झामिया, अगनिज्झूसिया, अगनि-परिणामिया अगनिजीवसरीरा ति वत्तव्वं सिया। सुराए य जे दवे दव्वे– एए णं पुव्वभावपण्णवणं पडुच्च आउजीवसरीरा। तओ पच्छा सत्थातीया जाव अगनिजीवसरीरा ति वत्तव्वं सिया। अह णं भंते! अये, तंबे, तउए, सीसए, उवले, कसट्टिया– एए णं किंसरीरा ति वत्तव्वं सिया? गोयमा! अये, तंबे, तउए, सीसए, उवले, कसट्टिया– एए णं पुव्वभावपण्णवणं पडुच्च पुढवी-जीवसरीरा। तओ पच्छा सत्थातीया

Translated Sutra: भगवन्‌ ! अब यह बताएं कि ओदन, उड़द और सुरा, इन तीनों द्रव्यों को किन जीवों का शरीर कहना चाहिए? गौतम ! ओदन, कुल्माष और सुरा में जो घन द्रव्य हैं, वे पूर्वभाव – प्रज्ञापना की अपेक्षा से वनस्पतिजीव के शरीर हैं। उसके पश्चात्‌ जब वे (ओदनादि द्रव्य) शस्त्रातीत हो जाते हैं, शस्त्रपरिणत हो जाते हैं; आग से जलाये अग्नि से सेवित
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-२ वायु Hindi 222 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] लवणे णं भंते! समुद्दे केवइयं चक्कवालविक्खंभेणं पन्नत्ते? एयं नेयव्वं जाव लोगट्ठिई, लोगाणुभावे। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति भगवं गोयमे जाव विहरइ।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! लवणसमुद्र का चक्रवाल – विष्कम्भ कितना कहा गया है ? गौतम ! (लवणसमुद्र के सम्बन्ध में सारा वर्णन) पहले कहे अनुसार जान लेना चाहिए, यावत्‌ लोकस्थिति लोकानुभाव तक कहना चाहिए। हे भगवन्‌! यह इसी प्रकार है।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-३ जालग्रंथिका Hindi 223 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अन्नउत्थिया णं भंते! एवमाइक्खंति भासंति पन्नवेंति परूवेंति–से जहानामए जालगंठिया सिया–आनुपुव्विगढिया अनंतरगढिया परंपरगढिया अन्नमन्नगढिया, अन्नमन्नगरुयत्ताए अन्नमन्नभारियत्ताए अन्नमन्नगरुय संभारियत्ताए अन्नमन्नघडत्ताए चिट्ठइ, एवामेव बहूणं जीवाणं बहूसु आजातिसहस्सेसु बहूइं आउयसहस्साइं आनुपुव्विगढियाइं जाव चिट्ठंति। एगे वि य णं जीवे एगेणं समएणं दो आउयाइं पडिसंवेदेइ, तं जहा –इहभवियाउयं च, परभवियाउयं च। जं समयं इहभवियाउयं पडिसंवेदेइ, तं समयं परभवियाउयं पडिसंवेदेइ। जं समयं परभवियाउयं पडिसंवेदेइ, तं समयं इहभवियाउयं पडिसंवेदेइ । इहभवियाउयस्स पडिसंवेदणयाए

Translated Sutra: भगवन्‌ ! अन्यतीर्थिक ऐसा कहते हैं, भाषण करते हैं, बतलाते हैं, प्ररूपणा करते हैं कि जैसे कोई (एक) जालग्रन्थि हो, जिसमें क्रम से गाँठें दी हुई हों, एक के बाद दूसरी अन्तररहित गाँठें लगाई हुई हों, परम्परा से गूँथी हुईं हों, परस्पर गूँथी हुई हों, ऐसी वह जालग्रन्थि परस्पर विस्तार रूप से, परस्पर भाररूप से तथा परस्पर विस्तार
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-३ जालग्रंथिका Hindi 224 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! जे भविए नेरइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! किं साउए संकमइ? निराउए संकमइ? गोयमा! साउए संकमइ, नो निराउए संकमइ। से णं भंते! आउए कहिं कडे? कहिं समाइण्णे? गोयमा! पुरिमे भवे कडे, पुरिमे भवे समाइण्णे। एवं जाव वेमाणियाणं दंडओ। से नूनं भंते! जे जं भविए जोणिं उववज्जित्तए, से तमाउयं पकरेइ, तं जहा–नेरइयाउयं वा? तिरिक्खजोणियाउयं वा? मनुस्साउयं वा? देवाउयं वा? हंता गोयमा! जे जं भविए जोणिं उववज्जित्तए, से तमाउयं पकरेइ, तं जहा–नेरइयाउयं वा, तिरिक्खजोणियाउयं वा, मनुस्साउयं वा, देवाउयं वा। नेरइयाउयं पकरेमाणे सत्तविहं पकरेइ, तं जहा– रयणप्पभापुढविनेरइयाउयं वा, सक्करप्पभापुढविनेरइयाउयं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जो जीव नैरयिकों में उत्पन्न होने के योग्य है, क्या वह जीव यहीं से आयुष्य – युक्त होकर नरक में जाता है, अथवा आयुष्य रहित होकर जाता है ? गौतम ! वह यहीं से आयुष्ययुक्त होकर नरक में जाता है, परन्तु आयुष्यरहित होकर नरक में नहीं जाता। हे भगवन्‌ ! उस जीव ने वह आयुष्य कहाँ बाँधा ? और उस आयुष्य – सम्बन्धी आचरण कहाँ
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-४ शब्द Hindi 225 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] छउमत्थे णं भंते! मनुस्से आउडिज्जमाणाइं सद्दाइं सुणेइ, तं जहा–संखसद्दाणि वा, सिंगसद्दाणि वा, संखियस-द्दाणि वा, खरमुहीसद्दाणि वा, पोयासद्दाणि वा, पिरिपिरियासद्दाणि वा, पणवसद्दाणि वा, पडहसद्दाणि वा, भंभासद्दाणि वा, होरं-भसद्दाणि वा, भेरिसद्दाणि वा, ज्झल्लरीसद्दाणि वा, दुंदुभिसद्दाणि वा, तताणि वा, वितताणि वा, धणाणि वा, ज्झुसिराणि वा? हंता गोयमा! छउमत्थे णं मनुस्से आउडिज्जमाणाइं सद्दाइं सुणेइ, तं जहा–संखसद्दाणि वा जाव ज्झुसिराणि वा। ताइं भंते! किं पुट्ठाइं सुणेइ? अपुट्ठाइं सुणेइ? गोयमा! पुट्ठाइं सुणेइ, नो अपुट्ठाइं सुणेइ। जाइ भंते! पुट्ठाइं सुणेइ ताइं किं ओगाढाइं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! छद्मस्थ मनुष्य क्या बजाये जाते हुए वाद्यों (के) शब्दों को सूनता है ? यथा – शंख के शब्द, रणसींगे के शब्द, शंखिका के शब्द, खरमुही के शब्द, पोता के शब्द, परिपीरिता के शब्द, पणव के शब्द, पटह के शब्द, भंभा के शब्द, झल्लरी के शब्द, दुन्दुभि के शब्द, तत शब्द, विततशब्द, घनशब्द, शुषिरशब्द, इत्यादि बाजों के शब्दों को। हाँ,
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-४ शब्द Hindi 226 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] छउमत्थे णं भंते! मनुस्से हसेज्ज वा? उस्सुयाएज्ज वा? हंता हसेज्ज वा, उस्सुयाएज्ज वा। जहा णं भंते! छउमत्थे मनुस्से हसेज्ज वा, उस्सुयाएज्ज वा, तहा णं केवली वि हसेज्ज वा? उस्सुयाएज्ज वा? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–जहा णं छउमत्थे मनुस्से हसेज्ज वा, उस्सुयाएज्ज वा, नो णं तहा केवली हसेज्ज वा? उस्सुयाएज्ज वा? गोयमा! जं णं जीवा चरित्तमोहणिज्जस्स कम्मस्स उदएणं हसंति वा, उस्सुयायंति वा। से णं केवलिस्स नत्थि। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–जहा णं छउमत्थे मनुस्से हसेज्ज वा, उस्सुयाएज्ज वा, नो णं तहा केवली हसेज्ज वा, उस्सुयाएज्ज वा। जीवे णं भंते! हसमाणे

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या छद्मस्थ मनुष्य हँसता है तथा उत्सुक (उतावला) होता है ? गौतम ! हाँ, छद्मस्थ मनुष्य हँसता तथा उत्सुक होता है। भगवन्‌ ! जैसे छद्मस्थ मनुष्य हँसता है तथा उत्सुक होता है, वैसे क्या केवली भी हँसता और उत्सुक होता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। भगवन्‌ ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि केवली मनुष्य न तो हँसता
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-४ शब्द Hindi 227 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से नूनं भंते! हरिनेगमेसी सक्कदूए इत्थीगब्भं संहरमाणे किं गब्भाओ गब्भं साहरइ? गब्भाओ जोणिं साहरइ? जोणीओ गब्भं साहरइ? जोणीओ जोणिं साहरइ? गोयमा! नो गब्भाओ गब्भं साहरइ, नो गब्भाओ जोणिं साहरइ, नो जोणीओ जोणिं साहरइ, परामुसिय-परामुसिय अव्वाबाहेणं अव्वाबाहं जोणीओ गब्भं साहरइ। पभू णं भंते! हरिनेगमेसी सक्कदूए इत्थीगब्भं नहसिरंसि वा, रोमकूवंसि वा साहरित्तए वा? नीहरित्तए वा? हंता पभू, नो चेव णं तस्स गब्भस्स किंचि आबाहं वा विवाहं वा उप्पाएज्जा, छविच्छेदं पुण करेज्जा। एसुहुमं च णं साहरेज्ज वा, नीहरेज्ज वा।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! इन्द्र (हरि) – सम्बन्धी शक्रदूत हरिनैगमेषी देव जब स्त्री के गर्भ का संहरण करता है, तब क्या वह एक गर्भाशय से गर्भ को उठाकर दूसरे गर्भाशय में रखता है ? या गर्भ को लेकर योनि द्वारा दूसरी (स्त्री) के उदर में रखता है? अथवा योनि से गर्भाशय में रखता है ? या फिर योनि द्वारा गर्भ को पेट में से बाहर नीकालकर योनि द्वारा
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-४ शब्द Hindi 229 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं महासुक्काओ कप्पाओ, महासामाणाओ विमानाओ दो देवा महिड्ढिया जाव महानुभागा समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं पाउब्भूया। तए णं ते देवा समणं भगवं महावीरं वंदंति नमंसंति, मनसा चेव इमं एयारूवं वागरणं पुच्छंति– कति णं भंते! देवानुप्पियाणं अंतेवासीसयाइं सिज्झिहिंति जाव अंतं करेहिंति? तए णं समणे भगवं महावीरे तेहिं देवेहिं मनसे पुट्ठे तेसिं देवाणं मनसे चेव इमं एयारूवं वागरणं वागरेइ–एवं खलु देवानुप्पिया! ममं सत्त अंतेवासीसयाइं सिज्झिहिंति जाव अंतं करेहिंति। तए णं देवा समणेणं भगवया महावीरेणं मनसे पुट्ठेणं मनसे चेव इमं एयारूवं वागरणं वागरिया समाणा

Translated Sutra: उस काल और उस समय में महाशुक्र कल्प से महासामान नामक महाविमान (विमान) से दो महर्द्धिक यावत्‌ महानुभाग देव श्रमण भगवान महावीर के पास प्रगट हुए। तत्पश्चात्‌ उन देवों ने श्रमण भगवान महावीर को वन्दन – नमस्कार करके उन्होंने मन से ही इस प्रकार का ऐसा प्रश्न पूछा – भगवन्‌ ! आपके कितने सौ शिष्य सिद्ध होंगे यावत्‌ सर्व
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-४ शब्द Hindi 230 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदति नमंसति जाव एवं वयासी– देवा णं भंते! संजया त्ति वत्तव्वं सिया? गोयमा! नो तिणट्ठे समट्ठे। अब्भक्खाणमेयं देवाणं। देवा णं भंते! असंजता वि वत्तव्वं सिया? गोयमा! नो तिणट्ठे समट्ठे। निट्ठुरवयणमेयं देवाणं। देवा णं भंते! नो संजयासंजया ति वत्तव्वं सिया? गोयमा! नो तिणट्ठे समट्ठे। असब्भूयमेयं देवाणं। से किं खाइ णं भंते! देवा त्ति वत्तव्वं सिया? गोयमा! देवा णं नोसंजया ति वत्तव्वं सिया।

Translated Sutra: ‘भगवन्‌ !’ इस प्रकार सम्बोधित करके भगवान गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान महावीर को वन्दना – नमस्कार किया यावत्‌ पूछा – भगवन्‌ ! क्या देवों को ‘संयत’ कहा जा सकता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है, यह देवों के लिए अभ्याख्यान है। भगवन्‌ ! क्या देवों को ‘असंयत’ कहना चाहिए ? गौतम ! यह अर्थ (भी) समर्थ नहीं है। देवों के लिए यह
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-४ शब्द Hindi 231 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] देवा णं भंते! कयराए भासाए भासंति? कयरा व भासा भासिज्जमाणी विसिस्सति? गोयमा! देवा णं अद्धमागहाए भासाए भासंति। सा वि य णं अद्धमागहा भासा भासिज्जमाणी विसिस्सति।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! देव कौन – सी भाषा बोलते हैं ? अथवा (देवों द्वारा) बोली जाती हुई कौन – सी भाषा विशिष्टरूप होती है ? गौतम ! देव अर्धमागधी भाषा बोलते हैं, और बोली जाती हुई वह अर्धमागधी भाषा ही विशिष्टरूप होती है।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-४ शब्द Hindi 232 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] केवली णं भंते! अंतकरं वा, अंतिमसरीरियं वा जाणइ-पासइ? हंता जाणइ-पासइ। जहा णं भंते! केवली अंतकरं वा, अंतिमसरीरियं वा जाणइ-पासइ, तहा णं छउमत्थे वि अंतकरं वा, अंतिमसरीरियं वा जाणइ-पासइ? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे। सोच्चा जाणइ-पासइ, पमाणतो वा। से किं तं सोच्चा? सोच्चा णं केवलिस्स वा, केवलिसावगस्स वा, केवलिसावियाए वा, केवलिउवासगस्स वा, केवलि-उवासियाए वा, तप्पक्खियस्स वा तप्पक्खियसावगस्स वा, तप्पक्खियसावियाए वा तप्पक्खिय-उवासगस्स वा तप्पक्खियउवासियाए वा। से तं सोच्चा।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या केवली मनुष्य संसार का अन्त करने वाले को अथवा चरमशरीरी को जानता – देखता है ? हाँ, गौतम ! वह उसे जानता – देखता है। भगवन्‌ ! जिस प्रकार केवली मनुष्य अन्तकर को, अथवा अन्तिमशरीरी को जानता – देखता है, क्या उसी प्रकार छद्मस्थ – मनुष्य जानता – देखता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं, छद्मस्थ मनुष्य किसी से सूनकर
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-४ शब्द Hindi 233 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं पमाणे? पमाणे चउव्विहे पन्नत्ते; तं जहा–पच्चक्खे अणुमाणे ओवम्मे आगमे, जहा अनुओगदारे तहा नेयव्वं पमाणं जाव तेण परं सुत्तस्स वि अत्थस्स वि नो अत्तागमे, नो अनंतरागमे, परंपरागमे।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! वह ‘प्रमाण’ क्या है ? कितने हैं ? गौतम ! प्रमाण चार प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार है – (१) प्रत्यक्ष, (२) अनुमान, (३) औपम्य (उपमान) और (४) आगम। प्रमाण के विषय में जिस प्रकार अनुयोग – द्वारसूत्र में कहा गया है, उसी प्रकार यहाँ भी जान लेना यावत्‌ न आत्मागम, न अनन्तरागम, किन्तु परम्परागम तक कहना।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-४ शब्द Hindi 234 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] केवली णं भंते! चरिमकम्मं वा, चरिमणिज्जरं वा जाणइ-पासइ? हंता जाणइ-पासइ। जहा णं भंते! केवली चरिमकम्मं वा, चरिमणिज्जरं वा जाणइ-पासइ, तहा णं छउमत्थे वि चरिमकम्मं वा, चरिमणिज्जरं वा जाणइ-पासइ? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे। सोच्चा जाणइ-पासइ, पमाणतो वा। जहा णं अंतकरेणं आलावगो तहा चरिमकम्मेण वि अपरिसेसिओ नेयव्वो।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या केवली मनुष्य चरम कर्म को अथवा चरम निर्जरा को जानता – देखता है ? हाँ, गौतम ! केवली चरम कर्म को या चरम निर्जरा को जानता – देखता है। भगवन्‌ ! जिस प्रकार केवली चरमकर्म को या चरम निर्जरा को जानता – देखता है, क्या उसी तरह छद्मस्थ भी यावत्‌ जानता – देखता है ? गौतम ! जिस प्रकार ‘अन्तकर’ के विषय में आलापक कहा था,
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-४ शब्द Hindi 235 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] केवली णं भंते! पणीयं मणं वा, वइं वा धारेज्जा? हंता धारेज्जा। जण्णं भंते! केवली पणीयं मणं वा, वइं वा धारेज्जा, तण्णं वेमाणिया देवा जाणंति-पासंति? गोयमा! अत्थेगतिया जाणंति-पासंति, अत्थेगतिया न जाणंति, न पासंति। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–अत्थेगतिया जाणंति-पासंति, अत्थेगतिया न जाणंति, न पासंति? गोयमा! वेमाणिया देवा दुविहा पन्नत्ता, तं जहा– माइमिच्छादिट्ठी उववन्नागा य, अमाइ-सम्मदिट्ठी-उववन्नगा य। तत्थ णं जे ते माइमिच्छादिट्ठीउववन्नगा ते ण जाणंति ण पासंति। तत्थ णं जे ते अमाइसम्मदिट्ठीउववन्नगा ते णं जाणंति-पासंति। से केणट्ठेणं? गोयमा! अमाइसम्मदिट्ठी दुविहा पन्नत्ता,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या केवली प्रकृष्ट मन और प्रकृष्ट वचन धारण करता है ? हाँ, गौतम ! धारण करता है। भगवन्‌ केवली जिस प्रकार के प्रकृष्ट मन और प्रकृष्ट वचन को धारण करता है, क्या उसे वैमानिक देव जानते – देखते हैं ? गौतम ! कितने ही (वैमानिक देव उसे) जानते – देखते हैं, और कितने ही नहीं जानते – देखते। भगवन्‌ ! ऐसा किस कारण से कहा जाता
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-४ शब्द Hindi 236 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पभू णं भंते! अनुत्तरोववाइया देवा तत्थगया चेव समाणा इहगएणं केवलिणा सद्धिं आलावं वा, संलावं वा करेत्तए? हंता पभू। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–पभू णं अनुत्तरोववाइया देवा तत्थगया चेव समाणा इहगएणं केवलिणा सद्धिं आलावं वा, संलावं वा करेत्तए? गोयमा! जण्णं अनुत्तरोववाइया देवा तत्थगया चेव समाणा अट्ठं वा हेउं वा पसिणं वा कारणं वा वागरणं वा पुच्छंति, तण्णं इहगए केवली अट्ठे वा हेउं वा पसिणं वा कारणं वा वागरणं वा वागरेइ। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–पभू णं अनुत्तरोववाइया देवा तत्थगया चेव समाणा इहगएणं केवलिणा सद्धिं आलावं वा, संलावं वा करेत्तए। जण्णं भंते! इहगए केवली

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या अनुत्तरोपपातिक देव अपने स्थान पर रहे हुए ही, यहाँ रहे हुए केवली के साथ आलाप और संलाप करने में समर्थ हैं ? गौतम ! हाँ, हैं। भगवन्‌ ! ऐसा किस कारण से कहा जाता है ? हे गौतम ! अनुत्तरौपपातिक देव अपने स्थान पर रहे हुए ही, जो अर्थ, हेतु, प्रश्न, कारण अथवा व्याकरण (व्याख्या) पूछते हैं, उसका उत्तर यहाँ रहे हुए केवली
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-४ शब्द Hindi 237 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अनुत्तरोववाइया णं भंते! देवा किं उदिण्णमोहा? उवसंतमोहा? खीणमोहा? गोयमा! नो उदिण्ण-मोहा, उवसंतमोहा, नो खीणमोहा।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या अनुत्तरौपपातिक देव उदीर्णमोह हैं, उपशान्त – मोह हैं, अथवा क्षीणमोह हैं ? गौतम ! वे उदीर्ण – मोह नहीं हैं, उपशान्तमोह हैं, क्षीणमोह नहीं हैं।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-४ शब्द Hindi 238 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] केवली णं भंते! आयाणेहिं जाणइ-पासइ? गोयमा! नो तिणट्ठे समट्ठे। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–केवली णं आयाणेहिं न जाणइ, न पासइ? गोयमा! केवली णं पुरत्थिमे णं मियं पि जाणइ, अमियं पि जाणइ। एवं दाहिणे णं, पच्चत्थिमे णं, उत्तरे णं, उड्ढं, अहे मियं पि जाणइ, अमियं पि जाणइ। सव्वं जाणइ केवली, सव्वं पासइ केवली। सव्वओ जाणइ केवली, सव्वओ पासइ केवली। सव्वकालं जाणइ केवली, सव्वकालं पासइ केवली। सव्वभावे जाणइ केवली, सव्वभावे पासइ केवली। अनंते नाणे केवलिस्स, अनंते दंसणे केवलिस्स। निव्वुडे नाणे केवलिस्स निव्वुडे दंसणे केवलिस्स। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–केवली णं आयाणेहिं न जाणइ, न

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या केवली भगवान आदानों (इन्द्रियों) से जानते और देखते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। भगवन्‌ ! किस कारण से केवली भगवान इन्द्रियों से नहीं जानते – देखते ? गौतम ! केवली भगवान पूर्वदिशा में सीमित भी जानते – देखते हैं, अमित (असीम) भी जानते – देखते हैं, यावत्‌ केवली भगवान का (ज्ञान और) दर्शन निरावरण है। इस कारण
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-४ शब्द Hindi 239 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] केवली णं भंते! अस्सिं समयंसि जेसु आगासपदेसेसु हत्थं वा पायं वा बाहं वा उरुं वा ओगाहित्ता णं चिट्ठति, पभू णं केवली सेयकालंसि वि तेसु चेव आगासपदेसेसु हत्थं वा पायं वा बाहं वा ऊरुं वा ओगाहित्ताणं चिट्ठित्तए? गोयमा! नो तिणट्ठे समट्ठे। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–केवली णं अस्सिं समयंसि जेसु आगासपदेसेसु हत्थं वा पायं वा बाहं वा ऊरुं वा ओगाहित्ताणं चिट्ठति, नो णं पभू केवली सेयकालंसि वि तेसु चेव आगासपदेसेसु हत्थं वा पायं वा बाहं वा उरुं वा ओगाहित्ता णं चिट्ठित्तए? गोयमा! केवलिस्स णं वीरिय-सजोग-सद्दव्वयाए चलाइं उवकरणाइं भवंति। चलोवकरणट्ठयाए य णं केवली अस्सिं समयंसि

Translated Sutra: भगवन्‌ ! केवली भगवान इस समय में जिन आकाश – प्रदेशों पर अपने हाथ, पैर, बाहू और उरू को अवगाहित करके रहते हैं, क्या भविष्यकाल में भी वे उन्हीं आकाशप्रदेशों पर अपने हाथ आदि को अवगाहित करके रह सकते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। भगवन्‌ ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है ? गौतम ! केवली भगवान का जीवद्रव्य वीर्यप्रधान योग वाला
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-४ शब्द Hindi 240 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पभू णं भंते! चोद्दसपुव्वी घडाओ घडसहस्सं, पडाओ पडसहस्सं, कडाओ कडसहस्सं, रहाओ रहसहस्सं, छत्ताओ छत्तसहस्सं, दंडाओ दंडसहस्सं अभिनिव्वट्टेत्ता उवदंसेत्तए? हंता पभू। से केणट्ठेणं पभू चोद्दसपुव्वी जाव उवदंसेत्तए? गोयमा! चोद्दसपुव्विस्स णं अनंताइं दव्वाइं उक्कारियाभेएणं भिज्जमाणाइं लद्धाइं पत्ताइं अभिसमन्नागयाइं भवंति। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–पभू णं चोद्दसपुव्वी घडाओ घडसहस्सं, पडाओ पडसहस्सं, कडाओ कडसहस्सं, रहाओ रहसहस्सं, छत्ताओ छत्तसहस्सं, दंडाओ दंडसहस्सं अभिनिव्वट्टेत्ता उवदंसेत्तए। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या चतुर्दशपूर्वधारी (श्रुतकेवली) एक घड़े में से हजार घड़े, एक वस्त्र में से हजार वस्त्र, एक कट में से हजार कट, एक रथ में से हजार रथ, एक छत्र में से हजार छत्र और एक दण्ड में से हजार दण्ड करके दिखलाने में समर्थ है ? हाँ, गौतम ! वे ऐसा करके दिखलाने में समर्थ हैं। भगवन्‌ ! चतुर्दशपूर्वधारी एक घट में से हजार घट यावत्‌
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-५ छद्मस्थ Hindi 241 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] छउमत्थे णं भंते! मनूसे तीयमनंतं सासयं समयं केवलेणं संजमेणं, केवलेणं संवरेणं, केवलेणं बंभचेरवासेनं, केवलाहिं पवयणमायाहिं सिज्झिंसु? बुज्झिंसु? मुच्चिंसु? परिनिव्वाइंसु? सव्व-दुक्खाणं अंतं करिंसु? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे। जहा पढमसए चउत्थुद्देसे आलावगा तहा नेयव्वा जाव अलमत्थु त्ति वत्तव्वं सिया।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या छद्मस्थ मनुष्य शाश्वत, अनन्त, अतीत काल में केवल संयम द्वारा सिद्ध हुआ है ? गौतम ! जिस प्रकार प्रथम शतक के चतुर्थ उद्देशक में कहा है, वैसा ही आलापक यहाँ भी कहना; यावत्‌ ‘अलमस्तु’ कहा जा सकता है; यहाँ तक कहना।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-५ छद्मस्थ Hindi 242 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अन्नउत्थिया णं भंते! एवमाइक्खंति जाव परूवेंति–सव्वे पाणा सव्वे भूया सव्वे जीवा सव्वे सत्ता एवं भूयं वेदनं वेदेंति। से कहमेयं भंते! एवं? गोयमा! जण्णं ते अन्नउत्थिया एवमाइक्खंति जाव सव्वे सत्ता एवंभूयं वेदनं वेदेंति। जे ते एवमाहंसु, मिच्छं ते एवमाहंसु। अहं पुण गोयमा! एवमाइक्खामि जाव परूवेमि–अत्थेगइया पाणा भूया जीवा सत्ता एवंभूयं वेदेणं वेदेंति, अत्थेगइया पाणा भूया जीवा सत्ता अनेवंभूयं वेदनं वेदेंति। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–अत्थेगइया पाणा भूया जीवा सत्ता एवंभूयं वेदनं वेदेंति, अत्थेगइया पाणा भूया जीवा सत्ता अनेवंभूयं वेदनं वेदेंति? गोयमा! जे णं पाणा

Translated Sutra: भगवन्‌ ! अन्यतीर्थिक ऐसा कहते हैं यावत्‌ प्ररूपणा करते हैं कि समस्त प्राण, समस्त भूत, समस्त जीव और समस्त सत्त्व, एवंभूत (जिस प्रकार कर्म बाँधा है, उसी प्रकार) वेदना वेदते हैं, भगवन्‌ ! यह ऐसा कैसे है ? गौतम ! वे अन्यतीर्थिक जो इस प्रकार कहते हैं, यावत्‌ प्ररूपणा करते हैं कि सर्व प्राण, भूत, जीव और सत्त्व एवंभूत वेदना
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-५ छद्मस्थ Hindi 243 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते इह भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए समाए कइ कुलगरा होत्था, गोयमा! सत्त एव तित्थयरमायरो पियरो पढमा सिस्सिणीओ चक्कवट्टिमायरो इत्थिरयणं बलदेवा वासुदेवा वासुदेव मायरो लदेव वासुदेव पियरो एएसिं पडिसत्तु जहा समवाए परिवाडी तहा नेयव्वा सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति जाव विहरइ॥

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जम्बूद्वीप में, इस भारतवर्ष में, इस अवसर्पिणी काल में कितने कुलकर हुए हैं ? गौतम ! सात। इसी तरह तीर्थंकरों की माता, पिता, प्रथम शिष्याएं, चक्रवर्तियों की माताएं, स्त्रीरत्न, बलदेव, वासुदेव, वासुदेवों के माता – पिता, प्रतिवासुदेव आदि का कथन जिस प्रकार ‘समवायांगसूत्र’ अनुसार यहाँ भी कहना। ‘हे भगवन्‌ ! यह
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-६ आयु Hindi 244 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहन्नं भंते! जीवा अप्पाउयत्ताए कम्मं पकरेंति? गोयमा! पाणे अइवाएत्ता, मुसं वइत्ता, तहारूवं समणं वा माहणं वा अफासुएणं अनेस-णिज्जेणं असन-पान-खाइम-साइमेणं पडिलाभेत्ता–एवं खलु जीवा अप्पाउयत्ताए कम्मं पकरेंति? कहन्नं भंते! जीवा दीहाउयत्ताए कम्मं पकरेंति? गोयमा! नो पाणे अइवाएत्ता, नो मुसं वइत्ता, तहारूवं समणं वा माहणं वा फासुएणं एसणिज्जेणं असन-पान-खाइम-साइमेणं पडिलाभेत्ता–एवं खलु जीवा दीहाउयत्ताए कम्मं पकरेंति। कहन्नं भंते! जीवा असुभदीहाउयत्ताए कम्मं पकरेंति? गोयमा! पाणे अइवाएत्ता, मुसं वइत्ता, तहारूवं समणं वा माहणं वा हीलित्ता निंदित्ता खिसित्ता गरहित्ता अवमन्नित्ता

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जीव अल्पायु के कारणभूत कर्म किस कारण से बाँधते हैं ? गौतम ! तीन कारणों से जीव अल्पायु के कारणभूत कर्म बाँधते हैं – (१) प्राणियों की हिंसा करके, (२) असत्य भाषण करके और (३) तथारूप श्रमण या माहन को अप्रासुक, अनेषणीय अशन, पान, खादिम और स्वादिम – दे कर। जीव अल्पायुष्कफल वाला कर्म बाँधते हैं भगवन्‌ ! जीव दीर्घायु
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-६ आयु Hindi 245 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] गाहावइस्स णं भंते! भंडं विक्किणमाणस्स केइ भंडं अवहरेज्जा, तस्स णं भंते! भंडं अनुगवेसमाणस्स किं आरंभिया किरिया कज्जइ? पारिग्गहिया किरिया कज्जइ? मायावत्तिया किरिया कज्जइ? अपच्चक्खाणकिरिया कज्जइ? मिच्छादंसणवत्तिया किरिया कज्जइ? गोयमा! आरंभिया किरिया कज्जइ, पारिग्गहिया किरिया कज्जइ, मायावत्तिया किरिया कज्जइ, अपच्चक्खाणकिरिया कज्जइ, मिच्छादंसणकिरिया सिय कज्जइ, सिय नो कज्जइ। अह से भंडे अभिसमन्नागए भवइ, तओ से पच्छा सव्वाओ ताओ पयणुईभवंति। गाहावइस्स णं भंते! भंडं विक्किणमाणस्स कइए भंडं साइज्जेजा, भंडे य से अनुवणीए सिया। गाहावइस्स णं भंते! ताओ भंडाओ किं आरंभिया

Translated Sutra: भगवन्‌ ! भाण्ड बेचते हुए किसी गृहस्थ का वह किराने का माल कोई अपहरण कर ले, फिर उस किराने के सामान की खोज करते हुए उस गृहस्थ को, हे भगवन्‌ ! क्या आरम्भिकी क्रिया लगती है, या पारिग्रहिकी क्रिया लगती है ? अथवा मायाप्रत्ययिकी, अप्रत्याख्यानिकी या मिथ्यादर्शन – प्रत्ययिकी क्रिया लगती है ? गौतम ! उनको आरम्भिकी क्रिया
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-६ आयु Hindi 246 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पुरिसे णं भंते! धणुं परामुसइ, परामुसित्ता उसुं परामुसइ, परामुसित्ता ठाणं ठाइ, ठिच्चा आयत-कण्णातयं उसुं करेति, उड्ढं वेहासं उसुं उव्विहइ। तए णं से उसूं उड्ढं वेहासं उव्विहिए समाणे जाइं तत्थ पाणाइं भूयाइं जीवाइं सत्ताइं अभिहणइ वत्तेति लेसेति संघाएइ संघट्टेति परितावेइ किलामेइ, ठाणाओ ठाणं संकामेइ, जीवियाओ ववरोवेइ। तए णं भंते! से पुरिसे कतिकिरिए? गोयमा! जावं च णं से पुरिसे धनुं परामुसइ, उसुं परामुसइ, ठाणं ठाइ, आयतकण्णातयं उसुं करेंति, उड्ढं वेहासं उसुं उव्विहइ, तावं च णं से पुरिसे काइयाए अहिगरणियाए, पाओसियाए, पारिया-वणियाए, पाणाइवायकिरियाए–पंचहिं किरियाहिं पुट्ठे।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! कोई पुरुष धनुष को स्पर्श करता है, धनुष का स्पर्श करके वह बाण का स्पर्श (ग्रहण) करता है, बाण का स्पर्श करके स्थान पर से आसनपूर्वक बैठता है, उस स्थिति में बैठकर फैंके जाने वाले बाण को कान तक आयात करे – खींचे, खींचकर ऊंचे आकाश में बाण फैंकता है। ऊंचे आकाश में फैंका हुआ वह बाण, वहाँ आकाश में जिन प्राण, भूत, जीव
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-६ आयु Hindi 247 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहे णं से उसू अप्पणो गुरुयत्ताए, भारियत्ताए, गुरेसंभारियत्ताए अहे वीससाए पच्चोवयमाणे जाइं तत्थ पाणाइं जाव जीवियाओ ववरोवेइ तावं च णं से पुरिसे कतिकिरिए? गोयमा! जावं च णं से उसू अप्पणो गुरुयत्ताए जाव जीवियाओ, ववरोवेइ तावं च णं से पुरिसे काइयाए जाव चउहिं किरि-याहिं पुट्ठे। जेसिं पि य णं जीवाणं सरीरेहिं धणू निव्वत्तिए ते वि जीवा चउहिं किरियाहिं, धणुपुट्ठे चउहिं, जीवा चउहिं, ण्हारू चउहिं, उसू पंचहिं–सरे, पत्तणे, फले, ण्हारू पंचहिं। जे वि य से जीवा अहे पच्चोवयमाणस्स उवग्गहे वट्टंति ते वि य णं जीवा काइयाए जाव पंचहिं किरियाहिं पुट्ठा।

Translated Sutra: हे भगवन्‌ ! जब वह बाण अपनी गुरुता से, अपने भारीपन से, अपने गुरुसंभारता से स्वाभाविकरूप से नीचे गिर रहा हो, तब वह (बाण) प्राण, भूत, जीव और सत्व को यावत्‌ जीवन से रहित कर देता है, तब उस बाण फैंकने वाले पुरुष को कितनी क्रियाएं लगती हैं ? गौतम ! जब वह बाण अपनी गुरुता आदि से नीचे गिरता हुआ, यावत्‌ जीवों को जीवन रहित कर देता
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-६ आयु Hindi 248 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अन्नउत्थिया णं भंते! एवमातिक्खंति जाव परूवेंति– से जहानामए जुवतिं जुवाणे हत्थेणं हत्थे गेण्हेज्जा, चक्कस्स वा नाभी अरगाउत्ता सिया, एवामेव जाव चत्तारि पंच जोयणसयाइं बहुसमाइण्णे मनुयलोए मनुस्सेहिं। से कहमेयं भंते! एवं? गोयमा! जण्णं ते अन्नउत्थिया एवमातिक्खंति जाव बहुसमाइण्णे मनुयलोए मनुस्सेहिं। जे ते एवमाहंसु, मिच्छं ते एवमाहंसु। अहं पुण गोयमा! एवमाइक्खामि जाव परूवेमि– से जहानामए जुवतिं जुवाणे हत्थेणं हत्थे गेण्हेज्जा, चक्कस्स वा नाभी अरगाउत्ता सिया, एमामेव जाव चत्तारि पंच जोयणसयाइं बहुसमाइण्णे निरयलोए नेरइएहिं।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! अन्यतीर्थिक इस प्रकार कहते हैं, यावत्‌ प्ररूपणा करते हैं कि जैसे कोई युवक अपने हाथ से युवती का हाथ पकड़े हुए हो, अथवा जैसे आरों से एकदम सटी (जकड़ी) हुई चक्र की नाभि हो, इसी प्रकार यावत्‌ चार सौ – पाँच सौ योजन तक यह मनुष्यलोक मनुष्यों से ठसाठस भरा हुआ है। भगवन्‌ ! यह सिद्धान्त प्ररूपण कैसे है ? हे गौतम ! अन्यतीर्थियों
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-६ आयु Hindi 249 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइया णं भंते! किं एगत्तं पभू विउव्वित्तए? पुहत्तं पभू विउव्वित्तए? गोयमा! एगत्तं पि पहू विउव्वित्तए, पुहत्तंपि पहू विउव्वित्तए। जहा जीवाभिगमे आलावगो तहा नेयव्वो जाव विउव्वित्ता अन्नमन्नस्स कायं अभिहणमाणा-अभिहणमाणा वेयणं उदीरेंति– उज्जलं विउलं पगाढं कक्कसं कडुयं फरुसं निट्ठुरं चंडं तिव्वं दुक्खं दुग्गं दुरहियासं।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या नैरयिक जीव, एक रूप की विकुर्वणा करने में समर्थ है, अथवा बहुत से रूपों की विकुर्वणा करने में समर्थ है ? गौतम ! इस विषय में जीवाभिगमसूत्र के समान आलापक यहाँ भी ‘दुरहियास’ शब्द तक कहना।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-६ आयु Hindi 251 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आयरिय-उवज्झाए णं भंते! सविसयंसि गणं अगिलाए संगिण्हमाणे, अगिलाए उवगिण्हमाणे कइहिं भवग्गहणेहिं सिज्झति जाव सव्वदुक्खाणं अंतं करेति? गोयमा! अत्थेगतिए तेणेव भवग्गहणेणं सिज्झति, अत्थेगतिए दोच्चेणं भवग्गहणेणं सिज्झति, तच्चं पुण भवग्गहणं नाइक्कमति।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! अपने विषय में गण को अग्लान (अखेद) भाव से स्वीकार करते (अर्थात्‌ – सूत्रार्थ पढ़ाते) हुए तथा अग्लानभाव से उन्हें सहायता करते हुए आचार्य और उपाध्याय, कितने भव ग्रहण करके सिद्ध होते हैं, यावत्‌ सर्व दुःखों का अन्त करते हैं ? गौतम ! कितने ही आचार्य – उपाध्याय उसी भव से सिद्ध होते हैं, कितने ही दो भव ग्रहण करके
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-६ आयु Hindi 252 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे णं भंते! परं अलिएणं असब्भूएणं अब्भक्खाणेणं अब्भक्खाति, तस्स णं कहप्पगारा कम्मा कज्जंति? गोयमा! जे णं परं अलिएणं, असंतएणं अब्भक्खाणेणं अब्भक्खाति, तस्स णं तहप्पगारा चेव कम्मा कज्जंति। जत्थेव णं अभिसमागच्छति तत्थेव णं पडिसंवेदेति, तओ से पच्छा वेदेति। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जो दूसरे पर सद्‌भूत का अपलाप और असद्‌भूत का आरोप करके असत्य मिथ्यादोषारोपण करता है, उसे किस प्रकार के कर्म बंधते हैं ? गौतम ! जो दूसरे पर सद्‌भूत का अपलाप और असद्‌भूत का आरोपण करके मिथ्या दोष लगाता है, उसके उसी प्रकार के कर्म बंधते हैं। वह जिस योनि में जाता है, वहीं उन कर्मों को वेदता है और वेदन करने के
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-७ पुदगल कंपन Hindi 253 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] परमाणुपोग्गले णं भंते! एयति वेयति चलति फंदइ घट्टइ खुब्भइ उदीरइ, तं तं भावं परिणमति? गोयमा! सिय एयति वेयति जाव तं तं भावं परिणमति; सिय नो एयति जाव नो तं तं भावं परिणमति। दुप्पएसिए णं भंते! खंधे एयति जाव तं तं भावं परिणमति? गोयमा! सिय एयति जाव तं तं भावं परिणमति। सिय नो एयति जाव नो तं तं भावं परिणमति। सिय देसे एयति, देसे नो एयति। तिप्पएसिए णं भंते! खंधे एयति? गोयमा! सिय एयति, सिय नो एयति। सिय देसे एयति, नो देसे एयति। सिय देसे एयति, नो देसा एयति। सिय देसा एयंति, नो देसे एयति। चउप्पएसिए णं भंते! खंधे एयति? गोयमा! सिय एयति, सिय नो एयति। सिय देसे एयति, नो देसे एयति। सिय देसे एयति, नो देसा

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या परमाणु पुद्‌गल काँपता है, विशेष रूप से काँपता है ? यावत्‌ उस – उस भाव में परिणत होता है? गौतम ! परमाणु पुद्‌गल कदाचित्‌ काँपता है, विशेष काँपता है, यावत्‌ उस – उस भाव में परिणत होता है, कदाचित्‌ नहीं काँपता, यावत्‌ उस – उस भाव में परिणत नहीं होता। भगवन्‌ ! क्या द्विप्रदेशिक स्कन्ध काँपता है, विशेष काँपता
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-७ पुदगल कंपन Hindi 254 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] परमाणुपोग्गले णं भंते! असिधारं वा खुरधारं वा ओगाहेज्जा? हंता ओगाहेज्जा। से णं भंते! तत्थ छिज्जेज्ज वा भिज्जेज्ज वा? गोयमा! नो तिणट्ठे समट्ठे, नो खलु तत्थ सत्थं कमइ। एवं जाव असंखेज्जपएसिओ। अनंतपएसिए णं भंते! खंधे असिधारं वा खुरधारं वा ओगाहेज्जा? हंता ओगाहेज्जा। गोयमा! अत्थेगइए छिज्जेज्ज वा भिज्जेज्ज वा, अत्थेगइए नो छिज्जेज्ज वा नो भिज्जेज्ज वा। परमाणुपोग्गले णं भंते? अगनिकायस्स मज्झंमज्झेणं वीइवएज्जा? हंता वीइवएज्जा। से णं भंते! तत्थ ज्झियाएज्जा? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे, नो खलु तत्थ सत्थं कमइ। से णं भंते! पुक्खलसंवट्टगस्स महामेहस्स मज्झंमज्झेणं वीइवएज्जा? हंता

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या परमाणु पुद्‌गल तलवार की धार या उस्तरे की धार पर अवगाहन करके रह सकता है ? हाँ, गौतम ! वह अवगाहन करके रह सकता है। भगवन्‌ ! उस धार पर अवगाहित होकर रहा हुआ परमाणुपुद्‌गल छिन्न या भिन्न हो जाता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। परमाणुपुद्‌गल में शस्त्र क्रमण (प्रवेश) नहीं कर सकता। इसी तरह यावत्‌ असंख्यप्रदेशी
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शतक-५

उद्देशक-७ पुदगल कंपन Hindi 255 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] परमाणुपोग्गले णं भंते! किं सअड्ढे समज्झे सपएसे? उदाहु अणड्ढे अमज्झे अपएसे? गोयमा! अणड्ढे अमज्झे अपएसे, नो सअड्ढे नो समज्झे नो सपएसे। दुप्पएसिए णं भंते! खंधे किं सअड्ढे समज्झे सपएसे? उदाहु अणड्ढे अमज्झे अपएसे? गोयमा! सअड्ढे अमज्झे सपएसे, नो अणड्ढे नो समज्झे नो अपएसे। तिप्पएसिए णं भंते! खंधे पुच्छा। गोयमा! अणड्ढे समज्झे सपएसे, नो सअड्ढे नो अमज्झे नो अपएसे। जहा दुप्पएसिओ तहा जे समा ते भाणियव्वा, जे विसमा ते जहा तिप्पएसिओ तहा भाणियव्वा। संखेज्जपएसिए णं भंते! खंधे किं सअड्ढे? पुच्छा। गोयमा! सिय सअड्ढे अमज्झे सपएसे, सिय अणड्ढे समज्झे सपएसे। जहा संखेज्जपएसिओ तहा असंखेज्जपएसिओ

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या परमाणु – पुद्‌गल सार्ध, समध्य और सप्रदेश है, अथवा अनर्द्ध, अमध्य और अप्रदेश हैं ? गौतम ! (परमाणुपुद्‌गल) अनर्द्ध, अमध्य और अप्रदेश है, किन्तु, सार्द्ध, समध्य और सप्रदेश नहीं है। भगवन्‌ ! क्या द्विप्रदेशिक स्कन्ध सार्ध, समध्य और सप्रदेश हैं, अथवा अनर्द्ध, अमध्य और अप्रदेश हैं ? गौतम ! द्विप्रदेशी स्कन्ध,
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शतक-५

उद्देशक-७ पुदगल कंपन Hindi 256 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] परमाणुपोग्गले णं भंते! परमाणुपोग्गलं फुसमाणे किं –१. देसेणं देसं फुसइ, २. देसेहिं देसे फुसइ, ३. देसेणं सव्वं फुसइ, ४. देसेहिं देसे फुसइ, ५. देसेहिं देसे फुसइ, ६. देसेहिं सव्वं फुसइ, ७. सव्वेणं देसं फुसइ, ८. सव्वेणं देसे फुसइ, ९. सव्वेणं सव्वं फुसइ? गोयमा! १. नो देसेणं देसं फुसइ, २. नो देसेणं देसे फुसइ, ३. नो देसेणं सव्वं फुसइ, ४. नो देसेहिं देसं फुसइ, ५. नो देसेहिं देसे फुसइ, ६. नो देसेहिं सव्वं फुसइ, ७. नो सव्वेणं देसं फुसइ, ८. नो सव्वेणं देसे फुसइ, ९. सव्वेणं सव्वं फुसइ। परमाणुपोग्गले दुप्पएसियं फुसमाणे सत्तम-नवमेहिं फुसइ। परमाणुपोग्गले तिप्पएसियं फुसमाणे निपच्छिमएहिं तिहिं फुसइ। जहा

Translated Sutra: भगवन्‌ ! परमाणुपुद्‌गल, परमाणुपुद्‌गल को स्पर्श करता हुआ १ – क्या एकदेश से एकदेश को स्पर्श करता है ?, २ – एकदेश से बहुत देशों को स्पर्श करता है ?, ३ – अथवा एकदेश से सबको स्पर्श करता है ?, ४ – अथवा बहुत देशों से एकदेश को स्पर्श करता है ?, ५ – या बहुत देशों से बहुत देशों को स्पर्श करता है ?, ६ – अथवा बहुत देशों से सभी को स्पर्श
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शतक-५

उद्देशक-७ पुदगल कंपन Hindi 257 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] परमाणुपोग्गले णं भंते! कालओ केवच्चिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं एगं समयं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं। एवं जाव अनंतपएसिओ। एगपएसोगाढे णं भंते! पोग्गले सेए तम्मि वा ठाणे वा, अन्नम्मि वा ठाणे कालओ केवच्चिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं एगं समयं, उक्कोसेणं आवलियाए असंखेज्जइभागं। एवं जाव असंखेज्ज-पएसोगाढे। एगपएसोगाढे णं भंते! पोग्गले निरेए कालओ केवच्चिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं एगं समयं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं। एवं जाव असंखेज्जपएसोगाढे। एगगुणकालए णं भंते! पोग्गले कालओ केवच्चिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं एगं समयं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं। एवं जाव अनंतगुणकालए। एवं वण्ण-गंध-रस-फास जाव

Translated Sutra: भगवन्‌ ! परमाणुपुद्‌गल काल की अपेक्षा कब तक रहता है ? गौतम ! परमाणुपुद्‌गल (परमाणुपुद्‌गल के रूप में) जघन्य एक समय तक रहता है, और उत्कृष्ट असंख्यातकाल तक रहता है। इसी प्रकार यावत्‌ अनन्त – प्रदेशीस्कन्ध तक कहना चाहिए। भगवन्‌ ! एक आकाश – प्रदेशावगाढ़ पुद्‌गल उस (स्व) स्थान में या अन्य स्थान में काल की अपेक्षा से
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शतक-५

उद्देशक-७ पुदगल कंपन Hindi 258 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एयस्स णं भंते! दव्वट्ठाणाउयस्स, खेत्तट्ठाणाउयस्स, ओगाहणट्ठाणाउयस्स, भावट्ठाणाउयस्स कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा? बहुया वा? तुल्ला वा? विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवे खेत्तट्ठाणाउए, ओगाहणट्ठाणाउए, असंखेज्जगुणे, दव्वट्ठाणाउए असंखे-ज्जगुणे, भावट्ठाणाउए असंखेज्ज-गुणे।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! इन द्रव्यस्थानायु, क्षेत्रस्थानायु, अवगाहनास्थानायु और भावस्थानायु; इन सबमें कौन किससे कम, अधिक, तुल्य और विशेषाधिक है ? गौतम ! सबसे कम क्षेत्रस्थानायु है, उससे अवगाहनास्थानायु असंख्येय – गुणा है, उससे द्रव्य – स्थानायु असंख्येयगुणा है और उससे भावस्थानायु असंख्येयगुणा है।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-७ पुदगल कंपन Hindi 260 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइया णं भंते! किं सारंभा सपरिग्गहा? उदाहु अनारंभा अपरिग्गहा? गोयमा! नेरइया सारंभा सपरिग्गहा, नो अनारंभा अपरिग्गहा। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–नेरइया सारंभा सपरिग्गहा, नो अनारंभा अपरिग्गहा? गोयमा! नेरइया णं पुढविकायं समारंभंति, आउकायं समारंभंति, तेउकायं समारंभंति, वाउकायं समारंभंति, वणस्सइकायं समारंभंति तसकायं समारंभंति, सरीरा परिग्गहिया भवंति, कम्मा परिग्गहिया भवंति, सचित्ताचित्त-मीसयाइं दव्वाइं परिग्गहियाइं भवंति। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–नेरइया सारंभा सपरिग्गहा, नो अनारंभा अपरिग्गहा। असुरकुमारा णं भंते! किं सारंभा? पुच्छा। गोयमा! असुरकुमारा

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या नैरयिक आरम्भ और परिग्रह से सहित होते हैं, अथवा अनारम्भी एवं अपरिग्रही होते हैं ? गौतम! नैरयिक सारम्भ एवं सपरिग्रह होते हैं, किन्तु अनारम्भी एवं अपरिग्रही नहीं होते। भगवन्‌ ! किस कारण से ऐसा कहा है ? गौतम ! नैरयिक पृथ्वीकाय का यावत्‌ त्रसकाय का समारम्भ करते हैं, तथा उन्होंने शरीर परिगृहीत किये हुए
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-८ निर्ग्रंथी पुत्र Hindi 263 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भंतेत्ति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–जीवा णं भंते! किं वड्ढंति? हायंति? अवट्ठिया? गोयमा! जीवा नो वड्ढंति, नो हायंति, अवट्ठिया। नेरइया णं भंते! किं वड्ढंति? हायंति? अवट्ठिया? गोयमा! नेरइया वड्ढंति वि, हायंति वि, अवट्ठिया वि। जहा नेरइया एवं जाव वेमाणिया। सिद्धा णं भंते! पुच्छा। गोयमा! सिद्धा वड्ढंति, नो हायंति, अवट्ठिया वि। जीवा णं भंते! केवतियं कालं अवट्ठिया? गोयमा! सव्वद्धं। नेरइया णं भंते! केवतियं कालं वड्ढंति? गोयमा! जहन्नेणं एगं समयं, उक्कोसेणं आवलियाए असंखेज्जइभागं। एवं हायंति वि। नेरइया णं भंते! केवतियं कालं अवट्ठिया? गोयमा!

Translated Sutra: ‘भगवन्‌ !’ यों कहकर भगवान गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान महावीर स्वामी से यावत्‌ इस प्रकार पूछा – भगवन्‌ ! क्या जीव बढ़ते हैं, घटते हैं या अवस्थित रहते हैं ? गौतम ! जीव न बढ़ते हैं, न घटते हैं, पर अवस्थित रहते हैं भगवन्‌ ! क्या नैरयिक बढ़ते हैं, अथवा अवस्थित रहते हैं ? गौतम ! नैरयिक बढ़ते भी हैं, घटते भी हैं और अवस्थित भी रहते
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-९ राजगृह Hindi 264 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं जाव एवं वयासी–किमिदं भंते! नगरं रायगिहं ति पवुच्चइ? किं पुढवी नगरं रायगिहं ति पवुच्चइ? किं आऊ नगरं रायगिहं ति पवुच्चइ? किं तेऊ वाऊ वणस्सई नगरं रायगिहं ति पवुच्चइ? किं टंका कूडा सेवा सिहरी पब्भारा नगरं रायगिहं ति पवुच्चइ? किं जल-थल-बिल-गुह-लेणा नगरं रायगिहं ति पवुच्चइ? किं उज्झर-निज्झर-चिल्लल -पल्लल-वप्पिणा नगरं रायगिहं ति पवुच्चइ? किं अगड-तडाग दह-नईओ वावी-पुक्खरिणी-दीहिया गुंजालिया सरा सरपंतियाओ सरसरपंतियाओ बिलपंतियाओ नगरं रायगिहं ति पवुच्चइ? किं आरामुज्जाण-काणणा वणा वणसंडा वणराईओ नगरं रायगिहं ति पवुच्चइ? किं देवउल-सभ-पव-थूभ-खाइय-परिखाओ

Translated Sutra: उस काल और उस समय में यावत्‌ गौतमस्वामी ने श्रमण भगवान महावीर से इस प्रकार पूछा – भगवन्‌ ! यह ‘राजगृह’ नगर क्या है – ? क्या पृथ्वी राजगृह नगर कहलाता है ? अथवा क्या जल राजगृह – नगर कहलाता है ? यावत्‌ वनस्पति क्या राजगृहनगर कहलाता है ? जिस प्रकार ‘एजन’ नामक उद्देशक में पंचेन्द्रियतिर्यग्योनिक जीवों की (परिग्रह –
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-९ राजगृह Hindi 265 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से नूनं भंते! दिया उज्जोए? राइं अंधयारे? हंता गोयमा! दिया उज्जोए, राइं अंधयारे। से केणट्ठेणं? गोयमा! दिया सुभा पोग्गला सुभे पोग्गलपरिणामे, राइं असुभा पोग्गला असुभे पोग्गलपरिणामे। से तेणट्ठेणं। नेरइयाणं भंते! किं उज्जोए? अंधयारे? गोयमा! नेरइयाणं नो उज्जोए, अंधयारे। से केणट्ठेणं? गोयमा! नेरइयाणं असुभा पोग्गला असुभे पोग्गलपरिणामे। से तेणट्ठेणं। असुरकुमाराणं भंते! किं उज्जोए? अंधयारे? गोयमा! असुरकुमाराणं उज्जोए, नो अंधयारे। से केणट्ठेणं? गोयमा! असुरकुमाराणं सुभा पोग्गला सुभे पोग्गलपरिणामे। से तेणट्ठेणं। जाव थणियकुमाराणं। पुढविक्काइया जाव तेइंदिया जहा नेरइया। चउरिंदियाणं

Translated Sutra: हे भगवन्‌ ! क्या दिन में उद्योत और रात्रि में अन्धकार होता है ? हाँ, गौतम ! दिन में उद्योत और रात्रि में अन्धकार होता है। भगवन्‌ ! किस कारण से दिन में उद्योत और रात्रि में अन्धकार होता है ? गौतम ! दिन में शुभ पुद्‌गल होते हैं अर्थात्‌ शुभ पुद्‌गल – परिणाम होते हैं, किन्तु रात्रि में अशुभ पुद्‌गल अर्थात्‌ अशुभपुद्‌गल
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-९ राजगृह Hindi 266 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अत्थि णं भंते! नेरइयाणं तत्थगयाणं एवं पण्णायए, तं जहा–समया इ वा, आवलिया इ वा जाव ओसप्पिणी इ वा, उस्सप्पिणी इ वा? नो तिणट्ठे समट्ठे। से केणट्ठेण भंते! एवं वुच्चइ–नेरइयाणं तत्थगयाणं नो एवं पण्णायए, तं जहा–समया इ वा, आवलिया इ वा जाव ओसप्पिणी इ वा, उस्सप्पिणी इ वा? गोयमा! इहं तेसिं माणं, इहं तेसिं पमाणं, इहं तेसिं एवं पण्णायए, तं जहा–समया इ वा जाव उस्सप्पिणी इ वा। से तेणट्ठेणं जाव नो एवं पण्णायए, तं जहा–समया इ वा जाव उस्सप्पिणी इ वा। एवं जाव पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं। अत्थि णं भंते! मनुस्साणं इहगयाणं एवं पण्णायते, तं जहा–समया इ वा जाव उस्सप्पिणी इ वा? हंता अत्थि। से केणट्ठेणं?

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या वहाँ (नरकक्षेत्र में) रहे हुए नैरयिकों को इस प्रकार का प्रज्ञान होता है, जैसे कि – समय, आवलिका, यावत्‌ उत्सर्पिणी काल (या) अवसर्पिणी काल ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। भगवन्‌ ! किस कारण से नरकस्थ नैरयिकों को काल का प्रज्ञान नहीं होता ? गौतम ! यहाँ (मनुष्यलोक में) समयादि का मान है, यहाँ उनका प्रमाण है, इसलिए
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