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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१५ गोशालक |
Hindi | 656 | Sutra | Ang-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदति नमंसति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पियाणं अंतेवासी पाईणजाणवए सव्वाणुभूती नामं अनगारे पगइभद्दए जाव विनीए, से णं भंते! तदा गोसालेणं मंखलिपुत्तेणं तवेणं तेएणं भासरासीकए समाणे कहिं गए? कहिं उववन्ने?
एवं खलु गोयमा! ममं अंतेवासी पाईणजाणवए सव्वाणुभूती नामं अनगारे पगइभद्दए जाव विनीए, से णं तदा गोसालेणं मंखलिपुत्तेणं तवेणं तेएणं भासरासीकए समाणे उड्ढं चंदिम-सूरिय जाव बंभ-लंतक-महासुक्के कप्पे वीइवइत्ता सहस्सारे कप्पे देवत्ताए उववन्ने। तत्थ णं अत्थेगतियाणं देवाणं अट्ठारस सागरोवमाइं ठिती पन्नत्ता। तत्थ Translated Sutra: गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान महावीर स्वामी को वन्दन – नमस्कार करके पूछा – ‘भगवन् ! देवानुप्रिय का अन्तेवासी पूर्वदेश में उत्पन्न सर्वानुभूति नामक अनगार, जो कि प्रकृति से भद्र यावत् विनीत था, और जिसे मंखलिपुत्र गोशालक ने अपने तप – तेज से भस्म कर दिया था, वह मरकर कहाँ गया, कहाँ उत्पन्न हुआ ? हे गौतम! वह ऊपर चन्द्र | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१५ गोशालक |
Hindi | 657 | Sutra | Ang-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु देवानुप्पियाणं अंतेवासी कुसिस्से गोसाले नामं मंखलिपुत्ते से णं भंते! गोसाले मंखलिपुत्ते कालमासे कालं किच्चा कहिं गए? कहिं उववन्ने?
एवं खलु गोयमा! ममं अंतेवासी कुसिस्से गोसाले नामं मंखलिपुत्ते समणघायए जाव छउमत्थे चेव कालमासे कालं किच्चा उड्ढं चंदिम-सूरिय जाव अच्चुए कप्पे देवत्ताए उववन्ने। तत्थ णं अत्थेगतियाणं देवाणं बावीसं सागरोवमाइं ठिती पन्नत्ता। तत्थ णं गोसालस्स वि देवस्स बावीसं सागरोवमाइं ठिती पन्नत्ता।
से णं भंते! गोसाले देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अनंतरं चयं चइत्ता कहिं गच्छिहिति? कहिं उववज्जिहिति?
गोयमा! इहेव जंबुद्दीवे Translated Sutra: भगवन् ! देवानुप्रिय का अन्तेवासी कुशिष्य गोशालक मंखलिपुत्र काल के अवसर में काल करके कहाँ गया, कहाँ उत्पन्न हुआ ? हे गौतम ! वह ऊंचे चन्द्र और सूर्य का यावत् उल्लंघन करके अच्युतकल्प में देवरूप में उत्पन्न हुआ है। वहाँ गोशालक की स्थिति भी बाईस सागरोपम की है। भगवन् ! वह गोशालक देव उस देवलोक से आयुष्य, भव और स्थिति | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१५ गोशालक |
Hindi | 658 | Sutra | Ang-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] विमलवाहने णं भंते! राया सुमंगलेणं अनगारेणं सहये जाव भासरासीकए समाणे कहिं गच्छिहिति? कहिं उववज्जिहिति?
गोयमा! विमलवाहने णं राया सुमंगलेणं अनगारेणं सहये जाव भासरासीकए समाणे अहेसत्तमाए पुढवीए उक्कोसकालट्ठिइयंसि नरयंसि नेरइयत्ताए उववज्जिहिति।
से णं ततो अनंतरं उव्वट्टित्ता मच्छेसु उववज्जिहिति। तत्थ वि णं सत्थवज्झे दाहवक्कंतीए कालमासे कालं किच्चा दोच्चं पि अहेसत्तमाए पुढवीए उक्कोसकालट्ठिइयंसि नरयंसि नेरइयत्ताए उववज्जिहिति।
से णं तओनंतरं उव्वट्टित्ता दोच्चं पि मच्छेसु उववज्जिहिति। तत्थ णं वि सत्थवज्झे दाहवक्कंतीए कालमासे कालं किच्चा छट्ठाए तमाए पुढवीए Translated Sutra: भगवन् ! सुमंगल अनगार द्वारा अश्व, रथ और सारथि – सहित भस्म किया हुआ विमलवाहन राजा कहाँ उत्पन्न होगा ? गौतम ! वह अधःसप्तम पृथ्वी में, उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले नरकों में नैरयिकरूप से उत्पन्न होगा। वहाँ से यावत् उद्वर्त्त कर मत्स्यों में उत्पन्न होगा। वहाँ भी शस्त्र के द्वारा वध होने पर दाहज्वर की पीड़ा से काल | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१५ गोशालक |
Hindi | 659 | Sutra | Ang-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे विंज्झगिरिपायमूले बेभेले सन्निवेसे माहणकुलंसि दारियत्ताए पच्चायाहिति।
तए णं तं दारियं अम्मापियरो उम्मुक्कवालभावं जोव्वणगमणुप्पत्तं पडिरूवएणं सुक्केणं, पडिरूवएणं विनएणं, पडिरूवयस्स भत्तारस्स भारियत्ताए दलइस्सति। सा णं तस्स भारिया भविस्सति–इट्ठा कंता जाव अणुमया, भंडकरंडगसमाणा तेल्लकेला इव सुसंगोविया, चेलपेडा इव सुसंपरिग्गहिया, रयणकरंडओ विव सुसारक्खिया, सुसंगोविया, मा णं सीयं, मा णं उण्हं जाव परिसहो-वसग्गा फुसंतु। तए णं सा दारिया अन्नदा कदायि गुव्विणी ससुरकुलाओ कुलघरं निज्जमाणी अंतरा दवग्गिजालाभिहया काल-मासे कालं Translated Sutra: वहाँ भी शस्त्र से वध होने पर यावत् काल करके इसी जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में विन्ध्य – पर्वत के पादमूल में बेभेल सन्निवेश में ब्राह्मणकुल में बालिका के रूप में उत्पन्न होगा। वह कन्या जब बाल्यावस्था का त्याग करके यौवनवय को प्राप्त होगी, तब उसके माता – पिता उचित शुल्क और उचित विनय द्वारा पति को भार्या के रूप | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१६ |
उद्देशक-२ जरा | Hindi | 667 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: तेणं कालेणं तेणं समएणं सक्के देविंदे देवराया वज्जपाणी पुरंदरे जाव दिव्वाइ भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरइ। इमं च णं केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं विपुलेणं ओहिणा आभोएमाणे-आभोएमाणे पासति, एत्थ णं समणं भगवं महावीरं जंबुद्दीवे दीवे। एवं जहा ईसाने तइयसए तहेव सक्के वि, नवरं–आभिओगे ण सद्दावेति, हरी पायत्ताणियाहिवई, सुघोसा घंटा, पालओ विमानकारी, पालगं विमाणं, उत्तरिल्ले निज्जाणमग्गे, दाहिणपुरत्थिमिल्ले रतिकरपव्वए, सेसं तं चेव जाव नामगं सावेत्ता पज्जुवासति। धम्मकहा जाव परिसा पडिगया।
तए णं से सक्के देविंदे देवराया समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठे समणं Translated Sutra: उस काल एवं उस समय में शक्र देवेन्द्र देवराज, वज्रपाणि, पुरन्दर यावत् उपभोग करता हुआ विचरता था। वह इस सम्पूर्ण जम्बूद्वीप की ओर अपने विपुल अवधिज्ञान का उपयोग लगा – लगाकर जम्बूद्वीप में श्रमण भगवान महावीर को देख रहा था। यहाँ तृतीय शतक में कथित ईशानेन्द्र की वक्तव्यता के समान शक्रेन्द्र कहना। विशेषता यह है | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१६ |
उद्देशक-२ जरा | Hindi | 669 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवाणं भंते! किं चेयकडा कम्मा कज्जंति? अचेयकडा कम्मा कज्जंति?
गोयमा! जीवाणं चेयकडा कम्मा कज्जंति, नो अचेयकडा कम्मा कज्जंति।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–जीवाणं चेयकडा कम्मा कज्जंति, नो अचेयकडा कम्मा कज्जंति?
गोयमा! जीवाणं आहारोवचिया पोग्गला, बोंदिचिया पोग्गला, कलेवरचिया पोग्गला तहा तहा णं ते पोग्गला परिणमंति, नत्थि अचेयकडा कम्मा समणाउसो! दुट्ठाणेसु, दुसेज्जासु, दुन्निसीहियासु तहा तहा णं ते पोग्गला परिणमंति, नत्थि अचेयकडा कम्मा समणाउसो! आयंके से वहाए होति, संकप्पे से वहाए होति, मरणंते से वहाए होति तहा तहा णं ते पोग्गला परिणमंति, नत्थिअचेयकडा कम्मा समणाउसो! Translated Sutra: भगवन् ! जीवों के कर्म चेतनकृत होते हैं या अचेतनकृत होते हैं ? गौतम ! जीवों के कर्म चेतनकृत होते हैं, अचेतनकृत नहीं होते हैं। भगवन् ! ऐसा क्यों कहा जाता है ? गौतम ! जीवों के आहार रूप से उपचित जो पुद्गल हैं, शरीररूप से जो संचित पुद्गल हैं और कलेवर रूप से जो उपचित पुद्गल हैं, वे तथा – तथा रूप से परिणत होते हैं, इसलिए | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१६ |
उद्देशक-३ कर्म | Hindi | 671 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं समणे भगवं महावीरे अन्नदा कदायि रायगिहाओ नगराओ गुणसिलाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता बहिया जनवयविहारं विहरइ।
तेणं कालेणं तेणं समएणं उल्लुयतीरे नामं नगरे होत्था–वण्णओ। तस्स णं उल्लुयतीरस्स नगरस्स बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसिभाए, एत्थ णं एगजंबुए नामं चेइए होत्था–वण्णओ। तए णं समणे भगवं महावीरे अन्नदा कदायि पुव्वानुपुव्विं चर-माणे गामानुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे एगजंबुए समोसढे जाव परिसा पडिगया।
भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–अनगारस्स णं भंते! भावियप्पणो छट्ठंछट्ठेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं Translated Sutra: किसी समय एक दिन श्रमण भगवान महावीर राजगृहनगर के गुणशीलक नामक उद्यान से नीकले और बाहर के (अन्य) जनपदों में विहार करने लगे। उस काल उस समय में उल्लूकतीर नामका नगर था। (वर्णन) उस उल्लूकतीर नगर के बाहर ईशानकोण में ‘एकजम्बुक’ उद्यान था। एक बार किसी दिन श्रमण भगवान महावीर स्वामी अनुक्रम से विचरण करते हुए यावत् ‘एकजम्बूक’ | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१६ |
उद्देशक-५ गंगदत्त | Hindi | 674 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–अन्नदा णं भंते! सक्के देविंदे देवराया देवाणुप्पियं वंदति नमंसति सक्कारेति जाव पज्जुवासति, किण्णं भंते! अज्ज सक्के देविंदे देवराया देवाणुप्पियं अट्ठ उक्खित्तपसिणवागरणाइं पुच्छइ, पुच्छित्ता संभंतियवंदनएणं वंदइ नमंसइ जाव पडिगए?
गोयमादि! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं एवं वयासी–एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं महासुक्के कप्पे महासामाणे विमाने दो देवा महिड्ढिया जाव महेसक्खा एगविमाणंसि देवत्ताए उववन्ना, तं जहा–मायिमिच्छदिट्ठिउववन्नए य, अमायिसम्मदिट्ठिउववन्नए य।
तए णं से मायिमिच्छदिट्ठिउववन्नए Translated Sutra: भगवन् ! गौतम ने श्रमण भगवान महावीर को वन्दन – नमस्कार करके पूछा – भगवन् ! अन्य दिनों में देवेन्द्र देवराज शक्र (आता है, तब) आप देवानुप्रिय को वन्दन – नमस्कार करता है, आपका सत्कार – सन्मान करता है, यावत् आपकी पर्युपासना करता है; किन्तु भगवन् ! आज तो देवेन्द्र देवराज शक्र आप देवानुप्रिय से संक्षेप में आठ प्रश्नों | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१६ |
उद्देशक-५ गंगदत्त | Hindi | 675 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जावं च णं समणे भगवं महावीरे भगवओ गोयमस्स एयमट्ठं परिकहेति तावं च णं से देवे तं देसं हव्वमागए। तए णं से देवे समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–एवं खलु भंते! महासुक्के कप्पे महासामाणे विमाने एगे मायिमिच्छदिट्ठि-उववन्नए देवे ममं एवं वयासी–परिणममाणा पोग्गला नो परिणया, अपरिणया; परिणमंतीति पोग्गला नो परिणया, अपरिणया। तए णं अहं तं मायिमिच्छदिट्ठिउववन्नगं देवं एवं वयासी–परिणममाणा पोग्गला परिणया, नो अपरिणया; परिणमंतीति पोग्गला परिणया, नो अपरिणया, से कहमेयं भंते! एवं?
गंगदत्तादि! समणे भगवं महावीरे गंगदत्तं Translated Sutra: जब श्रमण भगवान महावीर स्वामी भगवान गौतम स्वामी से यह बात कह रहे थे, इतने में ही वह देव शीघ्र ही वहाँ आ पहुँचा। उस देव ने आते ही श्रमण भगवान महावीर की तीन बार प्रदक्षिणा की, फिर वन्दन – नमस्कार किया और पूछा – भगवन् ! महाशुक्र कल्प में महासामान्य विमान में उत्पन्न हुए एक मायीमिथ्यादृष्टि देव ने मुझे इस प्रकार | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१६ |
उद्देशक-५ गंगदत्त | Hindi | 676 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–गंगदत्तस्स णं भंते! देवस्स सा दिव्वा देविड्ढी दिव्वा देवज्जुती दिव्वे देवानुभावे कहिं गते? कहिं अनुप्पविट्ठे?
गोयमा! सरीरं गए, सरीरं अनुप्पविट्ठे, कूडागारसालादिट्ठंतो जाव सरीरं अनुप्पविट्ठे। अहो णं भंते! गंगदत्ते देवे महिड्ढिए महज्जुइए महब्बले महायसे महेसक्खे।
गंगदत्तेणं भंते! देवेणं सा दिव्वा देविड्ढी सा दिव्वा देवज्जुती से दिव्वे देवाणुभागे किण्णा लद्धे? किण्णा पत्ते? किण्णा अभिसमन्नागए? पुव्वभवे के आसी? किं नामए वा? किं वा गोत्तेणं?
कयरंसि वा गामंसि वा नगरंसि वा निगमंसि वा Translated Sutra: भगवान गौतम ने श्रमण भगवान महावीर से यावत् पूछा – ‘भगवन् ! गंगदत्त देव की वह दिव्य देवर्द्धि, दिव्य देवद्युति यावत् कहाँ गई, कहाँ प्रविष्ट हो गई ?’ गौतम ! यावत् उस गंगदत्त देव के शरीर में गई और शरीर में ही अनुप्रविष्ट हो गई। यहाँ कूटाकारशाला का दृष्टान्त, यावत् वह शरीर में अनुप्रविष्ट हुई, (तक समझना चाहिए।) | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१७ |
उद्देशक-६ पृथ्वीकायिक | Hindi | 709 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पुढविक्काइए णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए समोहए, समोहणित्ता जे भविए सोहम्मे कप्पे पुढविक्काइयत्ताए उववज्जित्तए, से णं भंते! किं पुव्विं उववज्जित्ता पच्छा संपाउणेज्जा? पुव्विं संपाउणित्ता पच्छा उववज्जेज्जा?
गोयमा! पुव्विं वा उववज्जित्ता पच्छा संपाउणेज्जा, पुव्विं वा संपाउणित्ता पच्छा उववज्जेज्जा।
से केणट्ठेणं जाव पच्छा उववज्जेज्जा?
गोयमा! पुढविक्काइयाणं तओ समुग्घाया पन्नत्ता, तं जहा–वेदनासमुग्घाए, कसायसमुग्घाए, मारणंतियसमुग्घाए। मारणंति-यसमुग्घाएणं समोहण्णमाणे देसेण वा समोहण्णति, सव्वेण वा समोहण्णति, देसेण वा समोहण्णमाणे पुव्विं संपाउणित्ता Translated Sutra: भगवन् ! जो पृथ्वीकायिक जीव, इस रत्नप्रभापृथ्वी में मरण – समुद्घात करके सौधर्मकल्प में पृथ्वीकायिक रूप से उत्पन्न होने के योग्य हैं, वे पहले उत्पन्न होते हैं और पीछे आहार ग्रहण करते हैं, अथवा पहले आहार ग्रहण करते हैं और पीछे उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे पहले उत्पन्न होते हैं और पीछे पुद्गल ग्रहण करते हैं; अथवा | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१७ |
उद्देशक-७ पृथ्वीकायिक | Hindi | 710 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पुढविक्काइए णं भंते! सोहम्मे कप्पे समोहए, समोहणित्ता जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पुढविक्काइयत्ताए उववज्जित्तए, से णं भंते! किं पुव्विं उववज्जित्ता पच्छा संपाउणेज्जा? सेसं तं चेव। जहा रयणप्पभाए पुढविक्काइए सव्वकप्पेसु जाव ईसिपब्भाराए ताव उववाइओ, एवं सोहम्मपुढविक्काइओ वि सत्तसु वि पुढवीसु उववाएयव्वो जाव अहेसत्तमाए।
एवं जहा सोहम्मपुढविकाइओ सव्वपुढवीसु उववाइओ, एवं जाव ईसिंपब्भारापुढविक्काइओ सव्वपुढवीसु उववाएयव्वो जाव अहेसत्तमाए।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! जो पृथ्वीकायिक जीव, सौधर्मकल्प में मरण – समुद्घात करके इस रत्नप्रभापृथ्वी में पृथ्वीकायिक रूप से उत्पन्न होने योग्य है, वे पहले उत्पन्न होते हैं और पीछे आहार (पुद्गल) ग्रहण करते हैं अथवा पहले आहार (पुद्गल) ग्रहण करते हैं और पीछे उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! रत्नप्रभापृथ्वी के पृथ्वीकायिक जीवों यावत् | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१७ |
उद्देशक-८ अप्कायिक | Hindi | 711 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] आउक्काइए णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए समोहए, समोहणित्ता जे भविए सोहम्मे कप्पे आउक्काइयत्ताए उववज्जित्तए? एवं जहा पुढविक्काइओ तहा आउक्काइओ वि सव्वकप्पेसु जाव ईसिंपब्भाराए तहेव उववाएयव्वो।
एवं जहा रयणप्पभआउक्काइओ उववाइओ तहा जाव अहेसत्तमआउक्काइओ उववाएयव्वो जाव ईसिंपब्भाराए।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! जो अप्कायिक जीव, इस रत्नप्रभा पृथ्वी में मरण – समुद्घात करके सौधर्मकल्प में अप्कायिक – रूप में उत्पन्न होने के योग्य हैं इत्यादि प्रश्न। गौतम ! पृथ्वीकायिक जीवों के अनुसार अप्कायिक जीवों के विषय में सभी कल्पों में यावत् ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी तक उत्पाद कहना चाहिए। रत्नप्रभापृथ्वी के अप्कायिक | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१७ |
उद्देशक-९ अप्कायिक | Hindi | 712 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] आउक्काइए णं भंते! सोहम्मे कप्पे समोहए, समोहणित्ता जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए घनोदहिवलएसु आउक्काइयत्ताए उववज्जित्तए, से णं भंते? सेसं तं चेव, एवं जाव अहेसत्तमाए। जहा सोहम्मआउक्काइओ एवं जाव ईसिंपब्भारा-आउक्काइओ जाव अहेसत्तमाए उववाएयव्वो।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! जो अप्कायिक जीव, सौधर्मकल्प में मरण – समुद्घात करके इस रत्नप्रभा पृथ्वी के घनोदधि – वलयों में अप्कायिक रूप से उत्पन्न होने के योग्य हैं इत्यादि प्रश्न। गौतम ! शेष सभी पूर्ववत्। जिस प्रकार सौधर्मकल्प के अप्कायिक जीवों का नरक – पृथ्वीयों में उत्पाद कहा, उसी प्रकार ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी तक के अप्कायिक | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१७ |
उद्देशक-१० ११ वायुकायिक | Hindi | 713 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] वाउक्काइए णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए जाव जे भविए सोहम्मे कप्पे वाउक्काइयत्ताए उववज्जित्तए, से णं भंते? जहा पुढविक्काइओ तहा वाउक्काइओ वि, नवरं–वाउक्काइयाणं चत्तारि समुग्घाया पन्नत्ता, तं जहा–वेदनासमुग्घाए जाव वेउव्वियसमुग्घाए। मारणंतियसमुग्घाए णं समोहण्णमाणे देसेण वा समोहण्णइ, सेसं तं चेव जाव अहेसत्तमाए समोहओ ईसिंपब्भाराए उववाएयव्वो।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! जो वायुकायिक जीव, इस रत्नप्रभापृथ्वी में मरण – समुद्घात करके सौधर्मकल्प में वायुकायिक रूप में उत्पन्न होने के योग्य हैं, इत्यादि प्रश्न। गौतम ! पृथ्वीकायिक जीवों के समान वायुकायिक जीवों का भी कथन करना चाहिए। विशेषता यह है कि वायुकायिक जीवों में चार समुद्घात कहे गए हैं, यथा – वेदनासमुद्घात यावत् | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१७ |
उद्देशक-१० ११ वायुकायिक | Hindi | 714 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] वाउक्काइए णं भंते! सोहम्मे कप्पे समोहए, समोहणित्ता जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए घनवाए, तनुवाए घनवायवलएसु, तणुवायवलएसु वाउक्काइयत्ताए उववज्जित्तए, से णं भंते? सेसं तं चेव। एवं जहा सोहम्मे वाउक्काइओ सत्तसु वि पुढवीसु उववाइओ एवं जाव ईसिंपब्भारावाउक्काइओ अहेसत्तमाए जाव उववाएयव्वो।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! जो वायुकायिक जीव, सौधर्मकल्प में समुद्घात करके इस रत्नप्रभापृथ्वी के घनवात, तनुवात, घनवातवलयों और तनुवातवलयों में वायुकायिक रूप में उत्पन्न होने योग्य हैं इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न। गौतम ! शेष सब पूर्ववत् कहना चाहिए। जिस प्रकार सौधर्मकल्प के वायुकायिक जीवों – का उत्पाद सातों नरकपृथ्वीयों में | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१८ |
उद्देशक-२ विशाखा | Hindi | 727 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं विसाहा नामं नगरी होत्था–वण्णओ। बहुपुत्तिए चेइए–वण्णओ। सामी समोसढे जाव पज्जुवासइ। तेणं कालेणं तेणं समएणं सक्के देविंदे देवराया वज्जपाणी पुरंदरे–एवं जहा सोलसमसए बितियउद्देसए तहेव दिव्वेणं जाणविमानेणं आगओ, नवरं–एत्थं आभियोगा वि अत्थि जाव बत्तीसतिविहं नट्टविहिं उवदंसेत्ता जाव पडिगए।
भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–जहा तइयसए ईसानस्स तहेव कूडागारदिट्ठंतो, तहेव पुव्वभवपुच्छा जाव अभिसमन्नागए?
गोयमादि! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं एवं वयासी–एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे Translated Sutra: उस काल एवं उस समय में विशाखा नामकी नगरी थी। वहाँ बहुपुत्रिक नामक चैत्य था। (वर्णन) एक बार वहाँ श्रमण भगवान महावीर स्वामी का पदार्पण हुआ, यावत् परीषद् पर्युपासना करने लगी। उस काल और उस समय में देवेन्द्र देवराज शक्र, वज्रपाणि, पुरन्दर इत्यादि सोलहवें शतक के द्वीतिय उद्देशक में शक्रेन्द्र का जैसा वर्णन है, | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१८ |
उद्देशक-१० सोमिल | Hindi | 755 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: Translated Sutra: भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नीचे वर्ण से – काला, नीला, पीला, लाल और श्वेत, गन्ध से – सुगन्धित और दुर्गन्धित; रस से – तिक्त, कटुक कसैला, अम्ल और मधुर; तथा स्पर्श से – कर्कश, मृदु, गुरु, लघु, शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष – इन बीस बोलों से युक्त द्रव्य क्या अन्योन्य बद्ध, अन्योन्य स्पृष्ट, यावत् अन्योन्य सम्बद्ध हैं | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१८ |
उद्देशक-१० सोमिल | Hindi | 756 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणियगामे नामं नगरे होत्था–वण्णओ। दूतिपलासए चेइए–वण्णओ। तत्थ णं वाणियगामे नगरे सोमिले नामं माहणे परिवसति अड्ढे जाव बहुजणस्स अपरिभूए, रिव्वेद जाव सुपरिनिट्ठिए, पंचण्हं खंडियसयाणं, सयस्स य, कुडुंबस्स आहेवच्चं पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं आणा-ईसर-सेनावच्चं कारेमाणे पालेमाणे विहरइ। तए णं समणे भगवं महावीरे जाव समोसढे जाव परिसा पज्जुवासति।
तए णं तस्स सोमिलस्स माहणस्स इमीसे कहाए लद्धट्ठस्स समाणस्स अयमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–एवं खलु समणे नायपुत्ते पुव्वानुपुव्विं चरमाणे गामानुगामं दूइज्जमाणे Translated Sutra: उस काल उस समय में वाणिज्यग्राम नामक नगर था। वहाँ द्युतिपलाश नाम का (चैत्य) था। उस वाणिज्य ग्राम नगर में सोमिल ब्राह्मण रहता था। जो आढ्य यावत् अपराभूत था तथा ऋग्वेद यावत् अथर्ववेद, तथा शिक्षा, कल्प आदि वेदांगों में निष्णात था। वह पाँच – सौ शिष्यों और अपने कुटुम्ब पर आधिपत्य करता हुआ यावत् सुख – पूर्वक जीवनयापन | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२० |
उद्देशक-६ अंतर | Hindi | 791 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] वाउक्काइए णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए सक्करप्पभाए य पुढवीए अंतरा समोहए, समोहणित्ता जे भविए सोहम्मे कप्पे वाउक्काइयत्ताए उववज्जित्तए? एवं जहा सत्तरसमसए वाउक्काइयउद्देसए तहा इह वि, नवरं–अंतरेसु समोहणा नेयव्वा, सेसं तं चेव जाव अनुत्तरविमानाणं ईसीपब्भाराए य पुढवीए अंतरा समोहए, समोहणित्ता जे भविए घनवाय-तनुवाए घनवाय-तनुवायवलएसु वाउक्काइयत्ताए उववज्जित्तए, सेसं तं चेव जाव से तेणट्ठेणं जाव उववज्जेज्जा।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! जो वायुकायिक जीव, इस रत्नप्रभा और शर्कराप्रभा पृथ्वी के मध्य में मरणसमुद्घात करके सौधर्मकल्प में वायुकायिक रूप से उत्पन्न होने योग्य हैं; इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न। गौतम ! सत्तरहवे शतक के दसवे उद्देशक समान यहाँ भी कहना। विशेष यह है कि रत्नप्रभा आदि पृथ्वीयों के अन्तरालों में मरणसमुद्घातपूर्वक | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२० |
उद्देशक-९ चारण | Hindi | 801 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहा णं भंते! चारणा पन्नत्ता?
गोयमा! दुविहा चारणा पन्नत्ता, तं जहा–विज्जाचारणा य, जंघाचारणा य।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–विज्जाचारणे-विज्जाचारणे?
गोयमा! तस्स णं छट्ठंछट्ठेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं विज्जाए उत्तरगुणलद्धिं खममाणस्स विज्जाचारणलद्धी नामं लद्धी समुप्पज्जइ। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ– विज्जाचारणे-विज्जाचारणे।
विज्जाचारणस्स णं भंते! कहं सीहा गतो, कहं सीहे गतिविसए पन्नत्ते?
गोयम! अयन्नं जंबुद्दीवे दीवे जाव किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं। देवे णं महिड्ढीए जाव महेसक्खे जाव इणामेव-इणामेव त्ति कट्टु केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं तिहिं अच्यरानिवाएहिं Translated Sutra: भगवन् ! चारण कितने प्रकार के कहे हैं ? गौतम ! दो प्रकार के, यथा – विद्याचारण और जंघाचारण। भगवन् विद्याचारण मुनि को ‘विद्याचारण’ क्यों कहते हैं ? अन्तर – रहित छट्ठ – छट्ठ के तपश्चरणपूर्वक पूर्वश्रुतरूप विद्या द्वारा तपोलब्धि को प्राप्त मुनि को विद्याचारणलब्धि नामकी लब्धि उत्पन्न होती है। इस कारण से यावत् | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२० |
उद्देशक-९ चारण | Hindi | 802 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–जंघाचारणे-जंघाचारणे?
गोयमा! तस्स णं अट्ठमंअट्ठमेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं अप्पाणं भावेमाणस्स जंघाचारणलद्धी नाम लद्धी समुप्पज्जति। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–जंघाचारणे-जंघाचारणे।
जंघाचारणस्स णं भंते! कहं सीहा गती, कहं सीहे गतिविसए पन्नत्ते?
गोयमा! अयन्नं जंबुद्दीवे दीवे जाव किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं। देवे णं महिड्ढीए जाव महेसक्खे जाव इणामेव-इणामेव त्ति कट्टु केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं तिहि अच्छरानिवाएहिं तिसत्तखुत्तो अनुपरियट्टित्ता णं हव्वमागच्छेज्जा, जंघाचारणस्स णं गोयमा! तहा सीहा गती, तहा सीहे गतिविसए पन्नत्ते।
जंघाचारणस्स Translated Sutra: भगवन् ! जंघाचारण को जंघाचारण क्यों कहते हैं ? गौतम ! अन्तररहित अट्ठम – अट्ठम के तपश्चरण – पूर्वक आत्मा को भावित करते हुए मुनि को ‘जंघाचारण’ नामक लब्धि उत्पन्न होती है, इस कारण उसे ‘जंघाचारण’ कहते हैं भगवन् ! जंघाचारण की शीघ्र गति कैसी होती है और उसकी शीघ्रगति का विषय कितना होता है ? गौतम ! समग्र वर्णन विद्याचारणवत्। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२४ |
उद्देशक-१ नैरयिक | Hindi | 840 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पज्जत्तसंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते! जे भविए सक्करप्पभाए पुढवीए नेरइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा?
गोयमा! जहन्नेणं सागरोवमट्ठितीएसु, उक्कोसेणं तिसागरोवमट्ठितीएसु उववज्जेज्जा।
ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति? एवं जहेव रयणप्पभाए उववज्जंतगस्स लद्धी सच्चेव निरवसेसा भाणियव्वा जाव भवादेसो त्ति। कालादेसं जहन्नेणं सागरोवमं अंतोमुहुत्तमब्भहियं, उक्कोसेणं बारस सागरोवमाइं चउहिं पुव्वकोडीहिं अब्भहियाइं, एवत्तियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। एवं रयणप्पभपुढविगमसरिसा नव वि गमगा Translated Sutra: भगवन् ! पर्याप्त संख्येयवर्षायुष्क संज्ञी – पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक, जो शर्कराप्रभा पृथ्वी में नैरयिक रूप से उत्पन्न होने योग्य हो, वह कितने काल की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! जघन्य एक सागरोपम और उत्कृष्ट तीन सागरोपम की स्थिति वालों में। भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२४ |
उद्देशक-१२ थी १६ पृथ्व्यादि | Hindi | 848 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ मनुस्सेहिंतो उववज्जंति– किं सण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति? असण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति?
गोयमा! सण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति, असण्णिमनुस्सेहिंतो वि उववज्जंति।
असण्णिमनुस्से णं भंते! जे भविए पुढविक्काइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकाल-ट्ठितीएसु उववज्जेज्जा? एवं जहा असण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणियस्स जहन्नकालट्ठितीयस्स तिन्नि गमगा तहा एयस्स वि ओहिया तिन्नि गमगा भाणियव्वा तहेव निरवसेसं। सेसा छ न भण्णंति।
जइ सण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति–किं संखेज्जवासाउय? असंखेज्जवासाउय?
गोयमा! संखेज्जवासाउय, नो असंखेज्जवासाउय।
जइ संखेज्जवासाउय किं पज्जत्तासंखेज्जवासाउय? Translated Sutra: (भगवन् !) यदि वे (पृथ्वीकायिक) मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या वे संज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं या असंज्ञी मनुष्यों से ? गौतम ! वे दोनों प्रकार के मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं। भगवन् ! असंज्ञी मनुष्य, कितने काल की स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होता है ? जघन्य काल की स्थिति वाले | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२४ |
उद्देशक-२० तिर्यंच पंचेन्द्रिय | Hindi | 856 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पंचिंदियतिरिक्खजोणिया णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति– किं नेरइएहिंतो उववज्जंति? तिरिक्ख-जोणिएहिंतो उववज्जंति? मनुस्सेहिंतो देवेहिंतो उववज्जंति?
गोयमा! नेरइएहिंतो उववज्जंति, तिरिक्खजोणिएहिंतो, मनुस्सेहिंतो वि, देवेहिंतो वि उववज्जंति।
जइ नेरइएहिंतो उववज्जंति– किं रयणप्पभपुढविनेरइएहिंतो उववज्जंति जाव अहेसत्तमपुढवि-नेरइएहिंतो उववज्जंति?
गोयमा! रयणप्पभपुढविनेरइएहिंतो उववज्जंति जाव अहेसत्तमपुढविनेरइएहिंतो उववज्जंति।
रयणप्पभपुढविनेरइए णं भंते! जे भविए पंचिंदियतिरिक्खजोणिएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठि-तीएसु उववज्जेज्जा?
गोयमा! जहन्नेणं Translated Sutra: भगवन् ! पंचेन्द्रिय – तिर्यंचयोनिक जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों से यावत् देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे नैरयिकों से यावत् देवों से भी आकर उत्पन्न होते हैं। भगवन् ! यदि वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या वे रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं, अथवा | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२४ |
उद्देशक-२१ मनुष्य | Hindi | 857 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] मनुस्सा णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति–किं नेरइएहिंतो उववज्जंति जाव देवेहिंतो उववज्जंति?
गोयमा! नेरइएहिंतो वि उववज्जंति जाव देवेहिंतो वि उववज्जंति। एवं उववाओ जहा पंचिंदिय-तिरिक्खजोणिउद्देसए जाव तमापुढविनेरइएहिंतो वि उववज्जंति, नो अहेसत्तमपुढविनेरइएहिंतो उववज्जंति।
रयणप्पभपुढविनेरइए णं भंते! से भविए मनुस्सेसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा?
गोयमा! जहन्नेणं मासपुहत्तट्ठितीएसु, उक्कोसेणं पुव्वकोडिआउएसु। अवसेसा वत्तव्वया जहा पंचिंदियतिरिक्खजोणिएसु उव वज्जंतस्स तहेव, नवरं–परिमाणे जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं Translated Sutra: भगवन् ! मनुष्य कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? नैरयिकों से आकर यावत् देवों से आकर होते हैं ? गौतम! नैरयिकों से यावत् देवों से भी आकर उत्पन्न होते हैं। इस प्रकार यहाँ ‘पंचेन्द्रिय – तिर्यंचयोनिक – उद्देशक’ अनुसार, यावत् – तमःप्रभापृथ्वी के नैरयिकों से भी आकर उत्पन्न होते हैं, किन्तु अधःसप्तमपृथ्वी के नैरयिकों | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२४ |
उद्देशक-२२ थी २४ देव | Hindi | 860 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सोहम्मदेवा णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति–किं नेरइएहिंतो उववज्जंति? भेदो जहा जोइसिय-उद्देसए।
असंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते! जे भविए साहम्मगदेवेसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा?
गोयमा! जहन्नेणं पलिओवमट्ठितीएसु उक्कोसेणं तिपलिओवमट्ठितीएसु उववज्जेज्जा।
ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति? अवसेसं जहा जोइसिएसु उववज्ज-माणस्स, नवरं–सम्मदिट्ठी वि, मिच्छादिट्ठी वि, नो सम्मामिच्छादिट्ठी। नाणी वि, अन्नाणी वि, दो नाणा दो अन्नाणा नियमं। ठिती जहन्नेणं पलिओवमं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं। एवं अनुबंधो वि। सेसं तहेव। Translated Sutra: भगवन् ! सौधर्मदेव, किस गति से आकर उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों से यावत् देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ? ज्योतिष्क – उद्देशक के अनुसार भेद जानना चाहिए। भगवन् ! असंख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय – तिर्यंचयोनिक कितने काल की स्थिति वाले सौधर्मदेवों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! जघन्य पल्योपम की | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-६ निर्ग्रन्थ | Hindi | 898 | Gatha | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] १. पन्नवण २. वेद ३. रागे, ४. कप्प ५. चरित्त ६. पडिसेवणा ७. नाणे ।
८. तित्थे ९. लिंग १. सरीरे, ११. खेत्ते १२. काल १३. गइ १४. संजम १५. निकासे ॥ Translated Sutra: निर्ग्रन्थ सम्बन्धी छत्रीश द्वार हैं, जैसे कि – वेद, राग, कल्प, चारित्र, प्रतिसेवना, ज्ञान, तीर्थ, लिंग, शरीर, क्षेत्र, काल, गति, संयम, निकाशर्ष। तथा – | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-६ निर्ग्रन्थ | Hindi | 903 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पुलाए णं भंते! किं ठियकप्पे होज्जा? अट्ठियकप्पे होज्जा?
गोयमा! ठियकप्पे वा होज्जा, अट्ठियकप्पे वा होज्जा। एवं जाव सिणाए।
पुलाए णं भंते! किं जिनकप्पे होज्जा? थेरकप्पे होज्जा? कप्पातीते होज्जा?
गोयमा! नो जिनकप्पे होज्जा, थेरकप्पे होज्जा, नो कप्पातीते होज्जा।
बउसे णं–पुच्छा।
गोयमा! जिनकप्पे वा होज्जा, थेरकप्पे वा होज्जा, नो कप्पातीते होज्जा। एवं पडिसेवणाकुसीले वि।
कसायकुसीले णं–पुच्छा।
गोयमा! जिनकप्पे वा होज्जा, थेरकप्पे वा होज्जा, कप्पातीते वा होज्जा।
नियंठे णं–पुच्छा।
गोयमा! नो जिनकप्पे होज्जा, नो थेरकप्पे होज्जा, कप्पातीते होज्जा। एवं सिणाए वि। Translated Sutra: भगवन् ! पुलाक स्थितकल्प में होता है, अथवा अस्थितकल्प में होता है ? गौतम ! वह स्थितकल्प में भी होता है और अस्थितकल्प में भी होता है। इसी प्रकार यावत् स्नातक तक जानना। भगवन् ! पुलाक जिनकल्प में होता है, स्थविरकल्प में होता है अथवा कल्पातीत में होता है ? गौतम ! वह स्थविरकल्प में होता है। भगवन् ! बकुश जिनकल्प में | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-६ निर्ग्रन्थ | Hindi | 913 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पुलाए णं भंते! कालगए समाणे किं गतिं गच्छति?
गोयमा! देवगतिं गच्छति।
देवगतिं गच्छमाणे किं भवनवासीसु उववज्जेज्जा? वाणमंतरेसु उववज्जेज्जा? जोइसिएसु उववज्जेज्जा? वेमा-णिएसु उववज्जेज्जा?
गोयमा! नो भवनवासीसु, नो वाणमंतरेसु, नो जोइसिएसु, वेमाणिएसु उववज्जेज्जा। वेमाणिएसु उववज्जमाणे जहन्नेणं सोहम्मे कप्पे, उक्कोसेणं सहस्सारे कप्पे उववज्जेज्जा।
बउसे णं एवं चेव, नवरं–उक्कोसेणं अच्चुए कप्पे। पडिसेवणाकुसीले जहा बउसे। कसायकुसीले जहा पुलाए, नवरं–उक्कोसेणं अनुत्तरविमानेसु उववज्जेज्जा। नियंठे णं एवं चेव जाव वेमाणिएसु उववज्ज-माणे अजहन्नमणुक्कोसेनं अनुत्तरविमानेसु Translated Sutra: भगवन् ! पुलाक मरकर किस गति में जाता है ? गौतम ! देवगति में। भगवन् ! यदि वह देवगति में जाता है तो क्या भवनपत्तियों में उत्पन्न होता है या वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क या वैमानिक देवों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! वह केवल वैमानिक देवों में उत्पन्न होता है। वैमानिक देवों में उत्पन्न होता हुआ पुलाक जघन्य सौधर्मकल्प में | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-७ संयत | Hindi | 942 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सामाइयसंजए णं भंते! किं सवेदए होज्जा? अवेदए होज्जा?
गोयमा! सवेदए वा होज्जा, अवेदए वा होज्जा। जइ सवेदए–एवं जहा कसायकुसीले तहेव निरवसेसं। एवं छेदोवट्ठावणियसंजए वि। परिहारविसुद्धियसंजओ जहा पुलाओ। सुहुमसंपराय-संजओ अहक्खायसंजओ य तहा नियंठो।
सामाइयसंजए णं भंते! किं सरागे होज्जा? वीयरागे होज्जा?
गोयमा! सरागे होज्जा, नो वीयरागे होज्जा। एवं जाव सुहुमसंपरायसंजए। अहक्खायसंजए। जहा नियंठे।
सामाइयसंजए णं भंते! किं ठियकप्पे होज्जा? अट्ठियकप्पे होज्जा?
गोयमा! ठियकप्पे वा होज्जा, अट्ठियकप्पे वा होज्जा।
छेदोवट्ठावणियसंजए–पुच्छा।
गोयमा! ठियकप्पे होज्जा, नो अट्ठियकप्पे Translated Sutra: भगवन् ! सामायिकसंयत सवेदी होता है या अवेदी ? गौतम ! वह सवेदी भी होता है और अवेदी भी। यदि वह सवेदी होता है, आदि सभी कथन कषायकुशील के अनुसार कहना। इसी प्रकार छेदोपस्थापनीयसंयत में भी जानना। परिहारविशुद्धिकसंयत का कथन पुलाक समान। सूक्ष्मसम्परायसंयत और यथाख्यातसंयत का कथन निर्ग्रन्थ समान है। भगवन् ! सामायिकसंयत | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३१ युग्मं, नरक, उपपात आदि |
उद्देशक-२ थी २८ | Hindi | 1005 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] नीललेस्सखुड्डागकडजुम्मनेरइया णं भंते! कओ उववज्जंति? एवं जहेव कण्हलेस्साखुड्डागकड-जुम्मा, नवरं–उववाओ जो वालुयप्पभाए, सेसं तं चेव। वालुयप्पभापुढविनीललेस्सखुड्डागकड-जुम्मनेरइया एवं चेव। एवं पंकप्पभाए वि, एवं धूमप्पभाए वि। एवं चउसु वि जुम्मेसु, नवरं–परिमाणं जाणियव्वं। परिमाणं जहा कण्हलेस्सउद्देसए। सेसं तहेव।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! क्षुद्रकृतयुग्म – राशि – प्रमाण नीललेश्यी नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! कृष्ण – लेश्यी क्षुद्रकृतयुग्म नैरयिक के समान। किन्तु इनका उपपात बालुकाप्रभापृथ्वी के समान है। शेष पूर्ववत्। भगवन्! नीललेश्या वाले क्षुद्रकृतयुग्म – राशिप्रमाण बालुकाप्रभापृथ्वी के नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-८ बाल | Gujarati | 86 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] एगंतपंडिए णं भंते! मनुस्से किं नेरइयाउयं पकरेति? तिरिक्खाउयं पकरेति? मनुस्साउयं पकरेति? देवाउयं पकरेति? नेरइयाउयं किच्चा नेरइएसु उववज्जति? तिरियाउयं किच्चा तिरिएसु उववज्जति? मनुस्साउयं किच्चा मनुस्सेसु उववज्जति? देवाउयं किच्चा देवलोएसु उववज्जति?
गोयमा! एगंतपंडिए णं मनुस्से आउयं सिय पकरेति, सिय नो पकरेति, जइ पकरेति नो नेरइयाउयं पकरेति, नो तिरियाउयं पकरेति, नो मनुस्साउयं पकरेति, देवाउयं पकरेति, नो नेरइयाउयं किच्चा नेरइएसु उववज्जति, नो तिरियाउयं किच्चा तिरिएसु उववज्जति, नो मनुस्साउयं किच्चा मनुस्सेसु उववज्जति, देवाउयं किच्चा देवेसु उववज्जति।
से केणट्ठेणं Translated Sutra: ભગવન્ ! એકાંત પંડિત મનુષ્ય શું નૈરયિકાયુ બાંધે યાવત્ દેવાયુ બાંધી દેવલોકમાં ઉપજે ? ગૌતમ ! એકાંત પંડિત મનુષ્યઆયુ બાંધે અથવા ન બાંધે. જો બાંધે તો નૈરયિક – તિર્યંચ – મનુષ્યાયુ ન બાંધે, દેવાયુ જ બાંધે. નૈરયિક – તિર્યંચ કે મનુષ્યમાં ન ઉપજે, દેવાયુ બાંધીને દેવોમાં જ ઉપજે. ભગવન્ ! એમ કેમ કહ્યું કે દેવાયુનો બંધ કરી | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-८ बाल | Gujarati | 87 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पुरिसे णं भंते! कच्छंसि वा दहंसि वा उदगंसि वा दवियंसि वा वलयंसि वा नमंसि वा गहणंसि वा गहणविदुग्गंसि वा पव्वयंसि वा पव्वयविदुग्गंसि वा वणंसि वा वणविदुग्गंसि वा मियवित्तीए मियसंकप्पे मियपणिहाणे मियवहाए गंता एते मिय त्ति काउं अन्नयरस्स मियस्स वहाए कूडपासं उद्दाति, ततो णं भंते! से पुरिसे कतिकिरिए?
गोयमा! सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए, सिय पंचकिरिए।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–सिय तिकिरिए? सिय चउकिरिए? सिय पंचकिरिए?
गोयमा! जे भविए उद्दवणयाए–नो बंधनयाए, नो मारणयाए–तावं च णं से पुरिसे काइयाए, अहिगरणियाए, पाओसियाए –तिहिं किरियाहिं पुट्ठे।
जे भविए उद्दवणताए वि, बंधनताए Translated Sutra: સૂત્ર– ૮૭. ભગવન્ ! મૃગવૃત્તિક – (મૃગ વડે આજીવિકા ચલાવનાર), મૃગોનો શિકારી, મૃગોના શિકારમાં તલ્લીન એવો કોઈ પુરુષ મૃગ – (હરણ)ને મારવા માટે કચ્છ(નદીથી ઘેરાયેલા ઝાડીવાળા સ્થાન)માં, દ્રહ(જળાશય)માં, ઉદકમાં, ઘાસાદિના સમૂહમાં, વલય(ગોળાકાર નદીના જળથી યુક્ત સ્થાન)માં, અંધકારયુક્ત પ્રદેશમાં, ગહન વનમાં, ગહન – વિદુર્ગમાં, | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-२ दुःख | Gujarati | 32 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! असंजयभवियदव्वदेवाणं, अविराहियसंजमाणं, विराहियसंजमाणं, अविराहियसंजमा-संजमाणं, विराहियसंजमासंजमाणं, असण्णीणं, तावसाणं, कंदप्पियाणं, चरगपरिव्वायगाणं, किब्बि सियाणं, तेरिच्छियाणं, आजीवियाणं आभिओगियाणं, सलिंगीणं दंसणवावन्नगाणं– एतेसि णं देव-लोगेसु उववज्जमाणाणं कस्स कहिं उववाए पन्नत्ते?
गोयमा! असंजयभवियदव्वदेवाणं जहन्नेणं भवनवासीसु, उक्कोसेणं उवरिमगेवेज्जएसु। अविराहिय संजमाणं जहन्नेणं सोहम्मे कप्पे, उक्कोसेणं सव्वट्ठसिद्धे विमाने। विराहियसंजमाणं जहन्नेणं भवन वासीसु, उक्कोसेणं सोहम्मे कप्पे।
अविराहियसंजमासंजमाणं जहन्नेणं सोहम्मेकप्पे, Translated Sutra: હે ભગવન્ ! ૧.અસંયત ભવ્યદ્રવ્યદેવ, ૨.અવિરાધિત સંયત, ૩.વિરાધિત સંયત, ૪.અવિરાધિત સંયતા – સંયત, ૫.વિરાધિત સંયતાસંયત, ૬.અસંજ્ઞી, ૭.તાપસ, ૮.કાંદર્પિક, ૯.ચરકપરિવ્રાજક, ૧૦.કિલ્બિષિક, ૧૧.તિર્યંચો, ૧૨.આજીવિકો, ૧૩.આભિયોગિકો, ૧૪.શ્રદ્ધાભ્રષ્ટ વેશધારકો, આ ચૌદ જો દેવલોકમાં ઉત્પન્ન થાય તો કોનો ક્યાં ઉપપાદ કહ્યો છે ? ગૌતમ ! અસંયત | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-३ कांक्षा प्रदोष | Gujarati | 45 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: अत्थि णं भंते! समणा वि निग्गंथा कंखामोहणिज्जं कम्मं वेएंति?
हंता अत्थि।
कहन्नं भंते! समणा निग्गंथा कंखामोहणिज्जं कम्मं वेदेंति?
गोयमा! तेहिं तेहिं नाणंतरेहिं, दंसणंतरेहिं, चरित्तंतरेहिं, लिंगंतरेहिं, पवयणंतरेहिं, पावयणंतरेहिं, कप्पंतरेहिं, मग्गंतरेहिं, मतंतरेहिं, भगंतरेहिं, नयतरेहिं, नियमंतरेहिं, पमाणंतरेहिं संकिता कंखिता वितिकिच्छता भेदसमावन्ना कलुससमावन्ना– एवं खलु समणा निग्गंथा कंखा-मोहणिज्जं कम्मं वेदेंति।
से नूनं भंते! तमेव सच्चं नीसंकं, जं जिणेहिं पवेदितं?
हंता गोयमा! तमेव सच्चं नीसंकं, जं जिणेहिं पवेदितं।
एवं जाव अत्थि उट्ठाणेइ वा, कम्मेइ वा, बलेइ वा, वीरिएइ Translated Sutra: હે ભગવન્ ! શ્રમણ નિર્ગ્રન્થો કાંક્ષા મોહનીય કર્મને વેદે છે ? હા, વેદે છે. શ્રમણ નિર્ગ્રન્થો કાંક્ષા મોહનીય કર્મને કઈ રીતે વેદે છે? ગૌતમ ! તે તે જ્ઞાનાંતર, દર્શનાંતર, ચારિત્રાંતર, લિંગાંતર, પ્રવચનાંતર, પ્રાવચનિકાંતર, કલ્પાંતર, માર્ગાંતર, મતાંતર, ભંગાંતર, નયાંતર, નિયમાંતર, પ્રમાણાંતર વડે શંકિત, કાંક્ષિત, વિચિકિત્સિત, | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-५ पृथ्वी | Gujarati | 52 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! पुढवीओ पन्नत्ताओ?
गोयमा! सत्त पुढवीओ पन्नत्ताओ, तं० रयणप्पभा, सक्करप्पभा, वालुयप्पभा, पंकप्पभा, धूमप्पभा, तमप्पभा, तमतमा
इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए कति निरयावाससयसहस्सा पन्नत्ता?
गोयमा! तीसं निरयावाससयसहस्सा पन्नत्ता। Translated Sutra: સૂત્ર– ૫૨. ભગવન્ ! પૃથ્વીઓ કેટલી કહી છે ? ગૌતમ ! સાત પૃથ્વીઓ(નરકભૂમિઓ) કહી છે. તે આ – રત્નપ્રભા યાવત્ તમસ્તમા. ભગવન્ ! આ રત્નપ્રભા પૃથ્વીમાં કેટલા લાખ નરકાવાસો કહ્યા છે ? ગૌતમ ! ૩૦ લાખ નરકાવાસ. સૂત્ર– ૫૩. સાતે નરકના નરકાવાસોની સંખ્યા આ પ્રમાણે – પહેલી નરકમાં ૩૦ લાખ નારાકાવાસ છે, એ પ્રમાણે – બીજીથી સાતમી નરકમાં | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-५ पृथ्वी | Gujarati | 57 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] केवइया णं भंते! पुढविक्काइयावाससयसहस्सा पन्नत्ता?
गोयमा! असंखेज्जा पुढविक्काइयावाससयसहस्सा पन्नत्ता जाव असंखिज्जा जोइसिय-विमानावास सयसहस्सा पन्नत्ता।
सोहम्मे णं भंते! कप्पे कति विमानावाससयसहस्सा पन्नत्ता?
गोयमा! बत्तीसं विमानावाससयसहस्सा पन्नत्ता। एवं– Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫૨ | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-५ पृथ्वी | Gujarati | 59 | Gatha | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] आणय-पाणयकप्पे, चत्तारि सयारणच्चुए तिन्नि ।
सत्त विमानसयाइं, चउसु वि एएसु कप्पेसु ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫૨ | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-८ बाल | Gujarati | 89 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पुरिसे णं भंते! कच्छंसि वा जाव वणविदुग्गंसि वा मियवित्तीए मियसंकप्पे मियपणिहाणे मियवहाए गंता एते मिय त्ति काउं अन्नतरस्स मियस्स वहाए उसुं निसिरति, ततो णं भंते! से पुरिसे कतिकिरिए?
गोयमा! सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए, सिय पंचकिरिए।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए, सिय पंचकिरिए?
गोयमा! जे भविए निसिरणयाए– नो विद्धंसणयाए, नो मारणयाए–तावं च णं से पुरिसे काइयाए, अहिगरणियाए, पाओसियाए–तिहिं किरियाहिं पुट्ठे।
जे भविए निसिरणताए वि, विद्धंसणताए वि– नो मारणयाए–तावं च णं से पुरिसे काइयाए, अहिगरणियाए, पाओसियाए, पारितावणियाए–चउहिं किरियाहिं पुट्ठे।
जे Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૮૭ | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-८ बाल | Gujarati | 90 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पुरिसे णं भंते! कच्छंसि वा जाव वणविदुग्गंसि वा? मियवित्तीए मियसंकप्पे मियपणिहाणे मियवहाए गंता एते मिय त्ति काउं अन्नतरस्स मियस्स वहाए आयत-कण्णायतं उसुं आयामेत्ता चिट्ठेज्जा, अन्नयरे पुरिसे मग्गतो आगम्म सयपाणिणा असिणा सीसं छिंदेज्जा, से य उसू ताए चेव पुव्वायामणयाए तं मियं चिंधेज्जा, से णं भंते! पुरिसे किं मियवेरेणं पुट्ठे? पुरिसवेरेणं पुट्ठे?
गोयमा! जे मियं मारेइ, से मियवेरेणं पुट्ठे। जे पुरिसं मारेइ, से पुरिसवेरेणं पुट्ठे।
[सूत्र] से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–जे मियं मारेइ, से मियवेरेणं पुट्ठे? जे पुरिसं मारेइ, से पुरिसवेरेणं पुट्ठे?
से नूनं गोयमा! कज्जमाणे Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૮૭ | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-२ |
उद्देशक-१ उच्छवास अने स्कंदक | Gujarati | 112 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं भगवं महावीरे रायगिहाओ नगराओ गुणसिलाओ चेइआओ पडिनिक्खमइ,
पडिनिक्खमित्ता बहिया जनवयविहारं विहरइ।
तेणं कालेणं तेणं समएणं कयंगला नामं नगरी होत्था–वण्णओ।
तीसे णं कयंगलाए नयरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए छत्तपलासए नामं चेइए होत्था–वण्णओ।
तए णं समणे भगवं महावीरे उप्पन्ननाणदंसणधरे अरहा जिने केवली जेणेव कयंगला नगरी जेणेव छत्तपलासए चेइए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हइ, ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ जाव समोसरणं। परिसा निग्गच्छइ।
तीसे णं कयंगलाए नयरीए अदूरसामंते सावत्थी नामं नयरी होत्था–वण्णओ।
तत्थ Translated Sutra: (૧) તે કાળે તે સમયે શ્રમણ ભગવંત મહાવીર રાજગૃહી નગર પાસે આવેલ ગુણશીલ ચૈત્યથી નીકળ્યા. નીકળીને બહાર જનપદમાં વિહાર કર્યો. તે કાળે તે સમયે કૃતંગલા નામે નગરી હતી. ઉવવાઈ સૂત્રાનુસાર નગરીનું વર્ણન જાણવું. તે કૃતંગલા નગરીની બહાર ઈશાન ખૂણામાં છત્રપલાશક નામે ચૈત્ય હતું. ઉવવાઈ સૂત્રાનુસાર ઉદ્યાનનું વર્ણન જાણવું. ત્યારે | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-२ |
उद्देशक-१ उच्छवास अने स्कंदक | Gujarati | 114 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं समणे भगवं महावीरे कयंगलाओ नयरीओ छत्तपलासाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता बहिया जनवयविहारं विहरइ।
तए णं से खंदए अनगारे समणस्स भगवओ महावीरस्स तहारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइयमाइयाइं एक्कारस अंगाइं अहिज्जइ, अहिज्जित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वदासी–इच्छामि णं भंते! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे मासियं भिक्खुपडिमं उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए।
अहासुहं देवानुप्पिया! मा पडिबंधं।
तए णं से खंदए अनगारे समणेणं भगवया महावीरेणं अब्भणुण्णाए समाणे हट्ठे जाव नमंसित्ता मासियं Translated Sutra: ત્યારપછી શ્રમણ ભગવંત મહાવીર કૃતંગલા નગરીના છત્રપલાશક ચૈત્યથી નીકળીને બહારના જનપદમાં વિચરે છે. ત્યારે તે સ્કંદક અણગાર, ભગવંત મહાવીરના તથારૂપ સ્થવિરો પાસે સામાયિકાદિ ૧૧ – અંગોને ભણે છે. પછી જ્યાં ભગવંત મહાવીર છે, ત્યાં આવીને ભગવંતને વંદન – નમસ્કાર કરીને આમ કહ્યું – હે ભગવન્ ! આપની અનુજ્ઞા હોય તો હું માસિકી | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-२ |
उद्देशक-१ उच्छवास अने स्कंदक | Gujarati | 115 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नगरे समोसरणं जाव परिसा पडिगया।
तए णं तस्स खंदयस्स अनगारस्स अन्नया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–
एवं खलु अहं इमेणं एयारूवेणं ओरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं कल्लाणेणं सिवेणं धन्नेणं मंगल्लेणं सस्सिरीएणं उदग्गेणं उदत्तेणं उत्तमेणं उदारेणं महानुभागेणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे अट्ठिचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे धमणिसंतए जाए। जीवंजीवेणं गच्छामि, जीवंजीवेणं चिट्ठामि, भासं भासित्ता वि गिलामि, भासं भासमाणे गिलामि, Translated Sutra: તે કાળે તે સમયે રાજગૃહનગરમાં સમવસરણ થયું (ભગવાન મહાવીર પધાર્યા), યાવત્ પર્ષદા પાછી ગઈ. ત્યારે તે સ્કંદક અણગાર અન્યદા ક્યારેક રાત્રિના પાછલા પ્રહરે ધર્મ જાગરિકાથી જાગતા હતા ત્યારે તેમના મનમા આવો સંકલ્પ યાવત્ થયો કે – હું આ ઉદાર તપકર્મથી શુષ્ક, રુક્ષ, કૃશ થયો છું, યાવત્ બધી નાડીઓ બહાર દેખાય છે, આત્મબળથી જ | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-२ |
उद्देशक-१ उच्छवास अने स्कंदक | Gujarati | 117 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं ते थेरा भगवंतो खंदयं अनगारं कालगयं जाणित्ता परिनिव्वाणवत्तियं काउसग्गं करेंति, करेत्ता पत्तचीवराणि गेण्हंति, गेण्हित्ता विपुलाओ पव्वयाओ सणियं-सणियं पच्चोरुहंति, पच्चोरुहित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वंदंति नमंसंति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–
एवं खलु देवानुप्पियाणं अंतेवासी खंदए नामं अनगारे पगइभद्दए पगइउवसंते पगइपयणुकोहमाणमायालोभे मिउमद्दवसंपन्ने अल्लीणे विनीए।
से णं देवानुप्पिएहिं अब्भ णुण्णाए समाणे सयमेव पंच महव्वयाणि आरुहेत्ता, समणा य समणीओ य खामेत्ता, अम्हेहिं सद्धिं विपुलं पव्वयं Translated Sutra: ત્યારે તે સ્થવિર ભગવંતો સ્કંદક અણગારને કાળધર્મ પામેલા જાણીને પરિનિર્વાણ નિમિત્તે કાયોત્સર્ગ કર્યો, કરીને તેમના વસ્ત્ર, પાત્ર ગ્રહણ કર્યા. વિપુલ પર્વત ઉપરથી ધીમે ધીમે ઊતર્યા. ઊતરીને જ્યાં શ્રમણ ભગવંત મહાવીર હતા, ત્યાં આવીને ભગવંતને વંદન, નમસ્કાર કરીને આ પ્રમાણે કહ્યું – એ પ્રમાણે આપ દેવાનુપ્રિયનો શિષ્ય | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-२ |
उद्देशक-३ पृथ्वी | Gujarati | 119 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कइ णं भंते! पुढवीओ पन्नत्ताओ?
गोयमा! सत्त पुढवीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–१. रयणप्पभा २. सक्करप्पभा ३. बालुयप्पभा ४. पंकप्पभा ५. धूमप्पभा ६. तमप्पभा ७. तमतमा।
जीवाभिगमे नेरइयाणं जो बितिओ उद्देसो सो नेयव्वो जाव– Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૧૯. ભગવન્ ! પૃથ્વીઓ કેટલી છે ? જીવાભિગમમાં કહેલો નૈરયિકોનો બીજો ઉદ્દેશો જાણવો. સૂત્ર– ૧૨૦. પૃથ્વી અર્થાત નરકભૂમિ, નરકાવાસનું અંતર, સંસ્થાન, બાહલ્ય, વિષ્કંભ, પરિક્ષેપ, વર્ણ, ગંધ અને સ્પર્શનું અહી વર્ણન કરવું સૂત્ર– ૧૨૧. ભગવન્ ! શું સર્વે જીવો નરક પૃથ્વીમાં પૂર્વે ઉત્પન્ન થયેલ છે ? હા, ગૌતમ ! સર્વે જીવો રત્નપ્રભા | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-२ |
उद्देशक-७ देव | Gujarati | 139 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहा णं भंते! देवा पन्नत्ता?
गोयमा! चउव्विहा देवा पन्नत्ता, तं जहा– भवनवइ-वाणमंतर-जोइस-वेमाणिया।
कहि णं भंते! भवनवासीणं देवाणं ठाणा पन्नत्ता?
गोयमा! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए जहा ठाणपदे देवाणं वत्तव्वया सा भाणियव्वा। उववाएणं लोयस्स असंखेज्जइभागे एवं सव्वं भाणियव्वं, जाव सिद्धगंडिया समत्ता।
कप्पाण पइट्ठाणं, बाहुल्लुच्चत्त मेव संठाणं।
जीवाभिगमे जो वेमाणिउद्देसो सो भाणियव्वो सव्वो। Translated Sutra: ભગવન્ ! દેવો કેટલા ભેદે છે ? ગૌતમ ! ચાર ભેદે, તે આ – ભવનપતિ, વ્યંતર, જ્યોતિષ્ક, વૈમાનિક. ભગવન્ ! ભવનપતિ દેવોના સ્થાનો ક્યાં છે ? ગૌતમ ! આ રત્નપ્રભા પૃથ્વીમાં નીચે છે,ઇત્યાદિ પ્રજ્ઞાપના સૂત્રના ‘સ્થાન પદ’માં દેવોની વક્તવ્યતા છે, તે કહેવી. વિશેષ એ કે – ભવનો કહેવા, તેમનો ઉપપાત લોકના અસંખ્ય ભાગમાં થાય છે, એ બધું કહેવું | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-२ |
उद्देशक-१० अस्तिकाय | Gujarati | 149 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] इमा णं भंते! रयणप्पभापुढवी धम्मत्थिकायस्स किं संखेज्जइभागं फुसति? असंखेज्जइभागं फुसति? संखेज्जे भागे फुसति? असंखेज्जे भागे फुसति? सव्वं फुसति?
गोयमा! नो संखेज्जइभागं फुसति, असंखेज्जइभागं फुसति, नो संखेज्जे भागे फुसति, नो असंखेज्जे भागे फुसति, नो सव्वं फुसति।
इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए घनोदही धम्मत्थिकायस्स किं संखेज्जइभागं फुसति? असंखेज्जइभागं फुसति? संखेज्जे भागे फुसति? असंखेज्जे भागे फुसति? सव्वं फुसति?
जहा रयणप्पभा तहा घनोदहि-घनवाय-तणुवाया वि।
इमी से णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए ओवासंतरे धम्मत्थिकायस्स किं संखेज्जइभागं फुसति? असंखेज्जइभागं फुसति? Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૪૯. ભગવન્ ! આ રત્નપ્રભા પૃથ્વી શું ધર્માસ્તિકાયના સંખ્યાત ભાગને સ્પર્શે છે કે અસંખ્યાત ભાગને કે સંખ્યાત ભાગોને કે અસંખ્યાત ભાગોને કે તેને આખાને સ્પર્શે છે ? ગૌતમ ! તે સંખ્યાત ભાગને નથી સ્પર્શતી, પણ અસંખ્યાત ભાગને સ્પર્શે છે, સંખ્યાત ભાગો કે અસંખ્યાત ભાગો કે આખાને સ્પર્શતી નથી. ભગવન્ ! આ રત્નપ્રભા | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-२ |
उद्देशक-१० अस्तिकाय | Gujarati | 150 | Gatha | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] पुढवोदही घण-तणू, कप्पा गेवेज्जणुत्तरा सिद्धी ।
संखेज्जइभागं अंतरेसु सेसा असंखेज्जा ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૪૯ | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-३ |
उद्देशक-१ चमर विकुर्वणा | Gujarati | 152 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं मोया नामं नयरी होत्था–वण्णओ।
तीसे णं मोयाए नयरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभागे नंदने नामं चेइए होत्था–वण्णओ।
तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे। परिसा निग्गच्छइ, पडिगया परिसा।
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स दोच्चे अंतेवासी अग्गिभूई नामं अनगारे गोयमे गोत्तेणं सत्तुस्सेहे जाव पज्जुवासमाणे एवं वदासि– चमरे णं भंते! असुरिंदे असुरराया केमहिड्ढीए? केमहज्जुतीए? केमहाबले? केमहायसे? केमहासोक्खे? केमहानुभागे? केवइयं च णं पभू विकुव्वित्तए?
गोयमा! चमरे णं असुरिंदे असुरराया महिड्ढीए, महज्जुतीए, महाबले, महायसे, महासोक्खे, महानुभागे! Translated Sutra: તે કાળે તે સમયે મોકા નામે નગરી હતી. નગરીનું વર્ણન ઉવાવાઈ સૂત્ર અનુસાર જાણવું. તે મોકા નગરી બહાર ઈશાનકોણમાં નંદન નામે ચૈત્ય હતું (વર્ણન કરવું) તે કાળે તે સમયે શ્રમણ ભગવાન મહાવીર સ્વામી સમોસર્યા(પધાર્યા), પર્ષદા ધર્મશ્રવણ માટે નીકળી, ધર્મ સાંભળી પર્ષદા પાછી ફરી. તે કાળે તે સમયે શ્રમણ ભગવંત મહાવીરના બીજા શિષ્ય |