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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-२२ क्रिया |
Hindi | 526 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवा णं भंते! किं सकिरिया? अकिरिया? गोयमा! जीवा सकिरिया वि अकिरिया वि।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–जीवा सकिरिया वि अकिरिया वि? गोयमा! जीवा दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–संसारसमावन्नगा य असंसारसमावन्नगा य। तत्थ णं जेते असंसारसमावन्नगा ते णं सिद्धा, सिद्धा णं अकिरिया। तत्थ णं जेते संसारसमावन्नगा ते दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–सेलसि-पडिवणन्नगा य असेलेसिपडिवणन्नगा य। तत्थ णं जेते सेलेसिपडिवणन्नगा ते णं अकिरिया। तत्थ णं जेते असेलेसिपडिवणन्नगा ते णं सकिरिया। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चति–जीवा सकिरिया वि अकिरिया वि।
अत्थि णं भंते! जीवाणं पाणाइवाएणं किरिया कज्जति? हंता Translated Sutra: भगवन् ! जीव सक्रिय होते हैं, अथवा अक्रिय ? गौतम ! दोनों। क्योंकि – गौतम ! जीव दो प्रकार के हैं, संसारसमापन्नक और असंसारसमापन्नक। जो असंसारसमापन्नक हैं, वे सिद्ध जीव हैं। सिद्ध अक्रिय हैं और जो संसारसमापन्नक हैं, वे दो प्रकार के हैं – शैलेशीप्रतिपन्नक और अशैलेशीप्रतिपन्नक। जो शैलेशी – प्रतिपन्नक होते हैं, | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-२२ क्रिया |
Hindi | 527 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! पाणाइवाएणं कति कम्मपगडीओ बंधति? गोयमा! सत्तविहबंधए वा अट्ठविहबंधए वा। एवं नेरइए जाव निरंतरं वेमाणिए।
जीवा णं भंते! पाणाइवाएणं कति कम्मपगडीओ बंधंति? गोयमा! सत्तविहबंधगा वि अट्ठविहबंधगा वि।
नेरइया णं भंते! पाणाइवाएणं कति कम्मपगडीओ बंधंति? गोयमा! सव्वे वि ताव होज्जा सत्तविहबंधगा, अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगे य, अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य। एवं असुरकुमारा वि जाव थणियकुमारा।
पुढवि-आउ-तेउ-वाउ-वणप्फइकाइया य, एते सव्वे वि जहा ओहिया जीवा। अवसेसा जहा नेरइया। एवं एते जीवेगिंदियवज्जा तिन्नि-तिन्नि भंगा सव्वत्थ भाणियव्वं त्ति जाव मिच्छादंसण-सल्लेणं। Translated Sutra: भगवन् ! (एक) जीव प्राणातिपात से कितनी कर्मप्रकृतियाँ बाँधता है ? गौतम ! सात अथवा आठ। इसी प्रकार एक नैरयिक से एक वैमानिक देव तक कहना। भगवन् ! (अनेक) जीव प्राणातिपात से कितनी कर्मप्र – कृतियाँ बाँधते हैं ? गौतम ! सप्तविध या अष्टविध। भगवन् ! (अनेक) नारक प्राणातिपात से कितनी कर्मप्रकृतियाँ बाँधते हैं ? गौतम ! सप्तविध | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-२२ क्रिया |
Hindi | 528 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! नाणावरणिज्जं कम्मं बंधमाणे कतिकिरिए? गोयमा! सिय तिकिरिए सिय चउकिरिए सिय पंचकिरिए। एवं नेरइए जाव वेमाणिए।
जीवा णं भंते! नाणावरणिज्जं कम्मं बंधमाणा कतिकिरिया? गोयमा! तिकिरिया वि चउकिरिया वि पंचकिरिया वि। एवं नेरइया निरंतरं जाव वेमानिया।
एवं दरिसणावरणिज्जं वेयणिज्जं मोहणिज्जं आउयं नामं गोयं अंतराइयं च अट्ठविह-कम्मपगडीओ भाणियव्वाओ। एगत्तपोहत्तिया सोलस दंडगा।
जीवे णं भंते! जीवातो कतिकिरिए? गोयमा! सिय तिकिरिए सिय चउकिरिए सिय पंचकिरिए सिय अकिरिए।
जीवे णं भंते! नेरइयाओ कतिकिरिए? गोयमा! सिय तिकिरिए सिय चतुकिरिए सिय अकिरिए। एवं जाव थणियकुमाराओ।
पुढविक्काइयाओ Translated Sutra: भगवन् ! एक जीव ज्ञानावरणीय कर्म को बाँधता हुआ कितनी क्रियाओं वाला होता है ? गौतम ! कदाचित् तीन, कदाचित् चार और कदाचित् पाँच। इसी प्रकार एक नैरयिक से एक वैमानिक तक कहना। (अनेक) जीव ज्ञानावरणीय कर्म को बाँधते हुए, कितनी क्रियाओं वाले होते हैं ? गौतम ! पूर्ववत् समस्त कथन कहना। इस प्रकार शेष सर्व कर्मप्रकृतियों | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-२२ क्रिया |
Hindi | 529 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! किरियाओ पन्नत्ताओ? गोयमा! पंच किरियाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–काइया जाव पाणाइवायकिरिया।
नेरइयाणं भंते! कति किरियाओ पन्नत्ताओ? गोयमा! पंच किरियाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–काइया जाव पाणाइवायकिरिया। एवं जाव वेमानियाणं।
जस्स णं भंते! जीवस्स काइया किरिया कज्जइ तस्स अहिगरणिया किरिया कज्जति? जस्स अहिगरणिया किरिया कज्जति तस्स काइया किरिया कज्जति? गोयमा! जस्स णं जीवस्स काइया किरिया कज्जति तस्स अहिगरणी नियमा कज्जति, जस्स अहिगरणी किरिया कज्जति तस्स वि काइया किरिया नियमा कज्जति।
जस्स णं भंते! जीवस्स काइया किरिया कज्जति तस्स पाओसिया किरिया कज्जति? जस्स पाओसिया किरिया Translated Sutra: भगवन् ! क्रियाएं कितनी हैं ? गौतम ! पाँच हैं। कायिकी यावत् प्राणातिपातक्रिया। भगवन् ! नारकों के कितनी क्रियाएं हैं ? गौतम ! पाँच, पूर्ववत् ! इसी प्रकार वैमानिकों में भी जानना। जिस जीव के कायकीक्रिया होती है, उसको आधिकरणिकीक्रिया तथा जिस जीव के आधिकरणिकीक्रिया होती है, उसके कायिकीक्रिया होती है ? गौतम ! वे | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-२२ क्रिया |
Hindi | 530 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कइ णं भंते! किरियाओ पन्नत्ताओ? गोयमा! पंच किरियाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–आरंभिया परिग्गहिया माया वत्तिया अपच्चक्खाणकिरिया मिच्छादंसणवत्तिया।
आरंभिया णं भंते! किरिया कस्स कज्जति? गोयमा! अन्नयरस्सावि पमत्तसंजयस्स।
परिग्गहिया णं भंते! किरिया कस्स कज्जति? गोयमा! अन्नयरस्सावि संजयासंजयस्स।
मायावत्तिया णं भंते! किरिया कस्स कज्जति? गोयमा! अन्नयरस्सावि अपमत्तसंजयस्स।
अपच्चक्खाणकिरिया णं भंते! कस्स कज्जति? गोयमा! अन्नयरस्सावि अपच्चक्खाणिस्स।
मिच्छादंसणवत्तिया णं भंते! किरिया कस्स कज्जति? गोयमा! अन्नयरस्सावि मिच्छ-दंसणिस्स।
नेरइयाणं भंते! कति किरियाओ पन्नत्ताओ? Translated Sutra: भगवन् ! क्रियाएं कितनी हैं ? गौतम ! पाँच – आरम्भिकी, पारिग्रहिकी, मायाप्रत्यया, अप्रत्याख्यानक्रिया और मिथ्यादर्शनप्रत्यया। भगवन् ! आरम्भिकीक्रिया किसके होती है ? गौतम ! किसी प्रमत्तसंयत को होती है। पारिग्रहिकीक्रिया ? गौतम ! किसी संयतासंयत के होती है। मायाप्रत्ययाक्रिया ? गौतम ! किसी अप्रमत्तसंयत के होती | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-२२ क्रिया |
Hindi | 531 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अत्थि णं भंते! जीवाणं पाणाइवायवेरमणे कज्जति? हंता! अत्थि।
कम्हि णं भंते! जीवाणं पाणाइवायवेरमणे कज्जति? गोयमा! छसु जीवणिकाएसु।
अत्थि णं भंते! नेरइयाणं पाणाइवायवेरमणे कज्जति? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे। एवं जाव वेमानियाणं, नवरं–मनूसाणं जहा जीवाणं।
एवं मुसावाएणं जाव मायामोसेणं जीवस्स य मनूसस्स य, सेसाणं नो इणट्ठे समट्ठे, नवरं–अदिण्णादाणे गहणधारणिज्जेसु दव्वेसु, मेहुणे रूवेसु वा रूवसहगएसु वा दव्वेसु, सेसाणं सव्वदव्वेसु।
अत्थि णं भंते! जीवाणं मिच्छादंसणसल्लवेरमणे कज्जति? हंता! अत्थि।
कम्हि णं भंते! जीवाणं मिच्छादंसणसल्लवेरमणे कज्जइ? गोयमा! सव्वदव्वेसु। एवं नेरइयाणं Translated Sutra: भगवन् ! क्या जीवों का प्राणातिपात से विरमण होता है ? हाँ, होता है। किस (विषय) में प्राणातिपात – विरमण होता है ? गौतम ! षड् जीवनिकायों में होता है। भगवन् ! क्या नैरयिकों का प्राणातिपात से विरमण होता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। इसी प्रकार वैमानिकों तक समझना। विशेष यह कि मनुष्यों का प्राणाति – पातविरमण (सामान्य) | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-२२ क्रिया |
Hindi | 532 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] पाणाइवायविरए णं भंते! जीवे कति कम्मपगडीओ बंधति? गोयमा! सत्तविहबंधए वा अट्ठविहबंधए वा छव्विहबंधए वा एगविहबंधए वा अबंधए वा। एवं मनूसे वि भाणियव्वे।
पाणाइवायविरया णं भंते! जीव कति कम्मपगडीओ बंधंति? गोयमा! सव्वे वि ताव होज्जा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य १. ।
अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा अट्ठविहबंधगे य १. अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य २. अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य छव्विहबंधगे य ३. अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य छव्विहबंधगा य ४. अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अबंधगे य ५. अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अबंधगा य ६. ।
अहवा सत्तविहबंधगा Translated Sutra: भगवन् ! प्राणातिपात से विरत (एक) जीव कितनी कर्मप्रकृतियों का बन्ध करता है ? गौतम ! सप्तविध, अष्टविध, षड्विध अथवा एकविधबन्धक या अबन्धक होता है। इसी प्रकार मनुष्य में भी कहना। भगवन् ! प्राणातिपात से विरत (अनेक) जीव कितनी कर्मप्रकृतियाँ बाँधते हैं ? गौतम ! (१) समस्त जीव सप्तविध और एकविधबन्धक होते हैं। अथवा (१) अनेक | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-२२ क्रिया |
Hindi | 533 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] पाणाइवायविरयस्स णं भंते! जीवस्स किं आरंभिया किरिया कज्जति? गोयमा! पाणाइवायविरयस्स जीवस्स आरंभिया किरिया सिय कज्जइ सिय नो कज्जइ।
पाणाइवायविरयस्स णं भंते! जीवस्स परिग्गहिया किरिया कज्जइ? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे।
पाणाइवायविरयस्स णं भंते! जीवस्स मायावत्तिया किरिया कज्जइ? गोयमा! सिय कज्जइ सिय नो कज्जइ।
पाणाइवायविरयस्स णं भंते! जीवस्स अप्पच्चक्खाणवत्तिया किरिया कज्जति? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे।
मिच्छादंसणवत्तियाए पुच्छा। गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे।
एवं पाणाइवायविरयस्स मनूसस्स वि। एवं जाव मायामोसविरयस्स जीवस्स मनूसस्स य।
मिच्छादंसणसल्लविरयस्स णं भंते! जीवस्स Translated Sutra: भगवन् ! प्राणातिपात से विरत जीव के आरम्भिकी क्रिया होती है ? गौतम ! कदाचित् होती है, कदाचित् नहीं। प्राणातिपातविरत जीव के क्या पारिग्रहिकीक्रिया होती है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। प्राणातिपात – विरत जीव के मायाप्रत्ययाक्रिया होती है ? गौतम ! कदाचित् होती है, कदाचित् नहीं। प्राणातिपातविरत जीव के क्या | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-२३ कर्मप्रकृति |
उद्देशक-१ | Hindi | 535 | Sutra | Upang-04 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! कम्मपगडीओ पन्नत्ताओ?
गोयमा! अट्ठ कम्मपगडीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–नाणावरणिज्जं दंसणावरणिज्जं वेदणिज्जं मोहणिज्जं आउयं नामं गोयं अंतराइयं।
नेरइयाणं भंते! कति कम्मपगडीओ पन्नत्ताओ? गोयमा! एवं चेव। एवं जाव वेमानियाणं। Translated Sutra: भगवन् !कर्मप्रकृतियाँ कितनी हैं ? गौतम! आठ, ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय, मोहनीय, आयु, नाम, गोत्र, अन्तराय। भगवन् ! नैरयिकों की कितनी कर्मप्रकृतियाँ हैं ? गौतम ! पूर्ववत् आठ, वैमानिक तक यहीं समझना | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-२३ कर्मप्रकृति |
उद्देशक-१ | Hindi | 536 | Sutra | Upang-04 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कहण्णं भंते! जीवे अट्ठ कम्मपगडीओ बंधइ? गोयमा! नाणावरणिज्जस्स कम्मस्स उदएणं दंसणावरणिज्जं कम्मं नियच्छति, दंसणावरणिज्जस्स कम्मस्स उदएणं दंसणमोहणिज्जं कम्मं नियच्छति, दंसणमोहणिज्जस्स कम्मस्स उदएणं मिच्छत्तं नियच्छति, मिच्छत्तेणं उदिण्णेणं गोयमा! एवं खलु जीवे अट्ठ कम्मपगडीओ बंधइ।
कहण्णं भंते! नेरइए अट्ठ कम्मपगडीओ बंधति? गोयमा! एवं चेव। एवं जाव वेमाणिए।
कहण्णं भंते! जीवा अट्ठ कम्मपगडीओ बंधति? गोयमा! एवं चेव। एवं जाव वेमानिया। Translated Sutra: भगवन् ! जीव आठ कर्मप्रकृतियों को कैसे बाँधता है ? गौतम ! ज्ञानावरणीय कर्म के उदय से दर्शनावर – णीय कर्म को निश्चय ही प्राप्त करता है, दर्शनावरणीय कर्म के उदय से दर्शनमोहनीय कर्म, दर्शनमोहनीय कर्म के उदय से मिथ्यात्व को और इस प्रकार मिथ्यात्व के उदय होने पर जीव निश्चय ही आठ कर्मप्रकृतियों को बाँधता है। नारक | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-२३ कर्मप्रकृति |
उद्देशक-१ | Hindi | 537 | Sutra | Upang-04 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! नाणावरणिज्जं कम्मं कतिहिं ठाणेहिं बंधति? गोयमा! दोहिं ठाणेहिं, तं जहा–रागेण य दोसेण य। रागे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–माया य लोभे य। दोसे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–कोहे य माने य। इच्चेतेहिं चउहिं ठाणेहिं वीरिओवग्गहिएहिं एवं खलु जीवे नाणावरणिज्जं कम्मं बंधति। एवं नेरइए जाव वेमाणिए।
जीवा णं भंते! नाणावरणिज्जं कम्मं कतिहिं ठाणेहिं बंधंति? गोयमा! दोहिं ठाणेहिं, एवं चेव। एवं नेरइया जाव वेमानिया।
एवं दंसणावरणिज्जं जाव अंतराइयं। एवं एते एगत्तपोहत्तिया सोलस दंडगा। Translated Sutra: भगवन् ! जीव कितने स्थानों से ज्ञानावरणीयकर्म बाँधता है ? गौतम ! दो स्थानों से, यथा – राग से और द्वेष से। राग दो प्रकार का है, माया और लोभ। द्वेष भी दो प्रकार का है, क्रोध और मान। इस प्रकार वीर्य से उपार्जित चार स्थानों से जीव ज्ञानावरणीयकर्म बाँधता है। नैरयिक से वैमानिक पर्यन्त इसी प्रकार कहना। बहुत जीव कितने | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-२३ कर्मप्रकृति |
उद्देशक-१ | Hindi | 538 | Sutra | Upang-04 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! नाणावरणिज्जं कम्मं वेदेति? गोयमा! अत्थेगइए वेदेति, अत्थेगइए नो वेदेति।
नेरइए णं भंते! नाणावरणिज्जं कम्मं वेदेति? गोयमा! नियमा वेदेति। एवं जाव वेमाणिए, नवरं–मनूसे जहा जीवे।
जीवा णं भंते! नाणावरणिज्जं कम्मं वेदेंति? गोयमा! एवं चेव। एवं जाव वेमानिया।
एवं जाव नाणावरणिज्जं तहा दंसणावरणिज्जं मोहणिज्जं अंतराइयं च। वेदणिज्जाउय नाम गोयाइं एवं चेव, नवरं –मनूसे वि नियमा वेदेति। एवं एते एगत्तपोहत्तिया सोलस दंडगा। Translated Sutra: भगवन् ! क्या जीव ज्ञानावरणीयकर्म को वेदता है ? गौतम ! कोई जीव वेदता है, कोई नहीं। नारक ज्ञाना – वरणीयकर्म को वेदता है ? गौतम ! नियम से वेदता है। वैमानिकपर्यन्त इसी प्रकार जानना, किन्तु मनुष्य के विषय में जीव के समान समझना। क्या बहुत जीव ज्ञानावरणीयकर्म को वेदता है ? गौतम ! पूर्ववत् जानना। इसी प्रकार वैमानिकों | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-२३ कर्मप्रकृति |
उद्देशक-१ | Hindi | 539 | Sutra | Upang-04 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] नाणावरणिज्जस्स णं भंते! कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स पुट्ठस्स बद्ध-फास-पुट्ठस्स संचियस्स चियस्स उवचियस्स आवागपत्तस्स विवागपत्तस्स फलपत्तस्स उदयपत्तस्स जीवेणं कडस्स जीवेणं निव्वत्तियस्स जीवेणं परिणामियस्स सयं वा उदिण्णस्स परेण वा उदीरियस्स तदुभएण वा उदीरिज्जमाणस्स गतिं पप्प ठितिं पप्प भवं पप्प पोग्गलं पप्प पोग्गलपरिणामं पप्प कतिविहे अनुभावे पन्नत्ते?
गोयमा! नाणावरणिज्जस्स णं कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स जाव पोग्गलपरिणामं पप्प दसविहे अनुभावे पन्नत्ते, तं जहा–सोयावरणे सोयाविण्णाणावरणे णेत्तावरणे णेत्तविण्णाणावरणे घाणावरणे घाणविण्णाणावरणे रसावरणे रसविण्णाणावरणे Translated Sutra: भगवन् ! जीव के द्वारा बद्ध, स्पृष्ट, बद्ध और स्पृष्ट किये हुए, सचित्त, चित्त और अपचित्त किये हुए, किञ्चित्विपाक को प्राप्त, विपाक को प्राप्त, फल को प्राप्त तथा उदयप्राप्त, जीव के द्वारा कृत, निष्पादित और परिणामित, स्वयं के द्वारा दूसरे के द्वारा या दोनों के द्वारा उदीरणा – प्राप्त, ज्ञानावरणीयकर्म का, गति को, | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-२३ कर्मप्रकृति |
उद्देशक-२ | Hindi | 540 | Sutra | Upang-04 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! कम्मपगडीओ पन्नत्ताओ? गोयमा! अट्ठ कम्मपगडीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–नाणावरणिज्जं जाव अंतराइयं।
नाणावरणिज्जे णं भंते पन्नत्ते! कम्मे कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–आभिनिबोहियनाणावरणिज्जे सुयनाणावरणिज्जे ओहिनाणावरणिज्जे मनपज्जवनाणावरणिज्जे केवलनाणावरणिज्जे।
दरिसणावरणिज्जे णं भंते! कम्मे कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–निद्दापंचए य दंसणचउक्कए य।
निद्दापंचए णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–निद्दा जाव थीणद्धी।
दंसणचउक्कए णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–चक्खु-दंसणावरणिज्जे Translated Sutra: भगवन् ! कर्मप्रकृतियाँ कितनी हैं ? गौतम ! आठ – ज्ञानावरणीय यावत् अन्तराय। भगवन् ! ज्ञानावरणीय कर्म कितने प्रकार का है ? गौतम ! पाँच प्रकार का – आभिनिबोधिक यावत् केवलज्ञानावरणीय। दर्शनावरणीयकर्म कितने प्रकार का है ? गौतम ! दो प्रकार का – निद्रा – पंचक और दर्शनचतुष्क। निद्रा – पंचक कितने प्रकार का है ? गौतम | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-२३ कर्मप्रकृति |
उद्देशक-२ | Hindi | 541 | Sutra | Upang-04 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] नाणावरणिज्जस्स णं भंते! कम्मस्स केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तीसं सागरोवमकोडाकोडीओ; तिन्नि य वाससहस्साइं अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिती–कम्मनिसेगो।
निद्दापंचयस्स णं भंते! कम्मस्स केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं सागरोवमस्स तिन्नि सत्तभागा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणया, उक्कोसेणं तीसं सागरोवमकोडा-कोडीओ; तिन्नि य वाससहस्साइं अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिती–कम्मनिसेगो।
दंसणचउक्कस्स णं भंते! कम्मस्स केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तीसं सागरोवमकोडाकोडीओ; तिन्नि य वाससहस्साइं Translated Sutra: भगवन् ! ज्ञानावरणीयकर्म की स्थिति कितने काल की है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त, उत्कृष्ट तीस कोड़ा कोड़ी सागरोपम। उसका अबाधाकाल तीन हजार वर्ष का है। सम्पूर्ण कर्मस्थिति में से अबाधाकाल को कम करने पर कर्मनिषेक का काल है। निद्रापंचक की स्थिति कितने काल की है ? गौतम ! जघन्य पल्योपम का असंख्या – तवाँ भाग कम, सागरोपम | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-२३ कर्मप्रकृति |
उद्देशक-२ | Hindi | 542 | Sutra | Upang-04 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] एगिंदिया णं भंते! जीवा नाणावरणिज्जस्स कम्मस्स किं बंधंति? गोयमा! जहन्नेणं सागरोवमस्स तिन्नि सत्तभागे पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणए, उक्कोसेणं ते चेव पडिपुण्णे बंधंति। एवं निद्दापंचकस्स वि दंसणचउक्कस्स वि।
एगिंदिया णं भंते! जीवा सातावेयणिज्जस्स कम्मस्स किं बंधंति? गोयमा! जहन्नेणं सागरोवमस्स दिवड्ढं सत्तभागं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणयं, उक्कोसेणं तं चेव पडिपुण्णं बंधंति।
असायावेयणिज्जस्स जहा नाणावरणिज्जस्स।
एगिंदिया णं भंते! जीवा सम्मत्तवेयणिज्जस्स कम्मस्स किं बंधंति? गोयमा! नत्थि किंचि बंधंति।
एगिंदिया णं भंते! जीवा मिच्छत्तवेयणिज्जस्स कम्मस्स Translated Sutra: भगवन् ! एकेन्द्रिय जीव ज्ञानावरणीयकर्म कितने काल का बाँधते हैं ? गौतम ! जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के तीन सप्तमांश और उत्कृष्ट पूरे सागरोपम के तीन सप्तमांश भाग का। इसी प्रकार निद्रापंचक और दर्शनचतुष्क का बन्ध भी जानना। एकेन्द्रिय जीव सातावेदनीयकर्म का जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-२३ कर्मप्रकृति |
उद्देशक-२ | Hindi | 543 | Sutra | Upang-04 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] बेइंदिया णं भंते! जीवा नाणावरणिज्जस्स कम्मस्स किं बंधंति? गोयमा! जहन्नेणं सागरोवम-पणुवीसाए तिन्नि सत्तभागा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणया, उक्कोसेणं ते चेव पडिपुण्णे बंधंति। एवं णिद्दापंचगस्स वि।
एवं जहा एगिंदियाणं भणियं तहा बेइंदियाण वि भाणियव्वं, नवरं–सागरोवमपणुवीसाए सह भाणियव्वा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणा, सेसं तं चेव, जत्थ एगिंदिया णं बंधंति तत्थ एते वि न बंधंति।
बेइंदिया णं भंते! जीवा मिच्छत्तवेयणिज्जस्स किं बंधंति? गोयमा! जहन्नेणं सागरोवम-पणुवीसं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणयं, उक्कोसेणं तं चेव पडिपुण्णं बंधंति।
तिरिक्खजोणियाउअस्स जहन्नेण Translated Sutra: भगवन् ! द्वीन्द्रिय जीव ज्ञानावरणीयकर्म का कितने काल का बन्ध करते हैं ? गौतम ! वे जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम पच्चीस सागरोपम के तीन सप्तमांश भाग का और उत्कृष्ट वही परिपूर्ण बाँधते हैं। इसी प्रकार निद्रापंचक की स्थिति जानना। इसी प्रकार एकेन्द्रिय जीवों की बन्धस्थिति के समान द्वीन्द्रिय जीवों की | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-२३ कर्मप्रकृति |
उद्देशक-२ | Hindi | 544 | Sutra | Upang-04 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] नाणावरणिज्जस्स णं भंते! कम्मस्स जहन्नठितिबंधए के? गोयमा! अन्नयरे सुहुमसंपराए–उवसामए वा खवए वा, एस णं गोयमा! नाणावरणिज्जस्स कम्मस्स जहन्नठितिबंधए, तव्वइरित्ते अजहन्ने। एवं एतेणं अभिलावेणं मोहाउयवज्जाणं सेसकम्माणं भाणियव्वं।
मोहणिज्जस्स णं भंते! कम्मस्स जहन्नठितिबंधए के? गोयमा! अन्नयरे बायरसंपराए–उवसा-मए वा खवए वा एस णं गोयमा! मोहणिज्जस्स कम्मस्स जहन्नठितिबंधए, तव्वतिरित्ते अजहन्ने।
आउयस्स णं भंते! कम्मस्स जहन्नठितिबंधए के?
गोयमा! जे णं जीवे असंखेप्पद्धप्पविट्ठे सव्वनिरुद्धे से आउए, सेसे सव्वमहंतीए आउय-बंधद्धाए, तीसे णं आउयबंधद्धाए चरिमकालसमयंसि सव्वजहन्नियं Translated Sutra: भगवन् ! ज्ञानावरणीयकर्म की जघन्य स्थिति का बन्धक कौन है ? गौतम ! वह अन्यतर सूक्ष्मसम्पराय, उपशामक या क्षपक होता है। हे गौतम ! यही ज्ञानावरणीयकर्म का जघन्य और अन्य अजघन्य स्थिति का बन्धक होता है। इस प्रकार से मोहनीय और आयुकर्म को छोड़कर शेष कर्मों के विषय में कहना। मोहनीयकर्म की जघन्य स्थिति का बन्धक अन्यतर | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-२३ कर्मप्रकृति |
उद्देशक-२ | Hindi | 545 | Sutra | Upang-04 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] उक्कोसकालठितीयं णं भंते! नाणावरणिज्जं कम्मं किं नेरइओ बंधति तिरिक्खजोणिओ बंधति तिरिक्खजोणिणी बंधति मणुस्सो बंधति मनुस्सी बंधति देवो बंधति देवी बंधति? गोयमा! नेरइओ वि बंधति जाव देवी वि बंधति।
केरिसए णं भंते! नेरइए उक्कोसकालठितीयं नाणावरणिज्जं कम्मं बंधति? गोयमा! सण्णी पंचिंदिए सव्वाहिं पज्जत्तीहिं पज्जत्ते सागारे जागरे सुतोवउत्ते मिच्छादिट्ठी कण्हलेसे उक्कोस-संकिलिट्ठपरिणामे ईसिमज्झिमपरिणामे वा, एरिसए णं गोयमा! नेरइए उक्कोसकालठितीयं नाणावरणिज्जं कम्मं बंधति।
केरिसए णं भंते! तिरिक्खजोणिए उक्कोसकालठितीयं नाणावरणिज्जं कम्मं बंधति? गोयमा! कम्मभूमए Translated Sutra: भगवन् ! उत्कृष्ट काल की स्थितिवाले ज्ञानावरणीयकर्म को क्या नारक बाँधता है, तिर्यंच बाँधता है, तिर्यंचनी बाँधती है, मनुष्य बाँधता है, मनुष्य स्त्री बाँधती है अथवा देव बाँधता है या देवी बाँधती है ? गौतम ! उसे नारक यावत् देव सभी बाँधते हैं। भगवन् ! किस प्रकार का नारक उत्कृष्ट स्थितिवाला ज्ञानावरणीयकर्म बाँधता | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-२४ कर्मबंध |
Hindi | 546 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! कम्मपगडीओ पन्नत्ताओ? गोयमा! अट्ठ कम्मपगडीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–नाणावरणिज्जं जाव अंतराइयं। एवं नेरइयाणं जाव वेमानियाणं।
जीवे णं भंते! नाणावरणिज्जं कम्मं बंधमाणे कति कम्मपगडीओ बंधति? गोयमा! सत्तविहबंधए वा अट्ठविहबंधए वा छव्विहबंधए वा।
नेरइए णं भंते! नाणावरणिज्जं कम्मं बंधमाणे कति कम्मपगडीओ बंधति? गोयमा! सत्तविहबंधए वा अट्ठविहबंधए वा। एवं जाव वेमाणिए, नवरं–मनूसे जहा जीवे।
जीवा णं भंते! नाणावरणिज्जं कम्मं बंधमाणा कति कम्मपगडीओ बंधंति? गोयमा! सव्वे वि ताव होज्जा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य १ अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य छव्विहबंधगे य २ अहवा Translated Sutra: भगवन् ! कर्म – प्रकृतियाँ कितनी हैं ? गौतम ! आठ – ज्ञानावरणीय यावत् अन्तराय। इसी प्रकार नैरयिकों से वैमानिकों तक कहना। भगवन् ! (एक) जीव ज्ञानावरणीयकर्म को बाँधता हुआ कितनी कर्म – प्रकृतियों बाँधता है ? गौतम ! सात, आठ या छह। भगवन् ! (एक) नैरयिक जीव ज्ञानावरणीयकर्म को बाँधता हुआ कितनी कर्मप्रकृतियाँ बाँधता है | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-२५ कर्मबंध वेद |
Hindi | 547 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! कम्मपगडीओ पन्नत्ताओ? गोयमा! अट्ठ कम्मपगडीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–नाणावरणिज्जं जाव अंतराइयं। एवं नेरइयाणं जाव वेमानियाणं।
जीवे णं भंते! नाणावरणिज्जं कम्मं बंधमाणे कति कम्मपगडीओ वेदेति? गोयमा! नियमा अट्ठ कम्मपगडीओ वेदेति। एवं नेरइए जाव वेमाणिए। एवं पुहत्तेण वि।
एवं वेयणिज्जवज्जं जाव अंतराइयं।
जीवे णं भंते! वेयणिज्जं कम्मं बंधमाणे कइ कम्मपगडीओ वेदेइ? गोयमा! सत्तविहवेयए वा अट्ठविहवेयए वा चउव्विहवेयए वा। एवं मनूसे वि। सेसा नेरइयाई एगत्तेण वि पुहत्तेण वि नियमा अट्ठ कम्मपगडीओ वेदेंति जाव वेमानिया।
जीवा णं भंते! वेदणिज्जं कम्मं बंधमाणा कति कम्मपगडीओ Translated Sutra: भगवन् ! कर्मप्रकृतियाँ कितनी हैं ? गौतम ! आठ, ज्ञानावरणीय यावत् अन्तराय। इसी प्रकार नैरयिकों यावत् वैमानिकों तक हैं। भगवन् ! ज्ञानावरणीयकर्म का बन्ध करता हुआ जीव कितनी कर्मप्रकृतियों का वेदन करता है ? गौतम ! आठ का। इसी प्रकार नैरयिक से वैमानिक पर्यन्त जानना। वेदनीयकर्म को छोड़कर शेष सभी कर्मों के सम्बन्ध | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-२६ कर्म वेद |
Hindi | 548 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! कम्मपगडीओ पन्नत्ताओ? गोयमा! अट्ठ कम्मपगडीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–नाणावरणिज्जं जाव अंतराइयं। एवं नेरइयाणं जाव वेमानियाणं।
जीवे णं भंते! नाणावरणिज्जं कम्मं वेदेमाणे कति कम्मपगडीओ बंधति? गोयमा! सत्तविह-बंधए वा अट्ठविहबंधए वा छव्विहबंधए वा एगविहबंधए वा।
नेरइए णं भंते! नाणावरणिज्जं कम्मं वेदेमाणे कति कम्मपगडीओ बंधति? गोयमा! सत्तविहबंधए वा अट्ठविहबंधए वा। एवं जाव वेमाणिए। मनूसे जहा जीवे।
जीवा णं भंते! नाणावरणिज्जं कम्मं वेदेमाणा कति कम्मपगडीओ बंधंति? गोयमा! सव्वे वि ताव होज्जा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य १ अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य छव्विहबंधए Translated Sutra: भगवन् ! कर्मप्रकृतियाँ कितनी हैं ? गौतम ! आठ, ज्ञानावरणीय यावत् अन्तराय। इसी प्रकार नैरयिकों से वैमानिकों तक हैं। भगवन् ! (एक) जीव ज्ञानावरणीयकर्म का वेदन करता हुआ कितनी कर्मप्रकृतियों का बन्ध करता है ? गौतम ! सात, आठ, छह या एक कर्मप्रकृति का। (एक) नैरयिक जीव ज्ञानावरणीयकर्म को वेदता हुआ गौतम ! सात या आठ कर्मप्रकृतियों | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-२७ कर्म वेद वेद |
Hindi | 549 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! कम्मपगडीओ पन्नत्ताओ? गोयमा! अट्ठ, तं जहा–नाणावरणिज्जं जाव अंतराइयं। एवं नेरइयाणं जाव वेमानियाणं।
जीवे णं भंते! नाणावरणिज्जं कम्मं वेदेमाणे कति कम्मपगडीओ बंधति? गोयमा! सत्तविहवेदए वा अट्ठविहवेदए वा। एवं मनूसे वि। अवसेसा एगत्तेण वि पुहत्तेण वि नियमा अट्ठविह-कम्मपगडीओ वेदेंति जाव वेमानिया।
जीवा णं भंते! नाणावरणिज्जं कम्मं वेदेमाणा कति कम्मपगडीओ वेदेंति? गोयमा! सव्वे वि ताव होज्जा अट्ठवि-हवेदगा १ अहवा अट्ठविहवेदगा य सत्तविहवेदगे य २ अहवा अट्ठविहवेदगा य सत्तविहवेदगा य ३। एवं मनूसा वि।
दरिसणावरणिज्जं अंतराइयं च एवं चेव भाणियव्वं।
वेदणिज्जआउअनामगोयाइं Translated Sutra: भगवन् ! कर्मप्रकृतियाँ कितनी हैं ? गौतम ! आठ, ज्ञानावरणीय यावत् अन्तराय। इसी प्रकार नारकों से वैमानिकों तक हैं। भगवन् ! ज्ञानावरणीयकर्म का वेदन करता हुआ (एक) जीव कितनी कर्मप्रकृतियों का वेदन करता है ? गौतम ! सात या आठ का। इसी प्रकार मनुष्य में भी जानना। शेष सभी जीव वैमानिक पर्यन्त एकत्व और बहुत्व से नियमतः | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-२८ आहार |
उद्देशक-१ | Hindi | 552 | Sutra | Upang-04 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइया णं भंते! किं सचित्ताहारा अचित्ताहारा मोसाहारा? गोयमा! नो सचित्ताहारा, अचित्ताहारा, नो मीसाहारा एवं असुरकुमारा जाव वेमानिया।
ओरालियसरीरी जाव मनूसा सचित्ताहारा वि अचित्ताहारा वि मीसाहारा वि।
नेरइया णं भंते! आहारट्ठी? हंता गोयमा! आहारट्ठी।
नेरइयाणं भंते! केवतिकालस्स आहारट्ठे समुप्पज्जति? गोयमा! नेरइयाणं आहारे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–आभोगनिव्वत्तिए य अणाभोगनिव्वत्तिए य। तत्थ णं जेसे अणाभोगनिव्वत्तिए से णं अणुसमयमविरहिए आहारट्ठे समुप्पज्जति। तत्थ णं जेसे आभोगनिव्वत्तिए से णं असंखेज्जसमइए अंतोमुहुत्तिए आहारट्ठे समुप्पज्जति।
नेरइया णं भंते! किमाहारमाहारेंति? Translated Sutra: भगवन् ! क्या नैरयिक सचित्ताहारी होते हैं, अचित्ताहारी होते हैं या मिश्राहारी ? गौतम ! वे केवल अचित्ताहारी होते हैं। इसी प्रकार असुरकुमारों से वैमानिकों पर्यन्त जानना। औदारिकशरीरी यावत् मनुष्य सचित्ताहारी भी हैं, अचित्ताहारी भी हैं और मिश्राहारी भी हैं। भगवन् ! क्या नैरयिक आहारार्थी होते हैं ? हाँ, गौतम | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-२८ आहार |
उद्देशक-१ | Hindi | 553 | Sutra | Upang-04 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] असुरकुमारा णं भंते! आहारट्ठी? हंता! आहारट्ठी। एवं जहा नेरइयाणं तहा असुरकुमाराण वि भाणियव्वं जाव ते तेसिं भुज्जो-भुज्जो परिणमंति। तत्थ णं जेसे आभोगनिव्वत्तिए से णं जहन्नेणं चउत्थभत्तस्स, उक्कोसेणं सातिरेगस्स वाससहस्सस्स आहारट्ठे समुप्पज्जति।
ओसन्नकारणं पडुच्च वण्णओ हालिद्द-सुक्किलाइं गंधओ सुब्भिगंधाइं रसओ अंबिल-महुराइं फासओ मउय-लहुअ-निद्धुण्हाइं, तेसिं पोराणे वण्णगुणे जाव फासिंदियत्ताए जाव मणामत्ताए इच्छियत्ताए अभिज्झियत्ताए उड्ढत्ताए–णो अहत्ताए सुह-त्ताए–णो दुहत्ताए ते तेसिं भुज्जो-भुज्जो परिणमंति। सेसं जहा नेरइयाणं।
एवं जाव थणियकुमाराणं, नवरं–आभोगनिव्वत्तिए Translated Sutra: भगवन् ! क्या असुरकुमार आहारार्थी होते हैं ? हाँ, गौतम ! होते हैं। नारकों की वक्तव्यता समान असुर – कुमारों के विषय में यावत्… ‘उनके पुद्गलों का बार – बार परिणमन होता है’ यहाँ तक कहना। उनमें जो आभोग – निर्वर्तित आहार है उस आहार की अभिलाषा जघन्य चतुर्थ – भक्त पश्चात एवं उत्कृष्ट कुछ अधिक सहस्रवर्ष में उत्पन्न | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-२८ आहार |
उद्देशक-१ | Hindi | 554 | Sutra | Upang-04 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पुढविक्काइया णं भंते! आहारट्ठी? हंता! आहारट्ठी।
पुढविक्काइयाणं भंते! केवतिकालस्स आहारट्ठे समुप्पज्जति? गोयमा! अनुसमयं अविरहिए आहरट्ठे समुप्पज्जति।
पुढविक्काइया णं भंते! किमाहारमाहारेंति एवं जहा नेरइयाणं जाव–ताइं भंते! कति दिसिं आहारेंति? गोयमा! णिव्वाघाएणं छद्दिसिं, वाघायं पडुच्च सिय तिदिसिं सिय चउदिसिं सिय पंचदिसिं, नवरं– ओसन्नकारणं न भवति, वण्णतो काल-नील-लोहिय-हालिद्द-सुक्किलाइं, गंधओ सुब्भिगंध-दुब्भिगंधाइं, रसओ तित्त-कडुय-कसाय-अंबिल-महुराइं, फासतो कक्खड-मउय-गरुय-लहुय-सीय-उसिण-निद्ध-लुक्खाइं, तेसिं पोराणे वण्णगुणे गंधगुणे रसगुणे फासगुणे विप्परिणामइत्ता Translated Sutra: भगवन् ! क्या पृथ्वीकायिक जीव आहारार्थी होते हैं ? हाँ, गौतम ! होते हैं। पृथ्वीकायिक जीवों को कितने काल में आहार की अभिलाषा होती है ? गौतम ! प्रतिसमय बिना विरह के होती है। भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव किस वस्तु का आहार करते हैं ? गौतम ! नैरयिकों के कथन के समान जानना; यावत् पृथ्वीकायिक जीव कितनी दिशाओं से आहार करते हैं | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-२८ आहार |
उद्देशक-१ | Hindi | 555 | Sutra | Upang-04 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] बेइंदिया णं भंते! आहारट्ठी? हंता गोयमा! आहारट्ठी।
बेइंदिया णं भंते! केवतिकालस्स आहारट्ठे समुप्पज्जति? जहा नेरइयाणं, नवरं–तत्थ णं जेसे आभोगनिव्वत्तिए से णं असंखेज्जसमइए अंतोमुहुत्तिए वेमायाए आहारट्ठे समुप्पज्जति। सेसं जहा पुढविक्काइयाणं जाव आहच्च नीससंति, नवरं–नियमा छद्दिसिं।
बेइंदिया णं भंते! जे पोग्गले आहारत्ताए गेण्हंति ते णं तेसिं पोग्गलाणं सेयालंसि कतिभागं आहारेंति? कतिभागं अस्साएंति? गोयमा! असंखेज्जतिभागं आहारेंति, अनंतभागं अस्साएंति।
बेइंदिया णं भंते! जे पोग्गले आहारत्ताए गेण्हंति ते किं सव्वे आहारेंति? नो सव्वे आहारेंति? गोयमा! बेइंदियाणं दुविहे Translated Sutra: भगवन् ! क्या द्वीन्द्रिय जीव आहारार्थी होते हैं ? हाँ, गौतम ! होते हैं। भगवन् ! द्वीन्द्रिय जीवों को कितने काल में आहार की अभिलाषा होत है ? गौतम ! नारकों के समान समझना। विशेष यह कि उनमें जो आभोग – निर्वर्तित आहार है, उसकी अभिलाषा असंख्यातसमय के अन्तर्मुहूर्त्त में विमात्रा से होती है। शेष कथन पृथ्वी – कायिकों | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-२८ आहार |
उद्देशक-१ | Hindi | 556 | Sutra | Upang-04 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइया णं भंते! किं एगिंदियसरीराइं आहारेंति जाव पंचेंदियसरीराइं आहारेंति? गोयमा! पुव्वभावपन्नवणं पडुच्च एगिंदियसरीराइं पि आहारेंति जाव पंचेंदियसरीराइं पि, पडुप्पन्नभावपन्नवणं पडुच्च नियमा पंचेंदियसरीराइं आहारेंति। एवं जाव थणियकुमारा।
पुढविक्काइयाणं पुच्छा। गोयमा! पुव्वभावपन्नवणं पडुच्च एवं चेव, पडुप्पण्णभावपन्नवणं पडुच्च नियमा एगिंदियसरीराइं आहारेंति।
बेइंदिया पुव्वभावपन्नवणं पडुच्च एवं चेव, पडुप्पण्णभावपन्नवणं पडुच्च बेइंदियसरीराइं आहारेंति।
एवं जाव चउरिंदिया ताव पुव्वभावपन्नवणं पडुच्च एवं, पडुप्पण्णभावपन्नवणं पडुच्च नियमा जस ति इंदियाइं Translated Sutra: भगवन् ! क्या नैरयिक एकेन्द्रिय यावत् पंचेन्द्रियशरीरों का आहार करते हैं ? गौतम ! पूर्वभावप्रज्ञापना की अपेक्षा से वे एकेन्द्रियशरीरों का भी आहार करते हैं, यावत् पंचेन्द्रियशरीरों का भी तथा वर्तमानभावप्रज्ञापना की अपेक्षा से नियम से वे पंचेन्द्रियशरीरों का आहार करते हैं। स्तनितकुमारों तक इसी प्रकार | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-२८ आहार |
उद्देशक-१ | Hindi | 557 | Sutra | Upang-04 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइया णं भंते! किं ओयाहारा? मनभक्खी? गोयमा! ओयाहारा, नो मनभक्खी। एवं सव्वे ओरालियसरीरा वि
देवा सव्वे जाव वेमानिया ओयाहारा वि मणभक्खी वि। तत्थ णं जेते मनभक्खी देवा तेसि णं इच्छामणे समुप्पज्जइ–इच्छामो णं मनभक्खणं करित्तए। तए णं तेहिं देवेहिं एवं मनसीकते समाणे खिप्पामेव जे पोग्गला इट्ठा कंता पिया सुभा मणुण्णा मणामा ते तेसिं मनभक्खत्ताए परिणमंति, से जहानामए–सीता पोग्गला सीयं पप्प सीयं चेव अतिवतित्ताणं चिट्ठंति, उसिणा वा पोग्गला उसिणं पप्प उसिणं चेव अतिवतित्ताणं चिट्ठंति, एवामेव तेहिं देवेहिं मनभक्खणे कते समाणे से इच्छामणे खिप्पामेव अवेति। Translated Sutra: भगवन् ! नैरयिक जीव ओज – आहारी होते हैं, अथवा मनोभक्षी ? गौतम ! वे ओज – आहारी होते हैं। इसी प्रकार सभी औदारिकशरीरधारी भी ओज – आहारी हैं। वैमानिकों तक सभी देव ओज – आहारी भी होते हैं और मनोभक्षी भी। जो मनोभक्षी देव होते हैं, उनको इच्छामन उत्पन्न होती है। जैसे कि – वे चाहते हैं कि हम मानो – भक्षण करें। उन देवों के द्वारा | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-२८ आहार |
उद्देशक-२ | Hindi | 559 | Sutra | Upang-04 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! किं आहारए? अनाहारए? गोयमा! सिय आहारए सिय अनाहारए। एवं नेरइए जाव असुरकुमारे जाव वेमाणिए।
सिद्धे णं भंते! किं आहारए? अनाहारए? गोयमा! नो आहारए, अनाहारए।
जीवा णं भंते! किं आहारया? अनाहारया? गोयमा! आहारगा वि अनाहारगा वि।
नेरइयाणं पुच्छा। गोयमा! सव्वे वि ताव होज्जा आहारगा १ अहवा आहारगा य अनाहारगे य २ अहवा आहारगा य अनाहारगा य ३। एवं जाव वेमानिया, नवरं–एगिंदिया जहा जीवा।
सिद्धाणं पुच्छा। गोयमा! नो आहारगा, अनाहारगा। Translated Sutra: भगवन् ! जीव आहारक हैं या अनाहारक ? गौतम ! कथंचित् आहारक हैं, कथंचित् अनाहारक। नैरयिक से असुरकुमार और वैमानिक तक इसी प्रकार जानना। भगवन् ! एक सिद्ध आहारक होता है या अनाहारक होता है ? गौतम ! अनाहारक। भगवन् !(बहुत) जीव आहारक होते हैं, या अनाहारक? गौतम ! दोनों। भगवन् !(बहुत) नैरयिक आहारक होते हैं या अनाहारक ? गौतम | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-२८ आहार |
उद्देशक-२ | Hindi | 560 | Sutra | Upang-04 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] भवसिद्धिए णं भंते! जीवे किं आहारए? अनाहारए? गोयमा! सिय आहारए सिय अनाहारए। एवं जाव वेमाणिए।
भवसिद्धिया णं भंते! जीवा किं आहारगा? अनाहारगा? गोयमा! जीवेगिंदियवज्जो तियभंगो। अभवसिद्धिए वि एवं चेव।
नोभवसिद्धिए-नोअभवसिद्धिए णं भंते! जीवे किं आहारए? अनाहारए? गोयमा! नो आहारए, अनाहारए। एवं सिद्धे वि।
नोभवसिद्धिया-नोअभवसिद्धिया णं भंते! जीवा किं आहारगा? अनाहारगा? गोयमा! नो आहारगा, अनाहारगा। एवं सिद्धा वि। Translated Sutra: भगवन् ! भवसिद्धिक जीव आहारक होता है या अनाहारक ? गौतम ! वह कदाचित् आहारक होता है, कदाचित् अनाहारक। इसी प्रकार वैमानिक तक जानना। भगवन् ! (बहुत) भवसिद्धिक जीव आहारक होते हैं या अनाहारक ? गौतम ! समुच्चय जीव और एकेन्द्रिय को छोड़कर तीन भंग कहना। अभवसिद्धिक में भी इसी प्रकार कहना। नोभवसिद्धिक – नोअभवसिद्धिक अनाहारक | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-२८ आहार |
उद्देशक-२ | Hindi | 561 | Sutra | Upang-04 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सण्णी णं भंते! जीवे किं आहारगे? अनाहारगे? गोयमा! सिय आहारगे सिय अनाहारगे। एवं जाव वेमाणिए नवरं–एगिंदिय-विगलिंदिया न पुच्छिज्जंति।
सण्णी णं भंते! जीवा किं आहारगा? अनाहारगा? गोयमा! जीवाईओ तियभंगो जाव वेमानिया।
असण्णी णं भंते! जीवे किं आहारए? अनाहारए? गोयमा! सिय आहारए सिय अनाहारए। एवं नेरइए जाव वाणमंतरे। जोइसिय-वेमानिया न पुच्छिज्जंति।
असण्णी णं भंते! जीवा किं आहारगा? अनाहारगा? गोयमा! आहारगा वि अनाहारगा वि, एगो भंगो।
असण्णी णं भंते! नेरइया किं आहारगा? अनाहारगा? गोयमा! आहारगा वा १ अनाहारगा वा २ अहवा आहारए य अनाहारए य ३ अहवा आहारए य अनाहारगा य ४ अहवा आहारगा य अनाहारगी य ५ Translated Sutra: भगवान् ! संज्ञी जीव आहारक है या अनाहारक ? गौतम ! वह कदाचित् आहारक और कदाचित् अनाहा – रक होता है। इसी प्रकार वैमानिक पर्यन्त कहना। किन्तु एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय जीवों के विषय में प्रश्न नहीं करना। बहुत – से संज्ञीजीव आहारक होते हैं या अनाहारक होते हैं ? गौतम ! जीवादि से लेकर वैमानिक तक तीन भंग होते हैं। | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-२८ आहार |
उद्देशक-२ | Hindi | 562 | Sutra | Upang-04 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सलेसे णं भंते! जीवे किं आहारए? अनाहारए? गोयमा! सिय आहारए सिय अनाहारए। एवं जाव वेमानिए
सलेसा णं भंते! जीवा किं आहारगा? अनाहारगा? गोयमा! जीवेगिंदिवज्जो तियभंगो। एवं कण्हलेसाए वि नीललेसाए वि काउलेसाए वि जीवेगिंदियवज्जो तियभंगो। तेउलेस्साए पुढवि-आउ-वणप्फइकाइयाणं छब्भंगा। सेसाणं जीवादिओ तियभंगो जेसिं अत्थि तेउलेस्सा। पम्हलेस्साए य सुक्कलेस्साए य जीवादीओ तियभंगो।
अलेस्सा जीवा मनूसा सिद्धा य एगत्तेण वि पुहत्तेण वि नो आहारगा, अनाहारगा। Translated Sutra: भगवन् ! सलेश्य जीव आहारक होता है या अनाहारक ? गौतम ! कदाचित् आहारक और कदाचित् अनाहारक होता है। इसी प्रकार वैमानिक तक जानना। भगवन् ! (बहुत) सलेश्य जीव आहारक होते हैं या अनाहारक ? गौतम ! समुच्चय जीव और एकेन्द्रिय को छोड़कर इनके तीन भंग हैं। इसी प्रकार कृष्ण, नील और कापोतलेश्यी में भी समुच्चय जीव और एकेन्द्रिय | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-२८ आहार |
उद्देशक-२ | Hindi | 563 | Sutra | Upang-04 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सम्मद्दिट्ठी णं भंते! जीवे किं आहारए? अनाहारए? गोयमा! सिय आहारए सिय अनाहारए। बेइंदिय-तेइंदियचउरिंदिया छब्भंगा। सिद्धा अनाहारगा। अवसेसाणं तियभंगो।
मिच्छद्दिट्ठीसु जीवेगिंदियवज्जो तियभंगो।
सम्मामिच्छद्दिट्ठी णं भंते! किं आहारए? अनाहारए? गोयमा! आहारए, नो अनाहारए। एवं एगिंदिय-विगलिंदियवज्जं जाव वेमाणिए। एवं पुहत्तेण वि। Translated Sutra: भगवन् ! सम्यग्दृष्टि जीव आहारक होता है या अनाहारक ? गौतम ! वह कदाचित् आहारक और कदाचित् अनाहारक। द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय में पूर्वोक्त छह भंग होते हैं। सिद्ध अनाहारक होते हैं। शेष सभी में तीन भंग होते हैं। मिथ्यादृष्टियों में समुच्चय जीव और एकेन्द्रियों को छोड़कर तीन – तीन भंग पाये जाते | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-२८ आहार |
उद्देशक-२ | Hindi | 564 | Sutra | Upang-04 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] संजए णं भंते! जीवे किं आहारए? अनाहारए? गोयमा! सिय आहारए सिय अनाहारए। एवं मनूसे वि। पुहत्तेण तियभंगो।
अस्संजए पुच्छा। गोयमा! सिय आहारए सिय अनाहारए। पुहत्तेणं जीवेगिंदियवज्जो तियभंगो।
संजयासंजए जीवे पंचेंदियतिरिक्खजोणिए मनूसे य एते एगत्तेण वि पुहत्तेण वि आहारगा, नो अनाहारगा।
नोसंजए-नोअस्संजए-णोसंजयासंजए जीवे सिद्धे य एते एगत्तेण वि पुहत्तेण वि नो आहारगा, अनाहारगा। Translated Sutra: भगवन् ! संयत जीव आहारक होता है या अनाहारक ? गौतम ! वह कदाचित् आहारक और कदाचित् अनाहारक। इसी प्रकार मनुष्य को भी कहना। बहुत्व की अपेक्षा से तीन – तीन भंग हैं। असंयत जीव आहारक होता है या अनाहारक ? गौतम ! कदाचित् आहारक होता है और कदाचित् अनाहारक। बहुत्व की अपेक्षा जीव और एकेन्द्रिय को छोड़कर इनमें तीन भंग होते | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-२८ आहार |
उद्देशक-२ | Hindi | 565 | Sutra | Upang-04 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सकसाई णं भंते! जीवे किं आहारए? अनाहारए? गोयमा! सिय आहारए सिय अनाहारए। एवं जाव वेमानिए। पुहत्तेणं जीवेगिंदियवज्जो तियभंगो।
कोहकसाईसु जीवादीसु एवं चेव, नवरं–देवेसु छब्भंगा। मानकसाईसु मायाकसाईसु य देव-नेरइएसु छब्भंगा। अवसेसाणं जीवेगिंदियवज्जो तियभंगो। लोभकसाईसु नेरएसु छब्भंगा। अवसेसेसु जीवेगिंदियवज्जो तियभंगो।
अकसाई जहा नोसण्णी-नोअसण्णी। Translated Sutra: भगवन् ! सकषाय जीव आहारक होता है या अनाहारक ? गौतम ! वह कदाचित् आहारक और कदाचित् अनाहारक। इसी प्रकार वैमानिक पर्यन्त जानना। बहुत्व अपेक्षा से – जीव और एकेन्द्रिय को छोड़कर (सकषाय नारक आदि में)तीन भंग हैं। क्रोधकषायी जीव आदि में भी इसी प्रकार तीन भंग कहना। विशेष यह कि देवोंमें छ भंग कहना। मानकषायी और मायाकषायी | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-२९ उपयोग |
Hindi | 572 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहे णं भंते! उवओगे पन्नत्ते? गोयमा! दुविहे उवओगे पन्नत्ते, तं जहा–सागारोवओगे य अनागारोवओगे य।
सागारोवओगे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! अट्ठविहे पन्नत्ते, तं० आभिनिबोहियनाण-सागारोवओगे सुयनाणसागारोवओगे ओहिनाणसागारोवओगे मनपज्जवनाणसागारोवओगे केवल-नाणसागारोवओगे मतिअन्नाणसागारोवओगे सुयअन्नाणसागारोवओगे विभंगनाणसागारोवओगे
अनागारोवओगे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! चउव्विहे पन्नत्ते, तं० चक्खुदंसणअनागा-रोवओगे अचक्खुदंसणअनागारोवओगे ओहिदंसणअनागारोवओगे केवलदंसणअनागारोवओगे।
एवं जीवाणं पि।
नेरइयाणं भंते! कतिविहे उवओगे पन्नत्ते? गोयमा! दुविहे Translated Sutra: भगवन् ! उपयोग कितने प्रकार का है ? गौतम ! दो प्रकार का – साकारोपयोग और अनाकारोपयोग। साकारोपयोग कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! आठ प्रकार का, आभिनिबोधिक – ज्ञानसाकारोपयोग, श्रुतज्ञान०, अवधिज्ञान०, मनःपर्यवज्ञान० और केवलज्ञान – साकारोपयोग, मति – अज्ञान०, श्रुत – अज्ञान और विभंग – ज्ञान – साकारोपयोग। अनाकारोपयोग | |||||||||
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पद-३० पश्यता |
Hindi | 573 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहा णं भंते! पासणया पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा पासणया पन्नत्ता, तं जहा–सागारपासणया अनागारपासणया।
सागारपासणया णं भंते! कइविहा पन्नत्ता? गोयमा! छव्विहा पन्नत्ता, तं जहा–सुयनाणसागारपासणया ओहिनाणसागारपासणया मनपज्जवनाणसागारपासणया केवलनाण-सागारपासणया सुयअन्नाणसागारपासणया विभंगनाणसागारपासणया।
अनागारपासणया णं भंते! कतिविहा पन्नत्ता? गोयमा! तिविहा पन्नत्ता, तं जहा–चक्खुदंसणअनागारपासणया ओहिदंसणअनागारपासणया केवलदंसणअनागारपासणया।
एवं जीवाणं पि।
नेरइयाणं भंते! कतिविहा पासणया पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–सागारपासणया अनागारपासणया।
नेरइयाणं Translated Sutra: भगवन् ! पश्यत्ता कितने प्रकार की है ? गौतम ! दो प्रकार की, – साकारपश्यत्ता और अनाकारपश्यत्ता। साकारपश्यत्ता कितने प्रकार की है ? गौतम ! छह प्रकार की – श्रुतज्ञानसाकारपश्यत्ता, अवधिज्ञान०, मनःपर्यव – ज्ञान०, केवलज्ञान०, श्रुत – अज्ञान० और विभंगज्ञानसाकारपश्यत्ता। अनाकारपश्यत्ता कितने प्रकार की है ? गौतम! | |||||||||
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पद-३० पश्यता |
Hindi | 574 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] केवली णं भंते! इमं रयणप्पभं पुढविं आगारेहिं हेतूहिं उवमाहिं दिट्ठंतेहिं वण्णेहिं संठाणेहिं पमाणेहिं पडोयारेहिं जं समयं जाणति तं समयं पासति? जं समयं पासति तं समयं जाणति? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–केवली णं इमं रयणप्पभं पुढविं आगारेहिं हेतूहिं उवमाहिं दिट्ठंतेहिं वण्णेहिं संठाणेहिं पमाणेहिं पडोयारेहिं० जं समयं जाणति नो तं समयं पासति? जं समयं पासति नो तं समयं जाणति? गोयमा! सागारे से नाणे भवति, अनागारे से दंसणे भवति। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चति–केवली णं इमं रयणप्पभं पुढविं आगारेहिं हेतूहिं उवमाहिं दिट्ठंतेहिं संठाणेहिं पमाणेहिं Translated Sutra: भगवन् ! क्या केवलज्ञानी इस रत्नप्रभापृथ्वी को आकारों से, हेतुओं से, उपमाओं से, दृष्टान्तों से, वर्णों से, संस्थानों से, प्रमाणों से और प्रत्यवतारों से जिस समय जानते हैं, उस समय देखते हैं तथा जिस समय देखते हैं, उस समय जानते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। क्योंकि – गौतम ! जो साकार होता है, वह ज्ञान होता है और जो | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-३१ संज्ञी |
Hindi | 575 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवा णं भंते! किं सण्णी? असण्णी? नोसण्णी-नोअसण्णी? गोयमा! जीवा सण्णी वि असण्णी वि नोसण्णी-नोअसण्णी वि।
नेरइयाणं पुच्छा। गोयमा! नेरइया सण्णी वि असण्णी वि, नो नोसण्णी-नोअसण्णी। एवं असुरकुमारा जाव थणियकुमारा।
पुढविक्काइयाणं पुच्छा। गोयमा! नो सण्णी, असण्णी, नो नोसण्णी-नोअसण्णी। एवं बेइंदिय-तेइंदिय-चउरिंदिया वि।
मनूसा जहा जीवा। पंचेंदियतिरिक्खजोणिया वाणमंतरा य जहा नेरइया।
जोइसिय-वेमानिया सण्णी, नो असण्णी नो नोसण्णी-नोअसण्णी।
सिद्धाणं पुच्छा। गोयमा! नो सण्णी नो असण्णी, णोसण्णि-णोअसण्णी। Translated Sutra: भगवन् ! जीव संज्ञी है, असंज्ञी है, अथवा नोसंज्ञी – नोअसंज्ञी है ? गौतम ! तीनों है। भगवन् ! नैरयिक संज्ञी है, असंज्ञी है अथवा नोसंज्ञी – नोअसंज्ञी है ? गौतम ! नैरयिक संज्ञी भी हैं, असंज्ञी भी हैं। इसी प्रकार असुर – कुमारों से लेकर स्तनितकुमारों तक कहना। पृथ्वीकायिक जीव संज्ञी है ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न। गौतम | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-३२ संयत |
Hindi | 577 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवा णं भंते! किं संजया? अंजया? संजतासंजता? नोसंजत-नोअसंजत-नोसंजयासंजया? गोयमा! जीवा संजया वि असंजया वि संजयासंजया वि नोसंजय-नोअसंजय-नोसंजतासंजया वि।
नेरइया णं भंते! किं संजया? असंजया? संजयासंजया? नोसंजत-नोअसंजत-नोसंजयासंजया? गोयमा! नेरइया नो संजया, असंजया, नो संजयासंजया नो नोसंजय-नोअसंजय-नोसंजतासंजया। एवं जाव चउरिंदिया।
पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा! पंचेंदियतिरिक्खजोणिया नो संजया, असंजया वि संजतासंजता वि, नो नोसंजय-नोअसंजय-नोसंजयासंजया।
मनूसा णं भंते! पुच्छा। गोयमा! मनूसा संजया वि असंजया वि संजतासंजया वि, नो नोसंजत-नोअसंजय-नोसंजतासंजया।
वाणमंतर-जोतिसिय-वेमानिया Translated Sutra: भगवन् ! जीव क्या संयत होते है, असंयत होते हैं, संयतासंयत होते हैं, अथवा नोसंयत – नोअसंयत – नोसंय – तासंयत होते हैं ? गौतम ! चारों ही होते हैं। भगवन् ! नैरयिक संयत होते हैं, असंयत होते हैं, संयतासंयत होते हैं या नोसंयत – नोअसंयत – नोसंयतासंय होते हैं ? गौतम ! नैरयिक असंयत होते हैं। इसी प्रकार चतुरिन्द्रियों तक जानना। | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-३३ अवधि |
Hindi | 580 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहा णं भंते! ओही पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा ओही पन्नत्ता, तं जहा–भवपच्चइया य खओव-समिया य। दोण्हं भवपच्चइया, तं जहा–देवाण य नेरइयाण य। दोण्हं खओवसमिया, तं जहा–मनूसाणं पंचेंदियतिरिक्खजोणियाण य। Translated Sutra: भगवन् ! अवधि कितने प्रकार का है ? गौतम ! अवधि दो प्रकार का है, – भवप्रत्ययिक और क्षायोप – शमिक। दो को भव – प्रत्ययिक अवधि होता है, देवों और नारकों को। दो को क्षायोपशमिक होता है – मनुष्यों और पंचेन्द्रियतिर्यंचों को। | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-३३ अवधि |
Hindi | 581 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइया णं भंते! केवतियं खेत्तं ओहिणा जाणंति पासंति? गोयमा! जहन्नेणं अद्धगाउयं, उक्कोसेणं चत्तारि गाउयाइं ओहिणा जाणंति पासंति।
रयणप्पभापुढविनेरइया णं भंते! केवतियं खेत्तं ओहिणा जाणंति पासंति? गोयमा! जहन्नेणं अद्धट्ठाइं गाउयाइं, उक्कोसेणं चत्तारि गाउयाइं ओहिणा जाणंति पासंति।
सक्करप्पभापुढविनेरइया जहन्नेणं तिन्नि गाउयाइं, उक्कोसेणं अद्धट्ठाइं गाउयाइं ओहिणा जाणंति पासंति।
वालुयप्पभापुढविनेरइया जहन्नेणं अड्ढाइज्जाइं गाउयाइं उक्कोसेणं तिन्नि गाउयाइं ओहिणा जाणंति पासंति।
पंकप्पभापुढविनेरइया जहन्नेणं दोन्नि गाउयाइं, उक्कोसेणं अड्ढाइज्जाइं गाउयाइं Translated Sutra: भगवन् ! नैरयिक अवधि द्वारा कितने क्षेत्र को जानते – देखते हैं ? गौतम ! जघन्यतः आधा गाऊ और उत्कृष्टतः चार गाऊ। रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक अवधि से कितने क्षेत्र को जानते – देखते हैं ? गौतम ! जघन्य साढ़े तीन गाऊ और उत्कृष्ट चार गाऊ। शर्कराप्रभापृथ्वी के नारक जघन्य तीन और उत्कृष्ट साढ़े तीन गाऊ को, अवधि – (ज्ञान) से | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-३३ अवधि |
Hindi | 582 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइयाणं भंते! ओही किंसंठिए पन्नत्ते? गोयमा! तप्पागारसंठिए पन्नत्ते।
असुरकुमाराणं पुच्छा। गोयमा! पल्लगसंठिए। एवं जाव थणियकुमाराणं।
पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा! णाणासंठाणसंठिए पन्नत्ते। एवं मनूसाण वि।
वाणमंतराणं पुच्छा। गोयमा! पडहसंठाणसंठिए पन्नत्ते।
जोतिसियाणं पुच्छा। गोयमा! झल्लरिसंठाणसंठिए पन्नत्ते।
सोहम्मगदेवाणं पुच्छा। गोयमा! उद्धमुइंगागारसंठिए पन्नत्ते। एवं जाव अच्चुयदेवाणं पुच्छा।
गेवेज्जगदेवाणं पुच्छा। गोयमा! पुप्फचंगेरिसंठिए पन्नत्ते।
अनुत्तरोववाइयाणं पुच्छा। गोयमा! जवणालियासंठिए ओही पन्नत्ते। Translated Sutra: भगवन् ! नारकों का अवधि किस आकार वाला है ? गौतम ! तप्र के आकार का। असुरकुमारों का अवधि किस प्रकार का है ? गौतम ! पल्लक के आकार है। इसी प्रकार स्तनितकुमारों तक जानना। पंचेन्द्रियतिर्यंचों का अवधि नाना आकारों वाला है। इसी प्रकार मनुष्यों में भी जानना। वाणव्यन्तर देवों का अवधिज्ञान पटह आकार का है। ज्योतिष्क देवों | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-३३ अवधि |
Hindi | 583 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइया णं भंते! ओहिस्स किं अंतो? बाहिं? गोयमा! अंतो, नो बाहिं। एवं जाव थणियकुमारा।
पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा! नो अंतो, बाहिं।
मनूसाणं पुच्छा। गोयमा! अंतो वि बाहिं पि।
वाणमंतर-जोइसिय-वेमानियाणं जहा नेरइयाणं।
नेरइया णं भंते! किं देसोही? सव्वोही? गोयमा! देसोही, नो सव्वोही। एवं जाव थणिय-कुमाराणं।
पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा! देसोही, नो सव्वोही।
मनूसाणं पुच्छा। गोयमा! देसोही वि सव्वोही वि।
वाणमंतर-जोतिसिय-वेमानियाणं जहा नेरइयाणं।
नेरइयाणं भंते! ओही किं आणुगामिए अणाणुगामिए? वड्ढमाणए हयमाणए? पडिवाई अपडिवाई? अवट्ठिए अणवट्ठिए? गोयमा! आणुगामिए, Translated Sutra: भगवन् ! क्या नारक अवधि के अन्दर होते हैं, अथवा बाहर ? गौतम ! वे अन्दर होते हैं, बाहर नहीं। इसी प्रकार स्तनितकुमारों तक जानना। पंचेन्द्रियतिर्यंच अवधि के बाहर होते हैं। मनुष्य अवधिज्ञान के अन्दर भी होते हैं और बाहर भी होते हैं। वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों, नैरयिकों के समान हैं। भगवन् ! नारकों का | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-३४ परिचारणा |
Hindi | 586 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइया णं भंते! अनंतराहारा तओ निव्वत्तणया ततो परियाइयणया ततो परिणामणया ततो परियारणया ततो पच्छा विउव्वणया? हंता गोयमा! नेरइया णं अनंतराहारा तओ निव्वत्तणया ततो परियाइयणया तओ परिणामणया तओ परिया-रणया तओ पच्छा विउव्वणया।
असुरकुमारा णं भंते! अनंतराहारा तओ निव्वत्तणया तओ परियाइयणया तओ परिणामणया तओ विउव्वणया तओ पच्छा परियारणया? हंता गोयमा! असुरकुमारा अनंतराहारा तओ निव्वत्तणया जाव तओ पच्छा परियारणया। एवं जाव थणियकुमारा।
पुढविक्काइया णं भंते! अनंतराहारा तओ निव्वत्तणया तओ परियाइयणया तओ परिणाम-णया तओ परियारणया ततो विउव्वणया? हंता गोयमा! तं चेव जाव परियारणया, नो Translated Sutra: भगवन् ! क्या नारक अनन्ताहारक होते हैं ?, उस के पश्चात् शरीर की निष्पत्ति होती है ? फिर पर्यादानता, तदनन्तर परिणामना होती है ? तत्पश्चात् परिचारणा करते हैं ? और तब विकुर्वणा करते हैं ? हाँ, गौतम ! ऐसा ही है। भगवन् ! क्या असुरकुमार अनन्तराहारक होते हैं यावत् परिचारणा करते हैं ? हाँ, गौतम ! ऐसा ही है। इसी प्रकार स्तनितकुमारपर्यन्त | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-३४ परिचारणा |
Hindi | 587 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइयाणं भंते! आहारे किं आभोगनिव्वत्तिए? अणाभोगनिव्वत्तिए? गोयमा! आभोगनिव्वत्तिए वि अनाभोगनिव्वत्तिए वि। एवं असुरकुमाराणं जाव वेमानियाणं, नवरं– एगिंदियाणं नो आभोग-निव्वत्तिए, अनाभोगनिव्वत्तिए।
नेरइया णं भंते! जे पोग्गले आहारत्ताए गेण्हंति ते किं जाणंति पासंति आहारेंति? उदाहु न जाणंति न पासंति आहारेंति? गोयमा! न जाणंति न पासंति, आहारेंति। एवं जाव तेइंदिया।
चउरिंदियाणं पुच्छा। गोयमा! अत्थेगइया न जाणंति पासंति आहारेंति, अत्थेगइया, न जाणंति न पासंति आहारेंति।
पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा! अत्थेगइया जाणंति पासंति आहारेंति, अत्थे-गइया जाणंति न पासंति Translated Sutra: भगवन् ! नैरयिकों का आहार आभोग – निर्वर्तित होता है या अनाभोग – निर्वर्तित ? गौतम ! दोनों होता है। इसी प्रकार असुरकुमारों से वैमानिकों तक कहना। विशेष यह कि एकेन्द्रिय जीवों का आहार अनाभोगनिर्वर्तित ही होता है। भगवन् ! नैरयिक जिन पुद्गलों को आहार के रूपमें ग्रहण करते हैं, क्या वे उन्हें जानते हैं, देखते हैं | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-३४ परिचारणा |
Hindi | 588 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] देवा णं भंते! किं सदेवीया सपरियारा? सदेवीया अपरियारा? अदेवीया सपरियारा? अदेवीया अपरियारा? गोयमा! अत्थेगइया देवा सदेवीया सपरियारा, अत्थेगइया देवा अदेवीया सपरियारा, अत्थेगइया देवा अदेवीया अपरियारा, नो चेव णं देवा सदेवीया अपरियारा।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–अत्थेगइया देवा सदेवीया सपरियारा, अत्थेगइया देवा अदेवीया सपरियारा, अत्थे-गइया देवा अदेवीया अपरियारा, नो चेव णं देवा सदेवीया अपरियारा? गोयमा! भवनवति-वाणमंतर-जोतिस-सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु देवा सदेवीया सपरियारा, सणंकुमार-माहिंद-बंभलोग-लंतग-महासुक्क-सहस्सार-आणय-पाणय-आरण-अच्चुएसु कप्पेसु देवा अदेवीया सपरियारा, Translated Sutra: भगवन् ! क्या देव देवियों सहित और सपरिचार होते हैं ? अथवा वे देवियों सहित एवं अपरिचार होते हैं ? अथवा वे देवीरहित एवं परिचारयुक्त होते हैं ? या देवीरहित एवं परिचाररहित होते हैं ? गौतम ! (१) कईं देव देवियों सहित सपरिचार होते हैं, (२) कईं देव देवियों के बिना सपरिचार होते हैं और (३) कईं देव देवीरहित और परिचार – रहित होते | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-३४ परिचारणा |
Hindi | 589 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहा णं भंते! परियारणा पन्नत्ता? गोयमा! पंचविहा परियारणा पन्नत्ता, तं जहा–कायपरियारणा फासपरियारणा रूवपरियारणा सद्दपरियारणा मणपरियारणा।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–पंचविहा परियारणा पन्नत्ता, तं जहा–कायपरियारणा जाव मणपरियारणा? गोयमा! भवनवति-वाणमंतर-जोइस-सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु देवा कायपरियारगा, सणंकुमारमाहिंदेसु कप्पेसु देवा फासपरियारगा, बंभलोय-लंतगेसु कप्पेसु देवा रूवपरियारगा, महासुक्कसहस्सारेसु देवा सद्दपरियारगा, आणय-पाणय-आरण-अच्चुएसु कप्पेसु देवा मनपरि-यारगा, गेवेज्जअनुत्तरोववाइया देवा अपरियारगा। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चति– पंचविहा Translated Sutra: भगवन् ! परिचारणा कितने प्रकार की है ? गौतम ! पाँच प्रकार की, कायपरिचारणा, स्पर्शपरिचारणा, रूपपरिचारणा, शब्दपरिचारणा, मनःपरिचारणा। गौतम ! भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और सौधर्म – ईशानकल्प के देव कायपरिचारक होते हैं। सनत्कुमार और माहेन्द्रकल्प में स्पर्शपरिचारक होते हैं। ब्रह्मलोक और लान्तककल्प में देव | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-३४ परिचारणा |
Hindi | 591 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अत्थि णं भंते! तेसिं देवाणं सुक्कपोग्गला? हंता अत्थि। ते णं भंते! तासिं अच्छराणं कीसत्ताए भुज्जो-भुज्जो परिणमंति? गोयमा! सोइंदियत्ताए चक्खिंदियत्ताए घाणिंदियत्ताए रसिंदियत्ताए फासिंदियत्ताए इट्ठत्ताए कंतत्ताए मणुन्नत्ताए मणामत्ताए सुभगत्ताए सोहग्ग-रूव-जोव्वण-गुणलायण्णत्ताए ते तासिं भुज्जो-भुज्जो परिणमंति। Translated Sutra: भगवन् ! क्या उन देवों के शुक्र – पुद्गल होते हैं ? हाँ, होते हैं। उन अप्सराओं के लिए वे किस रूप में बार – बार परिणत होते हैं ? गौतम ! श्रोत्रेन्द्रियरूप से यावत् स्पर्शेन्द्रियरूप से, इष्ट रूप से, कमनीयरूप से, मनोज्ञरूप से, अतिशय मनोज्ञ रूप से, सुभगरूप से, सौभाग्यरूप – यौवन – गुण – लावण्यरूप से वे उनके लिए बार – |