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Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-७ शाली Hindi 312 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे इमीसे ओसप्पिणीए सुसम-सुसमाए समाए उत्तिमट्ठपत्ताए, भरहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे होत्था? गोयमा! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे होत्था, से जहानामएआलिंगपुक्खरे ति वा, एवं उत्तर-कुरुवत्तव्वया नेयव्वा जाव तत्थ णं बहवे भारया मनुस्सा मनुस्सीओ आसयंति सयंति चिट्ठंति निसीयंति तुयट्टंति हसंति रमंति ललंति तीसे णं समाए भारहे वासे तत्थ-तत्थ देसे-देसे तहिं-तहिं बहवे उद्दाला कोद्दाला जाव कुस-विकुस-विसुद्धरुक्खमूला जाव छव्विहा मनुस्सा अनुसज्जित्था, तं जहापम्हगंधा, मियगंधा, अममा, तेतली, सहा, सणिंचारी सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति

Translated Sutra: भगवन्‌ ! इस जम्बूद्वीप नामक द्वीप में उत्तमार्थ प्राप्त इस अवसर्पिणीकाल के सुषम सुषमा नामक आरे में भरतक्षेत्र के आकार, भाव प्रत्यवतार किस प्रकार के थे ? गौतम ! भूमिभाग बहुत सम होने से अत्यन्त रमणीय था जैसे कोई मुरज नामक वाद्य का चर्मचण्डित मुखपट हो, वैसा बहुत ही सम भरतक्षेत्र का भूभाग था इस प्रकार उस
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-८ पृथ्वी Hindi 313 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! पुढवीओ पन्नत्ताओ? गोयमा! अट्ठ पुढवीओ पन्नत्ताओ, तं जहारयणप्पभा जाव ईसीपब्भारा अत्थि णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए गेहा वा? गेहावणा वा? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे अत्थि णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए अहे गामा वा? जाव सन्निवेसा वा? नो इणट्ठे समट्ठे अत्थि णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए अहे ओराला बलाहया संसेयंति? संमुच्छंति? वासं वासंति? हंता अत्थि तिन्नि वि पकरेंतिदेवो वि पकरेति, असुरो वि पकरेति, नागो वि पकरेति अत्थि णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बादरे थणियसद्दे? हंता अत्थि तिन्नि वि पकरेंति अत्थि णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए अहे बादरे अगनिकाए? गोयमा!

Translated Sutra: भगवन्‌ ! कितनी पृथ्वीयाँ कही गई हैं ? गौतम ! आठ रत्नप्रभा यावत्‌ ईषत्प्राग्भारा भगवन्‌ ! रत्न प्रभापृथ्वी के नीचे गृह अथवा गृहापण हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है भगवन्‌ ! रत्नप्रभापृथ्वी के नीचे ग्राम यावत्‌ सन्निवेश हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है भगवन्‌ ! रत्नप्रभापृथ्वी के नीचे महान्‌ मेघ संस्वेद
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-८ पृथ्वी Hindi 314 Gatha Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तमुकाए कप्पपणए, अगणी पुढवी अगनि-पुढवीसु आऊ तेऊ वणस्सई, कप्पुवरिमकण्हराईसु

Translated Sutra: तमस्काय में और पाँच देवलोकों तक में अग्निकाय और पृथ्वीकाय के सम्बन्ध में प्रश्न करना चाहिए रत्नप्रभा आदि नरकपृथ्वीयों में अग्निकाय के सम्बन्ध में प्रश्न करना चाहिए इसी तरह पंचम कल्प देवलोक से ऊपर सब स्थानों में तथा कृष्णराजियों में अप्काय, तेजस्काय और वनस्पतिकाय के सम्बन्ध में प्रश्न करना चाहिए
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-८ पृथ्वी Hindi 315 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहे णं भंते! आउयबंधे पन्नत्ते? गोयमा! छव्विहे आउयबंधे पन्नत्ते, तं जहाजातिनामनिहत्ताउए, गतिनामनिहत्ताउए, ठितिनाम-निहत्ताउए, ओगाहणानामनिहत्ताउए, पएसनामनिहत्ताउए, अनुभागनामनिहत्ताउए दंडओ जाव वेमाणियाणं जीवा णं भंते! किं जातिनामहित्ता? गतिनामनिहत्ता? ठितिनामनिहत्ता? ओगाहणानाम-निहत्ता? पएसनामनिहत्ता? अनुभागनामनिहत्ता? गोयमा! जातिनामनिहत्ता वि जाव अनुभागनामनिहत्ता वि दंडओ जाव वेमाणियाणं जीवा णं भंते! किं जातिनामनिहत्ताउया? जाव अनुभागनामनिहत्ताउया? गोयमा! जातिनामनिहत्ताउया वि जाव अनुभागनामनिहत्ताउया वि दंडओ जाव वेमाणियाणं एवं एए दुवालस दंडगा

Translated Sutra: भगवन्‌ ! आयुष्यबन्ध कितने प्रकार का है ? गौतम ! छह प्रकार का जातिनामनिधत्तायु, गतिनामनिध त्तायु, स्थितिनामनिधत्तायु, अवगाहनानामनिधत्तायु, प्रदेशनामनिधत्तायु और अनुभागनामनिधत्तायु यावत्‌ वैमानिकों तक दण्डक कहना भगवन्‌ ! क्या जीव जातिनामनिधत्त हैं ? गतिनामनिधत्त हैं ? यावत्‌ अनुभागनामनिधत्त हैं ?
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-८ पृथ्वी Hindi 316 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] लवणे णं भंते! समुद्दे किं उस्सिओदए? पत्थडोदए? खुभियजले? अक्खुभियजले? गोयमा! लवणे णं समुद्दे उस्सिओदए, नो पत्थडोदए, खुभियजले, नो अखुभियजले जहा णं भंते! लवणसमुद्दे उस्सिओदए, नो पत्थडोदए; खुभियजले, नो अखुभियजले; तहा णं बाहिरगा समुद्दा किं उस्सिओदगा? पत्थडोदगा? खुभियजला? अखुभियजला? गोयमा! बाहिरगा समुद्दा नो उस्सिओदगा, पत्थडोदगा; नो खुभियजला, अखुभियजला पुण्णा पुण्णप्पमाणा वोलट्टमाणा वोसट्टमाणा समभरघडत्ताए चिट्ठंति अत्थि णं भंते! लवणसमुद्दे बहवे ओराला बलाहया संसेयंति? संमुच्छंति? वासं वासंति? हंता अत्थि जहा णं भंते! लवणसमुद्दे बहवे ओराला बलाहया संसेयंति, संमुच्छंति,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या लवणसमुद्र, उछलते हुए जल वाला है, सम जल वाला है, क्षुब्ध जल वाला है अथवा अक्षुब्ध जल वाला है ? गौतम ! लवणसमुद्र उच्छितोदक है, किन्तु प्रस्तृतोदक नहीं है; वह क्षुब्ध जल वाला है, किन्तु अक्षुब्ध जल वाला नहीं है यहाँ से प्रारम्भ करके जीवाभिगम सूत्र अनुसार यावत्‌ इस कारण से, हे गौतम ! बाहर के (द्वीप ) समुद्र
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-९ कर्म Hindi 317 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! नाणावरणिज्जं कम्मं बंधमाणे कति कम्मप्पगडीओ बंधति? गोयमा! सत्तविहबंधए वा, अट्ठविहबंधए वा, छव्विहबंधए वा बंधुद्देसो पन्नवणाए नेयव्वो

Translated Sutra: भगवन्‌ ! ज्ञानावरणीयकर्म को बाँधता हुआ जीव कितनी कर्मप्रकृतियों को बाँधता है ? गौतम ! सात प्रकृतियों को बाँधता है, आठ प्रकार को बाँधता है अथवा छह प्रकृतियों को बाँधता है यहाँ प्रज्ञापनासूत्र का बंध उद्देशक कहना चाहिए
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-९ कर्म Hindi 318 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] देवे णं भंते! महिड्ढीए जाव महानुभागे बाहिरए पोग्गले अपरियाइत्ता पभू एगवण्णं एगरूवं विउव्वित्तए? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे देवे णं भंते! बाहिरए पोग्गले परियाइत्ता पभू एगवण्णं एगरूवं विउव्वित्तए? हंता पभू से णं भंते! किं इहगए पोग्गले परियाइत्ता विउव्वति? तत्थगए पोग्गले परियाइत्ता विउव्वति? अन्नत्थगए पोग्गले परियाइत्ता विउव्वति? गोयमा! नो इहगए पोग्गले परियाइत्ता विउव्वति, तत्थगए पोग्गले परियाइत्ता विउव्वति, नो अन्नत्थगए पोग्गले परियाइत्ता विउव्वति एवं एएणं गमेणं जाव . एगवण्णं एगरूवं . एगवण्णं अनेगरूवं . अनेगवण्णं एगरूवं . अनेगवण्णं अनेगरूवंचउभंगो देवे

Translated Sutra: भगवन्‌ ! महर्द्धिक यावत्‌ महानभाग देव बाहर के पुद्‌गलों को ग्रहण किये बिना एक वर्ण वाले और एक रूप की विकुर्वणा करने में समर्थ हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है भगवन्‌ ! क्या वह देव बाहर के पुद्‌गलों को ग्रहण करके विकुर्वणा करने में समर्थ हैं ? हाँ, गौतम ! समर्थ है भगवन्‌ ! क्या वह देव इहगत पुद्‌गलों को ग्रहण करके
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-९ कर्म Hindi 319 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] . अविसुद्धलेसे णं भंते! देवे असमोहएणं अप्पाणेणं अविसुद्धलेसं देवं, देविं, अन्नयरं जाणइ-पासइ? नो तिणट्ठे समट्ठे एवं. अविसुद्धलेसे देवे असमोहएणं अप्पाणेणं विसुद्धलेसं देवं . अविसुद्धलेसे देवे समोहएणं अप्पाणेणं अविसुद्धलेसं देवं . अविसुद्धलेसे देवे समोहएणं अप्पाणेणं विसुद्धलेसं देवं . अविसुद्धलेसे देवे समोहयासमोहएणं अप्पाणेणं अविसुद्धलेसं देवं . अविसुद्धलेसे देवे समोहयासमोहएणं अप्पाणेणं विसुद्धलेसं देवं . विसुद्धलेसे देवे असमोहएणं अप्पाणेणं अविसुद्ध-लेसं देवं . विसुद्धलेसे देवे असमोहएणं अप्पाणेणं विसुद्धलेसं देवं . विसुद्धलेसे णं भंते!

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या अविशुद्ध लेश्या वाला देव असमवहत आत्मा से अविशुद्ध लेश्या वाले देव को या देवी को या अन्यतर को जानता और देखता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है इसी तरह अविशुद्ध लेश्या वाला देव अनुपयुक्त आत्मा से विशुद्ध लेश्या वाले देव को, देवी या अन्यतर को जानता देखता है ? अविशुद्ध लेश्या वाला देव उपयुक्त आत्मा
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-१० अन्यतीर्थिक Hindi 320 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अन्नउत्थिया णं भंते! एवमाइक्खंति जाव परूवेंति जावतिया रायगिहे नयरे जीवा, एवइयाणं जीवाणं नो चक्किया केइ सुहं वा दुहं वा जाव कोलट्ठिगमायमवि, निप्फावमायमवि, कलमायमवि, मासमायमवि, मुग्गमायमवि, जूयामायमवि लिक्खामायमवि अभिनिवट्टेत्ता उवदंसेत्तए से कहमेयं भंते! एवं? गोयमा! जं णं ते अन्नउत्थिया एवमाइक्खंति जाव मिच्छं ते एवमाहंसु, अहं पुण गोयमा! एवमाइक्खामि जाव परूवेमि सव्वलोए वि णं सव्वजीवाणं नो चक्किया केइ सुहं वा दुहं वा जाव कोलट्ठिगमायमवि, निप्फावमायमवि, कलमायमवि, मास-मायमवि, मुग्गमायमवि, जूयामायमवि, लिक्खामायमवि अभिनिवट्टेत्ता उवदंसेत्तए से केणट्ठेणं?

Translated Sutra: भगवन्‌ ! अन्यतीर्थिक कहते हैं, यावत्‌ प्ररूपणा करते हैं कि राजगृह नगर में जितने जीव हैं, उन सबके दुःख या सुख को बेर की गुठली जितना भी, बाल (एक धान्य) जितना भी, कलाय जितना भी, उड़द जितना भी, मूँग प्रमाण, यूका प्रमाण, लिक्षा प्रमाण भी बाहर नीकाल कर नहीं दिखा सकता भगवन्‌ ! यह बात यों कैसे हो सकती है ? गौतम ! जो अन्यतीर्थिक
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-१० अन्यतीर्थिक Hindi 321 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! जीवे? जीवे जीवे? गोयमा! जीवे ताव नियमा जीवे, जीवे वि नियमा जीवे जीवे णं भंते! नेरइए? नेरइए जीवे? गोयमा! नेरइए ताव नियमा जीवे, जीवे पुण सिय नेरइए, सिय अनेरइए जीवे णं भंते! असुरकुमारे? असुरकुमारे जीवे? गोयमा! असुरकुमारे ताव नियमा जीवे, जीवे पुण सिय असुरकुमारे, सिय नोअसुरकुमारे एवं दंडओ भाणियव्वो जाव वेमाणियाणं जीवति भंते! जीवे? जीवे जीवति? गोयमा! जीवति ताव नियमा जीवे, जीवे पुण सिय जीवति, सिय नो जीवति जीवति भंते! नेरइए? नेरइए जीवति? गोयमा! नेरइए ताव नियमा जीवति, जीवति पुण सिय नेरइए, सिय अनेरइए एवं दंडओ नेयव्वो जाव वेमाणियाणं भवसिद्धिए णं भंते! नेरइए? नेरइए

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या जीव चैतन्य है या चैतन्य जीव है ? गौतम ! जीव तो नियमतः चैतन्य स्वरूप है और चैतन्य भी निश्चितरूप से जीवरूप है भगवन्‌ ! क्या जीव नैरयिक है या नैरयिक जीव है ? गौतम ! नैरयिक तो नियमतः जीव है और जीव तो कदाचित्‌ नैरयिक भी हो सकता है, कदाचित्‌ नैरयिक से भिन्न भी हो सकता है भगवन्‌ ! क्या जीव, असुरकुमार है या असुरकुमार
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-१० अन्यतीर्थिक Hindi 322 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अन्नउत्थिया णं भंते! एवमाइक्खंति जाव परूवेंतिएवं खलु सव्वे पाणा भूया जीवा सत्ता एगंतदुक्खं वेदनं वेदेंति से कहमेयं भंते! एवं? गोयमा! जं णं ते अन्नउत्थिया जाव मिच्छं ते एवमाहंसु, अहं पुण गोयमा! एवमाइक्खामि जाव परूवेमि अत्थेगइया पाणा भूया जीवा सत्ता एगंतदुक्खं वेदनं वेदेंति, आहच्च सायं अत्थेगइया पाणा भूया जीवा सत्ता एगंतसायं वेदनं वेदेंति, आहच्च अस्सायं अत्थेगइया पाणा भूया जीवा सत्ता वेमायाए वेदनं वेदेंतिआहच्च सायमसायं से केणट्ठेणं? गोयमा! नेरइया एगंतदुक्खं वेदनं वेदेंति, आहच्च सायं भवनवइ-वाणमंतर-जोइस-वेमाणिया एगंतसायं वेदनं वेदेंति, आहच्च अस्सायं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! अन्यतीर्थिक इस प्रकार कहते हैं, यावत्‌ प्ररूपणा करते हैं कि सभी प्राण, भूत, जीव और सत्त्व, एकान्तदुःखरूप वेदना को वेदते हैं, तो भगवन्‌ ! ऐसा कैसे हो सकता है ? गौतम ! अन्यतीर्थिक जो यह कहते हैं, यावत्‌ प्ररूपणा करते हैं, वे मिथ्या कहते हैं हे गौतम ! मैं इस प्रकार कहता हूँ, यावत्‌ प्ररूपणा करता हूँ कितने
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-१० अन्यतीर्थिक Hindi 323 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइया णं भंते! जे पोग्गले अत्तमायाए आहारेंति तं किं आयसरीरखेत्तोगाढे पोग्गले अत्तमायाए आहारेंति? अनंतरखेत्तोगाढे पोग्गले अत्तमायाए आहारेंति? परंपरखेत्तोगाढे पोग्गले अत्तमायाए आहारेंति? गोयमा! आयसरीरखेत्तोगाढे पोग्गले अत्तमायाए आहारेंति, नो अनंतरखेत्तोगाढे पोग्गले अत्तमायाए आहारेंति, नो परंपरखेत्तोगाढे पोग्गले अत्तमायाए आहारेंति जहा नेरइया तहा जाव वेमाणियाणं दंडओ

Translated Sutra: भगवन्‌ ! नैरयिक जीव जिन पुद्‌गलों का आत्मा (अपने) द्वारा ग्रहण आहार करते हैं, क्या वे आत्म शरीरक्षेत्रावगाढ़ पुद्‌गलों को आत्मा द्वारा ग्रहण करते हैं ? या अनन्तरक्षेत्रावगाढ़ पुद्‌गलों को आत्मा द्वारा ग्रहण करते हैं ? अथवा परम्परक्षेत्रावगाढ़ पुद्‌गलों को आत्मा द्वारा ग्रहण करते हैं ? गौतम ! वे आत्म शरीरक्षेत्रावगाढ़
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-१० अन्यतीर्थिक Hindi 324 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] केवली णं भंते! आयाणेहिं जाणइ-पासइ? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे से केणट्ठेणं? गोयमा! केवली णं पुरत्थिमे णं मियं पि जाणइ, अमियं पि जाणइ जाव निव्वुडे दंसणे केवलिस्स से तेणट्ठेणं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या केवली भगवान इन्द्रियों द्वारा जानते देखते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है भगवन्‌ ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है ? गौतम ! केवली भगवान पूर्व दिशा में मित को भी जानते हैं और अमित को भी जानते हैं; यावत्‌ केवली का (ज्ञान और) दर्शन परिपूर्ण और निरावरण होता है हे गौतम ! इस कारण से ऐसा कहा जाता है
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-१० अन्यतीर्थिक Hindi 325 Gatha Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जीवाण सुहं दुक्खं, जीवे जीवति तहेव भविया एगंतदुक्खं वेयण-अत्तमायाय केवली

Translated Sutra: जीवों का सुख दुःख, जीव, जीव का प्राणधारण, भव्य, एकान्तदुःखवेदना, आत्मा द्वारा पुद्‌गलों का ग्रहण और केवली, इतने विषयों दसवें उद्देशक में हैं
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-१० अन्यतीर्थिक Hindi 326 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति

Translated Sutra: हे भगवन्‌ ! यह इसी प्रकार है, भगवन्‌ ! यह इसी प्रकार है
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-१ आहार Hindi 327 Gatha Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] आहार वरति थावर, जीवा पक्खी आउ अनगारे छउमत्थ असंवुड, अन्नउत्थि दस सत्तमंमि सए

Translated Sutra: आहार, विरती, स्थावर, जीव, पक्षी, आयुष्य, अनगार, छद्मस्थ, असंवृत्त और अन्यतीर्थिक; ये दश उद्देशक सातवे शतक में हैं
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-१ आहार Hindi 328 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं जाव एवं वदासीजीवे णं भंते! कं समयमणाहारए भवइ? गोयमा! पढमे समए सिय आहारए सिय अनाहारए, बितिए समए सिय आहारए सिय अनाहारए, ततिए समए सिय आहारए सिय अनाहारए, चउत्थे समए नियमा आहारए एवं दंडओजीवा एगिंदिया चउत्थे समए, सेसा ततिए समए जीवे णं भंते! कं समयं सव्वप्पाहारए भवति? गोयमा! पढमसमयोववन्नए वा चरिमसमयभवत्थे वा, एत्थ णं जीवे सव्वप्पाहारए भवति दंडओ भाणियव्वो जाव वेमाणियाणं

Translated Sutra: उस काल और उस समय में, यावत्‌ गौतमस्वामी ने पूछा भगवन्‌ ! (परभव में जाता हुआ) जीव किस समय में अनाहारक होता है ? गौतम ! (परभव में जाता हुआ) जीव, प्रथम समय में कदाचित्‌ आहारक होता है और कदाचित्‌ अनाहारक होता है; द्वीतिय समय में भी कदाचित्‌ आहारक और कदाचित्‌ अनाहारक होता है, तृतीय समय में भी कदाचित्‌ आहारक और कदाचित्‌
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-१ आहार Hindi 329 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] किंसंठिए णं भंते! लोए पन्नत्ते? गोयमा! सुपइट्ठगसंठिए लोए पन्नत्तेहेट्ठा विच्छिण्णे, मज्झे संखित्ते, उप्पिं विसाले; अहे पलियंकसंठिए, मज्झे वरवइरवि-ग्गहिए, उप्पिं उद्धमुइंगाकारसंठिए तंसि णं सासयंसि लोगंसि हेट्ठा विच्छिण्णंसि जाव उप्पिं उद्धमुइंगाकारसंठियंसि उप्पन्ननाण-दंसणधरे अरहा जिने केवली जीवे वि जाणइ-पासइ, अजीवे वि जाणइ-पासइ, तओ पच्छा सिज्झइ बुज्झइ मुच्चइ परिनिव्वाइ सव्वदुक्खाणं अंतं करेइ

Translated Sutra: भगवन्‌ ! लोक का संस्थान किस प्रकार का है ? गौतम ! सुप्रतिष्ठिक के आकार का है वह नीचे विस्तीर्ण है और यावत्‌ ऊपर मृदंग के आकार का है ऐसे इस शाश्वत लोक में उत्पन्न केवलज्ञान दर्शन के धारक, अर्हन्त, जिन, केवली जीवों को भी जानते और देखते हैं तथा अजीवों को भी जानते और देखते हैं इसके पश्चात्‌ वे सिद्ध, बुद्ध और मुक्त
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-१ आहार Hindi 330 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] समणोवासगस्स णं भंते! सामाइयकडस्स समणोवस्सए अच्छमाणस्स तस्स णं भंते! किं रियावहिया किरिया कज्जइ? संपराइया किरिया कज्जइ? गोयमा! नो रियावहिया किरिया कज्जइ, संपराइया किरिया कज्जइ से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइनो रियावहिया किरिया कज्जइ? संपराइया किरिया कज्जइ? गोयमा! समणोवासयस्स णं सामाइयकडस्स समणोवस्सए अच्छमाणस्स आया अहिगरणी भवइ, आयाहिगरणवत्तियं णं तस्स नो रियावहिया किरिया कज्जइ, संपराइया किरिया कज्जइ से तेणट्ठेणं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! श्रमण के उपाश्रय में बैठे हुए सामायिक किये हुए श्रमणोपासक को क्या ऐर्यापथिकी क्रिया लगती है, अथवा साम्परायिकी क्रिया लगती है ? गौतम ! उसे साम्परायिकी क्रिया लगती है, ऐर्यापथिकी क्रिया नहीं लगती भगवन्‌ ! किस हेतु से ऐसा कहा जाता है ? गौतम ! श्रमणोपाश्रय में बैठे हुए सामयिक किए हुए श्रमणोपासक की आत्मा
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-१ आहार Hindi 331 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] समणोवासगस्स णं भंते! पुव्वामेव तसपाणसमारंभे पच्चक्खाए भवइ, पुढविसमारंभे अपच्चक्खाए भवइ से पुढविं खणमाणे अन्नयरं तसं पाणं विहिंसेज्जा, से णं भंते! तं वयं अतिचरति? नो इणट्ठे समट्ठे, नो खलु से तस्स अतिवायाए आउट्टति समणोवासगस्स णं भंते! पुव्वामेव वणप्फइसमारंभे पच्चक्खाए से पुढविं खणमाणे अन्नयरस्स रुक्खस्स मूलं छिंदेज्जा, से णं भंते! तं वयं अतिचरति? नो इणट्ठे समट्ठे, नो खलु से तस्स अतिवायाए आउट्टति

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जिस श्रमणोपासक ने पहले से ही त्रस प्राणियों के समारम्भ का प्रत्याख्यान कर लिया हो, किन्तु पृथ्वीकाय के समारम्भ का प्रत्याख्यान नहीं किया हो, उस श्रमणोपासक से पृथ्वी खोदते हुए किसी त्रसजीव की हिंसा हो जाए, तो भगवन्‌ ! क्या उसके व्रत (त्रसजीववध प्रत्याख्यान) का उल्लंघन होता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-१ आहार Hindi 332 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] समणोवासए णं भंते! तहारूवं समणं वा माहणं वा फासु-एसणिज्जेणं असनपान-खाइम-साइमेणं पडिलाभेमाणे किं लब्भइ? गोयमा! समणोवासए णं तहारूवं समणं वा माहणं वा फासु-एसणिज्जेणं असन-पान-खाइम-साइमेणं पडिलाभेमाणे तहा रूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा समाहिं उप्पाएति, समाहिकारए णं तामेव समाहिं पडिलभइ समणोवासए णं भंते! तहारूवं समणं वा माहणं वा फासु-एसणिज्जेणं असन-पान-खाइम-साइमेणं पडिलाभेमाणे किं चयति? गोयमा! जीवियं चयति, दुच्चयं चयति, दुक्करं करेति, दुल्लहं लहइ, बोहिं बुज्झइ, तओ पच्छा सिज्झति जाव अंतं करेति

Translated Sutra: भगवन्‌ ! तथारूप श्रमण और माहन को प्रासुक, एषणीय, अशन, पान, खादिम और स्वादिम द्वारा प्रति लाभित करते हुए श्रमणोपासक को क्या लाभ होता है ? गौतम ! वह श्रमणोपासक तथारूप श्रमण या माहन को समाधि उत्पन्न करता है उन्हें समाधि प्राप्त कराने वाला श्रमणोपासक उसी समाधि को स्वयं भी प्राप्त करता है भगवन्‌ ! तथारूप श्रमण
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-१ आहार Hindi 333 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अत्थि णं भंते! अकम्मस्स गती पण्णायति? हंता अत्थि कहन्नं भंते! अकम्मस्स गती पण्णायति? गोयमा! निस्संगयाए, निरंगणयाए, गतिपरिणामेणं, बंधनछेदणयाए, निरिंधणयाए, पुव्वप्पओगेणं अकम्मस्स गती पण्णायति कहन्नं भंते! निस्संगयाए, निरंगणयाए, गतिपरिणामेणं अकम्मस्स गती पण्णायति? से जहानामए केइ पुरिसे सुक्कं तुंबं निच्छिड्डं निरूवहयं आनुपुव्वीए परिकम्मेमाणे-परिकम्मेमाणे दब्भेहि कुसेहि वेढेइ, वेढेत्ता अट्ठहिं मट्टियालेवेहिं लिंपइ, लिंपित्ता उण्हे दलयति, भूतिं-भूतिं सुक्कं समाणं अत्थाहमतारमपोरिसियंसि उदगंसि पक्खिवेज्जा से नूनं गोयमा! से तुंबे तेसिं अट्ठण्हं मट्टियालेवाणं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या कर्मरहित जीव की गति होती है ? हाँ, गौतम ! अकर्म जीव की गति होती है भगवन्‌ ! अकर्म जीव की गति कैसे होती है ? गौतम ! निःसंगता से, नीरागता से, गतिपरिणाम से, बन्धन का छेद हो जाने से, निरिन्धता (कर्मरूपी इन्धन से मुक्ति) होने से और पूर्वप्रयोग से कर्मरहित जीव की गति होती है भगवन्‌ ! निःसंगता से, नीरागता से,
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-१ आहार Hindi 334 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] दुक्खी भंते! दुक्खेणं फुडे? अदुक्खी दुक्खेणं फुडे? गोयमा! दुक्खी दुक्खेणं फुडे, नो अदुक्खी दुक्खेणं फुडे दुक्खी भंते! नेरइए दुक्खेणं फुडे? अदुक्खी नेरइए दुक्खेणं फुडे? गोयमा! दुक्खी नेरइए दुक्खेणं फुडे, नो अदुक्खी नेरइए दुक्खेणं फुडे एवं दंडओ जाव वेमाणियाणं एवं पंच दंडगा नेयव्वा. दुक्खी दुक्खेणं फुडे . दुक्खी दुक्खं परियायइ . दुक्खी दुक्खं उदीरेइ . दुक्खी दुक्खं वेदेति . दुक्खी दुक्खं निज्जरेति

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या दुःखी जीव दुःख से स्पृष्ट होता है अथवा अदुःखी जीव दुःख से स्पृष्ट होता है ? गौतम ! दुःखी जीव ही दुःख से स्पृष्ट होता है, किन्तु अदुःखी जीव दुःख से स्पृष्ट नहीं होता भगवन्‌ ! क्या दुःखी नैरयिक दुःख से स्पृष्ट होता है या अदुःखी नैरयिक दुःख से स्पृष्ट होता है ? गौतम ! दुःखी नैरयिक ही दुःख से स्पृष्ट होता
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-१ आहार Hindi 335 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अनगारस्स णं भंते! अणाउत्तं गच्छमाणस्स वा, चिट्ठमाणस्स वा, निसीयमाणस्स वा, तुयट्टमाणस्स वा, अणाउत्तं वत्थं पडिग्गहं कंबलं पायपुंछणं गेण्हमाणस्स वा, निक्खिवमाणस्स वा तस्स णं भंते! किं रियावहिया किरिया कज्जइ? संपराइया किरिया कज्जइ? गोयमा! नो रियावहिया किरिया कज्जइ, संपराइया किरिया कज्जइ से केणट्ठेणं? गोयमा! जस्स णं कोह-मान-माया-लोभा वोच्छिन्ना भवंति तस्स णं रियावहिया किरिया कज्जइ, जस्स णं कोह-मान-माया -लोभा अवोच्छिन्ना भवंति तस्स णं संपराइया किरिया कज्जइ अहासुत्तं रीयमाणस्स रियावहिया किरिया कज्जइ, उस्सुत्तं रीयमाणस्स संपराइया किरिया कज्जइ से णं उस्सुत्तमेव

Translated Sutra: भगवन्‌ ! उपयोगरहित गमन करते हुए, खड़े होते हुए, बैठते हुए या सोते हुए और इसी प्रकार बिना उपयोग के वस्त्र, पात्र, कम्बल और पादप्रोंछन ग्रहण करते हुए या रखते हुए अनगार को ऐर्यापथिकी क्रिया लगती है अथवा साम्परायिकी क्रिया लगती है ? गौतम ! ऐसे अनगार को साम्परायिकी क्रिया लगती है भगवन्‌ ! ऐसा किस कारण से कहा जाता है
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-१ आहार Hindi 336 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! सइंगालस्स, सधूमस्स, संजोयणादोसदुट्ठस्स पान-भोयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? गोयमा! जे णं निग्गंथे वा निग्गंथी वा फासु-एसणिज्जं असन-पान-खाइम-साइमं पडिग्गाहेत्ता मुच्छिए गिद्धे गढिए अज्झोववन्ने आहारमाहारेइ, एस णं गोयमा! सइंगाले पान-भोयणे जे णं निग्गंथे वा निग्गंथी वा फासु-एसणिज्जं असन-पान-खाइम-साइमं पडिग्गाहेत्ता महया अप्पत्तियं कोहकिलामं करेमाणे आहारमाहारेइ, एस णं गोयमा! सधूमे पान-भोयणे जे णं निग्गंथे वा निग्गंथी वा फासु-एसणिज्जं असन-पान-खाइम-साइमं पडिग्गाहेत्ता गुणुप्पायणहेउं अन्नदव्वेणं सद्धिं संजोएत्ता आहारमाहारेइ, एस णं गोयमा! संजोयणादोसदुट्ठे

Translated Sutra: भगवन्‌ ! अंगारदोष, धूमदोष और संयोजनादोष से दूषित पान भोजन का क्या अर्थ कहा गया है ? गौतम! जो निर्ग्रन्थ अथवा निर्ग्रन्थी प्रासुक और एषणीय अशन पान खादिम स्वादिमरूप आहार ग्रहण करके उसमें मूर्च्छित, गृद्ध, ग्रथित और आसक्त होकर आहार करते हैं, हे गौतम ! यह अंगारदोष से दूषित आहार पानी हैं जो निर्ग्रन्थ अथवा
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-१ आहार Hindi 337 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! खेत्तातिक्कंतस्स, कालातिक्कंतस्स, मग्गातिक्कंतस्स, पमाणातिक्कंतस्स पान-भोयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? गोयमा! जे णं निग्गंथे वा निग्गंथी वा फासु-एसणिज्जं असन-पान-खाइम-साइमं अणुग्गए सूरिए पडिग्गाहेत्ता उग्गए सूरिए आहारमाहारेइ, एस णं गोयमा! खेत्तातिक्कंते पान-भोयणे जे णं निग्गंथे वा निग्गंथी वा फासु-एसणिज्जं असनं-पान-खाइम-साइमं पढमाए पोरिसीए पडिग्गाहेत्ता पच्छिमं पोरिसिं उवाइणावेत्ता आहारमाहारेइ एस णं गोयमा! कालातिक्कंते पान-भोयणे जे णं निग्गंथे वा निग्गंथी वा फासु-एसणिज्जं असन-पान-खाइम-साइमं पडिग्गाहेत्ता परं अद्धजोयणमेराए वीइक्कमावेत्ता आहारमाहारेइ,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्षेत्रातिक्रान्त, कालातिक्रान्त, मार्गातिक्रान्त और प्रमाणातिक्रान्त पान भोजन का क्या अर्थ है ? गौतम ! जो निर्ग्रन्थ या निर्ग्रन्थी, प्रासुक और एषणीय अशन पान खादिम स्वादिमरूप चतुर्विध आहार को सूर्योदय से पूर्व ग्रहण करके सूर्योदय के पश्चात्‌ उस आहार को करते हैं, तो हे गौतम ! यह क्षेत्रातिक्रान्त
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-१ आहार Hindi 338 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! सत्थातीतस्स, सत्थपरिणामियस्स, एसियस्स, वेसियस्स, सामुदाणियस्स पान-भोयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? गोयमा! जे णं निग्गंथे वा निग्गंथी वा निक्खित्तसत्थमुसले ववगयमाला-वन्नग-विलेवने ववगय-चुय-चइय-चत्तदेहं, जीव-विप्पजढं, अकयं, अकारियं, असंकप्पियं, अनाहूयं, अकीयकडं, अनुद्दिट्ठं, नव-कोडीपरिसुद्धं, दसदोसविप्पमुक्कं, उग्गमुप्पायणेसणासुपरिसुद्धं, वीतिंगालं, वीतधूमं, संजोयणा- दोसविप्पमुक्कं, असुरसुरं, अचवचवं, अदुयं, अविलंबियं, अपरिसाडिं, अक्खोवंजण वणाणुलेवणभूयं, संजमजायामायवत्तियं, संजमभारवहणट्ठयाए बिलमिव पन्नगभूएणं अप्पाणेणं आहारमाहारेइ, एस णं गोयमा! सत्थातीतस्स,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! शस्त्रातीत, शस्त्रपरिणामित, एषित, व्येषित, सामुदायिक भिक्षारूप पान भोजन का क्या अर्थ है? गौतम ! जो निर्ग्रन्थ या निर्ग्रन्थी शस्त्र और मूसलादि का त्याग किये हुए हैं, पुष्प माला और विलेपन से रहित हैं, वे यदि उस आहार को करते हैं, जो कृमि आदि जन्तुओं से रहित, जीवच्युत और जीवविमुक्त है, जो साधु के लिए नहीं
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-२ विरति Hindi 339 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से नूनं भंते! सव्वपाणेहिं, सव्वभूएहिं, सव्वजीवेहिं, सव्वसत्तेहिं पच्चक्खायमिति वदमाणस्स सुपच्चक्खायं भवति? दुपच्चक्खायं भवति? गोयमा! सव्वपाणेहिं जाव सव्वसत्तेहिं पच्चक्खायमिति वदमाणस्स सिय सुपच्चक्खायं भवति, सिय दुपच्चक्खायं भवति से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइसव्वपाणेहिं जाव सव्वसत्तेहिं पच्चक्खायमिति वदमाणस्स सिय सुपच्चक्खायं भवति सिय दुपच्चक्खायं भवति? गोयमा! जस्स णं सव्वपाणेहिं जाव सव्वसत्तेहिं पच्चक्खायमिति वदमाणस्स नो एवं अभिसमन्नागयं भवति इमे जीवा, इमे अजीवा, इमे तसा, इमे थावरा, तस्स णं सव्वपाणेहिं जाव सव्वसत्तेहिं पच्चक्खायमिति वदमाणस्स

Translated Sutra: हे भगवन्‌ ! मैंने सर्व प्राण, सर्व भूत, सर्व जीव और सभी तत्त्वों की हिंसा का प्रत्याख्यान किया है, इस प्रकार कहने वाले के सुप्रत्याख्यान होता है या दुष्प्रत्याख्यान होता है ? गौतम ! मैंने सभी प्राण यावत्‌ सभी तत्त्वों की हिंसा का प्रत्याख्यान किया है, ऐसा कहने वाले के कदाचित्‌ सुप्रत्याख्यान होता है कदाचित्‌
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-२ विरति Hindi 340 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहे णं भंते! पच्चक्खाणे पन्नत्ते? गोयमा! दुविहे पच्चक्खाणे पन्नत्ते, तं जहामूलगुणपच्चक्खाणे , उत्तरगुणपच्चक्खाणे मूलगुणपच्चक्खाणे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! दुविहे पन्नत्ते, तं जहासव्वमूलगुणपच्चक्खाणे , देसमूलगुणपच्चक्खाणे सव्वमूलगुणपच्चक्खाणे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! पंचविहे पन्नत्ते, तं जहासव्वाओ पाणाइवायाओ वेरमणं, सव्वाओ मुसावायाओ वेरमणं, सव्वाओ अदिन्नादानाओ वेरमणं, सव्वाओ मेहुणाओ वेरमणं, सव्वाओ परिग्गहाओ वेरमणं देसमूलगुणपच्चक्खाणे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! पंचविहे पन्नत्ते, तं जहाथूलाओ पाणाइवायाओ वेरमणं,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! प्रत्याख्यान कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! प्रत्याख्यान दो प्रकार का कहा गया है मूलगुणप्रत्याख्यान और उत्तरगुणप्रत्याख्यान भगवन्‌ ! मूलगुणप्रत्याख्यान कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! दो प्रकार का सर्वमूलगुणप्रत्या ख्यान और देशमूलगुणप्रत्याख्यान भगवन्‌ ! सर्वमूलगुणप्रत्याख्यान
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-२ विरति Hindi 341 Gatha Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] , . अनागयमइक्कंतं . कोडीसहियं . नियंटियं चेव , . सागारमनागारं . परिमाणकडं . निरवसेसं . संकेयं चेव . अद्धाए, पच्चक्खाणं भवे दसहा

Translated Sutra: अनागत, अतिक्रान्त, कोटिसहित, नियंत्रित, साकार, अनाकार, परिणामकृत, निरवशेष, संकेत और अद्धा प्रत्याख्यान
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-२ विरति Hindi 342 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] देसुत्तरगुणपच्चक्खाणे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! सत्तविहे पन्नत्ते, तं जहा. दिसिव्वयं . उवभोगपरिभोगपरिमाणं . अनत्थदंड-वेरमणं . सामाइयं . देसावगासियं . पोसहोववासो . अतिहिसंविभा गो अपच्छिममारणंतिय-संलेहणा-ज्झूसणाराहणता

Translated Sutra: देश उत्तरगुणप्रत्याख्यान कितने प्रकार का है ? गौतम ! सात प्रकार का दिग्व्रत, उपभोग परिभोगपरिणाम अनर्थदण्डविरमण, सामायिक, देशावकाशिक, पौषधोपवास, अतिथि संविभाग तथा अपश्चिम मारणान्तिक संलेखना जोषणा आराधना
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-२ विरति Hindi 343 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवा णं भंते! किं मूलगुणपच्चक्खाणी? उत्तरगुणपच्चक्खाणी? अपच्चक्खाणी? गोयमा! जीवा मूलगुणपच्चक्खाणी वि, उत्तरगुणपच्चक्खाणी वि, अपच्चक्खाणी वि नेरइया णं भंते! किं मूलगुणपच्चक्खाणी? पुच्छा गोयमा! नेरइया नो मूलगुणपच्चक्खाणी, नो उत्तरगुणपच्चक्खाणी, अपच्चक्खाणी एवं जाव चउरिंदिया पंचिंदियतिरिक्खजोणिया मनुस्सा जहा जीवा, वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिया जहा नेरइया एएसि णं भंते! जीवाणं मूलगुणपच्चक्खाणीणं, उत्तरगुणपच्चक्खाणीणं, अपच्चक्खाणीण कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा? बहुया वा? तुल्ला वा? विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा मूलगुणपच्चक्खाणी, उत्तरगुणपच्चक्खाणी

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या जीव मूलगुणप्रत्याख्यानी हैं, उत्तरगुणप्रत्याख्यानी हैं अथवा अप्रत्याख्यानी हैं ? गौतम ! जीव (समुच्चयरूप में) मूलगुणप्रत्याख्यानी भी हैं, उत्तरगुणप्रत्याख्यानी भी हैं और अप्रत्याख्यानी भी हैं नैरयिक जीव मूलगुणप्रत्याख्यानी हैं, उत्तरगुणप्रत्याख्यानी हैं या अप्रत्याख्यानी ? गौतम ! नैरयिक
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-२ विरति Hindi 344 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवा णं भंते! किं सासया? असासया? गोयमा! जीवा सिय सासया, सिय असासया से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइजीवा सिय सासया? सिय असासया? गोयमा! दव्वट्ठयाए सासया, भावट्ठयाए असासया से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइजीवा सिय सासया, सिय असासया नेरइया णं भंते! किं सासया? असासया? एवं जहा जीवा तहा नेरइया वि एवं जाव वेमाणिया सिय सासया, सिय असासया सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या जीव शाश्वत हैं या अशाश्वत हैं ? गौतम ! जीव कथंचित्‌ शाश्वत हैं और कथंचित्‌ अशाश्वत हैं भगवन्‌ ! यह किस कारण से कहा जाता है ? गौतम ! द्रव्य की दृष्टि से जीव शाश्वत है और भाव की दृष्टि से जीव अशाश्वत हैं इस कारण कहा गया है कि जीव कथंचित्‌ शाश्वत हैं, कथंचित्‌ अशाश्वत हैं भगवन्‌ ! क्या नैरयिक जीव शाश्वत
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-३ स्थावर Hindi 345 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] वणस्सइक्काइया णं भंते! कं कालं सव्वप्पाहारगा वा, सव्वमहाहारगा वा भवंति? गोयमा! पाउस-वरिसारत्तेसु णं एत्थ णं वणस्सइकाइया सव्वमहाहारगा भवंति, तदानंतरं णं सरदे, तदानंतरं णं हेमंते, तदानंतरं णं वसंते, तदानंतरं णं गिम्हे गिम्हासु णं वणस्सइकाइया सव्वप्पाहारगा भवंति जइ णं भंते! गिम्हासु वणस्सइकाइया सव्वप्पाहारगा भवंति, कम्हा णं भंते! गिम्हासु बहवे वणस्सइ-काइया पत्तिया, पुप्फिया, फलिया, हरियगरेरिज्जमाणा, सिरीए अतीव-अतीव उवसोभेमाणा-उवसोभेमाणा चिट्ठंति? गोयमा! गिम्हासु णं बहवे उसिणजोणिया जीवा , पोग्गला वणस्सइकाइयत्ताए वक्कमंति, चयंति, उववज्जंति एवं खलु

Translated Sutra: भगवन्‌ ! वनस्पतिकायिक जीव किस काल में सर्वाल्पाहारी होते और किस काल में सर्वमहाहारी होते हैं ? गौतम ! प्रावृट्‌ ऋतु (श्रावण और भाद्रपद मास) में तथा वर्षाऋतु (आश्विन और कार्तिक मास) में वनस्पतिकायिक जीव सर्वमहाहारी होते हैं इसके पश्चात्‌ शरदऋतु में, तदनन्तर हेमन्तऋतु में इसके बाद वसन्तऋतु में और तत्पश्चात्‌
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-३ स्थावर Hindi 346 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से नूनं भंते! मूला मूलजीवफुडा, कंदा कंदजीवफुडा, खंधा खंधजीवफुडा, तया तयाजीवफुडा, साला सालजीवफुडा, पवाला पवालजीवफुडा, पत्ता पत्तजीवफुडा, पुप्फा पुप्फजीवफुडा, फला फलजीव-फुडा, बीया बीयजीवफुडा? हंता गोयमा! मूला मूलजीवफुडा जाव बीया बीयजीवफुडा जइ णं भंते! मूला मूलजीवफुडा जाव बीया बीयजीवफुडा, कम्हा णं भंते! वणस्सइकाइया आहारेंति? कम्हा परिणामेंति? गोयमा! मूला मूलजीवफुडा पुढवीजीवपडिबद्धा तम्हा आहारेंति, तम्हा परिणामेंति कंदा कंदजीव-फुडा मूलजीवपडिबद्धा, तम्हा आहारेंति, तम्हा परिणामेंति एवं जाव बीया बीयजीवफुडा फलजीवपडिबद्धा तम्हा आहारेंति, तम्हा परिणामेंति

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या वनस्पतिकायिक के मूल, निश्चय ही मूल के जीवों से स्पृष्ट होते हैं, कन्द, कन्द के जीवों से स्पृष्ट, यावत्‌ बीज, बीज के जीवों से स्पृष्ट होते हैं ? हाँ, गौतम ! मूल, मूल के जीवों से स्पृष्ट होते हैं यावत्‌ बीज, बीज के जीवों से स्पृष्ट होते हैं भगवन्‌ ! यदि मूल, मूल के जीवों से स्पृष्ट होते हैं यावत्‌ बीज, बीज
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-३ स्थावर Hindi 347 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! आलुए, मूलए, सिंगबेरे, हिरिलि, सिरिलि, सिस्सिरिलि, किट्ठिया, छिरिया, छीरविरालिया, कण्हकंदे, वज्जकंदे, सूरणकंदे, खेलूडे भद्दमोत्था, पिंडहलिद्दा, लोही, णीहू, थीहू, थिभगा, अस्सकण्णी, सीहकण्णी, सिउंढी, मुसंढी, जे यावण्णे तहप्पगारा सव्वे ते अनंतजीवा विविहसत्ता? हंता गोयमा! आलुए, मूलए जाव अनंतजीवा विविहसत्ता

Translated Sutra: अब प्रश्न यह है भगवन्‌ ! आलू, मूला, शृंगबेर, हिरिली, सिरिली, सिस्सिरिली, किट्टिका, छिरिया, छीरवि दारिका, वज्रकन्द, सूरणकन्द, खिलूड़ा, भद्रमोथा, पिंडहरिद्रा, रोहिणी, हुथीहू, थिरुगा, मुद्‌गकर्णी, अश्वकर्णी, सिंहकर्णी, सिहण्डी, मुसुण्ढी, ये और इसी प्रकार की जितनी भी दूसरी वनस्पतियाँ हैं, क्या वे सब अनन्तजीववाली और
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-३ स्थावर Hindi 348 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सिय भंते! कण्हलेसे नेरइए अप्पकम्मतराए? नीललेसे नेरइए महाकम्मतराए? हंता सिय से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइकण्हलेसे नेरइए अप्पकम्मतराए? नीललेसे नेरइए महाकम्मतराए? गोयमा! ठितिं पडुच्च से तेणट्ठेणं गोयमा! जाव महाकम्मतराए सिय भंते! नीललेसे नेरइए अप्पकम्मतराए? काउलेसे नेरइए महाकम्मतराए? हंता सिय से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइनीललेसे नेरइए अप्पकम्मतराए? काउलेसे नेरइए महाकम्मतराए? गोयमा! ठितिं पडुच्च से तेणट्ठेणं गोयमा! जाव महाकम्मतराए एवं असुरकुमारे वि, नवरंतेउलेसा अब्भहिया एवं जाव वेमाणिया जस्स जइ लेस्साओ तस्स तत्तिया भाणियव्वाओ जोइसियस्स भण्णइ

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या कृष्णलेश्या वाला नैरयिक कदाचित्‌ अल्पकर्म वाला और नीललेश्या वाला नैरयिक कदाचित्‌ महाकर्म वाला होता है ? हाँ, गौतम ! कदाचित्‌ ऐसा होता है भगवन्‌ ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि कृष्णलेश्या वाला नैरयिक कदाचित्‌ अल्पकर्म वाला होता है और नीललेश्या वाला नैरयिक कदाचित्‌ महाकर्म वाला होता है ? गौतम
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-३ स्थावर Hindi 349 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से नूनं भंते! जा वेदना सा निज्जरा? जा निज्जरा सा वेदना? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइजा वेदना सा निज्जरा? जा निज्जरा सा वेदना? गोयमा! कम्मं वेदना, नोकम्मं निज्जरा से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइजा वेदना सा निज्जरा, सा निज्जरा सा वेदना नेरइया णं भंते! जा वेदना सा निज्जरा? जा निज्जरा सा वेदना? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइनेरइयाणं जा वेदना सा निज्जरा? जा निज्जरा सा वेदना? गोयमा! नेरइयाणं कम्मं वेदना, नोकम्मं निज्जरा से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइनेरइयाणं जा वेदना सा निज्जरा, जा निज्जरा सा वेदना एवं जाव

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या वास्तव में जो वेदना है, वह निर्जरा कही जा सकती है ? और जो निर्जरा है, वह वेदना कही जा सकती है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है भगवन्‌ ! ऐसा किस कारण से कहा जाता है कि जो वेदना है, वह निर्जरा नहीं कही जा सकती और जो निर्जरा है, वह वेदना नहीं कही जा सकती ? गौतम ! वेदना कर्म है और निर्जरा नोकर्म है इस कारण से ऐसा
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-३ स्थावर Hindi 350 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइया णं भंते! किं सासया? असासया? गोयमा! सिय सासया, सिय असासया से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइनेरइया सिय सासया? सिय असासया? गोयमा! अव्वोच्छित्तिनयट्ठयाए सासया, वोच्छित्तिनयट्ठयाए असासया से तेणट्ठेणं जाव सिय सासया, सिय असासया एवं जाव वेमाणिया जाव सिय असासया सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति

Translated Sutra: भगवन्‌ ! नैरयिक जीव शाश्वत हैं या अशाश्वत हैं ? गौतम ! नैरयिक जीव कथंचित्‌ शाश्वत हैं और कथंचित्‌ अशाश्वत हैं भगवन्‌ ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं ? गौतम ! अव्युच्छित्ति नय की अपेक्षा से नैरयिक जीव शाश्वत है और व्युच्छित्ति नय की अपेक्षा से नैरयिक जीव अशाश्वत हैं इन कारण से हे गौतम ! मैं ऐसा कहता हूँ कि नैरयिक
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-४ जीव Hindi 351 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे नयरे जाव एवं वयासि कतिविहा णं भंते! संसारसमावन्नगा जीवा पन्नत्ता? गोयमा! छव्विहा संसारसमावन्नगा जीवा पन्नत्ता, तं जहापुढविकाइया जाव तसकाइया एवं जहा जीवाभिगमे जाव एगे जीवे एगेणं समएणं एगं किरियं पकरेइ, तं जहासम्मत्तकिरियं वा, मिच्छत्तकिरियं वा सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति

Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत्‌ भगवान महावीर से इस प्रकार पूछा भगवन्‌ ! संसारसमापन्नक जीव कितने प्रकार के हैं? गौतम ! छह प्रकार के पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक एवं त्रस कायिक इस प्रकार यह समस्त वर्णन जीवाभिगमसूत्र में कहे अनुसार सम्यक्त्वक्रिया और मिथ्यात्वक्रिया पर्यन्त कहना
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-४ जीव Hindi 352 Gatha Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जीवा छव्विह पुढवी जीवाण ठिती भवट्ठितिकाये | निल्लेवण अनगारे किरिया सम्मत्त मिच्छत्ता ||

Translated Sutra: जीव के छह भेद, पृथ्वीकायिक आदि जीवों की स्थिति, भवस्थिति, सामान्यकायस्थिति, निर्लेपन, अनगार सम्बन्धी वर्णन सम्यक्त्वक्रिया और मिथ्यात्वक्रिया शतक उद्देशक
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-५ पक्षी Hindi 353 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासीखहयरपंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं भंते! कतिविहे जोणीसंगहे पन्नत्ते? गोयमा! तिविहे जोणीसंगहे पन्नत्ते, तं जहाअंडया, पोयया, संमुच्छिमा एवं जहा जीवाभिगमे जाव नो चेव णं ते विमाने वीतीवएज्जा, एमहालया णं गोयमा! ते विमाना पन्नत्ता सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति

Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत्‌ भगवान महावीर स्वामी से पूछा हे भगवन्‌ ! खेचर पंचेन्द्रियतिर्यंच जीवों का योनिसंग्रह कितने प्रकार का है ? गौतम ! तीन प्रकार का अण्डज, पोतज और सम्मूर्च्छिम इस प्रकार जीवा जीवाभिगमसूत्र में कहे अनुसार यावत्‌ उन विमानों का उल्लंघन नहीं किया जा सकता, हे गौतम ! वे विमान इतने महान्‌ कहे
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-५ पक्षी Hindi 354 Gatha Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जोणीसंगह-लेसा दिट्ठी नाणे जोग उवओगे | उववाय-ट्ठिति-समुग्घाय-चवण-जाती-कुल-वीहीओ ||

Translated Sutra: योनिसंग्रह लेश्या, दृष्टि, ज्ञान, योग, उपयोग, उपपात, स्थिति, समुद्‌घात, च्यवन और जाति कुलकोटि इतने विषय हैं
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-६ आयु Hindi 355 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासीजीवे णं भंते! जे भविए नेरइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! किं इहगए नेरइयाउयं पकरेइ? उववज्जमाणे नेरइयाउयं पकरेइ? उववन्ने नेरइयाउयं पकरेइ? गोयमा! इहगए नेरइयाउयं पकरेइ, नो उववज्जमाणे नेरइयाउयं पकरेइ, नो उववन्ने नेरइयाउयं पकरेइ एवं असुरकुमारेसु वि, एवं जाव वेमाणिएसु जीवे णं भंते! जे भविए नेरइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! किं इहगए नेरइयाउयं पडिसंवेदेइ? उववज्जमाणे नेरइयाउयं पडिसंवेदेइ? उववन्ने नेरइयाउयं पडिसंवेदेइ? गोयमा! नो इहगए नेरइयाउयं पडिसंवेदेइ, उववज्जमाणे नेरइयाउयं पडिसंवेदेइ, उववन्ने वि नेरइयाउयं पडिसंवेदेइ एवं जाव वेमाणिएसु जीवे

Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत्‌ पूछा भगवन्‌ ! जो जीव नारकों में उत्पन्न होने योग्य हैं, क्या वह इस भव में रहता हुआ नारकायुष्य बाँधता है, वहाँ उत्पन्न होता हुआ नारकायुष्य बाँधता है या फिर (नरक में) उत्पन्न होने पर नारका युष्य बाँधता है ? गौतम ! वह इस भव में रहता हुआ ही नारकायुष्य बाँधता लेता है, परन्तु नरक में उत्पन्न हुआ
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-६ आयु Hindi 356 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवा णं भंते! किं आभोगनिव्वत्तियाउया? अनाभोगनिव्वत्तियाउया? गोयमा! नो आभोगनिव्वत्तियाउया, अनाभोगनिव्वत्तियाउया एवं नेरइया वि, एवं जाव वेमाणिया

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या जीव आभोगनिर्वर्तित आयुष्य वाले हैं या अनाभोगनिर्वर्तित आयुष्य वाले हैं ? गौतम ! जीव आभोगनिर्वर्तित आयुष्य वाले नहीं हैं, किन्तु अनाभोगनिर्वर्तित आयुष्य वाले हैं इसी प्रकार नैरयिकों के (आयुष्य के) विषय में भी कहना चाहिए वैमानिकों पर्यन्त इसी तरह कहना चाहिए
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-६ आयु Hindi 357 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अत्थि णं भंते! जीवाणं कक्कसवेयणिज्जा कम्मा कज्जंति? हंता अत्थि कहन्नं भंते! जीवाणं कक्कसवेयणिज्जा कम्मा कज्जंति? गोयमा! पाणाइवाएण जाव मिच्छादंसणसल्लेणंएवं खलु गोयमा! जीवाणं कक्कस-वेयणिज्जा कम्मा कज्जंति अत्थि णं भंते! नेरइया णं कक्कसवेयणिज्जा कम्मा कज्जंति? एवं चेव एवं जाव वेमाणियाणं अत्थि णं भंते! जीवाणं अकक्कसवेयणिज्जा कम्मा कज्जंति? हंता अत्थि कहन्नं भंते! जीवाणं अकक्कसवेयणिज्जा कम्मा कज्जंति? गोयमा! पाणाइवायवेरमणेणं जाव परिग्गहवेरमणेणं, कोहविवेगेणं जाव मिच्छादंसण-सल्लविवेगेणंएवं खलु गोयमा! जीवाणं अकक्कसवेयणिज्जा कम्मा कज्जंति अत्थि णं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या जीवों के कर्कश वेदनीय कर्म करते हैं ? हाँ, गौतम ! करते हैं भगवन्‌ ! जीव कर्कश वेदनीय कर्म कैसे बाँधते हैं ? गौतम ! प्राणातिपात से यावत्‌ मिथ्यादर्शनशल्य से बाँधते हैं क्या नैरयिक जीव कर्कशवेदनीय कर्म बाँधते हैं ? हाँ, गौतम ! पहले कहे अनुसार बाँधते हैं इसी प्रकार वैमानिकों तक कहना भगवन्‌ ! क्या
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-६ आयु Hindi 358 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अत्थि णं भंते! जीवाणं सातावेयणिज्जा कम्मा कज्जंति? हंता अत्थि कहन्नं भंते! जीवाणं सातावेयणिज्जा कम्मा कज्जंति? गोयमा! पाणाणुकंपयाए, भूयाणुकंपयाए, जीवाणुकंपयाए, सत्ताणुकंपयाए, बहूणं पाणाणं भूयानं जीवाणं सत्ताणं अदुक्खणयाए असोयणयाए अजूरणयाए अतिप्पणयाए अपिट्टणयाए अपरिया-वणयाएएवं खलु गोयमा! जीवाणं सातावेयणिज्जा कम्मा कज्जंति एवं नेरइयाण वि, एवं जाव वेमाणियाणं अत्थि णं भंते! जीवाणं असातावेयणिज्जा कम्मा कज्जंति? हंता अत्थि कहन्नं भंते! जीवाणं असातावेयणिज्जा कम्मा कज्जंति? गोयमा! परदुक्खणयाए, परसोयणयाए, परजूरणयाए, परतिप्पणयाए, परपिट्टणयाए, परपरिया-वणयाए,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या जीव सातावेदनीय कर्म बाँधते हैं ? हाँ, गौतम ! बाँधते हैं भगवन्‌ ! जीव सातावेदनीय कर्म कैसे बाँधते हैं ? गौतम ! प्राणों पर अनुकम्पा करने से, भूतों पर अनुकम्पा करने से, जीवों के प्रति अनुकम्पा करने से और सत्त्वों पर अनुकम्पा करने से; तथा बहुत से प्राण, भूत, जीव और सत्त्वों को दुःख देने से, उन्हें शोक
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-६ आयु Hindi 359 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे इमीसे ओसप्पिणीए दुस्सम-दुस्समाए समाए उत्तमकट्ठपत्ताए भरहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे भविस्सइ? गोयमा! कालो भविस्सइ हाहाभूए, भंभब्भूए कोलाहलभूए समानुभावेण णं खर-फरुस-धूलिमइला दुव्विसहा वाउला भयंकरा वाया संवट्टगा वाहिंति इह अभिक्खं धूमाहिंति दिसा समंता रउस्सला रेणुकलुस-तमपडल-निरालोगा समयलुक्खयाए णं अहियं चंदा सीयं मोच्छंति अहियं सूरिया तवइस्संति अदुत्तरं णं अभिक्खणं बहवे अरसमेहा विरसमेहा खार-मेहा खत्तमेहा अग्गिमेहा विज्जुमेहा विसमेहा असणिमेहाअपिवणिज्जोदगा, वाहिरोगवेदणोदीरणा-परिणामसलिला, अमणुन्नपा-णियगा

Translated Sutra: भगवन्‌ ! इस जम्बूद्वीप नामक द्वीप के भारतवर्ष में इस अवसर्पिणी काल का दुःषमदुःषम नामक छठा आरा जब अत्यन्त उत्कट अवस्था को प्राप्त होगा, तब भारतवर्ष का आकारभाव प्रत्यवतार कैसा होगा ? गौतम ! वह काल हाहाभूत, भंभाभूत (दुःखार्त्त) तथा कोलाहलभूत होगा काल के प्रभाव से अत्यन्त कठोर, धूल से मलिन, असह्य, व्याकुल, भयंकर
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-६ आयु Hindi 360 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तीसे णं भंते! समाए भरहे वासे मनुयाणं केरिसए आगारभाव-पडोयारे भविस्सइ? गोयमा! मनुया भविस्संति दुरूवा दुवण्णा दुग्गंधा दुरसा दुफासा अनिट्ठा अकंता अप्पिया असुभा अमणुन्ना अमणामा हीनस्सरा दीनस्सरा अणिट्ठस्सरा अकंतस्सरा अप्पियस्सरा असुभस्सरा अमणुन्नस्सरा अमणामस्सरा अनादेज्जवयणपच्चायाया, निल्लज्जा, कूड-कवड-कलह-वह-बंध-वेरनिरया, मज्जायातिक्कमप्पहाणा, अकज्जनिच्चुज्जता, गुरुनियोग-विनयरहिया , विकल-रूवा, परूढनह-केस-मंसु-रोमा, काला, खर-फरुस-ज्झामवण्णा, फुट्टसिरा, कविलपलियकेसा, बहुण्हारु- संपिणद्ध-दुद्दंसणिज्जरूवा, संकुडितवलीतरंगपरिवेढियंगमंगा, जरापरिणतव्व थेरगनरा,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! उस समय भारतवर्ष की भूमि का आकार और भावों का आविर्भाव किस प्रकार का होगा ? गौतम ! उस समय इस भरतक्षेत्र की भूमि अंगारभूत, मुर्मूरभूत, भस्मीभूत, तपे हुए लोहे के कड़ाह के समान, तप्तप्राय अग्नि के समान, बहुत धूल वाली, बहुत रज वाली, बहुत कीचड़ वाली, बहुत शैवाल वाली, चलने जितने बहुत कीचड़ वाली होगी, जिस पर पृथ्वीस्थित
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-७ अणगार Hindi 361 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] संवुडस्स णं भंते! अनगारस्स आउत्तं गच्छमाणस्स, आउत्तं चिट्ठमाणस्स, आउत्तं निसीयमाणस्स, आउत्तं तुयट्टमाणस्स, आउत्तं वत्थं पडिग्गह कंबलं पादपुंछणं गेण्हमाणस्स वा निक्खिवमाणस्स वा, तस्स णं भंते! किं इरियावहिया किरिया कज्जइ? संपराइया किरिया कज्जइ? गोयमा! संवुडस्स णं अनगारस्स आउत्तं गच्छमाणस्स जाव तस्स णं इरियावहिया किरिया कज्जइ, नो संपराइया किरिया कज्जइ से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइसंवुडस्स णं अनगारस्स आउत्तं गच्छमाणस्स जाव नो संपराइया, किरिया कज्जइ? गोयमा! जस्स णं कोह-मान-माया-लोभा वोच्छिन्ना भवंति, तस्स णं इरियावहिया किरिया कज्जइ, जस्स णं कोह-मान-माया-लोभा

Translated Sutra: भगवन्‌ ! उपयोगपूर्वक चलते बैठते यावत्‌ उपयोगपूर्वक करवट बदलते तथा उपयोगपूर्वक वस्त्र, पात्र, कम्बल, पादप्रोंछन आदि ग्रहण करते और रखते हुए उस संवृत्त अनगार को क्या ऐर्यापथिकी क्रिया लगती है अथवा साम्परायिकी क्रिया लगती है ? गौतम ! उस संवृत्त अनगार को ऐर्यापथिकी क्रिया लगती है, साम्परायिकी नहीं भगवन्‌ ! ऐसा
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