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Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-११ भाषा

Hindi 391 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! जाइं दव्वाइं भासत्ताए गेण्हति ताइं किं ठियाइं गेण्हति? अठियाइं गेण्हति? गोयमा! ठियाइं गेण्हति, नो अठियाइं गेण्हति। जाइं भंते! ठियाइं गेण्हति ताइं किं दव्वओ गेण्हति? खेत्तओ गेण्हति? कालओ गेण्हति? भावओ गेण्हति? गोयमा! दव्वओ वि गेण्हति, खेत्तओ वि गेण्हति, कालओ वि गेण्हति, भावओ वि गेण्हति। जाइं दव्वओ गेण्हति ताइं किं एगपएसियाइं गेण्हति दुपएसियाइं गेण्हति जाव अनंतपएसियाइं गेण्हति? गोयमा! नो एगपएसियाइं गेण्हति जाव नो असंखेज्जपएसियाइं गेण्हति, अनंतपएसियाइं गेण्हति। जाइं खेत्तओ गेण्हति ताइं किं एगपएसोगाढाइं गेण्हति दुपएसोगाढाइं गेण्हति जाव असंखेज्जपएसोगाढाइं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जीव जिन द्रव्यों को भाषा के रूप में ग्रहण करता है, सो स्थित द्रव्यों को ग्रहण करता है या अस्थित द्रव्यों को ? गौतम ! (वह) स्थित द्रव्यों को ही ग्रहण करता है। भगवन्‌ ! (जीव) जिन स्थित द्रव्यों को ग्रहण करता है, उन्हें क्या द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से अथवा भाव से ग्रहण करता है ? गौतम ! वह द्रव्य से भी यावत्‌ भाव
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-११ भाषा

Hindi 393 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! जाइं दव्वाइं भासत्ताए गेण्हति ताइं किं संतरं गेण्हति? निरंतरं गेण्हति? गोयमा! संतरं पि गेण्हति, निरंतरं पि गेण्हति। संतरं गिण्हमाणे जहन्नेणं एगं समयं, उक्कोसेणं असंखेज्जसमए अंतरं कट्टु गेण्हति। निरंतरं गिण्ह-माणे जहन्नेणं दो समए, उक्कोसेणं असंखेज्जसमए अनुसमयं अविरहियं निरंतरं गेण्हति। जीवे णं भंते! जाइं दव्वाइं भासत्ताए गहियाइं निसिरति ताइं किं संतरं निसिरति? निरंतरं निसिरति? गोयमा! संतरं निसिरति, नो निरंतरं निसिरति। संतरं णिसिरमाणे एगेणं समएणं गेण्हइ एगेणं समएणं निसिरति। एएणं गहणणिसिरणोवाएणं जहन्नेणं दुसमइयं उक्कोसेणं असंखेज्ज-समइयं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जिन द्रव्यों को जीव भाषा के रूप में ग्रहण करता है, क्या (वह) उन्हें सान्तर ग्रहण करता है या निरन्तर ? गौतम ! दोनों। सान्तर ग्रहण करता हुआ जघन्यतः एक समय का तथा उत्कृष्टतः असंख्यात समय का अन्तर है और निरन्तर ग्रहण करता हुआ जघन्य दो समय और उत्कृष्ट असंख्यात समय प्रतिसमय बिना विरह के ग्रहण करता है। भगवन्‌
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-११ भाषा

Hindi 394 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेसि णं भंते! दव्वाणं कतिविहे भेए पन्नत्ते? गोयमा! पंचविहे भेए पन्नत्ते, तं जहा– खंडाभेए पयराभेए चुण्णियाभेए अनुतडियाभेए उक्करियाभेए। से किं तं खंडाभेए? खंडाभेए–जण्णं अयखंडाण वा तउखंडाण वा तंबखंडाण वा सीसाखंडाण वा रययखंडाण वा जायरूवखंडाण वा खंडएण भेदे भवति। से त्तं खंडाभेदे। से किं तं पयराभेदे? पयराभेए–जण्णं वंसाण वा वेत्ताण वा णलाण वा कदलीथंभाण वा अब्भपडलाण वा पयरएणं भेए भवति। से त्तं पयराभेदे। से किं तं चुण्णियाभेए? जण्णं तिलचुण्णाण वा मुग्गचुण्णाण वा मासचुण्णाण वा पिप्पलि-चुण्णाण वा मिरियचुण्णाण वा सिंगबेरचुण्णाण वा चुण्णियाए भेदे भवति। से त्तं चुण्णियाभेदे। से

Translated Sutra: भगवन्‌ ! उन द्रव्यों के भेद कितने हैं ? गौतम ! पाँच – खण्डभेद, प्रतरभेद, चूर्णिकाभेद, अनुतटिकाभेद और उत्कटिका भेद। वह खण्डभेद किस प्रकार का होता है ? खण्डभेद (वह है), जो लोहे, रांगे, शीशे, चाँदी अथवा सोने के खण्डों का, खण्डक से भेद करने पर होता है। वह प्रतरभेद क्या है ? जो बांसों, बेंतों, नलों, केले के स्तम्भों, अभ्रक
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-११ भाषा

Hindi 395 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइएणं भंते! जाइं दव्वाइं भासत्ताए गेण्हति ताइं किं ठियाइं गेण्हति? अट्ठियाइं गेण्हति? गोयमा! एवं चेव जहा जीवे वत्तव्वया भणिया तहा नेरइयस्सवि जाव अप्पाबहुयं। एवं एगिंदियवज्जो दंडओ जाव वेमानिया। जीवा णं भंते! जाइं दव्वाइं भासत्ताए गेण्हंति ताइं किं ठियाइं गेण्हंति? अट्ठियाइं गेण्हंति? गोयमा! एवं चेव पुहत्तेण वि नेयव्वं जाव वेमानिया। जीवे णं भंते! जाइं दव्वाइं सच्चभासत्ताए गेण्हति ताइं किं ठियाइं गेण्हति? अट्ठियाइं गेण्हति? गोयमा! जहा ओहियदंडओ तहा एसो वि, नवरं–विगलेंदिया न पुच्छिज्जंति। एवं मोसभासाए वि सच्चामोसभासाए वि। असच्चामोसभासाए वि एवं चेव, नवरं–असच्चामोसभासाए

Translated Sutra: भगवन्‌ ! नैरयिक जिन द्रव्यों को भाषा के रूप में ग्रहण करता है, उन्हें स्थित (ग्रहण करता) है अथवा अस्थित ? गौतम ! (औघिक) जीव के समान नैरयिक में भी कहना। इसी प्रकार एकेन्द्रिय को छोड़कर वैमानिकों तक कहना। जीव जिन द्रव्यों को भाषा के रूप में ग्रहण करते हैं, क्या (वे) उन स्थित द्रव्यों को ग्रहण करते हैं, अथवा अस्थित द्रव्यों
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-११ भाषा

Hindi 396 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! जाइं दव्वाइं सच्चभासत्ताए गेण्हति ताइं किं सच्चभासत्ताए निसिरति? मोसभासत्ताए निसिरति? सच्चामोसभासत्ताए निसिरति? असच्चामोसभासत्ताए निसिरति? गोयमा! सच्चभास-त्ताए निसिरति, नो मोसभासत्ताए निसिरति नो सच्चामोसभासत्ताए निसिरति, नो असच्चामोस-भासत्ताए निसिरति। एवं एगिंदियविगलिंदियवज्जो दंडओ जाव वेमाणिए। एवं पुहत्तेण वि। जीवे णं भंते! जाइं दव्वाइं मोसभासत्ताए गेण्हति ताइं किं सच्चभासत्ताए निसिरति? मोसभासत्ताए निसिरति? सच्चामोसभासत्ताए निसिरति? असच्चामोसभासत्ताए निसिरति? गोयमा! नो सच्चभासत्ताए निसिरति, मोसभासत्ताए निसिरति नो सच्चामोसभासत्ताए

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जीव जिन द्रव्यों को सत्यभाषा के रूप में ग्रहण करता है, क्या (वह) उन स्थितिद्रव्यों को ग्रहण करता है, अथवा अस्थितद्रव्यों को ? गौतम ! औघिक जीव के समान कहना। विशेष यह है कि विकलेन्द्रियों के विषय में पृच्छा नहीं करना। जैसे सत्यभाषाद्रव्यों के ग्रहण के विषय में कहा है, वैसे ही मृषा तथा सत्यामृषाभाषा में
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-११ भाषा

Hindi 397 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहे णं भंते! वयणे पन्नत्ते? गोयमा! सोलसविहे वयणे पन्नत्ते, तं जहा–एगवयणे दुवयणे बहुवयणे इत्थिवयणे पुमवयणे नपुंसगवयणे अज्झत्थवयणे उवनीयवयणे अवनीयवयणे उवनीय-अवनीयवयणे अवनीयउवनीयवयणे तीतवयणे पडुप्पन्नवयणे अनागयवयणे पच्चक्खवयणे परोक्खवयणे। इच्चेयं भंते! एगवयणं वा जाव परोक्खवयणं वा वयमाणे पन्नवणी णं एसा भासा? न एसा भासा मोसा? हंता गोयमा! इच्चेयं एगवयणं वा जाव परोक्खवयणं वा वयमाणे पन्नवणी णं एसा भासा, न एसा भासा मोसा।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! वचन कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! सोलह प्रकार के। एकवचन, द्विवचन, स्त्रीवचन, पुरुषवचन, नपुंसकवचन, अध्यात्मवचन, उपनीतवचन, अपनीतवचन, उपनीतापनीतवचन, अपनीतोपनीतवचन, अतीतवचन, प्रत्युत्पन्नवचन, अनागतवचन, प्रत्यक्षवचन और परोक्षवचन। इस प्रकार एकवचन (से लेकर) परोक्षवचन (तक) बोलते हुए की क्या यह भाषा प्रज्ञापनी
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-११ भाषा

Hindi 398 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! भासज्जाया पन्नत्ता? गोयमा! चत्तारि भासज्जाया पन्नत्ता, तं जहा–सच्चमेगं भासज्जायं बितियं मोसं भासज्जायं ततियं सच्चामोसं भासज्जायं चउत्थं असच्चामोसं भासज्जायं। इच्चेयाइं भंते! चत्तारि भासज्जायाइं भासमाणे किं आराहए विराहए? गोयमा! इच्चेयाइं चत्तारि भासज्जायाइं आउत्तं भासमाणे आराहए, नो विराहए। तेण परं अस्संजए अविरए अपडिहय-अपच्चक्खायपावकम्मे सच्चं वा भासं भासंतो, मोसं वा सच्चामोसं वा असच्चामोसं वा भासं भासमाणे नो आराहए, विराहए।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! भाषाजात कितने हैं ? गौतम ! चार। सत्या, मृषा, सत्यामृषा और असत्यामृषा। भगवन्‌ ! इन चारों भाषा – प्रकारों को बोलता हुआ (जीव) आराधक होता है, अथवा विराधक ? गौतम ! उपयोगपूर्वक बोलने वाला आराधक होता है, विराधक नहीं। उससे पर जो असंयत, अविरत, पापकर्म का प्रपिघात और प्रत्याख्यान न करने वाला सत्यभाषा, मृषाभाषा, सत्यामृषा
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-११ भाषा

Hindi 399 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एतेसि णं भंते! जीवाणं सच्चभासगाणं मोसभासगाणं सच्चामोसभासगाणं असच्चामोसभासगाणं अभासगाण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा सच्चभासगा, सच्चामोसभासगा असंखेज्जगुणा, मोसभासगा असंखेज्जगुणा, असच्चामोस-भासगा असंखेज्जगुणा, अभासगा अनंतगुणा।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! इन सत्यभाषक, मृषाभाषक, सत्यामृषाभाषक और असत्यामृषाभाषक तथा अभाषक जीवों में से कौन, किनसे अल्प, बहुत, तुल्य और विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सबसे थोड़े जीव सत्यभाषक हैं, उनसे असंख्या – तगुणे सत्यामृषाभाषक हैं, उनसे मृषाभाषक असंख्यातगुणे हैं, उनसे असंख्यातगुणे असत्यामृषाभाषक जीव हैं और उनसे अभाषक जीव अनन्तगुणे
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-१२ शरीर

Hindi 400 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! सरीरा पन्नत्ता? गोयमा! पंच सरीरा पन्नत्ता, तं जहा–ओरालिए वेउव्विए आहारए तेयए कम्मए। नेरइयाणं भंते! कति सरीरया पन्नत्ता? गोयमा! तओ सरीरया पन्नत्ता, तं जहा–वेउव्विए तेयए कम्मए। एवं असुरकुमाराणं वि जाव थणियकुमाराणं। पुढविकाइयाणं भंते! कति सरीरया पन्नत्ता? गोयमा! तओ सरीरया पन्नत्ता, तं जहा–ओरालिए तेयए कम्मए। एवं वाउक्काइयवज्जं जाव चउरिंदियाणं। वाउक्काइयाणं भंते! कति सरीरया पन्नत्ता? गोयमा! चत्तारि सरीरया पन्नत्ता, तं जहा–ओरालिए वेउव्विए तेयए कम्मए। एवं पंचिंदियतिरिक्खजोणियाण वि। मनुस्साणं भंते! कति सरीरया पन्नत्ता? गोयमा! पंच सरीरया पन्नत्ता, तं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! शरीर कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! पाँच – औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस और कार्मण। भगवन्‌ ! नैरयिकों के कितने शरीर हैं ? गौतम ! तीन – वैक्रिय, तैजस और कार्मण शरीर। इसी प्रकार असुरकुमारों से लेकर स्तनितकुमारों तक समझना। पृथ्वीकायिकों के तीन शरीर हैं, औदारिक, तैजस एवं कार्मणशरीर। इसी प्रकार वायुकायिकों को
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-१२ शरीर

Hindi 401 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] केवतिया णं भंते! ओरालियसरीरया पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–बद्धेल्लया य मुक्केल्लया य। तत्थ णं जेते बद्धेल्लया ते णं असंखेज्जगा, असंखेज्जाहिं उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीहिं अवहीरंति कालओ, खेत्तओ असंखेज्जा लोगा। तत्थ णं जेते मुक्केल्लया ते णं अनंता, अनंताहिं उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीहिं अवहीरंति कालओ, खेत्तओ अनंता लोगा, दव्वओ अभवसिद्धिएहिंतो अनंतगुणा सिद्धाणं अनंतभागो। केवतिया णं भंते! वेउव्वियसरीरया पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–बद्धेल्लया य मुक्केल्लया य। तत्थ णं जेते बद्धेल्लगा ते णं असंखेज्जा, असंखेज्जाहिं उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीहिं अवहीरंति

Translated Sutra: भगवन्‌ ! औदारिक शरीर कितने हैं ? गौतम ! दो प्रकार के – बद्ध और मुक्त। जो बद्ध हैं, वे असंख्यात हैं, काल से – वे असंख्यात उत्सर्पिणियों – अवसर्पिणियों से अपहृत होते हैं। क्षेत्र से – अनन्तलोकप्रमाण हैं। द्रव्यतः – मुक्त औदारिक शरीर अभवसिद्धिक जीवों से अनन्तगुणे और सिद्धों के अनन्तवें भाग हैं। भगवन्‌ ! वैक्रिय
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-१२ शरीर

Hindi 402 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइयाणं भंते! केवइया ओरालियसरीरा पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–बद्धेल्लगा य मुक्केल्लगा य। तत्थ णं जेते बद्धेल्लगा ते णं नत्थि। तत्थ णं जेते मुक्केल्लगा ते णं अनंता जहा ओरालियमुक्केल्लगा तहा भाणियव्वा। नेरइयाणं भंते! केवइया वेउव्वियसरीरा पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–बद्धेल्लगा य मुक्केल्लगा य। तत्थ णं जेते बद्धेल्लया ते णं असंखेज्जा, असंखेज्जाहिं उस्सप्पिणि-ओसप्पि-णीहिं अवहीरंति कालओ, खेत्तओ असंखेज्जाओ सेढीओ पतरस्स असंखेज्जतिभागो, तासि णं सेढीणं विक्खंभसूई अंगुलपढमवग्गमूलं बीयवग्गमूलपडुप्पणं, अहव णं अंगुलबितिय-वग्गमूल-घनप्पमाणमेत्ताओ

Translated Sutra: भगवन्‌ ! नैरयिकों के कितने औदारिकशरीर हैं ? गौतम ! दो, बद्ध और मुक्त। बद्ध औदारिकशरीर उनके नहीं होते। मुक्त औदारिकशरीर अनन्त होते हैं, (औघिक) औदारिक मुक्त शरीरों के समान (यहाँ – नारयिकों के मुक्त औदारिकशरीरों में) भी कहना चाहिए। भगवन्‌ ! नैरयिकों के वैक्रियशरीर कितने हैं ? गौतम ! दो, बद्ध और मुक्त। जो बद्ध हैं,
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-१२ शरीर

Hindi 403 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] असुरकुमाराणं भंते! केवतिया ओरालियसरीरा पन्नत्ता? गोयमा! जहा नेरइयाणं ओरालिया भणिया तहेव एतेसिं पि भाणियव्वा। असुरकुमाराणं भंते! केवतिया वेउव्वियसरीरा पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–बद्धेल्लगा य मुक्केल्लगा य। तत्थ णं जेते बद्धेल्लगा ते णं असंखेज्जा, असंखेज्जाहिं उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीहिं अवहीरंति कालओ, खेत्तओ असंखेज्जाओ सेढीओ पतरस्स असंखेज्जतिभागो, तासि णं सेढीणं विक्खंभसूई अंगुलपढमवग्गमूलस्स संखेज्जतिभागो। तत्थ णं जेते मुक्केल्लया ते णं जहा ओरालियस्स मुक्केल्लगा तहा भाणियव्वा। आहारयसरीरा जहा एतेसि णं चेव ओरालिया तहेव दुविहा भाणियव्वा। तेयाकम्मसरीरा

Translated Sutra: भगवन्‌ ! असुरकुमारों के कितने औदारिकशरीर हैं ? गौतम ! नैरयिकों के औदारिकशरीरों के समान इनके विषय में भी कहना। भगवन्‌ ! असुरकुमारों के वैक्रियशरीर कितने हैं ? गौतम ! दो – बद्ध और मुक्त। जो बद्ध हैं, वे असंख्यात हैं। काल की अपेक्षा से असंख्यात उत्सर्पिणियों और अवसर्पिणियों में वे अपहृत होते हैं। क्षेत्र की अपेक्षा
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-१२ शरीर

Hindi 404 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पुढविकाइयाणं भंते! केवतिया ओरालियसरीरगा पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–बद्धेल्लया य मुक्केल्लया य। तत्थ णं जेते बद्धेल्लगा ते णं असंखेज्जा, असंखेज्जाहिं उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीहिं अवहीरंति कालतो, खेत्तओ असंखेज्जा लोगा। तत्थ णं जेते मुक्केल्लगा ते णं अनंता, अनंताहिं उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीहिं अवहीरंति कालओ, खेत्तओ अनंता लोगा, अभवसिद्धिएहिंतो अनंतगुणा, सिद्धाणं अनंतभागो। पुढविकाइयाणं भंते! केवतिया वेउव्वियसरीरया पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–बद्धेल्लगा य मुक्केल्लगा य। तत्थ णं जेते बद्धेल्लगा ते णं नत्थि। तत्थ णं जेते मुक्केल्लगा ते णं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! पृथ्वीकायिकों के कितने औदारिकशरीर हैं ? गौतम ! दो – बद्ध और मुक्त। जो बद्ध हैं, वे असंख्यात हैं। काल से – (वे) असंख्यात उत्सर्पिणियों और अवसर्पिणियों से अपहृत होते हैं। क्षेत्र से वे असंख्यात लोक – प्रमाण हैं। जो मुक्त हैं, वे अनन्त हैं। कालतः अनन्त उत्सर्पिणियों और अवसर्पिणियों से अपहृत होते हैं।
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-१३ परिणाम

Hindi 405 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहे णं भंते! परिणामे पन्नत्ते? गोयमा! दुविहे परिणामे पन्नत्ते, तं जहा–जीवपरिणामे य अजीवपरिणामे य।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! परिणाम कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! दो प्रकार के हैं – जीव – परिणाम और अजीव – परिणाम।
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-१३ परिणाम

Hindi 406 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवपरिणामे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! दसविहे पन्नत्ते, तं जहा–गतिपरिणामे इंदियपरिणामे कसायपरिणामे लेसापरिणामे जोगपरिणामे उवओगपरिणामे नाणपरिणामे दंसणपरिणामे चरित्त-परिणामे वेदपरिणामे।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जीवपरिणाम कितने प्रकार का है ? गौतम ! दस प्रकार का – गतिपरिणाम, इन्द्रियपरिणाम, कषायपरिणाम, लेश्यापरिणाम, योगपरिणाम, उपयोगपरिणाम, ज्ञानपरिणाम, दर्शनपरिणाम, चारित्रपरिणाम और वेदपरिणाम।
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-१३ परिणाम

Hindi 407 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] गतिपरिणामे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–निरयगतिपरिणामे तिरियगतिपरिणामे मनुयगतिपरिणामे देवगतिपरिणामे। इंदियपरिणामे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–सोइंदियपरिणामे चक्खिंदियपरिणामे घाणिंदियपरिणामे जिब्भिंदियपरिणामे फासिंदियपरिणामे। कसायपरिणामे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–कोहकसाय-परिणामे मानकसायपरिणामे मायाकसायपरिणामे लोभकसायपरिणामे। लेस्सापरिणामे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! छव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–कण्हलेस्सा-परिणामे नीललेस्सापरिणामे काउलेस्सापरिणामे

Translated Sutra: भगवन्‌ ! गतिपरिणाम कितने प्रकार का है ? गौतम ! चार प्रकार का – निरयगतिपरिणाम, तिर्यग्गति – परिणाम, मनुष्यगतिपरिणाम और देवगतिपरिणाम। इन्द्रियपरिणाम पाँच प्रकार का है – श्रोत्रेन्द्रियपरिणाम, चक्षुरि – न्द्रियपरिणाम, घ्राणेन्द्रियपरिणाम, जिह्वेन्द्रियपरिणाम और स्पर्शेन्द्रियपरिणाम। कषायपरिणाम चार प्रकार
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-१३ परिणाम

Hindi 408 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अजीवपरिणामे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! दसविहे पन्नत्ते, तं जहा–बंधनपरिणामे गतिपरिणामे संठाणपरिणामे भेदपरिणामे वण्णपरिणामे गंधपरिणामे रसपरिणामे फासपरिणामे अगरुयलहुयपरिणामे सद्दपरिणामे।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! अजीवपरिणाम कितने प्रकार का है ? गौतम! दस प्रकार का – बन्धनपरिणाम, गतिपरिणाम, संस्थान परिणाम, भेदपरिणाम, वर्णपरिणाम, गन्धपरिणाम, रसपरिणाम, स्पर्शपरिणाम, अगुरुलघुपरिणाम और शब्दपरिणाम
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-१३ परिणाम

Hindi 409 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] बंधणपरिणामे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–निद्धबंधणपरिणामे य लुक्खबंधणपरिणामे य।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! बन्धनपरिणाम कितने प्रकार का है ? गौतम ! दो प्रकार का – स्निग्धबन्धनपरिणाम और रूक्ष – बन्धनपरिणाम।
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-१४ कषाय

Hindi 413 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! कसाया पन्नत्ता? गोयमा! चत्तारि कसाया पन्नत्ता, तं जहा–कोहकसाए माणकसाए मायाकसाए लोभकसाए। नेरइयाणं भंते! कति कसाया पन्नत्ता? गोयमा! चत्तारि कसाया पन्नत्ता, तं जहा–कोहकसाए जाव लोभकसाए एवं जाव वेमानियाणं।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! कषाय कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! चार प्रकार के – क्रोधकषाय, मानकषाय, मायाकषाय और लोभकषाय। भगवन्‌ ! नैरयिक जीवों में कितने कषाय होते हैं ? गौतम ! चार – क्रोधकषाय यावत्‌ लोभकषाय। इसी प्रकार वैमानिक तक जानना।
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-१४ कषाय

Hindi 414 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिपतिट्ठिए णं भंते! कोहे पन्नत्ते? गोयमा! चउपतिट्ठिए कोहे पन्नत्ते, तं जहा–आयपतिट्ठिए परपतिट्ठिए तदुभयपतिट्ठिए अप्पतिट्ठिए। एवं नेरइयाणं जाव वेमानियाणं दंडओ। एवं मानेणं दंडओ, मायाए दंडओ, लोभेणं दंडओ। कतिहि णं भंते! ठाणेहिं कोहुप्पत्ती भवति? गोयमा! चउहिं ठाणेहिं कोहुप्पत्ती भवति, तं जहा–खेत्तं पडुच्च, वत्थुं पडुच्च, सरीरं पडुच्च, उवहिं पडुच्च। एवं नेरइयाणं जाव वेमानियाणं। एवं मानेन वि मायाए वि लोभेण वि। एवं एते वि चत्तारि दंडगा।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्रोध कितनों पर प्रतिष्ठित है ? गौतम ! चार स्थानों पर – आत्मप्रतिष्ठित, परप्रतिष्ठित, उभय – प्रतिष्ठित और अप्रतिष्ठित। इसी प्रकार नैरयिकों से वैमानिकों तक कहना। क्रोध की तरह मान, माया और लोभ में भी एक – एक दण्डक कहना। भगवन्‌ ! कितने स्थानों से क्रोध की उत्पत्ति होती है ? चार – क्षेत्र, वास्तु, शरीर और उपधि।
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पद-१४ कषाय

Hindi 415 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहे णं भंते! कोहे पन्नत्ते? गोयमा! चउव्विहे कोहे पन्नत्ते, तं जहा–अनंतानुबंधी कोहे अप्पच्चक्खाणे कोहे पच्चक्खाणावरणे कोहे संजलणे कोहे। एवं नेरइयाणं जाव वेमानियाणं। एवं मानेनं मायाए लोभेणं। एए वि चत्तारि दंडगा।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्रोध कितने प्रकार का है ? गौतम ! चार प्रकार का – अनन्तानुबन्धी क्रोध, अप्रत्याख्यान क्रोध, प्रत्याख्यानावरण क्रोध और संज्वलन क्रोध। इसी प्रकार नैरयिकों से वैमानिकों तक कहना। इसी प्रकार मान से, माया से और लोभ की अपेक्षा से भी चार दण्डक होते हैं।
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पद-१४ कषाय

Hindi 416 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहे णं भंते! कोहे पन्नत्ते? गोयमा! चउव्विहे कोहे पन्नत्ते, तं जहा–आभोगनिव्वत्तिए अनाभोगनिव्वत्तिए उवसंते अणुवसंते। एवं नेरइयाणं जाव वेमानियाणं। एवं मानेन वि मायाए वि लोभेण वि चत्तारि दंडगा।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्रोध कितने प्रकार का है ? गौतम ! चार प्रकार का – आभोगनिवर्तित, अनाभोगनिवर्तित, उप – शान्त और अनुपशान्त। इसी प्रकार वैमानिकों तक समझना। क्रोध के समान ही मान, माया और लोभ के विषय में जानना
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पद-१४ कषाय

Hindi 417 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवा णं भंते! कतिहिं ठाणेहिं अट्ठ कम्मपगडीओ चिणिंसु? गोयमा! चउहिं ठाणेहिं अट्ठ कम्मपगडीओ चिणिंसु तं जहा–कोहेणं मानेनं मायाए लोभेणं। एवं नेरइयाणं जाव वेमानियाणं। जीवा णं भंते! कतिहिं ठाणेहिं अट्ठ कम्मपगडीओ चिणंति? गोयमा! चउहिं ठाणेहिं तं जहा–कोहेणं मानेनं मायाए लोभेणं। एवं नेरइया जाव वेमानिया। जीवा णं भंते! कतिहिं ठाणेहिं अट्ठ कम्मपगडीओ चिणिस्संति? गोयमा! चउहिं ठाणेहिं अट्ठ कम्मपगडीओ चिणिस्संति, तं जहा–कोहेणं मानेनं मायाए लोभेणं। एवं नेरइया जाव वेमानिया। जीवा णं भंते! कतिहिं ठाणेहिं अट्ठ कम्मपगडीओ उवचिणिंसु? गोयमा! चउहिं ठाणेहिं अट्ठ कम्मपगडीओ उवचिणिंसु,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जीवों ने कितने कारणों से आठ कर्मप्रकृतियों का चय किया ? गौतम ! चार कारणों से – क्रोध से, मान से, माया से और लोभ से। इसी प्रकार वैमानिकों तक समझना। भगवन्‌ ! जीव कितने कारणों से आठ कर्म – प्रकृतियों का चय करते हैं ? गौतम ! चार कारणों से – क्रोध से, मान से, माया से और लोभ से। इसी प्रकार वैमानिकों तक समझना। भगवन्‌
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पद-१५ ईन्द्रिय

उद्देशक-१ Hindi 421 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! इंदिया पन्नत्ता? गोयमा! पंच इंदिया पन्नत्ता, तं जहा–सोइंदिए चक्खिंदिए घाणिंदिए जिब्भिंदिए फासिंदिए। सोइंदिए णं भंते! किंसंठिए पन्नत्ते? गोयमा! कलंबुयापुप्फसंठाणसंठिए पन्नत्ते। चक्खिंदिए णं भंते! किंसंठिए पन्नत्ते? गोयमा! मसूरचंदसंठाणसंठिए पन्नत्ते। घाणिंदिए णं पुच्छा। गोयमा! अइमुत्तगचंदसंठाणसंठिए पन्नत्ते। जिब्भिंदिए णं पुच्छा। गोयमा! खुरप्पसंठाणसंठिए पन्नत्ते। फासिंदिए णं पुच्छा। गोयमा! णाणासंठाणसंठिए पन्नत्ते। सोइंदिए णं भंते! केवतियं बाहल्लेणं पन्नत्ते? गोयमा! अंगुलस्स असंखेज्जतिभागं बाहल्लेणं पन्नत्ते एवं जाव फासिंदिए। सोइंदिए

Translated Sutra: भगवन्‌ ! इन्द्रियाँ कितनी हैं ? गौतम ! पाँच – श्रोत्रेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, जिह्वेन्द्रिय और स्पर्शेन्द्रिय भगवन्‌ ! श्रोत्रेन्द्रिय किस आकार की है ? कदम्बपुष्प के आकार की। चक्षुरिन्द्रिय मसूर – चन्द्र के आकार की है। घ्राणेन्द्रिय अतिमुक्तकपुष्प आकार की। जिह्वेन्द्रिय खुरपे आकार की
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पद-१५ ईन्द्रिय

उद्देशक-१ Hindi 422 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सोइंदिए णं भंते! कतिपएसोगाढे पन्नत्ते? गोयमा! असंखेज्जपएसोगाढे पन्नत्ते। एवं जाव फासिंदिए। एएसि णं भंते! सोइंदिय चक्खिंदिय घाणिंदिय जिब्भिंदिय फासिंदियाण ओगाहणट्ठयाए पएसट्ठयाए ओगाहणपएसट्ठयाए कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवे चक्खिंदिए ओगाहणट्ठयाए, सोइं दिए ओगाहणट्ठयाए संखेज्जगुणे, घाणिंदिए ओगाहण-ट्ठयाए संखेज्जगुणे, जिब्भिंदिए ओगाहणट्ठयाए असंखेज्जगुणे, फासिंदिए ओगाहणट्ठयाए संखेज्ज-गुणे; पएसट्ठयाए–सव्वत्थोवे चक्खिंदिए पएसट्ठयाए, सोइंदिए पएसट्ठयाए संखेज्जगुणे, घाणिंदिए पएसट्ठयाए संखेज्जगुणे, जिब्भिंदिए

Translated Sutra: भगवन्‌ ! श्रोत्रेन्द्रिय कितने प्रदेशों में अवगाढ़ है ? गौतम ! असंख्यात प्रदेशों में। इसी प्रकार स्पर्शेन्द्रिय तक कहना। भगवन्‌ ! इन पाँचों इन्द्रियों से अवगाहना की अपेक्षा से, प्रदेशों की अपेक्षा से तथा अवगाहना और प्रदेशों की अपेक्षा से कौन, किससे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक है ? गौतम ! अवगाहना से सबसे
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पद-१५ ईन्द्रिय

उद्देशक-१ Hindi 423 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइयाणं भंते! कति इंदिया पन्नत्ता? गोयमा! पंचेंदिया पन्नत्ता, तं जहा–सोइंदिए जाव फासिंदिए। नेरइयाणं भंते! सोइंदिए किंसंठिए पन्नत्ते? गोयमा! कलंबुयासंठाणसंठिए पन्नत्ते। एवं जहा ओहियाणं वत्तव्वया भणिया तहेव नेरइयाणं पि जाव अप्पाबहुयाणि दोन्नि वि, नवरं–नेरइयाणं भंते! फासिंदिए किंसंठिए पन्नत्ते? गोयमा! दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–भवधारणिज्जे य उत्तरवेउव्विए य। तत्थ णं जेसे भवधारणिज्जे से णं हुंडसंठाणसंठिए पन्नत्ते। तत्थ णं जेसे उत्तरवेउव्विए से वि तहेव। सेसं तं चेव। असुरकुमाराणं भंते! कति इंदिया पन्नत्ता? गोयमा! पंचेंदिया पन्नत्ता। एवं जहा ओहियाणं जाव अप्पाबहु-याणि

Translated Sutra: भगवन्‌ ! नैरयिकों के कितनी इन्द्रियाँ हैं ? गौतम ! पाँच – श्रोत्रेन्द्रिय से स्पर्शनेन्द्रिय तक। भगवन्‌ ! नारकों की श्रोत्रेन्द्रिय किस आकार की होती है ? गौतम ! कदम्बपुष्प के आकार की। इसी प्रकार समुच्चय जीवों में पंचेन्द्रियों के समान नारकों की भी वक्तव्यता कहना। विशेष यह कि नैरयिकों की स्पर्शनेन्द्रिय दो
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पद-१५ ईन्द्रिय

उद्देशक-१ Hindi 424 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पुट्ठाइं भंते! सद्दाइं सुणेइ? अपुट्ठाइं सद्दाइं सुणेइ? गोयमा! पुट्ठाइं सद्दाइं सुणेइ, नो अपुट्ठाइं सद्दाइं सुणेइ। पुट्ठाइं भंते! रूवाइं पासति? अपुट्ठाइं रूवाइं पासति? गोयमा! नो पुट्ठाइं रूवाइं पासति, अपुट्ठाइं रूवाइं पासति पुट्ठाइं भंते! गंधाइं अग्घाति? अपुट्ठाइं गंधाइं अग्घाति? गोयमा! पुट्ठाइं गंधाइं अग्घाति, नो अपुट्ठाइं गंधाइं अग्घाति। एवं रसाणवि फासाणवि, नवरं–रसाइं अस्साएइ, फासाइं पडिसंवेदेति त्ति अभिलावो कायव्वो। पविट्ठाइं भंते! सद्दाइं सुणेति? अपविट्ठाइं सद्दाइं सुणेति? गोयमा! पविट्ठाइं सद्दाइं सुणेति, नो अपविट्ठाइं सद्दाइं सुणेति। एवं जहा पुट्ठाणि

Translated Sutra: भगवन्‌ ! (श्रोत्रेन्द्रिय) स्पृष्ट शब्दों को सूनती है या अस्पृष्ट शब्दों को ? गौतम ! स्पृष्ट शब्दों को सूनती है, अस्पृष्ट को नहीं। (चक्षुरिन्द्रिय) अस्पृष्ट रूपों को देखती है, स्पृष्ट रूपों को नहीं देखती। (घ्राणेन्द्रिय) स्पृष्ट गन्धों को सूँघती है, अस्पृष्ट गन्धों को नहीं। इस प्रकार रसों के और स्पर्शों के
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पद-१५ ईन्द्रिय

उद्देशक-१ Hindi 425 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सोइंदियस्स णं भंते! केवतिए विसए पन्नत्ते? गोयमा! जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जतिभागाओ, उक्कोसेणं बारसहिं जोयणेहिंतो अच्छिण्णे पोग्गले पुट्ठे पविट्ठाइं सद्दाइं सुणेति। चक्खिंदियस्स णं भंते! केवतिए विसए पन्नत्ते? गोयमा! जहन्नेणं अंगुलस्स संखेज्जति-भागाओ, उक्कोसेणं सातिरेगाओ जोयणसयसहस्साओ अच्छिन्ने पोग्गले अपुट्ठे अपविट्ठाइं रूवाइं पासति। घाणिंदियस्स पुच्छा। गोयमा! जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जतिभागातो, उक्कोसेणं नवहिं जोयणेहिंतो अच्छिन्ने पोग्गले पुट्ठे पविट्ठाइं गंधाइं अग्घाति। एवं जिब्भिंदियस्स वि फासिंदियस्स वि।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! श्रोत्रेन्द्रिय का विषय कितना है ? गौतम ! जघन्य अंगुल के असंख्यात भाग एवं उत्कृष्ट बारह योजनों से आये अविच्छिन्न शब्दवर्गणा के पुद्‌गल के स्पृष्ट होने पर प्रविष्ट शब्दों को सूनती है। भगवन्‌ ! चक्षु – रिन्द्रिय का विषय कितना है ? गौतम ! जघन्य अंगुल के संख्यातवें भाग एवं उत्कृष्ट एक लाख योजन से कुछ अधिक
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पद-१५ ईन्द्रिय

उद्देशक-१ Hindi 426 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अनगारस्स णं भंते! भाविअप्पणो मारणंतियसमुग्घाएणं समोहयस्स जे चरिमा निज्जरापोग्गला सुहुमा णं ते पोग्गला पन्नत्ता समणाउसो!? सव्वलोगं पि य णं ते ओगाहित्ता णं चिट्ठंति? हंता गोयमा! अनगारस्स णं भाविअप्पणो मारणंतियसमुग्घाएणं समोहयस्स जे चरिमा निज्जरापोग्गला सुहुमा णं ते पोग्गला पन्नत्ता समणाउसो! सव्वलोगं पि य णं ते ओगाहित्ता णं चिट्ठंति। छउमत्थे णं भंते! मनूसे तेसिं निज्जरापोग्गलाणं किं आणत्तं वा णाणत्तं वा ओमत्तं वा तुच्छत्तं वा गरुयत्तं वा लहुयत्तं वा जाणति पासति? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–छउमत्थे णं मनूसे तेसिं निज्जरापोग्गलाणं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! मारणान्तिक समुद्‌घात से समवहत भावितात्मा अनगार के जो चरम निर्जरा – पुद्‌गल हैं, क्या वे पुद्‌गल सूक्ष्म हैं ? क्या वे सर्वलोक को अवगाहन करके रहते हैं ? हाँ, गौतम ! ऐसा ही है। भगवन्‌ ! क्या छद्मस्थ मनुष्य उन निर्जरा – पुद्‌गलों के अन्यत्व, नानात्व, हीनत्व, तुच्छत्व, गुरुत्व या लघुत्व को जानता – देखता है
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पद-१५ ईन्द्रिय

उद्देशक-१ Hindi 427 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अद्दाए णं भंते! पेहमाणे मनूसे किं अद्दायं पेहति? अत्ताणं पेहति? पलिभागं पेहति? गोयमा! नो अद्दायं पेहति नो अत्ताणं पेहति, पलिभागं पेहति। एवं एतेणं अभिलावेणं असिं मणिं उडुपाणं तेल्लं फाणियं वसं।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! दर्पण देखता हुआ मनुष्य क्या दर्पण को देखता है ? अपने आपको देखता है ? अथवा (अपने) प्रतिबिम्ब को देखता है ? गौतम ! (वह) दर्पण को देखता है, अपने शरीर को नहीं देखता, किन्तु प्रतिबिम्ब देखता है। इसी प्रकार असि, मणि, उदपान, तेल, फाणित और वसा के विषय में समझना।
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पद-१५ ईन्द्रिय

उद्देशक-१ Hindi 428 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कंबलसाडए णं भंते! आवेढिय-परिवेढिए समाणे जावतियं ओवासंतरं फुसित्ता णं चिट्ठति, विरल्लिए वि य णं समाणे तावतियं चेव ओवासंतरं फुसित्ता णं चिट्ठति? हंता! गोयमा! कंबलसाडए णं आवेढिय-परिवेढिए समाणे जावतियं ओवासंतरं फुसित्ता णं चिट्ठति, विरल्लिए वि य णं समाणे तावतियं चेव ओवासंतरं फुसित्ता णं चिट्ठति। थूणा णं भंते! उड्ढं ऊसिया समाणी जावतियं खेत्तं ओगाहित्ता णं चिट्ठति, तिरियं पि य णं आयता समाणी तावतियं चेव खेत्तं ओगाहित्ता णं चिट्ठति? हंता गोयमा! थूणा णं उड्ढं ऊसिया समाणी जावतियं खेत्तं ओगाहित्ता णं चिट्ठति, तिरियं पि य णं आयता समाणी तावतियं चेव खेत्तं ओगाहित्ता णं चिट्ठति। आगासथिग्गले

Translated Sutra: भगवन्‌ ! कम्बलरूप शाटक आवेष्टित – परिवेष्टित किया हुआ जितने अवकाशान्तर को स्पर्श करके रहता है, (वह) फैलाया हुआ भी क्या उतने ही अवकाशान्तर को स्पर्श करके रहता है ? हाँ, गौतम ! रहता है। भगवन्‌ ! स्थूणा ऊपर उठी हुई जितने क्षेत्र को अवगाहन करके रहती है, क्या तिरछी लम्बी की हुई भी वह उतने ही क्षेत्र को अवगाहन करके रहती
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पद-१५ ईन्द्रिय

उद्देशक-२ Hindi 435 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहे णं भंते! इंदिओवचए पन्नत्ते? गोयमा! पंचविहे इंदिओवचए पन्नत्ते, तं जहा–सोइंदिओवचए चक्खिंदिओवचए घाणिंदिओवचए जिब्भिंदिओवचए फासिंदिओवचए। नेरइयाणं भंते! कतिविहे इंदिओवचए पन्नत्ते? गोयमा! पंचविहे इंदिओवचए पन्नत्ते, तं जहा–सोइंदिओवचए जाव फासिंदिओवचए। एवं जाव वेमानियाणं। जस्स जइ इंदिया तस्स तइविहो चेव इंदिओवचयो भाणियव्वो। कतिविहा णं भंते! इंदियनिव्वत्तणा पन्नत्ता? गोयमा! पंचविहा इंदियनिव्वत्तणा पन्नत्ता, तं जहा–सोइंदियनि-व्वत्तणा जाव फासिंदियनिव्वत्तणा। एवं नेरइयाणं जाव वेमानियाणं, नवरं–जस्स जतिंदिया अत्थि। सोइंदियनिव्वत्तणा णं भंते! कतिसमइया

Translated Sutra: भगवन्‌ ! इन्द्रियोपचय कितने प्रकार का है ? गौतम ! पाँच प्रकार का, श्रोत्रेन्द्रियोपचय, चक्षुरिन्द्रियोपचय, घ्राणेन्द्रियोपचय, जिह्वेन्द्रियोपचय और स्पर्शनेन्द्रियोपचय। भगवन्‌ ! नैरयिकों के इन्द्रियोपचय कितने प्रकार का है? गौतम ! पाँच प्रकार का, श्रोत्रेन्द्रियोपचय यावत्‌ स्पर्शनेन्द्रियोपचय। इसी प्रकार
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पद-१५ ईन्द्रिय

उद्देशक-२ Hindi 436 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहे णं भंते! इंदियअवाए पन्नत्ते? गोयमा! पंचविहे इंदियअवाए पन्नत्ते, तं जहा–सोइंदियअवाए जाव फासेंदियअवाए। एवं नेरइयाणं जाव वेमानियाणं, नवरं–जस्स जत्तिया इंदिया अत्थि। कतिविहा णं भंते! ईहा पन्नत्ता? गोयमा! पंचविहा ईहा पन्नत्ता, तं जहा–सोइंदियईहा जाव फासेंदियईहा। एवं जाव वेमानियाणं, नवरं–जस्स जति इंदिया। कतिविहे णं भंते! उग्गहे पन्नत्ते? गोयमा! दुविहे उग्गहे पन्नत्ते, तं जहा–अत्थोग्गहे य वंजणोग्गहे य। वंजणोग्गहे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–सोइंदियवंजणोग्गहे घाणिंदियवंजणोग्गहे जिब्भिंदियवंजणोग्गहे फासिंदियवंजणोग्गहे। अत्थोग्गहे

Translated Sutra: भगवन्‌ ! इन्द्रिय – अवाय कितने प्रकार का है ? गौतम ! पाँच प्रकार का, श्रोत्रेन्द्रिय अवाय यावत्‌ स्पर्शेन्द्रिय अवाय। इसी प्रकार नैरयिकों से वैमानिकों तक कहना। विशेष यह कि जिसके जितनी इन्द्रियाँ हों, उसके उतने अवाय कहना। भगवन्‌ ! ईहा कितने प्रकार की है ? गौतम ! पाँच प्रकार की – श्रोत्रेन्द्रिय – ईहा यावत्‌ स्पर्शेन्द्रिय
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-१५ ईन्द्रिय

उद्देशक-२ Hindi 437 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहा णं भंते! इंदिया पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–दव्विंदिया य भाविंदिया य। कति णं भंते! दव्विंदिया पन्नत्ता? गोयमा! अट्ठ दव्विंदिया पन्नत्ता, तं जहा–दो सोत्ता दो नेत्ता दो घाणा जीहा फासे। नेरइयाणं भंते! कति दव्विंदिया पन्नत्ता? गोयमा! अट्ठ, एते चेव। एवं असुरकुमाराणं जाव थणियकुमाराण वि। पुढविकाइयाणं भंते! कति दव्विंदिया पन्नत्ता? गोयमा! एगे फासेंदिए पन्नत्ते। एवं जाव वणस्सतिकाइयाणं। बेइंदियाणं भंते! कति दव्विंदिया पन्नत्ता? गोयमा! दो दव्विंदिया पन्नत्ता, तं जहा–फासिंदिए य जिब्भिंदिए य तेइंदियाणं पुच्छा। गोयमा! चत्तारि दव्विंदिया पन्नत्ता,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! इन्द्रियाँ कितने प्रकार की कही हैं ? गौतम ! दो प्रकार की, द्रव्येन्द्रिय और भावेन्द्रिय। द्रव्येन्द्रियाँ आठ प्रकार की हैं – दो श्रोत्र, दो नेत्र, दो घ्राण, जिह्वा और स्पर्शन। नैरयिकों को ये ही आठ द्रव्येन्द्रियाँ हैं। इसी प्रकार असुरकुमारों से स्तनितकुमारों तक समझना। पृथ्वीकायिकों को एक स्पर्शनेन्द्रिय
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पद-१६ प्रयोग

Hindi 438 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कइविहे णं भंते! पओगे पन्नत्ते? गोयमा! पन्नरसविहे पओगे पन्नत्ते, तं जहा–सच्चमनप्पओगे, मोसमनप्पओगे, सच्चामोसमनप्पओगे, असच्चामोसमनप्पओगे, एव वइप्पओगे वि चउहा, ओरा-लियसरीरकायप्पओगे ओरालियमीससरीरकायप्पओगे वेउव्वियसरीरकायप्पओगे वेउव्वीयमीस सरीरकायप्पओगे आहारगसरीरकायप्पओगे आहारगमीससरीरकायप्पओगे कम्मा सरीरकाय-प्पओगे।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! प्रयोग कितने प्रकार का है ? गौतम ! पन्द्रह प्रकार का – सत्यमनःप्रयोग, असत्य मनःप्रयोग, सत्य – मृषा मनःप्रयोग, असत्या – मृषा मनःप्रयोग इसी प्रकार वचनप्रयोग भी चार प्रकार का है – औदारिक शरीरकाय – प्रयोग, औदारिकमिश्रशरीरकाय – प्रयोग, वैक्रियशरीरकाय – प्रयोग, वैक्रियमिश्रशरीरकाय – प्रयोग, आहारकशरीरकाय
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पद-१६ प्रयोग

Hindi 439 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवाणं भंते! कतिविहे पओगे पन्नत्ते? गोयमा! पन्नरसविहे पओगे पन्नत्ते, तं जहा–सच्चमनप्पओगे जाव कम्मासरीरकायप्पओगे। नेरइयाणं भंते! कतिविहे पओगे पन्नत्ते? गोयमा! एक्कारसविहे पओगे पन्नत्ते, तं जहा–सच्चमनप्पओगे जाव असच्चामोसवइप्पओगे वेउव्वियसरीरकायप्पओगे वेउव्वियमीससरीर-कायप्पओगे कम्मासरीरकायप्पओगे। एवं असुरकुमाराण वि जाव थणियकुमाराणं। पुढविकाइयाणं पुच्छा। गोयमा! तिविहे पओगे पन्नत्ते, तं जहा–ओरालियसरीरकायप्पओगे ओरालियमीससरीरकायप्पओगे कम्मासरीरकायप्पओगे। एवं जाव वणप्फइकाइयाणं, नवरं– वाउक्काइयाणं पंचविहे पओगे पन्नत्ते, तं जहा–ओरालियसरीरकायप्पओगे

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जीवों के कितने प्रकार के प्रयोग हैं ? गौतम ! पन्द्रह प्रकार के, सत्यमनःप्रयोग से (लेकर) कार्मणशरीरकाय – प्रयोग तक। भगवन्‌ ! नैरयिकों के कितने प्रकार के प्रयोग हैं ? गौतम ! ग्यारह प्रकार के, सत्य – मनःप्रयोग से लेकर असत्यामृषावचन – प्रयोग, वैक्रियशरीरकाय – प्रयोग, वैक्रियमिश्रशरीरकाय – प्रयोग और कार्मण
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-१६ प्रयोग

Hindi 440 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवा णं भंते! किं सच्चमनप्पओगी जाव किं कम्मासरीरकायप्पओगी? गोयमा! जीवा सव्वे वि ताव होज्जा सच्चमनप्पओगी वि जाव वेउव्वियमीससरीरकायप्पओगी वि कम्मासरीरकायप्पओगी वि, अहवेगे य आहारगसरीरकायप्पओगी य? अहवेगे य आहारगसरीरकायप्पओगिणो य २ अहवेगे य आहारगमीससरीरकायप्पयोगी य ३ अहवेगे य आहारगमीससरीरकायप्पओगिणो य ४ चउभंगो, अहवेगे य आहारगसरीरकायप्पओगी य आहारगमीसासरीरकायप्पओगी य १ अहवेगे य आहारग-सरीरकायप्पओगी य आहारगमीसासरीरकायप्पओगिणो य २ अहवेगे य आहारगसरीरकाय-प्पओगिणो य आहारगमीसासरीरकायप्पओगी य ३ अहवेगे य आहारगसरीरकायप्पओगिणो य आहारगमीसासरीरकायप्पओगिणो य–

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जीव सत्यमनःप्रयोग होते हैं अथवा यावत्‌ कार्मणशरीरकायप्रयोगी होते हैं ? गौतम ! जीव सभी सत्यमनःप्रयोगी भी होते हैं, यावत्‌ मृषामनःप्रयोगी, सत्यामृषामनःप्रयोगी, आदि तथा वैक्रियमिश्रशरीरकायप्रयोगी भी एवं कार्मणशरीरकायप्रयोगी भी होते हैं, अथवा एक आहारकशरीरकायप्रयोगी होता है, अथवा बहुत – से आहार –
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-१६ प्रयोग

Hindi 441 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहे णं भंते! गइप्पवाए पन्नत्ते? गोयमा! पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–पओगगती ततगती बंधणच्छेदनगती उववायगती विहायगती। से किं तं पओगगती? पओगगती पन्नरसविहा पन्नत्ता, तं जहा–सच्चमणप्पओगगती एवं जहा पओगे भणिओ तहा एसा वि भाणियव्वा जाव कम्मगसरीरकायप्पओगगती। जीवाणं भंते! कतिविहा पओगगती पन्नत्ता? गोयमा! पन्नरसविहा पन्नत्ता, तं जहा–सच्चमणप्पओगगती जाव कम्मासरीरकायप्पओगगती। नेरइयाणं भंते! कतिविहा पओगगती पन्नत्ता? गोयमा! एक्कारसविहा पन्नत्ता, तं जहा–सच्चमणप्पओगगती एवं उवउज्जिऊण जस्स जतिविहा तस्स ततिविहा भाणितव्वा जाव वेमानियाणं। जीवा णं भंते! किं सच्चमनप्पओगगती

Translated Sutra: भगवन्‌ ! गतिप्रपात कितने प्रकार का है ? गौतम ! पाँच – प्रयोगगति, ततगति, बन्धनछेदनगति, उपपात – गति और विहायोगति। वह प्रयोगगति क्या है ? गौतम ! पन्द्रह प्रकार की, सत्यमनःप्रयोगगति यावत्‌ कार्मणशरीरकायप्रयोगगति। प्रयोग के समान प्रयोगगति भी कहना। भगवन्‌ ! जीवों की प्रयोगगति कितने प्रकार की है ? गौतम ! पन्द्रह प्रकार
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-१७ लेश्या

उद्देशक-१ Hindi 443 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइया णं भंते! सव्वे समाहारा सव्वे समसरीरा सव्वे समुस्सासनिस्सा? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–नेरइया नो सव्वे समाहारा जाव नो सव्वे समुस्सासनिस्सासा? गोयमा! नेरइया दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–महासरीरा य अप्पसरीरा य। तत्थ णं जेते महासरीरा ते णं बहुतराए पोग्गले आहरेंति बहुतराए पोग्गले परिणामेंति बहुतराए पोग्गले ऊससंति बहुतराए पोग्गले नीससंति, अभिक्खणं आहारेंति अभिक्खणं परिणामेंति अभिक्खणं ऊससंति अभिक्खणं नीस-संति। तत्थ णं जेते अप्पसरीरा ते णं अप्पतराए पोग्गले आहरेंति अप्पतराए पोग्गले परिणामेंति अप्पतराए पोग्गले ऊससंति अप्पतराए

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या सभी नारक समान आहार, समान शरीर तथा समान उच्छ्‌वास – निःश्वास वाले होते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। क्योंकि – नारक दो प्रकार के हैं – महाशरीरवाले और अल्पशरीर वाले। जो महा – शरीर वाले होते हैं, वे बहुत अधिक पुद्‌गलों का – आहार करते हैं, परिणत करते हैं, उच्छ्‌वास लेते हैं और से पुद्‌गलों का निःश्वास
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-१७ लेश्या

उद्देशक-१ Hindi 444 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइया णं भंते! सव्वे समकम्मा? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–नेरइया नो सव्वे समकम्मा? गोयमा! नेरइया दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पुव्वोववन्नगा य पच्छोववन्नगा य। तत्थ णं जेते पुव्वोववन्नगा ते णं अप्पकम्मतरागा। तत्थ णं जेते पच्छोववन्नगा ते णं महाकम्मतरागा। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चति– नेरइया नो सव्वे समकम्मा। नेरइया णं भंते! सव्वे समवण्णा? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–नेरइया नो सव्वे समवण्णा? गोयमा! नेरइया दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पुव्वोववन्नगा य पच्छोववन्नगा य। तत्थ णं जेते पुव्वोववन्नगा ते णं विसुद्धवण्णतरागा।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! नैरयिक क्या सभी समान कर्मवाले होते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। क्योंकि – नारक दो प्रकार के हैं, पूर्वोपपन्नक और पश्चादुपपन्नक। जो पूर्वोपपन्नक हैं, वे अल्प कर्मवाले हैं और उनमें जो पश्चादुपपन्नक हैं, वे महाकर्म वाले हैं। भगवन्‌ ! क्या नैरयिक सभी समान वर्णवाले हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है।
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-१७ लेश्या

उद्देशक-१ Hindi 445 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइया णं भंते! सव्वे समकिरिया? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–नेरइया नो सव्वे समकिरिया? गोयमा! नेरइया तिविहा पन्नत्ता, तं जहा–सम्मद्दिट्ठी मिच्छद्दिट्ठी सम्मामिच्छद्दिट्ठी। तत्थ णं जेते सम्मद्दिट्ठी तेसि णं चत्तारि किरियाओ कज्जंति, तं जहा–आरंभिया परिग्गहिया मायावत्तिया अपच्चक्खाणकिरिया। तत्थ णं जेते मिच्छ-द्दिट्ठी जे य सम्मामिच्छद्दिट्ठी तेसि णं नियतियाओ पंच किरियाओ कज्जंति, तं जहा–आरंभिया परिग्गहिया मायावत्तिया अपच्चक्खाणकिरिया मिच्छादंसणवत्तिया। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चति– नेरइया नो सव्वे समकिरिया। से केणट्ठेणं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! सभी नारक समान क्रियावाले हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। क्योंकि – गौतम ! नारक तीन प्रकार के हैं – सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि। जो सम्यग्दृष्टि हैं, उनके चार क्रियाएं होती हैं – आरम्भिकी, पारिग्रहिकी, मायाप्रत्यया और अप्रत्याख्यानक्रिया। जो मिथ्यादृष्टि तथा सम्यग्‌मिथ्यादृष्टि
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-१७ लेश्या

उद्देशक-१ Hindi 446 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] असुरकुमारा णं भंते! सव्वे समाहारा? स चेव पुच्छा। गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे, जहा नेरइया। असुरकुमारा णं भंते! सव्वे समकम्मा? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति? गोयमा! असुरकुमारा दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पुव्वोववन्नगा य पच्छोववन्नगा य। तत्थ णं जेते पुव्वोववन्नगा ते णं महाकम्मतरागा। तत्थ णं जेते पच्छोववन्नगा ते णं अप्पकम्मतरागा। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चति– असुरकुमारा नो सव्वे समकम्मा। एवं वण्णलेस्साए पुच्छा। तत्थ णं जेते पुव्वोववन्नगा ते णं अविसुद्धवण्णतरागा। तत्थ णं जेते पच्छोववन्नगा ते णं विसुद्धवण्णतरागा। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! सभी असुरकुमार क्या समान आहार वाले हैं ? इत्यादि यह अर्थ समर्थ नहीं है। शेष कथन नैरयिकों के समान है। भगवन्‌ ! सभी असुरकुमार समान कर्मवाले हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं। क्योंकि – असुरकुमार दो प्रकार के हैं – पूर्वोपपन्नक और पश्चादुपपन्नक। पूर्वोपपन्नक हैं, वे महाकर्मवाले हैं। पश्चादुपपन्नक हैं,
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-१७ लेश्या

उद्देशक-१ Hindi 447 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पुढविक्काइया आहार-कम्म-वण्ण-लेस्साहिं जहा नेरइया। पुढविकाइया णं भंते! सव्वे समवेदना? हंता गोयमा! सव्वे समवेदना। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति? गोयमा! पुढविकाइया सव्वे असण्णी असण्णीभूयं अनिययं वेदनं वेदेंति। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–पुढविक्काइया सव्वे समवेदना। पुढविक्काइया णं भंते! सव्वे समकिरिया? हंता गोयमा! पुढविक्काइया सव्वे समकिरिया। से केणट्ठेणं? गोयमा! पुढविक्काइया सव्वे माइमिच्छद्दिट्ठी, तेसिं नेयतियाओ पंच किरियाओ कज्जंति, तं जहा–आरंभिया परिग्गहिया मायावत्तिया अपच्चक्खाणकिरिया मिच्छादंसणवत्तिया। एवं जाव चउरिंदिया। पंचिंदियतिरिक्खजोणिया

Translated Sutra: पृथ्वीकायिकों के आहार, कर्म, वर्ण और लेश्या के विषय में नैरयिकों के समान कहना। भगवन्‌ ! क्या सभी पृथ्वीकायिक समान वेदनावाले होते हैं ? हाँ, गौतम ! होते हैं। क्योंकि – सभी पृथ्वीकायिक असंज्ञी होते हैं। वे असंज्ञीभूत और अनियत वेदना वेदते हैं। भगवन्‌ ! सभी पृथ्वीकायिक समान क्रियावाले होते हैं ? हाँ, गौतम ! होते
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-१७ लेश्या

उद्देशक-१ Hindi 448 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] मनूसाणं भंते! सव्वे समाहारा? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे। से केणट्ठेणं? गोयमा! मनूसा दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–महासरीरा य अप्पसरीरा य। तत्थ णं जेते महासरीरा ते णं बहुतराए पोग्गले आहारेंति जाव बहुतराए पोग्गले नीससंति, आहच्च आहारेंति जाव आहच्च नीससंति। तत्थ णं जेते अप्पसरीरा ते णं अप्पतराए पोग्गले आहारेंति जाव अप्पतराए पोग्गले नीससंति, अभिक्खणं आहारेंति जाव अभिक्खणं नीससंति। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चति– मनूसा नो सव्वे समाहारा। सेसं जहा नेरइयाणं, नवरं–किरियाहिं मनूसा तिविहा पन्नत्ता, तं जहा –सम्मद्दिट्ठी मिच्छद्दिट्ठी सम्मामिच्छद्दिट्ठी। तत्थ णं जे ते सम्मद्दिट्ठी

Translated Sutra: भगवन्‌ ! मनुष्य क्या सभी समान आहार वाले होते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। क्योंकि – मनुष्य दो प्रकार के हैं। महाशरीरवाले और अल्प शरीरवाले। जो महाशरीरवाले हैं, वे बहुत – से पुद्‌गलों का आहार करते हैं, यावत्‌ बहुत – से पुद्‌गलों का निःश्वास लेते हैं तथा कदाचित्‌ आहार करते हैं, यावत्‌ कदाचित्‌ निःश्वास लेते
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-१७ लेश्या

उद्देशक-१ Hindi 450 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सलेस्सा णं भंते! नेरइया सव्वे समाहारा समसरीरा समुस्सासनिस्सासा? स च्चेव पुच्छा। एवं जहा ओहिओ गमओ तहा सलेस्सगमओ वि णिरवसेसो भाणियव्वो जाव वेमानिया। कण्हलेस्सा णं भंते! नेरइया सव्वे समाहारा समसरीरा समुस्सासनिस्सासा पुच्छा। गोयमा! जहा ओहिया, नवरं– नेरइया वेदनाए माइमिच्छद्दिट्ठिउववन्नगा य अमाइसम्मद्दिट्ठिउववन्नगा य भाणियव्वा। सेसं तहेव जहा ओहियाणं। असुरकुमारा जाव वाणमंतरा एते जहा ओहिया, नवरं–मनूसाणं किरियाहिं विसेसो जाव तत्थ णं जेते सम्मद्दिट्ठी ते तिविहा पन्नत्ता, तं जहा–संजया असंजया संजयासंजया य, जहा ओहियाणं। जोइसिय-वेमानिया आइल्लिगासु तिसु लेस्सासु

Translated Sutra: भगवन्‌ ! सलेश्य सभी नारक समान आहारवाले, समान शरीरवाले और समान उच्छ्‌वास – निःश्वासवाले हैं? सामान्य गम के समान सभी सलेश्य समस्त गम यावत्‌ वैमानिकों तक कहना। भगवन्‌ ! क्या कृष्णलेश्यावाले सभी नैरयिक समान आहारवाले, समान शरीरवाले और समान उच्छ्‌वास – निःश्वासवाले होते हैं ? गौतम ! सामान्य नारकों के समान कृष्णलेश्यावाले
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-१७ लेश्या

उद्देशक-२ Hindi 452 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइयाणं भंते! कति लेस्साओ पन्नत्ताओ? गोयमा! तिन्नि, तं जहा– किण्हलेस्सा नीललेस्सा काउलेस्सा। तिरिक्खजोणियाणं भंते! कति लेस्साओ पन्नत्ताओ? गोयमा! छल्लेस्साओ, तं जहा–कण्हलेस्सा जाव सुक्कलेस्सा। एगिंदियाणं भंते! कति लेस्साओ पन्नत्ताओ? गोयमा! चत्तारि लेस्साओ, तं जहा–कण्हलेस्सा जाव तेउलेस्सा। पुढविक्काइयाणं भंते! कति लेस्साओ? गोयमा! एवं चेव आउ वणप्फतिकाइयाणं वि एवं चेव। तेउ वाउ बेइंदिय तेइंदिय चउरिंदियाणं जहा नेरइयाणं। पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा! छल्लेस्साओ–कण्हलेस्सा जाव सुक्कलेस्सा। सम्मुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा! जहा

Translated Sutra: नैरयिकों में कितनी लेश्याएं होती हैं ? गौतम ! तीन – कृष्णलेश्या, नीललेश्या और कापोतलेश्या। भगवन्‌ ! तिर्यंचयोनिक जीवों में कितनी लेश्याएं हैं ? गौतम ! छह, कृष्णा यावत्‌ शुक्ललेश्या। एकेन्द्रिय जीवों में चार लेश्याएं होती हैं। कृष्णलेश्या से तेजोलेश्या तक। पृथ्वीकायिक, अप्कायिक और वनस्पतिकायिक में भी चार
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-१७ लेश्या

उद्देशक-२ Hindi 453 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एतेसि णं भंते! सलेस्साणं जीवाणं कण्हलेस्साणं जाव सुक्कलेस्साणं अलेस्साण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा सुक्कलेस्सा, पम्हलेस्सा संखेज्जगुणा, तेउलेस्सा संखेज्जगुणा, अलेस्सा अनंतगुणा, काउलेस्सा अनंतगुणा, नीललेस्सा विसेसाहिया, कण्हलेस्सा विसेसाहिया, सलेस्सा विसेसाहिया।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! इन सलेश्य, कृष्णलेश्य यावत्‌ शुक्ललेश्य और अलेश्य जीवों में कौन, किससे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सबसे थोड़े जीव शुक्ललेश्या वाले हैं, उनसे पद्मलेश्या वाले संख्यातगुणे हैं, उनसे तेजोलेश्या वाले संख्यातगुणे हैं, उनसे अलेश्य अनन्तगुणे हैं, उनसे कापोतलेश्या वाले अनन्तगुणे हैं, उनसे
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-१७ लेश्या

उद्देशक-२ Hindi 454 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एतेसि णं भंते! नेरइयाणं कण्हलेस्साणं नीललेस्साणं काउलेस्साण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा नेरइया कण्हलेस्सा, नीललेस्सा असंखेज्जगुणा, काउलेस्सा असंखेज्जगुणा।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! कृष्णलेश्या, नीललेश्या और कापोतलेश्या वाले नारकों में से कौन, किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सबसे थोड़े कृष्णलेश्यावाले नारक हैं, उनसे असंख्यातगुणे नीललेश्यावाले हैं और उनसे भी असंख्यातगुणे कापोतलेश्या वाले हैं।
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-१७ लेश्या

उद्देशक-२ Hindi 455 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एतेसि णं भंते! तिरिक्खजोणियाणं कण्हलेस्साणं जाव सुक्कलेस्साण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा तिरिक्खजोणिया सुक्कलेसा, एवं जहा ओहिया, नवरं– अलेस्सवज्जा। एतेसि णं भंते! एगिंदियाणं कण्हलेस्साणं जाव तेउलेस्साण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा एगिंदिया तेउलेस्सा, काउलेस्सा अनंतगुणा, नीललेस्सा विसेसाहिया, कण्हलेस्सा विसेसाहिया। एतेसि णं भंते! पुढविक्काइयाणं कण्हलेस्साणं जाव तेउलेस्साण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! जहा ओहिया एगिंदिया,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! इन कृष्णलेश्या से लेकर शुक्ललेश्या वाले तिर्यंचयोनिकों में से कौन, किनसे अल्प, बहुत, तुल्य और विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सबसे कम तिर्यंच शुक्ललेश्या वाले हैं इत्यादि औघिक जीवों के समान समझना। विशेषता यह कि तिर्यंचों में अलेश्य नहीं कहना। भगवन्‌ ! कृष्णलेश्या से लेकर तेजोलेश्या तक के एकेन्द्रियों में
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-१७ लेश्या

उद्देशक-२ Hindi 457 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एतेसि णं भंते! देवाणं कण्हलेस्साणं जाव सुक्कलेस्साण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा देवा सुक्कलेस्सा, पम्हलेस्सा असंखेज्जगुणा, काउलेस्सा असंखेज्जगुणा, नीललेस्सा विसेसाहिया कण्हलेस्सा विसेसाहिया, तेउलेस्सा संखेज्जगुणा। एतासि णं भंते! देवीणं कण्हलेस्साणं जाव तेउलेस्साण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवाओ देवीओ काउलेस्साओ, नीललेस्साओ विसेसाहियाओ, कण्हलेस्साओ विसेसाहियाओ, तेउलेस्साओ संखेज्जगुणाओ। एतेसि णं भंते! देवाणं देवीण य कण्हलेस्साणं जाव सुक्कलेस्साण य कतरे

Translated Sutra: भगवन्‌ ! इन कृष्णलेश्यावाले से लेकर शुक्ललेश्यावाले देवों में ? गौतम ! सबसे थोड़े शुक्ललेश्यी देव हैं, उनसे पद्मलेश्यी देव असंख्यातगुणे हैं, उनसे कापोतलेश्यी देव असंख्यातगुणे हैं, उनसे नीललेश्यी देव विशेषाधिक हैं, उनसे कृष्णलेश्यी देव विशेषाधिक हैं और उनसे भी तेजोलेश्यी देव संख्यातगुणे हैं। इन देवियों
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