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Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-६ Hindi 148 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भिक्खू य इच्छेज्जा नायविहिं एत्तए, नो से कप्पइ थेरे अनापुच्छित्ता नायविहिं एत्तए, कप्पइ से थेरे आपुच्छित्ता नायविहिं एत्तए। थेरा य से वियरेज्जा, एवं से कप्पइ नायविहिं एत्तए। थेरा य से नो वियरेज्जा, एवं से नो कप्पइ नायविहिं एत्तए। जं तत्थ थेरेहिं अविइण्णे नायविहिं एइ, से संतरा छेए वा परिहारे वा। नो से कप्पइ अप्पसुयस्स अप्पागमस्स एगाणियस्स नायविहिं एत्तए। कप्पइ से जे तत्थ बहुस्सुए बब्भागमे तेण सद्धिं नायविहिं एत्तए। तत्थ से पुव्वागमणेणं पुव्वाउत्ते चाउलोदणे, पच्छाउत्ते भिलिंगसूवे, कप्पइ से चाउलोदणे पडिग्गाहेत्तए, नो से कप्पइ भिलिंगसूवे पडिग्गाहेत्तए। तत्थ

Translated Sutra: जो किसी साधु अपने रिश्तेदार के घर जाना चाहे तो स्थविर को पूछे बिना जाना न कल्पे, पूछने के बाद भी यदि जो स्थविर आज्ञा दे तो कल्पे और आज्ञा न दे तो न कल्पे। यदि आज्ञा बिना जाए तो जितने दिन रहे उतना छेद या तप प्रायश्चित्त आता है। अल्पसूत्री या आगम के अल्पज्ञाता को अकेले ही अपने रिश्तेदार के वहाँ जाना न कल्पे। दूसरे
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-६ Hindi 149 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आयरिय-उवज्झायस्स गणंसि पंच अइसेसा पन्नत्ता, तं जहा–आयरिय-उवज्झाए अंतो उवस्सयस्स पाए निगिज्झिय-निगिज्झिय पप्फोडेमाणे वा पमज्जेमाणे वा नातिक्कमति। आयरिय-उवज्झाए अंतो उवस्सयस्स उच्चार-पासवणं विगिंचमाणे वा विसोहेमाणे वा नातिक्कमति आयरिय-उवज्झाए पभू वेयावडियं इच्छाए करेज्जा इच्छाए नो करेज्जा। आयरिय-उवज्झाए अंतो उवस्सयस्स एगाणिए एगरायं वा दुरायं वा वसमाणे नातिक्कमति। आयरिय-उवज्झाए बाहिं उवस्सयस्स एगाणिए एगरायं वा दुरायं वा वसमाणे नातिक्कमति।

Translated Sutra: आचार्य – उपाध्याय को गण के विषय में पाँच अतिशय बताए हैं। उपाश्रय में पाँव घिसकर पूंजे या विशेष प्रमार्जे तो जिनाज्ञा का उल्लंघन नहीं होता, उपाश्रय में मल – मूत्र का त्याग करे, शुद्धि करे, वैयावच्च करने का सामर्थ्य हो तो ईच्छा हो तो वैयावच्च करे, ईच्छा न हो तो वैयावच्च न करे, उपाश्रय में एक – दो रात्रि निवास करे
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-६ Hindi 150 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] गणावच्छेइयस्स गणंसि दो अइसेसा पन्नत्ता, तं जहा–गणावच्छेइए अंतो उवस्सयस्स एगाणिए एगरायं वा दुरायं वा वसमाणे नातिक्कमति। गणावच्छेइए बाहिं उवस्सयस्स एगाणिए एगरायं वा दुरायं वा वसमाणे नातिक्कमति।

Translated Sutra: गणावच्छेदक के गण के लिए दो अतिशय बताए हैं। गणावच्छेदक उपाश्रय में या उपाश्रय के बाहर एक या दो रात निवास करे तो जिनाज्ञा का उल्लंघन नहीं होता।
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-६ Hindi 151 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से गामंसि वा जाव सन्निवेसंसि वा एगवगडाए एगदुवाराए एगनिक्खमणपवेसाए नो कप्पइ बहूणं अगडसुयाणं एगयओ वत्थए। अत्थियाइं त्थ केइ आयारपकप्पधरे नत्थियाइं त्थ केइ छेए वा परिहारे वा, नत्थियाइं त्थ केइ आयारपकप्पधरे से संतरा छेए वा परिहारे वा।

Translated Sutra: वो गाँव, नगर, राजधानी यावत्‌ संनिवेश के लिए, एक ही आँगन, एक ही द्वार – प्रवेश, निर्गमन का एक ही मार्ग हो वहाँ कईं अतिथि साधु को (श्रुत के अज्ञान को) ईकट्ठे होकर रहना न कल्पे। यदि वहाँ आचार प्रकल्प के ज्ञात साधु हो तो रहना कल्पे लेकिन यदि न हो तो वहाँ जितने दिन रहे उतने दिन का तप या छेद प्रायश्चित्त आता है।
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-६ Hindi 152 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से गामंसि वा जाव सन्निवेसंसि वा अभिनिव्वगडाए अभिनिदुवाराए अभिनिक्खमण-पवेसाए नो कप्पइ बहूण वि अगडसुयाणं एगयओ वत्थए। अत्थियाइं त्थ केइ आयारपकप्पधरे जे तत्तियं रयणिं संवसइ नत्थियाइं त्थ केइ छेए वा परिहारे वा, नत्थियाइं त्थ केइ आयारपकप्पधरे जे तत्तियं रयणिं संवसइ सव्वेसिं तेसिं तप्पत्तियं छेए वा परिहारे वा।

Translated Sutra: वो गाँव यावत्‌ संनिवेश के लिए अलग वाड़ हो, दरवाजे और आने – जाने के मार्ग भी अलग हो वहाँ कईं अगीतार्थ साधु को और श्रुत अज्ञानी को ईकट्ठे होकर रहना न कल्पे। यदि वहाँ कोई एक आचार प्रकल्प – निसीह आदि को जाननेवाले हो तो उनके साथ तीन रात में आकर साथ रहना कल्पे। ऐसा करते – करते किसी छेद या परिहार तप प्रायश्चित्त नहीं
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-६ Hindi 153 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से गामंसि वा जाव सन्निवेसंसि वा अभिनिव्वगडाए अभिनिदुवाराए अभिनिक्खमण-पवेसाए नो कप्पइ बहुसुयस्स बब्भागमस्स एगाणियस्स भिक्खुस्स वत्थए, किमंग पुणं अप्पागमस्स अप्पसुयस्स?

Translated Sutra: वो गाँव यावत्‌ संनिवेश के लिए कईं वाड़ – दरवाजा आने – जाने का मार्ग हो वहाँ बहुश्रुत या कईं आगम के ज्ञाता का अकेले रहना न कल्पे, यदि उन्हें न कल्पे तो अल्पश्रुतधर या अल्प आगमज्ञाता को किस तरह कल्पे ? यानि न कल्पे, लेकिन एक ही वाड़, एक दरवाजा, आने – जाने का एक ही मार्ग हो वहाँ बहुश्रुत – आगमज्ञाता साधु एकाकीपन से रहना
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-६ Hindi 156 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा निग्गंथिं अन्नगणाओ आगयं खुयायारं सबलायारं भिन्नायारं संकिलिट्ठायारं चरित्तं तस्स ठाणस्स अनालोयावेत्ता अपडिक्कमावेत्ता अनिन्दावेत्ता अगरहावेत्ता अविउट्टावेत्ता अविसोहावेत्ता अकरणाए अणब्भुट्ठावेत्ता अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं अपडिवज्जावेत्ता उवट्टावेत्तए वा संभुंजित्तए वा संवसित्तए वा तासि इत्तरियं दिसं वा अनुदिसं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा।

Translated Sutra: साधु या साध्वी को दूसरे गण से आए हुए, स्वगण में रहे साध्वी या जो खंड़ित – शबल भेदित या संक्लिष्ट आचारवाले हैं। और फिर जिस साध्वी ने उस पापस्थान की आलोचना, प्रतिक्रमण, निंदा, गर्हा, निर्मलता, विशुद्धि नहीं की, न करने के लिए तत्पर नहीं हो, दोष अनुसार उचित प्रायश्चित्त नहीं किया, ऐसे साध्वी को साता पूछना, संवास करना,
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-७ Hindi 160 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे निग्गंथा य निग्गंथीओ य संभोइया सिया, नो कप्पइ निग्गंथीणं निग्गंथे अनापुच्छित्ता निग्गंथिं अन्नगणाओ आगयं खुयायारं सबलायारं भिन्नायारं संकिलिट्ठायारं तस्स ठाणस्स अनालोयावेत्ता अपडिक्कमावेत्ता अहारिहं पायच्छित्तं अपडिवज्जावेत्ता पुच्छित्तए वा वाएत्तए वा उवट्ठावेत्तए वा संभुंजित्तए वा संवसत्तिए वा तीसे इत्तरियं दिसं वा अनुदिसं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा।

Translated Sutra: जो साधु – साध्वी सांभोगिक हैं यानि एक सामाचारी वाले हैं वहाँ साधु को पूछे बिना साध्वी खंड़ित, सबल, भेदित या संक्लिष्ट आचारवाले किसी अन्य गण के साध्वी को उसे पापस्थानक की आलोचना, प्रतिक्रमण, प्रायश्चित्त आदि किए बिना उनकी शाता पूछना, वांचना देना, एक मंड़लीवाले के साथ भोजन करना, साथ रहना, थोड़े वक्त या हंमेशा के लिए
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-७ Hindi 161 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे निग्गंथा य निग्गंथीओ य संभोइया सिया, कप्पइ निग्गंथीणं निग्गंथे आपुच्छित्ता निग्गंथिं अन्नगणाओ आगयं खुयायारं सबलायारं भिन्नायारं संकिलिट्ठायारं तस्स ठाणस्स आलोयावेत्ता पडिक्कमावेत्ता अहारिहं पायच्छित्तं पडिवज्जावेत्ता पुच्छित्तए वा वाएत्तए वा उवट्ठावेत्तए वा संभुंजित्तए वा संवसित्तए वा तीसे इत्तरियं दिसं वा अनुदिसं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा।

Translated Sutra: देखो सूत्र १६०
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-७ Hindi 162 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे निग्गंथा य निग्गंथीओ य संभोइया सिया, कप्पइ निग्गंथाणं निग्गंथीओ आपुच्छित्ता वा अनापुच्छित्ता वा निग्गंथिं अन्नगणाओ आगयं खुयायारं सबलायारं भिन्नायारं संकिलिट्ठायारं तस्स ठाणस्स आलोयावेत्ता पडिक्कमावेत्ता अहारिहं पायच्छित्तं पडिवज्जावेत्ता पुच्छित्तए वा वाएत्तए वा उवट्ठावेत्तए वा संभुंजित्तए वा संवसित्तए वा तीसे इत्तरियं दिसं वा अनुदिसं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा। तं च निग्गंथीओ नो इच्छेज्जा, सेहिमेव नियं ठाणं।

Translated Sutra: देखो सूत्र १६०
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-७ Hindi 163 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे निग्गंथा य निग्गंथीओ य संभोइया सिया, नो ण्हं कप्पइ पारोक्खं पाडिएक्कं संभोइयं विसंभोइयं करेत्तए, कप्पइ ण्हं पच्चक्खं पाडिएक्कं संभोइयं विसंभोइयं करेत्तए। जत्थेव अन्नमन्नं पासेज्जा तत्थेव एवं वएज्जा–अह णं अज्जो! तुमए सद्धिं इमम्मि कारणम्मि पच्चक्खं संभोगं विसंभोगं करेमि। से य पडितप्पेज्जा एवं से नो कप्पइ पच्चक्खं पाडिएक्कं संभोइयं विसंभोइयं करेत्तए। से य नो पडितप्पेज्जा एवं से कप्पइ पच्चक्खं पाडिएक्कं संभोइयं विसंभोइयं करेत्तए।

Translated Sutra: यदि कोई साधु – साध्वी समान सामाचारी वाले हैं उनमें से किसी साधु को परोक्ष तरह या दूसरे स्थानक में प्रत्यक्ष बताए बिना विसंभोगि यानि मांड़ली बाहर करना न कल्पे। उसी स्थानक में प्रत्यक्ष उनके सन्मुख कहकर विसंभोगि करना कल्पे। सन्मुख हो तब कहे कि हे आर्य ! इस कुछ कारण से अब तुम्हारे साथ सांभोगिक व्यवहार न करूँ।
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-७ Hindi 164 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जाओ निग्गंथीओ वा निग्गंथा वा संभोइया सिया, नो ण्हं कप्पइ पच्चक्खं पाडिएक्कं संभोइणिं विसंभोइणिं करेत्तए, कप्पइ ण्हं पारोक्खं पाडिएक्कं संभोइणिं विसंभोइणिं करेत्तए। जत्थेव ताओ अप्पणो आयरिय-उवज्झाए पासेज्जा, तत्थेव एवं वएज्जा– अह णं भंते! अमुगीए अज्जाए सद्धिं इमम्मि कारणम्मि पारोक्खं पाडिएक्कं संभोगं विसंभोगं करेमि। सा य से पडितप्पेज्जा एवं से नो कप्पइ पारोक्खं पाडिएक्कं संभोइणिं विसंभोइणिं करेत्तए। सा य से नो पडितप्पेज्जा एवं से कप्पइ पारोक्खं पाडिएक्कं संभोइणिं विसंभोइणिं करेत्तए।

Translated Sutra: यदि कोई साधु – साध्वी समान सामाचारी वाले हैं उनमें से किसी साध्वी को दूसरे साध्वी ने प्रत्यक्ष संभोगी – पन में से विसंभोगीपन यानि की मांड़ली व्यवहार बंध करना न कल्पे। परोक्ष तरह अन्य के द्वारा कहकर विसंभोगी पन करना कल्पे। अपने आचार्य – उपाध्याय को ऐसा कहे कि कुछ कारण से अमुक साध्वी के साथ मांड़ली व्यवहार बंध
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-७ Hindi 165 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नो कप्पइ निग्गंथाणं निग्गंथिं अप्पणो अट्ठाए पव्वावेत्तए वा मुंडावेत्तए वा सेहावेत्तए वा उवट्ठावेत्तए वा संवसित्तए वा संभुंजित्तए वा तीसे इत्तरियं दिसं वा अनुदिसं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा।

Translated Sutra: साधु या साध्वी को अपने खुद के हित के लिए किसी को दीक्षा देना, मुँड़ करना, आचार शीखलाना, शिष्यत्व देना, उपस्थापन करना, साथ रहना, आहार करना या थोड़े दिन या हंमेशा के लिए पदवी देना न कल्पे, दूसरों के लिए दीक्षा देना आदि सब काम करना कल्पे। सूत्र – १६५–१६८
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-७ Hindi 169 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नो कप्पइ निग्गंथीणं विइगिट्ठं दिसं वा अनुदिसं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा।

Translated Sutra: साध्वी को विकट दिशा में विहार करना या धारण करना न कल्पे, साधु को कल्पे। सूत्र – १६९, १७०
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-७ Hindi 171 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नो कप्पइ निग्गंथाणं विइगिट्ठाइं पाहुडाइं विओसवेत्तए।

Translated Sutra: साधु को विकट दिशा के लिए कठिन वचन आदि का प्रायश्चित्त लेकर वहाँ बैठे क्षमापना करना न कल्पे, साध्वी को कल्पे। सूत्र – १७१, १७२
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-७ Hindi 173 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा विइगिट्ठे काले सज्झायं उदिसित्तए करेत्तए।

Translated Sutra: साधु – साध्वी को विकाल में स्वाध्याय करना न कल्पे, यदि साधु की निश्रा – आज्ञा हो तो साध्वी को विकाल में भी स्वाध्याय करना कल्पे। सूत्र – १७३, १७४
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-७ Hindi 175 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा असज्झाइए सज्झायं करेत्तए।

Translated Sutra: साधु – साध्वी को असज्झाय में स्वाध्याय करना न कल्पे, सज्झाय में (स्वाध्यायकाले) स्वाध्याय करना कल्पे। सूत्र – १७५, १७६
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-७ Hindi 177 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा अप्पणो असज्झाइए सज्झायं करेत्तए। कप्पइ ण्हं अन्नमन्नस्स वायणं दलइत्तए।

Translated Sutra: साधु – साध्वीको अपनी शारीरिक असज्झाय में सज्झाय करना न कल्पे, अन्योन्य वांचना देना कल्पे।
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-७ Hindi 178 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तिवासपरियायस्स समणस्स निग्गंथस्स तीसवासपरियायाए समणीए निग्गंथीए कप्पइ उवज्झायत्ताए उद्दिसित्तए।

Translated Sutra: तीन साल के दीक्षा पर्यायवाले साधु को तीस साल के दीक्षावाले साध्वी को उपाध्याय के रूप में अपनाना कल्पे, पाँच साल के पर्यायवाले साधु को ६० साल के पर्यायवाले साध्वी को उपाध्याय के रूप में अपनाना कल्पे। सूत्र – १७८, १७९
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-७ Hindi 180 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] गामानुगामं दूइज्जमाणे भिक्खू य आहच्च वीसंभेज्जा तं च सरीरगं केइ साहम्मिया पासेज्जा, कप्पइ से तं सरीरगं मा सागारियमिति कट्टु थंडिले बहुफासुए पडिलेहित्ता पमज्जित्ता परिट्ठवेत्तए। अत्थियाइं त्थ केइ साहम्मियसंतिए उवग-रणजाए परिहरणारिहे, कप्पइ से सागारकडं गहाय दोच्चं पि ओग्गहं अनुन्नवेत्ता परिहारं परिहरेत्तए।

Translated Sutra: एक गाँव से दूसरे गाँव विहार करते साधु – साध्वी शायद काल करे, उनके शरीर को किसी साधर्मिक साधु देखे तो वो साधु उस मृतक को वस्त्र आदि से ढ़ँककर एकान्त, अचित्त, निर्दोष, स्थंड़िल भूमि देखकर, प्रमार्जना करके परठना कल्पे, यदि वहाँ कोई उपकरण हो तो वो आगार सहित ग्रहण करे, दूसरी बार आज्ञा लेकर वो उपकरण रखना या त्याग करने का
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-७ Hindi 181 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सागारिए उवस्सयं वक्कएणं पउंजेज्जा, से य वक्कइयं वएज्जा–इमम्मि य इमम्मि य ओवासे समणा निग्गंथा परि-वसंति, से सागारिए पारिहारिए। से य नो वएज्जा, वक्कइए वएज्जा–इमम्मि य इमम्मि य ओवासे समणा निग्गंथा परिवसंतु, से सागारिए पारिहारिए। दो वि ते वएज्जा, दो वि सागारिया पारिहारिया।

Translated Sutra: सज्जातर उपाश्रय किराये पे दे या बेच दे लेकिन लेनेवाले को बोले कि इस जगह में कुछ स्थान पर निर्ग्रन्थ साधु बसते हैं। उस के अलावा जो जगह है वो किराये पे या बिक्री में देंगे तो वो सज्जातर के आहार – पानी वहोरना न कल्पे। यदि देनेवाले ने कुछ न कहा हो लेकिन लेनेवाला ऐसा कहे कि इतनी जगह में साधु भले विचरण करे तो लेनेवाले
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-७ Hindi 182 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सागारिए उवस्सयं विक्किणेज्जा, से य कइयं वएज्जा–इमम्मि य इमम्मि य ओवासे समणा निग्गंथा परिवसंति, से सागारिए पारिहारिए। से य नो वएज्जा, कइए वएज्जा– इमम्मि य इमम्मि य ओवासे समणा निग्गंथा परिवसंतु से सागारिए, पारिहारिए। दो वि ते वएज्जा, दो वि सागारिया पारिहारिया।

Translated Sutra: देखो सूत्र १८१
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-७ Hindi 183 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] विहवधूया नातिकुलवासिणी, सावि ताव ओग्गहं अनुण्णवेयव्वा। किमंग पुण पिया वा भाया वा पुत्ते वा पहेवि ओग्गहे ओगेण्हियव्वे।

Translated Sutra: यदि कोई विधवा पिता के घर में रहती हो और उसकी अनुमति लेने का अवसर आए तो उसके पिता, पुत्र या भाई दोनों की आज्ञा लेकर अवग्रह माँगना चाहिए।
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-७ Hindi 184 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पहिए वि ओग्गहं अनुण्णवेयव्वे।

Translated Sutra: पंथ के लिए यानि रास्ते में भी अवग्रह की अनुज्ञा लेना। जैसे कि वृक्ष आदि की, वहाँ रहे मुसाफिर की।
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-७ Hindi 185 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से रायपरियट्टेसु संथडेसु अव्वोगडेसु अव्वोच्छिन्नेसु अपरपरिग्गहिएसु सच्चेव ओग्गहस्स पुव्वाणुन्नवणा चिट्ठइ अहालंदमवि ओग्गहे।

Translated Sutra: राजा मर जाए तब राज में फेरफार हुआ है ऐसा माने। लेकिन पहले राजा की दशा – प्रभाव तूटे न हो, भाई – हिस्सा बँटा न हो, अन्य वंश के राजा का विच्छेद न हुआ हो, दूसरे राजा ने अभी उस देश का राज ग्रहण न किया हो तब तक पूर्व की अनुज्ञा के मुताबिक रहना कल्पे, लेकिन यदि पूर्व के राजा का प्रभाव तूट गया हो, हिस्से का बँटवारा, राज विच्छेद,
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-८ Hindi 187 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] गाहा उदू पज्जोसविए। ताए गाहाए ताए पएसाए ताए उवासंतराए जमिणं-जमिणं सेज्जासंथारगं लभेज्जा, तमिणं-तमिणं ममेव सिया। थेरा य से अनुजाणेज्जा, तस्सेव सिया। थेरा य से नो अनुजाणेज्जा, एवं से कप्पइ अहाराइणियाए सेज्जासंथारगं पडिग्गाहेत्तए।

Translated Sutra: जिस घर के लिए वर्षावास रहा उस घर में, बाहर के प्रदेश में या दूर के अन्तर में जो शय्या – संथारा मिला हो वो – वो मेरे हैं ऐसा शिष्य कहे लेकिन यदि स्थविर आज्ञा दे तो लेना कल्पे, यदि आज्ञा न दे तो लेना न कल्पे। उसी तरह आज्ञा मिले तो ही रात – दिन वो शय्या – संथारा लेना कल्पे।
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-८ Hindi 188 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से अहालहुसगं सेज्जासंथारगं गवेसेज्जा, जं चक्किया एगेणं हत्थेणं ओगिज्झ जाव एगाहं वा दुयाहं वा तियाहं वा अद्धाणं परिवहित्तए, एस मे हेमंतगिम्हासु भविस्सइ।

Translated Sutra: वो साधु हल्के श्याय – संथारा की गवेषणा करे, ये – वो एक हाथ से उठाकर एक – दो या तीन दिन के मार्ग में ले जाने के लिए समर्थ हो ऐसा संथारा शर्दी – गर्मी के लिए पाए, उसी तरह वर्षावास के लिए प्राप्त करे। सूत्र – १८८, १८९
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-८ Hindi 189 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से य अहालहुसगं सेज्जासंथारगं गवेसेज्जा, जं चक्किया एगेणं हत्थेणं ओगिज्झ जाव एगाहं वा दुयाहं वा तियाहं वा अद्धाणं परिवहित्तए, एस मे वासावासासु भविस्सइ।

Translated Sutra: देखो सूत्र १८८
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-८ Hindi 190 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से अहालहुसगं सेज्जासंथारगं गवेसेज्जा, जं चक्किया एगेणं हत्थेणं ओगिज्झ जाव एगाहं वा दुयाहं वा तियाहं चउयाहं वा पंचाहं वा अद्धाणं परिवहित्तए, एस मे वुड्ढावासासु भविस्सइ।

Translated Sutra: वो साधु कम वजन के शय्या – संथारा की गवेषणा करे, ये – वो एक हाथ से उठाकर एक, दो, तीन, चार, पाँच दिन के दूर के रास्ते के लिए उठाने को समर्थ हो जिससे वो शय्या – संथारा मुझे बढ़ती वर्षाऋतु में काम लगे।
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-८ Hindi 191 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] थेराणं थेरभूमिपत्ताणं कप्पइ दंडए वा भंडए वा छत्तए वा मत्तए वा लट्ठिया वा चेले वा चेलचिलिमिलिया वा चम्मे वा चम्मकोसए वा चम्मपलिच्छेयणए वा अविरहिए ओवासे ठवेत्ता गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए पविसित्तए वा निक्खमित्तए वा। कप्पइ ण्हं संनियट्टचारीणं दोच्चं पि ओग्गहं अनुन्नवेत्ता परिहरित्तए।

Translated Sutra: जो स्थविर स्थिरवास रहे उसे दंड़ी, पात्रा, सर ढ़ँकने का वस्त्र, पात्रक, लकड़ी, वस्त्र, चर्मखंड़ रखना कल्पे। यदि स्थविर अकेले हो तब यह सभी उपकरण कहीं रखकर गृहस्थ के घर आहार ग्रहण के लिए नीकले या प्रवेश करे। उसके बाद वापस आने पर जिसके वहाँ उपकरण रखे हों उसकी आज्ञा लेकर वो उपकरण भुगते या त्याग करे।
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-८ Hindi 192 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा पाडिहारियं वा सागारिय संतिवं वा सेज्जासंथारगं दोच्चं पि ओग्गहं अणणुण्णवेत्ता बहिया नीहरित्तए।

Translated Sutra: साधु – साध्वी को पाड़िहारिक – वापस करने के उचित या शय्यातर के पास से शय्या – संथारा पुनः लेकर अनुज्ञा लिए बिना बाहर जाना न कल्पे, आज्ञा लेकर जाना कल्पे। सूत्र – १९२–१९४
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उद्देशक-८ Hindi 193 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कप्पइ अनुण्णवेत्ता। नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा पाडिहारियं वा सेज्जासंथारगं सव्वप्पणा अप्पिणित्ता दोच्चं पि ओग्गहं अणणुन्नवेत्ता अहिट्ठित्तए, कप्पइ अनुन्नवेत्ता।

Translated Sutra: देखो सूत्र १९२
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उद्देशक-८ Hindi 194 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा सागारियसंतियं वा सेज्जासंथारगं दोच्चं पि ओग्गहं अनुण्णवेत्ता बहिया नीहरित्तए, कप्पइ अनुण्णवेत्ता।

Translated Sutra: देखो सूत्र १९२
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उद्देशक-८ Hindi 195 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा सागारियसंतियं वा सेज्जासंथारगं सव्वप्पणा अप्पिणित्ता दोच्चं पि ओग्गहं अणणुन्नवेत्ता अहिट्ठित्तए, कप्पइ अनुण्णवेत्ता।

Translated Sutra: साधु – साध्वी को पाड़िहारिक या शय्यातर के पास से शय्या – संथारा पहले लिया हो वो उन्हें सौंपकर दूसरी दफा उनकी आज्ञा बिना रखना न कल्पे। आज्ञा लेकर रखना कल्पे, या पहले ग्रहण करके फिर आज्ञा लेना भी न कल्पे, पूर्व आज्ञा लेकर फिर ग्रहण करना कल्पे। यदि ऐसा माने कि यहाँ वाकई में प्रातिहारिक शय्या – संथारा सुलभ नहीं है,
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उद्देशक-८ Hindi 197 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा पुव्वामेव ओग्गहं अनुण्णवेत्ता तओ पच्छा ओगिण्हित्तए। अह पुण एवं जाणेज्जा–इह खलु निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा नो सुलभे सेज्जासंथारए त्ति कट्टु एव ण्हं कप्पइ पुव्वामेव ओग्गहं ओगिण्हित्ता तओ पच्छा अनुण्णवेत्तए। मा दुहओ अज्जो! वइ-अनुलोमेणं, अनुलोमेयव्वे सिया।

Translated Sutra: देखो सूत्र १९५
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उद्देशक-८ Hindi 198 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] निग्गंथस्स णं गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए अनुपविट्ठस्स अन्नयरे अहालहुसए उवगरणजाए परिब्भट्ठे सिया। तं च केइ साहम्मिए पासेज्जा, कप्पइ से सागारकडं गहाय जत्थेव अन्नमण्णे पासेज्जा तत्थेव एवं वएज्जा– इमे भे अज्जो! किं परिण्णाए? से य वएज्जा–परिण्णाए, तस्सेव पडिणिज्जाएयव्वे सिया। से य वएज्जा–नो परिण्णाए, तं नो अप्पणा परिभुंजेज्जा नो अन्नमन्नस्स दावए। एगंते बहुफासुए थंडिले परिट्ठवेयव्वे सिया।

Translated Sutra: साधु गृहस्थ के घर आहार के लिए जाए, या बाहर स्थंड़िल या स्वाध्याय भूमि में जाए, या एक गाँव से दूसरे गाँव विचरते हो वहाँ अल्प उपकरण भी गिर जाए। उसे कोई साधर्मिक साधु देखे, गृहस्थ थकी वो चीज ग्रहण करना कल्पे। वो चीजें लेकर वो साधर्मिक आपसी साधु को कहे कि हे आर्य ! यह उपकरण किसका है तुम जानते हो ? साधु कहे कि हा, जानता
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उद्देशक-८ Hindi 199 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] निग्गंथस्स णं बहिया वियारभूमिं वा विहारभूमिं वा निक्खंतस्स अन्नयरे अहालहुसए उवगरणजाए परिब्भट्ठे सिया तं च केइ साहम्मिए पासेज्जा, कप्पइ से सागारकडं गहाय पासेज्जा जत्थेव अन्नमन्नं तत्थेव एवं वएज्जा– इमे भे अज्जो! किं परिण्णाए? से य वएज्जा–परिण्णाए, तस्सेव पडिणिज्जाएयव्वे सिया। से य वएज्जा–नो परिण्णाए, तं नो अप्पणा परिभुंजेज्जा नो अन्नमन्नस्स दावए। एगंते बहुफासुए थंडिले परिट्ठवेयव्वे सिया।

Translated Sutra: देखो सूत्र १९८
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उद्देशक-८ Hindi 200 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] निग्गंथस्स णं गामानुगामं दूइज्जमाणस्स अन्नयरे उवगरणजाए परिब्भट्ठे सिया। केइ साहम्मिए पासेज्जा, कप्पइ से सागारकडं गहाय दूरमेव अद्धाणं परिवहित्तए। जत्थेव अन्नमन्नं पासेज्जा, तत्थेव एवं वएज्जा– इमे भे अज्जो! किं परिण्णाए? से य वएज्जा–परिण्णाए तस्सेव पडिणिज्जाएयव्वे सिया। से य वएज्जा–नो परिण्णाए, तं नो अप्पणा परिभुंजेज्जा नो अन्नमन्नस्स दावए। एगंते बहुफासुए थंडिले परिट्ठवेयव्वे सिया।

Translated Sutra: देखो सूत्र १९८
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उद्देशक-८ Hindi 201 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा अइरेगपडिग्गहं अन्नमन्नस्स अट्ठाए धारेत्तए वा परिग्गहित्तए वा, सो वा णं धारेस्सइ अहं वा णं धारेस्सामि अण्णो वा णं धारेस्सइ। नो से कप्पइ ते अनापुच्छिय अनामंतिय अन्नमण्णेसिं दाउं वा अनुप्पदाउं वा। कप्पइ से ते आपुच्छिय आमंतिय अन्नमण्णेसिं दाउं वा अनुप्पदाउं वा।

Translated Sutra: साधु – साध्वी को अधिक पात्र आपस में ग्रहण करना कल्पे। यदि वो पात्र मैं किसी को दूँगा, मैं खुद ही रखूँगा या दूसरे किसी को भी देंगे तो जिनके लिए उन्हें लिया हो उन्हें पूछे या न्यौता दिए बिना आपस में देना न कल्पे, लेकिन जिनके लिए लिया है उन्हें पूछकर, निमंत्रित करके देना कल्पे।
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उद्देशक-८ Hindi 202 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अट्ठ कुक्कुडिअंडगप्पमाणमेत्ते कवले आहारं आहारेमाणे समणे निग्गंथे अप्पाहारे। बारस कुक्कुडिअंडगप्पमाणमेत्ते कवले आहारं आहारेमाणे समणे निग्गंथे अवड्ढोमोयरिए, सोलस कुक्कुडिअंडगप्पमाणमेत्ते कवले आहारं आहारेमाणे समणे निग्गंथे दुभागपत्ते। चउवीसं कुक्कुडिअंडगप्पमाणमेत्ते कवले आहारं आहारेमाणे समणे निग्गंथे ओमोयरिए। एगतीसं कुक्कुडिअंडगप्पमाणमेत्ते कवले आहारं आहारेमाणे समणे निग्गंथे किंचूणो-मोयरिए। बत्तीसं कुक्कुडिअंडगप्पमाणमेत्ते कवले आहारं आहारेमाणे समणे निग्गंथे पमाणपत्ते। एत्तो एगेण वि घासेणं ऊणगं आहारं आहारेमाणे समणे निग्गंथे नो पकामभोइ

Translated Sutra: मूर्गे के अंड़े जितने आठ नीवाले यानि कि आठ कवल आहार जो करे उस साधु को अल्प – आहारी बताए। बारह कवल आहारी साधु अपार्ध उणोदरी करते हैं, सोलह कवल आहारी को अर्ध उणोदरी, चौबीस कवल आहारी को पा उणोदरी, ३१ कवल आहारी को किंचित्‌ उणोदरी, ३२ कवल आहारी को प्रमाण प्राप्त आहारी बताए। उस तरह से एक भी कवल आहार कम करनेवाले को प्रकाम
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उद्देशक-९ Hindi 203 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सागारियस्स आएसे अंतो वगडाए भुंजइ निट्ठिए निसट्ठे पाडिहारिए, तम्हा दावए, नो से कप्पइ पडिगाहेत्तए।

Translated Sutra: सागारिक शय्यातर के वहाँ कोई अतिथि घर में भोजन कर रहा हो या बाहर खा रहा हो तो उनके लिए आहार – पानी किए हो वो आहार शय्यातर उसे दे, पाड़िहारिक वापस देने की शर्त से बचा हुआ आहार वो व्यक्ति शय्यातर को दे तो उसमें से साधु को दिया गया आहार साधु को लेना न कल्पे, लेकिन यदि वो आहार अपड़िहारिक हो तो साधु – साध्वी को लेना कल्पे। सूत्र
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उद्देशक-९ Hindi 204 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सागारियस्स आएसे अंतो वगडाए भुंजइ निट्ठिए निसट्ठे अपाडिहारिए, तम्हा दावए, नो से कप्पइ पडिगाहेत्तए।

Translated Sutra: देखो सूत्र २०३
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उद्देशक-९ Hindi 205 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सागारियस्स आएसे बाहिं वगडाए भुंजइ निट्ठिए निसट्ठे पाडिहारिए, तम्हा दावए, नो से कप्पइ पडिगाहेत्तए।

Translated Sutra: देखो सूत्र २०३
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उद्देशक-९ Hindi 206 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सागारियस्स आएसे आएसे बाहिं वगडाए भुंजइ निट्ठिए निसट्ठे अपाडिहारिए, तम्हा दावए, एवं से कप्पइ पडिगाहेत्तए।

Translated Sutra: देखो सूत्र २०३
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उद्देशक-९ Hindi 207 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सागारियस्स दासे वा भयए वा अंतो वगडाए भुंजइ निट्ठिए निसट्ठे पाडिहारिए, तम्हा दावए, नो से कप्पइ पडिगाहेत्तए।

Translated Sutra: सागारिक – शय्यातर के दास, नौकर, चाकर, सेवक आदि किसी भी घर में या घर के बाहर खा रहे हो तो उनके लिए बनाया गया आहार बचे वो नौकर आदि वापस लेने की बुद्धि से शय्यातर को दे तो ऐसा आहार शय्यातर दे तब साधु – साध्वी का लेना न कल्पे, वापस लेने की बुद्धि रहित यानि अप्रतिहारिक हो तो कल्पे। सूत्र – २०७–२१०
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उद्देशक-९ Hindi 208 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सागारियस्स दासे वा भयए वा अंतो वगडाए भुंजइ निट्ठिए निसट्ठे अपाडिहारिए, तम्हा दावए, एवं से कप्पइ पडिगाहेत्तए।

Translated Sutra: देखो सूत्र २०७
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उद्देशक-९ Hindi 209 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सागारियस्स दासे वा भयए वा बाहिं वगडाए भुंजइ निट्ठिए निसट्ठे पाडिहारिए, तम्हा दावए, नो से कप्पइ पडिगाहेत्तए।

Translated Sutra: देखो सूत्र २०७
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-९ Hindi 210 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सागारियस्स दासे वा भयए वा बाहिं वगडाए भुंजइ निट्ठिए निसट्ठे अपाडिहारिए, तम्हा दावए, एवं से कप्पइ पडिगाहेत्तए।

Translated Sutra: देखो सूत्र २०७
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उद्देशक-९ Hindi 211 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सागारियस्स नायए सिया सागारियस्स एगवगडाए अंतो सागारियस्स एगपयाए सागारियं चोवजीवइ, तम्हा दावए, नो से कप्पइ पडिगाहेत्तए।

Translated Sutra: शय्यातर के ज्ञातीजन हो, एक ही घर में, या घर के बाहर, एक ही या अलग चूल्हे का पानी आदि ले रहे हो लेकिन उसके सहारे जिन्दा हो तो उनका दिया गया आहार साधु को लेना न कल्पे। सूत्र – २११–२१४
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-९ Hindi 212 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सागारियस्स नायए सिया सागारियस्स एगवगडाए अंतो अभिनिपयाए सागारियं चोवजीवइ, तम्हा दावए, नो से कप्पइ पडिगाहेत्तए।

Translated Sutra: देखो सूत्र २११
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