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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-४ | Hindi | 124 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] बहवे गणावच्छेइया एगयओ विहरंति, नो ण्हं कप्पइ अन्नमन्नमणुवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए। कप्पइ ण्हं अहाराइणियाए अन्नमन्नं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए। Translated Sutra: देखो सूत्र १२३ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-४ | Hindi | 125 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] बहवे आयरिय-उवज्झाया एगयओ विहरंति, नो ण्हं कप्पइ अन्नमन्नमणुवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए। कप्पइ ण्हं अहाराइणियाए अन्नमन्नं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए। Translated Sutra: देखो सूत्र १२३ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-४ | Hindi | 126 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] बहवे भिक्खुणो बहवे गणावच्छेइया बहवे आयरिय-उवज्झाया एगयओ विहरंति, नो ण्हं कप्पइ अन्नमन्नमणुवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए। कप्पइ ण्हं अहाराइणियाए अन्नमन्नं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए।
Translated Sutra: देखो सूत्र १२३ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-५ | Hindi | 127 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नो कप्पइ पवत्तिणीए अप्पबिइयाए हेमंतगिम्हासु चारए। Translated Sutra: प्रवर्तिनी साध्वी को गर्मी और शीतकाल में खुद के साथ दो साध्वी का विचरना न कल्पे, तीन हो तो कल्पे। सूत्र – १२७, १२८ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-५ | Hindi | 128 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कप्पइ पवत्तिणीए अप्पतइयाए हेमंतगिम्हासु चारए। Translated Sutra: देखो सूत्र १२७ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-५ | Hindi | 129 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नो कप्पइ गणावच्छेइणीए अप्पतइयाए हेमंतगिम्हासु चारए। Translated Sutra: गणावच्छेदणी साध्वी का शेष काल में खुद के साथ तीन को विचरना न कल्पे, चार को कल्पे। सूत्र – १२९, १३० | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-५ | Hindi | 130 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कप्पइ गणावच्छेइणीए अप्पचउत्थाए हेमंतगिम्हासु चारए। Translated Sutra: देखो सूत्र १२९ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-५ | Hindi | 131 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नो कप्पइ पवत्तिणीए अप्पतइयाए वासावासं वत्थए। Translated Sutra: प्रवर्तिनी को वर्षावास यानि चौमासी रहना खुद के सहित तीन साध्वी को और गणावच्छेदणी को चार साध्वी को न कल्पे, लेकिन कुल चार साध्वी हो तो प्रवर्तिनी को ओर पाँच साध्वी हो तो गणावच्छेदणी को कल्पे। सूत्र – १३१–१३४ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-५ | Hindi | 132 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कप्पइ पवत्तिणीए अप्पचउत्थाए वासावासं वत्थए। Translated Sutra: देखो सूत्र १३१ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-५ | Hindi | 133 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नो कप्पइ गणावच्छेइणीए अप्पचउत्थाए वासावासं वत्थए। Translated Sutra: देखो सूत्र १३१ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-५ | Hindi | 134 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कप्पइ गणावच्छेइणीए अप्पपंचमाए वासावासं वत्थए। Translated Sutra: देखो सूत्र १३१ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-५ | Hindi | 135 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से गामंसि वा जाव सन्निवेसंसि वा बहूणं पवत्तिणीणं अप्पतइयाणं बहूणं गणावच्छेइणीणं अप्पचउत्थाणं कप्पइ हेमंतगिम्हासु चारए अन्नमन्ननीसाए। Translated Sutra: वो गाँव यावत् संनिवेश के लिए कईं प्रवर्तिनी को खुद के सहित तीन को, कईं गणावच्छेदणी को खुद के सहित चार को शेषकाल में अन्योन्य एक एक की निश्रा में विचरना कल्पे, वर्षावास रहना हो तो कईं प्रवर्तिनी हो तो खुद के साथ चार को और कईं गणावच्छेदणी हो तो पाँच की अन्योन्य निश्रा में रहना कल्पे। सूत्र – १३५, १३६ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-५ | Hindi | 136 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से गामंसि वा जाव सन्निवेसंसि वा बहूणं पवत्तिणीणं अप्पचउत्थाणं बहूणं गणावच्छेइणीणं अप्पपंचमाणं कप्पइ वासावासं वत्थए अन्नमन्ननीसाए। Translated Sutra: देखो सूत्र १३५ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-५ | Hindi | 137 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] गामानुगामं दूइज्जमाणी निग्गंथी य जं पुरओ काउं विहरइ सा आहच्च वीसंभेज्जा अत्थियाइं त्थ काइ अण्णा उवसंपज्जणारिहा सा उवसंपज्जियव्वा। नत्थियाइं त्थ काइ अण्णा उवसंपज्जणारिहा तीसे य अप्पणो कप्पाए असमत्ते कप्पइ से एगराइयाए पडिमाए जण्णं-जण्णं दिसं अन्नाओ साहम्मिणीओ विहरंति तण्णं-तण्णं दिसं उवलित्तए नो से कप्पइ तत्थ विहारवत्तियं वत्थए, कप्पइ से तत्थ कारणवत्तियं वत्थए। तंसि च णं कारणंसि निट्ठियंसि परावएज्जा–वसाहि अज्जे! एगरायं वा दुरायं वा। एवं से कप्पइ एगरायं वा दुरायं वा वत्थए, नो से कप्पइ परं एगरायाओ वा दुरायाओ वा वत्थए। जं तत्थ परं एगरायाओ वा दुरायाओ वा वसइ Translated Sutra: एक गाँव से दूसरे गाँव विचरते हुए या वर्षावास में रहे साध्वी जिन्हें आगे करके विचरते हो तो बड़े साध्वी शायद काल करे तो उस समुदाय में रहे दूसरे किसी उचित साध्वी को वडील स्थापित करके उसकी आज्ञा में रहे, यदि वडील की तरह वैसे कोई उचित न मिले और अन्य साध्वी आचार – प्रकल्प से अज्ञान हो तो एक रात का अभिग्रह लेकर, जिन दिशा | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-५ | Hindi | 138 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] वासावासं पज्जोसविया निग्गंथी य जं पुरओ काउं विहरइ सा आहच्च वीसंभेज्जा अत्थियाइं त्थ काइ अण्णा उवसंपज्जणारिहा सा उवसंपज्जियव्वा।
नत्थियाइं त्थ काइं अण्णा उवसंपज्जणारिहा तीसे य अप्पणो कप्पाए असमत्ते कप्पइ से एगराइयाए पडिमाए जण्णं-जण्णं दिसं अण्णाओ साहम्मिणीओ विहरंति तण्णं-तण्णं दिसं उवलित्तए। नो से कप्पइ तत्थ विहारवत्तियं वत्थए, कप्पइ से तत्थ कारणवत्तियं वत्थए।
तंसि च णं कारणंसि निट्ठियंसि परा वएज्जा–वसाहि अज्जे! एगरायं वा दुरायं वा। एवं से कप्पइ एगरायं वा वत्थए, नो से कप्पइ परं एगरायाओ वा दुरायाओ वा वत्थए।
जं तत्थ परं एगरायाओ वा दुरायाओ वा वसइ, से संतरा Translated Sutra: देखो सूत्र १३७ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-५ | Hindi | 139 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] पवत्तिणी य गिलायमाणी अन्नयरं वएज्जा–मए णं अज्जे! कालगयाए समाणीए इयं समुक्कसियव्वा। सा य समुक्कसणारिहा समुक्कसियव्वा, सा य नो समुक्कसणारिहा नो समुक्क-सियव्वा। अत्थियाइं त्थ अण्णा काइ समुक्कसणारिहा सा समु-क्कसियव्वा, नत्थियाइं त्थ अन्ना काइ समुक्कसणारिहा सा चेव समुक्कसियव्वा। ताए व णं समुक्किट्ठाए परा वएज्जा–दुस्समुक्किट्ठं ते अज्जे! निक्खिवाहि? तीसे णं निक्खिवमाणीए नत्थि केइ छेए वा परिहारे वा। जाओ तं साहम्मिणीओ अहाकप्पे णं नो उट्ठाए विहरंति सव्वासिं तासिं तप्पत्तियं छेए वा परिहारे वा। Translated Sutra: प्रवर्तिनी साध्वी बीमारी आदि कारण से या मोह के उदय से चारित्र छोड़कर (मैथुन अर्थे) देशान्तर जाए तब अन्य को ऐसा कहे कि मैं काल करूँ तब या मेरे बाद मेरी पदवी इस साध्वी को देना। यदि वो उचित लगे तो पदवी दे, उचित न लगे तो न दे। उसे समुदाय में अन्य कोई योग्य लगे तो उसे पदवी दे, यदि कोई उचित न लगे तो पहले कहे गए अनुसार पदवी | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-५ | Hindi | 140 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] पवत्तिणी य ओहायमाणी अन्नयरं वएज्जा–मए णं अज्जे! ओहावियाए समाणीए इयं समुक्कसियव्वा। सा य समुक्कसणारिहा समुक्कसियव्वा, सा य नो समुक्कसणारिहा नो समुक्क-सियव्वा। अत्थियाइं त्थ अण्णा काइ समुक्कसणारिहा सा समुक्कसियव्वा, नत्थियाइं त्थ अण्णा काइ समुक्कसणारिहा सा चेव समुक्कसियव्वा। ताए व णं समुक्किट्ठाए परा वएज्जा–दुस्समुक्किट्ठं ते अज्जे! निक्खिवाहि तीसे णं निक्खिवमाणीए नत्थि केइ छेए वा परिहारे वा। जाओ तं साहम्मिणीओ अहाकप्पे णं नो उट्ठाए विहरंति सव्वासिं तासिं तप्पत्तियं छेए वा परिहारे वा। Translated Sutra: देखो सूत्र १३९ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-५ | Hindi | 141 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] निग्गंथीए नवडहरतरुणियाए आयारपकप्पे नामं अज्झयणे परिब्भट्ठे सिया। सा य पुच्छियव्वा–केण ते अज्जे! कारणेणं आयारपकप्पे नामं अज्झयणे परिब्भट्ठे? किं आबाहेणं उदाहु पमाएणं? सा य वएज्जा–नो आबाहेणं, पमाएणं। जाव-ज्जीवं तीसे तप्पत्तियं नो कप्पइ पवत्तिणित्तं वा गणावच्छेइणित्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा।
सा य वएज्जा–आबाहेणं, नो पमाएणं। सा य संठवेस्सामी ति संठवेज्जा, एवं से कप्पइ पवत्तिणित्तं वा गणावच्छेइणित्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा। सा य संठवेस्सामी ति नो संठवेज्जा, एवं से नो कप्पइ पवत्तिणित्तं वा गणावच्छेइणित्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा। Translated Sutra: दीक्षा आश्रित करके नए या तरुण साधु या साध्वी हो उसे आचार प्रकल्प – निसीह अध्ययन भूल जाए तो उसे पूछो कि हे आर्य ! किस कारण से तुम आचार प्रकल्प अध्ययन भूल गए, बीमारी से या प्रमाद से ? यदि वो ऐसा कहे कि बीमारी से नहीं लेकिन प्रमाद से भूल गए तो उसे जावज्जीव के लिए पदवी मत देना। यदि ऐसा कहे कि बीमारी से भूल गए प्रमाद से | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-५ | Hindi | 142 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] निग्गंथस्स नवडहरतरुणस्स आयारपकप्पे नामं अज्झयणे परिब्भट्ठे सिया। से य पुच्छियव्वे–केण ते अज्जो! कारणेणं आयारपकप्पे नामं अज्झयणे परिब्भट्ठे? किं आबाहेणं उदाहु पमाएणं? से य वएज्जा–नो आबाहेणं, पमाएणं। जावज्जीवं तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा।
से य वएज्जा–आबाहेणं, नो पमाएणं। से य संठवेस्सामी ति संठवेज्जा, एवं से कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा। से य संठवेस्सामी ति नो संठवेज्जा, एवं से नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा। Translated Sutra: देखो सूत्र १४१ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-५ | Hindi | 143 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] थेराणं थेरभूमिपत्ताणं आयारपकप्पे नामं अज्झयणे परिब्भट्ठे सिया। कप्पइ तेसिं संठवेमाणाण वा असंठवेमाणाण वा आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा। Translated Sutra: स्थविर साधु उम्र होने से आचार प्रकल्प अध्ययन भूल जाए तब यदि फिर से अध्ययन याद करे तो उसे आचार्य आदि छ पदवी देना या धारण करना कल्पे। यदि उसे याद न आए तो पदवी देना – धारण करना न कल्पे, वो स्थविर यदि शक्ति हो तो बैठे – बैठे आचार प्रकल्प याद करे और शक्ति न हो तो सोते – सोते या बैठकर भी याद करे। सूत्र – १४३, १४४ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-५ | Hindi | 144 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] थेराणं थेरभूमिपत्ताणं आयारपकप्पे नामं अज्झयणे परिब्भट्ठे सिया। कप्पइ तेसिं सन्निसण्णाण वा संतुयट्टाण वा उत्ताणयाण वा पासिल्लयाण वा आयारपकप्पं नामं अज्झयणं दोच्चं पि तच्चं पि पडिच्छित्तए वा पडिसारेत्तए वा। Translated Sutra: देखो सूत्र १४३ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-५ | Hindi | 145 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे निग्गंथा य निग्गंथीओ य संभोइया सिया, नो ण्हं कप्पइ अन्नमन्नस्स अंतिए आलोएत्तए। अत्थियाइं त्थ केइ आलोयणारिहे, कप्पइ ण्हं तस्स अंतिए आलोएत्तए; नत्थियाइं त्थ केइ आलोयणारिहे एव ण्हं कप्पइ अन्नमन्नस्स अंतिए आलोएत्तए। Translated Sutra: यदि साधु – साध्वी सांभोगिक हो (गोचरी – शय्यादि उपधि आपस में लेने – देने की छूट हो वैसे एक मांड़ली वाले सांभोगिक कहलाते हैं।) उन्हें कोई दोष लगे तो अन्योन्य आलोचना करना कल्पे, यद वहाँ कोई उचित आलोचना दाता हो तो उनके पास से आलोचना करना कल्पे। यदि वहाँ कोई उचित न हो तो आपस में आलोचना करना कल्पे, लेकिन वो सांभोगिक साधु | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-५ | Hindi | 146 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे निग्गंथा य निग्गंथीओ य संभोइया सिया, नो ण्हं कप्पइ अन्नमन्नस्स वेयावच्चं कारवेत्तए अत्थियाइं त्थ केइ वेयावच्चकरे कप्पइं ण्हं वेयावच्चं कारवेत्तए नत्थियाइं त्थ केइ वेयावच्चकरे एव ण्हं कप्पइ अन्नमन्नस्स वेयावच्चं कारवेत्तए। Translated Sutra: देखो सूत्र १४५ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-५ | Hindi | 147 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] निग्गंथं च णं राओ वा वियाले वा दीहपट्ठो लूसेज्जा इत्थी वा पुरिसं ओमज्जेज्जा पुरिसो वा इत्थिं ओमज्जेज्जा। एवं से कप्पइ, एवं से चिट्ठइ, परिहारं च णो पाउणइ–एस कप्पे थेरकप्पियाणं। एवं से नो कप्पइ, एवं से नो चिट्ठइ, परिहारं च पाउणइ–एस कप्पे जिनकप्पियाणं। Translated Sutra: साधु या साध्वी को रात में या संध्या के वक्त लम्बा साँप डँस ले तब साधु स्त्री के पास या साध्वी पुरुष से दवाई करवाए ऐसा अपवाद मार्ग में स्थविर कल्पी को कल्पे। ऐसे अपवाद का सेवन करनेवाला स्थविर कल्पी को परिहार तप प्रायश्चित्त भी नहीं आता। यह स्थविर कल्प का आचार कहा। जिनकल्पी को इस तरह अपवाद मार्ग का सेवन न कल्पे, | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-६ | Hindi | 148 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] भिक्खू य इच्छेज्जा नायविहिं एत्तए, नो से कप्पइ थेरे अनापुच्छित्ता नायविहिं एत्तए, कप्पइ से थेरे आपुच्छित्ता नायविहिं एत्तए। थेरा य से वियरेज्जा, एवं से कप्पइ नायविहिं एत्तए।
थेरा य से नो वियरेज्जा, एवं से नो कप्पइ नायविहिं एत्तए। जं तत्थ थेरेहिं अविइण्णे नायविहिं एइ, से संतरा छेए वा परिहारे वा।
नो से कप्पइ अप्पसुयस्स अप्पागमस्स एगाणियस्स नायविहिं एत्तए। कप्पइ से जे तत्थ बहुस्सुए बब्भागमे तेण सद्धिं नायविहिं एत्तए।
तत्थ से पुव्वागमणेणं पुव्वाउत्ते चाउलोदणे, पच्छाउत्ते भिलिंगसूवे, कप्पइ से चाउलोदणे पडिग्गाहेत्तए, नो से कप्पइ भिलिंगसूवे पडिग्गाहेत्तए।
तत्थ Translated Sutra: जो किसी साधु अपने रिश्तेदार के घर जाना चाहे तो स्थविर को पूछे बिना जाना न कल्पे, पूछने के बाद भी यदि जो स्थविर आज्ञा दे तो कल्पे और आज्ञा न दे तो न कल्पे। यदि आज्ञा बिना जाए तो जितने दिन रहे उतना छेद या तप प्रायश्चित्त आता है। अल्पसूत्री या आगम के अल्पज्ञाता को अकेले ही अपने रिश्तेदार के वहाँ जाना न कल्पे। दूसरे | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-६ | Hindi | 149 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] आयरिय-उवज्झायस्स गणंसि पंच अइसेसा पन्नत्ता, तं जहा–आयरिय-उवज्झाए अंतो उवस्सयस्स पाए निगिज्झिय-निगिज्झिय पप्फोडेमाणे वा पमज्जेमाणे वा नातिक्कमति।
आयरिय-उवज्झाए अंतो उवस्सयस्स उच्चार-पासवणं विगिंचमाणे वा विसोहेमाणे वा नातिक्कमति
आयरिय-उवज्झाए पभू वेयावडियं इच्छाए करेज्जा इच्छाए नो करेज्जा।
आयरिय-उवज्झाए अंतो उवस्सयस्स एगाणिए एगरायं वा दुरायं वा वसमाणे नातिक्कमति।
आयरिय-उवज्झाए बाहिं उवस्सयस्स एगाणिए एगरायं वा दुरायं वा वसमाणे नातिक्कमति। Translated Sutra: आचार्य – उपाध्याय को गण के विषय में पाँच अतिशय बताए हैं। उपाश्रय में पाँव घिसकर पूंजे या विशेष प्रमार्जे तो जिनाज्ञा का उल्लंघन नहीं होता, उपाश्रय में मल – मूत्र का त्याग करे, शुद्धि करे, वैयावच्च करने का सामर्थ्य हो तो ईच्छा हो तो वैयावच्च करे, ईच्छा न हो तो वैयावच्च न करे, उपाश्रय में एक – दो रात्रि निवास करे | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-६ | Hindi | 150 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] गणावच्छेइयस्स गणंसि दो अइसेसा पन्नत्ता, तं जहा–गणावच्छेइए अंतो उवस्सयस्स एगाणिए एगरायं वा दुरायं वा वसमाणे नातिक्कमति।
गणावच्छेइए बाहिं उवस्सयस्स एगाणिए एगरायं वा दुरायं वा वसमाणे नातिक्कमति। Translated Sutra: गणावच्छेदक के गण के लिए दो अतिशय बताए हैं। गणावच्छेदक उपाश्रय में या उपाश्रय के बाहर एक या दो रात निवास करे तो जिनाज्ञा का उल्लंघन नहीं होता। | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-६ | Hindi | 151 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से गामंसि वा जाव सन्निवेसंसि वा एगवगडाए एगदुवाराए एगनिक्खमणपवेसाए नो कप्पइ बहूणं अगडसुयाणं एगयओ वत्थए। अत्थियाइं त्थ केइ आयारपकप्पधरे नत्थियाइं त्थ केइ छेए वा परिहारे वा, नत्थियाइं त्थ केइ आयारपकप्पधरे से संतरा छेए वा परिहारे वा। Translated Sutra: वो गाँव, नगर, राजधानी यावत् संनिवेश के लिए, एक ही आँगन, एक ही द्वार – प्रवेश, निर्गमन का एक ही मार्ग हो वहाँ कईं अतिथि साधु को (श्रुत के अज्ञान को) ईकट्ठे होकर रहना न कल्पे। यदि वहाँ आचार प्रकल्प के ज्ञात साधु हो तो रहना कल्पे लेकिन यदि न हो तो वहाँ जितने दिन रहे उतने दिन का तप या छेद प्रायश्चित्त आता है। | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-६ | Hindi | 152 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से गामंसि वा जाव सन्निवेसंसि वा अभिनिव्वगडाए अभिनिदुवाराए अभिनिक्खमण-पवेसाए नो कप्पइ बहूण वि अगडसुयाणं एगयओ वत्थए। अत्थियाइं त्थ केइ आयारपकप्पधरे जे तत्तियं रयणिं संवसइ नत्थियाइं त्थ केइ छेए वा परिहारे वा, नत्थियाइं त्थ केइ आयारपकप्पधरे जे तत्तियं रयणिं संवसइ सव्वेसिं तेसिं तप्पत्तियं छेए वा परिहारे वा। Translated Sutra: वो गाँव यावत् संनिवेश के लिए अलग वाड़ हो, दरवाजे और आने – जाने के मार्ग भी अलग हो वहाँ कईं अगीतार्थ साधु को और श्रुत अज्ञानी को ईकट्ठे होकर रहना न कल्पे। यदि वहाँ कोई एक आचार प्रकल्प – निसीह आदि को जाननेवाले हो तो उनके साथ तीन रात में आकर साथ रहना कल्पे। ऐसा करते – करते किसी छेद या परिहार तप प्रायश्चित्त नहीं | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-६ | Hindi | 153 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से गामंसि वा जाव सन्निवेसंसि वा अभिनिव्वगडाए अभिनिदुवाराए अभिनिक्खमण-पवेसाए नो कप्पइ बहुसुयस्स बब्भागमस्स एगाणियस्स भिक्खुस्स वत्थए, किमंग पुणं अप्पागमस्स अप्पसुयस्स? Translated Sutra: वो गाँव यावत् संनिवेश के लिए कईं वाड़ – दरवाजा आने – जाने का मार्ग हो वहाँ बहुश्रुत या कईं आगम के ज्ञाता का अकेले रहना न कल्पे, यदि उन्हें न कल्पे तो अल्पश्रुतधर या अल्प आगमज्ञाता को किस तरह कल्पे ? यानि न कल्पे, लेकिन एक ही वाड़, एक दरवाजा, आने – जाने का एक ही मार्ग हो वहाँ बहुश्रुत – आगमज्ञाता साधु एकाकीपन से रहना | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-६ | Hindi | 154 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से गामंसि वा जाव सन्निवेसंसि वा एगवगडाए एगदुवाराए एगनिक्खमण-पवेसाए कप्पइ बहुसुयस्स बब्भागमस्स एगाणियस्स भिक्खुस्स वत्थए उभओ कालं भिक्खुभावं पडिजागरमाणस्स। Translated Sutra: देखो सूत्र १५३ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-६ | Hindi | 155 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जत्थ एए बहवे इत्थीओ य पुरिसा य पण्हावेंति तत्थ से समणे निग्गंथे अन्नयरंसि अचित्तंसि सोयंसि सुक्कपोग्गले निग्घाएमाणे हत्थकम्मपडिसेवणपत्ते आवज्जइ मासियं परिहारट्ठाणं अनुग्घाइयं।
जत्थ एए बहवे इत्थीओ य पुरिसा य पण्हावेंति तत्थ से समणे निग्गंथे अन्नयरंसि अचित्तंसि सोयंसि सुक्कपोग्गले निग्घाएमाणे मेहुणपडिसेवणपत्ते आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं अनुग्घाइयं। Translated Sutra: जिस जगह कईं स्त्री – पुरुष मोह के उदय से मैथुन कर्म प्रारम्भ कर रहे हो वो देखकर श्रमण – दूसरे किसी अचित्त छिद्र में शुक्र पुद्गल नीकाले या हस्तकर्म भाव से सेवन करे तो एक मास का गुरु प्रायश्चित्त आता है। लेकिन यदि हस्तकर्म की बजाय मैथुन भाव से सेवन करे तो गुरु चौमासी प्रायश्चित्त आता है। | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-६ | Hindi | 156 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा निग्गंथिं अन्नगणाओ आगयं खुयायारं सबलायारं भिन्नायारं संकिलिट्ठायारं चरित्तं तस्स ठाणस्स अनालोयावेत्ता अपडिक्कमावेत्ता अनिन्दावेत्ता अगरहावेत्ता अविउट्टावेत्ता अविसोहावेत्ता अकरणाए अणब्भुट्ठावेत्ता अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं अपडिवज्जावेत्ता उवट्टावेत्तए वा संभुंजित्तए वा संवसित्तए वा तासि इत्तरियं दिसं वा अनुदिसं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा। Translated Sutra: साधु या साध्वी को दूसरे गण से आए हुए, स्वगण में रहे साध्वी या जो खंड़ित – शबल भेदित या संक्लिष्ट आचारवाले हैं। और फिर जिस साध्वी ने उस पापस्थान की आलोचना, प्रतिक्रमण, निंदा, गर्हा, निर्मलता, विशुद्धि नहीं की, न करने के लिए तत्पर नहीं हो, दोष अनुसार उचित प्रायश्चित्त नहीं किया, ऐसे साध्वी को साता पूछना, संवास करना, | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-६ | Hindi | 157 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कप्पइ निग्गंथाण वा अन्नगणाओ आगयं जाव ठाणस्स आलोयावेत्ता पडिक्कमावेत्ता निन्दावेत्ता गरहावेत्ता विउद्दावेत्ता विसोहावेत्ता अकरणाए अब्भुट्ठावेत्ता अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं पडिवज्जावेत्ता उवट्ठावेत्तए वा धारेत्तए वा। Translated Sutra: देखो सूत्र १५६ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-६ | Hindi | 158 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा निग्गंथिं खुयायारं जाव अपडिक्कमावेत्ता अहारिहं पायच्छित्तं अपडिवज्जावेत्ता उवट्टावेत्तए वा संभुंजित्तए वा संवसित्तए वा तीसे इत्तरियं दिसं वा अनुदिसं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा। Translated Sutra: देखो सूत्र १५६ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-६ | Hindi | 159 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा निग्गंथिं खुयायारं जाव तस्स ठाणस्स आलोयावेत्ता पडिक्कमावेत्ता अहारिहं पायच्छित्तं पडिवज्जावेत्ता उवट्ठावेत्तए वा संभुंजित्तए वा संवसित्तए वा तीसे इत्तरियं दिसं वा अनुदिसं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा। Translated Sutra: देखो सूत्र १५६ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-७ | Hindi | 160 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे निग्गंथा य निग्गंथीओ य संभोइया सिया, नो कप्पइ निग्गंथीणं निग्गंथे अनापुच्छित्ता निग्गंथिं अन्नगणाओ आगयं खुयायारं सबलायारं भिन्नायारं संकिलिट्ठायारं तस्स ठाणस्स अनालोयावेत्ता अपडिक्कमावेत्ता अहारिहं पायच्छित्तं अपडिवज्जावेत्ता पुच्छित्तए वा वाएत्तए वा उवट्ठावेत्तए वा संभुंजित्तए वा संवसत्तिए वा तीसे इत्तरियं दिसं वा अनुदिसं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा। Translated Sutra: जो साधु – साध्वी सांभोगिक हैं यानि एक सामाचारी वाले हैं वहाँ साधु को पूछे बिना साध्वी खंड़ित, सबल, भेदित या संक्लिष्ट आचारवाले किसी अन्य गण के साध्वी को उसे पापस्थानक की आलोचना, प्रतिक्रमण, प्रायश्चित्त आदि किए बिना उनकी शाता पूछना, वांचना देना, एक मंड़लीवाले के साथ भोजन करना, साथ रहना, थोड़े वक्त या हंमेशा के लिए | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-७ | Hindi | 161 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे निग्गंथा य निग्गंथीओ य संभोइया सिया, कप्पइ निग्गंथीणं निग्गंथे आपुच्छित्ता निग्गंथिं अन्नगणाओ आगयं खुयायारं सबलायारं भिन्नायारं संकिलिट्ठायारं तस्स ठाणस्स आलोयावेत्ता पडिक्कमावेत्ता अहारिहं पायच्छित्तं पडिवज्जावेत्ता पुच्छित्तए वा वाएत्तए वा उवट्ठावेत्तए वा संभुंजित्तए वा संवसित्तए वा तीसे इत्तरियं दिसं वा अनुदिसं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा। Translated Sutra: देखो सूत्र १६० | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-७ | Hindi | 162 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे निग्गंथा य निग्गंथीओ य संभोइया सिया, कप्पइ निग्गंथाणं निग्गंथीओ आपुच्छित्ता वा अनापुच्छित्ता वा निग्गंथिं अन्नगणाओ आगयं खुयायारं सबलायारं भिन्नायारं संकिलिट्ठायारं तस्स ठाणस्स आलोयावेत्ता पडिक्कमावेत्ता अहारिहं पायच्छित्तं पडिवज्जावेत्ता पुच्छित्तए वा वाएत्तए वा उवट्ठावेत्तए वा संभुंजित्तए वा संवसित्तए वा तीसे इत्तरियं दिसं वा अनुदिसं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा। तं च निग्गंथीओ नो इच्छेज्जा, सेहिमेव नियं ठाणं। Translated Sutra: देखो सूत्र १६० | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-७ | Hindi | 163 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे निग्गंथा य निग्गंथीओ य संभोइया सिया, नो ण्हं कप्पइ पारोक्खं पाडिएक्कं संभोइयं विसंभोइयं करेत्तए, कप्पइ ण्हं पच्चक्खं पाडिएक्कं संभोइयं विसंभोइयं करेत्तए।
जत्थेव अन्नमन्नं पासेज्जा तत्थेव एवं वएज्जा–अह णं अज्जो! तुमए सद्धिं इमम्मि कारणम्मि पच्चक्खं संभोगं विसंभोगं करेमि। से य पडितप्पेज्जा एवं से नो कप्पइ पच्चक्खं पाडिएक्कं संभोइयं विसंभोइयं करेत्तए।
से य नो पडितप्पेज्जा एवं से कप्पइ पच्चक्खं पाडिएक्कं संभोइयं विसंभोइयं करेत्तए। Translated Sutra: यदि कोई साधु – साध्वी समान सामाचारी वाले हैं उनमें से किसी साधु को परोक्ष तरह या दूसरे स्थानक में प्रत्यक्ष बताए बिना विसंभोगि यानि मांड़ली बाहर करना न कल्पे। उसी स्थानक में प्रत्यक्ष उनके सन्मुख कहकर विसंभोगि करना कल्पे। सन्मुख हो तब कहे कि हे आर्य ! इस कुछ कारण से अब तुम्हारे साथ सांभोगिक व्यवहार न करूँ। | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-७ | Hindi | 164 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जाओ निग्गंथीओ वा निग्गंथा वा संभोइया सिया, नो ण्हं कप्पइ पच्चक्खं पाडिएक्कं संभोइणिं विसंभोइणिं करेत्तए, कप्पइ ण्हं पारोक्खं पाडिएक्कं संभोइणिं विसंभोइणिं करेत्तए। जत्थेव ताओ अप्पणो आयरिय-उवज्झाए पासेज्जा, तत्थेव एवं वएज्जा–
अह णं भंते! अमुगीए अज्जाए सद्धिं इमम्मि कारणम्मि पारोक्खं पाडिएक्कं संभोगं विसंभोगं करेमि। सा य से पडितप्पेज्जा एवं से नो कप्पइ पारोक्खं पाडिएक्कं संभोइणिं विसंभोइणिं करेत्तए।
सा य से नो पडितप्पेज्जा एवं से कप्पइ पारोक्खं पाडिएक्कं संभोइणिं विसंभोइणिं करेत्तए। Translated Sutra: यदि कोई साधु – साध्वी समान सामाचारी वाले हैं उनमें से किसी साध्वी को दूसरे साध्वी ने प्रत्यक्ष संभोगी – पन में से विसंभोगीपन यानि की मांड़ली व्यवहार बंध करना न कल्पे। परोक्ष तरह अन्य के द्वारा कहकर विसंभोगी पन करना कल्पे। अपने आचार्य – उपाध्याय को ऐसा कहे कि कुछ कारण से अमुक साध्वी के साथ मांड़ली व्यवहार बंध | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-७ | Hindi | 165 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नो कप्पइ निग्गंथाणं निग्गंथिं अप्पणो अट्ठाए पव्वावेत्तए वा मुंडावेत्तए वा सेहावेत्तए वा उवट्ठावेत्तए वा संवसित्तए वा संभुंजित्तए वा तीसे इत्तरियं दिसं वा अनुदिसं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा। Translated Sutra: साधु या साध्वी को अपने खुद के हित के लिए किसी को दीक्षा देना, मुँड़ करना, आचार शीखलाना, शिष्यत्व देना, उपस्थापन करना, साथ रहना, आहार करना या थोड़े दिन या हंमेशा के लिए पदवी देना न कल्पे, दूसरों के लिए दीक्षा देना आदि सब काम करना कल्पे। सूत्र – १६५–१६८ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-७ | Hindi | 166 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कप्पइ निग्गंथाणं निग्गंथिं अन्नेसिं अट्ठाए पव्वावेत्तए वा मुंडावेत्तए वा सेहावेत्तए वा उवट्ठावेत्तए वा संवसित्तए वा संभुंजित्तए वा तीसे इत्तरियं दिसं वा अनुदिसं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा। Translated Sutra: देखो सूत्र १६५ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-७ | Hindi | 167 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नो कप्पइ निग्गंथीणं निग्गंथं अप्पणो अट्ठाए पव्वावेत्तए वा मुंडावेत्तए वा सेहावेत्तए वा उवट्ठावेत्तए वा संवसित्तए वा संभुंजित्तए वा तीसे इत्तरियं दिसं वा अनुदिसं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा। Translated Sutra: देखो सूत्र १६५ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-७ | Hindi | 168 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कप्पइ निग्गंथीणं निग्गंथं अन्नेसिं अट्ठाए पव्वावेत्तए वा मुंडावेत्तए वा सेहावेत्तए वा उवट्ठावेत्तए वा संवसित्तए वा संभुंजित्तए वा तीसे इत्तरियं दिसं वा अनुदिसं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा। Translated Sutra: देखो सूत्र १६५ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-७ | Hindi | 169 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नो कप्पइ निग्गंथीणं विइगिट्ठं दिसं वा अनुदिसं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा। Translated Sutra: साध्वी को विकट दिशा में विहार करना या धारण करना न कल्पे, साधु को कल्पे। सूत्र – १६९, १७० | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-७ | Hindi | 170 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कप्पइ निग्गंथाणं विइगिट्ठं दिसं वा अनुदिसं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा। Translated Sutra: देखो सूत्र १६९ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-७ | Hindi | 171 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नो कप्पइ निग्गंथाणं विइगिट्ठाइं पाहुडाइं विओसवेत्तए। Translated Sutra: साधु को विकट दिशा के लिए कठिन वचन आदि का प्रायश्चित्त लेकर वहाँ बैठे क्षमापना करना न कल्पे, साध्वी को कल्पे। सूत्र – १७१, १७२ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-७ | Hindi | 172 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कप्पइ निग्गंथीणं विइगिट्ठाइं पाहुडाइं विओसवेत्तए। Translated Sutra: देखो सूत्र १७१ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-७ | Hindi | 173 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा विइगिट्ठे काले सज्झायं उदिसित्तए करेत्तए। Translated Sutra: साधु – साध्वी को विकाल में स्वाध्याय करना न कल्पे, यदि साधु की निश्रा – आज्ञा हो तो साध्वी को विकाल में भी स्वाध्याय करना कल्पे। सूत्र – १७३, १७४ |