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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-२ स्थान |
Hindi | 234 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! अनुत्तरोववाइयाणं देवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पन्नत्ता? कहि णं भंते! अनुत्तरो-ववाइया देवा परिवसंति? गोयमा! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ उड्ढं चंदिम-सूरिय-गह-नक्खत्त-तारारूवाणं बहूइं जोयणसयाइं बहूइं जोयणसहस्साइं बहूइं जोयणसतसहस्साइं बहुगीओ जोयणकोडीओ बहुगीओ जोयणकोडाकोडीओ उड्ढं दूरं उप्पइत्ता सोहम्मीसान-सणंकुमार-माहिंद-बंभलोय-लंतग-सुक्क-सहस्सार-आणय-पाणय-अच्चुयकप्पा तिन्नि य अट्ठारसुत्तरे गेवेज्ज-विमानावाससते बीतीवतित्ता तेण परं दूरं गता नीरया निम्मला वितिमिरा विसुद्धा पंचदिसिं पंच अनुत्तरा महतिमहालया विमाना Translated Sutra: भगवन् ! पर्याप्तक और अपर्याप्तक अनुत्तरौपपातिक देवों के स्थान कहाँ हैं ? गौतम ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के अत्यधिक सम एवं रमणीय भूभाग से ऊपर यावत् तीनों ग्रैवेयकप्रस्तटों के विमानावासों को पार करके उससे आगे सुदूर स्थित, पाँच दिशाओंमें रज रहित, निर्मल, अन्धकाररहित एवं विशुद्ध बहुत बड़े पाँच अनुत्तर विमान हैं। | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-२ स्थान |
Hindi | 235 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! सिद्धाणं ठाणा पन्नत्ता? कहि णं भंते! सिद्धा परिवसंति? गोयमा! सव्वट्ठसिद्धस्स महाविमानस्स उवरिल्लाओ थूभियग्गाओ दुवालस जोयणे उड्ढं अबाहाए, एत्थ णं ईसीपब्भारा नामं पुढवी पन्नत्ता– पणतालीसं जोयणसतसहस्साणि आयामविक्खंभेणं, एगा जोयणकोडी बायालीसं च सतसहस्साइं तीसं च सहस्साइं दोन्नि य अउणापण्णे जोयणसते किंचि विसेसाहिए परिक्खेवेणं पन्नत्ता। ईसीपब्भाराए णं पुढवीए बहुमज्झदेसभाए अट्ठजोयणिए खेत्ते अट्ठ जोयणाइं बाहल्लेणं पन्नत्ते, ततो अनंतरं च णं माताए माताए–पएसपरिहाणीए परिहायमाणी-परिहायमाणी सव्वेसु चरिमंतेसु मच्छियपत्तातो तनुयरी अंगुलस्स असंखेज्जतिभागं Translated Sutra: भगवन् ! सिद्धों के स्थान कहाँ हैं ? गौतम! सर्वार्थसिद्ध विमान की ऊपरी स्तूपिका के अग्रभाग से १२ योजन ऊपर ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी है, जिसकी लम्बाई – चौड़ाई ४५ लाख योजन है। उसकी परिधि योजन १४२०३२४९ से कुछ अधिक है। ईषत्प्राग्भारा – पृथ्वी के बहुत मध्यभाग में ८ योजन का क्षेत्र है, जो आठ योजन मोटा है। उसके अनन्तर | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-३ अल्पबहुत्त्व |
Hindi | 261 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एएसि णं भंते! नेरइयाणं तिरिक्खजोणियाणं मनुस्साणं देवाणं सिद्धाण य पंचगतिसमासेणं कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा मनुस्सा, नेरइया असंखेज्जगुणा, देवा असंखेज्जगुणा, सिद्धा अनंतगुणा, तिरिक्खजोणिया अनंतगुणा।
एतेसि णं भंते! नेरइयाणं तिरिक्खजोणियाणं तिरिक्खजोणिणीणं मनुस्साणं मनुस्सीणं देवाणं देवीणं सिद्धाण य अट्ठगतिसमासेणं कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवाओ मनुस्सीओ, मनुस्सा असंखेज्जगुणा, नेरइया असंखेज्ज-गुणा, तिरिक्खजोणिणीओ असंखेज्जगुणाओ, देवा असंखेज्जगुणा, देवीओ संखेज्जगुणाओ, Translated Sutra: भगवन् ! नारकों, तिर्यंचों, मनुष्यों, देवों और सिद्धों की पाँच गतियों की अपेक्षा से संक्षेप में कौन किनसे अल्प हैं, बहुत हैं, तुल्य हैं अथवा विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सबसे थोड़े मनुष्य हैं, नैरयिक असंख्यातगुणे हैं, देव असंख्यातगुणे हैं, देव असंख्यातगुणे हैं, उनसे सिद्ध अनन्तगुणे हैं और (उनसे भी) तिर्यंचयोनिक जीव अनन्तगुणे | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-३ अल्पबहुत्त्व |
Hindi | 262 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एतेसि णं भंते! सइंदियाणं एगिंदियाणं बेइंदियाणं तेइंदियाणं चउरिंदियाणं पंचेंदियाणं अणिंदियाण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा पंचेंदिया, चउरिंदिया विसेसाहिया, तेइंदिया विसेसाहिया, बेइंदिया विसेसाहिया, अनिंदिया अनंतगुणा, एगिंदिया अनंतगुणा, सइंदिया विसेसाहिया।
एतेसि णं भंते! सइंदियाणं एगिंदियाणं बेइंदियाणं तेइंदियाणं चउरिंदियाणं पंचेंदियाणं अपज्जत्तगाणं कतरे कतरे-हिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा पंचेंदिया अप्पज्जत्तगा, चउरिंदिया अपज्जत्तगा विसेसाहिया, तेइंदिया अपज्जत्तगा Translated Sutra: भगवन् ! इन इन्द्रिययुक्त, एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय और अनिन्द्रियों में कौन किन से अल्प, बहुत, तुल्य और विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सबसे थोड़े पंचेन्द्रिय जीव हैं, चतुरिन्द्रिय जीव विशेषाधिक हैं, त्रीन्द्रिय जीव विशेषाधिक हैं, द्वीन्द्रिय जीव विशेषाधिक हैं, अनिन्द्रिय जीव | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-३ अल्पबहुत्त्व |
Hindi | 263 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एतेसि णं भंते! सकाइयाणं पुढविकाइयाणं आउकाइयाणं तेउकाइयाणं वाउकाइयाणं वणस्सति-काइयाणं अकाइयाण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा तसकाइया, तेउकाइया असंखेज्जगुणा, पुढविकाइया विसेसाहिया, आउकाइया विसेसाहिया, वाउकाइया विसेसाहिया, अकाइया अनंतगुणा, वणस्सइकाइया अनंतगुणा, सकाइया विसेसाहिया।
एतेसि णं भंते! सकाइयाणं पुढविकाइयाणं आउकाइयाणं तेउकाइयाणं वाउकाइयाणं वणस्सतिकाइयाणं तसकाइयाण य अपज्जत्तगाणं कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा तसकाइया अपज्जत्तगा, तेउकाइया अपज्जत्तगा Translated Sutra: भगवन् ! इन सकायिक, पृथ्वीकायिक यावत् त्रसकायिक और अकायिक जीवों में से कौन यावत् विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सबसे अल्प त्रसकायिक हैं, तेजस्कायिक असंख्यातगुणे हैं, पृथ्वीकायिक विशेषाधिक हैं, अप्कायिक विशेषाधिक हैं, वायुकायिक विशेषाधिक हैं, अकायिक अनन्तगुणे हैं, वनस्पतिकायिक अनन्तगुणे हैं, और (उनसे भी) सकायिक | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-३ अल्पबहुत्त्व |
Hindi | 264 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एतेसि णं भंते! सुहुमाणं सुहुमपुढविकाइयाणं सुहुमआउकाइयाणं सुहुमतेउकाइयाणं सुहुम-वाउकाइयाणं सुहुमवणस्सइकाइयाणं सुहुमणिओयाण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा सुहुमतेउकाइया, सुहुमपुढविकाइया विसेसाहिया, सुहुम-आउकाइया विसेसाहिया, सुहुमवाउकाइया विसेसाहिया, सुहुमनिगोदा असंखेज्जगुणा, सुहुम-वणस्सइकाइया अनंतगुणा, सुहुमा विसेसाहिया।
एतेसि णं भंते! सुहुमअपज्जत्तगाणं सुहुमपुढविकाइयापज्जत्तयाणं सुहुमआउकाइया-पज्जत्तयाणं सुहुमतेउकाइयापज्जत्तयाणं सुहुमवाउकाइयापज्जत्तयाणं सुहुमवणस्सइकाइयापज्ज-त्तयाणं सुहुमनिगोदापज्जत्तयाणं Translated Sutra: भगवन् ! इन सूक्ष्म, सूक्ष्म पृथ्वीकायिक, सूक्ष्म अप्कायिक, सूक्ष्म तेजस्कायिक, सूक्ष्म वायुकायिक, सूक्ष्म वनस्पतिकायिक एवं सूक्ष्मनिगोदों में से कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सबसे अल्प सूक्ष्म तेजस्कायिक हैं, सूक्ष्म पृथ्वीकायिक विशेषाधिक हैं, सूक्ष्म अप्कायिक विशेषाधिक हैं, सूक्ष्म | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-३ अल्पबहुत्त्व |
Hindi | 265 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एतेसि णं भंते! बादराणं बादरपुढविकाइयाणं बादरआउकाइयाणं बादरतेउकाइयाणं बादर-वाउकाइयाणं बादरवणस्सइकाइयाणं पत्तेयसरीरबादरवणस्सइकाइयाणं बादरनिगोदाणं बादरतस-काइयाण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा बादरतसकाइया, बादरा तेउकाइया असंखेज्जगुणा, पत्तेयसरीरबादरवणस्सइकाइया असंखेज्ज-गुणा, बादरा निगोदा असंखेज्जगुणा, बादरपुढविकाइया असंखेज्जगुणा, बादरआउकाइया असंखेज्जगुणा, बादरवाउकाइया असंखेज्जगुणा, बादरवणस्सइकाइया अनंतगुणा, बादरा विसेसाहिया।
एतेसि णं भंते! बादरअपज्जत्तगाणं बादरपुढविकाइयअपज्जत्तगाणं बादरआउकाइय-अपज्जत्तगाणं Translated Sutra: भगवन् ! इन बादर जीवों, बादर पृथ्वीकायिकों, बादर अप्कायिकों, बादर तेजस्कायिकों, बादर वायु – कायिकों, बादर वनस्पतिकायिकों, प्रत्येकशरीर बादर वनस्पतिकायिकों, बादर निगोदों और बादर त्रसकायिकों में से कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सबसे थोड़े बादर त्रसकायिक हैं, बादर तेजस् – कायिक असंख्येयगुणे | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-३ अल्पबहुत्त्व |
Hindi | 266 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एतेसि णं भंते! सुहुमाणं सुहुमपुढविकाइयाणं सुहुमआउकाइयाणं सुहुमतेउकाइयाणं सुहुम-वाउकाइयाणं सुहुमवणस्सइकाइयाणं सुहुमनिगोदाणं बादराणं बादरपुढविकाइयाणं बादरआउ-काइयाणं बादरतेउकाइयाणं बादरवाउकाइयाणं बादरवणस्सइकाइयाणं पत्तेयसरीरबादरवणस्सइ-काइयाणं बादरनिगोदाणं बादरतसकाइयाणं य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा?
गोयमा! सव्वत्थोवा बादरतसकाइया, बादरतेउकाइया असंखेज्जगुणा, पत्तेयसरीरबादर-वणस्सइकाइया असंखेज्जगुणा, बादरनिगोदा असंखेज्जगुणा, बादरपुढविकाइया असंखेज्जगुणा, बादरआउकाइया असंखेज्जगुणा, बादरवाउकाइया असंखेज्जगुणा, सुहुमतेउकाइया Translated Sutra: भगवन् ! इन सूक्ष्मजीवों, सूक्ष्म – पृथ्वीकायिकों यावत् सूक्ष्म वनस्पतिकायिकों, सूक्ष्मनिगोदों तथा बादर – जीवों, बादर – पृथ्वीकायिकों यावत् बादर – वनस्पतिकायिकों, प्रत्येकशरीर – बादर – वनस्पतिकायिकों, बादर – निगोदों और बादर – त्रसकायिकों में से कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सबसे | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-३ अल्पबहुत्त्व |
Hindi | 267 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एतेसि णं भंते! जीवाणं सजोगीणं मनजोगीणं वइजोगीणं कायजोगीणं अजोगीणं य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा मनजोगी, वइजोगी असंखेज्जगुणा, अजोगी अनंतगुणा, कायजोगी अनंतगुणा, सजोगी विसेसाहिया। Translated Sutra: भगवन् ! इन सयोगी, मनोयोगी, वचनयोगी, काययोगी और अयोगी जीवों में से कौन यावत् विशेषाधिक हैं? गौतम ! सबसे अल्प जीव मनोयोगी हैं, वचनयोगी जीव असंख्यातगुणे हैं, अयोगी अनन्तगुणे हैं, काययोगी अनन्तगुणे हैं, उनसे भी सयोगी विशेषाधिक हैं। | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-३ अल्पबहुत्त्व |
Hindi | 268 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एएसि णं भंते! जीवाणं सवेदगाणं इत्थीवेदगाणं पुरिसवेदगाणं नपुंसगवेदगाणं अवेदगाण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा पुरिसवेदगा, इत्थीवेदगा संखेज्जगुणा, अवेदगा अनंतगुणा, नपुंसगवेदगा अनंतगुणा, सवेयगा विसेसाहिया। Translated Sutra: भगवन् ! इन सवेदी, स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी, नपुंसकवेदी और अवेदी जीवों में से कौन यावत् विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सबसे थोड़े जीव पुरुषवेदी है, स्त्रीवेदी संख्यातगुणे हैं, अवेदी अनन्तगुणे हैं, नपुंसकवेदी अनन्तगुणे हैं, उनसे भी सवेदी विशेषाधिक हैं। | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-३ अल्पबहुत्त्व |
Hindi | 269 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एतेसि णं भंते! जीवाणं सकसाईणं कोहकसाईणं मानकसाईणं मायकसाईणं लोभकसाईणं अकसाईण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा अकसाई, मानकसाई अनंतगुणा, कोहकसाई विसेसाहिया, मायकसाई विसेसाहिया, लोहकसाई विसेसाहिया, सकसाई विसेसाहिया। Translated Sutra: भगवन् ! इन सकषायी, क्रोधकषायी यावत् लोभकषायी और अकषायी जीवों में से कौन यावत् विशेषा – धिक हैं ? गौतम ! सबसे थोड़े जीव अकषायी हैं, मानकषायी जीव अनन्तगुणे हैं, क्रोधकषायी जीव विशेषाधिक हैं, मायाकषायी जीव विशेषाधिक हैं, लोभकषायी विशेषाधिक हैं और (उनसे भी) सकषायी जीव विशेषाधिक हैं। | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-३ अल्पबहुत्त्व |
Hindi | 270 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एएसि णं भंते! जीवाणं सलेस्साणं किण्हलेस्साणं नीललेस्साणं काउलेस्साणं तेउलेस्साणं पम्ह-लेस्साणं सुक्कलेस्साणं अलेस्साण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा सुक्कलेस्सा, पम्हलेस्सा संखेज्जगुणा, तेउलेस्सा संखेज्जगुणा, अलेस्सा अनंतगुणा, काउलेस्सा अनंतगुणा, नीललेस्सा विसेसाहिया, किण्हलेस्सा विसेसाहिया, सलेस्सा विसेसाहिया। Translated Sutra: भगवन् ! इन सलेश्यों, कृष्णलेश्यावालों, यावत् शुक्ललेश्यावालों एवं लेश्यारहित जीवों में से कौन यावत् विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सबसे थोड़े शुक्ललेश्यी , पद्मलेश्यी संख्यातगुणे हैं, तेजोलेश्यी संख्यातगुणे हैं, लेश्या – रहित अनन्तगुणे हैं, कापोतलेश्यी अनन्तगुणे, नीललेश्यी विशेषाधिक; कृष्णलेश्यी विशेषाधिक, | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-३ अल्पबहुत्त्व |
Hindi | 271 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एतेसि णं भंते! जीवाणं सम्मद्दिट्ठीणं मिच्छद्दिट्ठीणं सम्मामिच्छादिट्ठीणं च कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा?
गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा सम्मामिच्छदिट्ठी, सम्मद्दिट्ठी अनंतगुणा, मिच्छद्दिट्ठी अनंतगुणा। Translated Sutra: भगवन् ! सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि एवं सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवों में कौन यावत् विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सबसे थोड़े सम्यग्मिथ्यादृष्टि हैं, सम्यग्दृष्टि जीव अनन्तगुणे हैं उनसे भी मिथ्यादृष्टि जीव अनन्तगुणे हैं। | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-३ अल्पबहुत्त्व |
Hindi | 272 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एतेसि णं भंते! जीवाणं आभिनिबोहियनाणीणं सुतनाणीणं ओहिनाणीणं मनपज्जवनाणीणं केवलनाणीण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा?
गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा मनपज्जवनाणी, ओहिनाणी असंखेज्जगुणा, आभिनिबोहिय- नाणी सुयनाणी य दो वि तुल्ला विसेसाहिया, केवलनाणी अनंतगुणा।
एतेसि णं भंते! जीवाणं मइअन्नाणीणं सुतअन्नाणीणं विभंगनाणीण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा?
गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा विभंगनाणी, मइअन्नाणी सुतअन्नाणी य दो वि तुल्ला अनंतगुणा।
एतेसि णं भंते! जीवाणं आभिनिबोहियनाणीणं सुयनाणीणं ओहिनाणीणं मनपज्जव-नाणीणं केवलनाणीणं Translated Sutra: भगवन् ! आभिनिबोधिकज्ञानी यावत् केवलज्ञानी जीवों में से कौन यावत् विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सबसे अल्प मनःपर्यवज्ञानी हैं, अवधिज्ञानी असंख्यातगुणे हैं, आभिनिबोधिकज्ञानी और श्रुतज्ञानी; ये दोनों तुल्य हैं और विशेषाधिक हैं, उनसे केवलज्ञानी अनन्तगुणे हैं। भगवन् ! इन मति – अज्ञानी, श्रुत – अज्ञानी और विभंगज्ञानी | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-३ अल्पबहुत्त्व |
Hindi | 273 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एतेसि णं भंते! जीवाणं चक्खुदंसणीणं अचक्खुदंसणीणं ओहिदंसणीणं केवलदंसणीण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा?
गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा ओहिदंसणी, चक्खुदंसणी असंखेज्जगुणा, केवलदंसणी अनंतगुणा, अचक्खुदंसणी अनंतगुणा। Translated Sutra: भगवन् ! इन चक्षुदर्शनी यावत् केवलदर्शनी जीवों में से कौन यावत् विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सबसे थोड़े अवधिदर्शनी हैं, चक्षुदर्शनी जीव असंख्यातगुणे हैं, केवलदर्शनी अनन्तगुणे हैं, उनसे भी अचक्षुदर्शनी जीव अनन्तगुणे हैं | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-३ अल्पबहुत्त्व |
Hindi | 274 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एतेसि णं भंते! जीवाणं संजयाणं असंजयाणं संजयासंजयाणं नोसंजय-नोअसंजय-नोसंजता-संजताण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा?
गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा संजता, संजयासंजया असंखेज्जगुणा, नोसंजत-नोअसंजत-नोसंजतासंजता अनंतगुणा, असंजता अनंतगुणा। Translated Sutra: भगवन् ! इन संयतों, असंयतों, संयतासंयतों और नोसंयत – नोअसंयत – नोसंयतासंयत जीवों में ? गौतम ! सबसे अल्प संयत जीव हैं, संयतासंयत असंख्यातगुणे हैं, नोसंयत – नोअसंयत – नोसंयतासंयत जीव अनन्तगुणे हैं, उनसे भी असंयत जीव अनन्तगुणे हैं। | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-३ अल्पबहुत्त्व |
Hindi | 275 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एतेसि णं भंते! जीवाणं सागरोवउत्ताणं अनागारोवउत्ताण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा अनागारोवउत्ता, सागरोवउत्ता संखेज्जगुणा। Translated Sutra: भगवन् ! इन साकारोपयोग – युक्त और अनाकारोपयोग – युक्त जीवों में ? गौतम ! सबसे अल्प अनाकारो – पयोग वाले जीव हैं, उनसे साकारोपयोग वाले जीव संख्यातगुणे हैं। | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-३ अल्पबहुत्त्व |
Hindi | 276 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एतेसि णं भंते! जीवाणं आहारगाणं अनाहारगाण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा अनाहारगा, आहारगा असंखेज्जगुणा। Translated Sutra: भगवन् ! इन आहारकों और अनाहारकजीवों में से ? गौतम ! सबसे कम अनाहारक जीव हैं, उनसे आहारक जीव असंख्यातगुणे हैं। | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-३ अल्पबहुत्त्व |
Hindi | 277 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एतेसि णं भंते! जीवाणं भासगाणं अभासगाण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा भासगा, अभासगा अनंतगुणा। Translated Sutra: भगवन् ! इन भाषक और अभाषक जीवों में ? गौतम ! सबसे अल्प भाषक जीव हैं, उनसे अनन्तगुणे अभाषक हैं। | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-३ अल्पबहुत्त्व |
Hindi | 278 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एतेसि णं भंते! जीवाणं परित्ताणं अपरित्ताणं नोपरित्त-नोअपरित्ताण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा परित्ता, नोपरित्त-नोअपरित्ता अनंतगुणा, अपरित्ता अनंतगुणा। Translated Sutra: भगवन् ! इन परीत, अपरीत और नोपरीत – नोअपरीत जीवों में ? गौतम ! सबसे थोड़े परीत जीव हैं, नोपरीत – नोअपरीत जीव अनन्तगुणे हैं, उनसे भी अपरीत जीव अनन्तगुणे हैं। | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-३ अल्पबहुत्त्व |
Hindi | 279 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एएसि णं भंते! जीवाणं पज्जत्ताण अपज्जत्ताणं नोपज्जत्त-नोअपज्जत्ताण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा नोपज्जत्त-नोअपज्जत्तगा, अपज्जत्तगा अनंतगुणा, पज्जत्तगा संखेज्जगुणा। Translated Sutra: भगवन् ! इन पर्याप्तक, अपर्याप्तक और नोपर्याप्तक – नोअपर्याप्तक जीवों में ? गौतम ! सबसे अल्प नोपर्याप्तक – नोअपर्याप्तक जीव हैं, अपर्याप्तक जीव अनन्तगुणे हैं, उनसे भी पर्याप्तक जीव संख्यातगुणे हैं। | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-३ अल्पबहुत्त्व |
Hindi | 280 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एएसि णं भंते! जीवाणं सुहुमाणं बादराणं नोसुहुम-नोबादराण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा नोसुहुम-नोबादरा, बादरा अनंतगुणा, सुहुमा असंखेज्जगुणा। Translated Sutra: भगवन् ! सूक्ष्म, बादर और नोसूक्ष्म – नोबादर जीवों में ? गौतम ! सबसे अल्प नोसूक्ष्म – नोबादर जीव हैं, बादर जीव अनन्तगुणे हैं, उनसे भी सूक्ष्म जीव असंख्यातगुणे हैं। | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-३ अल्पबहुत्त्व |
Hindi | 281 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एतेसि णं भंते! जीवाणं सण्णीणं असण्णीणं नोसण्णी-नोअसण्णीण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा सण्णी, नोसण्णी-णोअसण्णी अनंतगुणा, असण्णी अनंतगुणा। Translated Sutra: भगवन् ! संज्ञी, असंज्ञी और नोसंज्ञी – नोअसंज्ञी जीवों में ? गौतम ! सबसे अल्प संज्ञी जीव हैं, नोसंज्ञी – नोअसंज्ञी जीव अनन्तगुणे हैं, उनसे भी असंज्ञीजीव अनन्तगुणे हैं। | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-३ अल्पबहुत्त्व |
Hindi | 282 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एतेसि णं भंते! जीवाणं भवसिद्धियाणं अभवसिद्धियाणं नोभवसिद्धिय-नोअभवसिद्धियाण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा अभवसिद्धिया, नोभवसिद्धि-नोअभवसिद्धिया अनंतगुणा, भवसिद्धिया अनंतगुणा। Translated Sutra: भगवन् ! इन भवसिद्धिक, अभवसिद्धिक और नोभवसिद्धिक – नोअभवसिद्धिक जीवों में ? गौतम ! सबसे थोड़े अभवसिद्धिक जीव, नोभवसिद्धिक – नोअभवसिद्धिक जीव अनन्तगुणे उनसे भी भवसिद्धिक जीव अनन्तगुणे हैं | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-३ अल्पबहुत्त्व |
Hindi | 283 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एतेसि णं भंते! धम्मत्थिकाय-अधम्मत्थिकाय-आगासत्थिकाय-जीवत्थिकाय-पोग्गलत्थिकाय-अद्धासमयाणं दव्वट्ठयाए कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! धम्मत्थिकाए अधम्मत्थिकाए आगासत्थिकाए य एए तिन्नि वि तुल्ला दव्वट्ठयाए सव्वत्थोवा, जीवत्थिकाए दव्वट्ठयाए अनंतगुणे, पोग्गलत्थिकाए दव्वट्ठयाए अनंतगुणे, अद्धासमए दव्वट्ठयाए अनंतगुणे।
एतेसि णं भंते! धम्मत्थिकाय-अधम्मत्थिकाय-आगासत्थिकाय-जीवत्थिकाय-पोग्गलत्थि-काय-अद्धासमयाणं पदेसट्ठयाए कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! धम्मत्थिकाए अधम्मत्थिकाए य एते णं दो Translated Sutra: भगवन् ! धर्मास्तिकाय यावत् अद्धा – समय इन द्रव्यों में से, द्रव्य की अपेक्षा से कौन यावत् विशेषाधिक हैं? गौतम ! धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और आकाशास्तिकाय, ये तीनों ही तुल्य हैं तथा द्रव्य की अपेक्षा से सबसे अल्प हैं; जीवास्तिकाय द्रव्य की अपेक्षा से अनन्तगुण हैं; पुद्गलास्तिकाय द्रव्य की अपेक्षा से | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-३ अल्पबहुत्त्व |
Hindi | 284 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एतेसि णं भंते! जीवाणं चरिमाणं अचरिमाण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा अचरिमा, चरिमा अनंतगुणा। Translated Sutra: भगवन् ! इन चरम और अचरम जीवों में से कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? गौतम! अचरम जीव सबसे थोड़े हैं, (उनसे) चरम जीव अनन्तगुणे हैं। | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-३ अल्पबहुत्त्व |
Hindi | 285 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एतेसि णं भंते! जीवाणं पोग्गलाणं अद्धासमयाणं सव्वदव्वाणं सव्वपदेसाणं सव्वपज्जवाण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा, पोग्गला अनंतगुणा, अद्धासमया अनंतगुणा, सव्वदव्वा विसेसाहिया, सव्वपदेसा अनंतगुणा, सव्वपज्जवा अनंतगुणा। Translated Sutra: भगवन् ! इन जीवों, पुद्गलों, अद्धा – समयों, सर्वद्रव्यों, सर्वप्रदेशों और सर्वपर्यायों में प्रश्न – गौतम ! सबसे अल्प जीव हैं, पुद्गल अनन्तगुण हैं, अद्धा – समय अनन्तगुणे हैं, सर्वद्रव्य विशेषाधिक हैं, सर्वप्रदेश अनन्तगुणे हैं, सर्वपर्याय अनन्तगुणे हैं। | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-३ अल्पबहुत्त्व |
Hindi | 294 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एतेसि णं भंते! जीवाणं आउयस्स कम्मस्स बंधगाणं अबंधगाणं पज्जत्ताणं अपज्जत्ताणं सुत्ताणं जागराणं समोहयाणं असमोहयाणं सातावेदगाणं असातावेदगाणं इंदियउवउत्ताणं नोइंदियउवउत्ताणं सागारोवउत्ताणं अनागारोवउत्ताणं य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा?
गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा आउयस्स कम्मस्स बंधगा, अपज्जत्तया संखेज्जगुणा, सुत्ता संखेज्जगुणा, समोहता संखेज्जगुणा, सातावेदगा संखेज्जगुणा, इंदिओवउत्ता संखेज्जगुणा, अनागारोवउत्ता संखेज्जगुणा, सागारोवउत्ता संखेज्जगुणा, नोइंदियउवउत्ता विसेसाहिया, अस्साता-वेदगा विसेसाहिया, असमोहता विसेसाहिया, Translated Sutra: भगवन् ! इन आयुष्यकर्म के बन्धकों और अबन्धकों, पर्याप्तकों और अपर्याप्तकों, सुप्त और जागृत जीवों, समुद्घात करने वालों और न करने वालों, सातावेदकों और असातावेदकों, इन्द्रियोपयुक्तों और नो – इन्द्रियो – पयुक्तों, साकारोपयोग में उपयुक्तों और अनाकारोपयोग में उपयुक्त जीवों में से कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-३ अल्पबहुत्त्व |
Hindi | 296 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एतेसि णं भंते! परमाणुपोग्गलाणं संखेज्जपदेसियाणं असंखेज्जपदेसियाणं अनंतपदेसियाण य खंधाणं दव्वट्ठयाए पदेसट्ठयाए दव्वट्ठपदेसट्ठयाए कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा अनंतपदेसिया खंधा दव्वट्ठयाए, परमाणुपोग्गला दव्वट्ठयाए अनंतगुणा, संखेज्जपदेसिया खंधा दव्वट्ठयाए संखेज्जगुणा, असंखेज्जपदेसिया खंधा दव्वट्ठयाए असंखेज्जगुणा; पदेसट्ठयाए–सव्वत्थोवा अनंतपदेसिया खंधा पदेसट्ठयाए, परमाणुपोग्गला अपदेस-ट्ठयाए अनंतगुणा, संखेज्जपदेसिया खंधा पदेसट्ठयाए संखेज्जगुणा, असंखेज्जपदेसिया खंधा पदेसट्ठयाए असंखेज्जगुणा; दव्वट्ठ-पदेसट्ठयाए–सव्वत्थोवा Translated Sutra: भगवन् ! इन परमाणुपुद्गलों तथा संख्यातप्रदेशिक, असंख्यातप्रदेशिक और अनन्तप्रदेशिक स्कन्धों में ? गौतम ! द्रव्य की अपेक्षा से – १. सबसे थोड़े अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध हैं, २. परमाणुपुद्गल अनन्तगुणे हैं, ३. संख्यात प्रदेशिक स्कन्ध संख्यातगुणे हैं, ४. असंख्यातप्रदेशिक स्कन्ध द्रव्य की अपेक्षा से असंख्यातगुणे | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-४ स्थिति |
Hindi | 298 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइयाणं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं दस वाससहस्साइं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं।
अपज्जत्तनेरइयाणं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं।
पज्जत्तयनेरइयाणं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं दसवाससहस्साइं अंतोमुहुत्तूणाइं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाइं।
रयणप्पभापुढविनेरइयाणं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं दस वाससहस्साइं उक्कोसेणं सागरोवमं।
अपज्जत्तयरयणप्पभापुढविनेरइयाणं भंते! केवतियं कालं ठिई पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेण Translated Sutra: भगवन् ! नैरयिकों की स्थिति कितने काल की है ? गौतम ! जघन्य दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट तैंतीस सागरोपम की। भगवन् ! अपर्याप्तक नैरयिकों की स्थिति कितने काल की है ? गौतम ! जघन्य और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त्त की है। भगवन् ! पर्याप्तक नैरयिकों की स्थिति कितने काल की है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त कम दस हजार वर्ष | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-४ स्थिति |
Hindi | 299 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] देवाणं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं दसवाससहस्साइं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं
अपज्जत्तयदेवाणं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं।
पज्जत्तयदेवाणं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं दस वाससहस्साइं अंतोमुहुत्तूणाइं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाइं।
देवीणं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं दस वाससहस्साइं, उक्कोसेणं पणपन्नं पलिओवमाइं।
अपज्जत्तयदेवीणं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं।
पज्जत्तयदेवीणं Translated Sutra: भगवन् ! देवों की कितने काल की स्थिति है ? गौतम ! जघन्य दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट तैंतीस सागरोपम। अपर्याप्तक देवों की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त है। पर्याप्तक – देवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त कम दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त कम तैंतीस सागरोपम की है। देवियों की स्थिति जघन्य | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-४ स्थिति |
Hindi | 300 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] पुढविकाइयाणं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साइं।
अपज्जत्तयपुढविनेरइयाणं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं।
पज्जत्तयपुढविकाइयाणं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साइं अंतोमुहुत्तूणाइं।
सुहुमपुढविकाइयाणं पुच्छा। गोयमा! जहन्नेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं।
अपज्जत्तयसुहुमपुढविकाइयाणं पुच्छा। गोयमा! जहन्नेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं।
पज्जत्तयसुहुमपुढविकाइयाणं पुच्छा। गोयमा! जहन्नेण वि उक्कोसेण Translated Sutra: भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीवों की कितने काल तक की स्थिति है ? जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त की और उत्कृष्ट बाईस हजार वर्ष। अपर्याप्त पृथ्वीकायिक की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त है। पर्याप्त पृथ्वीकायिक की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त कम बाईस हजार वर्ष है। सूक्ष्म पृथ्वीकायिक | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-४ स्थिति |
Hindi | 301 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] बेइंदियाणं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं बारस संवच्छराइं।
अपज्जत्तबेइंदियाणं पुच्छा। गोयमा! जहन्नेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं।
पज्जत्तबेइंदियाणं पुच्छा। गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं बारस संवच्छराइं अंतो-मुहुत्तूणाइं।
तेइंदियाणं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं एगूणपन्नं रातिंदियाइं।
अपज्जत्ततेइंदियाणं पुच्छा। गोयमा! जहन्नेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं।
पज्जत्ततेइंदियाणं पुच्छा। गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं एगूणपन्नं रातिंदियाइं अंतोमुहुत्तूणाइं।
चउरिंदियाणं Translated Sutra: भगवन् ! द्वीन्द्रिय की कितने काल की स्थिति है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट बारह वर्ष। अपर्याप्त द्वीन्द्रिय स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त है। पर्याप्त द्वीन्द्रिय की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त कम बारह वर्ष है। त्रीन्द्रिय की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-४ स्थिति |
Hindi | 302 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं।
अपज्जत्तयपंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा! जहन्नेण वि उक्कोसेण वि अंतो-मुहुत्तं।
पज्जत्तयपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं अंतोमुहुत्तूणाइं।
सम्मुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्व-कोडी।
अपज्जत्तयसम्मुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा! जहन्नेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं।
पज्जत्तयसम्मुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं Translated Sutra: भगवन् ! पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट तीन पल्योपम है। इनके अपर्याप्त की जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त है। इनके पर्याप्त की जघन्य अन्त – र्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त कम तीन पल्योपम है। सम्मूर्च्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-४ स्थिति |
Hindi | 303 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] मनुस्साणं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं
अपज्जत्तयमनुस्साणं पुच्छा। गोयमा! जहन्नेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं।
पज्जत्तयमनुस्साणं पुच्छा। गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं अंतोमुहुत्तूणाइं।
सम्मुच्छिममनुस्साणं पुच्छा। गोयमा! जहन्नेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं।
गब्भवक्कंतियमनुस्साणं पुच्छा। गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं।
अपज्जत्तयगब्भवक्कंतियमनुस्साणं पुच्छा। गोयमा! जहन्नेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं।
पज्जत्तयगब्भवक्कंतियमनुस्साणं Translated Sutra: भगवन् ! मनुष्यों की कितने काल की स्थिति है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त है और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की है। अपर्याप्तक मनुष्यों की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त्त की है। पर्याप्तक मनुष्यों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त कम तीन पल्योपम है। सम्मूर्च्छिम मनुष्यों | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-४ स्थिति |
Hindi | 304 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] वाणमंतराणं भंते! देवाणं केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं दस वाससहस्साइं, उक्कोसेणं पलिओवमं।
अपज्जत्तयवाणमंतराणं देवाणं पुच्छा। गोयमा! जहन्नेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं।
पज्जत्तयवाणमंतराणं देवाणं पुच्छा। गोयमा! जहन्नेणं दस वाससहस्साइं अंतोमुहुत्तूणाइं, उक्कोसेणं पलिओवमं अंतोमुहुत्तूणं।
वाणमंतरीणं भंते! देवीणं केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं दस वाससहस्साइं, उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं।
अपज्जत्तियाणं भंते! वाणमंतरीणं देवीणं पुच्छा। गोयमा! जहन्नेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं।
पज्जत्तियाणं भंते! वाणमंतरीणं देवीणं पुच्छा। गोयमा! Translated Sutra: भगवन् ! वाणव्यन्तर देवों की स्थिति कितने काल की है ? गौतम ! जघन्य दस हजार वर्ष की है, उत्कृष्ट एक पल्योपम की है। अपर्याप्त वाणव्यन्तर की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त्त की है। पर्याप्तक वाण – व्यन्तर की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त कम दस हजार वर्ष की है और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त कम एक पल्योपम | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-४ स्थिति |
Hindi | 305 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जोइसियाणं भंते! देवाणं केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं पलिओवमट्ठभागो, उक्कोसेणं पलिओवमं वाससतसहस्समब्भहियं।
अपज्जत्तयजोइसियाणं पुच्छा। गोयमा! जहन्नेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं।
पज्जत्तयजोइसियाणं पुच्छा। गोयमा! जहन्नेणं पलिओवमट्ठभागो अंतोमुहुत्तूणो, उक्कोसेणं पलिओवमं वाससतसहस्समब्भहियं अंतोमुहुत्तूणं।
जोइसिणीणं भंते! देवीणं केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं पलिओवमट्ठभागो, उक्कोसेणं अद्ध पलिओवमं पण्णासवाससहस्समब्भहियं।
अपज्जत्तियाणं जोइसिणीणं पुच्छा। गोयमा! जहन्नेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं।
पज्जत्तियाणं जोइसिणीणं Translated Sutra: भगवन् ! ज्योतिष्क देवों की स्थिति कितने काल की है ? गौतम ! जघन्य पल्योपम का आठवाँ भाग है और उत्कृष्ट एक लाख वर्ष अधिक पल्योपम है। अपर्याप्त ज्योतिष्कदेवों की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त है। पर्याप्त ज्योतिष्कदेवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त कम पल्योपम के आठवें भाग की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-४ स्थिति |
Hindi | 306 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] वेमानियाणं भंते! देवाणं केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं पलिओवमं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं।
अपज्जत्तयवेमानियाणं पुच्छा। गोयमा! जहन्नेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं।
पज्जत्तयवेमानियाणं पुच्छा। गोयमा! जहन्नेणं पलिओवमं अंतोमुहुत्तूणं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाइं।
वेमानिणीणं भंते! देवीणं केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं पलिओवमं, उक्कोसेणं पणपन्नं पलिओवमाइं।
अपज्जत्तियाणं वेमानिणीणं देवीणं पुच्छा। गोयमा! जहन्नेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं।
पज्जत्तियाणं वेमानिणीणं देवीणं पुच्छा। गोयमा! जहन्नेणं पलिओवमं Translated Sutra: भगवन् ! वैमानिक देवों की स्थिति कितने काल की है ? जघन्य एक पल्योपम की है और उत्कृष्ट तैंतीस सागरोपम है। अपर्याप्तक वैमानिक देवों की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त है। पर्याप्त वैमानिक देवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त कम एक पल्योपम और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त कम तैंतीस सागरोपम है। वैमानिक | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-५ विशेष |
Hindi | 307 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहा णं भंते! पज्जवा पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा पज्जवा पन्नत्ता, तं जहा–जीवपज्जवा य अजीवपज्जवा य।
जीवपज्जवा णं भंते! किं संखेज्जा असंखेज्जा अनंता? गोयमा! नो संखेज्जा, नो असंखेज्जा, अनंता।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–जीवपज्जवा नो संखेज्जा, नो असंखेज्जा, अनंता? गोयमा! असंखेज्जा नेरइया, असंखेज्जा असुरा, असंखेज्जा नागा, असंखेज्जा सुवण्णा, असंखेज्जा विज्जु -कुमारा, असंखेज्जा अग्गिकुमारा, असंखेज्जा दीवकुमारा, असंखेज्जा उदहिकुमारा, असंखेज्जा दिसाकुमारा, असंखेज्जा वाउकुमारा, असंखेज्जा थणियकुमारा, असंखेज्जा पुढविकाइया, असंखेज्जा आउकाइया, असंखेज्जा तेउकाइया, असंखेज्जा Translated Sutra: भगवन् ! पर्याय कितने प्रकार के हैं ? दो प्रकार के हैं। जीवपर्याय और अजीवपर्याय। भगवन् ! जीव – पर्याय क्या संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ? गौतम ! (वे) अनन्त हैं। भगवन् ! यह किस कारण से कहा जाता है ? गौतम ! असंख्यात नैरयिक हैं, असंख्यात असुर हैं, असंख्यात नागकुमार हैं, यावत् असंख्यात स्तनित – कुमार हैं, असंख्यात | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-५ विशेष |
Hindi | 308 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइयाणं भंते! केवतिया पज्जवा पन्नत्ता? गोयमा! अनंता पज्जवा पन्नत्ता।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–नेरइयाणं अनंता पज्जवा पन्नत्ता? गोयमा! नेरइए नेरइयस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले। पदेसट्ठयाए तुल्ले। ओगाहणट्ठयाए सिए हीने सिय तुल्ले सिय अब्भहिए– जदि हीने असंखेज्ज भागहीने वा संखेज्जभागहीने वा संखेज्जगुणहीने वा असंखेज्जगुणहीने वा। अह अब्भहिए असंखेज्जभागमब्भहिए वा संखेज्जभागमब्भहिए वा संखेज्जगुणमब्भहिए वा असंखेज्जगुण-मब्भहिए वा। ठिईए सिय हीने सिय तुल्ले सिय अब्भहिए– जइ हीने असंखेज्जभागहीने वा संखेज्ज-भागहीने वा संखेज्जगुणहीने वा असंखेज्जगुणहीने वा। अह Translated Sutra: भगवन् ! नैरयिकों के कितने पर्याय हैं? गौतम ! अनन्त। भगवन् ! आप किस हेतु से ऐसा कहते हैं ? गौतम! एक नारक दूसरे नारक से द्रव्य से तुल्य है। प्रदेशों से तुल्य है; अवगाहना से – कथंचित् हीन, कथंचित् तुल्य और कथंचित् अधिक है। यदि हीन है तो असंख्यातभाग अथवा संख्यातभाग हीन है; या संख्यातगुणा अथवा असंख्यात – गुणा हीन | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-५ विशेष |
Hindi | 309 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] असुरकुमाराणं भंते! केवतिया पज्जवा पन्नत्ता? गोयमा! अनंता पज्जवा पन्नत्ता।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–असुरकुमाराणं अनंता पज्जवा पन्नत्ता? गोयमा! असुरकुमारे असुरकुमारस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले। पदेसट्ठयाए तुल्ले। ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिए। ठितीए चउट्ठाणवडिए। कालवण्णपज्जवेहिं छट्ठाणवडिए।
एवं नीलवण्णपज्जवेहिं लोहियवण्णपज्जवेहिं हालिद्दवण्णपज्जवेहिं सुक्किल्लवण्ण-पज्जवेहिं, सुब्भिगंधपज्जवेहिं दुब्भिगंधपज्जवेहिं, तित्तरसपज्जवेहिं कडुयरसपज्जवेहिं कसाय-रसपज्जवेहिं अंबिलरसपज्जवेहिं महुररसपज्जवेहिं, कक्खडफासपज्जवेहिं मउयफासपज्जवेहिं गरुयफासपज्जवेहिं Translated Sutra: भगवन् ! असुरकुमारों के कितने पर्याय हैं ? गौतम ! अनन्त। भगवन् ! किस हेतु से ऐसा कहा जाता है ? गौतम ! एक असुरकुमार दूसरे असुरकुमार से द्रव्य से तुल्य है, प्रदेशों से तुल्य है; अवगाहना और स्थिति से चतुः – स्थानपतित है, इसी प्रकार वर्ण, गन्ध, स्पर्श, ज्ञान, अज्ञान, दर्शन आदि पर्यायों से (पूर्वसूत्रवत्) षट्स्थानपतित | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-५ विशेष |
Hindi | 310 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] पुढविकाइयाणं भंते! केवतिया पज्जवा पन्नत्ता? गोयमा! अनंता पज्जवा पन्नत्ता।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–पुढविकाइयाणं अनंता पज्जवा पन्नत्ता? गोयमा! पुढविकाइए पुढविकाइयस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले। पदेसट्ठयाए तुल्ले। ओगाहणट्ठयाए सिय हीने सिय तुल्ले सिय अब्भहिए– जदि हीने असंखेज्जभागहीने वा संखेज्जभागहीने वा संखेज्जगुणहीने वा असंखेज्ज-गुणहीने वा। अह अब्भहिए असंखेज्जभागअब्भहिए वा संखेज्जभागअब्भहिए वा संखेज्ज-गुणअब्भहिए वा असंखेज्जगुणअब्भहिए वा।
ठितीए सिय हीने सिय तुल्ले सिय अब्भहिए– जदि हीने असंखेज्जभागहीने वा संखेज्ज-भागहीने वा संखेज्जगुणहीने वा। अह Translated Sutra: भगवन् ! पृथ्वीकायिकों के कितने पर्याय हैं ? गौतम ! अनन्त। भगवन् ! किस हेतु से ऐसा कहा है ? गौतम! एक पृथ्वीकायिक दूसरे पृथ्वीकायिक से द्रव्य से तुल्य है, प्रदेशों से तुल्य है, अवगाहना की अपेक्षा से कदाचित् हीन है, कदाचित् तुल्य है और कदाचित् अधिक है। यदि हीन है तो असंख्यातभाग हीन है यावत् असंख्यातगुण हीन | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-५ विशेष |
Hindi | 311 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] बेइंदियाणं पुच्छा। गोयमा! अनंता पज्जवा पन्नत्ता।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–बेइंदियाणं अनंता पज्जवा पन्नत्ता? गोयमा! बेइंदिए बेइंदियस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले पदेसट्ठयाए तुल्ले। ओगाहणट्ठयाए सिय हीने सिय तुल्ले सिय अब्भहिए– जति हीने असंखेज्जभागहीने वा संखेज्जभागहीने वा संखेज्जगुणहीने वा असंखेज्जगुणहीने वा। अह अब्भ-हिए असंखेज्जभागमब्भहिए वा संखेज्जभागमब्भहिए वा संखेज्जगुणमब्भहिए वा असंखेज्ज-गुणमब्भहिए वा। ठितीए तिट्ठाणवडिते। वण्ण-गंध-रस-फास-आभिनिबोहियनाण-सुतनाण-मति-अन्नाण-सुतअन्नाण-अचक्खुदंसणपज्जवेहि य छट्ठाणवडिते।
एवं तेइंदिया वि। एवं चउरिंदिया Translated Sutra: भगवन् ! द्वीन्द्रिय जीवों के कितने पर्याय हैं ? गौतम ! अनन्त। भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है? गौतम ! एक द्वीन्द्रिय जीव दूसरे द्वीन्द्रिय से द्रव्य से और प्रदेशों से तुल्य है, अवगाहना से कदाचित् हीन है, कदाचित् तुल्य है, और कदाचित् अधिक है। यदि हीन है तो, असंख्यातभाग हीन होता है, यावत् असंख्यातगुण हीन | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-५ विशेष |
Hindi | 313 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] मनुस्साणं भंते! केवतिया पज्जवा पन्नत्ता? गोयमा! अनंता पज्जवा पन्नत्ता।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–मनुस्साणं अनंता पज्जवा पन्नत्ता? गोयमा! मनुस्से मनुस्सस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले पएसट्ठयाए तुल्ले। ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिते। ठितीए चउट्ठाणवडिते। वण्ण-गंध-रस-फास-आभिनिबोहियनाण-सुतनाण-ओहिनाण-मनपज्जवनाणपज्जवेहि य छट्ठाणवडिते। केवलनाणपज्जवेहिं तुल्ले। तिहिं अन्नाणेहिं तिहिं दंसणेहिं छट्ठाणवडिते। केवलदंसणपज्जवेहिं तुल्ले Translated Sutra: भगवन् ! मनुष्यों के कितने पर्याय हैं ? गौतम ! अनन्त। क्योंकि – गौतम ! द्रव्य से एक मनुष्य, दूसरे मनुष्य से तुल्य है, प्रदेशों से तुल्य है, अवगाहना और स्थिति से भी चतुःस्थानपतित है, तथा वर्णादि एवं चार ज्ञान के पर्यायों से षट्स्थानपतित है, तथा केवलज्ञान पर्यायों से तुल्य है, तीन अज्ञान तथा तीन दर्शन से षट्स्थानपतित | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-५ विशेष |
Hindi | 315 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जहन्नोगाहणगाणं भंते! नेरइयाणं केवतिया पज्जवा पन्नत्ता? गोयमा! अनंता पज्जवा पन्नत्ता।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति– जहन्नोगाहणगाणं नेरइयाणं अनंता पज्जवा पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नोगाहणए नेरइए जहन्नोगाहणगस्स नेरइयस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले। पएसट्ठयाए तुल्ले। ओगाहण-ट्ठयाए तुल्ले। ठितीए चउट्ठाणवडिते। वण्ण-गंध-रस-फास-पज्जवेहिं तिहिं नाणेहिं तिहिं अन्नाणेहिं तिहिं दंसणेहि य छट्ठाणवडिते।अ
उवकोसोगाहणयाणं भंते! नेरइयाणं केवतिया पज्जवा पन्नत्ता? गोयमा! अनंता पज्जवा पन्नत्ता।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–उक्कोसोगाहणयाणं नेरइयाणं अनंता पज्जवा पन्नत्ता? गोयमा! Translated Sutra: भगवन् ! जघन्य अवगाहना वाले नैरयिकों के कितने पर्याय हैं ? गौतम ! अनन्त। क्योंकि – गौतम ! जघन्य अवगाहना वाला नैरयिक, दूसरे जघन्य अवगाहना वाले नैरयिक से द्रव्य, प्रदेशों और अवगाहना से तुल्य है; (किन्तु) स्थिति की अपेक्षा चतुःस्थान पतित है, और वर्णादि, तीन ज्ञानों, तीन अज्ञानों और तीन दर्शनों से षट्स्थान पतित है। | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-५ विशेष |
Hindi | 316 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जहन्नोगाहणगाणं भंते! असुरकुमाराणं केवतिया पज्जवा पन्नत्ता? गोयमा! अनंता पज्जवा पन्नत्ता।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–जहन्नोगाहणगाणं असुरकुमाराणं अनंता पज्जवा पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नोगाहणए असुरकुमारे जहन्नोगाहणगस्स असुरकुमारस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले। पदेसट्ठयाए तुल्ले। ओगाहणट्ठयाए तुल्ले। ठितीए चउट्ठाणवडिते। वण्णादीहिं छट्ठाणवडिते। आभिनिबोहियनाण-सुतनाण-ओहिनाणपज्जवेहिं तिहिं अन्नाणेहिं दंसणेहि य छट्ठाणवडिते।
एवं उक्कोसोगाहणए वि। एवं अजहन्नमणुक्कोसोगाहणए वि, नवरं–उक्कोसोगाहणए वि असुरकुमारे ठितीए चउट्ठाणवडिते।
एवं जाव थणियकुमारा। Translated Sutra: भगवन् ! जघन्य अवगाहना वाले असुरकुमारों के कितने पर्याय हैं ? गौतम ! अनन्त। भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है ? गौतम ! एक असुरकुमार दूसरे असुरकुमार से द्रव्य, प्रदेशों तथा अवगाहना से तुल्य हैं; स्थिति से चतुःस्थानपतित हैं, वर्ण आदि, तीन ज्ञान, तीन अज्ञानों तथा तीन दर्शनों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है। इसी | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-५ विशेष |
Hindi | 317 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जहन्नोगाहणगाणं भंते! पुढविकाइयाणं केवतिया पज्जवा पन्नत्ता? गोयमा! अनंता पज्जवा पन्नत्ता।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–जहन्नोगाहणगाणं पुढविकाइयाणं अनंता पज्जवा पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नोगाहणए पुढविकाइए जहन्नोगाहणगस्स पुढविकाइयस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले। पदेसट्ठयाए तुल्ले। ओगाहणट्ठयाए तुल्ले। ठितीए तिट्ठाणवडिते। वण्ण-गंध-रस-फासपज्जवेहिं दोहिं अन्नाणेहिं अचक्खुदंसणपज्जवेहि य छट्ठाणवडिते।
एवं उक्कोसोगाहणए वि। अजहन्नमणुक्कोसोगाहणए वि एवं चेव, नवरं–सट्ठाणे चउट्ठाण-वडिते।
जहन्नट्ठितीयाणं भंते! पुढविकाइयाणं पुच्छा। गोयमा! अनंता पज्जवा पन्नत्ता।
से केणट्ठेणं Translated Sutra: भगवन् ! जघन्य अवगाहना वाले पृथ्वीकायिक जीवों के कितने पर्याय हैं ? गौतम ! अनन्त। क्योंकि – जघन्य अवगाहना वाले पृथ्वीकायिक द्रव्य, प्रदेशों तथा अवगाहना से तुल्य हैं, स्थिति की अपेक्षा से त्रिस्थानपतित हैं, तथा वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श से, दो अज्ञानों से एवं अचक्षुदर्शन से षट्स्थानपतित है। इसी प्रकार उत्कृष्ट | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-५ विशेष |
Hindi | 318 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जहन्नोगाहणगाणं भंते! बेइंदियाणं पुच्छा। गोयमा! अनंता पज्जवा पन्नत्ता।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–जहन्नोगाहणगाणं बेइंदियाणं अनंता पज्जवा पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नोगाहणए बेइंदिए जहन्नोगाहणगस्स बेइंदियस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले। पएसट्ठयाए तुल्ले। ओगाहणट्ठयाए तुल्ले। ठितीए तिट्ठाणवडिते। वण्ण-गंध-रस-फासपज्जवेहिं दोहिं नाणेहिं दोहिं अन्नाणेहिं अचक्खुदंसणपज्जवेहि य छट्ठाणवडिते।
एवं उक्कोसोगाहणए वि, नवरं–णाणा नत्थि। अजहन्नमणुक्कोसोगाहणए जहा जहन्नोगाहणए, नवरं–सट्ठाणे ओगाहणाए चउट्ठाणवडिते।
जहन्नट्ठितीयाणं भंते! बेइंदियाणं पुच्छा। गोयमा! अनंता पज्जवा Translated Sutra: भगवन् ! जघन्य अवगाहना वाले द्वीन्द्रिय जीवों के कितने पर्याय हैं ? गौतम ! अनन्त। क्योंकि – जघन्य अवगाहना वाले द्वीन्द्रिय जीव, द्रव्य, प्रदेश तथा अवगाहना से तुल्य है, स्थिति की अपेक्षा त्रिस्थानपतित है, वर्ण आदि दो ज्ञानों, दो अज्ञानों तथा अचक्षु – दर्शन के से षट्स्थानपतित है। इसी प्रकार उत्कृष्ट अवगाहना | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-५ विशेष |
Hindi | 319 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जहन्नोगाहणगाणं भंते! पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं केवइया पज्जवा पन्नत्ता? गोयमा! अनंता पज्जवा पन्नत्ता
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–जहन्नोगाहणगाणं पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं अनंता पज्जवा पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नोगाहणए पंचेंदियतिरिक्खजोणिए जहन्नोगाहणयस्स पंचेंदियतिरिक्ख-जोणियस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले। पदेसट्ठयाए तुल्ले। ओगाहणट्ठयाए तुल्ले। ठितीए तिट्ठाणवडिते। वण्ण-गंध-रस-फासपज्जवेहिं दोहिं नाणेहिं दोहिं अन्नाणेहिं दोहिं दंसणेहि छट्ठाणवडिते।
उक्कोसोगाहणए वि एवं चेव, नवरं–तिहिं नाणेहिं तिहिं अन्नाणेहिं तिहिं दंसणेहिं छट्ठाण-वडिते। जहा उक्कोसोगाहणए Translated Sutra: भगवन् ! जघन्य अवगाहना वाले पंचेन्द्रियतिर्यंचों के कितने पर्याय हैं ? गौतम ! अनन्त। क्योंकि – जघन्य अवगाहना वाले पंचेन्द्रियतिर्यंच द्रव्य, प्रदेशों, और अवगाहना से तुल्य है, स्थिति से त्रिस्थानपतित है, तथा वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श, दो ज्ञानों, अज्ञानों और दो दर्शनों से षट्स्थानपतित है। उत्कृष्ट अवगाहना | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-५ विशेष |
Hindi | 320 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जहन्नोगाहणगाणं भंते! मनुस्साणं केवतिया पज्जवा पन्नत्ता? गोयमा! अनंता पज्जवा पन्नत्ता।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–जहन्नोगाहणगाणं मनुस्साणं अनंता पज्जवा पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नोगाहणए मनुस्से जहन्नोगाहणगस्स मणुसस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले। पदेसट्ठयाए तुल्ले। ओगाहणट्ठयाए तुल्ले। ठितीए तिट्ठाणवडिते। वण्ण-गंध-रस-फासपज्जवेहिं तिहिं नाणेहिं दोहिं अन्नाणेहिं तिहिं दंसणेहिं छट्ठाणवडिते।
उक्कोसोगाहणए वि एवं चेव, नवरं–ठितीए सिय हीने सिय तुल्ले सिय अब्भहिए–जदि हीने असंखेज्जभागहीने। अह अब्भहिए असंखेज्जभागमब्भहिए। दो नाणा दो अन्नाणा दो दंसणा। अजहन्नमनुक्कोसगाहणए Translated Sutra: भगवन् ! जघन्य अवगाहना वाले मनुष्यों के कितने पर्याय हैं ? गौतम ! अनन्त। क्योंकि – जघन्य अवगाहना वाले मनुष्य द्रव्य, प्रदेशों तथा अवगाहना से तुल्य हैं, स्थिति से त्रिस्थानपतित है, तथा वर्ण आदि से, एवं तीन ज्ञान, दो अज्ञान और तीन दर्शनों से षट्स्थानपतित है। उत्कृष्ट अवगाहना वाले मनुष्यों में भी इसी प्रकार कहना। |