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Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२६ सामाचारी

Hindi 1027 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पुव्वल्लंमि चउब्भाए पडिलेहित्ताणं भंडय । गुरुं वंदित्तु सज्झायं कुज्जा दुक्खविमोक्खणं ॥

Translated Sutra: दिन के प्रथम प्रहर के प्रथम चतुर्थ भाग में पात्रादि उपकरणों का प्रतिलेखन कर, गुरु को वन्दना कर, दुःख से मुक्त करने वाला स्वाध्याय करे। पौन पौरुषी बीत जाने पर गुरु को वन्दना कर, काल का प्रतिक्रमण किए बिना ही भाजन का प्रतिलेखन करे। सूत्र – १०२७, १०२८
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२६ सामाचारी

Hindi 1029 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] मुहपोत्तियं पडिलेहित्ता पडिलेहिज्ज गोच्छगं । गोच्छगलइयंगुलिओ वत्थाइं पडिलेहए ॥

Translated Sutra: मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन कर गोच्छग का प्रतिलेखन करे। अंगुलियों से गोच्छग को पकड़कर वस्त्र का प्रतिलेखन करे। सर्वप्रथम ऊकडू आसन से बैठे, फिर वस्त्र को ऊंचा रखे, स्थिर रखे और शीघ्रता किए बिना उसका प्रतिलेखन करे। दूसरे में वस्त्र को धीरे से झटकाए और तीसरे में वस्त्र का प्रमार्जन करे। सूत्र – १०२९, १०३०
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२६ सामाचारी

Hindi 1031 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अनच्चावियं अवलियं अनानुबंधिं अमोसलिं चेव । छप्पुरिमा नव खोडा पाणीपाणविसोहणं ॥

Translated Sutra: प्रतिलेखन के समय वस्त्र या शरीर को न नचाए,मोड़े, वस्त्र को दृष्टि से अलक्षित न करे, वस्त्र का दिवार आदि से स्पर्श न होने दे। वस्त्र के छह पूर्व और नौ खोटक करे। जो कोई प्राणी हो, उसका विशोधन करे।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२६ सामाचारी

Hindi 1032 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] आरभडा सम्मद्दा वज्जेयव्वा य मोसली तइया । पप्फोडणा चउत्थी विक्खित्ता वेइया छट्ठा ॥

Translated Sutra: प्रतिलेखन के दोष – (१) आरभटा – निर्दिष्ट विधि से विपरीत प्रतिलेखन करना। (२) सम्मर्दा – प्रतिलेखन करते समय वस्त्र को इस तरह पकड़ना कि उसके कोने हवा में हिलते रहें। (३) मोसली – प्रतिलेखन करते हुए वस्त्र को ऊपर – नीचे, इधर – उधर किसी अन्य वस्त्र या पदार्थ से संघट्टित करते रहना। (४) प्रस्फोटना – धूलिधूसरित वस्त्र को
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२६ सामाचारी

Hindi 1034 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अनूनाइरित्तपडिलेहा अविवच्चासा तहेव य । पढमं पयं पसत्थं सेसाणि उ अप्पसत्थाइं ॥

Translated Sutra: प्रस्फोटन और प्रमार्जन के प्रमाण से अन्यून, अनतिरिक्त तथा अविपरीत प्रतिलेखना ही शुद्ध होती है। उक्त तीन विकल्पों के आठ विकल्प होते हैं, उनमें प्रथम विकल्प ही शुद्ध है
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२६ सामाचारी

Hindi 1035 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पडिलेहणं कुणंतो मिहोकहं कुणइ जनवयकहं वा । देइ व पच्चक्खाणं वाएइ सयं पडिच्छइ वा ॥

Translated Sutra:
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२६ सामाचारी

Hindi 1037 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तइयाए पोरिसीए भत्तं पानं गवेसए । छण्हं अन्नयरागम्मि कारणंमि समुट्ठिए ॥

Translated Sutra: छह कारणों में से किसी एक कारण के उपस्थित होने पर तीसरे प्रहर में भक्तपान की गवेषणा करे। क्षुधा – वेदना की शान्ति, वैयावृत्य, ईर्यासमिति के पालन, संयम, प्राणों की रक्षा और धर्मचिंतन के लिए भक्तपान की गवेषणा करे। सूत्र – १०३७, १०३८
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२६ सामाचारी

Hindi 1039 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] निग्गंथो धिइमंतो निग्गंथी वि न करेज्ज छहिं चेव । ठाणेहिं उ इमेहिं अनइक्कमणा य से होइ ॥

Translated Sutra: घृति – सम्पन्न साधु और साध्वी इन छह कारणों से भक्त – पान की गवेषणा न करे, जिससे संयम का अतिक्रमण न हो। रोग होने पर, उपसर्ग आने पर, ब्रह्मचर्य गुप्ति की सुरक्षा, प्राणियों की दया, तप और शरीरविच्छेद के लिए मुनि भक्त – पान की गवेषणा न करे। सूत्र – १०३९, १०४०
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२६ सामाचारी

Hindi 1041 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अवसेसं भंडगं गिज्झा चक्खुसा पडिलेहए । परमद्धजोयणाओ विहारं विहरए मुनी ॥

Translated Sutra: सब उपकरणों का आँखों से प्रतिलेखन करे और उन्हें लेकर आवश्यक हो, तो दूसरे गाँव में मुनि आधे योजन की दूरी तक भिक्षा के लिए जाए।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२६ सामाचारी

Hindi 1042 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] चउत्थीए पोरिसीए निक्खिवित्ताण भायणं । सज्झायं तओ कुज्जा सव्वभावविभावणं ॥

Translated Sutra: चतुर्थ प्रहर में प्रतिलेखना कर सभी पात्रों को बाँध कर रख दे। उसके बाद जीवादि सब भावों का प्रकाशक स्वाध्याय करे। पौरुषी के चौथे भाग में गुरु को वन्दना कर, काल का प्रतिक्रमण कर शय्या का प्रतिलेखन करे। सूत्र – १०४२, १०४३
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२६ सामाचारी

Hindi 1044 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पासवणुच्चारभूमिं च पडिलेहिज्ज जयं जई । काउस्सग्गं तओ कुज्जा सव्वदुक्खविमोक्खणं ॥

Translated Sutra: दैवसिक – प्रतिक्रमण – यतना में प्रयत्नशील मुनि फिर प्रस्रवण और उच्चार – भूमिका प्रतिलेखन करे। उसके बाद सर्व दुःखों से मुक्त करने वाला कायोत्सर्ग करे। ज्ञान, दर्शन और चारित्र से सम्बन्धित दिवस – सम्बन्धी अतिचारों का अनुक्रम से चिन्तन करे। कायोत्सर्ग को पूर्ण करके गुरु को वन्दना करे। तदनन्तर अनुक्रम में
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२६ सामाचारी

Hindi 1049 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पढमं पोरिसिं सज्झायं बीयं ज्झाणं ज्झियायई । तइयाए निद्दमोक्खं तु सज्झायं तु चउत्थिए ॥

Translated Sutra: रात्रिक कृत्य एवं प्रतिक्रमण – प्रथम प्रहर में स्वाध्याय, दूसरे में ध्यान, तीसरे में नींद और चौथे में पुनः स्वाध्याय करे। चौथे प्रहर में कालका प्रतिलेखन कर, असंयत व्यक्तियों को न जगाता हुआ स्वाध्याय करे। सूत्र – १०४९, १०५०
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२६ सामाचारी

Hindi 1051 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पोरिसीए चउब्भाए वंदिऊण तओ गुरुं । पडिक्कमित्तु कालस्स कालं तु पडिलेहए ॥

Translated Sutra: चतुर्थ प्रहर के चौथे भाग में गुरु को वन्दना कर, काल का प्रतिक्रमण कर, काल का प्रतिलेखन करे। सबः दुःखों से मुक्त करने वाले कायोत्सर्ग का समय होने पर सब दुःखों से मुक्त करने वाला कायोत्सर्ग करे। ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप से सम्बन्धित रात्रि – सम्बन्धी अतिचारों का अनुक्रम से चिन्तन करे। कायोत्सर्ग को पूरा
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२६ सामाचारी

Hindi 1055 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पडिक्कमित्तु निस्सल्लो वंदित्ताण तओ गुरुं । काउस्सग्गं तओ कुज्जा सव्वदुक्खविमोक्खणं ॥

Translated Sutra: प्रतिक्रमण कर, निःशल्य होकर गुरु को वन्दना करे। तदनन्तर सब दुःखों से मुक्त करने वाला कायोत्सर्ग करे। कायोत्सर्ग में चिन्तन करे कि ‘‘मैं आज किस तप को स्वीकार करूँ।’’ कायोत्सर्ग को समाप्त कर गुरु को वन्दना करे। कायोत्सर्ग पूरा होने पर गुरु को वन्दना करे। उसके बाद यथोचित तप को स्वीकार कर सिद्धों की स्तुति
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२७ खलुंकीय

Hindi 1059 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] थेरे गणहरे गग्गे मुनी आसि विसारए । आइन्ने गणिभावंमि समाहिं पडिसंघए ॥

Translated Sutra: गर्ग कुल में उत्पन्न ‘गार्ग्य’ मुनि स्थविर, गणधर और विशारद थे, गुणों से युक्त थे। गणि – भाव में स्थित और समाधि में अपने को जोड़े हुए थे।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२७ खलुंकीय

Hindi 1060 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] वहणे वहमाणस्स कंतारं अइवत्तई । जोए वहमाणस्स संसारो अइवत्तई ॥

Translated Sutra: शकटादि वाहन को ठीक तरह वहन करने वाला बैल जैसे कान्तार को सुखपूर्वक पार करता है, उसी तरह योग में संलग्न मुनि संसार को पार कर जाता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२७ खलुंकीय

Hindi 1061 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] खलुंके जो उ जोएइ विहम्माणो किलिस्सई । असमाहिं च वेएइ तोत्तओ य से मज्जई ॥

Translated Sutra: जो खलुंक बैलों को जीतता है, वह उन्हें मारता हुआ क्लेश पाता है, असमाधि का अनुभव करता है और अन्ततः उसका चाबुक भी टूट जाता है। वह क्षुब्ध हुआ वाहक किसी की पूँछ काट देता है, तो किसी को बार – बार बींधता है। उन बैलों में से कोई एक समिला तोड़ देता है, तो दूसरा उन्मार्ग पर चल पड़ता है। कोई मार्ग के एक पार्श्व में गिर पड़ता है,
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२७ खलुंकीय

Hindi 1066 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] खलुंका जारिसा जोज्जा दुस्सीसा वि हु तारिसा । जोइया धम्मजाणंमि भज्जंति धिइदुब्बला ॥

Translated Sutra: अयोग्य बैल जैसे वाहन को तोड़ देता है, वैसे ही धैर्य में कमजोर शिष्यों को धर्म – यान में जोतने पर वे भी उसे तोड़ देते हैं। कोई ऋद्धि – का गौरव करता है, कोई रस का गौरव करता है, कोई सुख का गौरव करता है, तो कोई चिरकाल तक क्रोध करता है। कोई भिक्षाचरी में आलस्य करता है, कोई अपमान से डरता है, तो कोई स्तब्ध है। हेतु और कारणों
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२७ खलुंकीय

Hindi 1070 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] न सा ममं वियाणाइ न वि सा मज्झ दाहिई । निग्गया होहिई मन्ने साहू अन्नोत्थ वच्चउ ॥

Translated Sutra: भिक्षा लाने के समय कोई शिष्य गृहस्वामिनी के सम्बन्ध में कहता है – वह मुझे नहीं जानती है, वह मुझे नहीं देगी। मैं मानता हूँ – वह घर से बाहर गई होगी, अतः इसके लिए कोई दूसरा साधु चला जाए। किसी प्रयोजनविशेष से भेजने पर वे बिना कार्य किए लौट आते हैं और अपलाप करते हैं। इधर – उधर घूमते हैं। गुरु की आज्ञा को राजा के द्वारा
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२७ खलुंकीय

Hindi 1072 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] वाइया संगहिया चेव भत्तपाणे य पोसिया । जायपक्खा जहा हंसा पक्कमंति दिसोदिसिं ॥

Translated Sutra: जैसे पंख आने पर हंस विभिन्न दिशाओं में उड़ जाते हैं, वैसे ही शिक्षित एवं दीक्षित किए गए, भक्त – पान से पोषित किए गए कुशिष्य भी अन्यत्र चले जाते हैं। इन से खिन्न होकर धर्मयान के सारथी आचार्य सोचते हैं – मुझे इन दुष्ट शिष्यों से क्या लाभ ? इनसे तो मेरी आत्मा अवसन्न ही होती है। जैसे गलिगर्दभ होते हैं, वैसे ही ये मेरे
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२७ खलुंकीय

Hindi 1075 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] मिउ मद्दवसंपन्ने गंभीरे सुसमाहिए । विहरइ महिं महप्पा सीलभूएण अप्पणा ॥ –त्ति बेमि ॥

Translated Sutra: वह मृदु और मार्दव से सम्पन्न, गम्भीर, सुसमाहित और शील – सम्पन्न महान्‌ आत्मा गर्ग पृथ्वी पर विचरने लगे। – ऐसा मैं कहता हूँ।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२८ मोक्षमार्गगति

Hindi 1076 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] मोक्खमग्गगइं तच्चं सुणेह जिनभासियं । चउकारणसंजुत्तं नाणदंसणलक्खणं ॥

Translated Sutra: ज्ञानादि चार कारणों से युक्त, ज्ञानदर्शन लक्षण स्वरूप, जिनभाषित, सम्यक्‌ मोक्ष – मार्ग की गति को सुनो
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२८ मोक्षमार्गगति

Hindi 1077 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] नाणं च दंसणं चेव चरित्तं च तवो तहा । एस मग्गो त्ति पन्नत्तो जिनेहिं वरदंसिहिं ॥

Translated Sutra: वरदर्शी जिनवरों ने ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप को मोक्ष का मार्ग बतलाया है। ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप के मार्ग पर आरूढ हुए जीव सद्‌गति को प्राप्त करते हैं। सूत्र – १०७७, १०७८
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२८ मोक्षमार्गगति

Hindi 1079 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तत्थ पंचविहं नाणं सुयं आभिनिबोहियं । ओहीनाणं तइयं मणनाणं च केवलं ॥

Translated Sutra: उन में ज्ञान पाँच प्रकार का है – श्रुत ज्ञान, आभिनिबोधिक ज्ञान, अवधि ज्ञान, मनो ज्ञान और केवल ज्ञान। यह पाँच प्रकार का ज्ञान सब द्रव्य, गुण और पर्यायों का ज्ञान है, ऐसा ज्ञानियों ने कहा है। सूत्र – १०७९, १०८०
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२८ मोक्षमार्गगति

Hindi 1081 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] गुणाणमासओ दव्वं एगदव्वस्सिया गुणा । लक्खणं पज्जवाणं तु उभओ अस्सिया भवे ॥

Translated Sutra: द्रव्य गुणों का आश्रय है, जो प्रत्येक द्रव्य के आश्रित रहते हैं, वे गुण होते हैं। पर्यायों का लक्षण द्रव्य और गुणों के आश्रित रहना है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२८ मोक्षमार्गगति

Hindi 1082 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] धम्मो अहम्मो आगासं कालो पुग्गलजंतवो । एस लोगो त्ति पन्नत्तो जिनेहिं वरदंसिहिं ॥

Translated Sutra: वरदर्शी जिनवरों ने धर्म, अधर्म, आकाश, काल, पुद्‌गल और जीव – यह छह द्रव्यात्मक लोक कहा है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२८ मोक्षमार्गगति

Hindi 1083 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] धम्मो अहम्मो आगासं दव्वं इक्किक्कमाहियं । अनंताणि य दव्वाणि कालो पुग्गलजंतवो ॥

Translated Sutra: धर्म, अधर्म और आकाश – ये तीनों द्रव्य संख्या में एक – एक हैं। काल, पुद्‌गल और जीव – ये तीनों द्रव्य अनन्त – अनन्त हैं।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२८ मोक्षमार्गगति

Hindi 1084 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] गइलक्खणो उ धम्मो अहम्मो ठाणलक्खणो । भायणं सव्वदव्वाणं नहं ओगाहलक्खणं ॥

Translated Sutra: गति धर्म का लक्षण है, स्थिति अधर्म का लक्षण है, सभी द्रव्यों का भाजन अवगाहलक्षण आकाश है। वर्तना काल का लक्षण है। उपयोग जीव का लक्षण है, जो ज्ञान, दर्शन, सुख और दुःख से पहचाना जाता है। सूत्र – १०८४, १०८५
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२८ मोक्षमार्गगति

Hindi 1095 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] रागो दोसो मोहो अन्नाणं जस्स अवगयं होइ । आणाए रोयंतो सो खलु आणारुई नाम ॥

Translated Sutra: राग, द्वेष, मोह और अज्ञान जिसके दूर हो गये हैं, उसकी आज्ञा में रुचि रखना, ‘आज्ञा रुचि’ है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२८ मोक्षमार्गगति

Hindi 1096 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जो सुत्तमहिज्जंतो सुएण ओगाहई उ सम्मत्तं । अंगेण बाहिरेण व सो सुत्तरुइ त्ति नायव्वो ॥

Translated Sutra: जो अंगप्रविष्ट और अंगबाह्य श्रुत का अवगाहन करता हुआ श्रुत से सम्यक्त्व की प्राप्ति करता है, वह ‘सूत्ररुचि’ जानना।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२८ मोक्षमार्गगति

Hindi 1097 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एगेन अनेगाइं पयाइं जो पसरई उ सम्मत्तं । उदए व्व तेल्लबिंदू सो बीयरुइ त्ति नायव्वो ॥

Translated Sutra: जैसे जल में तेल की बूँद फैल जाती है, वैसे ही जो सम्यक्त्व एक पद से अनेक पदों में फैलता है, वह ‘बीजरुचि’ है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२८ मोक्षमार्गगति

Hindi 1098 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सो होइ अभिगमरुई सुयनाणं जेण अत्थओ दिट्ठं । एक्कारस अंगाइं पइण्णगं दिट्ठिवाओ य ॥

Translated Sutra: जिसने ग्यारह अंग, प्रकीर्णक, दृष्टिवाद आदि श्रुतज्ञान अर्थ – सहित प्राप्त किया है, वह ‘अभिगमरुचि’ है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२८ मोक्षमार्गगति

Hindi 1099 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] दव्वाण सव्वभावा सव्वपमाणेहि जस्स उवलद्धा । सव्वाहि नयविहीहि य वित्थाररुइ त्ति नायव्वो ॥

Translated Sutra: समग्र प्रमाणों और नयों से जो द्रव्यों के सभी भावों को जानता है, वह ‘विस्ताररुचि’ है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२८ मोक्षमार्गगति

Hindi 1100 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] दंसणनाणचरित्ते तवविनए सच्चसमिइगुत्तीसु । जो किरियाभावरुई सो खलु किरियारुई नाम ॥

Translated Sutra: दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तप, विनय, सत्य, समिति और गुप्ति आदि क्रियाओं में जो भाव से रुचि है, वह ‘क्रियारुचि’ है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२८ मोक्षमार्गगति

Hindi 1101 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अनभिग्गहियकुदिट्ठी संखेवरुइ त्ति होइ नायव्वो । अविसारओ पवयणे अणभिग्गहिओ य सेसेसु ॥

Translated Sutra: जो निर्ग्रन्थ – प्रवचन में अकुशल है, साथ ही मिथ्या प्रवचनों से भी अनभिज्ञ है, किन्तु कुदृष्टि का आग्रह न होने के कारण अल्प – बोध से ही जो तत्त्व श्रद्धा वाला है, वह ‘संक्षेपरुचि’ है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२८ मोक्षमार्गगति

Hindi 1102 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जो अत्थिकायधम्मं सुयधम्मं खलु चरित्तधम्मं च । सद्दहइ जिनाभिहियं सो धम्मरुइ त्ति नायव्वो ॥

Translated Sutra: जिन – कथित अस्तिकाय धर्म में, श्रुत – धर्म में और चारित्र – धर्म में श्रद्धा करता है, वह ‘धर्मरुचि’ वाला है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२८ मोक्षमार्गगति

Hindi 1103 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] परमत्थसंथवो वा सुदिट्ठपरमत्थसेवणा वा वि । वावन्नकुदंसणवज्जणा य सम्मत्तसद्दहणा ॥

Translated Sutra: परमार्थ को जानना, परमार्थ के तत्वद्रष्टाओं की सेवा करना, व्यापन्नदर्शन और कुदर्शन से दूर रहना, सम्यक्त्व का श्रद्धान्‌ है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२८ मोक्षमार्गगति

Hindi 1104 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] नत्थि चरित्तं सम्मत्तविहूणं दंसणे उ भइयव्वं । सम्मत्तचरित्ताइं जुगवं पुव्वं व सम्मत्तं ॥

Translated Sutra: चारित्र सम्यक्त्व के बिना नहीं होता है, किन्तु सम्यक्त्व चारित्र के बिना हो सकता है। सम्यक्त्व और चारित्र युगपद्‌ – एक साथ ही होते हैं। चारित्र से पूर्व सम्यक्त्व का होना आवश्यक है। सम्यक्त्व के बिना ज्ञान नहीं होता है, ज्ञान के बिना चारित्र – गुण नहीं होता है। चारित्र – गुण के बिना मोक्ष नहीं होता और मोक्ष
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२८ मोक्षमार्गगति

Hindi 1106 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] निस्संकिय निक्कंखिय निव्वितिगिच्छा अमूढदिट्ठी य । उववूह थिरीकरणे वच्छल्ल पभावणे अट्ठ ॥

Translated Sutra: निःशंका, निष्कांक्षा, निर्विचिकित्सा, अमूढ – दृष्टि उपबृंहण, स्थिरीकरण, वात्सल्य और प्रभावना – ये आठ सम्यक्त्व के अंग हैं।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२८ मोक्षमार्गगति

Hindi 1107 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सामाइयत्थ पढमं छेओवट्ठावणं भवे बीयं । परिहारविसुद्धीयं सुहुमं तह संपरायं च ॥

Translated Sutra: चारित्र के पाँच प्रकार हैं – सामायिक, छेदोपस्थापनीय, परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसम्पराय और – पाँचवाँ यथाख्यात चारित्र है, जो सर्वथा कषायरहित होता है। वह छद्मस्थ और केवली – दोनों को होता है। ये चारित्र कर्म के चय को रिक्त करते हैं, अतः इन्हें चारित्र कहते हैं। सूत्र – ११०७, ११०८
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२८ मोक्षमार्गगति

Hindi 1109 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तवो य दुविहो वुत्तो बाहिरब्भंतरो तहा । बाहिरो छव्विहो वुत्तो एवमब्भंतरो तवो ॥

Translated Sutra: तप के दो प्रकार हैं – बाह्य और आभ्यन्तर। बाह्य तप छह प्रकार का है, इसी प्रकार आभ्यन्तर तप भी छह प्रकार का है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२८ मोक्षमार्गगति

Hindi 1110 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] नाणेण जाणई भावे दंसणेण य सद्दहे । चरित्तेण निगिण्हाइ तवेण परिसुज्झई ॥

Translated Sutra: आत्मा ज्ञान से जीवादि भावों को जानता है, दर्शन से उनका श्रद्धान्‌ करता है, चारित्र से कर्म – आश्रव का निरोध करता है, और तप से विशुद्ध होता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम

Hindi 1112 Sutra Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सुयं मे आउसं! तेणं भगवया एवमक्खायं– इह खलु सम्मत्तपरक्कमे नाम अज्झयणे समणेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइए, जं सम्मं सद्दहित्ता पत्तियाइत्ता रोयइत्ता फासइत्ता पालइत्ता तीरइत्ता किट्टइत्ता सोहइत्ता आराहइत्ता आणाए अनुपालइत्ता बहवे जीवा सिज्झंति बुज्झंति मुच्चंति परिनिव्वायंति सव्वदुक्खाणमंतं करेंति।

Translated Sutra: आयुष्यमन्‌ ! भगवान ने जो कहा है, वह मैंने सुना है। इस ‘सम्यक्त्व पराक्रम’ अध्ययन में काश्यप गोत्रीय श्रमण भगवान्‌ महावीर ने जो प्ररूपणा की है, उसकी सम्यक्‌ श्रद्धा से, प्रतीति से, रुचि से, स्पर्श से, पालन करने से, गहराई पूर्वक जानने से, कीर्तन से, शुद्ध करने से, आराधना करने से, आज्ञानुसार अनुपालन करने से बहुत से
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम

Hindi 1120 Sutra Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] गरहणयाए णं भंते! जीवे किं जणयइ? गरहणयाए णं अपुरक्कारं जणयइ। अपुरक्कारगए णं जीवे अप्पसत्थेहितो जोगेहिंतो नियत्तेइ, पसत्थजोगपडिवन्ने य णं अनगारे अनंतघाइपज्जवे खवेइ।

Translated Sutra: भन्ते ! गर्हा से जीव को क्या प्राप्त होता है ? गर्हा से जीव को अपुरस्कार प्राप्त होता है। अपुरस्कृत होने से वह अप्रशस्त कार्यों से निवृत्त होता है। प्रशस्त कार्यों से युक्त होता है। ऐसा अनगार ज्ञान – दर्शनादि अनन्त गुणों का घात करनेवाले ज्ञानावरणादि कर्मों के पर्यायों का क्षय करता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम

Hindi 1123 Sutra Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] वंदनएणं भंते! जीवे किं जणयइ? वंदनएणं नीयागोयं कम्मं खवेइ, उच्चगोयं निबंधइ। सोहग्गं च णं अप्पडिहयं आणाफलं निव्वत्तेइ, दाहिणभावं च णं जणयइ।

Translated Sutra: भन्ते ! वन्दना से जीव को क्या प्राप्त होता है ? वन्दना से जीव नीचगोत्र कर्म का क्षय करता है। उच्च गोत्र का बन्ध करता है। वह अप्रतिहत सौभाग्य को प्राप्त कर सर्वजनप्रिय होता है। उसकी आज्ञा सर्वत्र मानी जाती है। वह जनता से दाक्षिण्य को प्राप्त होता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम

Hindi 1124 Sutra Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पडिक्कमणेणं भंते! जीवे किं जणयइ? पडिक्कमणेणं वयछिद्दाइं पिहेइ। पिहियवयछिद्दे पुन जीवे निरुद्धासवे असबलचरित्ते अट्ठसु पवयणमायासु उवउत्ते अपुहत्ते सुप्पणिहिए विहरइ।

Translated Sutra: भन्ते ! प्रतिक्रमण से जीव को क्या प्राप्त होता है ? प्रतिक्रमण से जीव स्वीकृत व्रतों के छिद्रों को बंद करता है। आश्रवों का निरोध करता है, शुद्ध चारित्र का पालन करता है, समिति – गुप्ति रूप आठ प्रवचनमाताओं के आराधन में सतत उपयुक्त रहता है, संयम – योग में अपृथक्त्व होता है और सन्मार्ग में सम्यक्‌ समाधिस्थ होकर विचरण
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम

Hindi 1129 Sutra Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पायच्छित्तकरणेणं भंते! जीवे किं जणयइ? पायच्छित्तकरणेणं पावकम्मविसोहिं जणयइ, निरइयारे यावि भवइ। सम्मं च णं पायच्छित्तं पडिवज्जमाणे मग्गं च मग्गफलं च विसोहेइ आयारं च आयारफलं च आराहेइ।

Translated Sutra: भन्ते ! प्रायश्चित्त से जीव को क्या प्राप्त होता है ? प्रायश्चित्त से जीव पापकर्मों को दूर करता है और धर्म – साधना को निरतिचार बनता है। सम्यक्‌ प्रकार से प्रायश्चित्त करने वाला साधक मार्ग और मार्ग – फल को निर्मल करता है। आचार और आचारफल की आराधना करता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम

Hindi 1130 Sutra Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] खमावणयाए णं भंते! जीवे किं जणयइ? खमावणयाए णं पल्हायणभावं जणयइ। पल्हायणभावमुवगए य सव्व पाणभूयजीवसत्तेसु मित्तीभावमुप्पाएइ। मित्तीभावमुवगए यावि जीवे भावविसोहिं काऊण निब्भए भवइ।

Translated Sutra: भन्ते ! क्षामणा करने से जीव को क्या प्राप्त होता है ? क्षमापना करने से जीव प्रह्लाद भाव को प्राप्त होता है। प्रह्लाद भाव सम्पन्न साधक सभी प्राण, भूत, जीव और सत्त्वों के साथ मैत्रीभाव को प्राप्त होता है। मैत्रीभाव को प्राप्त जीव भाव – विशुद्धि कर निर्भय होता है।
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अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम

Hindi 1132 Sutra Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] वायणाए णं भंते! जीवे किं जणयइ? वायणाए णं निज्जरं जणयइ, सुयस्स य अणासायणाए वट्टए। सुयस्स अणासायणाए वट्टमाणे तित्थधम्मं अवलंबइ। तित्थधम्मं अवलंबमाणे महानिज्जरे महापज्जवसाणे भवइ।

Translated Sutra: भन्ते ! वाचना से जीव को क्या प्राप्त होता है ? वाचना से जीव कर्मों की निर्जरा करता है, श्रुत ज्ञान की आशातना के दोष से दूर रहता है। तीर्थ धर्म का अवलम्बन करता है – तीर्थ धर्म का अवलम्बन लेकर कर्मों की महानिर्जरा और महापर्यवसान करता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम

Hindi 1133 Sutra Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पडिपुच्छणयाए णं भंते! जीवे किं जणयइ? पडिपुच्छणयाए णं सुत्तत्थतदुभयाइं विसोहेइ। कंखामोहणिज्जं कम्मं वोच्छिंदइ।

Translated Sutra: भन्ते ! प्रतिपृच्छना से जीव को क्या प्राप्त होता है ? प्रतिपृच्छना से जीव सूत्र, अर्थ और तदुभय – दोनों से सम्बन्धित काक्षामोहनीय का निराकरण करता है।
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