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Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२० महानिर्ग्रंथीय

Hindi 728 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] न तुमं जाणे अनाहस्स अत्थं पोत्थं व पत्थिवा । जहा अनाहो भवई सनाहो वा नराहिवा! ॥

Translated Sutra: पृथ्वीपति – नरेश ! तुम ‘अनाथ’ के अर्थ और परमार्थ को नहीं जानते हो। महाराज ! अव्याक्षिप्त चित्त से मुझे सुनिए की यथार्थ में अनाथ कैसे होता है ? सूत्र – ७२८, ७२९
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२० महानिर्ग्रंथीय

Hindi 731 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पढमे वए महाराय! अउला मे अच्छिवेयणा । अहोत्था विउलो दाहो सव्वंगेसु य पत्थिवा ॥

Translated Sutra: महाराज ! युवावस्था में मेरी आँखों में अतुल वेदना उत्पन्न हुई। पार्थिव ! उससे मेरे सारे शरीर में अत्यन्त जलन होती थी। क्रुद्ध शत्रु जैसे शरीर के मर्मस्थानों में तीक्ष्ण शस्त्र घोंप दे और उससे जैसे वेदना हो, वैसे ही मेरी आँखों में भयंकर वेदना हो रही थी। जैसे इन्द्र के वज्रप्रहार से भयंकर वेदना होती है, वैसे ही
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२० महानिर्ग्रंथीय

Hindi 734 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] उवट्ठिया मे आयरिया विज्जामंततिगिच्छगा । अबीया सत्थकुसला मंतमूलविसारया ॥

Translated Sutra: विद्या और मंत्र से चिकित्सा करनेवाले, मंत्र तथा औषधियों के विशारद, अद्वितीय शास्त्रकुशल, आयुर्वेद आचार्य मेरी चिकित्सा के लिए उपस्थित थे। उन्होंने मेरे हितार्थ वैद्य, रोगी, औषध और परिचारक – रूप चतुष्पाद चिकित्सा की, किन्तु वे मुझे दुःख से मुक्त नहीं कर सके। यह मेरी अनाथता है। सूत्र – ७३४, ७३५
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२० महानिर्ग्रंथीय

Hindi 736 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पिया मे सव्वसारं पि दिज्जाहि मम कारणा । न य दुक्खा विमोएइ एसा मज्झ अनाहया ॥

Translated Sutra: ‘‘मेरे पिता ने मेरे लिए चिकित्सकों को सर्वोत्तम वस्तुऍं दीं, किन्तु वे मुझे दुःख से मुक्त नहीं कर सके।’’ – ‘‘महाराज! मेरी माता पुत्रशोक के दुःख से बहुत पीड़ित रहती थी, किन्तु वह भी मुझे दुःख से मुक्त नहीं कर सकी, यह मेरी अनाथता है।’’ सूत्र – ७३६, ७३७
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२४ प्रवचनमाता

Hindi 944 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कोहे माने य मायाए लोभे य उवउत्तया । हासे भए मोहरिए विगहासु तहेव च ॥

Translated Sutra: क्रोध, मान, माया, लोभ, हास्य, भय, वाचालता और विकथा के प्रति सतत उपयोगयुक्त रहे। प्रज्ञावान्‌ संयती इन आठ स्थानों को छोड़कर यथासमय निरवद्य और परिमिति भाषा बोले। सूत्र – ९४४, ९४५
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२४ प्रवचनमाता

Hindi 946 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] गवेसणाए गहणे य परिभोगेसणा य जा । आहारोवहिसेज्जाए एए तिन्नि विसोहए ॥

Translated Sutra: गवेषणा, ग्रहणैषणा और परिभोगैषणा से आहार, उपधि और शय्या का परिशोधन करे। यतनापूर्वक प्रवृत्ति करनेवाला यति प्रथम एषणा में उद्‌गम और उत्पादन दोषों का शोधन करे। दूसरी एषणा में आहारादि ग्रहण करने से सम्बन्धित दोषों का शोधन करे। परिभोगैषणा में दोष – चतुष्क का शोधन करे। सूत्र – ९४६, ९४७
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२४ प्रवचनमाता

Hindi 948 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] ओहोवहोवग्गहियं भंडगं दुविहं मुनी । गिण्हंतो निक्खिवंतो य पउंजेज्ज इमं विहिं ॥

Translated Sutra: मुनि ओध – उपधि और औपग्रहिक उपधि दोनों प्रकार के उपकरणों को लेने और रखने में इस विधि का प्रयोग करे। यतनापूर्वक प्रवृत्ति करने वाला यति दोनों प्रकार के उपकरणों को आँखों से प्रतिलेखन एवं प्रमार्जन करके ले और रखे। सूत्र – ९४८, ९४९
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२४ प्रवचनमाता

Hindi 950 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] उच्चारं पासवणं खेलं सिंघाणजल्लियं । आहारं उवहिं देहं अन्नं वावि तहाविहं ॥

Translated Sutra: उच्चार, प्रस्रवण, श्लेष्म, सिंघानक, जल्ल, आहार, उपधि – उपकरण, शरीर तथा अन्य कोई विसर्जनयोग्य वस्तु को विवेकपूर्वक स्थण्डिल भूमि में उत्सर्ग करे। १.अनापात असंलोक – जहाँ लोगों का आवागमन न हो, और वे दूर से भी न दीखते हों। २. अनापात संलोक – लोगों का आवागमन न हो, किन्तु लोग दूर से दीखते हों। ३. आपात असंलोक – लोगों का आवागमन
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम

Hindi 1113 Sutra Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं अयमट्ठे एवमाहिज्जइ, तं जहा– संवेगे १ निव्वेए २ धम्मसद्धा ३ गुरुसाहम्मियसुस्सूसणया ४ आलोयणया ५ निंदणया ६ गरहणया ७ सामाइए ८ चउव्वीसत्थए ९ वंदणए १० पडिक्कमणे ११ काउस्सग्गे १२ पच्चक्खाणे १३ थवथुइमंगले १४ कालपडिलेहणया १५ पायच्छित्तकरणे १६ खमावणया १७ सज्झाए १८ वायणया १९ पडिपुच्छणया २० परियट्टणया २१ अणुप्पेहा २२ धम्मकहा २३ सुयस्स आराहणया २४ एगग्गमण-सन्निवेसणया २५ संजमे २६ तवे २७ वोदाणे २८ सुहसाए २९ अप्पडिबद्धया ३० विवित्तसयणासणसेवणया ३१ विणियट्टणया ३२ संभोगपच्चक्खाणे ३३ उवहिपच्चक्खाणे ३४ आहारपच्चक्खाणे ३५ कसायपच्चक्खाणे ३६ जोगपच्चक्खाणे ३७ सरीरपच्चक्खाणे

Translated Sutra: उसका यह अर्थ है, जो इस प्रकार कहा जाता है। जैसे कि – संवेग, निर्वेद, धर्म श्रद्धा, गुरु और साधर्मिक की शुश्रृषा, आलोचना, निन्दा, गर्हा, सामायिक, चतुर्विंशतिस्तव, वन्दना, प्रतिक्रमण, कायोत्सर्ग, प्रत्याख्यान, स्तव – स्तुति – मंगल, कालप्रतिलेखना, प्रायश्चित्त, क्षमापना, स्वाध्याय, वाचना, प्रतिप्रच्छना, परावर्तना,
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम

Hindi 1114 Sutra Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] संवेगेणं भंते! जीवे किं जणयइ? संवेगेणं अनुत्तरं धम्मसद्धं जणयइ। अनुत्तराए धम्मसद्धाए संवेगं हव्वमागच्छइ, अनंतानुबंधि कोहमानमायालोभे खवेइ, कम्मं न बंधइ, तप्पच्चइयं च णं मिच्छत्तविसोहिं काऊण दंसणाराहए भवइ। दंसणविसोहीए य णं विसुद्धाए अत्थेगइए तेणेव भवग्गहणेणं सिज्झइ। सोहीए य णं विसुद्धाए तच्चं पुणो भवग्गहणं नाइक्कमइ।

Translated Sutra: भन्ते ! संवेग से जीव को क्या प्राप्त होता है ? संवेग से जीव अनुत्तर – परम धर्म – श्रद्धा को प्राप्त होता है। परम धर्म श्रद्धा से शीघ्र ही संवेग आता है। अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया, लोभ का क्षय करता है। नए कर्मों का बन्ध नहीं करता है। मिथ्यात्वविशुद्धि कर दर्शन का आराधक होता है। दर्शनविशोधि के द्वारा कईं जीव
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम

Hindi 1115 Sutra Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] निव्वेएणं भंते! जीवे किं जणयइ? निव्वेएणं दिव्वमानुसतेरिच्छिएसु कामभोगेसु निव्वेयं हव्वमागच्छइ, सव्वविसएसु विरज्जइ। सव्वविसएसु विरज्जमाणे आरंभपरिच्चायं करेइ। आरंभपरिच्चायं करेमाणे संसारमग्गं वोच्छिंदइ, सिद्धिमग्गे पडिवन्ने य भवइ।

Translated Sutra: भन्ते ! निर्वेद से जीव को क्या प्राप्त होता है ? निर्वेद से जीव देव, मनुष्य और तिर्यंच – सम्बन्धी काम – भोगों में शीघ्र निर्वेद को प्राप्त होता है। सभी विषयों में विरक्त होता है। आरम्भ का परित्याग करता है। आरम्भ का परित्याग कर संसार – मार्ग का विच्छेद करता है और सिद्धि मार्ग को प्राप्त होता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम

Hindi 1116 Sutra Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] धम्मसद्धाए णं भंते! जीवे किं जणयइ? धम्मसद्धाए णं सायासोक्खेसु रज्जमाणे विरज्जइ, आगारधम्मं च णं चयइ अनगारे णं जीवे सारीरमाणसाणं दुक्खाणं छेयणभेयणसंजोगाईणं वोच्छेयं करेइ अव्वाबाहं च सुहं निव्वत्तेइ।

Translated Sutra: भन्ते ! धर्म – श्रद्धा से जीव को क्या प्राप्त होता है ? धर्मश्रद्धा से जीव सात – सुख कर्मजन्य वैषयिक सुखों की आसक्ति से विरक्त होता है। अगार – धर्म को छोड़ता है। अनगार होकर छेदन, भेदन आदि शारीरिक तथा संयोगादि मानसिक दुःखों का विच्छेद करता है, अव्याबाध सुख को प्राप्त होता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम

Hindi 1117 Sutra Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] गुरुसाहम्मियसुस्सूसणयाए णं भंते! जीवे किं जणयइ? गुरुसाहम्मियसुस्सूसणयाए णं विनयपडिवत्तिं जणयइ। विनयपडिवन्ने य णं जीवे अनच्चा-सायणसीले नेरइयतिरिक्खजोणियमनुस्सदेवदोग्गईओ निरुंभइ, वण्णसंजलणभत्तिबहुमानयाए मनुस्सदेवसोग्गईओ निबंधइ, सिद्धिं सोग्गइं च विसोहेइ। पसत्थाइं च णं विनयमूलाइं सव्वकज्जाइं साहेइ। अन्ने य बहवे जीवे विणइत्ता भवइ।

Translated Sutra: भन्ते ! गुरु और साधर्मिक की शुश्रूषा से जीव को क्या प्राप्त होता है ? गुरु और साधर्मिक की शुश्रूषा से जीव विनय – प्रतिपत्ति को प्राप्त होता है। विनयप्रतिपन्न व्यक्ति गुरु की परिवादादिरूप आशातना नहीं करता। उससे वह नैरयिक, तिर्यग्‌, मनुष्य और देव सम्बन्धी दुर्गति का निरोध करता है। वर्ण, संज्वलन, भक्ति और बहुमान
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम

Hindi 1118 Sutra Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आलोयणाए णं भंते! जीवे किं जणयइ? आलोयणाए णं मायानियाणमिच्छादंसणसल्लाणं मोक्खमग्गविग्घाणं अनंतसंसारवद्धणाणं उद्धरणं करेइ, उज्जुभावं च जणयइ। उज्जुभावपडिवन्ने य णं जीवे अमाई इत्थीवेयनपुंसगवेयं च न बंधइ। पुव्वबद्धं च णं निज्जरेइ।

Translated Sutra: भन्ते ! आलोचना से जीव को क्या प्राप्त होता है ? आलोचना से मोक्षमार्ग में विघ्न डालनेवाले और अनन्त संसार को बढ़ानेवाले माया, निदान और मिथ्यादर्शन रूप शल्यों को निकाल फेंकता है। ऋजुभाव को प्राप्त होता है। जीव माया – रहित होता है। अतः वह स्त्री – वेद, नपुंसक – वेद का बन्ध नहीं करता है, पूर्वबद्ध की निर्जरा करता
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३४ लेश्या

Hindi 1392 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जह कडुयतुंबगरसो निंबरसो कडुयरोहिणिरसो वा । एत्तो वि अनंतगुणो रसो उ किण्हाए नायव्वो ॥

Translated Sutra: कडुवा तूम्बा, नीम तथा कड़वी रोहिणी का रस जितना कडुवा होता है, उससे अनन्त गुण अधिक कडुवा कृष्ण लेश्या का रस है। त्रिकटु और गजपीपल का रस जितना तीखा है, उससे अनन्त गुण अधिक तीखा नील लेश्या का रस है। कच्चे आम और कच्चे कपित्थ का रस जैसे कसैला होता है, उससे अनन्त गुण अधिक कसैला कापोत लेश्या का रस है। पके हुए आम और पके
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अध्ययन-३४ लेश्या

Hindi 1398 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जह गोमडस्स गंधो सुणगमडस्स व जहा अहिमडस्स । एत्तो वि अनंतगुणो लेसाणं अप्पसत्थाणं ॥

Translated Sutra: गाय, कुत्ते और सर्प के मृतक शरीर की जैसे दुर्गन्ध होती है, उससे अनन्त गुण अधिक दुर्गन्ध तीनों अप्रशस्त लेश्याओं की होती है। सुगन्धित पुष्प और पीसे जा रहे सुगन्धित पदार्थों की जैसी गन्ध है, उससे अनन्त गुण अधिक सुगन्ध तीनों प्रशस्त लेश्याओं की है। सूत्र – १३९८, १३९९
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२० महानिर्ग्रंथीय

Hindi 738 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] भायरो मे महाराय! सगा जेट्ठकनिट्ठगा । न य दुक्खा विमोयंति एसा मज्झ अनाहया ॥

Translated Sutra: महाराज ! मेरे बड़े और छोटे सभी सगे भाई तथा मेरी बड़ी और छोटी सगी बहनें भी मुझे दुःख से मुक्त नहीं कर सकी, यह मेरी अनाथता है। सूत्र – ७३८, ७३९
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२० महानिर्ग्रंथीय

Hindi 740 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] भारिया मे महाराय! अनुरत्ता अणुव्वया । अंसुपुन्नेहिं नयनेहिं उरं मे परिसिंचई ॥

Translated Sutra: महाराज ! मुझ में अनुरक्त और अनुव्रत मेरी पत्नी अश्रुपूर्ण नयनों से मेर उरःस्थल को भिगोती रहती थी। वह बाला मेरे प्रत्यक्ष में या परोक्ष में कभी भी अन्न, पान, स्नान, गन्ध, माल्य और विलेपन का उपभोग नहीं करती थी। वह एक क्षण के लिए भी मुझसे दूर नहीं होती थी। फिर भी वह मुझे दुःख से मुक्त नहीं कर सकी। महाराज! यही मेरी
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२० महानिर्ग्रंथीय

Hindi 743 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तओ हं एवमाहंसु दुक्खमा हु पुणो पुणो । वेयणा अनुभविउं जे संसारम्मि अनंतए ॥

Translated Sutra:
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२० महानिर्ग्रंथीय

Hindi 746 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तओ कल्ले पभायम्मि आपुच्छित्ताण बंधवे । खंतो दंतो निरारंभो पव्वइओऽनगारियं ॥

Translated Sutra: तदनन्तर प्रातःकाल में नीरोग होते ही मैं बन्धुजनों को पूछकर क्षान्त, दान्त और निरारम्भ होकर अनगार वृत्ति में प्रव्रजित हो गया।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२० महानिर्ग्रंथीय

Hindi 747 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] ततो हं नाहो जाओ अप्पणो य परस्स य । सव्वेसिं चेव भूयाणं तसाण थावराण य ॥

Translated Sutra: तब मैं अपना और दूसरों का, त्रस और स्थावर सभी जीवों का नाथ हो गया।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२० महानिर्ग्रंथीय

Hindi 748 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अप्पा नई वेयरणी अप्पा मे कूडसामली । अप्पा कामदुहा धेणू अप्पा मे नंदनं वनं ॥

Translated Sutra: मेरी अपनी आत्मा ही वैतरणी नदी है, कूट – शाल्मली वृक्ष है, काम – दुधाधेनु है और नन्दन वन है।आत्मा ही अपने सुख – दुःख का कर्ता है और विकर्ता – भोक्ता है। सत्‌ प्रवृत्ति में स्थित आत्मा ही अपना मित्र है। और दुष्प्रवृत्ति में स्थित आत्मा ही अपना शत्रु है। सूत्र – ७४८, ७४९
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२० महानिर्ग्रंथीय

Hindi 750 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] इमा हु अन्ना वि अनाहया निवा! तमेगचित्तो निहुओ सुणेहि । नियंठधम्मं लहियाण वी जहा सोयंति एगे बहुकायरा नरा ॥

Translated Sutra: राजन्‌ ! यह एक और भी अनाथता है। शान्त एवं एकाग्रचित्त होकर उसे सुनो ! बहुत से ऐसे कायर व्यक्ति होते हैं, जो निर्ग्रन्थ धर्म को पाकर भी खिन्न हो जाते हैं।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२० महानिर्ग्रंथीय

Hindi 751 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जो पव्वइत्ताण महव्वयाइं सम्मं नो फासयई पमाया । अनिग्गहप्पा य रसेसु गिद्धे न मूलओ छिंदइ बंधनं से ॥

Translated Sutra: जो महाव्रतों को स्वीकार कर प्रमाद के कारण उनका सम्यक्‌ पालन नहीं करता है, आत्मा का निग्रह नहीं करता है, रसों में आसक्त है, वह मूल से राग – द्वेष – रूप बन्धनों का उच्छेद नहीं कर सकता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२० महानिर्ग्रंथीय

Hindi 752 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] आउत्तया जस्स न अत्थि काइ इरियाए भासाए तहेसणाए । आयाणनिक्खेवदुगुंछणाए न वीरजायं अनुजाइ मग्गं ॥

Translated Sutra: जिसकी ईर्या, भाषा, एषणा और आदान – निक्षेप में और उच्चार – प्रस्रवण के परिष्ठापन में आयुक्तता नहीं है, वह उस मार्ग का अनुगमन नहीं कर सकता, जो वीरयात है –
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२० महानिर्ग्रंथीय

Hindi 753 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] चिरं पि से मुंडरुई भवित्ता अथिरव्वए तवनियमेहि भट्ठे । चिरं पि अप्पाणं किलेसइत्ता न पारए होई हु संपराए ॥

Translated Sutra: जो अहिंसादि व्रतों में अस्थिर है, तप और नियमों से भ्रष्ट है – वह चिर काल तक मुण्डरुचि रहकर और आत्मा को कष्ट देकर भी वह संसार से पार नहीं हो सकता।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२० महानिर्ग्रंथीय

Hindi 754 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पोल्ले व मुट्ठी जह से असारे अयंतिए कूडकहावणे वा । राढामणी वेरुलियप्पगासे अमहग्घए होइ य जाणएसु ॥

Translated Sutra: जो पोली मुट्ठी की तरह निस्सार है, खोटे – सिक्के की तरह अप्रमाणित है, वैडूर्य की तरह चमकने वाली तुच्छ काचमणि है, वह जानने वाले परीक्षकों की दृष्टि में मूल्यहीन है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२० महानिर्ग्रंथीय

Hindi 755 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कुसीललिंगं इह धारइत्ता इसिज्झयं जीविय वूहइत्ता । असंजए संजयलप्पमाणे विनिधायमागच्छइ से चिरं पि ॥

Translated Sutra: जो कुशील का वेष और रजोहरणादि मुनिचिन्ह धारण कर जीविका चलाता है, असंयत होते हुए भी अपने – आप को संयत कहता है, वह चिरकाल तक विनाश को प्राप्त होता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२० महानिर्ग्रंथीय

Hindi 756 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] विसं तु पीयं जह कालकूडं हणाइ सत्थं जह कुग्गहीयं । एसे व धम्मो विसओववन्नो हणाइ वेयाल इवाविवन्नो ॥

Translated Sutra: पिया हुआ कालकूट – विष, उलटा पकड़ा हुआ शस्त्र, अनियन्त्रित वेताल – जैसे विनाशकारी होता है, वैसे ही विषय – विकारों से युक्त धर्म भी विनाशकारी होता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२० महानिर्ग्रंथीय

Hindi 757 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जे लक्खणं सुविण पउंजमाणे निमित्तकोऊहलसंपगाढे । कुहेडविज्जासवदारजीवी न गच्छई सरणं तंमि काले ॥

Translated Sutra: जो लक्षण और स्वप्न – विद्या का प्रयोग करता है, निमित्त शास्त्रो और कौतुक – कार्य में अत्यन्त आसक्त है, मिथ्या आश्चर्य को उत्पन्न करने वाली कुहेट विद्याओं से – जीविका चलाता है, वह कर्मफल – भोग के समय किसी की शरण नहीं पा सकता।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२० महानिर्ग्रंथीय

Hindi 758 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तमंतमेनेव उ से असीले सया दुही विप्परियासुवेइ । संधावई नरगतिरिक्खजोणिं मोनं विराहेत्तु असाहुरूवे ॥

Translated Sutra: वह शीलरहित साधु अपने तीव्र अज्ञान के कारण विपरीत – दृष्टि को प्राप्त होता है, फलतः असाधु प्रकृति – वाला वह साधु मुनि – धर्म की विराधना कर सतत दुःख भोगता हुआ नरक और तिर्यंच गति में आवागमन करता रहता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२० महानिर्ग्रंथीय

Hindi 759 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] उद्देसियं कीयगडं नियागं न मुंचई किंचि अनेसणिज्जं । अग्गी विवा सव्वभक्खी भवित्ता इओ चुओ गच्छइ कट्टु पावं ॥

Translated Sutra: जो औद्देशिक, क्रीत, नियाग आदि के रूप में थोड़ासा – भी अनेषणीय आहार नहीं छोड़ता है, वह अग्नि की भाँति सर्वभक्षी भिक्षु पाप – कर्म करके यहाँ से मरने के बाद दुर्गति में जाता है।’’
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२० महानिर्ग्रंथीय

Hindi 760 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] न तं अरी कंठछेत्ता करेइ जं से करे अप्पणिया दुरप्पा । से नाहिई मच्चुमुहं तु पत्ते पच्छानुतावेण दयाविहूणो ॥

Translated Sutra: स्वयं की अपनी दुष्प्रवृत्ति जो अनर्थ करती है, वह गला काटने वाला शत्रु भी नहीं कर पाता है। उक्त तथ्य को संयमहीन मनुष्य मृत्यु के क्षणों में पश्चात्ताप करते हुए जान पाएगा।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२० महानिर्ग्रंथीय

Hindi 761 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] नरट्ठिया नग्गरुई उ तस्स जे उत्तमट्ठं विवज्जासमेई । इमे वि से नत्थि परे वि लोए दुहओ वि से ज्झिज्जइ तत्थ लोए ॥

Translated Sutra: जो उत्तमार्थमें विपरीत दृष्टि रखता है, उसकी श्रामण्य में अभिरुचि व्यर्थ है। उसके लिए न यह लोक है, न परलोक है। दोनों लोक के प्रयोजन से शून्य होने के कारण वह उभय – भ्रष्ट भिक्षु निरन्तर चिन्ता में धुलता जाता है
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२० महानिर्ग्रंथीय

Hindi 762 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एमेवहाछंदकुसीलरूवे मग्गं विराहेत्तु जिनुत्तमाणं । कुररी विवा भोगरसानुगिद्धा निरट्ठसोया परियावमेइं ॥

Translated Sutra: इसी प्रकार स्वच्छन्द और कुशील साधु भी जिनोत्तम मार्ग की विराधना कर वैसे ही परिताप को प्राप्त होता है, जैसे कि भोगरसोंमें आसक्त होकर निरर्थक शोक करने वाली कुररी पक्षिणी परिताप को प्राप्त होती है।’’
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२० महानिर्ग्रंथीय

Hindi 763 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सोच्चाण मेहावि सुभासियं इमं अनुसासनं नानुगुणोववेयं । मग्गं कुसीलाण जहाय सव्वं महानियंठाण वए पहेणं ॥

Translated Sutra: मेधावी साधक इस सुभाषित को एवं ज्ञान – गुण से युक्त अनुशासन को सुनकर कुशील व्यक्तियों के सब मार्गों को छोड़कर, महान्‌ निर्ग्रन्थों के पथ पर चले। चारित्राचार और ज्ञानादि गुणों से संपन्न निर्ग्रन्थ निराश्रव होता है। अनुत्तर शुद्ध संयम का पालन कर वह निराश्रव साधक कर्मों का क्षय कर विपुल, उत्तम एवं शाश्वत मोक्ष
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२० महानिर्ग्रंथीय

Hindi 765 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एवुग्गदंते वि महातवोधणे महामुनी महापइन्ने महायसे । महानियंठिज्जमिणं महासुयं से काहए महया वित्थरेणं ॥

Translated Sutra: इस प्रकार उग्र – दान्त, महान्‌ तपोधन, महा – प्रतिज्ञ, महान्‌ – यशस्वी उस महामुनि ने इस महा – निर्ग्रन्थीय महाश्रुत को महान्‌ विस्तार से कहा।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२० महानिर्ग्रंथीय

Hindi 766 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तुट्ठो य सेणिओ राया इणमुदाहु कयंजली । अनाहत्तं जहाभूयं सुट्ठु मे उवदंसियं ॥

Translated Sutra: राजा श्रेणिक संतुष्ट हुआ और हाथ जोड़कर बोला – भगवन्‌ ! अनाथ का यथार्थ स्वरूप आपने मुझे ठीक तरह समझाया है। हे महर्षि ! तुम्हारा मनुष्य – जन्म सफल है, उपलब्धियाँ सफल हैं, तुम सच्चे सनाथ और सबान्धव हो, क्योंकि तुम जिनेश्वर के मार्ग में स्थित हो। सूत्र – ७६६, ७६७
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२० महानिर्ग्रंथीय

Hindi 768 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तं सि नाहो अनाहाणं सव्वभूयाण संजया! । खामेमि ते महाभाग! इच्छामि अनुसासिउं ॥

Translated Sutra: हे संयत ! तुम अनाथों के नाथ हो, सब जीवों के नाथ हो। मैं तुमसे क्षमा चाहता हूँ। मैं तुम से अनुशासित होने की इच्छा रखता हूँ। मैंने तुमसे प्रश्न कर जो ध्यान में विघ्न किया और भोगों के लिए निमन्त्रण दिया, उन सब के लिए मुझे क्षमा करें।’’ सूत्र – ७६८, ७६९
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२० महानिर्ग्रंथीय

Hindi 772 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] इयरो वि गुणसमिद्धो तिगुत्तिगुत्तो तिदंडविरओ य । विहग इव विप्पमुक्को विहरइ वसुहं विगयमोहो ॥ –त्ति बेमि ॥

Translated Sutra: और वह गुणों से समृद्ध, तीन गुप्तियों से गुप्त, तीन दण्डों से विरत, मोहमुक्त मुनि पक्षी की भाँति विप्रमुक्त होकर भूतल पर विहार करने लगे। – ऐसा मैं कहता हूँ।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२१ समुद्रपालीय

Hindi 777 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] खेमेण आगए चंपं सावए वाणिए घरं । संवड्ढई घरे तस्स दारए से सुहोइए ॥

Translated Sutra: वह वणिक्‌ श्रावक सकुशल चम्पा नगरी में अपने घर आया। वह सुकुमार बालक उसके घर में आनन्द के साथ बढ़ने लगा। उसने बहत्तर कलाऍं सीखीं, वह नीति – निपुण हो गया। वह युवावस्था से सम्पन्न हुआ तो सभी को सुन्दर और प्रिय लगने लगा। पिता ने उसके लिए ‘रूपिणी’ नाम की सुन्दर भार्या ला दी। वह अपनी पत्नी के साथ दोगुन्दक देव की भाँति
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२१ समुद्रपालीय

Hindi 783 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जहित्तु संगं च महाकिलेसं महंतमोहं कसिणं भयावहं । परियायधम्मं चभिरोयएज्जा वयाणि सीलाणि परीसहे य ॥

Translated Sutra: दीक्षित होने पर मुनि महा क्लेशकारी, महामोह और पूर्ण भयकारी संग का परित्याग करके पर्यायधर्म में, व्रत में, शील में और परीषहों में अभिरुचि रखे।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२१ समुद्रपालीय

Hindi 784 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अहिंस सच्चं च अतेनगं च तत्तो य बंभं अपरिग्गहं च । पडिवज्जिया पंच महव्वयाणि चरिज्ज धम्मं जिनदेसियं विऊ ॥

Translated Sutra: विद्वान्‌ मुनि अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह – इन पाँच महाव्रतों को स्वीकार करके जिनोपदिष्ट धर्म का आचरण करे।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२१ समुद्रपालीय

Hindi 785 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सव्वेहिं भूएहिं दयानुकंपो खंतिक्खमे संजयबंभयारी । सावज्जजोगं परिवज्जयंतो चरिज्ज भिक्खू सुसमाहिइंदिए ॥

Translated Sutra: इन्द्रियों का सम्यक्‌ संवरण करने वाला भिक्षु सब जीवों के प्रति करुणाशील रहे, क्षमा से दुर्वचनादि को सहे, संयत हो, ब्रह्मचारी हो। सदैव सावद्ययोग का परित्याग करता हुआ विचरे।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२१ समुद्रपालीय

Hindi 787 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] उवेहमाणो उ परिव्वएज्जा पियमप्पियं सव्व तितिक्खएज्जा । न सव्व सव्वत्थभिरोयएज्जा न यावि पूयं गरहं च संजए ॥

Translated Sutra: संयमी प्रतिकूलताओं की उपेक्षा करता हुआ विचरण करे। प्रिय – अप्रिय परीषहों को सहन करे। सर्वत्र सबकी अभिलाषा न करे, पूजा और गर्हा भी न चाहे।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२१ समुद्रपालीय

Hindi 788 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अनेगछंदा इह मानवेहिं जे भावओ संपगरेइ भिक्खू । भयभेरवा तत्थ उइंति भीमा दिव्वा मनुस्सा अदुवा तिरिच्छा ॥

Translated Sutra: यहाँ संसार में मनुष्यों के अनेक प्रकार के अभिप्राय होते हैं। भिक्षु उन्हें अपने में भी भाव से जानता है। अतः वह देवकृत, मनुष्यकृत तथा तिर्यंचकृत भयोत्पादक भीषण उपसर्गों को सहन करे।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२१ समुद्रपालीय

Hindi 789 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] परीसहा दुव्विसहा अनेगे सीयंति जत्था बहुकायरा नरा । से तत्थ पत्ते न वहिज्ज भिक्खू संगामसीसे इव नागराया ॥

Translated Sutra: अनेक असह्य परीषह प्राप्त होने पर बहुत से कायर लोग खेद का अनुभव करते हैं। किन्तु भिक्षु परीषह होने पर संग्राम में आगे रहने वाले हाथी की तरह व्यथित न हो। शीत, उष्ण, डाँस, मच्छर, तृण – स्पर्श तथा अन्य विविध प्रकार के आतंक जब भिक्षु को स्पर्श करें, तब वह कुत्सित शब्द न करते हुए उन्हें समभाव से सहे। पूर्वकृत कर्मों
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२१ समुद्रपालीय

Hindi 793 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अरइरइसहे पहीणसंथवे विरए आयहिए पहाणवं । परमट्ठपएहिं चिट्ठई छिन्नसोए अममे अकिंचने ॥

Translated Sutra: जो अरति और रति को सहता है, संसारी जनों के परिचय से दूर रहता है, विरक्त है, आत्म – हित का साधक है, संयमशील है, शोक रहित है, ममत्त्व रहित है, अकिंचन है, वह परमार्थ पदों में स्थित होता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२१ समुद्रपालीय

Hindi 794 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] विवित्तलयणाइ भएज्ज ताई निरोवलेवाइ असंथडाइं । इसीहि चिण्णाइ महायसेहिं काएण फासेज्ज परीसहाइं ॥

Translated Sutra: त्रायी, महान्‌ यशस्वी ऋषियों द्वारा स्वीकृत, लेपादि कर्म से रहित, असंसृत से एकान्त स्थानों का सेवन करे और परीषहों को सहन करे।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२१ समुद्रपालीय

Hindi 795 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सन्नाणनाणोवगए महेसी अनुत्तरं चरिउं धम्मसंचयं । अनुत्तरे नाणधरे जसंसो ओभासई सूरिए वंतलिक्खे ॥

Translated Sutra: अनुत्तर धर्म – संचय का आचरण करके सद्‌ज्ञान से ज्ञान को प्राप्त करनेवाला, अनुत्तर ज्ञानधारी, यशस्वी महर्षि, अन्तरिक्ष में सूर्य की भाँति धर्म – संघ में प्रकाशमान होता है।
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