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Kalpavatansika કલ્પાવતંસિકા Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ थी १०

Gujarati 3 Sutra Upang-09 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं सेसावि अट्ठ नेयव्वा। मायाओ सरिसनामाओ। कालाईणं दसण्हं पुत्ताणं आणुपुव्वीए–

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ शल्यउद्धरण

Hindi 3 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एक्क-खण-लव-मुहुत्त निमिस-निमिसद्धब्भंतरमवि ससल्ले विरत्तेज्जा। तं जहा–

Translated Sutra: (इस प्रकार जब साधु या साध्वी उनके दोष जाने तब) एक पल, लव, मुहूर्त्त, आँख की पलक, अर्ध पलक, अर्ध पलक के भीतर के हिस्से जितना काल भी शल्य से रहित है – वो इस प्रकार है –
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ शल्यउद्धरण

Hindi 27 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जे णं सल्लिय-हिययस्स एगस्सी बहू-भवंतरे। सव्वंगोवंग-संधीओ पसल्लंती पुणो पुणो॥

Translated Sutra: एक बार शल्यवाला हृदय करनेवाले को दूसरे कईंभव में सर्व अंग ओर उपांग बार – बार शल्य वेदनावाले होते हैं। वो शल्य दो तरीके का बताया है। सूक्ष्म और बादर। उन दोनों के भी तीन तीन प्रकार हैं। घोर, उग्र और उग्रतर। घोर माया चार तरह की है। जो घोर उग्र मानयुक्त हो और माया, लोभ और क्रोधयुक्त भी हो। उसी तरह उग्र और उग्रतर
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ शल्यउद्धरण

Hindi 88 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अनाइ-पाव-कम्म-मलं निद्धोवेमीह केवली। बीयं तं न समायरियं पमाया केवली तहा॥

Translated Sutra: अनादि काल से आत्मा से जुड़े पापकर्म के मैल को मैं साफ कर दूँ ऐसी भावना से केवलज्ञान होता है। अब प्रमाद से मैं कोई अन्य आचरण नहीं करूँगा इस भावना से केवलज्ञान होता है। देह का क्षय हो तो मेरे शरीर – आत्मा को निर्जरा हो, संयम ही शरीर का निष्कलंक सार है। ऐसी भावना से केवली बने। मन से भी शील का खंड़न हो तो मुझे प्राणधारण
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ शल्यउद्धरण

Hindi 91 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एवमादी अनादीया कालाओ नंते मुनी। केइ आलोयणा सिद्धे, पच्छित्ता केइ गोयमा॥

Translated Sutra: उस प्रकार अनादि काल से भ्रमण करते हुए भ्रमण करके मुनिपन पाया। कुछ भव में कुछ आलोचना सफल हुई। हे गौतम ! किसी भव में प्रायश्चित्त चित्त की शुद्धि करनेवाला बना, क्षमा रखनेवाला, इन्द्रिय का दमन करनेवाला, संतोषी, इन्द्रिय को जीतनेवाला, सत्यभाषी, छ काय जीव के समारम्भ से त्रिविध से विरमित, तीन दंड़ – मन, वचन काया दंड़
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ शल्यउद्धरण

Hindi 96 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] न पुणो तहा आलोएयव्वं माया-डंभेण केणई। जह आलोएमाणाणं चेव संसार-वुड्ढी भवे॥

Translated Sutra: आलोचना करनेवाले को माया दंभ – शल्य से कोई आलोचना नहीं करनी चाहिए। उस तरह की आलोचना से संसार की वृद्धि होती है। अनादि अनन्तकाल से अपने कर्म से दुर्मतिवाले आत्मा ने कईं विकल्प समान कल्लोलवाले संसार समुद्र में आलोचना करने के बाद भी अधोगति पानेवाले के नाम बताऊं उसे सून कि जो आलोचना सहित प्रायश्चित्त पाए हुए
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ शल्यउद्धरण

Hindi 97 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अनंते ऽनाइकालाओ अत्त-कम्मेहिं दुम्मई। बहुविकप्प-कल्लोले आलोएंते वी अहोगए॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ९६
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ शल्यउद्धरण

Hindi 114 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अनंतेऽनाइ-कालेणं गोयमा अत्त-दुक्खिया। अहो अहो जाव सत्तमियं भाव-दोसेक्कओ गए॥

Translated Sutra: हे गौतम ! अनादि अनन्त काल से भाव – दोष सेवन करनेवाले आत्मा को दुःख देनेवाले साधु नीचे भीतर सातवीं नरक भूमि तक गए हैं। हे गौतम ! अनादि अनन्त ऐसे संसार में ही साधु शल्य रहित होते हैं। वो अपने भाव – दोष समान विरस – कटु फल भुगतते हैं। अभी भी – शल्य से शल्यित होनेवाले वो भावि में भी अनन्तकाल तक विरस कटु फल भुगतते रहेंगे।
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ शल्यउद्धरण

Hindi 116 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] चिट्ठइसंति अज्जावि तेणं सल्लेण सल्लिए। अनंतं पि अनागयं कालं तम्हा सल्लं न धारए खणं मुनि त्ति॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ११४
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ शल्यउद्धरण

Hindi 145 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] निसल्ला केवलं पप्पा सिद्धाओ अनादी-कालेण गोयमा । खंता दंता विमुत्ताओ जिइंदियाओ सच्च-भाणिरीओ॥

Translated Sutra: उस प्रकार शुद्ध आलोचना देकर – (पाकर) अनन्त श्रमणी निःशल्य होकर, अनादि काल में हे गौतम ! केवलज्ञान पाकर सिद्धि पाकर, क्षमावती – इन्द्रिय का दमन करनेवाली संतोषकर – इन्द्रिय को जीतनेवाली सत्यभाषी – त्रिविध से छ काय के समारम्भ से विरमित तीन दंड़ के आश्रव को रोकनेवाली – पुरुषकथा और संग की त्यागी – पुरुष के साथ संलाप
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ शल्यउद्धरण

Hindi 149 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पायच्छित्तं पि कायव्वं तह जह एयाहिं समणीहिं कयं। न उणं तह आलोएयव्वं माया-डंभेण केणई॥

Translated Sutra: जिस तरह इस श्रमणीओं ने प्रायश्चित्त किया उस तरह से प्रायश्चित्त करना, लेकिन किसी को भी माया या दंभ से आलोयणा नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से पापकर्म की वृद्धि होती है, अनादि अनन्त काल से माया – दंभ – कपट दोष से आलोचना करके शल्यवाली बनी हुई साध्वी, हुकूम उठाना पड़े जैसा सेवकपन पाकर परम्परा से छठ्ठी नारकी में
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ शल्यउद्धरण

Hindi 150 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जह आलोयमाणीणं पाव-कम्म-वुड्ढी भवे। अनंतानाइ-कालेणं माया-डंभ-छम्म-दोसेण॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १४९
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ शल्यउद्धरण

Hindi 164 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] मूसगार-भीरुया चेव गारव-तिय-दूसिया तहा। एवमादि-अनेग-भाव-दोस-वसगा पावसल्लेहिं पूरिया॥

Translated Sutra: झूठ बोलने के बाद पकड़े जाने के भय से आलोचना न ले, रस ऋद्धि शाता गारव से दूषित हुई हो और फिर इस तरह के कईं भाव दोष के आधीन, पापशल्य से भरी ऐसी श्रमणी अनन्ता संख्या प्रमाण और अनन्ताकाल से हुई हैं। वो अनन्ती श्रमणी कईं दुःखवाले स्थान में गई हुई हैं। सूत्र – १६४, १६५
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ शल्यउद्धरण

Hindi 165 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] निरंतरा, अनंतेणं काल-समएण गोयमा । अइक्कंतेणं, अनंताओ समणीओ बहु-दुक्खावसहं गया॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १६४
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ शल्यउद्धरण

Hindi 166 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] गोयम अनंताओ चिट्ठंति जा अनादी-सल्ल-सल्लिया। भाव-दोसेक्क-सल्लेहिं भुंजमाणीओ कडु-विरसं घोरग्गुग्गतरं फलं॥

Translated Sutra: अनन्ती श्रमणी जो अनादि शल्य से शल्यित हुई है। वो भावदोष रूप केवल एक ही शल्य से उपार्जित किए घोर, उग्र – उग्रतर ऐसे फल के कटु फल के विरस रस की वेदना भुगतते हुए आज भी नरक में रही है और अभी भावि में भी अनन्ता काल तक वैसी शल्य से उपार्जन किए कटु फल का अहसास करेगी। इसलिए श्रमणीओं को पलभर के लिए भी सूक्ष्म से सूक्ष्म
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ शल्यउद्धरण

Hindi 167 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] चिट्ठइस्संति अज्जावि तेहिं सल्लेहिं सल्लिया। अनंतं पि अनागयं कालं तम्हा सल्लं सुसुहमं पि समणी नो धारिज्जा खणं ति॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १६६
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ शल्यउद्धरण

Hindi 180 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] आया अनिच्छमाणो वि पाव-सल्लेहिं गोयमा निमिसद्धानंत-गुणिएहिं पूरिज्जे निय-दुक्किया॥

Translated Sutra: आत्मा खुद पाप – शल्य करने की ईच्छावाला न हो और अर्धनिमिष आँख के पलक से भी आधा वक्त जितने काल में अनन्त गुण पापभार से तूट जाए तो निर्दंभ और मायारहित का ध्यान, स्वाध्याय, घोर तप और संयम से वो अपने पाप का उसी वक्त उद्धार कर सकते हैं। निःशल्यपन से आलोचना करके, निंदा करके, गुरु साक्षी से गर्हा करके उस तरह का दृढ़ प्रायश्चित्त
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ शल्यउद्धरण

Hindi 186 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अत्थेगे गोयमा पाणी जे सल्लं अद्धउद्धियं। माया-लज्जा-भया मोहा झसकारा-हियए धरे॥

Translated Sutra: हे गौतम ! जगत में कुछ ऐसे प्राणी – जीव होते हैं, जो अर्धशल्य का उद्धार करे और माया, लज्जा, भय, मोह के कारण से मृषावाद करके अर्धशल्य मन में रखे। हीन सत्त्ववाले ऐसे उनको उससे बड़ा दुःख होता है। अज्ञान दोष से उनके चित्त में शल्य न उद्धरने के कारण से भावि में जरुर दुःखी होगा ऐसा नहीं सोचते। जिस तरह किसी के शरीर में एक
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अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-१ Hindi 232 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] मेहुण-संकप्प-रागाओ मोहा अन्नाण-दोसओ। पुढवादिसु गएगिंदी न याणंती दुक्खं सुहं॥

Translated Sutra: मैथुन विषयक संकल्प और उसके राग से – मोह से अज्ञान दोष से पृथ्वीकाय आदि एकेन्द्रिय में उत्पन्न होनेवाले को दुःख का अहसास नहीं होता। उन एकेन्द्रिय जीव का अनन्ताकाल परिवर्तन हो और वो बेइन्द्रियपन पाए, कुछ बेइन्द्रियपन नहीं पाते। कुछ अनादि काल के बाद पाते हैं। सूत्र – २३२, २३३
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-१ Hindi 233 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] परिवत्तंते अनंते वि काले बेइंदियत्तणं। केई जीवा न पावेंति, केइ पुणाऽनादि पावियं॥

Translated Sutra: देखो सूत्र २३२
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-१ Hindi 238 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सुहेसी किसि-कम्मत्तं सेवा-वाणिज्ज-सिप्पयं। कुव्वंताऽहन्निसं मनुया धुप्पंते, एसिं कुओ सुहं॥

Translated Sutra: मानवपन में सुख का अर्थी खेती कर्म सेवा – चाकरी व्यापार शिल्पकला हंमेशा रात – दिन करते हैं। उसमें गर्मी सहते हैं, उसमें उनको भी कौन – सा सुख है ? कुछ मूरख दूसरों के घर समृद्धि आदि देखकर दिल में जलते हैं। कुछ तो बेचारे पेट की भूख भी पूरी नहीं कर सकते। और कुछ लोगों की हो वो लक्ष्मी भी क्षीण होती है। पुण्य की वृद्धि
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अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-१ Hindi 241 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] वास-साहस्सियं केई मन्नंते एगं दिनं पुणो। कालं गमेंति दुक्खेहिं मनुया पुन्नेहिं उज्झिया॥

Translated Sutra: देखो सूत्र २३८
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अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Hindi 605 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तहा गोयमा णं पव्वज्जा दिवसप्पभिईए जहुत्त-विहिणो वहाणेणं जे केई साहू वा साहुणी वा अपुव्व-नाण-गहणं न कुज्जा, तस्सासइं चिराहीयं सुत्तत्थोभयं सरमाणे एगग्ग-चित्ते पढम-चरम-पोरिसीसु दिया राओ य नाणु गुणेज्जा, से णं गोयमा नाण-कुसीले नेए। से भयवं जस्स अइगरुय-णाणावरणोदएणं अहन्निसं पहोसेमाणस्स संवच्छरेणा वि सिलोग-बद्धमवि नो थिरपरि-चियं भवेज्जा से किं कुज्जा गोयमा तेणा वि जावज्जीवाभिग्गहेणं सज्झाय-सीलाणं वेयावच्चं, तहा अनुदिनं अड्ढाइज्जे सहस्से [२५००] पंच मंगलाणं सुत्तत्थोभए सरमाणेगग्ग-मानसे पहोसेज्जा। (१) से भयवं केणं अट्ठेणं गोयमा जे भिक्खू जावज्जीवाभिग्गहेणं

Translated Sutra: हे भगवंत ! जिस किसी को अति महान ज्ञानावरणीय कर्म का उदय हुआ हो, रात – दिन रटने के बाद भी एक साल के बाद केवल अर्धश्लोक ही स्थिर परीचित हो, वो क्या करे ? वैसे आत्मा को जावज्जीव तक अभिग्रह ग्रहण करना या स्वाध्याय करनेवाले का वेयावच्च और प्रतिदिन ढ़ाई हजार प्रमाण पंचमंगल के सूत्र, अर्थ और तदुभय का स्मरण करते हुए एकाग्र
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अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Hindi 606 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अन्नं च–जे केई जावज्जीवाभिग्गहेण अपुव्वं, नाणाहिगमं करेज्जा, तस्सासतीए पुव्वाहियं गुणेज्जा, तस्सावियासतीए पंचमंगलाणं अड्ढाइज्जे सहस्से परावत्ते, से भिक्खू आराहगे। तं च नाणावरणं खवेत्तु णं तित्थयरे इ वा गणहरे इ वा भवेत्ता णं सिज्झेज्जा।

Translated Sutra: दूसरा – जो किसी यावज्जीव तक के अभिग्रह पूर्वक अपूर्वज्ञान का बोध करे, उसकी अशक्ति में पूर्व ग्रहण किए ज्ञान का परावर्तन करे, उसकी भी अशक्ति में ढ़ाई हजार पंचमंगल नवकार का परावर्तन – जप करे, वो भी आत्मा आराधक है। अपने ज्ञानावरणीय कर्म खपाकर तीर्थंकर या गणधर होकर आराधकपन पाकर सिद्धि पाते हैं
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Hindi 607 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (१) से भयवं केण अट्ठेणं एवं वुच्चइ, जहा णं चाउक्कालियं सज्झायं कायव्वं गोयमा

Translated Sutra: हे भगवंत ! किस कारण से ऐसा कहलाता है कि चार काल में स्वाध्याय करना चाहिए ? हे गौतम ! मन, वचन और काया से गुप्त होनेवाली आत्मा हर वक्त ज्ञानावरणीय कर्म खपाती है। स्वाध्याय ध्यान में रहता हो वो हर पल वैराग्य पानेवाला बनता है। स्वाध्याय करनेवाले को उर्ध्वलोक, अधोलोक, ज्योतिष लोक, वैमानिक लोक, सिद्धि, सर्वलोक और अलोक
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अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Hindi 611 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एग-दु-ति-मास-खमणं संवच्छरमवि य अनसिओ होज्जा। सज्झाय-झाण-रहिओ एगोवासप्फलं पि न लभेज्जा॥

Translated Sutra: एक, दो, तीन मासक्षमण करे, अरे ! संवत्सर तक खाए बिना रहे या लगातार उपवास करे लेकिन स्वाध्याय – ध्यान रहित हो वो एक उपवास का भी फल नहीं पाता। उद्‌गम उत्पादन एषणा से शुद्ध ऐसे आहार को हंमेशा करनेवाला यदि मन, वचन, काया के तीन योग में एकाग्र उपयोग रखनेवाला हो और हर वक्त स्वाध्याय करता हो तो उस एकाग्र मानसवाले को साल तक
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अध्ययन-५ नवनीतसार

Hindi 735 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जत्थ य अज्जा कप्पं पाण-च्चाए वि रोरव-दुब्भिक्खे। ण य परिभुज्जइ सहसा गोयम गच्छं तयं भणियं॥

Translated Sutra: चाहे कैसा भी भयानक अकाल हो, प्राण परित्याग करना पड़े वैसा अवसर प्राप्त हो तो भी सहसात्कारे हे गौतम ! साध्वीने वहोरकर लाई हुई चीज इस्तमाल न करे उसे गच्छ कहते हैं।
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अध्ययन-५ नवनीतसार

Hindi 834 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं अत्थि केई जेणमिणमो परम गुरूणं पी अलंघणिज्जं परमसरन्नं फुडं पयडं पयड पयडं परम कल्लाणं कसिण कम्मट्ठ दुक्ख निट्ठवणं पवयणं अइक्कमेज्ज वा, वइक्कमेज्ज वा लंघेज्ज वा, खंडेज्ज वा, विराहेज्ज वा, आसाएज्ज वा, से मनसा वा, वयसा वा, कायसा वा, जाव णं वयासी गोयमा णं अनंतेणं कालेणं परिवत्तमाणेणं सययं दस अच्छग्गे भविंसु। तत्थ णं असंखेज्जे अभव्वे असंखेज्जे मिच्छादिट्ठि असंखेज्जे सासायणे दव्व लिंगमासीय सढत्ताए डंभेणं सक्करिज्जंते एत्थए धम्मिग त्ति काऊणं बहवे अदिट्ठ कल्लाणे जइणं पवयणमब्भुवगमंति। तमब्भुवगामिय रसलोलत्ताए विसयलोलत्ताए दुद्दंत्तिंदिय दोसेणं अनुदियहं

Translated Sutra: हे भगवंत ! ऐसा कोई (आत्मा) होगा कि जो इस परम गुरु का अलंघनीय परम शरण करने के लायक स्फुट – प्रकट, अति प्रकट, परम कल्याण रूप, समग्र आँठ कर्म और दुःख का अन्त करनेवाला जो प्रवचन – द्वादशांगी रूप श्रुतज्ञान उसे अतिक्रम या प्रकर्षपन से अतिक्रमण करे, लंघन करे, खंड़ित करे, विराधना करे, आशातना करे, मन से, वचन से या काया से अतिक्रमण
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ नवनीतसार

Hindi 835 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं कयरे णं ते णं काले णं दस अच्छेरगे भविंसु गोयमा णं इमे ते अनंतकाले णं दस अच्छेरगे भवंति, तं जहा तित्थयराणं उवसग्गे (१) गब्भ संकामणे, (२) वामा तित्थयरे, (३) तित्थयरस्स णं देसणाए अभव्व समुदाएण परिसा बंधि सवि-माणाणं चंदाइच्चाणं तित्थयरसमवसरणे। (५) आगमने वासुदेवा णं संखज्झुणीए, अन्नयरेणं वा राय कउहेणं परोप्पर मेलावगे, (६) इहइं तु भारहे खेत्ते हरिवंस कुलुप्पत्तीए, (७) चमरुप्पाए, (८) एग समएणं अट्ठसय सिद्धिगमणं, (९) असंजयाणं पूयाकारगे त्ति (१०) ।

Translated Sutra: हे भगवंत ! अनन्ता काल कौन – से दश अच्छेरा होंगे ? हे गौतम ! उस समय यह दश अच्छेरा होंगे। वो इस प्रकार – १. तीर्थंकर भगवंत को उपसर्ग, २. गर्भ पलटाया जाना, ३. स्त्री तीर्थंकर, ४. तीर्थंकर की देशना में अभव्य, दीक्षा न लेनेवाले के समुदाय की पर्षदा इकट्ठी होना, ५. तीर्थंकर के समवसरण में चंद्र और सूरज का अपना विमान सहित आगमन,
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अध्ययन-५ नवनीतसार

Hindi 837 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं जे णं केई आयरिए, इ वा मयहरए, इ वा असई कहिंचि कयाई तहाविहं संविहाणगमासज्ज इणमो निग्गंथं पवयणमन्नहा पन्नवेज्जा, से णं किं पावेज्जा गोयमा जं सावज्जायरिएणं पावियं। से भयवं कयरे णं से सावज्जयरिए किं वा तेणं पावियं ति। गोयमा णं इओ य उसभादि तित्थंकर चउवीसिगाए अनंतेणं कालेणं जा अतीता अन्ना चउवीसिगा तीए जारिसो अहयं तारिसो चेव सत्त रयणी पमाणेणं जगच्छेरय भूयो देविंद विंदवं-दिओ पवर वर धम्मसिरी नाम चरम धम्मतित्थंकरो अहेसि। तस्से य तित्थे सत्त अच्छेरगे पभूए। अहन्नया परिनिव्वुडस्स णं तस्स तित्थंकरस्स कालक्कमेणं असंजयाणं सक्कार कारवणे नाम अच्छेरगे वहिउमारद्धे। तत्थ

Translated Sutra: हे भगवंत ! जो कोई आचार्य जो गच्छनायक बार – बार किसी तरह से शायद उस तरह का कारण पाकर इस निर्ग्रन्थ प्रवचन को अन्यथा रूप से – विपरीत रूप से प्ररूपे तो वैसे कार्य से उसे कैसा फल मिले ? हे गौतम ! जो सावद्याचार्य ने पाया ऐसा अशुभ फल पाए, हे गौतम ! वो सावद्याचार्य कौन थे ? उसने क्या अशुभ फल पाया? हे गौतम ! यह ऋषभादिक तीर्थंकर
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अध्ययन-५ नवनीतसार

Hindi 839 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं गोयमा तेसिं अनायार पवत्ताणं बहूणं आयरिय मयहरादीणं एगे मरगयच्छवी कुवलयप्पहा-भिहाणे नाम अनगारे महा तवस्सी अहेसि। तस्स णं महा महंते जीवाइ पयत्थेसु तत्त परिण्णाणे सुमहंतं चेव संसार सागरे तासुं तासुं जोणीसुं संसरण भयं सव्वहा सव्व पयारेहिं णं अच्चंतं आसायणा भीरुयत्तणं तक्कालं तारिसे वी असमंजसे अनायारे बहु साहम्मिय पवत्तिए तहा वी सो तित्थयरा-णमाणं णाइक्कमेइ। अहन्नया सो अनिगूहिय बल वीरिय पुरिसक्कार परक्कमे सुसीस गण परियरिओ सव्वण्णु-पणीयागम सुत्तत्थो भयाणुसारेणं ववगय राग दोस मोह मिच्छत्तममकाराहंकारो सव्वत्थापडिबद्धो किं बहुना सव्वगुणगणा हिट्ठिय सरीरो

Translated Sutra: उसी तरह हे गौतम ! इस तरह अनाचारमे प्रवर्तनेवाले कईं आचार्य एवं गच्छनायक के भीतर एक मरकत रत्न समान कान्तिवाले कुवलयप्रभ नाम के महा तपस्वी अणगार थे। उन्हें काफी महान जीवादिक चीज विषयक सूत्र और अर्थ सम्बन्धी विस्तारवाला ज्ञान था। इस संसार समुद्र में उन योनि में भटकने के भयवाले थे। उस समय उस तरह का असंयम प्रवर्तने
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ नवनीतसार

Hindi 840 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहन्नया तेसिं दुरायाराणं सद्धम्म परंमुहाणं अगार धम्माणगार धम्मोभयभट्ठाणं लिंग मेत्त णाम पव्वइयाणं कालक्कमेणं संजाओ परोप्परं आगम वियारो। जहा णं सड्ढगाणमसई संजया चेव मढदेउले पडिजागरेंति खण्ड पडिए य समारावयंति। अन्नं च जाव करणिज्जं तं पइ समारंभे कज्ज-माणे जइस्सावि णं नत्थि दोस संभवं। एवं च केई भणंति संजम मोक्ख नेयारं, अन्ने भणंति जहा णं पासायवडिंसए पूया सक्कार बलि विहाणाईसु णं तित्थुच्छप्पणा चेव मोक्खगमणं। एवं तेसिं अविइय परमत्थाणं पावकम्माणं जं जेण सिट्ठं सो तं चेवुद्दामुस्सिंखलेणं मुहेणं पलवति। ताहे समुट्ठियं वाद संघट्टं। नत्थि य कोई तत्थ आगम कुसलो

Translated Sutra: अब किसी समय दुराचारी अच्छे धर्म से पराङ्मुख होनेवाले साधुधर्म और श्रावक धर्म दोनों से भ्रष्ट होनेवाला केवल भेष धारण करनेवाले हम प्रव्रज्या अंगीकार की है – ऐसा प्रलाप करनेवाले ऐसे उनको कुछ समय गुजरने के बाद भी वो आपस में आगम सम्बन्धी सोचने लगे कि – श्रावक की गैरमोजुदगी में संयत ऐसे साधु ही देवकुल मठ उपाश्रय
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८

चूलिका-२ सुषाढ अनगारकथा

Hindi 1514 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं किं तीए मयहरीए तेहिं से तंदुलमल्लगे पयच्छिए किं वा णं सा वि य मयहरी तत्थेव तेसिं समं असेस कम्मक्खयं काऊणं परिणिव्वुडा हवेज्ज त्ति। गोयमा तीए मयहरिए तस्स णं तंदुल मल्लगस्सट्ठाए तीए माहणीए धूय त्ति काऊणं गच्छमाणी अवंतराले चेव अवहरिया सा सुज्जसिरी, जहा णं मज्झं गोरसं परिभोत्तूणं कहिं गच्छसि संपयं त्ति। आह वच्चामो गोउलं। अन्नं च–जइ तुमं मज्झं विनीया हवेज्जा, ता अहयं तुज्झं जहिच्छाए ते कालियं बहु गुल घएणं अणुदियहं पायसं पयच्छिहामि। जाव णं एयं भणिया ताव णं गया सा सुज्जसिरि तीए मयहरीए सद्धिं ति। तेहिं पि परलोगाणुट्ठाणेक्क सुहज्झवसायाखित्तमाणसेहिं न

Translated Sutra: हे भगवंत ! वो महियारी – गोकुलपति बीबी को उन्होंने डांग से भरा भाजन दिया कि न दिया ? या तो वो महियारी उन के साथ समग्र कर्म का क्षय करके निर्वाण पाई थी ? हे गौतम ! उस महियारी को तांदुल भाजन देने के लिए ढूँढ़ने जा रही थी तब यह ब्राह्मण की बेटी है ऐसा समझकर जा रही थी, तब बीच में ही सुज्ञश्री का अपहरण किया। फिर मधु, दूध खाकर
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अध्ययन-८

चूलिका-२ सुषाढ अनगारकथा

Hindi 1516 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ति भाणिऊणं चिंतिउं पवत्तो सो महापावयारी। जहा णं किं छिंदामि अहयं सहत्थेहिं तिलं तिलं सगत्तं किं वा णं तुंगगिरियडाओ पक्खिविउं दढं संचुन्नेमि इनमो अनंत-पाव संघाय समुदयं दुट्ठं किं वा णं गंतूण लोहयार सालाए सुतत्त लोह खंडमिव घन खंडाहिं चुण्णावेमि सुइरमत्ताणगं किं वा णं फालावेऊण मज्झोमज्झीए तिक्ख करवत्तेहिं अत्ताणगं पुणो संभरावेमि अंतो सुकड्ढिय तउय तंब कंसलोह लोणूससज्जियक्खारस्स किं वा णं सहत्थेणं छिंदामि उत्तमंगं किं वा णं पविसामि मयरहरं किं वा णं उभयरुक्खेसु अहोमुहं विणिबंधाविऊण-मत्ताणगं हेट्ठा पज्जलावेमि जलणं किं बहुना णिद्दहेमि कट्ठेहिं अत्ताणगं

Translated Sutra: ऐसा बोलकर महापाप कर्म करनेवाला वो सोचने लगा कि – क्या अब मैं शस्त्र के द्वारा मेरे गात्र को तिल – तिल जितने टुकड़े करके छेद कर डालूँ ? या तो ऊंचे पर्वत के शिखर से गिरकर अनन्त पाप समूह के ढ़ेर समान इस दुष्ट शरीर के टुकड़े कर दूँ ? या तो लोहार की शाला में जाकर अच्छी तरह से तपाकर लाल किए लोहे की तरह मोटे घण से कोई टीपे उस
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अध्ययन-८

चूलिका-२ सुषाढ अनगारकथा

Hindi 1517 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं तं तारिसं महापावकम्मं समायरिऊणं तहा वी कहं एरिसेणं से सुज्जसिवे लहुं थेवेणं कालेणं परिनिव्वुडे त्ति गोयमा ते णं जारिसं भावट्ठिएणं आलोयणं विइन्नं जारिस संवेगगएणं तं तारिसं घोरदुक्करं महंतं पायच्छित्तं समनुट्ठियं जारिसं सुविसुद्ध सुहज्झवसाएणं तं तारिसं अच्चंत घोर वीरुग्ग कट्ठ सुदुक्कर तव संजम किरियाए वट्टमाणेणं अखंडिय अविराहिए मूलुत्तरगुणे परिपालयंतेणं निरइयारं सामन्नं णिव्वाहियं, जारिसेणं रोद्दट्टज्झाण विप्पमुक्केणं णिट्ठिय राग दोस मोह मिच्छत्त मय भय गारवेणं मज्झत्थ भावेणं अदीनमाणसेणं दुवालस वासे संलेहणं काऊणं पाओवगमणमणसणं पडिवन्नं।

Translated Sutra: हे भगवंत ! उस प्रकार का घोर महापाप कर्म आचरण करके यह सुज्ञशिव जल्द थोड़े काल में क्यों निर्वाण पाया ? हे गौतम ! जिस प्रकार के भाव में रहकर आलोयणा दी, जिस तरह का संवेग पाकर ऐसा घोर दुष्कर बड़ा प्रायश्चित्त आचरण किया। जिस प्रकार काफी विशुद्ध अध्यवसाय से उस तरह का अति घोर वीर उग्र कष्ट करनेवाला अति दुष्कर तप – संयम
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अध्ययन-८

चूलिका-२ सुषाढ अनगारकथा

Hindi 1518 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] काले णं तु खवे कम्मं, काले णं तु पबंधए। एगं बंधे खवे एगं, गोयमा कालमनंतगं

Translated Sutra: काल से तो कर्म खपाता है, काल के द्वारा कर्म बाँधता है, एक बाँधे, एक कर्म का क्षय करे, हे गौतम ! समय तो अनन्त है, योग का निरोध करनेवाला कर्म वेदता है लेकिन कर्म नहीं बाँधते। पुराने कर्म को नष्ट करते हैं, नए कर्म की तो उसे कमी ही है, इस प्रकार कर्म का क्षय जानना। इस विषय में समय की गिनती न करना। अनादि समय से यह जीव है तो
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अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-१ Hindi 248 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जं तं जहन्नगं दुक्खं मानुस्सं तं दुहा मुणे। सुहुम-बादर-भेदेणं निव्विभागे इतरे दुवे॥

Translated Sutra: मानव को जो जघन्य दुःख हो वो दो तरह का जानना – सूक्ष्म और बादर। दूसरे बड़े दुःख विभाग रहित जानना। समूर्च्छिम मानव को सूक्ष्म और देव के लिए बादर दुःख होता है। महर्द्धिक देव को च्यवनकाल से बादर मानसिक दुःख हो हुकुम उठानेवाले सेवक – आभियोगिक देव को जन्म से लेकर जीवन के अन्त तक मानसिक बादर दुःख होता है। देव को शारीरिक
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अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-२ Hindi 271 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] ता मह किलेसमुत्तिणं सुहियं से अत्ताणयं। मन्नंतो पमुइओ हिट्ठो सत्थचित्तो वि चिट्ठई॥

Translated Sutra: शरण रहित उस जीव को क्लेश न देकर सुखी किया, इसलिए अति हर्ष पाए। और स्वस्थ चित्तवाला होकर सोचे – माने कि यदि एक जीव को अभयदान दिया और फिर सोचने लगे कि अब मैं निवृत्ति – शांति प्राप्त हुआ। खुजलाने से उत्पन्न होनेवाला पापकर्म दुःख को भी मैंने नष्ट किया। खुजलाने से और उस जीव की विराधना होने से मैं अपनेआप नहीं जान
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अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Hindi 289 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एवं मेहुण-दोसेणं, वेदित्ता थावरत्तणं। केसेणमणंत-कालाओ मानुस-जोणी समागया॥

Translated Sutra: उस प्रकार मैथुन के दोष से स्थावरपन भुगतकर कुछ अनन्तकाल मानव योनि में आए। मानवपन में भी कुछ लोगों की होजरी मंद होने से मुश्किल से आहार पाचन हो। शायद थोड़ा ज्यादा आहार भोजन करे तो पेट में दर्द होता है। या तो पल – पल प्यास लगे, शायद रास्ते में उनकी मौत हो जाए। बोलना बहुत चाहे इसलिए कोई पास में न बिठाए, सुख से किसी
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अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Hindi 292 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एवं परिग्गहारंभदोसेणं नरगाउयं। तेत्तीस-सागरुक्कोसं वेइत्ता इह समागया॥

Translated Sutra: इस प्रकार परिग्रह और आरम्भ के दोष से नरकायुष बाँधकर उत्कृष्ट तैंतीस सागरोपम के काल तक नारकी की तीव्र वेदना से पीड़ित है। चाहे कितना भी तृप्त हो उतना भोजन करने के बावजूद भी संतोष नहीं होता, मुसाफिर को जिस तरह शान्ति नहीं मिलती उसी तरह यह बेचारा भोजन करने के बाद भी तृप्त नहीं होता। सूत्र – २९२, २९३
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अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Hindi 310 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] वनस्सई गए जीवे उड्ढपाए अहोमुहे। चिट्ठंतिऽनंतयं कालं नो लभे बेइंदियत्तणं॥

Translated Sutra: वनस्पतिपन पाकर पाँव ऊपर और मुँह नीचे रहे वैसे हालात में अनन्तकाल बीताते हुए बेइन्द्रियपन न पा सके वनस्पतिपन की भव और कायदशा भुगतकर बाद में एक, दो, तीन, चार, (पाँच) इन्द्रियपन पाए। पूर्व किए हुए पापशल्य के दोष से तिर्यंचपन में उत्पन्न हो तो भी महामत्स्य, हिंसक पंछी, साँढ़ जैसे बैल, शेर आदि के भव पाए। वहाँ भी अति क्रूरतर
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अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Hindi 314 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तं तारिसं महाघोरं दुक्खमनुभविउं चिरं। पुणो वि कूरतिरिएसु उववज्जिय नरयं वए॥

Translated Sutra: वहाँ लम्बे अरसे तक उस तरह के महाघोर दुःख का अहसास करके फिर से क्रूरतिर्यंच के भव में पैदा होकर क्रूर पापकर्म करके वापस नारकी में जाए इस तरह नरक और तिर्यंच गति के भव का बारी – बारी परावर्तन करते हुए कईं तरह के महादुःख का अहसास करते हुए वहाँ हुए के जो दुःख हैं उनका वर्णन करोड़ साल बाद भी कहने के लिए शक्तिमान न हो सके। सूत्र
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अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Hindi 316 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अह खरुट्ट-बइल्लेसुं भवेज्जा तब्भवंतरे, सगडायड्ढण-भरुव्वहण-खु-तण्ह-सीयायवं॥

Translated Sutra: उसके बाद गधे, ऊंट, बैल आदि के भव – भवान्तर करते हुए गाड़ी का बोज उठाना, भारवहन करना, कीलकयुक्त लकड़ी के मार का दर्द सहना, कीचड़ में पाँव फँस जाए वैसे हालात में बोझ उठाना। गर्मी, ठंड़ी, बारीस के दुःख सहना, वध बँधन, अंकन – निशानी करने के लिए कान – नाक छेदन, निर्लांछन, ड़ाम सहना, घुँसरी में जुड़कर साथ चलना, परोणी, चाबूक, अंकुश
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अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Hindi 328 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एवं भव-काय-ट्ठितीए सव्व-भावेहिं पोग्गले। सव्वे सपज्जवे लोए सव्व वन्नंतरेहि य।

Translated Sutra: उस प्रकार सर्व पुद्‌गल के सर्व पर्याय सर्व वर्णान्तर सर्व गंधरूप से, रसरूप से, स्पर्शपन से, संस्थानपन से अपनी शरीररूप में, परिणाम पाए, भवस्थिति और कायस्थिति के सर्वभाव लोक के लिए परिणामान्तर पाए, उतने पुद्‌गल परावर्तन काल तक बोधि पाए या न पाए। सूत्र – ३२८, ३२९
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अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Hindi 339 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अपरिमाणगुरुतुंगा महंता घन-निरंतरा। पाव-रासी खयं गच्छे, जहा तं सव्वोवाएहिमायरे॥

Translated Sutra: यदि सर्व दानादि स्व – पर हित के लिए आचरण किया जाए तो अ – परिमित महा, ऊंचे, भारी, आंतरा रहित गाढ पापकर्म का ढ़ग भी क्षय हो जाए। संयम – तप के सेवन से दीर्घकाल के सर्व पापकर्म का विनाश हो जाता है।
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अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Hindi 348 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तया न बंधए किंचि चिरबद्धं असेसं पि। निड्डहियज्झाण-जोग-अग्गीए भसमी करे दढं॥ लहु-पंचक्खरुग्गिरण-मेत्तेणं कालेण भवोवगाहियं।

Translated Sutra: देखो सूत्र ३४५
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अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Hindi 356 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कुंथूणं सय-सहस्सेणं तोलियं नो पलं भवे। एगस्स केत्तियं गत्तं, किं वा तोल्लं भवेज्ज से॥

Translated Sutra: कुंथु समान छोटा जानवर मेरे मलीन शरीर पर भ्रमण करे, संचार करे, चले तो भी उसको खुजलाकर नष्ट न करे लेकिन रक्षण करे, यह हंमेशा यहाँ नहीं रहेगा। शायद दूसरे पल में चला जाए, दूसरे पल में नहीं रहेगा। शायद दूसरे पल में न चला जाए तो हे गौतम ! इस प्रकार भावना रखनी, यह कुंथु राग से नहीं बसा या मुज पर उसे द्वेष नहीं, क्रोध से, मत्सर
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अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Hindi 372 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] नारय-तेरिच्छ-दुक्खाओ कुंथु-जानियाउ अंतरं। मंदरगिरि-अनंत-गुणियस्स परमाणुस्सा वि नो घडे॥

Translated Sutra: नारकी और तिर्यंच के दुःख और कुंथुआ के पाँव के स्पर्श का दुःख वो दोनों दुःख का अंतर कितना है ? तो कहते हैं मेरु पर्वत के परमाणु को अनन्त गुने किए जाए तो एक परमाणु जितना भी कुंथु के पाँव के स्पर्श का दुःख नहीं है। यह जीव भव के भीतर लम्बे अरसे से सुख की आकांक्षा कर रहे हैं। उसमें भी उसे दुःख की प्राप्ति होती है। और
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अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Hindi 453 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] भयवं सल्लम्मि देहत्थे दुक्खिए होंति पाणिणो। जं समयं निप्फिडे सल्लं तक्खणा सो सुही भवे॥

Translated Sutra: हे भगवंत ! जब तक शरीर में शल्य हो तब तक जीव दुःख का अहसास करते हैं, जब शल्य नीकाल देते हैं तब सुखी होते हैं। उसी प्रकार तीर्थंकर, सिद्धभगवंत, साधु और धर्म को धोखा देकर जो कुछ भी अकार्य आचरण किया हो उस का प्रायश्चित्त कर सुखी होता है। भावशल्य दूर होने से सुखी हो, वैसे आत्मा के लिए प्रायश्चित्त करने से कौन – सा गुण
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अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Hindi 456 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] उद्धरिउं गोयमा सल्लं वण-भंगे जाव नो कये। वण-पिंडीपट्ट-बंधं च ताव नो किं परुज्झए॥

Translated Sutra: हे गौतम ! शरीर में से शल्य बाहर नीकाला लेकिन झख्म भरने के लिए जब तक मल्हम लगाया न जाए, पट्टी न बाँधी जाए तब तक वो झख्म नहीं भरता। वैसे भावशल्य का उद्धार करने के बाद यह प्रायश्चित्त मल्हम पट्टी और पट्टी बाँधने समान समझो। दुःख से करके रूझ लाई जाए वैसे पाप रूप झख्म की जल्द रूझ लाने के लिए प्रायश्चित्त अमोघ उपाय है। सूत्र
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