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Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ नमिप्रवज्या

Hindi 290 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एवं करेंति संबुद्धा पंडिया पवियक्खणा । विनियट्टंति भोगेसु जहा से नमी रायरिसि ॥ –त्ति बेमि ॥

Translated Sutra: संबुद्ध, पण्डित और विचक्षण पुरुष इसी प्रकार भोगों से निवृत्त होते हैं, जैसे कि नमि राजर्षि। – ऐसा मैं कहता हूँ।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१० द्रुमपत्रक

Hindi 291 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] दुमपत्तए पंडुयए जहा निवडइ राइगणाण अच्चए । एवं मनुयाण जीवियं समयं गोयम! मा पमायए ॥

Translated Sutra: गौतम ! जैसे समय बीतने पर वृक्ष का सूखा हुआ सफेद पत्ता गिर जाता है, उसी प्रकार मनुष्य का जीवन है। अतः गौतम ! समय मात्र का भी प्रमाद मत कर।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१० द्रुमपत्रक

Hindi 293 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] इइ इत्तरियम्मि आउए जीवियए बहुपच्चवायए । विहुणाहि रयं पुरे कडं समयं गोयम! मा पमायए ॥

Translated Sutra: अल्पकालीन आयुष्य में, विघ्नों से प्रतिहत जीवन में ही पूर्वसंचित कर्मरज को दूर करना है, गौतम ! समय मात्र का भी प्रमाद मत कर।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१० द्रुमपत्रक

Hindi 295 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पुढविक्कायमइगओ उक्कोसं जीवो उ संवसे । कालं संखाईयं समयं गोयम! मा पमायए ॥

Translated Sutra: पृथ्वीकाय में, अप्‌काय में, तेजस्‌ काय में, वायुकाय में असंख्यात काल तक रहता है। अतः गौतम ! क्षण भर का भी प्रमाद मत कर। और वनस्पतिकाय में गया हुआ जीव उत्कर्षतः दुःख से समाप्त होने वाले अनन्त काल तक रहता है। अतः गौतम ! क्षण भर का भी प्रमाद मत कर। सूत्र – २९५–२९९
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१० द्रुमपत्रक

Hindi 311 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] परिजूरइ ते सरीरयं केसा पंडुरया हवंति ते । से सोयबले य हायई समयं गोयम! मा पमायए ॥

Translated Sutra: तुम्हारा शरीर जीर्ण हो रहा है, बाल सफेद हो रहे हैं। श्रवणशक्ति कमजोर हो रही है। शरीर जीर्ण हो रहा है, आँखों की शक्ति क्षीण हो रही है। घ्राण शक्ति हीन हो रही है। रसग्राहक जिह्वा की शक्ति नष्ट हो रही है। स्पर्शशक्ति क्षीण हो रही है। सारी शक्ति ही क्षीण हो रही है। इस स्थिति में गौतम ! समय मात्र का भी प्रमाद मत कर। सूत्र
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१० द्रुमपत्रक

Hindi 317 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अरई गंडं विसूइया आयंका विविहा फुसंति ते । विवडइ विद्धंसइ ते सरीरयं समयं गोयम! मा पमायए ॥

Translated Sutra: वात – विकार आदि से जन्य चितोद्वेग, फोड़ा – फुन्सी, विसूचिका तथा अन्य भी शीघ्र – घाती विविध रोग से शरीर गिर जाता है, विध्वस्त हो जाता है। अतः गौतम ! क्षण भर का भी प्रमाद मत कर।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१० द्रुमपत्रक

Hindi 318 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] वोछिंद सिनेहमप्पणो कुमुयं सारइयं व पाणियं । से सव्वसिनेहवज्जिए समयं गोयम! मा पमायए ॥

Translated Sutra: जैसे शरद – कालीन कुमुद पानी से लिप्त नहीं होता, उसी प्रकार तू भी अपना सभी प्रकार का स्नेह का त्याग कर, गौतम ! इसमें तू समय मात्र भी प्रमाद मत कर।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१० द्रुमपत्रक

Hindi 319 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] चिच्चाण धनं च भारियं पव्वइओ हि सि अनगारियं । मा वंतं पुणो वि आइए समयं गोयम! मा पमायए ॥

Translated Sutra: धन और पत्नी का परित्याग कर तू अनगार वृत्ति में दीक्षित हुआ है। अतः एक बार वमन किए गए भोगों को पुनः मत पी, गौतम ! समय मात्र का भी प्रमाद मत कर।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१० द्रुमपत्रक

Hindi 320 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अवउज्झिय मित्तबंधवं विउलं चेव घनोहसंचयं । मा तं बिइयं गवेसए समयं गोयम! मा पमायए ॥

Translated Sutra: मित्र, बान्धव और विपुल धनराशि को छोड़कर पुनः उनकी गवेषणा मत कर। हे गौतम ! समय मात्र का भी प्रमाद मत कर।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१० द्रुमपत्रक

Hindi 321 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] न हु जिने अज्ज दिस्सई बहुमए दिस्सई मग्गदेसिए । संपइ नेयाउए पहे समयं गोयम! मा पमायए ॥

Translated Sutra: भविष्य में लोग कहेंगे – ‘आज जिन नहीं दिख रहे हैं और जो मार्गदर्शक हैं भी, वे एक मत के नहीं है।’ किन्तु आज तुझे न्यायपूर्ण मार्ग उपलब्ध है। अतः गौतम ! समय मात्र का भी प्रमाद मत कर।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१० द्रुमपत्रक

Hindi 323 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अबले जह भारवाहए मा मग्गे विसमेऽवगाहिया । पच्छा पच्छानुतावए समयं गोयम! मा पमायए ॥

Translated Sutra: कमजोर भारवाहक विषम मार्ग पर जाता है, तो पश्चात्ताप करता है, गौतम ! तुम उसकी तरह विषम मार्ग पर मत जाओ। अन्यता बाद में पछताना होगा। गौतम ! समय मात्र का भी प्रमाद मत कर।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१० द्रुमपत्रक

Hindi 324 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तिन्नो हु सि अन्नवं महं किं पुण चिट्ठसि तीरमागओ । अभितुर पारं गमित्तए समयं गोयम! मा पमायए ॥

Translated Sutra: हे गौतम ! तू महासागर को तो पार कर गया है, अब तीर के निकट पहुँच कर क्यों खड़ा है ? उसको पार करने में जल्दी कर। गौतम ! क्षण भर का भी प्रमाद मत कर।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१० द्रुमपत्रक

Hindi 325 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अकलेवरसेणिमुस्सिया सिद्धिं गोयम! लोयं गच्छसि । खेमं च सिवं अनुत्तरं समयं गोयम! मा पमायए ॥

Translated Sutra: तू देहमुक्त सिद्धत्व को प्राप्त कराने वाली क्षपक श्रेणी पर आरूढ़ हो कर क्षेम, शिव और अनुत्तर सिद्धि लोक को प्राप्त करेगा। अतः गौतम ! क्षण भर का भी प्रमाद मत कर।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-११ बहुश्रुतपूज्य

Hindi 348 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जहा से वासुदेवे संखचक्कगयाधरे । अप्पडिहयबले जोहे एवं हवइ बहुस्सुए ॥

Translated Sutra: जैसे शंख, चक्र और गदा को धारण करनेवाला वासुदेव अपराजित बलवाला योद्धा होता है, वैसे बहुश्रुत भी अपराजित बलशाली होता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-११ बहुश्रुतपूज्य

Hindi 349 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जहा से चाउरंते चक्कवट्टी महिड्ढिए । चउदसरयणाहिवई एवं हवइ बहुस्सुए ॥

Translated Sutra: जैसे महान ऋद्धिशाली चातुरन्त चक्रवर्ती चौदह रत्नों का स्वामी होता है, वैसे ही बहुश्रुत भी चौदह पूर्वों की विद्या का स्वामी होता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-११ बहुश्रुतपूज्य

Hindi 350 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जहा से सहस्सक्खे वज्जपाणी पुरंदरे । सक्के देवाहिवई एवं हवइ बहुस्सुए ॥

Translated Sutra: जैसे सहस्रचक्षु, वज्रपाणि, पुरन्दर शक्र देवों का अधिपति होता है, वैसे बहुश्रुत भी होता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-११ बहुश्रुतपूज्य

Hindi 351 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जहा से तिमिरविद्धंसे उत्तिट्ठंते दिवायरे । जलंते इव तेएण एवं हवइ बहुस्सुए ॥

Translated Sutra: जैसे अन्धकार का नाशक उदीयमान सूर्य तेज से जलता हुआ – सा प्रतीत होता है, उसी प्रकार बहुश्रुत भी तेजस्वी होता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-११ बहुश्रुतपूज्य

Hindi 352 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जहा से उडुवई चंदे नक्खत्तपरिवारिए । पडिपुन्ने पुण्णमासीए एवं हवइ बहुस्सुए ॥

Translated Sutra: जैसे नक्षत्रों के परिवार से परिवृत्त, चन्द्रमा पूर्णिमा को परिपूर्ण होता है, उसी प्रकार बहुश्रुत भी ज्ञानादि की कलाओं से परिपूर्ण होता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-११ बहुश्रुतपूज्य

Hindi 353 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जहा से सामाइयाणं कोट्ठागारे सुरक्खिए । नानाधन्नपडिपुन्ने एवं हवइ बहुस्सुए ॥

Translated Sutra: जिस प्रकार व्यापारी आदि का कोष्ठागार सुरक्षित और अनेक प्रकार के धान्यों से परिपूर्ण होता है, उसी प्रकार बहुश्रुत भी नाना प्रकार के श्रुत से परिपूर्ण होता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-११ बहुश्रुतपूज्य

Hindi 354 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जहा सा दुमाण पवरा जंबू नाम सुदंसणा । अनाढियस्स देवस्स एवं हवइ बहुस्सुए ॥

Translated Sutra: ‘अनादृत’ देवका ‘सुदर्शन’ नामक जम्बू वृक्ष जिस प्रकार सब वृक्षों में श्रेष्ठ होता है, वैसे ही बहुश्रुत सब साधुओं में श्रेष्ठ होता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-११ बहुश्रुतपूज्य

Hindi 355 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जहा सा नईण पवरा सलिला सागरंगमा । सीया नीलवंतपवहा एवं हवइ बहुस्सुए ॥

Translated Sutra: जिस प्रकार नीलवंत वर्षधर पर्वत से निकली हुई जलप्रवाह से परिपूर्ण, समुद्रगामिनी सीता नदी सब नदियों में श्रेष्ठ हैं, इसी प्रकार बहुश्रुत भी सर्वश्रेष्ठ होता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-११ बहुश्रुतपूज्य

Hindi 356 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जहा से नगाण पवरे सुमहं मंदरे गिरी । नानोसहिपज्जलिए एवं हवइ बहुस्सुए ॥

Translated Sutra: जैसे कि नाना प्रकार की औषधियों से दीप्त महान्‌ मंदर – मेरु पर्वत सब पर्वतों में श्रेष्ठ हैं, ऐसे ही बहुश्रुत सब साधुओं में श्रेष्ठ होता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-११ बहुश्रुतपूज्य

Hindi 357 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जहा से सयंभूरमणे उदही अक्खओदए । नाणारयणपडिपुन्ने एवं हवइ बहुस्सुए ॥

Translated Sutra: जिस प्रकार सदैव अक्षय जल से परिपूर्ण स्वयंभूरमण समुद्र नानाविध रत्नों से परिपूर्ण रहता है, उसी प्रकार बहुश्रुत भी अक्षय ज्ञान से परिपूर्ण होता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-११ बहुश्रुतपूज्य

Hindi 358 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] समुद्दगंभीरसमा दुरासया अचक्किया केणइ दुप्पहंसया । सुयस्स पुण्णा विउलस्स ताइणो खवित्तु कम्मं गइमुत्तमं गया ॥

Translated Sutra: समुद्र के समान गम्भीर, दुरासद, अविचलित, अपराजेय, विपुल श्रुतज्ञान से परिपूर्ण, त्राता – ऐसे बहुश्रुत मुनि कर्मों को क्षय करके उत्तम गति को प्राप्त हुए हैं।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-११ बहुश्रुतपूज्य

Hindi 359 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तम्हा सुयमहिट्ठेज्जा उत्तमट्ठगवेसए । जेणप्पाणं परं चेव सिद्धिं संपाउणेज्जासि ॥ –त्ति बेमि ॥

Translated Sutra: मोक्ष की खोज करनेवाला मुनि श्रुत का आश्रय ग्रहण करे, जिससे वह स्वयं को और दूसरों को भी सिद्धि प्राप्त करा सके। – ऐसा मैं कहता हूँ।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१२ हरिकेशीय

Hindi 360 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सोवागकुलसंभूओ गुणुत्तरधरो मुनी । हरिएसबलो नाम आसि भिक्खू जिइंदिओ ॥

Translated Sutra: हरिकेशबल – चाण्डालकुल में उत्पन्न हुए थे, फिर भी ज्ञानादि उत्तम गुणों के धारक और जितेन्द्रिय भिक्षु थे
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१२ हरिकेशीय

Hindi 361 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] इरिएसणभासाए उच्चारसमिईसु य । जओ आयाणनिक्खेवे संजओ सुसमाहिओ ॥

Translated Sutra: वे ईर्या, एषणा, भाषा, उच्चार, आदान – निक्षेप इन पाँच समितियों में यत्नशील समाधिस्थ संयमी थे।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१२ हरिकेशीय

Hindi 362 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] मनगुत्तो वयगुत्तो कायगुत्तो जिइंदिओ । भिक्खट्ठा बंभइज्जम्मि जन्नवाडं उवट्ठिओ ॥

Translated Sutra: मन, वाणी और काय से गुप्त जितेन्द्रिय मुनि, भिक्षा लेने यज्ञमण्डप में गये, जहाँ ब्राह्मण यज्ञ कर रहे थे।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१२ हरिकेशीय

Hindi 364 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जाईमयपडिथद्धा हिंसगा अजिइंदिया । अबंभचारिणो बाला इमं वयणमब्बवी ॥

Translated Sutra: जातिमद से प्रतिस्तब्ध – दृप्त, हिंसक, अजितेन्द्रिय, अब्रह्मचारी और अज्ञानी लोगों ने इस प्रकार कहा –
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१२ हरिकेशीय

Hindi 365 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कयरे आगच्छइ दित्तरूवे काले विगराले फोक्कनासे । ओमचेलए पंसुपिसायभूए संकरदूसं परिहरिय कंठे? ॥

Translated Sutra: बीभत्स रूपवाला, काला, विकराल, बेडोल, मोटी नाकवाला, अल्प एवं मलिन वस्त्रवाला, धूलिधूसरित होने से भूत की तरह दिखाई देनेवाला, गले में संकरदूष्य धारण करनेवाला यह कौन आ रहा है ? अरे अदर्शनीय ! तू कौन है ? यहाँ किस आशा से आया है तू ? गंदे और धूलिधूसरित वस्त्र से तू अधनंगा पिशाच की तरह दीख रहा है। जा, भाग यहाँ से, यहाँ क्यों
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१२ हरिकेशीय

Hindi 367 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जक्खो तहिं तिंदुयरुक्खवासी अणुकंपओ तस्स महामुनिस्स । पच्छायइत्ता नियगं सरीरं इमाइं वयणाइमुदाहरित्था ॥

Translated Sutra: उस समय महामुनि के प्रति अनुकम्पा का भाव रखनेवाले तिन्दुक वृक्षवासी यक्षने अपने शरीर को छुपाकर ऐसे वचन कहे – ‘‘मैं श्रमण हूँ। मैं संयत हूँ। मैं ब्रह्मचारी हूँ। मैं धन, पचन और परिग्रह का त्यागी हूँ। भिक्षा समय दूसरों के लिए निष्पन्न आहार के लिए यहाँ आया हूँ। यहाँ प्रचूर अन्न दिया, खाया और उपभोग में लाया जा रहा
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१२ हरिकेशीय

Hindi 370 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] उवक्खडं भोयण माहणाणं अत्तट्ठियं सिद्धमिहेगपक्खं । न ऊ वयं एरिसमन्नपाणं दाहामु तुज्झं किमिहं ठिओसि? ॥

Translated Sutra: रुद्रदेव – ‘‘यह भोजन केवल ब्राह्मणों के लिए तैयार किया गया है। यह एकपक्षीय है, अतः दूसरों के लिए अदेय है। हम तुझे यह यज्ञार्थनिष्पन्न अन्न जल नहीं देंगे। फिर तू यहाँ क्यों खड़ा है ?’’
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१२ हरिकेशीय

Hindi 371 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] थलेसु बीयाइ ववंति कासगा तहेव निन्नेसु य आससाए । एयाए सद्धाए दलाह मज्झं आराहए पुण्णमिणं खु खेत्तं ॥

Translated Sutra: यक्ष – ‘‘अच्छी फसल की आशा से किसान जैसे ऊंची और नीची भूमि में भी बीज बोते हैं। इस कृषकदृष्टि से ही मुझे दान दो। मैं भी पुण्यक्षेत्र हूँ, अतः मेरी भी आराधना करो।’’
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१२ हरिकेशीय

Hindi 372 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] खेत्ताणि अम्हं विइयाणि लोए जहिं पकिण्णा विरुहंति पुण्णा । जे माहणा जाइविज्जोववेया ताइं तु खेत्ताइं सुपेसलाइं ॥

Translated Sutra: रुद्रदेव – ‘‘संसार में ऐसे क्षेत्र हमें मालूम हैं, जहाँ बोये गए बीज पूर्ण रूप से उग आते हैं। जो ब्राह्मण जाति और विद्या से सम्पन्न हैं, वे ही पुण्यक्षेत्र हैं।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१२ हरिकेशीय

Hindi 373 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कोहो य मानो य वहो य जेसिं मोसं अदत्तं च परिग्गहं च । ते माहणा जाइविज्जाविहूणा ताइं तु खेत्ताइं सुपावयाइं ॥

Translated Sutra: यक्ष – ‘‘जिनमें क्रोध, मान, हिंसा, झूठ, चोरी और परिग्रह हैं, वे ब्राह्मण जाति और विद्या से विहीन पापक्षेत्र हैं।’’ हे ब्राह्मणो ! इस संसार में आप केवल वाणी का भार ही वहन कर रहे हो। वेदों को पढ़कर भी उनके अर्थ नहीं जानते। जो मुनि भिक्षा के लिए समभावपूर्वक ऊंच नीच घरों में जाते हैं, वे ही पुण्य – क्षेत्र हैं। सूत्र
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१२ हरिकेशीय

Hindi 375 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अज्झावयाणं पडिकूलभासी पभाससे किं तु सगासि अम्हं । अवि एयं विणस्सउ अन्नपाणं न य णं दाहामु तुमं नियंठा! ॥

Translated Sutra: रुद्रदेव – ‘‘हमारे सामने अध्यापकों के प्रति प्रतिकूल बोलने वाले निर्ग्रन्थ ! क्या बकवास कर रहा है ? यह अन्न जल भले ही सड़ कर नष्ट हो जाय, पर, हम तुझे नहीं देंगे।’’
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१२ हरिकेशीय

Hindi 376 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] समिईहि मज्झं सुसमाहियस्स गुत्तीहिं गुत्तस्स जिइंदियस्स । जइ मे न दाहित्थ अहेसणिज्जं किमज्ज जन्नाण लहित्थ लाहं? ॥

Translated Sutra: यक्ष – मैं समितियों से सुसमाहित हूँ, गुप्तियों से गुप्त हूँ और जितेन्द्रिय हूँ। यह एषणीय आहार यदि नहीं देते हो, तो आज इन यज्ञों का तुम क्या लाभ लोगे ?
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१२ हरिकेशीय

Hindi 377 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] के एत्थ खत्ता उवजोइया वा अज्झावया वा सह खंडिएहिं । एयं दंडेण फलेण हंता कंठम्मि घेत्तूण खेलज्ज जो णं? ॥

Translated Sutra: रुद्रदेव – यहाँ कोई है क्षत्रिय, उपज्योतिष – रसोइये, अध्यापक और छात्र, जो इस निर्ग्रन्थ को डण्डे से, फलक से पीट कर और कण्ठ पकड़ कर निकाल दें। यह सुनकर बहुत से कुमार दौड़ते हुए आए और दण्डों से, बेंतो से, चाबुकों से ऋषि को पीटने लगे। राजा कौशलिक की अनिन्द्य सुंदरी कन्या भद्रा ने मुनि को पीटते देखकर क्रुद्ध कुमारों
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१२ हरिकेशीय

Hindi 380 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] देवाभिओगेण निओइएणं दिन्ना मु रन्ना मनसा न ज्झाया । नरिंददेविंदऽभिवंदिएणं जेणम्हि वंता इसिणा स एसो ॥

Translated Sutra: भद्रा – देवता की बलवती प्रेरणा से राजा ने मुझे इस मुनि को दिया था, किन्तु मुनि ने मुझे मन से भी नहीं चाहा। मेरा परित्याग करने वाले यह ऋषि नरेन्द्रों और देवेन्द्रों से भी पूजित हैं। ये वही उग्र तपस्वी, महात्मा, जितेन्द्रिय, संयम और ब्रह्मचारी हैं, जिन्होंने स्वयं मेरे पिता राजा कौशलिक के द्वारा मुझे दिये जाने
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१२ हरिकेशीय

Hindi 384 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] ते घोररूवा ठिय अंतलिक्खे असुरा तहिं तं जणं तालयंति । ते भिन्नदेहे रुहिरं वमंते पासित्तु भद्दा इणमाहु भुज्जो ॥

Translated Sutra: आकाश में स्थित भयंकर रूप वाले असुरभावापन्न क्रुद्ध यक्ष उनको प्रताड़ित करने लगे। कुमारों को क्षत – विक्षत और खून की उल्टी करते देखकर भद्रा ने पुनः कहा – जो भिक्षु का अपमान करते हैं, वे नखों से पर्वत खोदते हैं, दातों से लोहा चबाते हैं और पैरों से अग्नि को कुचलते हैं।महर्षि आशीविष, घोर तपस्वी, घोर व्रती, घोर पराक्रमी
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१२ हरिकेशीय

Hindi 389 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] ते पासिया खंडिय कट्ठभूए विमनो विसण्णो अह माहणो सो । इसिं पसाएइ सभारियाओ हीलं च निंदं च खमाह भंते! ॥

Translated Sutra: इस प्रकार छात्रों को काठ की तरह निश्चेष्ट देखकर वह उदास और भयभीत ब्राह्मण अपनी पत्नी को साथ लेकर मुनि को प्रसन्न करने लगा – भन्ते ! हमने तथा मूढ़ अज्ञानी बालकों ने आपकी जो अवहेलना की है, आप उन्हें क्षमा करें। ऋषिजन महान्‌ प्रसन्नचित्त होते हैं, अतः वे किसी पर क्रोध नहीं करते हैं। सूत्र – ३८९, ३९०
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१२ हरिकेशीय

Hindi 391 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पुव्विं च इण्हिं च अनागयं च मनप्पदोसो न मे अत्थि कोइ । जक्खा हु वेयावडियं करेंति तम्हा हु एए निहया कुमारा ॥

Translated Sutra: मुनि – ‘‘मेरे मन में न कोई द्वेष पहले था, न अब है, और न आगे होगा। यक्ष सेवा करते हैं, उन्होंने ही कुमारों को प्रताड़ित किया है।’’
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१२ हरिकेशीय

Hindi 392 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अत्थं च धम्मं च वियाणमाणा तुब्भे न वि कुप्पह भूइपण्णा । तुब्भं तु पाए सरणं उवेमो समागया सव्वजनेन अम्हे ॥

Translated Sutra: रुद्रदेव – धर्म और अर्थ को यथार्थ रूप से जाननेवाले भूतिप्रज्ञ आप क्रोध न करे। हम सब मिलकर आपके चरणों में आए हैं, शरण ले रहे हैं। महाभाग ! हम आपकी अर्चना करते हैं। अब आप दधि आदि नाना व्यंजनों से मिश्रित शालिचावलों से निष्पन्न भोजन खाइए।यह हमारा प्रचुर अन्न है। हमारे अनुग्रहार्थ इसे स्वीकार करें। पुरोहित के
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१२ हरिकेशीय

Hindi 395 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तहियं गंधोदयपुप्फवासं दिव्वा तहिं वसुहारा य वुट्ठा । पहयाओ दुंदुहीओ सुरेहिं आगासे अहो दाणं च घुट्ठं ॥

Translated Sutra: देवों ने वहाँ सुगन्धित जल, पुष्प एवं दिव्य धन की वर्षा को और दुन्दुभियाँ बजाईं, आकाश में ‘अहो दानम्‌’ का घोष किया। प्रत्यक्ष में तप की ही विशेषता – महिमा देखी जा रही है, जाति की नहीं। जिसकी ऐसी महान्‌ चमत्कारी ऋद्धि है, वह हरिकेश मुनि – चाण्डाल पुत्र है। सूत्र – ३९५, ३९६
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१२ हरिकेशीय

Hindi 397 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] किं माहणा! जोइसमारभंता उदएण सोहिं बहिया विमग्गहा? । जं मग्गहा बाहिरियं विसोहि न त सुदिट्ठं कुसला वयंति ॥

Translated Sutra: मुनि – ब्राह्मणो ! अग्नि का समारम्भ करते हुए क्या तुम बाहर से – जल से शुद्धि करना चाहते हो ? जो बाहर से शुद्धि को खोजते हैं उन्हें कुशल पुरुष सुदृष्ट – नहीं कहते। कुश, यूप, तृण, काष्ठ और अग्नि का प्रयोग तथा प्रातः और संध्या में जल का स्पर्श – इस प्रकार तुम मन्द – बुद्धि लोग, प्राणियों और भूत जीवों का विनाश करते हुए
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१२ हरिकेशीय

Hindi 400 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] छज्जीवकाए असमारभंता मोसं अदत्तं च असेवमाणा । परिग्गहं इत्थिओ माणमायं एयं परिण्णाय चरंति दंता ॥

Translated Sutra: मुनि – मन और इन्द्रियों को संयमित रखने वाले मुनि पृथ्वी आदि छह जीवनिकाय की हिंसा नहीं करते हैं, असत्य नहीं बोलते हैं, चोरी नहीं करते हैं; परिग्रह, स्त्री, मान और माया को स्वरूपतः जानकर एवं छोड़कर विचरण करते हैं। जो पाँच संवरों से पूर्णतया संवृत होते हैं, जीवन की आकांक्षा नहीं करते, शरीर का परित्याग करते हैं, पवित्र
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१२ हरिकेशीय

Hindi 403 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तवो जोई जीवो जोइठाणं जोगा सुया सरीरं कारिसंगं । कम्म एहा संजमजोगसंती होमं हुणामी इसिणं पसत्थं ॥

Translated Sutra: मुनि – तप ज्योति है। जीव – आत्मा ज्योति का स्थान है। मन, वचन और काया का योग कड़छी है। शरीर कण्डे हैं। कर्म ईंधन है। संयम की प्रवृत्ति शांति – पाठ है। ऐसा मैं प्रशस्त यज्ञ करता हूँ।’’
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१२ हरिकेशीय

Hindi 405 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] धम्मे हरए बंभे संतितित्थे अणाविले अत्तपसन्नलेसे । जहिंसि ण्हाओ विमलो विसुद्धो सुसीइभूओ पजहामि दोसं ॥

Translated Sutra: मुनि – ‘‘आत्मभाव की प्रसन्नतारूप अकलुष लेश्यावाला धर्म मेरा ह्रद है, जहाँ स्नान कर मैं विमल, विशुद्ध एवं शान्त होकर कर्मरज को दूर करता हूँ। कुशल पुरुषों ने इसे ही स्नान कहा है। ऋषियों के लिए यह महान्‌ स्नान ही प्रशस्त है। इस धर्मह्रद में स्नान करके महर्षि विमल और विशुद्ध होकर उत्तम स्थान को प्राप्त हुए हैं।’’
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१३ चित्र संभूतीय

Hindi 408 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कंपिल्ले संभूओ चित्तो पुण जाओ पुरिमतालम्मि । सेट्ठिकुलम्मि विसाले धम्मं सोऊण पव्वइओ ॥

Translated Sutra: सम्भूत काम्पिल्य नगर में और चित्र पुरिमताल नगर में, विशाल श्रेष्ठिकुल में, उत्पन्न हुआ। और वह धर्म सुनकर प्रव्रजित हो गया।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१३ चित्र संभूतीय

Hindi 411 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] आसिमो भायरा दो वि अन्नमन्नवसाणुगा । अन्नमन्नमनुरत्ता अन्नमन्नहिएसिणो ॥

Translated Sutra: ‘‘इसके पूर्व हम दोनों परस्पर वशवर्ती, अनुरक्त और हितैषी भाई – भाई थे। – ‘‘हम दोनों दशार्ण देश में दास, कालिंजर पर्वत पर हरिण, मृत – गंगा के किनारे हंस और काशी देश में चाण्डाल थे। देवलोक में महान्‌ ऋद्धि से सम्पन्न देव थे। यह हमारा छठवां भव है, जिसमें हम एक – दूसरे को छोड़कर पृथक्‌ – पृथक्‌ पैदा हुए हैं।’’ सूत्र
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