Welcome to the Jain Elibrary: Worlds largest Free Library of JAIN Books, Manuscript, Scriptures, Aagam, Literature, Seminar, Memorabilia, Dictionary, Magazines & Articles

Global Search for JAIN Aagam & Scriptures

Search Results (28178)

Show Export Result
Note: For quick details Click on Scripture Name
Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ क्षुल्लक निर्ग्रंथत्व

Hindi 170 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] भणंता अकरेंता य बंधमोक्खपइण्णिणो । वायाविरियमेत्तेण समासासेंति अप्पयं ॥

Translated Sutra: जो बन्ध और मोक्ष के सिद्धान्तों की स्थापना तो करते हैं, कहते बहुत हैं, किन्तु करते कुछ नहीं हैं, वे ज्ञानवादी केवल वाग् वीर्य से अपने को आश्वस्त करते रहते हैं।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ क्षुल्लक निर्ग्रंथत्व

Hindi 171 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] न चित्ता तायए भासा कओ विज्जानुसासनं? । विसन्ना पावकम्मेहिं बाला पंडियमानिनो ॥

Translated Sutra: विविध भाषाऍं रक्षा नहीं करती हैं, विद्याओं का अनुशासन भी कहाँ सुरक्षा देता है ? जो इन्हें संरक्षक मानते हैं, वे अपने आपको पण्डित माननेवाले अज्ञानी जीव पाप कर्मों में मग्न हैं, डूबे हुए हैं।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ क्षुल्लक निर्ग्रंथत्व

Hindi 172 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जे केइ सरीरे सत्ता वन्ने रूवे य सव्वसो । मनसा कायवक्केणं सव्वे ते दुक्खसंभवा ॥

Translated Sutra: जो मन, वचन और काया से शरीर में, शरीर के वर्ण और रूप में सर्वथा आसक्त हैं, वे सभी अपने लिए दुःख उत्पन्न करते हैं।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ क्षुल्लक निर्ग्रंथत्व

Hindi 176 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सन्निहिं च न कुव्वेज्जा लेवमायाए संजए । पक्खी पत्तं समादाय निरवेक्खो परिव्वए ॥

Translated Sutra: साधु लेशमात्र भी संग्रह न करे, पक्षी की तरह संग्रह से निरपेक्ष रहता हुआ पात्र लेकर भिक्षा के लिए विचरण करे।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ क्षुल्लक निर्ग्रंथत्व

Hindi 177 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एसणासमिओ लज्जू गामे अनियओ चरे । अप्पमत्तो पमत्तेहिं पिंडवायं गवेसए ॥

Translated Sutra: एषणा समिति से युक्त लज्जावान्‌ संयमी मुनि गांवों में अनियत विहार करे, अप्रमत्त रहकर गृहस्थों से पिण्डपातभिक्षा की गवेषणा करे।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ क्षुल्लक निर्ग्रंथत्व

Hindi 178 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एवं से उदाहु, अनुत्तरनाणी अनुत्तरदंसी अनुत्तरनाणदंसणधरे । अरहा नायपुत्ते भगवं वेसालिए वियाहिए ॥ –त्ति बेमि ॥

Translated Sutra: अनुत्तर ज्ञानी, अनुत्तरदर्शी, अनुत्तर ज्ञान – दर्शन के धर्ता, अर्हन्‌, ज्ञातपुत्र वैशालिक महावीर ने ऐसा कहा है। – ऐसा मैं कहता हूँ।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-७ औरभ्रीय

Hindi 179 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जहाएसं समुद्दिस्स कोइ पोसेज्ज एलयं । ओयणं जवसं देज्जा पोसेज्जा वि सयंगणे ॥

Translated Sutra: जैसे कोई व्यक्ति संभावित अतिथि के उद्देश्य से मेमने का पोषण करता है। उसे चावल, जौ या हरी घास आदि देता है। और उसका यह पोषण अपने आंगन में ही करता है। इस प्रकार वह मेमना अच्छा खाते – पीते पुष्ट, बलवान, मोटा, बड़े पेटवाला हो जाता है। अब वह तृप्त एवं मांसल देहवाला मेमना बस अतिथि की प्रतीक्षा करता है। जब तक अतिथि नहीं
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-७ औरभ्रीय

Hindi 183 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] हिंसे बाले मुसावाई अद्धाणंमि विलोवए । अन्नदत्तहरे तेणे माई कण्हुहरे सढे ॥

Translated Sutra: हिंसक, अज्ञानी, मिथ्याभाषी, मार्ग लूटनेवाला बटमार, दूसरों को दी हुई वस्तु को बीच में ही हड़प जानेवाला, चोर, मायावी ठग, कुतोहर – विकल्पना में निरन्तर लगा रहने वाला, धूर्त – स्त्री और अन्य विषयों में आसक्त, महाआरम्भ और महा – परिग्रहवाला, सुरा और मांस का उपभोगी बलवान्‌, दूसरों को सताने वाला – बकरे की तरह कर – कर शब्द
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-७ औरभ्रीय

Hindi 186 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] आसनं सयनं जाणं वित्तं कामे य भुंजिया । दुस्साहडं घनं हिच्चा बहुं संचिणिया रयं ॥

Translated Sutra: आसन, शय्या, वाहन, धन और अन्य कामभोगों को भोगकर, दुःख से एकत्रित किए धन को छोड़कर, कर्मों की बहुत धूल संचित कर – केवल वर्तमान को ही देखने में तत्पर, कर्मों से भारी हुआ जीव मृत्यु के समय वैसे ही शोक करता है, जैसे कि मेहमान के आने पर मेमना करता है। सूत्र – १८६, १८७
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-७ औरभ्रीय

Hindi 195 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] दुहओ गई बालस्स आवई वहमूलिया । देवत्तं मानुसत्तं च जं जिए लोलयासढे ॥

Translated Sutra: अज्ञानी जीव की दो गति हैं – नरक और तिर्यंच। वहाँ उसे वधमूलक कष्ट प्राप्त होता है। क्योंकि वह लोलुपता और वंचकता के कारण देवत्व और मनुष्यत्व को पहले ही हार चूका होता है। नरक और तिर्यंच – रूप दो दुर्गति को प्राप्त अज्ञानी जीव देव और मनुष्य गति को सदा ही हारे हुए हैं। क्योंकि भविष्य में उन का दीर्घ काल तक वहाँ से
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-७ औरभ्रीय

Hindi 198 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] वेमायाहिं सिक्खाहिं जे नरा गिहिसुव्वया । उवेंति मानुसं जोणिं कम्मसच्चा हु पाणिणो ॥

Translated Sutra: जो मनुष्य विविध परिमाणवाली शिक्षाओं द्वारा घर में रहते हुए भी सुव्रती हैं, वे मानुषी योनि में उत्पन्न होते हैं। क्योंकि प्राणी कर्मसत्य होते हैं – जिनकी शिक्षा विविध परिमाण वाली व्यापक है, जो घर में रहते हुए भी शील से सम्पन्न एवं उत्तरोत्तर गुणों से युक्त हैं, वे अदीन पुरुष मूलधनरूप मनुष्यत्व से आगे बढ़कर
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-७ औरभ्रीय

Hindi 201 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जहा कुसग्गे उदगं समुद्देण समं मिणे । एवं मानुस्सगा कामा देवकामाण अंतिए ॥

Translated Sutra: देवताओं के काम – भोग की तुलना में मनुष्य के काम – भोग वैसे ही क्षुद्र हैं, जैसे समुद्र की तुलना में कुश के अग्रभाग पर टिका हुआ जलबिन्दु। मनुष्यभव की इस अत्यल्प आयु में कामभोग कुशाग्र पर स्थित जलबिन्दु – मात्र हैं, फिर भी अज्ञानी किस हेतु से अपने लाभकारी योग – क्षेमको नहीं समझता ? मनुष्य भव में काम भोगों से निवृत्त
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८ कापिलिय

Hindi 209 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अधुवे असासयंमि संसारंमि दुक्खपउराए । किं नाम होज्ज तं कम्मयं जेणाहं दोग्गइं न गच्छेज्जा ॥

Translated Sutra: अध्रुव, अशाश्वत और दुःखबहुल संसार में वह कौन सा कर्म है, जिससे मैं दुर्गति में न जाऊं ?
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८ कापिलिय

Hindi 211 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तो नाणदंसणसमग्गो हियनिस्सेसाए सव्वजीवाणं । तेसिं विमोक्खणट्ठाए भासई मुनिवरो विगयमोहो ॥

Translated Sutra: केवलज्ञान और केवलदर्शन से सम्पन्न तथा मोहमुक्त कपिल मुनिने सब जीवों के हित और कल्याण के लिए तथा मुक्ति के लिए कहा – मुनि कर्मबन्धन के हेतुस्वरूप सभी प्रकार के ग्रन्थ तथा कलह का त्याग करे। काम भोगों के सब प्रकारों दोष देखता हुआ आत्मरक्षक मुनि उनमें लिप्त न हो। आसक्तिजनक आमिषरूप भोगों में निमग्न, हित और निश्रेयस
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८ कापिलिय

Hindi 216 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] न हु पाणवहं अनुजाने मुच्चेज्ज कयाइ सव्वदुक्खाणं । एवारिएहिं अक्खायं जेहिं इमो साहुधम्मो पन्नत्तो ॥

Translated Sutra: जिन्होंने साधु धर्म की प्ररूपणा की है, उन आर्य पुरुषों ने कहा है – ‘‘जो प्राणवध का अनुमोदन करता है, वह कभी भी सब दुःखों से मुक्त नहीं होता।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८ कापिलिय

Hindi 217 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पाणे य नाइवाएज्जा से समिए त्ति वुच्चई ताई । तओ से पावयं कम्मं निज्जाइ उदगं व थलाओ ॥

Translated Sutra: जो जीवों की हिंसा नहीं करता, वह साधक ‘समित’ – कहा जाता है। उसके जीवन में से पाप – कर्म वैसे ही निकल जाता है, जैसे ऊंचे स्थान से जल।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८ कापिलिय

Hindi 218 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जगनिस्सिएहिं भूएहिं तसनामेहिं थावरेहिं च । नो तेसिमारभे दंडं मनसा वयसा कायसा चेव ॥

Translated Sutra: संसार में जो भी त्रस और स्थावर प्राणी हैं, उनके प्रति मन, वचन, कायरूप किसी भी प्रकार के दण्ड का प्रयोग न करे।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८ कापिलिय

Hindi 219 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सुद्धेसणाओ नच्चाणं तत्थ ठवेज्ज भिक्खू अप्पाणं । जायाए घासमेसेज्जा रसगिद्धे न सिया भिक्खाए ॥

Translated Sutra: शुद्ध एषणाओं को जानकर भिक्षु उनमें अपने आप को स्थापित करे – भिक्षाजीवी मुनि संयमयात्रा के लिए आहार की एषणा करे, किन्तु रसों में मूर्छित न बने।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८ कापिलिय

Hindi 220 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पंताणि चेव सेवेज्जा सीयपिंडं पुराणकुम्मासं । अदु वुक्कसं पुलागं वा जवणट्ठाए निसेवए मंथुं ॥

Translated Sutra: भिक्षु जीवन – यापन के लिए प्रायः नीरस, शीत, पुराने कुल्माष, सारहीन, रूखा और मंथुबेर आदि का चूर्ण ही भिक्षा में ग्रहण करता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८ कापिलिय

Hindi 221 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जे लक्खणं च सुविणं च अंगविज्जं च जे पउंजंति । न हु ते समणा वुच्चंति एवं आयरिएहिं अक्खायं ॥

Translated Sutra: ’’जो साधु लक्षणशास्त्र, स्वप्नशास्त्र और अंगविद्या का प्रयोग करते हैं, उन्हें साधु नहीं कहा जाता है’’ – ऐसा आचार्यों ने कहा है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८ कापिलिय

Hindi 222 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] इह जीवियं अनियमेत्ता पब्भट्ठा समाहिजोएहिं । ते कामभोगरसगिद्धा उववज्जंति आसुरे काए ॥

Translated Sutra: जो वर्तमान जीवन को नियंत्रित न रख सकने के कारण समाधियोग से भ्रष्ट हो जाते हैं, वे कामभोग और रसों में आसक्त असुरकाय में उत्पन्न होते हैं। वहाँ से निकलकर भी वे संसार में बहुत काल तक परिभ्रमण करते हैं। बहुत अधिक कर्मों से लिप्त होने के कारण उन्हें बोधि धर्म की प्राप्ति अतीव दुर्लभ है। सूत्र – २२२, २२३
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८ कापिलिय

Hindi 224 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कसिणं पि जो इमं लोयं पडिपुण्णं दलेज्ज इक्कस्स । तेणावि से न संतुस्से इइ दुप्पूरए इमे आया ॥

Translated Sutra:
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८ कापिलिय

Hindi 226 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] नो रक्खसीसु गिज्झेज्जा गंडवच्छासुऽणेगचित्तासु । जाओ पुरिसं पलोभित्ता खेल्लंति जहा व दासेहिं ॥

Translated Sutra: जिनके हृदय में कपट है अथवा जो वक्ष में फोड़े के रूप स्तनोंवाली हैं, जो अनेक कामनाओंवाली हैं, जो पुरुष को प्रलोभन मैं फँसाकर उसे दास की भाँति नचाती हैं, ऐसी राक्षसी – स्वरूप साधनाविद्या तक स्त्रियों में आसक्ति नहीं रखनी चाहिए। स्त्रियों को त्यागनेवाला अनगार उनमें आसक्त न हो। भिक्षु – धर्म को पेशल जानकर उसमें
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८ कापिलिय

Hindi 228 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] इइ एस धम्मे अक्खाए कविलेणं च विसुद्धपन्नेणं । तरिहिंति जे उ काहिंति तेहिं आराहिया दुवे लोग ॥ –त्ति बेमि ॥

Translated Sutra: विशुद्ध प्रज्ञावाले कपिल मुनिने इस प्रकार धर्म कहा है। जो इसकी सम्यक्‌ आराधना करेंगे, वे संसारसमुद्र को पार करेंगे। उनके द्वारा ही दोनों लोक आराधित होंगे। – ऐसा मैं कहता हूँ।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ नमिप्रवज्या

Hindi 229 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] चइऊण देवलोगाओ उववन्नो मानुसंमि लोगंमि । उवसंतमोहणिज्जो सरई पोराणियं जाइं ॥

Translated Sutra: देवलोक से आकर नमि के जीवने मनुष्य लोक में जन्म लिया। उसका मोह उपशान्त हुआ, तो उसे पूर्वजन्म का स्मरण हुआ। स्मरण करके अनुत्तर धर्म में स्वयं संबुद्ध बने। राज्य का भार पुत्र को सौंपकर उन्होंने अभिनिष्क्रमण किया। सूत्र – २२९, २३०
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ नमिप्रवज्या

Hindi 231 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सो देवलोगसरिसे अंतेउरवरगओ वरे भोए । भुंजित्तु नमी राया बुद्धो भोगे परिच्चयई ॥

Translated Sutra: नमिराजा श्रेष्ठ अन्तःपुरमें रह कर, देवलोक के भोगों के समान सुन्दर भोगों को भोगकर एक दिन प्रबुद्ध हुए और उन्होंने भोगों का परित्याग किया।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ नमिप्रवज्या

Hindi 232 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] मिहिलं सपुरजनवयं बलमोरोहं च परियणं सव्वं । चिच्चा अभिनिक्खंतो एगंतमहिट्ठिओ भयवं ॥

Translated Sutra: भगवान्‌ नमि ने पुर और जनपदसहित अपनी राजधानी मिथिला, सेना, अन्तःपुर और समग्र परिजनों को छोड़कर अभिनिष्क्रमण किया और एकान्तवासी बने।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ नमिप्रवज्या

Hindi 233 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कोलाहलगभूयं आसी मिहिलाए पव्वयंतंमि । तइया रायरिसिंमि नमिंमि अभिनिक्खमंतंमि ॥

Translated Sutra: जिस समय राजर्षि नमि अभिनिष्क्रमण कर प्रव्रजित हो रहे थे, उस समय मिथिला में बहुत कोलाहल हुआ था।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ नमिप्रवज्या

Hindi 234 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अब्भुट्ठियं रायरिसिं पव्वज्जाठाणमुत्तमं । सक्को माहणरूवेण इमं वयणमब्बवी ॥

Translated Sutra: उत्तम प्रव्रज्या – स्थान के लिए प्रस्तुत हुए नमि राजर्षि को ब्राह्मण के रूप में आए हुए देवेन्द्रने कहा – ‘‘हे राजर्षि ! आज मिथिला नगरी में, प्रासादों में और घरों में कोलाहल पूर्ण दारुण शब्द क्यों सुनाई दे रहे हैं ?’’ सूत्र – २३४, २३५
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ नमिप्रवज्या

Hindi 236 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एयमट्ठं निसामित्ता हेऊकारणचोइओ । तओ नमी रायरिसी देविंदं इणमब्बवी ॥

Translated Sutra: देवेन्द्र के इस अर्थ को सुनकर हेतु और कारण से प्रेरित नमि राजर्षिने देवेन्द्र को कहा – ‘‘मिथिला में एक चैत्य वृक्ष था। जो शीतल छायावाला, मनोरम, पत्र – पुष्प एवं फलों से युक्त, बहुतों के लिए सदैव बहुत उपकारक था – प्रचण्ड आंधी से उस मनोरम वृक्ष के गिर जाने पर दुःखित, अशरण और आर्त ये पक्षी क्रन्दन कर रहे हैं।’’ सूत्र
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ नमिप्रवज्या

Hindi 239 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एयमट्ठं निसामित्ता हेऊकारणचोइओ । तओ नमिं रायरिसिं देविंदो इणमब्बवी ॥

Translated Sutra: राजर्षि के इस अर्थ को सुनकर हेतु और कारण से प्रेरित देवेन्द्रने कहा – ‘‘यह अग्नि है, यह वायु है और इनसे यह आपका राजभवन जल रहा है। भगवन्‌ ! आप अपने अन्तःपुर की ओर क्यों नहीं देखते ?’’ सूत्र – २३९, २४०
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ नमिप्रवज्या

Hindi 241 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एयमट्ठं निसामित्ता हेऊकारणचोइओ । तओ नमी रायरिसी देविंदं इणमब्बवी ॥

Translated Sutra: देवेन्द्र के इस अर्थ को सुनकर, हेतु और कारण से प्रेरित नमि राजर्षिने कहा – ‘‘जिनके पास अपना जैसा कुछ भी नहीं है, ऐसे हम लोग सुख से रहते हैं, सुख से जीते हैं। मिथिला के जलने में मेरा कुछ भी नहीं जल रहा है – पुत्र, पत्नी और गृह – व्यापार से मुक्त भिक्षु के लिए न कोई वस्तु प्रिय होती है और न कोई अप्रिय – ‘सब ओर से मैं अकेला
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ नमिप्रवज्या

Hindi 245 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एयमट्ठं निसामित्ता हेऊकारणचोइओ । तओ नमिं रायरिसिं देविंदो इणमब्बवी ॥

Translated Sutra: इस अर्थ को सुनकर, हेतु और कारण से प्रेरित देवेन्द्रने कहा – ‘‘हे क्षत्रिय ! पहले तुम नगर का परकोटा, गोपुर, अट्टालिकाऍं, दुर्ग की खाई, शतघ्नी – बनाकर फिर जाना, प्रव्रजित होना।’’ सूत्र – २४५, २४६
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ नमिप्रवज्या

Hindi 247 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एयमट्ठं निसामित्ता हेऊकारणचोइओ । तओ नमी रायरिसी देविंदं इणमब्बवी ॥

Translated Sutra: इस अर्थ को सुनकर, हेतु और कारण से प्रेरित नमि राजर्षिने कहा – ‘‘श्रद्धा को नगर, तप और संयम को अर्गला, क्षमा को मन, वचन, काय की त्रिगुप्ति से सुरक्षित, एवं अजेय मजबूत प्राकार बनाकर – पराक्रम को धनुष, ईर्या समिति को उसकी डोर, धृति को उसकी मूठ बनाकर, सत्य से उसे बांधकर – तप के बाणों से युक्त धनुष से कर्म – रूपी कवच को
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ नमिप्रवज्या

Hindi 251 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एयमट्ठं निसामित्ता हेऊकारणचोइओ । तओ नमिं रायरिसिं देविंदो इणमब्बवी ॥

Translated Sutra: इस अर्थ को सुनकर, हेतु और कारण से प्रेरित देवेन्द्रने कहा – ‘‘हे क्षत्रिय ! पहले तुम प्रासाद, वर्धमान गृह, चन्द्रशालाऍं बनाकर फिर जाना।’’ सूत्र – २५१, २५२
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ नमिप्रवज्या

Hindi 253 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एयमट्ठं निसामित्ता हेऊकारणचोइओ । तओ नमी रायरिसी देविंदं इणमब्बवी ॥

Translated Sutra: इस अर्थ को सुनकर, हेतु और कारण से प्रेरित नमि राजर्षिने कहा – ‘‘जो मार्ग में घर बनाता है, वह अपने को संशय में डालता है, अतः जहाँ जाने की इच्छा हो वहीं अपना स्थायी घर बनाना चाहिए।’’ सूत्र – २५३, २५४
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ नमिप्रवज्या

Hindi 254 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] संसयं खलु सो कुणई, जो मग्गे कुणई घरं । जत्थेव गंतुमिच्छेज्जा तत्थ कुव्वेज्ज सासयं ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र २५३
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ नमिप्रवज्या

Hindi 255 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एयमट्ठं निसामित्ता हेऊकारणचोइओ । तओ नेमिं रायरिसिं देविंदो इणमब्बवी ॥

Translated Sutra: इस अर्थ को सुनकर हेतु और कारण से प्रेरित देवेन्द्रने कहा – ‘‘हे क्षत्रिय ! पहले तुम बटमारों, प्राणघातक डाकुओं, गांठ काटनेवालों और चोरों से नगर की रक्षा करके फिर जाना।’’ सूत्र – २५५, २५६
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ नमिप्रवज्या

Hindi 257 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एयमट्ठं निसामित्ता हेऊकारणचोइओ । तओ नमी रायरिसी देविंदं इणमब्बवी ॥

Translated Sutra: इस अर्थ को सुनकर, हेतु और कारण से प्रेरित नमि राजर्षिने कहा – ‘‘इस लोक में मनुष्यों द्वारा अनेक बार मिथ्यादण्ड का प्रयोग किया जाता है। अपराध न करनेवाले निर्दोष पकड़े जाते हैं, सही अपराधी छूट जाते हैं।’’ सूत्र – २५७, २५८
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ नमिप्रवज्या

Hindi 259 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एयमट्ठं निसामित्ता हेऊकारणचोइओ । तओ नमिं रायरिसिं देविंदो इणमब्बवी ॥

Translated Sutra: इस अर्थ को सुनकर, हेतु और कारण से प्रेरित देवेन्द्रने कहा – ‘‘हे क्षत्रिय ! जो राजा अभी तुम्हें नमते नहीं हैं, पहले उन्हें अपने वश में करके फिर जाना।’’ सूत्र – २५९, २६०
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ नमिप्रवज्या

Hindi 261 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एयमट्ठं निसामित्ता हेऊकारणचोइओ । तओ नमी रायरिसी देविंदं इणमब्बवी ॥

Translated Sutra: इस अर्थ को सुनकर, हेतु और कारण से प्रेरित नमि राजर्षिने कहा – ‘‘जो दुर्जय संग्राम में दस लाख योद्धाओं को जीतता है, उसकी अपेक्षा जो एक अपने को जीतता है, उसकी विजय ही परम विजय है – बाहर के युद्धों से क्या ? स्वयं अपने से ही युद्ध करो। अपने से अपने को जीतकर ही सच्चा सुख प्राप्त होता है – पाँच इन्द्रियाँ, क्रोध, मान, माया,
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ नमिप्रवज्या

Hindi 265 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एयमट्ठं निसामित्ता हेऊकारणचोइओ । तओ नमिं रायरिसिं देविंदो इणमब्बवी ॥

Translated Sutra: इस अर्थ को सुनकर हेतु और कारण से प्रेरित देवेन्द्रने कहा – ‘‘हे क्षत्रिय ! तुम विपुल यज्ञ कराकर, श्रमण और ब्राह्मणों को भोजन कराकर, दान देकर, भोग भोगकर और स्वयं यज्ञ कर के फिर जाना।’’ सूत्र – २६५, २६६
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ नमिप्रवज्या

Hindi 267 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एयमट्ठं निसामित्ता हेऊकारणचोइओ । तओ नमी रायरिसी देविंदं इणमब्बवी ॥

Translated Sutra: इस अर्थ को सुनकर, हेतु और कारण से प्रेरित नमि राजर्षिने कहा – ‘‘जो मनुष्य प्रति मास दस लाख गायों का दान करता है, उसको भी संयम ही श्रेय है। फिर भले ही वह किसी को कुछ भी दान न करे।’’ सूत्र – २६७, २६८
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ नमिप्रवज्या

Hindi 269 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एयमट्ठं निसामित्ता हेऊकारणचोइओ । तओ नमिं रायरिसिं देविंदो इणमब्बवी ॥

Translated Sutra: इस अर्थ को सुनकर, हेतु और कारण से प्रेरित देवेन्द्रने कहा – ‘‘हे मनुजाधिप ! तुम गृहस्थ आश्रम को छोड़कर जो दूसरे संन्यास आश्रम की इच्छा करते हो, यह उचित नहीं है। गृहस्थ आश्रम में ही रहते हुए पौषधव्रत में अनुरत रहो।’’ सूत्र – २६९, २७०
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ नमिप्रवज्या

Hindi 271 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एयमट्ठं निसामित्ता हेऊकारणचोइओ । तओ नमी रायरिसी देविंदं इणमब्बवी ॥

Translated Sutra: इस अर्थ को सुनकर, हेतु और कारण से प्रेरित नमि राजर्षिने कहा – ‘‘जो बाल साधक महीने – महीने के तप करता है और पारणा में कुश के अग्र भाग पर आए उतना ही आहार ग्रहण करता है, वह सुआख्यात धर्म की सोलहवीं कला को भी पा नहीं सकता है।’’ सूत्र – २७१, २७२
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ नमिप्रवज्या

Hindi 273 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एयमट्ठं निसामित्ता हेऊकारणचोइओ । तओ नमिं रायरिसिं देविंदो इणमब्बवी ॥

Translated Sutra: इस अर्थ को सुनकर, हेतु और कारण से प्रेरित देवेन्द्रने कहा – ‘‘हे क्षत्रिय ! तुम चाँदी, सोना, मणि, मोती, कांसे के पात्र, वस्त्र, वाहन और कोश की वृद्धि करके फिर मुनि बनना।’’ सूत्र – २७३, २७४
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ नमिप्रवज्या

Hindi 275 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एयमट्ठं निसामित्ता हेऊकारणचोइओ । तओ नमी रायरिसी देविंदं इणमब्बवी ॥

Translated Sutra: इस अर्थ को सुनकर, हेतु और कारण से प्रेरित नमि राजर्षिने कहा – ‘‘सोने और चाँदी के कैलाश के समान असंख्य पर्वत हों, फिर भी लोभी मनुष्य की उनसे कुछ भी तृप्ति नहीं होती। क्योंकि इच्छा आकाश समान अनन्त है।’’ ‘‘पृथ्वी चावल, जौ, सोना और पशु की इच्छापूर्ति के लिए भी पर्याप्त नहीं है – यह जानकर साधक तप का आचरण करे।’’ सूत्र
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ नमिप्रवज्या

Hindi 278 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एयमट्ठं निसामित्ता हेऊकारणचोइओ । तओ नमिं रायरिसिं देविंदो इणमब्बवी ॥

Translated Sutra: इस अर्थ को सुनकर, हेतु और कारण से प्रेरित देवेन्द्रने कहा – ‘‘हे पार्थिव ! आश्चर्य है, तुम प्रत्यक्ष में प्राप्त भोगों को त्याग रहे हो और अप्राप्त भोगों की इच्छा कर रहे हो। मालूम होता है, तुम व्यर्थ के संकल्पों से ठगे जा रहे हो।’’ सूत्र – २७८, २७९
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ नमिप्रवज्या

Hindi 280 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एयमट्ठं निसामित्ता हेऊकारणचोइओ । तओ नमी रायरिसी देविंदं इणमब्बवी ॥

Translated Sutra: इस अर्थ को सुनकर, हेतु और कारण से प्रेरित नमि राजर्षिने कहा – ‘‘संसार के काम भोग शल्य हैं, विष हैं और आशीविष सर्प के तुल्य हैं। जो कामभोगों चाहते हैं, किन्तु उनका सेवन नहीं कर पाते , वे भी दुर्गति में जाते है क्रोध से अधोगति में जाना होता है। मान से अधमगति होती है। माया से सुगति में बाधाऍं आती है। लोभ से दोनों तरह
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ नमिप्रवज्या

Hindi 283 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अवउज्झिऊण माहणरूवं विउव्विऊण इंदत्तं । वंदइ अभित्थुणंतो इमाहि महुराहिं वग्गूहिं ॥

Translated Sutra: देवेन्द्र ब्राह्मण का रूप छोड़कर, अपने वास्तविक इन्द्रस्वरूप को प्रकट करके मधुर वाणी से स्तुति करता हुआ नमि राजर्षि को वन्दना करता है – ‘‘अहो, आश्चर्य है – तुमने क्रोध को जीता। मान को पराजित किया। माया को निराकृत किया। लोभ को वश में किया। अहो ! उत्तम है तुम्हारी सरलता। उत्तम है तुम्हारी मृदुता। उत्तम है तुम्हारी
Showing 26201 to 26250 of 28178 Results