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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1628 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सत्तरस सागरा ऊ उक्कोसेण वियाहिया ।
पंचमाए जहन्नेणं दस चेव उ सागरोवमा ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६२४ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1629 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] बावीस सागरा ऊ उक्कोसेण वियाहिया ।
छट्ठीए जहन्नेणं सत्तरस सागरोवमा ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६२४ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1630 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तेत्तीस सागरा ऊ उक्कोसेण वियाहिया ।
सत्तमाए जहन्नेणं बावीसं सागरोवमा ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६२४ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1631 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जा चेव उ आउठिई नेरइयाणं वियाहिया ।
सा तेसिं कायठिई जहन्नुक्कोसिया भवे ॥ Translated Sutra: नैरयिक जीवों की जो आयु – स्थिति है, वही उनकी जघन्य और उत्कृष्ट कायस्थिति है। नैरयिक शरीर को छोड़कर पुनः नैरयिक शरीर में उत्पन्न होने में अन्तर जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट अनन्तकाल का है। सूत्र – १६३१, १६३२ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1632 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अनंतकालमुक्कोसं अंतोमुहुत्तं जहन्नयं ।
विजढंमि सए काए नेरइयाणं तु अंतरं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६३१ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1634 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पंचिंदियतिरिक्खाओ दुविहा ते वियाहिया ।
सम्मुच्छिमतिरिक्खाओ गब्भवक्कंतिया तहा ॥ Translated Sutra: पंचेन्द्रिय – तिर्यञ्च जीव के दो भेद हैं – सम्मूर्च्छिम – तिर्यञ्च और गर्भजतिर्यञ्च। इन दोनों के पुनः जलचर, स्थलचर और खेचर – ये तीन – तीन भेद हैं। उनको तुम मुझसे सुनो। सूत्र – १६३४, १६३५ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1635 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] दुविहावि ते भवे तिविहा जलयरा थलयरा तहा ।
खहयरा य बोद्धव्वा तेसिं भेए सुणेह मे ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६३४ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1636 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] मच्छा य कच्छभा य गाहा य मगरा तहा ।
सुंसुमारा य बोद्धव्वा पंचहा जलयराहिया ॥ Translated Sutra: जलचर पाँच प्रकार के हैं – मत्स्य, कच्छप, ग्राह, मकर और सुंसुमार। वे लोक के एक भाग में व्याप्त हैं, सम्पूर्ण लोक में नहीं। इस निरूपण के बाद चार प्रकार से उनके कालविभाग का कथन करूँगा। वे प्रवाह की अपेक्षा से अनादि – अनन्त हैं और स्थिति की अपेक्षा से सादिसान्त हैं। जलचरों की आयु – स्थिति उत्कृष्ट एक करोड़ पूर्व | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1637 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] लोएगदेसे ते सव्वे न सव्वत्थ वियाहिया ।
एत्तो कालविभागं तु वुच्छं तेसिं चउव्विहं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६३६ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1638 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] संतइं पप्पणाईया अपज्जवसिया वि य ।
ठिइं पडुच्च साईया सपज्जवसिया वि य ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६३६ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1639 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एगा य पुव्वकोडीओ उक्कोसेण वियाहिया ।
आउट्ठिई जलयराणं अंतोमुहुत्तं जहन्निया ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६३६ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1640 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पुव्वकोडीपुहत्तं तु उक्कोसेण वियाहिया ।
कायट्ठिई जलयराणं अंतोमुहुत्तं जहन्निया ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६३६ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1641 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अनंतकालमुक्कोसं अंतोमुहुत्तं जहन्नयं ।
विजढंमि सए काए जलयराणं तु अंतरं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६३६ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1643 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] चउप्पया य परिसप्पा दुविहा थलयरा भवे ।
चउप्पया चउविहा ते मे कित्तयओ सुण ॥ Translated Sutra: स्थलचर जीवों के दो भेद हैं – चतुष्पद और परिसर्प। चतुष्पद चार प्रकार के हैं – एकखुर, द्विखुर, गण्डीपद और सनखपद। परिसर्प दो प्रकार के हैं – भुजपरिसर्प, उरःपरिसर्प इन दोनों के अनेक प्रकार हैं। सूत्र – १६४३–१६४५ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1644 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एगखुरा दुखुरा चेव गंडीपयसणप्पया ।
हयमाइगोणमाइ-गयमाइसीहमाइणो ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६४३ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1645 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] भूओरगपरिसप्पा य परिसप्पा दुविहा भवे ।
गोहाई अहिमाई य एक्केक्का णेगहा भवे ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६४३ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1646 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] लोएगदेसे ते सव्वे न सव्वत्थ वियाहिया ।
एत्तो कालविभागं तु वुच्छं तेसिं चउव्विहं ॥ Translated Sutra: वे लोक के एक भाग में व्याप्त हैं, सम्पूर्ण लोक में नहीं। इस निरूपण के बाद चार प्रकार से स्थलचर जीवों के काल – विभाग का कथन करूँगा। प्रवाह की अपेक्षा से वे अनादि अनन्त हैं। स्थिति की अपेक्षा से सादि – सान्त हैं। उनकी आयु स्थिति उत्कृष्ट तीन पल्योपम की और जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त की है। उत्कृष्टतः पृथक्त्व करोड़ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1647 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] संतइं पप्पणाईया अपज्जवसिया वि य ।
ठिइं पडुच्च साईया सपज्जवसिया वि य ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६४६ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1648 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पलिओवमाउ तिण्णि उ उक्कोसेण वियाहिया ।
आउट्ठिई थलयराणं अंतोमुहुत्तं जहन्निया ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६४६ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1649 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पलिओवमाउ तिण्णि उ उक्कोसेण तु साहिया ।
पुव्वकोडीपुहत्तेणं अंतोमुहुत्तं जहन्निया ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६४६ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1650 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] कायट्ठिई थलयराणं अंतरं तेसिमं भवे ।
कालमणंतमुक्कोसं अंतोमुहुत्तं जहन्नयं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६४६ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1651 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] विजढंमि सए काए थलयराणं तु अंतरं ।
चम्मे उ लोमपक्खी य तइया समुग्गपक्खिया ॥ Translated Sutra: खेचर जीव के चार प्रकार हैं – चर्मपक्षी, रोम पक्षी, समुद्ग पक्षी और विततपक्षी। वे लोक के एक भाग में व्याप्त हैं, सम्पूर्ण लोक में नहीं। इस निरूपण के बाद चार प्रकार से खेचर जीवों के कालविभाग का कथन करूँगा। प्रवाह की अपेक्षा से वे अनादि अनन्त हैं। स्थिति की अपेक्षा से सादि सान्त हैं। उनकी आयु स्थिति उत्कृष्ट | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1652 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] विययपक्खी य बोद्धव्वा पक्खिणो य चउव्विहा ।
लोगेगदेसे ते सव्वे न सव्वत्थ वियाहिया ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६५१ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1653 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] संतइं पप्पणाईया अपज्जवसिया वि य ।
ठिइ पडुच्च साईया सपज्जवसिया वि य ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६५१ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1654 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पलिओवमस्स भागो असंखेज्जइमो भवे ।
आउट्ठिई खहयराणं अंतोमुहुत्तं जहन्निया ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६५१ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1655 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] असंखभागो पलियस्स उक्कोसेण उ साहिओ ।
पुव्वकोडीपुहत्तेणं अंतोमुहुत्तं जहन्निया ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६५१ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1656 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] कायठिई खहयराणं अंतरं तेसिमं भवे ।
कालं अनंतमुक्कोसं अंतोमुहुत्तं जहन्नयं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६५१ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1658 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] मनुया दुविहभेया उ ते मे कियत्तओ सुण ।
संमुच्छिमा य मनुया गब्भवक्कंतिया तहा ॥ Translated Sutra: मनुष्य दो प्रकार के हैं – संमूर्च्छित और गर्भोत्पन्न। अकर्मभूमिक, कर्मभूमिक और अन्तर्द्वीपक – ये तीन भेद गर्व से उत्पन्न मनुष्यों के हैं। कर्मभूमिक मनुष्यों के पन्द्रह, अकर्म – भूमिक मनुष्यों के तीस और अन्तर्द्वीपक मनुष्यों के अट्ठाईस भेद हैं। सम्मूर्च्छिम मनुष्यों के भेद भी इसी प्रकार हैं। वे सब भी | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1659 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] गब्भवक्कंतिया जे उ तिविहा ते वियाहिया ।
अकम्मकम्मभूमा य अंतरद्दीवया तहा ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६५८ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1660 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पन्नरस तीसइ विहा भेया अट्ठवीसइं ।
संखा उ कमसो तेसिं इइ एसा वियाहिया ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६५८ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1661 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] संमुच्छिमाण एसेव भेओ होइ आहिओ ।
लोगस्स एगदेसम्मि ते सव्वे वि वियाहिया ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६५८ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1662 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] संतइं पप्पणाईया अपज्जवसिया वि य ।
ठिइं पडुच्च साईया सपज्जवसिया वि य ॥ Translated Sutra: उक्त मनुष्य प्रवाह की अपेक्षा से अनादि अनन्त हैं, स्थिति की अपेक्षा से सादि सान्त हैं। मनुष्यों की आयु – स्थिति उत्कृष्ट तीन पल्योपम और जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त की है। उत्कृष्टतः पृथक्त्व करोड़ पूर्व अधिक तीन पल्योपम और जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त मनुष्यों की काय – स्थिति है, उनका अन्तर जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1663 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पलिओवमाइं तिण्णि उ उक्कोसेण वियाहिया ।
आउट्ठिई मनुयाणं अंतोमुहुत्तं जहन्निया ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६६२ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1664 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पलिओवमाइं तिण्णि उ उक्कोसेण वियाहिया ।
पुव्वकोडीपुहत्तेणं अंतोमुहुत्तं जहन्निया ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६६२ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1665 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] कायट्ठिई मनुयाणं अंतरं तेसिमं भवे ।
अनंतकालमुक्कोसं अंतोमुहुत्तं जहन्नयं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६६२ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1667 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] देवा चउव्विहा वुत्ता ते मे कियत्तओ सुण ।
भोमिज्जवाणमंतर-जोइसवेमाणिया तहा ॥ Translated Sutra: भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक – ये देवों के चार भेद हैं। भवनवासी देवों के दस, व्यन्तर देवों के आठ, ज्योतिष्क देवों के पाँच और वैमानिक देवों के दो भेद हैं। सूत्र – १६६७, १६६८ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1668 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] दसहा उ भवणवासी अट्ठहा वणचारिणो ।
पंचविहा जोइसिया दुविहा वेमाणिया तहा ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६६७ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1673 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] कप्पोवगा बारसहा सोहम्मीसाणगा तहा ।
सणंकुमारमाहिंदा बंभलोगा य लंतगा ॥ Translated Sutra: कल्पोपग देव के बारह प्रकार हैं – सौधर्म, ईशानक, सनत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्मलोक, लान्तक, महाशुक्र, सहस्रार, आनत, प्राणत आरण और अच्युत। सूत्र – १६७३, १६७४ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1674 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] महासुक्का सहस्सारा आणया पाणया तहा ।
आरणा अच्चुया चेव इइ कप्पोवगा सुरा ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६७३ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1675 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] कप्पाईया उ जे देवा दुविहा ते वियाहिया ।
गेविज्जाणुत्तरा चेव गेविज्जा नवविहा तहिं ॥ Translated Sutra: कल्पातीत देवों के दो भेद हैं – ग्रैवेयक और अनुत्तर। ग्रैवेयक नौ प्रकार के हैं – अधस्तन – अधस्तन, अधस्तन – मध्यम, अधस्तन – उपरितन, मध्यम – अधस्तन, मध्यम – मध्यम, मध्यम – उपरितन, उपरितन – अधस्तन, उपरितन – मध्यम और उपरितन – उपरितन – ये नौ ग्रैवेयक हैं। विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित और सर्वार्थसिद्धक – ये पाँच अनुत्तर | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1676 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] हेट्ठिमाहेट्ठिमा चेव हेट्ठिमामज्झिमा तहा ।
हेट्ठिमाउवरिमा चेव मज्झिमाहेट्ठिमा तहा ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६७५ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1677 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] मज्झिमामज्झिमा चेव मज्झिमाउवरिमा तहा ।
उवरिमाहेट्ठिमा चेव उवरिमामज्झिमा तहा ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६७५ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1678 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] उवरिमाउवरिमा चेव इय गेविज्जगा सुरा ।
विजया वेजयंता य जयंता अपराजिया ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६७५ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1679 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सव्वट्ठसिद्धगा चेव पंचहाणुत्तरा सुरा ।
इइ वेमाणिया देवा णेगहा एवमायओ ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६७५ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1680 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] लोगस्स एगदेसम्मि ते सव्वे परिकित्तिया ।
इत्तो कालविभागं तु वुच्छं तेसिं चउव्विहं ॥ Translated Sutra: वे सभी लोक के एक भाग में व्याप्त हैं। इस निरूपण के बाद चार प्रकार से उनके काल – विभाग का कथन करूँगा। वे प्रवाह की अपेक्षा से अनादि अनन्त हैं। स्थिति की अपेक्षा से सादिसान्त हैं। सूत्र – १६८०, १६८१ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1681 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] संतइं पप्पाणाईया अपज्जवसिया वि य ।
ठिइं पडुच्च साईया सपज्जवसिया वि य ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६८० | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1682 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] साहियं सागरं एक्कं उक्कोसेण ठिई भवे ।
भोमेज्जाणं जहन्नेणं दसवाससहस्सिया ॥ Translated Sutra: भवनवासी देवों की उत्कृष्ट आयुस्थिति किंचित् अधिक एक सागरोपम की और जघन्य दस हजार वर्ष की है। व्यन्तर देवों की उत्कृष्ट आयु – स्थिति एक पल्योपम की और जघन्य दस हजार वर्ष की है। ज्योतिष्क देवों की उत्कृष्ट आयुस्थिति एक लाख वर्ष अधिक एक पल्योपम की और जघन्य पल्योपम का आठवाँ भाग है। सूत्र – १६८२–१६८४ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1683 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पलिओवममेगं तु उक्कोसेण ठिई भवे ।
वंतराणं जहन्नेणं दसवाससहस्सिया ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६८२ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1684 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पलिओवमं एगं तु वासलक्खेण साहियं ।
पलिओवमट्ठभागो जोइसेसु जहन्निया ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६८२ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1685 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] दो चेव सागराइं उक्कोसेण वियाहिया ।
सोहम्मंमि जहन्नेणं एगं च पलिओवमं ॥ Translated Sutra: सौधर्म देवों की उत्कृष्ट आयु – स्थिति दो सागरोपम और जघन्य एक पल्योपम। ईशान देवों की उत्कृष्ट किंचित् अधिक सागरोपम और जघन्य किंचित् अधिक एक पल्योपम। सनत्कुमार की उत्कृष्ट सात सागरोपम और जघन्य दो सागरोपम। माहेन्द्रकुमार की उत्कृष्ट किंचित् अधिक सात सागरोपम, और जघन्य किंचित् अधिक दो सागरोपम। ब्रह्मलोक |