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Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Upasakdashang उपासक दशांग सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ कामदेव

Hindi 24 Sutra Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से दिव्वे हत्थिरूवे कामदेवं समणोवासयं अभीयं अतत्थं अणुव्विग्गं अखुभियं अचलियं असंभंतं तुसिणीयं धम्मज्झाणोवगयं विहरमाणं पासइ, पासित्ता जाहे नो संचाएइ कामदेवं समणोवासयं निग्गंथाओ पावयणाओ चालित्तए वा खोभित्तए वा विपरिणामित्तए वा, ताहे संते तंते परितंते सणियं-सणियं पच्चोसक्कइ, पच्चोसक्कित्ता पोसहसालाओ पडिनिक्खमइ, पडि-निक्खमित्ता दिव्वं हत्थिरूवं विप्पजहइ, विप्पजहित्ता एगं महं दिव्वं सप्परूवं विउव्वइ–उग्गविसं चंडविसं घोरविसं महाकायं मसी-मूसाकालगं नयणविसरोसपुण्णं अंजणपुंज-निगरप्पगासं रत्तच्छं लोहियलोयणं जमलजुयल-चंचलचलंतजीहं धरणीयलवेणिभूयं

Translated Sutra: हस्तीरूपधारी देव ने जब श्रमणोपासक कामदेव को निर्भीकता से अपनी उपासना में निरत देखा, तो उसने दूसरी बार, तीसरी बार फिर श्रमणोपासक कामदेव को वैसा ही कहा, जैसा पहले कहा था। पर, श्रमणोपासक कामदेव पूर्ववत्‌ निर्भीकता से अपनी उपासना में निरत रहा। हस्ती रूपधारी उस देव ने जब श्रमणोपासक कामदेव को निर्भीकता से उपासना
Upasakdashang उपासक दशांग सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ कामदेव

Hindi 25 Sutra Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से दिव्वे सप्परूवे कामदेवं समणोवासयं अभीयं अतत्थं अणुव्विग्गं अखुभियं अचलियं असंभंतं तुसिणीयं धम्मज्झाणोवगयं विहरमाणं पासइ, पासित्ता जाहे नो संचाएइ कामदेवं समणोवासयं निग्गंथाओ पावयणाओ चालित्तए वा खोभि त्तए वा विपरिणामेत्तए वा, ताहे संते तंते परितंते सणियं-सणियं पच्चोसक्कइ, पच्चोसक्कित्ता पोसहसालाओ पडिनिक्खमइ, पडिनि-क्खमित्ता दिव्वं सप्परूवं विप्पजहइ, विप्पजहित्ता एगं महं दिव्वं देवरूवं विउव्वइ–हार-विराइय-वच्छं कडग-तुडिय-थंभियभुयं अंगय-कुंडल-मट्ठ-गंड-कण्णपीढधारिं विचित्तहत्थाभरणं विचित्त-माला-मउलि-मउडं कल्लाणग-पवरवत्थपरिहियं कल्लाणगपवरमल्लाणुलेवणं

Translated Sutra: सर्प रूपधारी देव ने जब श्रमणोपासक कामदेव को निर्भय देखा तो वह अत्यन्त क्रुद्ध होकर सर्राटे के साथ उसके शरीर पर चढ़ गया। पीछले भाग से उसके गले में तीन लपेट लगा दिए। लपेट लगाकर अपने तीखे, झहरीले दाँतों से उसकी छाती पर डंक मारा। श्रमणोपासक कामदेव ने उस तीव्र वेदना को सहनशीलता के साथ झेला। सर्प रूपधारी देव ने जब
Upasakdashang उपासक दशांग सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ कामदेव

Hindi 26 Sutra Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से कामदेवे समणोवासए इमीसे कहाए लद्धट्ठे समाणे–एवं खलु समणे भगवं महावीरे पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे इहमागए इह संपत्ते इह समोसढे इहेव चंपाए नयरीए बहिया पुण्णभद्दे चेइए अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तं सेयं खलु मम समणं भगवं महावीरं वंदित्ता नमंसित्ता ततो पडिणियत्तस्स पोसहं पारेत्तए त्ति कट्टु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता पोसहसालाओ पडिनिक्खमइ पडिनिक्खमित्ता सुद्धप्पावेसाइं मंगल्लाइं वत्थाइं पवर परिहिए मनुस्सवग्गुरापरिक्खित्ते सयाओ गिहाओ पडिनिक्खमित्ता चंपं नयरिं मज्झंमज्झेणं निग्गच्छइ,

Translated Sutra: श्रमणोपासक कामदेव ने जब यह सूना कि भगवान महावीर पधारे हैं, तो सोचा, मेरे लिए यह श्रेयस्कर है, मैं श्रमण भगवान महावीर को वन्दन – नमस्कार कर, वापस लौट कर पोषध का – समापन करूँ। यों सोचकर उसने शुद्ध तथा सभा योग्य मांगलिक वस्त्र भली – भाँति पहने, अपने घर से नीकलकर चम्पा नगरी के बीच से गुझरा, जहाँ पूर्णभद्र चैत्य था,
Upasakdashang उपासक दशांग सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ कामदेव

Hindi 27 Sutra Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कामदेवाइ! समणे भगवं महावीरे कामदेवं समणोवासयं एवं वयासी–से नूनं कामदेवा! तुब्भं पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि एगे देवे अंतियं पाउब्भूए। तए णं से देवे एगं महं दिव्वं पिसायरूवं विउव्वइ, विउव्वित्ता आसुरत्ते रुट्ठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसीयमाणे एगं महं नीलुप्पल-गवल-गुलिय-अयसि-कुसुमप्पगासं खुरधारं, असिं गहाय तुमं एवं वयासी–हंभो! कामदेवा! समणोवासया! जाव जइ णं तुमं अज्ज सीलाइं वयाइं वेरमणाइं पच्चक्खाणाइं पोसहोववासाइं न छड्डेसि न भंजेसि, तो तं अज्ज अहं इमेणं नीलुप्पल-गवलगुलिय-अयसिकुसुमप्पगासेण खुरधारेण असिणा खंडाखंडिं करेमि, जहा णं तुमं देवानुप्पिया! अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे

Translated Sutra: श्रमण भगवान महावीर ने कामदेव से कहा – कामदेव ! आधी रात के समय एक देव तुम्हारे सामने प्रकट हुआ था। उस देव ने एक विकराल पिशाच का रूप धारण किया। वैसा कर, अत्यन्त क्रुद्ध हो, उसने तलवार नीकालकर तुमसे कहा – कामदेव ! यदि तुम अपने शील आदि व्रत भग्न नहीं करोगे तो जीवन से पृथक्‌ कर दिए जाओगे। उस देव द्वारा यों कहे जाने पर
Upasakdashang उपासक दशांग सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ कामदेव

Hindi 28 Sutra Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से कामदेवे समणोवासए पढमं उवासगपडिमं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ। तए णं से कामदेवे समणोवासए पढमं उवासगपडिमं अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्मं काएणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तेइ आराहेइ। तए णं से कामदेवे समणोवासए दोच्चं उवासगपडिमं, एवं तच्चं, चउत्थं, पंचमं, छट्ठं, सत्तमं, अट्ठमं, नवमं, दसमं, एक्कारसमं उवासगपडिमं अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्मं काएणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तेइ आराहेइ। तए णं से कामदेवे समणोवासए इमेणं एयारूवेणं ओरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे अट्ठिचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ श्रमणोपासक कामदेव ने पहली उपासकप्रतिमा की आराधना स्वीकार की। श्रमणोपासक कामदेव ने अणुव्रत द्वारा आत्मा को भावित किया। बीस वर्ष तक श्रमणोपासकपर्याय – पालन किया। ग्यारह उपासक – प्रतिमाओं का भली – भाँति अनुसरण किया। एक मास की संलेखना और एक मास का अनशन सम्पन्न कर आलोचना, प्रतिक्रमण कर मरण – काल
Upasakdashang उपासक दशांग सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ चुलनीपिता

Hindi 29 Sutra Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सत्तमस्स अंगस्स उवासगदसाणं दोच्चस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, तच्चस्स णं भंते! अज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणारसी नामं नयरी। कोट्ठए चेइए। जियसत्तू राया। तत्थ णं वाणारसीए नयरीए चुलनीपिता नामं गाहावई परिवसइ–अड्ढे जाव बहुजनस्स अपरिभूए। तस्स णं चुलणीपियस्स गाहावइस्स अट्ठ हिरण्णकोडीओ निहाणपउत्ताओ, अट्ठ हिरण्णकोडीओ वड्ढिपउत्ताओ, अट्ठ हिरण्णकोडीओ पवित्थरपउत्ताओ, अट्ठ वया दसगोसाहस्सि-एणं वएणं होत्था। से णं चुलनीपिता गाहावई बहूणं जाव आपुच्छणिज्जे, पडिपुच्छणिज्जे सयस्स

Translated Sutra: उपोद्‌घातपूर्वक तृतीय अध्ययन का प्रारम्भ यों है – जम्बू ! उस काल – उस समय, वाराणसी नगरी थी। कोष्ठक नामक चैत्य था, राजा जितशत्रु था। वाराणसी नगरी में चुलनीपिता नामक गाथापति था। वह अत्यन्त समृद्ध एवं प्रभावशाली था। उसकी पत्नी का नाम श्यामा था। आठ करोड़ स्वर्ण – मुद्राएं स्थायी पूंजी के रूप में, आठ करोड़ स्वर्ण
Upasakdashang उपासक दशांग सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ चुलनीपिता

Hindi 30 Sutra Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स चुलणीपियस्स समणोवासयस्स पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि एगे देवे अंतियं पाउब्भूए। तए णं से देवे एगं महं नीलुप्पल-गवलगुलिय-अयसिकुसुमप्पगासं खुरधारं असिं गहाय चुलणीपियं समणोवासयं एवं वयासी– हंभो! चुलनीपिता! समणोवासया! अप्पत्थियपत्थिया! दुरंत-पंत-लक्खणा! हीनपुण्णचाउद्दसिया! सिरि-हिरि-धिइ-कित्ति-परिवज्जिया! धम्मकामया! पुण्णकामया! सग्गकामया! मोक्खकामया! धम्मकंखिया! पुण्णकंखिया! सग्गकखिया! मोक्खकखिया! धम्मपिवासिया! पुण्णपिवासिया! सग्गपिवासिया! मोक्खपिवासिया! नो खलु कप्पइ तव देवाणु-प्पिया! सीलाइं वयाइं वेरमणाइं पच्चक्खाणाइं पोसहोववासाइं चालित्तए वा

Translated Sutra: उस देव ने जब दूसरी बार, तीसरी बार ऐसा कहा, तब श्रमणोपासक चुलनीपिता के मन में विचार आया – यह पुरुष बड़ा अधम है, नीच – बुद्धि है, नीचतापूर्ण पाप – कार्य करने वाला है, जिसने मेरे बड़े पुत्र को घर से लाकर मेरे आगे मार डाला। उसके मांस और रक्त से मेरे शरीर सींचा – छींटा, जो मेरे मंझले पुत्र को घर से ले आया, जो मेरे छोटे पुत्र
Upasakdashang उपासक दशांग सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ चुलनीपिता

Hindi 31 Sutra Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से चुलनीपिता समणोवासए पढमं उवासगपडिमं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ। तए णं से चुलनीपिता समणोवासए पढमं उवासगपडिमं अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्मं काएणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तेइ आराहेइ। तए णं से चुलनीपिता समणोवासए दोच्चं उवासगपडिमं, एवं तच्चं, चउत्थं, पंचमं, छट्ठं, सत्तमं, अट्ठमं, नवमं, दसमं, एक्कारसमं उवासगपडिमं अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्मं काएणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तेइ आराहेइ तए णं से चुलनीपिता समणोवासए तेणं ओरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे अट्ठिचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ श्रमणोपासक चुलनीपिता ने आनन्द की तरह क्रमशः पहली, यावत्‌ ग्यारहवीं उपासक – प्रतिमा की यथाविधि आराधना की। श्रमणोपासक चुलनीपिता सौधर्म देवलोक में सौधर्मावतंसक महाविमान के ईशान कोण में स्थित अरुणप्रभ विमान में देवरूप में उत्पन्न हुआ। वहाँ उसकी आयु – स्थिति चार पल्योपम की बतलाई गई है। महाविदेह
Upasakdashang उपासक दशांग सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ सुरादेव

Hindi 32 Sutra Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सत्तमस्स अंगस्स उवासगदसाणं तच्चस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, चउत्थस्स णं भंते! अज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणारसी नामं नयरी। कोट्ठए चेइए। जियसत्तू राया। तत्थ णं वाणारसीए नयरीए सुरादेवे नामं गाहावइ परिवसइ–अड्ढे जाव बहुजनस्स अपरिभूए। तस्स णं सुरादेवस्स गाहावइस्स छ हिरण्णकोडीओ निहाणपउत्ताओ, छ हिरण्णकोडीओ वड्ढिपउत्ताओ, छ हिरण्ण-कोडीओ पवित्थरपउत्ताओ, छ व्वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं होत्था। से णं सुरादेवे गाहावई बहूणं जाव आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, सयस्स वि य णं कुडुंबस्स

Translated Sutra: उपोद्‌घातपूर्वक चतुर्थ अध्ययन का प्रारम्भ यों है। जम्बू ! उस काल – उस समय – वाराणसी नामक नगरी थी। कोष्ठक नामक चैत्य था। राजा का नाम जितशत्रु था। वहाँ सुरादेव गाथापति था। वह अन्यन्त समृद्ध था। छह करोड़ स्वर्ण – मुद्राएं स्थायी पूंजी के रूप में उसके खजाने में थीं, यावत्‌ उसके छह गोकुल थे। प्रत्येक गोकुल में
Upasakdashang उपासक दशांग सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ सुरादेव

Hindi 33 Sutra Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स सुरादेवस्स समणोवासयस्स पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि एगे देवे अंतियं पाउब्भवित्था। तए णं से देवे एगं महं नीलुप्पल-गवलगुलिय-अयसिकुसुमप्पगासं खुरधारं असिं गहाय सुरादेवं समणोवासयं एवं वयासी– हंभो! सुरादेवा! समणोवासया! अपत्थियपत्थिया! दुरंत-पंत-लक्खणा! हीनपुण्ण-चाउद्दसिया! सिरि-हिरि-धिइ-कित्ति-परिवज्जिया! धम्मकामया! पुण्णकामया! सग्गकामया! मोक्खकामया! धम्मकंखिया! पुण्णकंखिया! सग्गकंखिया! मोक्खकंखिया! धम्मपिवासिया! पुण्णपिवासिया! सग्गपिवासिया! मोक्खपिवासिया! नो खलु कप्पइ तव देवानुप्पिया! सीलाइं वयाइं वेरमणाइं पच्चक्खाणाइं पोसहोववासाइं चालित्तए

Translated Sutra: उस देव द्वारा दूसरी बार, तीसरी बार यों कहे जाने पर श्रमणोपासक सुरादेव के मन में ऐसा विचार आया, यह अधम पुरुष यावत्‌ अनार्यकृत्य करता है। मेरे शरीर में सोलह भयानक रोग उत्पन्न कर देना चाहता है। अतः मेरे लिए यही श्रेयस्कर है, मैं इस पुरुष को पकड़ लूँ। यों सोचकर वह पकड़ने के लिए उठा। इतने में वह देव आकाश में उड़ गया।
Upasakdashang उपासक दशांग सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ चुल्लशतक

Hindi 34 Sutra Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सत्तमस्स अंगस्स उवासगदसाणं चउत्थस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, पंचमस्स णं भंते! अज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं आलभिया नामं नयरी। संखवणे उज्जाणे। जियसत्तू राया। तत्थ णं आलभियाए नयरीए चुल्लसयए नामं गाहावई परिवसइ–अड्ढे जाव बहुजनस्स अपरिभूए। तस्स णं चुल्लसययस्स गाहावइस्स छ हिरण्णकोडीओ निहाणपउत्ताओ, छ हिरण्णकोडीओ वड्ढिपउत्ताओ, छ हिरण्णकोडीओ पवित्थरपउत्ताओ, छ व्वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं होत्था। से णं चुल्लसयए गाहावई बहूणं जाव आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, सयस्स वि य णं कुडुंबस्स

Translated Sutra: उपोद्‌घातपूर्वक पाँचवे अध्ययन का आरम्भ। जम्बू ! उस काल – उस समय – आलभिका नगरी थी। शंख – वन उद्यान था। राजा का नाम जितशत्रु था। चुल्लशतक गाथापति था। वह बड़ा समृद्ध एवं प्रभावशाली था। छह करोड़ स्वर्ण – मुद्राएं उसके खजाने में रखी थीं – यावत्‌ उसके छह गोकुल थे। प्रत्येक गोकुल में दस – दस हजार गायें थीं। उसकी पत्नी
Upasakdashang उपासक दशांग सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ चुल्लशतक

Hindi 35 Sutra Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स चुल्लसयगस्स समणोवासयस्स पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि एगे देवे अंतियं पाउब्भूए। तए णं से देवे एगं महं नीलुप्पल-गवलगुलिय-अयसिकुसुमप्पगासं खुरधारं असिं गहायं एवं वयासी–हंभो! चुल्लसयगा! समणोवासया! अप्पत्थियपत्थिया! दुरंत-पंत-लक्खणा! हीणपुण्णचाउद्दसिया! सिरि-हिरि-धिइ-कित्ति-परिवज्जिया धम्मकामया! पुण्णकामया! सग्गकामया! मोक्खकामया! धम्मकंखिया! पुण्णकंखिया! सग्गकंखिया! मोक्खकंखिया! धम्म पिवासिया! पुण्णपिवासिया! सग्गपिवासिया! मोक्खपिवासिया! नो खलु कप्पइ तव देवानुप्पिया! सीलाइं वयाइं वेरमणाइं पच्चक्खाणाइं पोसहोववासाइं चालित्तए वा खोभित्तए वा खंडित्तए

Translated Sutra: एक दिन की बात है, आधी रात के समय चुल्लशतक के समक्ष एक देव प्रकट हुआ। उसने तलवार नीकालकर कहा – अरे श्रमणोपासक चुल्लशतक ! यदि तुम अपने व्रतों का त्याग नहीं करोगे तो मैं आज तुम्हारे ज्येष्ठ पुत्र को घर से उठा लाऊंगा। चुलनीपिता के समान घटित हुआ। देव ने बड़े, मंझले तथा छोटे – तीनों पुत्रों को क्रमशः मारा, मांस – खण्ड
Upasakdashang उपासक दशांग सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ चुल्लशतक

Hindi 36 Sutra Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से वि य आगासे उप्पइए, तेण य खंभे आसाइए, महया-महया सद्देणं कोलाहले कए। तए णं सा बहुला भारिया तं कोलाहलसद्दं सोच्चा निसम्म जेणेव चुल्लसयए समणोवासए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चुल्लसयगं समणोवासयं एवं वयासी–किण्णं देवानुप्पिया! तुब्भे णं महया-महया सद्देणं कोलाहले कए? तए णं से चुल्लसयए समणोवासए बहुलं भारियं एवं वयासी–एवं खलु बहुले! न याणामि के वि पुरिसे आसुरत्ते रुट्ठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसीयमाणे एगं महं नीलुप्पल-गवलगुलिय-अयसिकुसुमप्पगासं खुरधारं असिं गहाय ममं एवं वयासी–हंभो! चुल्लसयगा! समणोवासया! जाव जइ णं तुमं अज्ज सीलाइं वयाइं वेरमणाइं पच्चक्खाणाइं पोसहोववासाइं

Translated Sutra: MISSING_TEXT_IN_ORIGINAL
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अध्ययन-६ कुंडकोलिक

Hindi 37 Sutra Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सत्तमस्स अंगस्स उवासगदसाणं पंचमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, छट्ठस्स णं भंते! अज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं कंपिल्लपुरे नयरे। सहस्संबवणे उज्जाणे। जियसत्तू राया। तत्थ णं कंपिल्लपुरे नयरे कुंडकोलिए नामं गाहावई परिवसइ–अट्ठे जाव बहुजनस्स अपरिभूए। तस्स णं कुंडकोलियस्स गाहावइस्स छ हिरण्णकोडीओ निहाणपउत्ताओ, छ हिरण्णकोडीओ वड्ढिपउत्ताओ, छ हिरण्णकोडीओ पवित्थरपउत्ताओ, छव्वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं होत्था। से णं कुंडकोलिए गाहावई बहूणं जाव आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, सयस्स

Translated Sutra: जम्बू ! उस काल – उस समय – काम्पिल्यपुर नगर था। सहस्राम्रवन उद्यान था। जितशत्रु राजा था। कुंड – कोलिक गाथापति था। उसकी पत्नी पूषा थी। छह करोड़ स्वर्ण – मुद्राएं सुरक्षित धन के रूप में, छह करोड़ स्वर्ण – मुद्राएं व्यापार में, छह करोड़ स्वर्ण – मुद्राएं – धन, धान्य में लगी थीं। छह गोकुल थे। प्रत्येक गोकुल में दस
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अध्ययन-६ कुंडकोलिक

Hindi 38 Sutra Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से कुंडकोलिए समणोवासए अन्नदा कदाइ पच्चावरण्हकालसमयंसि जेणेव असोगवणिया, जेणेव पुढविसिलापट्टए, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता नाममुद्दगं च उत्तरिज्जगं च पुढविसिलापट्टए ठवेइ, ठवेत्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मपन्नत्ति उवसंपज्जित्ता णं विहरइ। तए णं तस्स कुंडकोलियस्स समणोवासयस्स एगे देवे अंतियं पाउब्भवित्था। तए णं से देवे नाममुद्दगं च उत्तरिज्जगं च पुढविसिलापट्टयाओ गेण्हइ, गेण्हित्ता अंतलिक्खपडिवण्णे सखिंखिणियाइं पंचवण्णाइं वत्थाइं पवर परिहिए कुंडकोलियं समणोवासयं एवं वयासी–हंभो! कुंडकोलिया! समणोवासया! सुंदरी णं देवानुप्पिया! गोसालस्स

Translated Sutra: एक दिन श्रमणोपासक कुंडकोलिक दोपहर के समय अशोक – वाटिका में गया। पृथ्वी – शिलापट्टक पहुँचा। अपने नाम से अंकित अंगूठी और दुपट्टा उतारा। उन्हें पृथ्वीशिलापट्टक पर रखा। श्रमण भगवान महावीर के पास अंगीकृत धर्म – प्रज्ञप्ति – अनुरूप उपासना – रत हुआ। श्रमणोपासक कुंडकोलिक के समक्ष एक देव प्रकट हुआ। उस देव ने
Upasakdashang उपासक दशांग सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ कुंडकोलिक

Hindi 39 Sutra Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कुंडकोलियाइ! समणे भगवं महावीरे कुंडकोलियं समणोवासयं एवं वयासी–से नूणं कुंडकोलिया! कल्लं तुब्भं पच्चावरण्हकालसमयंसि असोगवणियाए एगे देवे अंतियं पाउब्भवित्था। तए णं से देवे नाममुद्दगं च उत्तरिज्जगं च पुढविसिलापट्टयाओ गेण्हइ, गेण्हित्ता अंतलिक्ख-पडिवण्णे सखिंखिणियाइं पंचवण्णाइं वत्थाइं पवर परिहिए तुमं एवं वयासी–हंभो! कुंडकोलिया! समणोवासया! सुंदरी णं देवानुप्पिया! गोसालस्स मंखलिपु-त्तस्स धम्मपन्नत्ती–नत्थि उट्ठाणे इ वा कम्मे इ वा बले इ वा वीरिए इ वा पुरिसक्कार-परक्कमे इ वा नियता सव्वभावा, मंगुली णं समणस्स भगवओ महावीरस्स धम्मपन्नत्ती–अत्थि उट्ठाणे इ

Translated Sutra: भगवान महावीर ने श्रमणोपासक कुंडकोलिक से कहा – कुंडकोलिक ! कल दोपहर के समय अशोक – वाटिका में एक देव तुम्हारे समक्ष प्रकट हुआ। वह तुम्हारी नामांकित अंगूठी और दुपट्टा लेकर आकाश में चला गया। यावत्‌ हे कुंडकोलिक ! क्या यह ठीक है ? भगवन्‌ ! ऐसा ही हुआ। तब भगवान ने जैसा कामदेव से कहा था, उसी प्रकार उससे कहा – कुंडकोलिक
Upasakdashang उपासक दशांग सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ कुंडकोलिक

Hindi 40 Sutra Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स कुंडकोलियस्स समणोवासयस्स बहूहिं सील-व्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासेहिं अप्पाणं भावेमाणस्स चोद्दस संवच्छराइं वीइक्कंताइं। पण्णरसमस्स संवच्छरस्स अंतरा वट्टमाणस्स अन्नदा कदाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–एवं खलु अहं कंपिल्लपुरे नगरे बहूणं जाव आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, सयस्स वि य णं कुडुंबस्स मेढी जाव सव्वकज्जवड्ढावए, तं एतेणं वक्खेवेणं अहं नो संचाएमि समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मपन्नत्ति उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए। तए णं से कुंडकोलिए समणोवासए

Translated Sutra: तदनन्तर श्रमणोपासक कुंडकोलिक को व्रतों की उपासना द्वारा आत्म – भावित होते हुए चौदह वर्ष व्यतीत हो गए। जब पन्द्रहवा वर्ष आधा व्यतीत हो चूका था, एक दिन आधी रात के समय उसके मन में विचार आया, जैसा कामदेव के मन में आया था। उसी की तरह अपने बड़े पुत्र को अपने स्थान पर नियुक्त कर वह भगवान महावीर के पास अंगीकृत धर्म – प्रज्ञप्ति
Upasakdashang उपासक दशांग सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-७ सद्दालपुत्र

Hindi 41 Sutra Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सत्तमस्स अंगस्स उवासगदसाणं छट्ठस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, सत्तमस्स णं भंते! अज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं पोलासपुरं नामं नयरं। सहस्संबवणं उज्जाणं। जियसत्तू राया। तत्थ णं पोलासपुरे नयरे सद्दालपुत्ते नामं कुंभकारे आजीविओवासए परिवसइ। आजीविय-समयंसि लद्धट्ठे गहियट्ठे पुच्छियट्ठे विणिच्छियट्ठे अभिगयट्ठे अट्ठिमिंजपेमाणुरागरत्ते। अयमाउसो! आजीवियसमए अट्ठे अयं परमट्ठे सेसे अणट्ठेत्ति आजी-वियसमएणं अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तस्स णं सद्दालपुत्तस्स आजीविओवासगस्स एक्का

Translated Sutra: पोलासपुर नामक नगर था। सहस्राम्रवन उद्यान था। जितशत्रु राजा था। पोलासपुर में सकडालपुत्र नामक कुम्हार रहता था, जो आजीविक – सिद्धान्त का अनुयायी था। वह लब्धार्थ – गृहीतार्थ – पुष्टार्थ – विनिश्चितार्थ – अभिगतार्थ हुए था। वह अस्थि और मज्जा पर्यन्त अपने धर्म के प्रति प्रेम व अनुराग से भरा था। उसका निश्चित
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अध्ययन-७ सद्दालपुत्र

Hindi 42 Sutra Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से सद्दालपुत्ते आजीविओवासए अन्नदा कदाइ पच्चावरण्हकालसमयंसि जेणेव असोग-वणिया, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स अंतियं धम्मपन्नत्तिं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ। तए णं तस्स सद्दालपुत्तस्स आजीविओवासगस्स एक्के देवे अंतियं पाउब्भवित्था। तए णं से देवे अंतलिक्खपडिवण्णे सखिंखिणियाइं पंचवण्णाइं वत्थाइं पवर परिहिए सद्दालपुत्तं आजीविओवासयं एवं वयासी– एहिइ णं देवानुप्पिया! कल्लं इहं महामाहणे उप्पन्न-नाणदंसणधरे तीयप्पडुपन्नाणागयजाणए अरहा जिणे केवली सव्वण्णू सव्वदरिसी तेलोक्कचहिय-महिय-पूइए सदेवमणुयासुरस्स लोगस्स अच्चणिज्जे पूयणिज्जे

Translated Sutra: एक दिन आजीविकोपासक सकडालपुत्र दोपहर के समय अशोकवाटिका में गया, मंखलिपुत्र गोशालक के पास अंगीकृत धर्म – प्रज्ञप्ति – के अनुरूप वहाँ उपासना – रत हुआ। आजीविकोपासक सकडालपुत्र के समक्ष एक देव प्रकट हुआ। छोटी – छोटी घंटियों से युक्त उत्तम वस्त्र पहने हुए आकाश में अवस्थित उस देव ने आजीविको – पासक सकडालपुत्र से
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अध्ययन-७ सद्दालपुत्र

Hindi 43 Sutra Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए फुल्लुप्पलकमलकोमलुम्मिलियंमि अह पंडुरे पहाए रत्तासोग-प्पगास-किंसुय-सुयमुह-गुंजद्धरागसरिसे कमलागरसंडबोहए उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिनयरे तेयसा जलंते समणे भगवं महावीरे जाव जेणेव पोलासपुरे नयरे जेणेव सहस्संबवने उज्जाणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। परिसा निग्गया। कूणिए राया जहा, तहा जियसत्तू निग्गच्छइ जाव पज्जुवासइ। तए णं से सद्दालपुत्ते आजीविओवासए इमीसे कहाए लद्धट्ठे समाणे–एवं खलु समणे भगवं महावीरे पुव्वाणु-पुव्विं चरमाणे गामाणुगामं

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ अगले दिन प्रातः काल भगवान महावीर पधारे। परीषद्‌ जुड़ी, भगवान की पर्युपासना की। आजीविकोपासक सकडालपुत्र ने यह सूना कि भगवान महावीर पोलासपुर नगर में पधारे हैं। उसने सोचा – मैं जाकर भगवान की वन्दना, यावत्‌ पर्युपासना करूँ। यों सोचकर उसने स्नान किया, शुद्ध, सभायोग्य वस्त्र पहने। थोड़े से बहुमूल्य
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अध्ययन-७ सद्दालपुत्र

Hindi 44 Sutra Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से सद्दालपुत्ते आजीविओवासए अन्नदा कदाइ वाताहतयं कोलालभंडं अंतो सालाहिंतो बहिया नीणेइ, नीणेत्ता आयवंसि दलयइ। तए णं समणे भगवं महावीरे सद्दालपुत्तं आजीविओवासयं एवं वयासी–सद्दालपुत्ता! एस णं कोलालभंडे कहं कतो? तए णं से सद्दालपुत्ते आजीविओवासए समणं भगवं महावीरं एवं वयासी–एस णं भंते! पुव्विं मट्टिया आसी, तओ पच्छा उदएणं तिमिज्जइ, तिम्मिज्जित्ता छारेण य करिसेण य एगयओ मीसिज्जइ, मीसिज्जित्ता चक्के आरुभिज्जति, तओ बहवे करगा य वारगा य पिहडगा य घडगा य अद्धघडगा य कलसगा य अलिंजरगा य जंबूलगा य० उट्टियाओ य कज्जंति। तए णं समणे भगवं महावीरे सद्दालपुत्तं आजीविओवासयं

Translated Sutra: एक दिन आजीविकोपासक सकडालपुत्र हवा लगे हुए मिट्टी के बर्तन कर्मशाला के भीतर से बाहर लाया और उसने उन्हें धूप में रखा। भगवान महावीर ने आजीविकोपासक सकडलापुत्र से कहा – सकडालपुत्र ! ये मिट्टी के बर्तन कैसे बने ? आजीविकोपासक सकडालपुत्र बोला – भगवन्‌ ! पहले मिट्टी की पानी के साथ गूंथा जाता है, फिर राख और गोबर के साथ
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अध्ययन-७ सद्दालपुत्र

Hindi 45 Sutra Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से सद्दालपुत्ते आजीविओवासए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ चित्तमाणंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए उट्ठाए उट्ठेइ, उट्ठेत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–सद्दहामि णं भंते! निग्गंथं पावयणं, पत्तियामि णं भंते! निग्गंथं पावयणं, रोएमि णं भंते! निग्गंथं पावयणं, अब्भुट्ठेमि णं भंते! निग्गंथं पावयणं। एवमेयं भंते! तहमेयं भंते! अवितह-मेयं भंते! असंदिद्धमेयं भंते! इच्छियमेयं भंते! इच्छिय-पडिच्छियमेयं भंते! से जहेयं तुब्भे वदह। जहा णं देवानुप्पियाणं

Translated Sutra: आजीविकोपासक सकडालपुत्र श्रमण भगवान महावीर से धर्म सूनकर अत्यन्त प्रसन्न एवं संतुष्ट हुआ और उसने आनन्द की तरह श्रावक – धर्म स्वीकार किया। विशेष यह कि सकडालपुत्र के परिग्रह के रूप में एक करोड़ स्वर्ण – मुद्राएं सुरक्षित धन के रूप में खजाने में रखी थी, एक करोड़ स्वर्ण – मुद्राएं व्यापार में लगी थीं तथा एक करोड़
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अध्ययन-७ सद्दालपुत्र

Hindi 46 Sutra Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए जाए–अभिगयजीवाजीवे जाव समणे निग्गंथे फासु-एसणिज्जेणं असन-पान-खाइम-साइमेणं वत्थ-पडिग्गह-कंबल-पायपुंछणेणं ओसह-भेसज्जेणं पाडिहारिएण य पीढ-फलग-सेज्जा-संथारएणं पडिलाभेमाणे विहरइ। तए णं सा अग्गिमित्ता भारिया समणोवासिया जाया–अभिगयजीवाजीवा जाव समणे निग्गंथे फासु-एसणिज्जेणं असन-पान-खाइम-साइमेणं वत्थ-पडिग्गह-कंबल-पायपुंछणेणं ओसह-भेसज्जेणं पाडिहारिएण य पीढ-फलग-सेज्जा-संथारएणं पडिलाभेमाणी विहरइ। तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते इमीसे कहाए लद्धट्ठे समाणे–एवं खलु सद्दालपुत्ते आजीवियसमयं वमित्ता समणाणं निग्गंथाणं दिट्ठिं पवण्णे, तं

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ सकडालपुत्र जीव – अजीव आदि तत्त्वों का ज्ञाता श्रमणोपासक हो गया। धार्मिक जीवन जीने लगा। कुछ समय बाद मंखलिपुत्र गोशालक ने यह सूना कि सकडालपुत्र आजीविक – सिद्धान्त को छोड़कर श्रमण – निर्ग्रन्थों की दृष्टि – स्वीकार कर चूका है, तब उसने विचार किया कि मैं सकडालपुत्र के पास जाऊं और श्रमण निर्ग्रन्थों
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अध्ययन-७ सद्दालपुत्र

Hindi 47 Sutra Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स सद्दालपुत्तस्स समणोवासयस्स बहूहिं सील-व्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासेहिं अप्पाणं भावेमाणस्स चोद्दस संवच्छरा वीइक्कंता। पण्णरसमस्स संवच्छरस्स अंतरा वट्टमाणस्स अन्नदा कदाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था– एवं खलु अहं पोलासपुरे नयरे बहूणं जाव आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, सयस्स वि य णं कुडुंबस्स मेढी जाव सव्वकज्जवड्ढावए, तं एतेणं वक्खेवेणं अहं नो संचाएमि समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मपन्नत्ति उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए। तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए

Translated Sutra: तदनन्तर श्रमणोपासक सकडालपुत्र को व्रतों की उपासना द्वारा आत्म – भावित होते हुए चौदह वर्ष व्यतीत हो गए। जब पन्द्रहवा वर्ष चल रहा था, तब एक बार आधी रात के समय वह श्रमण भगवान महावीर के पास अंगीकृत धर्मप्रज्ञप्ति के अनुरूप पोषधशाला में उपासनारत था। अर्ध – रात्रि में श्रमणोपासक सकडालपुत्र समक्ष एक देव प्रकट
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अध्ययन-८ महाशतक

Hindi 48 Sutra Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सत्तमस्स अंगस्स उवासगदसाणं सत्तमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, अट्ठमस्स णं भंते! अज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे। गुणसिलए चेइए। सेणिए राया। तत्थ णं रायगिहे नयरे महासतए नामं गाहावई परिवसइ–अड्ढे जाव बहुजनस्स अपरिभूए। तस्स णं महासतयस्स गाहावइस्स अट्ठ हिरण्णकोडीओ सकंसाओ निहाणपउत्ताओ, अट्ठ हिरण्णकोडीओ सकंसाओ वड्ढिपउत्ताओ, अट्ठ हिरण्णकोडीओ सकंसाओ पवित्थरपउत्ताओ, अट्ठ वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं होत्था। से णं महासतए गाहावई बहूणं जाव आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे,

Translated Sutra: आर्य सुधर्मा ने कहा – जम्बू ! उस काल – उस समय – राजगृह नगर था। गुणशील चैत्य था। श्रेणिक राजा था। राजगृह नगर में महाशतक गाथापति था। वह समृद्धिशाली था, वैभव आदि में आनन्द की तरह था। केवल इतना अन्तर था, उसकी आठ करोड़ कांस्य – परिमित स्वर्ण – मुद्राएं सुरक्षित धन के रूप में खजाने में रखी थी, आठ करोड़ कांस्य – परिमित
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अध्ययन-८ महाशतक

Hindi 49 Sutra Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे। परिसा निग्गया। कूणिए राया जहा, तहा सेणिओ निग्गच्छइ जाव पज्जुवासइ। तए णं से महासतए गाहावई इमीसे कहाए लद्धट्ठे समाणे–एवं खलु समणे भगवं महावीरे पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे इहमागए इह संपत्ते इह समोसढे इहेव रायगिहस्स नयरस्स बहिया गुणसिलए चेइए अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तं महप्फलं खलु भो! देवानुप्पिया! तहारूवाणं अरहंताणं भगवंताणं नामगोयस्स वि सवणयाए, किमंग पुण अभिगमन-वंदन-नमंसण-पडिपुच्छण-पज्जुवासणयाए? एगस्स वि आरियस्स धम्मियस्स सुवयणस्स सवणयाए, किमंग पुण

Translated Sutra: उस समय भगवान महावीर का राजगृह में पदार्पण हुआ। परीषद्‌ जुड़ी। महाशतक आनन्द की तरह भगवान की सेवा में गया। उसने श्रावक – धर्म स्वीकार किया। केवल इतना अन्तर था, महाशतक ने परिग्रह के रूप में आठ – आठ करोड़ कांस्य – परिमित स्वर्ण – मुद्राएं निधान आदि में रखने की तथा गोकुल रखने की मर्यादा की। रेवती आदि तेरह पत्नीयों
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अध्ययन-८ महाशतक

Hindi 50 Sutra Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तीसे रेवतीए गाहावइणीए अन्नदा कदाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि कुडुंबं जागरियं जागरमाणीए इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–एवं खलु अहं इमासिं दुवालसण्हं सपत्तीणं विघातेणं नो संचाएमि महासतएणं समणोवासएणं सद्धिं ओरालाइं मानुस्सयाइं भोगभोगाइं भुंजमाणी विहरित्तए। ते सेयं खलु ममं एयाओ दुवालस वि सवत्तीओ अग्गिपओगेण वा सत्थप्पओगेण वा विसप्पओगेण वा जीवियाओ ववरोवित्ता एतासिं एगमेगं हिरण्णकोडिं एगमेगं वयं सयमेव उवसंपज्जित्ता णं महासतएणं समणोवासएणं सद्धिं ओरालाइं मानुस्सयाइं भोगभोगाइं भुंजमाणी विहरित्तए– एवं संपेहेइ,

Translated Sutra: एक दिन आधी रात के समय गाथापति महाशतक की पत्नी रेवती के मन में, जब वह अपने पारिवारिक विषयों की चिन्ता में जग रही थी, यों विचार उठा – मैं इन अपनी बारह, सौतों के विघ्न के कारण अपने पति श्रमणो – पासक महाशतक के साथ मनुष्य – जीवन के विपुल विषय – सुख भोग नहीं पा रही हूँ। अतः मेरे लिए यही अच्छा है कि मैं इन बारह सौतों की अग्नि
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अध्ययन-८ महाशतक

Hindi 51 Sutra Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं रायगिहे नयरे अन्नदा कदाइ अमाघाए घुट्ठे यावि होत्था। तए णं सा रेवती गाहावइणी मंसलोलुया मंसमुच्छिया मंसगढिया मंसगिद्धा मंस-अज्झोववण्णा कोलघरिए पुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–तुब्भे देवानुप्पिया! ममं कोलहरिएहिंतो वएहिंतो कल्लाकल्लिं दुवे-दुवे गोणपोयए उद्दवेह, उद्दवेत्ता ममं उवणेह। तए णं ते कोलधरिया पुरिसा रेवतीए गाहावइणीए तह त्ति एयमट्ठं विनएणं पडिसुणंति, पडिसुणित्ता रेवतीए गाहा वइणीए कोलहरिएहिंतो वएहिंतो कल्लाकल्लिं दुवे-दुवे गोणपोयए वहेंति, वहेत्ता रेवतीए गाहावइणीए उवणेंति। तए णं सा रेवती गाहावइणी तेहिं गोणमंसेहिं सोल्लेहिं य तलिएहि

Translated Sutra: एक बार राजगृह नगर में अमारि – की घोषणा हुई। गाथापति की पत्नी रेवती ने, जो मांस में लोलुप एवं आसक्त थी, अपने पीहर के नौकरों को बुलाया और उनसे कहा – तुम मेरे पीहर के गोकुलों में से प्रतिदिन दो – दो बछड़े मारकर मुझे ला दिया करो। पीहर के नौकरों ने गाथापति की पत्नी रेवती के कथन को ‘जैसी आज्ञा’ कहकर विनयपूर्वक स्वीकार
Upasakdashang उपासक दशांग सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८ महाशतक

Hindi 52 Sutra Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स महासतगस्स समणोवासगस्स बहूहिं सील-व्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहो-ववासेहिं अप्पाणं भावेमाणस्स चोद्दस संवच्छरा वीइक्कंता। पण्णरसमस्स संवच्छरस्स अंतरा वट्टमाणस्स अन्नदा कदाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–एवं खलु अहं रायगिहे नयरे बहूणं जाव आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, सयस्स वि य णं कुडुंबस्स मेढी जाव सव्वकज्जवड्ढावए, तं एतेणं वक्खेवेणं अहं नो संचाएमि समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मपन्नत्तिं उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए। तए णं से महासतए समणोवासए जेट्ठपुत्तं

Translated Sutra: श्रमणोपासक महाशतक को विविध प्रकार के व्रतों, नियमों द्वारा आत्मभावित होते हुए चौदह वर्ष व्यतीत हो गए। आनन्द आदि की तरह उसने भी ज्येष्ठ पुत्र को अपनी जगह स्थापित किया – पारिवारिक एवं सामाजिक उत्तरदायित्व बड़े पुत्र को सौंपा तथा स्वयं पोषधशाला में धर्माराधना में निरत रहने लगा। एक दिन गाथापति की पत्नी रेवती
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अध्ययन-८ महाशतक

Hindi 53 Sutra Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से महासतए समणोवासए पढमं उवासगपडिमं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ। तए णं से महासतए समणोवासए पढमं उवासगपडिमं अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्मं काएणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तेइ आराहेइ। तए णं से महासतए समणोवासए दोच्चं उवासगपडिमं, एवं तच्चं, चउत्थं, पंचमं, छट्ठं, सत्तमं, अट्ठमं, नवमं, दसमं, एक्कारसमं उवासगपडिमं अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्मं काएणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तेइ आराहेइ। तए णं से महासतए समणोवासए तेणं ओरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे अट्ठिचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे धमनिसंतए

Translated Sutra: श्रमणोपासक महाशतक ने पहली उपासकप्रतिमा स्वीकार की। यों पहली से लेकर क्रमशः ग्यारहवीं तक सभी प्रतिमाओं की शास्त्रोक्त विधि से आराधना की। उग्र तपश्चरण से श्रमणोपासक के शरीर में इतनी कृशता – आ गई की नाडियाँ दीखने लगीं। एक दिन अर्द्ध रात्रि के समय धर्म – जागरण – करते हुए आनन्द की तरह श्रमणोपासक महाशतक के मन
Upasakdashang उपासक दशांग सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८ महाशतक

Hindi 54 Sutra Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं सा रेवती गाहावइणी अन्नदा कदाइ मत्ता लुलिया विइण्णकेसी उत्तरिज्जयं विकड्ढमाणी-विकड्ढमाणी जेणेव पोसहसाला, जेणेव महासतए समणोवासए, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता महासतयं समणोवासयं एवं वयासी– हंभो! महासतया! समणोवासया! किं णं तुब्भं देवानुप्पिया! धम्मेण वा पुण्णेण वा सग्गेण वा मोक्खेण वा, जं णं तुमं मए सद्धिं ओरालाइं मानुस्सयाइं भोगभोगाइं भुंजमाणे नो विहरसि? तए णं से महासतए समणोवासए रेवतीए गाहावइणीए एयमट्ठं नो आढाइ नो परियाणाइ, अणाढायमाणे अपरि-याणमाणे तुसिणीए धम्मज्झाणोवगए विहरइ। तए णं सा रेवती गाहावइणी महासतयं समणोवासयं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयासी–हंभो!

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ एक दिन महाशतक गाथापति की पत्नी रेवती शराब के नशे में उन्मत्त बार – बार अपना उत्तरीय फेंकती हुई पोषधशालामें जहाँ श्रमणोपासक महाशतक था, आई। महाशतक से पहले की तरह बोली। दूसरी बार, तीसरी बार, फिर वैसा ही कहा। अपनी पत्नी रेवती द्वारा दूसरी बार, तीसरी बार कहने पर श्रमणोपासक महाशतक को क्रोध आ गया। उसने
Upasakdashang उपासक दशांग सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८ महाशतक

Hindi 55 Sutra Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसरिए। परिसा पडिगया। गोयमाइ! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं एवं वयासी–एवं खलु गोयमा! इहेव रायगिहे नयरे ममं अंतेवासी महासतए नामं समणोवासए पोसहसालाए अपच्छिममारणंतियसंलेहणाए ज्झूसियसरीरे भत्तपान-पडियाइक्खिए, कालं अणवकंखमाणे विहरइ। तए णं तस्स महासतगस्स समणोवासगस्स रेवती गाहावइणी मत्ता लुलिया विइण्णकेसी उत्तरिज्जयं विकड्ढमाणी-विकड्ढमाणी जेणेव पोसहसाला, जेणेव महासतए समणोवासए, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मोहुम्माय जणणाइं सिंगारियाइं इत्थिभावाइं उवदंसेमाणी-उवदंसेमाणी महासतयं समणोवासयं एवं वयासी–हंभो!

Translated Sutra: उस समय श्रमण भगवान महावीर राजगृह में पधारे। समवसरण हुआ। परीषद्‌ जुड़ी, धर्म – देशना सूनकर लौट गई। श्रमण भगवान महावीर ने गौतम को सम्बोधित कर कहा – गौतम ! यही राजगृह नगर में मेरा अन्तेवासी – महाशतक नामक श्रमणोपासक पोषधशाला में अन्तिम मारणान्तिक संलेखना की आराधना में लगा हुआ, आहार – पानी का परित्याग किए हुए मृत्यु
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अध्ययन-८ महाशतक

Hindi 56 Sutra Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से महासतए समणोवासए बहूहिं सील-व्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासेहिं अप्पाणं भावेत्ता वीसं वासाइं समणोवासगपरियायं पाउणित्ता एक्कारस य उवासगपडिमाओ सम्मं काएणं फासित्ता, मासियाए संलेहणाए अप्पाणं ज्झूसित्ता, सट्ठिं भत्ताइं अणसणाए छेदेत्ता, आलोइय-पडिक्कंते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे अरुणवडेंसए विमाणे देवत्ताए उववण्णे। चत्तारि पलिओवमाइं ठिई पन्नत्ता। महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ मुच्चिहिइ सव्वदुक्खाणमंतं काहिइ। एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं उवासगदसाणं अट्ठमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते०।

Translated Sutra: तब श्रमणोपासक महाशतक ने भगवान गौतम का कथन ‘आप ठीक फरमाते हैं’ कहकर विनयपूर्वक स्वीकार किया, अपनी भूल की आलोचना की, यथोचित प्रायश्चित्त किया। तत्पश्चात्‌ भगवान गौतम श्रमणोपासक महाशतक के पास से रवाना हुए, राजगृह नगर के बीच से गुजरे, जहाँ श्रमण भगवान महावीर थे, वहाँ आए। भगवान को वंदन – नमस्कार किया। वंदन – नमस्कार
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अध्ययन-९ नंदिनीपिता

Hindi 57 Sutra Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सत्तमस्स अंगस्स उवासगदसाणं अट्ठमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, नवमस्स णं भंते! अज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं सावत्थी नयरी। कोट्ठए चेइए। जियसत्तू राया। तत्थ णं सावत्थीए नयरीए नंदिणीपिया नामं गाहावई परिवसइ–अड्ढे जाव बहुजनस्स अपरिभूए। तस्स णं नंदिनीपियस्स गाहावइस्स चत्तारि हिरण्णकोडीओ निहाणपउत्ताओ, चत्तारि हिरण्णकोडीओ वड्ढिपउत्ताओ चत्तारि हिरण्णकोडीओ पवित्थरपउत्ताओ, चत्तारि वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं होत्था। से णं नंदीनीपिया गाहावई बहूणं जाव आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे,

Translated Sutra: जम्बू ! उस काल – उस समय – श्रावस्ती नगरी थी, कोष्ठक चैत्य था। जितशत्रु राजा था। श्रावस्ती नगरी में नन्दिनीपिता नामक समृद्धिशाली गाथापति निवास करता था। उसकी चार करोड़ स्वर्ण – मुद्राएं सुरक्षित धन के रूप में खजाने में रखी थीं, चार करोड़ स्वर्ण – मुद्राएं व्यापार में लगी थीं तथा चार करोड़ स्वर्ण – मुद्राएं घर की
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अध्ययन-१० लेइयापिता

Hindi 58 Sutra Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सत्तमस्स अंगस्स उवासगदसाणं नवमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, दसमस्स णं भंते अज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं सावत्थी नयरी। कोट्ठए चेइए। जियसत्तू राया। तत्थ णं सावत्थीए नयरीए लेतियापिता नामं गाहावई परिवसइ–अड्ढे जाव बहुजनस्स अपरिभूए। तस्स णं लेइयापियस्स गाहावइस्स चत्तारि हिरण्णकोडीओ निहाणपउत्ताओ, चत्तारि हिरण्ण-कोडीओ वड्ढिपउत्ताओ, चत्तारि हिरण्णकोडीओ पवित्थरपउत्ताओ, चत्तारि वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं होत्था। से णं लेइयापिता गाहावई बहूणं जाव आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे,

Translated Sutra: जम्बू ! उस काल – उस समय – श्रावस्ती नगरी थी, कोष्ठक चैत्य था। जितशत्रु राजा था। श्रावस्ती नगरी में लेइयापिता नामक धनाढ्य एवं दीप्त – गाथापति निवास करता था। उसकी चार करोड़ स्वर्ण – मुद्राएं सुरक्षित धन के रूप में खजाने में रखी थीं, चार करोड़ स्वर्ण – मुद्राएं व्यापार में लगी थीं तथा चार करोड़ स्वर्ण – मुद्राएं
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अध्ययन-१० लेइयापिता

Hindi 59 Sutra Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] दसण्ह वि पन्नरसमे संवच्छरे वट्टमाणे णं चिंता दसण्ह वि वीसं वासाइं समणोवासपरियाओ एवं खलु जंबू समणेणं भगवया महावीरेणं सत्तमस्स अंगस्स उवासगदसाणं अयमट्ठे पन्नत्ते।

Translated Sutra: दसों ही श्रमणोपासकों को पन्द्रहवे वर्ष में पारिवारिक, सामाजिक उत्तरदायित्व से मुक्त हो कर धर्म – साधना में निरत होने का विचार हुआ। दसों ही ने बीस वर्ष तक श्रावक – धर्म का पालन किया। जम्बू ! सिद्धिप्राप्त भगवान महावीर ने सातवे अंग उपासकदशा के दसवें अध्ययन का यह अर्थ – प्रतिपादित किया।
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अध्ययन-१० लेइयापिता

Hindi 60 Sutra Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] उवासगदसाणं सत्तमस्स अंगस्स एगो सुयखंधो। दस अज्झयणा एक्कारसगा दससु चेव दिवसेसु उद्दिस्संति। तओ सुयखंधो समुद्दिस्सइ। तओ सुयखंधो अणुण्णविज्जइ दोसु दिवसेसु अंगं तहेव।

Translated Sutra: सातवें अंग उपासकदशा में एक श्रुत – स्कन्ध है। दस अध्ययन हैं। उनमें एक सरीखा स्वर – है, इसका दस दिनों में उपदेश किया जाता है। दो दिनों में समुद्देश और अनुज्ञा दी जाती है। इसी प्रकार अंग का समुद्देश और अनुमति समझना चाहिए।
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अध्ययन-१० लेइयापिता

Hindi 61 Gatha Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] वणियगामे चंपा दुवे य वाणारसीए नयरीए । आलभिया च पुरवरी कंपिल्लपुरं च बोद्धव्वं ॥

Translated Sutra: प्रस्तुत सूत्र में वर्णित उपासक निम्नांकित नगरों में हुए – आनन्द वाणिज्यग्राम में, कामदेव चम्पा में, चुलनी – पिता वाराणसी में, सुरादेव वाराणसी में, चुल्लशतक आलभिका में, कुंडकौलिक काम्पिल्यपुर में जानना। तथा –
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अध्ययन-१० लेइयापिता

Hindi 62 Gatha Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पोलासं रायगिहं सावत्थीए पुरीए दोन्नि भवे । एए उवासगाणं नवरा खलु होंति बोद्धव्वा ॥

Translated Sutra: सकडालपुत्र पोलासपुर में, महाशतक राजगृह में, नन्दिनीपिता श्रावस्ती में, लेइयापिता श्रावस्ती में हुआ।
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अध्ययन-१० लेइयापिता

Hindi 63 Gatha Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सिवनन्द-भद्द-सामा धन्न-बहुला पूस-अग्गिमित्ता य । रेवइ–अस्सिणि तह फग्गुणी य भज्जाण नामाइं ॥

Translated Sutra: श्रमणोपासकों की भार्याओं के नाम निम्नलिखित थे – आनन्द की शिवनन्दा, कामदेव की भद्रा, चुलनीपिता की श्यामा, सुरादेव की धन्या, चुल्लशतक की बहुला, कुंडकौलिक की पूषा, सकडालपुत्र की अग्निमित्रा, महाशतक की रेवती आदि तेरह नन्दीनिपिता की अश्विनी और लेइयापिता की फाल्गुनी।
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अध्ययन-१० लेइयापिता

Hindi 64 Gatha Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] ओहिनाण-पिसाए माया वाहि-धण-उत्तरिज्जे य । मज्जा य सुव्वया दुव्वया निरुवसग्गाया दोन्नि ॥

Translated Sutra: श्रमणोपासकों के जीवन की विशेष घटनाएं निम्नांकित थी – आनन्द को अवधिज्ञान विस्तार के सम्बन्ध में गौतम स्वामी का संशय, भगवान महावीर द्वारा समाधान। कामदेव को पिशाच आदि के रूप में देवोपसर्ग, श्रमणो – पासक की अन्त तक दृढता। चुलनीपिता को देव द्वारा मातृवध की धमकी से व्रत – भंग और प्रायश्चित्त। सुरादेव को देव द्वारा
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अध्ययन-१० लेइयापिता

Hindi 65 Gatha Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अरुणे अरुणाभे खलु अरुणप्पह-अरुणकंत-सिट्ठे य । अरुणज्झए य छट्ठे भूय-वडिंसे गवे कीले ॥

Translated Sutra:
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अध्ययन-१० लेइयापिता

Hindi 66 Gatha Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] चाली सट्टि असीई सट्टी सट्टी य सट्टी दसहस्सा । असिइ चत्ता चत्ता वए वइयाण सहसाणं ॥

Translated Sutra: श्रमणोपासकों के गोधन की संख्या निम्नांकित रूप में थीं – आनन्द की ४० हजार, कामदेव की ६० हजार, चुलनीपिता की ८००००, सुरादेव की ६००००, चुल्लशतक की ६० हजार, कुंडकौलिक की ६० हजार, सकडाल पुत्र की १० हजार, महाशतक की ८० हजार, नन्दीनिपिता की ४० हजार और लेइयापिता की ४० हजार थीं।
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अध्ययन-१० लेइयापिता

Hindi 67 Gatha Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] बारस अट्ठारस चउवीसं तिविहं अट्ठारसाइ विन्नेयं । धन्नेणं ति चोव्वीसं बारस बारस य कोडीओ ॥

Translated Sutra: श्रमणोपासकों की सम्पत्ति निम्नांकित स्वर्ण – मुद्राओं में थी – आनन्द की १२ करोड़, कामदेव की १८ करोड़, चुलनीपिता की २४ करोड़, सुरादेव की १८ करोड़, चुल्लशतक की १८ करोड़, कुंडकौलिक की १८ करोड़, सकडालपुत्र की ३ करोड़, महाशतक की कांस्य – परिमित २४ करोड़, नन्दिनीपिता की १२ करोड़ और लेइयापिता की १२ करोड़ थीं।
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अध्ययन-१० लेइयापिता

Hindi 68 Gatha Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] उल्लण दन्नवण कलं अब्भिङ्गणुवट्टणे सिणाणेय । वत्थं विलेवण पुप्फे आमरणं धूवं पेज्जाइ ॥

Translated Sutra: आनन्द आदि श्रमणोपासकों ने निम्नांकित २१ बातों में मर्यादा की थीं – शरीर पोंछने का तोलिया, दतौन, केश एवं देह – शुद्धि के लिए फल – प्रयोग, मालिश के तैल, उबटन, स्नान के लिए पानी, पहनने के वस्त्र, विलेपन, पुष्प, आभूषण, धूप, पेय। तथा –
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अध्ययन-१० लेइयापिता

Hindi 69 Gatha Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] भक्खोयण सूय घए सागे माहुर जेमणऽण्ण पाणे य । तम्बोले इगवीसं आनंदाईण अभिग्गहा ॥

Translated Sutra: भक्ष्य – मिठाई, ओदन, सूप, घृत, शाक, व्यंजन, पीने का पानी, मुखवास।
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Hindi 70 Gatha Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] उड्ढं सोहम्म पुरे लोलुए अहे उत्तरे हिमवंते । पज्जसए तह तिदिसिं ओहिनाणं तु दसगस्स ॥

Translated Sutra: इन दस श्रमणोपासकों में आनन्द तथा महाशतक को अवधि – ज्ञान प्राप्त हुआ, आनंद का अवधिज्ञान इस प्रकार है – पूर्व, पश्चिम तथा दक्षिण दिशा में लवणसमुद्र में पाँच – पाँच सौ योजन तक, उत्तर दिशा में चुल्लहिमवान्‌ वर्षधर पर्वत तक, ऊर्ध्व – दिशा में सौधर्म देवलोक तक, अधोदिशा में प्रथम नारक भूमि रत्नप्रभा में लोलुपाच्युत
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अध्ययन-१० लेइयापिता

Hindi 71 Gatha Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] दंसण वय सामाइय पोसहपडिमा अवम्म सच्चित्ते । आरंभ पेस उद्दिट्ठ वज्जए समणभूए य ॥

Translated Sutra: प्रत्येक श्रमणोपासक ने ११ – ११ प्रतिमाएं स्वीकार की थीं, जो निम्नांकित हैं – दर्शन – प्रतिमा, व्रत – प्रतिमा, सामायिक – प्रतिमा, पोषध – प्रतिमा, कायोत्सर्ग – प्रतिमा, ब्रह्मचर्य – प्रतिमा, सचित्ताहार – वर्जन – प्रतिमा, स्वयं आरम्भ – वर्जन – प्रतिमा, भृतक – प्रेष्यारम्भ – वर्जन – प्रतिमा, भृतक – प्रेष्यारम्भ
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अध्ययन-१० लेइयापिता

Hindi 72 Gatha Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] इक्कारस पडिमाओ वीसं परियाओ अणसणं मासे । सोहम्मे चउपलिया महाविदेहम्मि सिज्झिहिइ ॥

Translated Sutra: इन सभी श्रमणोपासकों ने २० – २० वर्ष तक श्रावक – धर्म का पालन किया, अन्त में एक महीने की संलेखना तथा अनशन द्वारा देह – त्याग किया, सौधर्म देवलोक में चार – चार पल्योपम आयु के देवों के रूप में उत्पन्न हुए। देवभव के अनन्तर सभी महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होंगे, मोक्ष – लाभ करेंगे।
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अध्ययन-१ आनंद

Gujarati 1 Sutra Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नाम नयरी होत्था–वण्णओ। पुण्णभद्दे चेइए–वण्णओ।

Translated Sutra: સૂત્ર– ૧. તે કાળે, તે સમયે ચંપાનગરી હતી, પૂર્ણભદ્ર ચૈત્ય હતુ.(નગરી અને ચૈત્યનું વર્ણન ઉવવાઈ સૂત્રથી જાણવું) સૂત્ર– ૨. તે કાળે, તે સમયે આર્યસુધર્મા પધાર્યા. સુધર્માસ્વામીના જ્યેષ્ઠ અંતેવાસી જંબૂએ પર્યુપાસના કરતા કહ્યું – હે ભંતે ! જ્યારે શ્રમણ ભગવંત મહાવીર યાવત્‌ સિદ્ધિ ગતિ સંપ્રાપ્તે છઠ્ઠા અંગ જ્ઞાતાધર્મકથાનો
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