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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1590 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] ओराला तसा जे उ चउहा ते पकित्तिया ।
बेइंदियतेइंदिय चउरोपंचिंदिया चेव ॥ Translated Sutra: उदार त्रसों के चार भेद हैं – द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1591 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] बेइंदिया उ जे जीवा दुविहा ते पकित्तिया ।
पज्जत्तमपज्जत्ता तेसिं भेए सुणेह मे ॥ Translated Sutra: द्वीन्द्रिय जीव के दो भेद हैं – पर्याप्त और अपर्याप्त। उनके भेदों को मुझसे सुनो। कृमि, सौमंगल, अलस, मातृवाहक, वासीमुख, सीप, शंक, शंखनक – पल्लोय, अणुल्लक, वराटक, जौक, जालक और चन्दनिया – इत्यादि अनेक प्रकार के द्वीन्द्रिय जीव हैं। वे लोक के एक भाग में व्याप्त हैं, सम्पूर्ण लोक में नहीं। सूत्र – १५९१–१५९४ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1592 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] किमिणो सोमंगला चेव अलसा माइवाहया ॥
वासीमुहा य सिप्पीया संखा संखणगा तहा ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १५९१ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1593 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पल्लोयाणुल्लया चेव तहेव य वराडगा ।
जलूगा जालगा चेव चंदणा य तहेव य ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १५९१ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1594 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] इह बेइंदिया एए णेगहा एवमायओ ।
लोगेगदेसे ते सव्वे न सव्वत्थ वियाहिया ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १५९१ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1595 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] संतइं पप्पणाईया अपज्जवसिया वि य ।
ठिइं पडुच्च साईया सपज्जवसिया वि य ॥ Translated Sutra: प्रवाह की अपेक्षा से वे अनादि अनन्त हैं और स्थिति की अपेक्षा से सादि सान्त हैं। उनकी आयु – स्थिति उत्कृष्ट बारह वर्ष की और जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त्त की है। उनकी काय – स्थिति उत्कृष्ट संख्यात काल की और जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त की है। द्वीन्द्रिय के शरीर को न छोड़कर निरंतर द्वीन्द्रिय शरीर में ही पैदा होना, | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1596 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] वासाइं बारसे व उ उक्कोसेण वियाहिया ।
बेइंदियआउट्ठिई अंतोमुहुत्तं जहन्निया ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १५९५ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1597 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] संखिज्जकालमुक्कोसं अंतोमुहुत्तं जहन्नयं ।
बेइंदियकायट्ठिई तं कायं तु अमुंचओ ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १५९५ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1598 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अनंतकालमुक्कोसं अंतोमुहुत्तं जहन्नयं ।
बेइंदियजीवाणं अंतरेयं वियाहियं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १५९५ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1599 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एएसिं वण्णओ चेव गंधओ रसफासओ ।
संठाणादेसओ वावि विहाणाइं सहस्ससो ॥ Translated Sutra: वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श और संस्थान की अपेक्षा से उनके हजारों भेद होते हैं। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1600 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तेइंदिया उ जे जीवा दुविहा ते पकित्तिया ।
पज्जत्तमपज्जत्ता तेसिं भेए सुणेह मे ॥ Translated Sutra: त्रीन्द्रिय जीवों के दो भेद हैं – पर्याप्त और अपर्याप्त। उनके भेदों को मुझसे सुनो। कुंथु, चींटी, खटमल, मकड़ी, दीमक, तृणाहारक, घुम, मालुक, पत्राहारक – मिंजक, तिन्दुक, त्रपुषमिंजक, शतावरी, कान – खजूरा, इन्द्रकायिक – इन्द्रगोपक इत्यादि त्रीन्द्रिय जीव अनेक प्रकार के हैं। वे लोक के एक भाग में व्याप्त हैं, सम्पूर्ण | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1601 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] कुंथुपिवीलिउड्डंसा उक्कलुद्देहिया तहा ।
तणहारकट्ठहारा मालुगा पत्तहारगा ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६०० | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1602 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] कप्पासट्ठिमिंजा य तिंदुगा तउसमिंजगा ।
सदावरी य गुम्मी य बोद्धव्वा इंदकाइया ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६०० | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1603 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] इंदगोवगमाईया णेगहा एवमायओ ।
लोएगदेसे से सव्वे न सव्वत्थ वियाहिया ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६०० | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1604 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] संतइं पप्पणाईया अपज्जवसिया वि य ।
ठिइं पडुच्च साईया सपज्जवसिया वि य ॥ Translated Sutra: प्रवाह की अपेक्षा से वे अनादि अनन्त हैं और स्थिति की अपेक्षा से सादि सान्त हैं। उनकी आयु – स्थिति उत्कृष्ट उन पचास दिनों की और जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त की है। उनकी काय – स्थिति उत्कृष्ट संख्यात काल की और जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त की है। त्रीन्द्रिय शरीर को न छोड़कर, निरंतर त्रीन्द्रिय शरीर में ही पैदा होना कायस्थिति | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1605 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एगूणपन्नहोरत्ता उक्कोसेण वियाहिया ।
तेइंदियआउठिई अंतोमुहुत्तं जहन्निया ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६०४ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1606 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] संखिज्जकालमुक्कोसं अंतोमुहुत्तं जहन्नयं ।
तेइंदियकायठिई तं कायं तु अमुंचओ ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६०४ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1607 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अनंतकालमुक्कोसं अंतोमुहुत्तं जहन्नयं ।
तेइंदियजीवाणं अंतरेयं वियाहियं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६०४ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1608 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एएसिं वण्णओ चेव गंधओ रसफासओ ।
संठाणादेसओ वावि विहाणाइं सहस्ससो ॥ Translated Sutra: वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श और संस्थान की अपेक्षा से उनके हजारों भेद हैं। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1609 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] चउरिंदिया उ जे जीवा दुविहा ते पकित्तिया ।
पज्जत्तमपज्जत्ता तेसिं भेए सुणेह मे ॥ Translated Sutra: चतुरिन्द्रिय जीव के दो भेद हैं – पर्याप्त और अपर्याप्त। उनके भेद तुम मुझसे सुनो। अन्धिका, पोतिका, मक्षिका, मशक मच्छर, भ्रमर, कीट, पतंग, ढिंकुण, कुंकुण – कुक्कुड, शृंगिरीटी, नन्दावर्त, बिच्छू, डोल, भृंगरीटक, विरली, अक्षिवेधक – अक्षिल, मागध, अक्षिरोडक, विचित्र, चित्र – पत्रक, ओहिंजलिया, जलकारी, नीचक, तन्तवक – इत्यादि | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1610 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अंधिया पोत्तिया चेव मच्छिया मसगा तहा ।
भमरे कीडपयंगे य ढिंकुणे कुंकुणे तहा ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६०९ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1611 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] कुक्कुडे सिंगिरीडी य नंदावत्ते य विंछिए ।
डोले भिंगारी य विरली अच्छिवेहए ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६०९ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1612 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अच्छिले माहए अच्छिरोडए विचित्ते चित्तपत्तए ।
ओहिंजलिया जलकारी य नीया तंतवगाविय ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६०९ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1613 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] इइ चउरिंदिया एए णेगहा एवमायओ ।
लोगस्स एग देसम्मि ते सव्वे परिकित्तिया ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६०९ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1614 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] संतइं पप्पणाईया अपज्जवसिया वि य ।
ठिइं पडुच्च साईया सपज्जवसिया वि य ॥ Translated Sutra: प्रवाह की अपेक्षा से वे अनादि – अनंत और स्थिति की अपेक्षा से सादि सान्त हैं। उनकी आयु – स्थिति उत्कृष्ट छह मास की और जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त की है। उनकी काय – स्थिति उत्कृष्ट संख्यातकाल की और जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त की है। चतु – रिन्द्रिय के शरीर को न छोड़कर निरंतर चतुरिन्द्रिय के शरीर में ही पैदा होते रहना, काय | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1615 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] छच्चेव य मासा उ उक्कोसेण वियाहिया ।
चउरिंदियआउठिई अंतोमुहुत्तं जहन्निया ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६१४ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1616 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] संखिज्जकालमुक्कोसं अंतोमुहुत्तं जहन्नयं ।
चउरिंदियकायठिई तं कायं तु अमुंचओ ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६१४ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1617 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अनंतकालमुक्कोसं अंतोमुहुत्तं जहन्नयं ।
विजढंमि सए काए अंतरेयं वियाहियं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६१४ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1618 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एएसिं वण्णओ चेव गंधओ रसफासओ ।
संठाणादेसओ वावि विहाणाइं सहस्ससो ॥ Translated Sutra: वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श और संस्थान की अपेक्षा से उनके हजारों भेद हैं। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1619 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पंचिंदिया उ जे जीवा चउव्विहा ते वियाहिया ।
नेरइयतिरिक्खा य मनुया देवा य आहिया ॥ Translated Sutra: पंचेन्द्रिय जीव के चार भेद हैं – नैरयिक, तिर्यंच, मनुष्य और देव। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1620 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] नेरइया सत्तविहा पुढवीसु सत्तसू भवे ।
रयणाभ सक्कराभा वालुयाभा य आहिया ॥ Translated Sutra: नैरयिक जीव सात प्रकार के हैं – रत्नाभा, शर्कराभा, वालुकाभा, पंकभा, धूमाभा, तमःप्रभा और तमस्तमा – इस प्रकार सात पृथ्वियों में उत्पन्न होने वाले नैरयिक सात प्रकार के हैं। सूत्र – १६२०, १६२१ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1621 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पंकाभा धूमाभा तमा तमतमा तहा ।
इइ नेरइया एए सत्तहा परिकित्तिया ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६२० | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1622 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] लोगस्स एगदेसम्मि ते सव्वे उ वियाहिया ।
एत्तो कालविभागं तु वुच्छं तेसिं चउव्विहं ॥ Translated Sutra: वे लोक के एक भाग में व्याप्त हैं। इस निरूपण के बाद चार प्रकार से नैरयिक जीवों के काल – विभाग का कथन करूँगा। वे प्रवाह की अपेक्षा से अनादि अनन्त हैं। और स्थिति की अपेक्षा से सादि सान्त है। सूत्र – १६२२, १६२३ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1623 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] संतइं पप्पणाईया अपज्जवसिया वि य ।
ठिइं पडुच्च साईया सपज्जवसिया वि य ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६२२ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1624 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सागरोवममेगं तु उक्कोसेण वियाहिया ।
पढमाए जहन्नेणं दसवाससहस्सिया ॥ Translated Sutra: पहली पृथ्वी में नैरयिक जीवों की आयु – स्थिति जघन्य दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट एक सागरोपम की दूसरी पृथ्वी में उत्कृष्ट तीन सागरोपम की और जघन्य एक सागरोपम की तीसरी पृथ्वी में उत्कृष्ट सात सागरोपम और जघन्य तीन सागरोपम। चौथी पृथ्वी उत्कृष्ट दस सागरोपम और जघन्य सात सागरोपम। पाँचवीं पृथ्वी में उत्कृष्ट सतरह | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1625 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तिन्नेव सागरा ऊ उक्कोसेण वियाहिया ।
दोच्चाए जहन्नेणं एगं तु सागरोवमं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६२४ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1626 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सत्तेव सागरा ऊ उक्कोसेण वियाहिया ।
तइयाए जहन्नेणं तिन्नेव उ सागरोवमा ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६२४ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1627 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] दस सागरोवमा ऊ उक्कोसेण वियाहिया ।
चउत्थीए जहन्नेणं सत्तेव उ सागरोवमा ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६२४ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1628 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सत्तरस सागरा ऊ उक्कोसेण वियाहिया ।
पंचमाए जहन्नेणं दस चेव उ सागरोवमा ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६२४ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1629 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] बावीस सागरा ऊ उक्कोसेण वियाहिया ।
छट्ठीए जहन्नेणं सत्तरस सागरोवमा ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६२४ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1630 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तेत्तीस सागरा ऊ उक्कोसेण वियाहिया ।
सत्तमाए जहन्नेणं बावीसं सागरोवमा ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६२४ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1631 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जा चेव उ आउठिई नेरइयाणं वियाहिया ।
सा तेसिं कायठिई जहन्नुक्कोसिया भवे ॥ Translated Sutra: नैरयिक जीवों की जो आयु – स्थिति है, वही उनकी जघन्य और उत्कृष्ट कायस्थिति है। नैरयिक शरीर को छोड़कर पुनः नैरयिक शरीर में उत्पन्न होने में अन्तर जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट अनन्तकाल का है। सूत्र – १६३१, १६३२ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1632 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अनंतकालमुक्कोसं अंतोमुहुत्तं जहन्नयं ।
विजढंमि सए काए नेरइयाणं तु अंतरं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६३१ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1633 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एएसिं वण्णओ चेव गंधओ रसफासओ ।
संठाणादेसओ वावि विहाणाइं सहस्ससो ॥ Translated Sutra: वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श और संस्थान की अपेक्षा से उनके हजारों भेद हैं। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1634 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पंचिंदियतिरिक्खाओ दुविहा ते वियाहिया ।
सम्मुच्छिमतिरिक्खाओ गब्भवक्कंतिया तहा ॥ Translated Sutra: पंचेन्द्रिय – तिर्यञ्च जीव के दो भेद हैं – सम्मूर्च्छिम – तिर्यञ्च और गर्भजतिर्यञ्च। इन दोनों के पुनः जलचर, स्थलचर और खेचर – ये तीन – तीन भेद हैं। उनको तुम मुझसे सुनो। सूत्र – १६३४, १६३५ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1635 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] दुविहावि ते भवे तिविहा जलयरा थलयरा तहा ।
खहयरा य बोद्धव्वा तेसिं भेए सुणेह मे ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६३४ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1636 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] मच्छा य कच्छभा य गाहा य मगरा तहा ।
सुंसुमारा य बोद्धव्वा पंचहा जलयराहिया ॥ Translated Sutra: जलचर पाँच प्रकार के हैं – मत्स्य, कच्छप, ग्राह, मकर और सुंसुमार। वे लोक के एक भाग में व्याप्त हैं, सम्पूर्ण लोक में नहीं। इस निरूपण के बाद चार प्रकार से उनके कालविभाग का कथन करूँगा। वे प्रवाह की अपेक्षा से अनादि – अनन्त हैं और स्थिति की अपेक्षा से सादिसान्त हैं। जलचरों की आयु – स्थिति उत्कृष्ट एक करोड़ पूर्व | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1637 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] लोएगदेसे ते सव्वे न सव्वत्थ वियाहिया ।
एत्तो कालविभागं तु वुच्छं तेसिं चउव्विहं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६३६ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1638 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] संतइं पप्पणाईया अपज्जवसिया वि य ।
ठिइं पडुच्च साईया सपज्जवसिया वि य ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६३६ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1639 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एगा य पुव्वकोडीओ उक्कोसेण वियाहिया ।
आउट्ठिई जलयराणं अंतोमुहुत्तं जहन्निया ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६३६ |