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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Tandulvaicharika | तंदुल वैचारिक | Ardha-Magadhi |
उपदेश, उपसंहार |
Hindi | 143 | Sutra | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जाओ चिय इमाओ इत्थियाओ अनेगेहिं कइवरसहस्सेहिं विविहपासपडिबद्धेहिं कामरागमोहिएहिं वन्नियाओ ताओ विय एरिसाओ, तं जहा–
पगइविसमाओ पियरूसणाओ कतियवचडुप्परून्नातो अथक्कहसिय-भासिय-विलास- वीसंभ-पचू(च्च) याओ अविनयवातोलीओ मोहमहावत्तणीओ विसमाओ पियवयणवल्लरीओ कइयवपेमगिरितडीओ अवराहसहस्सघरिणीओ ४, पभवो सोगस्स, विनासो बलस्स, सूणा पुरिसाणं, नासो लज्जाए, संकरो अविणयस्स, निलओ नियडीणं १० खाणी वइरस्स, सरीरं सोगस्स, भेओ मज्जायाणं, आसओ रागस्स, निलओ दुच्चरियाणं १५, माईए सम्मोहो, खलणा नाणस्स, चलणं सीलस्स, विग्घो धम्मस्स, अरी साहूण २०, दूसणं आयारपत्ताणं, आरामो कम्मरयस्स, फलिहो मुक्खमग्गस्स, Translated Sutra: काम, राग और मोह समान तरह – तरह की रस्सी से बँधे हजारों श्रेष्ठ कवि द्वारा इन स्त्रियों की तारीफ में काफी कुछ कहा गया है। वस्तुतः उनका स्वरूप इस प्रकार है। स्त्री स्वभाव से कुटील, प्रियवचन की लत्ता, प्रेम करने में पहाड़ की नदी की तरह कुटील, हजार अपराध की स्वामिनी, शोक उत्पन्न करवानेवाली, बाल का विनाश करनेवाली, मर्द | |||||||||
Tandulvaicharika | तंदुल वैचारिक | Ardha-Magadhi |
उपदेश, उपसंहार |
Hindi | 144 | Gatha | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] असि-मसिसारिच्छीणं कंतार-कवाड-चारयसमाणं ।
घोर-निउरंबकंदरचलंत-बीभच्छभावाणं ॥ Translated Sutra: स्त्री कटारी जैसी तीक्ष्ण, श्याही जैसी कालिमा, गहन वन जैसी भ्रमित करनेवाली, अलमारी और कारागार जैसी बँधनकारक, प्रवाहशील अगाध जल की तरह भयदायक होती है। | |||||||||
Tandulvaicharika | तंदुल वैचारिक | Ardha-Magadhi |
उपदेश, उपसंहार |
Hindi | 145 | Gatha | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] दोससयगागरीणं अजससयविसप्पमाणहिययाणं ।
कइयवपन्नत्तीणं ताणं अन्नायसीलाणं ॥ Translated Sutra: यह स्त्री सेंकड़ों दोष की गगरी, कईं तरह अपयश फैलानेवाली कुटील हृदया, छलपूर्ण सोचवाली होती है | |||||||||
Tandulvaicharika | तंदुल वैचारिक | Ardha-Magadhi |
उपदेश, उपसंहार |
Hindi | 146 | Gatha | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अन्नं रयंति, अन्नं रमंति, अन्नस्स दिंति उल्लावं ।
अन्नो कडयंतरिओ, अन्नो य पडंतरे ठविओ ॥ Translated Sutra: यह स्त्रियाँ एकमें रत होती हैं, अन्य के साथ क्रीड़ा करती हैं, अन्य के साथ नयन लड़ाती हैं और अन्य के पार्श्व में जाकर ठहरती है। उसके स्वभाव को बुद्धिमान भी नहीं जान सकते। | |||||||||
Tandulvaicharika | तंदुल वैचारिक | Ardha-Magadhi |
उपदेश, उपसंहार |
Hindi | 147 | Gatha | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] गंगाए वालुयं, सायरे जलं, हिमवतो य परिमाणं ।
उग्गस्स तवस्स गइं, गब्भुप्पत्तिं च विलयाए ॥ Translated Sutra: गंगा के बालुकण, सागर का जल, हिमवत् का परिमाण, उग्रतप का फल, गर्भ से उत्पन्न होनेवाला बच्चा; शेर की पीठ के बाल, पेट में रहा पदार्थ, घोड़े को चलने की आवाज उसे शायद बुद्धिमान मानव जान शके लेकिन स्त्री के दिल को नहीं जान सकता। सूत्र – १४७, १४८ | |||||||||
Tandulvaicharika | तंदुल वैचारिक | Ardha-Magadhi |
उपदेश, उपसंहार |
Hindi | 148 | Gatha | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सीहे कुडुंबयारस्स पोट्टलं, कुक्कुहाइयं अस्से ।
जाणंति बुद्धिमंता, महिलाहिययं न जाणंति ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १४७ | |||||||||
Tandulvaicharika | तंदुल वैचारिक | Ardha-Magadhi |
उपदेश, उपसंहार |
Hindi | 149 | Gatha | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एरिसगुणजुत्ताणं ताणं कइ इव असंठियमणाणं ।
न हु भे वीससियव्वं महिलाणं जीवलोगम्मि ॥ Translated Sutra: इस तरह के गुण से युक्त यह स्त्री बंदर जैसी चंचल मनवाली और संसारमें भरोसा करने के लायक नहीं है। | |||||||||
Tandulvaicharika | तंदुल वैचारिक | Ardha-Magadhi |
उपदेश, उपसंहार |
Hindi | 150 | Gatha | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] निद्धन्नयं च खलयं, पुप्फेहि विवज्जियं च आरामं ।
निद्दुद्धियं च धेणुं, लोए वि अतेल्लियं पिंडं ॥ Translated Sutra: लोक में जैसे धान्य विहिन खल, पुष्परहित बगीचा, दूध रहित गाय, तेल रहित तल निरर्थक हैं वैसे स्त्री भी सुखहीन होने से निरर्थक है। | |||||||||
Tandulvaicharika | तंदुल वैचारिक | Ardha-Magadhi |
उपदेश, उपसंहार |
Hindi | 151 | Gatha | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जेणंतरेण निमिसंति लोयणा, तक्खणं च विगसंति ।
तेणंतरेण हिययं चित्त सहस्साउलं होइ ॥ Translated Sutra: जितने समयमें आँख बन्द करके खोली जाती है उतने समय में स्त्री का दिल और चित्त हजार बार व्याकुल हो जाता है। | |||||||||
Tandulvaicharika | तंदुल वैचारिक | Ardha-Magadhi |
उपदेश, उपसंहार |
Hindi | 152 | Gatha | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जड्डाणं वड्डाणं निव्विण्णाणं च निव्विसेसाणं ।
संसारसूयराणं कहियं पि निरत्थयं होई ॥ Translated Sutra: मूरख, बुढ्ढे, विशिष्ट ज्ञान से हीन, निर्विशेष संसार में शूकर जैसी नीच प्रवृत्तिवाले को उपदेश निरर्थक है। | |||||||||
Tandulvaicharika | तंदुल वैचारिक | Ardha-Magadhi |
उपदेश, उपसंहार |
Hindi | 153 | Gatha | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] किं पुत्तेहिं? पियाहि व? अत्थेण व पिंडिएण बहुएणं? ।
जो मरणदेस-काले न होइ आलंबनं किंचि ॥ Translated Sutra: पुत्र, पिता और काफी – संग्रह किए गए धन से क्या फायदा ? जो मरते समय कुछ भी सहारा न दे सके ? | |||||||||
Tandulvaicharika | तंदुल वैचारिक | Ardha-Magadhi |
उपदेश, उपसंहार |
Hindi | 154 | Gatha | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पुत्ता चयंत्ति, मित्ता चयंति, भज्जा वि णं मयं चयइ ।
तं मरणदेस-काले न चयइ सुबिइज्जओ धम्मो ॥ Translated Sutra: मौत होने से पुत्र, मित्र, पत्नी भी साथ छोड़ देती हैं मगर सुउपार्जित धर्म ही मरण समय साथ नहीं छोड़ता | |||||||||
Tandulvaicharika | तंदुल वैचारिक | Ardha-Magadhi |
उपदेश, उपसंहार |
Hindi | 155 | Gatha | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] धम्मो ताणं, धम्मो सरणं, धम्मो गई पइट्ठा य ।
धम्मेण सुचरिएण य गम्मइ अजरामरं ठाणं ॥ Translated Sutra: धर्म रक्षक है। धर्म शरण है, धर्म ही गति और आधार है। धर्म का अच्छी तरह से आचरण करने से अजर अमर स्थान की प्राप्ति होती है। | |||||||||
Tandulvaicharika | तंदुल वैचारिक | Ardha-Magadhi |
उपदेश, उपसंहार |
Hindi | 156 | Gatha | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पीईकरो वण्णकरो भासकरो जसकरो रइकरो य ।
अभयकर निव्वुइकरो पारत्तबिइज्जओ धम्मो ॥ Translated Sutra: धर्म प्रीतिकर – कीर्तिकर – दीप्तिकर – यशकर – रतिकर – अभयकर – निवृत्तिकर और मोक्ष प्राप्ति में सहायक है। | |||||||||
Tandulvaicharika | तंदुल वैचारिक | Ardha-Magadhi |
उपदेश, उपसंहार |
Hindi | 157 | Gatha | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अमरवरेसु अनोवमरूवं भोगोवभोगरिद्धी य ।
विन्नाण-नाणमेव य लब्भइ सुकएण धम्मेणं ॥ Translated Sutra: सुकृतधर्म से ही मानव को श्रेष्ठ देवता के अनुपम रूप – भोगोपभोग, ऋद्धि और विज्ञान का लाभ प्राप्त होता है। | |||||||||
Tandulvaicharika | तंदुल वैचारिक | Ardha-Magadhi |
उपदेश, उपसंहार |
Hindi | 158 | Gatha | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] देविंद-चक्कवट्टित्तणाइं रज्जाइं इच्छिया भोगा ।
एयाइं धम्मलाभप्फलाइं, जं चावि नेव्वाणं ॥ Translated Sutra: देवेन्द्र, चक्रीपद, राज्य, ईच्छित भोग से लेकर निर्वाण पर्यन्त यह सब धर्म आचरण का ही फल है। | |||||||||
Tandulvaicharika | तंदुल वैचारिक | Ardha-Magadhi |
उपदेश, उपसंहार |
Hindi | 159 | Gatha | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] आहारो उस्सासो संधिछिराओ य रोमकूवाइं ।
पित्तं रुहिरं सुक्कं गणियं गणियप्पहाणेहिं ॥ Translated Sutra: यहाँ सौ साल के आयुवाले मानव का आहार, उच्छ्वास, संधि, शिरा, रोमफल, लहू, वीर्य की गिनती की दृष्टि से परिगणना की गई है। | |||||||||
Tandulvaicharika | तंदुल वैचारिक | Ardha-Magadhi |
उपदेश, उपसंहार |
Hindi | 160 | Gatha | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एयं सोउ सरीरस्स वासाणं गणियपागडमहत्थं ।
मोक्खपउमस्स ईहह सम्मत्तसहस्सपत्तस्स ॥ Translated Sutra: जिस की गिनती द्वारा अर्थ प्रकट किया गया है ऐसे शरीर के वर्षों को सूनकर तुम मोक्ष समान कमल के लिए कोशिश कर लो जिसके सम्यक्त्व समान हजार पंखड़ियाँ हैं। | |||||||||
Tandulvaicharika | तंदुल वैचारिक | Ardha-Magadhi |
उपदेश, उपसंहार |
Hindi | 161 | Gatha | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एयं सगडसरीरं जाइ-जरा-मरण-वेयणाबहुलं ।
तह घत्तह काउं जे जह मुच्चह सव्वदुक्खाणं ॥ Translated Sutra: यह शरीर जन्म, जरा, मरण, दर्द से भरी गाड़ी जैसा है। उसे पा कर वही करना चाहिए जिस से सब दुःख से छूटकारा पा सकें। | |||||||||
Tandulvaicharika | તંદુલ વૈચારિક | Ardha-Magadhi |
मङ्गलं द्वाराणि |
Gujarati | 2 | Gatha | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सुणह गणिए दस दसा वाससयाउस्स जह विभज्जंति ।
संकलिए वोगसिए जं चाऽऽउं सेसयं होइ ॥ Translated Sutra: સૂત્ર– ૨. ગણવામાં મનુષ્યનું આયુ સો વર્ષનું લઈ, તેને દશ – દશમાં વિભાજિત કરાય છે. તે સો વર્ષના આયુ સિવાયનો કાળ તે ગર્ભાવાસ. સૂત્ર– ૩. તે ગર્ભકાળ જેટલા દિવસ, રાત્રિ, મુહૂર્ત્ત, શ્વાસોચ્છ્વાસ જીવ ગર્ભાવાસમાં રહે તેની આહારવિધિ કહીશ. સૂત્ર સંદર્ભ– ૨, ૩ | |||||||||
Tandulvaicharika | તંદુલ વૈચારિક | Ardha-Magadhi |
गर्भः प्रकरणं |
Gujarati | 4 | Gatha | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] दोन्नि अहोरत्तसए संपुण्णे सत्तसत्तरिं चेव ।
गब्भम्मि वसइ जीवो, अद्धमहोरत्तमन्नं च ॥ Translated Sutra: સૂત્ર– ૪. જીવ ૨૭૦ પૂર્ણ રાત્રિ દિવસ અને અડધો દિવસ ગર્ભમાં રહે છે. સૂત્ર– ૫. નિયમથી જીવને આટલા દિવસ – રાત ગર્ભાવાસમાં લાગે. સૂત્ર– ૬. પણ ઉપઘાતના કારણે તેનાથી ઓછા કે અધિક દિવસમાં પણ જન્મ લઈ શકે છે. સૂત્ર– ૭. નિયમથી જીવ ૮૩૨૫ મુહૂર્ત્ત સુધી ગર્ભમાં રહે પણ તેમાં હાનિ – વૃદ્ધિ પણ થાય છે. સૂત્ર– ૮. જીવને ગર્ભમાં ૩,૧૪,૧૦,૨૨૫ | |||||||||
Tandulvaicharika | તંદુલ વૈચારિક | Ardha-Magadhi |
गर्भः प्रकरणं |
Gujarati | 6 | Gatha | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अट्ठ सहस्सा तिन्नि उ सया मुहुत्ताण पण्णवीसा य ।
गब्भगओ वसइ जिओ नियमा, हीनाऽहिया एत्तो ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪ | |||||||||
Tandulvaicharika | તંદુલ વૈચારિક | Ardha-Magadhi |
जीवस्यदशदशा |
Gujarati | 8 | Gatha | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] उस्सासा निस्सासा एत्तियमित्ता हवंति संकलिया ।
जीवस्स गब्भवासे नियमा, हीनाऽहिया एत्तो ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪ | |||||||||
Tandulvaicharika | તંદુલ વૈચારિક | Ardha-Magadhi |
जीवस्यदशदशा |
Gujarati | 9 | Gatha | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] आउसो! –इत्थीए नाभिहेट्ठा सिरादुगं पुप्फनालियागारं ।
तस्स य हेट्ठा जोणी अहोमुहा संठिया कोसा ॥ Translated Sutra: સૂત્ર– ૯. હે આયુષ્યમાન્ ! સ્ત્રીની નાભિની નીચે પુષ્પડંઠલના આકારે બે સિરા હોય છે. સૂત્ર– ૧૦. તેની નીચે ઊલટા કરેલા કમળના આકારે યોનિ હોય છે, જે તલવારની મ્યાન જેવી હોય છે. તે યોનિ નીચે કેરીની પેશી જેવો માસપિંડ હોય છે, સૂત્ર– ૧૧. તે ઋતુ કાળમાં ફૂટીને લોહીના કણ છોડે છે, ઊલટા કરાયેલા કમળના આકારની યોનિ, જ્યારે શુક્રમિશ્રિત | |||||||||
Tandulvaicharika | તંદુલ વૈચારિક | Ardha-Magadhi |
जीवस्यदशदशा |
Gujarati | 13 | Gatha | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पणपन्नाय परेणं जोणी पमिलायए महिलियाणं ।
पणसत्तरीय परओ पाएण पुमं भवेऽबीओ ॥ Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૩. ૫૫ વર્ષ બાદ સ્ત્રીની યોનિ ગર્ભધારણ યોગ્ય રહેતી નથી અને ૭૫ વર્ષ બાદ પુરુષ પ્રાયઃ શુક્રાણુ રહિત થઈ જાય છે. સૂત્ર– ૧૪. ૧૦૦ વર્ષથી પૂર્વકોટિ સુધી જેટલું આયુ હોય છે, તેના અડધા ભાગ પછી સ્ત્રી સંતાનોત્પત્તિમાં અસમર્થ થઈ જાય છે અને આયુનો ૨૦ ટકા ભાગ બાકી રહેતા પુરુષ શુક્રરહિત થાય. સૂત્ર સંદર્ભ– ૧૩, ૧૪ | |||||||||
Tandulvaicharika | તંદુલ વૈચારિક | Ardha-Magadhi |
जीवस्यदशदशा |
Gujarati | 14 | Gatha | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] वाससयाउयमेयं, परेण जा होइ पुव्वकोडीओ ।
तस्सऽद्धे अमिलाया, सव्वाउयवीसभागो उ ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૩ | |||||||||
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जीवस्यदशदशा |
Gujarati | 15 | Gatha | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] रत्तुक्कडा य इत्थी, लक्खपुहत्तं च बारस मुहुत्ता ।
पिउसंख सयपुहत्तं, बारस वासा उ गब्भस्स ॥ Translated Sutra: રક્તોત્કટ સ્ત્રીયોનિ ૧૨ – મુહૂર્ત્તમાં ઉત્કૃષ્ટા લાખ પૃથક્ત્વ જીવોને સંતાનરૂપે ઉત્પન્ન કરવામાં સમર્થ છે. ૧૨ વર્ષે અધિકતમ ગર્ભકાળમાં એક જીવના અધિકતમ સો પૃથક્ત્વ પિતા થઈ શકે છે. | |||||||||
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जीवस्यदशदशा |
Gujarati | 16 | Gatha | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] दाहिणकुच्छी पुरिसस्स होइ, वामा उ इत्थियाए उ ।
उभयंतरं नपुंसे, तिरिए अट्ठेव वरिसाइं ॥ Translated Sutra: જમણી કુક્ષી પુરુષનું, ડાબી કુક્ષી સ્ત્રીનું નિવાસ સ્થળ હોય છે. બંને મધ્યે વસે તે નપુંસક હોય. તિર્યંચયોનિમાં ગર્ભની ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ આઠ વર્ષ માનેલી છે. | |||||||||
Tandulvaicharika | તંદુલ વૈચારિક | Ardha-Magadhi |
जीवस्यदशदशा |
Gujarati | 17 | Sutra | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] इमो खलु जीवो अम्मा-पिउसंजोगे माऊओयं पिउसुक्कं तं तदुभयसंसट्ठं कलुसं किब्बिसं तप्पढमयाए आहारं आहारित्ता गब्भत्ताए वक्कमइ। Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૭. નિશ્ચયથી જીવ માતા – પિતાના સંયોગમાં ગર્ભમાં ઉપજે છે, તે પહેલાં માતાની રજ અને પિતાના શુક્રના કલુષ અને કિલ્બિષનો આહાર કરી રહે છે. સૂત્ર– ૧૮. પહેલા સપ્તાહમાં જીવ તરલ પદાર્થ રૂપે, બીજે સપ્તાહે દહીં જેવો જામેલો, પછી લચીલી પેશી જેવો, પછી ઠોસ થઈ જાય છે. સૂત્ર– ૧૯. પહેલા મહિને ફૂલેલા માંસ જેવો, બીજા મહિને માંસપિંડ | |||||||||
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जीवस्यदशदशा |
Gujarati | 18 | Gatha | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सत्ताहं कललं होइ, सत्ताहं होइ अब्बुयं ।
अब्बुया जायए पेसी, पेसीओ वि घनं भवे ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૭ | |||||||||
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जीवस्यदशदशा |
Gujarati | 19 | Sutra | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तो पढमे मासे करिसूणं पलं जायइ १। बीए मासे पेसी संजायए घना २।
तईए मासे माऊए डोहलं जणइ ३। चउत्थे मासे माऊए अंगाइं पीणेइ ४।
पंचमे मासे पंच पिंडियाओ पाणिं पायं सिरं चेव निव्वत्तेइ ५।
छट्ठे मासे पित्तसोणियं उवचिणेइ – अंगोवंगं च नव्वत्तेइ – ६।
सत्तमे मासे सत्त सिरासयाइं पंच पेसीसयाइं नव धमणीओ नवनउयं च रोमकूवसयसहस्साइं ९९००००० निव्वत्तेइ विणा केस-मंसुणा, सह केस-मंसुणा अद्धुट्ठाओ रोमकूवकोडीओ निव्वत्तेइ ३५००००००, ७।
अट्ठमे मासे वित्तीकप्पो हवइ ८। Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૭ | |||||||||
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जीवस्यदशदशा |
Gujarati | 20 | Sutra | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवस्स णं भंते! गब्भगयस्स समाणस्स अत्थि उच्चारे इ वा पासवणे इ वा खेले इ वा सिंघाणे इ वा वंते इ वा पित्ते इ वा सुक्के इ वा सोणिए इ वा? नो इणट्ठे समट्ठे।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–जीवस्स णं गब्भगयस्स समाणस्स नत्थि उच्चारे इ वा जाव सोणिए इ वा?
गोयमा! जीवे णं गब्भगए समाणे जं आहारमाहारेइ तं चिणाइ सोइंदियत्ताए चक्खुइंदियत्ताए घाणिंदियत्ताए जिब्भिंदियत्ताए फासिंदियत्ताए अट्ठि-अट्ठिमिंज-केस-मंसु रोम-नहत्ताए,
से एएणं अट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ– जीवस्स णं गब्भगयस्स समाणस्स नत्थि उच्चारे इ वा जाव सोणिए इ वा। Translated Sutra: ભગવન્ ! ગર્ભગત જીવને શું મળ, મૂત્ર, કફ, શ્લેષ્મ, વમન, પિત્ત, વીર્ય કે લોહી હોય છે? ના, તેમ ન હોય. ભગવન્! કયા કારણથી આપ આમ કહો છો? ગૌતમ! ગર્ભસ્થ જીવ માતાના શરીરમાં જે આહાર કરે છે, તેને શ્રોત્ર, ચક્ષુ, ઘ્રાણ, રસન અને સ્પર્શન ઇન્દ્રિય રૂપે, હાડકા, મજ્જા, કેશ, દાઢી, મૂંછ, રોમ, નખરૂપે પરિણમાવે છે. તેથી એમ કહ્યું કે ગર્ભસ્થ જીવને | |||||||||
Tandulvaicharika | તંદુલ વૈચારિક | Ardha-Magadhi |
जीवस्यदशदशा |
Gujarati | 21 | Sutra | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! गब्भगए समाणे पहू मुहेणं कावलियं आहारं आहारित्तए? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–जीवे णं गब्भगए समाणे नो पहू मुहेणं कावलियं आहारं आहारित्तए?
गोयमा! जीवे णं गब्भगए समाणे सव्वओ आहारेइ, सव्वओ परिणामेइ, सव्वओ ऊससइ, सव्वओ नीससइ; अभिक्खणं आहारेइ, अभिक्खणं परिणामेइ, अभिक्खणं ऊससइ, अभिक्खणं नीससइ; आहच्च आहारेइ, आहच्च परिणामेइ, आहच्च ऊससइ, आहच्च नीससइ; से माउजीव-रसहरणी पुत्तजीवरसहरणी माउजीवपडिबद्धा पुत्तजीवंफुडा तम्हा आहारेइ तम्हा परिणामेइ, अवरा वि य णं माउजीवपडिबद्धा माउजीवफुडा तम्हा चिणाइ तम्हा उवचिणाइ,
से एएणं अट्ठेणं गोयमा! एवं Translated Sutra: ભગવન્ ! ગર્ભગત જીવ મુખેથી કવલ આહાર કરવા સમર્થ છે ? ગૌતમ ! ના, આ અર્થ સમર્થ નથી. ભગવન્ ! એમ કેમ કહો છો ? ગૌતમ! ગર્ભસ્થ જીવ ચોતરફથી આહાર કરે છે, ચોતરફ પરિણમાવે છે, ચોતરફથી શ્વાસ લે છે અને ચોતરફ શ્વાસ લે છે અને ચોતરફ મૂકે છે. વારંવાર આહાર લે છે અને પરિણમાવે છે, વારંવાર શ્વાસ લે છે અને મૂકે છે. જલદીથી આહાર લે છે અને મૂકે | |||||||||
Tandulvaicharika | તંદુલ વૈચારિક | Ardha-Magadhi |
जीवस्यदशदशा |
Gujarati | 22 | Sutra | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! गब्भगए समाणे किमाहारं आहारेइ?
गोयमा! जं से माया नाणाविहाओ रसविगईओ तित्त-कडुय-कसायंबिल-महुराइं दव्वाइं आहारेइ तओ एगदेसेणं ओयमाहारेइ।
तस्स फलबिंटसरिसा उप्पलनालोवमा भवइ नाभी ।
रसहरणी जननीए सयाइ नाभीए पडिबद्धा ॥
नाभीए ताओ गब्भो ओयं आइयइ अण्हयंतीए ।
ओयाए तीए गब्भो विवड्ढई जाव जाओ त्ति ॥ Translated Sutra: ગર્ભસ્થ જીવ કયો આહાર કરે ? ગૌતમ ! તેની માતા જે વિવિધ પ્રકારની નવ રસ વિગઈ, કડવું – તીખું – તુરુ – ખારુ – મીઠું દ્રવ્ય ખાય તેના જ આંશિકરૂપે ઓજાહાર કરે છે. તે જીવની ફળના બિંટ જેવી કમળની નાળના આકારની નાભિ હોય છે, તે રસ ગ્રાહક નાડી માતાની નાભિ સાથે જોડાયેલી હોય છે, તે નાડીથી ગર્ભસ્થજીવ ઓજાહાર કરે છે અને વૃદ્ધિ પામી યાવત્ | |||||||||
Tandulvaicharika | તંદુલ વૈચારિક | Ardha-Magadhi |
जीवस्यदशदशा |
Gujarati | 23 | Sutra | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कइ णं भंते! माउअंगा पण्णत्ता?
गोयमा! तओ माउअंगा पन्नत्ता, तं जहा–मंसे १ सोणिए २ मत्थुलुंगे ३।
कइ णं भंते! पिउअंगा पन्नत्ता?
गोयमा! तओ पिउअंगा पन्नत्ता, तं जहा–अट्ठि १ अट्ठिमिंजा २ केस-मंसु-रोम-नहा ३। Translated Sutra: ભગવન્ ! માતૃ અંગો કેટલા કહેલા છે ? ગૌતમ ! માતૃઅંગ ત્રણ કહેલા છે, તે આ રીતે – માંસ, લોહી, મસ્તક. ભગવન્ ! પિતૃ અંગો કેટલા કહેલા છે ? ગૌતમ ! પિતૃઅંગ ત્રણ કહેલા છે – હાડકા, હાડકાની મજ્જા, દાઢી – મૂંછ, રોમ – નખ. | |||||||||
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जीवस्यदशदशा |
Gujarati | 24 | Sutra | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! गब्भगए समाणे नरएसु उववज्जिज्जा?
गोयमा! अत्थेगइए उववज्जेज्जा अत्थेगइए नो उववज्जेज्जा।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ जीवे णं गब्भगए समाणे नरएसु अत्थेगइए उववज्जेज्जा अत्थेगइए नो उववज्जेज्जा?
गोयमा! जे णं जीवे गब्भगए समाणे सन्नी पंचिंदिए सव्वाहिं पज्जत्तीहिं पज्जत्तए वीरियलद्धीए विभंगनाणलद्धीए वेउव्विअलद्धीए वेउव्वियलद्धिपत्ते पराणीअं आगयं सोच्चा निसम्म पएसे निच्छुहइ, २ त्ता वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहणइ, २ त्ता चाउरंगिणिं सेन्नं सन्नाहेइ, सन्नाहित्ता पराणीएण सद्धिं संगामं संगामेइ, से णं जीवे अत्थकामए रज्जकामए भोगकामए कामकामए, अत्थकंखिए Translated Sutra: ભગવન્ ! ગર્ભસ્થ જીવ નૈરયિકમાં ઉપજે ? ગૌતમ! કેટલાક ઉપજે, કેટલાક ન ઉપજે. ભગવન્! એમ કેમ કહો છો ? ગૌતમ ! જે જીવ ગર્ભસ્થ સંજ્ઞી પંચેન્દ્રિય હોય, સર્વ પર્યાપ્તિથી પર્યાપ્ત હોય, વીર્યલબ્ધિ – વિભંગજ્ઞાનલબ્ધિ – વૈક્રિય લબ્ધિ હોય. તે વૈક્રિય લબ્ધિ પ્રાપ્ત શત્રુસેના આવેલી સાંભળી, સમજી વિચારે કે હું આત્મપ્રદેશ બહાર કાઢુ | |||||||||
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जीवस्यदशदशा |
Gujarati | 25 | Sutra | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! गब्भगए समाणे देवलोएसु उववज्जेज्जा?
गोयमा! अत्थेगइए उववज्जेज्जा अत्थेगइए नो उववज्जेज्जा।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–अत्थेगइए उववज्जेज्जा अत्थेगइए नो उववज्जेज्जा?
गोयमा! जे णं जीवे गब्भगए समाणे सण्णी पंचिंदिए सव्वाहिं पज्जत्तीहिं पज्जत्तए वेउव्वियलद्धीए वीरियलद्धीए ओहिनाणलद्धीए तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा अंतिए एगमवि आयरियं धम्मियं सुवयणं सोच्चा निसम्म तओ से भवइ तिव्वसंवेगसंजायसड्ढे तिव्वधम्मानुरायरत्ते, से णं जीवे धम्म कामए पुण्णकामए सग्गकामए मोक्खकामए, धम्मकंखिए पुन्नकंखिए सग्गकंखिए मोक्खकंखिए, धम्मपिवासिए पुन्नपिवासिए Translated Sutra: ભગવન્ ! ગર્ભસ્થ જીવ દેવલોકમાં ઉત્પન્ન થાય ? કોઈ ઉત્પન્ન થાય, કોઈ ન થાય. ભગવન્ ! એમ કેમ કહ્યું ? ગૌતમ ! જે જીવ ગર્ભ પ્રાપ્ત હોય, સંજ્ઞી પંચેન્દ્રિય, સર્વ પર્યાપ્તિથી પર્યાપ્ત, વૈક્રિયલબ્ધિથી, અવધિજ્ઞાનલબ્ધિથી તથારૂપ શ્રમણ કે બ્રાહ્મણ પાસે એક પણ આર્ય ધાર્મિક સુવચન સાંભળી, અવધારીને તે તીવ્ર સંવેગ સંજાત શ્રાદ્ધ, | |||||||||
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जीवस्यदशदशा |
Gujarati | 26 | Sutra | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! गब्भगए समाणे उत्ताणए वा पासिल्लए वा अंबखुज्जए वा अच्छेज्ज वा चिट्ठेज्ज वा निसीएज्ज वा तुयट्टेज्ज वा आसएज्ज वा सएज्ज वा माऊए सुयमाणीए सुयइ जागरमाणीए जागरइ सुहिआए सुहिओ भवइ दुहिआए दुहिओ भवइ?
हंता गोयमा! जीवे णं गब्भगए समाणे उत्ताणए वा जाव दुक्खिआए दुक्खिओ भवइ। Translated Sutra: સૂત્ર– ૨૬. ૧.ગર્ભમાં રહેલ જીવ ઊલટો સૂવે, પડખે સૂવે કે વક્ર આકારે સુવે ? ૨.ઊભો હોય કે બેઠો હોય ? ૩. સૂતો હોય કે જાગતો હોય ? ૪. માતા સૂવે ત્યારે સૂવે અને જાગે માતા ત્યારે જાગે ? ૫. માતા સુખી હોય તો સુખી અને માતા દુઃખી હોય તો દુઃખી રહે ? હા, ગૌતમ ! ગર્ભ સ્થિત જીવ માટે તમે પૂછો છો તેમજ છે સૂત્ર– ૨૭. સ્થિર રહેલા ગર્ભનું માતા રક્ષણ | |||||||||
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जीवस्यदशदशा |
Gujarati | 27 | Gatha | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] थिरजायं पि हु रक्खइ, सम्मं सारक्खई तओ जननी ।
संवाहई तुयट्टइ रक्खइ अप्पं च गब्भं च ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૬ | |||||||||
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जीवस्यदशदशा |
Gujarati | 28 | Gatha | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अनुसुयइ सुयंतीए, जागरमाणीए जागरइ गब्भो ।
सुहियाए होइ सुहिओ, दुहियाए दुक्खिओ होइ ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૬ | |||||||||
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जीवस्यदशदशा |
Gujarati | 30 | Gatha | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] आहारो परिणामो उस्सासो तह य चेव नीसासो ।
सव्वपएसेसु भवइ, कवलाहारो य से नत्थि ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૬ | |||||||||
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जीवस्यदशदशा |
Gujarati | 43 | Sutra | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] आउसो! एवं जायस्स जंतुस्स कमेण दस दसाओ एवमाहिज्जंति ।
तं जहा– Translated Sutra: સૂત્ર– ૪૩. હે આયુષ્યમાન્ ! આ પ્રકારે ઉત્પન્ન જીવની ક્રમથી દશ દશા કહી છે, તે આ પ્રમાણે – સૂત્ર– ૪૪. બાલા, ક્રીડા, મંદા, બલા, પ્રજ્ઞા, હાયની, પ્રપંચા, પ્રાગ્ભારા, મુન્મુખી અને શાયની. એ દશકાળ દશા. સૂત્ર– ૪૫. જન્મ થતા જ જીવ પહેલી અવસ્થા પામે, તેમાં અજ્ઞાનતાને લીધે સુખ, દુઃખ અને ભૂખને જાણતો નથી. સૂત્ર– ૪૬. બીજી અવસ્થામાં | |||||||||
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जीवस्यदशदशा |
Gujarati | 50 | Gatha | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] छट्ठी उ हायनी नाम जं नरो दसमस्सिओ ।
विरज्जइ काम-भोगेसु, इंदिएसु य हायई ६ ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪૩ | |||||||||
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जीवस्यदशदशा |
Gujarati | 55 | Gatha | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] दसगस्स उवक्खेवो, वीसइवरिसो उ गिण्हई विज्जं ।
भोगा य तीसगस्सा, चत्तालीसस्स विन्नाणं ॥ Translated Sutra: સૂત્ર– ૫૫. દશ વર્ષની ઉંમર દૈહિક વિકાસની, વીસ વર્ષની ઉંમર વિદ્યા પ્રાપ્તિની, ત્રીશ વર્ષ સુધી વિષયસુખ, ચાલીશ વર્ષ સુધી વિશિષ્ટ જ્ઞાન, સૂત્ર– ૫૬. પચાશે આંખની દૃષ્ટિની ક્ષીણતા, સાઠે બાહુબળ ઘટે, સીતેરમે ભોગ હાનિ, એંસીમેં ચેતના ક્ષીણ થાય, સૂત્ર– ૫૭. નેવુમે શરીર નમી જાય, સોમે વર્ષે જીવન પૂર્ણ થાય. આટલામાં સુખ કેટલું | |||||||||
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जीवस्यदशदशा |
Gujarati | 56 | Gatha | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पन्नासयस्स चक्खुं हायइ, सट्ठिक्कयस्स बाहुबलं ।
सत्तरियस्स उ भोगा, आसीकस्साऽऽयविन्नाणं ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫૫ | |||||||||
Tandulvaicharika | તંદુલ વૈચારિક | Ardha-Magadhi |
जीवस्यदशदशा |
Gujarati | 57 | Gatha | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] नउई नमइ सरीरं, पुन्ने वाससए जीवियं चयइ ।
केत्तिओऽत्थ सुहो भागो? दुहभागो य केत्तिओ? ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫૫ | |||||||||
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धर्मोपदेश एवं फलं |
Gujarati | 61 | Gatha | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] न वि जाई कुलं वा वि विज्जा वा वि सुसिक्खिया ।
तारे नरं व नारिं वा, सव्वं पुण्णेहिं वड्ढई ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫૫ | |||||||||
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धर्मोपदेश एवं फलं |
Gujarati | 63 | Sutra | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] पुण्णाइं खलु आउसो! किच्चाइं करणिज्जाइं पीइकराइं वन्नकराइं धनकराइं कित्तिकराइं।
नो य खलु आउसो! एवं चिंतेयव्वं–एसिंति खलु बहवे समया आवलिया खणा आनापानू थोवा लवा मुहुत्ता दिवसा अहोरत्ता पक्खा मासा रिऊ अयणा संवच्छरा जुगा वाससया वाससहस्सा वाससयसहस्सा, वासकोडीओ वासकोडाकोडीओ, जत्थ णं अम्हे बहूइं सीलाइं वयाइं गुणाइं वेरमणाइं पच्चक्खाणाइं पोसहोववासाइं पडिवज्जिस्सामो पट्ठविस्सामो करिस्सामो, ता किमत्थं आउसो! नो एवं चिंतेयव्वं भवइ?
–अंतराइयबहुले खलु अयं जीविए, इमे य बहवे वाइय-पित्तिय-सिंभिय-सन्निवाइया विविहा रोगायंका फुसंति जीवियं। Translated Sutra: હે આયુષ્યમાન્ ! પુન્ય કૃત્યો કરવાથી પ્રીતિમાં વૃદ્ધિ થાય છે, પ્રશંસા, ધન અને કીર્તિમાં વૃદ્ધિ થાય છે. તેથી હે આયુષ્યમાન્ ! એવું કદી ન વિચારવું કે – અહીં ઘણા સમય, આવલિકા, ક્ષણ, શ્વાસોચ્છ્વાસ, સ્તોક, લવ, મુહૂર્ત્ત, દિવસો, અહોરાત્ર, પક્ષ, માસ, ઋતુ, અયન, સંવત્સર, યુગ, સો વર્ષ, હજાર વર્ષ, લાખ વર્ષ, કરોડ વર્ષ, કોડાકોડી | |||||||||
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धर्मोपदेश एवं फलं |
Gujarati | 64 | Sutra | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] आसी य खलु आउसो! पुव्विं मनुया ववगयरोगाऽऽयंका बहुवाससयसहस्सजीविणो। तं जहा–जुयलधम्मिया अरिहंता वा चक्कवट्टी वा बलदेवा वा वासुदेवा वा चारणा विज्जाहरा।
ते णं मनुया अनतिवरसोमचारुरूवा भोगुत्तमा भोगलक्खणधरा सुजायसव्वंगसुंदरंगा रत्तु-प्पल-पउमकर-चरण-कोमलंगुलितला नग नगर मगर सागर चक्कंक-धरंक-लक्खणंकियतला सुपइट्ठियकुम्मचारुचलणा अनुपुव्विसुजाय पीवरं गुलिया उन्नय तनु तंब निद्धनहा संठिय सुसिलिट्ठ गूढगोप्फा एणी कुरुविंदवित्तवट्टाणुपुव्विजंघा सामुग्गनिमग्गगूढजाणू गयससणसुजायसन्निभोरू वरवारणमत्ततुल्लविक्कम-विलासियगई सुजायवरतुरयगुज्झदेसा आइन्नहउ व्व Translated Sutra: હે આયુષ્યમાન્ ! પૂર્વકાળમાં યુગલિક, અરિહંત, ચક્રવર્તી, બળદેવ, વાસુદેવ, ચારણ અને વિદ્યાધર આદિ મનુષ્ય રોગરહિત હોવાથી લાખો વર્ષો સુધી જીવન જીવતા હતા. તેઓ અત્યંત સૌમ્ય, સુંદર રૂપવાળા, ઉત્તમ ભોગ ભોગવતા, ઉત્તમ લક્ષણધારી, સર્વાંગ સુંદર શરીરવાળા હતા. તેમના હાથ – પગના તળિયા લાલ કમળપત્ર જેવા, કોમળ હતા. આંગળીઓ પણ કોમળ | |||||||||
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देहसंहननं आहारादि |
Gujarati | 65 | Sutra | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] आसी य समणाउसो! पुव्विं मणुयाणं छव्विहे संघयणे। तं जहा–
वज्जरिसहनारायसंघयणे १ रिसहनारायसंघयणे २ नारायसंघयणे ३ अद्धनारायसंघयणे ४ कीलियासंघयणे ५ छेवट्ठसंघयणे ६। संपइ खलु आउसो! मणुयाणं छेवट्ठे संघयणे वट्टइ
आसी य आउसो! पुव्विं मनुयाणं छव्विहे संठाणे। तं जहा–
समचउरंसे १ नग्गोहपरिमंडले २ सादि ३ खुज्जे ४ वामणे ५ हुंडे ६। संपइ खलु आउसो! मणुयाणं हुंडे संठाणे वट्टइ। Translated Sutra: સૂત્ર– ૬૫. હે આયુષ્યમાન્ શ્રમણ ! પૂર્વકાળના મનુષ્યોના છ પ્રકારના સંઘયણ હતા. તે આ પ્રમાણે – વજ્રઋષભનારાચ, ઋષભનારાચ, નારાચ, અર્દ્ધનારાચ, કીલિકા, સેવાર્ત્ત. સૂત્ર– ૬૬. વર્તમાન કાળે મનુષ્યોમાં સેવાર્ત્ત સંઘયણ જ હોય છે. સૂત્ર– ૬૭. હે આયુષ્યમાન્ શ્રમણ ! પૂર્વકાળમાં મનુષ્યોને છ પ્રકારના સંસ્થાન હતા. તે આ પ્રમાણે |