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Tandulvaicharika तंदुल वैचारिक Ardha-Magadhi

काल प्रमाणं

Hindi 87 Gatha Painna-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] बारस मासा संवच्छरो उ, पक्खा य ते चउव्वीसं । तिन्नेव य सट्ठसया हवंति राइंदियाणं च ॥

Translated Sutra: १२ मास का एक साल, एक साल के २४ पक्ष और ३६० रात – दिन होते हैं।
Tandulvaicharika तंदुल वैचारिक Ardha-Magadhi

काल प्रमाणं

Hindi 88 Gatha Painna-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एगं च सयसहस्सं तेरस चेव य भवे सहस्साइं । एगं च सयं नउयं हवंति राइंदिऊसासा ॥

Translated Sutra: एक रात्रि – दिन में १,१३,९०० उच्छ्‌वास होते हैं।
Tandulvaicharika तंदुल वैचारिक Ardha-Magadhi

काल प्रमाणं

Hindi 93 Gatha Painna-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] राइंदिएण तीसं तु मुहुत्ता, नव सया उ मासेणं । हायंति पमत्ताणं, न य णं अबुहा वियाणंति ॥

Translated Sutra: रात – दिन में तीस और महिने में ९०० मुहूर्त्त प्रमादि के नष्ट होते हैं। लेकिन अज्ञानी उसे नहीं जानते।
Tandulvaicharika तंदुल वैचारिक Ardha-Magadhi

अनित्य, अशुचित्वादि

Hindi 96 Gatha Painna-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सी-उण्ह-पंथगमणे खुहा पिवासा भयं च सोगे य । नाणाविहा य रोगा हवंति तीसाइ पच्छद्धे ॥

Translated Sutra: बाकी के १५ साल शर्दी, गर्मी, मार्गगमन, भूख, प्यास, भय, शोक और विविध प्रकार की बीमारी होती है। ऐसे ८५ साल नष्ट होते हैं। जो सौ साल जीनेवाले होते हैं वो १५ साल जीते हैं और १०० साल जीनेवाले भी सभी नहीं होते। सूत्र – ९६, ९७
Tandulvaicharika तंदुल वैचारिक Ardha-Magadhi

अनित्य, अशुचित्वादि

Hindi 97 Gatha Painna-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एवं पंचासीई नट्ठा, पन्नरसमेव जीवंति । जे होंति वाससइया, न य सुलहा वाससयजीवी ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ९६
Tandulvaicharika तंदुल वैचारिक Ardha-Magadhi

अनित्य, अशुचित्वादि

Hindi 98 Gatha Painna-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एवं निस्सारे मानुसत्तणे जीविए अहिवडंते । न करेह चरणधम्मं, पच्छा पच्छानुतप्पिहिह ॥

Translated Sutra: इस तरह व्यतीत होनेवाले निःस्सार मानवजीवन में सामने आए हुए चारित्र धर्म का पालन नहीं करते उसे पीछे से पछतावा करना पड़ेगा।
Tandulvaicharika तंदुल वैचारिक Ardha-Magadhi

अनित्य, अशुचित्वादि

Hindi 99 Gatha Painna-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] घुट्ठम्मि सयं मोहे जिणेहिं वरधम्मतित्थमग्गस्स । अत्ताणं च न याणह इह जाया कम्मभूमीए ॥

Translated Sutra: इस कर्मभूमि में उत्पन्न होकर भी किसी मानव मोह से वश होकर जिनेन्द्र के द्वारा प्रतिपादित धर्मतीर्थ समान श्रेष्ठ मार्ग और आत्मस्वरूप को नहीं जानता।
Tandulvaicharika तंदुल वैचारिक Ardha-Magadhi

अनित्य, अशुचित्वादि

Hindi 100 Gatha Painna-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] नइवेगसमं चवलं च जीवियं, जोव्वणं च कुसुमसमं । सोक्खं च जमनियत्तं तिन्नि वि तुरमाणभोज्जाइं ॥

Translated Sutra: यह जीवन नदी के वेग जैसा चपल, यौवन फूल जैसा मुर्झानेवाला और सुख भी अशाश्वत है। यह तीनों शीघ्र भोग्य हैं।
Tandulvaicharika तंदुल वैचारिक Ardha-Magadhi

अनित्य, अशुचित्वादि

Hindi 101 Gatha Painna-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एयं खु जरा-मरणं परिक्खिवइ वग्गुरा व मिगजूहं । न य णं पेच्छह पत्तं सम्मूढा मोहजालेणं ॥

Translated Sutra: जिस तरह मृग के समूह को जाल समेट लेती है उसी तरह मानव को जरामरण समान जाल समेट लेती है। तो भी मोहजाल से मूढ़ बने हुए तुम यह सब नहीं देख सकते।
Tandulvaicharika तंदुल वैचारिक Ardha-Magadhi

अनित्य, अशुचित्वादि

Hindi 102 Sutra Painna-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आउसो! जं पि य इमं सरीरं इट्ठं पियं कंतं मणुन्नं मणामं मणाभिरामं थेज्जं वेसासियं सम्मयं बहुमयं अणुमयं भंडकरंडगसमाणं, रयणकरंडओ विव सुसंगोवियं, चेलपेडा विव सुसंपरिवुडं, तेल्लपेडा विव सुसंगोवियं ‘मा णं उण्हं मा णं सीयं मा णं पिवासा मा णं चोरा मा णं वाला मा णं दंसा मा णं मसगा मा णं वाइय-पित्तिय-सिंभिय-सन्निवाइया विविहा रोगायंका फुसंतु’ त्ति कट्टु। एवं पि याइं अधुवं अनिययं असासयं चओवचइयं विप्पणासधम्मं, पच्छा व पुरा व अवस्स विप्पचइयव्वं। एयस्स वि याइं आउसो! अणुपुव्वेणं अट्ठारस य पिट्ठकरंडगसंधीओ, बारस पंसुलिकरंडया, छप्पंसुलिए कडाहे, बिहत्थिया कुच्छी, चउरंगुलिआ गीवा,

Translated Sutra: हे आयुष्मान्‌ ! यह शरीर इष्ट, प्रिय, कांत, मनोज्ञ, मनोहर, मनाभिराम, दृढ, विश्वासनीय, संमत, अभीष्ट, प्रशंसनीय, आभूषण और रत्न करंडक समान अच्छी तरह से गोपनीय, कपड़े की पेटी और तेलपात्र की तरह अच्छी तरह से रक्षित, शर्दी, गर्मी, भूख, प्यास, चोर, दंश, मशक, वात, पित्त, कफ, सन्निपात, आदि बीमारी के संस्पर्श से बचाने के योग्य माना
Tandulvaicharika तंदुल वैचारिक Ardha-Magadhi

अनित्य, अशुचित्वादि

Hindi 103 Gatha Painna-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अब्भंतरंसि कुणिमं जो(जइ) परियत्तेउ बाहिरं कुज्जा । तं असुइं दट्ठूणं सया वि जननी दुगुंछेज्जा ॥

Translated Sutra: यदि शायद शरीर के भीतर का माँस परिवर्तन करके बाहर कर दिया जाए तो उस अशुचि को देखकर माँ भी धृणा करेगी –
Tandulvaicharika तंदुल वैचारिक Ardha-Magadhi

अनित्य, अशुचित्वादि

Hindi 104 Gatha Painna-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] मानुस्सयं सरीरं पूईयं मंस-सुक्क-हड्डेणं । परिसंठवियं सोभइ अच्छायण-गंध-मल्लेणं ॥

Translated Sutra: मनुष्य का शरीर माँस, शुक्र, हड्डियाँ से अपवित्र है। लेकिन यह वस्त्र, गन्ध और माला से आच्छादित होने से शोभायमान है।
Tandulvaicharika तंदुल वैचारिक Ardha-Magadhi

अनित्य, अशुचित्वादि

Hindi 105 Sutra Painna-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इमं चेव य सरीरं सीसघडीमेय मज्ज मंसऽट्ठिय मत्थुलिंग सोणिय वालुंडय चम्मकोस नासिय सिंघाणय धीमलालयं अमणुण्णगं सीसघडीभंजियं गलंतनयणकण्णोट्ठ गंड तालुयं अवालुया खिल्लचिक्कणं चिलिचिलियं दंतमलमइलं बीभच्छदरिसणिज्जं अंसलग बाहुलग अंगुली अंगुट्ठग नहसंधिसंघायसंधियमिणं बहुरसियागारं नाल खंधच्छिरा अनेगण्हारु बहुधमनि संधिनद्धं पागडउदर कवालं कक्खनिक्खुडं कक्खगकलियं दुरंतं अट्ठि धमनिसंताणसंतयं, सव्वओ समंता परिसवंतं च रोमकूवेहिं, सयं असुइं, सभावओ परमदुब्भिगंधि, कालिज्जय अंत पित्त जर हियय फोप्फस फेफस पिलिहोदर गुज्झ कुणिम नवछिड्ड थिविथिविथिविंतहिययं दुरहिपित्त

Translated Sutra: यह शरीर, खोपरी, मज्जा, माँस, हड्डियाँ, मस्तुलिंग, लहू, वालुंडक, चर्मकोश, नाक का मैल और विष्ठा का घर है। यह खोपरी, नेत्र, कान, होठ, ललाट, तलवा आदि अमनोज्ञ मल वस्तु है। होठ का घेराव अति लार से चीकना, मुँह पसीनावाला, दाँत मल से मलिन, देखने में बिभत्स है। हाथ – अंगुली, अंगूठे, नाखून के सन्धि से जुड़े हुए हैं। यह कईं तरल – स्राव
Tandulvaicharika तंदुल वैचारिक Ardha-Magadhi

अनित्य, अशुचित्वादि

Hindi 106 Gatha Painna-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सुक्कम्मि सोणियम्मि य संभूओ जननीकुच्छिमज्झम्मि । तं चेव अमेज्झरसं नव मासे घुंटिउं संतो ॥

Translated Sutra: माता की कुक्षि में शुक्र और शोणित में उत्पन्न उसी अपवित्र रस को पीकर नौ मास गर्भ में रहता है।
Tandulvaicharika तंदुल वैचारिक Ardha-Magadhi

अनित्य, अशुचित्वादि

Hindi 107 Gatha Painna-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जोणीमुहनिप्फिडिओ थणगच्छीरेण वड्ढिओ जाओ । पगईअमेज्झमइओ किह देहो धोइउं सक्को? ॥

Translated Sutra: योनिमुख से बाहर नीकला, स्तनपान से वृद्धि पाकर, स्वभाव से ही अशुचि और मल युक्त ऐसे इस शरीर को किस तरह धोना मुमकीन है ?
Tandulvaicharika तंदुल वैचारिक Ardha-Magadhi

अनित्य, अशुचित्वादि

Hindi 108 Gatha Painna-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] हा! असुइसमुप्पन्नया य, निग्गया य तेण चेव य बारेणं । सत्तया मोहपसत्तया, रमंति तत्थेव असुइदारयम्मि ॥

Translated Sutra: अरे ! अशुचि में उत्पन्न हुए और जहाँ से वो मानव बाहर नीकला है। काम – क्रीड़ा की आसक्ति से ही उसी अशुचि योनि में रमण करता है।
Tandulvaicharika तंदुल वैचारिक Ardha-Magadhi

अनित्य, अशुचित्वादि

Hindi 109 Gatha Painna-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] किह ताव घरकुडीरी कईसहस्सेहिं अपरितंतेहिं । वन्निज्जइ असुइबिलं जघणं ति सकज्जमूढेहिं? ॥

Translated Sutra: फिर अशुचि से युक्त स्त्री के कटिभाग को हजारों कवि द्वारा अश्रान्त भाव से बँयान क्यों किया जाता है ? वो इस तरह स्वार्थवश मूढ़ बनते हैं।
Tandulvaicharika तंदुल वैचारिक Ardha-Magadhi

अनित्य, अशुचित्वादि

Hindi 110 Gatha Painna-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] रागेण न जाणंती य वराया कलमलस्स निद्धमणं । ता णं परिणंदंती फुल्लं नीलुप्पलवणं व ॥

Translated Sutra: वो बेचारे राग की वजह से यह कटिभाग अपवित्र मल की थी है यह नहीं जानते। इसीलिए ही उसे विकसित नीलकमल के समूह समान मानकर उसका वर्णन करते हैं।
Tandulvaicharika तंदुल वैचारिक Ardha-Magadhi

अनित्य, अशुचित्वादि

Hindi 111 Gatha Painna-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कित्तियमित्तं वण्णे? अमिज्झमइयम्मि वच्चसंघाए । रागो हु न कायव्वो विरागमूले सरीरम्मि ॥

Translated Sutra: ज्यादा कितना कहा जाए ? प्रचुर मेद युक्त, परम अपवित्र विष्ठा की राशि और धृणा योग्य शरीर में मोह नहीं करना चाहिए।
Tandulvaicharika तंदुल वैचारिक Ardha-Magadhi

अनित्य, अशुचित्वादि

Hindi 112 Gatha Painna-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] किमिकुलसयसंकिण्णे असुइमचोक्खे असासयमसारे । सेयमलपोच्चडम्मी निव्वेयं वच्चह सरीरे ॥

Translated Sutra: सेंकड़ों कृमि समूह युक्त, अपवित्र मल से व्याप्त, अशुद्ध, अशाश्वत, साररहित, दुर्गन्धयुक्त, पसीना और मल से मलिन इस शरीर से तुम निर्वेद पाओ।
Tandulvaicharika तंदुल वैचारिक Ardha-Magadhi

अनित्य, अशुचित्वादि

Hindi 113 Gatha Painna-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] दंतमल-कण्णगूहग-सिंघाणमले य लालमलबहुले । एयारिसबीभच्छे दुगुंछणिज्जम्मि को रागो? ॥

Translated Sutra: यह शरीर दाँत, कान, नाक का मैल, मुख की प्रचुर लार युक्त है ऐसे बिभत्स व धृणित शरीर प्रति राग कैसा
Tandulvaicharika तंदुल वैचारिक Ardha-Magadhi

अनित्य, अशुचित्वादि

Hindi 114 Gatha Painna-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] को सडण-पडण-विकिरण-विद्धंसण-चयण-मरणधम्मम्मि । देहम्मि अहीलासो कुहिय-कठिणकट्ठभूयम्मि? ॥

Translated Sutra: सड़न, गलन, विनाश, विध्वंसन दुःखक, मरणधर्मी, सड़े हुए लकड़े समान शरीरकी अभिलाषा कौन करे?
Tandulvaicharika तंदुल वैचारिक Ardha-Magadhi

अनित्य, अशुचित्वादि

Hindi 115 Gatha Painna-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] काग-सुनगाण भक्खे किमिकुलभत्ते य वाहिभत्ते य । देहम्मि मच्चुभत्ते सुसाणभत्तम्मि को रागो? ॥

Translated Sutra: यह शरीर कौए, कुत्ते, कीड़ी, मकोड़े, मत्स्य और मुर्दाघर में रहते गिधड आदि का भोज्य और व्याधि से ग्रस्त है। उस शरीर से कौन राग करेगा ?
Tandulvaicharika तंदुल वैचारिक Ardha-Magadhi

अनित्य, अशुचित्वादि

Hindi 116 Gatha Painna-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] असुई अमेज्झपुन्नं कुणिम-कलेवरकुडिं परिसवंतिं । आगंतुयसंठवियं नवछिद्दमसासयं जाण ॥

Translated Sutra: अपवित्र विष्ठा पूरित, माँस और हड्डी का घर, मलस्रावि, रज – वीर्य से उत्पन्न नौ छिद्रयुक्त अशाश्वत जानना
Tandulvaicharika तंदुल वैचारिक Ardha-Magadhi

उपदेश, उपसंहार

Hindi 117 Gatha Painna-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पेच्छसि मुहं सतिलयं सविसेसं रायएण अहरेणं । सकडक्खं सवियारं तरलच्छिं जोव्वणत्थीए ॥

Translated Sutra: तिलकयुक्त, विशेष रक्त होंठवाली लड़की को देखत हो।
Tandulvaicharika तंदुल वैचारिक Ardha-Magadhi

उपदेश, उपसंहार

Hindi 118 Gatha Painna-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पिच्छसि बाहिरमट्ठं, न पिच्छसी उज्झरं कलिमलस्स । मोहेण नच्चयंतो सीसघडीकंजियं पियसि ॥

Translated Sutra: बाहरी रूप को देखते हो लेकिन भीतर के दुर्गंधयुक्त मल को नहीं देखते।
Tandulvaicharika तंदुल वैचारिक Ardha-Magadhi

उपदेश, उपसंहार

Hindi 119 Gatha Painna-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सीसघडीनिग्गालं जं निट्ठूहसी दुगुंछसी जं च । तं चेव रागरत्तो मूढो अइमुच्छिओ पियसि ॥

Translated Sutra: मोह से ग्रसित होकर नाच उठते हो और ललाट के अपवित्र रस को (चुंबन से) पीते हो।
Tandulvaicharika तंदुल वैचारिक Ardha-Magadhi

उपदेश, उपसंहार

Hindi 120 Gatha Painna-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पूइयसीसकवालं पूइयनासं च पूइदेहं च । पूइयछिड्डविछिड्डं पूइयचम्मेण य पिणद्धं ॥

Translated Sutra: ललाट से उत्पन्न हुआ रस जिसे स्वयं थूँकते हो, घृणा करते हो और उसमें ही अनुरक्त होकर अति आसक्ति से पीते हो। ललाट अपवित्र है, नाक विविध अंग, छिद्र, विछिद्र भी अपवित्र है। शरीर भी अपवित्र चमड़े से ढ़ँका हुआ;
Tandulvaicharika तंदुल वैचारिक Ardha-Magadhi

उपदेश, उपसंहार

Hindi 121 Gatha Painna-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अजनगुणसुविसुद्धं ण्हाणुव्वट्टणगुणेहिं सुकुमालं । पुप्फुम्मीसियकेसं जणेइ बालस्स तं रागं ॥

Translated Sutra: अंजन से निर्मल, स्नान – उद्वर्तन से संस्कारित, सुकुमाल पुष्प से सुशोभित केशराशि युक्त स्त्री का मुख अज्ञानी को राग उत्पन्न करता है।
Tandulvaicharika तंदुल वैचारिक Ardha-Magadhi

उपदेश, उपसंहार

Hindi 122 Gatha Painna-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जं सीसपूरओ त्ति य पुप्फाइं भणंति मंदविन्नाणा । पुप्फाइं चिय ताइं सीसस्स य पूरयं सुणह ॥

Translated Sutra: अज्ञान बुद्धिवाला जो फूलों को मस्तक का आभूषण कहता है वो केवल फूल ही है। मस्तक का आभूषण नहीं। सूनो !
Tandulvaicharika तंदुल वैचारिक Ardha-Magadhi

उपदेश, उपसंहार

Hindi 123 Gatha Painna-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] मेदो वसा य रसिया खेले सिंघाणए य छुभ एयं । अह सीसपूरओ भे नियगसरीरम्मि साहीणो ॥

Translated Sutra: चरबी, वसा, रसि, कफ, श्लेष्म, मेद यह सब सिर के भूषण हैं यह अपने शरीर के स्वाधीन है।
Tandulvaicharika तंदुल वैचारिक Ardha-Magadhi

उपदेश, उपसंहार

Hindi 124 Gatha Painna-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सा किर दुप्पडिपूरा वच्चकुडी दुप्पया नवच्छिहा । उक्कडगंधविलित्ता बालजणोऽइमुच्छियं गिद्धो ॥

Translated Sutra: यह शरीर भूषित होने के लिए उचित नहीं है। विष्ठा का घर है। दो पाँव और नौ छिद्रों से युक्त है। तीव्र बदबू से भरा है। उसमें अज्ञानी मानव अति मूर्छित होता है।
Tandulvaicharika तंदुल वैचारिक Ardha-Magadhi

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Hindi 125 Gatha Painna-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जं पेम्मरागरत्तो अवयासेऊण गूह-मुत्तोलिं । दंतमलचिक्कणंगं सीसघडीकंजियं पियसि ॥

Translated Sutra: कामराग से रंगे हुए तुम गुप्त अंग को प्रकट करके दाँत के चीकने मल और खोपरी में से नीकलनेवाली कांजी अर्थात्‌ विकृत रस को पीते हो।
Tandulvaicharika तंदुल वैचारिक Ardha-Magadhi

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Hindi 126 Gatha Painna-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] दंतमुसलेसु गहणं गयाण, मंसे य ससय-मीयाणं । वालेसु य चमरीणं, चम्म-नहे दीवियाणं च ॥

Translated Sutra: हाथी के दन्त मूसल – ससा और मृग का माँस, चमरी गौ के बाल और चित्ते का चमड़ा और नाखून के लिए उनका शरीर ग्रहण किया जाता है।
Tandulvaicharika तंदुल वैचारिक Ardha-Magadhi

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Hindi 127 Gatha Painna-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पूइयकाए य इहं चवणमुहे निच्चकालवीसत्थो । आइक्खसु सब्भावं किम्ह सि गिद्धो तुमं मूढ!? ॥

Translated Sutra: (मनुष्य शरीर किस काम का है ?) हे मूर्ख ! वह शरीर दुर्गंध युक्त और मरण के स्वभाववाला है। उसमें नित्य भरोंसा करके तुम क्यों आसक्त होते हो ? उनका स्वभाव तो बताओ।
Tandulvaicharika तंदुल वैचारिक Ardha-Magadhi

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Hindi 128 Gatha Painna-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] दंता वि अकज्जकरा, बाला वि विवड्ढमाणबीभच्छा । चम्मं पि य बीभच्छं, भण किम्ह सि तं गओ रागं? ॥

Translated Sutra: दाँत किसी काम के नहीं; लम्बे बाल नफरत के लायक हैं। चमड़ी भी बिभत्स है अब बताओ कि तुम किसमें राग रखते हो ?
Tandulvaicharika तंदुल वैचारिक Ardha-Magadhi

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Hindi 129 Gatha Painna-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सिंभे पित्ते मुत्ते गूहम्मि वसाए दंतकुंडीसुं । भणसु किमत्थं तुज्झं असुइम्मि वि वड्ढिओ रागो? ॥

Translated Sutra: कफ, पित्त, मूत्र, विष्ठा, वसा, दाँढ़ आदि किसका राग है ?
Tandulvaicharika तंदुल वैचारिक Ardha-Magadhi

उपदेश, उपसंहार

Hindi 130 Gatha Painna-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जंघट्ठियासु ऊरू पइट्ठिया, तट्ठिया कडीपिट्ठी । कडिपट्ठिवेढियाइं अट्ठारस पिट्ठिअट्ठीणि ॥

Translated Sutra: जंघा की हड्डी पर सांथल है, उस पर कटिभाग है, कटि के ऊपर पृष्ठ हिस्सा है। पृष्ठ हिस्सेमें १८ हड्डियाँ है
Tandulvaicharika तंदुल वैचारिक Ardha-Magadhi

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Hindi 131 Gatha Painna-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] दो अच्छिअट्ठियाइं, सोलस गीवट्ठिया मुणेयव्वा । पिट्ठीपइट्ठियाओ बारस किल पंसुली हुंति ॥

Translated Sutra: दो आँख की हड्डी और सोलह गरदन की हड्डी है। पीठ में बारह पसली है।
Tandulvaicharika तंदुल वैचारिक Ardha-Magadhi

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Hindi 132 Gatha Painna-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अट्ठियकढिणे सिर-ण्हारुबंधणे मंस-चम्मलेवम्मि । विट्ठाकोट्ठागारे को वच्चघरोवमे रागो? ॥

Translated Sutra: शिरा और स्नायु से बँधे कठिन हड्डियों का यह ढाँचा, माँस और चमड़े में लिपटा हुआ है।
Tandulvaicharika तंदुल वैचारिक Ardha-Magadhi

उपदेश, उपसंहार

Hindi 133 Gatha Painna-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जह नाम वच्चकूवो निच्चं भिणिभिणिभिणतंकायकली । किमिएहिं सुलुसुलायइ सोएहि य पूइयं वहइ ॥

Translated Sutra: यह शरीर विष्ठा का घर है, ऐसे मलगृह में कौन राग करेगा ? जैसे विष्ठा ने कुए की नजदीक कौए फिरते हैं। उसमें कृमि द्वारा सुल – सुल शब्द हुआ करते हैं और स्रोत से बदबू नीकलती है। (मृत शरीर के भी यही हालात है।)
Tandulvaicharika तंदुल वैचारिक Ardha-Magadhi

उपदेश, उपसंहार

Hindi 134 Gatha Painna-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] उद्धियनयणं खगमुहविकट्टियं विप्पइन्नबाहुलयं । अंतविकट्टियमालं सीसघडीपागडियघोरं ॥

Translated Sutra: मृत शरीर के नेत्र को पंछी चोंच से खुदते हैं। लत्ता की तरह हाथ फैल जाते हैं। आंत बाहर नीकाल लेते हैं और खोपरी भयानक दिखती है।
Tandulvaicharika तंदुल वैचारिक Ardha-Magadhi

उपदेश, उपसंहार

Hindi 135 Gatha Painna-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] भिणिभिणिभिणंतसद्दं विसप्पियं सुलुसुलेंतमंसोडं । मिसिमिसिमिसंतकिमियं थिविथिविथिवयंतबीभच्छं ॥

Translated Sutra: मृत शरीर पर मक्खी बण – बण करती है। सड़े हुए माँस में से सुल – सुल आवाझ आती है। उसमें उत्पन्न हुए कृमि समूह मिस – मिस आवाज करते हैं। आंत में से थिव – थिव होता है। इस तरह यह काफी बिभत्स लगता है
Tandulvaicharika तंदुल वैचारिक Ardha-Magadhi

उपदेश, उपसंहार

Hindi 136 Gatha Painna-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पागडियपासुलीयं विगरालं सुक्कसंधिसंघायं । पडियं निव्वेवणयं सरीरमेयारिसं जाण ॥

Translated Sutra: प्रकट पसलीवाला भयानक, सूखे जोरों से युक्त चेतनारहित शरीर की अवस्था जान लो।
Tandulvaicharika तंदुल वैचारिक Ardha-Magadhi

उपदेश, उपसंहार

Hindi 137 Gatha Painna-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] वच्चाओ असुइतरे नवहिं सोएहिं परिगलंतेहिं । आमगमल्लगरूवे निव्वेयं वच्चह सरीरे ॥

Translated Sutra: नौ द्वार से अशुचि को नीकालनेवाले झरते हुए कच्चे घड़े की तरह यह शरीर प्रति निर्वेद भाव धारण कर लो।
Tandulvaicharika तंदुल वैचारिक Ardha-Magadhi

उपदेश, उपसंहार

Hindi 138 Gatha Painna-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] दो हत्था दो पाया सीसं उच्चंपियं कबंधम्मि । कलमलकोट्ठागारं परिवहसि दुयादुयं वच्चं ॥

Translated Sutra: दो हाथ, दो पाँव और मस्तक, धड़ के साथ जुड़े हुए हैं। वो मलिन मल का कोष्ठागार हैं। इस विष्ठा को तुम क्यों उठाकर फिरते हो ?
Tandulvaicharika तंदुल वैचारिक Ardha-Magadhi

उपदेश, उपसंहार

Hindi 139 Gatha Painna-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तं च किर रूववंतं वच्चंतं रायमग्गमोइन्नं । परगंधेहिं सुगंधय मन्नंतो अप्पणो गंधं ॥

Translated Sutra: इस रूपवाले शरीर को राजपथ पर घूमते देखकर खुश हो रहे हो और परगन्ध से सुगंधित को तुम्हारी सुगन्ध मानते हैं।
Tandulvaicharika तंदुल वैचारिक Ardha-Magadhi

उपदेश, उपसंहार

Hindi 140 Gatha Painna-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पाडल-चंपय-मल्लिय-अगुरुय-चंदन-तुरुक्कवामीसं । गंधं समोयरंतं मन्नंतो अप्पणो गंधं ॥

Translated Sutra: गुलाब, चंपा, चमेली, अगर, चन्दन और तरूष्क की बदबू को अपनी खुशबू मानकर खुश होते हो।
Tandulvaicharika तंदुल वैचारिक Ardha-Magadhi

उपदेश, उपसंहार

Hindi 141 Gatha Painna-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सुहवाससुरहिगंधं च ते मुहं, अगुरुगंधियं अंगं । केसा ण्हाणसुगंधा, कयरो ते अप्पणो गंधो? ॥

Translated Sutra: तुम्हारा मुँह मुखवास से, अंग – प्रत्यंग अगर से, केश स्नान आदि के समय में लगे हुए खुशबूदार द्रव्य से खुशबूदार हैं। तो इसमें तुम्हारी अपनी खुशबू क्या है ?
Tandulvaicharika तंदुल वैचारिक Ardha-Magadhi

उपदेश, उपसंहार

Hindi 142 Gatha Painna-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अच्छिमलो कन्नमलो खेलो सिंघाणओ य पूओ य । असुई मुत्त-पुरीसो, एसो ते अप्पणो गंधो ॥

Translated Sutra: हे पुरुष ! आँख, कान, नाक का मैल और श्लेष्म, अशुचि और मूत्र यही तो तुम्हारी अपनी गन्ध है।
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