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Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1540 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] चंदणगेरुयहंसगब्भ पुलए सोगंधिए य बोद्धव्वे । चंदप्पहवेरुलिए जलकंते सूरकंते य ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १५३७
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1541 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एए खरपुढवीए भेया छत्तीसमाहिया । एगविहमणाणत्ता सुहुमा तत्थ वियाहिया ॥

Translated Sutra: ये कठोर पृथ्वीकाय के छत्तीस भेद हैं। सूक्ष्म पृथ्वीकाय के जीव एक ही प्रकार के हैं, अतः वे अनानात्व हैं
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1542 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सुहुमा सव्वलोगम्मि लोगदेसे य बायरा । इत्तो कालविभागं तु तेसिं वुच्छं चउव्विहं ॥

Translated Sutra: सूक्ष्म पृथ्वीकाय के जीव सम्पूर्ण लोक में और बादर पृथ्वीकाय के जीवलोक के एक देश में व्याप्त हैं। अब चार प्रकार से पृथ्वीकायिक जीवों के काल – विभाग का कथन करूँगा।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1543 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] संतइं पप्पणाईया अपज्जवसिया वि य । ठिइं पडुच्च साईया सपज्जवसिया वि य ॥

Translated Sutra: पृथ्वीकायिक जीव प्रवाह की अपेक्षा से अनादि अनन्त हैं और स्थिति की अपेक्षा से सादि सान्त हैं। उनकी २२०० वर्ष की उत्कृष्ट और अन्तर्मुहूर्त्त की जघन्य स्थिति है। उनकी असंख्यात कालकी उत्कृष्ट और अन्तर्मुहूर्त्त की जघन्य काय – स्थिति है। पृथ्वी के शरीर को न छोड़कर निरन्तर पृथ्वीकाय में ही पैदा होते रहना, काय
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1544 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] बावीससहस्साइं वासाणुक्कोसिया भवे । आउठिई पुढवीणं अंतोमुहुत्तं जहन्निया ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १५४३
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1545 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] असंखकालमुक्कोसं अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । कायठिई पुढवीणं तं कायं तु अमुंचओ ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १५४३
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1546 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अनंतकालमुक्कोसं अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । विजढंमि सए काए पुढवीजीवाण अंतरं ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १५४३
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1547 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एएसिं वण्णओ चेव गंधओ रसफासओ । संठाणादेसओ वावि विहाणाइं सहस्ससो ॥

Translated Sutra: वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श और संस्थान के आदेश से तो पृथ्वी के हजारों भेद होते हैं।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1548 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] दुविहा आउजीवा उ सुहुमा बायरा तहा । पज्जत्तमपज्जत्ता एवमेए दुहा पुणो ॥

Translated Sutra: अप्‌ काय जीव के दो भेद हैं – सूक्ष्म और बादर। पुनः दोनों के पर्याप्त और अपर्याप्त दो – दो भेद हैं। बादर पर्याप्त अप्काय जीवों के पाँच भेद हैं – शुद्धोदक, ओस, हरतनु, महिका और हिम। सूक्ष्म अप्काय के जीव एक प्रकार के हैं, उनके भेद नहीं हैं। सूक्ष्म अप्काय के जीव सम्पूर्ण लोक में और बादर अप्काय के जीवलोक के एक भाग
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1549 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] बायरा जे उ पज्जत्ता पंचहा ते पकित्तिया । सुद्धोदए य उस्से हरतणू महिया हिमे ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १५४८
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1550 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एगविहमणाणत्ता सुहुमा तत्थ वियाहिया । सुहुमा सव्वलोगम्मि लोगदेसे य बायरा ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १५४८
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1551 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] संतइं पप्पणाईया अपज्जवसिया वि य । ठिइं पडुच्च साईया सपज्जवसिया वि य ॥

Translated Sutra: अप्कायिक जीव प्रवाह की अपेक्षा से अनादि – अनन्त हैं और स्थिति की अपेक्षा से सादि – सान्त हैं। उनकी ७००० वर्ष की उत्कृष्ट और अन्तर्मुहूर्त्त की जघन्य आयुस्थिति है। उनकी असंख्यात काल की उत्कृष्ट और अन्तर्मुहूर्त्त की जघन्य कायस्थिति है। अप्काय को छोड़कर निरन्तर अप्काय में ही पैदा होना, काय स्थिति है। अप्काय
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1552 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सत्तेव सहस्साइं वासाणुक्कोसिया भवे । आउट्ठिई आऊणं अंतोमुहुत्तं जहन्निया ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १५५१
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1553 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] असंखकालमुक्कोसं अंतोमुहुत्तं जहन्निया । कायट्ठिई आऊणं तं कायं तु अमुंचओ ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १५५१
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1554 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अनंतकालमुक्कोसं अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । विजढंमि सए काए आऊजीवाण अंतरं ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १५५१
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1555 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एएसिं वण्णओ चेव गंधओ रसफासओ । संठाणादेसओ वावि विहणाइं सहस्ससो ॥

Translated Sutra: वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श और संस्थान की अपेक्षा से अप्काय के हजारों भेद हैं।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1556 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] दुविहा वणस्सईजीवा सुहुमा बायरा तहा । पज्जत्तमपज्जत्ता एवमेए दुहा पुणो ॥

Translated Sutra: वनस्पति काय के जीवों के दो भेद हैं – सूक्ष्म और बादर। पुनः दोनों के पर्याप्त और अपर्याप्त दो – दो भेद हैं। बादर पर्याप्त वनस्पतिकाय के जीवों के दो भेद हैं – साधारण – शरीर और प्रत्येक – शरीर। सूत्र – १५५६, १५५७
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1557 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] बायरा जे उ पज्जत्ता दुविहा ते वियाहिया । साहारणसरीरा य पत्तेगा य तहेव य ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १५५६
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1558 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पत्तेगसरीरा उ णेगहा ते पकित्तिया । रुक्खा गुच्छा य गुम्मा य लया वल्ली तणा तहा ॥

Translated Sutra: प्रत्येक – शरीर वनस्पति काय के जीवों के अनेक प्रकार हैं। जैसे – वृक्ष, गुच्छ, गुल्म, लता, वल्ली और तृण। लता – वलय, पर्वज, कुहण, जलरुह, औषधि, धान्य, तृण और हरितकाय – ये समी प्रत्येक शरीरी हैं। सूत्र – १५५८, १५५९
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1559 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] लयावलय पव्वगा कुहुणा जलरुहा ओसहीतिणा । हरियकाया य बोद्धव्वा पत्तेया इति आहिया ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १५५८
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1560 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] साहारणसरीरा उ णेगहा ते पकित्तिया । आलुए मूलए चेव सिंगबेरे तहेव य ॥

Translated Sutra: साधारणशरीरी अनेक प्रकार के हैं – आलुक, मूल, शृंगवेर, हिरिलीकन्द, सिरिलीकन्द, सिस्सिरिलीकन्द, जावईकन्द, केद – कंदलीकन्द, प्याज, लहसुन, कन्दली, कुस्तुम्बक, लोही, स्निहु, कुहक, कृष्ण, वज्रकन्द और सूरण – कन्द, अश्वकर्णी, सिंहकर्णी, मुसुंढी और हरिद्रा इत्यादि। सूत्र – १५६०–१५६३
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1561 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] हिरिली सिरिली सिस्सिरिली जावई केदकंदली । पलंदूलसणकंदे य कंदली य कुडुंबए ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १५६०
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1562 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] लोहि णीहू य थिहू य कुहगा त तहेव य । कण्हे य वज्जकंदे य कंदे सूरणए तहा ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १५६०
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1563 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अस्सकण्णी य बोद्धव्वा सीहकण्णी तहेव य । मुसुंढी य हलिद्दा य णेगसा एवमायओ ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १५६०
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1564 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एगविहमणाणत्ता सुहुमा तत्थ वियाहिया । सुहुमा सव्वलोगम्मि लोगदेसे य बायरा ॥

Translated Sutra: सूक्ष्म वनस्पति काय के जीव एक ही प्रकार के हैं, उनके भेद नहीं हैं। सूक्ष्म वनस्पतिकाय के जीव सम्पूर्ण लोक में और बादर वनस्पति काय के जीव लोक के एक भाग में व्याप्त हैं। वे प्रवाह की अपेक्षा से अनादि अनन्त हैं और स्थिति की अपेक्षा से सादिसान्त हैं। उनकी दस हजार वर्ष की उत्कृष्ट और अन्तर्मुहूर्त्त की जघन्य आयु
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1565 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] संतइं पप्पणाईया अपज्जवसिया वि य । ठिइं पडुच्च साईया सपज्जवसिया वि य ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १५६४
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1566 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] दस चेव सहस्साइं वासाणुक्कोसिया भवे । वणप्फईण आउं तु अंतोमुहुत्तं जहन्नगं ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १५६४
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1567 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अनंतकालमुक्कोसं अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । कायठिई पणगाणं तं कायं तु अमुंचओ ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १५६४
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1568 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] असंखकालमुक्कोसं अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । विजढंमि सए काए पणगजीवाण अंतरं ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १५६४
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1569 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एएसिं वण्णओ चेव गंधओ रसफासओ । संठाणादेसओ वावि विहाणाइं सहस्ससो ॥

Translated Sutra: वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श और संस्थान की अपेक्षा से वनस्पतिकाय के हजारों भेद हैं।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1570 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] इच्चेए थावरा तिविहा समासेण वियाहिया । इत्तो उ तसे तिविहे वुच्छामि अणुपुव्वसो ॥

Translated Sutra: इस प्रकार संक्षेप से तीन प्रकार के स्थावर जीवों का निरूपण किया गया। अब क्रमशः तीन प्रकार के त्रस जीवों का निरूपण करूँगा।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1571 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तेऊ वाऊ य बोद्धव्वा उराला य तसा तहा । इच्चेए तसा तिविहा तेसिं भेए सुणेह मे ॥

Translated Sutra: तेजस्‌, वायु और उदार त्रस – ये तीन त्रसकाय के भेद हैं, उनके भेदों को मुझसे सुनो।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1572 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] दुविहा तेउजीवा उ सुहुमा बायरा तहा । पज्जत्तमपज्जत्ता एवमेए दुहा पुणो ॥

Translated Sutra: तेजस्‌ काय जीवों के दो भेद हैं – सूक्ष्म और बादर। पुनः दोनों के पर्याप्त और अपर्याप्त दो – दो भेद हैं। बादर पर्याप्त तेजस्‌ काय जीवों के अनेक प्रकार हैं – अंगार, मुर्मुर, अग्नि, अर्चि – ज्वाला, उल्का, विद्युत इत्यादि। सूक्ष्म तेजस्काय के जीव एक प्रकार के हैं, उनके भेद नहीं हैं। सूत्र – १५७२–१५७४
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1573 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] बायरा जे उ पज्जत्ता णेगहा ते वियाहिया । इंगाले मुम्मुरे अगणी अच्चिं जाला तहेव य ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १५७२
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1574 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] उक्का विज्जू य बोद्धव्वा णेगहा एवमायओ । एगविहमणाणत्ता सुहुमा ते वियाहिया ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १५७२
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1575 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सुहुमा सव्वलोगम्मि लोगदेसे य बायरा । इत्तो कालविभागं तु तेसिं वुच्छं चउव्विहं ॥

Translated Sutra: सूक्ष्म तेजस्काय के जीव सम्पूर्ण लोक में और बादर तेजस्काय के जीव लोक के एक भाग में व्याप्त हैं। इस निरूपण के बाद चार प्रकार से तेजस्काय जीवों के काल – विभाग का कथन करूँगा। वे प्रवाही की अपेक्षा से अनादि अनन्त हैं और स्थिति की अपेक्षा से सादिसान्त हैं। तेजस्काय की आयु – स्थिति उत्कृष्ट तीन अहोरात्र की है और
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1576 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] संतइं पप्पणाईया अपज्जवसिया वि य । ठिइं पडुच्च साईया सपज्जवसिया वि य ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १५७५
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1577 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तिन्नेव अहोरत्ता उक्कोसेण वियाहिया । आउट्ठिई तेऊणं अंतोमुहुत्तं जहन्निया ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १५७५
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1578 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] असंखकालमुक्कोसं अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । कायट्ठिई तेऊणं तं कायं तु अमुंचओ ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १५७५
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1579 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अनंतकालमुक्कोसं अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । विजढंमि सए काए तेउजीवाण अंतरं ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १५७५
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1580 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एएसिं वण्णओ चेव गंधओ रसफासओ । संठाणादेसओ वावि विहाणाइं सहस्ससो ॥

Translated Sutra: वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श और संस्थान की अपेक्षा से तेजस्‌ के हजारों भेद हैं।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1581 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] दुविहा वाउजीवा उ सुहुमा बायरा तहा । पज्जत्तमपज्जत्ता एवमेए दुहा पुणो ॥

Translated Sutra: वायुकाय जीवों के दो भेद हैं – सूक्ष्म और बादर। पुनः उन दोनों के पर्याप्त और अपर्याप्त दो – दो भेद हैं। बादर पर्याप्त वायुकाय जीवों के पाँच भेद हैं – उत्कलिका, मण्डलिका, धनवात, गुंजावात और शुद्धवात। संवर्तक – वात आदि और भी अनेक भेद हैं। सूक्ष्म वायुकाय के जीव एक प्रकार के हैं, उनके भेद नहीं हैं। सूत्र – १५८१
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1582 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] बायरा जे उ पज्जत्ता पंचहा ते पकित्तिया । उक्कलियामंडलिया घणगुंजा सुद्धवाया य ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १५८१
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1583 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] संवट्टगवाते य णेगविहा एवमायओ । एगविहमणाणत्ता सुहुमा ते वियाहिया ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १५८१
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1584 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सुहुमा सव्वलोगम्मि लोगदेसे य बायरा । इत्तो कालविभागं तु तेसिं वुच्छं चउव्विहं ॥

Translated Sutra: सूक्ष्म वायुकाय के जीव सम्पूर्ण लोक में और बादर वायुकाय के जीव लोक के एक भाग में व्याप्त हैं। इस निरूपण के बाद चार प्रकार से वायुकायिक जीवों के काल – विभाग का कथन करूँगा। वे प्रवाह की अपेक्षा से अनादि अनन्त हैं और स्थिति की अपेक्षा से आदि सान्त हैं। उनकी आयु – स्थिति उत्कृष्ट तीन हजार वर्ष की है और जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1585 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] संतइं पप्पणाईया अपज्जवसिया वि य । ठिइं पडुच्च साईया सपज्जवसिया वि य ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १५८४
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1586 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तिन्नेव सहस्साइं वासाणुक्कोसिया भवे । आउट्ठिई वाऊणं अंतोमुहुत्तं जहन्निया ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १५८४
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1587 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] असंखकालमुक्कोसं अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । कायट्ठिई वाऊणं तं कायं तु अमुंचओ ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १५८४
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1588 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अनंतकालमुक्कोसं अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । विजढंमि सए काए वाउजीवाण अंतरं ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १५८४
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1589 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एएसिं वण्णओ चेव गंधओ रसफासओ । संठाणादेसओ वावि विहाणाइं सहस्ससो ॥

Translated Sutra: वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श और संस्थान की अपेक्षा से वायुकाय के हजारों भेद होते हैं।
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