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Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-६ प्रासुक आहारादि Hindi 405 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] समणोवासगस्स णं भंते! तहारूवं समणं वा माहणं वा फासु-एसणिज्जेणं असन-पान-खाइम-साइमेणं पडिला-भेमाणस्स किं कज्जइ? गोयमा! एगंतसो से निज्जरा कज्जइ, नत्थि य से पावे कम्मे कज्जइ। समणोवासगस्स णं भंते! तहारूवं समणं वा माहणं वा अफासुएणं अणेसणिज्जेणं असन-पान-खाइम-साइमेणं पडिलाभेमाणस्स किं कज्जइ? गोयमा! बहुतरिया से निज्जरा कज्जइ, अप्पतराए से पावे कम्मे कज्जइ। समणोवासगस्स णं भंते! तहारूवं अस्संजय-विरय-पडिहय-पच्चक्खायपावकम्मं फासुएण वा, अफासुएण वा, एसणिज्जेण वा, अनेसणिज्जेण वा असनपान-खाइम-साइमेणं पडिलाभे-माणस्स किं कज्जइ? गोयमा! एगंतसो से पावे कम्मे कज्जइ, नत्थि से काइ निज्जरा

Translated Sutra: भगवन्‌ ! तथारूप श्रमण अथवा माहन को प्रासुक एवं एषणीय अशन, पान, खादिम और स्वादिम आहार द्वारा प्रतिलाभित करने वाले श्रमणोपासक को किस फल की प्राप्ति होती है ? गौतम ! वह एकान्त रूप से निर्जरा करता है; उसके पापकर्म नहीं होता। भगवन्‌ ! तथारूप श्रमण या माहन को अप्रासुक एवं अनेषणीय आहार द्वारा प्रतिलाभित करते हुए श्रमणोपासक
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-६ प्रासुक आहारादि Hindi 406 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] निग्गंथं च णं गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए, अनुप्पविट्ठं केइ दोहिं पिंडेहिं उवनिमंतेज्जा–एगं आउसो! अप्पणा भुंजाहि, एगं थेराणं दलयाहि। से य तं पडिग्गाहेज्जा, थेरा य से अनुगवेसियव्वा सिया। जत्थेव अनुगवेसमाणे थेरे पासिज्जा तत्थेव अनुप्पदायव्वे सिया, नो चेव णं अनुगवेसमाणे थेरे पासिज्जा तं नो अप्पणा भुंजेज्जा, नो अन्नेसिं दावए, एगंते अनावाए अचित्ते बहुफासुए थंडिल्ले पडिलेहेत्ता पमज्जित्ता परिट्ठावेयव्वे सिया। निग्गंथं च णं गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए अनुप्पविट्ठं केइ तिहिं पिंडेहिं उवनिमंतेज्जा–एगं आउसो! अप्पणा भुंजाहि, दो थेराणं दलयाहि। से य ते पडिग्गाहेज्जा,

Translated Sutra: गृहस्थ के घर में आहार ग्रहण करने की बुद्धि से प्रविष्ट निर्ग्रन्थ को कोई गृहस्थ दो पिण्ड ग्रहण करने के लिए उपनिमंत्रण करे – ‘आयुष्मन्‌ श्रमण ! इन दो पिण्डों में से एक पिण्ड आप स्वयं खाना और दूसरा पिण्ड स्थविर मुनियों को देना। वह निर्ग्रन्थ श्रमण उन दोनों पिण्डों को ग्रहण कर ले और स्थविरों की गवेषणा करे। गवेषणा
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-६ प्रासुक आहारादि Hindi 407 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] निग्गंथेण य गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए पविट्ठेणं अन्नयरेसु अकिच्चट्ठाणे पडिसेविए, तस्स णं एवं भवति– इहेव ताव अहं एयस्स ठाणस्स आलोएमि, पडिक्कमामि, निंदामि, गरिहामि, विउट्टामि, विसोहेमि, अकरणयाए अब्भुट्ठेमि, अहारियं पायच्छित्तं तवोकम्मं पडिवज्जामि, तओ पच्छा थेराणं अंतियं आलोएस्सामि जाव तवोकम्मं पडिवज्जिस्सामि। १. से य संपट्ठिए असंपत्ते, थेरा य पुव्वामेव अमुहा सिया। से णं भंते! किं आराहए? विराहए? गोयमा! आराहए, नो विराहए। २. से य संपट्ठिए असंपत्ते, अप्पणा य पुव्वामेव अमुहे सिया। से णं भंते! किं आराहए? विराहए? गोयमा! आराहए, नो विराहए। ३. से य संपट्ठिए असंपत्ते, थेरा य

Translated Sutra: गृहस्थ के घर आहार ग्रहण करने की बुद्धि से प्रविष्ट निर्ग्रन्थ द्वारा किसी अकृत्य स्थान का प्रतिसेवन हो गया हो और तत्क्षण उसके मन में ऐसा विचार हो कि प्रथम मैं यहीं इस अकृत्यस्थान की आलोचना, प्रतिक्रमण, निन्दा और गर्हा करूँ; (उसके अनुबन्ध का) छेदन करूँ, इस (पाप – दोष से) विशुद्ध बनूँ, पुनः ऐसा अकृत्य न करने के लिए
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-६ प्रासुक आहारादि Hindi 408 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पदीवस्स णं भंते! ज्झियायमाणस्स किं पदीवे ज्झियाइ? लट्ठी ज्झियाइ? वत्ती ज्झियाइ? तेल्ले ज्झियाइ? दीवचंपए ज्झियाइ? जोती ज्झियाइ? गोयमा! नो पदीवे ज्झियाइ, नो लट्ठी ज्झियाइ, नो वत्ती ज्झियाइ, नो तेल्ले ज्झियाइ, नो दीवचंपए ज्झियाइ, जोती ज्झियाइ। अगारस्स णं भंते! ज्झियायमाणस्स किं अगारे ज्झियाइ? कुड्डा ज्झियाइ? कडणा ज्झियाइ? धारणा ज्झियाइ? बलहरणे ज्झियाइ? वंसा ज्झियाइ? मल्ला ज्झियाइ? वागा ज्झियाइ? छित्तरा ज्झियाइ? छाणे ज्झियाइ? जोती ज्झियाइ? गोयमा! नो अगारे ज्झियाइ, नो कुड्डा ज्झियाइ जाव नो छाणे ज्झियाइ, जोती ज्झियाइ।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जलते हुए दीपक में क्या जलता है ? दीपक जलता है ? दीपयष्टि जलती है ? बत्ती जलती है ? तेल जलता है ? दीपचम्पक जलता है, या ज्योति जलती है ? गौतम ! दीपक नहीं जलता, यावत्‌ दीपचम्पक नहीं जलता, किन्तु ज्योति जलती है। भगवन्‌ ! जलते हुए घर में क्या घर जलता है ? भींतें जलती हैं ? टाटी जलती है? धारण जलते हैं ? बलहरण जलता है ? बाँस
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-६ प्रासुक आहारादि Hindi 409 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! ओरालियसरीराओ कतिकिरिए? गोयमा! सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए, सिय पंचकिरिए, सिय अकिरिए। नेरइए णं भंते! ओरालियसरीराओ कतिकिरिए? गोयमा! सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए, सिय पंचकिरिए। असुरकुमारे णं भंते! ओरालियसरीराओ कतिकिरिए? एवं चेव। एवं जाव वेमाणिए, नवरं–मनुस्से जहा जीवे। जीवे णं भंते! ओरालियसरीरेहितो कतिकिरिए? गोयमा! सिय तिकिरिए जाव सिय अकिरिए। नेरइए णं भंते! ओरालियसरीरेहिंतो कतिकिरिए? एवं एसो वि जहा पढमो दंडओ तहा भाणियव्वो जाव वेमाणिए, नवरं–मनुस्से जहा जीवे। जीवा णं भंते! ओरालियसरीराओ कतिकिरिया? गोयमा! सिय तिकिरिया जाव सिय अकिरिया। नेरइया णं भंते! ओरालियसरीराओ

Translated Sutra: भगवन्‌ ! एक जीव एक औदारिक शरीर की अपेक्षा कितनी क्रिया वाला होता है ? गौतम ! वह कदाचित्‌ तीन क्रिया वाला, कदाचित्‌ चार क्रिया वाला, कदाचित्‌ पाँच क्रिया वाला होता है और कदाचित्‌ अक्रिय भी होता है भगवन्‌ ! एक नैरयिक जीव, दूसरे के एक औदारिकशरीर की अपेक्षा कितनी क्रिया वाला होता है ? गौतम वह कदाचित्‌ तीन, कदाचित्‌
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-७ अदत्तादान Hindi 410 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे–वण्णओ, गुणसिलए चेइए–वण्णओ जाव पुढवि-सिलावट्टओ। तस्स णं गुणसिलस्स चेइयस्स अदूरसामंते बहवे अन्नउत्थिया परिवसंति। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे आदिगरे जाव समोसढे जाव परिसा पडिगया। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स बहवे अंतेवासी थेरा भगवंतो जातिसंपन्ना कुलसंपन्ना बलसंपन्ना विनयसंपन्ना नाणसंपन्ना दंसणसंपन्ना चारित्तसंपन्ना लज्जासंपन्ना लाघव-संपन्ना ओयंसी तेयंसी वच्चंसी जसंसी जियकोहा जियमाणा जियमाया जियलोभा जियनिद्दा जिइंदिया जियपरीसहा जीवियासमरणभयविप्पमुक्का समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते

Translated Sutra: उस काल और उस समय में राजगृह नगर था। वहाँ गुणशीलक चैत्य था। यावत्‌ पृथ्वी शिलापट्टक था। उस गुणशीलक चैत्य के आसपास बहुत – से अन्यतीर्थिक रहते थे। उस काल और उस समय धर्मतीर्थ की आदि करने वाले श्रमण भगवान महावीर यावत्‌ समवसृत हुए यावत्‌ धर्मोपदेश सूनकर परीषद्‌ वापिस चली गई। उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-७ अदत्तादान Hindi 411 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहे णं भंते! गइप्पवाए पन्नत्ते? गोयमा! पंचविहे गइप्पवाए पन्नत्ते, तं जहा–पयोगगई, ततगई, बंधनछेयणगई, उववायगई, विहायगई। एत्तो आरब्भ पयोगपयं निरवसेसं भाणियव्वं जाव सेत्तं विहायगई। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! गतिप्रपात कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! गतिप्रपात पाँच प्रकार का है। यथा – प्रयोग गति, ततगति, बन्धन – छेदनगति, उपपातगति और विहायोगति। यहाँ से प्रारम्भ करके प्रज्ञापनासूत्र का सोलहवाँ समग्र प्रयोगपद यावत्‌ ‘यह वियोगगति का वर्णन हुआ’; यहाँ तक कथन करना। हे भगवन्‌ ! यह इसी प्रकार है।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-८ प्रत्यनीक Hindi 412 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी– गुरू णं भंते! पडुच्च कति पडिनीया पन्नत्ता? गोयमा! तओ पडिनीया पन्नत्ता, तं जहा–आयरियपडिनीए, उवज्झायपडिनीए, थेरपडिनीए। गति णं भंते! पडुच्च कति पडिनीया पन्नत्ता? गोयमा! तओ पडिनीया पन्नत्ता, तं० इहलोगपडिनीए, परलोगपडिनीए, दुहओलोग पडिनीए। समूहण्णं भंते! पडुच्च कति पडिनीया पन्नत्ता? गोयमा! तओ पडिनीया पन्नत्ता, तं जहा–कुलपडिनीए, गणपडिनीए, संघपडिनीए। अणुकंपं पडुच्च कति पडिनीया पन्नत्ता? गोयमा! तओ पडिनीया पन्नत्ता, तं जहा–तवस्सिपडिनीए, गिलाणपडिनीए, सेहपडिनीए। सुयण्णं भंते! पडुच्च कति पडिनीया पन्नत्ता? गोयमा! तओ पडिनीया पन्नत्ता, तं जहा–सुत्तपडिनीए,

Translated Sutra: राजगृह नगर में (गौतम स्वामी ने) यावत्‌ इस प्रकार पूछा – भगवन्‌ ! गुरुदेव की अपेक्षा कितने प्रत्यनीक कहे गए हैं ? गौतम ! तीन प्रत्यनीक कहे गए हैं, आचार्य प्रत्यनीक, उपाध्याय प्रत्यनीक और स्थविर प्रत्यनीक। भगवन्‌ ! गति की अपेक्षा कितने प्रत्यनीक हैं ? गौतम ! तीन – इहलोकप्रत्यनीक, परलोकप्रत्यनीक और उभयलोकप्रत्यनीक।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-८ प्रत्यनीक Hindi 413 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहे णं भंते! ववहारे पन्नत्ते? गोयमा! पंचविहे ववहारे पन्नत्ते, तं जहा–आगमे, सुतं, आणा, धारणा, जीए। जहा से तत्थ आगमे सिया आगमेणं ववहारं पट्ठवेज्जा। नो य से तत्थ आगमे सिया, जहा से तत्थ सुए सिया, सुएणं ववहारं पट्ठवेज्जा। नो य से तत्थ सुए सिया, जहा से तत्थ आणा सिया, आणाए ववहारं पट्ठवेज्जा। नो य से तत्थ आणा सिया, जहा से तत्थ धारणा सिया, धारणाए ववहार पट्ठवेज्जा। नो य से तत्थ धारणा सिया, जहा से तत्थ जीए सिया, जीएणं ववहारं पट्ठवेज्जा। इच्चेएहिं पंचहिं ववहारं पट्ठवेज्जा, तं जहा–आगमेणं, सुएणं आणाए, धारणाए, जीएणं। जहा-जहा से आगमे सुए आणा धारणा जीए तहा-तहा ववहारं पट्ठवेज्जा। से

Translated Sutra: भगवन्‌ ! व्यवहार कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! व्यवहार पाँच प्रकार का कहा गया है, आगम व्यवहार, श्रुतव्यवहार, आज्ञाव्यवहार, धारणाव्यवहार और जीतव्यवहार। इन पाँच प्रकार के व्यवहारों में से जिस साधु के पास आगम हो, उसे उस आगम से व्यवहार करना। जिसके पास आगम न हो, उसे श्रुत से व्यवहार चलाना। जहाँ श्रुत न हो वहाँ
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-८ प्रत्यनीक Hindi 414 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहे णं भंते! बंधे पन्नत्ते? गोयमा! दुविहे बंधे पन्नत्ते, तं जहा–इरियावहियबंधे य, संपराइयबंधे य। इरियावहियं णं भंते! कम्मं किं नेरइओ बंधइ? तिरिक्खजोणिओ बंधइ? तिरिक्खजोणिणी बंधइ? मनुस्सो बंधइ? मनुस्सी बंधइ? देवो बंधइ? देवी बंधइ? गोयमा! नो नेरइओ बंधइ, नो तिरिक्खजोणिओ बंधइ, नो तिरिक्खजोणिणी बंधइ, नो देवो बंधइ, नो देवी बंधइ। पुव्व पडिवन्नए पडुच्च मनुस्सा य मनुस्सीओ य बंधंति, पडिवज्जमाणए पडुच्च १. मनुस्सो वा बंधइ २. मनुस्सी वा बंधइ ३. मनुस्सा वा बंधंति ४. मनुस्सीओ वा बंधंति ५. अहवा मनुस्सो य मनुस्सी य बंधइ ६. अहवा मनुस्सो य मनुस्सीओ य बंधंति ७. अहवा मनुस्सा य मनुस्सी य बंधंति

Translated Sutra: भगवन्‌ ! बंध कितने प्रकार का है ? गौतम ! बंध दो प्रकार का – ईर्यापथिकबंध और साम्परायिकबंध। भगवन्‌ ! ईर्यापथिककर्म क्या नैरयिक बाँधता है, या तिर्यंचयोनिक या तिर्यंचयोनिक स्त्री बाँधती है, अथवा मनुष्य, या मनुष्य – स्त्री बाँधती है, अथवा देव या देवी बाँधती है ? गौतम ! ईर्यापथिककर्म न नैरयिक बाँधता है, न तिर्यंच –
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-८ प्रत्यनीक Hindi 415 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] संपराइयं णं भंते! कम्मं किं नेरइओ बंधइ? तिरिक्खजोणिओ बंधइ? जाव देवी बंधइ? गोयमा! नेरइओ वि बंधइ, तिरिक्खजोणिओ वि बंधइ, तिरिक्खजोणिणी वि बंधइ, मनुस्सो वि बंधइ, मनुस्सी वि बंधइ, देवो वि बंधइ, देवी वि बंधइ। तं भंते! किं इत्थी बंधइ? पुरिसो बंधइ? तहेव जाव नोइत्थी नोपुरिसो नोनपुंसगो बंधइ? गोयमा! इत्थी वि बंधइ, पुरिसो वि बंधइ जाव नपुंसगा वि बंधंति, अहवा एते य अवगयवेदो य बंधइ, अहवा एते य अवगयवेदा य बंधंति। जइ भंते! अवगयवेदो य बंधइ, अवगयवेदा य बंधंति तं भंते! किं इत्थीपच्छाकडो बंधइ? पुरिसपच्छाकडो बंधइ? एवं जहेव इरियावहियबंधगस्स तहेव निरवसेसं जाव अहवा इत्थीपच्छाकडा य पुरिसपच्छाकडा

Translated Sutra: भगवन्‌ ! साम्परायिक कर्म नैरयिक बाँधता है, तिर्यंच या यावत्‌ देवी बाँधती है ? गौतम ! नैरयिक भी बाँधता है; तिर्यंच भी बाँधता है, तिर्यंच – स्त्री भी बाँधती है, मनुष्य भी बाँधता है, मानुषी भी बाँधती है, देव भी बाँधता है और देवी भी बाँधती है। भगवन्‌ ! साम्परायिक कर्म क्या स्त्री बाँधती है, पुरुष बाँधता है, यावत्‌ नोस्त्री
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-८ प्रत्यनीक Hindi 416 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कइ णं भंते! कम्मप्पगडीओ पन्नत्ताओ? गोयमा! अट्ठ कम्मप्पगडीओ पन्नत्ताओ, तं जहा– नाणावरणिज्जं दंसणावरणिज्जं वेदणिज्जं मोहणिज्जं आउगं नामं गोयं अंतराइयं। कइ णं भंते! परीसहा पन्नत्ता? गोयमा! बावीसं परीसहा पन्नत्ता, तं जहा- दिगिंछापरीसहे, पिवासापरीसहे, सीतपरीसहे, उसिणपरीसहे, दंसमसगपरीसहे, अचेलपरीसहे, अरइपरीसहे, इत्थिपरीसहे, चरियापरीसहे, निसीहियापरीसहे, सेज्जापरीसहे, अक्कोसपरीसहे, वहपरीसहे, जायणापरीसहे, अलाभपरीसहे, रोगपरीसहे, तणफास परीसहे, जल्लपरीसहे, सक्कारपुरक्कारपरीसहे, पण्णापरीसहे नाणपरीसहे दंसणपरीसहे। एए णं भंते! बावीसं परीसहा कतिसु कम्मप्पगडीसु समोयरंति? गोयमा!

Translated Sutra: भगवन्‌ ! कर्मप्रकृतियाँ कितनी कही गई हैं ? गौतम ! कर्मप्रकृतियाँ आठ कही गई हैं, यथा – ज्ञानावरणीय यावत्‌ अन्तराय। भगवन्‌ ! परीषह कितने कहे हैं ? गौतम ! परीषह बाईस कहे हैं, वे इस प्रकार – १. क्षुधा – परीषह, २. पिपासा – परीषह यावत्‌ २२ – दर्शन परीषह। भगवन्‌ ! इन बाईस परीषहों का किन कर्मप्रकृतियों में समावेश हो ता है ?
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-८ प्रत्यनीक Hindi 418 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] दंसणमोहणिज्जे णं भंते! कम्मे कति परिसहा समोयरंति? गोयमा! एगे दंसणपरीसहे समोयरइ। चरित्तमोहणिज्जे णं भंते! कम्मे कति परीसहा समोयरंति? गोयमा! सत्त परीसहा समोयरंति, तं जहा–

Translated Sutra: भगवन्‌ ! दर्शनमोहनीयकर्म में कितने परीषहों का समतवार होता है ? गौतम ! एक दर्शनपरीषह का समवतार होता है।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-८ प्रत्यनीक Hindi 420 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अंतराइए णं भंते! कम्मे कति परीसहा समोयरंति? गोयमा! एगे अलाभपरीसहे समोयरइ। सत्तविहबंधगस्स णं भंते! कति परीसहा पन्नत्ता? गोयमा! बावीसं परीसहा पन्नत्ता। वीसं पुण वेदेइ–जं समयं सीयपरीसहं वेदेइ नो तं समयं उसिणपरीसहं वेदेइ, जं समयं उसिणपरीसहं वेदेइ नो तं समयं सीयपरीसहं वेदेइ, जं समयं चरियापरीसहं वेदेइ नो तं समयं निसीहियापरीसहं वेदेइ, जं समयं निसीहियापरीसहं वेदेइ नो तं समयं चरियापरीसहं वेदेइ। एवं अट्ठविहबंधगस्स वि। छव्विहबंधगस्स णं भंते! सरागछउमत्थस्स कति परीसहा पन्नत्ता? गोयमा! चोद्दस परिसहा पन्नत्ता। बारस पुण वेदेइ–जं समयं सीयपरीसहं वेदेइ नो तं समयं उसिणपरीसहं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! अन्तरायकर्म में कितने परीषहों का समवतार होता है ? गौतम ! एक अलाभपरीषह का समवतार होता है। भगवन्‌ ! सात प्रकार के कर्मों को बाँधने वाले जीव के कितने परीषह हैं ? गौतम ! बाईस। परन्तु वह जीव एक साथ बीस परीषहों का वेदन करता है; क्योंकि जिस समय वह शीतपरीषह वेदता है, उस समय उष्ण – परीषह का वेदन नहीं करता और जिस समय
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-८ प्रत्यनीक Hindi 421 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे सूरिया उग्गमणमुहुत्तंसि दूरे य मूले य दीसंति? मज्झंतियमुहुत्तंसि मूले य दूरे य दीसंति? अत्थमणमुहुत्तंसि दूरे य मूले य दीसंति? हंता गोयमा! जंबुद्दीवे णं दीवे सूरिया उग्गमणमुहुत्तंसि दूरे य मूले य दीसंति, मज्झंतियमुहुत्तंसि मूले य दूरे य दीसंति, अत्थमणमुहुत्तंसि दूरे य मूले य दीसंति। जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे सूरिया उग्गमणमुहुत्तंसि, मज्झंतियमुहुत्तंसि य, अत्थमणमुहुत्तंसि य सव्वत्थ समा उच्चत्तेणं? हंता गोयमा! जंबुद्दीवे णं दीवे सूरिया उग्गमण मुहुत्तंसि, मज्झंतियमुहुत्तंसि य, अत्थमणमुहुत्तंसि य सव्वत्थ समाउच्चत्तेणं। जइ णं भंते!

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जम्बूद्वीप में क्या दो सूर्य, उदय और अस्त के मुहूर्त्त में दूर होते हुए भी निकट दिखाई देते हैं, मध्याह्न के मुहूर्त्तमें निकट में होते हुए दूर दिखाई देते हैं? हाँ, गौतम ! जम्बूद्वीपमें दो सूर्य, उदय के समय दूर होते हुए भी निकट दिखाई देते हैं, इत्यादि। भगवन्‌ ! जम्बूद्वीप में दो सूर्य, उदय के समय में, मध्याह्न
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-९ प्रयोगबंध Hindi 429 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एएसि णं भंते! जीवाणं ओरालिय-वेउव्विय-आहारग-तेयाकम्मासरीरगाणं देसबंधगाणं, सव्व-बंधगाणं, अबंधगाणं य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा? बहुया वा? तुल्ला वा? विसेसाहिया वा? गोयमा! १. सव्वत्थोवा जीवा आहारगसरीरस्स सव्वबंधगा २. तस्स चेव देसबंधगा संखेज्ज-गुणा ३. वेउव्वियसरीरस्स सव्वबंधगा असंखेज्जगुणा ४. तस्स चेव देसबंधगा असंखेज्जगुणा ५. तेया-कम्मगाणं अबंधगा अनंतगुणा ६. ओरालियसरीरस्स सव्वबंधगा अनंतगुणा ७. तस्स चेव अबंधगा विसेसाहिया ८. तस्स चेव देसबंधगा असंखेज्जगुणा ९. तेया-कम्मगाणं देसबंधगा विसे-साहिया १. वेउव्वियसरीरस्स अबंधगा विसेसाहिया ११. आहारगसरीरस्स अबंधगा विसेसाहिया। सेवं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! इन औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस और कार्मणशरीर के देशबंधक, सर्वबंधक और अबंधक जीवों मे कौन किनसे यावत् विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सबसे थोड़े आहारकशरीर के सर्वबंधक जीव हैं, उनसे आहारकशरीर के देशबंधक जीव संख्यातगुणे हैं, उनसे वैक्रियशरीर के सर्वबंधक असंख्यातगुणे हैं, उनसे वैक्रियशरीर के देशबंधक जीव असंख्यातगुणे
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-२ आराधना Hindi 430 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे नगरे जाव एवं वयासी–अन्नउत्थिया णं भंते! एवमाइक्खंति जाव एवं परूवेंति–एवं खलु? १. सीलं सेयं २. सुयं सेयं ३. सुयं सीलं सेयं। से कहमेयं भंते! एवं? गोयमा! जण्णं ते अन्नउत्थिया एवमाइक्खंति जाव जे ते एवमाहंसु, मिच्छा ते एवमाहंसु। अहं पुण गोयमा! एवमाइक्खामि जाव परूवेमि– एवं खलु मए चत्तारि पुरिसजाया पन्नत्ता, तं जहा–१. सीलसंपन्ने नामं एगे नो सुयसंपन्ने २. सुयसंपन्ने नामं एगे नो सीलसं-पन्ने ३. एगे सीलसंपन्ने वि सुयसंपन्ने वि ४. एगे नो सीलसंपन्ने नो सुयसंपन्ने। तत्थ णं जे से पढमे पुरिसजाए से णं पुरिसे सीलवं असुयवं–उवरए, अविण्णायधम्मे। एस णं गोयमा! मए पुरिसे देसाराहए

Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत् गौतमस्वामी ने इस प्रकार पूछा – भगवन् ! अन्यतीर्थिक इस प्रकार कहते हैं, यावत् प्ररूपणा करते हैं – (१) शील ही श्रेयस्कर हे; (२) श्रुत ही श्रेयस्कर है, (३) (शीलनिरपेक्ष) श्रुत श्रेयस्कर है, अथवा (श्रुतनिरपेक्ष) शील श्रेयस्कर है; अतः है भगवन् ! यह किस प्रकार सम्भव है ? गौतम। अन्यतीर्थिक जो इस प्रकार
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-२ आराधना Hindi 431 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहा णं भंते! आराहणा पन्नत्ता? गोयमा! तिविहा आराहणा पन्नत्ता, तं जहा–नाणाराहणा, दंसणाराहणा, चरित्ताराहणा। नाणाराहणा णं भंते! कतिविहा पन्नत्ता? गोयमा! तिविहा पन्नत्ता, तं जहा–उक्कोसिया, मज्झिमा, जहन्ना। दंसणाराहणा णं भंते! कतिविहा पन्नत्ता? गोयमा! तिविहा पन्नत्ता, तं जहा–उक्कोसिया, मज्झिमा, जहन्ना। चरित्ताराहणा णं भंते! कतिविहा पन्नत्ता? गोयमा! तिविहा पन्नत्ता, तं जहा–उक्कोसिया, मज्झिमा, जहन्ना। जस्स णं भंते! उक्कोसिया नाणाराहणा तस्स उक्कोसिया दंसणाराहणा? जस्स उक्कोसिया दंसणाराहणा तस्स उक्कोसिया नाणाराहणा? गोयमा! जस्स उक्कोसिया नाणाराहणा तस्स दंसणाराहणा

Translated Sutra: भगवन्‌ ! आराधना कितने प्रकार की है ? गौतम ! तीन प्रकार की – ज्ञानधारना, दर्शनाराधना, चारित्राराधना। भगवन् ! ज्ञानाराधना कितने प्रकार की है ? गौतम ! तीन प्रकार की उत्कृष्ट, मध्यम और जघन्य। भगवन् ! दर्शनाराधना कितने प्रकार की है ? गौतम ! तीनप्रकार की। इसी प्रकार चारित्राराधना भी तीनप्रकार की है। भगवन् ! जिस जीव के
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-२ आराधना Hindi 432 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहे णं भंते! पोग्गलपरिणामे पन्नत्ते? गोयमा! पंचविहे पोग्गलपरिणामे पन्नत्ते, तं जहा–वण्णपरिणामे, गंधपरिणामे, रसपरिणामे, फासपरिणामे, संठाणपरिणामे। वण्णपरिणामे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–कालवण्णपरिणामे जाव सुक्किलवण्णपरिणामे। एवं एएणं अभिलावेणं गंधपरिणामे दुविहे, रसपरिणामे पंचविहे, फासपरिणामे अट्ठविहे। संठाणपरिणामे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–परिमंडलसंठाणपरिणामे जाव आयतसंठाणपरिणामे।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! पुद्गलपरिणाम कितने प्रकार का है ? गौतम ! पांच प्रकार का – वर्णपरिणाम, गन्धपरिणाभ, रसपरिणाम, स्पर्शपरिणाम और संस्थानपरिणाम। भगवन् ! वर्णपरिणाम कितने प्रकार का है ? गौतम ! पांच प्रकार का – कृष्ण वर्णपरिणाम यावत् शुक्ल वर्णपरिणाम। इसी प्रकार गन्धपरिणाम दो प्रकार का, रसपरिणाम पांच प्रकार का और स्पर्शपरिणाम
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-२ आराधना Hindi 433 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एगे भंते! पोग्गलत्थिकायपदेसे किं १. दव्वं? २. दव्वदेसे? ३. दव्वाइं? ४. दव्वदेसा? ५. उदाहु दव्वं च दव्वदेसे य? ६. उदाहु दव्वं च दव्वदेसा य? ७. उदाहु दव्वाइं च दव्वदेसे य? ८. उदाहु दव्वाइं च दव्वदेसा य? गोयमा! १. सिय दव्वं २. सिय दव्वदेसे ३. नो दव्वाइं ४. नो दव्वदेसा ५. नो दव्वं च दव्वदेसे य ६. नो दव्वं च दव्वदेसा य ७. नो दव्वाइं च दव्वदेसे य ८. नो दव्वाइं च दव्वदेसा य। दो भंते! पोग्गलत्थिकायपदेसा किं दव्वं? दव्वदेसे? –पुच्छा। गोयमा! सिय दव्वं, सिय दव्वदेसे, सिय दव्वाइं, सिय दव्वदेसा, सिय दव्वं च दव्वदेसे य। सेसा पडिसेहेयव्वा। तिन्नि भंते पोग्गलत्थिकायपदेसा किं दव्वं? दव्वदेसे? –पुच्छा। गोयमा!

Translated Sutra: भगवन्‌ ! पुद्गलास्तिकाय का एक प्रदेश द्रव्य है, द्रव्यदेश है, बहुत द्रव्य हैं, बहुत द्रव्य – देश हैं ? एक द्रव्य और एक द्रव्यदेश है, एक द्रव्य और बहुत द्रव्यदेश हैं, बहुत द्रव्य और द्रव्यदेश है, या बहुत द्रव्य और बहुत द्रव्यदेश हैं ? गौतम ! वह कथञ्चित् एक द्रव्य है, कथञ्चित् एक द्रव्यदेश है, किन्तु वह बुहत द्रव्य
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-२ आराधना Hindi 434 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] केवतिया णं भंते! लोयागासपदेसा पन्नत्ता? गोयमा! असंखेज्जा लोयागासपदेसा पन्नत्ता। एगमेगस्स णं भंते! जीवस्स केवइया जीवपदेसा पन्नत्ता? गोयमा! जावतिया लोयागासपदेसा, एगमेगस्स णं जीवस्स एवतिया जीवपदेसा पन्नत्ता।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! लोकाकाश के कितने प्रदेश हैं ? गौतम ! लोकाकाश के असंख्येय प्रदेश हैं। भगवन् ! एक – एक जीव के कितने – कितने जीवप्रदेश हैं ? गौतम ! लोकाकाश के जितने प्रदेश कहे गए हैं, उतने ही एक – एक जीव के जीवप्रदेश हैं।
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शतक-८

उद्देशक-२ आराधना Hindi 435 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! कम्मपगडीओ पन्नत्ताओ? गोयमा! अट्ठ कम्मपगडीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–नाणावरणिज्जं जाव अंतराइयं। नेरइयाणं भंते! कति कम्मपगडीओ पन्नत्ताओ? गोयमा! अट्ठ। एवं सव्वजीवाणं अट्ठ कम्मपगडीओ ठावेयव्वाओ जाव वेमाणियाणं। नाणावरणिज्जस्स णं भंते! कम्मस्स केवतिया अविभागपलिच्छेदा पन्नत्ता? गोयमा! अनंता अविभागपलिच्छेदा पन्नत्ता। नेरइयाणं भंते! नाणावरणिज्जस्स कम्मस्स केवतिया अविभागपलिच्छेदा पन्नत्ता? गोयमा! अनंता अविभागपलिच्छेदा पन्नत्ता। एवं सव्वजीवाणं जाव वेमाणियाणं–पुच्छा। गोयमा! अनंता अविभागपलिच्छेदा पन्नत्ता। एवं जहा नाणावरणिज्जस्स अविभाग-पलिच्छेदा भणिया

Translated Sutra: भगवन्‌ ! कर्मप्रकृतियां कितनी हैं ? गौतम् ! कर्मप्रकृतियां आठ – ज्ञानावरणीय यावत् अन्तराय। भगवन् ! नैरयिकों के कितनी कर्मप्रकृतियां हैं ? गौतम ! आठ। इसी प्रकार वैमानिकपर्यन्त सभी जीवो के आठ कर्मप्रकृतियों कहनी चाहिए। भगवन् ! ज्ञानावरणीय कर्म के कितने अविभाग – परिच्छेद हैं ? गौतम ! अनन्त अविभाग – परिच्छेद हैं।
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शतक-८

उद्देशक-२ आराधना Hindi 436 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जस्स णं भंते! नाणावरणिज्जं तस्स दरिसणावरणिज्जं? जस्स दंसणावरणिज्जं तस्स नाणावरणिज्जं? गोयमा! जस्स णं नाणावरणिज्जं तस्स दंसणावरणिज्जं नियमं अत्थि, जस्स णं दरिसणावरणिज्जं तस्स वि नाणावरणिज्जं नियमं अत्थि। जस्स णं भंते! नाणावरणिज्जं तस्स वेयणिज्जं? जस्स वेयणिज्जं तस्स नाणावरणिज्जं? गोयमा! जस्स नाणावरणिज्जं तस्स वेयणिज्जं नियमं अत्थि जस्स पुण वेयणिज्जं तस्स नाणावरणिज्जं सिय अत्थि, सिय नत्थि जस्स णं भंते! नाणावरणिज्जं तस्स मोहणिज्जं? जस्स मोहणिज्जं तस्स नाणावरणिज्जं? गोयमा! जस्स नाणावरणिज्जं तस्स मोहणिज्जं सिय अत्थि, सिय नत्थि; जस्स पुण मोहणिज्जं तस्स नाणावरणिज्जं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जिस जीव के ज्ञानावरणीयकर्म है, उसके क्या दर्शनावरणीयकर्म भी है और जिस जीव के दर्शनावरणीयकर्म है, उसके ज्ञानावरणीयकर्म भी है ? हाँ, गौतम ! ऐसा ही है। भगवन् ! जिस जीव के ज्ञानावरणीयकर्म है, क्या उसके वेदनीयकर्म है और जिस जीव के वेदनीयकर्म है, क्या उसके ज्ञानावरणीयकर्म भी है? गौतम ! जिस जीव के ज्ञानावरणीयकर्म
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-२ आराधना Hindi 437 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! किं पोग्गली? पोग्गले? गोयमा! जीवे पोग्गली वि, पोग्गले वि। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–जीवे पोग्गली वि, पोग्गले वि? गोयमा! से जहानामए छत्तेणं छत्ती, दंडेणं दंडी, घडेणं घडी, पडेणं पडी, करेणं करी, एवामेव गोयमा! जीवे वि सोइंदिय-चक्खिंदिय-घाणिंदिय-जिब्भिंदिय-फासिंदियाइं पडुच्च पोग्गली, जीवं पडुच्च पोग्गले। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–जीवे पोग्गली वि, पोग्गले वि। नेरइए णं भंते! किं पोग्गली! पोग्गले? एवं चेव। एवं जाव वेमाणिए, नवरं–जस्स जइ इंदियाइं तस्स तइ भाणियव्वाइं। सिद्धे णं भंते! किं पोग्गली? पोग्गले? गोयमा! नो पोग्गली, पोग्गले। से केणट्ठेणं भंते! एवं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जीव पुद्गली है अथवा पुद्गल है। गौतम ! जीव पुदगली भी है और पुद्गल भी। भगवन् ! किस कारण से आप ऐसा कहते हैं ? गौतम ! जैसे किसी पुरुष के पास छत्र हो तो उसे छत्री, दण्ड हो तो दण्डी, घट होने से घटी, पट होने से पटी और कर होने से करी कहा जाता है, इसी तरह हे गौतम ! जीव श्रोत्रेन्द्रिय – चक्षुरिन्द्रिय – घ्राणेन्द्रिय –
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शतक-९

उद्देशक-१ जंबुद्वीप Hindi 439 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं मिहिला नामं नगरी होत्था–वण्णओ। माणिभद्दे चेतिए–वण्णओ। सामी समोसढे, परिसा निग्गता जाव भगवं गोयमे पज्जुवासमाणे एवं वदासी–कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे! किंसंठिए णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे? एवं जंबुद्दीवपन्नत्ती भाणियव्वा जाव एवामेव सपुव्वावरेणं जंबुद्दीवे दीवे चोद्दस सलिला-सयसहस्सा छप्पन्नं च सहस्सा भवंतीति मक्खाया। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।

Translated Sutra: उस काल और उस समय में मिथिला नगरी थी। वहाँ माणिभद्र चैत्य था। महावीर स्वामी का समवसरण हुआ। परिषद् निकली। (भगवान् ने) – धर्मोपदेश दिया, यावत् भगवान् गौतम ने पर्युपासना करते हुए इस प्रकार पूछा – भगवन् ! जम्बूद्वीप कहाँ है ? (उसका) संस्थान किस प्रकार है ? गौतम ! इस विषय में जम्बूद्वीपप्रज्ञाप्ति में कहे अनुसार – जम्बूद्वीप
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-९

उद्देशक-२ Hindi 440 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे केवइया चंदा पभासिंसु वा? पभासेंति वा? पभासिस्संति वा? एवं जहा जीवाभिगमे जाव–

Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत् गौतम स्वामी ने पूछा – भगवन् ! जम्बूद्वीप में कितने चन्द्रों ने प्रकाश किया, करते हैं, और करेंगे ? जीवाभिगमसूत्रानुसार कहेना।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-९

उद्देशक-२ Hindi 441 Gatha Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एगं च सयसहस्सं, तेत्तीसं खलु भवे सहस्साइं । नव य सया पन्नासा, तारागणकोडिकोडीणं ॥

Translated Sutra: ‘एक लाख तेतीस हजार नौ सौ पचास कोड़ाकोड़ी तारों के समूह। शोभित हुए, शोभित होते हैं और शोभित होंगे’ तक जानना चाहिए। सूत्र – ४४१, ४४२
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-९

उद्देशक-३२ गांगेय Hindi 452 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] संतरं भंते! नेरइया उव्वट्टंति? निरंतरं नेरइया उव्वट्टंति? गंगेया! संतरं पि नेरइया उव्वट्टंति, निरंतरं पि नेरइया उव्वट्टंति। एवं जाव थणियकुमारा। संतरं भंते! पुढविक्काइया उव्वट्टंति? – पुच्छा। गंगेया! नो संतरं पुढविक्काइया उव्वट्टंति, निरंतरं पुढविक्काइया उव्वट्टंति। एवं जाव वणस्सइकाइया–नो संतरं, निरंतरं उव्वट्टंति। संतरं भंते! बेइंदिया उव्वट्टंति? निरंतरं बेइंदिया उव्वट्टंति? गंगेया! संतरं पि बेइंदिया उव्वट्टंति, निरंतरं पि बेइंदिया उव्वट्टंति। एवं जाव वाणमंतरा। संतरं भंते! जोइसिया चयंति? – पुच्छा। गंगेया! संतरं पि जोइसिया चयंति, निरंतरं पि जोइसिया चयंति।

Translated Sutra: भगवन् ! नैरयिक जीव सान्तर उद्वर्त्तित होते हैं या निरन्तर ? गांगेय ! सान्तर भी उद्वर्त्तित होते हैं और निरन्तर भी। इसी प्रकार स्तनितकुमारों तक जानना। भगवन्‌ ! पृथ्वीकायिका जीव सान्तर उद्वर्त्तित होते हैं या निरन्तर ? गांगेय ! पृथ्वीकायिका जीवो का उद्वर्तन सान्तर नही होता, निरन्तर होता है। इसी प्रकार वनस्पतिकायिका
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-९

उद्देशक-३२ गांगेय Hindi 453 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहे णं भंते! पवेसणए पन्नत्ते? गंगेया! चउव्विहे पवेसणए पन्नत्ते, तं जहा–नेरइयपवेसणए, तिरिक्खजोणियपवेसणए, मनुस्स-पवेसणए, देवपवेसणए। नेरइयपवेसणए णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गंगेया! सत्तविहे पन्नत्ते, तं जहा– रयणप्पभापुढविनेरइयपवेसणए जाव अहेसत्तमापुढवि-नेरइयपवेसणए। एगे भंते! नेरइए नेरइयपवेसणएणं पविसमाणे किं रयणप्पभाए होज्जा, सक्करप्पभाए होज्जा जाव अहेसत्तमाए होज्जा? गंगेया! रयणप्पभाए वा होज्जा जाव अहेसत्तमाए वा होज्जा। दो भंते! नेरइया नेरइयपवेसणएणं पविसमाणा किं रयणप्पभाए होज्जा जाव अहेसत्तमाए होज्जा? गंगेया! रयणप्पभाए वा होज्जा जाव अहेसत्तमाए वा होज्जा। अहवा

Translated Sutra: भगवन्‌ ! प्रवेशनक कितने प्रकार का है ? गांगेय ! चार प्रकार का – नैरयिक प्रवेशनक, तिर्यग्योनिक – प्रवेशनक, मनुष्य – प्रवेशनक और देव – प्रवेशनक। भगवन् ! नैरयिक – प्रवेशनक कितने प्रकार का है ? गांगेय ! सात प्रकार का – रत्नप्रभा यावत् अधःसप्तमपत्रथ्वीनैरयिक – प्रवेशनक। भंते ! क्या एक नैरयिक जीव नैरयिक – प्रवेशनक
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-९

उद्देशक-३२ गांगेय Hindi 454 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तिरिक्खजोणियपवेसणए णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गंगेया! पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–एगिंदियतिरिक्खजोणियपवेसणए जाव पंचिंदियतिरिक्ख-जोणियपवेसणए। एगे भंते! तिरिक्खजोणिए तिरिक्खजोणियपवेसणएणं पविसमाणे किं एगिंदिएसु होज्जा जाव पंचिंदिएसु होज्जा? गंगेया! एगिंदिएसु वा होज्जा जाव पंचिंदिएसु वा होज्जा। दो भंते! तिरिक्खजोणिया तिरिक्खजोणियपवेसणएणं–पुच्छा। गंगेया! एगिंदिएसु वा होज्जा जाव पंचिंदिएसु वा होज्जा। अहवा एगे एगिंदिएसु होज्जा एगे बेइंदिएसु होज्जा, एवं जहा नेरइयपवेसणए तहा तिरिक्खजोणियपवेसणए वि भाणियव्वे जाव असंखेज्जा। उक्कोसा भंते! तिरिक्खजोणिया तिरिक्खजोणियपवेसणएणं–पुच्छा। गंगेया!

Translated Sutra: भगवन्‌ ! तिर्यञ्चयोनिक प्रवेशनक कितने प्रकार का है ? पांच प्रकार का – एकेन्द्रियतिर्यञ्चयो – निकप्रवेशनक यावत् पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक – प्रवेशनक। भगवन् ! एक तिर्यञ्चयोनिक जीव, तिर्यञ्चयोनिक – प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करता हुआ क्या एकेन्द्रिय जीवों में उत्पन्न होता है, अथवा यावत् पंचेन्द्रिय जीवो में
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-९

उद्देशक-३२ गांगेय Hindi 455 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] मनुस्सपवेसणए णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गंगेया! दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–समुच्छिममनुस्सपवेसणए, गब्भवक्कंतियमनुस्सपवेसणए य। एगे भंते! मनुस्से मनुस्सपवेसणएणं पविसमाणे किं संमुच्छिममनुस्सेसु होज्जा? गब्भवक्कंतियमनुस्सेसु होज्जा? गंगेया! संमुच्छिममनुस्सेसु वा होज्जा, गब्भवक्कंतियमनुस्सेसु वा होज्जा। दो भंते! मनुस्सा–पुच्छा। गंगेया! संमुच्छिममनुस्सेसु वा होज्जा, गब्भवक्कंतियमनुस्सेसु वा होज्जा। अहवा एगे संमुच्छिममनुस्सेसु होज्जा एगे गब्भव-क्कंतियमनुस्सेसु होज्जा, एवं एएणं कमेणं जहा नेरइयपवेसणए तहा मनुस्सपवेसणए वि भाणियव्वे जाव दस। संखेज्जा भंते!

Translated Sutra: भगवन्‌ ! मनुष्यप्रवेशनक कितने प्रकार का कहा गया है ? गांगेय ! दो प्रकार का है, सम्मूर्च्छिममनुष्य – प्रवेशनक ओर गर्भजमनुष्य – प्रवेशनक। भगवन् ! दो मनुष्य, मनुष्य – प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हुए क्या सम्मूर्च्छिम मनुष्यो में उत्पन्न होते है ? इत्यादि (पूर्ववत) प्रश्न। गांगेय ! दो मनुष्य या तो सम्मूर्च्छिममनुष्य
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-९

उद्देशक-३२ गांगेय Hindi 456 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] देवपवेसणए णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गंगेया! चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–भवनवासिदेवपवेसणए जाव वेमानियदेवपवेसणए। एगे भंते! देवे देवपवेसणएणं पविसमाणे किं भवनवासीसु होज्जा? वाणमंतर जोइसिय वेमाणिएसु होज्जा? गंगेया! भवनवासीसु वा होज्जा, वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिएसु वा होज्जा। दो भंते! देवा देवपवेसणएणं–पुच्छा। गंगेया! भवनवासीसु वा होज्जा, वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिएसु वा होज्जा। अहवा एगे भवनवासीसु एगे वाणमंतरेसु होज्जा, एवं जहा तिरिक्खजोणियपवेसणए तहा देवपवेसणए वि भाणियव्वे जाव असंखेज्ज त्ति। उक्कोसा भंते! –पुच्छा। गंगेया! सव्वे वि ताव जोइसिएसु होज्जा, अहवा जोइसिय-भवनवासीसु

Translated Sutra: भगवन्‌ ! देव – प्रवेशनक कितने प्रकार का है ? गांगेय ! चार प्रकार का – भावनवासीदेव – प्रवेशनक, वाणव्यन्तरदेव – प्रवेशनक, ज्योतिष्कदेव – प्रवेशनक और वैमानिकदेव – प्रवेशनक। भगवन् ! एक देव, देव – प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करता हुआ क्या भवनवासी देवों में, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क अथवा वैमानिक देवों में होता है ? गांगेय
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-९

उद्देशक-३२ गांगेय Hindi 457 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एयस्स णं भंते! भवनवासिदेवपवेसणगस्स, वाणमंतरदेवपवेसणगस्स, जोइसियदेवपवेसणगस्स, वेमानियदेवपवेसणगस्स य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा? बहुया वा? तुल्ला वा? विसेसाहिया वा? गंगेया! सव्वत्थोवे वेमानियदेवपवेसणए, भवनवासिदेवपवेसणए असंखेज्जगुणे, वाणमंतर देवपवेसणए असंखेज्जगुणे, जोइसियदेवपवेसणए संखेज्जगुणे। एयस्स णं भंते! नेरइयपवेसणगस्स तिरिक्खजोणियपवेसणगस्स मनुस्सपवेसणगस्स देवपवेसणगस्स य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा? बहुया वा? तुल्ला वा? विसेसाहिया वा? गंगेया! सव्वत्थोवे मनुस्सपवेसणए, नेरइयपवेसणए असंखेज्जगुणे, देवपवेसणए असंखेज्जगुणे, तिरिक्खजोणियपवेसणए असंखेज्जग

Translated Sutra: भगवन्‌ ! भवनवासी, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिकदेव – प्रवेशनक, इन चारों से कौन प्रवेशनक किस प्रवेशनक से अल्प, यावत् विशेषाधिक है ? गांगेय ! सबसे थोड़े वैमानिकदेव – प्रवेशनक है, उनसे भवनवासीदेव – प्रवेशनक असंख्यातगुणे है, उनसे वाणव्यन्तरदेव – प्रवेशनक असंख्यातगुणे है, और उनसे ज्योतिष्कदेव – प्रवेशनक संख्यतागुणे
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-९

उद्देशक-३२ गांगेय Hindi 458 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] संतरं भंते! नेरइया उववज्जंति निरंतरं नेरइया उववज्जंति संतरं असुरकुमारा उववज्जंति निरंतरं असुरकुमारा उव-वज्जंति जाव संतरं वेमाणिया उववज्जंति निरंतरं वेमाणिया उववज्जंति? संतरं नेरइया उव्वट्टंति निरंतरं नेरइया उव्वट्टंति जाव संतरं वाणमंतरा उव्वट्टंति निरंतरं वाणमंतरा उव्वट्टंति? संतरं जोइसिया चयंति निरंतरं जोइसिया चयंति संतरं वेमाणिया चयंति निरंतरं वेमाणिया चयंति? गंगेया! संतरं पि नेरइया उववज्जंति निरंतरं पि नेरइया उववज्जंति जाव संतरं पि थणियकुमारा उववज्जंति निरंतरं पि थणि-यकुमारा उववज्जंति, नो संतरं पुढविक्काइया उववज्जंति निरंतरं पुढविक्काइया

Translated Sutra: भगवन्‌ ! नैरयिक सान्तर उत्पन्न होते है या निरन्तर उत्पन्न होते है ? असुरकुमार सान्तर उत्पन्न होते है अथवा निरन्तर ? यावत् वैमानिक देव सान्तर उत्पन्न होते है या निरन्तर उत्पन्न होते है ? (इसी तरह) नैरयिक का उद्वर्तन सान्तर होता है अथवा निरन्तर ? यावत् वाणव्यन्तर देवो का उद्वर्त्तन सान्तर होता है या निरन्तर ? ज्योतिष्क
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-९

उद्देशक-३२ गांगेय Hindi 459 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तप्पभितिं च णं से गंगेये अनगारे समणं भगवं महावीरं पच्चभिजाणइ सव्वण्णुं सव्वदरिसिं। तए णं से गंगेये अनगारे समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–इच्छामि णं भंते! तुब्भं अंतियं चाउज्जामाओ धम्माओ पंचमहव्वइयं सपडिक्कमणं धम्मं उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए। अहासुहं देवानुप्पिया! मा पडिबंधं। तए णं से गंगेये अनगारे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता चाउज्जामाओ धम्माओ पंचमह-व्वइयं सपडिक्कमणं धम्मं उवसंपज्जित्ता णं विहरति। तए णं से गंगेये अनगारे बहूणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउणइ, पाउणित्ता

Translated Sutra: तब से गांगेय अनगार ने श्रमण भगवान् महावीर को सर्वज्ञ और सर्वदर्शी के रूप में पहचाना। गांगेय अनगार ने श्रमण भगवान् महावीर को तीन बार आदक्षिण प्रदक्षिणा की, वन्दन नमस्कार किया। उसके बाद कहा – भगवन् ! मैं आपके पास चातुर्यामरूप धर्म के बदले पंचमहाव्रतरूप धर्म को अंगीकार करना चाहता हूं। इस प्रकार सारा वर्णन
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-९

उद्देशक-३३ कुंडग्राम Hindi 460 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं माहणकुंडग्गामे नयरे होत्था–वण्णओ। बहुसालए चेइए–वण्णओ। तत्थ णं माहणकुंडग्गामे नयरे उसभदत्ते नामं माहणे परिवसइ–अड्ढे दित्ते वित्ते जाव वहुजणस्स अपरिभूए रिव्वेद-जजुव्वेद-सामवेद-अथव्वणवेद-इतिहासपंचमाणं निघंटुछट्ठाणं–चउण्हं वेदाणं संगोवंगाणं सरहस्साणं सारए धारए पारए सडंगवी सट्ठितंतविसारए, संखाणे सिक्खा कप्पे वागरणे छंदे निरुत्ते जोतिसामयणे, अन्नेसु य बहूसु बंभण्णएसु नयेसु सुपरिनिट्ठिए समणोवासए अभिगयजीवाजीवे उवलद्धपुण्णपावे जाव अहापरिग्गहिएहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तस्स णं उसभदत्तस्स माहणस्स देवानंदा नामं

Translated Sutra: उस काल और समय में ब्राह्मणकुण्डग्राम नामक नगर था। वहाँ बहुशाल नामक चैत्य था। उस ब्राह्मणकुण्डग्राम नगर में ऋषभदत्त नाम का ब्राह्मण रहता था। वह आढ्‌य, दीप्त, प्रसिद्ध, यावत् अपरिभूत था। वह ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्वणवेद में निपुण था। स्कन्दक तपास की तरह वह भी ब्राह्मणों के अन्य बहुत से नयों में निष्णात
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-९

उद्देशक-३३ कुंडग्राम Hindi 461 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं सा देवानंदा माहणी धम्मियाओ जाणप्पवराओ पच्चोरुहति, पच्चोरुहित्ता बहूहिं खुज्जाहिं जाव चेडियाचक्कवाल-वरिसधर-थेरकंचुइज्ज-महत्तरग-वंदपरिक्खित्ता समणं भगवं महावीरं पंचविहेणं अभिगमेणं अभिगच्छइ, तं जहा–१. सचित्ताणं दव्वाणं विओसरणयाए २. अचित्ताणं दव्वाणं अविमोयणयाए ३. विणयोणयाए गायलट्ठीए ४. चक्खुप्फासे अंजलिपग्ग-हेणं ५. मणस्स एगत्तीभावकरणेणं जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता उसभदत्तं माहणं पुरओ कट्टु ठिया चेव सपरिवारा सुस्सूसमाणी नमंसमाणी

Translated Sutra: देवानन्दा ब्राह्मणी भी धार्मिक उत्तम रथ से नीचे उतरी और अपनी बहुत – सी दासियों आदि यावत् महत्तरिका – वृन्द से परिवृत्त हो कर श्रमण भगवान् महावीर के सम्मुख पंचविध अभिगमपूर्वक गमन किया। वे पाँच अभिगम है – सचित द्रव्यों का त्याग करना, अचित द्रव्यों का त्याग न करता, विनय से शरीर को अवनत करना, भगवान् के दृष्टिगोचर
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-९

उद्देशक-३३ कुंडग्राम Hindi 462 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं समणे भगवं महावीरे उसभदत्तस्स माहणस्स देवानंदाए माहणीए तीसे य महतिमहालियाए इसिपरिसाए मुणिपरिसाए जइपरिसाए देवपरिसाए अनेगसयाए अनेगसयवंदाए अनेगसयवंद-परियालाए ओहबले अइबले महब्बले अपरिमिय-बल-वीरिय-तेय-माहप्प-कंति-जुत्ते सारय-नवत्थणिय-महुरगंभीर-कोंचनिग्घोस-दुंदुभिस्सरे उरे वित्थडाए कंठे वट्टियाए सिरे समाइण्णाए अगरलाए अमम्मणाए सुव्वत्तक्खर-सण्णिवाइयाए पुण्णरत्ताए सव्वभासाणुगामिणीए सरस्सईए जोयणणीहारिणा सरेणं अद्ध-मागहाए भासाए भासइ–धम्मं परिकहेइ जाव परिसा पडिगया। तए णं से उसभदत्ते माहणे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठे

Translated Sutra: तदनन्तर श्रमण भगवान महावीर ने ऋषभदत्तब्राह्मण और देवानन्दा तथ उस अत्यन्त बड़ी ऋषिपरिषद् को धर्मकथा कही; यावत् परिषद् वापर चली गई। इसके पश्चात वह ऋषभदत्त ब्राह्मण, श्रमण भगवान् महावीर के पास धर्म – श्रमण कर और उसे हृदय में धारण करके हर्षित और सन्तुष्ट होकर खड़ा हुआ। उसने श्रमण भगवान् महावीर की तीन बार आदक्षिण
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-९

उद्देशक-३३ कुंडग्राम Hindi 463 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं माहणकुंडग्गामस्स नगरस्स पच्चत्थिमे णं एत्थ णं खत्तियकुंडग्गामे नामं नयरे होत्था–वण्णओ। तत्थ णं खत्तियकुंडग्गामे नयरे जमाली नामं खत्तियकुमारे परिवसइ–अड्ढे दित्ते जाव बहुजणस्स अपरिभूते, उप्पिं पासायवरगए फुट्टमाणेहिं मुइंगमत्थएहिं बत्तीसतिबद्धेहिं णाडएहिं वरतरुणीसंपउत्तेहिं उवनच्चिज्जमाणे-उवनच्चिज्जमाणे, उवगिज्जमाणे-उवगिज्जमाणे, उव-लालिज्जमाणे-उवलालिज्जमाणे, पाउस-वासारत्त-सरद-हेमंत-वसंत-गिम्ह-पज्जंते छप्पि उऊ जहाविभवेणं माणेमाणे, कालं गाले-माणे, इट्ठे सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधे पंचविहे माणुस्सए कामभोगे पच्चणुब्भवमाणे विहरइ। तए णं खत्तियकुण्डग्गामे

Translated Sutra: उस ब्राह्मणकुण्डग्राम नामक नगर से पश्चिम दिशा में क्षत्रियकुण्डग्राम नामक नगर था। (वर्णन) उस क्षत्रियकुण्डग्राम नामक नगर में जमालि नाम का क्षत्रियकुमार रहता था। वह आढ्‌य, दीप्त यावत् अपरिभूत था। वह जिसमें मृदंग वाद्य की स्पष्ट ध्वनि हो रही थी, बत्तीस प्रकार के नाटको के अभिनय और नृत्य हो रहे थे, अनेक प्रकार
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-९

उद्देशक-३३ कुंडग्राम Hindi 464 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से जमाली खत्तियकुमारे समणेणं भगवया महावीरेणं एवं वुत्ते समाणे हट्ठतुट्ठे समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता तमेव चाउग्घंटं आसरहं दुरुहइ, दुरुहित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओ बहुसालाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता सकोरेंट मल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं महयाभडचडगर पहकरवंदपरिक्खित्ते, जेणेव खत्तियकुंडग्गामे नयरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता खत्तियकुंडग्गामं नयरं मज्झंमज्झेणं जेणेव सए गेहे जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तुरए निगिण्हइ, निगिण्हित्ता रहं

Translated Sutra: श्रमण भगवान् महावीर के पास से धमृ सुन कर और उसे हृदयंगम करके हर्षित और सन्तुष्ट क्षत्रियकुमार जमालि यावत् उठा और खड़े होकर उसने श्रमण भगवान् महावीर को तीन बार आदक्षिण प्रदक्षिणा की यावत् वन्दन – नमन किया और कहा – ‘‘भगवन् ! मैं र्निग्रन्थ – प्रवचन पर श्रद्धा करता हूं। भगवन् ! मैं निर्ग्रन्थ – प्रवचन पर प्रतीत
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-९

उद्देशक-३३ कुंडग्राम Hindi 465 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! खत्तियकुंडग्गामं नयरं सब्भिंतरबाहिरियं आसिय-सम्मज्जिओवलित्तं जहा ओववाइए जाव सुगंधवरगंधगंधियं गंधवट्टिभूयं करेह य कारवेह य, करेत्ता य कारवेत्ता य एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह। ते वि तहेव पच्चप्पिणंति। तए णं से जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिया दोच्चं पि कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! जमालिस्स खत्तियकुमारस्स महत्थं महग्घ महरिहं विपुलं निक्खमणाभिसेयं उवट्ठवेह। तए णं ते कोडुंबियपुरिसा तहेव जाव उवट्ठवेंति। तए

Translated Sutra: तदनन्तर क्षत्रियकुमार जमालि के पिता ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और कहा – शीघ्र ही क्षत्रियकुण्डग्राम नगर के अन्दर और बाहर पानी का छिड़काव करो, झाड़ कर जमीन की सफाई करके उसे लिपाओ, इत्यादि औपपातिक सूत्र अनुसार यावत् कार्य करके उन कौटुम्बिक पुरुषों ने आज्ञा वापस सौंपी। क्षत्रियकुमार जमालि के पिता ने दुबारा
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-९

उद्देशक-३३ कुंडग्राम Hindi 466 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से जमाली अनगारे अन्नया कयाइ जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–इच्छामि णं भंते! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे पंचहिं अनगारसएहिं सद्धिं बहिया जनवयविहारं विहरित्तए। तए णं समणे भगवं महावीरे जमालिस्स अनगारस्स एयमट्ठं नो आढाइ, नो परिजाणइ, तुसिणीए संचिट्ठइ। तए णं से जमाली अनगारे समणं भगवं महावीरं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयासी–इच्छामि णं भंते! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे पंचहिं अनगारसएहिं सद्धिं बहिया जनवयविहारं विहरित्तए। तए णं समणे भगवं महावीरे जमालिस्स अनगारस्स दोच्चं पि, तच्चं

Translated Sutra: तदनन्तर एक दिन जमालि अनगार श्रमण भगवान् महावीर के पास आए और भगवान् महावीर को वन्दना – नमस्कार करके इस प्रकार बोले – भगवन् ! आपकी आज्ञा प्राप्त होने पर मैं पांच सौ अनगारों के साथ इस जनपद से बाहर विहार करना चाहता हूँ। यह सुनकर श्रमण भगवान् महावीर ने जमालि अनगार की इस बात को आदर नहीं दिया, न स्वीकार किया। वे मौन
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-९

उद्देशक-३३ कुंडग्राम Hindi 467 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से जमाली अनगारे अन्नया कयाइ ताओ रोगायंकाओ विप्पमुक्के हट्ठे जाए, अरोए वलियसरीरे साव-त्थीओ नयरीओ कोट्ठगाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता पुव्वानुपुव्विं चरमाणे, गामाणुग्गामं दूइज्जमाणे जेणेव चंपा नयरी, जेणेव पुण्णभद्दे चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते ठिच्चा समणं भगवं महावीरं एवं वयासी–जहा णं देवानुप्पियाणं बहवे अंतेवासी समणा निग्गंथा छउमत्थावक्कमणेणं अव-क्कंता, नो खलु अहं तहा छउमत्थावक्कमणेणं अवक्कंते, अहं णं उप्पन्ननाण-दंसणधरे अरहा जिने केवली भवित्ता केवलिअवक्कमणेणं अवक्कंते। तए

Translated Sutra: तदन्तर किसी समय जमालि – अनगार उक रोगातंक से मुक्त और हृष्ट हो गया तथा नीरोग और बलवान् शीर वाला हुआ; तब श्रावस्ती नगरी के कोष्ठक उद्यान से निकला और अनुक्रम से विचरण करता हुआ एवं ग्रामनुग्राम विहार करता हुआ, जहाँ चम्पा नगरी थी और जहाँ पूर्णभद्र चैत्य था, जिसमें कि श्रमण भगवान् महावीर विराजमान थे, उनके पास आया।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-९

उद्देशक-३३ कुंडग्राम Hindi 468 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं भगवं गोयमे जमालिं अनगारं कालगयं जाणित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी– एवं खलु देवानुप्पियाणं अंतेवासि कुसिस्से जमाली नामं अनगारे से णं भंते! जमाली अनगारे कालमासे कालं किच्चा कहिं गए? कहिं उववन्ने? गोयमादी! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं एवं वयासी– एवं खलु गोयमा! ममं अंतेवासी कुसिस्से जमाली नामं अनगारे, से णं तदा ममं एवमाइक्खमाणस्स एवं भासमाणस्स एवं पण्णवेमाणस्स एवं परूवेमाणस्स एतमट्ठं नो सद्दहइ नो पत्तियइ नो रोएइ, एतमट्ठं असद्दहमाणे अपत्तियमाणे अरोएमाणे, दोच्चं पि ममं

Translated Sutra: जमालि अनगार को कालधर्म प्राप्त हुआ जान कर भगवान् गौतम श्रमण भगवान् महावीर के पास आए और वन्दना नमस्कार करके पूछा – भगवन् ! यह निश्चित है कि जमालि अनगार आप देवानुप्रिय का अन्तेवासी कुशिष्य था भगवन् ! वह जमालि अनगार काल के समय काल करके कहाँ उत्पन्न हुआ है ? श्रमण भगवानम् महावीर ने भगवान् गौतमस्वामी से कहा – गौतम
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-९

उद्देशक-३३ कुंडग्राम Hindi 469 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: कतिविहा णं भंते! देवकिव्विसिया पन्नत्ता? गोयमा! तिविहा देवकिव्विसिया पन्नत्ता, तं जहा–तिपलिओवमट्ठिइया, तिसागरोवमट्ठिइया, तेरससागरोवमट्ठिइया। कहिं णं भंते! तिपलिओवमट्ठिइया देवकिव्विसिया परिवसंति? गोयमा! उप्पिं जोइसियाणं, हिट्ठिं सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु, एत्थ णं तिपलिओवमट्ठिइया देव-किव्विसिया परिवसंति। कहिं णं भंते! तिसागरोवमट्ठिइया देवकिव्विसिया परिवसंति? गोयमा! उप्पिं सोहम्मीसानाणं कप्पाणं, हिट्ठिं सणंकुमार-माहिंदेसु कप्पेसु, एत्थ णं तिसागरोवमट्ठिइया देवकिव्विसिया परिवसंति। कहिं णं भंते! तेरससागरोवमट्ठिइया देवकिव्विसिया परिवसंति? गोयमा! उप्पिं बंभलोगस्स

Translated Sutra: भगवन् ! किल्विषिक देव कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! तीन प्रकार के – तीन पल्योपम की स्थिति वाले, तीन सागरोपम की स्थिति वाले और तेरह सागरोपम की स्थिति वाले ! भगवन् ! तीन पल्योपम की स्थिति वाले किल्विषिक देव कहाँ रहते हैं ? गौतम ! ज्योतिष्क देवों के ऊपर और सौधर्म – ईशान कल्पों के नीचे तीन पल्योपम की स्थिति वाले देव रहते
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-९

उद्देशक-३३ कुंडग्राम Hindi 470 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: जमाली णं भंते! देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अनंतरं चयं चइत्ता कहिं गच्छिहिति? कहिं उववज्जिहिति? गोयमा! चत्तारि पंच तिरिक्खजोणिय-मनुस्स-देवभवग्गहणाइं संसारं अनुपरियट्टित्ता तओ पच्छा, सिज्झिहिति बुज्झिहिति मुच्चिहिति परिणिव्वाहिति सव्वदुक्खाणं अंतं काहिति। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।

Translated Sutra: भगवन् ! वह जमालि देव उस देवलोक से आयु क्षय होते पर यावत् कहाँ उत्पान्न होगा ? गौतम ! तिर्यञ्चयोनिक, मनुष्य और देव के पांच भव ग्रहण करके और इतना संसार – परिभ्रमण करके तत्पश्चात् वह सिद्ध होगा, बुद्ध होगा यावत् सर्वदुःखों का अन्त करेगा। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-९

उद्देशक-३४ पुरुषघातक Hindi 471 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे जाव एवं वयासी–पुरिसे णं भंते! पुरिसं हणमाणे किं पुरिसं हणइ? नोपुरिसे हणइ? गोयमा! पुरिसं पि हणइ, नोपुरिसे वि हणइ। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–पुरिसं पि हणइ, नोपुरिसे वि हणइ? गोयमा! तस्स णं एवं भवइ–एवं खलु अहं एगं पुरिसं हणामि, से णं एगं पुरिसं हणमाणे अनेगे जीवे हणइ। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–पुरिसं पि हणइ, नोपुरिसे वि हणइ। पुरिसे णं भंते! आसं हणमाणे किं आसं हणइ? नोआसे हणइ? गोयमा! आसं पि हणइ, नोआसे वि हणइ। से केणट्ठेणं? अट्ठो तहेव। एवं हत्थि, सीहं, वग्घं जाव चिल्ललगं। पुरिसे णं भंते! इसिं हणमाणे किं इसिं हणइ? नोइसिं हणइ? गोयमा! इसिं पि हणइ,

Translated Sutra: उस काल और उस समय में राजगृह नगर था। वहाँ भगवान् गौतम ने यावत् भगवान् से पूछा – भगवन् ! कोई पुरुष पुरुष की घात करता हुआ क्या पुरुष की ही घात करता है अथवा नोपुरुष की भी घात करता है ? गौतम ! वह पुरुष का भी घात करता है और नोपुरुष का। भगवन् ! किस हेतु से ऐसा कहा जाता है ? गौतम ! उस पुरुष के मन में ऐसा विचार होता है कि मैं एक ही
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-९

उद्देशक-३४ पुरुषघातक Hindi 472 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पुढविक्काइए णं भंते! पुढविक्कायं चेव आणमइ वा? पाणमइ वा? ऊससइ वा? नीससइ वा? हंता गोयमा! पुढविक्काइए पुढविक्काइयं चेव आणमइ वा जाव नीससइ वा। पुढविक्काइए णं भंते! आउक्काइयं आणमइ वा जाव नीससइ वा? हंता गोयमा! पुढविक्काइए णं आउक्काइयं आणमइ वा जाव नीससइ वा। एवं तेउक्काइयं, वाउक्काइयं, एवं वणस्सइकाइयं। आउक्काइए णं भंते! पुढविक्काइयं आणमइ वा जाव नीससइ वा? हंता गोयमा! आउक्काइए णं पुढविक्काइयं आणमइ वा जाव नीससइ वा। आउक्काइए णं भंते! आउक्काइयं चेव आणमइ वा? एवं चेव। एवं तेउ-वाउ-वणस्सइकाइयं। तेउक्काइए णं भंते! पुढविक्काइयं आणमइ वा? एवं जाव वणस्सइकाइए णं भंते! वणस्सइकाइयं चेव आणमइ

Translated Sutra: भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव, पृथ्वीकायिक जीव को आभ्यन्तर और बाह्य श्वासोच्छ्वास के रूप में ग्रहण करता है और छोड़ता है ? हाँ, गौतम ! पृथ्वीकायिक जीव, पृथ्वीकायिक जीव को आभ्यन्तर और बाह्य श्वासोच्छ्‌वास के रूप में ग्रहण करता है और छोड़ता है। भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव, अप्कायिक जीव को यावत् श्वासोच्छ्वास के रूप में ग्रहण
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-९

उद्देशक-३४ पुरुषघातक Hindi 473 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] वाउक्काइए णं भंते! रुक्खस्स मूलं पचालेमाणे वा पवाडेमाणे वा कतिकिरिए? गोयमा! सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए, सिय पंचकिरिए। एवं कंदं, एवं जाव– बीयं पचालेमाणे वा–पुच्छा? गोयमा! सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए, सिय पंचकिरिए। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।

Translated Sutra: भगवन् ! वायुकायिक जीव, वृक्ष के मूल को कंपाते हुरए और गिराते हुए कितनी क्रिया वाले होते है ? गौतम! वे कदाचित् तीन क्रिया वाले, कदाचित् चार क्रिया वाले और कदाचित् पांच क्रिया वाले होते हैं। इसी प्रकार कंद को कंपाते आदि के सम्बन्ध में जानना चाहिए। इसी प्रकार यावत् बीज कंपाते या गिराते हुए आदि की क्रिया से सम्बन्धित
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१०

उद्देशक-१ दिशा Hindi 475 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–किमियं भंते! पाईणा ति पवुच्चइ? गोयमा! जीवा चेव, अजीवा चेव। किमियं भंते! पडीणा ति पवुच्चइ? गोयमा! एवं चेव। एवं दाहिणा, एवं उदीणा, एवं उड्ढा, एवं अहो वि। कति णं भंते! दिसाओ पन्नत्ताओ? गोयमा! दस दिसाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–१. पुरत्थिमा २. पुरत्थिमदाहिणा ३. दाहिणा ४. दाहिणपच्चत्थिमा ५. पच्चत्थिमा ६. पच्चत्थिमुत्तरा ७. उत्तरा ८. उत्तरपुरत्थिमा ९. उड्ढा १. अहो। एयासि णं भंते! दसण्हं दिसाणं कति नामधेज्जा पन्नत्ता? गोयमा! दस नामधेज्जा पन्नत्ता, तं जहा– इंदा अग्गेयो जम्मा, य नेरई वारुणी य वायव्वा । सोमा ईसाणी या, विमला य तमा य बोद्धव्वा ॥ इंदा णं भंते! दिसा किं १. जीवा

Translated Sutra: राजगृह नगर में गौतम स्वामी ने यावत् इस प्रकार पूछा – भगवन् ! यह पूर्वदिशा क्या कहलाती है ? गौतम! यह जीवरूप भी है और अजीवरूप भी है। भगवन् ! पश्चिमदिशा क्या कहलाती है ? गौतम ! यह भी पूर्वदिशा के समान जानना। इसी प्रकार दक्षिणदिशा, उत्तरदिशा, उर्ध्वदिशा और अधोदिशा के विषय में भी जानना चाहिए। भगवन् ! दिशाऍं कितनी कही
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