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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
षडविध जीव प्रतिपत्ति |
Hindi | 348 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] पुढविकाइए णं भंते! पुढविकाइयत्ति कालतो केवच्चिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं– असंखेज्जाओ उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ असंखेज्जा लोया। एवं आउतेउवाउक्काइयाणं।
वणस्सइकाइयाणं अनंतं कालं–अनंताओ उस्सप्पिणिओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ अनंता लोगा–असंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा, ते णं पोग्गलपरियट्टा आवलियाए असंखेज्जतिभागे।
तसकाइए णं भंते! तसकाइयत्ति कालतो केवचिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं दो सागरोवमसहस्साइं संखेज्जवासमब्भहियाइं।
अपज्जत्तगाणं छण्हवि जहन्नेणवि उक्कोसेणवि अंतोमुहुत्तं पज्जत्तगाणं। Translated Sutra: भगवन् ! पृथ्वीकाय, पृथ्वीकाय के रूप में कितने काल तक रह सकता है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट असंख्येय काल यावत् असंख्येय लोकप्रमाण आकाशखण्डों का निर्लेपनाकाल। इसी प्रकार यावत् वायुकाय की संचिट्ठणा जानना। वनस्पतिकाय की संचिट्ठणा अनन्तकाल है यावत् आवलिका के असंख्यातवें भाग में जितने समय | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
षडविध जीव प्रतिपत्ति |
Hindi | 350 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] पज्जत्तगाणं सव्वेसिं एवं पुढविकाइयस्स णं भंते केवतियं कालं अंतरं होति गोयमा जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं वणस्सतिकालो एवं आउ तेउ वाउकाइयाणं वणस्सइकालो तसकाइयाणवि वणस्सइकाइयस्स पुढविकाइयकालो एवं अपज्जत्तगाणवि वणस्सइकालो वणस्सईणं पुढविकालो, पज्जत्तगाणवि एवं चेव वणस्सइकालो पज्जत्तवणस्सईणं पुढविकालो। पुढविक्काइयपज्जत्तए णं भंते! पुढविक्काइयपज्जत्तएत्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जाइं वाससहस्साइं। एवं आऊवि।
तेउक्काइयपज्जत्तए णं भंते! तेउक्काइयपज्जत्तएत्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, Translated Sutra: भगवन् ! पृथ्वीकाय का अन्तर कितना है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट से वनस्पतिकाल है। इसी प्रकार यावत् वायुकाय का अन्तर वनस्पतिकाल है। त्रसकायिकों का अन्तर भी वनस्पतिकाल है। वनस्पति – काल का अन्तर पृथ्वीकायिक कालप्रमाण (असंख्येयकाल) है। इसी प्रकार अपर्याप्तकों का अन्तरकाल वनस्पति – काल है। | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
षडविध जीव प्रतिपत्ति |
Hindi | 352 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सुहुमस्स णं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता?
गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणवि अंतोमुहुत्तं। एवं जाव सुहुमणिओयस्स, एवं अपज्जत्तगाणवि, पज्जत्तगाणवि जहन्नेणवि उक्कोसेणवि अंतोमुहुत्तं। Translated Sutra: भगवन् ! सूक्ष्म जीवों की स्थिति कितनी है? गौतम! जघन्य व उत्कृष्ट से भी अन्तर्मुहूर्त्त। इसी प्रकार सूक्ष्म निगोदपर्यन्त कहना। इस प्रकार सूक्ष्मों के पर्याप्त – अपर्याप्तकों की जघन्य – उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्त्त प्रमाण ही है। | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
षडविध जीव प्रतिपत्ति |
Hindi | 353 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सुहुमे णं भंते! सुहुमेत्ति कालतो केवचिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं असंखेज्ज-कालं जाव असंखेज्जा लोया। सव्वेसिं पुढविकालो जाव सुहुमणिओयस्स पुढविकालो। अपज्जत्त-गाणं सव्वेसिं जहन्नेणवि उक्कोसेणवि अंतोमुहुत्तं। एवं पज्जत्तगाणवि सव्वेसिं जहन्नेणवि उक्कोसेणवि अंतोमुहुत्तं। Translated Sutra: भगवन् ! सूक्ष्म, सूक्ष्मरूप में कितने काल तक रहता है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त तक और उत्कृष्ट असंख्यातकाल तक रहता है। यह असंख्यातकाल असंख्येय उत्सर्पिणी – अवसर्पिणी रूप हैं तथा असंख्येय लोककाश के प्रदेशों के अपहारकाल के तुल्य है। इसी तरह सूक्ष्म पृथ्वीकाय अप्काय तेजस्काय वायुकाय वनस्पति काय की संचिट्ठणा | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
षडविध जीव प्रतिपत्ति |
Hindi | 354 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सुहुमस्स णं भंते! केवतियं कालं अंतरं होति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं–असंखेज्जाओ उस्सप्पिणीओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ अंगुलस्स असंखेज्जतिभागो।
सुहुमपुढविकाइयस्स णं भंते! केवतियं कालं अंतरं होति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अनंतं कालं जाव आवलियाए असंखेज्जतिभागे। एवं जाव वाऊ। सुहुमवणस्सति-सुहुमनिओगस्स अंतरं जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं जहा ओहियस्स अंतरं। एवं अपज्जत्ता-पज्जत्तगाणवि अंतरं। Translated Sutra: भगवन् ! सूक्ष्म, सूक्ष्म से नीकलने के बाद फिर कितने समय में सूक्ष्मरूप से पैदा होता है ? यह अन्तराल कितना है ? गौतम ! जघन्य से अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कर्ष से असंख्येयकाल – असंख्यात उत्सर्पिणी – अवसर्पिणी काल रूप है तथा क्षेत्र से अंगुलासंख्येय भाग क्षेत्र में जितने आकाशप्रदेश हैं उन्हें प्रति समय एक – एक का | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
षडविध जीव प्रतिपत्ति |
Hindi | 356 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] बायरस्स णं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं ठिई पन्नत्ता एवं बायरतसकाइयस्सवि बायरपुढवीकाइयस्स बावीस वाससहस्साइं बायरआउस्स सत्तवाससहस्सं बायरतेउस्स तिन्नि राइंदिया बायरवाउस्स तिन्नि वाससहस्साइं बायरवण दस वाससहस्साइं एवं पत्तेयसरीरबादरस्सवि निओयस्स जहन्नेणवि उक्कोसेणवि अंतोमु, एवं बायरनिओयस्सवि अपज्जत्तगाणं सव्वेसिं अंतोमुहुत्तं पज्जत्तगाणं उक्कोसिया ठिई अंतोमुहुत्तूणा कायव्वा सव्वेसिं, बादरपुढविकाइयस्स बावीसं वाससहस्साइं, बादरआउकाइयस्स सत्त वाससहस्साइं, बादरतेउकाइयस्स तिन्नि Translated Sutra: भगवन् ! बादर की स्थिति कितनी है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट तेंतीस सागरोपम। बादर त्रसकाय की भी यही स्थिति है। बादर पृथ्वीकाय की २२००० वर्ष की, बादर अप्कायिकों की ७००० वर्ष की, बादर तेजस्काय की तीन अहोरात्र की, बादर वायुकाय की ३००० वर्ष की और बादर वनस्पति की १०००० वर्ष की उत्कृष्ट स्थिति है। | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
षडविध जीव प्रतिपत्ति |
Hindi | 357 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] बायरे णं भंते! बायरेत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं–असंखेज्जाओ उस्सप्पिणीओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ अंगुलस्स असंखेज्जतिभागो। बायरपुढविकाइयाआउतेउ वाउपत्तेयसरीरबादरवणस्सइकाइयस्स बायरनिओयस्स एतेसिं जहन्नेणं अंतोमुहूत्तं उक्कोसेणं सत्तरि सागरोवमकोडाकोडीओ संखातीयाओ समाओ अंगुलभागे तहा असंखेज्जा ओहे य वायरतरु अनुबंधो सेसओ वोच्छं, बादरपुढविसंचिट्ठणा जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सत्तरि सागरोवमकोडाकोडीओ जाव बादरवाऊ।
बादरवणस्सतिकाइयस्स जहा ओहिओ।
बादरपत्तेयवणस्सतिकाइयस्स जहा बादरपुढवी। निओते जहन्नेणं Translated Sutra: भगवन् ! बादर जीव, बादर के रूप में कितने काल तक रहता है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट से असंख्यातकाल – असंख्यात उत्सर्पिणी – अवसर्पिणियाँ हैं तथा क्षेत्र से अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण क्षेत्र के आकाशप्रदेशों का प्रतिसमय एक – एक के मान से अपहार करने पर जितने समय में वे निर्लेप हो जाएं, उतने | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
षडविध जीव प्रतिपत्ति |
Hindi | 359 | Gatha | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अंतोमुहुत्तकालो होइ अपज्जत्तगाण सव्वेसिं ।
पज्जत्तबायरस्स य बायरतसकाइयस्सावि ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३५७ | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
षडविध जीव प्रतिपत्ति |
Hindi | 361 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] बादरस्स णं भंते! केवतियं कालं अंतरं होति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुढविकालो।
बादरपुढविकाइयस्स वणस्सतिकालो जाव बादरवाउकाइयस्स, बादरवणस्सतिकाइयस्स पुढविकालो, पत्तेयबादरवणस्सइकाइयस्स वणस्सतिकालो, णिओदो बादरणिओदो य जहा बादरो ओहिओ, बादरतसकाइयस्स वणस्सतिकालो। अपज्जत्ताणं पज्जत्ताणं च एसेव विही। Translated Sutra: औघिक बादर, बादर वनस्पति, निगोद और बादर निगोद, इन चारों का अन्तर पृथ्वीकाल है, अर्थात् असंख्यातकाल – असंख्यातकाल असंख्येय उत्सर्पिणी – अवसर्पिणी के बराबर है तथा क्षेत्रमार्गणा से असंख्येय लोकाकाश के प्रदेशों का प्रतिसमय एक – एक के मान से अपहार करने पर जितने समय में वे निर्लिप्त हो जायें, उतना कालप्रमाण जानना | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
षडविध जीव प्रतिपत्ति |
Hindi | 362 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अप्पाबहुयाणि– सव्वत्थोवा बायरतसकाइया, बायरतेउकाइया असंखेज्जगुणा, पत्तेयसरीरबादर-वणस्सतिकाइया असंखेज्जगुणा, बायरणिओया असंखेज्जगुणा, बायरपुढविकाइया असंखेज्ज-गुणा आउवाउकाइया असंखेज्जगुणा, बायरवणस्सतिकाइया अनंतगुणा, बायरा विसेसाहिया। एवं अपज्जत्तगाणवि। पज्जत्तगाणं सव्वत्थोवा बायरतेउक्काइया, बायरतसकाइया असंखेज्जगुणा, पत्तेगसरीरबायरा असंखेज्जगुणा, सेसा तहेव जाव बादरा विसेसाहिया।
एतेसि णं भंते! बायराणं पज्जत्तापज्जत्ताणं कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? सव्व त्थोवा बायरा पज्जत्ता, बायरा अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, एवं सव्वे Translated Sutra: प्रथम औघिक अल्पबहुत्व – सबसे थोड़े बादर त्रसकाय, उनसे बादर तेजस्काय असंख्येयगुण, उनसे प्रत्येक शरीर बादर वनस्पतिकाय असंख्येयगुण, उनसे बादर निगोद असंख्येयगुण, उनसे बादर पृथ्वीकाय असंख्येयगुण, उनसे बादर अप्काय, बादर वायुकाय क्रमशः असंख्येयगुण, उनसे बादर वनस्पतिकायिक अनन्तगुण, उनसे बादर विशेषाधिक। अपर्याप्त | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सप्तविध जीव प्रतिपत्ति |
Hindi | 365 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं जेते एवमाहंसु सत्तविहा संसारसमावन्नगा जीवा ते एवमाहंसु, तं जहा–नेरइया तिरिक्खा तिरिक्खजोणिणीओ मनुस्सा मनुस्सीओ देवा देवीओ।
नेरइयस्स ठितो जहन्नेणं दसवाससहस्साइं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं।
तिरिक्खजोणियस्स जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिअवमाइं।
एवं तिरिक्खजोणिणीएवि, मनुस्साणवि, मनुस्सीणवि।
देवाणं ठिती तहा नेरइयाणं।
देवीणं जहन्नेणं दसवाससहस्साइं, उक्कोसेणं पणपन्नपलिओवमाणि।
नेरइयदेवदेवीणं जच्चेव ठिती सच्चेव संचिट्ठणा।
तिरिक्खजोणिएणं भंते! तिरिक्खजोणिएत्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो।
तिरिक्खजोणिणीणं Translated Sutra: जो ऐसा कहते हैं कि संसारसमापन्नक जीव सात प्रकार के हैं, उनके अनुसार नैरयिक, तिर्यंच, तिरश्ची, मनुष्य, मानुषी, देव और देवी ये सात भेद हैं। नैरयिक की स्थिति जघन्य १०००० वर्ष और उत्कृष्ट तेंतीस सागरोपम की है। तिर्यक्योनिक की जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट तीन पल्योपम है। तिर्यक्स्त्री, मनुष्य और मनुष्यस्त्री | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
अष्टविध जीव प्रतिपत्ति |
Hindi | 366 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ जेते एवमाहंसु अट्ठविहा संसारसमावन्नगा जीवा ते एवमाहंसु–पढमसमयनेरइया अपढमसमय-नेरइया पढमसमयतिरिक्खजोणिया अपढमसमयतिरिक्खजोणिया पढमसमयमनुस्सा अपढम-समयमनुस्सा पढमसमयदेवा अपढमसमयदेवा।
पढमसमयनेरइयस्स णं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! एगं समयं ठिती पन्नत्ता।
अपढमसमयनेरइयस्स जहन्नेणं दसवाससहस्साइं समयूणाइं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं समयूणाइं।
एवं सव्वेसिं पढमसमयगाणं एगं समयं।
अपढमसमयतिरिक्खजोणियाणं जहन्नेणं खुड्डागं भवग्गहणं समयूणं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं समयूणाइं।
मनुस्साणं जहन्नेणं खुड्डागं भवग्गहणं समयूणं, उक्कोसेणं Translated Sutra: जो आचार्यादि ऐसा कहते हैं कि संसारसमापन्नक जीव आठ प्रकार के हैं, उनके अनुसार – १. प्रथमसमय – नैरयिक, २. अप्रथमसमयनैरयिक, ३. प्रथमसमयतिर्यग्योनिक, ४. अप्रथमसमयतिर्यग्योनिक, ५. प्रथमसमय मनुष्य ६. अप्रथमसमयमनुष्य, ७. प्रथमसमयदेव और ८. अप्रथमसमयदेव। स्थिति – भगवन् ! प्रथमसमयनैरयिक की स्थिति कितनी है ? गौतम ! जघन्य | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
नवविध जीव प्रतिपत्ति |
Hindi | 367 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं जेते एवमाहंसु नवविधा संसारसमावन्नगा जीवा ते एवमाहंसु–पुढविक्काइया आउक्काइया तेउक्काइया वाउक्काइया वणस्सइकाइया बेइंदिया तेइंदिया चउरिंदिया पंचेंदिया।
ठिती सव्वेसिं भाणियव्वा।
पुढविक्काइयाणं संचिट्ठणा पुढविकालो जाव वाउक्काइयाणं, वणस्सईणं वणस्सतिकालो, बेइंदिया तेइंदिया चउरिंदिया संखेज्जं कालं, पंचेंदियाणं सागरोवमसहस्सं सातिरेगं।
अंतरं सव्वेसिं अनंतं कालं, वणस्सतिकाइयाणं असंखेज्जं कालं।
अप्पाबहुगं–सव्वत्थोवा पंचिंदिया, चउरिंदिया विसेसाहिया, तेइंदिया विसेसाहिया, बेइंदिया विसेसाहिया, तेउक्काइया असंखेज्जगुणा, पुढविकाइया विसेसाहिया, Translated Sutra: जो नौ प्रकार के संसारसमापन्नक जीवों का कथन करते हैं, वे ऐसा कहते हैं – १. पृथ्वीकायिक, २. अप् – कायिक, ३. तेजस्कायिक, ४. वायुकायिक, ५. वनस्पतिकायिक, ६. द्वीन्द्रिय, ७. त्रीन्द्रिय, ८. चतुरिन्द्रिय और ९. पंचेन्द्रिय। सबकी स्थिति कहना। पृथ्वीकायिकों की संचिट्ठणा पृथ्वीकाल है, इसी तरह वायुकाय पर्यन्त कहना। वनस्पतिकाय | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशविध जीव प्रतिपत्ति |
Hindi | 368 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं जेते एवमाहंसु दसविधा संसारसमावन्नगा जीवा ते एवमाहंसु, तं जहा–पढमसमयएगिंदिया अपढमसमयएगिंदिया पढमसमयबेइंदिया अपढमसमयबेइंदिया पढमसमयतेइंदिया अपढमसमय-तेइंदिया पढमसमयचउरिंदिया अपढमसमयचउरिंदिया पढमसमयपंचिंदिया अपढमसमयपंचिंदिया।
पढमसमयएगिंदियस्स णं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता?
गोयमा! एगं समयं। अपढमसमयएगिंदियस्स जहन्नेणं खुड्डागं भवग्गहणं समयूणं, उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साइं समयूणाइं। एवं सव्वेसिं पढमसमयिकाणं एगं समयं, अपढमसमयिकाणं जहन्नेणं खुड्डागं भवग्गहणं समयूणं, उक्कोसेणं जा जस्स ठिती सा समयूणा जाव पंचिंदियाणं तेत्तीसं सागरोवमाइं Translated Sutra: जो आचार्यादि दस प्रकार के संसारसमापन्नक जीवों का प्रतिपादन करते हैं, वे कहते हैं – १. प्रथमसमय – एकेन्द्रिय, २. अप्रथमसमयएकेन्द्रिय, ३. प्रथमसमयद्वीन्द्रिय, ४. अप्रथमसमयद्वीन्द्रिय, ५. प्रथमसमयत्रीन्द्रिय, ६. अप्रथमसमयत्रीन्द्रिय, ७. प्रथमसमयचतुरिन्द्रिय, ८. अप्रथमसमयचतुरिन्द्रिय, ९. प्रथमसमयपंचेन्द्रिय | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सर्व जीव प्रतिपत्ति |
द्विविध सर्वजीव | Hindi | 369 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं सव्वजीवाभिगमे? सव्वजीवेसु णं इमाओ नव पडिवत्तीओ एवमाहिज्जंति। एगे एवमाहंसु–दुविहा सव्वजीवा पन्नत्ता जाव दसविहा सव्वजीवा पन्नत्ता।
तत्थ णं जेते एवमाहंसु दुविहा सव्वजीवा पन्नत्ता, ते एवमाहंसु, तं जहा– सिद्धा चेव असिद्धा चेव।
सिद्धे णं भंते! सिद्धेत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! साइए अपज्जवसिए।
असिद्धे णं भंते! असिद्धेत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! असिद्धे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–अनाइए वा अपज्जवसिए, अनाइए वा सपज्जवसिए।
सिद्धस्स णं भंते! केवतिकालं अंतरं होति? गोयमा! साइयस्स अपज्जवसियस्स नत्थि अंतरं।
असिद्धस्स णं भंते! केवइयं अंतरं होइ? गोयमा! अनाइयस्स Translated Sutra: भगवन् ! सर्वजीवाभिगम क्या है ? गौतम ! सर्वजीवाभिगम मे नौ प्रतिपत्तियाँ कही हैं। उनमें कोई ऐसा कहते हैं कि सब जीव दो प्रकार के हैं यावत् दस प्रकार के हैं। जो दो प्रकार के सब जीव कहते हैं, वे ऐसा कहते हैं, यथा – सिद्ध और असिद्ध। भगवन् ! सिद्ध, सिद्ध के रूप में कितने समय तक रह सकता है ? गौतम ! सादिअपर्यवसित। भगवन् | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सर्व जीव प्रतिपत्ति |
द्विविध सर्वजीव | Hindi | 370 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अहवा दुविहा सव्वजीवा पन्नत्ता, तं जहा–सइंदिया चेव अनिंदिया चेव।
सइंदिए णं भंते! सइंदिएत्ति कालतो केवचिरं होइ? गोयमा! सइंदिए दुविहे पन्नत्ते–अनाइए वा अपज्जवसिए, अनाइए वा सपज्जवसिए, अनिंदिए साइए वा अपज्जवसिए। दोण्हवि अंतरं नत्थि।
अप्पाबहुयं–सव्वत्थोवा अनिंदिया, सइंदिया अनंतगुणा।
अहवा दुविहा सव्वजीवा पन्नत्ता, तं जहा–सकाइया चेव अकाइया चेव।
सकाइयस्स संचिट्ठणंतरं जहा असिद्धस्स, अकाइयस्स जहा सिद्धस्स।
अप्पाबहुयं–सव्वत्थोवा अकाइया, सकाइया अनंतगुणा।
अहवा दुविहा सव्वजीवा पन्नत्ता, तं जहा–अजोगी य सजोगी य तधेव।
अहवा दुविहा सव्वजीवा पन्नत्ता, तं जहा–सवेदगा Translated Sutra: अथवा सब जीव दो प्रकार के हैं, यथा – सेन्द्रिय और अनिन्द्रिय। भगवन् ! सेन्द्रिय, सेन्द्रिय के रूप में काल से कितने समय तक रहता है ? गौतम ! सेन्द्रिय जीव दो प्रकार के हैं – अनादि – अपर्यवसित और अनादि – सपर्य – वसित। अनिन्द्रिय में सादि – अपर्यवसित हैं। दोनों में अन्तर नहीं है। सेन्द्रिय की वक्तव्यता असिद्ध की | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सर्व जीव प्रतिपत्ति |
द्विविध सर्वजीव | Hindi | 371 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अहवा दुविहा सव्वजीवा पन्नत्ता, तं जहा नाणी चेव अन्नाणी चेव।
नाणी णं भंते! नाणीत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! नाणी दुविहे पन्नत्ते–सादीए वा अपज्जवसिए, सादीए वा सपज्जवसिए। तत्थ णं जेसे सादीए सपज्जवसिते से जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं छावट्ठिसागरोवमाइं सातिरेगाइं।
अन्नाणी तिविहे जहा सवेदए।
नाणिस्स णं भंते! केवतियं कालं अंतरं होति? गोयमा! सादीयस्स अपज्जवसियस्स नत्थि अंतरं, सादीयस्स सपज्जवसियस्स जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अनंतं कालं जाव अवड्ढं पोग्गलपरियट्टं देसूणं।
अन्नाणिस्स अंतरं अनादीयस्स अपज्जवसियस्स नत्थि अंतरं, अनादीयस्स सपज्जवसियस्स Translated Sutra: अथवा सब जीव दो प्रकार के हैं – ज्ञानी और अज्ञानी। भगवन् ! ज्ञानी, ज्ञानीरूप में कितने काल तक रहता है ? गौतम ! ज्ञानी दो प्रकार के हैं – सादि – अपर्यवसित और सादि – सपर्यवसित। इनमें जो सादि – सपर्यवसित हैं वे जघन्य से अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट साधिक ६६ सागरोपम तक रह सकते हैं। अज्ञानी का कथन सवेदक समान है। ज्ञानी | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सर्व जीव प्रतिपत्ति |
द्विविध सर्वजीव | Hindi | 372 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अहवा दुविहा सव्वजीवा पन्नत्ता, तं जहा–आहारगा चेव अनाहारगा चेव।
आहारए णं भंते! आहारएत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! आहारए दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–छउमत्थआहारए य केवलिआहारए य।
छउमत्थआहारगस्स जहन्नेणं खुड्डागं भवग्गहणं दुसमयूणं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं–असंखेज्जाओ उस्सप्पिणिओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ अंगुलस्स असंखेज्जतिभागं।
केवलिआहारए णं भंते! केवलिआहारएत्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी।
अनाहारए णं भंते! अनाहारएत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! अनाहारए दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–छउमत्थअनाहारए य केवलिअनाहारए य।
छउमत्थअनाहारए Translated Sutra: अथवा सर्व जीव दो प्रकार के हैं – आहारक और अनाहारक। भगवन् ! आहारक, आहारक के रूप में कितने समय तक रहता है ? गौतम ! आहारक दो प्रकार के हैं – छद्मस्थ – आहारक और केवलि – आहारक। छद्मस्थ – आहारक, आहारक के रूप में ? गौतम ! जघन्य दो समय कम क्षुल्लकभव और उत्कृष्ट से असंख्येय काल तक यावत् क्षेत्र की अपेक्षा अंगुल का असंख्यातवाँ | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सर्व जीव प्रतिपत्ति |
द्विविध सर्वजीव | Hindi | 373 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अहवा दुविहा सव्वजीवा पन्नत्ता, तं जहा–भासगा य अभासगा य।
भासए णं भंते! भासएत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं।
अभासए णं भंते! अभासएत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! अभासए दुविहे पन्नत्ते–साइए वा अपज्जवसिए, साइए वा सपज्जवसिए। तत्थ णं जेसे साइए सपज्जवसिए से जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो।
भासगस्स णं भंते! केवतिकालं अंतरं होति? जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सति-कालो।
अभासगस्स साइयस्स अपज्जवसियस्स नत्थि अंतरं, साइयस्स सपज्जवसियस्स जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं।
अप्पाबहुयं–सव्वत्थोवा Translated Sutra: अथवा सर्व जीव दो प्रकार के हैं – सभाषक और अभाषक। भगवन् ! सभाषक, सभाषक के रूप में कितने काल तक रहता है ? गौतम ! जघन्य से एक समय, उत्कृष्ट से अन्तर्मुहूर्त्त। गौतम ! अभाषक दो प्रकार के हैं – सादि – अपर्यवसित और सादि – सपर्यवसित। इनमें जो सादि – सपर्यवसित अभाषक हैं, वह जघन्य से अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट में अनन्त | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सर्व जीव प्रतिपत्ति |
द्विविध सर्वजीव | Hindi | 374 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अहवा दुविहा सव्वजीवा पन्नत्ता, तं जहा–चरिमा चेव अचरिमा चेव।
चरिमे णं भंते! चरिमेत्ति कालतो केवचिरं होति? गोयमा! चरिमे अनादीए सपज्जवसिए।
अचरिमे दुविहे पन्नत्ते–अनाइए वा अपज्जवसिए, साइए वा अपज्जवसिए। दोण्हंपि नत्थि अंतरं।
अप्पाबहुयं–सव्वत्थोवा अचरिमा, चरिमा अनंतगुणा। सेत्तं दुविहा सव्वजीवा।
सिद्धसइंदियकाए, जोए वेए कसायलेसा य ।
नाणुवओगाहारा, भाससरीरी य चरिमे य ॥ Translated Sutra: अथवा सर्व जीव दो प्रकार के हैं – चरम और अचरम। चरम अनादि – सपर्यवसित हैं। अचरम दो प्रकार के हैं – अनादि – अपर्यवसित और सादि – अपर्यवसित। दोनों का अन्तर नहीं है। अल्पबहुत्व में सबसे थोड़े अचरम हैं, उनसे चरम अनन्तगुण हैं। प्रतिपत्ति – १० – सर्वजीव – २ | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सर्व जीव प्रतिपत्ति |
त्रिविध सर्वजीव | Hindi | 375 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं जेते एवमाहंसु तिविहा सव्वजीवा पन्नत्ता, ते एवमाहंसु, तं जहा–सम्मदिट्ठी मिच्छादिट्ठी सम्मामिच्छादिट्ठी।
सम्मदिट्ठी णं भंते! सम्मदिट्ठीत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! सम्मदिट्ठी दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–साइए वा अपज्जवसिए, साइए वा सपज्जवसिए। तत्थ जेसे साइए सपज्जवसिते, से जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं छावट्ठिं सागरोवमाइं सातिरेगाइं।
मिच्छादिट्ठी तिविहे पन्नत्ते–अनाइए वा अपज्जवसिते, अनाइए वा सपज्जवसिते, साइए वा सपज्जवसिए। तत्थ जेसे साइए सपज्जवसिए, से जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अनंतं कालं जाव अवड्ढं पोग्गलपरियट्टं देसूणं।
सम्मामिच्छादिट्ठी Translated Sutra: जो ऐसा कहते हैं कि सर्व जीव तीन प्रकार के हैं, उनका मंतव्य इस प्रकार है – यथा सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि। भगवन् ! सम्यग्दृष्टि काल से सम्यग्दृष्टि कब तक रह सकता है ? गौतम ! सम्यग्दृष्टि दो प्रकार के हैं – सादि – अपर्यवसित और सादि – सपर्यवसित। जो सादि – सपर्यवसित सम्यग्दृष्टि हैं, वे | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सर्व जीव प्रतिपत्ति |
त्रिविध सर्वजीव | Hindi | 376 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अहवा तिविहा सव्वजीवा पन्नत्ता–परित्ता अपरित्ता नोपरित्तानोअपरित्ता।
परित्ते णं भंते! परित्तेत्ति कालतो केवचिरं होति? परित्ते दुविहे पन्नत्ते–कायपरित्ते य संसार-परित्ते य।
कायपरित्ते णं भंते! कायपरित्तेत्ति कालतो केवचिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुढविकालो।
संसारपरित्ते णं भंते! संसारपरित्तेत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अनंतं कालं जाव अवड्ढं पोग्गलपरियट्टं देसूणं।
अपरित्ते णं भंते! अपरित्तेत्ति कालओ केवचिरं होति? अपरित्ते दुविहे पन्नत्ते–कायअपरित्ते य संसारअपरित्ते य।
कायअपरित्ते जहन्नेणं Translated Sutra: अथवा सर्व जीव तीन प्रकार के हैं – परित्त, अपरित्त और नोपरित्त – नोअपरित्त। परित्त दो प्रकार के हैं – कायपरित्त और संसारपरित्त। भगवन् ! कायपरित्त, कायपरित्त के रूप में कितने काल तक रहता है ? गौतम ! जघन्य से अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कर्ष से असंख्येय काल तक यावत् असंख्येय लोक। भन्ते ! संसारपरित्त, संसारपरित्त | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सर्व जीव प्रतिपत्ति |
त्रिविध सर्वजीव | Hindi | 377 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अहवा तिविहा सव्वजीवा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा अपज्जत्तगा नोपज्जत्तगनोअपज्जत्तगा।
पज्जत्तगे णं भंते! पज्जत्तगेत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमसतपुहत्तं साइरेगं।
अपज्जत्तगे णं भंते! अपज्जत्तगेत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणवि अंतोमुहुत्तं।
नोपज्जत्तणोअपज्जत्तए साइए अपज्जवसिते।
पज्जत्तगस्स अंतरं जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणवि अंतोमुहुत्तं।
अपज्जत्तगस्स अंतरं जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमसयपुहत्तं साइरेगं। नोपज्जत्तग-नोअपज्जत्तगस्स नत्थि अंतरं।
अप्पाबहुयं–सव्वत्थोवा Translated Sutra: अथवा सब जीव तीन तरह के हैं – पर्याप्तक, अपर्याप्तक और नोपर्याप्तक – नोअपर्याप्तक। भगवन् ! पर्याप्तक, पर्याप्तक रूप में कितने समय तक रहता है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कर्ष से अधिक सागरो – पमशतपृथक्त्व। भगवन् ! अपर्याप्तक, अपर्याप्तक के रूप में कितने समय तक रह सकता है ? गौतम ! जघन्य उत्कर्ष से भी अन्तर्मुहूर्त्त। | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सर्व जीव प्रतिपत्ति |
त्रिविध सर्वजीव | Hindi | 378 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अहवा तिविहा सव्वजीवा पन्नत्ता, तं जहा–सुहुमा बायरा नोसुहुमनोबायरा।
सुहुमे णं भंते! सुहुमेत्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुढविकालो।
बायरे णं भंते! बायरेत्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं–असंखेज्जाओ उस्सप्पिणीओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ अंगुलस्स असंखेज्जइभागो।
नोसुहुमनोबायरे साइए अपज्जवसिए।
सुहुमस्स अंतरं बायरकालो। बायरस्स अंतरं सुहुमकालो। नोसुहुमनोबायरस्स अंतरं नत्थि।
अप्पाबहुयं–सव्वत्थोवा नोसुहुमनोबायरा, बायरा अनंतगुणा, सुहुमा असंखेज्जगुणा। Translated Sutra: अथवा सर्व जीव तीन प्रकार के हैं – सूक्ष्म, बादर और नोसूक्ष्म – नोबादर। सूक्ष्म, सूक्ष्म के रूप में जघन्य से अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कर्ष से असंख्येय काल अर्थात् पृथ्वीकाल तक रहता है। बादर, बादर के रूप में जघन्य अन्त – मूहूर्त्त और उत्कृष्ट असंख्येयकाल – असंख्येय उत्सर्पिणी – अवसर्पिणी रूप है कालमार्गणा | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सर्व जीव प्रतिपत्ति |
त्रिविध सर्वजीव | Hindi | 379 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: Translated Sutra: अथवा सर्व जीव तीन प्रकार के हैं – संज्ञी, असंज्ञी, नोसंज्ञी – नोअसंज्ञी। संज्ञी, संज्ञी रूप में जघन्य से अन्त – मूहूर्त्त और उत्कृष्ट से सागरोपमशतपृथक्त्व से कुछ अधिक समय तक रहता है। असंज्ञी जघन्य से अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट से वनस्पतिकाल। नोसंज्ञी – नोअसंज्ञी सादि – अपर्यवसित है। संज्ञी का अन्तर जघन्य | |||||||||
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सर्व जीव प्रतिपत्ति |
त्रिविध सर्वजीव | Hindi | 381 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अहवा तिविहा सव्वजीवा तं जहा तसा थावरा नोतसानोथावरा तसे णं भंते कालओ अजहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं दो सागरोवमसहस्साइं साइरेगाइं थावरस्स संचिट्ठणा वणस्सतिकालो नोतस-नोथावरा सातीए अपज्जवसिए तसस्स अंतरं वणस्सतिकालो थावरस्स तसकालो नोतसनोथावरस्स नत्थि अंतरं अप्पाबहुगं सव्वत्थोवा तसा, नोतसानोथावरा अनंतगुणा, थावरा अनंत गुणा, से तं तिविधा सव्वजीवा। Translated Sutra: अथवा सर्व जीव तीन प्रकार के हैं – त्रस, स्थावर और नोत्रस – नोस्थावर। त्रस, त्रस के रूप में जघन्य अन्त – र्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट साधिक दो हजार सागरोपम तक रहता है। स्थावर, स्थावर के रूप में वनस्पतिकाल पर्यन्त रहता है। नोत्रस – नोस्थावर सादि – अपर्यवसित हैं। त्रस का अन्तर वनस्पतिकाल है और स्थावर का अन्तर साधिक | |||||||||
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सर्व जीव प्रतिपत्ति |
चतुर्विध सर्वजीव | Hindi | 382 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं जेते एवमाहंसु चउव्विहा सव्वजीवा पन्नत्ता ते एवमाहंसु, तं जहा–मनजोगी वइजोगी कायजोगी अजोगी।
मनजोगी णं भंते! मणजोगित्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं। एवं वइजोगीवि।
कायजोगी णं भंते! कायजोगित्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो।
अजोगी साइए अपज्जवसिए।
मनजोगिस्स अंतरं जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सइकालो। एवं वइजोगिस्स वि।
कायजोगिस्स जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं।
अयोगिस्स नत्थि अंतरं।
अप्पाबहुयं–सव्वत्थोवा मनजोगी, वइजोगी असंखेज्जगुणा, अजोगी अनंतगुणा, Translated Sutra: जो ऐसा कहते हैं कि सर्व जीव चार प्रकार के हैं वे चार प्रकार ये हैं – मनोयोगी, वचनयोगी, काययोगी और अयोगी। मनोयोगी, मनोयोगी रूप में जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त तक रहता है। वचनयोगी का भी अन्तर यही है। काययोगी जघन्य से अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट से वनस्पतिकाल तक रहता है। अयोगी सादि – अपर्य – वसित | |||||||||
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सर्व जीव प्रतिपत्ति |
चतुर्विध सर्वजीव | Hindi | 383 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अहवा चउव्विहा सव्वजीवा पन्नत्ता, तं जहा–इत्थिवेयगा पुरिसवेयगा नपुंसगवेयगा अवेयगा।
इत्थिवेयए णं भंते! इत्थिवेयएत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! एगेण आएसेणं जहा कायट्ठितीए।
पुरिसवेदस्स जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमसयपुहत्तं सातिरेगं।
नपुंसगवेदस्स जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो।
अवेयए दुविहे पन्नत्ते–साइए वा अपज्जवसिते, साइए वा सपज्जवसिए, तत्थ णं जे से
सादीए सपज्जवसिते से जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं।
इत्थिवेदस्स अंतरं जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो।
पुरिसवेदस्स अंतरं जहन्नेणं एगं समयं, उक्कोसेणं Translated Sutra: अथवा सर्व जीव चार प्रकार के हैं – स्त्रीवेदक, पुरुषवेदक, नपुंसकवेदक और अवेदक। स्त्रीवेदक, स्त्रीवेदक के रूप में विभिन्न अपेक्षा से (पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक) एक सौ दस, एक सौ, अठारह, चौदह पल्योपम तक अथवा पल्योपम पृथक्त्व रह सकता है। जघन्य से एक समय तक रह सकता है। पुरुषवेदक, पुरुषवेदक के रूप में जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त | |||||||||
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सर्व जीव प्रतिपत्ति |
चतुर्विध सर्वजीव | Hindi | 384 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अहवा चउव्विहा सव्वजीवा पन्नत्ता, तं जहा–चक्खुदंसणी अचक्खुदंसणी ओहिदंसणी केवलदंसणी।
चक्खुदंसणी णं भंते! चक्खुदंसणीत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमसहस्सं सातिरेगं।
अचक्खुदंसणी दुविहे पन्नत्ते–अणादिए वा अपज्जवसिए, अनादिए वा सपज्जवसिए।
ओहिदंसणी जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं दो छावट्ठीओ सागरोवमाणं साइरेगाओ।
केवलदंसणी साइए अपज्जवसिए।
चक्खुदंसणिस्स अंतरं जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो।
अचक्खुदंसणिस्स दुविधस्स नत्थि अंतरं।
ओहिदंसणिस्स जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो।
केवलदंसणिस्स Translated Sutra: अथवा सर्व जीव चार प्रकार के हैं – चक्षुर्दर्शनी, अचक्षुर्दर्शनी, अवधिदर्शनी और केवलीदर्शनी। चक्षुर्दर्शनी काल से जघन्य से अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट साधिक एक हजार सागरोपम तक रह सकता है। अचक्षुर्दर्शनी दो प्रकार के हैं – अनादि – अपर्यवसित और अनादि – सपर्यवसित। अवधिदर्शनी जघन्य से एक समय और उत्कर्ष से | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सर्व जीव प्रतिपत्ति |
चतुर्विध सर्वजीव | Hindi | 385 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अहवा चउव्विहा सव्वजीवा पन्नत्ता, तं जहा–संजया असंजया संजयासंजया नोसंजया-नोअसंजयानोसंजयासंजया।
संजए णं भंते! संजएत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी
असंजया जहा अन्नाणी।
संजतासंजते जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी।
नोसंजतनोअसंजतनोसंजतासंजते साइए अपज्जवसिए।
संजयस्स संजयासंजयस्स दोण्हवि अंतरं जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अवड्ढं पोग्गल-परियट्टं देसूणं। असंजयस्स आदि दुवे नत्थि अंतरं, साइयस्स सपज्जवसियस्स जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी। चउत्थगस्स नत्थि अंतरं
अप्पाबहुयं–सव्वत्थोवा Translated Sutra: अथवा सर्व जीव चार प्रकार के हैं – संयत, असंयत, संयतासंयत और नोसंयत – नोअसंयत – नोसंयतासंयत। संयत, संयतरूप में जघन्य एक समय और उत्कृष्ट देशोन पूर्वकोटि तक रहता है। असंयत का कथन अज्ञानी की तरह कहना। संयतासंयत जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट देशोन पूर्वकोटि। नोसंयत – नोअसंयत – नोसंयतासंयत सादि – अपर्यवसित | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सर्व जीव प्रतिपत्ति |
४ थी ९ पंचविध यावत् दशविध सर्वजीव | Hindi | 389 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं जेते एवमाहंसु छव्विहा सव्वजीवा पन्नत्ता ते एवमाहंसु, तं जहा–आभिनिबोहियनाणी सुयनाणी ओहिनाणी मनपज्जवनाणी केवलनाणी अन्नाणी।
आभिनिबोहियनाणी णं भंते! आभिनिबोहियणाणित्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं छावट्ठिं सागरोवमाइं साइरेगाइं। एवं सुयनाणीवि।
ओहिनाणी णं भंते! ओहिनाणीत्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं छावट्ठिं सागारोवमाइं साइरेगाइं।
मनपज्जवनाणी णं भंते! मनपज्जवनाणीत्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी।
केवलनाणी णं भंते! केवलनाणीत्ति कालओ केवचिरं होइ? Translated Sutra: जो ऐसा कहते हैं कि सब जीव छह प्रकार के हैं, उनके अनुसार – आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधि – ज्ञानी, मनःपर्यायज्ञानी, केवलज्ञानी और अज्ञानी यह छ हैं। आभिनिबोधिकज्ञानी, आभिनिबोधिकज्ञानी के रूप में जघन्य से अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट से साधिक छियासठ सागरोपम तक रह सकता है। श्रुतज्ञानी का भी यहीं काल है। | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सर्व जीव प्रतिपत्ति |
४ थी ९ पंचविध यावत् दशविध सर्वजीव | Hindi | 390 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अहवा छव्विहा सव्वजीवा पन्नत्ता, तं जहा–एगिंदिया बेंदिया तेंदिया चउरिंदिया पंचेंदिया अनिंदिया।
संचिट्ठणंतरं जहा हेट्ठा।
अप्पाबहुयं–सव्वत्थोवा पंचेंदिया, चउरिंदिया विसेसाहिया, तेइंदिया विसेसाहिया, बेंदिया विसेसाहिया, अनिंदिया अनंतगुणा, एगिंदिया अनंतगुणा।
अहवा छव्विहा सव्वजीवा पन्नत्ता, तं जहा–ओरालियसरीरी वेउव्वियसरीरी आहारगसरीरी तेयगसरीरी कम्मगसरीरी असरीरी।
ओरालियसरीरी णं भंते! ओरालियसरीरीत्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं खुड्डागं भवग्गहणं दुसमऊणं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं जाव अंगुलस्स असंखेज्जतिभागं।
वेउव्वियसरीरी जहन्नेणं एक्कं समयं, Translated Sutra: अथवा सर्व जीव छह प्रकार के हैं – औदारिकशरीरी, वैक्रियशरीरी, आहारकशरीरी, तेजसशरीरी, कार्मण – शरीरी और अशरीरी। औदारिकशरीरी जघन्य से दो समय कम क्षुल्लकभवग्रहण और उत्कर्ष से असंख्येयकाल तक रहता है। यह असंख्येयकाल अंगुल के असंख्यातवें भाग के आकाशप्रदेशों के अपहारकाल के तुल्य है। वैक्रियशरीरी जघन्य से अन्तर्मुहूर्त्त | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सर्व जीव प्रतिपत्ति |
४ थी ९ पंचविध यावत् दशविध सर्वजीव | Hindi | 392 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अहवा सत्तविहा सव्वजीवा पन्नत्ता, तं जहा–कण्हलेस्सा नीललेस्सा काउलेस्सा तेउलेस्सा पम्हलेस्सा सुक्कलेस्सा अलेस्सा।
कण्हलेसे णं भंते! कण्हलेसत्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तमब्भहियाइं।
नीललेस्से णं भंते! णीललेस्सेत्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं दस सागरोवमाइं पलिओवमस्स असंखेज्जतिभागमब्भहियाइं।
काउलेस्से णं भंते! काउलेस्सेत्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिन्नि सागरोवमाइं पलिओवमस्स असंखेज्जतिभागमब्भहियाइं।
तेउलेस्से णं भंते! Translated Sutra: अथवा सर्व जीव सात प्रकार के कहे गये हैं – कृष्णलेश्या वाले यावत् शुक्ललेश्या वाले और अलेश्य। कृष्ण लेश्या वाला, कृष्णलेश्या वाले के रूप में जघन्य से अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कर्ष से अन्तर्मुहूर्त्त अधिक तेंतीस सागरोपम तक रह सकता है। नीललेश्या वाला जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कर्ष से पल्योपम का असंख्येयभाग | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सर्व जीव प्रतिपत्ति |
४ थी ९ पंचविध यावत् दशविध सर्वजीव | Hindi | 393 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं जेते एवमाहंसु अट्ठविहा सव्वजीवा पन्नत्ता ते एवमाहंसु, तं जहा–आभिनिबोहियनाणी सुयनाणी ओहि नाणी मनपज्जवनाणी केवलनाणी मतिअन्नाणी सुयअन्नाणी विभंगनाणी।
आभिनिबोहियनाणी णं भंते! आभिनिबोहियनाणित्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं छावट्ठिसागरोवमाइं सातिरेगाइं। एवं सुयनाणीवि।
ओहिनाणी णं भंते! ओहिणाणित्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं छावट्ठिसागरोवमाइं सातिरेगाइं।
मनपज्जवनाणी णं भंते! मनपज्जवनाणित्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी।
केवलनाणी णं भंते! Translated Sutra: जो ऐसा कहते हैं कि आठ प्रकार के सर्व जीव हैं, उनका मन्तव्य है कि सब जीव आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, मनःपर्यायज्ञानी, केवलज्ञानी, मति – अज्ञानी, श्रुत – अज्ञानी और विभंगज्ञानी हैं। आभिनिबो – धिकज्ञानी, आभिनिबोधिकज्ञानी के रूप में जघन्य से अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कर्ष से साधिक छियासठ सागरोपम | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सर्व जीव प्रतिपत्ति |
४ थी ९ पंचविध यावत् दशविध सर्वजीव | Hindi | 394 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अहवा अट्ठविहा सव्वजीवा पन्नत्ता, तं जहा–नेरइया, तिरिक्खजोणिया तिरिक्खजोणिणीओ मनुस्सा मनुस्सीओ देवा देवीओ सिद्धा।
नेरइए णं भंते! नेरइयत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं दस वाससहस्साइं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं।
तिरिक्खजोणिए णं भंते! तिरिक्खजोणिएत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो।
तिरिक्खजोणिणी णं भंते! तिरिक्खजोणिणीत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं पुव्वकोडिपुहत्तमब्भहियाइं। एवं मणूसे मणूसी।
देवे जहा नेरइए।
देवी णं भंते! देवीत्ति कालओ केवचिरं होति? Translated Sutra: अथवा सब जीव आठ प्रकार के कहे गये हैं, जैसे कि – नैरयिक, तिर्यग्योनिक, तिर्यग्योनिकी, मनुष्य, मनुष्यनी, देव, देवी और सिद्ध। नैरयिक, नैरयिक रूप में गौतम ! जघन्य से दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट तेंतीस सागरोपम तक रहता है। तिर्यग्योनिक जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कर्ष से अनन्तकाल तक रहता है। तिर्यग्योनिकी जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सर्व जीव प्रतिपत्ति |
४ थी ९ पंचविध यावत् दशविध सर्वजीव | Hindi | 395 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं जेते एवमाहंसु नवविधा सव्वजीवा पन्नत्ता ते एवमाहंसु, तं जहा–एगिंदिया बेंदिया तेंदिया चउरिंदिया नेरइया पंचेंदियतिरिक्खजोणिया मणूसा देवा सिद्धा।
एगिंदिए णं भंते! एगिंदियत्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो
बेंदिए णं भंते! बेंदिएत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जं कालं। एवं तेइंदिएवि, चउरिंदिएवि।
नेरइए णं भंते! नेरइएत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं दस वाससहस्साइं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं।
पंचेंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते! पंचेंदियतिरिक्खजोणिएत्ति कालओ केवचिरं Translated Sutra: जो ऐसा कहते हैं कि सर्व जीव नौ प्रकार के हैं, वे इस तरह बताते हैं – एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरि – न्द्रिय, नैरयिक, पंचेन्द्रियतिर्यग्योनिक, मनुष्य, देव, सिद्ध। एकेन्द्रिय, एकेन्द्रिय रूप में जघन्य से अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल तक रहता है। द्वीन्द्रिय जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त, उत्कृष्ट | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सर्व जीव प्रतिपत्ति |
४ थी ९ पंचविध यावत् दशविध सर्वजीव | Hindi | 396 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अहवा नवविधा सव्वजीवा पन्नत्ता, तं जहा–पढमसमयनेरइया अपढमसमयनेरइया पढमसमय-तिरिक्खजोणिया अपढमसमयतिरिक्खजोणिया पढमसमयमणूसा अपढमसमयमणूसा पढमसमय-देवा अपढमसमयदेवा सिद्धा य।
पढमसमयनेरइया णं भंते! पढमसमयनेरइएत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! एक्कं समयं।
अपढमसमयनेरइए णं भंते! अपढमसमयनेरइएत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं दस वाससहस्साइं समयूणाइं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं समयूणाइं।
पढमसमयतिरिक्खजोणिए णं भंते! पढमसमयतिरिक्खजोणिएत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! एक्कं समयं।
अपढमसमयतिरिक्खजोणिए णं भंते! अपढमसमयतिरिक्खजोणिएत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! Translated Sutra: अथवा सर्वजीव नौ प्रकार के – १.प्रथमसमयनैरयिक, २.अप्रथमसमयनैरयिक, ३.प्रथमसमयतिर्यग्योनिक, ४.अप्रथमसमयतिर्यग्योनिक, ५.प्रथमसमयमनुष्य, ६.अप्रथमसमयमनुष्य, ७.प्रथमसमयदेव, ८.अप्रथमसमयदेव ९.सिद्ध। प्रथमसमयनैरयिक, प्रथमसमयनैरयिक के रूपमें एक समय और अप्रथमसमयनैरयिक जघन्य एक समय कम १०००० वर्ष, उत्कर्ष से एक | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सर्व जीव प्रतिपत्ति |
४ थी ९ पंचविध यावत् दशविध सर्वजीव | Hindi | 397 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं जेते एवमाहंसु दसविधा सव्वजीवा पन्नत्ता ते एवमाहंसु, तं जहा–पुढविकाइया आउकाइया तेउकाइया वाउकाइया वणस्सतिकाइया बेंदिया तेंदिया चउरिंदिया पंचेंदिया अनिंदिया।
पुढविकाइए णं भंते! पुढविकाइएत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं– असंखेज्जाओ उस्सप्पिणीओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ असंखेज्जा लोया। एवं आउतेउवाउकाइए।
वणस्सतिकाइए णं भंते! वणस्सतिकाइएत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अनंतं कालं।
बेंदिए णं भंते! बेंदिएत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जं Translated Sutra: जो ऐसा कहते हैं कि सर्व जीव दस प्रकार के हैं, वे इस प्रकार कहते हैं, यथा – पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय और अनिन्द्रिय। भगवन् ! पृथ्वीकायिक, पृथ्वीकायिक के रूप में जघन्य से अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कर्ष से असंख्यातकाल तक, जो असंख्यात | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सर्व जीव प्रतिपत्ति |
४ थी ९ पंचविध यावत् दशविध सर्वजीव | Hindi | 398 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अहवा दसविहा सव्वजीवा पन्नत्ता, तं जहा–पढमसमयनेरइया अपढमसमयनेरइया पढमसमय-तिरिक्खजोणिया अपढमसमयतिरिक्खजोणिया पढमसमयमणूसा अपढमसमयमनूसा पढमसमय-देवा अपढमसमयदेवा पढमसमयसिद्धा अपढमसमयसिद्धा।
पढमसमयनेरइए णं भंते! पढमसमयनेरइएत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! एक्कं समयं।
अपढमसमयनेरइए णं भंते! अपढमसमयनेरइएत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं दस वाससहस्साइं समयूणाइं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं समयूणाइं।
पढमसमयतिरिक्खजोणिए णं भंते! पढमसमयतिरिक्खजोणिएत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! एक्कं समयं।
अपढमसमयतिरिक्खजोणिए णं भंते! अपढमसमयतिरिक्खजोणिएत्ति कालओ Translated Sutra: अथवा सर्व जीव दस प्रकार के हैं, यथा – १. प्रथमसमयनैरयिक, २. अप्रथमसमयनैरयिक, ३. प्रथमसमय – तिर्यग्योनिक, ४. अप्रथमसमयतिर्यग्योनिक, ५. प्रथमसमयमनुष्य, ६. अप्रथमसमयमनुष्य, ७. प्रथमसमयदेव, ८. अप्रथमसमयदेव, ९. प्रथमसमयसिद्ध और १०. अप्रथमसमयसिद्ध। प्रथमसमयनैरयिक, प्रथमसमयनैरयिक के रूप में ? एक समय तक। अप्रथमसमयनैरयिक | |||||||||
Jivajivabhigam | જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
द्वीप समुद्र | Gujarati | 175 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं मूलपासायवडेंसगस्स उत्तरपुरत्थिमेणं, एत्थ णं विजयस्स देवस्स सभा सुधम्मा पन्नत्ता–अद्धत्तेरसजोयणाइं आयामेणं, छ सक्कोसाइं जोयणाइं विक्खंभेणं, नव जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, अनेगखंभसतसंनिविट्ठा अब्भुग्गयसुकयवइरवेदियातोरनवररइयसालभंजिया सुसिलिट्ठ विसिट्ठ लट्ठ संठिय पसत्थवेरुलियविमलखंभा नानामणि-कनग-रयणखइय-उज्जलबहुसम-सुविभत्तभूमिभागा ईहामिय-उसभ-तुरगनरमगर-विहगवालग-किन्नररुरु-सरभचमर-कुंजरवनलय-पउमलय-भत्तिचित्ता खंभुग्गयवइरवेइयापरिगयाभिरामा विज्जाहरजमलजुयलजंतजुत्ताविव अच्चिसहस्समालणीया रूवगसहस्सकलिया भिसमाणा भिब्भिसमाणा चक्खुलोयणलेसा Translated Sutra: તે મૂલ પ્રાસાદાવતંસકની ઉત્તરપૂર્વમાં અહીં વિજયદેવની સુધર્માસભા કહી છે. તે ૧૨|| યોજન લાંબી, ૬| યોજન પહોળી અને નવ યોજન ઉર્ધ્વ ઉચ્ચત્વથી છે. અનેકશત સ્તંભ સંનિવિષ્ટ છે. અભ્યુદ્ગત સુકૃત વજ્રવેદિકા, શ્રેષ્ઠ તોરણ ઉપર રતિદાયી શાલભંજિકા, સુશ્લિષ્ટ – વિશિષ્ટ – લષ્ટ – સંસ્થિત – પ્રશસ્ત – વૈડૂર્ય – વિમલ સ્તંભ છે. વિવિધ | |||||||||
Jivajivabhigam | જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
द्वीप समुद्र | Gujarati | 163 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तीसे णं जगतीए उप्पिं बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महई एगा पउमवरवेदिया पन्नत्ता, सा णं पउमवर वेदिया अद्धजोयणं उड्ढं उच्चत्तेणं, पंच धनुसयाइं विक्खंभेणं, जगतीसमिया परिक्खेवेणं सव्वरयणामई अच्छा जाव पडिरूवा।
तीसे णं पउमवरवेइयाए अयमेयारूवे वण्णावासे पन्नत्ते, तं जहा–वइरामया नेमा रिट्ठामया पइट्ठाणा वेरुलियामया खंभा सुवण्णरुप्पामया फलगा लोहितक्खमईओ सूईओ वइरामया संधी नानामणिमया कलेवरा नानामणिमया कलेवरसंघाडा नानामणिमया रूवा नानामणिमया रूवसंघाडा अंकामया पक्खा पक्खवाहाओ जोतिरसामया वंसा वंसकवेल्लुया रययामईओ पट्टियाओ जातरूवमईओ ओहाडणीओ वइरामईओ उवरिपुंछणीओ Translated Sutra: તે જગતીની ઉપર બહુમધ્ય દેશભાગમાં અહીં એક મોટી પદ્મવર વેદિકા છે. તે પદ્મવર વેદિકા ઉર્ધ્વ ઉચ્ચત્વથી અર્દ્ધ યોજન, ૫૦૦ ધનુષ વિષ્કંભથી, સર્વરત્નમય, જગતી સમાન પરિધિથી છે. તથા સર્વ રત્નમયી, સ્વચ્છ યાવત્ પ્રતિરૂપ છે. તે પદ્મવર વેદિકાનું વર્ણન આ પ્રમાણે છે – વજ્રમય નેમ, રિષ્ટરત્નમય પ્રતિષ્ઠાન, વૈડૂર્યમય સ્તંભ, સોના | |||||||||
Jivajivabhigam | જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
द्वीप समुद्र | Gujarati | 164 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तीसे णं जगतीए उप्पिं पउमवरवेइयाए बाहिं, एत्थ णं महेगे वनसंडे पन्नत्ते–देसूणाइं दो जोयणाइं चक्कवालविक्खंभेणं, जगतीसमए परिक्खेवेणं, किण्हे किण्होभासे नीले नीलोभासे हरिए हरिओभासे सीए सीओभासे निद्धे निद्धोभासे तिव्वे तिव्वोभासे किण्हे किण्हच्छाए नीले नीलच्छाए हरिए हरियच्छाए सीए सीयच्छाए निद्धे निद्धच्छाए तिव्वे तिव्वच्छाए घनकडियकडच्छाए रम्मे महामेहनिकुरंबभूए।
ते णं पायवा मूलमंतो कंदमंतो खंधमंतो तयामंतो सालमंतो पवालमंतो पत्तमंतो पुप्फमंतो फलमंतो बीयमंतो अनुपुव्वसुजायरुइलवट्टभावपरिणया एक्कखंधी अनेगसाहप्पसाहविडिमा अनेगनरवाम सुप्पसारिय अगेज्झ Translated Sutra: તે જગતીની ઉપર બહારની પદ્મવરવેદિકામાં અહીં એક મોટું વનખંડ કહ્યું છે. તે દેશોન બે યોજન ચક્રવાલ વિષ્કંભથી છે અને તેની પરિધિ જગતી સમાન છે. તે વનખંડ કૃષ્ણ, કૃષ્ણ આભાવાળું યાવત્ અનેક શકટ – રથ – યાન – યુગ્ય પરિમોચન, સુરમ્ય, પ્રાસાદીય, શ્લક્ષ્ણ, લષ્ટ, ઘૃષ્ટ, મૃષ્ટ, નીરજ, નિષ્પંક, નિર્મળ, નિષ્કંટકછાયા, પ્રભા – કિરણ – ઉદ્યોત | |||||||||
Jivajivabhigam | જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
द्वीप समुद्र | Gujarati | 167 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवस्स दीवस्स विजये नामं दारे पन्नत्ते? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमेणं पणयालीसं जोयणसहस्साइं अबाधाए जंबुद्दीवे दीवे पुरच्छिमपेरंते लवणसमुद्द-पुरच्छिमद्धस्स पच्चत्थिमेणं सीताए महानदीए उप्पिं, एत्थ णं जंबुद्दीवस्स दीवस्स विजये नामं दारे पन्नत्ते–अट्ठ जोयणाइं उढ्ढं उच्चत्तेणं, चत्तारि जोयणाइं विक्खंभेणं, तावतियं चेव पवेसेणं, ...
...सेए वरकनगथूभियागे ईहामिय उसभ तुरग नर मगर विहग वालग किन्नर रुरु सरभ चमर कुंजर वनलय पउमलयभत्तिचित्ते खंभुग्गतवइरवेदियापरिगताभिरामे विज्जाहरजमलजुयलजंतजुत्ते इव अच्चीसहस्समालिणीए रूवगसहस्सकलिए Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૬૬ | |||||||||
Jivajivabhigam | જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
सर्व जीव प्रतिपत्ति |
चतुर्विध सर्वजीव | Gujarati | 384 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अहवा चउव्विहा सव्वजीवा पन्नत्ता, तं जहा–चक्खुदंसणी अचक्खुदंसणी ओहिदंसणी केवलदंसणी।
चक्खुदंसणी णं भंते! चक्खुदंसणीत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमसहस्सं सातिरेगं।
अचक्खुदंसणी दुविहे पन्नत्ते–अणादिए वा अपज्जवसिए, अनादिए वा सपज्जवसिए।
ओहिदंसणी जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं दो छावट्ठीओ सागरोवमाणं साइरेगाओ।
केवलदंसणी साइए अपज्जवसिए।
चक्खुदंसणिस्स अंतरं जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो।
अचक्खुदंसणिस्स दुविधस्स नत्थि अंतरं।
ओहिदंसणिस्स जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो।
केवलदंसणिस्स Translated Sutra: અથવા સર્વે જીવો ચાર ભેદે છે – ચક્ષુર્દર્શની, અચક્ષુર્દર્શની, અવધિદર્શની, કેવળદર્શની. ભગવન્ ! ચક્ષુર્દર્શની, ચક્ષુર્દર્શની રૂપે જઘન્યથી અંતર્મુહૂર્ત્ત, ઉત્કૃષ્ટથી સાતિરેક હજાર સાગરોપમ રહે. અચક્ષુર્દર્શની બે ભેદે છે – અનાદિ અપર્યવસિત, અનાદિ સપર્યવસિત. અવધિદર્શનીની જઘન્ય એક સમય ઉત્કૃષ્ટ સાતિરેક બે છાસઠ | |||||||||
Jivajivabhigam | જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
सर्व जीव प्रतिपत्ति |
चतुर्विध सर्वजीव | Gujarati | 385 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अहवा चउव्विहा सव्वजीवा पन्नत्ता, तं जहा–संजया असंजया संजयासंजया नोसंजया-नोअसंजयानोसंजयासंजया।
संजए णं भंते! संजएत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी
असंजया जहा अन्नाणी।
संजतासंजते जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी।
नोसंजतनोअसंजतनोसंजतासंजते साइए अपज्जवसिए।
संजयस्स संजयासंजयस्स दोण्हवि अंतरं जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अवड्ढं पोग्गल-परियट्टं देसूणं। असंजयस्स आदि दुवे नत्थि अंतरं, साइयस्स सपज्जवसियस्स जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी। चउत्थगस्स नत्थि अंतरं
अप्पाबहुयं–सव्वत्थोवा Translated Sutra: અથવા સર્વે જીવો ચાર ભેદે કહ્યા છે. તે આ રીતે – સંયત, અસંયત, સંયતાસંયત, નોસંયત – નોઅસંયત – નોસંયતા સંયત. ભગવન્ ! સંયત, સંયતરૂપે કેટલો કાળ રહે ? જઘન્ય એક સમય, ઉત્કૃષ્ટ દેશોન પૂર્વકોડી. અસંયતને અજ્ઞાની માફક કહેવા. સંયતાસંયત, જઘન્યથી અંતર્મુહૂર્ત્ત, ઉત્કૃષ્ટ દેશોન પૂર્વકોડી. નોસંયત – નોઅસંયત – નોસંયતાસંયત જીવો સાદિ | |||||||||
Jivajivabhigam | જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
सर्व जीव प्रतिपत्ति |
४ थी ९ पंचविध यावत् दशविध सर्वजीव | Gujarati | 389 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं जेते एवमाहंसु छव्विहा सव्वजीवा पन्नत्ता ते एवमाहंसु, तं जहा–आभिनिबोहियनाणी सुयनाणी ओहिनाणी मनपज्जवनाणी केवलनाणी अन्नाणी।
आभिनिबोहियनाणी णं भंते! आभिनिबोहियणाणित्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं छावट्ठिं सागरोवमाइं साइरेगाइं। एवं सुयनाणीवि।
ओहिनाणी णं भंते! ओहिनाणीत्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं छावट्ठिं सागारोवमाइं साइरेगाइं।
मनपज्जवनाणी णं भंते! मनपज्जवनाणीत्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी।
केवलनाणी णं भंते! केवलनाणीत्ति कालओ केवचिरं होइ? Translated Sutra: તેમાં જે એમ કહે છે કે સર્વે જીવો છ ભેદે છે, તે એમ કહે છે – જીવો આભિનિબોધિકજ્ઞાની, શ્રુતજ્ઞાની, અવધિ જ્ઞાની, મનઃપર્યવજ્ઞાની, કેવળજ્ઞાની અને અજ્ઞાની છ ભેદે છે. ભગવન્ ! આભિનિબોધિક જ્ઞાની, આભિનિબોધિક જ્ઞાની રૂપે કેટલો કાળ રહે ? ગૌતમ ! જઘન્ય અંતર્મુહૂર્ત્ત, ઉત્કૃષ્ટ સાતિરેક છાસઠ સાગરોપમ. એ રીતે શ્રુતજ્ઞાની પણ છે. ભગવન્ | |||||||||
Jivajivabhigam | જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
प्रतिपत्ति भूमिका |
Gujarati | 5 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं रूविअजीवाभिगमे? रूविअजीवाभिगमे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–खंधा खंधदेसा खंधप्पएसा परमाणुपोग्गला। ते समासओ पंचविहा पन्नत्ता, तं जहा–वण्णपरिणया गंधपरिणया रसपरिणया फासपरिणया संठाणपरिणया। जे वण्ण परिणता ते पंचविहा पन्नत्ता, तं जहा–कालवण्णपरिणता नीलवण्णपरिणता लोहियवण्णपरिणता हालिद्दवण्णपरिणता सुक्किल-वण्णपरिणता।
जे गंधपरिणता ते दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–सुब्भिगंधपरिणता य दुब्भिगंधपरिणता य। जे रसपरिणता ते पंचविहा पन्नत्ता, तं जहा–तित्तरसपरिणता कडुयरसपरिणता कसायरसपरिणता अंबिलरसपरिणता महुररसपरिणता।
जे फासपरिणता ते अट्ठविहा पन्नत्ता, तं जहा–कक्खडफासपरिणता Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૩ | |||||||||
Jivajivabhigam | જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
द्विविध जीव प्रतिपत्ति |
Gujarati | 14 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेसि णं भंते! जीवाणं कइ सरीरगा पन्नत्ता? गोयमा! तओ सरीरगा पन्नत्ता, तं जहा–ओरालिए तेयए कम्मए।
तेसि णं भंते! जीवाणं केमहालिया सरीरोगाहणा पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंगुलासंखेज्जइ-भागं, उक्कोसेणवि अंगुलासंखेज्जइभागं।
तेसि णं भंते! जीवाणं सरीरा किं संघयणा पन्नत्ता? गोयमा! छेवट्टसंघयणा पन्नत्ता।
तेसि णं भंते! जीवाणं सरीरा किं संठिया पन्नत्ता? गोयमा! मसूरचंदसंठिया पन्नत्ता।
तेसि णं भंते! जीवाणं कति कसाया पन्नत्ता? गोयमा! चत्तारि कसाया पन्नत्ता, तं जहा–कोहकसाए मानकसाए मायाकसाए लोहकसाए।
तेसि णं भंते! जीवाणं कति सण्णाओ पन्नत्ताओ? गोयमा! चत्तारि सण्णाओ पन्नत्ताओ, Translated Sutra: ભગવન્ ! તે સૂક્ષ્મપૃથ્વીકાયિક જીવોના કેટલા શરીરો છે ? ગૌતમ ! ત્રણ. ઔદારિક, તૈજસ, કાર્મણ. ભગવન્! તે જીવોની શરીર અવગાહના કેટલી મોટી છે ? ગૌતમ ! જઘન્યથી અંગુલનો અસંખ્યાતભાગ, ઉત્કૃષ્ટથી પણ અંગુલનો અસંખ્યાત ભાગ. ભગવન ! તે જીવોના શરીર કયા સંઘયણવાળા છે ? ગૌતમ ! સેવાર્ત્ત સંઘયણી છે. ભગવન્ ! તે જીવોના શરીરનું સંસ્થાન શું | |||||||||
Jivajivabhigam | જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
द्विविध जीव प्रतिपत्ति |
Gujarati | 40 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नेरइया? नेरइया सत्तविहा पन्नत्ता, तं जहा–रयणप्पभापुढवि नेरइया जाव अहेसत्तमपुढवि नेरइया । ते समासओ दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य।
तेसि णं भंते! जीवाणं कति सरीरगा पन्नत्ता? गोयमा! तओ सरीरगा पन्नत्ता, तं जहा–वेउव्विए तेयए कम्मए।
तेसि णं भंते! जीवाणं केमहालिया सरीरोगाहणा पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा सरीरोगाहणा पन्नत्ता, तं जहा–भव धारणिज्जा य उत्तरवेउव्विया य। तत्थ णं जासा भवधारणिज्जा सा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं पंचधनुसयाइं। तत्थ णं जासा उत्तरवेउव्विया सा जहन्नेणं अंगुलस्स संखेज्जइभागं उक्कोसेणं धनुसहस्सं।
तेसि Translated Sutra: તે નૈરયિકો શું છે ? તે સાત ભેદે છે – રત્નપ્રભા પૃથ્વી નૈરયિક યાવત્ અધઃસપ્તમી પૃથ્વી નૈરયિક. તે સંક્ષેપથી બે ભેદે છે – પર્યાપ્તા અને અપર્યાપ્તા. ભગવન્! તે જીવોને કેટલા શરીરો છે ? ગૌતમ ! ત્રણ છે – વૈક્રિય, તૈજસ, કાર્મણ. ભગવન્! તે જીવોની શરીરાવગાહના કેટલી મોટી છે ? ગૌતમ ! શરીરાવગાહના બે ભેદે છે – ભવધારણીય અને ઉત્તરવૈક્રિય. | |||||||||
Jivajivabhigam | જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
द्विविध जीव प्रतिपत्ति |
Gujarati | 49 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं मनुस्सा? मनुस्सा दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–संमुच्छिममनुस्सा य गब्भवक्कंतियमनुस्सा य।
कहि णं भंते! संमुच्छिममनुस्सा संमुच्छंति? गोयमा! अंतो मनुस्सखेत्ते जाव अंतोमुहुत्ताउया चेव कालं करेंति।
तेसि णं भंते! जीवाणं कति सरीरगा पन्नत्ता? गोयमा! तिन्नि सरीरगा पन्नत्ता, तं जहा–ओरालिए तेयए कम्मए। संघयण संठाण कसाय सण्णा लेसा जहा बेइंदियाणं, इंदिया पंच, समुग्घाया तिन्नि, असन्नी, नपुंसगा, अपज्जत्तीओ पंच, दिट्ठिदंसण अन्नाण जोग उवओगा जहा पुढविकाइयाणं, आधारो जहा बेइंदियाणं, उववातो नेरइय देव तेउ वाउ असंखाउवज्जो, अंतोमुहुत्तं ठिती, समोहतावि असमोहतावि मरंति, कहिं Translated Sutra: ભગવન્ ! તે મનુષ્યો શું છે ? મનુષ્યો બે ભેદે કહ્યા છે. સંમૂર્ચ્છિમ મનુષ્યો અને ગર્ભવ્યુત્ક્રાંતિક મનુષ્યો. ભગવન્ ! સંમૂર્ચ્છિમ મનુષ્યો ક્યાં સંમૂર્છે છે ? ગૌતમ ! મનુષ્ય ક્ષેત્રની અંદર ઉત્પન્ન થાય છે યાવત્ અંતર્મુહુર્તનું આયુષ્ય પૂર્ણ કરીને મૃત્યુ પામે છે. ભગવન્ ! તે જીવોને કેટલા શરીરો કહ્યા છે ? ગૌતમ ! ત્રણ |