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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-७ संयत | Hindi | 945 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सामाइयसंजए णं भंते! कालगए समाणे कं गतिं गच्छति?
गोयमा! देवगतिं गच्छति।
देवगतिं गच्छमाणे किं भवनवासीसु उववज्जेज्जा? वाणमंतरेसु उववज्जेज्जा? जोइसिएसु उववज्जेज्जा? वेमाणिएसु उववज्जेज्जा?
गोयमा! नो भवनवासीसु उववज्जेज्जा– जहा कसायकुसीले। एवं छेदोवट्ठावणिए वि। परिहारविसुद्धिए जहा पुलाए। सुहुमसंपराए जहा नियंठे।
अहक्खाए–पुच्छा।
गोयमा! एवं अहक्खायसंजए वि जाव अजहन्नमणुक्कोसेनं अनुत्तरविमानेसु उववज्जेज्जा; अत्थेगतिए सिज्झति जाव सव्व दुक्खाणं अंत करेति।
सामाइयसंजए णं भंते! देवलोगेसु उववज्जमाणे किं इंदत्ताए उववज्जति–पुच्छा।
गोयमा! अविराहणं पडुच्च एवं जहा Translated Sutra: भगवन् ! सामायिकसंयत काल कर किस गति में जाता है ? गौतम ! देवगति में। भगवन् ! वह देवगति में जाता हुआ भवनवासी यावत् वैमानिकों में से किन देवों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! वह कषायकुशील के समान भवनपति में उत्पन्न नहीं होता, इत्यादि सब कहना। इसी प्रकार छेदोपस्थापनीयसंयत को भी समझना। परिहार – विशुद्धिकसंयत की गति | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-७ संयत | Hindi | 953 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सामाइयसंजए णं भंते! कालओ केवच्चिरं होइ?
गोयमा! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं देसूणएहिं नवहिं वासेहिं ऊणिया पुव्वकोडी। एवं छेदोवट्ठावणिए वि।
परिहारविसुद्धिए जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं देसूणएहिं एकूणतीसाए वासेहिं ऊणिया पुव्वकोडी। सुहुमसंपराए जहा नियंठे। अहक्खाए जहा सामाइयसंजए।
सामाइयसंजया णं भंते! कालओ केवच्चिरं होइ?
गोयमा! सव्वद्धं।
छेदोवट्ठावणियसंजया–पुच्छा।
गोयमा! जहन्नेणं अड्ढाइज्जाइं वाससयाइं, उक्कोसेणं पण्णासं सागरोवमकोडिसयसहस्साइं।
परिहारविसुद्धीयसंजया–पुच्छा।
गोयमा! जहन्नेणं देसूणाइं दो वाससयाइं, उक्कोसेणं देसूणाओ दो पुव्वकोडीओ।
सुहुमसंपरागसंजया–पुच्छा।
गोयमा! Translated Sutra: भगवन् ! सामायिकसंयत कितने काल तक रहता है ? गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट देशोन नौ वर्ष कम पूर्वकोटिवर्ष। इसी प्रकार छेदोपस्थापनीयसंयत को भी कहना। परिहारविशुद्धिसंयत जघन्य एक समय और उत्कृष्ट देशोन २९ वर्ष कम पूर्वकोटिवर्ष पर्यन्त रहता है। सूक्ष्मसम्परायसंयत निर्ग्रन्थ के अनुसार कहना। यथाख्यातसंयत | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-८ ओघ | Hindi | 970 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–नेरइया णं भंते! कहं उववज्जंति?
गोयमा! से जहानामए पवए पवमाणे अज्झवसाणनिव्वत्तिएणं करणोवाएणं सेयकाले तं ठाणं विप्पजहित्ता पुरिमं ठाणं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ, एवामेव एए वि जीवा पवओ विव पवमाणा अज्झवसाणनिव्वत्तिएणं करणोवाएणं सेयकाले तं भवं विप्पजहित्ता पुरिमं भवं उवसंपज्जित्ताणं विहरंति।
तेसि णं भंते! जीवाणं कहं सीहा गती, कहं सीहे गतिविसए पन्नत्ते?
गोयमा! से जहानामए केइ पुरिसे तरुणे बलवं एवं जहा चोद्दसमसए पढमुद्देसए जाव तिसमएण वा विग्गहेणं उववज्जंति। तेसि णं जीवाणं तहा सीहा गई, तहा सीहे गतिविसए पन्नत्ते।
ते णं भंते! जीवा कहं परभवियाउयं Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत् पूछा – भगवन् ! नैरयिक जीव किस प्रकार उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! जैसे कोई कूदने वाला पुरुष कूदता हुआ अध्यवसायनिर्वर्तित क्रियासाधन द्वारा उस स्थान को छोड़कर भविष्यत्काल में अगले स्थान को प्राप्त होता है, वैसे ही जीव भी अध्यवसायनिर्वर्तित क्रियासाधन द्वारा अर्थात् कर्मों द्वारा पूर्वभव | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२६ जीव, लंश्या, पक्खियं, दृष्टि, अज्ञान |
उद्देशक-१ | Hindi | 976 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे जाव एवं वयासी–जीवा णं भंते! पावं कम्मं किं बंधी बंधइ बंधिस्सइ? बंधी बंधइ न बंधिस्सइ? बंधी न बंधइ बंधिस्सइ? बंधी न बंधइ न बंधिस्सइ?
गोयमा! अत्थेगतिए बंधी बंधइ बंधिस्सइ, अत्थेगतिए बंधी बंधइ न बंधिस्सइ, अत्थेगतिए बंधी न बंधइ बंधिस्सइ, अत्थेगतिए बंधी न बंधइ न बंधिस्सइ।
सलेस्से णं भंते! जीवे पावं कम्मं किं बंधी बंधइ बंधिस्सइ? बंधी बंधइ न बंधिस्सइ–पुच्छा।
गोयमा! अत्थेगतिए बंधी बंधइ बंधिस्सइ, अत्थेगतिए एवं चउभंगो।
कण्हलेस्से णं भंते! जीवे पावं कम्मं किं बंधी–पुच्छा।
गोयमा! अत्थेगतिए बंधी बंधइ बंधिस्सइ, अत्थेगतिए बंधी बंधइ न बंधिस्सइ। एवं Translated Sutra: उस काल और उस समय में राजगृह नगर में यावत् पूछा – भगवन् ! क्या जीवने पापकर्म बाँधा था, बाँधता है और बाँधेगा ? (अथवा क्या जीवने पापकर्म) बाँधा था, बाँधता है और नहीं बाँधेगा ? (या जीवने पापकर्म) बाँधा था, नहीं बाँधता है और बाँधेगा ? अथवा बाँधा था, नहीं बाँधता है और नहीं बाँधेगा ? गौतम ! किसी जीव ने पापकर्म बाँधा था, बाँधता | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२६ जीव, लंश्या, पक्खियं, दृष्टि, अज्ञान |
उद्देशक-२ थी ११ | Hindi | 983 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अनंतरोगाढए णं भंते! नेरइए पावं कम्मं किं बंधी–पुच्छा।
गोयमा! अत्थेगतिए एवं जहेव अनंतरोववन्नएहिं नवदंडगसंगहिओ उद्देसो भणिओ तहेव अनंतरो-गाढएहिं वि अहीणमतिरित्तो भाणियव्वो नेरइयादीए जाव वेमाणिए।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! क्या अनन्तरावगाढ़ नैरयिक ने पापकर्म बाँधा था ? इत्यादि प्रश्न। गौतम ! किसी ने पापकर्म बाँधा था, इत्यादि क्रम से अनन्तरोपपन्नक के नौ दण्डकों सहित के उद्देशक समान अनन्तरावगाढ़ नैरयिक आदि वैमानिक तक अन्यूनाधिकरूप से कहना चाहिए। ‘हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।’ | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२६ जीव, लंश्या, पक्खियं, दृष्टि, अज्ञान |
उद्देशक-२ थी ११ | Hindi | 984 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] परंपरोगाढए णं भंते! नेरइए पावं कम्मं किं बंधी? जहेव परंपरोववन्नएहिं उद्देसो सो चेव निरवसेसो भाणियव्वो।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! क्या परम्परावगाढ़ नैरयिक ने पापकर्म बाँधा था ? इत्यादि प्रश्न। गौतम ! परम्परोपपन्नक के विषय में उद्देशक समान परम्परावगाढ़ (नैरयिकादि) के विषय में यह अन्यूनाधिक रूप से कहना चाहिए। ‘हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।’ | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२६ जीव, लंश्या, पक्खियं, दृष्टि, अज्ञान |
उद्देशक-२ थी ११ | Hindi | 985 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अनंतराहारए णं भंते! नेरइए पावं कम्मं किं बंधी–पुच्छा। एवं जहेव अनंतरोववन्नएहिं उद्देसो तहेव निरवसेसं।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! क्या अनन्तरावगाढ़ नैरयिक ने पापकर्म बाँधा था ? इत्यादि प्रश्न। गौतम ! अनन्तरोपपन्नक उद्देशक समान यह समग्र अनन्तराहारक उद्देशक भी कहना। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२६ जीव, लंश्या, पक्खियं, दृष्टि, अज्ञान |
उद्देशक-२ थी ११ | Hindi | 986 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] परंपराहारए णं भंते! नेरइए पावं कम्मं किं बंधी–पुच्छा।
गोयमा! एवं जहेव परंपरोववन्नएहिं उद्देसो तहेव निरवसेसो भाणियव्वो।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! क्या परम्पराहारक नैरयिक ने पापकर्म का बन्ध किया था ? इत्यादि प्रश्न। गौतम ! परम्परोप – पन्नक नैरयिकादि – सम्बन्धी उद्देशक समान परम्पराहारक उद्देशक कहना। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२६ जीव, लंश्या, पक्खियं, दृष्टि, अज्ञान |
उद्देशक-२ थी ११ | Hindi | 988 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] परंपरपज्जत्तए णं भंते! नेरइए पावं कम्मं किं बंधी–पुच्छा।
गोयमा! एवं जहेव परंपरोववन्नएहिं उद्देसो तहेव निरवसेसो भाणियव्वो।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति जाव विहरइ। Translated Sutra: भगवन् ! क्या परम्परपर्याप्तक नैरयिक ने पापकर्म बाँधा था ? इत्यादि प्रश्न। गौतम ! परम्परोपपन्नक उद्देशक समान परम्परपर्याप्तक नैरयिकादि उद्देशक समग्ररूप से कहना। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२६ जीव, लंश्या, पक्खियं, दृष्टि, अज्ञान |
उद्देशक-२ थी ११ | Hindi | 990 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अचरिमे णं भंते! नेरइए पावं कम्मं किं बंधी–पुच्छा।
गोयमा! अत्थेगइए एवं जहेव पढमोद्देसए, पढम-बितिया भंगा भाणियव्वा सव्वत्थ जाव पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं।
अचरिमे णं भंते! मनुस्से पावं कम्मं किं बंधी–पुच्छा।
गोयमा! अत्थेगतिए बंधी बंधइ बंधिस्सइ, अत्थेगतिए बंधी बंधइ न बंधिस्सइ, अत्थेगतिए बंधी न बंधइ बंधिस्सइ।
सलेस्से णं भंते! अचरिमे मनुस्से पावं कम्मं किं बंधी? एवं चेव तिन्नि भंगा चरमविहूणा भाणियव्वा एवं जहेव पढमुद्देसे, नवरं–जेसु तत्थ वीससु चत्तारि भंगा तेसु इह आदिल्ला तिन्नि भंगा भाणियव्वा चरिमभंगवज्जा। अलेस्से केवल-नाणी य अजोगी य–एए तिन्नि वि न पुच्छिज्जंति, Translated Sutra: भगवन् ! अचरम नैरयिक ने पापकर्म बाँधा था ? इत्यादि प्रश्न। गौतम ! किसी ने पापकर्म बाँधा था, इत्यादि प्रथम उद्देशक समान सर्वत्र प्रथम और द्वीतिय भंग पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक पर्यन्त कहना। भगवन् ! क्या अचरम मनुष्य ने पापकर्म बाँधा था ? किसी मनुष्य ने बाँधा था, बाँधता है और बाँधेगा, किसी ने बाँधा था, बाँधता है | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२७ जीव आदि जाव |
उद्देशक-१ थी ११ | Hindi | 991 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! पावं कम्मं किं करिंसु करेति करिस्सति? करिंसु करेति न करेस्सति? करिंसु न करेति करिस्सति? करिंसु न करेति न करेस्सति?
गोयमा! अत्थेगतिए करिंसु न करेति करिस्सति, अत्थेगतिए करिंसु करेति न करेस्सति, अत्थेगतिए करिंसु न करेति करेस्सति अत्थेगतिए करिंसु न करेति न करेस्सति।
सलेस्से णं भंते! जीवे पावं कम्मं? एवं एएणं अभिलावेणं जच्चेव बंधिसए वत्तव्वया सच्चेव निरवसेसा भाणियव्वा, तहेव नवदंडगसंगहिया एक्कारस उद्देसगा भाणियव्वा। Translated Sutra: भगवन् ! क्या जीव ने पापकर्म किया था, करता है और करेगा ? अथवा किया था, करता है और नहीं करेगा? या किया था, नहीं करता और करेगा ? अथवा किया था, नहीं करता और नहीं करेगा ? गौतम ! किसी जीव ने पापकर्म किया था, करता है और करेगा। किसी जीव ने किया था, करता है और नहीं करेगा। किसी जीव ने किया था, नहीं करता है और करेगा। किसी जीव ने किया | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२९ समवसरण लेश्यादि |
उद्देशक-१ थी ११ | Hindi | 995 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवा णं भंते! पावं कम्मं किं समायं पट्ठविंसु समाय निट्ठविंसु? समायं पट्ठविंसु विसमायं निट्ठविंसु? विसमायं पट्ठविंसु समायं निट्ठविंसु? विसमायं पट्ठविंसु विसमायं निट्ठविंसु?
गोयमा! अत्थेगतिया समायं पट्ठविंसु समायं निट्ठविंसु जाव अत्थेगतिया विसमायं पट्ठविंसु विसमाय निट्ठविंसु।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–अत्थेगतिया समायं पट्ठविंसु समायं निट्ठविंसु, तं चेव?
गोयमा! जीवा चउव्विहा पन्नत्ता, तं जहा–अत्थेगतिया समाउया समोववन्नगा, अत्थेगतिया समाउया विसमोववन्नगा, अत्थे गतिया विसमाउया समोववन्नगा, अत्थेगतिया विसमाउया विसमोववन्नगा। तत्थ णं जे ते समाउया समोववन्नगा Translated Sutra: भगवन् ! जीव पापकर्म का वेदन एकसाथ प्रारम्भ करते हैं और एक साथ ही समाप्त करते हैं ? अथवा एक साथ प्रारम्भ करते हैं और भिन्न – भिन्न समय में समाप्त करते हैं ? या भिन्न – भिन्न समय में प्रारम्भ करते हैं और एक साथ समाप्त करते हैं ? अथवा भिन्न – भिन्न समय में प्रारम्भ करते हैं और भिन्न – भिन्न समय में समाप्त करते हैं? गौतम | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२९ समवसरण लेश्यादि |
उद्देशक-१ थी ११ | Hindi | 996 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अनंतरोववन्नगा णं भंते! नेरइया पावं कम्मं किं समायं पट्ठविंसु समायं निट्ठविंसु–पुच्छा।
गोयमा! अत्थेगतिया समायं पट्ठविंसु समायं निट्ठविंसु, अत्थेगतिया समायं पट्ठविंसु विसमायं निट्ठविंसु।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–अत्थेगतिया समायं पट्ठविंसु, तं चेव?
गोयमा! अनंतरोववन्नगा नेरइया दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–अत्थेगतिया समाउया समोववन्नगा, अत्थेगतिया समाउया विसमोववन्नगा। तत्थ णं जे ते समाउया समोववन्नगा ते णं पावं कम्मं समायं पट्ठविंसु समायं निट्ठविंसु। तत्थ णं जे ते समाउया विसमोववन्नगा ते णं पावं कम्मं समायं पट्ठविंसु विसमायं निट्ठविंसु। से तेणट्ठेणं तं Translated Sutra: भगवन् ! क्या अनन्तरोपपन्नक नैरयिक एक काल में पापकर्म वेदन करते हैं तथा एक साथ ही उसका अन्त करते हैं ? गौतम ! कईं पापकर्म को एक साथ भोगते हैं ? एक साथ अन्त करते हैं तथा कितने ही एक साथ पापकर्म को भोगते हैं, किन्तु उसका अन्त विभिन्न समय में करते हैं। भगवन् ! ऐसा क्यों कहते हैं कि कईं एक साथ भोगते हैं? इत्यादि प्रश्न। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३० समवसरण लेश्यादि |
उद्देशक-१ थी ११ | Hindi | 998 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कइ णं भंते! समोसरणा पन्नत्ता?
गोयमा! चत्तारि समोसरणा पन्नत्ता, तं० किरियावादी, अकिरियावादी, अन्नाणियवादी, वेणइयवादी
जीवा णं भंते! किं किरियावादी? अकिरियावादी? अन्नाणियवादी? वेणइयवादी?
गोयमा! जीवा किरियावादी वि, अकिरियावादी वि, अन्नाणियवादी वि, वेणइयवादी वि।
सलेस्सा णं भंते! जीवा किं किरियावादी–पुच्छा।
गोयमा! किरियावादी वि, अकिरियावादी वि, अन्नाणियावादी वि, वेणइयवादी वि। एवं जाव सुक्कलेस्सा।
अलेस्सा णं भंते! जीवा–पुच्छा।
गोयमा! किरियावादी, नो अकिरियावादी, नो अन्नाणियवादी, नो वेणइयवादी।
कण्हपक्खिया णं भंते! जीवा किं किरियावादी–पुच्छा।
गोयमा! नो किरियावादी, Translated Sutra: भगवन् ! समवसरण कितने कहे हैं? गौतम! चार, यथा – क्रियावादी, अक्रियावादी, अज्ञानवादी, विनयवादी। भगवन् ! जीव क्रियावादी हैं, अक्रियावादी हैं, अज्ञानवादी हैं या विनयवादी हैं ? गौतम ! जीव क्रियावादी भी हैं, अक्रियावादी भी हैं, अज्ञानवादी भी हैं और विनयवादी भी हैं। भगवन् ! सलेश्य जीव क्रियावादी भी हैं? इत्यादि प्रश्न। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३४ एकेन्द्रिय शतक-शतक-१ |
उद्देशक-१ | Hindi | 1033 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कइविहा णं भंते! एगिंदिया पन्नत्ता?
गोयमा! पंचविहा एगिंदिया पन्नत्ता, तं जहा–पुढविक्काइया जाव वणस्सइकाइया। एवमेते चउक्कएणं भेदेणं भाणियव्वा जाव वणस्सइकाइया।
अपज्जत्तासुहुमपुढविकाइए णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पुरत्थिमिल्ले चरिमंते समोहए, समोहणित्ता जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पच्चत्थिमिल्ले चरिमंते अपज्जत्ता-सुहुम-पुढविकाइयत्ताए उववज्जित्तए, से णं भंते! कइसमएणं विग्गहेणं उववज्जेज्जा?
गोयमा! एगसमइएण वा दुसमइएण वा तिसमइएण वा विग्गहेणं उववज्जेज्जा।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–एगसमइएण वा दुसमइएण वा जाव उववज्जेज्जा?
एवं खलु गोयमा! मए सत्त सेढीओ Translated Sutra: भगवन् ! एकेन्द्रिय कितने प्रकार के कहे गए हैं ? गौतम ! पाँच प्रकार के, यथा – पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक। इनके भी प्रत्येक के चार – चार भेद वनस्पतिकायिक – पर्यन्त कहने चाहिए। भगवन् ! अपर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीव इस रत्नप्रभापृथ्वी के पूर्वदिशा के चरमान्त में मरणसमुद्घात करके इस रत्नप्रभापृथ्वी | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३४ एकेन्द्रिय शतक-शतक-१ |
उद्देशक-१ | Hindi | 1034 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अपज्जत्तासुहुमपुढविक्काइए णं भंते! अहेलोयखेत्तनालीए बाहिरिल्ले खेत्ते समोहए, समोहणित्ता जे भविए उड्ढलोयखेत्तनालीए बाहिरिल्ले खेत्ते अपज्जत्तासुहुमपुढविकाइयत्ताए उववज्जित्तए, से णं भंते! कइसमइएणं विग्गहेणं उववज्जेज्जा?
गोयमा! तिसमइएण वा चउसमइएण वा विग्गहेणं उववज्जेज्जा।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–तिसमइएण वा चउसमइएण वा विग्गहेणं उववज्जेज्जा?
गोयमा! अपज्जत्तासुहुमपुढविकाइए णं अहेलोयखेत्तनालीए बाहिरिल्ले खेत्ते समोहए, समोहणित्ता जे भविए उड्ढलोयखेत्तनालीए बाहिरिल्ले खेत्ते अपज्जत्तासुहुमपुढविकाइयत्ताए एयपयरंसि अणुसेढिं उववज्जित्तए, से Translated Sutra: भगवन् ! अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव अधोलोक क्षेत्र की त्रसनाडी के बाहर के क्षेत्र में मरण – समुद्घात करके ऊर्ध्वलोक की त्रसनाडी के बाहर के क्षेत्र में अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक – रूप से उत्पन्न होने योग्य है तो हे भगवन् ! वह कितने समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ? गौतम ! तीन समय या चार समय की। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३४ एकेन्द्रिय शतक-शतक-१ |
उद्देशक-२ थी ११ | Hindi | 1035 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कइविहा णं भंते! अनंतरोववन्नगा एगिंदिया पन्नत्ता?
गोयमा! पंचविहा अनंतरोववन्नगा एगिंदिया पन्नत्ता, तं जहा–पुढविक्काइया, दुयाभेदो जहा एगिंदियसएसु जाव बादरवणस्सइकाइया य।
कहि णं भंते! अनंतरोववन्नगाणं बादरपुढविक्काइयाणं ठाणा पन्नत्ता?
गोयमा! सट्ठाणेणं अट्ठसु पुढवीसु, तं जहा–रयणप्पभाए जहा ठाणपदे जाव दीवेसु समुद्देसु, एत्थ णं अनंतरोववन्नगाणं बादरपुढविकाइयाणं ठाणा पन्नत्ता, उववाएणं सव्वलोए, समुग्घाएणं सव्वलोए, सट्ठाणेणं लोगस्स असंखेज्जइभागे। अनंतरोववन्नगसुहुमपुढविक्काइया एगविहा अविसेसमणाणत्ता सव्वलोए परियावन्ना पन्नत्ता समणाउसो!
एवं एएणं कमेणं सव्वे Translated Sutra: भगवन् ! अनन्तरोपपन्नक एकेन्द्रिय कितने प्रकार के कहे हैं ? गौतम ! पाँच प्रकार के, यथा – पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक। फिर प्रत्येक के दो – दो भेद एकेन्द्रिय शतक के अनुसार वनस्पतिकायिक पर्यन्त कहना। भगवन् ! अनन्तरोपपन्नक बादर पृथ्वीकायिक जीवों के स्थान कहाँ कहे हैं ? गौतम ! वे स्वस्थान की अपेक्षा आठ पृथ्वीयों | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३५ एकेन्द्रिय शतक-शतक-१ |
उद्देशक-१ | Hindi | 1045 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कडजुम्मकडजुम्मएगिंदिया णं भंते! कओ उववज्जंति–किं नेरइएहिंतो? जहा उप्पलुद्देसए तहा उववाओ
ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवइया उववज्जंति?
गोयमा! सोलस वा संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अनंता वा उववज्जंति।
ते णं भंते! जीवा समए समए–पुच्छा।
गोयमा! ते णं अनंता समए समए अवहीरमाणा-अवहीरमाणा अनंताहिं ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीहिं अवहीरंति, नो चेव णं अवहिया सिया। उच्चत्तं जहा उप्पलुद्देसए।
ते णं भंते! जीवा नाणावरणिज्जस्स कम्मस्स किं बंधगा? अबंधगा?
गोयमा! बंधगा, नो अबंधगा। एवं सव्वेसिं आउयवज्जाणं। आउयस्स बंधगा वा अबंधगा वा।
ते णं भंते! जीवा नाणावरणिज्जस्स–पुच्छा।
गोयमा! वेदगा, नो अवेदगा। Translated Sutra: भगवन् ! कृतयुग्म – कृतयुग्मराशिरूप एकेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! उत्पलोद्देशक के उपपात समान उपपात कहना चाहिए। भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे सोलह, संख्यात, असंख्यात या अनन्त। भगवन् ! वे अनन्त जीव समय – समय में एक – एक अपहृत किये जाएं तो कितने काल में अपहृत होते | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३५ एकेन्द्रिय शतक-शतक-१ |
उद्देशक-२ थी ११ | Hindi | 1048 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] चरिमसमयकडजुम्मकडजुम्मएगिंदिया णं भंते! कओ उववज्जंति? एवं जहेव पढमसमयउद्देसओ, नवरं–देवा न उववज्जंति, तेउलेस्सा न पुच्छिज्जंति, सेसं तहेव।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! चरमसमयोत्पन्न कृतयुग्म – कृतयुग्मराशिरूप एकेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! प्रथमसमय उद्देशक अनुसार कहना चाहिए। किन्तु इनमें देव उत्पन्न नहीं होते तथा तेजोलेश्या के विषय में प्रश्न नहीं करना चाहिए। शेष पूर्ववत्। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३५ एकेन्द्रिय शतक-शतक-१ |
उद्देशक-२ थी ११ | Hindi | 1049 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अचरिमसमयकडजुम्मकडजुम्मएगिंदिया णं भंते! कओ उववज्जंति? जहा अपढमसमयउद्देसो तहेव निरवसेसो भाणियव्वो।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! अचरमसमय के कृतयुग्म – कृतयुग्मराशिरूप एकेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न। गौतम ! अप्रथमसमय उद्देशक के अनुसार कहना। ‘हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, यह इसी प्रकार है।’ | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-४० संज्ञीपञ्चेन्द्रिय शतक-शतक-१ थी २१ उद्देशको सहित |
Hindi | 1064 | Sutra | Ang-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कडजुम्मकडजुम्मसण्णिपंचिंदिया णं भंते! कओ उववज्जंति? उववाओ वा चउसु वि गईसु। संखेज्जवासाउय-असंखेज्जवासाउय-पज्जत्ता-अपज्जत्तएसु य न कओ वि पडिसेहो जाव अनुत्तरविमानत्ति। परिमाणं अवहारो ओगाहणा य जहा असण्णिपंचिंदियाणं। वेयणिज्जवज्जाणं सत्तण्हं पगडीणं बंधगा वा अबंधगा वा, वेयणिज्जस्स बंधगा, नो अबंधगा। मोहणिज्जस्स वेदगा वा अवेदगा वा, सेसाणं सत्तण्ह वि वेदगा, नो अवेदगा। सायावेदगा वा असायावेदगा वा। मोहणिज्जस्स उदई वा अणुदई वा, सेसाणं सत्तण्ह वि उदई, नो अणुदई। नामस्स गोयस्स य उदीरगा, नो अनुदीरगा, सेसाणं छण्ह वि उदीरगा वा अनुदीरगा वा। कण्हलेस्सा वा जाव सुक्कलेस्सा Translated Sutra: भगवन् ! कृतयुग्म – कृतयुग्मराशि रूप संज्ञी पंचेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! इनका उपपात चारों गतियों से होता है। ये संख्यात वर्ष और असंख्यात वर्ष की आयु वाले पर्याप्तक और अपर्याप्तक जीवों से आते हैं। यावत् अनुत्तरविमान तक किसी भी गति से आने का निषेध नहीं है। इनका परिमाण, अपहार और अवगाहना | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-४० संज्ञीपञ्चेन्द्रिय शतक-शतक-१ थी २१ उद्देशको सहित |
Hindi | 1066 | Sutra | Ang-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कण्हलेस्सकडजुम्मकडजुम्मसण्णिपंचिंदिया णं भंते! कओ उववज्जंति? तहेव पढमुद्देसओ सण्णीणं नवरं–बंध-वेद-उदइ-उदीरण-लेस्स-बंधग-सण्ण-कसाय-वेदबंधगा य एयाणि जहा बेंदियाणं। कण्ह-लेस्साणं वेदो तिविहो, अवेदगा नत्थि। संचिट्ठणा जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरो-वमाइं अंतोमुहुत्तमब्भहियाइं। एवं ठिती वि, नवरं–ठितीए अंतोमुहुत्तमब्भहियाइं न भण्णंति। सेसं जहा एएसिं चेव पढमे उद्देसए जाव अनंतखुत्तो। एवं सोलससु वि जुम्मेसु।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।
पढमसमयकण्हलेस्सकडजुम्मकडजुम्मसण्णिपंचिंदिया णं भंते! कओ उववज्जंति? जहा सण्णिपंचिंदियपढमसमयउद्देसए तहेव Translated Sutra: भगवन् ! कृष्णलेश्यी कृतयुग्म – कृतयुग्मराशियुक्त संज्ञीपंचेन्द्रिय कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न। गौतम ! संज्ञी के प्रथम उद्देशक अनुसार जानना। विशेष यह है कि बन्ध, वेद, उदय, उदीरणा, लेश्या, बन्धक, संज्ञा, कषाय और वेदबंधक, इन सभी का कथन द्वीन्द्रियजीव – सम्बन्धी कथन समान है। कृष्णलेश्यी संज्ञी | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-४० संज्ञीपञ्चेन्द्रिय शतक-शतक-१ थी २१ उद्देशको सहित |
Hindi | 1067 | Sutra | Ang-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं नीललेस्सेसु वि सतं, नवरं–संचिट्ठणा जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं दस सागरोवमाइं पलिओवमस्स असं-खेज्जइभागमब्भहियाइं। एवं ठिती वि। एवं तिसु उद्देसएसु, सेसं तं चेव।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।
एवं काउलेस्ससतं पि, नवरं–संचिट्ठणा जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं तिन्नि सागरोवमाइं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागमब्भहियाइं। एवं ठितीवि। एवं तिसु वि उद्देसएसु, सेसं तं चेव।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।
एवं तेउलेस्सेसु वि सतं, नवरं–संचिट्ठणा जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं दो सागरोवमाइं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागमब्भहियाइं। एवं ठितीवि, नवरं– नोसण्णोवउत्ता वा। एवं तिसु वि Translated Sutra: नीललेश्या वाले संज्ञी की वक्तव्यता भी इसी प्रकार समझना। विशेष यह कि संचिट्ठणाकाल जघन्य एक समय और उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक दस सागरोपम है। स्थिति भी इसी प्रकार है। पहले, तीसरे, पाँचवे इन तीन उद्देशकों के विषय में जानना चाहिए। शेष पूर्ववत्। ‘हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।’ इसी प्रकार कापोतलेश्या | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-४१ राशियुग्मं, त्र्योजराशि, द्वापर युग्मं राशि |
उद्देशक-१ थी १९६ | Hindi | 1073 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] भवसिद्धियरासीजुम्मकडजुम्मनेरइया णं भंते! कओ उववज्जंति? जहा ओहिया पढमगा चत्तारि उद्देसगा तहेव निरवसेसं, एए चत्तारि उद्देसगा।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।
कण्हलेस्सभवसिद्धियरासीजुम्मकडजुम्मनेरइया णं भंते! कओ उववज्जंति? जहा कण्हलेस्साए चत्तारि उद्देसगा भवंति तहा इमे वि भवसिद्धियकण्हलेस्सेहिं वि चत्तारि उद्देसगा कायव्वा।
एवं नीललेस्सभवसिद्धिएहिं वि चत्तारि उद्देसगा कायव्वा।
एवं काउलेस्सेहि वि चत्तारि उद्देसगा।
तेउलेस्सेहि वि चत्तारि उद्देसगा ओहियसरिसा।
पम्हलेस्सेहि वि चत्तारि उद्देसगा।
सुक्कलेस्सेहि वि चत्तारि उद्देसगा ओहियसरिसा। एवं एए वि भवसिद्धिएहि Translated Sutra: भगवन् ! भवसिद्धिक राशियुग्म – कृतयुग्मराशि नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! पहले के चार औघिक उद्देशकों अनुसार सम्पूर्ण चारों उद्देशक जानना। ‘हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है०।’ भगवन् ! कृष्ण – लेश्यी भवसिद्धिक राशियुग्म – कृतयुग्मराशियुक्त नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न। गौतम | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-७ नैरयिक | Gujarati | 80 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइए णं भंते! नेरइएसु उववज्जमाणे, किं–१. देसेणं देसं आहारेइ? २. देसेणं सव्वं आहारेइ? ३. सव्वेणं देसं आहारेइ? ४. सव्वेणं सव्वं आहारेइ?
गोयमा! १. नो देसेणं देसं आहारेइ। २. नो देसेणं सव्वं आहारेइ। ३. सव्वेणं वा देसं आहारेइ। ४. सव्वेणं वा सव्वं आहारेइ।
एवं जाव वेमाणिए।
नेरइए णं भंते! नेरइएहिंतो उव्वट्टमाणे, किं–१. देसेणं देसं उव्वट्टइ? २. देसेणं सव्वं उव्वट्टइ? ३. सव्वेणं देसं उव्वट्टइ? ४. सव्वेणं सव्वं उव्वट्टइ?
गोयमा! १. नो देसेणं देसं उव्वट्टइ। २. नो देसेणं सव्वं उव्वट्टइ। ३. नो सव्वेणं देसं उव्वट्टइ। ४. सव्वेणं सव्वं उव्वट्टइ।
एवं जाव वेमाणिए।
नेरइए णं भंते! नेरइएहिंतो Translated Sutra: ભગવન્ ! નૈરયિકોમાં ઉત્પદ્યમાન નૈરયિક શું દેશથી દેશનો આહાર કરે ? દેશથી સર્વનો આહાર કરે ? સર્વથી દેશનો આહાર કરે ? કે સર્વથી સર્વનો આહાર કરે ? ગૌતમ ! દેશથી દેશનો કે દેશથી સર્વનો આહાર ન કરે. સર્વથી દેશનો કે સર્વથી સર્વનો આહાર કરે. એ પ્રમાણે વૈમાનિક પર્યન્ત જાણવું. ભગવન્ ! નૈરયિકોથી ઉદ્વર્તતો નૈરયિક શું દેશથી દેશે | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-१ चलन | Gujarati | 14 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइयाणं भंते! पुव्वाहारिया पोग्गला चिया? पुच्छा–
जहा परिणया तहा चियावि।
एवं–उवचिया, उदीरिया, वेइया, निज्जिण्णा। Translated Sutra: હે ભગવન્ ! નૈરયિકોને પૂર્વે આહારિત પુદ્ગલો ચય પામ્યા છે ? વગેરે પ્રશ્નો કરવા હે ગૌતમ ! જે રીતે પરિણામ પામ્યામાં કહ્યું, તે રીતે ચયને પામ્યામાં ચારે વિકલ્પો કહેવા. એ રીતે ઉપચય, ઉદીરણા, વેદના અને નિર્જરાના ચાર ચાર વિકલ્પો જાણવા. | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-१ चलन | Gujarati | 15 | Gatha | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] परिणय चिया उवचिया उदीरिया वेइया य निज्जिण्णा ।
एक्केक्कम्मि पदम्मि, चउव्विहा पोग्गला होंति ॥ Translated Sutra: ગાથા – પરિણત, ચિત, ઉપચિત, ઉદીરિત, વેદિત અને નિર્જિર્ણ એ એક એક પદમાં ચાર પ્રકારના પુદ્ગલો અર્થાત પ્રશ્ન – ઉત્તરો જાણવા. | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-१ चलन | Gujarati | 21 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं ठिई आहारो य भाणियव्वो। ठिती जहा–
ठितिपदे तहा भाणियव्वा सव्वजीवाणं। आहारो वि जहा पन्नवणाए पढमे आहारुद्देसए तहा भाणियव्वो, एत्तो आढत्तो–नेरइया णं भंते! आहारट्ठी? जाव दुक्खत्ताए भुज्जो-भुज्जो परिणमंति।
असुरकुमारा णं भंते! केवइकालस्स आणमंति वा ४? गोयमा! जहन्नेणं सत्तण्हं थोवाणं, उक्कोसेणं साइरेगस्स पक्खस्स आणमंति वा ४ |
असुरकुमारा णं भंते! आहारट्ठी? हंता, आहारट्ठी । [असुरकुमारा णं भंते! केवइकालस्स आहारट्ठे समुप्पज्जइ? गोयमा! असुरकुमाराणं दुविहे
आहारे पन्नत्ते। तंजहा-आभोगनिव्वत्तिए य, अनाभोगनिव्वत्तिए य।
तत्थ णं जे से अनाभोग निव्वत्तिए Translated Sutra: એ રીતે સ્થિતિ અને આહાર કહેવા. સ્થિતિ, સ્થિતિ પદ મુજબ કહેવી. સર્વે જીવોનો આહાર, પન્નવણાના આહારોદ્દેશક મુજબ કહેવો. ભગવન્ ! નૈરયિક આહારાર્થી છે ? યાવત્ વારંવાર દુઃખપણે પરિણમે છે ? ગૌતમ ! ત્યાં સુધી આ સૂત્ર કહેવા. ભગવન્ ! અસુરકુમારોની સ્થિતિ કેટલો કાળ છે ? જઘન્યથી ૧૦,૦૦૦ વર્ષ અને ઉત્કૃષ્ટથી સાતિરેક સાગરોપમ કાળ. ભગવન્ | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-२ दुःख | Gujarati | 30 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवस्स णं भंते! तीतद्धाए आदिट्ठस्स कइविहे संसारसंचिट्ठणकाले पन्नत्ते?
गोयमा! चउव्विहे संसारसंचिट्ठणकाले पन्नत्ते, तं जहा– नेरइयसंसारसंचिट्ठणकाले, तिरिक्ख-जोणियसंसारसंचिट्ठणकाले, मनुस्ससंसारसंचिट्ठणकाले, देवसंसारसंचिट्ठणकाले।
नेरइयसंसारसंचिट्ठणकाले णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते?
गोयमा! तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–सुन्नकाले, असुन्नकाले, मिस्सकाले।
तिरिक्खजोणियसंसार संचिट्ठिणकाले णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते?
गोयमा! दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–असुन्नकाले य, मिस्सकाले य।
मनुस्ससंसारसंचिट्ठणकाले णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते?
गोयमा! तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–सुन्नकाले, Translated Sutra: ભગવન્ ! અતીતકાળની અપેક્ષાએ જીવનો સંસાર સંસ્થાન કાળ કેટલા ભેદે કહ્યો છે ? ગૌતમ ! સંસાર સંસ્થાન કાળ ચાર પ્રકારે કહ્યો. નૈરયિક, તિર્યંચ, મનુષ્ય, દેવ – સંસાર સંસ્થાનકાળ. ભગવન્ ! નૈરયિક સંસાર સંસ્થાનકાળ કેટલા પ્રકારે કહ્યો ? ગૌતમ ! ત્રણ પ્રકારે – શૂન્યકાળ, અશૂન્યકાળ અને મિશ્ર – કાળ. તિર્યંચયોનિક સંસારનો પ્રશ્ન – | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-६ यावंत | Gujarati | 72 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी रोहे नामं अनगारे पगइभद्दए पगइउवसंते पगइपयणुकोहमानमायालोभे मिउमद्दवसंपन्ने अल्लीणे विनीए समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते उड्डंजाणू अहोसिरे ज्झाणकोट्ठोवगए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।
तते णं से रोहे अनगारे जायसड्ढे जाव पज्जुवासमाणे एवं वदासी–
पुव्विं भंते! लोए, पच्छा अलोए? पुव्विं अलोए, पच्छा लोए?
रोहा! लोए य अलोए य पुव्विं पेते, पच्छा पेते–दो वेते सासया भावा, अनानुपुव्वी एसा रोहा।
पुव्विं भंते! जीवा, पच्छा अजीवा? पुव्विं अजीवा, पच्छा जीवा?
रोहा! जीवा य अजीवा य पुव्विं पेते, पच्छा पेते–दो वेते Translated Sutra: સૂત્ર– ૭૨. તે કાળે, તે સમયે શ્રમણ ભગવંત મહાવીરના શિષ્ય ‘રોહ’ નામક અણગાર હતા, જેઓ સ્વભાવથી ભદ્રક, સ્વભાવથી મૃદુ, સ્વભાવથી વિનીત, સ્વભાવથી ઉપશાંત, અલ્પ ક્રોધ – માન – માયા – લોભવાળા, નિરહંકારતા સંપન્ન, ગુરુઆશ્રિત(ગુરુભક્તિમાં લીન), કોઈને ન સંતાપનાર, વિનયી હતા. તેઓ ભગવંત મહાવીરની અતિ દૂર નહીં – અતિસમીપ નહીં એ રીતે | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-२ |
उद्देशक-१ उच्छवास अने स्कंदक | Gujarati | 112 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं भगवं महावीरे रायगिहाओ नगराओ गुणसिलाओ चेइआओ पडिनिक्खमइ,
पडिनिक्खमित्ता बहिया जनवयविहारं विहरइ।
तेणं कालेणं तेणं समएणं कयंगला नामं नगरी होत्था–वण्णओ।
तीसे णं कयंगलाए नयरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए छत्तपलासए नामं चेइए होत्था–वण्णओ।
तए णं समणे भगवं महावीरे उप्पन्ननाणदंसणधरे अरहा जिने केवली जेणेव कयंगला नगरी जेणेव छत्तपलासए चेइए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हइ, ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ जाव समोसरणं। परिसा निग्गच्छइ।
तीसे णं कयंगलाए नयरीए अदूरसामंते सावत्थी नामं नयरी होत्था–वण्णओ।
तत्थ Translated Sutra: (૧) તે કાળે તે સમયે શ્રમણ ભગવંત મહાવીર રાજગૃહી નગર પાસે આવેલ ગુણશીલ ચૈત્યથી નીકળ્યા. નીકળીને બહાર જનપદમાં વિહાર કર્યો. તે કાળે તે સમયે કૃતંગલા નામે નગરી હતી. ઉવવાઈ સૂત્રાનુસાર નગરીનું વર્ણન જાણવું. તે કૃતંગલા નગરીની બહાર ઈશાન ખૂણામાં છત્રપલાશક નામે ચૈત્ય હતું. ઉવવાઈ સૂત્રાનુસાર ઉદ્યાનનું વર્ણન જાણવું. ત્યારે | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-२ |
उद्देशक-५ अन्यतीर्थिक | Gujarati | 133 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं ते थेरा भगवंतो तेसिं समणोवासयाणं तीसे महइमहालियाए महच्चपरिसाए चाउज्जामं धम्मं परिकहेंति, तं जहा–
सव्वाओ पाणाइवायाओ वेरमणं, सव्वाओ मुसावायाओ वेरमणं,
सव्वाओ अदिन्नादानाओ वेरमणं, सव्वाओ बहिद्धादाणाओ वेरमणं।
तए णं ते समणोवासया थेराणं भगवंताणं अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठा जाव हरिसवसविसप्पमाणहियया तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेंति, करेत्ता एवं वयासी– संजमेणं भंते! किंफले? तवे किंफले?
तए णं ते थेरा भगवंतो ते समणोवासए एवं वयासी–संजमे णं अज्जो! अणण्हयफले, तवे वोदाणफले।
तए णं ते समणोवासया थेरे भगवंते एवं वयासी–जइ णं भंते! संजमे अणण्हयफले, तवे वोदाणफले। Translated Sutra: ત્યારે તે સ્થવિર ભગવંતોએ, તે શ્રાવકોને અને તે મહા – મોટી પર્ષદાને ચતુર્યામ ધર્મ કહ્યો. કેશીસ્વામીની માફક યાવત્ તે શ્રાવકોએ પોતાના શ્રાવકપણાથી તે સ્થવિરોની આજ્ઞાનું આરાધન કર્યું – યાવત્ – ધર્મકથા પૂર્ણ થઈ ત્યારે તે શ્રાવકો સ્થવિર ભગવંતો પાસે ધર્મ સાંભળીને, અવધારીને હૃષ્ટ – તુષ્ટ યાવત્ વિકસિતહૃદયી થયા. | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-२ |
उद्देशक-५ अन्यतीर्थिक | Gujarati | 134 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नगरे होत्था–सामी समोसढे जाव परिसा पडिगया।
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूई नामं अनगारे जाव संखित्तविपुलतेयलेस्से छट्ठंछट्ठेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।
तए णं भगवं गोयमे छट्ठक्खमणपारणगंसि पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेइ, बीयाए पोरिसीए ज्झाणं ज्झियाइ, तइयाए पोरिसीए अतुरियमचवलमसंभंते मुहपोत्तियं पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता भायणवत्थाइं पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता भायणाइं पमज्जइ, पमज्जित्ता भायणाइं उग्गाहेइ, उग्गाहेत्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, Translated Sutra: તે કાળે તે સમયે રાજગૃહ નામે નગર હતું યાવત્ ધર્મોપદેશ સાંભળી પર્ષદા પાછી ફરી, તે કાળે તે સમયે શ્રમણ ભગવંત મહાવીરના મોટા શિષ્ય ઇન્દ્રભૂતિ નામે અણગાર યાવત્ સંક્ષિપ્ત વિપુલ તેજોલેશ્યાવાળા, નિરંતર છઠ્ઠનો તપકર્મપૂર્વક સંયમ અને તપ વડે આત્માને ભાવતા યાવત્ વિચરતા હતા. ત્યારે તે ગૌતમસ્વામી છઠ્ઠના પારણા દિને | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-२ |
उद्देशक-५ अन्यतीर्थिक | Gujarati | 135 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तहारूवं णं भंते! समणं वा माहणं वा पज्जुवासमाणस्स किंफला पज्जुवासणा?
गोयमा! सवणफला।
से णं भंते! सवणे किंफले? नाणफले।
से णं भंते! नाणे किंफले? विन्नाणफले।
से णं भंते! विण्णाणे किंफले? पच्चक्खाणफले।
से णं भंते! पच्चक्खाणे किंफले? संजमफले।
से णं भंते! संजमे किंफले? अणण्हयफले।
से णं भंते! अणण्हए किंफले? तवफले।
से णं भंते! तवे किंफले? वोदाणफले।
से णं भंते! वोदाणे किंफले? अकिरियाफले।
सा णं भंते! अकिरिया किंफला? सिद्धिपज्जवसाणफला–पन्नत्ता गोयमा! Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૩૫. ભગવન્ ! તથારૂપ શ્રમણ કે બ્રાહ્મણની પર્યુપાસના કરનારને પર્યુપાસનાનું ફળ શું ? ગૌતમ ! પર્યુપાસનાનું ફળ શાસ્ત્ર શ્રવણ છે. ભગવન્ ! શ્રવણનું ફળ શું? – ગૌતમ! શ્રવણનું ફળ જ્ઞાન છે. ભગવન્ ! જ્ઞાનનું શું ફળ છે? – ગૌતમ! જ્ઞાનનું ફળવિજ્ઞાન છે. ભગવન્ ! વિજ્ઞાનનું ફળ શું છે? – ગૌતમ! વિજ્ઞાનનું ફળ પચ્ચક્ખાણ છે. ભગવન્ | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-२ |
उद्देशक-१० अस्तिकाय | Gujarati | 148 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अहोलोए णं भंते! धम्मत्थिकायस्स केवइयं फुसति?
गोयमा! सातिरेगं अद्धं फुसति।
तिरियलोए णं भंते! धम्मत्थिकायस्स केवइयं फुसति?
गोयमा! असंखेज्जइभागं फुसति।
उड्ढलोए णं भंते! धम्मत्थिकायस्स केवइयं फुसति?
गोयमा! देसूणं अद्धं फुसति। Translated Sutra: ભગવન્ ! ધર્માસ્તિકાયના કેટલા ભાગને અધોલોક સ્પર્શે છે ? ગૌતમ ! સાતિરેક અર્ધાભાગને. ભગવન્ ! તીર્છાલોક નો પ્રશ્ન – ગૌતમ ! અસંખ્યેય ભાગને સ્પર્શે છે. ભગવન્ ! ઉર્ધ્વલોકનો પ્રશ્ન – ગૌતમ ! દેશોન અર્ધભાગને સ્પર્શે છે. | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-३ |
उद्देशक-२ चमरोत्पात | Gujarati | 175 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ, नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वदासी–देवे णं भंते! महिड्ढीए जाव महानुभागे पुव्वामेव पोग्गलं खिवित्ता पभू तमेवं अनुपरियट्टित्ता णं गेण्हित्तए?
हंता पभू।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–देवे णं महिड्ढीए जाव महानुभागे पुव्वामेव पोग्गलं खिवित्ता पभू तमेव अनुपरियट्टित्ता णं गेण्हित्तए?
गोयमा! पोग्गले णं खित्ते समाणे पुव्वामेव सिग्घगई भवित्ता ततो पच्छा मंदगती भवति, देवे णं महिड्ढीए जाव महानुभागे पुव्विं पि पच्छा वि सीहे सीहगती चेव तुरिए तुरियगती चेव। से तेणट्ठेणं जाव पभू गेण्हित्तए।
जइ णं भंते! देवे महिड्ढीए जाव पभू तमेव Translated Sutra: ભગવન્ ! એમ કહી, ગૌતમ સ્વામીએ શ્રમણ ભગવંત મહાવીરને વાંદીને આમ કહ્યું – ભગવન્ !શું દેવ મહાઋદ્ધિ, મહાદ્યુતિ યાવત્ મહાનુભાગ છે કે જેથી પૂર્વે પુદ્ગલ ફેંકીને, તેની પાછળ જઈને ગ્રહણ કરવા સમર્થ છે ? હા, છે. ભગવન્ ! એમ કેમ કહ્યું ? ગૌતમ ! પુદ્ગલ ફેંકવામાં આવે ત્યારે પહેલા શીઘ્ર ગતિ હોય છે, પછી મંદગતિ થાય છે. મોટી ઋદ્ધિવાળો | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-३ |
उद्देशक-४ यान | Gujarati | 187 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! जे भविए नेरइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! किंलेस्सेसु उववज्जइ?
गोयमा! जल्लेस्साइं दव्वाइं परियाइत्ता कालं करेइ, तल्लेस्सेसु उववज्जइ, तं जहा–कण्हलेस्सेसु वा, नीललेस्सेसु वा, काउलेस्सेसु वा। एवं जस्स वा लेस्सा वा तस्स भाणियव्वा। जाव–
जीवे णं भंते! जे भविए जोइसिएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! किंलेस्सेसु उववज्जइ?
गोयमा! जल्लेसाइं दव्वाइं परियाइत्ता कालं करेइ तल्लेस्सेसु उववज्जइ, तं जहा–तेउलेस्सेसु।
जीवे णं भंते! जे भविए वेमाणिएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! किंलेस्सेसु उववज्जइ?
गोयमा! जल्लेस्साइं दव्वाइं परियाइत्ता कालं करेइ तल्लेस्सेसु उववज्जइ, तं जहा–तेउलेस्सेसु Translated Sutra: ભગવન્ ! જે જીવ નૈરયિકોમાં ઉત્પન્ન થવાને યોગ્ય છે, તે હે ભગવન્ ! કેવી લેશ્યાવાળાઓમાં ઉત્પન્ન થાય? ગૌતમ ! જેવી લેશ્યાવાળા દ્રવ્યોનું ગ્રહણ કરી કાળ કરે, તેવી લેશ્યાવાળામાં તે ઉત્પન્ન થાય છે. તે આ – કૃષ્ણ, નીલ કે કાપોતલેશ્યામાં. એ રીતે જે જેની લેશ્યા હોય, તે તેની લેશ્યા કહેવી. યાવત્ હે ભગવન્ ! જે જીવ જ્યોતિષ્કોમાં | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-३ |
उद्देशक-८ देवाधिपति | Gujarati | 201 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे नगरे जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी–असुरकुमाराणं भंते! देवाणं कइ देवा आहेवच्चं जाव विहरंति?
गोयमा! दस देवा आहेवच्चं जाव विहरंति, तं जहा–चमरे असुरिंदे असुरराया, सोमे, जमे, वरुणे, वेसमणे, बली वइरोयणिंदे वइरोयणराया, सोमे, जमे, वेसमणे, वरुणे।
नागकुमाराणं भंते! देवाणं कइ देवा आहेवच्चं जाव विहरंति?
गोयमा! दस देवा आहेवच्चं जाव विहरंति, तं जहा–धरणे णं नागकुमारिंदे नागकुमारराया, कालवाले, कोलवाले, सेलवाले, संखवाले, भूयानंदे नागकुमारिंदे नागकुमारराया, कालवाले, कोलवाले, संखवाले, सेलवाले।
जहा नागकुमारिंदाणं एताए वत्तव्वयाए नीयं एवं इमाणं नेयव्वं –
सुवण्णकुमाराणं – Translated Sutra: સૂત્ર– ૨૦૧. રાજગૃહ નગરમાં ભગવંત મહાવીર પધાર્યા યાવત્ પર્યુપાસના કરતા ગૌતમસ્વામીએ આમ કહ્યું કે – ભગવન્ ! અસુરકુમાર દેવો ઉપર કેટલા દેવો આધિપત્ય કરતા યાવત્ વિચરે છે ? ગૌતમ ! દશ દેવો યાવત્ આધિપત્ય કરતા વિચરે છે. તે આ – અસુરેન્દ્ર અસુરરાજ ચમર, સોમ, યમ, વરુણ, વૈશ્રમણ, વૈરોચનેન્દ્ર વૈરોચનરાજ બલિ, સોમ, યમ, વરુણ, વૈશ્રમણ. ભગવન્ | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-१ सूर्य | Gujarati | 219 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] लवणे णं भंते! समुद्दे सूरिया उदीण-पाईणमुग्गच्छ पाईण-दाहिणमागच्छंति, जच्चेव जंबुद्दीवस्स वत्तव्वया भणिया सच्चेव सव्वा अपरिसेसिया लवणसमुद्दस्स वि भाणियव्वा, नवरं–अभिलावो इमो जाणियव्वो।
जया णं भंते! लवणसमुद्दे दाहिणड्ढे दिवसे भवइ, तं चेव जाव तदा णं लवणसमुद्दे पुरत्थिम-पच्चत्थिमे णं राई भवति।
एएणं अभिलावेणं नेयव्वं जाव जया णं भंते! लवणसमुद्दे दाहिणड्ढे पढमा ओसप्पिणी पडिवज्जइ, तया णं उत्तरड्ढे वि पढमा ओसप्पिणी पडिवज्जइ; जया णं उत्तरड्ढे पढमा ओसप्पिणी पडिवज्जइ, तया णं लवणसमुद्दे पुरत्थिम-पच्चत्थिमे णं नेवत्थि ओसप्पिणी, नेवत्थि उस्सप्पिणी अवट्ठिएणं तत्थ Translated Sutra: ભગવન્ ! લવણસમુદ્રમાં સૂર્ય ઈશાન ખૂણામાં ઊગીને અગ્નિ ખૂણામાં અસ્ત થાય છે? ઇત્યાદિ. ગૌતમ ! જેમ જંબૂદ્વીપનાં સૂર્યના સંબંધમાં કહ્યું તેમ બધું જ કથાન લવણ સમુદ્રનાં સૂર્યના સંબંધમાં પણ કહેવું. વિશેષ એ કે – આ વક્તવ્યતામાં જંબૂદ્વીપ શબ્દને સ્થાને લવણ સમુદ્ર શબ્દ કહેવો. તે આલાવો આમ કહેવો – ભગવન્ ! લવણસમુદ્રના દક્ષિણાર્ધમાં | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-४ शब्द | Gujarati | 226 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] छउमत्थे णं भंते! मनुस्से हसेज्ज वा? उस्सुयाएज्ज वा?
हंता हसेज्ज वा, उस्सुयाएज्ज वा।
जहा णं भंते! छउमत्थे मनुस्से हसेज्ज वा, उस्सुयाएज्ज वा, तहा णं केवली वि हसेज्ज वा? उस्सुयाएज्ज वा?
गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–जहा णं छउमत्थे मनुस्से हसेज्ज वा, उस्सुयाएज्ज वा, नो णं तहा केवली हसेज्ज वा? उस्सुयाएज्ज वा?
गोयमा! जं णं जीवा चरित्तमोहणिज्जस्स कम्मस्स उदएणं हसंति वा, उस्सुयायंति वा। से णं केवलिस्स नत्थि। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–जहा णं छउमत्थे मनुस्से हसेज्ज वा, उस्सुयाएज्ज वा, नो णं तहा केवली हसेज्ज वा, उस्सुयाएज्ज वा।
जीवे णं भंते! हसमाणे Translated Sutra: ભગવન્ ! છદ્મસ્થ મનુષ્ય હસે તથા કંઈ લેવાને ઉત્સુક થાય ? ગૌતમ ! હા, તેમ થાય. ભગવન્ ! જેમ છદ્મસ્થ મનુષ્ય હસે અને કંઈ લેવાને ઉત્સુક થાય, તેમ કેવલિ હસે અને ઉત્સુક થાય? ગૌતમ ! આ અર્થ યોગ્ય નથી. ભગવન્ ! એમ કેમ કહ્યું કે કેવલિ, છદ્મસ્થની જેમ હશે નહિ અને કંઈ લેવા ઉત્સુક ન થાય ? ગૌતમ ! જીવો ચારિત્ર મોહનીય કર્મના ઉદયથી હસે છે અને | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-४ शब्द | Gujarati | 229 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं महासुक्काओ कप्पाओ, महासामाणाओ विमानाओ दो देवा महिड्ढिया जाव महानुभागा समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं पाउब्भूया। तए णं ते देवा समणं भगवं महावीरं वंदंति नमंसंति, मनसा चेव इमं एयारूवं वागरणं पुच्छंति–
कति णं भंते! देवानुप्पियाणं अंतेवासीसयाइं सिज्झिहिंति जाव अंतं करेहिंति?
तए णं समणे भगवं महावीरे तेहिं देवेहिं मनसे पुट्ठे तेसिं देवाणं मनसे चेव इमं एयारूवं वागरणं वागरेइ–एवं खलु देवानुप्पिया! ममं सत्त अंतेवासीसयाइं सिज्झिहिंति जाव अंतं करेहिंति।
तए णं देवा समणेणं भगवया महावीरेणं मनसे पुट्ठेणं मनसे चेव इमं एयारूवं वागरणं वागरिया समाणा Translated Sutra: તે કાળે, તે સમયે મહાશુક્ર કલ્પથી, મહાસર્ગ મહાવિમાનથી, મહર્દ્ધિક યાવત્ મહાનુભાગ બે દેવો શ્રમણ ભગવંત મહાવીર પાસે પ્રગટ થયા. તે દેવોએ ભગવંત મહાવીરને મનથી વાંદી – નમીને, મનથી જ આવા પ્રશ્નો પૂછ્યા – ભગવન્ ! આપ દેવાનુપ્રિયના કેટલા સો શિષ્યો સિદ્ધ થશે યાવત્ અંત કરશે ? ત્યારે, તે દેવોએ મનથી પ્રશ્નો પૂછ્યા પછી, ભગવંત | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-४ शब्द | Gujarati | 236 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पभू णं भंते! अनुत्तरोववाइया देवा तत्थगया चेव समाणा इहगएणं केवलिणा सद्धिं आलावं वा, संलावं वा करेत्तए? हंता पभू।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–पभू णं अनुत्तरोववाइया देवा तत्थगया चेव समाणा इहगएणं केवलिणा सद्धिं आलावं वा, संलावं वा करेत्तए?
गोयमा! जण्णं अनुत्तरोववाइया देवा तत्थगया चेव समाणा अट्ठं वा हेउं वा पसिणं वा कारणं वा वागरणं वा पुच्छंति, तण्णं इहगए केवली अट्ठे वा हेउं वा पसिणं वा कारणं वा वागरणं वा वागरेइ। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–पभू णं अनुत्तरोववाइया देवा तत्थगया चेव समाणा इहगएणं केवलिणा सद्धिं आलावं वा, संलावं वा करेत्तए।
जण्णं भंते! इहगए केवली Translated Sutra: ભગવન્ ! અનુત્તરોપપાતિક દેવો ત્યાં ઉત્પન્ન થઈને કેવલિ સાથે આલાપ – સંલાપ કરી શકે ? હા, કરી શકે. ભગવન્ !એમ કેમ કહ્યું કે અનુત્તરોપપાતિક દેવો કેવલિ સાથે આલાપ – સંલાપ કરી શકે ? ગૌતમ ! અનુત્તરોપપાતિક દેવો ત્યાં રહીને અર્થ, હેતુ, પ્રશ્ન, વ્યાકરણ કે કારણને પૂછે છે, ત્યારે અહીં રહેલ કેવલિ, તે અર્થ યાવત્ કારણનો ઉત્તર આપે | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-७ पुदगल कंपन | Gujarati | 253 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] परमाणुपोग्गले णं भंते! एयति वेयति चलति फंदइ घट्टइ खुब्भइ उदीरइ, तं तं भावं परिणमति?
गोयमा! सिय एयति वेयति जाव तं तं भावं परिणमति; सिय नो एयति जाव नो तं तं भावं परिणमति।
दुप्पएसिए णं भंते! खंधे एयति जाव तं तं भावं परिणमति?
गोयमा! सिय एयति जाव तं तं भावं परिणमति। सिय नो एयति जाव नो तं तं भावं परिणमति। सिय देसे एयति, देसे नो एयति।
तिप्पएसिए णं भंते! खंधे एयति?
गोयमा! सिय एयति, सिय नो एयति। सिय देसे एयति, नो देसे एयति। सिय देसे एयति, नो देसा एयति। सिय देसा एयंति, नो देसे एयति।
चउप्पएसिए णं भंते! खंधे एयति?
गोयमा! सिय एयति, सिय नो एयति। सिय देसे एयति, नो देसे एयति। सिय देसे एयति, नो देसा Translated Sutra: સૂત્ર– ૨૫૩. ભગવન્ ! શું પરમાણુ પુદ્ગલ કંપે, વિશેષ કંપે, સ્પંદિત થાય, અન્ય પદાર્થને સ્પર્શે, ક્ષુભિત થાય, અન્ય પદાર્થમાં મળી જાય, તે તે ભાવે પરિણમે ? ગૌતમ !કદાચ કંપે યાવત્ પરિણમે. કદાચ ન કંપે યાવત્ ન પરિણમે. ભગવન્ ! દ્વિપ્રદેશિક સ્કંધ કંપે યાવત્ પરિણમે ? ગૌતમ ! કદાચ કંપે યાવત્ પરિણમે, કદાચ ન કંપે યાવત્ ન પરિણમે. | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-७ पुदगल कंपन | Gujarati | 255 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] परमाणुपोग्गले णं भंते! किं सअड्ढे समज्झे सपएसे? उदाहु अणड्ढे अमज्झे अपएसे?
गोयमा! अणड्ढे अमज्झे अपएसे, नो सअड्ढे नो समज्झे नो सपएसे।
दुप्पएसिए णं भंते! खंधे किं सअड्ढे समज्झे सपएसे? उदाहु अणड्ढे अमज्झे अपएसे?
गोयमा! सअड्ढे अमज्झे सपएसे, नो अणड्ढे नो समज्झे नो अपएसे।
तिप्पएसिए णं भंते! खंधे पुच्छा।
गोयमा! अणड्ढे समज्झे सपएसे, नो सअड्ढे नो अमज्झे नो अपएसे।
जहा दुप्पएसिओ तहा जे समा ते भाणियव्वा, जे विसमा ते जहा तिप्पएसिओ तहा भाणियव्वा।
संखेज्जपएसिए णं भंते! खंधे किं सअड्ढे? पुच्छा।
गोयमा! सिय सअड्ढे अमज्झे सपएसे, सिय अणड्ढे समज्झे सपएसे।
जहा संखेज्जपएसिओ तहा असंखेज्जपएसिओ Translated Sutra: ભગવન્ ! પરમાણુ પુદ્ગલ સાર્ધ, સમધ્ય, સપ્રદેશ છે ? કે અનર્ધ, અમધ્ય, અપ્રદેશ છે ? ગૌતમ ! તે અનર્ધ, અમધ્ય, અપ્રદેશ છે, સાર્ધ, સમધ્ય, સપ્રદેશ નથી. ભગવન્ ! દ્વિપ્રદેશિક સ્કંધ ? સાર્ધ, સમધ્ય, સપ્રદેશ છે ? કે અનર્ધ, અમધ્ય, અપ્રદેશ છે ? ગૌતમ ! દ્વિપ્રદેશિક સ્કંધ, સાર્ધ, સમધ્ય, સપ્રદેશ છે, અનર્ધ, અમધ્ય, અપ્રદેશ નથી. ભગવન્ ! ત્રિપ્રદેશિક | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-७ पुदगल कंपन | Gujarati | 260 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइया णं भंते! किं सारंभा सपरिग्गहा? उदाहु अनारंभा अपरिग्गहा?
गोयमा! नेरइया सारंभा सपरिग्गहा, नो अनारंभा अपरिग्गहा।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–नेरइया सारंभा सपरिग्गहा, नो अनारंभा अपरिग्गहा?
गोयमा! नेरइया णं पुढविकायं समारंभंति, आउकायं समारंभंति, तेउकायं समारंभंति, वाउकायं समारंभंति, वणस्सइकायं समारंभंति तसकायं समारंभंति, सरीरा परिग्गहिया भवंति, कम्मा परिग्गहिया भवंति, सचित्ताचित्त-मीसयाइं दव्वाइं परिग्गहियाइं भवंति। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–नेरइया सारंभा सपरिग्गहा, नो अनारंभा अपरिग्गहा।
असुरकुमारा णं भंते! किं सारंभा? पुच्छा।
गोयमा! असुरकुमारा Translated Sutra: ભગવન્ ! નૈરયિકો શું સારંભ, સપરિગ્રહ છે કે અનારંભ, અપરિગ્રહ ? ગૌતમ ! નારકો સારંભ, સપરિગ્રહ છે, પણ અનારંભ અને અપરિગ્રહી નહીં. ભગવન્ ! એમ કેમ કહ્યું ? ગૌતમ ! નૈરયિકો પૃથ્વીકાય યાવત્ ત્રસકાયનો સમારંભ કરે છે. તેથી તે સારંભી છે. તેઓએ શરીરને પરિગૃહિત કર્યું છે, કર્મો પરિગૃહિત કર્યા છે. તેમજ સચિત્ત, અચિત્ત, મિશ્ર દ્રવ્યો | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-८ निर्ग्रंथी पुत्र | Gujarati | 263 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] भंतेत्ति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–जीवा णं भंते! किं वड्ढंति? हायंति? अवट्ठिया?
गोयमा! जीवा नो वड्ढंति, नो हायंति, अवट्ठिया।
नेरइया णं भंते! किं वड्ढंति? हायंति? अवट्ठिया?
गोयमा! नेरइया वड्ढंति वि, हायंति वि, अवट्ठिया वि।
जहा नेरइया एवं जाव वेमाणिया।
सिद्धा णं भंते! पुच्छा।
गोयमा! सिद्धा वड्ढंति, नो हायंति, अवट्ठिया वि।
जीवा णं भंते! केवतियं कालं अवट्ठिया?
गोयमा! सव्वद्धं।
नेरइया णं भंते! केवतियं कालं वड्ढंति?
गोयमा! जहन्नेणं एगं समयं, उक्कोसेणं आवलियाए असंखेज्जइभागं।
एवं हायंति वि।
नेरइया णं भंते! केवतियं कालं अवट्ठिया?
गोयमा! Translated Sutra: ભગવન્ ! એમ કહી, ગૌતમસ્વામીએ યાવત્ એમ કહ્યું – ભગવન્ ! જીવો વધે છે, ઘટે છે કે અવસ્થિત રહે છે ? ગૌતમ ! જીવો વધતા કે ઘટતા નથી, પણ અવસ્થિત રહે છે. ભગવન્ ! નૈરયિકો વધે છે, ઘટે છે કે અવસ્થિત રહે છે ? ગૌતમ ! નૈરયિકો વધે છે, ઘટે છે અને અવસ્થિત પણ રહે છે. નૈરયિકની માફક વૈમાનિક સુધી જાણવું. સિદ્ધો વિશે પ્રશ્ન. ગૌતમ ! સિદ્ધો વધે | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-९ राजगृह | Gujarati | 269 | Gatha | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] किमिदं रायगिहं ति य, उज्जोए अंधयार-समए य ।
पासंतिवासिपुच्छा, रातिंदिय देवलोगा य ॥ Translated Sutra: સૂત્ર– ૨૬૯. રાજગૃહ શું છે ?, ઉદ્યોત – અંધકાર, સમય, ભ૦ પાર્શ્વના શિષ્યોની રાત્રિ – દિવસના પ્રશ્નો, દેવલોક આ ઉદ્દેશામાં આ વિષયો છે.. સૂત્ર– ૨૭૦. ભગવન્ ! તે એમ જ છે, એમ જ છે. સૂત્ર સંદર્ભ– ૨૬૯, ૨૭૦ | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-६ |
उद्देशक-१ वेदना | Gujarati | 274 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहे णं भंते! करणे पन्नत्ते?
गोयमा! चउव्विहे करणे पन्नत्ते, तं जहा–मनकरणे, वइकरणे, कायकरणे, कम्मकरणे।
नेरइयाणं भंते! कतिविहे करणे पन्नत्ते?
गोयमा! चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–मनकरणे, वइकरणे, कायकरणे, कम्मकरणे।
एवं पंचिंदियाणं सव्वेसिं चउव्विहे करणे पन्नत्ते।
एगिंदियाणं दुविहे–कायकरणे य, कम्मकरणे य।
विगलिंदियाणं तिविहे–वइकरणे, कायकरणे, कम्मकरणे।
नेरइयाणं भंते! किं करणओ असायं वेदनं वेदेंति? अकरणओ असायं वेदनं वेदेंति?
गोयमा! नेरइया णं करणओ असायं वेदनं वेदेंति, नो अकरणओ असायं वेदनं वेदेंति।
से केणट्ठेणं? गोयमा! नेरइया णं चउव्विहे करणे पन्नत्ते, तं जहा–मनकरणे, Translated Sutra: ભગવન્ ! કરણ કેટલા પ્રકારે છે? ગૌતમ ! ચાર. તે આ – મનકરણ, વચનકરણ, કાયકરણ, કર્મકરણ. ભગવન્ ! નૈરયિકોને કેટલા કરણ છે ? ચાર. મનકરણ આદિ ચાર. સર્વે પંચેન્દ્રિયોને ચાર કરણ છે. એકેન્દ્રિયોને બે છે – કાયકરણ અને કર્મકરણ. વિકલેન્દ્રિયોને ત્રણ – વચનકરણ, કાયકરણ, કર્મકરણ. ભગવન્ ! નૈરયિકો કરણથી અશાતા વેદના વેદે કે અકરણથી વેદે ? ગૌતમ | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-६ |
उद्देशक-३ महाश्रव | Gujarati | 282 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] वत्थस्स णं भंते! पोग्गलोवचए किं सादीए सपज्जवसिए? सादीए अपज्जवसिए? अनादीए सपज्जवसिए? अनादीए अपज्जवसिए?
गोयमा! वत्थस्स णं पोग्गलोवचए सादीए सपज्जवसिए, नो सादीए अपज्जवसिए, नो अनादीए सपज्जवसिए, नो अनादीए अपज्जवसिए।
जहा णं भंते! वत्थस्स पोग्गलोवचए सादीए सपज्जवसिए, नो सादीए अपज्जवसिए, नो अनादीए सपज्जवसिए, नो अनादीए अपज्जवसिए, तहा णं जीवाणं कम्मोवचए पुच्छा।
गोयमा! अत्थेगतियाणं जीवाणं कम्मोवचए सादीए सपज्जवसिए, अत्थेगतियाणं अनादीए सपज्जवसिए, अत्थेगतियाणं अनादीए अपज्जवसिए, नो चेव णं जीवाणं कम्मोवचए सादीए अपज्जवसिए।
से केणट्ठेणं? गोयमा! इरियावहियबंधयस्स कम्मोवचए Translated Sutra: ભગવન્ ! વસ્ત્રને જે પુદ્ગલનો ઉપચય થયો તે શું ૧. સાદિ સાંત છે, ૨. સાદિ અનંત છે, ૩. અનાદિ સાંત છે કે, ૪. અનાદિ અનંત છે? ગૌતમ ! વસ્ત્રમાં જે પુદ્ગલોનો ઉપચય થાય તે સાદિ સાંત છે. અન્ય ત્રણ ભંગ નથી. ભગવન્ ! જેમ વસ્ત્રનો પુદ્ગલોપચય સાદિ સાંત છે, પણ અન્ય ત્રણ ભંગે નથી, તેમ જીવોનો કર્મોપચય સાદિ સાંત છે, કે યાવત્ અનાદિ અનંત છે | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-७ |
उद्देशक-६ आयु | Gujarati | 355 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–जीवे णं भंते! जे भविए नेरइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! किं इहगए नेरइयाउयं पकरेइ? उववज्जमाणे नेरइयाउयं पकरेइ? उववन्ने नेरइयाउयं पकरेइ?
गोयमा! इहगए नेरइयाउयं पकरेइ, नो उववज्जमाणे नेरइयाउयं पकरेइ, नो उववन्ने नेरइयाउयं पकरेइ। एवं असुरकुमारेसु वि, एवं जाव वेमाणिएसु।
जीवे णं भंते! जे भविए नेरइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! किं इहगए नेरइयाउयं पडिसंवेदेइ? उववज्जमाणे नेरइयाउयं पडिसंवेदेइ? उववन्ने नेरइयाउयं पडिसंवेदेइ?
गोयमा! नो इहगए नेरइयाउयं पडिसंवेदेइ, उववज्जमाणे नेरइयाउयं पडिसंवेदेइ, उववन्ने वि नेरइयाउयं पडिसंवेदेइ। एवं जाव वेमाणिएसु।
जीवे Translated Sutra: સૂત્ર– ૩૫૫. રાજગૃહિમાં ગૌતમસ્વામીએ પૂછ્યું કે – ભગવન્ !જે જીવ નરકમાં ઉત્પન્ન થવાને યોગ્ય હોય, તે આ ભવમાં રહીને નૈરયિકાયુ બાંધે કે નરકમાં ઉત્પન્ન થતો નૈરયિકાયુ બાંધે કે ત્યાં ઉત્પન્ન થઈને પછી નૈરયિકાયુ બાંધે? ગૌતમ ! તે આ ભવમાં રહીને નૈરયિકાયુ બાંધે,, ત્યાં ઉત્પન્ન થતો કે ઉત્પન્ન થઈને નૈરયિકાયુ ન બાંધે. આ પ્રમાણે |