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Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१४ तेतलीपुत्र

Hindi 155 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: तए णं तस्स तेयलिपुत्तस्स सुभेणं परिणामेणं जाईसरणे समुप्पन्ने। तए णं तेयलिपुत्तस्स अयमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–एवं खलु अहं इहेव जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे पोक्खलावईए विजए पोंडरीगिणीए रायहाणीए महापउमे नामं राया होत्था। तए णं हं थेराणं अंतिए मुंडे भवित्ता पव्वइए सामाइयमाइयाइं चोद्दसपुव्वाइं अहिज्जित्ता बहूणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए महासुक्के कप्पे देवत्ताए उववन्ने। तए णं हं ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अनंतरं चयं चइत्ता इहेव तेयलिपुरे तेयलिस्स अमच्चस्स भद्दाए भारियाए दारगत्ताए

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ तेतलिपुत्र को शुभ परिणाम उत्पन्न होने से, जातिस्मरण ज्ञान प्राप्ति हुई। तब तेतलिपुत्र के मन में इस प्रकार का विचार उत्पन्न हुआ – निश्चय ही मैं इस जम्बूद्वीप नामक द्वीप में, महाविदेह क्षेत्र में पुश्कलावती विजय में पुण्डरीकिणी राजधानी में महापद्म नामक राजा था। फिर मैंने स्थविर मुनि के निकट
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१६ अवरकंका

Hindi 161 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सा णं तओनंतरं उव्वट्टित्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे चंपाए नयरीए सागरदत्तस्स सत्थवाहस्स भद्दाए भारियाए कुच्छिंसि दारियत्ताए पच्चायाया। तए णं सा भद्दा सत्थवाही नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं दारियं पयाया–सुकुमालकोमलियं गयता-लुयसमाणं। तए णं तीसे णं दारियाए निव्वत्तबारसाहियाए अम्मापियरो इमं एयारूवं गोण्णं गुणनिप्फण्ण नामधेज्जं करेंति–जम्हा णं अम्ह एसा दारिया सुकुमाल-कोमलिया गयतालुयसमाणा, तं होउ णं अम्हं इमीसे दारियाए नामधेज्जं सुकुमालिया-सुकुमालिया। तए णं तीसे दारियाए अम्मापियरो नामधेज्जं करेंति सूमालियत्ति। तए णं सा सूमालिया दारिया पंचधाईपरिग्गहिया

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ वह पृथ्वीकाय से नीकलकर इसी जम्बूद्वीप में, भारतवर्ष में, चम्पा नगरी में सागरदत्त सार्थवाह की भद्रा भार्या की कूंख में बालिका के रूप में उत्पन्न हुई। तब भद्रा सार्थवाही ने नौ मास पूर्ण होने पर बालिका का प्रसव किया। वह बालिका हाथी के तालु के समान अत्यन्त सुकुमार और कोमल थी। उस बालिका के बारह दिन
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१६ अवरकंका

Hindi 168 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे पंचालेसु जनवएसु कंपिल्लपुरे नामं नयरे होत्था–वण्णओ। तत्थ णं दुवए नामं राया होत्था–वण्णओ। तस्स णं चुलणी देवी। धट्ठज्जुणे कुमारे जुवराया। तए णं सा सूमालिया देवी ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं ठिइक्खएणं भवक्खएणं अनंतरं चयं चइत्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे पंचालेसु जनवएसु कंपिल्लपुरे नयरे दुवयस्स रन्नो चुलणीए देवीए कुच्छिंसि दारियत्ताए पच्चायाया। तए णं सा चुलणी देवी नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अद्धट्ठमाण य राइंदियाणं वीइक्कंताणं सुकुमाल-पाणिपायं जाव दारियं पयाया। तए णं तीसे दारियाए निव्वत्तबारसाहियाए

Translated Sutra: उस काल उस समय में इसी जम्बूद्वीप नामक द्वीपमें, भरतक्षेत्रमें पाँचाल देशमें काम्पिल्यपुर नामक नगर था। (वर्णन) वहाँ द्रुपद राजा था। (वर्णन) द्रुपद राजा की चुलनी नामक पटरानी थी और धृष्टद्युम्न नामक कुमार युवराज था। सुकुमालिका देवी उस देवलोक से, आयु भव और स्थिति को समाप्त करके यावत्‌ देवीशरीर का त्याग करके
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१६ अवरकंका

Hindi 175 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स कच्छुल्लनारयस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–अहो णं दोवई देवी रूवेण य जोव्वणेण य लावण्णेण य पंचहिं पंडवेहिं अवत्थद्धा समाणी ममं नो आढाइ नो परियाणइ नो अब्भुट्ठेइ नो पज्जुवासइ। तं सेयं खलु मम दोवईए देवीए विप्पियं करेत्तए त्ति कट्टु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता पंडुरायं आपुच्छइ, आपुच्छित्ता उप्पयणिं विज्जं आवाहेइ, आवाहेत्ता ताए उक्किट्ठाए तुरियाए चवलाए चंडाए सिग्घाए उद्धुयाए जइणाए छेयाए विज्जाहरगईए लवणसमुद्दं मज्झंमज्झेणं पुरत्थाभिमुहे वीईवइउं पयत्ते यावि होत्था। तेणं कालेणं तेणं समएणं धायइसंडे दीवे पुरत्थिमद्ध-दाहिणड्ढ-भरहवासे

Translated Sutra: तब कच्छुल्ल नारद को इस प्रकार का अध्यवसाय चिन्तित प्रार्थित मनोगत संकल्प उत्पन्न हुआ कि – ‘अहो! यह द्रौपदी अपने रूप, यौवन, लावण्य और पाँच पाण्डवों के कारण अभिमानिनी हो गई है, अत एव मेरा आदर नहीं करती यावत्‌ मेरी उपासना नहीं करती। अत एव द्रौपदी देवी का अनिष्ट करना मेरे लिए उचित है।’ इस प्रकार नारद ने विचार करके
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१६ अवरकंका

Hindi 176 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से जुहिट्ठिल्ले राया तओ मुहुत्तंतरस्स पडिबुद्धे समाणे दोवइं देविं पासे अपासमाणे सयणिज्जाओ उट्ठेइ, उट्ठेत्ता दोवईए देवीए सव्वओ समंता मग्गणगवेसणं करेइ, करेत्ता दोवईए देवीए कत्थइ सुइं वा खुइं वा पवत्तिं वा अलभमाणे जेणेव पंडू राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पंडुं रायं एवं वयासी–एवं खलु ताओ! ममं आगासतलगंसि सुहपसुत्तस्स पासाओ दोवई देवी न नज्जइ केणइ देवेन वा दानवेन वा किण्णरेण वा किंपुरिसेण वा महोरगेण वा गंधव्वेण वा हिया वा निया वा अवक्खित्ता वा। तं इच्छामि णं ताओ! दोवईए देवीए सव्वओ समंता मग्गणगवेसणं करित्तए। तए णं से पंडू राया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ,

Translated Sutra: इधर द्रौपदी का हरण हो जाने के पश्चात्‌ थोड़ी देर में युधिष्ठिर राजा जागे। वे द्रौपदी देवी को अपने पास न देखते हुए शय्या से उठे। सब तरफ द्रौपदी देवी की मार्गणा करने लगे। किन्तु द्रौपदी देवी की कहीं भी श्रुति, क्षुति या प्रवृत्ति न पाकर जहाँ पाण्डु राजा थे वहाँ पहुँचे। वहाँ पहुँचकर पाण्डु राजा से इस प्रकार बोले
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१६ अवरकंका

Hindi 177 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं धायइसंडे दीवे पुरत्थिमद्धे भारहे वासे चंपा नामं नयरी होत्था। पुण्णभद्दे चेइए। तत्थ णं चंपाए नयरीए कविले नामं वासुदेवे राया होत्था–महताहिमवंत-महंत-मलय-मंदर-महिंदसारे वण्णओ। तेणं कालेणं तेणं समएणं ए अरहा चंपाए पुण्णभद्दे समोसढे। कविले वासुदेवे धम्मं सुणेइ। तए णं से कविले वासुदेवे मुनिसुव्वयस्स अरहओ अंतिए धम्मं सुणेमाणे कण्हस्स वासुदेवस्स संखसद्दं सुणेइ। तए णं तस्स कविलस्स वासुदेवस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–किमन्ने धायइसंडे दीवे भारहे वासे दोच्चे वासुदेवे समुप्पन्ने, जस्स णं अयं संखसद्दे

Translated Sutra: उस काल उस समयमें, धातकीखण्ड द्वीप में, पूर्वार्ध भाग के भरतक्षेत्रमें, चम्पा नामक नगरी थी। पूर्णभद्र चैत्य था। उसमें कपिल वासुदेव राजा था। वह महान हिमवान पर्वत समान महान था। उस काल और उस समय में मुनिसुव्रत अरिहंत चम्पा नगरी के पूर्णभद्र चैत्य में पधारे। कपिल वासुदेव ने उनसे धर्मोपदेश श्रवण किया। उसी समय
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१९ पुंडरीक

Hindi 213 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं अट्ठारसमस्स नायज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, एगूणवीसइमस्स णं भंते! नायज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे पुव्वविदेहे, सीयाए महानईए उत्तरिल्ले कूले, नीलवंतस्स [वासहरपव्वयस्स?] दाहिणेणं, उत्तरिल्लस्स सीयामुहवनसंडस्स पच्चत्थिमेणं, एगसेलगस्स वक्खारपव्वयस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं पुक्खलावई नामं विजए पन्नत्ते। तत्थ णं पुंडरीगिणी नामं रायहाणी पन्नत्ता–नवजोयणवित्थिण्णा दुवालस जोयणायामा जाव पच्चक्खं देवलोगभूया पासाईया दरिसणीया अभिरूवा पडिरूवा। तीसे णं पुंडरीगिणीए

Translated Sutra: जम्बूस्वामी प्रश्न करते हैं – ‘भगवन्‌ ! यदि यावत्‌ सिद्धिप्राप्त श्रमण भगवान महावीर ने अठारहवे ज्ञात – अध्ययन का यह अर्थ कहा है तो उन्नीसवे ज्ञात – अध्ययन का श्रमण भगवान महावीर ने क्या अर्थ कहा है ? श्री सुधर्मास्वामी ने जम्बूस्वामी के प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा – जम्बू ! उस काल और उस समय में इसी जम्बूद्वीप
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ मल्ली

Gujarati 76 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सत्तमस्स नायज्झयणस्स अठमट्ठे पन्नत्ते, अट्ठमस्स णं भंते! नायज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणु इहेव जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमेणं, निसढस्स वासहरपव्वयस्स उत्तरेणं, सोओदाए महानदीए दाहिणेणं, सुहावहस्स वक्खारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुद्दस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं सलिलावई नामं विजए पन्नत्ते। तत्थ णं सलिलावईविजए वीयसोगा नामं रायहाणी–नवजोयणवित्थिण्णा जाव पच्चक्खं देवलोग-भूया। तीसे णं वीयसोगाए रायहाणीए उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए इंदकुंभे

Translated Sutra: સૂત્ર– ૭૬. ભગવન્‌ ! જો શ્રમણ યાવત્‌ સિદ્ધિ ગતિ સંપ્રાપ્ત ભગવંત મહાવીરે સાતમા જ્ઞાત અધ્યયનનો આ અર્થ કહ્યો, તો આઠમા જ્ઞાત અધ્યયનનો શો અર્થ કહ્યો ? હે જંબૂ ! તે કાળે, તે સમયે આ જ જંબૂદ્વીપના મહાવિદેહ ક્ષેત્રમાં મેરુ પર્વતની પશ્ચિમે નિષધ વર્ષધર પર્વતની ઉત્તરે, શીતોદા મહાનદીની દક્ષિણે સુખાવહ વક્ષસ્કાર પર્વતની
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ मल्ली

Gujarati 81 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं बत्तीसं सागरोवमाइं ठिई पन्नत्ता। तत्थ णं महब्बलवज्जाणं छण्हं देवाणं देसूणाइं बत्तीसं सागरोवमाइं ठिई। महब्बलस्स देवस्स य पडिपुण्णाइं बत्तीसं सागरोवमाइं ठिई। तए णं ते महब्बलवज्जा छप्पि देवा जयंताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठितिक्खएणं अनंतरं च यं चइत्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे विसुद्धपिइमाइवंसेसु रायकुलेसु पत्तेयं-पत्तेयं कुमारत्ताए पच्चायाया, तं जहा– पडिबुद्धी इक्खागराया, चंदच्छाए अंगराया, संखे कासिराया, रुप्पी कुणालाहिवई, अदीनसत्तू कुरुराया, जियसत्तू पंचालाहिवई। तए णं से महब्बले देवे तिहिं नाणेहिं समग्गे उच्चट्ठाणगएसुं

Translated Sutra: ત્યાં કેટલાક દેવોની સ્થિતિ ૩૨ – સાગરોપમ છે, ત્યાં મહાબલ સિવાયના છ દેવોની સ્થિતિ દેશોન ૩૨ – સાગરોપમ હતી, મહાબલ દેવની પ્રતિપૂર્ણ ૩૨ – સાગરોપમ સ્થિતિ હતી. ત્યારપછી તે મહાબલ સિવાયના છ દેવો ત્યાંથી દેવ સંબંધી આયુનો, દેવ સંબંધી સ્થિતિનો, દેવ સંબંધી ભવનો ક્ષય થતા અનંતર ચ્યવીને આ જંબૂદ્વીપના ભરતક્ષેત્રમાં વિશુદ્ધ
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ मल्ली

Gujarati 82 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं अहेलोगवत्थव्वाओ अट्ठ दिसाकुमारीमहयरियाओ जहा जंबुद्दीवपन्नत्तीए जम्मणुस्सवं, नवरं–मिहिलाए कुंभस्स पभावईए अभिलाओ संजोएयव्वो जाव नंदीसरवरदीवे महिमा। तया णं कुंभए राया बहूहिं भवनवइ-वाणमंतर-जोइस-वेमाणिएहिं देवेहिं तित्थयरजम्मणा-भिसेयमहिमाए कयाए समाणीए पच्चूसकालसमयंसि नगरगुत्तिए सद्दावेइ जायकम्मं जाव नाम-करणं–जम्हा णं अम्हं इमीसे दारियाए माऊए मल्लसय-णिज्जंसि डोहले विणीए, तं होउ णं अम्हं दारिया नामेणं मल्ली। तए णं सा मल्ली पंचधाईपरिक्खित्ता जाव सुहंसुहेणं परिवड्ढई०।

Translated Sutra: સૂત્ર– ૮૨. તે કાળે, તે સમયે અધોલોકમાં વસનારી આઠ મહત્તરિકા દિશાકુમારીઓ, જેમ જંબૂદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિમાં જન્મ – વર્ણન છે, તે સર્વે કહેવું. વિશેષ આ – મિથિલામાં કુંભના ભવનમાં, પ્રભાવતીનો આલાવો કહેવો. યાવત્‌ નંદીશ્વર દ્વીપમાં મહોત્સવ કર્યો. ત્યારપછી કુંભરાજા તથા ઘણા ભવનપતિ આદિ ચારે દેવોએ તીર્થંકરનો જન્માભિષેક યાવત્‌
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान

Gujarati 9 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं नायाणं एगूणवीसं अज्झयणा पन्नत्ता, तं जहा–उक्खित्तणाए जाव पुंडरीए त्ति य। पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे दाहिणड्ढभरहे रायगिहे नामं नयरे होत्था –वण्णओ। गुणसिलए चेतिए–वण्णओ। तत्थ णं रायगिहे नयरे सेणिए नामं राया होत्था–महताहिमवंत-महंत-मलय-मंदर-महिंदसारे वण्णओ।

Translated Sutra: સૂત્ર– ૯. ભગવન્‌ ! જો શ્રમણ યાવત્‌ સિધ્ધિસ્થાનને સંપ્રાપ્તે જ્ઞાત કથાના ૧૯ – અધ્યયનો કહ્યા છે – ઉત્ક્ષિપ્ત યાવત્‌ પુંડરીક. તો. ભગવન્ ! પહેલા અધ્યયનનો શો અર્થ કહ્યો છે ? હે જંબૂ! તે કાળે, તે સમયે આ જંબૂદ્વીપ દ્વીપના ભરતક્ષેત્રના દક્ષિણાર્દ્ધ ભરતમાં રાજગૃહ નામે નગર હતું. ગુણશીલ ચૈત્ય હતું. તે રાજગૃહ નગરમાં શ્રેણિક
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान

Gujarati 19 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं सा धारिणी देवी तंसि दोहलंसि अविणिज्जमाणंसि असंपत्तदोहला असंपुण्णदोहला असम्मानियदोहला सुक्का भुक्खा निम्मंसा ओलुग्गा ओलुग्गसरीरा पमइलदुब्बला किलंता ओमंथियवयण-नयनकमला पंडुइयमुही करयलमलिय व्व चंपगमाला नित्तेया दोणविवण्णवयणा जहोचिय-पुप्फ-गंध-मल्लालंकार-हारं अनभिलसमाणी किड्डारमणकिरियं परिहावेमाणी दीना दुम्मणा निरानंदा भूमिगयदिट्ठीया ओहयमनसंकप्पा करतलपल्हत्थमुही अट्टज्झाणोवगया ज्झियाइ। तए णं तीसे धारिणीए देवीए अंगपडिचारियाओ अब्भिंतरियाओ दासचेडियाओ धारिणिं देविं ओलुग्ग ज्झियायमाणिं पासंति, पासित्ता एवं वयासी– किण्णं तुमे देवानुप्पिए!

Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૯. ત્યારે તે ધારિણીદેવી તે દોહદ પૂર્ણ ન થવાથી, દોહદ સંપન્ન ન થવાથી, દોહદ સંપૂર્ણ ન થવાથી, દોહદ સન્માનનીય ન થવાના કારણે શુષ્ક, ભૂખી, નિર્માંસ, રુગ્ણ, જીર્ણ – જીર્ણશરીરી, મ્લાન – કાંતિહીન, દુર્બલ અને કમજોર થઇ ગઈ. તેણી વદનકમળ અને નયનકમળ નમાવીને રહી હતી, તે ફીક્કા મુખવાળી, હથેળીમાં મસળેલ ચંપકમાલાવત્‌ નિસ્તેજ,
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान

Gujarati 37 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं मेहा! इ समणे भगवं महावीरे मेहं कुमारं एवं वयासी–से नूनं तुमं मेहा! राओ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि समणेहिं निग्गंथेहिं वायणाए पुच्छणाए परियट्टणाए धम्माणुजोगचिंताए य उच्चारस्स वा पासवणस्स वा अइगच्छमाणेहि य निग्गच्छमाणेहि य अप्पेगइएहिं हत्थेहिं संघट्टिए अप्पेगइएहिं पाएहिं संघट्टिए अप्पेगइएहिं सीसे संघट्टिए अप्पेगइएहिं पोट्टे संघट्टिए अप्पेगइएहिं कायंसि संघट्टिए अप्पेगइएहिं ओलंडिए अप्पेगइएहिं पोलंडिए अप्पेगइएहिं पाय-रय-रेणु-गुंडिए कए। एमहालियं च णं राइं तुमं नो संचाएसि मुहुत्तमवि अच्छिं निमिल्लावेत्तए। तए णं तुज्ज मेहा! इमेयारूवे अज्झत्थिए

Translated Sutra: ત્યારે મેઘને આમંત્રી શ્રમણ ભગવંત મહાવીરે મેઘકુમારને આમ કહ્યું – હે મેઘ ! તું રાત્રિના પહેલા અને છેલ્લા કાળ સમયમાં શ્રમણ – નિર્ગ્રન્થને વાચના, પૃચ્છના આદિ માટે જવા આવવાના કારણે લાંબી રાત્રિ મુહૂર્ત્ત માત્ર પણ ઊંઘી શક્યો નહીં, ત્યારે હે મેઘ ! આ આવા સ્વરૂપનો આધ્યાત્મિક યાવત્‌ સંકલ્પ થયો કે – જ્યાં સુધી હું ઘેર
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ मल्ली

Gujarati 87 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं अंगनामं जनवए होत्था। तत्थ णं चंपा नामं नयरी होत्था। तत्थ णं चंपाए नयरीए चंदच्छाए अंगराया होत्था। तत्थ णं चंपाए नयरीए अरहन्नगपामोक्खा बहवे संजत्ता-नावावाणियगा परिवसंति–अड्ढा जाव बहुजनस्स अपरिभूया। तए णं से अरहन्नगे समणोवासए यावि होत्था–अहिगयजीवाजीवे वण्णओ। तए णं तेसिं अरहन्नगपामोक्खाणं संजत्ता-नावावाणियगाणं अन्नया कयाइ एगयओ सहियाणं इमेयारूवे मिहो-कहा समुल्लावे समुप्पज्जित्था–सेयं खलु अम्हं गणियं च धरिमं च मेज्जं च पारिच्छेज्जं च भंडगं गहाय लवणसमुद्दं पोयवहणेणं ओगाहित्तए ति कट्टु अन्नमन्नस्स एयमट्ठं पडिसुणेंति, पडिसुणेत्ता

Translated Sutra: સૂત્ર– ૮૭. તે કાળે, તે સમયે અંગ જનપદ હતું, તેમાં ચંપાનગરી હતી. ત્યાં ચંદ્રચ્છાય અંગરાજ હતો. તે ચંપા નગરીમાં અર્હન્નક આદિ ઘણા સાંયાત્રિક નૌવણિક રહેતા હતા. તેઓ સમૃદ્ધ યાવત્‌ અપરિભૂત હતા. તેમાં તે અર્હન્નક નામે શ્રાવક હતો, તે જીવા – જીવ આદિ તત્ત્વનો જ્ઞાતા હતો ઇત્યાદિ શ્રાવકનું વર્ણન કરવું. ત્યાર પછી તે અર્હન્નક
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ मल्ली

Gujarati 92 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं पंचाले जनवए। कंपिल्लपुरे नयरे। जियसत्तू नामं राया पंचालाहिवई। तस्स णं जियसत्तुस्स धारिणीपामोक्खं देवीसहस्सं ओरोहे होत्था। तत्थ णं मिहिलाए चोक्खा नामं परिव्वाइया–रिउव्वेय-यज्जुव्वेद-सामवेद-अहव्वणवेद-इतिहास-पंचमाणं निघंटुछट्ठाणं संगोवंगाणं सरहस्साणं चउण्हं वेदाणं सारगा जाव बंभण्णएसु य सत्थेसु सुपरिणिट्ठिया यावि होत्था। तए णं सा चोक्खा परिव्वाइया मिहिलाए बहूणं राईसर जाव सत्थवाहपभिईणं पुरओ दानधम्मं च सोयधम्मं च तित्थाभिसेयं च आघवेमाणी पण्णवेमाणी परूवेमाणी उवदंसेमाणी विहरइ। तए णं सा चोक्खा अन्नया कयाइं तिदंडं च कुंडियं च

Translated Sutra: સૂત્ર– ૯૨. તે કાળે, તે સમયે પાંચાલ જનપદમાં કંપિલપુર નગરમાં જિતશત્રુ નામે પાંચાલાધિપતિ રાજા હતો. તેને ધારિણી આદિ હજાર રાણી અંતઃપુરમાં હતી. મિથિલા નગરીમાં ચોકખા નામે પરિવ્રાજિકા રહેતી હતી. તે ઋગ્વેદ આડી શાસ્ત્રોની જ્ઞાતા ઈત્યાદિ હતી. તે ચોક્ષા પરિવ્રાજિકા મિથિલામાં ઘણા રાજા, ઇશ્વર યાવત્‌ સાર્થવાહ આદિ પાસે
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ मल्ली

Gujarati 96 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं सक्कस्स आसणं चलइ। तए णं से सक्के देविंदे देवराया आसणं चलियं पासइ, पासित्ता ओहिं पउंजइ, पउंजित्ता मल्लिं अरहं ओहिणा आमोएइ। इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्प-ज्जित्था–एवं खलु जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे मिहिलाए नय-रीए कुंभगस्स रन्नो [धूया पभावईए देवीए अत्तया?] मल्ली अरहा निक्खमिस्सामित्ति मणं पहारेइ। तं जीयमेयं तीय-पच्चुप्पण्णमणानागयाणं सक्काणं अरहंताणं भगवंताणं निक्खममाणाणं इमेयारूवं अत्थसंपयाणं दलइत्तए, [तं जहा–

Translated Sutra: સૂત્ર– ૯૬. તે કાળે, તે સમયે શક્રનું આસન ચલિત થયું, ત્યારે દેવેન્દ્ર દેવરાજ શક્રે આસનને ચલિત થતું જોયું, અવધિ પ્રયોજ્યું, મલ્લ અરહંતને અવધિ વડે જોઈને આવો મનોગત સંકલ્પ ઉપજ્યો કે – નિશ્ચે જંબૂદ્વીપના ભરતક્ષેત્રમાં મિથિલામાં, કુંભકરાજાની પુત્રી, મલ્લી અરહંતે દીક્ષા લેવાનો મનોસંકલ્પ કર્યો છે. તો અતીત – અનાગત
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ मल्ली

Gujarati 109 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं सव्वदेवाणं आसणाइं चलेंति, समोसढा धम्मं सुणेंति, सुणेत्ता जेणेव नंदीसरे दीवे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता अट्ठाहियं महिमं करेंति, करेत्ता जामेव दिसिं पाउब्भूया तामेव दिसिं पडिगया। कुंभए वि निग्गच्छइ। तए णं ते जियसत्तुपामोक्खा छप्पि रायाणो जेट्ठपुत्ते रज्जे ठावेत्ता पुरिससहस्सवाहिणीयाओ सीयाओ दुरूढा समाणा सव्विड्ढीए जेणेव मल्ली अरहा तेणेव उवागच्छंति जाव पज्जुवासंति। तए णं मल्ली अरहा तीसे महइमहालियाए परिसाए, कुंभगस्स रन्नो, तेसिं च जियसत्तु-पामोक्खाणं छण्हं राईणं धम्मं परिकहेइ। परिसा जामेव दिसिं पाउब्भूया तामेव दिसिं पडिगया।

Translated Sutra: તે કાળે, તે સમયે બધા દેવોના આસનો ચલિત થયા, ધર્મોપદેશ સાંભળ્યો, નંદીશ્વરે મહોત્સવ કર્યો. પાછા ગયા, કુંભ પણ ગયો. ત્યારે જિતશત્રુ આદિ છએ રાજાએ મોટા પુત્રને રાજ્યમાં સ્થાપીને સહસ્રપુરુષવાહિની શિબિકામાં આરૂઢ થઈ સર્વ ઋદ્ધિથી અરહંત મલ્લી પાસે આવી યાવત્‌ પર્યુપાસના કરી. ત્યારે અરહંત મલ્લીએ તે મોટી પર્ષદા, કુંભરાજા
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ माकंदी

Gujarati 123 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं ते मागंदिय-दारया तओ मुहुत्तंतरस्स पासायवडेंसए सइं वा रइं वा धिइं वा अलभमाणा अन्नमन्नं एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पिया! रयणदीव-देवया अम्हे एवं वयासी–एवं खलु अहं सक्कवयण-संदेसेणं सुट्ठिएणं लवणाहिवइणा निउत्ता जाव मा णं तुब्भं सरीरगस्स वावत्ती भविस्सइ। तं सेयं खलु अम्हं देवानुप्पिया! पुरत्थिमिल्लं वनसंडं गमित्तए–अन्नमन्नस्स एयमट्ठं पडिसुणेंति, पडिसुणेत्ता जेणेव पुरत्थिमिल्ले वनसंडे तेणेव उवागच्छंति। तत्थ णं वावीसु य जाव आलीधरएसु य जाव सुहंसुहेणं अभिरममाणा-अभिरममाणा विहरंति। तए णं ते मागंदिय-दारगा तत्थ वि सइं वा रइं वा धिइं वा अलभमाणा जेणेव उत्तरिल्ले

Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૨૩. ત્યારે તે માકંદિક પુત્રો મુહૂર્ત્ત માત્રમાં જ તે ઉત્તમ પ્રાસાદમાં સ્મૃતિ, રતિ, ધૃતિ ન પામતા પરસ્પર કહ્યું – દેવાનુપ્રિયા ! રત્નદ્વીપ દેવીએ આપણને કહ્યું કે – હું શક્રના વચનસંદેશથી સુસ્થિત લવણાધિપતિ વડે સોંપેલ કાર્ય માટે જઉ છું યાવત્‌ તમે દક્ષિણદિશાના વનખંડમાં જશો તો આપત્તિ થશે. તો દેવાનુપ્રિય
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१३ मंडुक

Gujarati 145 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं बारसमस्स नायज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, तेरसमस्स णं भंते! नायज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे। गुणसिलए चेइए। समोसरणं। परिसा निग्गया। तेणं कालेणं तेणं समएणं सोहम्मे कप्पे दद्दुरवडिंसए विमाणे सभाए सुहम्माए दद्दुरंसि सीहासनंसि दद्दुरे देवे चउहिं सामाणियसाहस्सीहिं चउहिं अग्गमहिसीहिं सपरिसाहिं एवं जहा सूरियाभे जाव दिव्वाइं भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरइ। इमं च णं केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं विउलेणं ओहिणा आभोएमाणे जाव नट्टविहिं उवदंसित्ता पडिगए, जहा–सूरियाभे। भंतेति! भगवं गोयमे समणं

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! જો શ્રમણ યાવત્‌ નિર્વાણ પ્રાપ્ત ભગવંત મહાવીરે બારમા જ્ઞાત અધ્યયનનો આ અર્થ કહ્યો છે, તો ભગવન્‌ ! શ્રમણ ભગવંતે તેરમા અધ્યયનનો શો અર્થ કહ્યો છે ? હે જંબૂ ! તે કાળે, તે સમયે રાજગૃહ નામે નગર હતું, ગુણશીલ ચૈત્ય હતું. ભગવંત મહાવીર પધાર્યા, પર્ષદા ધર્મોપદેશ સાંભળવા નીકળી. તે કાળે, તે સમયે સૌધર્મકલ્પમાં દર્દુરાવતંસક
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१४ तेतलीपुत्र

Gujarati 154 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से पोट्टिले देवे तेयलिपुत्तं अभिक्खणं-अभिक्खणं केवलिपन्नत्ते धम्मे संबोहेइ, नो चेव णं से तेयलिपुत्तं संबुज्झइ। तए णं तस्स पोट्टिलदेवस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–एवं खलु कनगज्झए राया तेयलिपुत्तं आढाइ जाव भोगं च से अनुवड्ढेइ, तए णं से तेयलिपुत्ते अभिक्खणं-अभिक्खणं संबोहिज्जमाणे वि धम्मे नो संबुज्झइ। तं सेयं खलु ममं कनगज्झयं तेयलिपुत्ताओ विप्परिणामित्तए त्ति कट्टु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कनगज्झयं तेयलिपुत्तओ विप्परिणामेइ। तए णं तेयलिपुत्ते कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिनयरे

Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૫૪. ત્યારે પોટ્ટિલ દેવે, તેતલિપુત્રને વારંવાર કેવલિ પ્રજ્ઞપ્ત ધર્મનો બોધ કર્યો. તેતલિપુત્ર બોધ ન પામ્યો. ત્યારે પોટ્ટિલદેવને આવા પ્રકારે વિચાર આવ્યો. કનકધ્વજ રાજા તેતલિપુત્રનો આદર કરે છે, યાવત્‌ ભોગની વૃદ્ધિ કરે છે. તેથી તેતલિપુત્ર, વારંવાર બોધ કરવા છતાં ધર્મમાં બોધ પામતો નથી, તો ઉચિત છે કે કનકધ્વજને
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१६ अवरकंका

Gujarati 161 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सा णं तओनंतरं उव्वट्टित्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे चंपाए नयरीए सागरदत्तस्स सत्थवाहस्स भद्दाए भारियाए कुच्छिंसि दारियत्ताए पच्चायाया। तए णं सा भद्दा सत्थवाही नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं दारियं पयाया–सुकुमालकोमलियं गयता-लुयसमाणं। तए णं तीसे णं दारियाए निव्वत्तबारसाहियाए अम्मापियरो इमं एयारूवं गोण्णं गुणनिप्फण्ण नामधेज्जं करेंति–जम्हा णं अम्ह एसा दारिया सुकुमाल-कोमलिया गयतालुयसमाणा, तं होउ णं अम्हं इमीसे दारियाए नामधेज्जं सुकुमालिया-सुकुमालिया। तए णं तीसे दारियाए अम्मापियरो नामधेज्जं करेंति सूमालियत्ति। तए णं सा सूमालिया दारिया पंचधाईपरिग्गहिया

Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૬૧. તે ત્યાંથી ઉદ્વર્તીને આ જંબૂદ્વીપમાં ભરતક્ષેત્રમાં ચંપાનગરીમાં સાગરદત્ત સાર્થવાહની ભદ્રા નામે ભાર્યાની કુક્ષિમાં પુત્રીરૂપે ઉત્પન્ન થઈ. ત્યારે તે ભદ્રા સાર્થવાહીએ નવ માસ પૂર્ણ થતા પુત્રીને જન્મ આપ્યો. તે બાલિકા હાથીના તાલુ સમાન સુકુમાલ અને કોમળ હતી. તે બાલિકાને બાર દિવસ વીત્યા પછી માતા –
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श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१६ अवरकंका

Gujarati 168 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे पंचालेसु जनवएसु कंपिल्लपुरे नामं नयरे होत्था–वण्णओ। तत्थ णं दुवए नामं राया होत्था–वण्णओ। तस्स णं चुलणी देवी। धट्ठज्जुणे कुमारे जुवराया। तए णं सा सूमालिया देवी ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं ठिइक्खएणं भवक्खएणं अनंतरं चयं चइत्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे पंचालेसु जनवएसु कंपिल्लपुरे नयरे दुवयस्स रन्नो चुलणीए देवीए कुच्छिंसि दारियत्ताए पच्चायाया। तए णं सा चुलणी देवी नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अद्धट्ठमाण य राइंदियाणं वीइक्कंताणं सुकुमाल-पाणिपायं जाव दारियं पयाया। तए णं तीसे दारियाए निव्वत्तबारसाहियाए

Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૬૮. તે કાળે, તે સમયે આ જ જંબૂદ્વીપના ભરતક્ષેત્રમાં પાંચાલ જનપદમાં કાંપિલ્યપુર નગર હતું. ત્યાં દ્રુપદ રાજા હતો. તેને ચુલણી નામે રાણી હતી.(નગર, રાજા, રાણીનું વર્ણન ઉવવાઈ સૂત્ર અનુસાર કરવું). ધૃષ્ટદ્યુમ્ન કુમાર નામે યુવરાજ હતો. ત્યારે સુકુમાલિકા દેવી, તે દેવલોકથી આયુક્ષયથી યાવત્‌ ચ્યવીને, આ જ જંબૂદ્વીપમાં
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१६ अवरकंका

Gujarati 172 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तं दोवइं रायवरकण्णं अंतेउरियाओ सव्वालंकारविभूसियं करेंति। किं ते? वरपायपत्तनेउरा जाव चेडिया-चक्कवाल-महयरग-विंद-परिक्खित्ता अंतेउराओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव चाउग्घंटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता किड्डावियाए लेहियाए सद्धिं चाउग्घंटं आसरहं दुरूहइ। तए णं से धट्ठज्जुणे कुमारे दोवईए रायवरकन्नाए सारत्थं करेइ। तए णं सा दोवई रायवरकन्ना कंपिल्लपुरं नयरं मज्झंमज्झेणं जेणेव सयंवरामंडवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता रहं ठवेइ, रहाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता किड्डावियाए लेहियाए सद्धिं सयंवरामडबं अनुपविसइ, अनुपविसित्ता

Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૭૨. ત્યારપછી ઉત્તમ રાજકન્યા દ્રૌપદીને અંતઃપુરની સ્ત્રીઓએ સર્વાલંકારથી વિભૂષિત કરે છે. તે શું ? પગમાં શ્રેષ્ઠ ઝાંઝર પહેરાવ્યા યાવત્‌ દાસીઓના સમૂહથી પરીવરીને, બધા અંગોમાં વિભિન્ન આભૂષણ પહેરેલી તેણી અંતઃપુરથી બહાર નીકળી. બાહ્ય ઉપસ્થાનશાળામાં ચાતુર્ઘંટ અશ્વરથ પાસે આવી. ક્રીડા કરાવનારી અને લેખિકા
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१६ अवरकंका

Gujarati 177 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं धायइसंडे दीवे पुरत्थिमद्धे भारहे वासे चंपा नामं नयरी होत्था। पुण्णभद्दे चेइए। तत्थ णं चंपाए नयरीए कविले नामं वासुदेवे राया होत्था–महताहिमवंत-महंत-मलय-मंदर-महिंदसारे वण्णओ। तेणं कालेणं तेणं समएणं ए अरहा चंपाए पुण्णभद्दे समोसढे। कविले वासुदेवे धम्मं सुणेइ। तए णं से कविले वासुदेवे मुनिसुव्वयस्स अरहओ अंतिए धम्मं सुणेमाणे कण्हस्स वासुदेवस्स संखसद्दं सुणेइ। तए णं तस्स कविलस्स वासुदेवस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–किमन्ने धायइसंडे दीवे भारहे वासे दोच्चे वासुदेवे समुप्पन्ने, जस्स णं अयं संखसद्दे

Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૭૭. તે કાળે, તે સમયે ધાતકીખંડ દ્વીપના પૂર્વાર્ધમાં ભરતક્ષેત્રમાં ચંપા નામે નગરી હતી, પૂર્ણભદ્ર ચૈત્ય હતુ, ત્યાં ચંપા નગરીમાં કપિલ વાસુદેવ રાજા હતો. તે મહાહિમવંતાદિ વિશેષણ યુક્ત હતો. તે કાળે, તે સમયે (તે ક્ષેત્રમાં થયેલ) મુનિસુવ્રત અરહંત ચંપામાં પૂર્ણભદ્ર ચૈત્યે પધાર્યા. કપિલ વાસુદેવ ધર્મ સાંભળે છે,
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१९ पुंडरीक

Gujarati 213 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं अट्ठारसमस्स नायज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, एगूणवीसइमस्स णं भंते! नायज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे पुव्वविदेहे, सीयाए महानईए उत्तरिल्ले कूले, नीलवंतस्स [वासहरपव्वयस्स?] दाहिणेणं, उत्तरिल्लस्स सीयामुहवनसंडस्स पच्चत्थिमेणं, एगसेलगस्स वक्खारपव्वयस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं पुक्खलावई नामं विजए पन्नत्ते। तत्थ णं पुंडरीगिणी नामं रायहाणी पन्नत्ता–नवजोयणवित्थिण्णा दुवालस जोयणायामा जाव पच्चक्खं देवलोगभूया पासाईया दरिसणीया अभिरूवा पडिरूवा। तीसे णं पुंडरीगिणीए

Translated Sutra: સૂત્ર– ૨૧૩. ભગવન્‌ ! જો શ્રમણ ભગવંત મહાવીર સ્વામીએ જ્ઞાતાધર્મકથાના અઢારમાં અધ્યયનનો આ અર્થ કહ્યો છે, તો ભગવંતે ઓગણીસમાં જ્ઞાતઅધ્યયનનો અર્થ શું કહ્યો છે ? હે જંબૂ ! શ્રમણ ભગવંત મહાવીરે તે કાળે, તે સમયે આ જ જંબૂદ્વીપ દ્વીપમાં પૂર્વવિદેહમાં સીતા મહાનદીના ઉત્તરદિશા તરફના કિનારે નીલવંત પર્વતની દક્ષિણે, ઉત્તરી
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध २

वर्ग-१ चमरेन्द्र अग्रमहिषी

अध्ययन-२ थी ५

Gujarati 221 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं धम्मकहाणं पढमस्स वग्गस्स पढम-ज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, बिइयस्स णं भंते! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे गुणसिलए चेइए। सामी समोसढे। परिसा निग्गया जाव पज्जुवासइ। तेणं कालेणं तेणं समएणं राई देवी चमरचंचाए रायहाणीए एवं जहा काली तहेव आगया, नट्टविहिं उवदंसित्ता पडिगया। भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता पुव्वभवपुच्छा। गोयमाति! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं आमंतेत्ता एवं वयासी–एवं खलु गोयमा! तेणं

Translated Sutra: વર્ણન સંદર્ભ: ભગવન્‌ ! જો શ્રમણ ભગવંતે ધર્મકથાના દશ વર્ગો કહ્યા છે, તો ભગવન્‌ ! પહેલા વર્ગનો ભગવંતે શો અર્થ કહ્યો છે ? હે જંબૂ ! શ્રમણ ભગવંત મહાવીરે પહેલા વર્ગના પાંચ અધ્યયનો કહ્યા છે – કાલી, રાજી, રજની, વિદ્યુત, મેઘા. ભગવન્‌ ! જો શ્રમણ ભગવંત મહાવીરે પહેલા વર્ગના પાંચ અધ્યયનો કહ્યા છે, તો પહેલા અધ્યયનનો ભગવંતે શો
Jain Dharma Sar जैन धर्म सार Prakrit

18. आम्नाय अधिकार

1. जैनधर्म की शाश्वतता Hindi 408 View Detail
Mool Sutra: जंबूद्दीवे भरहेरावएसु वासेसु, एगसमए एगजुगे दो। अरहंतवंसा उप्पज्जिंसु वा, उप्पज्जिंति वा उप्पज्जिस्संति वा ।।

Translated Sutra: इस जम्बूद्वीप के भरत और ऐरावत इन दो वर्षों या क्षेत्रों में एक साथ अर्हंत या तीर्थंकर वंशों की उत्पत्ति अतीत में हुई है, वर्तमान में हो रही है और भविष्य में भी इसी प्रकार होती रहेगी। (वर्तमान युग के तीर्थंकरों में ऋषभदेव प्रथम हैं, अरिष्टनेमि २२ वें, पार्श्वनाथ २३ वें और भगवान् महावीर अन्तिम अर्थात् २४ वें
Jain Dharma Sar जैन धर्म सार Sanskrit

18. आम्नाय अधिकार

1. जैनधर्म की शाश्वतता Hindi 408 View Detail
Mool Sutra: जम्बूद्वीपे भरतैरावतेषु वर्षेषु, एकसमये एकयुगे द्वौ। अर्हंद्वंशौ उत्पन्नौ वा, उत्पद्येते वा उत्पत्स्यतः वा ।।

Translated Sutra: इस जम्बूद्वीप के भरत और ऐरावत इन दो वर्षों या क्षेत्रों में एक साथ अर्हंत या तीर्थंकर वंशों की उत्पत्ति अतीत में हुई है, वर्तमान में हो रही है और भविष्य में भी इसी प्रकार होती रहेगी। (वर्तमान युग के तीर्थंकरों में ऋषभदेव प्रथम हैं, अरिष्टनेमि २२ वें, पार्श्वनाथ २३ वें और भगवान् महावीर अन्तिम अर्थात् २४ वें
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार १ भरतक्षेत्र

Hindi 3 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे? केमहालए णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे? किंसंठिए णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे? किमागारभावपडोयारे णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे पन्नत्ते? गोयमा! अयन्नं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीवसमुद्दाणं सव्वब्भिंतरए सव्वखुड्डाए वट्टे तेल्लापूय-संठाणसंठिए, वट्टे रहचक्कवालसंठाणसंठिए वट्टे पुक्खरकण्णियासंठाणसंठिए, वट्टे पडिपुण्णचंद-संठाणसंठिए एगं जोयणसयसहस्सं आयामविक्खंभेणं, तिन्नि जोयणसयसहस्साइं सोलस सहस्साइं दोन्नि य सत्तावीसे जोयणसए तिन्नि य कोसे अट्ठावीसं च धनुसयं तेरस अंगुलाइं अद्धंगुलं च किंचिविसेसाहियं परिक्खेवेणं ।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जम्बूद्वीप कहाँ है ? कितना बड़ा है ? उस का संस्थान कैसा है ? उस का आकार – स्वरूप कैसा है? गौतम ! यह जम्बूद्वीप सब द्वीप – समुद्रों में आभ्यन्तर है – सबसे छोटा है, गोल है, तेल में तले पूए जैसा गोल है, रथ के पहिए जैसा, कमल कर्णिका जैसा, प्रतिपूर्ण चन्द्र जैसा गोल है, अपने गोल आकारमें यह एक लाख योजन लम्बा – चौड़ा है।
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार १ भरतक्षेत्र

Hindi 7 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवस्स णं भंते! दीवस्स कति दारा पन्नत्ता? गोयमा! चत्तारि दारा पन्नत्ता, तं जहा–विजए वेजयंते जयंते अपराजिते। एवं चत्तारि वि दारा सराय हाणिया भाणियव्वा।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जम्बूद्वीप के कितने द्वार हैं ? गौतम ! चार द्वार हैं – विजय, वैजयन्त, जयन्त तथा अपराजित।
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार १ भरतक्षेत्र

Hindi 8 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवस्स दीवस्स विजए नामं दारे पन्नत्ते? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमेणं पणयालीसं जोयणसहस्साइं वीइवइत्ता जंबुद्दीवे दीवे पुरत्थिमपेरंते लवणसमुद्द-पुरत्थिमद्धस्स पच्चत्थिमेणं सीआए महानईए उप्पिं, एत्थ णं जंबुद्दीवस्स विजए नामं दारे पन्नत्ते–अट्ठ जोयणाइं उद्धं उच्चत्तेणं, चत्तारि जोयणाइं विक्खंभेणं, तावइयं चेव पवेसेणं, सेए वरकनग-थूभियाए जाव दारस्स वण्णओ जाव रायहानी।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जम्बूद्वीप का विजय द्वार कहाँ है ? गौतम ! जम्बूद्वीप स्थित मन्दर पर्वत की पूर्व दिशा में ४५ हजार योजन आगे जाने पर जम्बूद्वीप के पूर्व के अंतमें तथा लवणसमुद्र के पूर्वार्ध के पश्चिम में सीता महानदी पर जम्बूद्वीप का विजय द्वार है। वह आठ योजन ऊंचा तथा चार योजन चौड़ा है। उसका प्रवेश – चार योजन का है। वह द्वार
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार १ भरतक्षेत्र

Hindi 9 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवस्स णं भंते! दीवस्स दारस्स य दारस्स य केवइए अबाहाए अंतरे पन्नत्ते? गोयमा! अउणासीइं जोयणसहस्साइं बावन्नं च जोयणाइं देसूणं च अद्धजोयणं दारस्स य दारस्स य अबाहाए अंतरे पन्नत्ते।

Translated Sutra: जम्बूद्वीप के एक द्वार से दूसरे द्वार का अबाधित अन्तर कितना है ?
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार १ भरतक्षेत्र

Hindi 11 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे भरहे नामं वासे पन्नत्ते? गोयमा! चुल्लहिमवंतस्स वासहरपव्वयस्स दाहिणेणं, दाहिणलवणसमुद्दस्स उत्तरेणं, पुरत्थिमलवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुद्दस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे भरहे नामं वासे पन्नत्ते– खाणुबहुले कंटकबहुले विसमबहुले दुग्गबहुले पव्वयबहुले पवायबहुले उज्झरबहुले निज्झरबहुले खुड्डाबहुले दरिबहुले नदीबहुले दहबहुले रुक्खबहुले गुच्छबहुले गुम्मबहुले लयाबहुले वल्लीबहुले अडवीबहुले सावयबहुये तेनबहुले तक्करबहुले डिंबबहुले डमरबहुले दुब्भिक्खबहुले दुक्कालबहुले पासंडबहुले किवणबहुले वणीमगबहुले

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप में भरत नामक वर्ष – क्षेत्र कहाँ है ? गौतम ! चुल्ल हिमवंत पर्वत के दक्षिण में, दक्षिणवर्ती लवणसमुद्र के उत्तर में, पूर्ववर्ती लवणसमुद्र के पश्चिम में, पश्चिमवर्ती लवणसमुद्र के पूर्व में है। इसमें स्थाणुओं, काँटों, ऊंची – नीची भूमि, दुर्गमस्थानों, पर्वतों, प्रपातों, अवझरों, निर्झरों,
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार १ भरतक्षेत्र

Hindi 12 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे दाहिणद्धे भरहे नामं वासे पन्नत्ते? गोयमा! वेयड्ढस्स पव्वयस्स दाहिणेणं, दाहिणलवणसमुद्दस्स उत्तरेणं, पुरत्थिमलवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुद्दस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे दाहिणद्धभरहे नामं वासे पन्नत्ते– पाईणपडीणायए उदीण-दाहिणविच्छिन्ने अद्धचंदसंठाणसंठिए तिहा लवणसमुद्दं पुट्ठे, गंगासिंधूहिं महानईहिं तिभागपविभत्ते दोन्नि अट्ठतीसे जोयणसए तिन्नि य एगूनवीसइभागे जोयणस्स विक्खंभेणं। तस्स जीवा उत्तरेणं पाईणपडीणायया दुहा लवणसमुद्दं पुट्ठा– पुरत्थिमिल्लाए कोडीए पुरत्थिमिल्लं लवणसमुद्दं पुट्ठा,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जम्बूद्वीप में दक्षिणार्ध भरत क्षेत्र कहाँ है ? गौतम ! वैताढ्यपर्वत के दक्षिण में, दक्षिण – लवण समुद्र के उत्तर में, पूर्व – लवणसमुद्र के पश्चिम में तथा पश्चिम – लवणसमुद्र के पूर्व में जम्बू नामक द्वीप के अन्तर्गत है। वह पूर्व – पश्चिम में लम्बा तथा उत्तर – दक्षिण में चौड़ा है। यह अर्द्ध – चन्द्र – संस्थान
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार १ भरतक्षेत्र

Hindi 13 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे भरहे वासे वेयड्ढे नामं पव्वए पन्नत्ते? गोयमा! उत्तरद्धभरहवासस्स दाहिणेणं, दाहिणड्ढभरहवासस्स उत्तरेणं, पुरत्थिमलवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवण-समुद्दस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे भरहे वासे वेयड्ढे नामं पव्वए पन्नत्ते–पाईणपडीणायए उदीणदाहिणविच्छिन्नेदुहा लवणसमुद्दं पुट्ठे–पुरत्थिमिल्लाए कोडीए पुरत्थिमिल्लं लवणसमुद्दं पुट्ठे, पच्चत्थिमिल्लाए कोडीए पच्चत्थिमिल्लं लवणसमुद्दं पुट्ठे, पणवीसं जोयणाइं उद्धं उच्चत्तेणं, छस्सकोसाइं जोयणाइं उव्वेहेणं, पन्नासं जोयणाइं विक्खंभेणं। तस्स बाहा पुरत्थिम-पच्चत्थिमेणं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में वैताढ्य पर्वत कहाँ है ? गौतम ! उत्तरार्ध भरतक्षेत्र के दक्षिण में, दक्षिणार्ध भरतक्षेत्र के उत्तर में, पूर्व – लवणसमुद्र के पश्चिम में, पश्चिम – लवणसमुद्र के पूर्व में है। यह पूर्व – पश्चिम में लम्बा तथा उत्तर – दक्षिण में चौड़ा है। अपने पूर्वी किनारे से पूर्व – लवणसमुद्र
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार १ भरतक्षेत्र

Hindi 14 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे वेयड्ढपव्वए सिद्धायतनकूडे नामं कुडे पन्नत्ते? गोयमा! पुरत्थिमलवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं दाहिणड्ढभरहकूडस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे वेयड्ढपव्वए सिद्धायतनकूडे नामं कूडे पन्नत्ते, छ सक्कोसाइं जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, मूले छ सक्कोसाइं जोयणाइं विक्खंभेणं, मज्झे देसूनाइं पंच जोयणाइं विक्खंभेणं, उवरि साइरेगाइं तिन्नि जोयणाइं विक्खंभेणं, मूले देसूनाइं वीसं जोयणाइं परिक्खेवेणं, मज्झे देसूनाइं पन्नरस जोयणाइं परिक्खेवेणं, उवरि साइरेगाइं नव जोयणाइं परिक्खेवेणं, मूले विच्छिन्नेमज्झे संखित्ते

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में वैताढ्य पर्वत पर सिद्धायतनकूट कहाँ है ? गौतम ! पूर्व लवणसमुद्र के पश्चिम में, दक्षिणार्ध भरतकूट के पूर्व में है। वह छह योजन एक कोस ऊंचा, मूल में छह योजन एक कौस चौड़ा, मध्य में कुछ पाँच योजन चौड़ा तथा ऊपर कुछ अधिक तीन योजन चौड़ा है। मूल में उसकी परिधि कुछ कम बाईस योजन, मध्य में
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार १ भरतक्षेत्र

Hindi 15 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! वेयड्ढपव्वए दाहिणड्ढभरहकूडे नामं कूडे पन्नत्ते? गोयमा! खंडप्पवायकूडस्स पुरत्थिमेणं सिद्धायतनकूडस्स पच्चत्थिमेणं, एत्थ णं वेयड्ढ-पव्वए दाहिणड्ढभरहकूडे नामं कूडे पन्नत्ते, सिद्धायतनकूडप्पमाणसरिसे जाव– तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगे पासायवडेंसए पन्नत्ते–कोसं उड्ढं उच्चत्तेणं, अद्धकोसं विक्खंभेणं अब्भुग्गयमूसियपहसिए जाव पासाईए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे। तस्स णं पासायवडेंसगस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगा मणिपेढिया पन्नत्ता–पंच धनुसयाइं आयामविक्खंभेणं, अड्ढाइज्जाहिं धनुसयाइं बाहल्लेणं, सव्वमणिमई। तीसे

Translated Sutra: भगवन्‌ ! वैताढ्य पर्वत का दक्षिणार्ध भरतकूट कहाँ है ? गौतम ! खण्डप्रपातकूट के पूर्व में तथा सिद्धा – यतनकूट के पश्चिम में है। उसका परिमाण आदि वर्णन सिद्धायतनकूट के बराबर है। दक्षिणार्ध भरतकूट के अति समतल, सुन्दर भूमिभाग में एक उत्तम प्रासाद है। वह एक कोस ऊंचा और आधा कोस चौड़ा है। अपने से निकलती प्रभामय किरणों
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार १ भरतक्षेत्र

Hindi 18 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] माणिभद्दकूडे वेयड्ढकूडे पुण्णभद्दकूडे–एए तिन्नि कणगामया सेसा छप्पि रयणामया। छण्हं सरिणामया देवा, दोण्हं कय-मालए चेव नट्टमालए चेव। रायहानीओ? जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं तिरियं असंखेज्जदीवसमुद्दे वीईवइत्ता अन्नंमि जंबुद्दीवे दीवे बारस जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता, एत्थ णं रायहानीओ भाणियव्वाओ विजयरायहानी सरिसियाओ।

Translated Sutra: मणिभद्रकूट, वैताढ्यकूट एवं पूर्णभद्रकूट – ये तीन कूट स्वर्णमय हैं तथा बाकी के छह कूट रत्नमय हैं। दो पर कृत्यमालक तथा नृत्यमालक नामक दो विसदृश नामों वाले देव रहते हैं। बाकी के छह कूटों पर कूटसदृश नाम के देव रहते हैं। मन्दर पर्वत के दक्षिण में तिरछे असंख्येय द्वीप समुद्रों को लांघते हुए अन्य जम्बूद्वीप में
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार १ भरतक्षेत्र

Hindi 20 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे उत्तरड्ढभरहे नामं वासे पन्नत्ते? गोयमा! चुल्लहिमवंतस्स वासहरपव्वयस्स दाहिणेणं, वेयड्ढस्स पव्वयस्स उत्तरेणं, पुरत्थिमलवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवण-समुद्दस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे उत्तरड्ढभरहे नामं वासे पन्नत्ते–पाईणपडीणायए उदीणदाहिणविच्छिन्नेपलियंकसंठिए दुहा लवणसमुद्दं पुट्ठे–पुरत्थिमिल्लाए कोडीए पुरत्थिमिल्लं लवणसमुद्दं पुट्ठे, पच्चत्थिमिल्लाए कोडीए पच्चत्थिमिल्लं लवणसमुद्दं पुट्ठे, गंगासिंधूहिं महानईहिं तिभागपविभत्ते दोन्नि अट्ठतीसे जोयणसए तिन्नि य एगूनवीसइभागे जोयणस्स विक्खंभेणं। तस्स

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जम्बूद्वीप में उत्तरार्ध भरत नामक क्षेत्र कहाँ है ? गौतम ! चुल्लहिमवंत वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, वैताढ्य पर्वत के उत्तर में, पूर्व – लवणसमुद्र के पश्चिम में, पश्चिम – लवणसमुद्र के पूर्व में है। वह पूर्व – पश्चिम लम्बा और उत्तर – दक्षिण चौड़ा है, पर्यंक – संस्थान – संस्थित है। वह दोनों तरफ लवण – समुद्र
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार १ भरतक्षेत्र

Hindi 21 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे उत्तरड्ढभरहे वासे उसभकूडे नामं पव्वए पन्नत्ते? गोयमा! गंगाकुंडस्स पच्चत्थिमेणं सिंधुकुंडस्स पुरत्थिमेणं, चुल्लहिमवंतस्स वासहरपव्व-यस्स दाहिणिल्ले नितंबे, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे उत्तरड्ढभरहे वासे उसहकूडे नामं पव्वए पन्नत्ते–अट्ठ जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, दो जोयणाइं उव्वेहेणं, मूले अट्ठ जोयणाइं विक्खंभेणं, मज्झे छ जोयणाइं विक्खंभेणं, उवरिं चत्तारि जोयणाइं विक्खंभेणं, मूले साइरेगाइं पणवीसं जोयणाइं परिक्खेवेणं, मज्झे साइरेगाइं अट्ठारस जोयणाइं परिक्खेवेणं, उवरिं साइरेगाइं दुवालस जोयणाइं परिक्खेवेणं, [पाठांतरं–मूले बारस

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जम्बूद्वीप में उत्तरार्ध भरतक्षेत्र में ऋषभकूट पर्वत कहाँ है ? गौतम ! हिमवान्‌ पर्वत के जिस स्थान से गंगा महानदी नीकलती है, उसके पश्चिम में, जिस स्थान से सिन्धु महानदी नीकलती है, उनके पूर्व में, चुल्लहिमवंत वर्षधर पर्वत के दक्षिणी मेखला – सन्निकटस्थ प्रदेश में है। वह आठ योजन ऊंचा, दो योजन गहरा, मूल में
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार २ काळ

Hindi 22 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे भारहे वासे कतिविहे काले पन्नत्ते? गोयमा! दुविहे काले पन्नत्ते, तं जहा–ओसप्पिणिकाले य उस्सप्पिणिकाले य। ओसप्पिणिकाले णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! छव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–सुसमसुसमाकाले सुसमाकाले सुसमदुस्समाकाले दुस्समसुसमाकाले दुस्समाकाले दुस्समदुस्समा-काले। उस्सप्पिणिकाले णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! छव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–दुस्समदुस्समाको दुस्समाकाले दुस्समसुसमाकाले सुसमदुस्समाकाले सुसमाकाले सुसमसुसमाकाले। एगमेगस्स णं भंते! मुहुत्तस्स केवइया उस्सासद्धा विआहिया? गोयमा! असंखेज्जाणं सम-याणं समुदय-समिइ-समागमेणं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जम्बूद्वीप के अन्तर्गत भरतक्षेत्र में कितने प्रकार का काल है ? गौतम ! दो प्रकार का, अवस – र्पिणी तथा उत्सर्पिणी काल। अवसर्पिणी काल कितने प्रकार का है ? गौतम ! छह प्रकार का, सुषम – सुषमाकाल, सुषमाकाल, सुषम – दुःषमाकाल, दुःषम – सुषमाकाल, दुःषमाकाल, दुःषम – दुःषमाकाल। उत्सर्पिणी काल कितने प्रकार का है ? गौतम
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार २ काळ

Hindi 32 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे भरहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए सुसमसुसमाए समाए उत्तमकट्ठपत्ताए भरहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे होत्था? गोयमा! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे होत्था, से जहानामए आलिंगपुक्खरेइ वा जाव नानाविधपंचवण्णेहिं तणेहि य मणीहि य उवसोभिए, तं जहा–किण्हेहिं जाव सुक्किलेहिं। एवं वण्णो गंधो फासो सद्दो य तणाण य भाणिअव्वो जाव तत्थ णं बहवे मनुस्सा मनुस्सीओ य आसयंति सयंति चिट्ठंति निसीयंति तुयट्टंति हसंति रमंति ललंति। तीसे णं समाए भरहे वासे बहवे उद्दाला कोद्दाला मोद्दाला कयमाला नट्टमाला दंतमाला नागमाला सिंगमाला संखमाला सेयमाला नामं दुमगणा पन्नत्ता, कुस-विकुस-विसुद्धरुक्खमूला

Translated Sutra: जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में इस अवसर्पिणी काल के सुषमासुषमा नामक प्रथम आरे में, जब वह अपने उत्कर्ष की पराकाष्ठा में था, भरतक्षेत्र का आकार – स्वरूप अवस्थिति – सब किस प्रकार का था ? गौतम ! उस का भूमिभाग बड़ा समतल तथा रमणीय था। मुरज के ऊपरी भाग की ज्यों वह समतल था। नाना प्रकार के काले यावत्‌ सफेद मणियों एवं तृणों
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार २ काळ

Hindi 39 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तीसे णं समाए चउहिं सागरोवमकोडाकोडीहिं काले वीइक्कंते अनंतेहिं वण्णपज्जवेहिं अनंतेहिं गंधपज्जवेहिं अनंतेहिं रसपज्जवेहिं अनंतेहिं फासपज्जवेहिं अनंतेहिं संघयणपज्जवेहिं अनंतेहिं संठाणपज्जवेहिं अनंतेहिं उच्चत्तपज्जवेहिं अनंतेहिं आउपज्जवेहिं अनंतेहिं गरुयलहुयपज्जवेहिं अनंतेहिं अगरुयलहुयपज्जवेहिं अनंतेहिं उट्ठाण-कम्म-बल-वीरिय-पुरिसक्कार-परक्कमपज्जवेहिं अनंतगुणपरिहाणीए परिहायमाणे-परिहायमाणे, एत्थ णं सुसमा नामं समा काले पडिवज्जिंसु समणाउसो! । जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे इमीसे ओसप्पिणीए सुसमाए समाए उत्तमकट्ठपत्ताए भरहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे

Translated Sutra: गौतम ! प्रथम आरक का जब चार सागर कोड़ा – कोड़ी काल व्यतीत हो जाता है, तब अवसर्पिणी काल का सुषमा नामक द्वितीय आरक प्रारम्भ हो जाता है। उसमें अनन्त वर्ण, अनन्त गंध, अनन्त रस, अनन्त स्पर्श, अनन्त संहनन, अनन्त संस्थान, अनन्त उच्चत्व, अनन्त आयु, अनन्त गुरु – लघु, अनन्त अगुरु – लघु, अनन्त उत्थान – कर्म – बल – वीर्य – पुरुषकार
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार २ काळ

Hindi 40 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तीसे णं समाए तिहिं सागरोवमकोडाकोडीहिं काले वीइक्कंते अनंतेहिं वण्णपज्जवेहिं अनंतेहिं गंधपज्जवेहिं अनंतेहिं रसपज्जवेहिं अनंतेहिं फासपज्जवेहिं अनंतेहिं संघयणपज्जवेहिं अनंतेहिं संठाणपज्जवेहिं अनंतेहिं उच्चत्तपज्जवेहिं अनंतेहिं आउपज्जवेहिं अनंतेहिं गरुयलहुयपज्जवेहिं अनंतेहिं अगरुयलहुयपज्जवेहिं अनंतेहिं उट्ठाण-कम्म-बल-वीरिय-पुरिसक्कार-परक्कमपज्जवेहिं अनंतगुणपरिहाणीए परिहायमाणे-परिहायमाणे एत्थ णं सुसमदुस्समा नामं समा काले पडिवज्जिंसु समणाउसो! । सा णं समा तिहा विभज्जइ–पढमे तिभाए, मज्झिमे तिभाए, पच्छिमे तिभाए। जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे इमीसे

Translated Sutra: गौतम ! द्वितीय आरक का तीन सागरोपम कोड़ाकोड़ी काल व्यतीत हो जाता है, तब अवसर्पिणी – काल का सुषम – दुःषमा नामक तृतीय आरक प्रारम्भ होता है। उसमें अनन्त वर्ण – पर्याय यावत्‌ पुरुषकार – पराक्रमपर्याय की अनन्त गुण परिहानि होती है। उस आरक को तीन भागों में विभक्त किया है – प्रथम त्रिभाग, मध्यम त्रिभाग, अंतिम त्रिभाग।
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार २ काळ

Hindi 46 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] उसभे णं अरहा कोसलिए वज्जरिसहनारायसंघयणे समचउरंससंठाणसंठिए पंच धनुसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था। उसभे णं अरहा कोसलिए वीसं पुव्वसयसहस्साइं कुमारवासमज्झावसित्ता, तेवट्ठिं पुव्वसय-सहस्साइं रज्जवासमज्झा वसित्ता, तेसीइं पुव्वसयसहस्साइं अगारवासमज्झावसित्ता मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए। उसभे णं अरहा कोसलिए एगं वाससहस्सं छउमत्थपरियायं पाउणित्ता, एगं पुव्वसयसहस्सं वाससहस्सूणं केवलिपरियायं पाउणित्ता, एगं पुव्वसयसहस्सं बहुपडिपुण्णं सामण्णपरियायं पाउणित्ता, चउरासीइं पुव्वसयसहस्साइं सव्वाउयं पालइत्ता जेसे हेमंताणं तच्चे मासे पंचमे पक्खे

Translated Sutra: कौशलिक भगवान्‌ ऋषभ वज्रऋषभनाराचसंहनन युक्त, समचौरससंस्थानसंस्थित तथा ५०० धनुष दैहिक ऊंचाई युक्त थे। वे २० लाख पूर्व तक कुमारावस्था में तथा ६३ लाख पूर्व महाराजावस्था में रहे। यों ८३ लाख पूर्व गृहवास में रहे। तत्पश्चात्‌ मुंडित होकर अगारवास से अनगार – धर्म में प्रव्रजित हुए। १००० वर्ष छद्मस्थ – पर्याय
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 67 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से सरे भरहेणं रन्ना निसट्ठे समाणे खिप्पामेव दुवालस जोयणाइं गंता मागहतित्थाधिपतिस्स देवस्स भवनंसि निवइए। तए णं से मागहतित्थाहिवई देवे भवनंसि सरं निवइयं पासइ, पासित्ता आसुरुत्ते रुट्ठे चंडिक्किए कुविए मिसिमिसेमाणे तिवलियं भिउडिं निडाले साहरइ, साहरित्ता एवं वयासी–केस णं भो! एस अपत्थियपत्थए दुरंतपंतलक्खणे हीनपुण्णचाउद्दसे हिरिसिरिपरिवज्जिए, जे णं मम इमाए एयारूवाए दिव्वाए देवड्ढीए दिव्वाए देवजुईए दिव्वेणं दिवानुभावेणं लद्धाए पत्ताए अभिसमन्नागयाए उप्पिं अप्पुस्सुए भवनंसि सरं निसिरइ त्तिकट्टु सीहासनाओ अब्भुट्ठेइ, अब्भुट्ठेत्ता जेणेव से नामाहयके

Translated Sutra: राजा भरत द्वारा छोड़े जाते ही वह बाण तुरन्त बारह योजन तक जाकर मागध तीर्थ के अधिपति – के भवन में गिरा। मागध तीर्थाधिपति देव तत्क्षण क्रोध से लाल हो गया, रोषयुक्त, कोपाविष्ट, प्रचण्ड और क्रोधाग्नि से उद्दीप्त हो गया। कोपाधिक्य से उसके ललाट पर तीन रेखाएं उभर आई। उसकी भृकुटि तन गई। वह बोला – ‘अप्रार्थित – मृत्यु
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 74 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से दिव्वे चक्करयणे पभासतित्थकुमारस्स देवस्स अट्ठाहियाए महामहिमाए निव्वत्ताए समाणीए आउहघरसालाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता अंतलिक्खपडिवण्णे जक्खसहस्स-संपरिवुडे दिव्वतुडियसद्दसन्निनादेणं पूरेंते चेव अंबरतलं सिंधूए महानईए दाहिणिल्लेणं कूलेणं पुरत्थिमं दिसिं सिंधुदेवीभवनाभिमुहे पयाते यावि होत्था। तए णं से भरहे राया तं दिव्वं चक्करयणं सिंधूए महानईए दाहिणिल्लेणं कूलेणं पुरत्थिमं दिसिं सिंधुदेवीभवनाभिमुहं पयातं पासइ, पासित्ता हट्ठतुट्ठचित्तमानंदिए तहेव जाव जेणेव सिंधूए देवीए भवनं तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सिंधूए देवीए भवनस्स अदूरसामंते

Translated Sutra: प्रभास तीर्थकुमार को विजित कर लेने के उपलक्ष्य में समायोजित अष्टदिवसीय महोत्सव के परिसम्पन्न हो जाने पर वह दिव्य चक्ररत्न शस्त्रागार से बाहर निकला। यावत्‌ उसने सिन्धु महानदी के दाहिने किनारे होते हुए पूर्व दिशा में सिन्धु देवी के भवन की ओर प्रयाण किया। राजा भरत बहुत हर्षित हुआ, परितुष्ट हुआ। जहाँ सिन्धु
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 84 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं ते आवाडचिलाया सुसेनसेनावइणा हयमहिय पवरवीरघाइय विवडियचिंधद्धयपडागा किच्छ- प्पाणोवगया दिसोदिसिं पडिसेहिया समाणा भीया तत्था वहिया उव्विग्गा संजायभया अत्थामा अबला अवीरिया अपुरिसक्कारपरक्कमा अधारणिज्जमितिकट्टु अनेगाइं जोयणाइं अवक्कमंति, अवक्कमित्ता एगयओ मिलायंति, मिलायित्ता जेणेव सिंधू महानई तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता वालुयासंथारए संथरेंति, संथरेत्ता वालुयासंथारए दुरुहंति, दुरुहित्ता अट्ठमभत्ताइं पगिण्हंति, पगिण्हित्ता वालुयासंथारोवगया उत्ताणगा अवसणा अट्ठमभत्तिया जे तेसिं कुलदेवया मेहमुहा नामं नागकुमारा देवा ते मनसीकरेमाणा-मनसीकरेमाणा

Translated Sutra: सेनापति सुषेण द्वारा हत – मथित किये जाने पर, मेदान छोड़कर भागे हुए आपात किरात बड़े भीत, त्रस्त, व्यथित, पीड़ायुक्त, उद्विग्न होकर घबरा गये। वे अपने को निर्बल, निर्वीर्य तथा पौरुष – पराक्रम रहित अनुभव करने लगे। शत्रु – सेना का सामना करना शक्य नहीं है, यह सोचकर वे वहाँ से अनेक योजन दूर भाग गये। यों दूर जाकर वे एक स्थान
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 101 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से भरहे राया तं दिव्वं चक्करयणं दाहिणं दिसिं वेयड्ढपव्वयाभिमुह पयातं चावि पासइ, पासित्ता हट्ठतुट्ठचित्तमानंदिए जाव जेणेव वेयड्ढपव्वए जेणेव वेयड्ढस्स पव्वयस्स उत्तरिल्ले नितंबे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वेयड्ढस्स पव्वयस्स उत्तरिल्ले नितंबे दुवालस जोयणायामं नवजोयणविच्छिण्णं वरनगरसरिच्छं विजयखंधावारनिवेसं करेइ जाव पोसहसालं अनुपविसइ, अनुपविसित्ता पोसहसालं पमज्जइ, पमज्जित्ता दब्भसंथारगं संथरइ, संथरित्ता दब्भसंथारगं दुरुहइ, दुरुहित्ता नमिविनमीणं विज्जाहरराईणं अट्ठमभत्तं पगिण्हइ, पगिण्हित्ता पोसहसालाए पोसहिए बंभयारी उम्मुक्कमणिसुवण्णे

Translated Sutra: राजा भरत ने उस दिव्य चक्ररत्न को दक्षिण दिशा में वैताढ्य पर्वत की ओर जाते हुए देखा। वह वैताढ्य पर्वत की उत्तर दिशावर्ती तलहटो में आया। वहाँ सैन्यशिबिर स्थापित किया। पौषधशाला में प्रविष्ट हुआ। श्रीऋषभस्वामी के कच्छ तथा महाकच्छ नामक प्रधान सामन्तों के पुत्र नमि एवं विनमि नामक विद्याधर राजाओं को उद्दिष्ट
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत

Hindi 127 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे चुल्लहिमवंते नामं वासहरपव्वए पन्नत्ते? गोयमा! हेमवयस्स वासस्स दाहिणेणं, भरहस्स वासस्स उत्तरेणं, पुरत्थिमलवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुद्दस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे चुल्ल-हिमवंते नामं वासहरपव्वए पन्नत्ते–पाईणपडीणायए उदीणदाहिणविच्छिन्नेदुहा लवणसमुद्दं पुट्ठे–पुरत्थिमिल्लाए कोडीए पुरत्थि-मिल्लं लवणसमुद्दं पुट्ठे, पच्चत्थिमिल्लाए कोडीए पच्चत्थिमिल्लं लवणसमुद्दं पुट्ठे, एगं जोयणसयं उड्ढं उच्चत्तेणं, पणवीसं जोयणाइं उव्वेहेणं, एगं जोयणसहस्सं बावन्नं च जोयणाइं दुवालस य एगूनवीसइभाए जोयणस्स

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जम्बूद्वीप में चुल्ल हिमवान्‌ वर्षधर पर्वत कहाँ है ? गौतम ! जम्बूद्वीप में चुल्ल हिमवान्‌ नामक वर्षधर पर्वत हैमवतक्षेत्र के दक्षिण में, भरतक्षेत्र के उत्तर में, पूर्वी लवणसमुद्र के पश्चिम में तथा पश्चिमी लवणसमुद्र के पूर्व में बतलाया गया है। वह पूर्व – पश्चिम लम्बा तथा उत्तर – दक्षिण चौड़ा है। वह
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