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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Anuttaropapatikdashang | अनुत्तरोपपातिक दशांगसूत्र | Ardha-Magadhi |
वर्ग-३ धन्य, सुनक्षत्र, ऋषिदास, पेल्लक, रामपुत्र... अध्ययन-१ |
Hindi | 11 | Sutra | Ang-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे गुणसिलए चेइए। सेणिए राया।
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसढे। परिसा निग्गया। सेणिए निग्गए। धम्मकहा। परिसा पडिगया।
तए णं से सेणिए राया समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–इमासि णं भंते! इंदभूइपामोक्खाणं चोद्दसण्हं समणसाहस्सीणं कतरे अनगारे महादुक्करकारए चेव महानिज्जरतराए चेव?
एवं खलु सेणिया! इमासि णं इंदभूइपामोक्खाणं चोद्दसण्हं समणसाहस्सीणं धन्ने अनगारे महादुक्करकारए चेव महाणिज्जरतराए चेव।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ, इमासिं णं Translated Sutra: उस काल और उस समय में राजगृह नगर था। गुणशैलक चैत्य था। श्रेणिक राजा था। उसी काल और उसी समय में श्री श्रमण भगवान महावीर स्वामी उक्त चैत्य में बिराजमान हुए। यह सूनकर पर्षदा नीकली, भगवान की सेवा में उपस्थित हुई, श्रेणिक राजा भी उपस्थित हुआ। भगवान ने धर्म – कथा सुनाई और लोग वापिस चले गए। श्रेणिक राजा ने इस कथा को | |||||||||
Anuttaropapatikdashang | अनुत्तरोपपातिक दशांगसूत्र | Ardha-Magadhi |
वर्ग-३ धन्य, सुनक्षत्र, ऋषिदास, पेल्लक, रामपुत्र... अध्ययन-१ |
Hindi | 12 | Sutra | Ang-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स धन्नस्स अनगारस्स अन्नया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकाले धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–एवं खलु अहं इमेणं ओरालेणं तवोकम्मेणं धमणिसंतए जाए। जहा खंदओ तहेव चिंता। आपुच्छणं। थेरेहिं सद्धिं विउलं पव्वयं दुरुहइ। मासिया संलेहणा। नव मासा परियाओ जाव कालमासे कालं किच्चा उड्ढं चंदिम-सूर-गहगण-नक्खत्त-तारारूवाणं जाव नवयगेवेज्जविमाणपत्थडे उड्ढं दूरं वीईवइत्ता सव्वट्ठसिद्धे विमाने देवत्ताए उववन्ने। थेरा तहेव ओयरंति जाव इमे से आयारभंडए।
भंतेति! भगवं गोयमे तहेव आपुच्छति, जहा खंदयस्स भगवं वागरेइ जाव सव्वट्ठसिद्धे Translated Sutra: तब उस धन्य अनगार को अन्यदा किसी समय मध्यरात्रि में धर्म – जागरण करते हुए इस प्रकार के आध्या – त्मिक विचार उत्पन्न हुए कि मैं इस उत्कृष्ट तप से कृश हो गया हूँ अतः प्रभात काल ही स्कन्दक के समान श्री भगवान से पूछकर स्थविरों के साथ विपुलगिरि पर चढ़कर अनशन व्रत धारण कर लूँ। तदनुसार ही श्री भगवान की आज्ञा ली और विपुलगिरि | |||||||||
Anuttaropapatikdashang | अनुत्तरोपपातिक दशांगसूत्र | Ardha-Magadhi |
वर्ग-३ धन्य, सुनक्षत्र, ऋषिदास, पेल्लक, रामपुत्र... अध्ययन-२ थी १० |
Hindi | 13 | Sutra | Ang-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं तच्चस्स वग्गस्स पढमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, दोच्चस्स णं भंते! अज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं काकंदी नयरी। जियसत्तू राया।
तत्थ णं काकंदीए नयरीए भद्दा नामं सत्थवाही परिवसइ–अड्ढा।
तीसे णं भद्दाए सत्थवाहीए पुत्ते सुनक्खत्ते नामं दारए होत्था–अहीन-पडिपुण्ण-पंचेंदियसरीरे जाव सुरूवे पंचधाइपरिक्खित्ते जहा धन्नो तहेव। बत्तीसओ दाओ जाव उप्पिं पासायवडेंसए विहरइ।
तेणं कालेणं तेणं समएणं समोसरणं। जहा धन्ने तहा सुनक्खत्ते वि निग्गए। जहा थावच्चापुत्तस्स तहा निक्खमणं जाव अनगारे जाए–इरियासमिए Translated Sutra: हे जम्बू ! उस काल और उस समय में काकन्दी नगरी थी। उसमें भद्रा नाम की सार्थवाहिनी थी। वह धन – धान्य – सम्पन्ना थी। उस भद्रा सार्थवाहिनी का पुत्र सुनक्षत्र था। वह सर्वाङ्ग – सम्पन्न और सुरूपा था। पाँच धाईयाँ उसके लालन पालन के लिए नीत थीं। जिस प्रकार धन्य कुमार के लिए बत्तीस दहेज आये उसी प्रकार सुनक्षत्र कुमार | |||||||||
Anuttaropapatikdashang | અનુત્તરોપપાતિક દશાંગસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वर्ग-१ जालि, मयालि, उवयालि आदि अध्ययन-१ थी १० |
Gujarati | 1 | Sutra | Ang-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे। अज्जसुहम्मस्स समोसरणं। परिसा निग्गया जाव जंबू पज्जुवासमाणे एवं वयासी–
जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं अयमट्ठे पन्नत्ते, नवमस्स णं भंते! अंगस्स अनुत्तरोववाइयदसाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
तए णं से सुहम्मे अनगारे जंबू-अणगारं एवं वयासी–एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं नवमस्स अंगस्स अनुत्तरोववाइयदसाणं तिन्नि वग्गा पन्नत्ता।
जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं नवमस्स अंगस्स अनुत्तरोववाइय-दसाणं तओ वग्गा पन्नत्ता Translated Sutra: તે કાળે, તે સમયે રાજગૃહ નામે નગર હતું. આર્ય સુધર્માસ્વામી પધાર્યા, પર્ષદા નીકળી. યાવત્ જંબૂસ્વામી પર્યુપાસના કરતા કહે છે – ભંતે ! શ્રમણ યાવત્ સિદ્ધિપ્રાપ્ત ભગવંત મહાવીરે આઠમાં અંગસૂત્ર અંતકૃદ્દશાનો આ અર્થ કહ્યો છે, તો નવમાં અંગસૂત્ર અનુત્તરોપપાતિકદશાનો યાવત્ સિદ્ધિપ્રાપ્ત ભગવંત મહાવીરે શો અર્થ કહ્યો | |||||||||
Anuttaropapatikdashang | અનુત્તરોપપાતિક દશાંગસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वर्ग-२ दीर्घसेन, महासेन, लष्टदंत आदि अध्ययन-१ थी १३ |
Gujarati | 6 | Sutra | Ang-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं अनुत्तरोववाइयदसाणं दोच्चस्स वग्गस्स तेरस अज्झयणा पन्नत्ता, दोच्चस्स णं भंते! वग्गस्स पढमज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे। गुणसिलए चेइए। सेणिए राया। धारिणी देवी। सीहो सुमिणे। जहा जाली तहा जम्मं बालत्तणं कलाओ, नवरं–दीहसेनो कुमारो सव्वेव वत्तव्वया जहा जालिस्स जाव अंतं काहिइ।
एवं तेरस वि रायगिहे नयरे। सेणिओ पिया। धारिणी माया। तेरसण्ह वि सोलस वासा परियाओ। आनुपुव्वीए विजए दोन्नि, वेजयंते दोन्नि, जयंते दोन्नि, अपराजिए दोन्नि, सेसा Translated Sutra: ભંતે ! શ્રમણ યાવત્ સિદ્ધિ પ્રાપ્ત ભગવંત મહાવીરે અનુત્તરોપપાતિકના બીજા વર્ગના ૧૩ – અધ્યયનો કહ્યા છે, તો બીજા વર્ગના પહેલા અધ્યયનનો યાવત્ શો અર્થ કહ્યો છે ? હે જંબૂ! તે કાળે, તે સમયે રાજગૃહનગર હતું, ગુણશીલ ચૈત્ય હતું, શ્રેણિક રાજા હતો, ધારિણી રાણી હતા. ધારિણી દેવીએ સ્વપ્નમાં સિંહ જોયો. જાલિકુમારની માફક જન્મ, | |||||||||
Anuttaropapatikdashang | અનુત્તરોપપાતિક દશાંગસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वर्ग-३ धन्य, सुनक्षत्र, ऋषिदास, पेल्लक, रामपुत्र... अध्ययन-१ |
Gujarati | 10 | Sutra | Ang-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं अनुत्तरोववाइयदसाणं तच्चस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पन्नत्ता, पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं काकंदी नामं नयरी होत्था–रिद्धत्थिमियसमिद्धा। सहसंबवणे उज्जाणे–सव्वोउय-पुप्फ-फल-समिद्धे। जियसत्तू राया।
तत्थ णं काकंदीए नयरीए भद्दा नामं सत्थवाही परिवसइ–अड्ढा जाव अपरिभूया।
तीसे णं भद्दाए सत्थवाहीए पुत्ते धन्ने नामं दारए होत्था–अहीणपडिपुण्ण-पंचेंदियसरीरे जाव सुरूवे। पंचधाईपरिग्गहिए जहा महब्बलो जाव बावत्तरिं कलाओ अहीए जाव अलंभोगसमत्थे Translated Sutra: ભંતે ! જો ભગવંતે મહાવીરે અનુત્તરોપપાતિક દશાના ત્રીજા વર્ગના દશ અધ્યયનો કહ્યા છે તો પહેલા અધ્યયનનો અર્થ શો છે ? હે જંબૂ ! તે કાળે તે સમયે કાકંદી નામે ઋદ્ધ – નિર્ભય – સમૃદ્ધ નગરી હતી, સહસ્રામ્રવન નામે સર્વઋતુક ઉદ્યાન હતુ, જિતશત્રુ રાજા હતો. તે નગરીમાં ભદ્રા સાર્થવાહી રહેતી હતી, તેણી આઢ્યા યાવત્ અપરિભૂતા હતી. તેણીને | |||||||||
Anuttaropapatikdashang | અનુત્તરોપપાતિક દશાંગસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वर्ग-३ धन्य, सुनक्षत्र, ऋषिदास, पेल्लक, रामपुत्र... अध्ययन-१ |
Gujarati | 11 | Sutra | Ang-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे गुणसिलए चेइए। सेणिए राया।
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसढे। परिसा निग्गया। सेणिए निग्गए। धम्मकहा। परिसा पडिगया।
तए णं से सेणिए राया समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–इमासि णं भंते! इंदभूइपामोक्खाणं चोद्दसण्हं समणसाहस्सीणं कतरे अनगारे महादुक्करकारए चेव महानिज्जरतराए चेव?
एवं खलु सेणिया! इमासि णं इंदभूइपामोक्खाणं चोद्दसण्हं समणसाहस्सीणं धन्ने अनगारे महादुक्करकारए चेव महाणिज्जरतराए चेव।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ, इमासिं णं Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૧. તે કાળે તે સમયે રાજગૃહનગર, ગુણશીલ ચૈત્ય, શ્રેણિક રાજા હતા. તે કાળે તે સમયે ભગવંત મહાવીર પધાર્યા, પર્ષદા નીકળી. શ્રેણિક નીકળ્યો. ધર્મકથા કહી, પર્ષદા પાછી ગઈ. ત્યારે શ્રેણિકે ભગવંત મહાવીરની પાસે ધર્મ સાંભળી, સમજીને ભગવંતને વંદન – નમન કર્યા. પછી પૂછ્યું – હે ભગવન્ ! આ ઇન્દ્રભૂતિ આદિ ૧૪,૦૦૦ શ્રમણોમાં કયા | |||||||||
Anuttaropapatikdashang | અનુત્તરોપપાતિક દશાંગસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वर्ग-३ धन्य, सुनक्षत्र, ऋषिदास, पेल्लक, रामपुत्र... अध्ययन-१ |
Gujarati | 12 | Sutra | Ang-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स धन्नस्स अनगारस्स अन्नया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकाले धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–एवं खलु अहं इमेणं ओरालेणं तवोकम्मेणं धमणिसंतए जाए। जहा खंदओ तहेव चिंता। आपुच्छणं। थेरेहिं सद्धिं विउलं पव्वयं दुरुहइ। मासिया संलेहणा। नव मासा परियाओ जाव कालमासे कालं किच्चा उड्ढं चंदिम-सूर-गहगण-नक्खत्त-तारारूवाणं जाव नवयगेवेज्जविमाणपत्थडे उड्ढं दूरं वीईवइत्ता सव्वट्ठसिद्धे विमाने देवत्ताए उववन्ने। थेरा तहेव ओयरंति जाव इमे से आयारभंडए।
भंतेति! भगवं गोयमे तहेव आपुच्छति, जहा खंदयस्स भगवं वागरेइ जाव सव्वट्ठसिद्धे Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૧ | |||||||||
Anuttaropapatikdashang | અનુત્તરોપપાતિક દશાંગસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वर्ग-३ धन्य, सुनक्षत्र, ऋषिदास, पेल्लक, रामपुत्र... अध्ययन-२ थी १० |
Gujarati | 13 | Sutra | Ang-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं तच्चस्स वग्गस्स पढमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, दोच्चस्स णं भंते! अज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं काकंदी नयरी। जियसत्तू राया।
तत्थ णं काकंदीए नयरीए भद्दा नामं सत्थवाही परिवसइ–अड्ढा।
तीसे णं भद्दाए सत्थवाहीए पुत्ते सुनक्खत्ते नामं दारए होत्था–अहीन-पडिपुण्ण-पंचेंदियसरीरे जाव सुरूवे पंचधाइपरिक्खित्ते जहा धन्नो तहेव। बत्तीसओ दाओ जाव उप्पिं पासायवडेंसए विहरइ।
तेणं कालेणं तेणं समएणं समोसरणं। जहा धन्ने तहा सुनक्खत्ते वि निग्गए। जहा थावच्चापुत्तस्स तहा निक्खमणं जाव अनगारे जाए–इरियासमिए Translated Sutra: હે જંબૂ! તે કાળે, તે સમયે કાકંદી નગરીમાં ભદ્રા નામે આઢ્યા સાર્થવાહી રહેતી હતી. તેણીને સુનક્ષત્ર નામે પૂર્ણ પંચેન્દ્રિય યાવત્ સુરૂપ, પાંચ ધાત્રીથી પાલન કરાતો, ધન્ય જેવો પુત્ર હતો. તેની જેમજ ૩૨ – કન્યા સાથે લગ્ન યાવત્ ઉપરી પ્રાસાદમાં વિચરે છે. તે કાળે તે સમયે ભગવંત મહાવીરનું સમોસરણ થયું., ધન્યની માફક સુનક્ષત્ર | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 18 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं भवियसरीरदव्वावस्सयं?
भवियसरीरदव्वावस्सयं–जे जीवे जोणिजम्मणनिक्खंते इमेणं चेव आदत्तएणं सरीरसमुस्स-एणं जिनदिट्ठेणं भावेणं आवस्सए त्ति पयं सेयकाले सिक्खिस्सइ, न ताव सिक्खइ।
जहा को दिट्ठंतो? अयं महुकुंभे भविस्सइ, अयं घयकुंभे भविस्सइ।
से तं भवियसरीरदव्वावस्सयं। Translated Sutra: भव्यशरीरद्रव्यावश्यक क्या है ? समय पूर्ण होने पर जो जीव जन्मकाल में योनिस्थान से बाहर निकला और उसी प्राप्त शरीर द्वारा जिनोपदिष्ट भावानुसार भविष्य में आवश्यक पद को सीखेगा, किन्तु अभी सीख नहीं रहा है, ऐसे उस जीव का वह शरीर भव्यशरीरद्रव्यावश्यक है। इसका कोई दृष्टान्त है ? यह मधुकुंभ होगा, यह घृतकुंभ होगा। यह | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 20 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं लोइयं दव्वावस्सयं?
लोइयं दव्वावस्सयं–जे इमे राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुंबिय-इब्भ-सेट्ठि-सेनावइ-सत्थ-वाहप्पभिइओ कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए सुविमलाए फुल्लुप्पल-कमल-कोमलुम्मिलियम्मि अहपंडुरे पभाए रत्तासोगप्पगा- स किंसुय सुयमुह गुंजद्धरागसरिसे कमलागर-नलिनिसंडबोहए उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिनयरे तेयसा जलंते मुहधोयण-दंतपक्खालण-तेल्ल-फणिह-सिद्ध-त्थय-हरियालिय-अद्दाग-धूव-पुप्फ-मल्ल-गंध-तंबोल-वत्थाइयाइं दव्वावस्सयाइं काउं तओ पच्छा रायकुलं वा देवकुलं वा आरामं वा उज्जाणं वा सभं वा पवं वा गच्छंति।
से तं लोइयं दव्वावस्सयं। Translated Sutra: भगवन् ! लौकिक द्रव्यावश्यक क्या है ? जो ये राजा, ईश्वर, तलवर, माडंबिक, कौटुम्बिक, इभ्य, श्रेष्ठी, सेनापति, सार्थवाह आदि रात्रि के व्यतीत होने से प्रभातकालीन किंचिन्मात्र प्रकाश होने पर, पहले की अपेक्षा अधिक स्फुट प्रकाश होने, विकसित कमलपत्रों एवं मृगों के नयनों के ईषद् उन्मीलन से युक्त, प्रभात के होने तथा रक्त | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 21 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं कुप्पावयणियं दव्वावस्सयं?
कुप्पावयणियं दव्वावस्सयं–जे इमे चरग चोरिय चम्मखंडिय भिक्खोंड पंडुरंग गोयम गोव्वइय गिहिधम्म धम्मचिंतग अविरुद्ध विरुद्ध वुड्ढसावगप्पभिइओ पासंडत्था कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए सुविमलाए फुल्लुप्पल कमल कोमलुम्मिलियम्मि अहपंडुरे पभाए रत्तासोगप्पगास किंसुय सुयमुह गुंजद्धरागसरिसे कमलागर नलिणिसंडबोहए उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिनयरे तेयसा जलंते इंदस्स वा खंदस्स वा रुद्दस्स वा सिवस्स वा वेसमणस्स वा देवस्स वा नागस्स वा जक्खस्स वा भूयस्स वा मुगुंदस्स वा अज्जाए वा कोट्टकिरियाए वा उवलेवण-सम्मज्जण-आवरिसण धूव पुप्फ Translated Sutra: कुप्रावचनिक द्रव्यावश्यक क्या है ? जो ये चरक, चीरिक, चर्मखंडिक, भिक्षोण्डक, पांडुरंग, गौतम, गोव्रतिक, गृहीधर्मा, धर्मचिन्तक, अविरुद्ध, विरुद्ध, वृद्धश्रावक आदि पाषंडस्थ रात्रि के व्यतीत होने के अनन्तर प्रभात काल में यावत् सूर्य के जाज्वल्यमान तेज से दीप्त होने पर इन्द्र, स्कन्ध, रुद्र, शिव, वैश्रामण अथवा देव, | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 325 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं निक्खेवे? निक्खेवे तिविहे पन्नत्ते, तं–ओहनिप्फन्ने नामनिप्फन्ने सुत्तालावगनिप्फन्ने।
से किं तं ओहनिप्फन्ने? ओहनिप्फन्ने चउव्विहे पन्नत्ते, तं–अज्झयणे अज्झीणे आए ज्झवणा।
से किं तं अज्झयणे? अज्झयणे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–नामज्झयणे ठवणज्झयणे दव्वज्झयणे भावज्झयणे।
नाम-ट्ठवणाओ गयाओ।
से किं तं दव्वज्झयणे? दव्वज्झयणे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–आगमओ य नोआगमओ य।
से किं तं आगमओ दव्वज्झयणे? आगमओ दव्वज्झयणे–जस्स णं अज्झयणे त्ति पदं सिक्खियं ठियं जियं मियं परिजियं नामसमं घोससमं अहीनक्खरं अनच्चक्खरं अव्वाइद्धक्खरं अक्खलियं अमिलियं अवच्चामेलियं पडिपुण्णं Translated Sutra: निक्षेप किसे कहते हैं ? निक्षेप तीन प्रकार हैं। यथा – ओघनिष्पन्न, नामनिष्पन्न, सूत्रालापकनिष्पन्न। ओघनिष्पन्ननिक्षेप के चार भेद हैं। उनके नाम हैं – अध्ययन, अक्षीण, आय, क्षपणा। अध्ययन के चार प्रकार हैं, यथा – नाम अध्ययन, स्थापना अध्ययन, द्रव्य अध्ययन, भाव अध्ययन। नाम और स्थापना अध्ययन का स्वरूप पूर्ववत् | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 327 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से तं नोआगमओ भावज्झयणे। से तं भावज्झयणे। से तं अज्झयणे।
से किं तं अज्झीणे? अज्झीणे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–नामज्झीणे ठवणज्झीणे दव्वज्झीणे भावज्झीणे।
नाम-ट्ठवणाओ गयाओ।
से किं तं दव्वज्झीणे? दव्वज्झीणे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–आगमओ य नोआगमओ य।
से किं तं आगमओ दव्वज्झीणे? आगमओ दव्वज्झीणे–जस्स णं अज्झीणे त्ति पदं सिक्खियं ठियं जियं मियं परिजियं नामसमं घोससमं अहीनक्खरं अनच्चक्खरं अव्वाइद्धक्खरं अक्खलियं अमिलियं अवच्चामेलियं पडिपुण्णं पडिपुन्नघोसं कंटोट्ठविप्पमुक्कं गुरुवायणोवगयं, से णं तत्थ वायणाए पुच्छणाए परियट्टणाए धम्मकहाए, नो अनुप्पेहाए। कम्हा? Translated Sutra: यह नोआगमभाव – अध्ययन का स्वरूप है। अक्षीण का क्या स्वरूप है ? अक्षीण के चार प्रकार हैं। यथा – नाम – अक्षीण, स्थापना – अक्षीण, द्रव्य – अक्षीण और भाव – अक्षीण। नाम और स्थापना अक्षीण का स्वरूप पूर्ववत् जानना। द्रव्य – अक्षीण क्या है ? दो प्रकार हैं। यथा – आगम से, नोआगम से। जिसने अक्षीण इस पद को सीख लिया है, स्थिर, | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 329 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से तं नोआगमओ भावज्झीणे। से तं भावज्झीणे। से तं अज्झीणे।
से किं तं आए? आए चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–नामाए ठवणाए दव्वाए भावाए।
नाम-ट्ठवणाओ गयाओ।
से किं तं दव्वाए? दव्वाए दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–आगमओ य नोआगमओ य।
से किं तं आगमओ दव्वाए? आगमओ दव्वाए–जस्स णं आए त्ति पदं सिक्खियं ठियं जियं मियं परिजियं नाम-समं घोससमं अहीणक्खरं अणच्चक्खरं अव्वाइद्धक्खरं अक्खलियं अमिलियं अवच्चामेलियं पडिपुण्णं पडिपुन्नघोसं कंठोट्ठविप्पमुक्कं गुरुवायणोवगयं, से णं तत्थ वायणाए पुच्छणाए परियट्टणाए धम्मकहाए, नो अनुप्पेहाए।
कम्हा? अनुवओगो दव्वमिति कट्टु।
नेगमस्स एगो अनुवउत्तो आगमओ Translated Sutra: इस प्रकार से नोआगमभाव – अक्षीण का स्वरूप जानना चाहिए। आय क्या है ? आय के चार प्रकार हैं। यथा – नाम – आय, स्थापना – आय, द्रव्य – आय, भाव – आय। नाम – आय और स्थापना – आय का ‘वर्ण’ पूर्ववत् जानना। द्रव्य – आय के दो भेद हैं – आगम से, नोआगम से। जिसने आय यह पद सीख लिया हे, स्थिर कर लिया है किन्तु उपयोग रहित होने से द्रव्य हैं | |||||||||
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अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 4 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ अंगबाहिरस्स उद्देसो समुद्देसो अनुन्ना अनुओगो य पवत्तइ, किं कालियस्स उद्देसो समुद्देसो अनुन्ना अनुओगो य पवत्तइ? उक्कालियस्स उद्देसो समुद्देसो अनुन्ना अनुओगो य पवत्तइ?
कालियस्स वि उद्देसो समुद्देसो अनुन्ना अनुओगो य पवत्तइ, उक्कालियस्स वि उद्देसो समुद्देसो अनुन्ना अनुओगो य पवत्तइ।
इमं पुण पट्ठवणं पडुच्च उक्कालियस्स उद्देसो समुद्देसो अनुन्ना अनुओगो य पवत्तइ। Translated Sutra: भगवन् ! यदि अंगबाह्य श्रुत में उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा और अनुयोग की प्रवृत्ति होती है तो क्या वह कालिकाश्रुत में होती है अथवा उत्कालिक श्रुत में ? कालिकश्रुत और उत्कालिक श्रुत दोनों में उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा और अनुयोग प्रवृत्त होते हैं, किन्तु यहाँ उत्कालिक श्रुत का उद्देश यावत् अनुयोग प्रारम्भ किया | |||||||||
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अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 5 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ उक्कालियस्स उद्देसो समुद्देसो अनुन्ना अनुओगो य पवत्तइ, किं आवस्सयस्स उद्देसो समुद्देसो अनुन्ना अनुओगो य पवत्तइ? आवस्सयवतिरित्तस्स उद्देसो समुद्देसो अनुन्ना अनुओगो य पवत्तइ?
आवस्सयस्स वि उद्देसो समुद्देसो अनुन्ना अनुओगो य पवत्तइ, आवस्सयवतिरित्तस्स वि उद्देसो समुद्देसो अनुन्ना अनुओगो य पवत्तइ।
इमं पुण पट्ठवणं पडुच्च आवस्सयस्स अनुओगो। Translated Sutra: यदि उत्कालिक श्रुत के उद्देश आदि होते हैं तो क्या वे आवश्यक के होते हैं अथवा आवश्यकव्यतिरिक्त के होते हैं ? आयुष्यमन् ! यद्यपि आवश्यक और आवश्यक से भिन्न दोनों के उद्देश आदि होते हैं परन्तु यहाँ आवश्यक का अनुयोग प्रारम्भ किया जा रहा है। | |||||||||
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Hindi | 14 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं आगमओ दव्वावस्सयं?
आगमओ दव्वावस्सयं–जस्स णं आवस्सए त्ति पदं सिक्खियं ठियं जियं मियं परिजियं नामसमं धोससमं अहीनक्खरं अनच्चक्खरं अव्वाइद्धक्खरं अक्खलियं अमिलियं अवच्चामेलियं पडिपुण्णं पडिपुन्नघोसं कंठोट्ठविप्पमुक्कं गुरुवायणोवगयं, से णं तत्थ वायणाए पुच्छणाए परियट्टणाए धम्मकहाए, नो अनुप्पेहाए। कम्हा? अनुवओगो दव्वमिति कट्टु। Translated Sutra: आगमद्रव्य – आवश्यक क्या है ? जिस ने ‘आवश्यक’ पद को सीख लिया है, स्थित कर लिया है, जित कर लिया है, मित कर लिया है, परिजित कर लिया है, नामसम कर लिया है, घोषसम किया है, अहीनाक्षर किया है, अनत्यक्षर किया है, व्यतिक्रमरहित उच्चारण किया है, अस्खलित किया है, पदों को मिश्रित करके उच्चारण नहीं किया है, एक शास्त्र के भिन्न – भिन्न | |||||||||
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Hindi | 22 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं लोगुत्तरियं दव्वावस्सयं?
लोगुत्तरियं दव्वावस्सयं–जे इमे समणगुणमुक्कजोगी छक्कायनिरनुकंपा हया इव उद्दामा गया इव निरंकुसा घट्ठा मट्ठा तुप्पोट्ठा पंडुरपाउरणा जिनाणं अणाणाए सच्छंदं विहरिऊणं उभओकालं आवस्सयस्स उवट्ठंति।
से तं लोगुत्तरियं दव्वावस्सयं। से तं जाणगसरीर-भवियसरीरवतिरत्तं दव्वावस्सयं। से त्तं नोआगमओ दव्वावस्सयं। से तं दव्वावस्सयं। Translated Sutra: लोकोत्तरिक द्रव्यावश्यक क्या है ? जो श्रमण के गुणों से रहित हों, छह काय के जीवों के प्रति अनुकम्पा न होने के कारण अश्व की तरह उद्दाम हों, हस्तिवत् निरंकुश हों, स्निग्ध पदार्थों के लेप से अंग – प्रत्यंगों को कोमल, सलौना बनाते हों, शरीर को धोते हों, अथवा केशों का संस्कार करते हों, ओठों को मुलायम रखने के लिए मक्खन | |||||||||
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Hindi | 28 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं लोगुत्तरियं भावावस्सयं?
लोगुत्तरियं भावावस्सयं–जण्णं इमं समणे वा समणी वा सावए वा साविया वा तच्चित्ते तम्मणे तल्लेसे तदज्झवसिए तत्तिव्वज्झवसाणे तदट्ठोवउत्ते तदप्पियकरणे तब्भावणाभाविए अन्नत्थ कत्थइ मणं अकरेमाणे उभओ कालं आवस्सयं करेति।
से तं लोगुत्तरियं भावावस्सयं। से तं नोआगमओ भावावस्सयं। से तं भावावस्सयं। Translated Sutra: लोकोत्तरिक भावावश्यक क्या है ? दत्तचित्त और मन की एकाग्रता के साथ, शुभ लेश्या एवं अध्यवसाय से सम्पन्न, यथाविध क्रिया को करने के लिए तत्पर अध्यवसायों से सम्पन्न होकर, तीव्र आत्मोत्साहपूर्वक उसके अर्थ में उपयोगयुक्त होकर एवं उपयोगी करणों को नियोजित कर, उसकी भावना से भावित होकर जो ये श्रमण, श्रमणी, श्रावक, श्राविकायें | |||||||||
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Hindi | 39 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं जाणगसरीरदव्वसुयं?
जाणगसरीरदव्वसुयं–सुए त्ति पयत्थाहिगारजाणगस्स जं सरीरयं ववगय-चुय-चाविय-चत्तदेहं जीवविप्पजढं सेज्जागयं वा संथारगयं वा निसीहियागयं वा सिद्धसिलातलगयं वा पासित्ताणं कोइ वएज्जा–अहो णं इमेणं सरीरसमुस्सएणं जिणदिट्ठेणं भावेणं सुए त्ति पयं आघवियं पन्नवियं परूवियं दंसियं निदंसियं उवदंसियं।
जहा को दिट्ठंतो? अयं महुकुंभे आसी, अयं घयकुंभे आसी।
से तं जाणगसरीरदव्वसुयं। Translated Sutra: ज्ञायकशरीर – द्रव्यश्रुत क्या है ? श्रुतपद के अर्थाधिकार के ज्ञाता के व्यपगत, च्युत, च्यावित, त्यक्त, जीवरहित शरीर को शय्यागत, संस्तारकगत अथवा सिद्धाशिला देखकर कोई कहे – अहो ! इस शरीररूप परिणत पुद्गलसंघात द्वारा जिनोपदेशित भाव से ‘श्रुत’ इस पद की गुरु से वाचना ली थी, प्रज्ञापित, प्ररूपित, दर्शित, निदर्शित, | |||||||||
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Hindi | 40 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं भवियसरीरदव्वसुयं?
भवियसरीरदव्वसुयं–जे जीवे जोणीजम्मणनिक्खंते इमेणं चेव आदत्तएणं सरीरसमुस्सएणं जिणदिट्ठेणं भावेणं सुए त्ति पयं सेयकाले सिक्खिस्सइ, न ताव सिक्खइ।
जहा को दिट्ठंतो? अयं महुकुंभे भविस्सइ, अयं घयकुंभे भविस्सइ।
से तं भवियसरीरदव्वसुयं। Translated Sutra: भव्यशरीरद्रव्यश्रुत क्या है ? समय पूर्ण होने पर जो जीव योनि में से निकला और प्राप्त शरीरसंघात द्वारा भविष्य में जिनोपदिष्ट भावानुसार श्रुतपद को सीखेगा, किन्तु वर्तमान में सीख नहीं रहा है, ऐसे उस जीव का वह शरीर भव्यशरीर – द्रव्यश्रुत है। इसका दृष्टान्त ? ‘यह मधुपट है, यह घृतघट है’ ऐसा कहा जाता है। | |||||||||
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Hindi | 46 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं लोगुत्तरियं भावसुयं?
लोगुत्तरियं भावसुयं– जं इमं अरहंतेहिं भगवंतेहिं उप्पन्ननाणदंसणधरेहिं तीय-पडुप्पन्न मनागयजाणएहिं सव्वन्नूहिं सव्वदरिसीहिं तेलोक्कचहिय-महियपूइएहिं पणीयं दुवालसंगं गणि-पिडगं, तं जहा–
१.आयारो २. सूयगडो ३. ठाणं ४. समवाओ ५. वियाहपन्नत्ती ६. नायाधम्मकहाओ ७. उवासगदसाओ ८. अंतगडदसाओ ९. अनुत्तरोव-वाइयदसाओ १०. पण्हावागरणाइं ११. विवागसुयं १२. दिट्ठिवाओ।
से तं लोगुत्तरियं भावसुयं। से तं नोआगमओ भावसुयं। से तं भावसुयं। Translated Sutra: लोकोत्तरिक (नोआगम) भावश्रुत क्या है ? उत्पन्न केवलज्ञान और केवलदर्शन को धारण करनेवाले, भूत – भविष्यत् और वर्तमान कालिक पदार्थों को जानने वाले, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, त्रिलोकवर्ती जीवों द्वारा अवलोकित, पूजित, अप्रतिहत श्रेष्ठ ज्ञान – दर्शन के धारक अरिहंत भगवंतो द्वारा प्रणीत आचार, सूत्रकृत, स्थान, समवाय, व्याख्याप्रज्ञप्ति, | |||||||||
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Hindi | 52 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं दव्वखंधे?
दव्वक्खंधे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–आगमओ य नोआगमओ य।
से किं तं आगमओ दव्वखंधे?
आगमओ दव्वखंधे–जस्स णं खंधे त्ति पदं सिक्खियं सेसं जहा दव्वा-वस्सए तहा भाणियव्वं नवरं खंधाभिलाओ जाव से किं तं जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्ते दव्वखंधे जाणगसरीर-भविय-सरीर-वतिरित्ते दव्वखंधे तिविहे पन्नत्ते तं जहा–सचित्ते अचित्ते मीसए। Translated Sutra: द्रव्यस्कन्ध क्या है ? दो प्रकार का है। आगमद्रव्यस्कन्ध और नोआगमद्रव्यस्कन्ध। आगमद्रव्यस्कन्ध क्या है ? जिसने स्कन्धपद को गुरु से सीखा है, स्थित किया है, जित, मित किया है यावत् नैगमनय की अपेक्षा एक अनुपयुक्त आत्मा आगम से एक द्रव्यस्कन्ध है, दो अनुपयुक्त आत्माऍं दो, इस प्रकार जितनी भी अनुपयुक्त आत्माऍं हैं, | |||||||||
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Hindi | 70 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं उवक्कमे?
उवक्कमे छव्वीहे पन्नत्ते तं जहा–१. नामोवक्कमे २. ठवणोवक्कमे ३. दव्वोवक्कमे ४. खेत्तोवक्कमे ५. कालोवक्कमे ६. भावोवक्कमे। से नामट्ठवणाओ गयाओ ।
से किं तं दव्वोवक्कमे? दव्वोवक्कमे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–आगमओ य नोआगमओ य।
से किं तं आगमओ दव्वोवक्कमे?
आगमओ दव्वोवक्कमे–जस्स णं उवक्कमे त्ति पदं सिक्खियं ठियं जियं मियं परिजियं नामसमं घोससमं अहीनक्खरं अनच्चक्खरं अव्वाइद्धक्खरं अक्खलियं अमिलियं अवच्चामेलियं पडिपुण्णं पडिपुन्नघोसं कंठोट्ठविप्पमुक्कं गुरुवायणोवगयं, से णं तत्थ वायणाए पुच्छणाए परियट्टणाए धम्मकहाए,
नो अनुप्पेहाए। कम्हा? अनुवओगो Translated Sutra: उपक्रम क्या है ? उपक्रम के छह भेद हैं। नाम – उपक्रम, स्थापना – उपक्रम, द्रव्य – उपक्रम, क्षेत्र – उपक्रम, काल – उपक्रम, भाव – उपक्रम। नाम और स्थापना – उपक्रम का स्वरूप नाम एवं स्थापना आवश्यक के समान जानना द्रव्य – उपक्रम क्या है ? दो प्रकार का है – आगमद्रव्य – उपक्रम, नोआगमद्रव्य – उपक्रम इत्यादि पूर्ववत् जानना | |||||||||
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Hindi | 78 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं कालोवक्कमे?
कालोवक्कमे–जण्णं नालियाईहिं कालस्सोवक्कमणं कीरइ। से तं कालोवक्कमे। Translated Sutra: कालोपक्रम क्या है ? नालिका आदि द्वारा जो काल का यथावत् ज्ञान होता है, वह कालोपक्रम है। | |||||||||
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Hindi | 81 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं आनुपुव्वी?
आनुपुव्वी दसविहा पन्नत्ता, तं जहा–१. नामानुपुव्वी २. ठवणानुपुव्वी ३. दव्वानुपुव्वी ४. खेत्तानुपुव्वी ५. कालानुपुव्वी ६. उक्कित्तणानुपुव्वी ७. गणणानुपुव्वी ८. संठाणानुपुव्वी ९. सामायारियानुपुव्वी १०. भावानुपुव्वी। Translated Sutra: आनुपूर्वी क्या है ? दस प्रकार की है। नामानुपूर्वी, स्थापनानुपूर्वी, द्रव्यानुपूर्वी, क्षेत्रानुपूर्वी, कालानुपूर्वी, उत्कीर्तनानुपूर्वी, गणनानुपूर्वी, संस्थानानुपूर्वी, सामाचार्यनुपूर्वी, भावानुपूर्वी। | |||||||||
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Hindi | 82 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नामानुपुव्वी?
नामानुपुव्वी– जस्स णं जीवस्स वा अजीवस्स वा जीवाण वा अजीवाण वा तदुभयस्स वा तदुभयाण वा आनुपुव्वी त्ति नामं कज्जइ। से तं नामानुपुव्वी।
से किं तं ठवणानुपुव्वी?
ठवणानुपुव्वी– जण्णं कट्ठकम्मे वा चित्तकम्मे वा पोत्थकम्मे वा लेप्पकम्मे वा गंथिमे वा वेढिमे वा पूरिमे वा संघाइमे वा अक्खे वा वराडए वा एगो वा अनेगा वा सब्भावठवणाए वा असब्भाव-ठवणाए वा आनुपुव्वी त्ति ठवणा ठविज्जइ। से तं ठवणानुपुव्वी।
नाम-ट्ठवणाणं को पइविसेसो? नामं आवकहियं, ठवणा इत्तरिया वा होज्जा आवकहिया वा।
से किं तं दव्वानुपुव्वी?
दव्वानुपुव्वी दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–आगमओ य नोआगमओ Translated Sutra: नाम (स्थापना) आनुपूर्वी क्या है ? नाम और स्थापना आनुपूर्वी का स्वरूप नाम और स्थापना आवश्यक जैसा जानना। द्रव्यानुपूर्वी का स्वरूप भी ज्ञायकशरीर – भव्यशरीरव्यतिरिक्त द्रव्यानुपूर्वी के पहले तक सभेद द्रव्यावश्यक के समान जानना चाहिए। ज्ञायकशरीर – भव्यशरीरव्यतिरिक्त द्रव्यानुपूर्वी क्या है ? दो प्रकार की | |||||||||
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Hindi | 90 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं अनुगमे?
अनुगमे नवविहे पन्नत्ते, तं जहा– Translated Sutra: अनुगम क्या है ? नौ प्रकार का है, सत्पदप्ररूपणा, द्रव्यप्रमाण, क्षेत्र, स्पर्शना, काल, अन्तर, भाग, भाव और अल्पबहुत्व। सूत्र – ९०, ९१ | |||||||||
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Hindi | 91 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] १. संतपयपरूवणया २. दव्वपमाणं च ३. खेत्त ४. फुसणा य ।
५. कालो य ६. अंतरं ७. भाग ८. भाव ९. अप्पाबहुं चेव ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ९० | |||||||||
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Hindi | 96 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नेगम-ववहाराणं आनुपुव्विदव्वाइं कालओ केवच्चिरं होंति?
एगदव्वं पडुच्च जहन्नेणं एगं समयं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं। नाणादव्वाइं पडुच्च नियमा सव्वद्धा। एवं दोन्नि वि। अनानुपुव्वि-दव्वाइं अवत्तव्वगदव्वाइं च एवं चेव भाणिअव्वाइं। Translated Sutra: नैगम – व्यवहारनयसंमत आनुपूर्वीद्रव्य काल की अपेक्षा कितने काल तक रहते हैं ? एक आनुपूर्वीद्रव्य जघन्य एक समय एवं उत्कृष्ट असंख्यात काल तक उसी स्वरूप में रहता है और विविध आनुपूर्वीद्रव्यों की अपेक्षा नियमतः स्थिति सार्वकालिक है। इसी प्रकार अनानुपूर्वी और अवक्तव्य द्रव्यों की स्थिति भी जानना। | |||||||||
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Hindi | 97 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नेगम-ववहाराणं आनुपुव्विदव्वाणं अंतरं कालओ केवच्चिरं होइ?
एगदव्वं पडुच्च जहन्नेणं एगं समयं, उक्कोसेणं अनंतं कालं। नाणादव्वाइं पडुच्च नत्थि अंतरं।
नेगम-ववहाराणं अनानुपुव्विदव्वाणं अंतरं कालओ केवच्चिरं होइ?
एगदव्वं पडुच्च जहन्नेणं एगं समयं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं। नानादव्वाइं पडुच्च नत्थि अंतरं।
नेगम-ववहाराणं अवत्तव्वगदव्वाणं अंतरं कालओ केवच्चिरं होइ?
एगदव्वं पडुच्च जहन्नेणं एगं समयं, उक्कोसेणं अनंतं कालं। नाणादव्वाइं पडुच्च नत्थि अंतरं। Translated Sutra: नैगम – व्यवहारनयसम्मत आनुपूर्वीद्रव्यों का कालापेक्षया अंतर कितना होता है ? एक आनुपूर्वीद्रव्य की अपेक्षा जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अनन्त काल का, किन्तु अनेक द्रव्यों की अपेक्षा विरहकाल नहीं है। नैगम – व्यवहारनयसंमत अनानु – पूर्वीद्रव्यों का काल की अपेक्षा अंतर कितना होता है ? एक अनानुपूर्वीद्रव्य की अपेक्षा | |||||||||
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Hindi | 106 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं अनुगमे?
अनुगमे अट्ठविहे पन्नत्ते, तं जहा– Translated Sutra: संग्रहनयसम्मत अनुगम क्या है ? वह आठ प्रकार का है। सत्पदप्ररूपणा, द्रव्यप्रमाण, क्षेत्र, स्पर्शना, काल, अन्तर, भाग और भाव। इसमें अल्पबहुत्व नहीं होता है। सूत्र – १०६, १०७ | |||||||||
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Hindi | 107 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] १. संतपयपरूवणया, २. दव्वपमाणं च ३. खेत्त ४. फुसणा य ।
५. कालो य ६. अंतरं ७. भाग ८. भाव अप्पाबहुं नत्थि ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १०६ | |||||||||
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Hindi | 108 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] संगहस्स आनुपुव्विदव्वाइं किं अत्थि? नत्थि? नियमा अत्थि। एवं दोन्नि वि।
संगहस्स आनुपुव्विदव्वाइं किं संखेज्जाइं? असंखेज्जाइं? अनंताइं?
नो संखेज्जाइं नो असंखेज्जाइं नो अनंताइं, नियमा एगो रासी। एवं दोन्नि वि।
संगहस्स आनुपुव्विदव्वाइं लोगस्स कति भागे होज्जा–किं संखेज्जइभागे होज्जा? असंखे-ज्जइभागे होज्जा? संखेज्जेसु भागेसु होज्जा? असंखेज्जेसु भागेसु होज्जा? सव्वलोए होज्जा?
नो संखेज्जइभागे होज्जा, नो असंखेज्जइभागे होज्जा, नो संखेज्जेसु भागेसु होज्जा, नो असंखेज्जेसु भागेसु होज्जा, नियमा सव्वलोए होज्जा। एवं दोन्नि वि।
संगहस्स आनुपुव्विदव्वाइं लोगस्स कति Translated Sutra: संग्रहनयसम्मत आनुपूर्वीद्रव्य हैं अथवा नहीं हैं ? नियमतः हैं। इसी प्रकार दोनों द्रव्यों के लिये भी समझना। संग्रह – नयसम्मत आनुपूर्वीद्रव्य संख्यात हैं, असंख्यात हैं, या अनन्त हैं ? वह नियमतः एक राशि रूप हैं। इसी प्रकार दोनों द्रव्यों के लिये भी जानना। संग्रहनयसम्मत आनुपूर्वीद्रव्य लोक के कितने भाग में | |||||||||
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Hindi | 110 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं पुव्वानुपुव्वी? पुव्वानुपुव्वी–धम्मत्थिकाए अधम्मत्थिकाए आगासत्थिकाए जीवत्थिकाए पोग्गलत्थिकाए अद्धासमए। से तं पुव्वानुपुव्वी।
से किं तं पच्छानुपुव्वी? पच्छानुपुव्वी–अद्धासमए पोग्गलत्थिकाए जीवत्थिकाए आगास-त्थिकाए अधम्मत्थिकाए धम्मत्थिकाए। से तं पच्छानुपुव्वी।
से किं तं अनानुपुव्वी? अनानुपुव्वी–एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए छगच्छगयाए सेढीए अन्नमन्नब्भासो दुरूवूणो। से तं अनानुपुव्वी। Translated Sutra: भगवन् ! पूर्वानुपूर्वी क्या है ? वह इस प्रकार है – धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय, अद्धाकाल। इस प्रकार अनुक्रम से निक्षेप करने को पूर्वानुपूर्वी कहते हैं। पश्चानुपूर्वी क्या है ? वह इस प्रकार है – अद्धासमय, पुद्गलास्तिकाय, जीवास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय | |||||||||
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Hindi | 115 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] १. संतपयपरूवणया, २. दव्वपमाणं च ३. खेत्त ४. फुसणा य ।
५. कालो य ६. अंतरं ७. भाग ८. भाव० ९. अप्पाबहुं चेव ॥ Translated Sutra: सत्पदप्ररूपणता, द्रव्यप्रमाण, क्षेत्र, स्पर्शना, काल, अंतर, भाग, भाव और अल्पबहुत्व। | |||||||||
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Hindi | 116 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नेगम-ववहाराणं आनुपुव्विदव्वाइं किं अत्थि? नत्थि? नियमा अत्थि। एवं दोन्नि वि।
नेगम-ववहाराणं आनुपुव्विदव्वाइं किं संखेज्जाइं? असंखेज्जाइं? अनंताइं? नो संखेज्जाइं, असंखेज्जाइं, नो अनंताइं। एवं दोन्नि वि।
नेगम-ववहाराणं आनुपुव्विदव्वाइं लोगस्स कति भागे होज्जा–किं संखेज्जइभागे होज्जा? असंखेज्जइभागे होज्जा? संखेज्जेसु भागेसु होज्जा? असंखेज्जेसु भागेसु होज्जा? सव्वलोए होज्जा? एगदव्वं पडुच्च लोगस्स संखेज्जइभागे वा होज्जा, असंखेज्जइभागे वा होज्जा, संखेज्जेसु भागेसु वा होज्जा, असंखेज्जेसु भागेसु वा होज्जा, देसूणे लोए वा होज्जा। नानादव्वाइं पडुच्च नियमा सव्वलोए Translated Sutra: सत्पदप्ररूपणता क्या है ? नैगम – व्यवहारनयसंमत क्षेत्रानुपूर्वीद्रव्य है या नहीं ? नियमतः हैं। इसी प्रकार अनानुपूर्वी और अवक्तव्यक द्रव्यों के लिए भी समझना। नैगम – व्यवहारनयसम्मत आनुपूर्वी द्रव्य क्या संख्यात हैं, असंख्यात हैं, अथवा अनन्त हैं ? वह नियमतः असंख्यात हैं। इसी प्रकार दोनों द्रव्यों के लिए भी | |||||||||
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Hindi | 121 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जंबुद्दीवे लवणे, धायइ-कालोय-पुक्खरे वरुणे ।
खीर-घय-खोय-नंदी अरुणवरे कुंडले रुयगे ॥ Translated Sutra: जम्बूद्वीप, लवणसमुद्र, धातकीखंडद्वीप, कालोदधिसमुद्र, पुष्करद्वीप, (पुष्करोद) समुद्र, वरुणद्वीप, वरुणोदसमुद्र, क्षीरद्वीप, क्षीरोदसमुद्र, घृतद्वीप, घृतोदसमुद्र, इक्षुवरद्वीप, इक्षुवरसमुद्र, नन्दीद्वीप, नन्दीसमुद्र, अरुणवरद्वीप, अरुणवरसमुद्र, कुण्डलद्वीप, कुण्डलसमुद्र, रुचकद्वीप, रुचकसमुद्र। जम्बूद्वीप | |||||||||
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Hindi | 126 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं कालानुपुव्वी? कालानुपुव्वी दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–ओवनिहिया य अनोवनिहिया य। Translated Sutra: कालानुपूर्वी क्या है ? दो प्रकार हैं, औपनिधिकी और अनौपनिधिकी। इनमें से औपनिधिकी कालानुपूर्वी स्थाप्य है। तथा – अनौपनिधिकी कालानुपूर्वी दो प्रकार की है – नैगम – व्यवहारनयसंमत और संग्रहनयसम्मत। सूत्र – १२६, १२७ | |||||||||
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Hindi | 128 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नेगम-ववहाराणं अनोवनिहिया कालानुपुव्वी? नेगम-ववहाराणं अनोवनिहिया कालानुपुव्वी पंचविहा पन्नत्ता, तं जहा–
१. अट्ठपयपरूवणया २. भंगसमुक्कित्तणया ३. भंगोवदंसणया ४. समोयारे ५. अनुगमे। Translated Sutra: नैगम – व्यवहारनयसंमत अनौपनिधिकी कालानुपूर्वी क्या है ? उसके पाँच प्रकार हैं। – अर्थपदप्ररूपणता, भंगसमुत्की – र्तनता, भंगोपदर्शनता, समवतार, अनुगम। | |||||||||
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Hindi | 130 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नेगम-ववहाराणं भंगसमुक्कित्तणया? नेगम-ववहाराणं भंगसमुक्कित्तणया–१. अत्थि आनुपुव्वी २. अत्थि अनानुपुव्वी ३. अत्थि अवत्तव्वए। एवं दव्वानुपुव्विगमेणं कालानुपुव्वीए वि ते चेव छव्वीसं भंगा भाणियव्वा जाव। से तं नेगम-ववहाराणं भंगसमुक्कित्तणया।
एयाए णं नेगम-ववहाराणं भंगसमुक्कित्तणयाए किं पओयणं? एयाए णं नेगम-ववहाराणं भंगसमुक्कित्तणयाए भंगोवदंसणया कज्जइ। Translated Sutra: नैगम – व्यवहारनयसंमत भंगसमुत्कीर्तनता क्या है ? आनुपूर्वी है, अनानुपूर्वी है, अवक्तव्यक है, इस प्रकार द्रव्यानु – पूर्वीवत् कालानुपूर्वी के भी २६ भंग जानना। इस नैगम – व्यवहारनयसंमत यावत् (भंगसमुत्कीर्तनता का) क्या प्रयोजन है ? ईनसे भंगोपदर्शनता की जाती है। | |||||||||
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Hindi | 134 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] १. संतपयपरूवणया, २. दव्वपमाणं च ३. खेत्त ४. फुसणा य ।
५. कालो य ६. अंतरं ७. भाग ८. भाव० ९. अप्पाबहुं चेव ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १३३ | |||||||||
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Hindi | 135 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नेगम-ववहाराणं आनुपुव्विदव्वाइं किं अत्थि? नत्थि? नियमा अत्थि। एवं दोन्नि वि।
नेगम-ववहाराणं आनुपुव्विदव्वाइं किं संखेज्जाइं? असंखेज्जाइं? अनंताइं? नो संखेज्जाइं, असंखेज्जाइं, नो अनंताइं। एवं दोन्नि वि।
नेगम-ववहाराणं आनुपुव्विदव्वाइं लोगस्स कति भागे होज्जा–किं संखेज्जइभागे होज्जा? असंखेज्जइभागे होज्जा? संखेज्जेसु भागेसु होज्जा? असंखेज्जेसु भागेसु होज्जा? सव्वलोए होज्जा? एगदव्वं पडुच्च लोगस्स संखेज्जइभागे वा होज्जा, असंखेज्जइभागे वा होज्जा, संखेज्जेसु भागेसु वा होज्जा, असंखेज्जेसु भागेसु वा होज्जा, देसूणे लोए वा होज्जा। नानादव्वाइं पडुच्च नियमा सव्वलोए Translated Sutra: नैगम – व्यवहारनयसंमत आनुपूर्वी द्रव्य है या नहीं है ? नियमतः ये तीनों द्रव्य हैं। नैगम – व्यवहारनयसम्मत आनुपूर्वी आदि द्रव्य संख्यात हैं, असंख्यात है या अनन्त हैं ? तीनों द्रव्य असंख्यात ही हैं। नैगम – व्यवहारनयसम्मत अनेक आनुपूर्वी द्रव्य क्या लोक के संख्यात भाग में रहते हैं ? इत्यादि प्रश्न है। एक द्रव्य | |||||||||
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Hindi | 136 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं संगहस्स अनोवनिहिया कालानुपुव्वी? पंचविहा पन्नत्ता, तं जहा–१. अट्ठपयपरूवणया २. भंगसमुक्कित्तणया ३. भंगोवदंसणया ४. समोयारे ५. अनुगमे। Translated Sutra: संग्रहनय सम्मत अनौपधिकी कालानुपूर्वी क्या है ? वह पाँच प्रकार की है। अर्थपदप्ररूपणता, भंग समुत्कीर्तनता, भंगोपदर्शनता, समवतार और अनुगम। | |||||||||
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Hindi | 137 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं संगहस्स अट्ठपयपरूवणया? संगहस्स अट्ठपयपरूवणया एयाइं पंच वि दाराइं जहा खेत्तानुपुव्वीए संगहस्स तहा कालानुपुव्वीए वि भाणियव्वाणि, नवरं–ठितीअभिलावो जाव। से तं अनुगमे। से तं संगहस्स अनोवनिहिया कालानुपुव्वी। से तं अनोवनिहिया कालानुपुव्वी। Translated Sutra: संग्रहनयसम्मत अर्थपदप्ररूपणता क्या है ? इन पाँचों द्वारों संग्रहनयसम्मत क्षेत्रानुपूर्वी समान जानना। विशेष यह कि ‘प्रदेशावगाढ’ के बदले ‘स्थिति’ कहना। | |||||||||
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Hindi | 138 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं ओवनिहिया कालानुपुव्वी? ओवनिहिया कालानुपुव्वी तिविहा पन्नत्ता, तं जहा–पुव्वानुपुव्वी पच्छानुपुव्वी अनानुपुव्वी।
से किं तं पुव्वानुपुव्वी? पुव्वानुपुव्वी–समए आवलिया आनापानू थोवे लवे मुहुत्ते अहोरत्ते पक्खे मासे उऊ अयने संवच्छरे जुगे वाससए वाससहस्से वाससयसहस्से पुव्वंगे पुव्वे, तुडियंगे तुडिए, अडडंगे अडडे, अववंगे अववे, हुहुयंगे हुहुए, उप्पलंगे उप्पले, पउमंगे पउमे, नलिणंगे नलिणे, अत्थनिउरंगे अत्थनिउरे, अउयंगे अउए, नउयंगे नउए, पउयंगे पउए, चूलियंगे चूलिया, सीसपहेलियंगे सीसपहेलिया, पलिओवमे सागरोवमे ओसप्पिणी उस्सप्पिणी पोग्गलपरियट्टे तीतद्धा Translated Sutra: औपनिधिकी कालानुपूर्वी क्या है ? उसके तीन प्रकार हैं – पूर्वानुपूर्वी, पश्चानुपूर्वी और अनानुपूर्वी। पूर्वानुपूर्वी क्या है ? वह इस प्रकार है – एक समय की स्थिति वाले, दो समय की स्थिति वाले, तीन समय की स्थिति वाले यावत् दस समय की स्थिति वाले यावत् संख्यात समय की स्थिति वाले, असंख्यात समय की स्थिति वाले द्रव्यों | |||||||||
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Hindi | 144 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] उवसंपया य काले, सामायारी भवे दसविहा उ ।
–से तं पुव्वानुपुव्वी।
से किं तं पच्छानुपुव्वी? पच्छानुपुव्वी–उवसंपया जाव इच्छा। से तं पच्छानुपुव्वी।
से किं तं अनानुपुव्वी? अनानुपुव्वी–एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए दसगच्छगयाए सेढीए अन्नमन्नब्भासो दुरूवूणो। से तं अनानुपुव्वी।
से तं सामायारियानुपुव्वी। Translated Sutra: देखो सूत्र १४३ | |||||||||
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Hindi | 151 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं तिनामे? तिनामे तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–दव्वनामे गुणनामे पज्जवनामे।
से किं तं दव्वनामे? दव्वनामे छव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–धम्मत्थिकाए अधम्मत्थिकाए आगासत्थिकाए जीवत्थि-काए पोग्गलत्थिकाए अद्धासमए। से तं दव्वनामे।
से किं तं गुणनामे? गुणनामे पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–वण्णनामे गंधनामे रसनामे फासनामे संठाणनामे।
से किं तं वण्णनामे? वण्णनामे पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–कालवण्णनामे नीलवण्णनामे लोहिय-वण्णनामे हालिद्दवण्णनामे सुक्किल्लवण्णनामे। से तं वण्णनामे।
से किं तं गंधनामे? गंधनामे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–सुब्भिगंधनामे य दुब्भिगंधनामे य। से तं गंधनामे।
से Translated Sutra: त्रिनाम क्या है ? त्रिनाम के तीन भेद हैं। वे इस प्रकार – द्रव्यनाम, गुणनाम और पर्यायनाम। द्रव्यनाम क्या है ? द्रव्यनाम छह प्रकार का है। धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय, अद्धासमय। गुणनाम क्या है ? पाँच प्रकार से हैं। वर्णनाम, गंधनाम, रसनाम, स्पर्शनाम, संस्थाननाम। वर्णनाम | |||||||||
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Hindi | 169 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सत्तसरा जीवनिस्सिया पन्नत्ता, तं जहा– Translated Sutra: जीवनिश्रित – सप्तस्वरों का स्वरूप इस प्रकार है – मयूर षड्जस्वर में, कुक्कुट ऋषभस्वर, हंस गांधारस्वर में, गवेलक मध्यमस्वर में, कोयल पुष्पोत्पत्तिकाल में पंचमस्वर में, सारस और क्रौंच पक्षी धैवतस्वर में तथा – हाथी निषाद स्वर में बोलता है। सूत्र – १६९–१७१ |