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Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध २

वर्ग-१ चमरेन्द्र अग्रमहिषी

अध्ययन-१ काली

Hindi 220 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नयरे होत्था–वण्णओ। तस्स णं रायगिहस्स नयरस्स बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए, एत्थ णं गुणसिलए नामं चेइए होत्था–वण्णओ। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी अज्जसुहम्मा नामं थेरा भगवंतो जाइसंपण्णा कुलसंपण्णा जाव चोद्दसपुव्वी चउनाणोवगया पंचहिं अनगारसएहिं सद्धिं संपरिवुडा पुव्वाणुपुव्विं चरमाणा गामाणुगामं दूइज्ज-माणा सुहंसुहेणं विहरमाणा जेणेव रायगिहे नयरे जेणेव गुणसिलए चेइए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणा विहरंति। परिसा निग्गया। धम्मो

Translated Sutra: उस काल और उस समय में राजगृह नगर था। (वर्णन) उस राजगृह के बाहर ईशान कोण में गुणशील नामक चैत्य था। (वर्णन समझ लेना) उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर के अन्तेवासी आर्य सुधर्मा नामक स्थविर उच्चजाति से सम्पन्न, कुल से सम्पन्न यावत्‌ चौदह पूर्वों के वेत्ता और चार ज्ञानों से युक्त थे। वे पाँच सौ अनगारों से परिवृत्त
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान

Hindi 5 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं चंपाए नयरीए परिसा निग्गया। धम्मो कहिओ। परिसा जामेव दिसिं पाउब्भूया, तामेव दिसिं पडिगया। तेणं कालेणं तेणं समएणं अज्जसुहम्मस्स अनगारस्स जेट्ठे अंतेवासी अज्जजंबू नामं अनगारे कासवगोत्तेणं सत्तुस्सेहे समचउरंस-संठाण-संठिए वइररिसह-नाराय-संघयणे कनग-पलग-निघस-पम्हगोरे उग्गतवे दित्ततवे तत्ततवे महातवे उराले घोरे घोरगुणे घोरतवस्सी घोरबंभचेरवासी उच्छूढसरीरे संखित्त-विउल-तेयलेस्से अज्जसुहम्मस्स थेरस्स अदूरसामंते उड्ढंजाणू अहोसिरे ज्झाणकोट्ठोवगए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तए णं से अज्जजंबूनामे अनगारे जायसड्ढे जायसंसए जायकोउहल्ले संजायसड्ढे

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ चम्पा नगरी में परिषद्‌ नीकली। कूणिक राजा भी नीकला। धर्म का उपदेश दिया। उपदेश सूनकर परिषद्‌ जिस दिशा से आई थी, उसी दिशा में लौट गई। उस काल और उस समय में आर्य सुधर्मा अनगार के ज्येष्ठ शिष्य आर्य जम्बू नामक अनगार थे, जो काश्यप गोत्रीय और सात हाथ ऊंचे शरीर वाले, यावत्‌ आर्य सुधर्मा से न बहुत दूर, न बहुत
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान

Hindi 33 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स अम्मापियरो जाहे नो संचाएंति मेहं कुमारं बहूहिं विसयानुलोमाहिं आघवणाहिं य पन्नवणाहि य सन्नवणाहि य विन्नवणाहि य आघवित्तए वा पन्नवित्तए वा सन्नवित्तए वा विन्नवित्तए वा ताहे विसयपडिकूलाहिं संजमभउव्वेयकारियाहिं पन्नवणाहिं पन्नवेमाणा एवं वयासी–एस णं जाया! निग्गंथे पावयणे सच्चे अनुत्तरे केवलिए पडिपुण्णे नेयाउए संसुद्धे सल्लगत्तणे सिद्धिमग्गे मुत्तिमग्गे निज्जाणमग्गे निव्वाणमग्गे सव्वदुक्खप्पहीणमग्गे, अहीव एगंतदिट्ठिए, खुरो इव गंतधाराए, लोहमया इव जवा चावेयव्वा, वालुयाकवले इव निरस्साए, गंगा इव महानई पडिसोयगमणाए, महासमुद्दो

Translated Sutra: मेघकुमार के माता – पिता जब मेघकुमार को विषयों के अनुकूल आख्यापना से, प्रज्ञापना से, संज्ञापना से, विज्ञापना से समझाने, बुझाने, संबोधित करने और मनाने में समर्थ नहीं हुए, तब विषयों के प्रतिकूल तथा संयम के प्रति भय और उद्वेग उत्पन्न करने वाली प्रज्ञापना से कहने लगे – हे पुत्र ! यह निर्ग्रन्थ प्रवचन सत्य है, अनुत्तर
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान

Hindi 40 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से मेहे अनगारे तेणं ओरालेणं विपुलेणं सस्सिरीएणं पयत्तेणं पग्गहिएणं कल्लाणेणं सिवेणं धन्नेणं मंगल्लेणं उदग्गेणं उदारेणं उत्तमेणं महानुभावेणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे किडि-किडियाभूए अट्ठिचम्मावणद्धे किसे धमणिसंतए जाए यावि होत्था–जीवंजीवेणं गच्छइ, जीवंजीवेणं चिट्ठइ, भासं भासित्ता गिलाइ, भासं भासमाणे गिलाइ, भासं भासिस्सामि त्ति गिलाइ। से जहानामए इंगालसगडिया इ वा कट्ठसगडिया इ वा पत्तसगडिया इ वा तिलंडासगडिया इ वा एरंडसगडिया इ वा उण्हे दिन्ना सुक्का समाणी ससद्दं गच्छइ, ससद्दं चिट्ठइ, एवामेव मेहे अनगारे ससद्दं गच्छइ, ससद्दं चिट्ठइ, उवचिए

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ मेघ अनगार उस उराल, विपुल, सश्रीक – प्रयत्नसाध्य, बहुमानपूर्वक गृहीत, कल्याणकारी – शिव – धन्य, मांगल्य – उदग्र, उदार, उत्तम महान प्रभाव वाले तपःकर्म से शुष्क – नीरस शरीर वाले, भूखे, रूक्ष, मांसरहित और रुधिररहित हो गए। उठते – उठते उनके हाड़ कड़कड़ाने लगे। उनकी हड्डियाँ केवल चमड़े से मढ़ी रह गई। शरीर कृश
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ संघाट

Hindi 42 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं पढमस्स नायज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, बितियस्स णं भंते! नायज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नयरे होत्था–वण्णओ। तस्स णं रायगिहस्स नयरस्स बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए गुणसिलए नामं चेइए होत्था–वण्णओ। तस्स णं गुणसिलयस्स चेइयस्स अदूरसामंते, एत्थ णं महं एगं जिण्णुज्जाणे यावि होत्था–विनट्ठदेवउल-परिसडियतोरणघरे नानाविहगुच्छ-गुम्म-लया-वल्लि-वच्छच्छाइए अनेग-वालसय-संकणिज्जे यावि होत्था। तस्स णं जिण्णुज्जाणस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगे भग्गकूवे यावि होत्था। तस्स णं भग्गकूवस्स

Translated Sutra: श्री जम्बू स्वामी, श्री सुधर्मा स्वामी से प्रश्न करते हैं – ‘भगवन्‌ ! श्रमण भगवान महावीर ने द्वीतिय ज्ञाता – ध्ययन का क्या अर्थ कहा है ? हे जम्बू ! उस काल उस समय में – जब राजगृह नामक नगर था। (वर्णन) उस राजगृह नगर में श्रेणिक राजा था। वह महान्‌ हिमवन्त पर्वत के समान था, इत्यादि उस राजगृह नगर से बाहर ईशान कोण में –
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ संघाट

Hindi 45 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं रायगिहे नयरे विजए नामं तक्करे होत्था–पावचंडाल-रूवे भीमतररुद्दकम्मे आरुसिय-दित्त-रत्तनयणे खरफ-रुस-महल्ल-विगय-बीभच्छदाढिए असंपुडियउट्ठे उद्धूय-पइण्ण-लंबंभमुद्धए भमर-राहुवण्णं निरनुक्कोसे निरनुतावे दारुणे पइभए निसंसइए निरनुकंपे अहीव एगंतदिट्ठीए खुरेव एगंतधाराए गिद्धेव आमिसतल्लिच्छे अग्गिमिव सव्वभक्खी जलमिव सव्वग्गाही उक्कंचण-वंचण-माया-नियडि-कूड-कवड-साइ-संपओग-बहुले चिरनगरविनट्ठ-दुट्ठसीलायार-चरित्ते जूयप्पसंगी मज्जप्पसंगी भोज्जप्पसंगी मंसप्पसंगी दारुणे हिययदारए साहसिए संधिच्छेयए उवहिए विस्संभघाई आलीवग-तित्थभेय-लहुहत्थसंपउत्ते परस्स

Translated Sutra: उस राजगृह में विजय नामक एक चोर था। वह पापकर्म करने वाला, चाण्डाल के समान रूपवाला, अत्यन्त भयानक और क्रूर कर्म करने वाला था। क्रुद्ध हुए पुरुष के समान देदीप्यमान और लाल उसके नेत्र थे। उसकी दाढ़ी या दाढ़े अत्यन्त कठोर, मोटी, विकृत और बीभत्स थीं। उसके होठ आपस में मिलते नहीं थे, उसके मस्तक के केश हवा से उड़ते रहते थे,
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ संघाट

Hindi 48 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से पंथए दासचेडए देवदिन्नस्स दारगस्स बालग्गाही जाए, देवदिन्नं दारगं कडीए गेण्हइ, गेण्हित्ता बहूहिं डिंभएहिं य डिंभियाहि य दारएहि य दारियाहि य कुमारएहि य कुमारियाहि य सद्धिं संपरिवुडे अभिरमइ। तए णं सा भद्दा सत्थवाही अन्नया कयाइ देवदिन्नं दारयं ण्हायं कयबलिकम्मं कय-कोउय-मंगल-पायच्छित्तं सव्वा लंकारविभूसियं करेइ, करेत्ता पंथयस्स दासचेडगस्स हत्थयंसि दलयइ। तए णं से पंथए दासचेडए भद्दाए सत्थवाहीए हत्थाओ देवदिन्नं दारगं कडीए गेण्हइ, गेण्हित्ता सयाओ गिहाओ पडिनिक्खमइ, बहूहिं डिंभएहि य डिंभियाहि य दारएहि य दारियाहिं य कुमारएहि य कुमारियाहि य सद्धिं संपरिवुडे

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ वह पंथन नामक दास चेटक देवदत्त बालक का बालाग्रही नियुक्त हुआ। वह बालक देवदत्त को कमर में लेता और लेकर बहुत – से बच्चों, बच्चियों, बालकों, बालिकाओं, कुमारों और कुमारियों के साथ, उनसे परिवृत्त होकर खेलता रहता था। भद्रा सार्थवाही ने किसी समय स्नान किये हुए, बलिकर्म, कौतुक, मंगल और प्रायश्चित्त किये
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ संघाट

Hindi 49 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से पंथए दासचेडए तओ मुहुत्तंतरस्स जेणेव देवदिन्ने दारए ठविए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता देवदिन्नं दारगं तंसि ठाणंसि अपासमाणे रोयमाणे कंदमाणे विलवमाणे देवदिन्नस्स दारगस्स सव्वओ समंता मग्गण-गवेसणं करेइ। देवदिन्नस्स दारगस्स कत्थइ सुइं वा खुइं वा पउत्तिं वा अलभमाणे जेणेव सए गिहे जेणेव धने सत्थवाहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता धनं सत्थवाहं एवं वयासी–एवं खलु सामी! भद्दा सत्थवाही देवदिन्नं दारयं ण्हायं जाव सव्वालंकारविभूसियं मम हत्थंसि दलयइ। तए णं अहं देवदिन्नं दारयं कडीए गिण्हामि, गिण्हित्ता सयाओ गिहाओ पडिनिक्खमामि, बहूहिं डिंभएहि य डिंभियाहि य

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ वह पंथक नामक दास चेटक थोड़ी देर बाद जहाँ बालक देवदत्त को बिठाया था, वहाँ पहुँचा। उसने बालक देवदत्त को उस स्थान पर न देखा। तब वह रोता, चिल्लाता, विलाप करता हुआ सब जगह उसकी ढूंढ – खोज करने लगा। मगर कहीं भी उसे बालक देवदत्त की खबर न लगी, छींक वगैरह का शब्द न सुनाई दिया, न पता चला। तब जहाँ धन्य सार्थवाह था,
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-६ तुंब

Hindi 74 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं पंचमस्स नायज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, छट्ठस्स णं भंते! नायज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे समोसरणं। परिसा निग्गया। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूई नामं अनगारे समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते जाव सुक्कज्झाणोवगए विहरइ। तए णं से इंदभूई नामं अनगारे जायसड्ढे जाव एवं वयासी–कहण्णं भंते! जीवा गरुयत्तं वा लहुयत्तं वा हव्वमागच्छंति? गोयमा! से जहानामए केइ पुरिसे एगं महं सुक्कतुंब निच्छिद्दं निरुवहयं दब्भेहि य कुसेहि य वेढेइ, वेढेत्ता मट्टियालेवेणं लिंपइ,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! श्रमण यावत्‌ सिद्धि को प्राप्त भगवान महावीर ने छठे ज्ञाताध्ययन का क्या अर्थ कहा है ? जम्बू! उस काल और उस समय में राजगृह नामक नगर था। उस राजगृह नगर में श्रेणिक नामक राजा था। उस राजगृह नगर के बाहर ईशानकोण में गुणशील नामक चैत्य था। उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर अनुक्रम से विचरते हुए, यावत्‌ जहाँ
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ मल्ली

Hindi 105 Gatha Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] चलचवलकुंडलधरा, सच्छंदविउव्वियाभरणधारी । देविंददाणविंदा, वहंति सीयं जिणिंदस्स

Translated Sutra: चलायमान चपल कुण्डलों को धारण करनेवाले तथा अपनी ईच्छा अनुसार विक्रिया से बनाये हुए आभरणों को धारण करने वाले देवेन्द्रों और दानवेन्द्रों ने जिनेन्द्र देव की शिबिका वहन की।
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१२ उदक

Hindi 144 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से जियसत्तू राया अन्नया कयाइ ण्हाए कयवलिकम्मे जाव अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरे बहूहिं ईसर जाव सत्थवाहपभिईहिं सद्धिं भोयणमंडवंसि भोयणवेलाए सुहासणवरगए विउलं असनं पानं खाइमं साइमं आसाएमाणे विसाएमाणे परिभाएमाणे परिभुंजेमाणे एवं च णं विहरइ। जिमिय-भुत्तुत्तरागए वि य णं समाणे आयंते चोक्खे परम सुइभूए तंसि विपुलंसि असन-पान-खाइम-साइमंसि जायविम्हए ते बहवे ईसर जाव सत्थवाहपभिइओ एवं वयासी–अहो णं देवानुप्पिया! इमे मणुण्णे असन-पान-खाइम-साइमे वण्णेणं उववेए गंधेणं उववेए रसेणं उववेए फासेणं उववेए अस्सायणिज्जे विसायणिज्जे पीणणिज्जे दीवणिज्जे दप्पणिज्जे मयणिज्जे

Translated Sutra: वह जितशत्रु राजा एक बार – किसी समय स्नान करके, बलिकर्म करके, यावत्‌ अल्प किन्तु बहुमूल्य आभरणों से शरीर को अलंकृत करके, अनेक राजा, ईश्वर यावत्‌ सार्थवाह आदि के साथ भोजन के समय पर सुखद आसन पर बैठ कर, विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम भोजन जीम रहा था। यावत्‌ जीमने के अनन्तर, हाथ – मुँह धोकर, परम शुचि होकर उस विपुल अशन,
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१६ अवरकंका

Hindi 171 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं सा दोवई रायवरकन्ना कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिनयरे तेयसा जलंते जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मज्जणघरं अनुपविसइ, अनुपविसित्ता ण्हाया कयबलिकम्मा कय-कोउय-मंगल-पायच्छित्ता सुद्धप्पावेसाइं मंगल्लाइं वत्थाइं पवर परिहिया मज्जणघराओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव जिणघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता जिनघरं अनुपविसइ, अनुपविसित्ता जिनपडिमाणं अच्चणं करेइ, करेत्ता जिनघराओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव अंतेउरे तेणेव उवागच्छइ।

Translated Sutra: उधर वह राजवरकन्या द्रौपदी प्रभात काल होने पर स्नानगृह की ओर गई। वहाँ जाकर स्नानगृह में प्रविष्ट होकर उसने स्नान किया यावत्‌ शुद्ध और सभा में प्रवेश करने योग्य उत्तम वस्त्र धारण किए। जिन प्रतिमाओं का पूजन किया। पूजन करके अन्तःपुर में चली गई।
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-६ तुंब

Gujarati 74 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं पंचमस्स नायज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, छट्ठस्स णं भंते! नायज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे समोसरणं। परिसा निग्गया। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूई नामं अनगारे समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते जाव सुक्कज्झाणोवगए विहरइ। तए णं से इंदभूई नामं अनगारे जायसड्ढे जाव एवं वयासी–कहण्णं भंते! जीवा गरुयत्तं वा लहुयत्तं वा हव्वमागच्छंति? गोयमा! से जहानामए केइ पुरिसे एगं महं सुक्कतुंब निच्छिद्दं निरुवहयं दब्भेहि य कुसेहि य वेढेइ, वेढेत्ता मट्टियालेवेणं लिंपइ,

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! જો સિદ્ધિને પ્રાપ્ત ભગવંત મહાવીરે પાંચમાં જ્ઞાત અધ્યયનનો આ અર્થ કહ્યો, તો છઠ્ઠા અધ્યયનનો શો અર્થ કહ્યો છે ? હે જંબૂ ! એ પ્રમાણે તે કાળે, તે સમયે રાજગૃહે ભગવંત મહાવીર પધાર્યા. પર્ષદા નીકળી. તે કાળે, તે સમયે ભગવંતના જ્યેષ્ઠ શિષ્ય ઇન્દ્રભૂતિ, સમીપમાં યાવત્‌ શુક્લધ્યાનોપગત થઈ વિચરતા હતા. ત્યારે તે ઇન્દ્રભૂતિને
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान

Gujarati 5 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं चंपाए नयरीए परिसा निग्गया। धम्मो कहिओ। परिसा जामेव दिसिं पाउब्भूया, तामेव दिसिं पडिगया। तेणं कालेणं तेणं समएणं अज्जसुहम्मस्स अनगारस्स जेट्ठे अंतेवासी अज्जजंबू नामं अनगारे कासवगोत्तेणं सत्तुस्सेहे समचउरंस-संठाण-संठिए वइररिसह-नाराय-संघयणे कनग-पलग-निघस-पम्हगोरे उग्गतवे दित्ततवे तत्ततवे महातवे उराले घोरे घोरगुणे घोरतवस्सी घोरबंभचेरवासी उच्छूढसरीरे संखित्त-विउल-तेयलेस्से अज्जसुहम्मस्स थेरस्स अदूरसामंते उड्ढंजाणू अहोसिरे ज्झाणकोट्ठोवगए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तए णं से अज्जजंबूनामे अनगारे जायसड्ढे जायसंसए जायकोउहल्ले संजायसड्ढे

Translated Sutra: સૂત્ર– ૫. ત્યારે ચંપાનગરીથી પર્ષદા – જનસમૂહ નીકળ્યો. રાજા કોણિક નીકળ્યો. સુધર્માસ્વામીએ ધર્મ કહ્યો. ધર્મ સાંભળીને પર્ષદા જે દિશાથી આવેલી, તે દિશામાં પાછી ગઈ. તે કાળે, તે સમયે આર્ય સુધર્મા અણગારના મોટા શિષ્ય આર્ય જંબૂ નામે અણગાર, જે કાશ્યપ ગોત્રના હતા, સાત હાથ ઉંચા હતા યાવત્‌ આર્ય સુધર્મા સ્થવિરની દૂર નહીં
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान

Gujarati 33 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स अम्मापियरो जाहे नो संचाएंति मेहं कुमारं बहूहिं विसयानुलोमाहिं आघवणाहिं य पन्नवणाहि य सन्नवणाहि य विन्नवणाहि य आघवित्तए वा पन्नवित्तए वा सन्नवित्तए वा विन्नवित्तए वा ताहे विसयपडिकूलाहिं संजमभउव्वेयकारियाहिं पन्नवणाहिं पन्नवेमाणा एवं वयासी–एस णं जाया! निग्गंथे पावयणे सच्चे अनुत्तरे केवलिए पडिपुण्णे नेयाउए संसुद्धे सल्लगत्तणे सिद्धिमग्गे मुत्तिमग्गे निज्जाणमग्गे निव्वाणमग्गे सव्वदुक्खप्पहीणमग्गे, अहीव एगंतदिट्ठिए, खुरो इव गंतधाराए, लोहमया इव जवा चावेयव्वा, वालुयाकवले इव निरस्साए, गंगा इव महानई पडिसोयगमणाए, महासमुद्दो

Translated Sutra: ત્યારપછી મેઘકુમારને તેના માતાપિતા જ્યારે વિષયને અનુકૂળ અને પ્રતિકૂળ ઘણી આખ્યાપના, પ્રજ્ઞાપના, સંજ્ઞાપના, વિજ્ઞાપનાથી સમજાવવા, બૂઝાવવા, સંબોધન અને વિજ્ઞપ્તિ કરવામાં સમર્થ ન થયા, ત્યારે ઇચ્છા વિના મેઘકુમારને આમ કહ્યું – હે પુત્ર! એક દિવસને માટે પણ તારી રાજ્યશ્રીને જોવા ઇચ્છીએ છીએ. ત્યારે તે મેઘકુમાર, માતા
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान

Gujarati 40 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से मेहे अनगारे तेणं ओरालेणं विपुलेणं सस्सिरीएणं पयत्तेणं पग्गहिएणं कल्लाणेणं सिवेणं धन्नेणं मंगल्लेणं उदग्गेणं उदारेणं उत्तमेणं महानुभावेणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे किडि-किडियाभूए अट्ठिचम्मावणद्धे किसे धमणिसंतए जाए यावि होत्था–जीवंजीवेणं गच्छइ, जीवंजीवेणं चिट्ठइ, भासं भासित्ता गिलाइ, भासं भासमाणे गिलाइ, भासं भासिस्सामि त्ति गिलाइ। से जहानामए इंगालसगडिया इ वा कट्ठसगडिया इ वा पत्तसगडिया इ वा तिलंडासगडिया इ वा एरंडसगडिया इ वा उण्हे दिन्ना सुक्का समाणी ससद्दं गच्छइ, ससद्दं चिट्ठइ, एवामेव मेहे अनगारे ससद्दं गच्छइ, ससद्दं चिट्ठइ, उवचिए

Translated Sutra: સૂત્ર– ૪૦. ત્યારે તે મેઘ અણગાર, તે ઉદાર, વિપુલ, સશ્રીક, પ્રયત્નસાધ્ય, પ્રગૃહીત, કલ્યાણકારી, શિવકારી, ધન્યકારી,માંગલ્યકારી, ઉદગ્ર – ઉદાર – ઉત્તમ – મહાપ્રભાવી – તપોકર્મ વડે શુષ્ક, ભુખી, રુક્ષ, નિર્માંસ, લોહી રહિત, કડકડ થતા હાડકાં યુક્ત, અસ્થિચર્માનવર્ધ કૃશ, નસોથી વ્યાપ્ત થયા. તે પોતાના આત્મબળથી ચાલતા હતા, આત્મબળથી
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ संघाट

Gujarati 42 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं पढमस्स नायज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, बितियस्स णं भंते! नायज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नयरे होत्था–वण्णओ। तस्स णं रायगिहस्स नयरस्स बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए गुणसिलए नामं चेइए होत्था–वण्णओ। तस्स णं गुणसिलयस्स चेइयस्स अदूरसामंते, एत्थ णं महं एगं जिण्णुज्जाणे यावि होत्था–विनट्ठदेवउल-परिसडियतोरणघरे नानाविहगुच्छ-गुम्म-लया-वल्लि-वच्छच्छाइए अनेग-वालसय-संकणिज्जे यावि होत्था। तस्स णं जिण्णुज्जाणस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगे भग्गकूवे यावि होत्था। तस्स णं भग्गकूवस्स

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! જો શ્રમણ ભગવંત મહાવીરે પહેલા જ્ઞાતાધ્યયનનો આ અર્થ કહ્યો છે તો હે ભગવન્‌ ! બીજા જ્ઞાતાધ્યયનનો શો અર્થ કહ્યો છે ? હે જંબૂ ! નિશ્ચે, તે કાળે(ભગવંત મહાવીર વિદ્યમાન હતા), તે સમયે રાજગૃહ નગર હતું. તે રાજગૃહનગરમાં શ્રેણિક નામે રાજા હતો. તે રાજગૃહ નગરની બહાર ઈશાન દિશામાં ગુણશીલક ચૈત્ય હતું.(નગર, રાજા અને ચૈત્યનું
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ संघाट

Gujarati 45 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं रायगिहे नयरे विजए नामं तक्करे होत्था–पावचंडाल-रूवे भीमतररुद्दकम्मे आरुसिय-दित्त-रत्तनयणे खरफ-रुस-महल्ल-विगय-बीभच्छदाढिए असंपुडियउट्ठे उद्धूय-पइण्ण-लंबंभमुद्धए भमर-राहुवण्णं निरनुक्कोसे निरनुतावे दारुणे पइभए निसंसइए निरनुकंपे अहीव एगंतदिट्ठीए खुरेव एगंतधाराए गिद्धेव आमिसतल्लिच्छे अग्गिमिव सव्वभक्खी जलमिव सव्वग्गाही उक्कंचण-वंचण-माया-नियडि-कूड-कवड-साइ-संपओग-बहुले चिरनगरविनट्ठ-दुट्ठसीलायार-चरित्ते जूयप्पसंगी मज्जप्पसंगी भोज्जप्पसंगी मंसप्पसंगी दारुणे हिययदारए साहसिए संधिच्छेयए उवहिए विस्संभघाई आलीवग-तित्थभेय-लहुहत्थसंपउत्ते परस्स

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪૩
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ संघाट

Gujarati 48 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से पंथए दासचेडए देवदिन्नस्स दारगस्स बालग्गाही जाए, देवदिन्नं दारगं कडीए गेण्हइ, गेण्हित्ता बहूहिं डिंभएहिं य डिंभियाहि य दारएहि य दारियाहि य कुमारएहि य कुमारियाहि य सद्धिं संपरिवुडे अभिरमइ। तए णं सा भद्दा सत्थवाही अन्नया कयाइ देवदिन्नं दारयं ण्हायं कयबलिकम्मं कय-कोउय-मंगल-पायच्छित्तं सव्वा लंकारविभूसियं करेइ, करेत्ता पंथयस्स दासचेडगस्स हत्थयंसि दलयइ। तए णं से पंथए दासचेडए भद्दाए सत्थवाहीए हत्थाओ देवदिन्नं दारगं कडीए गेण्हइ, गेण्हित्ता सयाओ गिहाओ पडिनिक्खमइ, बहूहिं डिंभएहि य डिंभियाहि य दारएहि य दारियाहिं य कुमारएहि य कुमारियाहि य सद्धिं संपरिवुडे

Translated Sutra: સૂત્ર– ૪૮. ત્યારે તે પંથક દાસચેટક દેવદત્ત બાળકનો બાલગ્રાહી થયો. દેવદત્ત બાળકને કેડે લઈને ઘણા બચ્ચા – બચ્ચી, બાલક – બાલિકા, કુમાર – કુમારી સાથે પરીવરીને રમણ કરે છે. ત્યારે તે ભદ્રા સાર્થવાહી અન્ય કોઈ દિવસે સ્નાન કરેલ, બલિકર્મ કરેલ, કૌતુક – મંગલ – પ્રાયશ્ચિત્ત કરેલ, દેવદત્ત બાળકને સર્વાલંકારથી વિભૂષિત કરી, પંથક
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ संघाट

Gujarati 49 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से पंथए दासचेडए तओ मुहुत्तंतरस्स जेणेव देवदिन्ने दारए ठविए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता देवदिन्नं दारगं तंसि ठाणंसि अपासमाणे रोयमाणे कंदमाणे विलवमाणे देवदिन्नस्स दारगस्स सव्वओ समंता मग्गण-गवेसणं करेइ। देवदिन्नस्स दारगस्स कत्थइ सुइं वा खुइं वा पउत्तिं वा अलभमाणे जेणेव सए गिहे जेणेव धने सत्थवाहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता धनं सत्थवाहं एवं वयासी–एवं खलु सामी! भद्दा सत्थवाही देवदिन्नं दारयं ण्हायं जाव सव्वालंकारविभूसियं मम हत्थंसि दलयइ। तए णं अहं देवदिन्नं दारयं कडीए गिण्हामि, गिण्हित्ता सयाओ गिहाओ पडिनिक्खमामि, बहूहिं डिंभएहि य डिंभियाहि य

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪૮
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ मल्ली

Gujarati 105 Gatha Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] चलचवलकुंडलधरा, सच्छंदविउव्वियाभरणधारी । देविंददाणविंदा, वहंति सीयं जिणिंदस्स

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૯૬
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श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१२ उदक

Gujarati 144 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से जियसत्तू राया अन्नया कयाइ ण्हाए कयवलिकम्मे जाव अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरे बहूहिं ईसर जाव सत्थवाहपभिईहिं सद्धिं भोयणमंडवंसि भोयणवेलाए सुहासणवरगए विउलं असनं पानं खाइमं साइमं आसाएमाणे विसाएमाणे परिभाएमाणे परिभुंजेमाणे एवं च णं विहरइ। जिमिय-भुत्तुत्तरागए वि य णं समाणे आयंते चोक्खे परम सुइभूए तंसि विपुलंसि असन-पान-खाइम-साइमंसि जायविम्हए ते बहवे ईसर जाव सत्थवाहपभिइओ एवं वयासी–अहो णं देवानुप्पिया! इमे मणुण्णे असन-पान-खाइम-साइमे वण्णेणं उववेए गंधेणं उववेए रसेणं उववेए फासेणं उववेए अस्सायणिज्जे विसायणिज्जे पीणणिज्जे दीवणिज्जे दप्पणिज्जे मयणिज्जे

Translated Sutra: ત્યારે તે જિતશત્રુ રાજા અન્ય કોઈ દિવસે સ્નાન કર્યુ, બલિકર્મ કર્યુ યાવત્‌ અલ્પ પણ મહાર્ઘ આભરણથી અલંકૃત શરીર, ઘણા રાજા, ઇશ્વર યાવત્‌ સાર્થવાહ આદિ સાથે ભોજન વેળાએ ઉત્તમ સુખાસને બેસી વિપુલ અશનાદિ ખાતા યાવત્‌ વિચરે છે. જમીને પછી યાવત્‌ શુચિભૂત થઈને તે વિપુલ અશનાદિ વિષયમાં યાવત્‌ વિસ્મય પામીને ઘણા ઇશ્વર યાવત્‌
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१६ अवरकंका

Gujarati 171 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं सा दोवई रायवरकन्ना कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिनयरे तेयसा जलंते जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मज्जणघरं अनुपविसइ, अनुपविसित्ता ण्हाया कयबलिकम्मा कय-कोउय-मंगल-पायच्छित्ता सुद्धप्पावेसाइं मंगल्लाइं वत्थाइं पवर परिहिया मज्जणघराओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव जिणघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता जिनघरं अनुपविसइ, अनुपविसित्ता जिनपडिमाणं अच्चणं करेइ, करेत्ता जिनघराओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव अंतेउरे तेणेव उवागच्छइ।

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૬૮
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श्रुतस्कन्ध २

वर्ग-१ चमरेन्द्र अग्रमहिषी

अध्ययन-१ काली

Gujarati 220 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नयरे होत्था–वण्णओ। तस्स णं रायगिहस्स नयरस्स बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए, एत्थ णं गुणसिलए नामं चेइए होत्था–वण्णओ। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी अज्जसुहम्मा नामं थेरा भगवंतो जाइसंपण्णा कुलसंपण्णा जाव चोद्दसपुव्वी चउनाणोवगया पंचहिं अनगारसएहिं सद्धिं संपरिवुडा पुव्वाणुपुव्विं चरमाणा गामाणुगामं दूइज्ज-माणा सुहंसुहेणं विहरमाणा जेणेव रायगिहे नयरे जेणेव गुणसिलए चेइए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणा विहरंति। परिसा निग्गया। धम्मो

Translated Sutra: તે કાળે, તે સમયે રાજગૃહ નામે નગર હતું, તે રાજગૃહની બહાર ઈશાન ખૂણામાં ગુણશીલ ચૈત્ય હતું. તે કાળે, તે સમયે શ્રમણ ભગવંત મહાવીરના શિષ્ય આર્યસુધર્મા સ્થવિર ભગવંત, જે જાતિસંપન્ન, કુલસંપન્ન યાવત્‌ ચૌદપૂર્વી, ચાર જ્ઞાનવાળા, ૫૦૦ અણગારો સાથે પરીવરીત હતા, તે પૂર્વાનુપૂર્વી ચાલતા, ગ્રામાનુગ્રામ જતા, સુખે – સુખે વિચરતા
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4. सम्यग्दर्शन अधिकार - (जागृति योग)

3. श्रद्धा-सूत्र Hindi 48 View Detail
Mool Sutra: जं सक्कइ तं कीरइ, जं च ण सक्कइ तं च सद्दहणं। केवलिजिणेहिं भणियं, सद्दहमाणस्स सम्मत्तं ।।

Translated Sutra: यदि समर्थ हो तो संयम तप आदि का पालन करो, और यदि समर्थ न हो तो केवल तत्त्वों की श्रद्धा ही करो, क्योंकि श्रद्धावान् को सम्यक्त्व होता है, ऐसा केवली भगवान् ने कहा है।
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2. रत्नत्रय अधिकार - (विवेक योग)

1. सम्यक् योग-रत्नत्रय Hindi 19 View Detail
Mool Sutra: मणसा वाया कायेण वा वि जुत्तस्स वीरियपरिणामो। जीवस्स-प्पणिजोगो, जोगो त्ति जिणेहिं णिद्दिट्ठो ।।

Translated Sutra: मन वचन व काय से युक्त जीव का वीर्य-परिणाम रूप प्रणियोग, `योग' कहलाता है। (अर्थात् जीव का मानसिक, वाचिक व कायिक हर प्रकार का प्रयत्न या पुरुषार्थ योग शब्द का वाच्य है।)
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4. सम्यग्दर्शन अधिकार - (जागृति योग)

13. प्रशम भाव (चित्त-प्रसाद) Hindi 72 View Detail
Mool Sutra: चत्तारि कसाए तिन्नि गारवे पंचइंदियग्गामे। जिणिउं परीसहसहेऽवि य हराहि आराहणपडागं ।।

Translated Sutra: क्रोधादि चार कषायों को, रस ऋद्धि व सुख इन तीन गारवों को, पाँचों इन्द्रियों को तथा अनुकूल व प्रतिकूल विघ्नों को व संकटों को जीतकर, साथ ही आराधनारूपी पताका को हाथ में लेकर, मित्र पुत्र व बन्धु आदि में तथा इष्टानिष्ट इन्द्रिय विषयों में किंचिन्मात्र भी राग-द्वेष करना कर्तव्य नहीं है। संदर्भ ७२-७३
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5. सम्यग्ज्ञान अधिकार - (सांख्य योग)

2. निश्चय ज्ञान (अध्यात्म शासन) Hindi 81 View Detail
Mool Sutra: जो पस्सदि अप्पाणं, अबद्धपुट्ठं अणण्णमविसेसं। अपदेससुत्तमज्झं, पस्सदि जिणसासणं सव्वं ।।

Translated Sutra: जो आत्मा को अबद्ध, अस्पृष्ट, अनन्य व अविशेष देखता है, वह शास्त्र-ज्ञान के रूप में अथवा भाव-ज्ञान के रूप में सकल जिन-शासन को देखता है।
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5. सम्यग्ज्ञान अधिकार - (सांख्य योग)

8. अध्यात्मज्ञान के लिंग Hindi 96 View Detail
Mool Sutra: जेण रागा विरज्जेज्ज, जेण सेएसु रज्जदि। जेण मेत्ती पभावेज्ज, तं णाणं जिणसासणे ।।

Translated Sutra: जिसके द्वारा व्यक्ति राग से विरक्त हो, जिसके द्वारा वह श्रेयमार्ग में रत हो, जिसके द्वारा सर्व प्राणियों में मैत्री वर्ते, वही जिनमत में ज्ञान कहा गया है।
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5. सम्यग्ज्ञान अधिकार - (सांख्य योग)

10. अनित्य व अशरण संसार Hindi 103 View Detail
Mool Sutra: जम्मजरामरणभए अभिद्दुए, विविहवाहिसंतत्ते। लोगम्मि नत्थि सरणं, जिणिंदवरसासणं मुत्तुं ।।

Translated Sutra: जन्म, जरा व मरण के भय से पूर्ण तथा विविध व्याधियों से संतप्त इस लोक में जिनशासन को छोड़कर (अथवा आत्मा को छोड़कर) अन्य कोई शरण नहीं है।
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5. सम्यग्ज्ञान अधिकार - (सांख्य योग)

16. धर्म ही सुख Hindi 115 View Detail
Mool Sutra: धम्मेण विणा जिणदेसिएण, नन्नत्थ अत्थि किंचि सुहं। ठाणं वा कज्जं वा, सदेवमणुयासुरे लोए ।।

Translated Sutra: जिनोपदिष्ट धर्म के बिना देवलोक में, मनुष्यलोक में या असुरलोक में कहीं भी किंचिन्मात्र सुख नहीं है, न तो कोई सुख का स्थान ही है और न कोई सुख का साधन ही।
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6. निश्चय-चारित्र अधिकार - (बुद्धि-योग)

4. कषाय-निग्रह Hindi 124 View Detail
Mool Sutra: कोहं खमाइ माणं मद्दवया, अज्जवेण मायं च। संतोसेण व लोहं निज्जिण चत्तारि वि कसाए ।।

Translated Sutra: क्रोध को क्षमा से, मान को मार्दव से, माया को आर्जव से तथा लोभ को संतोष से, इस प्रकार इन चारों कषायों को जीत ले।
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7. व्यवहार-चारित्र अधिकार - (साधना अधिकार) [कर्म-योग]

1. व्यवहार-चारित्र निर्देश Hindi 139 View Detail
Mool Sutra: असुहादो विणिवित्ती, सुहे पवित्ती य जाण चारित्तं। वदसमिदिगुत्तिरूवं, ववहारणयादु जिण भणियं ।।

Translated Sutra: अशुभ कार्यों से निवृत्ति तथा शुभ कार्यों में प्रवृत्ति, यह व्यवहार नय से चारित्र का लक्षण है। वह पाँच व्रत, पाँच समिति और तीन गुप्ति, ऐसे तेरह प्रकार का है।
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7. व्यवहार-चारित्र अधिकार - (साधना अधिकार) [कर्म-योग]

2. मोक्षमार्ग में चारित्र (कर्म) का स्थान Hindi 140 View Detail
Mool Sutra: थोवम्मि सिक्खिदे जिणइ, बहुसुदं जो चरित्तसंपुण्णो। जो पुण चरित्तहीणो, किं तस्स सुदेण बहुएण ।।

Translated Sutra: चारित्र से परिपूर्ण साधु थोड़ा पढ़ा हुआ भी क्यों न हो, बहुश्रुत को भी जीत लेता है। परन्तु जो चारित्रहीन है, वह बहुत शास्त्रों का जाननेवाला भी क्यों न हो, उसके शास्त्रज्ञान से क्या लाभ?
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8. आत्मसंयम अधिकार - (विकर्म योग)

3. अहिंसा-सूत्र Hindi 166 View Detail
Mool Sutra: रागादीणमणुप्पा अहिंसगत्तं त्ति देसिदं समये। तेसिं चेदुप्पत्ती, हिंसेत्ति जिणेहिं णिद्दिट्ठा ।।

Translated Sutra: रागद्वेषादि परिणामों का मन में उत्पन्न न होना ही शास्त्र में `अहिंसा' कहा गया है। और उनकी उत्पत्ति ही हिंसा है, ऐसा जिनेन्द्र भगवान् ने कहा है। [प्रश्न-यदि ऐसा है तो बड़े से बड़ा हिंसक भी अपने को रागद्वेष-विहीन कह कर छुट्टी पा लेगा?]
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9. तप व ध्यान अधिकार - (राज योग)

8. स्वाध्याय तप Hindi 222 View Detail
Mool Sutra: पूयादिसु णिरवेक्खो, जिणसत्थं जो पढेइ भत्तीए। कम्ममलसोहणट्ठं, सुयलाहो सहयरो तस्स ।।

Translated Sutra: पूजा-प्रतिष्ठा आदि की चाह से निरपेक्ष, जो योगी बहुमान व भक्ति-भाव से अथवा केवल कर्ममल का शोधन करने की भावना से शास्त्रों का पठन व मनन आदि करता है, उसके लिए श्रुत या ज्ञान का लाभ अत्यन्त सुलभ हो जाता है।
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9. तप व ध्यान अधिकार - (राज योग)

9. ध्यान-समाधि सूत्र Hindi 227 View Detail
Mool Sutra: चिंतंतो ससरूवं जिणबिंबं, अहव अक्खरं परमं। झायदि कम्मविवायं, तस्स वयं होदि सामाइयं ।।

Translated Sutra: जो व्यक्ति स्वस्वरूपका व जिनबिम्ब का चिन्तवन, अथवा परम अक्षर ॐकार का जप व ध्यान करता है, अथवा कर्मों के विपाक का ध्यान करता है, उसको `सामायिक' नामक व्रत होता है।
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11. धर्म अधिकार - (मोक्ष संन्यास योग)

4. पूजा-भक्ति सूत्र Hindi 255 View Detail
Mool Sutra: सम्मत्तणाणचरणे, जो भत्तिं कुणइ सावगो समणो। तस्स दु णिव्वुदि भत्ती, होदि त्ति जिणेहि पण्णत्तं ।।

Translated Sutra: जो श्रावक (गृहस्थ) अथवा श्रमण (साधु) सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान व सम्यक्चारित्र की भक्ति करता है, अर्थात् हृदय में इन गुणों के प्रति अत्यन्त बहुमान धारण करता है, उस ही परमार्थतः निर्वाण या मोक्ष की भक्ति होती है।
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11. धर्म अधिकार - (मोक्ष संन्यास योग)

4. पूजा-भक्ति सूत्र Hindi 256 View Detail
Mool Sutra: एया वि सा समत्था, जिणभत्ती दुग्गइं णिवारेण। पुण्णाणि य पूरेदुं, आसिद्धिपरंपरसुहाणं ।।

Translated Sutra: अकेली जिन-भक्ति ही दुर्गति का नाश करने में समर्थ है। इससे विपुल पुण्य की प्राप्ति होती है। जब तक साधक को मोक्ष नहीं होता तब तक इसके प्रभाव से वह इन्द्र चक्रवर्ती व तीर्थंकर आदि पदों का उत्तमोत्तम सुख भोगता रहता है।
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11. धर्म अधिकार - (मोक्ष संन्यास योग)

4. पूजा-भक्ति सूत्र Hindi 257 View Detail
Mool Sutra: आह गुरु पूयाए, कामवहो होइ जइ वि हु जिणाणं। तह वि तइ कायव्वा, परिणामविसुद्धिहेऊओ ।।

Translated Sutra: यद्यपि जिनेन्द्र भगवान् की पूजा करने में कुछ न कुछ हिंसा अवश्य होती है, तथापि परिणाम-विशुद्धि का हेतु होने के कारण वह अवश्य करनी चाहिए, ऐसा गुरु का आदेश है।
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11. धर्म अधिकार - (मोक्ष संन्यास योग)

7. दान-सूत्र Hindi 265 View Detail
Mool Sutra: जो मुणिभुत्तवसेसं, भुंजइ सो भुंजए जिणुवदिट्ठं। संसारसारसोक्खं, कमसो णिव्वाणवरसोक्खं ।।

Translated Sutra: जो श्रावक साधु-जनों को खिलाने के पश्चात् शेष बचे अन्न को खाता है वही वास्तव में खाता है। वह संसार के सारभूत देवेन्द्र चक्रवर्ती आदि के उत्तम सुखों को भोगकर क्रम से निर्वाण-सुख को प्राप्त कर लेता है।
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11. धर्म अधिकार - (मोक्ष संन्यास योग)

13. उत्तम त्याग Hindi 281 View Detail
Mool Sutra: णिव्वेगतियं भावइ, मोहं चइऊण सव्वदव्वेसु। जो तस्स हवेच्चागो, इदि भणिदं जिणवरिंदेहिं ।।

Translated Sutra: जो जीव पर-द्रव्यों के प्रति ममत्व छोड़कर संसार देह और भोगों से उदासीन हो जाता है, उसको त्यागधर्म होता है।
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12. द्रव्याधिकार - (विश्व-दर्शन योग)

1. लोक सूत्र Hindi 287 View Detail
Mool Sutra: धम्मो अहम्मो आगासं, कालो पुग्गलजंतवो। एस लोगो त्ति पन्नत्तो, जिणेहिं वरदंसिहिं ।।

Translated Sutra: धर्म, अधर्म आकाश, काल, अनन्त पुद्गल और अनन्त जीव, ये छह प्रकार के स्वतः सिद्ध द्रव्य हैं। उत्तम दृष्टि सम्पन्न जिनेन्द्र भगवान ने इनके समुदाय को ही लोक कहा है।
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12. द्रव्याधिकार - (विश्व-दर्शन योग)

2. जीव द्रव्य (आत्मा) Hindi 289 View Detail
Mool Sutra: कत्ता भोत्ता अमुत्तो, सरीरमित्तो अणाइणिहणो य। दंसणणाणउव ओगो, जीवो णिद्दिट्ठो जिणवरिंदेहिं ।।

Translated Sutra: जीव या आत्मा आकाशवत् अमूर्तीक है और (देह में रहता हुआ) देह-प्रमाण है। यह अनादि निधन अर्थात् स्वतः सिद्ध है। ज्ञान व दर्शन रूप उपयोग ही उसका प्रधान लक्षण है। (देहधारी) वह अपने शुभाशुभ कर्मों का कर्ता है तथा उनके सुख-दुःख आदि फलों का भोक्ता भी है।
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12. द्रव्याधिकार - (विश्व-दर्शन योग)

4. आकाश द्रव्य Hindi 301 View Detail
Mool Sutra: चेयण रहियममुत्तं, अवगाहणलक्खणं च सव्वगयं। लोयालोयविभेयं, तं णहदव्वं जिणुद्दिट्ठं ।।

Translated Sutra: आकाश द्रव्य अचेतन है, अमूर्तीक है, सर्वगत अर्थात् विभु है। सर्व द्रव्यों को अवगाह या अवकाश देना इसका लक्षण है। वह दो भागों में विभक्त है - लोकाकाश और अलोकाकाश।
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13. तत्त्वार्थ अधिकार

7. निर्जरा तत्त्व (कर्म-संहार) Hindi 332 View Detail
Mool Sutra: तवसा उ निज्जरा इह, निज्जरणं खवणनासमेगट्ठा। कम्माभावापायणमिह, निज्जरमो जिणा विंति ।।

Translated Sutra: तप के प्रभाव से कर्मों की निर्जरा होती है। निर्जरण, क्षपण, नाश, कर्मों के अभाव की प्राप्ति ये सब एकार्थवाची हैं।
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13. तत्त्वार्थ अधिकार

7. निर्जरा तत्त्व (कर्म-संहार) Hindi 333 View Detail
Mool Sutra: तवसा चेव ण मोक्खो, संवरहीणस्स होइ जिणवयणे। ण हु सोते पविस्संते, किसिणं परिसुस्सदि तलायं ।।

Translated Sutra: जिस प्रकार तालाब में जल का प्रवेश होता रहने पर, जल निकास का द्वार खोल देने से भी वह सूखता नहीं है, उसी प्रकार संवरहीन अज्ञानी को केवल तप मात्र से मोक्ष नहीं होता।
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14. सृष्टि-व्यवस्था

3. कर्म-कारणवाद Hindi 358 View Detail
Mool Sutra: जायदि जीवस्सेवं, भावो संसारचक्कवालम्मि। इदि जिणवरेहिं भणिदो, अणादिणिधणो सणिधणो वा ।।

Translated Sutra: कृपया देखें ३५६; संदर्भ ३५६-३५८
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18. आम्नाय अधिकार

3. दिगम्बर-सूत्र Hindi 416 View Detail
Mool Sutra: ण वि सिज्झइ वत्थधरो, जिणसासणे जइ वि होइ तित्थयरो। णग्गो विमोक्खमग्गो, सेसा उम्मगया सव्वे ।।

Translated Sutra: भले ही तीर्थंकर क्यों न हो, वस्त्रधारी मुक्त नहीं हो सकता। एकमात्र नग्न या अचेल लिंग ही मोक्षमार्ग है, अन्य सर्व लिंग उन्मार्ग हैं।
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18. आम्नाय अधिकार

4. श्वेताम्बर सूत्र Hindi 424 View Detail
Mool Sutra: जिणकप्पा वि दुविहा, पाणिपाया पडिग्गहधरा य। पाउरजमया उरणा, एक्केक्का ते भवे दुविहा ।।

Translated Sutra: जिनकल्पी साधु भी दो प्रकार के होते हैं और उनमें से भी प्रत्येक दो दो प्रकार के हैं। अर्थात् चार प्रकार के होते हैं - सवस्त्र परन्तु पाणिपात्राहारी, अवस्त्र पाणिपात्राहारी, सवस्त्र पात्रधारी और अवस्त्र पात्रधारी।
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