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Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-७ प्रायश्चित् सूत्रं

चूलिका-१ एकांत निर्जरा

Hindi 1379 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं किं तं बितियं पायच्छित्तस्सणं पयं गोयमा बीयं तइयं चउत्थं पंचमं जाव णं संखाइयाइं पच्छित्तस्स णं पयाइं ताव णं एत्थं च एव पढम पच्छित्त पए अंतरोवगायाइं समनुविंदा। से भयवं केणं अट्ठेणं एवं वुच्चइ गोयमा जओ णं सव्वावस्सग्ग-कालाणुपेही भिक्खू णं रोद्दट्टज्झाण राग दोस कसाय गारव ममाकाराइसुं णं अनेग पमायालंबणेसु सव्व भाव भावतरंतरेहि णं अच्चंत विप्पमुक्को भवेज्जा। केवलं तु नाण दंसण चारित्त तवोकम्म सज्झायज्झाण सद्धम्मावस्सगेसु अच्चंतं अनिगूहिय बल वीरिय परक्कमे सम्मं अभिरमेज्जा। जाव णं सद्धम्मावस्सगेसुं अभिरमेज्जा, ताव णं सुसंवुडासवदारे हवेज्जा। जाव

Translated Sutra: हे भगवंत ! प्रायश्चित्त का दूसरा पद क्या है ? हे गौतम ! दूसरा, तीसरा, चौथा, पाँचवा यावत्‌ संख्यातीत प्रायश्चित्त पद स्थान को यहाँ प्रथम प्रायश्चित्त पद के भीतर अंतर्गत्‌ रहे समझना। हे भगवंत ! ऐसा किस कारण से आप कहते हो ? हे गौतम ! सर्व आवश्यक के समय का सावधानी से उपयोग रखनेवाले भिक्षु रौद्र – आर्तध्यान, राग, द्वेष,
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-७ प्रायश्चित् सूत्रं

चूलिका-१ एकांत निर्जरा

Hindi 1380 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं कयरे ते आवस्सगे गोयमा णं चिइ-वंदणादओ। से भयवं कम्ही आवस्सगे असइं पमाय-दोसेणं कालाइक्कमिए इ वा, वेलाइक्कमिए इ वा, समयाइक्कमिए इ वा, अणोवउत्त-पमत्ते इ वा, अविहीए समनुट्ठिए इ वा, नो णं जहुत्त-यालं विहीए सम्मं अणुट्ठिए, इ वा असंपडिए इ वा, विच्छंपडिए इ वा, अकए इ वा, पमाइए इ वा, केवतियं पायच्छित्तं उवइसेज्जा । गोयमा जे केई भिक्खू वा, भिक्खुणी वा, संजय विरय पडिहय पच्चक्खायपाव कम्मे दिक्खा दिया पभईओ अणुदियहं जावज्जीवाभिग्गहेणं सुविसत्थे भत्ति निब्भरे जहुत्त विहीए सुत्तत्थं नुसरमाणेण अणन्न माणसे गग्ग चित्ते तग्गय माणस सुहज्झवसाए थय थुइहिं न तेकालियं चेइए वंदेज्जा,

Translated Sutra: हे भगवंत ! वो आवश्यक कौन – से हैं ? चैत्यवंदन आदि। हे भगवंत ! किस आवश्यक में बार – बार प्रमाद दोष से समय का, समय का उल्लंघन या अनुपयोगरूप से या प्रमाद से अविधि से अनुष्ठान किया जाए या तो यथोक्त काल से विधि से सम्यग्‌ तरह से चैत्यवंदन आदि न करे, तैयार न हो, प्रस्थान न करे, निष्पन्न न हो, वो देर से करे या करे ही नहीं या
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-७ प्रायश्चित् सूत्रं

चूलिका-१ एकांत निर्जरा

Hindi 1382 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे णं पडिक्कमणं न पडिक्कमेज्जा, से णं तस्सोट्ठावणं निद्दिसेज्जा। बइट्ठ-पडिक्कमणे खमणं। सुन्नासुन्नीए अणोवउत्तपमत्तो वा पडिक्कमणं करेज्जा, दुवालसं। पडिक्कमण-कालस्स चुक्कइ, चउत्थं। अकाले पडिक्कमणं करेज्जा, चउत्थं। कालेण वा पडिक्कमणं नो करेज्जा, चउत्थं। संथारगओ वा संथारगोवविट्ठो वा पडिक्कमणं करेज्जा, दुवालसं। मंडलीए न पडिक्क-मेज्जा, उवट्ठावणं। कुसीलेहिं समं पडि-क्कमणं करेज्जा, उवट्ठावणं। परिब्भट्ठ बंभचेर वएहिं समं पडिक्कमेज्जा, पारंचियं। सव्वस्स समणसंघस्स तिविहं तिविहेण खमण-मरि सामणं अकाऊणं पडिक्कमणं करेज्जा, उवट्ठावणं। पयं पएणाविच्चामेलिय पडिक्कमण

Translated Sutra: जो प्रतिक्रमण न करे उसे उपस्थापना का प्रायश्चित्त देना। बैठे – बैठे प्रतिक्रमण करनेवाले को खमण (उपवास), शून्याशून्यरूप से यानि कि यह सूत्र बोला गया है या नहीं वैसे उपयोगरहित अनुपयोग से प्रमत्तरूप से प्रतिक्रमण किया जाए तो पाँच उपवास, मांड़ली में प्रतिक्रमण न करे तो उपस्थापना; कुशील के साथ प्रतिक्रमण करे तो
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-७ प्रायश्चित् सूत्रं

चूलिका-१ एकांत निर्जरा

Hindi 1383 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] वज्जेंतो बीय-हरीयाइं, पाणे य दग-मट्टियं। उववायं विसमं खाणुं रन्नो गिहवईणं च॥

Translated Sutra: ऐसे करते हुए भिक्षा का समय आ पहुँचा। हे गौतम ! इस अवसर पर पिंड़ेसणा – शास्त्र में बताए विधि से दीनता रहित मनवाला भिक्षु बीज और वनस्पतिकाय, पानी, कीचड़, पृथ्वीकाय को वर्जते, राजा और गृहस्थ की ओर से होनेवाले विषम उपद्रव – कदाग्रही को छोड़नेवाला, शंकास्थान का त्याग करनेवाला, पाँच समिति, तीन गुप्ति में उपयोगवाला, गोचरचर्या
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-७ प्रायश्चित् सूत्रं

चूलिका-१ एकांत निर्जरा

Hindi 1385 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं इणमो सयरिं सयरिं अणुलोम-पडिलोमेणं केवतिय कालं जाव समनुट्ठिहिइ गोयमा जाव णं आयारमंगं वाएज्जा। भयवं उड्ढं पुच्छा, गोयमा उड्ढं केई समनुट्ठेज्जा केइ नो समनुट्ठेज्जा। जे णं समनुट्ठेज्जा, से णं वंदे, से णं पुज्जे, से णं दट्ठव्वे, से णं सुपसत्थ, सुमंगले सुगहियनामधेज्जे तिण्हं पि लोगाणं वंदणिज्जे त्ति। जे णं तु नो समनुट्ठे, से णं पावे, से णं महा-पावे, से णं महापाव-पावे, से णं दुरंत पंत लक्खणे जाव णं अदट्ठव्वे त्ति।

Translated Sutra: हे भगवंत ! उलट – सूलट कर्म से इस अनुसार सो – सो गिनती प्रमाण हरएक तरह के तप के प्रायश्चित्त करे तो कितने समय तक करते रहे ? हे गौतम ! जब तक उस आचार मार्ग में स्थापित हो तब तक करते रहे, हे भगवंत! उसके बाद क्या करे ? हे गौतम ! उसके बाद कोई तप करे, कोई तप न करे, जो आगे बताने के अनुसार तप करते रहते है वो वंदनीय हैं, पूजनीय हैं, दर्शनीय
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-७ प्रायश्चित् सूत्रं

चूलिका-१ एकांत निर्जरा

Hindi 1386 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जया णं गोयमा इणमो पच्छित्तसुत्तं वोच्छिज्जिहिइ, तया णं चंदाइच्चा गहा रिक्खा तारगाणं सत्त अहोरत्ते तेयं नो विप्फुरेज्जा।

Translated Sutra: हे गौतम ! जब यह प्रायश्चित्त सूत्र विच्छेद होगा तब चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और तारों का तेज सात रात – दिन तक स्फुरायमान नहीं होगा। इसका विच्छेद होगा तब सारे संयम की कमी होगी क्योंकि यह प्रायश्चित्त सर्व पाप का प्रकर्षरूप से नाश करनेवाला है, सर्व तप, संयम के अनुष्ठान का प्रधान अंग हो तो परम विशुद्धि स्वरूप
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-७ प्रायश्चित् सूत्रं

चूलिका-१ एकांत निर्जरा

Hindi 1388 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इणमो सव्वमवि पायच्छित्ते गोयमा जावइयं एगत्थ संपिंडियं हवेज्जा तावइयं चेव एगस्स णं गच्छाहिवइणो मय-हर पवत्तिनीए य चउगुणं उवइसेज्जा। जओ णं सव्वमवि एएसिं पयंसियं हवेज्जा, अहाणमिमे चेव पमायवसं गच्छेज्जा, तओ अन्नेसिं संते धी बल वीरिए सुट्ठुतरा-गमच्चुज्जमं हवेज्जा। अहा णं किं चि सुमहंतमवि तवाणुट्ठाणमब्भुज्जमेज्जा, ता णं न तारिसाए धम्म सद्धाए, किं तु मंदुच्छाहे सम-णुट्ठेज्जा। भग्गपरिणामस्स य निरत्थगमेव कायकेसे। जम्हा एयं, तम्हा उ अच्चिंताणंत निरनुबंधि पुन्न पब्भारेणं संजुज्जमाणे वि साहुणो न संजुज्जंति। एवं च सव्वमवि गच्छाहिवइयादीणं दोसेणेव पवत्तेज्जा।

Translated Sutra: हे गौतम ! जितने यह सभी प्रायश्चित्त हैं उसे इकट्ठा करके गिनती की जाए तो उतना प्रायश्चित्त एक गच्छा – धिपति को गच्छ के नायक को और साध्वी समुदाय की नायक प्रवर्तिनी को चार गुना प्रायश्चित्त बताना, क्योंकि उनको तो यह सब पता चला है। और जो यह परिचित और यह गच्छनायक प्रमाद करनेवाले हो तो दूसरे, बल, वीर्य होने के बावजूद
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-७ प्रायश्चित् सूत्रं

चूलिका-१ एकांत निर्जरा

Hindi 1389 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं जे णं गणी अप्पमादी भवित्ताणं सुयाणुसारेणं जहुत्त-विहाणेहिं चेव सययं अहन्निसं गच्छं न सारवेज्जा, तस्स किं पच्छित्तमुवइसेज्जा गोयमा अप्पउत्ती पारंचियं उवइसेज्जा। से भयवं जस्स उ न गणिणो सव्व पमायालंबणविप्पमुक्कस्सावि णं सुयाणुसारेणं जहुत्तविहाणेहिं चेव सययं अहन्निसं गच्छं सारवेमाणस्सेव केइ तहाविहे दुट्ठसीले न सम्मग्गं समायरेज्जा, तस्स वी उ किं पच्छित्तमुवइसेज्जा, गोयमा उवइसेज्जा। से भयवं के णं अट्ठेणं गोयमा जओ णं तेणं अपरिक्खियगुणदोसे निक्खमाविए हवेज्जा, एएणं। से भयवं किं तं पायच्छित्त-मुवइसेज्जा गोयमा जे णं एवं गुणकलिए गणी, से णं जया एवंविहे

Translated Sutra: हे भगवंत ! जो गणी अप्रमादी होकर श्रुतानुसार यथोक्त विधानसह हंमेशा रात – दिन गच्छ की देख – भाल न रखे तो उसे पारंचित प्रायश्चित्त बताए ? हे गौतम ! गच्छ की देख – भाल न करे तो उसे पारंचित प्रायश्चित्त कहना। हे भगवंत ! और फिर जो कोई गणी सारे प्रमाद के आलम्बन से विप्रमुक्त हो। श्रुतानुसार हंमेशा गच्छ की सारणादिक पूर्वक
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-७ प्रायश्चित् सूत्रं

चूलिका-१ एकांत निर्जरा

Hindi 1390 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं जया णं से सीसे जहुत्त संजम किरियाए पवट्टंति तहाविहे य केई कुगुरू तेसिं दिक्खं परूवेज्जा, तया णं सीसा किं समनुट्ठेज्जा गोयमा घोर वीर तव संजमे से भयवं कहं गोयमा अन्न गच्छे पविसित्ताणं। से भयवं जया णं तस्स संतिएणं सिरिगारेणं विम्हिए समाणे अन्नगच्छेसुं पवेसमेव न लभेज्जा, तया णं किं कुव्विज्जा गोयमा सव्व-पयारेहिं णं तं तस्स संतियं सिरियारं फुसावेज्जा। से भयवं केणं पयारेणं तं तस्स संतियं सिरियारं सव्व पयारेहि णं फुसियं हवेज्जा गोयमा अक्खरेसुं से भयवं किं णामे ते अक्खरे गोयमा जहा णं अप्पडिग्गाही कालकालंतरेसुं पि अहं इमस्स सीसाणं वा सीसिणीगाणं वा। से भयवं

Translated Sutra: हे भगवंत ! जब शिष्य यथोक्त संयमक्रिया में व्यवहार करता हो तब कुछ कुगुरु उस अच्छे शिष्य के पास उनकी दीक्षा प्ररूपे तब शिष्य का कौन – सा कर्तव्य उचित माना जाता है ? हे गौतम ! घोर वीर तप का संयम करना। हे भगवंत ! किस तरह ? हे गौतम ! अन्य गच्छ में प्रवेश करके। हे भगवंत ! उसके सम्बन्धी स्वामीत्व की फारगति दिए बिना दूसरे गच्छ
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-७ प्रायश्चित् सूत्रं

चूलिका-१ एकांत निर्जरा

Hindi 1391 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं केवतिएणं कालेणं इहे कुगुरू भवीहंति गोयमा इओ य अद्ध तेरसण्हं वास सयाणं साइरेगाणं समइक्कंताणं परओ भवीसुं। से भयवं के णं अट्ठेणं गोयम तक्कालं इड्ढि रस साय गारव, संगए ममीकार अहंकारग्गीए अंतो संपज्जलंत बोंदी अहमहं ति कयमाणसे अमुणिय समय सब्भावे गणी भवीसुं, एएणं अट्ठेणं। से भयवं किं सव्वे वी एवंविहे तक्कालं गणी भवीसुं गोयमा एगंतेणं नो सव्वे। के ई पुन दुरंत पंत लक्खणे अदट्ठव्वे णं एगाए जननीए जमगसमगं पसूए निम्मेरे पावसीले दुज्जाय जम्मे सुरोद्द पयंडाभिग्गहिय दूर महामिच्छदिट्ठी भविंसु। से भयवं कहं ते समुवलक्खेज्जा गोयमा उस्सुत्तुम्मग्ग वत्तणुद्दिसण अनुमइ

Translated Sutra: हे भगवंत ! कितने समय के बाद इस मार्ग में कुगुरु होंगे ? हे गौतम ! आज से लेकर १२५० साल से कुछ ज्यादा साल के बाद वैसे कुगुरु होंगे। हे भगवंत ! किस कारण से वो कुगुरुरूप पाएंगे ? हे गौतम ! उस समय उस वक्त ऋद्धि, रस और शाता नाम के तीन गारव की साधना कर के होनेवाले ममताभाव, अहंकारभाव रूप अग्नि से जिनके अभ्यंतर आत्मा और देह जल
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-७ प्रायश्चित् सूत्रं

चूलिका-१ एकांत निर्जरा

Hindi 1392 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं जे णं गणी किंचि आवस्सगं पमाएज्जा गोयमा जे णं गणी अकारणिगे किंचि खणमेगमवि पमाए से णं अवंदे उवदिसेज्जा। जे उ णं तु सुमहा कारणिगे वि संते गणी खणमेगमवी न किंचि णिययावस्सगं पमाए से णं वंदे पूए दट्ठव्वे जाव णं सिद्धे बुद्धे पारगए खीणट्ठकम्ममले नीरए उवइसेज्जा। सेसं तु महया पबंधेण सट्ठाणे चेव भाणिहिइ।

Translated Sutra: हे भगवंत ! जो गणनायक आचार्य हो वो सहज भी आवश्यक में प्रमाद करते है क्या ? हे गौतम ! जो गणनायक हैं वो बिना कारण सहज एक पलभर भी प्रमाद करे उसे अवंदनीय समझना। जो काफी महान कारण आने के बावजूद एक पलभर भी अपने आवश्यक में प्रमाद नहीं करते वो वंदनीय, पूजनीय, दर्शनीय यावत्‌ सिद्ध बुद्ध पर पाए हुए क्षीण हुए आँठ कर्ममलवाले
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-७ प्रायश्चित् सूत्रं

चूलिका-१ एकांत निर्जरा

Hindi 1400 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं किमेयाणुमेत्तमेव पच्छित्त-विहाणं जेणेवमाइसे गोयमा एय सामन्नेणं दुवालसण्ह काल मासाणं पइदिण महन्निसाणुसमयं पाणोवरमं जाव स बाल वुड्ढ सेह मयहरायरिय माईणं तहा य अपडिवाइ महोवहि मणपज्जवणाणी छउमत्थ तित्थयराणं एगंतेण अब्भुट्ठानारिहावस्सगसंबंधेयं चेव सामन्नेणं पच्छित्तं समाइट्ठं, नो णं एयाणुमेत्तमेव पच्छित्तं। से भयवं किं अपडिवाइ महोवही मण पज्जवणाणी छउमत्थ वीयरागे य सय-लावस्सगे समनुट्ठीया गोयमा समनुट्ठीया। न केवलं समनुट्ठीया, जमग समगमेवानवरयमनुट्ठीया। से भयवं कहं गोयमा अचिंत बल वीरिय बुद्धि नाणाइसय सत्ती सामत्थेणं। से भयवं के णं अट्ठेणं ते समनुट्ठीया

Translated Sutra: हे भगवंत ! केवल इतना ही प्रायश्चित्त विधान है कि जिससे इसके अनुसार आदेश किया जाता है ? हे गौतम ! यह तो सामान्य से बारह महिने की हरएक रात – दिन के हरएक समय के प्राण को नष्ट करना तब से लेकर बालवृद्ध नवदीक्षित गणनायक रत्नाधिक आदि सहित मुनिगण और अप्रतिपादित ऐसे महा अवधि, मनःपर्यवज्ञानी, छद्मस्थ वीतराग ऐसे भिक्षुक
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-७ प्रायश्चित् सूत्रं

चूलिका-१ एकांत निर्जरा

Hindi 1401 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं किं तं सविसेसं पायच्छित्तं जाव णं वयासि गोयमा वासारत्तियं पंथगामियं वसहि पारिभोगियं गच्छायारमइक्कमणं संघायारमइक्कमणं गुत्ती भेय पयरणं सत्त मंडली धम्माइक्कमणं अगीयत्थ गच्छ पयाण जायं कुसील संभोगजं अविहीए पव्वज्जादाणोवट्ठावणा जायं अओग्गस्स सुत्तत्थोभयपन्नवणजायं अणाययणेक्क खण विरत्तणा जायं देवसियं राइयं पक्खियं मासियं चाउम्मासियं संवच्छरियं एहियं पारलोइयं मूल गुण विराहणं उत्तर गुण विराहणं आभोगानाभोगयं आउट्टि पमाय दप्प कप्पियं वय समण धम्म संजम तव नियम कसाय दंड गुत्तीयं मय भय गारव इंदियजं वसनायंक रोद्द ट्टज्झाण राग दोस मोह मिच्छत्त दुट्ठ

Translated Sutra: हे भगवंत ! विशेष तरह का प्रायश्चित्त क्यों नहीं बताते ? हे गौतम ! वर्षाकाले मार्ग में गमन, वसति का परिभोग करने के विषयक गच्छाचार की मर्यादा का उल्लंघन के विषयक, संघ आचार का अतिक्रमण, गुप्ति का भेद हुआ हो, सात तरह की मांड़ली के धर्म का अतिक्रमण हुआ हो, अगीतार्थ के गच्छ में जाने से होनेवाले कुशील के साथ वंदन आहारादिक
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-७ प्रायश्चित् सूत्रं

चूलिका-१ एकांत निर्जरा

Hindi 1402 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं एरिसे पच्छित्त-बाहुल्ले, से भयवं एरिसे पच्छित्त संघट्टे, से भयवं एरिसे पच्छित्त संगहणे अत्थि केई जे णं आलोएत्ताणं निंदित्ताणं गरहित्ताणं जाव णं अहारिहं तवोकम्मं पायच्छित्त-मनुचरित्ताणं सामन्नमाराहेज्जा पवयणमाराहेज्जा आणं आराहेज्जा जाव णं आयहियट्ठयाए उवसंपज्जित्ताणं सकज्जं तमट्ठं आराहेज्जा गोयमा णं चउव्विहं आलोयणं विंदा, तं जहा–नामा-लोयणं ठवणालोयणं, दव्वालोयणं, भावालोयणं, एते चउरो वि पए अनेगहा वि उप्पाइज्जंति। तत्थ ताव समासेणं नामालोयणं नाममेत्तेण, ठवणालोयणं पोत्थयाइसु मालिहियं, दव्वा-लोयणं नाम जं आलोएत्ताणं असढ भावत्ताए जहोवइट्ठं पायच्छित्तं

Translated Sutra: हे भगवंत ! आपने बताए वैसे प्रायश्चित्त की बहुलता है। इस प्रकार प्रायश्चित्त का संघट्ट सम्बन्ध होता है, हे भगवंत ! इस तरह के प्रायश्चित्त को ग्रहण करनेवाला कोई हो कि जो आलोचना करके निन्दन करके गर्हा करके यावत्‌ यथायोग्य तपोकर्म करके प्रायश्चित्त का सेवन करके श्रामण्य को आराधे, प्रवचन की आराधना करे यावत्‌ आत्महित
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-७ प्रायश्चित् सूत्रं

चूलिका-१ एकांत निर्जरा

Hindi 1423 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] ता जा जरा न पीडेइ वाही जाव न केइ मे। जाविंदियाइं-न हायंति ताव धम्मं चरेत्तु हं॥

Translated Sutra: तो जब तक बुढ़ापे से पीड़ा न पाऊं और फिर मुझे कोइ व्याधि न हो, जब तक इन्द्रिय सलामत है। तब तक मैं धर्म का सेवन कर लूँ। पहले के लिए गए पापकर्म की निन्दा, गर्हा लम्बे अरसे तक करके उसे जलाकर राख कर दूँ। प्रायश्चित्त का सेवन करके मैं कलंक रहित बनूँगा। हे गौतम ! निष्कलुष निष्कलंक ऐसे शुद्ध भाव वो नष्ट न हो उनसे पहले कैसा
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-७ प्रायश्चित् सूत्रं

चूलिका-१ एकांत निर्जरा

Hindi 1430 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एस गोयम विन्नेए सुपसत्थे चउत्थे पए। भावालोयणं नाम अक्खय-सिवसोक्ख-दायगो त्ति बेमि॥

Translated Sutra: हे गौतम ! सुप्रशस्त ऐसे इस चौथे पद का नाम अक्षय सुख स्वरूप मोक्ष को देनेवाले भाव आलोचना है। इस अनुसार मैं कहता हूँ।
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-७ प्रायश्चित् सूत्रं

चूलिका-१ एकांत निर्जरा

Hindi 1433 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] गोयमा निंदिउं गरहिउं सुदूरं पायच्छित्तं चरेत्तु णं। निक्खारिय-वत्थामिवाए खंपणं जो न रक्खए॥

Translated Sutra: हे गौतम ! लम्बे अरसे तक पाप की निन्दा और गर्हा करके प्रायश्चित्त का सेवन करके जो फिर अपने महाव्रत आदि की रक्षा न करे तो जैसे धोए हुए वस्त्र को सावधानी से रक्षण न करे तो उसमें दाग लगने के बराबर हो। या फिर वो जिसमें से सुगंध नीकल रही है ऐसे काफी विमल – निर्मल गंधोदक से पवित्र क्षीरसागर में स्नान करके अशुचि से भरे
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-७ प्रायश्चित् सूत्रं

चूलिका-१ एकांत निर्जरा

Hindi 1439 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं किं आया संक्खेयव्वो उयाहु छज्जीव-निकायमाइ संजमं संरक्खेव्वं गोयमा जे णं छक्कायाइ-संजमं संरक्खे से णं अनंतदुक्ख पयागयाओ दोग्गइ गमणाओ अत्ताणं संरक्खे, तम्हा उ छक्कायाइ संजममेव रक्खेयव्वं होइ।

Translated Sutra: हे भगवंत ! क्या आत्मा को रक्षित रखे कि छ जीवनिकाय के संयम की रक्षा करे ? हे गौतम ! जो कोई छ जीवनिकाय के संयम का रक्षण करनेवाला होता है वो अनन्त दुःख देनेवाला दुर्गति गमन अटकने से आत्मा की रक्षा करनेवाला होता है। इसलिए छ जीवनिकाय की रक्षा करना ही आत्मा की रक्षा माना जाता है। हे भगवंत ! वो जीव असंयम स्थान कितने बताए
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-७ प्रायश्चित् सूत्रं

चूलिका-१ एकांत निर्जरा

Hindi 1440 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं केवतिए असंजमट्ठाणे पन्नत्ते गोयमा अनेगे असंजम-ट्ठाणे पन्नत्ते, जाव णं कायासंजमट्ठाणे। से भयवं कयरेणं से काया संजमट्ठाणे गोयमा काया संजमट्ठाणे अनेगहा पन्नत्ते। तं जहा–

Translated Sutra: हे गौतम ! असंयम स्थान काफी बताए हैं। जैसे कि पृथ्वीकाय आदि स्थावर जीव सम्बन्धी असंयम स्थान, हे भगवंत ! वो काय असंख्य स्थान कितने बताए हैं ? हे गौतम काय असंयम स्थानक कईं तरह के प्ररूपे हुए हैं। वो इस प्रकार –
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-७ प्रायश्चित् सूत्रं

चूलिका-१ एकांत निर्जरा

Hindi 1453 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जह तव-संजम-सज्झाय-ज्झाणमाईसु सुद्ध-भावेहिं। उज्जमियव्वं, गोयम विज्जुलया-चंचले जीए॥

Translated Sutra: हे गौतम ! इस बिजली लत्ता की चंचलता समान जीवतर में शुद्ध भाव से तप, संयम, स्वाध्याय – ध्यान आदि अनुष्ठान में उद्यम करना युक्त है। हे गौतम ! ज्यादा क्या कहे ? आलोचना देकर फिर पृथ्वीकाय की विराधना की जाए फिर कहाँ जाकर उसकी शुद्धि करूँ ? हे गौतम ! ज्यादा क्या कहे कि यहाँ आलोचना – प्रायश्चित्त करके उस जन्म में सचित्त
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-७ प्रायश्चित् सूत्रं

चूलिका-१ एकांत निर्जरा

Hindi 1456 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] किं बहुना गोयमा एत्थं दाऊणं आलोयणं। उण्हवइ जालाइ जाओ फुसिओ वा कत्थ सुज्झिही॥

Translated Sutra: हे गौतम ! ज्यादा कथन क्या करूँ कि आलोयण लेकर फिर तापणा की ज्वाला के पास तपने के लिए जाए और उसका स्पर्श करे या हो जाए तो फिर उसकी शुद्धि कहाँ होगी ? उस अनुसार वायुकाय के विषय में उस जीव की विराधना करनेवाले कहाँ जाकर शुद्ध होंगे ? जो हरी वनस्पति पुष्प – फूल आदि का स्पर्श करेगा वो कहाँ शुद्ध होगा ? उसी तरह बीजकाय को जो
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अध्ययन-७ प्रायश्चित् सूत्रं

चूलिका-१ एकांत निर्जरा

Hindi 1460 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] किं बहुना गोयमा एत्थं दाऊणं आलोयणं। वियलिंदी-बि-ति-चउ-पंचेंदिय-परियावे जो कत्थ स सुज्झिही॥

Translated Sutra:
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अध्ययन-७ प्रायश्चित् सूत्रं

चूलिका-१ एकांत निर्जरा

Hindi 1471 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] आलोइय-निंदिय-गरहिओ वि कय-पायच्छित्त संविग्गो। जो इत्थिं संलवेज्जा गोयमा कत्थ स सुज्झिही॥

Translated Sutra: संवेगित शल्यरहित जो आत्मा स्त्री के साथ बातचीत करे तो हे गौतम ! वो कहाँ शुद्धि पाएगा ? आलोचनादिक करके संवेगित भिक्षु चौदह के अलावा उपकरण का परिग्रह न करे। वो संयम के साधनभूत उपकरण पर दृढ़ता से, निर्ममत्व, अमूर्च्छा, अगृद्धि रखे। हे गौतम ! यदि वो पदार्थ पर ममत्व करेगा तो उसकी शुद्धि नहीं होगी। ओर क्या कहे ? इस विषय
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अध्ययन-७ प्रायश्चित् सूत्रं

चूलिका-१ एकांत निर्जरा

Hindi 1483 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भयवं को उण सो सुसढो कयरा वा सा जयणा जं अजाणमाणस्स णं तस्स आलोइय-निंदिय गरहिओ वि कय-पायच्छित्तस्सा वि संसारं नो विणिट्ठियं ति। गोयमा जयणा नाम अट्ठारसण्हं सीलंग सहस्साणं सत्तरसविहस्स णं संजमस्स चोद्दसण्हं भूयगामाणं तेरसण्हं किरियाठाणाणं सबज्झ-ब्भंतरस्स णं दुवालस-विहस्स णं तवोणुट्ठाणस्स दुवालसाणं, भिक्खू-पडिमाणं, दसविहस्स णं समणधम्मस्स, णवण्हं चेव बंभगुत्तीणं, अट्ठण्हं तु पवयण-माईणं, सत्तण्हं चेव पाणपिंडेसणाणं, छण्हं तु जीवनिकायाणं, पंचण्हं तु महव्वयाणं, तिण्हं तु चेव गुत्तीणं। ... जाव णं तिण्हमेव सम्मद्दंसण-नाण-चरित्ताणं तिण्हं तु भिक्खू कंतार-दुब्भिक्खायंकाईसु

Translated Sutra: हे भगवंत ! वो सुसढ़ कौन था ? वो जयणा किस तरह की थी या अज्ञानता की वजह से आलोचना, निन्दना, गर्हणा प्रायश्चित्त सेवन करने के बावजूद उसका संसार नष्ट नहीं हुआ ? हे गौतम ! जयणा उसे कहते हैं कि जो अठ्ठारह हजार शील के अंग, सत्तरह तरह का संयम, चौदह तरह के जीव का भेद, तेरह क्रिया स्थानक, बाह्य अभ्यंतर – भेदवाले बारह तरह के तप, अनुष्ठान,
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अध्ययन-८

चूलिका-२ सुषाढ अनगारकथा

Hindi 1484 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं केणं अट्ठेणं एवं वुच्चइ ते णं काले णं ते णं समएणं सुसढणामधेज्जे अनगारे हभूयवं। तेणं च एगेगस्स णं पक्खस्संतो पभूय-ट्ठाणिओ आलोयणाओ विदिन्नाओ सुमहंताइं च। अच्चंत घोर सुदुक्कराइं पायच्छित्ताइं समनुचिन्नाइं। तहा वि तेणं विरएणं विसोहिपयं न समुवलद्धं ति एतेणं अट्ठेणं एवं वुच्चइ। से भयवं केरिसा उ णं तस्स सुसढस्स वत्तव्वया गोयमा अत्थि इहं चेव भारहेवासे, अवंती नाम जनवओ। तत्थ य संबुक्के नामं खेडगे। तम्मि य जम्मदरिद्दे निम्मेरे निक्किवे किविणे निरणुकंपे अइकूरे निक्कलुणे णित्तिंसे रोद्दे चंडरोद्दे पयंडदंडे पावे अभिग्गहिय मिच्छादिट्ठी अणुच्चरिय नामधेज्जे

Translated Sutra: हे भगवंत ! किस कारण से ऐसा कहा ? उस समय में उस समय यहाँ सुसढ़ नाम का एक अनगार था। उसने एक – एक पक्ष के भीतर कईं असंयम स्थानक की आलोचना दी और काफी महान घोर दुष्कर प्रायश्चित्त का सेवन किया। तो भी उस बेचारे को विशुद्धि प्राप्त नहीं हुई। इस कारण से ऐसा कहा। हे भगवंत ! उस सुसढ़ की वक्तव्यता किस तरह की है ? हे गौतम ! इस भारत
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अध्ययन-८

चूलिका-२ सुषाढ अनगारकथा

Hindi 1497 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जाव णं पुव्व जाइ सरण पच्चएणं सा माहणी इयं वागरेइ ताव णं गोयमा पडिबुद्धमसेसं पि बंधुयणं बहु णागर जणो य। एयावसरम्मि उ गोयमा भणियं सुविदिय सोग्गइ पहेणं तेणं गोविंदमाहणेणं जहा णं– धि द्धिद्धि वंचिए एयावंतं कालं, जतो वयं मूढे अहो णु कट्ठमण्णाणं दुव्विन्नेयमभागधिज्जेहिं खुद्द-सत्तेहिं अदिट्ठ घोरुग्ग परलोग पच्चवाएहिं अतत्ताभिणिविट्ठ दिट्ठीहिं पक्खवाय मोह संधुक्किय माणसेहिं राग दोसो वहयबुद्धिहिं परं तत्तधम्मं अहो सज्जीवेणेव परिमुसिए एवइयं काल-समयं अहो किमेस णं परमप्पा भारिया छलेणासि उ मज्झ गेहे, उदाहु णं जो सो निच्छिओ मीमंसएहिं सव्वण्णू सोच्चि, एस सूरिए

Translated Sutra: पूर्वभव के जातिस्मरण होने से ब्राह्मणी से जब यह सुना तब हे गौतम ! समग्र बन्धुवर्ग और दूसरे कईं नगरजन को प्रतिबोध हुआ। हे गौतम ! उस अवसर पर सद्‌गति का मार्ग अच्छी तरह से मिला है। वैसे गोविंद ब्राह्मण ने कहा कि धिक्कार है मुझे, इतने अरसे तक हम बनते रहे, मूढ़ बने रहे, वाकई अज्ञान महाकष्ट है। निर्भागी – तुच्छ आत्मा
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अध्ययन-८

चूलिका-२ सुषाढ अनगारकथा

Hindi 1498 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं किं पुन काऊणं एरिसा सुलहबोही जाया सा सुगहियनामधेज्जा माहणी जीए एयावइयाणं भव्व-सत्ताणं अनंत संसार घोर दुक्ख संतत्ताणं सद्धम्म देसणाईहिं तु सासय सुह पयाणपुव्वगमब्भुद्धरणं कयं ति। गोयमा जं पुव्विं सव्व भाव भावंतरंतरेहिं णं नीसल्ले आजम्मा-लोयणं दाऊणं सुद्धभावाए जहोवइट्ठं पायच्छित्तं कयं। पायच्छित्तसमत्तीए य समाहिए य कालं काऊणं सोहम्मे कप्पे सुरिंदग्गमहिसी जाया तमनुभावेणं। से भयवं किं से णं माहणी जीवे तब्भवंतरम्मि समणी निग्गंथी अहेसि जे णं नीसल्लमालोएत्ता णं जहोवइट्ठं पायच्छित्तं कयं ति। गोयमा जे णं से माहणी जीवे से णं तज्जम्मे बहुलद्धिसिद्धी

Translated Sutra: हे भगवंत ! उस ब्राह्मणीने ऐसा तो क्या किया कि जिससे इस प्रकार सुलभ बोधि पाकर सुबह में नाम ग्रहण करने के लायक बनी और फिर उसके उपदेश से कईं भव्य जीव नर – नारी कि जो अनन्त संसार के घोर दुःख में सड़ रहे थे उन्हें सुन्दर धर्मदेश आदि के द्वारा शाश्वत सुख देकर उद्धार किया। हे गौतम ! उसने पूर्वभव में कईं सुन्दर भावना सहित
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अध्ययन-८

चूलिका-२ सुषाढ अनगारकथा

Hindi 1499 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जो दलइ मुट्ठि-पहरेहि मंदरं, धरइ करयले वसुहं। सव्वोदहीन वि जलं आयरिसइ एक्क घोट्टेणं॥

Translated Sutra: जो केवल मुष्ठि के प्रहार से मेरु के टुकड़े कर देते हैं, पृथ्वी को पी जाते हैं, इन्द्र को स्वर्ग से बेदखल कर सकते हैं, पलभर में तीनों भुवन का भी शिव कल्याण करनेवाले होते हैं लेकिन ऐसा भी अक्षत शीलवाले की तुलना में नहीं आ सकता। वाकई वो ही उत्पन्न हुआ है ऐसा माना जाता है, वो तीनों भुवन को वंदन करने के लायक है, वो पुरुष
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अध्ययन-८

चूलिका-२ सुषाढ अनगारकथा

Hindi 1513 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं जे णं केई सामन्नमब्भुट्ठेज्जा से णं एक्काइ जाव णं सत्त अट्ठ भवंतरेसु नियमेण सिज्झेज्जा ता किमेयं अनूनाहियं लक्ख भवंतर परियडणं ति, गोयमा जे णं केई निरइयारे सामन्ने निव्वाहेज्जा से णं नियमेणं एक्काइ जाव णं अट्ठ-भवंतरेसुं सिज्झे। जे उ णं सुहुमे बायरे केई मायासल्ले वा आउकाय परिभोगे वा, तेउकायपरिभोगे वा, मेहुण कज्जे वा, अन्नयरे वा, केई आणाभंगे काऊणं सामन्नमइयरेज्जा से णं जं लक्खेण भवग्गहणेणं सिज्झे, तं महइ लाभे, जओ णं सामन्नमइयरित्ता बोहिं पि लभेज्जा दुक्खेणं। एसा सा गोयमा तेणं माहणी जीवेणं माया कया। जीए य एद्दहमेत्ताए वि एरिसे पावे दारुणे विवागि त्त

Translated Sutra: हे भगवंत ! जो किसी श्रमणपन का उद्यम करे वो एक आदि सात – आँठ भव में यकीनन सिद्धि पाए तो फिर इस श्रमणी को क्यों कम या अधिक नहीं ऐसे लाख भव तक संसार में भ्रमण करना पड़ा ? हे गौतम ! जो किसी निरतिचार श्रमणपन निर्वाह करे वो यकीनन एक से लेकर आँठ भव तक सिद्धि पाता है। जो किसी सूक्ष्म या बादर जो किसी माया शल्यवाले हो, अप्‌काय
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८

चूलिका-२ सुषाढ अनगारकथा

Hindi 1524 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं सा सुज्जसिरी कहिं समुववन्ना गोयमा छट्ठीए नरय पुढवीए। से भयवं केणं अट्ठेणं गोयमा तीए पडिपुण्णाणं साइरेगाणं णवण्हं मासाणं गयाणं इणमो विचिंतियं जहा णं पच्चूसे गब्भं पडावेमि, त्ति एवमज्झवसमाणी चेव बालयं पसूया। पसूयमेत्ता य तक्खणं निहणं गया। एतेणं अट्ठेणं गोयमा सा सुज्जसिरी छट्ठियं गयं त्ति। से भयवं जं तं बालगं पसविऊणं मया सा सुज्जसिरी तं जीवियं किं वा न व त्ति गोयमा जीवियं। से भयवं कहं गोयमा पसूयमेत्तं तं बालगं तारिसेहिं जरा जर जलुस जंबाल पूइ रुहिर खार दुगंधासुईहिं विलत्तमणाहं विलवमाणं दट्ठूणं कुलाल चक्कस्सोवरिं काऊणं साणेणं समुद्दिसिउमारद्धं ताव

Translated Sutra: हे भगवंत ! वो सुज्ञश्री कहाँ उत्पन्न हुई ? हे गौतम ! छठ्ठी नरक पृथ्वी में, हे भगवंत ! किस कारण से ? उसके गर्भ का नौ मास से ज्यादा समय पूर्ण हुआ तब सोचा कि कल सुबह गर्भ गिरा दूँगी। इस प्रकार का अध्य – वसाय करते हुए उसने बच्चे को जन्म दिया। जन्म देने के बाद तुरन्त उसी पल में मर गई। इस कारण से सुज्ञश्री छठ्ठी नरक में गई। हे
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अध्ययन-८

चूलिका-२ सुषाढ अनगारकथा

Hindi 1525 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] आलोइय निंदियगरहिए णं कय पायच्छित्ते वि भवित्ताणं। जयणं अयाणमाणे भमिही सुइरं तु संसारे॥

Translated Sutra: आलोचना, निन्दा, गर्हा, प्रायश्चित्त करने के बावजूद भी जयणा का अनजान होने से दीर्घकाल तक संसार में भ्रमण करेगा। हे भगवंत ! कौन – सी जयणा उसने न पहचानी कि जिससे उस प्रकार के दुष्कर काय – क्लेश करके भी उस प्रकार के लम्बे अरसे तक संसार में भ्रमण करेगा ? हे गौतम ! जयणा उसे कहते हैं कि अठ्ठारह हजार शील के सम्पूर्ण अंग
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-२ Gujarati 263 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अह तं कुंथुं वावाए जइ नो अन्नत्थ-गयं भवे। कंडुएमाणोऽह भित्तादी अनुघसमाणो किलम्मए॥

Translated Sutra: મનુષ્ય ત્યારે શું કરે છે ? હે ગૌતમ ! તે તું સાંભળ. જો તે કુંથુનો જીવ બીજે ચાલ્યો ગયો ન હોય તો ખણજ ખણતા – ખણતા પેલા કુંથુના જીવને મારી નાંખે છે અથવા ભીંત સાથે પોતાના શરીરને ઘસે એટલે કુંથુનો જીવ કલેશ પામે યાવત્‌ મૃત્યુ પામે છે. મરતા કુંથુઆ ઉપર ખણતો તે મનુષ્ય નિશ્ચયથી અતિરૌદ્ર ધ્યાનમાં પડેલો સમજ્યો. જો તે આર્ત અને
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Gujarati 431 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] गोयमा भट्ठ-सीलाणं दुत्तरे संसार-सागरे। धुवं तमनुकंपित्ता पायच्छित्ते पदरिसिए॥

Translated Sutra: ગૌતમ ! શીલભ્રષ્ટોને સંસાર સાગર તરવો ઘણો મુશ્કેલ છે. માટે અવશ્ય તેમની અનુકંપા કરી તેને પ્રાયશ્ચિત્ત અપાય છે.
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Gujarati 433 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] गोयमा जे समज्जेज्जा अनंत-संसारियत्तणं। पच्छित्तेणं धुवं तं पि छिंदे, किं पुणो नरयाउयं॥

Translated Sutra: ગૌતમ ! જેમણે અનંત સંસાર ઉપાર્જન કરેલો છે, એવા આત્મા નક્કી પ્રાયશ્ચિત્તથી તેનો નાશ કરે છે. તો નરકાયુ કેમ ન તોડે ? પ્રાયશ્ચિત્તથી કશું અસાધ્ય નથી, સિવાય બોધિલાભ. કેમ કે એક વખત બોધિલાભ હારી જાય તો ફરી મળવો મુશ્કેલ છે. સૂત્ર સંદર્ભ– ૪૩૩, ૪૩૪
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ शल्यउद्धरण

Gujarati 10 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एवं सव्वं वियाणंते धम्माधम्मं सुहासुहं। अत्थेगे गोयमा पाणी जे मोहायहियं न चिट्ठए॥

Translated Sutra: આવી રીતે સર્વે જીવો ધર્મ – અધર્મ, સુખ – દુઃખ વગેરે જાણે છે. ગૌતમ ! એમાં કેટલાક પ્રાણીઓ એવા હોય છે કે જેઓ આત્મહિત કરનાર ધર્મનું સેવન મોહ અને અજ્ઞાનને કારણે કરતા નથી. વળી પરલોક માટે આત્મહિત રૂપ એવો ધર્મ જો કોઈ માયા – દંભથી કરશે, તો પણ તેનો લાભ અનુભવશે નહીં. સૂત્ર સંદર્ભ– ૧૦, ૧૧
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ शल्यउद्धरण

Gujarati 17 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अत्थेगे गोयमा पाणी जे एरिसमवि कोडिं गते। ससल्ले चरती धम्मं, आयहियं नाव बुज्झइ॥

Translated Sutra: હે ગૌતમ ! કેટલાક એવા પ્રાણીઓ હોય છે કે જેઓ આટલી ઉત્તમ કક્ષાએ પહોંચતા હોય છતાં પણ મનમાં શલ્ય રાખીને ધર્માચરણ કરે છે, પણ આત્મહિત સમજી શકતા નથી. શલ્યરહિત એવું જો કષ્ટકારી, ઉગ્ર, ઘોર, વીર કક્ષાનું તપ દેવતાઈ હજાર વર્ષ સુધી કરે તો પણ તેનું તપ નિષ્ફળ થાય છે. સૂત્ર સંદર્ભ– ૧૭, ૧૮
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ शल्यउद्धरण

Gujarati 33 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] भयवं सुदुद्धरे एस, पावसल्ले दुहप्पए। उद्धरिउं पि न याणंती, बहवे जह वुद्धरिज्जई॥

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! દુઃખે ઉદ્ધરી શકાય તેવું, દુઃખદાયી આ પાપશલ્ય કેમ ઉદ્ધરવું, તે પણ ઘણા જાણતા નથી. હે ગૌતમ! આ પાપશલ્ય સર્વથા મૂળથી ઉખેડી દેવાનું કહેલ છે. ગમે તેવું દુર્ધર શલ્ય હોય તેને અંગોપાંગ સહિત ભેદી નાંખવાનું જણાવેલ છે. પહેલું સમ્યગ્‌દર્શન, બીજું સમ્યગ્‌જ્ઞાન, ત્રીજું સમ્યક્‌ચારિત્ર આ ત્રણે એકીરૂપ થાય, જીવ જ્યારે
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ शल्यउद्धरण

Gujarati 38 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] हयं नाणं कियाहीनं हया अन्नाणतो किया। पासंतो पंगुलो दड्ढो धावमाणो य अंधओ॥

Translated Sutra: ક્રિયા રહિત જ્ઞાન નિરર્થક છે, જ્ઞાન રહિત ક્રિયા પણ સફળ થતી નથી, જેમ દેખતો લંગડો અને દોડતો આંધળો દાવાનળમાં બળી મર્યા. તેથી હે ગૌતમ! બંનેના સંયોગે કાર્યસિદ્ધિ થાય છે. એક ચક્ર કે પૈડાનો રથ ન ચાલે. જ્યારે આંધળો ને લંગડો બંને એકરૂપ બન્યા અર્થાત્‌ લંગડાએ માર્ગ બતાવ્યો તે રીતે આંધળો ચાલ્યો, તો બંને દાવાનળ વાળ વનને
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अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Gujarati 492 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (१) से भयवं जइ एवं ता किं पंच-मंगलस्स णं उवहाणं कायव्वं (२) गोयमा पढमं नाणं तओ दया, दयाए य सव्व-जग-जीव-पाण-भूय-सत्ताणं अत्तसम-दरिसित्तं (३) सव्व-जग-जीव-पाण-भूय-सत्ताणं-अत्तसम-दंसणाओ य तेसिं चेव संघट्टण-परियावण-किलावणोद्दावणाइ-दुक्खु-पायण-भय-विवज्जणं, (४) तओ अणासवो, अणासवाओ य संवुडासवदारत्तं, संवुडासव-दारत्तेणं च दमो पसमो (५) तओ य सम-सत्तु-मित्त-पक्खया, सम-सत्तु-मित्त-पक्खयाए य अराग-दोसत्तं, तओ य अकोहया अमाणया अमायया अलोभया, अकोह-माण-माया-लोभयाए य अकसायत्तं (६) तओ य सम्मत्तं, समत्ताओ य जीवाइ-पयत्थ-परिन्नाणं, तओ य सव्वत्थ-अपडिबद्धत्तं, सव्वत्थापडिबद्धत्तेण य अन्नाण-मोह-मिच्छत्तक्खयं (७)

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! જો એમ છે તો શું પંચમંગલના ઉપધાન કરવા જોઈએ ? ગૌતમ ! પહેલું જ્ઞાન – પછી દયા એટલે સંયમ અર્થાત્‌ જ્ઞાનથી ચારિત્ર – દયા પાલન થાય છે. દયાથી સર્વ જગતના તમામ જીવો, પ્રાણો, ભૂતો, સત્ત્વોને પોતાના સમાન દેખનારો થાય છે. તેથી બીજા જીવોને સંઘટ્ટન કરવા, પરિતાપના – કિલામણા – ઉપદ્રવાદિ દુઃખ ઉત્પાદન કરવા, ભય પમાડવા, ત્રાસ
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Gujarati 493 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (१) से भयवं कयराए विहिए पंच-मंगलस्स णं विणओवहाणं कायव्वं (२) गोयमा इमाए विहिए पंचमंगलस्स णं विणओवहाणं कायव्वं, तं जहा–सुपसत्थे चेव सोहने तिहि-करण-मुहुत्त-नक्खत्त-जोग-लग्ग-ससीबले (३) विप्पमुक्क-जायाइमयासंकेण, संजाय-सद्धा-संवेग-सुतिव्वतर-महंतुल्लसंत-सुहज्झ-वसायाणुगय-भत्ती-बहुमान-पुव्वं निन्नियाण-दुवालस-भत्त-ट्ठिएणं, (४) चेइयालये जंतुविरहिओगासे, (५) भत्ति-भर-निब्भरुद्धसिय-ससीसरोमावली-पप्फुल्ल-वयण-सयवत्त-पसंत-सोम-थिर-दिट्ठी (६) नव-नव-संवेग- समुच्छलंत- संजाय- बहल- घन- निरंतर- अचिंत- परम- सुह- परिणाम-विसेसुल्लासिय-सजीव-वीरियानुसमय-विवड्ढंत-पमोय-सुविसुद्ध-सुनिम्मल-विमल-थिर-दढयरंत

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! કઈ વિધિથી પંચમંગલનું વિનય ઉપધાન કરવું ? ગૌતમ ! અમે તે વિધિ આગળ જણાવીશું. અતિ પ્રશસ્ત તેમજ શોભન તિથિ, કરણ, મુહૂર્ત્ત, નક્ષત્ર, યોગ, લગ્ન, ચંદ્રબલ હોય જેના શ્રદ્ધા સંવેગ નિઃશંક અતિશય વૃદ્ધિ પામેલા હોય. અતિ તીવ્ર ઉલ્લાસ પામતા, શુભાધ્યવસાય સહિત પૂર્ણ ભક્તિ – બહુમાન સહ કોઈ જ આલોક – પરલોકના ફળની ઇચ્છા રહિત સળંગ
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Gujarati 494 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (१) से भयवं किमेयस्स अचिंत-चिंतामणि-कप्प-भूयस्स णं पंचमंगल-महासुयक्खंधस्स सुत्तत्थं पन्नत्तं गोयमा (२) इयं एयस्स अचिंत-चिंतामणी-कप्प-भूयस्स णं पंचमंगल-महासुयक्खंधस्स णं सुत्तत्थं-पन्नत्तं (३) तं जहा–जे णं एस पंचमं-गल-महासुयक्खंधे से णं सयलागमंतरो ववत्ती तिल-तेल-कमल-मयरंदव्व सव्वलोए पंचत्थिकायमिव, (४) जहत्थ किरियाणुगय-सब्भूय-गुणुक्कित्तणे, जहिच्छिय-फल-पसाहगे चेव परम-थुइवाए (५) से य परमथुई केसिं कायव्वा सव्व-जगुत्तमाणं। (६) सव्व-जगुत्तमुत्तमे य जे केई भूए, जे केई भविंसु, जे केई भविस्संति, ते सव्वे चेव अरहंतादओ चेव नो नमन्ने ति। (७) ते य पंचहा १ अरहंते, २ सिद्धे, ३ आयरिए,

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! શું આ ચિંતામણી કલ્પવૃક્ષ સમાન પંચમંગલ મહાશ્રુતસ્કંધના સૂત્ર અને અર્થ પ્રરૂપેલા છે ? હે ગૌતમ ! આ અચિંત્ય ચિંતામણી કલ્પવૃક્ષ સમ મનોવાંછિત પૂર્ણ કરનાર શ્રુતસ્કંધના સૂત્ર અને અર્થ પ્રરૂપેલ છે. તે આ રીતે – જેમ તલમાં તેલ, કમલમાં મકરંદ, સર્વલોકમાં પંચાસ્તિકાય વ્યાપીને રહેલા છે, તેમ આ પંચમંગલ મહાશ્રુતસ્કંધ
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ शल्यउद्धरण

Gujarati 69 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] दिन्नेरिस-भावत्थेहिं नीसल्ला आलोयणा। जेणालोयमाणाणं चेव उप्पन्नं तत्थेव केवलं॥

Translated Sutra: આવા સુંદર ભાવમાં રહેલ અને નિઃશલ્ય આલોચના કરેલ હોય, જેથી આલોચના કરતા – કરતા જ કેવળજ્ઞાન ઉત્પન્ન થાય. હે ગૌતમ ! એવા કેટલાક મહા સત્ત્વશાળી મહાપુરુષોના નામો જણાવીએ છીએ કે જેઓએ ભાવથી આલોચના કરતા કરતા કેવળજ્ઞાન ઉત્પન્ન કર્યું. સૂત્ર સંદર્ભ– ૬૯, ૭૦
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ शल्यउद्धरण

Gujarati 114 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अनंतेऽनाइ-कालेणं गोयमा अत्त-दुक्खिया। अहो अहो जाव सत्तमियं भाव-दोसेक्कओ गए॥

Translated Sutra: ગૌતમ ! અનાદિકાળથી ભાવ – દોષ સેવન કરનાર, આત્માને દુઃખ પમાડનાર છેક સાતમી નરક સુધી ગયા છે. અનાદિ અનંત સંસારમાં જ સાધુઓ શલ્ય રહિત હોય છે. તેઓ પોતાના ભાવ – દોષ રૂપ વિરસ – કયું ફળ ભોગવે છે. હજુ શલ્યથી શલ્યિત થયેલા ભાવિમાં પણ અનંતકાળ સુધી કટુ ફળ ભોગવતા રહેશે. માટે મુનિએ જરા પણ શલ્ય ધારણ ન કરવું. ગૌતમ ! શ્રમણીની કોઈ સંખ્યા
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ शल्यउद्धरण

Gujarati 117 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] गोयम समणीण नो संखा जाओ निक्कलुस-नीसल्ल-विसुद्ध-सुनिम्मल-विमल-मानसाओ अज्झप्प विसोहिए आलोइत्ताण सुपरिफुडं नीसंकं निखिलं निरावयवं निय-दुच्चरियमादीयं सव्वं पि भाव-सल्लं। अहारिहं तवोकम्मं पायच्छित्तमनुचरित्ताणं निद्धोयपाव-कम्म-मल-लेव-कलंकाओ उप्पन्न-दिव्व-वर-केवलनाणाओ। महानुभागाओ महायसाओ महा-सत्त-संपन्नाओ सुग-हियनामधेज्जाओ अनंतुत्तम-सोक्ख-मोक्खं पत्ताओ।

Translated Sutra: ગૌતમ ! પુન્યભાગી કેટલીક સાધ્વીઓના નામો કહીએ છીએ કે જેઓ આલોચના કરતા કેવળજ્ઞાન પામ્યા હોય! અરે રે ! હું પાપકર્મા, પાપમતિ છું. પાપીણીમાં પણ અધિક પાપ કરનારી છું. મેં ઘણું દુષ્ટ ચિંતવ્યું કેમ કે આ જન્મમાં મને સ્ત્રીભાવ ઉત્પન્ન થયો. તો પણ હવે ઘોર, વીર, ઉગ્ર, કષ્ટદાયી તપ અને સંયમને ધારણ કરીશ. સૂત્ર સંદર્ભ– ૧૧૭–૧૨૦
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ शल्यउद्धरण

Gujarati 145 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] निसल्ला केवलं पप्पा सिद्धाओ अनादी-कालेण गोयमा । खंता दंता विमुत्ताओ जिइंदियाओ सच्च-भाणिरीओ॥

Translated Sutra: આ પ્રમાણે શુદ્ધ આલોચના આપીને અનંત શ્રમણીઓ નિઃશલ્ય બની, અનાદિકાળમાં હે ગૌતમ ! કેવળી થઈ, સિદ્ધિ પામી, ઇન્દ્રિય દમી, ઇન્દ્રિય વિજેતા, સત્યભાષી, ત્રિવિધે છકાય સમારંભથી વિરમેલી, ત્રણ દંડના આશ્રવને રોકનારી, પુરુષ કથા અને પુરુષ સંગત્યાગી, સંલાપ અને અંગોપાંગ જોવાથી વિરમેલી, સ્વ શરીર મમત્વરહિત, મહાયશવાળી, દ્રવ્ય –
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ शल्यउद्धरण

Gujarati 154 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] ता गोयम केसिमित्थीणं चित्त-विसोही सुनिम्मला। भवंतरे वि नो होही जेण नीसल्ला भवे॥

Translated Sutra: તેથી હે ગૌતમ ! કેટલીક સ્ત્રીને અતિ નિર્મળ ચિત્ત વિશુદ્ધિ ભવાંતરમાં પણ થતી નથી, કે જેથી તે નિઃશલ્ય ભાવ પામી શકે. કેટલીક શ્રમણીઓ છઠ્ઠ, અઠ્ઠમ, ચાર ઉપવાસ આદિ લાગલગાટ ઉપવાસથી શરીર સૂકવી નાંખે છે, તો પણ સરાગ ભાવને આલોચતી નથી – છોડતી નથી. સૂત્ર સંદર્ભ– ૧૫૪, ૧૫૫
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ शल्यउद्धरण

Gujarati 186 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अत्थेगे गोयमा पाणी जे सल्लं अद्धउद्धियं। माया-लज्जा-भया मोहा झसकारा-हियए धरे॥

Translated Sutra: ગૌતમ ! જગતમાં એવા કેટલાક જીવો હોય છે, જેઓ અર્ધશલ્યનો ઉદ્ધાર કરે, માયા – લજ્જા – ભય – મોહના કારણે મૃષાવાદથી અર્ધશલ્ય મનમાં ધારી રાખે. હીન સત્વી તેમને તેનાથી મોટું દુઃખ ઉત્પન્ન થાય છે. અજ્ઞાન દોષથી ચિત્ત શલ્ય ન ઉદ્દરવાથી ભાવિમાં નક્કી દુઃખી થઈશ તેવો વિચાર થતો નથી. જેમ શરીરમાં શલ્ય કાંટો ઘૂસી ગયા પછી તેને બહાર
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ शल्यउद्धरण

Gujarati 190 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अत्थेगे गोयमा पाणी जे भव-सय-साहस्सिए। सज्झाय-ज्झाण-जोगेणं घोर-तव-संजमेण य॥

Translated Sutra: ગૌતમ ! એવા પણ જીવો હોય છે કે જે લાખો ભવો સુધી સ્વાધ્યાય, ધ્યાન, યોગ, ઘોર તપ – સંયમ થકી શલ્યોદ્ધાર કરીને દુઃખ અને કલેશથી મુક્ત થઈ ફરી પણ બે – ત્રણ ગણા પ્રમાદથી શલ્યવાળા બને છે. ફરી ઘણા જન્માંતરે તપથી દગ્ધ કર્મવાળા શલ્યોદ્ધારાર્થે સમર્થ થાય છે. સૂત્ર સંદર્ભ– ૧૯૦–૧૯૨
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ शल्यउद्धरण

Gujarati 197 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] ता गोयम भाव-दोसेणं आया वंचिज्जई परं। जेणं चउ-गइ-संसारे हिंडइ सोक्खेहिं वंचिओ॥

Translated Sutra: ગૌતમ ! ચાર ગતિરૂપ સંસારમાં મૃગજળ સમાન સંસાર સુખથી ઠગાયેલો, ભાવદોષ રૂપ શલ્યથી છેતરાય છે અને ચારે ગતિમાં ભમે છે.
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-१ Gujarati 226 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] निम्मूलुद्धिय-सल्लेणं सव्व-भावेण गोयमा झाणे पविसित्तु सम्मेयं पच्चक्खं पासियव्वयं॥

Translated Sutra: ગૌતમ ! સર્વ ભાવ સહિત નિર્મૂલ શલ્યોદ્ધાર કરીને સમ્યક્‌ પ્રકારે આ પ્રત્યક્ષ વિચારવું કે આ જગતમાં જે સંજ્ઞી, અસંજ્ઞી, ભવ્ય કે અભવ્ય હોય, પણ સુખાર્થી કોઈપણ આત્મા તીર્છી, ઉર્ધ્વ, અહીં – તહીં એમ દશે દિશામાં અટન કરે છે. સૂત્ર સંદર્ભ– ૨૨૬, ૨૨૭
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